Update 50

आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री-औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

‘ परिधान'

लेडीज टेलर- नाप

अचानक मुझे याद आया की एक बार मेरी एक सहेली ने इसके लिए मुझे चेताया भी था. उसका नाम सुनीता था और मेरी शादी के बाद हमारी कॉलोनी में उससे मेरा परिचय हुआ था. तब उसकी शादी को 5 साल हो गये थे और उसके दो बच्चे थे. मेरी उससे अच्छी दोस्ती हो गयी थी. वो ही मुझे लोकल टेलर के पास ले गयी थी जिससे अब मैं अपने कपड़े सिलवाती हूँ. हम दोनों खुल के बातें किया करती थीं, यहाँ तक की अपनी सेक्स लाइफ और पति के बारे में अंतरंग बातें भी हम शेयर करते थे. एक दिन मैं दोपहर को उसके घर गयी तो उसके पति काम पर गये हुए थे और बच्चे कॉलेज गये हुए थे. हम गप्पें मारने लगे और मैंने भीड़ भरी बसों में अपने साथ हुए वाक़ये उसे सुनाए की किस तरह मर्दों ने मेरे नितंबों और चूचियों को दबाया था और कभी कभी तो वो लोग हद भी पार कर जाते थे पर शर्मीली होने से मैं विरोध नहीं कर पाती थी और सच कहूँ तो हल्की फुल्की छेड़छाड़ के मैंने भी मज़े लिए थे.

तब सुनीता ने भी एक टेलर के साथ अपना किस्सा सुनाया. मेरी तरह वो भी नाप देते समय टेलर के छूने से उत्तेजित हो जाया करती थी. एक दिन टेलर उसकी नाप ले रहा था और उसके छूने से वो उत्तेजित हो गयी. उसने मुझे ये भी बताया की रात में उसके पति ने चुदाई करके उसे संतुष्ट किया था पर टेलर के बार बार चूचियों पर हाथ फेरने से वो उत्तेजित हो गयी. शुक्र था की जल्दी ही उसने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और चूचियों को दबाने और सहलाने पर ही बात खत्म हो गयी. लेकिन उसने मुझसे कहा की ऐसी सिचुयेशन से बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है.

“…रश्मि, तुम विश्वास नहीं करोगी, ऐसी सिचुयेशन से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है. तब तक टेलर को पता चल चुका था की उसके छूने से मैं कमज़ोर पड़ रही हूँ और मैं उसका आसान शिकार हूँ. मैं भी उत्तेजना में बह गयी और ये भूल गयी की मैं किसी और की पत्नी हूँ और दो बच्चों की माँ हूँ. मैंने बेशर्मी से उसे ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने दिया. उसको कोई रोक टोक नहीं थी और वो मेरी हालत का फायदा उठाते गया. कैसे बताऊँ, उफ …कितना बेशरमपना दिखाया उस दिन मैंने….\

उस टेलर ने पीछे से मेरे पेटीकोट के अंदर भी हाथ डाल दिया. तभी मुझे लगा की मैं ग़लत कर रही हूँ और मैं ही जानती हूँ कैसे मैंने अपनी काम भावनाओं पर काबू पाया और उसे रोक दिया. मैं बहाना बनाकर किसी तरह उसके चंगुल से छूटी. वरना उस दिन वहीं फर्श पर वो मुझे चोद देता. ज़रा सोचो. थोड़े मज़े के लिए एक छोटी सी लापरवाही से मैं जिंदगी भर अपने को माफ़ नहीं कर पाती. रश्मि , मैं तुम्हें अनुभव से बता रही हूँ, अगर कभी जिंदगी में राजेश के अलावा किसी दूसरे मर्द के साथ तुम बहकने लगो तो ध्यान रखना, अपनी भावनाएं उस पर जाहिर ना होने देना. अगर तुमने ऐसा किया तो ये सिर्फ मुसीबत को आमंत्रण देने जैसा होगा….”

गोपालजी – दीपू, 33.2 टाइट. मैडम बहुत टाइट तो नहीं हो रहा ?

गोपालजी की आवाज़ सुनकर मैं जैसे होश में आई.

“…ठीक है…”

असल में कुछ भी ठीक नहीं था क्यूंकी अब टेप मेरी चूचियों में कसने लगा था. अब गोपालजी ने मेरी दायीं चूची के निप्पल पर टेप को और टाइट कर दिया.

गोपालजी – ये ठीक है मैडम ? या टाइट हो गया ?

“उहह….टाइट हो गया…”

मैं भर्रायी हुई आवाज़ में बोली. गोपालजी की अंगुलियों का दबाव मेरे निपल्स पर बढ़ रहा था और मुझसे बोला भी नहीं जा रहा था. मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में किया और उसके कंधों को पकड़े हुए खड़ी रही.

गोपालजी – ठीक है मैडम, 33.2 रखता हूँ. दीपू नोट करो.

दीपू – जी.

गोपालजी – मैडम, अब एक आख़िरी बार चेक कर लेता हूँ फिर फाइनल करता हूँ.

एक शादीशुदा औरत की चूचियों को छूने से गोपालजी भी एक्साइटेड लग रहा था. उसका उत्साह ये देखकर ज़रूर बढ़ा होगा की उसकी हरकतों से उत्तेजित होकर मैंने उसके कंधों पर अपने नाख़ून गड़ा दिए थे. और मेरा लाल चेहरा भी मेरी उत्तेजित अवस्था को दिखा रहा था.

वैसे तो वो नाप ले रहा था और दीपू को नाप नोट करा रहा था पर मुझे साफ अंदाज आ रहा था की वो मेरे ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को पकड़ रहा है. एक मर्द के हाथों की मेरी चूचियों पर पकड़ से मैं कांप रही थी.

मैं मन ही मन हंस भी रही थी की ये बुड्ढा इतना चालाक है और इस उमर में भी इतना ठरकी है. मैं उसकी बेटी की उमर की थी लेकिन फिर भी वो मेरे प्रेमी की तरह मेरी जवानी का रस पी रहा था. वो टेप के दोनों सिरों को ठीक मेरी दायीं या बायीं चूची में दबाकर नाप रहा था. वो हर तरह से मुझसे मज़े ले रहा था , कभी अपनी अंगुलियों से मेरी चूची को दबाता , कभी निप्पल को अंगूठे से दबाता , कभी मेरी पूरी चूची पर अँगुलियाँ फिराकर उनकी कोमलता का एहसास करता और कभी नीचे से चूचियों को ऊपर को धक्का देता.

मैंने तिरछी नज़रों से दीपू को देखा पर शुक्र था की वो इस बात से अंजान था की ये बुड्ढा मेरे साथ क्या कर रहा है. अब पहली बार मैंने अपनी तरफ से कुछ किया, मैंने टेलर के हाथों में अपनी चूचियों से धक्का दिया. मुझे यकीन है की उसे इस बात का ज़रूर पता चला होगा क्यूंकी जब हमारी नज़रें मिली तो उसने आँख मार दी. उसकी कामुक हरकतें मुझे उत्तेजित कर तडपा रही थी और अब मेरा मन हो रहा था की कोई मर्द मुझे अपने आलिंगन में कस ले और ज़ोर ज़ोर से मेरी चूचियों को मसल दे. मेरी साँसें भारी हो गयी थीं , मेरे होंठ खुल गये थे , मेरी टाँगें काँपने लगी थीं और मेरी चूत से रस निकलता जा रहा था. उत्तेजना बढ़ने से अंजाने में मैं अपने नितंबों को भी हिलाने लगी थी लेकिन जब मुझे इसका एहसास हुआ तो मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई.

गोपालजी – मैडम, ठीक है फिर, मैं आपकी चोली को इतनी ही टाइट रखता हूँ.

ऐसा कहते हुए उसने मेरे लाल चेहरे को देखा. मैं कोई जवाब देने की हालत में नहीं थी. इस चतुर बुड्ढे ने बड़ी चतुराई से मेरे बदन की आग को भड़का दिया था. मुझे डर था की मेरी गीली पैंटी से कहीं मेरे पेटीकोट में भी गीला धब्बा ना लग गया हो क्यूंकी मुझे आशंका थी की अभी तो घाघरे की भी नाप लेनी है और ये बुड्ढा ज़रूर मेरी साड़ी उतरवा कर पेटीकोट में ही नाप लेगा.

गोपालजी – बस अब चोली की लास्ट नाप लेता हूँ , कंधे से छाती तक.

अब मैं गोपालजी की अंगुलियों का स्पर्श बर्दाश्त करने की हालत में नहीं थी. मैं उत्तेजना से कांप रही थी और शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमज़ोर पड़ चुकी थी. अब गोपालजी मुझे छुएगा तो ना जाने मैं क्या कर बैठूँगी.

गोपालजी – दीपू , कॉपी यहाँ लाओ.

दीपू कॉपी लेकर मेरे पास आया. गोपालजी उसकी लिखी हुई नाप देख रहा था तभी दीपू ने कुछ ऐसा कहा की कमरे का माहौल ही बदल गया.

दीपू – मैडम, आप कांप क्यूँ रही हो ? ठीक तो हो ?

मेरे कुछ कहने से पहले ही टेलर बोल पड़ा.

गोपालजी – हाँ, मैडम, मुझे भी लगा की आप कांप रही हो. मैं देखता हूँ.

उसने मेरे माथे पर हाथ लगाया.

दीपू – मैडम, आपको तो बहुत पसीना भी आ रहा है.

मैं कुछ नहीं बोल पाई.

गोपालजी – मैडम, आपका माथा तो ठंडा लग रहा है. आपको क्या हो रहा है ? मैडम , मैं आपको सहारा दूं क्या ?

उसने मेरे जवाब का इंतज़ार किए बिना मेरी बाँह पकड़ ली.

“मैं ठीक…….आउच….”

मैं कहना चाह रही थी की मैं ठीक हूँ पर मेरी बाँह में टेलर ने चिकोटी काट दी.

गोपालजी – क्या हुआ मैडम ? दीपू, मैडम के लिए एक ग्लास पानी लाओ.

“लेकिन….”

दीपू कमरे के कोने में पानी लाने गया तो गोपालजी ने कस के मेरी बाँह पकड़ ली और मेरे कान के पास अपना मुँह लाया.

गोपालजी – अगर आपको और चाहिए तो जैसा मैं कहूँ वैसा बहाना बनाओ.

उसकी फुसफुसाहट पर मैंने गोपालजी को जिज्ञासु निगाहों से देखा. लेकिन उसकी बात पर सोचने का समय नहीं था क्यूंकी दीपू पानी ले आया था. दीपू को सच में यह लग रहा था की मेरी हालत ठीक नहीं है.

गोपालजी – बताओ मैडम, कैसा लग रहा है ? आपको चक्कर आ रहा है क्या ?

गोपालजी ने मेरी बाँह ऐसे पकड़ी हुई थी की मेरी अँगुलियाँ उसकी लुंगी से ढकी हुई जांघों को छू रही थीं. दीपू ने मुझे पानी का ग्लास दिया और जब मैं पानी पी रही थी तो गोपालजी ने लुंगी के अंदर खड़े लंड से मेरा हाथ छुआ दिया.

मैंने पानी गटका और एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर ली और फिर झूठ बोल दिया.

“ओह्ह …मेरा सर….घूम रहा है….”

मैंने ऐसा दिखाया की मुझे ठीक नहीं लग रहा है. दीपू को मेरी बात पर विश्वास हो गया था.

दीपू – मैडम को ठीक से पकड़ लीजिए. कुर्सी लाऊँ मैडम ?

गोपालजी इसी अवसर का इंतज़ार कर रहा था और अब उसे मालूम था की मैं बहाना बना रही हूँ और दीपू को भी भरोसा हो गया है , अब उसके लिए कोई रुकावट नहीं थी. गोपालजी ने अब मेरी दोनों बाँहें पकड़ लीं.

गोपालजी – मैडम, फिकर मत करो , कुछ देर में ठीक हो जाएगा. बस अपने बदन को ढीला छोड़ दो.

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने सर को थोड़ा हिलाया ताकि लगे की चक्कर आ रहा है.

दीपू – मैडम , ये आपको चक्कर अक्सर आते हैं क्या ? कोई दवाई लेती हो ?

गोपालजी ने मुझे इन सवालों का जवाब देने से बचा लिया.

गोपालजी – दीपू, लगता है ये बेहोश होने वाली है. क्या करें ?

ऐसा कहते हुए उसने फिर से मेरी बाँह में चिकोटी काटी ताकि मैं बेहोश होने का नाटक करूँ.

मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था और मैंने बेहोश होने का नाटक करते हुए अपना सर गोपालजी के बदन की तरफ झुकाया.

दीपू – अरे … अरे …. कस के पकड़ लीजिए. मैं भी पकड़ता हूँ.

ऐसा कहते हुए दीपू ने पीछे से मेरी कमर पकड़ ली. गोपालजी ने मुझे गिरने से बचाने के बहाने अपने आलिंगन में ले लिया और एक मर्द के टाइट आलिंगन की मेरी काम इच्छा पूरी हुई. मेरी आँखें बंद थीं और मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. गोपालजी के टाइट आलिंगन से मेरी चूचियाँ उसकी छाती में दबी हुई थीं और उसकी बाँहें मेरी कमर में थी. सच बताऊँ तो गोपालजी से ज़्यादा मैं खुद ही अपनी सुडौल चूचियों को उसकी छाती में दबा रही थी.

आआआहह…..”

मैंने उत्तेजना में धीरे से सिसकी ली.

दीपू – मैडम को बेड में ले चलिए.

गोपालजी अपने बदन में मेरी कोमल चूचियों का दबाव महसूस कर रहा था इसलिए वो मुझे अपने आलिंगन से छोड़ने के लिए अनिच्छुक था.

गोपालजी – रूको अभी. कुछ पल देखता हूँ, क्या पता मैडम ऐसे ही होश में आ जाए. तब तक तुम बेड से कपड़े हटाओ और चादर ठीक से बिछा दो.

दीपू – जी अच्छा.

कहानी जारी रहेगी​
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