Update 78

औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

लिंग पूजा

रश्मि, एक बात कहना चाहता हूँ। तुम्हारा बदन बहुत मादक है। तुम्हारा पति बहुत ही खुसकिस्मत इंसान है। शादीशुदा औरतों को तुम्हारे बदन से जलन होती होगी।

मैं मुस्कुराइ और मंत्रमुग्ध हो गुरु जी के लिंग को देखती रही ।

गुरुजी--रश्मि तुम पहले के जैसे प्रणाम की मुद्रा में लेट जाओl

मैं घुटने के बल बैठ गयी और जब मैं पेट के बल उल्टी लेट जाउ तो मर्दों के सामने मेरी पीठ और नितम्ब नंगे थे । फिर पेट के बल लेट कर मैने प्रणाम की मुद्रा में अपनी दोनों बाँहे सर के आगे कर ली। मेरे फ़र्श में लेटते समय वो बौना निर्मल मेरे पास ही खड़ा था ।

गुरुजी--अब निर्मल तुम भी माध्यम यानि रश्मि के उपर लेट जाओl

मैने फिर से अपने उपर निर्मल के बदन का भार और उसका खड़ा लंड मेरे मुलायम नितंबों में महसूस किया। मुझे याद आया कि मेरे बेडरूम में मेरे पति लूँगी में ऐसे ही मेरे उपर लेटते थे और मैं सिर्फ़ नाइटी पहने रहती थी और अंदर से कुछ नही। मैने अपने उपर काबू रखने की कोशिश की और लिंगा महाराज के उपर ध्यान लगाने की कोशिश की पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ।

गुरुजी--संजीव ये कटोरा लो और निर्मल के पास रख दो।

मैने देखा संजीव एक छोटा-सा कटोरा लेकर आया और मेरे सर के पास रख दिया। उसमे कुछ सफेद दूध जैसा था और एक चम्मच भी था ।

गुरुजी-- निर्मल तुम रश्मि के लिए पूरे ध्यान से प्रार्थना करो और उसको रश्मि के कान में बोलो। फिर एक चम्मच यज्ञ रस रश्मि को पिलाओ. ठीक है?

कुमार--जी गुरुजी!

गुरुजी--रश्मि इस बार पहले से थोड़ा अलग करना है।

"क्या गुरुजी?"

मैने लेटे-लेटे ही गुरुजी की तरफ़ सर घुमाया और देखा कि उनकी आँखे पहाड़ की तरह उपर को उठे मेरे नितंबों पर हैं और वो अपने मूसल लंड को धीरे धीरे सहला रहे हैं । जैसे ही हमारी नज़रें मिली गुरुजी ने मेरी गान्ड से अपनी नज़रें हटा ली।

गुरुजी-- रश्मि निर्मल के रस पिलाने के बाद तुम अपने मन में लिंगा महाराज को प्रार्थना दोहराओगी और फिर पलट जाओगी। ऐसा 6 बार करना है। 3 बार उपर की तरफ़ और 3 बार नीचे की तरफ। ठीक है?

गुरुजी की बात समझने में मुझे कुछ समय लगा और तभी संजीव ने बेहद खुली भाषा में मुझे समझाया कि अब मुझे कितनी बेशर्मी दिखानी होगी।

समीर--मेडम, बड़ी सीधी-सी बात है। गुरुजी के कहने का मतलब है कि अभी तुम उल्टी लेटी हो। निर्मल को पहली प्रार्थना इसी पोज़िशन में करनी है। फिर आप सीधी पीठ के बल लेट जाओगी जैसे कि हम बेड पर लेटते हैं। निर्मल को दूसरी प्रार्थना उस पोज़िशन में करनी होगी। ऐसे ही कुल 6 बार प्रार्थना करनी होगी। बस इतना ही। ज़य लिंगा महाराज।

गुरुजी--ज़य लिंगा महाराज। रश्मि मैं जानता हूँ कि एक औरत के लिए ऐसा करना थोडा अभद्र लग सकता है, लेकिन यज्ञ के नियम तो नियम है। मैं इसे बदल नहीं सकता।

गुरुजी की अग्या मानने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं था। लेकिन उस दृश्य की कल्पना करके मेरे कान लाल हो गये। दूसरी प्रार्थना के लिए मुझे सीधा लेटना होगा और वो बदमाश बौना निर्मल मेरे उपर लेटेगा। पहले भी वह मेरे उपर लेटा था लेकिन तब कम से कम ये तो था कि मेरा मुँह फ़र्श की तरफ़ था। लेकिन अब तो ये ऐसा होगा जैसे कि मैं बेड में सीधी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे उपर लेट कर मुझे आलिंगन कर रहे हो और उपर से चार आदमी भी मुझे इस बेशरम हरकत को करते हुए देख रहे होंगे। मेरी नज़रें झुक गयी और मैने प्रणाम की मुद्रा में हाथ आगे करते हुए सर नीचे झुका लिया।

गुरुजी--ठीक है। निर्मल अब तुम पहली प्रार्थना शुरू करो। सभी लोग ध्यान लगाओ. जय लिंगा महाराज।

निर्मल ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की। उसका खड़ा लंड मुझे अपने नितंबों में चुभ रहा था। मैंने नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था तो उसका लिंग ज़्यादा अच्छी तरह से महसूस हो रहा था। शायद ऐसा ही निर्मल को भी लग रहा होगा। धीरे-धीरे वह मेरे नितंबों पर ज़्यादा दबाव डालने लगा और हल्के से धक्के लगाने लगा। मैं सोच रही थी की ये इस अवस्था में भी प्रार्थना कैसे कर पा रहा है।

प्रार्थना कहने के बाद अब निर्मल ने कटोरे में से एक चम्मच यज्ञ रस मुझे पिलाया। मेरी पीठ में उसकी हरकतों से मेरे होंठ खुले हुए ही थे। निर्मल ने जो रस मुझे पिलाया उस रस का स्वाद अच्छा था। उसके बाद मैंने आँखें बंद की और प्रार्थना को लिंगा महाराज का ध्यान करते हुए मन ही मन दोहरा दिया।

संजीव --मैडम, अब निर्मल उतरेगा तो आप सीधी हो कर पीठ के बल लेट जाना।

फिर निर्मल मेरी पीठ से उतर गया l

अब मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मुझे सीधा लेटकर ऊपर की तरफ़ मुँह करना था। जब मैं पलटी तो मुझे समझ आ रहा था कि इस हाल में मैं बहुत मादक दिख रही हूँ। मैंने ख़्याल किया की अब संजीव , निर्मल , उदय और राजकमल चारो मेरे जवान बदन को ललचाई नज़रों से देख रहे थे। मैंने नज़रें उठाई तो देखा की गुरुजी भी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहे थे।

गुरुजी-- निर्मल अब तुम दूसरी प्रार्थना करोगे। रश्मि, माध्यम के रूप में तुम निर्मल को पूरी तरह से अपने बदन के ऊपर चढ़ाओगी। विधान ये है कि माध्यम को भक्त के दिल की धड़कनें सुनाई देनी चाहिएl

इन तीन मर्दों के सामने ऐसे लेटे हुए मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी की क्या बताऊँ। मैंने गुरुजी की बात में सर हिलाकर हामी भर दी। निर्मल मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब था और जैसे ही वह मेरे ऊपर चढ़ने लगा मैंने शरम से आँखें बंद कर लीं। मुझे बहुत निरादर और शर्म महसूस हो रही थी । औरत होने की स्वाभाविक शरम से मैंने अपनी छाती के ऊपर बाँहें आड़ी करके रखी हुई थीं।

संजीव --मैडम, प्लीज़ अपने हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे करो।

"वैसे करने में मुझे अनकंफर्टेबल फील हो रहा है।"

मैंने कह तो दिया लेकिन बाद में मुझे लगा की मैंने बेकार ही कहा क्यूंकी गुरुजी ने अपने शब्दों से मुझे और भी ह्युमिलियेट कर दिया।

समीर--लेकिन मैडम...।

गुरुजी--रश्मि, हम सबको मालूम है कि अगर एक मर्द तुम्हारे बदन के ऊपर चढ़ेगा तो तुम अनकंफर्टेबल फील करोगी। लेकिन हर कार्य का एक उद्देश्य होता है। अगर तुम अपनी छाती के ऊपर बाँहें रखोगी तो तुम निर्मल के दिल की धड़कनें कैसे महसूस करोगी? अगर तुम्हारी छाती उसकी छाती से नहीं मिलेगी तो एक माध्यम के रूप में उसकी प्रार्थना के आवेग को कैसे महसूस करोगी?

वो थोड़ा रुके. पूजा घर के उस कमरे में एकदम चुप्पी छा गयी थी। वह तीनो मर्द मेरी उठती गिरती चूचियों के ऊपर रखी हुई मेरी बाँहों को देख रहे थे।

गुरुजी--अगर ये तंत्र यज्ञ होता और तुम माध्यम के रूप में होती तो मैं तुम्हारे कपड़े उतरवा लेता क्यूंकी उसका यही नियम है।

उन मर्दों के सामने ये सब सुनते हुए मैं बहुत अपमानित महसूस कर रही थी और अपने को कोस रही थी की मैंने चुपचाप हाथ आगे को क्यूँ नहीं कर दिए. ये सब तो नहीं सुनना पड़ता। अब और ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए मैंने अपने हाथ सर के आगे प्रणाम की मुद्रा में कर दिए. अब बाँहें ऐसे लंबी करने से मेरी चूचियाँ ऊपर को उठकर तन गयीं और भी ज़्यादा आकर्षक लगने लगीं।

जल्दी ही निर्मल मेरे ऊपर चढ़ गया और मैंने शरम से अपने जबड़े भींच लिए. मेरे बेडरूम में जब मैं ऐसे लेटी रहती थी और मेरे पति मेरे ऊपर चढ़ते थे तो पहले वह मेरी गर्दन को चूमते थे, फिर कंधे पर और फिर मेरे होठों का चुंबन लेते थे। उनका एक हाथ मेरी नाइटी या ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों पर रहता था और मेरे निपल्स को मरोड़ता था। उसके बाद वह मेरी नाइटी या पेटीकोट जो भी मैंने पहना हो, उसको ऊपर करके मेरी गोरी टाँगों और जाँघों को नंगी कर देते थे, चाहे उनका मन संभोग करने का नहीं हो और सिर्फ़ थोड़ा बहुत प्यार करने का हो तब भी। अभी निर्मल मेरे ऊपर चढ़ने से मुझे अपने पति के साथ बिताए ऐसे ही लम्हों की याद आ गयी।

मेरी बाँहें सर के पीछे लंबी थीं इसलिए निर्मल के लिए कोई रोक टोक नहीं थी और उसने मेरे बदन के ऊपर अपने को एडजस्ट करते समय मेरी दायीं चूची को अपनी कोहनी से दो बार दबा दिया और यहाँ तक की अपनी टाँग एडजस्ट करने के बहाने ऊपर से मेरी चूत को भी छू दिया। उसने अपने को मेरे ऊपर ऐसे एडजस्ट कर लिया जैसे चुदाई का परफेक्ट पोज़ हो । कमरे में चार मर्द और भी थे जो हम दोनों को देख रहे थे और मैं उनकी आँखों के सामने ऐसे लेटी हुई बहुत अपमानित महसूस कर रही थी।

अब निर्मल ने मेरे कान में प्रार्थना कहनी शुरू की और इसी बहाने मेरे कान को चूम और चाट लिया। वैसे तो मैंने शरम से अपनी आँखें बंद कर रखी थी लेकिन मैं समझ रही थी की संजीव जो मेरे इतना पास बैठा हुआ था उसने इस बौने की बेशर्म हरकतें ज़रूर देख ली होंगी।

अब निर्मल ने मुझे चम्मच से यज्ञ रस पिलाया और पिलाते समय उसने अपना दायाँ हाथ मेरी बायीं चूची के ऊपर टिकाया हुआ था और वह अपनी बाँह से मेरे निप्पल को दबा रहा था। निर्मल ने फिर से रस पिलाने में उसकी मदद की और फिर मैंने लिंगा महाराज को उसकी प्रार्थना दोहरा दी। मैं ही जानती थी की मैंने लिंगा महाराज से क्या कहा क्यूंकी प्रार्थना के नाम पर वह बौना खुलेआम मेरे बदन से जो छेड़छाड़ कर रहा था उससे मैं फिर से कामोत्तेजित होने लगी थी।

ऐसे करके कुल 6 बार प्रार्थना हुई और हर बार मुझे ऊपर नीचे को पलटना पड़ा और निर्मल आगे से और पीछे से मेरे ऊपर चढ़ते रहा। अंत में ना सिर्फ़ मैं पसीने से लथपथ हो गयी बल्कि मुझे बहुत तेज ओर्गास्म भी आ गया। बाद-बाद में तो निर्मल कुछ ज़्यादा ही कस के आलिंगन करने लगा था और एक बार तो उसने मेरे नरम होठों से अपने मोटे होंठ भी रगड़ दिए और चुंबन लेने की कोशिश की। लेकिन मैंने अपना चेहरा हटाकर उसे चुंबन नहीं लेने दिया। वह मेरे ऊपर धक्के भी लगाने लगा था और मेरे पूरे बदन को उसने अच्छी तरह से फील कर लिया और मेरे बदन पर निर्मल को चढ़ाते उतारते समय संजीव ने मेरे निचले बदन पर जी भरके हाथ फिरा लिए. निर्मल की मदद के बहाने उसने कम से कम दो या तीन बार मेरे नितंबों को पकड़ा और मेरी जाँघों पर और मेरे स्तनों पर तो ना जाने कितनी बार अपना हाथ फिराया।

मैंने पैंटी नहीं पहनी थी तो तेज ओर्गास्म आने के बाद मेरी चूत का रस मेरी जांघों के अंदरूनी हिस्से में बहने लगा और वो आसान और मेरी टाँगे गीली हो गयी । प्रार्थना पूरी होने के बाद गुरुजी और संजीव ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और आख़िरकार निर्मल मेरे बदन से उतर गया।

समीर--गुरुजी कमरा बहुत गरम हो गया है। हम सब को पसीना आ रहा है। थोड़ा विराम कर लेते हैं गुरुजीl

गुरुजी--हाँ थोड़ा विराम ले सकते हैं लेकिन मध्यरात्रि तक ही शुभ समय है तब तक यज्ञ पूरा हो जाना चाहिएl

तब तक मैं फ़र्श से उठ के बैठ गयी थी

"गुरुजी, एक बार बाथरूम जाना चाहती हूँ।"

गुरुजी--ज़रूर जाओ रश्मि। लेकिन 5 मिनट में आ जाना। अब अनुष्ठान में लिंगपूजा की बारी है।

मैं बाथरूम गयी और मुँह धोया। फिर अपनी चूत जांघों और टांगो को भी धो लिया, जो मेरे चूतरस से चिपचिपी हो रखी थी ।

गुरुजी--अब हम यज्ञ के आख़िरी पड़ाव पर हैं और रश्मि बेटी को इसे पूरा करना है।

मैं -जी गुरुजीl

गुरुजी--संजीव, रश्मि को भोग दो। नियम ये है कि रश्मि के यज्ञ में बैठने से पहले भोग गृहण करना होगा।

संजीव --जी गुरुजीl

गुरुजी- संजीव अब तुम चारो की जर्रोरत नहीं है , तुम अब थोड़ी देर आराम कर सकते हो!

गुरुजी ने आगे पूजा के बारे में बताना शुरू कर दिया।

गुरुजी--रश्मि बेटी, अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे। इस पूजा के लिए माध्यम की ज़रूरत पड़ती है। अब तुम्हारे लिए माध्यम मैं बनूंगा। ठीक है?

मैं --जी गुरुजीl

गुरुजी- रश्मी, तुम्हारा ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ पूजा में होना चाहिए. तुम्हें ध्यान नहीं भटकाना है। इसलिए सिर्फ़ पूजा पर ध्यान लगाना। जय लिंगा महाराज।

मैं सर हिलाकर हामी भरी और खड़ी हो गयी। अब क्या करना है उसे मालूम नहीं था। गुरुजी ने मुझे कुछ समझाया और इशारा किया। गुरूजी मुझे वहाँ पर ले गए जहाँ पर मैं माध्यम के रूप में फ़र्श पर लेटी थी और वो खुद फ़र्श में पीठ के बल लेट गए । और मैं उनके ऊपर पेट के बल लेट गयी मेरे छाती उनकी छाती पर चिपक गयी और उनका बड़ा मूसल लंड उनकी धोती के अंदर मेरे योनि से टकरा रहा था और अब मेरे नितंब ऊपर को उठे हुए बहुत आकर्षक लग रहे थे। गुरूजी मुझे पूजा के लिए फूल लेले हो कहा तो मुझे अपने ऊपर बहुत लज्जा आयी और मेरे चेहरा शरम से लाल हो गया । गुरूजी में मुझे प्रणाम की मुद्रा में हाथ आगे को करने को कहा।

गुरुजी--रश्मि अब मैं तुम्हारे कान में पाँच बार मंत्र बोलूँगा और तुम उसे ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोल देना। उसके बाद तुम मुझे अपनी इच्छा बताओगी और मैं उसे लिंगा महाराज को बोल दूँगा। ठीक है?

मैं -जी गुरुजीl

अब गुरुजी ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और मैं उनक ऊपर लेट गयी । गुरुजी का लंबा चौड़ा शरीर था, उनके शरीर से पूरी तरह समा गयी। मैं सोचने लगी की माध्यम के रूप में मैं फ़र्श में लेटी थी और निर्मल ने मेरे ऊपर चढ़कर मुझसे मज़े लिए थे। लेकिन अब अलग ही हो रहा था। गुरुजी फ़र्श पर लेते हुए थे और मैं उनके ऊपर थी मेरे मन में आया की गुरुजी से पूछूं की ऐसा क्यूँ? पर पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुईl

गुरुजी-- रश्मि बेटी तुम्हें अजीब लगेगा, पर यज्ञ का यही नियम है। मैं अपना वज़न तुम पर नहीं डालूँगा। तुम बस पूजा में ध्यान लगाओl

आगे योनि पूजा में लिंग पूजा की कहानी जारी रहेगी

अब गुरुजी ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और मैं उनक ऊपर लेट गयी। गुरुजी का लंबा चौड़ा शरीर था, उनके शरीर से पूरी तरह समा गयी। मैं सोचने लगी की माध्यम के रूप में मैं फ़र्श में लेटी थी और निर्मल ने मेरे ऊपर चढ़कर मुझसे मज़े लिए थे। लेकिन अब अलग ही हो रहा था। गुरुजी फ़र्श पर लेते हुए थे और मैं उनके ऊपर थी मेरे मन में आया की गुरुजी से पूछूं की ऐसा क्यूँ? पर पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुईl

गुरुजी—रश्मि बेटी तुम्हें अजीब लगेगा, पर यज्ञ का यही नियम है। मैं अपना वज़न तुम पर नहीं डालूँगा। तुम बस पूजा में ध्यान लगाओ ।

गुरुजी मेरे ऊपर लेटे हुए थे और उन्होंने अपनी धोती ठीक करने के बहाने गुरुजी ने अपने बदन को मेरे ऊपर ऐसे एडजस्ट किया की उनका श्रोणि भाग (पेल्विक एरिया) ठीक मेरे नितंबों के ऊपर आ गया। अब गुरुजी ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया। मैंने देखा की वह मेरी गांड में हल्के से धक्का लगा रहे हैं।

पूजा काल में गुरु जी और उनके शिष्य अन्य मंत्रो के अतिरिक्त साथ-साथ में ॐ नमः लिंग देव मंत्र का जाप करते रहे।

गुरु-जी: बहुत बढ़िया बेटी! अब हम लिंग से प्राथना करेंगे। प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ो। ध्यान केंद्रित करना।

गुरु जी: हे लिंग महाराज!

मैं: हे लिंग महाराज!

गुरु जी: हे लिंगा महाराज! मैं स्वयं को आपको अर्पित करता हूँ...

मैं: हे लिंगा महाराज! मैं खुद को आपको समर्पित करती हूँ ...

गुरु जी: हे लिंगा महाराज! मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी योनि...तुम्हें सब कुछ...समर्पित करता हूँ।

मैं: हे लिंगा महाराज! मेरा मन, मेरा शरीर, अपनी । योनि... आपको सब कुछ...आपको ।समर्पित करती हूँ।

गुरु-जी: हे लिंगा महाराज! कृपया इस पूजा को स्वीकार करें!

मैं: हे लिंगा महाराज! कृपया आप मेरी इस योनि पूजा को स्वीकार करें!

गुरु-जी: हे लिंगा महाराज! मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

मैं: हे लिंगा महाराज! मैं, रश्मि सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

उसके बाद मैं ये देखकर शॉक्ड हो गयी की गुरुजी भी मेरे बदन से आकर्षित होकर उनका लिंग कड़ा हो गया था और वह भी मेरे नितम्बो पर लंड से हलके धक्क्के मार रहे थे, फिर मुझे लगा शायद ये मेरा वहाँ है और मैंने गुरुजी का बताया हुआ मंत्र ज़ोर से बोल दिया। ऐसा पाँच बार करना था। दो बार मन्त्र बोलने के बाद में तो मेरे नितंबों पर गुरुजी का धक्का लगाना भी साफ महसूस होने लगा।

मंत्र जाप खत्म होने के बाद अब मुझे अपनी इच्छा गुरुजी को बतानी थी। गुरुजी अपने चेहरे को मेरे चेहरे के बिल्कुल नज़दीक़ ले गये, उनके मोटे होंठ मेरे गालों को छू रहे थे। गुरुजी ने अपने दोनों हाथ मेरी दोनों तरफ फर्श में रखे हुए थे। अब उन्होंने अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे में रख दिया और अपना मुँह उसके चेहरे से चिपका कर मेरी इच्छा सुनने लगे।

मैं: लिंग महाराज कृपया मुझे उर्वर बनाएँ और मुझे मेरे गर्भ से उत्पन्न एक बच्चे का आशीर्वाद दें...

लिंगा महाराज से मेरी इच्छा कह देने के बाद गुरुजी मेरे बदन से उठ गये। मैंने उसकी तरफ देखा तो मैंने साफ-साफ देखा की उनका खड़ा लंड धोती को बाहर तना हुआ खड़ा था । मेरे उठने से पहले ही उन्होंने जल्दी से अपने लंड को धोती में पुनः एडजस्ट कर लिया।

गुरुजी–रश्मि बेटी, तुमने पूजा करते समय अपना पूरा ध्यान लगाया?

मैं–हाँ गुरुजी. मैंने गहरी सांस लेते हुए बोला!

मैंने ख्याल किया मेरी आवाज़ कामोत्तेजना की वजह से। कांप रही थी, शायद! लेकिन मैं गहरी साँसे ले रही थी

गुरुजी–तो फिर तुम्हारी आवाज़ में कंपन क्यूँ है?

मैं गहरी साँसें ले रही थी, जैसे कि अगर कोई आदमी उसके ऊपर लेटे तो कोई भी औरत अघरि सांस लेती। लेकिन गुरुजी का स्वर कठोर था।

मैं–मेरा विश्वास कीजिए गुरुजी. मैं सिर्फ अपनी पूजा के बारे में सोच रही थी।

गुरुजी–तुम झूठ क्यूँ बोल रही हो बेटी?

कमरे में बिल्कुल चुप्पी छा गयी। मैं भी हैरान थी की ये हो क्या रहा है?

गुरुजी–रश्मि मैंने तुम्हे कितनी बार बोला है तुम्हे अपना मन अपने लक्ष्य की और लगाना हैं और दूसरी बातो को नजर नदाज करना है परन्तु अभी भी तुम भटक जाती हो और यही तुम्हारी असफलता का मुख्य कारण है। तुम्हारा मन स्थिर नहीं रहता और अन्य चीज़ों में ज़्यादा उत्सुक रहता है। वही यहाँ पर भी हुआ। तुम्हारा मन पूजा की बजाय मेरे बदन के तुम्हारे बदन को छूने पर लगा हुआ था।

मैं –गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए. मैं सिर्फ प्रार्थना पर ध्यान लगा रही थी परन्तु जब आप मुझे छू रहे थे तो मुझे छूने का एहसास हो रहा था जिसे मैं नजरअंदाज करने का पूरा प्रयास कर रही थी । अगर मुझ से कोई भूल हुई है तो आप कृपया मुझे क्षमा करे!

गुरुजी–रश्मि यहाँ आओ और मुझे पता करना होगा की तुम्हारा मन भटका हुआ था कि नहीं। अगर तुम्हारा मन भटका हुआ था नहीं तो हमे ये प्रक्रिया दोहरानी होगी!

मैं हैरान थी। गुरुजी ये कैसे पता करेंगे? मैं सर झुकाए खड़ी थी क्योंकि मेरा ध्यान एक मर्द के अपने बदन को छूने पर था।

"लेकिन गुरुजी कैसे? मेरा मतलब।कैसे?"

गुरुजी–ये तो आसान है। मैं तुम्हारे निप्पल चेक करूँगा और मुझे पता चल जाएगा की तुम कामोत्तेजित हुई थी या नहीं।

एक मर्द के मुँह से ऐसी बात सुनकर हम दोनों हक्की बक्की रह गयीं। लेकिन फिर मुझे समझ आया की गुरुजी ने अपने अनुभव से एकदम सही निशाना लगाया है। क्यूंकी अगर किसी अगर ये पता लगाना हो की औरत की वह कामोत्तेजित है या नहीं तो ये बात उसके निप्पल सही-सही बता सकते हैं।

मैं शरम से लाल हो गयी थी। अब मुझे भी समझ आ गया था की गुरुजी को बेवक़ूफ़ नहीं बना सकती क्यूंकी वह बहुत अनुभवी और बुद्धिमान थे।

में–क्षमा चाहती हूँ गुरुजी. आप सही हैं।

गुरुजी–हम्म्म ......देख लिया बेटी तुमने, लोगों को बहलाने का कोई मतलब नहीं है। हमेशा सच बताओ. ठीक है?

अब मैंने सिर्फ सर हिला दिया। मैं समझ गयी थी की गुरुजी जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले आदमी के सामने इस मेरी क्या हालत हो जाती और उनके सामने मेरा झूठ कुछ पल भी नहीं ठहर पाता ।

हमने एक बार फिर फूरी मन्त्र बोलने की प्रक्रिया दोहराई और इस बार मैंने पूजा पर ध्यान दिया नाकि गुरूजी के धक्को पर ।

गुरूजी: रश्मि आपको याद रखना चाहिए कि यह एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे किसी 'सांसारिक' इच्छाओं के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए। "

"मैं समझ गयी गुरुजी मैं..." गुरुजी ने धीरे से अपना हाथ उठाकर और मुझे रुकने का इशारा करते हुए मेरे वाक्य बीच में काट दिया।

गुरूजी: रश्मि अब अप्प आप लिंगम पूजा की शक्तियों को अनुभव करेंगी तो अब हम लिंगा पूजा करेंगे। " उन्होंने मुझे कुछ आश्वासन के लिए देखा, मेरा दिमाग भारी था ।

मुझे जवाब देने की जल्दी थी, मुझे ठीक-ठीक पता था कि मुझे क्या चाहिए।

"मैं जैसा आप कहेंगे वैसा करुँगी गुरुजी मैं आपकी शिक्षाओं से प्रभावित हूँ। योनि पूजा अनुष्ठानों ने मुझे उत्साहित किया है।"

गुरुजी मेरे उत्साह पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए।

गुरूजी- रश्मि अब मेरे पीछे दोहराओ कृपया इस लिंग पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

मैं:-कृपया इस लिंग पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

गुरु-जी: मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

मैं: मैं, रश्मि सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

अब गुरुजी ने अपने बैग से लिंगा महाराज के दो प्रतिरूप निकाले। वह दिखने में बिल्कुल वैसे ही थे जिसकी हम यहाँ पूजा कर रहे थे।

गुरुजी–संजीव बेल के पत्ते, दूध, गुलाब जल और शहद रश्मि को दो और रश्मि अग्नि कुंड में थोड़ा घी डाल दो।

मैंने वैसा ही किया और गुरुजी उनसे कुछ मिश्रण बनाने लगे। उन्होंने बेल के पत्तों को कूटकर शहद में मिलाया और उसमें बाकी चीज़ें मिलाकर एक गाढ़ा द्रव्य तैयार किया। फिर लिंगा महाराज के एक प्रतिरूप पर वह द्रव्य चढ़ाने लगे। उन्होंने उस प्रतिरूप को द्रव्य से नहलाकर हाथ से उसमें सब जगह मल दिया। फिर दूसरे प्रतिरूप को उन्होंने अग्नि में शुद्ध किया और गुलाब जल से धो दिया। उसके बाद दोनों प्रतिरूपों की पूजा की। मैं चुपचाप ये सब देख रही थी ।

गुरुजी–रश्मि, यहाँ आओ और अग्नि के पास खड़ी रहो। अपनी आँखें बंद कर लो और मैं जो मंत्र पढ़ूँ, अग्निदेव के सम्मुख उनका जाप करो।

घी डालने से अग्निकुण्ड में लपटें तेज हो गयी थीं। गुरुजी ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे। मैं मंत्रों को दोहरा रही थी। पांच मिनट तक यही चलता रहा।

गुरुजी–रश्मि अब ये यज्ञ का बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। तुम अपना पूरा ध्यान इस पर लगाओ. लिंगा महाराज के ये दोनों प्रतिरूप टूयमहरे अंदर की योनि को जाग्रत करेंगे। इसे 'जागरण क्रिया' कहते हैं। तुम्हें इस प्रतिरूप से पवित्र द्रव्य को पीना है और साथ ही साथ मैं दूसरे प्रतिरूप को तुम्हारे बदन में घुमाकर तुम्हें ऊर्जित करूँगा।

मैंने सर हिला दिया पर मेरे चेहरे से साफ पता लग रहा था कि मुझे कुछ समझ नहीं आया। लेकिन गुरुजी से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी।

मैं यज्ञ के अग्निकुण्ड के सामने हाथ जोड़े खड़ी थी, उसने आँखें बंद की हुई थीं। गुरुजी उसके बगल में खड़े थे।

गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को मेरे मुँह में लगाया। मैंने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले, लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसे चूसने लगी। प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा लग रहा था जिससे मैं उसे तेज़ी से चूस रही थी। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे-धीरे मेरे मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वह मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो।

गुरुजी–रश्मि! लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस 'जागरण क्रिया' के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए.

अब मैंने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी। गुरुजी की आज्ञा के अनुसार मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं। आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई मैं अवश्य ही बहुत अश्लील लग रही होउंगी, शरम से मैंने अपनी गर्दन झुका ली। गुरुजी मेरी और गौर से देख रहे थे। उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक सुंदर महिला, तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है। फिर मैंने अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर मेरे मुँह में चला गया। लिंगा को चूसते हुए मैं बहुत कामुक आवाज़ निकाल रही थी।

कहानी जारी रहेगी​
Next page: Update 79
Previous page: Update 77
Previous article in the series 'आश्रम के गुरुजी': आश्रम के गुरुजी - 06