Update 56

औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

पैंटी की समस्या

गोपालजी – नही ? आपने नीचे कुछ नही पहना है ?

“ओह..नही नही. मैंने पहनी है.”

गोपालजी – आपने कहा नही. …चलो बढ़िया.

वो बातें करते हुए मेरी जवानी को देख रहा था. मैंने आश्चर्य से गोपालजी को देखा. मैंने पैंटी पहनी है तो इसमें बढ़िया क्या है , मुझे समझ नही आया.

गोपालजी – मैडम मैं अभी चेक करता हूँ. आपको फिर कभी पैंटी की समस्या नही होगी. प्लीज़ एक बार पीछे को मुड़ो.

मैं उलझन में थी. अब ये क्या करनेवाला है ? ये कैसे चेक करेगा ? मेरी पैंटी मेरी बड़ी गांड को कितना ढकती है ये चर्चा का विषय था पर क्या गोपालजी मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर ये चेक करेगा ?

हे भगवान…. ऐसा नही हो सकता…

क्या वो मेरी साड़ी के अंदर हाथ डालकर ये चेक करेगा ? मेरे होंठ सूखने लगे थे और मुझे बहुत फिकर होने लगी थी.

गोपालजी – मैडम मैं अभी चेक करता हूँ. आपको फिर कभी पैंटी की समस्या नही होगी. प्लीज़ एक बार पीछे को मुड़ो.

मैं उलझन में थी. अब ये क्या करनेवाला है ? ये कैसे चेक करेगा ? मेरी पैंटी मेरी बड़ी गांड को कितना ढकती है ये चर्चा का विषय था पर क्या गोपालजी मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर ये चेक करेगा ?

हे भगवान…. ऐसा नही हो सकता…

क्या वो मेरी साड़ी के अंदर हाथ डालकर ये चेक करेगा ? मेरे होंठ सूखने लगे थे और मुझे बहुत फिकर होने लगी थी.

खुशकिस्मती से ऐसा कुछ नही हुआ पर मेरे पति से फोन पे बात करने से जो खुशी मुझे मिली थी वो अब गायब होने लगी थी क्यूंकी मुझे डर सताने लगा था की टेलर फिर से मेरे साथ छेड़छाड़ करेगा.

गोपालजी – मैडम, जो समस्या आप बता रही हो, वो अभी इस समय भी हो रही है ?

“नही नही, अभी तो बिल्कुल ठीक है.”

मैंने कमज़ोर सी आवाज़ में जवाब दिया.

गोपालजी – हुह ….आपके कहने का मतलब है की आपकी पैंटी पूरी ढकी हुई है …..आपकी गांड को ?

मैं उन दोनो टेलर्स के मुँह से बार बार गांड शब्द सुनकर अजीब महसूस कर रही थी लेकिन मुझे अंदाज़ा था की ये लोवर क्लास के आदमी हैं और ऐसे शब्दों का प्रयोग बोलचाल में करते हैं.

“हाँ, मुझे ठीक लग रहा है…”

गोपालजी – लेकिन मैडम, अभी तो आपने बताया था की पहनने के कुछ समय बाद पैंटी नितंबों से खिसकने लगती है , है ना ?

“हाँ लेकिन …”

मेरे अंतर्वस्त्र के बारे में ऐसे डाइरेक्ट सवालों से मैं हकलाने लगी थी .

दीपू – गोपालजी, मेरे ख्याल से मैडम के कहने का मतलब है की पैंटी पहनने के कुछ समय बाद, अगर वो चलती है या कोई काम करती है तो उसे समस्या होने लगती है. सही कह रहा हूँ मैडम ?

“हाँ, हाँ. बिल्कुल यही मेरे कहने का मतलब था.”

गोपालजी – अच्छा. चूँकि आप इस कमरे में ज़्यादा हिली डुली नही हो तो आपको अभी पैंटी की समस्या नही है. मैडम ये बताओ की क्या पैंटी आपकी दरार में पूरी घुस जाती है ….मेरा मतलब गांड की दरार में ?

अब तो मुझे टोकना ही था. अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नही कर पा रही थी.

“क्या मतलब है आपका ? ये कैसा सवाल है ?”

गोपालजी – मैडम, मैडम, प्लीज़ बुरा ना मानो. मुझे मालूम है की ये अंतरंग किस्म के सवाल हैं और आपको जवाब देने में शरम महसूस हो रही है. लेकिन अगर आप पूरी डिटेल नही बताओगी तो मैं समस्या को हल कैसे करूँगा ?

दीपू – मैडम, गोपालजी आपके डॉक्टर की तरह हैं. आपके ड्रेस डॉक्टर.

कमरे में कुछ देर चुप्पी छाई रही. दीपू और गोपालजी मुझे देख रहे थे और मैं अपने सूखे हुए होठों को गीला करके उन दोनो मर्दों के सामने अपने कॉन्फिडेंस को वापस लाने की कोशिश कर रही थी.

गोपालजी – हाँ, हाँ. मैडम, आप अपने डॉक्टर को अंतरंग बातें बताती हो की नही ?

मुझे जवाब में सर हिलाना पड़ा.

गोपालजी – ये भी उसी तरह है. मैडम हिचकिचाओ नही. मुझे बताओ की पैंटी पूरी तरह से नितंबों से फिसलकर आपकी गांड की दरार में घुस जाती है ? मेरा मतलब दोनो तरफ से ? क्या आप इसको चेक करती हो ?

मेरा चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था. मेरे कान गरम होने लगे थे और मेरी साँसे तेज हो गयी थी. मेरा वर्बल ह्युमिलिएशन हो रहा था और मुझे लग रहा था की मैं फँस चुकी हूँ. मैं उनसे बहस कर सकती थी लेकिन इससे आश्रम के और लोग भी वहाँ आ सकते थे. सभी के सामने तमाशा होने से मैं बचना चाहती थी. इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा और अपने ह्युमिलिएशन को सहन कर लिया क्यूंकी जो भी हो रहा था वो इस बंद कमरे से बाहर नही जाएगा.

“नही…मेरा मतलब ज़्यादातर हिस्सा अंदर चला जाता है…”

गोपालजी – मुझे ठीक से समझ नही आया. देखो मैडम, अगर आप साफ साफ नही बताओगी तो मैं पैंटी के लिए सही कपड़े का चुनाव नही कर पाऊँगा.

मुझे समझ आ रहा था की अगर मुझे ये किस्सा बंद करना है तो बेशरम बनना पड़ेगा.

“मेरा मतलब है की पैंटी का कपड़ा सिकुड़कर इकट्ठा हो जाता है और अंदर चला जाता है …मेरा मतलब..वहाँ…”

गोपालजी – हम्म्म …..आपका मतलब है की कपड़ा एक रस्सी की तरह लिपट जाता है और आपकी दरार में घुस जाता है , ठीक ?

मैंने सर हिला दिया.

गोपालजी – हम्म्म …मैडम, इसका मतलब आपके पेटीकोट के अंदर आपकी गांड पूरी नंगी रहती है.

मैं गूंगी की तरह चुप रही. ये तो साफ जाहिर था की अगर मेरी पैंटी सिकुड़कर दरार में घुस जाती है तो मेरे नितंब नंगे रहेंगे. वो मुझसे इसका क्या जवाब चाहता था ?

वैसे उसकी बात सही थी क्यूंकी असल में होता तो यही था.

गोपालजी – दीपू तुम्हे समस्या समझ में आई ?

दीपू – जी. ये पदमा मैडम की समस्या की तरह ही है.

गोपालजी – पदमा मैडम ? कौन पदमा ?

दीपू – जी आप उनको नही जानते. पिछले साल मैं शहर की एक दुकान में काम कर रहा था ये तब की बात है.

गोपालजी – अच्छा. मेरी एक कस्टमर भी पदमा है पर वो मुझसे सिर्फ ब्लाउज सिलवाती है.

मैं उन दोनो मर्दों की बातचीत सुन रही थी.

गोपालजी – मैडम, सुना आपने. ये सिर्फ आपकी समस्या नही है. दीपू उसकी क्या समस्या थी ?

दीपू – जी, पदमा मैडम की समस्या ये थी की चलते समय उसकी पैंटी दाहिनी साइड से सिकुड़कर बीच में आ जाती थी.

“और इस समस्या का हल कैसे निकला ?”

पहली बार मैं जवाब सुनने के लिए उत्सुक थी.

दीपू – उसकी टाँगों की लंबाई में थोड़ा सा अंतर था और ये जानने के बाद हमने उसी हिसाब से उसकी पैंटी सिल दी और उसकी समस्या दूर हो गयी.

गोपालजी – मैडम, मैंने पहले भी बताया है की सबसे पहले आपकी पैंटी में पीछे से ज़्यादा कपड़ा चाहिए. उसके अलावा थोड़ा सा मोटा कपड़ा और एक अच्छा एलास्टिक लगा देने से आपकी समस्या हल हो जाएगी.

“ठीक है गोपालजी.”

गोपालजी – दीपू नोट करो की जब मैं मैडम की पैंटीज सिलू तो ट्विल कॉटन 150 यूज करना है.

दीपू ने अपनी कॉपी में नोट कर लिया.

गोपालजी – ठीक है मैडम, अब प्लीज़ पीछे मुड़ो और मैं साबित करता हूँ की दीपू की बात ग़लत है.

मैं तो बिल्कुल भूल ही गयी थी की गोपालजी और दीपू के बीच मेरी पैंटी के बैक कवरेज को लेकर बहस हुई थी. और अब जबकि मैं इस वर्बल ह्युमिलिएशन को सहन कर रही थी तो अब फिज़िकल ह्युमिलिएशन की बारी आने वाली थी.

गोपालजी – मैडम, प्लीज़ टाइम वेस्ट मत करो.

मैंने दांतों में होंठ दबाए और धीरे से पीछे को मुड़ने लगी. मेरी पीठ और बाहर को उभरे हुए नितंब दीपू और गोपालजी को ललचा रहे थे. मैं ऐसे खड़े होकर शरम से मरी जा रही थी क्यूंकी मुझे मालूम था की उन दोनो मर्दों की निगाहें मेरी कद्दू जैसी गांड पर ही गड़ी होंगी.

गोपालजी – शुक्रिया मैडम. दीपू अब मुझे ये बताओ की मैडम की पैंटी लाइन कहाँ पर है.

दीपू – जी अभी देखकर बताता हूँ.

पैंटी लाइन ? मेरे दिल की धड़कने रुक गयी. पर इससे पहले की मैं और कुछ सोच पाती मुझे साड़ी से ढके हुए अपने नितंबों पर हाथ महसूस हुए जो की मेरे नितंबों को कसके पकड़े हुए थे. दीपू ने अपने हाथों से दो तीन बार मेरे नितंबों को दबाया और मेरे होंठ अपनेआप खुल गये. मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया और मैंने अपनी भावनाओ पर काबू पाने की भरसक कोशिश की.

गोपालजी – मैडम के कपड़ों के बाहर से तुम्हे पैंटी महसूस हो रही है क्या ?

दीपू – जी गोपालजी.

ऐसा कहते हुए उसने मेरे मांसल नितंबों पर अपनी अँगुलियाँ फिरानी शुरू की और जल्दी ही उसको मेरी साड़ी और पेटीकोट के बाहर से पैंटी लाइन मिल गयी. मुझे महसूस हुआ की दीपू मेरी भारी गांड के सामने झुक गया है और अपने घुटनो पर बैठकर दोनो हाथों से मेरी पैंटी के कपड़े के ऊपर हाथ फिरा रहा है. इस हरकत से कोई भी औरत कामोत्तेजित हो जाती और मैं भी अपवाद नही थी.

दीपू के हाथों को मैं अपनी बड़ी गांड के ऊपर घूमते हुए महसूस कर रही थी और अब पैंटी को छोड़कर उसकी अँगुलियाँ बीच की दरार की तरफ बढ़ गयी. लगता था की दीपू को मेरे नितंबों का शेप बहुत पसंद आ रहा था और जैसे जैसे उसकी अँगुलियाँ मेरी साड़ी को बीच की दरार में धकेल रही थी वैसे वैसे मेरे नितंबों का उभार सामने आ रहा था.

गोपालजी – क्या हुआ ? लगता है तुम्हे मैडम की बड़ी गांड बहुत भा गयी है ….हा हा हा…..

टेलर की हँसी कमरे में गूँज रही थी और उन दोनो मर्दों के सामने मेरी हालत को बयान कर रही थी.

दीपू – गोपालजी चाहे आप कुछ भी कहो पर मैडम की गांड बहुत ही शानदार है. सुडौल भी है और मक्खन की तरह चिकनी और मुलायम भी है . क्या माल है.

मैं अपने दांतों से होंठ काट रही थी और उनके अश्लील कमेंट्स को नज़रअंदाज करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मेरा बदन इन कामुक हरकतों को नज़रअंदाज़ नही कर पा रहा था.

मुझे साफ समझ आ रहा था की पैंटी लाइन ढूंढने के बहाने दीपू मेरे नितंबों से मज़े ले रहा है. उसने मेरे बाएं नितंब पर अपना अंगूठा ज़ोर से दबा दिया और बाकी अंगुलियों से मेरी पैंटी लाइन के एलास्टिक को पकड़ लिया. मेरा बदन इतना गरम होने लगा था की मुझे हल्के से हिलना डुलना पड़ा. मुझे खीझ भी हो रही थी और कामोत्तेजना भी. दीपू मेरी बड़ी गोल गांड को दोनो हाथों से दबाने में मगन था. सच कहूँ तो उसकी इस कामुक हरकत से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी. वो पैंटी लाइन ढूँढने के बहाने बिना किसी रोक टोक के मेरे नितंबों को मसल रहा था.

दीपू – गोपालजी, मिल गयी पैंटी लाइन , ये रही.

ऐसा कहते हुए उसने मेरी साड़ी के बाहर से मेरी पैंटी के किनारों पर अपनी अंगुली फेरी. उत्तेजना से मेरे बदन में इतनी गर्माहट हो गयी थी की मेरा मन हो रहा था की साड़ी उतार दूं और सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी रहूं.

गोपालजी – कहाँ ? मुझे देखने दो.

मुझे एहसास हुआ की अब गोपालजी भी मेरे पीछे दीपू के पास आ गया. वो भी झुक गया और मेरी उभरी हुई गांड के पास अपना चेहरा ले आया. क्यूंकी दीपू लगातार मेरे नितंबों पर हाथ फेर रहा था इसलिए मैं स्वाभाविक रूप से हल्के से अपनी गांड को हिला रही थी. मैं जानती थी की दो मर्दों के सामने इस तरह साड़ी के अंदर मेरी भारी गांड को हिलाना बड़ा भद्दा लग रहा होगा लेकिन ऐसा करने से मैं अपनेआप को रोक नही पा रही थी.

अब मुझे एहसास हुआ की गोपालजी का हाथ भी मेरी गांड को छू रहा है.

गोपालजी – हम्म्म …मैडम, मुझे पैंटी लाइन को महसूस करने दो तभी मुझे मालूम पड़ेगा की ये आपके नितंबों को कितना ढक रही है.

मुझे कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि मैंने पहले ही मास्टर जी के आगे व्यवाहरिक रूप से घुटने टेक दिए थे। मास्टर जी ने दीपु के हाथ को मेरे बाएं नितम्ब के गाल से हटा दिया और सीधे मेरे नितम्ब को अपने हाथ से वहाँ दबाया. मैंने महसूस किया कि मास्टर-जी का हाथ उनके प्रशिक्षु की तुलना में बोल्ड था। उसने तुरंत मेरी गांड पर चकोटि काट कर मुझे संकेत दिया कि यह उसका हाथ है। दीपु की उँगलियाँ अभी भी मेरे दाहिने नितम्ब पर मेरी पैंटी की लाइन पर टिकी हुई थीं।

मेरी साड़ी और पेटीकोट इन मर्दो के हाथों से मुझे सुरक्षा देने के लिए प्राप्त रूप से मोटी नहीं थी। इस प्रकार दीपक की तरह मास्टर-जी भी अपने हाथ की दो से तीन अंगुलियों से मेरी पैंटी को आसानी से पकड़ लिया । मास्टर-जी ने मेरी पैंटी लाइन के पीछे से अपनी उंगलियाँ मेरे बाएँ नितंब पर घुमाना शुरू कर दिया। इस बिंदु पर मैं यौन उत्तेजना में कांप रही थी क्योंकि और नीचे ... और नीचे ... और नीचे हाथ ले जाते हुए उसने मेरी पैंटी लाइन का पता लगाना रब ताज जारी रखा जब तक वह मेरी गांड की दरार तक नहीं पहुँच गया! मैं उस सेक्सी हॉट लहर को सहन नहीं कर सकी और मेरे शरीर को झकझोर कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

मैं: आह! आउच! आप मास्टर जी क्या ... क्या कर रहे हैं?

मास्टर-जी: मैडम, मैडम बस एक पल के लिए धीरज रखिए। मेरी जाँच लगभग समाप्त हो गई है।

मैंने उसी स्थिति में खड़ी रही और मेरे पैरों और मेरी टांगों के बीच थोड़ी सी दूरी की ( ईमानदारी से कहू तो मास्टर जी का हाथ को मेरी गाण्ड तक आसानी से पहुँचने देने के लिए ) हालाँकि इससे मुझे सेक्सी बेचैनी से क्षणिक राहत तो मिली, लेकिन मास्टर-जी ने अगले ही क्षण एक नया 'निरीक्षण' शुरू किया! I

मास्टर जी ने मेरी पूरी गांड की दरार तक मेरी पैंटी लाइन को ट्रेस करते हुए मेरी गाण्ड से अपना हाथ हटा दिया। मैंने खुले मुंह के साथ राहत की सांस ली, तभी मैंने महसूस किया कि मास्टर-जी ने अपनी पूरी हथेली से मेरे बाएं नितंब पर बहुत कस कर निचोड़ दिया।

मेरे निपल्स ने तुरंत उस पर प्रतिक्रिया दी और मेरी ब्रा के भीतर पूरी तरह कठोर हो सीधे हो गए थे। स्वचालित रूप से जो कुछ भी थोड़ी बहुत शर्म मेरे अंदर रह गई थी, वह भाप बन कर उड़ गई, और मैंने अपनी साड़ी और ब्लाउज के ऊपर अपने स्तनो की मालिश करना शुरू कर दिया और साथ ही साथ अपने भारी कूल्हों को धीरे-धीरे लहराने लगी । मुझे नहीं पता था कि मास्टर-जी और दीपू ने मुझे बहुत सेक्सी कर्म करते देखा था या नहीं , लेकिन उन्होंने अपने हाथों से मेरे पूरे विकसित नितम्बो को ऐसे दबाया जैसे मधुमखियो के छत्ते से शहद निकाला जाता है ।

मास्टर-जी: ठीक है हो गया मैंने चेक कर लिया ।

दीपू : तो, मास्टर-जी, मैं सही था या गलत?

मास्टर जी का परिक्षण निरक्षण कुछ और क्षणों के लिए चला और आखिरकार जब उन्होंने अपने हाथो को रोका तो मेरी साडी स्वाभाविक रूप से उसकी उंगली के साथ-साथ मेरी जांघों के बीच मेरी गहरी गांड की दरार में समा गयी थी ।

मास्टर-जी: हां दीपू , मुझसे गलती हो गई थी। तुम ठीक कह रहे थे।

यह कहते हुए कि उसने फिर से मेरे नितम्बो पर एक लम्बी सी चुटकी इस तरह काटी मानो वह छोटी लड़की के गालों को दो उंगलियों से निचोड़ रहे हो ! मैं परमानंद में जोर-जोर से सांस ले रही थी , लेकिन फिर भी मैंने अपने आप की नार्मल दिखाने की को वापस पाने की कोशिश की।

मास्टर-जी: मैडम, मुझे कहना होगा कि आप मेरे अन्य ग्राहकों से काफी अलग हैं! हालाँकि अभी भी मेरी साड़ी से ढँकी गाण्ड पर उनके दो हाथ थे, सौभाग्य से अब उनके हाथ ज्यादातर स्थिर थे।

मैं: क्या… मेरा मतलब है कैसे? मैंने कर्कश आवाज में पूछा। मास्टर-जी: मैडम, क्या आपने कभी पैंटी पहनने के बाद शीशे में अपनी पीठ चेक की है?

ये कैसा प्रश्न है! मैंने खुद को हो रही असुविधा को नजरअंदाज करते हुए मैंने अपने होंठों को गीला कर दिया और जवाब देने की शुरुआत की!

मैं: हम्म। बेशक, लेकिन ... लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं ?

जैसा ही मैंने उत्तर दिया मैं तुरंत महसूस किया कि मास्टर-जी और दीपू के दोनों हाथों में हलचल हुई , हालाँकि मैंने 'निश्चित रूप से' कहा था, लेकिन असलियत में मुझे शायद ही टॉयलेट में आईने में खुद को इस तरह से जाँचने का मौका मिलता है कि मैं जब अपनी पोशाकें पहनूँ तो उसमे अपना पूरा जिस्म और पोशाक देख सकू । हमारा बाथरूम मिरर में केवल ऊपरी हिंसा दिखाई देता है और इसलिए मुझे अपना फुल फिगर चेक करने के लिए बैडरूम में आना पड़ता है, और बाथरूम से केवल अपने अंदर के कपड़े पहनना और फिर ऐसे ही बाहर आना बहुत मुश्किल है और यहां तक कि अगर मैं ऐसा करती हूं, और अगर अनिल आसपास होता है , तो वह निश्चित रूप से मुझे इस हाल में खुद को दर्पण में जांचने नहीं देगा, बल्कि मुझे अपनी बाहों में ले लेगा और निश्चित रूप से एक ही पल में में मेरे अंडरगारमेंट भी उतर जाएंगे ।

मास्टर-जी: अगर ऐसा है, तो आप अपवाद हैं, मैडम, क्योंकि मेरा कोई भी ग्राहक अपनी साड़ियों के नीचे अपने गोल नितम्बो का इतना एक्सपोज़र नहीं होने देती ।

मैं फिर से बोल्ड हो गयी ! यह बूढ़ा व्यक्ति क्या ये संकेत देने की कोशिश कर रहा है की मैं एक साहसी महिला हूँ? मैंने तुरंत अपने दर्जी के सामने अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश की कि 'मैं ऐसी नहीं हूं'।

मैं : नहीं, नहीं मास्टर-जी, वास्तव में जब मैं इसे पहनती हूं, मैं इसे अपनी पीठ पर ठीक से फैलाना सुनिश्चित करती हूं ताकि मैं सभ्य दिखूं ... मेरा मतलब है ... ताकि मैं अपनी साड़ी के नीचे सभ्य महसूस करूं।

मास्टर-जी: लेकिन मैडम, जरा देखिए। आपकी पैंटी लाइन यहाँ है ...

यह कहते हुए कि उसने मेरी पैंटी लाइन को फिर से बाईं गांड पर खींच दिया और इस बार उसने अपनी उंगली मेरी गांड के मांस पर ज़ोर से दबाकर मुझे पैंटी की पोज़िशन देखने के लिए कहा। मास्टर-जी: मैडम, आपकी दरार से सिर्फ चार-पाँच उंगलियाँ ढक रही है और आपका पूरा का पूरा बायाँ नितम्ब इसके बाद नंगे है। मेरा मतलब है कि आपकी नितम्ब पैंटी से ढँकी नहीं हुई है ।

मैं : यह ... जरूर अपनी जगह से हिल गयी होगी

मास्टर-जी: ठीक है। लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि मैडम आप अपने नितम्बो का का अधिकतर हिस्सा अपनी पैंटी के बाहर रखते हैं।

दीपू: मास्टर-जी, मैडम के पास इतना अच्छा खज़ाना है, इसे पूरी तरह से कवर करके क्यों रखना चाहिए?

मास्टर-जी: नहीं, नहीं। वह ठीक है। लेकिन मैं केवल यह कह रहा था कि मेरे अन्य ग्राहक ...

मैंने दीपू की टिप्पणी पर आपत्ति की ।

कहानी जारी रहेगी​
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