Update 57

औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

आपत्तिजनक निरक्षण

मैंने आपत्तिजनक लहजे में दीपू से कहाः

मैं: दीपू आपका क्या मतलब है? मैं ऐसा जानबूझकर करती हूं?

दीपू: नहीं नहीं मैडम। मैंने तो ऐसे ही कहा । आपने कहा था ... इसे पहनने के बाद आप इसे अपनी गाँड पर फैला देती हो ...अब आप इससे ज्यादा और क्या कर सकते हैं?

दीपू ने समझौतावादी लहजे में कहा जो मुझे अच्छा लगा ।

मास्टर-जी: ठीक है! यदि पैंटी में ही दोष है, तो पहनने वाली क्या कर सकती है।

दीपू: तो मास्टर जी तो यह मैडम की समस्या का मुख्य कारण है?

मास्टर-जी: जाहिर है। जरा तुम खुले भाग को देखो … यह कहते हुए कि मास्टर जी ने अपने अंगूठे और मध्यमा उंगली के बीच एक गैप बनाया और दीपू को मेरी गांड के मांस के ऊपर की दूरी दिखाने की कोशिश की, जो मेरे पैंटी कवर के बाहर थी।

दीपू: मास्टर जी आप इसे अपनी अंगुलियों से भी नहीं ढक पा रहे !

मेरा चेहरा फिर से लाल हो गया था और शायद यह सुनकर मास्टर-जी ने भी पूरी तरह से अपनी उँगलियों से मेरी गांड को सहलाने की कोशिश की।

मैं: आआह!

मैंने आह सुन कर मास्टर जी ने अपनी पूरी हथेली को अपनी उंगलियों से पूरी तरह से बढ़ा दिया जिससे उनके हाथ ने मेरे दाए नितम्ब की पूरा अपनी गिरफ्त में ले लिया । मुझे भी अपनी चूत में गीलापन महसूस हो रहा था और मेरे चूतरस को बूँदें अब मेरी पैंटी में से बाहर निकालने लगीं थी । और जैसा कि उम्मीद थी, उसने अपनी पूरी हथेली के साथ मेरी बहुत गांड का मांस पकड़ कर उसे एक जोरदार तरीके से निचोड़ दिया।

मुझे अभूतपूर्व आनंद का अनुभव हुआ और दूसरी तरफ दीपू भी मेरी साड़ी के नीचे मेरे बाये गोल नितम्बो की चिकनाई महसूस कर रहा था

मैंने इसके बाद इस 'कभी न खत्म होने वाली' कपड़ो के माप की प्रक्रिया को पूर्ण विराम लगाने का प्रयास किया।

मैं : जो भी मास्टर-जी, आप बस मुझे उचित आकार की पैंटी सी कर दे दीजिये ।

मास्टर-जी: मैडम! केवल यही कारण है कि मैं जाँच कर रहा हूँ। दीपू, बस मैडम के लिए दो इंच का अतिरिक्त बैक कवर लगाना है याद रखना ।

दीपू ने अपनी उँगलियों को मेरी दाईं गांड पर थोड़ा सा घुमाया जैसे कि यह जांचने के लिए कि मेरी गांड कितनी ढकी होगी अगर वह अतिरिक्त कपडा मेरी पैंटी से जुड़ा हुआ हो।

दीपू: क्या वो काफी होगा मास्टर-जी? क्या आपने इस हिस्से की जाँच की है, यह बहुत चिकनी तंग और उछालभरी है! मुझे डर है कि पैंटी फिर से फिसल सकती है।

मास्टर-जी: कौन सा हिस्सा? मध्य? हम्म।

तंग और उछालभरी? दीपू मेरी गांड के बीच के हिस्से का जिक्र कर रहा था और मेरी गांड के मांस की लोच की जाँच करने के लिए अपनी उंगली से सहला रहा था ! मुझे ऐसा लगा मुझे शर्म से पानी में डूब जाना चाहिए ये दोनों मेरी सारी शर्म और स्वाभिमान की परीक्षा ले रहे थे।

वह रुक गया और मैंने महसूस किया की मास्टर-जी का अंगूठा मेरी बायीं नितम्ब के गाल के ऊपर था और उस बूढ़े बदमाश ने जाहिर तौर पर मेरे बड़े-बड़े गोल मांसल नितम्बो को फिर से निचोड़ने का मौका नहीं छोड़ा और वो मेरे गदराये हुए चिकने नितम्बो और गांड की चिकनाई का आनंद ले रहा था । मैं भी तेजी से गर्म हो रही थी और मेरे नितंब भी अब पर्याप्त गर्मी का उत्सर्जन कर रहे थे।

मुझे यकीन था कि मास्टर-जी और दीपक दोनों ही स्पष्ट रूप से मेरी इस हालत से वाकिफ थे । क्योंकि मैं तेजी से असहज और यौन उत्तेजित हो रही थी इसलिए थास्वाभाविक रूप से मैं अपनी गांड को और अधिक तेजी से हिला रही थी।

मास्टर-जी: मैडम, मुझे आपकी तारीफ करनी चाहिए। आपकी उम्र में और शादी के बाद भी आपके पास ऐसी चुस्त गांड और मस्त नितम्ब है।

दीपू : मास्टर-जी, अपने पति के बारे में भी सोचिए, वह कितना भाग्यशाली है।

मास्टर-जी: हा हा। बेशक दीपू ।

दीपक: इनका पति इस मस्त गांड को पूरे दिन, पूरी रात में छू सकता है ...

मास्टर-जी: एक बेवकूफ दीपू की तरह बात नहीं करते। दिन में वो ऑफिस में होता होगा या व्यवसाय करता होगा । वह इन्हे पूरे दिन कैसे छू सकता है? हा हा हा।

दीपू भी इस नीच श्रेणी के चुटकुले में हँसी की गड़गड़ाहट में शामिल हो गया और लगभग एक साथ दोनों ने मेरी गाण्ड पर कस के निचोड़ दिया और मेरी साड़ी के ऊपर से मेरे नितम्ब के मांस को सहलाने लगे तो मैं रेगिस्तान में पानी के लिए प्यासे यात्री की तरह हाफने लगी ।दर्जी के द्वारा - इस तरह की टिप्पणी! और इसके अलावा, स्वतंत्र रूप से मेरे नितम्बो के साथ छेड़ छाड़. मैं इन दोनों के साहस को देखकर चकित थी ।

मेरे कूल्हों इस समय उनकी गिरफ्त में इसलिए थे क्योंकि मैं इस समय कोई हंगामा नहीं करना चाहती थी, मैने औलाद की चाह में इसे इलाज का हिंसा मानते हुए इन हालात से समझौता कर लिया था । अगर यह आश्रम नहीं होता, तो एक तेज तंग थप्पड़ इस दीपू और मास्टर को ऐसा सबक सिखाता की सब होशियारी और बदमाशी भूल जाते और में इन्हे जेल की हवा खिलवाती । उसने यह कहने की हिम्मत कैसे की कि "वह मेरी गांड को पूरे दिन, पूरी रात छू सकता है ..." : आह! आउच!

मेरी उत्तेजना बार-बार मेरी शर्म पर हावी हो रही थी। जिस तरह से ये दोनों मर्द मुझे उस बेहद संवेदनशील जगह पर दबा रहे थे, उससे मैं लगभग एक रंडी की तरह बर्ताव कर रहा था, मैं अपने दोनों बूब्स को दबा रही थी और मेरे निगम्बो को निचोड़ रहे थे और मेरे नितम्ब झटके दे रहे थे , और वो मेरी साड़ी के नीचे मेरी भारी गाण्ड को भी सहला रहे थे।

दोनों पुरुष अब बेतरतीब ढंग अपनी उंगलियों से मेरी गांड के बीच में मेरी साड़ी और पेटीकोट के ऊपर से मेरे नितंबों के अंदर अपनी उंगलिया घुसा रहे थे और मेरे नियतमबो और गांड की दृढ़ता की जाँच कर रहे थे। मेरे होंठ अब बार बार सूख रहे थे और उन्हें गीला रखने के लिए मैं बार बार अपनी जीभ अपने होंठो पर फिरा रही थी और मेरे निप्पल बेहद तने हुए थे जो अब बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे की उन्हें भी मसला जाएl

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, और उस अश्लील दृश्य में मेरे द्वारा की जा रही अश्लीलता का प्रदर्शन को देखने की कल्पना करने लगी - दो पुरुष अकड़ू बैठे हुए कैसे मेरी साड़ी के ऊपर से मेरी गाण्ड को सहला रहे थे और मैं किस सेक्सी तरह से अपनी गांड को मटका रही थी और अपने बूब्स को दबा रही थी और अपनी साड़ी के पल्लू के नीचे से मेरे निप्पलों को मसल रही थी ।

ये अश्लील और असभ्य कृत्य कुछ देर ऐसे ही चला और फिर मास्टर-जी की टिप्पणी की , "ठीक है मैडम, हमारा काम लगभग पूरा हो गया है l "

मैंने सोचा शुक्र है ये खत्म हुआ ।

मास्टर-जी: दीपू , मुझे लगता है कि पैंटी के दोनों किनारों पर लोचदार सिलाई के साथ तीन इंच अतिरिक्त कपड़े मैडम की समस्या को हल करेंगे।

दीपू : जैसा आपको सही लगे मास्टर जी।

दोनों खड़े हो गए और मैंने तुरंतअपने को इस दोनों के हाथो को छुड़ाने के लिए एक कदम आगे हो गयी और तब तक ये दोनों लगातार मेरे नितम्बो को सहलाते रहे ।

मास्टर-जी: ठीक है मैडम, आखिरकार आपका माप पूरा हो गया ! मैं आपकी पोशाक और अंडरगारमेंट्स के साथ रात 09:00 बजे तक यहाँ वापस आ जाऊंगा। चूंकि महा-यज्ञ प्रारंभ समय लगभग 11:00 बजे है, इसलिए हमारे पास पर्याप्त समय होगा यदि आपको कपड़ो में में किसी और सुधार की आवश्यकता होगी तो वो भी कर सकेंगे ।

मैं: उफ्फ! ठीक है मास्टर जी।

मैंने एक गहरी साँस ली और मेरा पूरा शरीर अब दर्द कर रहा थाl

मैंने एक गहरी सांस ली मेरा पूरा शरीर अब दर्द कर रहा था, क्योंकि मेरे नितम्बो से एक लम्बी अवधि के किये पुरुषो ने छेड़खानी और खिलवाड़ किया था और ये बहुत थकाने वाला था । मैंने अपनी साडी का पल्लू समायोजित किया और साड़ी को अपने नितंबो पर ठीक कर सभ्य दिखने की कोशिश की। दीपू को अपने बैग में सिलाई के नोट्स और टुकड़ों को इकट्ठा करने की जल्दी थी और मास्टर जी ने रात में 9 बजे तक वापस आने का वादा करते हुए मुझसे जाने की इजाजत ली ।

मेरे कमरे से दर्जी-युगल केजाने होने के बाद भी, मैं कुछ समय के लिए एक मूर्ति की तरह खड़ी हुई यह महसूस करने की कोशिश कर रही थी कि मैं पिछले एक घंटे में क्या कर रहे थी और इसके आगे मेरे साथ और क्या क्या होने वाला है । मैं शौचालय गयी और ठंडे पानी से अपना चेहरा, गर्दन और हाथ धोये और अपनी जगी हुई कामुक भावनाओंको शांत करने की असफल कोशिश की। मैंने अपना चेहरा भी नहीं पोंछा और कमरे में वापस आयी और बिस्तर में कूद कर लेट गयी ।

मेरे साथ जो हुआ था उसे याद करके मैंने अपनी चूत में ऊँगली करके अपनी वासना को शांत करने को कोशिश की जिससे मैंने अपनी योनि से अपनी पैंटी में कुछ तरल पदार्थों का निर्वहन किया और फिर खुद को इन 'गर्म' भावनाओं से बाहर निकालने का प्रयास किया।

इस हस्त मैथुन करके मैं कुछ समय बाद सफल हुई और फिर मैंने महा-यज्ञ के लिए मानसिक रूप से तैयार होने का प्रयास किया। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और उस पर ध्यान केंद्रित किया,लेकिन ये मुझे बहुत कठिन लगा। ध्यान करते ही नींद बहुत जल्दी आती है और मेरे साथ भी यही हुआ .

एक बिंदु पर मुझे बहुत नींद आने लगी और मैंने थोड़ी देर के लिए सोने का फैसला किया। मैंने बस अपनी लेटी हुई पोज़िशन से अपनी कमर उठाई और अपनी साड़ी और पेटीकोट के अन्दर हाथ डाल कर अपनी गीली पैंटी को बाहर निकाल लिया। मैंने उसे कमरे के कोने में फेंक दिया और ततकाल झपकी ले ली । मुझे नहीं पता था कि मैं कितनी देर सोयी , लेकिन कुछ समय बाद दरवाजे पर दस्तक से मेरी नींद बाधित हुई। मैंने दरवाजा खोला तो परिमल दरवाजे पर था।

परिमल: जय लिंग देव मैडम। आप इस समय सो रही है?

मुझे हमेशा इस छोटे कद वाले परिमल को देखा कर हसी आती थी और मैंने किसी तरह से अपनी हसि को रोका । मुझे नहीं पता था कि हर बार उसे देख कर मुझे मजा क्यों आता था ।

मैं: वास्तव में मास्टर-जी को माप देने में काफी समय लग गया था इसलिए…

परिमल: हूं। वास्तव में गुरु-जी ने आपके लिए यह पुस्तक दी। मैडम, आप फ्रेश हो जाओ तब तक मैं आपके लिए चाय ले लाऊंगा। फिर आप इस पुस्तक को पढ़ लीजियेगा ।

यह एक विचार अच्छा लगा । मुझे अभी भी कुछ नींद आ रही थी और मैंने अपनी चूत के आस-पास हल्की खुजली महसूस की, मुझे तुरंत याद आया कि मैंने पैंटी नहीं पहनी हुई थी। मैंने अपनी आंख के कोने से कमरे के कोने तक देखा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वो कहाँ पड़ी हुई है । भगवान का शुक्र है! परिमल ने एक कोने में पड़ी हुई मेरी पैंटी पर गौर नहीं किया था। लेकिन निश्चित रूप से उसकी आँखें मेरी साड़ी के पल्लू के नीचे मेरी छाती और मेरे स्तनों पर घूम रही थीं, हालाँकि उसकी ऊँचाई इतनी ही थी कि उसकी नज़रसीढ़ी मेरे स्तनों पर ही पड़ती थी ।

निर्मल: मैडम, गुरु-जी ने भी आपको ये भी सूचित करने के लिए कहा था कि आप रात 11 बजे तक महा-यज्ञ के लिए तैयार रहें। हालाँकि अभी उसमे काफी समय है और आप आराम से त्यार हो सकती हैं , फिर भी मैंने आपको गुरु जी के आदेश से अभी ही अवगत करा दिया है ।

मैं: ठीक है, धन्यवाद ।

वह चला गया और मैंने तुरंत अपनी पैंटी लेने के लिए कमरे के कोने में भाग कर गयी और उसे उठा कर अलमारी में रख दिया। मैं पैंटी के बिना बेहतर महसूस कर रही थी और मैंने कुछ देर पेंटी ना पहनने का फैसला किया, क्योंकि अब मैं अब काफी देर तक केवल अपने कमरे तक ही सीमित रहने वाली थी । परिमल कुछ ही मिनटों में ही चाय ले कर वापस आ गया और उस समय तक मैंने शौचालय का इस्तेमाल किया। चाय खत्म होने के बाद, मैंने किताब ली और उसके पन्ने पलटे । यह तांत्रिक पूजा पर एक किताब थी। पुस्तक में लिंग पूजा, योनी पूजा, स्त्री पूजा इत्यादी के विषय और उनका विशद विवरण और व्याख्याएँ थी ।

योनि तंत्र जैसे सामाजिक रूप से कलंकित और जटिल तंत्र के बारे में

' भारत के ऋषियों नें जो भी मनुष्य को दिया वो अत्यंत श्रेष्ठ और उच्चकोटि का ज्ञान ही था. जिसमें तंत्र भी एक है. तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है. किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले कथित धर्म पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया. हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है. लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानि के सृजन करने वाली कह कर संबोधित करता है. स्त्री शक्ति को 'महायोनी ' कहा जाता है. जिसका अर्थ हुआ सभी को पैदा करने वाली. उस 'दिव्य योनी' का यांत्रिक चित्र ही 'श्री यन्त्र' है. वो 'महायोनी' हैं

योनी तंत्र चर्चा का नहीं प्रत्यक्ष सिद्धि का क्षेत्र है. इसलिए तंत्र की खोज करने वाले रहस्य चित्रों को यथारूप न ले कर उसे 'स्वरुप रहस्यानुसार' समझें. योनी तंत्र सृष्टि उत्पत्ति का परा विज्ञान है. न की स्त्री शरीर का अवयव. 'माँ योनी' ब्रह्माण्ड उत्तपत्ति का प्रतीक हैं व शक्ति उतपत्ति का प्रतीक....वो प्रत्यक्ष विग्रह है.

मैं काफ़ी लंबे समय तक पुस्तक से चिपकी रही सबसे पहले पुस्तक में तांत्रिक क्रियाओ के बारे में संक्षेप में बताया था की लिंग पुराण में सृष्टि के नैसर्गिक सामंजस्य का तात्विक ज्ञान भगवान् शिव ने दिया है। सभी ग्रन्थ मनुष्य मात्र के लिए ध्यान योग के अभ्यास से ही आत्मज्ञान पाने का सहज मार्ग दिखलाते हैं ।

लिंग देव गुरु-जी ने कहा है कि क्रिया की साधना के द्वारा गृहस्थ भी साधू है, और धारण न करने योग्य कर्म ही अधर्म है । मैं लिंग में ही ध्यान करने योग्य हूँ । मुझ से उत्पन्न यह स्त्री जगत की योनी है, प्रकृति है । लिंग वेदी महा स्त्री हैं और लिंग स्वयं लिंग लिंग देव हैं। पुर अर्थात देह में शयन करने के कारण पुरुष कहा जाता है। मैं पुरुष रूप हूँ और स्त्री प्रकृति है, सब नरों के शरीर में दिव्य रूप से लिंग देव विराजमान हैं, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए. सब मनुष्यों का शरीर लिंग देव का दिव्य शरीर है ।शुभ भावना से युक्त योगियों का शरीर तो लिंग देव का साक्षात् शरीर है। जब समरस में स्थित योगी ध्यान यज्ञ में रत होता है तो लिंग देव उसके समीप ही होते हैं" ।

योनी तंत्र के अनुसार (जो माता और लिंग देव का संवाद है) तीनों शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है क्योंकि हर स्त्री योनी का ही अंश है । दश महाविद्या अर्थात स्त्री के दस पूजनीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ स्त्री के दस रूपों की अर्चना योनी पूजा द्वारा करनी चाहिए ।

योनी तंत्र में लिंग देव ने स्पष्ट कहा है कि लिंग देव स्वयं भी योनी पूजा से ही शक्तिमान हुए हैं । लिंग देव भी योनी पूजा कर योनी तत्त्व को सादर मस्तक पर धारण करते थे ऐसा योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ योनी का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं" । अतः अपना भविष्य उज्ज्वल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

यह वैज्ञानिक सत्य है कि पुरुष शरीर में निर्मित होने वाले शुक्राणु किसी अज्ञात शक्ति से चालित होकर अंडाणु से संयोग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके आगे बढ़ते हैं। योग और अध्यात्म विज्ञान के अनुसार शुक्राणु जीव आत्मा होते हैं जो शरीर पाने के लिए अंडाणु से संयोग करने के लिए भागते हैं। इस सत्य से यह सिद्ध होता है कि अरबों खरबों शुक्राणुओं में से किसी दुर्लभ को ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है । इस भयानक संग्राम में विजयी होना निश्चय ही जीव आत्मा की सब से बड़ी उपलब्धि है जो हमारी समरण शक्ति में नहीं टिकती।

योग के अनुसार मानव शरीर प्रकृति के चौबीस तत्वों से बना है जो हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जीभ व त्वचा) , पांच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जननेद्रिय, मलमूत्र द्वार और मूंह) , पञ्च कोष (अन्नमय, प्राण मय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) , पञ्च प्राण (पान, अपान, सामान, उदान, व्यादान) , मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । आत्मा इनका आधार और दृष्टा है और ईश्वर का ही प्रतिबिम्ब है जो दिव्य प्रकाश स्वरूप है जिसका दर्शन ध्यान और समाधि में किसी को भी हो सकता है।

जब तक कोई भी व्यक्ति स्वयं आत्मज्ञान पाने के लिए आत्म ध्यान नहीं करता तब तक कोई ग्रन्थ और गुरु उसका कल्याण नहीं कर सकते यह लिंग देव ने स्पष्ट रूप से ज्ञान संकलिनी तंत्र में कहा है, -"यह तीर्थ है वह तीर्थ है, ऐसा मान कर पृथ्वी के तीर्थों में केवल तामसी व्यक्ति ही भ्रमण करते हैं। आत्म तीर्थ को जाने बिना मोक्ष कहाँ संभव है?" युद्ध में शर शैय्या पर यही उपदेश दिया की सब से श्रेष्ठ तीर्थ मनुष्य का अंतःकरण और सब से पवित्र जल आत्मज्ञान ही है ।

इस ज्ञान को धारण कर जब पति पत्नी आध्यात्मिक तादात्म्य स्थापित कर दैहिक सम्बन्ध द्वारा किसी अन्य जीव आत्मा का आव्हान संतान के रूप में करते हैं तो वह सृष्टि के कल्याण के लिए महान यग्य संपन्न करते हैं । इसी ज्ञान को चरितार्थ करने के लिए भगवान् लिंग देव के पुत्र ने जब विश्व की परिक्रमा करने का आदेश अपने पिताश्री से पाया तो चुप चाप अपने मूषक पर बैठ कर माता-पिता की परिक्रमा कर ली क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार माता पृथ्वी से अधिक गौरवशालिनी और पिता आकाश के सामान व्यापक कहा जाता है ।

लिंग देव ने ज्ञान दिया है और मनुष्य देह में स्थित चक्रों और आत्मज्योति रूपी परमात्मा के साक्षात्कार का मार्ग बताया है ।स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर प्रत्येक मनुष्य के अस्तित्व में हैं ।सूक्ष्म शारीर में मन और बुद्धि हैं ।मन सदा संकल्प-विकल्प में लगा रहता है; बुद्धि अपने लाभ के लिए मन के सुझावों को तर्क-वितर्क से विश्लेषण करती रहती है । कारण या लिंग शरीर ह्रदय में स्थित होता है जिसमें अहंकार और चित्त मंडल के रूप में दिखाई देते हैं ।

अहंकार अपने को श्रेष्ठ और दूसरों के नीचा दिखने का प्रयास करता है और चित्त पिछले अनेक जन्मोंके घनीभूत अनुभवों, को संस्कार के रूप में संचित रखता है ।आत्मा जो एक ज्योति है इससे परे है किन्तु आत्मा के निकलते ही स्थूल शरीर से सूक्ष्म और कारण शरीर अलग हो जाते हैं ।कारण शरीर को लिंग शरीर भी कहा गया हैं क्योंकि इसमें निहित संस्कार ही आत्मा के अगले शरीर का निर्धारण करते हैं ।

आत्मा से आकाश; आकाश से वायु; वायु से अग्नि ' अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति शिवजी ने बतायी है ।पिछले कर्म द्वारा प्रेरित जीव आत्मा, वीर्य जो की खाए गए भोजन का सूक्ष्मतम तत्व है, के र्रूप में परिणत हो कर माता के गर्भ में प्रवेश करता है जहाँ मान के स्वभाव के अनुसार उसके नए व्यक्तित्व का निर्माण होता ह। गर्भ में स्थित शिशु अपने हाथों से कानों को बंद करके अपने पूर्व कर्मों को याद करके पीड़ित होता और-और अपने को धिक्कार कर गर्भ से मुक्त होने का प्रयास करता है ।

जन्म लेते ही बाहर की वायु का पान करते ही वह अपने पिछले संस्कार से युक्त होकर पुरानी स्मृतियों को भूल जाता है । शरीर में सात धातु हैं त्वचा, रक्त, मांस, वसा, हड्डी, मज्जा और वीर्य (नर शरीर में) या रज (नारी शरीर में) । देह में नो छिद्र हैं, -दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, मुख, गुदा और लिंग ।स्त्री शरीर में दो स्तन और एक भग यानी गर्भ का छिद्र अतिरिक्त छिद्र हैं ।स्त्रियों में बीस पेशियाँ पुरुषों से अधिक होती हैं । उनके वक्ष में दस और भग में दस और पेशियाँ होती हैं ।

योनी में तीन चक्र होते हैं, तीसरे चक्र में गर्भ शैय्या स्थित होती है ।लाल रंग की पेशी वीर्य को जीवन देती है ।शरीर में एक सो सात मर्म स्थान और तीन करोड़ पचास लाख रोम कूप होते हैं ।जो व्यक्ति योग अभ्यास में निरत रहता है वह नाद और तीनों लोकों को सुखपूर्वक जानता और भोगता है । मूल आधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार नामक साथ ऊर्जा केंद्र शरीर में हैं जिन पर ध्यान का अभ्यास करने से शक्ति प्राप्त होती है ।

सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहाँ से अमृत वर्षा का-सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है । जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में; चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है ।

मनुष्य का शरीर अनु-परमाणुओं के संघटन से बना है । जिस तरह इलेक्ट्रौन, प्रोटोन, सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है । यह इस तरह सिद्ध होता है कि सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है ।अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है ।

जब तक मन उस आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर लेता उसे मोह से मुक्ति नहीं मिल सकती । मोह मनुष्य को भय भीत करता है क्योंकि जो पाया है उसके खोने का भय उसे सताता रहता है जबकि आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी दिव्य ज्योति का दर्शन होने लगता है।

जिन्हे इस विषय पर कोई भी आपत्ति है वो इस अंश के लिए योनि तंत्र नामक पुस्तक पढ़े उसे बाद पुस्तक में पूरी विधि और नियम और गर्भदान की कहानिया विस्तार से समझायी हुई है

कहानी जारी रहेगी​
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