Update 58
औलाद की चाह
CHAPTER 6 - पांचवा दिन
महायज्ञ की तैयारी-
‘महायज्ञ परिधान'
CHAPTER 6 - पांचवा दिन
महायज्ञ की तैयारी-
‘महायज्ञ परिधान'
योनि (वेजाइना) के बारे में जानकारी
महिला के यौनांग शरीर के अन्दर एवं बाहर होते हैं। ’योनि‘ शब्द का प्रयोग अक्सर महिला के जननांग या यौनांग के लिए किया जाता है जबकी योनि यौनांगों का सिर्फ एक भाग है। योनि एक नली या द्वार है जो बाहरी यौनांगों को भीतरी यौनांगों से जोड़ती है।
योनी
योनी बाहर के यौन अंग और बच्चादानी (गर्भाशय) के बीच का रास्ता है। यह वह जगह है जहां मासिक धर्म का खून शरीर से निकलता है, जहां से पुरूष का लिंग संभोग के दौरान अंदर जाता है, और जहां से पैदा होने पर बच्चा बाहर निकलता है।
योनी की दीवारों पर चिपचिपी झिल्ली होती है - जो आपके मुंह के अंदर जैसी नमी पैदा करती है। यह नमी संभोग के लिए चिकनाई देती है, जिससे संभोग ज़्यादा आरामदायक और सुखद हो जाता है, और यह बिमारी से भी बचाती है।
जब आप यौन के लिए उत्तेजित होती हैं, तो आपकी योनी गीली हो कर ढीली पड़ जाती है। इससे आपको योनी के अंदर एक उंगली या लिंग घुसाने में मदद मिलती है। चूंकि योनी एक मांस पेशी है, यह कड़ी या ढीली हो सकती है, और आप इसे कुछ क़ाबू में रख सकती हैं।
अपने लिए खुद महसूस करें
• पेशाब करते वक्त अपनी मांसपेशियों को निचोड़ें और छोड़ दें। आप अपने पेशाब की गति और मात्रा पर कुछ क़ाबू कर सकती हैं। ये वही मांस पेशियां हैं जो योनी को कसते हैं। आप संभोग के दौरान भी उनका इस्तेमाल कर सकती हैं।
• एक आईना लें और अपनी योनी के मुख को देखें। छू कर महसूस करें कि आपकी योनी कैसी है।
• अपनी योनी के अंदर एक उंगली डालें। अंदर आपके गालों की तरह मुलायम लगता है, और आपके मुंह के ऊपर के जैसा थोड़ा ऊबड़-खाबड़ भी महसूस होता है।
• अपनी योनी को सहलाएं। देखें कि आपको क्या अच्छा लगता है और कैसे उत्तेजित महसूस होता है। इस तरह आप संभोग के चरम तक पहुँच सकती हैं। हस्तमैथुन करना - अपने आप पर संभोग - अपनी पसंद को जानने का एक अच्छा तरीका है। जितना बेहतर आप जानेंगी कि आपको क्या उत्तेजित करता है, उतना ही आपके लिए किसी दूसरे इंसान के साथ संभोग का आनंद लेना आसान होगा।
एक महिला के शरीर के बारे में और जानने के लिए हमारा वीडियो देखें।
पेलविक फ्लोर
आपके मलद्वार, योनी और मूत्रमार्ग के छेद के आसपास की मांस पेशियों को पेलविक फ्लोर की मांस पेशियां कहते हैं। मूत्रमार्ग का छेद आपके जांघों की हड्डियों (प्यूबिक बोन) और रीढ़ की आखिरी, निचले हिस्से (कोक्सीक्स, या टेलबोन) के बीच होता है।
जांघों की हड्डी आपके पेट के नीचे होती है, ठीक योनी के ऊपर। कोक्सीक्स, या टेलबोन आपकी राढ़ की हड्डी के नीचे होता है जो कि आपके गुदा ठीक ऊपर होता है।
• अपने पेलविक फ्लोर की मांस पेशियों को कसें और ढीला छोड़ें। ऐसा करने से पेशाब को बीच में रोक कर जैसा लगता है, वैसा महसूस होगा।
• आप अपनी योनी के आस पास की मांस पेशियों में खिंचाव को एक उंगली से महसूस कर सकती हैं। अपनी योनी के अंदर एक उंगली डालें, फिर उसके के चारों ओर के मांस पेशियों को निचोड़ें।
बच्चादानी
गर्भ, बच्चादानी या गर्भाशय, वह जगह है जहां एक बच्चा आपके अंदर बढ़ सकता है। यह मजबूत मांस पेशियों से बने एक थैले की तरह है, जो आपके पेट में काफी नीचे होता है।
जब आप गर्भवती नहीं होती हैं तो इसकी लंबाई 7.5 और 10 सेमी (3 और 4 इंच) के बीच रहती है। यह उल्टे नाशपाती के आकार का होता है।
गर्भ की आंतरिक दीवार वह जगह है जहां एक उपजाऊ अंडे एक बच्चे में विकसित हो सकता है। बढ़ते हुए बच्चे को पकड़े रहने के लिए, गर्भाशय की लंबाई 31 सेमी (12 इंच) तक बढ़ सकती है।
आपके मासिक धर्म का खून भी गर्भ से ही आता है। यदि कोई उपजाऊ अंडा गर्भ की दीवार से खुद को नहीं जोड़ पाता है, गर्भाशय अपनी परत को गिरा देता है जो योनी से रक्त के रूप में शरीर से बाहर आता है।
सर्विक्स या गर्भाशय का गला - खुद महसूस करें
बच्चेदानी के प्रवेश द्वार को सर्विक्स या गर्भाशय का गला कहते हैं। आप अपनी योनी के अंदर एक उंगली डाल कर इसे खुद महसूस कर सकती हैं। यह आपकी नाक की नोक की तरह चिकना और सख्त होता है। जब आप उत्तेजित होती हैं तो इस तक पहुंचने में परेशानी हो सकती है, क्योंकि तब यह योनी को लंबा बनाने के लिए ऊपर चली जाता है।
अंडाशय के बारे में और
अंडाशय
अंडाशय गर्भ के दोनों तरफ होते हैं। वे अंडा कोशिकाओं और एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का उत्पादन करते हैं। एस्ट्रोजेन हार्मोन आपके शरीर को युवावस्था के दौरान बदलने में मदद करता है, जिससे आपका स्तन बनता है और आपका शरीर यौन संबंध के लिए तैयार होता है। एस्ट्रोजेन के साथ मिलकर, प्रोजेस्टेरोन हार्मोन मासिक धर्म और गर्भावस्था के दौरान बच्चेदानी की दीवारों को मोटा बनाता है।
गर्भाशय नाल या फैलोपियन ट्यूब
फैलोपियन ट्यूब, बच्चेदानी के प्रत्येक तरफ होते हैं। यह अंडाशय को बच्चादानी से जोड़ते हैं। यह उन अंडों को अंडाशय से गर्भ ले जाते हैं, जो कि उपजाऊ नहीं हैं।
अंडों की कोशिकाएं
हर महिला अपने अंडाशय में लगभग 250,000 अंडे के साथ पैदा होती हैं। इसका मतलब है कि जब आप पैदा होती हैं तो वह अंडा जो आपके बेटे या बेटी बनने के लिए एक दिन बढ़ सकता है, पहले से ही आपके अंडाशय के अंदर मौजूद होता है! अंडे एक बहुत छोटे पिन के सिरे के आकार के होते हैं।
स्त्री बीज जनन या ओव्यलैशन
जब आप युवावस्था पाती हैं, तो हार्मोन अंडाशयों को हर महीने - लगभग 28 दिनों पर – एक अंडा निकालने के लिए संकेत देना शुरू करते हैं। इसे स्त्री बीज जनन या ओव्यलैशन कहा जाता है। अंडे फिर फैलोपियन ट्यूब से बच्चादानी तक पहुँचते हैं।
यदि एक शुक्राणु कोशिका अंडे को उपजाऊ कर पाता है, तो अंडा खुद को गर्भ की दीवार में गड़ा कर, एक बच्चे के रुप में बढ़ने लगता है। अगर अंडा शुक्राणु कोशिका से उपजाऊ नहीं होता है, तो वह आपके मासिक धर्म के दौरान आपकी योनी से खून के साथ बाहर निकल जाएगा।
ओव्यलैशन के समय, आपके गर्भवती होने की सबसे ज़्यादा उम्मीद होती है। इस दौरान आपका शरीर सबसे ज़्यादा उपजाऊ होता है। इसका मतलब है कि आपके ओव्यलैशन के पांच दिन पहले या एक दिन बाद।
जिन्हे इस विषय पर कोई भी आपत्ति है वो इस अंश के लिए योनि तंत्र नामक पुस्तक पढ़े उसे बाद पुस्तक में पूरी विधि और नियम और गर्भदान की कहानिया विस्तार से समझायी हुई है
मैं काफ़ी लंबे समय तक पुस्तक से चिपकी रही सबसे पहले पुस्तक में तांत्रिक क्रियाओ के बारे में संक्षेप में बताया था की लिंग पुराण में सृष्टि के नैसर्गिक सामंजस्य का तात्विक ज्ञान भगवान् शिव ने दिया है। सभी ग्रन्थ मनुष्य मात्र के लिए ध्यान योग के अभ्यास से ही आत्मज्ञान पाने का सहज मार्ग दिखलाते हैं ।
पुस्तक में स्पष्ट लिखा था कि क्रिया की साधना के द्वारा गृहस्थ भी साधू है, धारण करने योग्य कर्म ही धर्म है और धारण न करने योग्य कर्म ही अधर्म है । मैं लिंग में ही ध्यान करने योग्य हूँ ।मुझ से उत्पन्न यह जगत की योनी है, प्रकृति है । लिंग वेदी हैं और लिंग ही पुरुष है हैं। पुर अर्थात देह में शयन करने के कारण पुरुष कहा जाता है। लिंग पुरुष रूप हूँ और योनि प्रकृति का रूप है, सब नरों के शरीर में दिव्य रूप विराजमान हैं, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए. सब मनुष्यों का शरीर दिव्य शरीर है । युक्त योगियों का शरीर शुभ भावना से है।
हर स्त्री में योनि का अंश है । दसो पूजनीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ देवी के दस रूपों की अर्चना योनी पूजा द्वारा करनी चाहिए ।
सभी योगेश्वर भी योनी पूजा कर योनी तत्त्व को सादर मस्तक पर धारण करते थे ऐसा योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ में योनि का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं" । अतः अपना भविष्य उज्ज्वल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।
यह वैज्ञानिक सत्य है कि पुरुष शरीर में निर्मित होने वाले शुक्राणु किसी अज्ञात शक्ति से चालित होकर अंडाणु से संयोग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके आगे बढ़ते हैं। योग और अध्यात्म विज्ञान के अनुसार शुक्राणु जीव आत्मा होते हैं जो शरीर पाने के लिए अंडाणु से संयोग करने के लिए भागते हैं। इस सत्य से यह सिद्ध होता है कि अरबों खरबों शुक्राणुओं में से किसी दुर्लभ को ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है । इस भयानक संग्राम में विजयी होना निश्चय ही जीव आत्मा की सब से बड़ी उपलब्धि है जो हमारी समरण शक्ति में नहीं टिकती।
मानव शरीर प्रकृति के चौबीस तत्वों से बना है जो हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जीभ व त्वचा) , पांच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जननेद्रिय, मलमूत्र द्वार और मूंह) , पञ्च कोष (अन्नमय, प्राण मय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) , पञ्च प्राण (पान, अपान, सामान, उदान, व्यादान) , मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । आत्मा इनका आधार और दृष्टा है और ईश्वर का ही प्रतिबिम्ब है जो दिव्य प्रकाश स्वरूप है जिसका दर्शन ध्यान और समाधि में किसी को भी हो सकता है।
सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहाँ से अमृत वर्षा का-सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है । जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में; चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है ।
मनुष्य का शरीर अनु-परमाणुओं के संघटन से बना है । जिस तरह इलेक्ट्रौन, प्रोटोन, सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है । यह इस तरह सिद्ध होता है कि सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है ।अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है ।
जब तक मन उस आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर लेता उसे मोह से मुक्ति नहीं मिल सकती । मोह मनुष्य को भय भीत करता है क्योंकि जो पाया है उसके खोने का भय उसे सताता रहता है जबकि आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी दिव्य ज्योति का दर्शन होने लगता है।
इस ज्ञान को धारण कर जब पति पत्नी आध्यात्मिक तादात्म्य स्थापित कर दैहिक सम्बन्ध द्वारा किसी अन्य जीव आत्मा का आव्हान संतान के रूप में करते हैं तो वह सृष्टि के कल्याण और संरचना के लिए महान यग्य संपन्न करते हैं।
पुस्तक में स्पष्ट कहा गया है कि क्रिया की साधना के द्वारा गृहस्थ भी साधू है, धारण करने योग्य कर्म ही धर्म है और धारण न करने योग्य कर्म ही अधर्म है । मैं लिंग में ही ध्यान करने योग्य हूँ ।मुझ से उत्पन्न यह जगत की योनी है, प्रकृति है ।
योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुष की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ परमेश्वरी भगवती का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं" । अतः अपना भविष्य उज्ज्वल चाहने वाले पुरुषों को कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।
यह वैज्ञानिक सत्य है कि पुरुष शरीर में निर्मित होने वाले शुक्राणु किसी अज्ञात शक्ति से चालित होकर अंडाणु से संयोग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके आगे बढ़ते हैं। योग और अध्यात्म विज्ञान के अनुसार शुक्राणु जीव आत्मा होते हैं जो शरीर पाने के लिए अंडाणु से संयोग करने के लिए भागते हैं। इस सत्य से यह सिद्ध होता है कि अरबों खरबों शुक्राणुओं में से किसी दुर्लभ को ही मनुष्य शरीर प्राप्त होता है । इस भयानक संग्राम में विजयी होना निश्चय ही जीव आत्मा की सब से बड़ी उपलब्धि है जो हमारी समरण शक्ति में नहीं टिकती।
योनी तंत्र के अनुसार मानव शरीर प्रकृति के चौबीस तत्वों से बना है जो हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जीभ व त्वचा) , पांच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जननेद्रिय, मलमूत्र द्वार और मूंह) , पञ्च कोष (अन्नमय, प्राण मय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) , पञ्च प्राण (पान, अपान, सामान, उदान, व्यादान) , मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । आत्मा इनका आधार और दृष्टा है और दिव्य प्रकाश स्वरूप है जिसका दर्शन ध्यान और समाधि में किसी को भी हो सकता है।
जब तक कोई भी व्यक्ति स्वयं आत्मज्ञान पाने के लिए आत्म ध्यान नहीं करता तब तक कोई ग्रन्थ और गुरु उसका कल्याण नहीं कर सकते । योनी तंत्र में कहा है, -"यह तीर्थ है वह तीर्थ है, ऐसा मान कर पृथ्वी के तीर्थों में केवल तामसी व्यक्ति ही भ्रमण करते हैं। आत्म तीर्थ को जाने बिना मोक्ष कहाँ संभव है?" सब से श्रेष्ठ तीर्थ मनुष्य का अंतःकरण और सब से पवित्र जल आत्मज्ञान ही है ।
जो व्यक्ति योग अभ्यास में निरत रहता है सुखपूर्वक जानता और भोगता है । मूल आधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार नामक साथ ऊर्जा केंद्र शरीर में हैं जिन पर ध्यान का अभ्यास करने से शक्ति प्राप्त होती है ।
सहस्रार में प्रकाश दीखने पर वहाँ से अमृत वर्षा का-सा आनंद प्राप्त होता है जो मनुष्य शरीर की परम उपलब्धि है । जिसको अपने शरीर में दिव्य आनंद मिलने लगता है वह फिर चाहे भीड़ में रहे या अकेले में; चाहे इन्द्रियों से विषयों को भोगे या आत्म ध्यान का अभ्यास करे उसे सदा परम आनंद और मोह से मुक्ति का अनुभव होता है ।
मनुष्य का शरीर अनु-परमाणुओं के संघटन से बना है । जिस तरह इलेक्ट्रौन, प्रोटोन, सदा गति शील रहते हैं किन्तु प्रकाश एक ऊर्जा मात्र है जो कभी तरंग और कभी कण की तरह व्यवहार करता है उसी तरह आत्म सूर्य के प्रकाश से भी अधिक सूक्ष्म और व्यापक है । यह इस तरह सिद्ध होता है कि सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में कुछ मिनट लगे हैं जब की मनुष्य उसे आँख खोलते ही देख लेता है ।अतः आत्मा प्रकाश से भी सूक्ष्म है जिसका अनुभव और दर्शन केवल ध्यान के माध्यम से होता है ।
आत्म दर्शन से दिव्य प्रेम की अनुभूति होती है जो व्यक्ति को निर्भय करती है क्योंकि उसे सब के अस्तित्व में उसी का दर्शन होने लगता है।
सचाई को जनना ज़रूरी होता हे। तंत्र को योग को भी कहते है। योग भी कई प्रकार के होता हे जैसे शरीर द्वारा व्यायाम, ध्यान और औषधियाँ के मिश्रण को नक्षत्र में लाकर रोगो कि चिकित्सा करना तथा मंत्र सक्ति से सुद्ध करना ही तंत्र हे। तंत्र और योग पूर्णतया वैज्ञानिक है ।
हमारा हिन्दू तंत्र मंत्र सनातन और बडा विज्ञान मय हे। तंत्र मंत्र योग आदि सब का स्थान विशेष हे।
तंत्र में मुद्रा का विशेष महत्त्व हे यह हमारे अंगो के मोड ने से बनती हे जिस के द्वारा देवता को द्रवित और प्रसंन्न करना हे।
देवता को खुस करने को शरीर से द्रवित और प्रसन्न करना आवश्यक है। जिसके लिए उस मुद्रा में योनि मुद्रा दरशायी गयी है,
योनि मुद्रा-ये मुद्रा कामवासना पर काबु करती हे।
योनी तंत्र जैसे सामाजिक रूप से कलंकित और जटिल तंत्र के बारे कहते हैं की-भारत के ऋषियों नें जो भी मनुष्य को दिया वो अत्यंत श्रेष्ठ और उच्चकोटि का ज्ञान ही था. जिसमें तंत्र भी एक है. तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है. किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले कथित धर्म पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया. हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है. लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानि के सृजन करने वाली कह कर संबोधित करता है.
योनि पूजा
पुस्तक में योनि पूजा के बारे में और भी बहुत सारा ज्ञान था तो मैंने कुछ पन्ने पलटे तो उसमे योनि पूजा के बारे में बहुत सारा ज्ञान था उसमे से कुछ हिस्सा जो मुझे काफी रोचक लगा
योनि पूजा
निश्चित तौर पर योनि तंत्र काफ़ी रह्स्य पूर्ण है और गुप्त विद्या है और इसे बिना गुरु की आज्ञा, समर्पण के बिना और सहायता के नहीं करना चाहिए. योनि तंत्र साधना सम्पूर्ण तौर पर योनि पूजा पर ही आधारित है ।
योनि तंत्र-सृष्टि का प्रथम बीज रूप उत्पत्ति योनि से ही होने के कारण तंत्र मार्ग के सभी साधक 'योनि' को आद्याशक्ति मानते हैं। लिंग का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। लिंग और योनि के घर्षण से ही सृष्टि आदि का परमाणु रूप उत्पन्न होता है। इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड और सम्पुर्ण इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है। यह योनि एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है।
योनी तंत्र के अनुसार शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है। क्योंकि हर स्त्री योनि का ही अंश है। दस पूज्नीय रूप भी योनी में निहित है। अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ योनी पूजन द्वारा करनी चाहिए।
योनी तंत्र में कहा गया है क्योंकि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुषकीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है।
सभी स्त्रियाँ इस सम्मान की अधिकारिणी हैं। अतः तंत्र साधक हो या आम मनुष्य कभी भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए [
मैं काफ़ी लंबे समय के लिए पुस्तक से चिपके हुए थी और विस्तृत यज्ञ प्रक्रियाओं में तल्लीन थी और उत्सुकता से पुराण से निकाले गए अंशो और छंदों को पढ़ रही थी निम्न अंश मुझे दिलचस्प लगे:
योनी की पूजा करके एक निश्चित रूप से नारी शक्ति की ही पूजा की जाती है। तंत्र और मंत्र की तैयारी योनी की पूजा के बिना सिद्धि नहीं देती है।
योगी को तीन बार फूलो के साथ योनी के सामने झुक कर प्रणाम करना चाहिए।
रजस्वला योनी के साथ ही युगल होना चाहिए (अर्थात जिसे मासिक धर्म होता हो ऐसी योनि के साथ ही युगल करना चाहिए)
अगर सौभाग्य से कोई ब्राह्मण लड़की का साथी है, तो उस व्यक्ति को उस ब्राह्मण कन्या या स्त्री के योनी तत्व की पूजा करनी चाहिए। अन्यथा, अन्य योनियों की पूजा करें। बिना योनी पूजा के, सभी फल रहित हैं।
इस महान रहस्य को वैसे तो मुझे इसे छुपाना चाहिए। मंत्र पीठ यन्त्र सभी की उत्पत्ति योनी में हुई है और इसी से वे शक्तिशाली हुए हैं । योनी की पूजा करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
यदि कोई व्यक्ति मासिक धर्म के फूलों के साथ पूजा करता है, तो उसके भाग्य पर भी उसका अधिकार होता है। इस तरह से अधिक से अधिक पूजा करने से वह मुक्त हो सकता है। इस प्रकार की मासिक धर्म के फूलो वाली योनी की पूजा करने का फल, दुख के सागर से मुक्ति देने वाला, जीवन और उन्नत जीवन शक्ति है। जिस योनी से मासिक धर्म का रक्त निकलता है वह पूजा के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
एक ऐसी योनी की पूजा न करें, जिसमें कभी मासिक धर्म नहीं हुआ है। अगर हर बार एक कुंवारी कन्या की योनि (जिसका कौमार्य भंग) नहीं हुआ है कि पूजा करना संभव न हो तो ऐसे योनि की अनुपस्थिति में किसी युवती या किसी सुंदर महिला की धोनी की, बहन की या महिला की योनि या पुतली की पूजा करें। प्रतिदिन योनी की पूजा करें, अन्यथा मंत्र का उच्चारण करें। योनी पूजा के बिना बेकार पूजा न करें।
एक योनी की पूजा करने की इच्छा रखने वाला साधक को स्तंभन होना चाहिए और योनी जो कि शक्ति है उसमे प्रवेश करना चाहिए। इन पर फूल आदि चढ़ाने चाहिए, यदि इसमें असमर्थ हैं, तो शराब के साथ पूजा करें।
एक को अपनी संगिनी की योनी में, उसकी अनुपस्थिति में ही किसी दूसरी युवती की योनि या फिर किसी कुंवारी की योनि और उसकी अनुपस्थिति में अपनी शिष्य की योनि पर श्रद्धा से टकटकी लगानी चाहिए। योनि के माध्यम से ही आनद और मुक्ति मिलती है। भोग के माध्यम से सुख प्राप्त होता है। इसलिए, हर प्रयास से, एक साधक को भोगी होना पड़ता है।
बुद्धिमान व्यक्ति को हमेशा योनी के दोष, घृणा या शर्म से बचना चाहिए। योनी के किनारे पर अमृत चाटना चाहिए, जिससे किसी के शरीर या निवास स्थान में बुराई निश्चित रूप से नष्ट हो जाती है। इससे सब पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अभीष्ट फल प्राप्त होता है
योनि साधना के बिना, सभी साधना व्यर्थ है इसलिए, योनी पूजा करें। और गुरु के प्रति समर्पण के बिना कोई सिद्धि नहीं है।
इस ज्ञान में तंत्र भी एक है। तंत्र में एक दिव्य शब्द है 'योनी पूजा' जिसका बड़ा ही गूढ़ और तात्विक अर्थ है। किन्तु कालान्तर में अज्ञानी पुरुषों व वासना और भोग की इच्छा रखने वाले पुरोधाओं ने स्त्री शोषण के लिए तंत्र के महान रहस्यों को निगुरों की भांति स्त्री शरीर तक सीमित कर दिया। हालांकि स्त्री शरीर भी पुरुष की भांति ही सामान रूप से पवित्र है। लेकिन तंत्र की योनी पूजा सृष्टि उत्पत्ति के बिंदु को 'योनी' यानी के सर्जन करने वाली कह कर सम्बोधित करता है।
मुझे पता ही नहीं चला पुस्तक पढ़ते हुए समय कैसे बीता,
लगभग पौने नौ बजे जब मैं अपना मुँह धो रही थी तब मास्टर-जी और दीपू फिर से प्रकट हुए ।