Page 02
जयशंकर जी ये सुनकर बड़े खुश हुए कि सुगंधा ने उनकी मुश्किल आसान कर दी.
जयशंकर- हाँ ऐसे ही करेंगे, चलो अब पहले तुम्हारी आँख और हाथ बाँध दूँ.
सुगंधा- क्यों मेरी क्यों.. आपकी क्यों नहीं? आप टेस्ट करोगे और बताओगे, मैं नहीं बताने वाली.
सुगंधा ने तो जयशंकर जी के अरमानों पर पानी फेर दिया मगर ये भी उसकी अपने पापा को तड़पने की एक साजिश थी.
जयशंकर- अरे नहीं आइडिया मैंने दिया, तो मैं ही पहले खेलूँगा. आँख तुम्हें बंद करनी होगी समझी!
सुगंधा ने थोड़ी ज़िद की, मगर फिर वो मान गई. वैसे भी उसे मानना ही था.
जयशंकर- तुम यहा कुर्सी पर बैठोगी, पीछे तुम्हारे हाथ बाँध दूँगा और आँख पर पट्टी.. ताकि ना तुम छूकर पता कर सको, ना देख कर, समझी!
सुगंधा- पापा इस सबकी क्या जरूरत है मैं हाथ नहीं लगाऊंगी और सच्ची में आँख भी बंद रखूँगी, प्लीज़ ऐसे ही करते है ना.
जयशंकर- नहीं खेल के कुछ नियम होते हैं, उसी हिसाब से खेलना चाहिए.
सुगंधा मान गई तो जयशंकर जी ने उसे कुर्सी पे बैठा कर पीछे हाथ बाँध दिए और आँखें भी बंद कर दीं.
जयशंकर- इन्तजार कर.. बस मैं अभी सब चीजें लेकर आता हूँ हाँ..!
जयशंकर के जाने के बाद सुगंधा दिल ही दिल में बहुत खुश थी कि आज तो उसे पापा का लंड खुलकर चूसने को मिलेगा.
जयशंकर- हाँ तो सुगंधा तैयार हो तुम? और हाँ सिर्फ़ जीभ और होंठों से पता करना है.. किसी भी चीज को दाँत मत लगाना.
सुगंधा मन में- ओह पापा डरो मत.. मैं आपके लंड को प्यार से चुसूंगी, काटूंगी नहीं, बस जल्दी से मेरे मुँह में आप अपना लंड घुसा दो.
जयशंकर- कुछ सुन भी रही है तू.. मैंने अभी क्या कहा तुमसे?
सुगंधा- हाँ पापा सुन लिया, अब शुरू करो.
जयशंकर जी ने पहले सुगंधा के मुँह में रोटी बेलने का बेलन दिया और थोड़ी देर में सुगंधा ने बता दिया. उसके बाद केला, पेन्सिल दिया, वो भी सुगंधा ने बता दिया.
सुगंधा- पापा मैं जीत गई, मैंने सब चीज सही बताई हैं.
जयशंकर- अरे अभी कहाँ.. अब लास्ट चीज बाकी है. इसका नाम बता तब तू जीतेगी.
सुगंधा- अच्छा तो लाओ, उसमें क्या है अभी उसका नाम भी बता देती हूँ.
जयशंकर जी अब उत्तेजित हो गए थे, उन्होंने अपना लंड लुंगी से बाहर निकाला, जो अभी आधा ही खड़ा था.. यानि पूरे शबाब पे नहीं आया था.
जयशंकर- ये अनोखी चीज है सुगंधा, ध्यान से बताना तू.. ठीक है?
इतना कहकर वो लंड को उसके होंठों के एकदम पास ले गए.
सुगंधा ने पहले जीभ से सुपारे को चाटा और फिर धीरे से अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
जयशंकर जी को असीम आनन्द की प्राप्ति हुई, मगर वो अपने ज़ज्बात को काबू में किए हुए वैसे ही खड़े रहे.
सुगंधा ने थोड़ी देर लंड चूसा, फिर मुँह हटा लिया क्योंकि थोड़ा नाटक करना पड़ता है, नहीं तो जयशंकर जी को शक हो जाता.
सुगंधा- पापा, ये क्या है बहुत अजीब सी चीज है, गोल भी है, नर्म भी है कुछ नमकीन सा स्वाद है, समझ नहीं आ रहा.
जयशंकर- अरे कहा था ना.. ये हार्ड है. ऐसे जल्दी समझ नहीं आएगा वैसे तुझे एक हेल्प देता हूँ. ये लंबी चीज है अगर तू पूरा मुँह में लेकर चूसेगी तो शायद इसका नाम बता पाएगी, नहीं तो हार जाओगी.
सुगंधा ने फिर लंड को मुँह में ले लिया और मज़े से चूसने लगी. जयशंकर जी भी अपनी बेटी को लंड चुसवा कर बहुत ज़्यादा खुश हो रहे थे.
सुगंधा सुपारे को होंठों में दबा कर चूस रही थी. अब वो ज़्यादा से ज़्यादा लंड मुँह में लेना चाहती थी मगर वो कोई मॉंटी का लंड तो था नहीं, जो वो पूरा निगल जाती. ये तो 8″ का अज़गर था, जिसे निगलना मुश्किल था. दूसरी बात वो चीज को पहचानने के लिए ये कर रही थी, तो ज़्यादा मज़ा भी नहीं ले सकती थी. मगर उसने एक तरकीब लगाई, लंड को वापस बाहर निकाला.
जयशंकर- अरे क्या हुआ.. तुझे इसका नाम पता चल गया क्या?
सुगंधा- नहीं पापा समझ में नहीं आ रहा. ये तो कोई बड़ी लॉलीपॉप जैसी कोई चीज है. इसमें से थोड़ा नमकीन रस जैसा आ रहा है.. और ऐसा स्वाद मैंने लाइफ में कभी नहीं चखा है.
सुगंधा की बात सुनकर जयशंकर जी थोड़े घबरा गए क्योंकि उनके लंड से पानी की बूंदें आने लगी थीं और सुगंधा को शक ना हो जाए ये सोच कर उन्होंने बात को बदल दिया और सुगंधा तो खुद यही चाहती थी.
जयशंकर- अरे वाह तू तो बहुत करीब आ गई. ये रियल में ऐसी ही चीज है, इसमें रस भी रियल है. अब तू इसको चूसती रह और मज़ा लेती रह. जब समझ आ जाए बता देना.
सुगंधा- ठीक है पापा अब तो खुलकर चूसना पड़ेगा.. तभी मज़ा आएगा.
जयशंकर- हाँ ये हुई ना बात, चल चूस और रस के पूरे मज़े ले.
सुगंधा को अब कोई डर नहीं था वो खुलकर लंड को चूसने लगी. मगर एक गड़बड़ थी कि उसने पेंटी नहीं पहनी थी और उसकी चुत रस टपका रही थी. ऐसे तगड़े लंड की चुसाई से उसकी उत्तेजना भी बढ़ गई थी. उसका बहुत मन था कि उसके पापा उसकी चुत को चूस कर उसकी खुजली मिटा दें. मगर ये इतना आसान नहीं था, तो वो बस लंड को चूस कर मज़ा लेने लगी.
काफ़ी टाइम तक ये लंड चुसाई चलती रही. अब तो जयशंकर जी धीरे-धीरे झटके भी मारने लगे थे, उनकी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी. उनके विशाल लंड से रस की धारा निकलने को बेताब थी, तभी उन्होंने जल्दी से लंड को बाहर निकाला और पास पड़े प्याले में सारा रस निकाल दिया तब जाकर उनको सुकून मिला.
सुगंधा भी समझ गई थी कि उसके पापा ठंडे हो गए हैं मगर उसने अनजान बनने का नाटक किया- क्या हुआ पापा, चुसाओ ना.. बहुत मज़ा आ रहा था.
जयशंकर- बस बस.. बहुत टाइम हो गया और तू इसको पहचान भी नहीं पाई इसका मतलब तू हार गई है.
सुगंधा- अरे थोड़ी देर और चूसती तो पता लग जाता ना पापा.
जयशंकर- नहीं अब तुझे हार मान लेनी चाहिए.. मैंने तुझे बहुत मौका दिया.
सुगंधा- अच्छा बाबा हार गई मैं.. बस हैप्पी! चलो अब मुझे खोलो तो.
जयशंकर जी ने वो प्याला टेबल के नीचे छुपा दिया और लुंगी ठीक करके सुगंधा को खोल दिया. मगर ये सब करने के पहले उन्होंने ये नहीं सोचा था कि लास्ट में सुगंधा को वो क्या चीज का नाम बताएँगे.
सुगंधा- ओफफो आप बहुत स्मार्ट हो पापा.. लास्ट में चीज ऐसी ले आए कि मैं पता ही नहीं लगा सकी. वैसे अब तो में हार गई हूँ, तो बताओ मुझे वो क्या चीज थी.. जिसे चूसने में मुझे इतना मज़ा आ रहा था?
जयशंकर- व्व..वो तत..तू हार गई है. अब तुझे मेरी बात माननी पड़ेगी समझी.
सुगंधा- अरे मगर वो चीज का नाम तो मुझे पता होना चाहिए ना?
जयशंकर- नहीं अगर बता दूँगा तो दोबारा मैं कैसे जीतूँगा.. चल तू हार गई है.
सुगंधा- अच्छा ऐसे कैसे हार गई. आपकी बारी भी आएगी और आपको भी ऐसे ही बताना होगा.
जयशंकर जी तो अब ठंडे हो गए थे. अब कहाँ उनका मन था, तो बस वो बहाना बनाने लगे कि वो थक गए हैं, आराम करना है.
सुगंधा- ये चीटिंग है पापा, ऐसे मैं नहीं हार मानूँगी ओके.
बोलते बोलते सुगंधा की नज़र टेबल के नीचे पड़े प्याले पे गई.
सुगंधा- अच्छा तो वो चीज अपने नीचे छुपा कर रखी है, अभी देखती हूँ.
सुगंधा उस प्याले को लेने लगी, तो घबराहट में जयशंकर जी ने सुगंधा के पैर में पैर मार दिया, जिससे वो उलझ कर गिर गई और उसकी मैक्सी भी ऊपर हो गई. जिसकी वजह से उसकी खुली चुत के दीदार जयशंकर जी को हो गए.
सुगंधा की नज़र जयशंकर जी की नज़र पर गई, जो कहीं और ही टिकी थी. तब उनकी नज़र का पीछा करते हुए सुगंधा को अहसास हुआ कि वो उसकी चुत को घूर रहे हैं, जो रस से भीगी हुई थी और चमक रही थी.
सुगंधा ने हालत को समझते हुए जल्दी से कपड़े ठीक किए और झूठ मूट का नाटक करने लग गई.
सुगंधा- ओह माँ.. मर गई मैं उउउह पापा.
जयशंकर- अरे ठीक से चल भी नहीं सकती. अब गिर गई ना.. दिखा कहाँ लगी है.
सुगंधा के दिमाग़ में अपनी चुत को शांत करने का फ़ौरन आइडिया आ गया.
सुगंधा- आह.. पापा पैर में दर्द हो रहा है और कमर में भी जोर से लगी है.
जयशंकर- अच्छा तू खड़ी हो, मैं देखता हूँ.
सुगंधा- आह.. उठा भी नहीं जा रहा.. बहुत दर्द हो रहा है पापा.
जयशंकर जी उसके पास बैठ गए और उसके चेहरे को देखने लगे.
जयशंकर- सॉरी बेटा.. मेरी वजह से ही तू गिरी है. अगर मेरा पैर बीच में नहीं आता तो तुझे तकलीफ़ नहीं होती. मगर तू घबरा मत, मैं अभी तुझे उठा कर तेरे कमरे में लेकर जाता हूँ.
सुगंधा- ओह हाँ पापा आप मुझे ही गोदी में उठा लो.. आह.. मुझसे तो उठा नहीं जाएगा आह.. पापा उफ्फ..
जयशंकर जी ने एक हाथ उसकी गांड के नीचे और दूसरा गर्दन के नीचे रखा और उसे उठा कर कमरे में ले गए.
सुगंधा- आह.. पापा आप बहुत अच्छे हो. अब ये दर्द का कुछ करो आह.. मुझे बहुत दुख रहा है.
जयशंकर- देख मैं तेरी माँ के आने के पहले तुझे ठीक कर दूँगा. तू रुक, मैं अभी तेरा इलाज लेकर आता हूँ.
जयशंकर जी बाहर गए, सबसे पहले तो उन्होंने उस प्याले को साफ किया. फिर उसमें सरसों का तेल लेकर उसको गर्म करने लगे.
उधर सुगंधा अपने ख्यालों में खोई हुई सोच रही थी 'ओह पापा, आपका लंड तो बहुत बड़ा है. उसको चूसते हुए मेरा मुँह दुखने लगा. काश मैं उसको देख पाती, अपने हाथों से उसे पकड़ कर हिला पाती और आपका रस.. आह कितना मज़ा आ रहा था.. काश वो रस आप मुझे पिला देते, तो मज़ा आ जाता मगर जो भी हुआ अब आपको उसके आगे लेकर आऊंगी. तभी तो दर्द का नाटक किया मैंने, अब जल्दी से आ जाओ और मेरी चुत को सुकून दे दो.
जयशंकर- ये देखो में सरसों का तेल लाया हूँ इससे तुम्हें आराम मिल जाएगा.
सुगंधा- लेकिन पापा मैं कैसे लगाऊं.. मुझसे तो उठा भी नहीं जा रहा.
जयशंकर- अरे मैं लगा दूँगा ना.. तू टेंशन क्यों ले रही है.
सुगंधा- पापा व्व..वो आप कैसे लगा सकते हो.. व्व..वो दर्द पीठ पर और पैरों में ऊपर की तरफ़ हो रहा है.
जयशंकर- अरे तो क्या हुआ.. पहले जब तू छोटी थी ना तब तेरे जिस्म की मालिश तेरी माँ नहीं, मैं ही किया करता था. समझी अब मुँह से कोई आवाज़ मत निकलना समझी.
सुगंधा- ल्ल..लेकिन पापा वो तो एमेम.. मैंने नीचे कुछ न..नहीं पहना है..!
जयशंकर- मैंने कहा ना चुप, अब मैं जो करता हूँ, करने दे.. इससे तुझे आराम मिलेगा, तब बोलना.. समझी..!
सुगंधा की बात का जयशंकर जी पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस जल्दी से उसकी मालिश करना चाह रहे थे.
सुगंधा- ठीक है पापा आप जो चाहे करो.
जयशंकर जी ने मैक्सी थोड़ी ऊपर की और घुटनों की मालिश करने लगे.. फिर धीरे-धीरे हाथ को ऊपर जाँघों पे ले गए.
अपने पापा के हाथ जाँघों पे लगते ही सुगंधा के जिस्म ने झटका खाया. उसकी काम भरी सिसकी निकल गई और चुत में एक करंट सा दौड़ गया. जयशंकर जी ने सुगंधा की तरफ़ देखा तो उसकी आँखें बंद थीं और वो अपने होंठों को दांतों में दबा कर काट रही थी.
जयशंकर जी अब सिर्फ़ जाँघों की मालिश कर रहे थे और एक-दो बार उनकी उंगली चुत से टच भी हुई, जिसका असर सुगंधा की कामुक सिसकी से पता लग रहा था कि वो कितनी उत्तेजित हो गई है.
पापा को भी अपनी कमसिन बेटी की मालिश करने में मज़ा आ रहा था और उनका लंड फिर उठाव लेने लगा था. सुगंधा की चुत रिसने लगी थी, इस बात का अहसास जयशंकर जी को तब हुआ, जब दोबारा उनकी उंगली चुत से टकराई.
जयशंकर जी मन में 'लगता है सुगंधा उत्तेजित हो गई है, तभी उसकी चुत गीली हो गई. अब इसे शांत करना जरूरी है.. नहीं तो ये परेशान रहेगी.'
सुगंधा की आँखें अब भी बंद थीं.. वो बस घुटी-घुटी आवाज़ में मादकता से सिसक रही थी.
जयशंकर जी मन में 'मेरी सुगंधा, तू तो बड़ी हो गई है.. देख तेरी चुत कैसे पानी छोड़ रही है, बस ऐसे ही आँखें बंद रखना. मैं तेरे कामरस को चख कर देखूं कि कैसा स्वाद है मेरी बेटी की चुत के रस का!'
जयशंकर जी ने अब सीधे उंगली चुत पे लगा दी और उसके सहलाने लगे, फिर उसपे जो रस लगा उसे वो चाट गए. उनका लंड एकदम टाइट हो गया था और वो भी बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गए थे.
जयशंकर- सुगंधा बेटा तू पेट के बाल लेट जा, तेरी पीठ पे भी तेल लगा देता हूँ.. जिससे तुझे आराम मिल जाएगा.
सुगंधा तो इतनी ज़्यादा उत्तेजित थी कि वो सब भूल गई कि उसके पापा कैसे उसका फायदा उठा रहे हैं. वो बिना कुछ बोले उल्टी लेट गई. जयशंकर जी ने उसकी मैक्सी ऊपर कर दी, अब नीचे का पूरा हिस्सा नंगा उनके सामने था. सुगंधा की भरी हुई गांड देख कर जयशंकर जी ने मन में सोचा कि अभी इसमें लंड घुसा दूँ तो मज़ा आ जाए. मगर एक बाप और बेटी के बीच की शर्म उनको रोके हुए थी.
अब उन्होंने पीठ की मालिश शुरू कर दी. वो सुगंधा की गोरी गांड पर भी हाथ घुमा रहे थे. फिर उन्होंने सोचा सुगंधा तो कुछ बोल भी नहीं रही, तो क्यों न कुछ मज़ा ले लिया जाए. जयशंकर जी ने लंड को बाहर निकाला और सुगंधा के ऊपर दोनों तरफ़ अपने पैर निकाल कर बैठ गए और लंड को चुत पे सैट करके ऊपर-नीचे रगड़ने लगे.
सुगंधा को जब लंड का अहसास सीधे चुत पे हुआ तो उसका पसीना छूट गया. सुगंधा मन में- हे राम, ये पापा को ज़रा भी शर्म नहीं आ रही क्या.. कैसे चुत पे लंड घिस रहे हैं. कहीं ये लंड को चुत के अन्दर ही ना पेल दें.
जयशंकर जी तो बस मज़े लेने में लगे हुए थे और सुगंधा की उत्तेजना अब चरम पर पहुँच गई थी- आह.. ससस्स पापा उफ़फ्फ़ आह.... ऐसे ही करो.. आह.. यहीं दर्द ज़्यादा है आह.. ऐसे ही जोर से रगड़ो आह...
जयशंकर जी समझ गए कि सुगंधा की चुत का बाँध टूटने वाला है, उन्होंने जोर-जोर से लंड को रगड़ना शुरू कर दिया और तभी सुगंधा की चुत से रस की फुहार निकलने लगी.
जयशंकर जी जल्दी से अलग हुए और हाथ से चुत के रस को साफ किया, फिर उसको चाटने लगे. अब सुगंधा शांत हो गई थी मगर ये अहसास कि उसके पापा उसका रस चाट रहे हैं, उसको और अधिक रोमांचित कर रहा था.
सुगंधा- आह.. ससस्स बस पापा अब ठीक है आह.. आपने मेरा सारा दर्द निकाल दिया है.
जयशंकर- अच्छा अब तू थोड़ी देर आराम कर.. मैं ये तेल रख कर आता हूँ.
जयशंकर जी वहां से चले गए और सुगंधा वैसे ही लेटी रही और बड़बड़ाने लगी 'उफ्फ ये सब क्या हो रहा है.. मैं सोच भी नहीं सकती कि इतनी जल्दी पापा मेरी चुत तक पहुँच जाएँगे. उफ्फ क्या आग लगा दी पापा ने, अब जो होगा देखा जाएगा.. बस मैं पापा को इतना पागल बना दूँगी कि वो खुद चुत माँगने लगेंगे.'
उधर जयशंकर जी अपने कमरे में चले गए उनका लंड अभी भी तना हुआ था. उन्होंने लंड बाहर निकाला और सहलाते हुए बिस्तर पे बैठ गए
जयशंकर जी ने पक्का सोच लिया था कि वो सुगंधा को चोदेंगे. इसी सोच के चलते उनका लंड अब और ज़्यादा अकड़ गया था. मगर उन्होंने खुद को समझाया कि जल्दबाज़ी में काम बिगड़ सकता है और वैसे भी अभी सुगंधा ठंडी हुई है तो उसके पास जाने का फायद नहीं.
एक घंटे तक दोनों बाप-बेटी अपने-अपने कमरे में रहे. मगर सुगंधा ने तो ठान लिया था कि जब-जब उसको मौका मिलेगा, वो अपने पापा को सिड्यूस करती रहेगी.
सुगंधा कमरे से बाहर निकली और पापा को आवाज़ लगाई- पापा, लगता है माँ को आने में टाइम लगेगा. मैं लंच बना रही हूँ आपको क्या खाना है, मुझे बता दो.
सुगंधा ने एक पतली टी-शर्ट और पजामा पहन लिया था, उसका मन अब कुछ और करने का था.
जयशंकर जी बाहर आए और सुगंधा को ऊपर से नीचे तक गंदी नज़रों से देखते हुए सुगंधा के खाना बनाने के सवाल पर बोले- अपने पापा का बड़ा ख्याल है तुझे.. आज तो तू परांठे बना.. एकदम कड़क और मसालेदार.. तब मज़ा आएगा.
सुगंधा- ठीक है पापा बना देती हूँ. तब तक आप बाहर बैठ कर इंतजार करो.
जयशंकर- अरे बाहर क्यों? हम दोनों साथ मिलकर बनाते हैं ना, बात भी होती रहेगी और परांठे भी बन जाएँगे.
सुगंधा समझ गई कि उसकी तरह उसके पापा भी उसके मज़े लेने के चक्कर में हैं. अब वो भी कहाँ पीछे रहने वाली थी उसकी शराफत तो कब की हवा हो गई थी. अब तो सुगंधा बस लंड और चुत के खेल को आगे ले जाना चाहती थी.
सुगंधा- ठीक है पापा, जैसा आपको अच्छा लगे. चलो आप आलू उबालो, मैं तब तक आटा गूँथ लेती हूँ.
जयशंकर जी ने अपना काम निपटा दिया और सुगंधा खड़ी हुई आटा गूँथ रही थी. उसकी गांड थोड़ी बाहर को निकली हुई थी, जिसे देख कर जयशंकर जी का मन डोलने लगा. वो सुगंधा के ठीक पीछे जाकर खड़े हो गए और लंड को सुगंधा की गांड से टच कर दिया.
सुगंधा- क्या कर रहे हो पापा.. मुझे काम करने दो ना.
जयशंकर- अरे देख रहा हूँ ना कैसे तुम आटा गूँथ रही हो.
सुगंधा अपने मन में- अच्छा ये बात है.. देख रहे हो या आप लंड को गांड से सटा कर मज़ा ले रहे हो.
सुगंधा ने कुछ बोला नहीं और गांड को थोड़ा और पीछे कर दिया और आटा गूँथने लगी, जैसे वो हिलती, उसकी गांड ऊपर-नीचे होती, जिससे लंड की अच्छी- ख़ासी घिसाई होने लगी.
थोड़ी देर ये खेल चलता रहा, फिर सुगंधा ने अपने पापा को एक्सट्रा मज़ा देने की एक तरकीब लगाई. वो कोहनी से अपने पेट पर खुजलाने लगी, जिससे जयशंकर जी को भी एक्सट्रा मज़ा लेने का मौका मिल गया.
जयशंकर- अरे क्या हुआ है तुम्हें?
सुगंधा- वो पेट के ऊपर खुजली हो रही है.. अब हाथ आटे में सने हैं तो कोहनी से करूँगी ना.
जयशंकर- अरे पापा के होते तुम परेशान क्यों होती हो. लाओ मैं कर देता हूँ.. बताओ कहाँ करूं?
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो.. मैं अपने आप कर लूँगी ना!
जयशंकर- अरे ऐसे कैसे.. बताओ मुझे, मैं कर दूँगा.. नहीं तो ऐसे ही परेशान रहोगी.
इतना कहकर जयशंकर जी ने पीछे से ही सुगंधा के पेट के ऊपर हाथ रख दिया.
सुगंधा- पापा व्व..वो थोड़ा ऊपर करो.
जयशंकर जी ने धीरे-धीरे हाथ को ऊपर करना शुरू किया. अब वो सुगंधा के मम्मों से बस एक इंच की दूरी पर थे.
सुगंधा- आह.... नहीं.. रहने दो सस्स.. मैं खुद कर लूँगी ना पापा.
जयशंकर- अरे मैं तेरा पापा हूँ, ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हो.. यहीं करूं क्या?
सुगंधा- व्व..वो पापा आपको कैसे बताऊं व्व..वो मेरे कहाँ खुजली हो रही है?
जयशंकर जी भी समझदार थे, उन्हें इतना इशारा काफ़ी था. उन्होंने शर्म को साइड में रखा और हाथ सीधे सुगंधा के मम्मों पे रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगे.
सुगंधा- सस्स आह.. पापा.. यहीं हो रही है मगर नहीं रहने दो ना.. नहीं प्लीज़ पापा.
जयशंकर- चुप कर तू.. ऐसे खुजली ज़्यादा होगी.. मैं कर रहा हूँ ना.
जयशंकर जी ऐसे बर्ताव कर रहे थे, जैसे ये एक नॉर्मल बात है. फिर सुगंधा ने भी आगे कुछ नहीं कहा, बस वैसे ही खड़ी अपने मम्मों को दबवाती रही. वैसे तो जयशंकर जी कपड़ों के ऊपर से मज़ा ले रहे थे, मगर उनका मन था कि वो सीधे सुगंधा के नंगे चूचों को मसल कर मजा लें और सुगंधा भी यही चाहती थी. मगर वो मर्यादा में रहकर सब करना चाहती थी यानि सब कुछ हो भी जाए और जयशंकर जी की नज़र में वो सीधी भी बनी रहे.
सुगंधा- बस बस पापा हो गया.. अब सही है. अब आप रहने दो.
जयशंकर जी ने हाथ हटा लिया मगर वो वैसे ही खड़े रहे और लंड को गांड पर दबाते रहे और जैसे सुगंधा का मन था कि पापा डायरेक्ट मम्मों को छुएँ.. अन्दर उसने कुछ पहना भी नहीं था तो वो फिर कोहनी से खुजलाने लगी.
सुगंधा- ओफफो.. ये आज क्या हो रहा है बार-बार खुजली क्यों हो रही है?
जयशंकर- फिर से हो गई.. ला मैं करता हूँ.
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, ऐसे ही शायद पसीने से हो रहा होगा.
जयशंकर- अरे कोई चींटी होगी जो काट रही होगी.. मुझे देखने दे, नहीं तो तुझे और ज़्यादा परेशानी होगी.
सुगंधा कुछ कहती, उससे पहले ही जयशंकर जी ने हाथ टी-शर्ट में डाल दिया और सीधे सुगंधा के नंगे मम्मों पे लगा दिया.
सुगंधा- ससस्स.. प्प..पापा ये आप क्या..
सुगंधा आगे कुछ बोलती तब तक जयशंकर जी ने उसके मम्मों को अच्छे से दबा दिया और उसके निप्पलों को भी मरोड़ दिया. फिर जल्दी से हाथ बाहर निकाल लिया.
जयशंकर- त्त.. तुमने अन्दर कुछ नहीं पहना.. मुझे पहले क्यों नहीं बोली.
सुगंधा- सॉरी पापा व्व..वो मैं बताना चाहती थी मगर आपने मेरी बात सुनी ही नहीं.
जयशंकर जी ऐसे बर्ताव करने लगे जैसे ये अंजाने में हुआ हो.
जयशंकर- अरे वो उस दिन तुझे कपड़े दिलाए थे.. उसमें वो अन्दर की भी थी ना.. उसे पहना कर.
सुगंधा- व्व..वो पापा घर में मुझे अच्छा नहीं लगता इसलिए.
जयशंकर- अच्छा अच्छा समझ गया.. जाने दे वैसे वो नए कपड़े क्यों नहीं पहनती. वो बहुत अच्छे हैं, तुझपे जमेंगे भी.
सुगंधा- बाद में पहन लूँगी पापा.. अभी नहीं.. पहले मैं थोड़ी एड्जस्टमेंट कर लूँ उसके बाद पहनूंगी.
जयशंकर- अच्छा ठीक है, जब मर्ज़ी हो पहन लेना.. अच्छा बेटी तुझे बुरा तो नहीं लगा ना.. अभी जो मैंने किया?
सुगंधा- नहीं पापा आपने जानबूझ के थोड़े किया.. वो तो ग़लती से हो गया इट्स ओके.
जयशंकर- अच्छा बेटी वो तेल मालिश और ये बात अपनी माँ को मत बताना. ऐसे उन्हें पता लगेगा तो अच्छा नहीं लगेगा ना.
सुगंधा ने बहुत ही सेक्सी अंदाज में मुस्कान दी.
सुगंधा- आप भी ना पापा.. ये बात कोई बताने की थोड़ी है और वैसे भी अपने ऐसा कुछ गलत भी नहीं किया. मेरे दर्द को ठीक किया और अभी खुजली की.. बस यही ना..!
सुगंधा की बात सुनकर जयशंकर जी खुश हो गए, उनको लगा सुगंधा भी यही चाहती है कि उसके पापा उसको मज़ा दें.
सुगंधा- क्या हुआ पापा क्या सोच रहे..?
बोलते-बोलते वो जोर से उछली जैसे उसको किसी जानवर ने काट लिया हो.
सुगंधा- ओह माँ उफ़फ्फ़ पापा आह..
जयशंकर- अरे क्या हुआ.. ऐसे क्यों उछल रही हो.. क्या हो गया है?
सुगंधा- व्व..वो पापा टी-शर्ट में कोई कीड़ा है.. मुझे जोर से काट लिया.. उफ़फ्फ़..
जयशंकर- मैंने पहले ही कहा था.. ला इधर आ.. देखने दे मुझे.
जयशंकर जी ने मौके का फायदा उठाया और सुगंधा की टी-शर्ट में हाथ डाल कर अबकी बार बारी-बारी दोनों मम्मों को अच्छे से दबाया और मसला.
सुगंधा- उफ़फ्फ़ सस्स क्या हुआ पापा.. कुछ मिला क्या?
जयशंकर- नहीं कुछ नहीं मिला.. मुझे ठीक से देखने दे.. शायद चिंटी होगी.
इतना कहकर जयशंकर जी ने टी-शर्ट ऊपर कर दी. अब सुगंधा के नंगे चूचे उनके सामने थे और सुगंधा आँखें बंद किए बस दर्द का नाटक कर रही थी.
जयशंकर जी ने एक बार सुगंधा को देखा फिर अच्छे से पूरे मम्मों पर दोबारा हाथ घुमाया और मौका देख कर जल्दी से एक निप्पल को चूस भी लिया.
सुगंधा इस हरकत से एकदम सिहर गई और जल्दी से पीछे हो गई, उसने अपनी टी-शर्ट ठीक की और जयशंकर जी से नज़रें चुराने लगी.
जयशंकर- क्या हुआ सुगंधा.. देखने तो दे.
सुगंधा- नहीं पापा निकल गया शायद.. अब आप बाहर जाओ, मुझे काम करने दो.
दरअसल सुगंधा उत्तेजित हो गई थी और वो नहीं चाहती थी कि वो पापा को इससे ज़्यादा मौका दे, वरना कुछ भी हो सकता था.
जयशंकर जी भी समझ गए कि शायद उन्होंने कुछ ज़्यादा कर दिया, तो वो चुपचाप बाहर निकल गए और अपने कमरे में चले गए.
सुगंधा ने परांठे बना लिए, तब तक मम्मी भी आ गई. सबने खाना खाया और रोज की तरह आराम करने लगे.
शाम तक ऐसे ही चलता रहा. आग तो दोनो तरफ लगी हुई थी. बस देरी तो इस बात की थी की बात कैसे आगे बढ़े. उसके पापा सोच रहे थे कि किसी ढंग से बात चुदाई तक पहुँचे. थोड़ी देर के बाद उसके पापा ने पास आ कर बात शुरू की.
पापा- तुझसे एक बात करनी थी.
सुगंधा- हाँ पापा बोलो ना क्या बात है?
पापा- रात को तेरी माँ तो जल्दी सो जाती है और मुझे नींद नहीं आती तो क्या मैं तेरे पास आ जाऊं, अगर तुझे कोई दिक्कत ना हो तो?
सुगंधा- अरे इसमें पूछना क्या पापा.. मैंने तो रात को ही कहा था कि आप मुझे रोज ऐसे ही मालिश करके सुलाना. सच में आपके हाथों में जादू है, आप सर को एकदम हल्का कर देते हो, उससे नींद अच्छी आती है.
इतना कह कर सुगंधा अन्दर चली गई और अपनी माँ की काम में मदद करने लगी.
सुगंधा का जवाब सुनकर जयशंकर जी की आँखों में चमक आ गई, अब उनके इरादे क्या थे.. वो तो रात को ही पता चलेगा.
रात का खाना खाने के बाद रोज की तरह मम्मी ने सारे काम निपटा दिए और सोने चली गई. जयशंकर जी बस उसके सोने का इन्तजार करने बैठ गए. उधर सुगंधा को पता था कि उसके पापा ऐसे ही तो नहीं आ रहे, उनके मन में कुछ तो चल ही रहा होगा और जैसे उन्होंने सुबह उसके निप्पलों को चूसा था, उससे उनके इरादे अब ज़्यादा ख़तरनाक हो सकते हैं, वो मन ही मन यही सब सोच रही थी.
सुगंधा सोचने लगी कि पापा तो मेरे ऊपर एकदम लट्टू हो गए, उन्होंने मेरा सब कुछ देख लिया मगर अभी तक मुझे उनका लंड देखने को नहीं मिला. वैसे चूसने से तो लगता है कि पापा का लंड काफ़ी मोटा और बड़ा होगा. चलो आज पापा के लंड को देखने के लिए कुछ ना कुछ आइडिया लगाती हूँ.
सुगंधा ने थोड़ी देर सोचा, उसके बाद वो उठी और उसने अपनी नई ब्रा और पेंटी का सैट पहना, उसके बाद अपने रोज वाले नाइट के कपड़े पहन लिए और अपने पापा का इन्तजार करने लग गई.
आग तो दोनों तरफ़ बराबर लगी हुई थी. जैसे ही मम्मी सोई, जयशंकर जी उठे और सीधे सुगंधा के कमरे में चले गए. उस वक़्त रूम की लाइट भी जली हुई थी और सुगंधा पेट के बल लेटी हुई थी.
जयशंकर- क्या तुम सुगंधा सो गईं?
सुगंधा- नहीं पापा आपका ही वेट कर रही थी. आ जाओ ना अन्दर.. आप ऐसे दरवाजे पर क्यों खड़े हो गए हो!
जयशंकर जी ने दरवाजा बंद किया और सुगंधा के पास आकर बैठ गए.
सुगंधा- पापा आप बहुत अच्छे हो, मुझे सुलाने के लिए आ गए.
जयशंकर- अरे आता कैसे नहीं.. तू मेरी जान है, तेरे लिए तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ.
सुगंधा- थैंक्स पापा.. चलो मेरा सर दबाओ, मुझे आपका दबाना अच्छा लगता है.
जयशंकर जी शुरू हो गए मगर सुगंधा को सर थोड़ी दबवाना था, वो तो आज कुछ और ही दवबाने के मूड में थी. थोड़ी देर बाद उसने अपना नाटक शुरू कर दिया. सुगंधा ज़ोर से उछली और अपने सीने पर खुजाने लगी.
जयशंकर- अरे क्या हुआ.. क्या तुझे फिर खुजली हो रही है?
सुगंधा- आह.. सस्स ये सुबह से ही हो रही है. लगता है चींटी ख़तरनाक थी.. उसका जहर अभी तक असर कर रहा है.
जयशंकर- मैंने कहा भी था कि मुझे देखने दे. मगर तू नहीं मानी अब ये ज़्यादा हो गया ना.. चल अब मुझे देखने दे. उसके काटने से कोई दाद-वाद तो नहीं हो गई.?
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, मैं खुजा रही हूँ ना.. अब इस वक्त कौन सा मेरे हाथ पर आटा लगा हुआ है.
जयशंकर- बात तेरे हाथ की नहीं है, तू कैसे देख पाएगी. अब बहस मत कर, मैं ठीक से देख लेता हूँ.
सुगंधा- ठीक है पापा आप ही देख लो.
जयशंकर जी ने जैसे ही टी-शर्ट ऊपर की तो उनको सुगंधा की लाल ब्रा नज़र आई और उनके अरमान पानी-पानी हो गए.
जयशंकर- अरे तूने अन्दर पहन लिया. अब मैं कैसे देखूँ?
सुगंधा- व्व..वो पापा सुबह आपने ही तो कहा था. इसलिए मैंने..
जयशंकर- तू एकदम पागल है.. अरे बेटा जब बाहर जाओ, तब पहनने के लिए कहा था. रात को सोने के टाइम नहीं पहनते, इससे भी खुजली होती है और शरीर को हवा नहीं मिलती. रात को तो ऊपर-नीचे एकदम खुलकर सोना चाहिए. तू मेरी बात को समझ रही है ना?
सुगंधा- हाँ पापा, समझ रही हूँ सॉरी मैं ठीक से समझी नहीं थी. कल से में पहन कर नहीं सोऊंगी.
जयशंकर- अरे कल से क्यों? अभी निकाल दे ना.. और हाँ तूने वो कपड़ों के साथ रात में पहनने के लिए वो नाइट ड्रेसिज ली थीं ना.. वो क्यों नहीं पहनती, उनमें ज़्यादा आराम रहता है और जिस्म को हवा भी मिलती है.
सुगंधा अपने मन में कहने लगी- वाह पापा मानना पड़ेगा आपको.. बिना ब्रा-पेंटी की वो सेक्सी नाइटी मुझे पहनाना चाहते हो ताकि मेरे मज़े खुल कर ले सको.
जयशंकर- तू अब क्या सोच रही है?
सुगंधा- कुछ नहीं पापा.. कल से मैं सोने के टाइम वही पहन लूँगी.
जयशंकर- अरे तू कल पर क्यों अटकी हुई है. चल अभी पहन. मैं भी तो देखूं मेरी बेटी मॉर्डन कपड़ों में कैसी लगती है.
सुगंधा- ठीक है पापा आपकी इच्छा यही है तो मैं अभी पहन कर आती हूँ.
सुगंधा ने अलमारी से नाइटी ली और बाथरूम में चली गई. वहां वो एकदम नंगी हो गई और अपने मम्मों पे हाथ घुमा कर बड़बड़ाने लगी- ओह पापा.. आपने मुझे अपना दीवाना बना लिया है. आज ये चूचे आपके हाथों के स्पर्श के लिए मचल रहे हैं. आज तो मैं आपको भरपूर मज़ा दूँगी और आपका लंड रस आज वेस्ट नहीं होने दूँगी.. पूरा पी जाऊँगी.
थोड़ी देर तक सुगंधा अपने आपसे बात करती रही, फिर जब वो नाइटी पहन कर बाहर आई तो जयशंकर जी तो बस उसको देखते ही रह गए. सुगंधा ने एक ब्लैक शॉर्ट नाइटी पहनी थी जो उसको घुटनों से भी ऊपर थी और उस काली नाइटी में उसका गोरा बदन बड़ा ही मनमोहक नज़र आ रहा था. बिना ब्रा के उसके चूचे आधे से ज़्यादा बाहर झाँक रहे थे.
जयशंकर तो सांस रोके उस वासना की मूरत को घूरे जा रहे थे. सुगंधा उनके एकदम पास आकर खड़ी हो गई- क्या हुआ पापा, मैं इन कपड़ों में कैसी लग रही हूँ?
जयशंकर- बहुत सुन्दर तू एकदम किसी अप्सरा की तरह लग रही है.
सुगंधा ने थैंक्स कहा और अपने पापा से लिपट गई और जानबूझ कर वो उनसे ऐसे चिपकी कि उसके चूचे जयशंकर के सीने में धँस जाएं. इस वक्त सुगंधा अपने पापा का लंड अपनी नाभि पे महसूस कर रही थी, जो एकदम अकड़ा हुआ था.. जैसे अभी उसके पेट को फाड़ देगा.
जयशंकर- चल अब तू लेट जा, मैं तुझे सुला देता हूँ और वो तुझे चींटी ने किधर काटा था, वो भी देखता हूँ.
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो.. आप कैसे देखोगे.. इसको ऊपर करना पड़ेगा और मैंने अब नीचे कुछ पहना भी नहीं है.
जयशंकर- अरे मैं तेरा पापा हूँ, तू ऐसे क्यों बोल रही है और इसको उठाने की जरूरत नहीं मैं ऊपर से ही देख लूँगा.. ठीक है.
सुगंधा- नहीं पापा मुझे शर्म आएगी. आप ऐसा करो कि लाइट बंद करके देख लो.
जयशंकर- लो कर लो बात.. अंधेरा होने के बाद मैं कैसे देख सकता हूँ. मुझे तुमने उल्लू समझा है, जो अंधेरे में देख सकूं?
सुगंधा- हा हा हा हा पापा आप भी ना.. अच्छा ठीक है. मैं आँखें बंद कर लेती हूँ आप प्लीज़ जल्दी से देख लेना.
जयशंकर- अच्छा ठीक है.. चल तू आराम से लेट जा, मैं देखता हूँ.
सुगंधा सीधी लेट गई और अपनी आँखों पर हाथ लगा लिए.
बस जयशंकर जी को और क्या चाहिए था, उन्होंने ऊपर से जो डोरी बंधी थी.. उसको खोला तो सुगंधा का पूरा सीना साफ नज़र आने लगा. जयशंकर सुगंधा के सीने पर बड़े प्यार से हाथ घुमा कर मज़ा लेने लगे. वो थोड़ा दबा भी रहे थे, कभी निपल्स को उंगली और अंगूठे से दबा देते.
सुगंधा- आह.. सस्स पापा.. आराम से देखो ना.. दुख़्ता है आह.. सस्स धीरे.
जयशंकर- अरे इनको इनको ऊपर-नीचे करके देखने दे. मैं ठीक से देख रहा हूँ कि कहाँ-कहाँ काटा है.. समझी.
जयशंकर जी तो बस अपनी बेटी के मम्मों को दबा कर मज़ा ले रहे थे. उन पर वासना सवार हो गई थी. जयशंकर जी का लंड लुंगी में तंबू बना चुका था, उनकी आँखें लाल हो गई थीं.
सुगंधा- क्या हुआ पापा.. देख लिया क्या मुझे दर्द हो रहा है.
जयशंकर- हाँ देख लिया.. बहुत जगहों पे काटा है.. लाल सुगंधान हो गए हैं.
सुगंधा- ओह.. गॉड अब क्या होगा पापा इनमें तो बहुत खुजली होगी ना?
जयशंकर- ऐसे कैसे होगी.. मैं किस लिए हूँ.. अभी मैं इसका सब इलाज कर दूँगा.
सुगंधा- आप इलाज कैसे करोगे पापा?
जयशंकर- बेटी दवा से कुछ नहीं होगा. मैं देसी तरीके से ठीक करूंगा.
सुगंधा- कौन सा तरीका मुझे तो बताओ पापा.
जयशंकर- मैं इन सुगंधानों को चूस कर चींटी का सारा जहर निकाल दूँगा, फिर तुझे इनमें खुजली नहीं होगी.
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा और मुझे शर्म भी बहुत आ रही है. आपके सामने मैं ऐसे पड़ी हुई हूँ, नहीं नहीं.. जाने दो.
जयशंकर- अरे जाने कैसे दूँ.. ये बहुत ख़तरनाक है. अभी खुजली होगी फिर एलर्जी हो जाएगी. मैं तेरा पापा हूँ कोई गैर नहीं.. मुझसे कैसी शर्म!
सुगंधा- अच्छा पापा कर दो मगर प्लीज़ लाइट बंद कर दो ना प्लीज़.. मुझे शर्म आ रही है.
जयशंकर जी ने सुगंधा की बात मान ली, वैसे अंधेरा होने में उनका ही फायदा था. वो खुलकर मज़े ले सकते थे और बाप-बेटी के बीच ये परदा भी बना रहता.
जयशंकर जी ने लाइट बंद कर दी और वो सुगंधा के मम्मों पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़े. मम्मों को दबाने लगे, निप्पलों को बारी-बारी से चूसने लगे, जिससे सुगंधा की उत्तेजना बढ़ने लगी. वो बस मादक सिसकारियां लेकर मज़ा लेने लगी.