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मेरा नाम सुगंधा है और में दिल्ली की रहने वाली हूँ। मेरे घर में मेरे मम्मी, पापा और मेरे दादा, दादी है। में मेरे बाप की एक ही औलाद हूँ। मुझे मेरे माँ बाप ने बड़े प्यार से बड़ा किया है। आज मेरी उम्र 21 साल की है, लेकिन मुझे देखकर कोई कह नहीं सकता कि मेरी उम्र इतनी कम होगी, क्योंकि मेरा बदन बिल्कुल एक 24 साल की लड़की की तरह हो चुका है, मेरा फिगर साईज 34-28-36 है और इसकी वजह में खुद ही हूँ, जो 18 साल की उम्र से ही सेक्स की तरफ ज़्यादा ध्यान देने लगी थी और लगभग तब से में चूत में उंगली करने लग गयी थी।

मेरे घर में 5 रूम है, एक में मेरे मम्मी पापा और दूसरे में मेरे दादा दादी, जो अब 60 से ज्यादा उम्र के है और ज़्यादातर अपने कमरे में ही लेटे रहते है और तीसरे में में खुद रहती हूँ और बाकि के दो कमरे हम अलग-अलग कामों के लिए उपयोग में लेते है। मेरे पापा की उम्र 38 साल की है। मेरी माँ वैसे तो बहुत खूबसूरत है, लेकिन बहुत ही पुराने विचारो वाली एक साधारण औरत है, जो अपना ज़्यादातर वक़्त पूजा पाठ या अपने सास ससुर की सेवा में और घर के काम काज में गुजारती है। मेरे पापा जो एक बिजनसमैन है और अपना खुद का बिजनेस चलाते है। हम बहुत अमीर तो नहीं है, लेकिन हमारे घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं है। मेरे पापा भी बहुत हैंडसम है, लेकिन मेरी माँ तो उन्हें टाईम ही नहीं दे पाती है, सिर्फ़ रात में जब उनके सोने का वक़्त होता है जब ही उनके पास जाती है।

यह बात तब की है, जब मेरी उम्र 18 साल की थी। एक रात हम सब खाना खाकर सोने के लिए अपने अपने रूम में चले गये थे कि तभी अचानक से मुझे लगा कि मेरे मम्मी पापा के रूम से लड़ने की आवाज़े आ रही है। मम्मी पापा का रूम मेरे रूम से ही लगा हुआ था, मुझे ज़िंदगी में पहली बार लगा था कि मम्मी पापा की लड़ाई हो रही है इसलिए में यह जानना चाहती थी कि वो लड़ क्यों रहे है? तो पहले तो मैंने सोचा कि में मम्मी से जाकर पूंछू, लेकिन फिर बाद में सोचा कि वो लोग मेरे सामने शर्मिंदा हो जाएगे इसलिए मैंने पूछना उचित नहीं समझा, लेकिन फिर भी मेरे मन में वजह जानने की इच्छा तेज होती गयी और जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने उठकर देखने की कोशिश की। मेरे रूम में एक खिड़की थी, जो उनके कमरे में खुलती थी, वो खिड़की बहुत पुरानी तो नहीं थी, लेकिन उसमें 2-3 जगह छेद थे। फिर मैंने अपने रूम की लाईट ऑफ की और उस छेद में आँख लगा दी। अब अंदर का नज़ारा देखकर मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया था।

अब मेरी मम्मी जो कि सिर्फ़ ब्रा और पेटीकोट में थी और बेड पर बैठी थी और मेरे पापा सिर्फ़ अपनी वी-शेप अंडरवेयर में खड़े थे और बार-बार मम्मी को अपनी ब्रा उतारने के लिए कह रहे थे और मेरी मम्मी उन्हें बार-बार मना कर रही थी। फिर मैंने देखा कि मेरे पापा की टाँगों के बीच में जहाँ मेरी पेशाब करने की जगह है, वहाँ कुछ फूला हुआ है। अब मेरी नजर तो बस वही टिक गयी थी और में चाहकर भी अपनी नजर हटा नहीं पा रही थी। अब वो लोग कुछ बात कर रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान तो सिर्फ पापा की टाँगों के बीच में ही था और उनकी बातें सुनने का ध्यान भी नहीं था। अब मेरा दिल ज़ोर- ज़ोर से धड़क रहा था और मेरा बदन बिल्कुल अकड़ गया था और इसके साथ ही मुझ पर एक और बिजली गिरी और फिर मेरे पापा ने झटके से अपना अंडरवेयर भी उतार दिया। ओह गॉड मेरी तो जैसे साँसे ही रुक गयी थी। मेरे पापा की टाँगों के बीच में एक लकड़ी के डंडे की तरह कोई चीज लटकी हुई थी, जो कि मेरे हिसाब से 8 इंच लंबी और 3 इंच मोटी थी, उस चीज को क्या कहते है? मुझे उस वक़्त पता नहीं था। फिर मेरी मम्मी उस चीज को देखकर पहले तो गुस्सा हुई और फिर शर्म से अपनी नजरे झुका ली। अब उन्हें भी मस्ती आने लगी थी और फिर उन्होंने इशारे से पापा को अपने पास बुलाया और उनके उस हथियार को प्यार से सहलाने लगी थी। फिर मम्मी ने अपनी ब्रा उतारी और अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला और फिर बिल्कुल नंगी होकर सीधी लेट गयी और अपनी टांगे खोलकर पापा को अपनी चूत दिखाई और इशारे से उन्हें पास बुलाने लगी थी। फिर मेरे पापा कुछ देर तक तो गुस्से में सोचते रहे और फिर जैसे अपना मन मारकर उनके ऊपर उल्टे लेट गये और अपने एक हाथ से अपना लंड पकड़कर मम्मी की चूत में डाला और हिलते हुए मम्मी को किस करने लगे थे और फिर लगभग 10 मिनट तक हिलने के बाद वो शांत हो गये और ऐसे ही पड़े रहे।

फिर थोड़ी देर के बाद मम्मी ने उन्हें अपने ऊपर से हटाया और अपने कपड़े पहने और लाईट बंद करके सोने के लिए लेट गयी। अब कमरे में बिल्कुल अंधेरा होने की वजह से मुझे कुछ नहीं दिख रहा था, तो तब मैंने भी जाकर लेटने की सोची और फिर में भी अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी, लेकिन अब मेरी आँखों के सामने तो मम्मी पापा की पिक्चर चल रही थी और पापा का वो भयानक हथियार पता नहीं मुझे क्यों बहुत अच्छा लग रहा था? अब मेरा दिल कर रहा था कि में भी उनके हथियार अपने हाथ में लेकर देखूं। उस रात मेरी चूत में बहुत खुजली हो रही थी। फिर मैंने उस रात पहली बार हस्तमैथुन किया। अब मेरे ख्यालों में और कोई नहीं बल्कि मेरे पापा ही थे। फिर जब मेरी चूत का रस निकला, तो तब में इतनी थक चुकी थी कि कब मेरी आँख लग गयी? मुझे पता ही नहीं चला। फिर सुबह मम्मी ने जब आवाज लगाई तो मेरी आँख खुली। फिर मम्मी बोली कि बेटा सुबह के 7 बज रहे है, स्कूल नहीं जाना है क्या? तो तब में उठकर सीधी बाथरूम में गयी और नहाने के लिए अपने कपड़े उतारे।

फिर तब मैंने देखा कि मेरी पेंटी पर मेरी चूत के रस का धब्बा अलग ही दिख रहा है। अब मेरी आँखों के सामने फिर से वही नज़ारा आ गया था। अब मुझे फिर से मस्ती आने लगी थी तो मैंने फिर से अपनी चूत में उंगली करनी चालू कर दी और तब तक करती रही जब तक कि में झड़ नहीं गयी। दोस्तों मुझे इतना मज़ा आया था कि में यह सोचने लगी कि जब उंगली करने में ही इतना मज़ा आता है तो सेक्स में कितना मज़ा आता होगा? और फिर में अपने पापा के साथ ही यह मज़ा लेने की सोचने लगी और सोचने लगी कि कैसे पापा के साथ मज़ा लिया जाए? खैर जैसे तैसे करके में स्कूल जाने के लिए तैयार हुई और ड्रेस पहनकर बाहर आई तो नाश्ते की टेबल पर मेरा पापा से सामना हुआ, में रोज सुबह पापा को गुड मॉर्निंग किस करके विश करती थी। तो तब मैंने उस दिन भी पापा को किस करके ही विश किया, लेकिन इस बार मैंने कुछ ज़्यादा ही गहरा किस किया और थोड़ा अपनी जीभ से उनके गाल को थोड़ा चाट लिया, जिससे मेरे पापा पर कुछ असर तो हुआ, लेकिन उन्होंने मेरे सामने ज़ाहिर नहीं किया था

अब में उनके ठीक सामने जाकर कुर्सी पर बैठकर नाश्ता करने लगी थी और फिर नाश्ता करने के बाद में स्कूल की बस पकड़ने के लिए बाहर जाने लगी, लेकिन मेरा मन पापा को छोड़कर जाने का नहीं हो रहा था, तो तब में बाहर तो गयी, लेकिन कुछ देर के बाद वापस आकर मैंने बहाना बनाया की मेरी बस निकल चुकी है। अब ऐसी स्थिति में पापा मुझे स्कूल छोड़कर आया करते थे, तो तब मम्मी बोली कि जा पापा से कह दे, वो तुझे स्कूल छोड़ आएँगे। फिर में खुशी-खुशी पापा के कमरे में गयी। अब पापा सिर्फ़ अपने पजामे में थे। फिर मैंने पापा से कहा तो वो मुझे स्कूल छोड़ने के लिए राज़ी हो गये। अब पापा अपनी पेंट पहनने लगे थे। फिर मैंने उनके हाथ से पेंट लेते हुए कहा कि पापा पजामा ही रहने दीजिए, में लेट हो रही हूँ। तो तब पापा बोले कि ठीक है, में टी-शर्ट तो पहन लूँ, तू मेरा बाहर इन्तजार कर, तो में बाहर आकर इन्तजार करने लगी

पापा मुझे ज़्यादातर स्कूल कार में ही छोड़ते थे, लेकिन उस दिन मेरे कहने पर उन्होंने मुझे हमारी एक्टिवा स्कूटर पर स्कूल छोड़ने के लिए गये। दोस्तों यहाँ तक तो मेरा प्लान सफल रहा था, लेकिन आगे के प्लान में थोड़ा खतरा था और मुझे यकीन नहीं था कि वो सफल हो जाएगा। फिर में उनके पीछे बैठ गयी और फिर हम स्कूल की तरफ चल दिए। मेरा स्कूल घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर था, रास्ता लंबा था और सुबह का वक़्त था, तो रोड सुनसान थी। फिर जब हम घर से 2 किलोमीटर दूर आ गये, तो तब मैंने पापा से कहा कि गाड़ी में चलाऊँगी। तो तब पापा बोले कि बेटी तुझसे गाड़ी नहीं चलेगी, तो में तो ज़िद्द करने लगी। तो तब पापा परेशान होकर बोले कि ठीक है, लेकिन हैंडल में ही पकडूँगा। अब मुझे मेरा प्लान कामयाब होता दिख रहा था

फिर तब मैंने कहा कि ठीक है और पापा ने गाड़ी साईड में रोककर मुझे अपने आगे बैठाया और मेरी बगल में से अपने दोनों हाथ डालकर हैंडल पकड़ा और धीरे-धीरे चलाने लगे। लेकिन अब गाड़ी चलाने में किसका ध्यान था? अब मेरा ध्यान तो पापा के पजामे में लटके उनके लंड पर था। तो तभी गाड़ी जैसे ही खड्डे में गयी, तो मैंने हिलने का बहाना करके उनका लंड ठीक मेरी गांड के नीचे दबा लिया। अब पापा कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे। अब में अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी थी। अब गर्मी पाकर उनका लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा था, जिससे मुझे भी मस्ती आने लगी थी। अब पापा को भी मज़ा आ रहा था और फिर इस तरह मस्ती करते हुए में स्कूल पहुँच गयी। फिर पापा को जाते वक़्त मैंने एक बार फिर से किस किया। अब पापा शायद मुझे लेकर कुछ परेशान हो गये थे और में मेरी तो पूछो मत, मेरी हालत तो इतना करने में ही बहुत खराब हो गयी थी और मेरी पेंटी इतनी गीली हो चुकी थी कि मुझे लग रहा था मेरी स्कर्ट खराब ना हो जाए।

फिर पूरे दिन स्कूल में मेरे दिमाग में पापा का लंड ही घूमता रहा और अब मेरा दिल कर रहा था कि में पापा के लंड पर ही बैठी रहूँ। अब पता नहीं मुझे क्या हो गया था? ऐसा कौन सा वासना का तूफान मेरे अंदर था कि में पापा से चुदने के लिए ही सोचने लगी थी। खैर आगे बढ़ते है, फिर में चुदाई की इच्छा और गीली पेंटी लेकर घर पहुँची। अब उस वक़्त लगभग 3 बज रहे थे। अब घर में दादा, दादी के अलावा कोई नहीं था, मम्मी कहीं गयी हुई थी और पापा अपने ऑफिस में थे। ख़ैर फिर में बाथरूम में गयी और गंदे कपड़ो में से पापा की अंडरवेयर ढूंढकर अपनी चूत पर रगड़ते हुए हस्तमैथुन किया। अब मुझे बहुत मज़ा आया था और फिर में सो गयी। फिर मेरी आँख खुली तो शाम के 5 बज रहे थे। फिर मैंने नहा धोकर कपड़े पहने और मैंने कपड़े भी उस दिन कुछ सेक्सी दिखने वाले पहने थे, मैंने एक शॉर्ट स्कर्ट और फिटिंग टी-शर्ट पहनी थी। अब पापा के आने का टाईम हो गया था, लेकिन मम्मी का कोई पता नहीं था।

फिर शाम के 6 बजे पापा ने घंटी बजाई तो में दौड़ती हुई गयी और दरवाजा खोला। फिर पापा मुझे देखकर थोड़े मुस्कुराए और मुझे गले लगाकर मेरे गालों पर किस करते हुए बोले कि बेटा आज तो बहुत स्मार्ट लग रही हो। अब मुझे इतनी खुशी हुई थी कि में पापा को फंसाने में धीरे-धीरे सफल होती जा रही थी। फिर अंदर आकर पापा ने चाय का ऑर्डर कर दिया तो में किचन में जाकर चाय बनाने लगी। फिर पापा भी फ्रेश होकर किचन में आ गये और इधर उधर की बातें करने लगे थे। फिर थोड़ी देर में पापा मेरी गोरी जांघो देखकर गर्म हो गये और मेरे पीछे खड़े होकर अपना लंड मेरी गांड से सटाने की कोशिश करने लगे थे। तब में भी अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी। अब मुझे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे में जन्नत में हूँ और बस ऐसे ही खड़ी रहूँ।

ख़ैर अब चाय बन चुकी थी और फिर मैंने पापा से डाइनिंग रूम में जाकर बैठने को कहा और चाय वहाँ सर्व करके बाथरूम में जाकर फिर से उंगली करने लगी थी। फिर में झड़ने के बाद बाहर आई, तो तब तक मम्मी भी आ चुकी थी। मुझे मम्मी पर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि मुझे पापा से अभी और मज़ा लेना था और मम्मी के सामने में कुछ नहीं कर सकती थी। अब पापा भी मम्मी के आने से थोड़े दुखी हो गये थे, क्योंकि ना तो वो कुछ करती थी और ना ही उन्हें कुछ करने देती थी। अब पापा मुझे देखकर बार-बार अपना लंड पजामे के ऊपर से ही सहला रहे थे और मुझे भी उन्हें सताने में बहुत मज़ा मिल रहा था।

अब उस दिन के बाद से मैं पापा से सेक्स करने का प्लान बनाने लगी थी। मैं घर मे जान के छोटे कपड़े पहना करती थी। पापा के सामने जाके झुक जाती जिससे मेरी चुचिया उनको दिख जये। तो कभी अपने रूम का गेट खोल के स्कर्ट ऊपर कर के सो जाती थी। ये सब कभी न क़भी मेरे पापा देख लेते थे। मैंने ध्यन दिया कि उनकी मेरे ऊपर नज़र रह रही है।

अब पापा भी मेरी ओर आकर्षित हो रहे थे। लेकिन कुछ होना तबतक मुमकिन नही था जबतक की मम्मी घर मे थी।

अब आगे की कहानी मैं आपको थर्ड पर्सन में बताती हूँ|

रात को खाने के बाद जयशंकर जी बैठे कुछ हिसाब लगा रहे थे और मम्मी किचन में बिज़ी थी. सुगंधा अच्छी तरह जानती थी कि उसकी माँ किचन से एक घंटे पहले बाहर नहीं आने वाली. वो सारा काम निपटा कर ही बाहर आएंगी और सीधे सोने जाएंगी.

तब सुगंधा ने सोचा कि अभी कुछ करना चाहिए. वो धीरे से जयशंकर जी के पास आकर बैठ गई. वो एक पतली सी टी-शर्ट और पजामे में थी. उसके अन्दर उसने कुछ नहीं पहना हुआ था.

जयशंकर- तुम्हें कुछ चाहिए क्या सुगंधा?

सुगंधा- क्यों.. कुछ चाहिए होगा.. तभी आपके पास आऊंगी क्या? ऐसे नहीं बैठ सकती?

जयशंकर- अरे बेटी, तू तो मेरी जान है.. तुझे बैठने से कौन रोक सकता है?

सुगंधा- पापा पहले आप मुझे गोद में बिठा कर मेरे सर की मालिश करते थे ना.. बहुत अच्छा लगता था. मगर अब तो आप इतने बिज़ी हो गए हो कि मुझ पर ध्यान ही नहीं देते. बस सारा दिन काम काम करते हो.

जयशंकर- अरे तब तू छोटी थी.. इसलिए गोद में बैठा लेता था. अब तू बड़ी हो गई है.

सुगंधा- क्या पापा मैं कहाँ बड़ी हुई हूँ. वैसी ही तो हूँ.. आप बस बहाना कर रहे हो. साफ-साफ बोल दो ना कि आप मुझे प्यार नहीं करते.

जयशंकर- अरे ऐसा कुछ नहीं है बेटी.. तुम तो मेरी जान हो. मैं तुमसे प्यार कैसे नहीं करूँगा.. ऐसा हो सकता है क्या?

सुगंधा- अच्छा ये बात है... तो चलो ये काम को करो साइड में और मुझे पहले की तरह अपनी गोद में बिठा कर मेरी मालिश करो.

जयशंकर जी रात को सिर्फ़ लुंगी पहनते थे.. अन्दर कुछ नहीं और आज तो सुगंधा ने भी कुछ नहीं पहना था. अब जयशंकर जी उसे कुछ कह पाते, तब तक वो उनकी गोद में बैठ गई. जयशंकर जी का लंड सीधा सुगंधा की मुलायम गांड के नीचे दब गया.

जयशंकर जी कुछ समझ पाते, तब तक सुगंधा ने दूसरा पासा फेंक दिया- चलो पापा, अब मेरी गर्दन के पीछे से दबाओ, सर की मसाज करो.. जैसे आप पहले करते थे.

सुगंधा की गांड का स्पर्श पाकर लंड हरकत में आ गया. उसमें धीरे-धीरे तनाव आने लगा क्योंकि लंड और गांड के बीच बस जयशंकर जी की लुंगी और सुगंधा का पतला पजामा ही था. जयशंकर जी का लंड अकड़ रहा था, जिसे सुगंधा ने भी महसूस किया मगर वो तो अनजान बन कर बस अपने पापा को सिड्यूस कर रही थी.

सुगंधा- अब करो ना पापा.. क्या सोचने लगे?

जयशंकर जी की तो हालत देखने लायक थी मगर उन्होंने कुछ ग़लत नहीं सोचा और सुगंधा की गर्दन पर धीरे-धीरे दबाने लगे.. जैसे पहले करते थे.

सुगंधा अब किसी ना किसी बहाने हिल रही थी, जिससे गांड का दबाव लंड पे पड़ता और जयशंकर जी बस हल्की आह.. करके रह जाते.

सुगंधा- उफ़ पापा मेरी पीठ पे खुजली हो रही है.. प्लीज़ खुज़ला दो ना आप.

जयशंकर जी ने टी-शर्ट के ऊपर से खुज़ाया तो सुगंधा ने कहा- ऐसे नहीं.. आप मेरी टी-शर्ट ऊपर करके खुजाओ ना.

जयशंकर जी ने टी-शर्ट थोड़ी ऊपर की तो सुगंधा आगे की ओर झुक गई- पापा थोड़ा ऊपर करो ना प्लीज़.

जयशंकर- अरे कहाँ.. तू ठीक से बता ना?

सुगंधा- जहाँ आप कर रहे हो.. उससे थोड़ा ऊपर करो. वहीं खुजली हो रही है.

जयशंकर जी का हाथ सुगंधा की नंगी पीठ पर था.. जब उन्होंने टी-शर्ट और ऊपर की तो वो समझ गए कि सुगंधा ने ब्रा नहीं पहनी है.

सुगंधा- आह.. पापा यहीं.. हाँ अच्छे से करो ना.

जयशंकर जी का हाथ वहां था, जहाँ ब्रा के स्ट्रीप होते हैं. अब एक बाप के अन्दर धीरे-धीरे शैतान जाग रहा था, वो सोच रहे थे कि सुगंधा नादान है, इसे क्या पता चलेगा.. थोड़ा मज़ा ले लेना चाहिए.

जयशंकर जी ने खुजाते हुए एक उंगली थोड़ी आगे की तरफ़ निकाली. वो शायद सुगंधा के मम्मों को टच करना चाहते थे मगर बाप और बेटी के बीच इतनी जल्दी ये सब होना बहुत मुश्किल होता है. वो थोड़ा डर भी रहे थे तो बस उन्होंने एक बार कोशिश की, उसके पापा ने थोड़ा हॉंसला करके फिर अपना हाथ आगे बढ़ाया और फिर डरते डरते धीरे से अपनी एक उंगली अपनी बेटी के मुम्मों पर फेरी. दोनो के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. जयशंकर का लंड तो इतना टाइट हो गया था की जैसे फट जाएगा. उन्होने धीरे से फिर दुबारा से अपनी उंगली अपनी बेटी के मुम्मों पर फेरी. जब उन्हे अपनी बेटी से कोई भी नाराज़गी जैसा ना लगा तो फिर धीरे से उन्होने अपनी उंगली फिर बेटी के निपल पर फेर दी.

सुगंधा की तो साँस बहुत तेज चलने लगी थी. और उसकी चूत में तो जैसे पानी का झरना ही बहने लगा था. बाप बेटी दोनो बहुत गर्म हो गये थे. सुगंधा को लग रहा था की यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो जल्दी ही अपने पापा से चुड़वाने में कामयाब हो जाएगी इसलिए वो चुपचाप बैठी अपने सखत हो चुके निप्पेल पर अपने पापा की उंगली का मज़ा लेती रही. इतने में अचानक किचन से उसकी मुम्मी के बाहर आने की आवाज़ आई तो जाई जी ने जल्दी से अपने हाथ अपनी बेटी के सख़्त मुम्मों पर से हटा लिए और फिर जल्दी से टी-शर्ट नीचे कर दी.

जयशंकर- बस हो गई ठीक.. चल अब उठ मुझे काम भी करना है.

सुगंधा- अरे अभी दो मिनट भी नहीं हुए पापा.. प्लीज़ गर्दन पे करो ना.. आप बहुत अच्छा करते हो, जिससे नींद बहुत अच्छी आती है.

सुगंधा धीरे-धीरे गांड को हिला रही थी.. जिससे लंड अब बेकाबू हो गया और ऊपर से जयशंकर जी ये जान गए कि सुगंधा ने ब्रा नहीं पहनी और गांड की रगड़ से उनको समझने में देर नहीं लगी कि पैंटी भी नहीं है. अब तो उनका लंड एकदम टाइट हो गया और उसमें दर्द भी होने लगा.

जयशंकर- अच्छा करता हूँ, एक मिनट उठ और ठीक से बैठ जा.

सुगंधा अपने मन में बोली कि पता है पापा.. आपका लंड खड़ा हो गया है, मगर सॉरी पापा इसको खड़ा करूँगी तभी आप किसी के साथ करने को तैयार होंगे.

जयशंकर- क्या सोच रही है.. उठ ना एक बार?

सुगंधा- मैं उठ जाऊंगी तो आप मुझे दोबारा नहीं बैठाओगे.

जयशंकर- अरे बैठ जाना तू... अच्छा थोड़ी उठ जा, बस फिर बैठ जाना ओके.

सुगंधा थोड़ी सी ऊपर हुई तो जयशंकर जी ने जल्दी से लंड को एड्जस्ट किया. अब वो लुंगी में तंबू बना रहा था, जैसे ही सुगंधा बैठी.. उन्होंने लंड को दोनों जाँघों के बीच से आगे निकाल दिया. पहले तो उनका लंड सिर्फ़ अपनी बेटी की चुतड़ों पर ही घिस रहा था पर अब ज्यों ही उनका लंड अपनी बेटी के दोनो टाँगों के बीच से आगे निकला तो वो सीधा चूत पर ही जा कर टकराया. बाप बेटी दोनो के ही मुँह से ज़ोर की सिसकारी निकल पड़ी.

सुगंधा अब तक जो भी कर रही थी, ये उसके लिए आसान नहीं था मगर वो हिम्मत करके सब कर रही थी. मगर जब अपने पापा का लंड उसने सीधे चुत पे महसूस किया तो उसकी जान निकल गई.

जयशंकर अपने मन में सोच रहे थे कि उफ़ ये क्या हो रहा है.. मैं अपनी ही बेटी की वजह से गर्म क्यों हो रहा हूँ.. नहीं ये ग़लत है.

सुगंधा मन में सोच रही थी कि आह.. पापा.. आपका लंड तो बहुत तन गया.. मेरी चुत ने अगर पानी छोड़ दिया तो मेरा पजामा गीला हो जाएगा उफ़ नहीं..

दोनों चुपचाप थे मगर ये चुप्पी ज़्यादा देर नहीं रही

अब सुगंधा ने ऐसी हरकत कर दी, जिससे जयशंकर जी के अन्दर का बाप छुप गया और एक उत्तेजित मर्द बाहर आ गया.

सुगंधा पीछे मुड़ी और उसने अपने पापा के गाल पे जोरदार किस कर दी और साथ ही साथ अपनी चुत को जल्दी से एक-दो बार लंड पे अच्छे से रगड़ भी दिया- आई लव यू पापा.. आप बहुत अच्छे हो.. रियली आप वर्ल्ड के बेस्ट पापा हो.

जयशंकर जी अब अपना कंट्रोल खो चुके थे. उन्होंने भी सुगंधा को कस के पकड़ लिया और अपना हाथ इस तरह सुगंधा के पेट पर रखा कि जब वो चाहे बस हल्का सा हाथ ऊपर करते और उस कमसिन कन्या के चूचे छू लेते.

थोड़ी देर ये नाटक चलता रहा. अब दोनों ही ज़्यादा उत्तेजित हो गए थे, सुगंधा की चुत रिसने लगी थी, अब ज़्यादा देर बैठना ख़तरे से खाली नहीं था और यही हाल जयशंकर जी का था. उनको लग रहा था अगर कुछ देर ऐसे ही चलता रहा तो वो अपना आपा खो देंगे और सुगंधा के मम्मों को मसल देंगे.

सुगंधा- आह.. पापा.. अपने आज कितने दिनों बाद ऐसे किया, मुझे बहुत अच्छा लगा. अब मुझे जाना चाहिए, आप अपना काम कर लो.

इतना कहते हुए सुगंधा उठ गई और बहुत आराम से पीछे मुड़ी ताकि जयशंकर जी को संभलने का मौका मिल जाए और वो लंड जो तना हुआ है उसे वो छुपा लें.

जयशंकर जी ने वैसा ही किया. जल्दी से उन्होंने लुंगी को ऊपर की तरफ़ समेट लिया, जिससे लंड का उभार दिखाई देना बंद हो गया.

सुगंधा अब जयशंकर जी के ठीक सामने खड़ी थी मगर उसने एक ग़लती कर दी उसे जल्दी वहां से निकल जाना चाहिए था क्योंकि चुत की जगह पे हल्का सा गीलापन था और जयशंकर जी की नज़र सीधी वहीं चली गई. जब सुगंधा को ये अहसास हुआ उसके तो पैर वहीं जम गए. अब उससे ना रुकते बन रहा था ना जाने की उसमें हिम्मत आ रही थी.

जयशंकर- जाओ सुगंधा बेटा.. अब सो जाओ.

सुगंधा- ज्ज..जी पापा बाय.

इससे ज़्यादा सुगंधा कुछ ना बोल सकी और फ़ौरन वहां से चली गई.

जयशंकर- इस लड़की को ये क्या हो गया. बिना ब्रा-पैंटी के मेरी गोद में बैठ गई और इसके नीचे गीलापन हुआ.. कहीं इसने लंड को महसूस तो नहीं किया. नहीं नहीं.. ये मैं क्या सोच रहा हूँ सुगंधा बच्ची है, ये बस इत्तेफ़ाक से हुआ है.

जयशंकर जी काफ़ी देर तक ऐसे ही बड़बड़ाते रहे, फिर मम्मी आ गई और वो अपने हिसाब में बिज़ी हो गए.

मम्मी- आपको सोना नहीं है क्या जी??

जयशंकर- तुम सो जाओ, मुझे थोड़ा काम है.. मैं बाद में सो जाऊंगा.

उधर सुगंधा सीधे अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई और उस पल को याद करने लगी.

सुगंधा- आज तो गड़बड़ हो गई.. शायद पापा ने मेरी गीली चुत देख ली.. मगर मैंने ये ठीक किया क्या? अब पापा सारी रात परेशान रहेंगे. माँ तो मानेगी भी नहीं.. काश किसी तरह उनका पानी निकल जाए तो उन्हें थोड़ा सुकून मिल जाए. ये माँ भी ना सेक्स नहीं करती हैं. कम से कम लंड चूस कर ही पापा को शांत कर सकती हैं.. मगर नहीं वो बिल्कुल नहीं करने वालीं.. काश मैं कुछ कर पाती.

बहुत देर तक सुगंधा ऐसे ही अपने आपसे बातें करती रही. फिर उसने सोचा कि अगर मौका मिल जाए तो शायद वो कुछ करेगी.

सुगंधा ऐसे ही ख्यालों में एक घंटे तक बिस्तर पर पड़ी रही, फिर अचानक उसने बाहर कुछ आहट सुनी तो वो जल्दी से उठी और बाहर गई. उसने देखा कि उसके पापा किचन से पानी ले रहे थे.

सुगंधा- अरे पापा आप सोये नहीं अभी तक..?

जयशंकर- बस अब सोने जा रहा हूँ.. मगर तू क्यों जागी हुई है? तुझे नींद नहीं आ रही क्या?

सुगंधा- कब से सोने की कोशिश कर रही हूँ.. मगर नींद आती ही नहीं.

जयशंकर- अच्छा ये बात है तो चल आज मैं तुझे सुला देता हूँ जैसे पहले सुलाता था.

सुगंधा- ओह वाउ पापा.. रियली मज़ा आएगा.. आज कितने टाइम बाद आपकी गोद में सर रख कर सोऊंगी और आप मेरे बालों में हाथ घुमा कर मुझे सुलाओगे.

जयशंकर जी सुगंधा के कमरे में आकर बेड पर पालथी मारकर बैठ गए और सुगंधा उनकी जाँघ पर सर रख कर लेट गयी.

जयशंकर- अब तू अपनी आँख बंद करके सोने की कोशिश कर.. मैं तेरे सर को सहला कर तुझे सुलाता हूँ.. ठीक है ना!

सुगंधा ने 'ठीक है..' कहा और आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगी. थोड़ी देर ये सब चलता रहा जयशंकर जी बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ घुमा रहे थे.

सुगंधा को अचानक अहसास हुआ कि वो पापा के लंड के कितने करीब है. वैसे तो उस वक़्त लंड सोया हुआ था, मगर सुगंधा के दिल में आया कि ये अच्छा मौका है, वो लंड के एकदम करीब है. अगर थोड़ी कोशिश करेगी तो उसके मुँह से लंड टच हो जाएगा.. मगर उसके लिए पहले लंड को खड़ा करना जरूरी है. फिर उसके दिमाग़ में एक आइडिया आया.

सुगंधा- पापा मेरे मुँह पर कोई कपड़ा डाल दो ना.. ऐसे तो मुझे नींद ही नहीं आएगी.

जयशंकर- अच्छी बात है.. तो ऐसा कर कोई दुपट्टा डाल ले या फिर ये चादर डाल कर सो जा, मैं चादर के ऊपर से तेरा सर सहला दूँगा और तुझे नींद आ जाएगी.

सुगंधा- हाँ ये ठीक रहेगा और पापा सिर्फ़ सर मत सहलाना.. गर्दन और कंधे भी दबाना.. मुझे अच्छा लगता है.

जयशंकर- अच्छा कर दूँगा. चल अब ये चादर डाल ले और सोने की कोशिश कर.

सुगंधा ने मुँह पर चादर डाल ली और जयशंकर जी उसके सर को सहलाने लगे. अब सुगंधा ने अपने हाथ चादर के अन्दर कर लिए थे और बहुत हल्के से वो लुंगी के ऊपर से लंड को छूने लगी. यानि कुछ इस तरह से छूने लगी कि जयशंकर जी को जल्दी समझ में नहीं आता कि वो टच कर रही है या उनका लंड ही वहाँ है.

सुगंधा की कोशिश कामयाब होने लगी. लंड महाराज इतनी सी छुवन भी भाँप गए और बस ख़ुशी के मारे फूलने लगे. अब जयशंकर जी का लंड खड़ा होगा तो उन्हें तो पता होगा ही ना, बस वो बेचैन हो गए और उन्होंने चादर में हाथ डाल कर लंड को एड्जस्ट किया ताकि सुगंधा को पता ना लगे. मगर सुगंधा तो अब फास्ट हो रही थी, तो फ़ौरन उसने जयशंकर जी को टोक दिया.

सुगंधा- पापा आप सर दबाओ ना.. चादर के अन्दर क्यों हाथ ला रहे हो.

जयशंकर- अरे वो थोड़ी खुजली हो रही थी तो बस खुजाने के लिए लाया था. तू सोने की कोशिश कर.. ऐसे ही बोलती रहेगी क्या?

सुगंधा- अच्छा अच्छा सो रही हूँ मगर अबकी बार आपको खुजली हो, तो मुझे बता देना.. मैं कर दूँगी. आप बस मेरा सर सहलाओ.

जयशंकर जी ने 'ठीक है..' कहा और फिर सर को सहलाने लगे. अब सुगंधा फिर से लंड पर उंगली घुमा रही थी और लंड था कि बस अकड़े जा रहा था.

जयशंकर जी ने बहुत ध्यान लगाया कि लंड से कुछ टच हो रहा है मगर सुगंधा इतने हल्के तरीके से छू रही थी, जिससे जयशंकर जी को समझ नहीं आ रहा था कि सुगंधा छू रही है या कपड़े की रगड़ से लंड खड़ा हुआ है.

अब जयशंकर जी सुगंधा के कंधे दबाने लगे और सुगंधा के चिकने जिस्म पर उनका हाथ लगते ही लंड ने जोरदार अंगड़ाई ली. अब लंड अपने पूरे शवाब पर आ गया था. सुगंधा को अब भी पता नहीं चल रहा था कि लंड किस पोज़िशन में है, वो बस हल्की सी उंगली टच कर रही थी. फिर उसने करवट लेने के बहाने जल्दी से पूरा हाथ लंड पर लगा दिया और उसको ये जानकार झटका लगा कि पापा का लंड काफ़ी बड़ा और एकदम कड़क है.

ये इतना अचानक हुआ कि जयशंकर भी समझ नहीं पाए कि सुगंधा ने जानबूझ कर लंड छुआ या अंजाने में हो गया.

सुगंधा के करवट लेने के बाद सारा मामला ही बदल गया. जयशंकर जी की लुंगी थोड़ी सरक गई और लंड का टोपा बाहर निकल आया. ये बात दोनों को ही नहीं पता थी. मगर जब सुगंधा थोड़ी आगे हुई उसके होंठ सीधे सुपारे से टच हुए. तो उसी पल जयशंकर जी भी समझ गए कि लंड बाहर निकल गया है. मगर वो कुछ नहीं बोले और वैसे ही सुगंधा की टी-शर्ट में हाथ डालकर उसकी गर्दन और पीठ को सहलाते रहे.

सुगंधा ने सोचा ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा. उसने धीरे से अपनी जीभ निकाल कर सुपारे पर घुमाई और जयशंकर जी फ़ौरन हरकत में आ गए.

जयशंकर- सुगंधा सो गई क्या.. कुछ बोल तो?

सुगंधा ने सांस रोक ली और चुपचाप वैसे ही पड़ी रही.

जयशंकर जी को लगा कि सुगंधा शायद सो गई है. उन्होंने धीरे से चादर हटाई तो अन्दर का नजारा देख कर उनके होश उड़ गए.

सुगंधा करवट लेकर सोई हुई थी और लंड पूरा बाहर था. सुगंधा के होंठ लंड से एकदम सटे हुए थे.

ये नजारा देख कर एक पल के लिए जयशंकर जी सब कुछ भूल गए और उनकी अन्तर्वासना जाग गई. सुगंधा के नर्म होंठ लंड से सटे हुए थे और जयशंकर जी के शरीर में करंट दौड़ने लगा था. उन्होंने लंड को हाथ से पकड़ा और सुगंधा के होंठों पे रगड़ने लगे.

सुगंधा इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी. वो घबरा गई और जल्दी से सीधी होकर लेट गई. अब उसकी साँसें तेज चल रही थीं और उसके चूचे साँसों के साथ ऊपर-नीचे होने लगे.

जयशंकर जी ने जल्दी से लुंगी ठीक की और लंड को अन्दर कर लिया. मगर उनकी नज़र अब सुगंधा के मदमस्त मम्मों पर जा टिकी.

जयशंकर जी ने एक-दो बार सुगंधा को आवाज़ दी. उसे हिलाया.. मगर वो जस की तस रही. अब सोई होती तो शायद जाग जाती.. मगर जागती हुई को कैसे जगाया जाए.

जयशंकर जी को जब यकीन हो गया कि सुगंधा सो गई है.. उन्होंने डरते हुए अपना एक हाथ सुगंधा के एक चूचे पे रख दिया, मगर उन्होंने कोई हरकत नहीं की, बस चूचे पर हाथ रखे हुए सुगंधा के चेहरे को देखते रहे.

सुगंधा अपने मन में सोचने लगी कि ओह गॉड.. पापा ये क्या कर रहे हो. मेरे चूचे पे हाथ क्यों रख दिया.. उफ़ अब मैं क्या करूँ?

सुगंधा सोच ही रही थी कि क्या करूँ तभी उसके कान में जयशंकर जी की धीमी आवाज़ आई- ओह सुगंधा.. तुम अब बड़ी हो गई हो.. उफ़ तेरे जिस्म में कितनी आग है.. देखो मेरा हाथ तेरे चूचे पे रखा हुआ कैसे जल रहा है. तूने तो आज मेरी आग भड़का दी है.. काश तेरी माँ भी तेरे जैसी गर्म होती. अब मैं क्या करूँ.. कहाँ जाऊं.. कैसे अपने इस लंड को शांत करूँ.

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा को बहुत दुख हुआ और वो अपनी माँ को कोसने लगी. फिर उसने डिसाइड किया कि अब जो हो देखा जाएगा. बस वो आज तो अपने पापा को शांत करके ही सोएगी.

जयशंकर जी ने अपना हाथ वापस हटा लिया, शायद वो डर रहे थे और सुगंधा को लगा कि अब शायद वो चले जाएँगे.

सुगंधा मन में बुदबुदाने लगी- ओह गॉड पापा तो जा रहे हैं.. ऐसे तो सारी रात ये परेशान ही रहेंगे. क्या करूँ सुगंधा.. कुछ कर तू.. ओह लगता है मुझे पापा को कुछ नजारा दिखाना ही होगा.

सुगंधा ने पेट पर खुजली के बहाने टी-शर्ट को ऊपर कर दिया और थोड़ी देर खुजा कर वो शांत हो गई. मगर उसके आधे चूचे अब नंगे हो गए और जयशंकर जी उन्हें देख कर अपने होश खो बैठे.

जयशंकर- हे भगवान ये आज मेरे साथ क्या हो रहा है.. मैं जितना सुगंधा से दूर जाना चाहता हूँ, हालात मुझे इसके और करीब ला रहे हैं. अब ऐसा नजारा सामने है, मैं जाऊं या रुकूं.. क्या करूँ.

जयशंकर जी दुविधा में थे. उनका लंड तो अकड़ कर उन्हें इशारा दे रहा था कि कली सामने है और तू जा रहा है.. मसल दे. मगर दिल बोल रहा था कि नहीं वो तेरी बेटी है, ये ग़लत है.. यहाँ से जा चला जा.

जयशंकर जी अभी किसी नतीजे पे पहुँच पाते, तब तक सुगंधा ने दूसरा धमाका कर दिया.

सुगंधा ने धीरे से आँख खोल कर देखा तो जयशंकर जी खड़े हुए कुछ सोच रहे थे. सुगंधा अपने मन में बोल रही थी- लगता है पापा इतने से नहीं रुकेंगे.. कुछ और करना होगा.

सुगंधा ने फिर खुजने के बहाने से अबकी बार अपने पजामे में हाथ डाल दिया और उसे थोड़ा नीचे कर दिया यानि पजामे को बस दो इंच और नीचे करती तो उसकी चुत का दीदार उसके पापा को हो जाता. मगर सुगंधा इतना कैसे कर रही थी, ये वही जानती थी. बिना चुदे ही उसकी गांड फट रही थी. ये तो पिछले दिनों की कुछ गंदी हरकतें थीं, जो उसमें इतनी हिम्मत आ गई. फिर भी डर से उसकी साँसें तेज हो गई थीं.

अब नजारा कुछ ऐसा था टी-शर्ट पूरी ऊपर.. और पजामा नीचे सरका हुआ था, जिससे सुगंधा का पूरा पेट नंगा और आधे मम्मों की झलक दिख रही थी. इसी के साथ उसकी चुत के ऊपर का हिस्सा भी दिख रहा था. इस हालत में एक बाप अपने अन्दर के मर्द के सामने हार गया.

अब जयशंकर की आँखों में सिर्फ़ वासना नज़र आ रही थी. वो धीरे से बिस्तर पर बैठ गए और सुगंधा की टी-शर्ट को पूरा ऊपर कर दिया. अब उस कमसिन कली के 30″ के दिल को छू लेने वाले चूचे पूरे नंगे होकर जयशंकर जी के सामने थे. वो नजारा देख कर उनके होंठ सूख गए. उनका मन कर रहा था कि जल्दी से सुगंधा के पिंक निप्पलों को चूस लें, मगर वो उठ ना जाए.. ये डर भी उनके मन में था.

वो थोड़ी देर ऐसे ही उस नजारे को देखते रहे, फिर हिम्मत करके उन्होंने एक चूचे को हाथ में लिया और धीरे-धीरे उसे दबाने लगे.

सुगंधा की तो हालत खराब थी, वो मुँह को कसके भींचे हुए पड़ी थी कि उसकी कहीं सिसकी ना निकाल जाए.

जयशंकर जी को लगा कि सुगंधा गहरी नींद में है, तो वो थोड़ा खुलकर उसके मम्मों को सहलाने लगे.. उसके निप्पलों को छेड़ने लगे. थोड़ी देर ऐसा करने के बाद उन्होंने एक निप्पल अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू किया. मगर ये कुछ ज़्यादा हो रहा था और सुगंधा के लिए अब अपने आपको रोक पाना मुश्किल था. वो नींद में फिर खुजाने के बहाने हिली और उसने अपनी टी-शर्ट को नीचे कर दिया. इस हरकत के कारण जयशंकर जी फ़ौरन उससे अलग हो गए.

सुगंधा- ओह गॉड.. ये पापा तो कुछ ज़्यादा ही गर्म हो गए हैं.. अब क्या करूँ ऐसे तो इन्हें पता लग जाएगा कि मैं उठी हुई हूँ.. हे भगवान कोई आइडिया दो.. मैं कैसे इन्हें शांत करूँ.

जयशंकर जी थोड़ी देर वैसे ही शांत बैठे रहे.. जब उनको लगा सुगंधा शांत है. तो उन्होंने अबकी बार सुगंधा का पजामा धीरे से नीचे किया और उसकी चुत को देख कर हल्के से बोल पड़े- वाह, क्या मस्त चुत है तेरी सुगंधा.. कोई नसीब वाला ही होगा जिसे तू मिलेगी. अब तूने मेरी आग तो भड़का दी है.. मगर इस लंड को कैसे शांत करूँ. तेरे साथ ज़्यादा कुछ कर भी नहीं सकता, तू जाग गई तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी.

जयशंकर जी बड़बड़ा रहे थे मगर अबकी बार सुगंधा ने एकदम ध्यान दिया तो उसे सब समझ आ गया. तभी उसके दिमाग़ में एक आइडिया आया और वो नींद में बोलने लगी.

सुगंधा- उम्म्म टीना प्लीज़, मुझे भी आईसक्रीम चूसनी है.. उम्म दो ना प्लीज़..

सुगंधा ने अपना मुँह खोल दिया था जयशंकर जी ने सोचा नींद में अपनी सहेली के साथ बात कर रही है. सुगंधा का खुला हुआ मुँह देख कर जयशंकर जी से रहा नहीं गया, वो उसके पास खड़े हो गए और धीरे से अपना सुपारा उसके होंठों पर टिका दिया.

सुगंधा तो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी. उसने सुपारे को चाटना शुरू किया और मुँह में पूरा लंड लेने की कोशिश करने लगी, मगर जयशंकर जी का लंड काफ़ी मोटा था और सुगंधा नींद में थी तो ऐसे कैसे ले लेती. इससे तो उसकी चोरी पकड़ी जाती मगर उसका ये काम उसके पापा ने आसान कर दिया.

जयशंकर जी ने लंड पर दबाव बनाया और सुपारा उसके मुँह में घुसा दिया. अब सुगंधा धीरे-धीरे अपने पापा का लंड चूसने लगी.

जयशंकर- आह.. सुगंधा तेरी आईसक्रीम के चक्कर में तू अपने पापा का लंड चूस रही है.. उफ्फ बहुत मज़ा आ रहा है.

ये खेल आगे चलता.. इससे पहले एक गड़बड़ हो गई.. बाहर जोर की आवाज़ हुई शायद कोई बर्तन गिरा था और उस आवाज़ के होते ही जयशंकर जी ने जल्दी से लंड मुँह से निकाला और लुंगी में डाल लिया.

ना चाहते हुए भी सुगंधा की आँख खुल गई, शायद घबराहट की वजह से ऐसा हुआ था. मगर उसकी आँखें खुलीं तो सीधे जयशंकर जी की आँखों से मिल गईं. अब सुगंधा का दिमाग़ कंप्यूटर की तरह चलने लगा. एक ही पल में उसने बात को संभाल लिया.

सुगंधा ने एक जोरदार अंगड़ाई ली, जैसे वो बहुत गहरी नींद से जागी हो.

सुगंधा- उम्म्म उम्म्म पापा.. क्या हुआ इतनी जोर से आवाज़ आई.. मैं डर गई कैसी आवाज़ थी ये? और आप अभी तक यहीं हो.. मुझे कब नींद आई, पता भी नहीं चला.

जयशंकर- अरे कुछ नहीं बिल्ली होगी शायद.. तू सो जा.. मैं जाकर देखता हूँ.

सुगंधा- पापा मुझे डर लग रहा है.. प्लीज़ आप देख कर वापस आ जाना. मैं सो जाऊं फिर आप चाहें तो चले जाना.

जयशंकर- अच्छा ठीक है.. तू रुक, मैं बाहर देख कर आता हूँ.

जयशंकर जी बाहर चले गए और सुगंधा बिस्तर पे बैठ गई.

सुगंधा- शिट.. ये क्या किया मैंने.. मुझे ऐसे अचानक आँख नहीं खोलनी चाहिए थी. कहीं पापा को कुछ शक हो गया तो..! अब क्या करूँ वैसे पापा का लंड काफ़ी मोटा है शायद.. इसी लिए मेरे मुँह में नहीं जा रहा था. काश एक बार में देख पाती. अब पापा वापस आएँगे तो क्या करूँ.. कैसे उनको शांत करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा.

तभी..

जयशंकर- मैंने कहा था ना बिल्ली होगी. उसको मैंने भगा दिया. चल अब तू सो जा, रात बहुत हो गई है. मैं अपने कमरे में जाता हूँ.. नहीं तेरी माँ उठेगी और मुझे वहां नहीं देखेगी तो घबरा जाएगी.

सुगंधा की ज़रा भी हिम्मत नहीं हुई कि वो कुछ बोले या उन्हें रुकने को कहे. उसने बस 'हाँ' में गर्दन हिला दी और चादर लेकर सो गई.

जयशंकर जी ने कुछ सोचा, फिर वो भी कमरे में चले गए. अब उनको कहाँ नींद आने वाली थी. बस बार-बार सुगंधा के चूचे और चिकनी चुत ही उन्हें दिखाई दे रही थी. उनका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था. वो उठे और एक बार सुगंधा के कमरे के पास जाकर रुके, जब उन्हें लगा सुगंधा सो गई तो वो टॉयलेट में जाकर लंड को सहलाने लगे.

अब आपको बता दूँ कि सुगंधा भी सोयी नहीं थी, वो भी उन्हीं पलों को याद कर रही थी. तभी उसे अहसास हुआ कि कमरे के बाहर कोई है तो वो सोने का नाटक करने लगी. जब जयशंकर जी टॉयलेट में चले गए, तो वो धीरे से कमरे से बाहर आई और टॉयलेट के पास जाकर रुक गई.

जयशंकर जी अन्दर बैठे अपने लंड को सहला रहे थे और सुगंधा को याद कर रहे थे.

जयशंकर- आह.. सुगंधा बेटी... ये तूने क्या कर दिया.. उफ्फ तेरे हुस्न को देख कर आज तेरा बाप पागल हो गया. देख लंड कैसे अकड़ा हुआ है.. उफ्फ मैं तेरे होंठों का स्पर्श अभी तक महसूस कर रहा हूँ.. आह.. आह.. चूस ले सुगंधा.. जोर से चूस आह.. मज़ा आ रहा है.

अपने पापा के मुँह से अपने बारे में ऐसी गंदी बातें सुनकर सुगंधा भी उत्तेजित हो गई और उसने वहीं खड़ी रह कर अपने पजामे को नीचे किया. अब वो अपनी चुत को उंगली से रगड़ने लगी थी.

अब सीन देखिए.. अन्दर बाप और बाहर बेटी वासना की आग में जल रहे थे.

काफ़ी देर तक जयशंकर जी सुगंधा के नाम की मुठ मारते रहे और आख़िर उनके लंड ने पानी छोड़ ही दिया, इधर सुगंधा भी झड़ चुकी थी. उसका पूरा हाथ रस से भीग गया था. उसने जल्दी से पजामा ऊपर को किया और जल्दी से अपने कमरे में जाकर लेट गई.

सुगंधा- उफ्फ ये मुझे क्या हो गया था. मैं कैसे बाहर अपनी चुत को रगड़ रही थी. अगर माँ आ जातीं तो सस्स.. आज पानी निकालने में इतना मज़ा क्यों आया.. क्या पापा के बारे में सोच कर? नहीं नहीं.. ये ग़लत है. मुझे बस पापा को किसी और के साथ सेक्स करने के लिए तैयार करना है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं.

सुगंधा ऐसे ही सोचती हुई सो गई और उधर जयशंकर जी पानी निकालने के बाद भी शांत नहीं हुए. वो बस रात भर सुगंधा के बारे में सोचते रहे और आख़िरकार उन्हें भी नींद ने अपने आगोश में ले लिया.

सुबह का सूरज क्या नई कहानी लेकर आएगा, ये तो सुबह ही पता लगेगा.

रोज की तरह जयशंकर जी जल्दी उठ गए और चाय पी रहे थे. जब बहुत देर तक सुगंधा अपने कमरे से बाहर नहीं आई.

जयशंकर- अरे आज सुगंधा नहीं उठी क्या.. उसको कॉलेज नहीं जाना क्या?

मम्मी- आपकी याददाश्त कमजोर हो गई है.. बादाम खाया करो, आज सनडे है और सनडे को कौन सा कॉलेज खुलता है?

जयशंकर- अरे हाँ.. याद आया. कल शाम तक तो याद था कि आज दुकान का माल आने वाला है, अभी पता नहीं कैसे भूल गया.

मम्मी- आज भी आप दुकान जाओगे क्या? मैं सोच रही थी कि आज मैं माता के मंदिर होकर आऊँगी.

जयशंकर- तो मुझसे तुझे क्या काम है.. चली जाना, किसने रोका है?

मम्मी- अरे सुगंधा भी तो घर पर है, अब लड़की को अकेली छोड़ कर जाऊं क्या?

जयशंकर- अरे तो मैं कौन सा शाम तक रहूँगा.. बस अभी गया और अभी आया. सामान की लिस्ट चैक करनी है, बाकी तो आदमी देख लेंगे.

मम्मी- ठीक है जी.. आप होकर आ जाओ, तब तक मैं अपना काम निपटा लेती हूँ और अपनी लाड़ली को भी उठा दो.. ताकि उसे भी नाश्ता करवा दूँ.

सुगंधा को उठाने की बात सुनकर जयशंकर जी के जिस्म में करंट दौड़ गया. उन्हें रात वाली बात याद आ गई, वो उठे और सुगंधा के कमरे में चले गए. उस वक़्त सुगंधा सीधी लेटी हुई थी. उसके बाल चेहरे पर थे और सांस के साथ सीना ऊपर-नीचे हो रहा था.

ये नजारा देख कर जयशंकर जी का मन डोल गया, वो उसके पास बैठ गए- सुगंधा उठ जाओ, सुबह हो गई है.

सुगंधा ने कोई रेस्पॉन्स नहीं दिया, वो वैसे ही बेसुध सोई रही. तब जयशंकर जी ने थोड़ी हिम्मत करके उसके मम्मों पे हाथ लगाया और धीरे से दबा दिया.. जिससे सुगंधा की नींद टूट गई और वो उठ गई. जयशंकर जी ने जल्दी से हाथ हटा लिया.

सुगंधा- उउउह क्या है.. पापा सोने दो ना.. आज छुट्टी है. आज तो मेरा बस सोने का मन कर रहा है.

जयशंकर- बच्चे तेरी माँ को मंदिर जाना है. तू उठ जा, नाश्ता कर ले. फिर मुझे भी दुकान जाना है.

सुगंधा उठ कर बैठ गई और उसने एक जोरदार अंगड़ाई ली और अपने पापा से लिपट गई- पापा, आप कितने अच्छे हो.. रात को अपने कितने प्यार से मुझे सुलाया.. मुझे बहुत अच्छी नींद आई.

जयशंकर- अच्छा ऐसी बात है.. तो मैं रोज तुझे ऐसे सुला दूँगा, चल अब उठ जा.

सुगंधा- पापा, आज दुकान मत जाओ ना. माँ भी जा रही हैं, मैं अकेली क्या करूँगी.

जयशंकर- अरे मैं अभी जाकर जल्दी आ जाऊंगा.. बस सामान की लिस्ट देखनी है.. फिर पूरा दिन तेरे साथ ही रहूँगा.

जयशंकर जी के दिमाग़ में अभी भी कोई विचार नहीं आया था. वो बाहर जाकर वापस कुर्सी पे बैठ गए. सुगंधा जल्दी बाहर आ गई उसके बाद नाश्ता किया और अपनी माँ का हाथ बंटाने लगी.

जयशंकर जी वहां से निकल गए.

सुगंधा ने मेनडोर अनलॉक किया हुआ था और खिड़की से छुपकर वो अपने पापा के आने का इन्तजार कर रही थी.

सुगंधा- ओह पापा कहाँ रह गए, आ जाओ ना जल्दी से.. आपके लिए अभी तक मैं नहाई भी नहीं हूँ. आज मैं आपको अपना जिस्म दिखाना चाहती हूँ. मैं आपकी सोई हुई अन्तर्वासना आज जगा दूँगी. फिर आप किसी को भी चोदने को राज़ी हो जाओगे.

सुगंधा ये बातें सोच ही रही थी तभी उसे पापा आते हुए दिखाई दिए. वो जल्दी से भाग कर अपने कमरे के बाथरूम में चली गई और अपने कपड़े निकाल दिए.

जैसा सुगंधा ने सोचा, ठीक वैसा ही हुआ. जयशंकर जी अन्दर आए और बिना आवाज़ किए वो सीधे सुगंधा के कमरे में आ गए. शायद उनके मन में भी चोर था. सुगंधा ने की-होल से उन्हें आता देखा तो पानी का शावर चालू कर दिया और मज़े से गुनगुनाते हुए नहाने लगी.

जयशंकर जी धीरे से की-होल के पास बैठ गए और जैसे ही उन्होंने अन्दर देखा, उनका लंड एक झटके में खड़ा हो गया.. जैसे कोई बरसों का प्यासा हो.

सुगंधा के जवान जिस्म को देख कर जयशंकर जी के अन्दर वासना भर गई. उनका दिल करने लगा कि अभी अन्दर जाकर उसके खड़े निपल्स को चूस के उसके मदमस्त चूचों को मसल डालें और उसकी कुँवारी चुत का सारा रस पी जाएं. मगर बीच में जो बाप और बेटी के रिश्ते की दीवार थी.. उसको कैसे तोड़ें.

जयशंकर जी ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और सुगंधा की सुलगती जवानी को देखते हुए वो लंड को सहलाने लगे.

सुगंधा को पता था कि बाहर उसके पापा उसकी जवानी का मज़ा लूट रहे हैं. ये सोचकर उसके निप्पल हार्ड हो गए, चुत में खुजली होने लगी मगर उसने अपने आप पर काबू रखा. सुगंधा ये बिल्कुल नहीं चाहती थी कि अपने पापा के सामने वो चुत को रगड़े या कुछ ऐसी हरकत करे, जिससे उसके पापा उसे गंदी लड़की समझें. वो तो बस अनजान बन कर अपने पापा को मज़े देना चाहती थी.

जब सुगंधा नहा चुकी तो उसने अपने जिस्म को अच्छे से पौंछा और सिर्फ़ टॉवल लपेट कर वो बाहर आ गई. तब तक जयशंकर जी वहां से बाहर निकल गए थे और फिर उन्होंने बाहर से सुगंधा को आवाज़ दी, जैसे वो अभी-अभी घर में दाखिल हुए हों.

जयशंकर- सुगंधा कहाँ हो तुम? देखो मैं जल्दी आ गया ना.

सुगंधा ने कोई जवाब नहीं दिया और बस मुस्कुराते हुए धीरे से बोली- वाह पापा, मेरे जिस्म को देख कर आँखें सेंक ली, अब बहाना बना रहे हो. वैसे आपका लंड भी तो मेरी चुत की तरह फड़क रहा होगा, उसे तो मैं ही अपने मुँह से चूस-चूस कर ठंडा करूँगी. देखना आप.

सुगंधा- मैं नहा रही थी पापा.. बस अभी कपड़े पहन कर आती हूँ.

जयशंकर- अरे घर में ही तो रहना है, कपड़े पहनने की क्या जरूरत है.

जयशंकर जी को पता नहीं क्या हो गया था. वो कुछ भी बोल रहे थे मगर फ़ौरन उन्हें अहसास हुआ तो बात बदल दी.

जयशंकर- एमेम... मेरा मतलब है जल्दी से कुछ भी पहन ले.. कोई घर में पहनने लायक कपड़े.. समझ गई ना..!

सुगंधा- ओके पापा, बस अभी एक मिनट में आई.

सुगंधा ने अपने कपड़ों में से एक कॉटन की मैक्सी निकाली और पहन ली. इसके अन्दर उसने कुछ नहीं पहना था.

सुगंधा- ये लो आ गई. पापा इस मैक्सी में मैं कैसी लग रही हूँ?

जयशंकर- वाह बहुत अच्छी लग रही हो मगर ये तो वो पुरानी वाली है ना?

सुगंधा- हाँ पापा मगर ये पतली है.. तो इसमें आराम रहता है और वैसे भी आज मैंने ये बहुत दिनों बाद पहनी है.

जयशंकर- अच्छी बात है.. बैठ कर बातें करेंगे.

सुगंधा- पापा पहले आप कपड़े तो बदल लो, ऐसे पैन्ट पहन कर काम करोगे क्या?

जयशंकर जी को लगा सुगंधा सही बोल रही है और वैसे भी उनका इरादा उसके मज़े लेने का था तो पैन्ट में मज़ा नहीं आता, इसलिए वो अन्दर गए और सिर्फ़ लुंगी और बनियान पहन कर आ गए, उसके बाद बाथरूम का लॉक लगा दिया.

जयशंकर- ले भाई, ये काम तो हो गया, अब बोल?

सुगंधा- पापा, पहले आप मेरे साथ कितना रहते थे मगर अब तो आप बहुत बिज़ी रहते हो.. मेरे साथ खेलते ही नहीं.

जयशंकर- अरे मेरा तो बड़ा मन है तेरे साथ खेलने का.. मगर डर लगता है.

सुगंधा- कैसा डर पापा..? मैं आपकी बात का मतलब कुछ समझी नहीं.

जयशंकर- व्व..वो मेरा मतलब है तुझे कोई चोट ना लग जाए इसलिए.

सुगंधा- हा हा हा हम कौन सा कुश्ती लड़ने वाले हैं जो चोट लगेगी.

जयशंकर- हाँ ये भी है. चल आज तेरे मन की बात पूरी करते हैं, बोल क्या खेलेगी?

सुगंधा सोचने लगी कि ऐसा कौन सा खेल खेले, जिससे वो पापा को मज़ा दे सके और उनका लंड भी देख सके. रात से उसके मन में ख्याल था कि पापा का लंड कैसा होगा.

सुगंधा- कुछ समझ में नहीं आ रहा पापा क्या खेल खेलूँ.

जयशंकर- अरे अभी तो बोल रही थी खेलते नहीं. अब खुद ही सोच में पड़ गई. चल ऐसा कर मैं तुझे गोदी में बिठा कर झूला झुला देता हूँ और तेरे सर की मालिश भी कर दूँगा. बोल क्या कहती है.

सुगंधा मन में- अच्छा पापा बड़ी जल्दी है आपको मज़ा लेने की.. मेरी चुत से लंड टच करना चाहते हो क्या.

जयशंकर- अरे कुछ तो बोल.. हाँ या ना.. ऐसे पुतला बन कर क्यों खड़ी हो गई..?

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा के दिमाग़ में एक आइडिया आया- वाउ पापा क्या आइडिया दिया है, ये मस्त है इसमें मज़ा आएगा.

जयशंकर- अरे क्या आइडिया आया मुझे भी बता.

सुगंधा- पापा हम एक खेल खेलते हैं जिसमें एक पुतला बन जाएगा और दूसरा उसके जिस्म से छेड़खानी करेगा, लेकिन उसको हिलना नहीं है. वो सिर्फ़ बोल सकता है. ये टाइम देख कर खेलेंगे जो ज़्यादा देर तक टिका रहा, वो जीत जाएगा और हारने वाले की बात मानेगा.

जयशंकर- नहीं नहीं, इसमें कुछ मज़ा नहीं आएगा थोड़ी सी गुदगुदी की और खेल खत्म.. कुछ और सोच, जिसमें मज़ा आए.

सुगंधा ने थोड़ी देर सोचा मगर उसके दिमाग़ में कोई आइडिया नहीं आया, जिससे वो खेल के बहाने पापा को मज़ा दे सके. साथ ही जयशंकर जी भी इसी सोच में थे कि कैसे वो सुगंधा को लंड चुसवाए, उनके दिल में बस यही बात थी कि एक बार सुगंधा उनका लंड चूस दे और वो उसके निपल्स चूस सकें.

सुगंधा- मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा आप सोचो, मुझे तो भूख लगने लगी है. मैं फ़्रीज़ से केला लेकर आती हूँ. आपको भी एक लाकर दूँ क्या.

जयशंकर जी सुगंधा के पास गए और उसके चेहरे को पकड़ कर मुस्कुराने लगे.

सुगंधा- क्या हुआ? केला चाहिए आपको भी?

जयशंकर- नहीं सुगंधा मेरे दिमाग़ में एक खेल आ गया है. तू ये बता अगर केला खाने की वजह चूसा जाए तो कैसा लगेगा?

सुगंधा- हा हा हा पापा, आप भी ना कुछ भी.. ये कैसा खेल हुआ? भला कोई केला भी चूसने की चीज है क्या?

जयशंकर- अरे पगली पता है मुझे.. मगर ये एक खेल है. अच्छा सुन तुझे मैं ठीक से समझाता हूँ. देख इस खेल में आँखें और हाथ बंद होंगे. मैं तुझे फ़्रीज़ की कोई भी चीज जैसे केला हो या कोई सब्जी जैसे भिंडी या तुरयी, कुछ भी मुँह में दूँगा. तू उसे चूस कर बताना वो क्या है?

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा की आँखों में चमक आ गई, वो समझ गई इस खेल में उसे लंड चूसने को मिलेगा और साथ ही साथ वो अपने पापा की होशियारी पर फिदा हो गई. मगर उसे थोड़ा शक हुआ अगर जयशंकर जी ने लंड ना चुसवाया तो फिर उसने भी दिमाग़ दौड़ाया और फिर बोली- वाओ पापा, ये गेम तो बहुत मस्त सोचा आपने, मगर फ़्रीज़ में क्या-क्या है ये तो मुझे पता है. फिर सब्जी की तो खुशबू से ही पता लग जाएगा कोई ऐसी चीज चूसने को देना, जिसका आसानी से पता ना लग सके. जैसे पेन या पेन्सिल या कोई भी ऐसी चीज जिसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो. हाँ साथ में सब्जी भी यूज करना ताकि कन्फयूजन रहे और खेल लंबा चले.​
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