Update 54
औलाद की चाह
CHAPTER 6 - पांचवा दिन
तैयारी-
‘ परिधान'
CHAPTER 6 - पांचवा दिन
तैयारी-
‘ परिधान'
मिनी स्कर्ट - बैठना
गोपालजी – मैडम इसके बाद आता है बैठने का पोज. इसमें दो खास पोज हैं , एक कुर्सी पर बैठना और दूसरा फर्श पर बैठना. दीपू वो कुर्सी यहाँ लाओ.
दीपू ने कुर्सी लाकर मेरे आगे रख दी.
गोपालजी – मैडम, औरत होने के नाते आपको मालूम होगा की स्कर्ट पहनकर बैठने के दो तरीके होते हैं.
मैंने उसे उलझन भरी निगाहों से देखा क्यूंकी मुझे समझ नहीं आया की वो क्या कहना चाह रहा है.
गोपालजी – एक तरीका ये है की दोनों हाथों से स्कर्ट को नीचे को खींचो और बैठ जाओ. दूसरा तरीका ये है की थोड़ा सा स्कर्ट को ऊपर करो और जांघों पर गोल फैलाकर पैंटी पर बैठ जाओ.
मैं इस अनुभवी टेलर की जानकारी से हैरान थी.
गोपालजी – लेकिन मैडम, मिनीस्कर्ट में दूसरा तरीका काम नहीं करेगा क्यूंकी अगर आप अपनी स्कर्ट ऊपर करोगी तो आपकी …….
दीपू – बड़ी गांड दिख जाएगी मैडम.
दीपू ने टेलर का अधूरा वाक्य पूरा कर दिया. मैं ख्याल कर रही थी की इस लड़के का दुस्साहस बढ़ते जा रहा है. लेकिन इसके लिए मैं ही ज़िम्मेदार थी क्यूंकी उन दोनों मर्दों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज और एक छोटी सी स्कर्ट में खड़ी थी.
गोपालजी – हाँ मैडम, इसलिए सिर्फ़ पहला तरीका ही है.
मुझे कुछ जवाब देने का मन नहीं हुआ.
गोपालजी – दीपू , मैडम की मदद करो……
दीपू की मदद क्यूँ चाहिए , मैं खुद बैठ सकती हूँ, मैंने सोचा.
“मैं खुद बैठ जाऊँगी, गोपालजी.”
गोपालजी – मुझे मालूम है मैडम. लेकिन आपको सही तरीका आना चाहिए वरना दुबारा से सही पोज बनाना पड़ेगा. इसलिए मैं दीपू से कह रहा था….
मुझे लगा की टेलर सही कह रहा है और सही पोज के लिए मुझे दीपू की मदद लेनी होगी.
“हाँ ये सही है पर…..ठीक है दीपू.”
मैंने अनिच्छा से दीपू को मदद के लिए कहा.
दीपू – ठीक है मैडम. आप कुर्सी में बैठो. लेकिन धीरे से बैठना ताकि मैं आपको दिखा सकूँ की स्कर्ट को कब और कैसे पकड़ना है.
दीपू ने बड़े आराम से कह दिया लेकिन मुझे मालूम था की असल में मेरे लिए ये आसान नहीं होगा. मैं अब कुर्सी के आगे खड़ी थी और दीपू कुर्सी के पीछे. इस पोज में मेरी स्कर्ट से ढकी हुई बड़ी गांड उसके सामने थी और मैं ऐसे उसके सामने खड़ी होकर असहज महसूस कर रही थी. गोपालजी ठीक मेरे सामने खड़ा था.
दीपू – मैडम, आपको अपनी स्कर्ट को जांघों के पास ऐसे पकड़ना है.
उसने मेरी स्कर्ट दोनों हाथों से पकड़ ली और उसके हाथ मेरी ऊपरी जांघों को छू रहे थे. वैसे तो वो स्कर्ट के कोने पकड़े हुए था पर उसकी अँगुलियाँ मेरी नंगी मांसल जांघों को महसूस कर रही थीं.
दीपू – अब धीरे से बैठो, मैडम.
जैसे ही मैंने कुर्सी में बैठने को अपनी कमर झुकाई तो मेरे भारी नितंबों पर स्कर्ट उठ गयी और स्कर्ट के साथ साथ दीपू की अँगुलियाँ भी ऊपर की ओर बढ़ने लगीं. जब मैं कुर्सी पर बैठी तो शरम से मेरा मुँह सुर्ख लाल हो गया क्यूंकी कुछ भी छिपाने को नहीं था, मेरी टाँगों और जांघों का एक एक इंच नंगा था. मुझे अंदाज आ रहा था की स्कर्ट मेरी आधी गांड तक ऊपर उठ चुकी है. अपने को इतना एक्सपोज मैंने कभी नहीं फील किया. मुझे लग रहा था की दीपू की अँगुलियाँ मेरे नितंबों को छू रही हैं. उसका चेहरा मेरे कंधों के पास था और मेरी गर्दन पर उसकी भारी साँसों को मैं महसूस कर रही थी. फिर उसने अपनी अँगुलियाँ हटा ली.
दीपू – मैडम, इतनी तेज नहीं. मैंने आपसे कहा था की धीरे से बैठना. मैं आपको ठीक से दिखा नहीं सका …….
गोपालजी – एक मिनट दीपू. मैडम, क्या आप हमेशा ऐसे ही बैठती हो ?
मैंने अपनी नंगी टाँगों को देखा. मेरी गोरी गोरी मांसल जाँघें बहुत उत्तेजक लग रही थीं. मैंने इतना शर्मिंदा महसूस किया की मैं टेलर से आँखें भी नहीं मिला पाई.
गोपालजी – मैडम, अगर आप ऐसे बैठोगी तो जल्दी ही आपके सामने लोगों की भीड़ लग जाएगी.
अब मैंने नजरें उठाकर उसे देखा. वो कहना क्या चाहता है ? हाँ, मेरी नंगी जाँघें बहुत अश्लील लग रही हैं, पर गोपालजी का इशारा किस तरफ है ?
“लेकिन क्यूँ, गोपालजी ?”
गोपालजी – मैडम, अगर आप ऐसे टाँगें अलग करके बैठोगी तो सामने वाले हर आदमी को, यहाँ तक की जो खड़े भी होंगे, उनको भी आपकी पैंटी दिख जाएगी.
“ऊप्स……”
मैंने जल्दी से अपनी टाँगें चिपका लीं. मुझे बड़ी शर्मिंदगी हुई की मैंने टेलर को अपनी पैंटी दिखा दी. मैं बेआबरू होकर फर्श को देखने लगी.
गोपालजी – मैडम, प्लीज बुरा मत फील कीजिए क्यूंकी यहाँ कोई नहीं है पर आपको ध्यान रखना होगा. वैसे मज़ेदार बात ये है की मैंने ख्याल किया है की बैठते समय टाँगें फैलाने की आदत शादीशुदा औरतों में ज़्यादा होती है. मैडम आप भी उन में से ही हो.
दीपू – पर ऐसा क्यूँ ? कोई खास वजह ?
गोपालजी – मैडम से पूछो, वो तुम्हें बेहतर बता सकती है.
गोपालजी और दीपू दोनों मेरी तरफ देखने लगे और मैं इस बेहूदा सवाल का जवाब देना नहीं चाहती थी.
“वजह….मेरा मतलब…ऐसी कोई बात नहीं…..”
गोपालजी – मैडम, असल बात ये है की शादी के बाद औरतों को टाँगें फैलाने की आदत हो जाती है. वैसे घर में साड़ी पहनकर ऐसे बैठने में कोई हर्ज़ नहीं. ठीक है ना मैडम ?
अब इसका मैं क्या जवाब देती .
गोपालजी – चलो बहुत बातें हो गयी. फिर से बैठने का पोज बनाओ.
मैं कुर्सी से खड़े हो गयी और दीपू ऐसे जल्दी में था जैसे मेरी स्कर्ट को पकड़ने को उतावला हो.
दीपू – मैडम, इस बार धीरे से बैठना.
“ठीक है.”
दीपू – देखो, पहले तो स्कर्ट को साइड्स से पकड़ना और फिर जब बैठने लगो तो ऐसे अपने नितंबों पर स्कर्ट पे हाथ फेरना और फिर बैठना.
ऐसा कहते हुए उसने जो किया वो शायद कभी किसी ने भीड़ भरी बस में भी मेरे साथ नहीं किया था. पहले तो उसने मेरी स्कर्ट के कोने पकड़े हुए थे और फिर वो अपने हाथों को मेरे गोल नितंबों पर ले गया और अपनी अंगुलियों और हथेलियों से मेरी गांड की गोलाई का एहसास करते हुए पूरी गांड पर हाथ फिराकार स्कर्ट के अंतिम छोर तक ले गया.
मुझे लगा की समझाने के बाद वो मेरी स्कर्ट से हाथ हटा लेगा. लेकिन जैसे ही मैं कुर्सी पर बैठी उसने अपने हाथ नहीं हटाए और मेरे भारी नितंब उसकी हथेलियों के ऊपर आ गये. उसकी हथेलियां मेरे गोल नितंबों से दब गयी और तुरंत मुझे अंदाज आ गया की वो मेरे नितंबों को हथेलियों में पकड़ने की कोशिश कर रहा है.
“अरे ….”
स्वाभाविक रूप से मैं उछल पड़ी.
दीपू – सॉरी मैडम, आपने हाथ हटाने का वक़्त ही नहीं दिया. फिर से सॉरी मैडम.
मुझे मालूम था की उसने मेरी स्कर्ट से ढके हुए गोल नितंबों को अपनी हथेलियों में भरने की कोशिश की थी और अब बहाना बना रहा है पर मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती थी. मैंने उसकी माफी स्वीकार कर ली और कुर्सी में बैठ गयी. दीपू अब कुर्सी के पीछे से मेरे सामने आ गया.
गोपालजी – वाह. मैडम, इस बार आपने बिल्कुल सही तरीके से किया. और जैसा की मैंने कहा ध्यान रखना की टाँगें हमेशा चिपकी हों.
“ठीक है गोपालजी.”
गोपालजी – बैठने का दूसरा पोज फर्श पर बैठना है. इसमें पैंटी को ढके रखने के लिए ऐसे बैठना.
ऐसा कहते हुए टेलर अपने घुटनों पर बैठ गया और अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका दिया.
गोपालजी – मेरे ख्याल से महायज्ञ में ज़्यादातर ऐसे ही बैठना होगा. एक बार करके देखो मैडम.
मैंने गोपालजी के पोज की नकल की और आगे झुककर अपने घुटने फर्श पर रख दिए और गांड एड़ियों पर टिका दी. इस पोज में मुझे कंफर्टेबल फील हुआ क्यूंकी स्कर्ट ऊपर नहीं उठी और ज़्यादा एक्सपोज भी नहीं हुआ.
गोपालजी – बहुत बढ़िया मैडम. अब उठ जाओ.
जैसे ही मैंने उठने की कोशिश की तो मुझे समझ आया की दीपू को मेरी स्कर्ट में दिख जाएगा जो की मेरी साइड में खड़ा था. मैंने फर्श से ऊपर उठते हुए ख्याल रखा लेकिन मेरी स्कर्ट इतनी छोटी थी की मेरी चिकनी जांघों पर ऊपर उठ गयी और मुझे यकीन है की दीपू को स्कर्ट के अंदर मेरी पैंटी दिख गयी होगी.
जिंदगी में कभी मैंने किसी मर्द के साने ऐसे अश्लील तरीके से एक्सपोज नहीं किया था. मेरे पति के सामने भी नहीं. मुझे बहुत बुरा लग रहा था और शरम से मैं पूरी लाल हो गयी थी. सिर्फ़ एक अच्छी बात हुई थी की गोपालजी ने किसी भी पोज को ज़्यादा लंबा नहीं खींचा और मुझे ज़्यादा देर तक शर्मिंदा नहीं होना पड़ा.
गोपालजी – अगला पोज है झुकना. मैडम, ये इम्पोर्टेन्ट पोज है इसका ख्याल रखना.
मैंने सोचा इज़्ज़त ढकने के लिए तो (अगर कुछ बची हुई है तो) सभी पोज इम्पोर्टेन्ट हैं. इसमें ऐसा क्या ख़ास है.
गोपालजी – क्यूंकी इसमें आपको पता होना चाहिए की कैसे और कितना झुकना है.
मैं अनिश्चय से उसकी तरफ देख रही थी और वो अनुभवी आदमी समझ गया.
गोपालजी – मैडम देखो. एक उदाहरण देता हूँ.
उसने टेप को फर्श में गिरा दिया.
गोपालजी – मैडम अगर मैं बोलूँ की इस टेप को उठा दो तो आप इसे उठाने के लिए झुकोगी. लेकिन अभी आपने मिनी स्कर्ट पहनी है इसलिए आपको झुकने के तरीके में बदलाव करना होगा. कल्पना करो की आपने साड़ी पहनी है तो आप ऐसे उठाओगी ….
ऐसा कहते हुए वो आगे झुका और हाथ आगे बढ़ाकर टेप को पकड़ा और फिर नजरें ऊपर करके मुझे देखा.
“हाँ, मैं ऐसे ही करूँगी.”
गोपालजी – मैडम यही तो बात है. अगर आप ऐसे करोगी तो ज़रा सोचो अगर कोई आपके पीछे बैठा होगा या खड़ा होगा तो उसको आपकी मिनी स्कर्ट में क्या नजारा दिखेगा.
मैं समझ गयी की वो कहना क्या चाहता है.
गोपालजी – मैडम, कोई भी औरत जानबूझकर ऐसा नहीं करेगी. आपको अपनी टाँगें चिपकाकर घुटने मोड़ने हैं और फिर ऐसे टेप उठाना है.
गोपालजी ने करके दिखाया.
“हाँ सही है.”
मैंने भी गोपालजी की तरह पोज़ बनाकर फर्श से टेप उठाकर दिखाया. सच कहूँ तो मैं अपने मन में उस टेलर को धन्यवाद दे रही थी क्यूंकी इस बारे में मैंने इतनी बारीकी से नहीं सोचा था.
गोपालजी – ठीक है मैडम. लेकिन आपको ये भी मालूम होना चाहिए की बिना कुछ दिखाए आप अपनी कमर को कितना झुका सकती हो. क्यूंकी यज्ञ के दौरान हो सकता है की आपको ऐसे झुकना पड़े.
मैंने सोचा ये तो बुड्ढा सही कह रहा है. अब वो टेलर से ज़्यादा एक गाइड की भूमिका में था.
गोपालजी – दीपू, मैं यहाँ पर बैठता हूँ और तुम्हें गाइड करूँगा की क्या करना है. ठीक है ?
दीपू – जी ठीक है.
ऐसा कहते हुए गोपालजी कुर्सी में बैठ गया.
गोपालजी – मैडम, आप मुझसे थोड़ी दूर दीवार की तरफ मुँह करके खड़ी हो जाओ …..4-5 फीट . वहाँ पर.
उसने उस जगह के लिए इशारा किया और मैं टेलर से करीब 4-5 फीट की दूरी पर दीवार के करीब जाकर खड़ी हो गयी. दीपू भी मेरे पीछे आ गया और गोपालजी की तरफ मेरी पीठ थी.
गोपालजी – मैडम, अपनी टाँगें फैला लो. दोनों पैरों के बीच एक फीट से कुछ ज़्यादा गैप होना चाहिए.
मैंने टाँगें थोड़ी फैला लीं. दीपू नीचे झुका और उसने मेरी ऐड़ियों को पकड़कर थोड़ी और फैला दिया. मैं सोच रही थी की अब मेरे साथ और क्या क्या होनेवाला है. ऐसे टाँगें अलग करने से मेरे निप्पल्स में एक अजीब सी फीलिंग आ रही थी. मैं अपना दायां हाथ ब्लाउज पर ले गयी और मेरी चूचियों को ब्रा में एडजस्ट कर लिया. गोपालजी की तरफ मेरी पीठ थी और दीपू नीचे झुका हुआ था इसलिए वो दोनों ये देख नहीं पाए.
दीपू – जी अब ठीक है ?
गोपालजी – हाँ बिल्कुल सही. मैडम, अब धीरे से कमर को आगे को झुकाओ.
“कैसे ?”
गोपालजी – मैडम, अपनी टाँगें सीधी रखो और आगे को झुको. मैं आपको बताऊँगा की कहाँ पर रुकना है. इससे आपको क्लियर आइडिया हो जाएगा की लोगों के सामने कितना झुकना है.
अब मुझे बात करने के लिए उस टेलर की तरफ मुड़ना पड़ा.
“लेकिन गोपालजी अगर मैं ऐसे झुकी तो ये बहुत भद्दा लगेगा.”
मैं बहुत कामुक लग रही हूँगी क्यूंकी मैंने देखा गोपालजी की आँखें मेरे जवान बदन पर टिकी हुई हैं. मैं उसकी तरफ गांड करके टाँगें फैला के खड़ी हुई थी और बातें करने के लिए मैंने सिर्फ अपना चेहरा पीछे को मोड़ा हुआ था.
गोपालजी – क्या भद्दा मैडम ? यहाँ आपको कौन देख रहा है ?
“नहीं , लेकिन…”
गोपालजी ऐसे बात कर रहा था जैसे दीपू और वो खुद उस कमरें में हैं ही नहीं. लेकिन मैं उन दो मर्दों को नज़र अंदाज़ कैसे कर देती.
गोपालजी – मैडम, ये तो आपकी मदद के लिए हम कर रहे हैं वरना तो आप लोगों के सामने अपनी पैंटी दिखाती रहोगी.
मैं उस टेलर से बहस नहीं कर सकती थी. क्यूंकी सच तो ये था की वो स्कर्ट बहुत छोटी थी और मुझे मालूम नहीं था की उस छोटी स्कर्ट में मेरे बड़े नितंब चलते समय या झुकते समय कैसे दिख रहे हैं.
“ठीक है, जैसा आप कहो.”
मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी और अपना मुँह दीवार की तरफ कर लिया. दीपू मेरे पास खड़ा हो गया.
गोपालजी – तो फिर जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो. धीरे से अपने बदन को आगे को झुकाओ. दीपू मैडम की टाँगें पकड़े रहना ताकि वो टाँगों को ना मोड़े.
दीपू ने तुरंत पीछे से मेरी टाँगें पकड़ ली और मुड़ने से रोकने के लिए घुटनों पर पकड़ने के बजाय उसने मेरी नंगी जांघों को पकड़ लिया. मुझे अंदाज़ा हो रहा था की वो मेरी मांसल जांघों पर हाथ फिराने का मज़ा ले रहा है.
मैंने अपने बदन को आगे को झुकाना शुरू किया. खुशकिस्मती थी की मेरे आगे कोई नहीं था क्यूंकी ऐसे आगे को झुकने से मेरे ब्लाउज में गैप बनने लगा और मेरी बड़ी चूचियों का ऊपरी भाग दिखने लगा था.
गोपालजी – मैडम, धीरे से बदन को झुकाओ. जब तक की मैं रुकने को ना बोलूँ. ठीक है ?
“ठीक है…”
मैं धीरे से आगे को झुकती रही और मुझे अंदाज़ा हो रहा था की स्कर्ट मेरी जांघों पर ऊपर उठ रही है. अब मेरा सर नीचे को झुक गया था तो मुझे पीछे बैठा दीपू दिखने लगा और जब मैंने देखा की वो बदमाश क्या कर रहा है तो मैं जड़वत हो गयी.
वो मेरे पीछे मेरे पैरों के पास बैठा हुआ था और उसका चेहरा मेरी जांघों के करीब था. मैं झुकी हुई पोजीशन में थी और वो बदमाश इसका फायदा उठाकर मेरी स्कर्ट के अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा था. वो अंदर झाँकने को इतना उतावला हो रखा था की सर ऊपर करके सीधे स्कर्ट में देख रहा था. उसकी आँखें मेरी पैंटी से कुछ ही दूर थी और वो बिना किसी रोक टोक के मेरी पूरी गांड का नज़ारा देख सकता था.
जैसे ही उसकी नजरें मुझसे मिली, जल्दी से उसने अपना मुँह नीचे को कर लिया और मेरी जांघों पर उसकी पकड़ टाइट हो गयी. मेरा मन हुआ की इस बदमाश छोकरे को एक कस के थप्पड़ लगा दूँ पर मैंने अपने को काबू में रखा. मुझे समझ आ रहा था की इस पोज़ में मैं बहुत ही कामुक लग रही हूँगी. मैंने पीछे गोपालजी को देखा और वो अपने हाथ से अपने पैंट को वहाँ पर खुजा रहा था और उसकी नजरें मेरे पीछे को उभरे हुए नितंबों पर टिकी हुई थी.
गोपालजी – मैडम, बस रुक जाओ. इस एंगल से मुझे आपकी पैंटी दिखने लगी है.
अब मेरा दिमाग़ घूमने लगा था. अभी अभी मैंने टेलर के साथी को अपनी स्कर्ट के अंदर झाँकते हुए रंगे हाथों पकड़ा था और अब टेलर कह रहा था की उसे मेरी पैंटी दिख रही है.
गोपालजी – मैडम, इस पोज़ में आपकी गांड ऐसे लग रही है जैसे स्कर्ट के अंदर दो कद्दू रखे हों.
मैं उसके कमेंट पर ज़्यादा ध्यान ना दे सकी क्यूंकी दीपू के हाथ मेरी नंगी जांघों पर ऊपर को बढ़ने लगे थे और एक मर्द के मेरी नंगी जांघों को छूने से मुझपे नशा सा चढ़ रहा था. वो मेरी जांघों के एक एक इंच को महसूस कर रहा था और अब उसके हाथ मेरी स्कर्ट के पास पहुँच गये थे.
गोपालजी – मैडम, इसी पोज़ में रहो. दीपू मैडम की मदद करो ताकि मैडम और ज़्यादा ना झुके.
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. दीपू ने मुझे उस पोज़ में रोकने के बहाने अपने हाथ स्कर्ट के अंदर डाल दिए और उसकी अँगुलियाँ मेरे नितंबों के निचले भाग की छूने लगी.
गोपालजी कुर्सी से उठकर मेरे पास आने लगा. मैंने एक नज़र अपनी छाती पर डाली और ये देखकर शॉक्ड रह गयी की मेरी गोल चूचियों का ज़्यादातर हिस्सा ब्लाउज से बाहर लटक रहा है.
गोपालजी – ठीक है मैडम. अब आप सीधी हो जाओ. मैंने पोजीशन नोट कर ली है.
मैं उस समय तक उत्तेजना से काँपने लगी थी क्यूंकी दीपू की अँगुलियाँ मेरी स्कर्ट के अंदर मनमर्ज़ी से घूम रही थी और एक दो बार तो उसने पैंटी के ऊपर से मेरे भारी नितंबों को मसल भी दिया था. मेरी साँसें उखड़ने लगी थी तभी गोपालजी ने मुझे सीधे होने को कहा.
दीपू को अब अपनी हरकतें रोकनी पड़ी. उसने एक आख़िरी बार अपनी दोनों हथेलियों को मेरी स्कर्ट के अंदर फैलाया और मेरी गांड की पूरी गोलाई का अंदाज़ा किया. मैं सीधी खड़ी तो हो गयी पर मुझे असहज महसूस हो रहा था क्यूंकी दीपू ने मेरी काम भावनाओं को भड़का दिया था. मैंने अपने दाएं हाथ से अपनी गांड के ऊपर स्कर्ट को सीधा किया और ब्लाउज के अंदर चूचियों को एडजस्ट कर लिया.
अब जो अनुभव मुझे अभी हुआ था उससे मेरे मन में एक डर था की यज्ञ के दौरान पीछे से मेरी स्कर्ट के अंदर लोगों को दिख सकता है.
गोपालजी – मैडम, अगला पोज़ है ऐड़ियों पर बैठना (स्क्वाटिंग). लेकिन इस स्कर्ट में आप ऐसे नहीं बैठ सकती हो. है ना ?
गोपालजी शरारत से मुस्कुरा रहा था. मैंने सिर्फ सर हिला दिया.
दीपू – मैडम, अगर आपको ऐसे बैठना ही पड़े तो बेहतर है की आप अपनी स्कर्ट खोल दो और फिर अपनी ऐड़ियों पर बैठ जाओ.
उसकी इस बेहूदी बात पर वो दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे. मैं गूंगी गुड़िया की तरह खड़ी रही और बेशर्मी से व्यवहार करती रही जैसे की उस कमरे में फँस गयी हूँ.
गोपालजी – मैडम, सीढ़ियों पर चढ़ते समय भी ध्यान रखना होगा. क्यूंकी इस स्कर्ट को पहनकर अगर आप सीढ़ियां चढ़ोगी तो पीछे आ रहे आदमी को फ्री शो दिखेगा……
“हाँ गोपालजी मुझे मालूम है. आशा करती हूँ की ऐसी सिचुयेशन नहीं आएगी.”
दीपू – हाँ मैडम. पता है क्यों ?
मैंने उलझन भरी निगाहों से दीपू को देखा.
दीपू – क्यूंकी आश्रम में सीढ़ियां हैं ही नहीं……हा हा हा……
इस बार हम सभी हंस पड़े. मेरी साँसें भी अब नॉर्मल होने लगी थी.
गोपालजी – मैडम, आख़िरी पोज़ है लेटना. अब आपको बहुत कुछ मालूम हो गया है, मैं चाहता हूँ की आप अपनेआप बेड में लेटो.
“ठीक है..”
गोपालजी – मैडम, हम इस तरफ खड़े हो जाते हैं.
वो दोनों उस तरफ खड़े हो गये जहाँ पर लेटने के बाद मेरी टाँगें आती. मैं बेड में बैठ गयी और तुरंत मुझे अंदाज़ा हुआ की ठंडी चादर मेरी नंगी गांड के उस हिस्से को छू रही है जो की पैंटी के बाहर है, वो स्कर्ट इतनी छोटी थी. मैंने अपनी टाँगें सीधी रखी और चिपका ली और उन्हें उठाकर बेड में रख दिया. गोपालजी और दीपू की नजरें मेरी कमर पर थी और मैं जितना हो सके अपनी इज़्ज़त को बचाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मुझे समझ आ गया की पैंटी को ढकना असंभव है. मेरी स्कर्ट चिकनी जांघों पर ऊपर उठने लगी और मैंने जल्दी से उसे नीचे को खींचा. लेकिन जैसे ही मैं बेड में लेटी तो मुझे थोड़ी सी अपनी टाँगें मोडनी पड़ी और उन दोनों मर्दों को मेरी स्कर्ट के अंदर पैंटी का मस्त नज़ारा दिख गया होगा.
कितनी शरम की बात थी.
मैं एक हाउसवाइफ हूँ……….मैं कर क्या रही हूँ. बार बार अपनी पैंटी इन टेलर्स को दिखा रही हूँ. मेरे पति को ज़रूर हार्ट अटैक आ जाएगा अगर वो ये देख लेगा की मैं बिस्तर पे इतनी छोटी स्कर्ट पहन कर लेटी हुई हूँ और दो मर्द मेरी पैंटी में झाँकने की कोशिश कर रहे हैं.
गोपालजी – बहुत बढ़िया मैडम. अब तो महायज्ञ में इस ड्रेस को पहनकर जाने के लिए आप पूरी तरह से तैयार हो.
मैं बेड से उठी और सोच रही थी की जल्दी से इस स्कर्ट को उतारकर अपनी साड़ी पहन लूँ क्यूंकी मैंने सोचा टेलर की नाप जोख और ये एक्सट्रा गाइडिंग सेशन खत्म हो गया है.
लेकिन मैं कुछ भूल गयी थी……. जो की बहुत महत्वपूर्ण चीज थी.
गोपालजी – मैडम , अब आपकी नाप का ज़्यादातर काम पूरा हो गया है. बस थोड़ा सा काम बचा है फिर हम चले जाएँगे.
“अब क्या बचा है ?”
खट खट ………
दरवाजे पर खट खट हुई और हमारी बात अधूरी रह गयी क्यूंकी मैं जल्दी से अपनी स्कर्ट के ऊपर साड़ी लपेटकर अपने नंगे बदन को ढकने की कोशिश करने लगी.
गोपालजी – मैडम, फिकर मत करो. मैं देखता हूँ.
वो दरवाजे पर गया और थोड़ा सा दरवाजा खोलकर बाहर झाँका. मैंने परिमल की आवाज़ सुनी की मैडम के लिए फोन आया है.
गोपालजी – ठीक है, मैं अभी मैडम को भेजता हूँ.
परिमल ‘ठीक है’ कहकर चला गया और मैं अपनी साड़ी और पेटीकोट लेकर बाथरूम चली गयी. मैं सोच रही थी की किसका फोन आया होगा और कहाँ से ? मेरे घर से ? कहीं अनिल के मामाजी का तो नहीं जो मुझसे मिलने आश्रम आए थे ?. यही सोचते हुए मैंने स्कर्ट उतार दी और पेटीकोट बांधकर साड़ी पहन ली.
कहानी जारी रहेगी