Update 79

औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

लिंग पूजा--'जागरण क्रिया"

गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को मेरे मुँह में लगाया। मैंने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले, लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसे चूसने लगी। प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा लग रहा था जिससे मैं उसे तेज़ी से चूस रही थी। गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे-धीरे मेरे मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वह मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो।

गुरुजी–रश्मि! लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस 'जागरण क्रिया' के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए।

अब मैंने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी। गुरुजी की आज्ञा के अनुसार मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं। आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई मैं अवश्य ही बहुत अश्लील लग रही होउंगी, शरम से मैंने अपनी गर्दन झुका ली। गुरुजी मेरी और गौर से देख रहे थे। उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक सुंदर महिला, तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है। फिर मैंने अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर मेरे मुँह में चला गया। लिंगा को चूसते हुए मैं बहुत कामुक आवाज़ निकाल रही थी।

लिंगा का प्रतिरूप चूसते हुए मुझे अपनी एक पुरानी घटना याद आ गयी। मैंने अपने पति का लंड सिर्फ एक बार ही चूसा था और तब भी मैंने असहज महसूस किया था। शादी के बाद जब पहली बार जब मेरे पति ने मुझसे लंड चूसने को कहा तो मैं बहुत शरमा गयी और तुरंत मना कर दिया। फिर और भी कई दिन उन्होंने मुझसे इसके लिए कहा, पर जब देखा की मेरा मन नहीं है तो ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला। लेकिन बारिश के एक दिन मैं एक सेक्सी नॉवेल पढ़ रही थी और पढ़ते-पढ़ते कामोत्तेजित हो गयी।

जब मेरे पति अनिल काम से घर लौटे तो मेरा सेक्स करने का बहुत मन हो रहा था। लेकिन वह थके हुए थे और उनका मूड नहीं था। उस दिन मैं जानबूझकर देर से नहाने गयी और मैंने ध्यान रखा की जब मैं बाथरूम से बाहर आऊँ तो उस समय मेरे पति बेड में हों। मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और वहाँ खड़ी होकर नाइटी के अंदर से अपनी पैंटी उतार दी। ताकि मेरे पति को कामुक नज़ारा दिखे और मैं भी शीशे में उनका रिएक्शन देख सकूँ। मेरी ये अदा काम कर गयी क्यूंकी जब मैं बेड में उनके पास आई तो देखा पाजामे में उनका लंड अधखड़ा हो गया है।

लेकिन वह दिखने से ही थके हुए लग रहे थे और एक आध चुंबन लेकर सोना चाह रहे थे। लेकिन मैं तो चुदाई के लिए बेताब हो रखी थी। वह लेटे हुए थे और मैं उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी और अपनी नाइटी भी ऐसे एडजस्ट कर ली की मेरी बड़ी चूचियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी रहें। वैसे तो मैं, ज़्यादातर औरतों की तरह बिस्तर में पहल नहीं करती थी। पर उस दिन अपने पति को कामोत्तेजित करने के लिए बेशरम हो गयी थी। अब मेरे पति भी थोड़ा एक्साइटेड होने लगे और उन्होंने मेरी नाइटी के अंदर हाथ डाल दिया।

मैं इतनी बेताब हो रखी थी की मैंने अपनी जांघों तक नाइटी उठा रखी थी। वह मेरी नंगी मांसल जांघों में हाथ फिराने लगे। लेकिन मैंने देखा की उनका लंड तन के सख़्त नहीं हो पा रहा है। फिर मेरे पति ने लाइट ऑफ कर दी, तब तक मेरे बदन में सिर्फ मंगलसूत्र रह गया था और मैं बिल्कुल नंगी हो गयी थी। मैं अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी ताकि वह तन के खड़ा हो जाए।

उन्होंने कहा की मुँह में ले के चूसो शायद तब खड़ा हो जाए. मैंने मना नहीं किया और उस दिन पहली बार लंड चूसा। सच कहूँ तो ऐसा करना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और दूसरे दिन मैंने अपने पति से ऐसा कह भी दिया। लेकिन उस दिन तो मेरा लंड चूसना काम कर गया क्यूंकी चूसने से उनका लंड खड़ा हो गया और फिर हमने चुदाई का मज़ा लिया।

जैसे आज मैं लिंगा के प्रतिरूप को चूस रही थी, उस दिन मैंने भी अपने पति के लंड को चूसा और चाटा था। उसके प्री-कम से लंड चिकना हो गया था और चूसते समय मेरे मुँह से भी वैसी ही कामुक आवाज़ें निकल रही थीं। गुरुजी अब मेरे पीछे आ गये और लिंगा के दूसरे प्रतिरूप को मेरे बदन में छुआकर मंत्र पढ़ने लगे।

वो मेरे बदन में एक जगह पर लिंगा को लगाते और मंत्र पढ़ते फिर दूसरी जगह लगाते और मंत्र पढ़ते। ऐसा लग रहा था जैसे कोई जादूगर जादू कर रहा हो। सबसे पहले उन्होंने मेरे सर में लिंगा को लगाया फिर गर्दन में और फिर उसकी पीठ में। जब गुरुजी ने मेरी पीठ में लिंगा को छुआया तो मेरे बदन को एक झटका-सा लगा।

गुरुजी मेरे पीछे खड़े थे और जैसे ही लिंगा मेरी कमर में पहुँचा उन्होंने लिंगा मेरे नितम्बो की तरफ किया तो मेरी स्कर्ट नीचे को सरका दी। मैंने हड़बड़ा कर लिंगा को चूसना बंद कर दिया और अब मैं लिंगा को मुँह से बाहर निकालने ही वाली थी। तभी गुरुजी ने कहा।

गुरुजी–बेटी, जैसा की मैंने तुमसे कहा था, तुम जो कर रही हो उसी पर ध्यान दो। मैं तुम्हें बता दूँ की लिंगा से ऊर्जित करने की इस प्रक्रिया में किसी अंग के ऊपर वस्त्र नहीं होने चाहिए. उस समय मैंने केवल चोली पहनी हुई थी और मेरी पीठ पर मेरी स्कर्ट भी कमरबंद की तरह बंधी हुई थी।

ऐसा कहते हुए गुरुजी मेरा रिएक्शन देखने के लिए रुके और जब उन्होंने देखा की वह उनकी बात समझ गयी है तो उन्होंने निर्मल की तरफ देखा।

गुरुजी–निर्मल लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दो।

"जी गुरुजी!"

निर्मल साइड में था, मेरी पीठ में पीछे से रोशनी पड़ रही थी क्योंकि मेरी चाय मेरे सामने बन रही थी है। गुरुजी ने मेरी स्कर्ट कमर के नीचे मेरी जांघो पर खींच दी थी। मेरी पेंटी पहले ही उत्तरी हुई थी गुरुजी सहित सभी पांचो मर्दो को मेरी नग्न गांड और नितम्ब देखकर मज़ा आ रहा होगा।

निर्मल का ध्यान भी मेरी नग्न गांड पर था और जब उसने द्रव्य नहीं डाला तो गुरूजी ने उसे फिर से पुकारा

गुरुजी–देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए. निर्मल द्रव्य डालो।

फिर नृमल ने जल्दी से द्रव्य का कटोरा लिया और मेरे पास आ गया। मैंने मुँह से लिंगा को बाहर निकाल लिया औरमैं हाँफ रही थी। मेरी आँखें अभी भी बंद थीं। उसने लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया।

निर्मल अपनी जगह वापस गया और मैंने फिर से लिंगा को मुँह में डालकर चूसना शुरू कर दिया। इतनी देर तक गुरुजी मेरी गांड को नग्न किये हुए थे। अब मैं फिर से लिंगा को चूसने लगी तो गुरुजी ने मेरे गोल बड़े नितंबों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया।

गुरुजी दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर हाथ मेरी गांड पर घूमा रहे थे और साथ-साथ मन्त्र पढ़ रहे थे और फिर कुछ देर बाद वह एक हाथ से लिंगा फिर रहे थे और दुसरे हाथ से गुरुजी मेरी गांड को सहला रहे थे और जैसे ही उन्होंने लिंगा को मेरी गुदा पर लगाया मुझे झटके लगे और मैं अपने बदन को झटक रही थी।

गुरूजी के चारो शिष्यों को ये दृश्य बहुत अश्लील लग रहा होगा और मैं असहज हो गयी थी और क्यूँ ना हो? मैं एक पारिवारिक विवाहित महिला थी और अगर कोई मर्द उसकी गांड में लिंग स्पर्श करे और साथ ही साथ उसको दूसरा लिंगा चूसना पड़े तो कोई भी औरत अवश्य कामोत्तेजित हो जाएगी। ये बिलकुल थ्रीसम जैसे हालात थे। गुरुजी मंत्र लगातार पढ़े जा रहे थे और अपनी ऊर्जित प्रक्रिया को जारी रखे हुए थे। अब वह मेरे सामने आ गये और लिंगा को मेरे घुटनों में लगाया और धीरे-धीरे ऊपर को मेरे जांघों में घुमाने लगे। जैसे-जैसे गुरुजी के हाथ ऊपर को बढ़ने लगे तो मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी क्यूंकी अब गुरुजी के हाथ मेरे नाजुक अंग तक पहुँचने वाले थे। तभी अचानक गुरुजी ने कहा।

गुरुजी–राजकमल यहाँ आओ।

मुझे महसूस हुआ राजकमल वहाँ आ गया है।

गुरुजी–तुम रश्मि की स्कर्ट पकड़ो। मैं इसकी योनि को ऊर्जित करता हूँ।

गुरुजी के मुँह से योनि शब्द सुनकर मुझे थोड़ा झटका लगा लेकिन फिर मैंने सोचा ये तो यज्ञ की प्रक्रिया है तो इसका पालन तो करना ही पड़ेगा। किसी भी औरत के लिए ये बड़ा अपमानजनक होता की उसके कपड़े नीचे करके उन्हें पकड़कर कोई मर्द उसके गुप्तांगो को छुए लेकिन गुरुजी के अनुसार यज्ञ की प्रक्रिया होने की वजह से इसका पालन करना ही था। इसलिए मैंने भी कुछ खास रियेक्ट नहीं किया।

राजकमल ने एक हाथ से स्कर्ट पकड़ी और आगे से कमर तक ऊपर उठा दी। लेकिन गुरुजी ने उसे दोनों हाथों से पकड़कर ठीक से थोड़ा और ऊपर उठाने को कहा। राजकमल ने दोनों हाथों से स्कर्ट पकड़कर थोड़ी और ऊपर उठा दी। अब मेरी नाभि दिखने लगे।

गुरुजी ने दोनों हाथों से लिंगा को मेरी योनि के ऊपर घुमाना शुरू किया और ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे। उस सेन्सिटिव भाग को छूने से मेरा चेहरा लाल हो गया और मैंने लिंगा को चूसना बंद कर दिया। वैसे लिंगा अभी भी मेरे मुँह में ही था और मेरी आँखें बंद थीं। फिर मैंने महसूस किया की गुरुजी मेरी चूत की दरार में ऊपर से नीचे अंगुली फिराने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी ऊँगली के स्पर्श से मेरी चोली के अंदर निप्पल एकदम तन गये। गुरुजी की अँगुलियाँ मेरी योनि के ओंठो को छू रही थीं और अब मैंने आँखें बंद किए हुए हल्की सिसकारियाँ लेने लगी।

मैं–उम्म्म्ममम।

गुरुजी अब साफ-साफ मेरी चूत के त्रिकोणीय भाग को अपनी अंगुलियों से महसूस कर रहे थे और लिंगा को बस नाममात्र के लिए घुमा रहे थे। वह मेरी चूत के सामने झुककर इस 'जागरण क्रिया' को कर रहे थे। मैं अब उत्तेजित हो गयी थी और मेरी छूट गीली हो गयी थी और अब अपनी खड़ी पोजीशन में इधर उधर हिल रही थी और मैं असहज स्थिति में थी। कुछ देर बाद ये प्रक्रिया समाप्त हुई और गुरुजी सीधे खड़े हो गये। राजकम ने स्कर्ट नीचे कर दी और मैंने राहत की सांस ली।

गुरुजी–लिंगा में थोड़ा और द्रव्य डालो।

निर्मल ने उस गाड़े द्रव्य का कटोरा लिया और मुझे लिंगा को मुँह से बाहर निकालने को भी नहीं कहा और ऐसे ही लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया। लिंगा में बहते हुए द्रव्य मेरे होठों में पहुँच गया और थोड़ा-सा ठुड्डी से होते हुए गर्दन में बह गया। गुरुजी ने तक-तक मेरे के सपाट पेट में लिंगा घुमा दिया था और अब ऊपर को बढ़ रहे थे।

एक मर्द के द्वारा नितंबों और चूत को सहलाने से अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और मेरी नुकीली चूचियाँ कड़क होकरचोली में बाहर को तनी हुई थीं। निर्मल और राजकमल मेरे बिलकुल पास खड़े हुए थे मेरे स्तनों और खड़े निप्पल की शेप देख रहे होंगे और निश्चित ही उन्हें मेरी तनी हुई चूचियाँ बहुत आकर्षक लग रही होंगी।

मैं अब लिंगा से द्रव्य को चूस रही थी। अब ऐसा लग रहा था कि गुरुजी भी अपनी भाव भंगिमाओं पर थोड़ा नियंत्रण खो बैठे हैं। मेरे सुंदर बदन के हर हिस्से से छेड़छाड़ करने के बाद ऐसा लगता था कि उनकी साँसे तेज हो गयी थी और वह खुद भी गहरी साँसें लेने लगे थे और जब वह मेरे पास हुए तो उनका खड़ा लंड मेरे से छू गया जिससे मुझे लगा उनका लंड धोती में खड़ा हो गया था। मंत्र पढ़ते हुए अब उनकी आवाज भी कुछ धीमी हो गयी थी।

अब गुरुजी ने मेरी चूचियों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया। मेरी आँखें बंद थीं शायद इसलिए गुरुजी को ज़्यादा जोश आ गया। उन्होंने अपनी चार शिष्यों की मौजूदगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिंगा से अपना दायाँ हाथ हटा लिया और मेरी बायीं चूची को पकड़ लिया।

मैं–उम्म्म्मम......

उत्तेजना की वजह से। मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। मैं लिंगा प्रतिरूप को चूस रही थी और साथ में कस के आँखें बंद की हुई थी, मुझे लगा अब गुरुजी हद पार कर रहे हैं, खुलेआम वह जिसे बेटी कहकर बुला रहे थे उस महिला की (यानी मेरी) चूची दबा रहे हैं। वह अपनी हथेली से मेरी चूची की गोलाई और सुडौलता को महसूस कर रहे थे और खुलेआम ऐसा करना मुझे बहुत इतना अश्लील महसूस हो रहा था। गुरुजी इस परिस्थिति का अनुचित और पूरा लाभ उठा रहे थे और मेरे कोमल बदन को महसूस कर रहे थे। लेकिन जल्दी ही गुरुजी ने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और फिर ज़ोर से मंत्र पढ़ते हुए दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर मेरी चूचियों पर घुमाने लगे। अंत में गुरुजी ने मेरी चूचियों को लिंगा के आधार से ऐसे दबाया जैसे उनपर अपनी मोहर लगा रहे हों।

गुरुजी–रश्मि बेटी, अपनी आँखें खोलो। तुम्हारी 'जागरण क्रिया का ये भाग' पूरा हो चुका है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।

मैं: जी गुरूजी और मैंने लिंगा प्रतिरूप मुँह से निकाल लिया ।

गुरु-जी ने मेरे से वह लिंग प्रतिकृति ली जिसे मैं चूस रही थी और उसे मेरे सिर, होंठ, स्तन, कमर और मेरी जाँघों पर छुआ और उसे फूलों से सजाए गए सिंहासन जैसी संरचना पर रखा। उन्होंने कुछ संस्कृत मंत्रों के उच्चारण की शुरुआत की और इसे वहाँ रखने के लिए एक छोटी पूजा की। लिंग स्थापना की पूजा के दौरान हम सब प्रार्थना के रूप में हाथ जोड़कर प्रतीक्षा कर रहे थे।

गुरुजी—रश्मि बेटी, अब तुम्हे साक्षात लिंग पूजा करनी है । ठीक है, अब मैं शुरू करता हूँ। " लिंगम पूजा की रस्म शुरू करने के लिए तैयार होते ही गुरूजी स्टूल पर बैठ गए।

ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी और उलझन भरा चेहरा बनाकर गुरुजी को देख रही थी। स्वाभाविक था। मैं हैरान थी।

गुरूजी: रश्मि अब तुम बैठ जाओ और जिस प्रकार तुमने लिंगा के प्रतिरूप की पूजा की थी उसी प्रकार अब साक्षात लिंग की पूजा करनी होगी और फिर लिंग को वैसे ही जागृत करना होगा जैसे मैंने योनि को जागृत किया है और साथ-साथ इस पुस्तक से मन्त्र पढ़ कर राजकमल बोलता रहेगा तुम उन्ही दोहराती रहना ।

मैंने अपनी आँखें फर्श की ओर गिरा दी और गुरु-जी के अगले निर्देश की प्रतीक्षा करने लगी।

गुरु-जी: रश्मि! अब आप लिंग पूजा करेंगे। आप मन में ॐ नमः लिंग देव मन्त्र का जाप करते रहना

तब गुरुजी ने मुझे लिंग पूजा की पूजा संक्षेप में विधि समझाई । मैंने देखा गुरूजी की धोती में उनका लंड खड़ा हो गया था । पूजा विधि के अनुसार, सबसे पहले गुरुजू के लिंग का अभिषेक विभिन्न सामग्रियों से करना है अभिषेक के लिए दूध, गुलाब जल, चंदन का पेस्ट, दही, शहद, घी, चीनी और पानी का आमतौर पर उपयोग किया जाता है।

अब गुरुजी ने अपनी धोती उतार कर फ़र्श पर फेंक दी जो मेरे पास आकर गिरी। उस नारंगी रंग की धोती में मुझे कुछ गीले धब्बे दिखे जो की गुरुजी के प्री-कम के थे। उन्होंने नीचे कोई लंगोट या कच्चा भी नहीं पहना हुआ था उनके तने हुए मूसल लंड की मोटाई देखकर मेरी सांस रुक गयी।

हे भगवान! कितना मोटा है! ये तो लंड नहीं मूसल है मूसल! मैंने मन ही मन कहा। मैं बेहोश होने से बची क्योंकि मुझे एहसास था कि गुरूजी का लंड बड़ा है। मैं सोचने लगी की गुरुजी की कोई पत्नी नहीं है वरना वह हर रात को इस मस्त लंड से मज़े लेती। मैं गुरुजी के लंड से नज़रें नहीं हटा पा रही थी, इतना बड़ा और मोटा था, कम से कम 8—9 इंच लंबा होगा। आश्रम आने से पहले मैंने सिर्फ़ अपने पति का तना हुआ लंड देखा था और यहाँ आने के बाद मैंने दो तीन लंड देखे और महसूस किए थे लेकिन उन सबमें गुरुजी का लिंग ही सबसे बढ़िया था। शादीशुदा औरत जो की कई बार लंड ले चुकी है, वह ही ये जान सकती है इस मूसल जैसे लंड के क्या मायने हैं। गुरुजी के लंड को देखकर मैं स्वतः ही अपने सूख चुके होठों में जीभ फिराने लगी, लेकिन जब मुझे ध्यान आया की मैं कहाँ हूँ तो मुझे अपनी बेशर्मी पर मुझे बहुत शरम आई. मुझे डर लगा कि गुरूजी का ऐसा तगड़ा और बड़ा लिंग तो योनि फाड़ ही डालेगा।

अब गुरुजी ने अपनी टाँगे फैला दीं । मेरे साथ-साथ गुरूजी के शिष्य भी गुरूजी का लंड देख चकित थे ।

उनके लिंग के नीचे एक कटोरा रखा था ।

गुरुजी–देर मत करो। यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए. राजकमल मन्त्र बोलो!

राजकमल मन्त्र बोलता रहा और मैं वैसे-वैसे करती रही

पहले पूजा में मैंने जल अभिषेक, फिर गुलाब जल अभिषेक, फिर दूध अभिषेक के बाद दही अभिषेक, फिर घी अभिषेक और शहद अभिषेक अन्य सामग्री के अलावा अंतिम अभिषेक मिश्रित पदार्थ से किया।

सभी पदरथ गुरूजी के लिंग से बाह कर उस कटोइरे में एकत्रित हो गए ।

अभिषेक की रस्म के बाद, गुरूजी के लिंग को बिल्वपत्र की माला से सजाया गया। ऐसा माना जाता है कि बिल्वपत्र लिंग महाराज को ठंडा करता है।

उसके बाद लिंग पर चंदन या कुमकुम लगाया तो मैंने लिंग पर हाथ लगाया । गुरूजी का लिंग मेरे हाथ की उंगलियों में पूरा नहीं आ रहा था।

जिसके बाद दीपक और धूप जलाई। लिंग को सुशोभित करने के लिए उपयोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं में मदार का फूल चढ़ाया गया जो बहुत नशीला होता है और फिर, विभूति लगायी गयी विभूति जिसे भस्म भी कहा जाता है। विभूति पवित्र राख है जिसे सूखे गाय के गोबर से बनायीं गयी थी।

पूजा काल में गुरु जी और उनके शिष्य अन्य मंत्रो के साथ ॐ नमः लिंग देव मंत्र का जाप करते रहे।

गुरु-जी: ग्रेट बेटी! अब हम मुख्य पूजा शुरू करेंगे। प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ो। ध्यान केंद्रित करना।

फिर जैसे ही उदय ने आग में कुछ फेंका, मैंने सिर हिलाया और आग और तेज होने लगी। पिन ड्रॉप साइलेंस था। उच्च रोशनी के साथ यज्ञ अग्नि अब पूरे कमरे में और प्रत्येक के चेहरे पर एक अजीब चमक प्रदान कर रही थी।

संजीव: हे लिंग महाराज, कृपया इस अंतिम प्रार्थना को स्वीकार करें और इस महिला को वह दें जो वह चाहती है! जय लिंग महाराज! बेटी, अब से वही दोहराना जो मैं कह रहा हूँ।

कुछ क्षण के लिए फिर सन्नाटा छा गया। मैं थोड़ा कांप रही थी और गुरूजी के बड़े लिंग के आकार के कारण मुझे एक अनजाना डर महसूस हो रहा था।

संजीव: हे लिंग महाराज!

मैं: हे लिंग महाराज!

संजीव: मैं स्वयं को आपको अर्पित करता हूँ...

मैं: मैं खुद को आपको पेश करती हूँ ...

संजीव: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी योनि...तुम्हें सब कुछ।समर्पित करता हूँ ।

मैं: मेरा मन, मेरा शरीर, मेरी यो... योनि... आपको सब कुछ...समर्पित करती हूँ ।

संजीव: हे लिंग महाराज! कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उर्वर बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

मैं: हे लिंग महाराज कृपया इस योनि पूजा को स्वीकार करें और मुझे उपजाऊ बनाएँ और मेरे गर्भ को एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद दें...

संजीव: मैं, रश्मि सिंह पत्नी अनिल सिंह, इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए आपके सामने आत्मसमर्पण कर रहा हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

मैं: मैं, अनीता सिंह, अनिल सिंह की पत्नी-इस प्रकार आपके पवित्र आशीर्वाद के लिए खुद को आपके सामने आत्मसमर्पण कर रही हूँ। कृपया मुझे निराश न करें। जय लिंग महाराज!

उदय: मैडम अब आप लिंग को जागृत करो ।

मैं अभी भी फर्श पर घुटनों के बल थी, मैं समझ गयी और तब तक आगे बढ़ी जब तक कि मेरे घुटने लगभग स्टूल को छू नहीं गए। यह एक अविश्वसनीय अहसास था, गुरूजी की टांगो के बीच वहाँ बैठे हुए मैं उनके बीच बैठी थी, मेरा मुँह गुरूजी के बड़े कठोर लंड से मात्र इंच भर दूर था। उदय ने मुझे गर्म दूध का गिलास दिया और मैंने उसमें अपनी उँगलियाँ डुबोईं, फिर उन्हें गुरूजी के स्तंभित लिंग की नोक के ठीक ऊपर रखा। गुरूजी के बैंगनी लंडमुंड पर टपकने देने से पहले मैंने ने दूध की धाराओं को निर्देशित करने के लिए अपनी उंगलियों को मोड़ा। फिर मैंने इसे कुछ बार दोहराया, अपनी सांसों के नीचे अश्रव्य प्रार्थनाओं को फुसफुसाते हुए।

मैंने पांच बार ऐसा किया और फिर हाथों को नीचे किया और उन्हें लंड की लम्बाई के चारों ओर लपेट दिया और आगे हो होकर लिंग को चूमा और फिर आगे होकर लिंग पर अपने स्तनों और चुचकों को चुमाया, उसके बाद लिंग पर अपनी नाभि लगाई और उसके बाद अपनी घुटनो पर खड़ी हो योनि और फिर जांघो को लिंग पर लगाया और फिर घूम कर लिंग अपनी नितम्बो और फिर गांड को लिंग पर लगाया और गुरूजी के गोद में पीठ कर बैठ गयी । मेरी इस हरकत से गुरूजी का लिंग जो अभीतक आधा खड़ा था अब पूरा कठोर हो गया ।

ये बिलकुल लैप डांस जैसा था । जिसमे नाचने वाली अपने बदन की लिंग से धीरे-धीरे छुआ कर उत्तेजित करती है । मैं वैसे ही अपनी गांड और पूरा बदन हिला कर अलट कर पलट कर गुरूजी के साथ चिपक रही थी । अपने बदन अपने स्तन, अपनी गांड, अपनी योनि को उनके बदन, लिंग पर मसल और रगड़ रही थी। रंडीपैन की कोई सीमा ऐसी नहीं थी जिसे मैंने पार नहीं किया था । मुझे शर्म तो बहुत आ रही थी परन्तु मेरी स्थिति ऐसी थीऔर मैं इसमें इतना आगे आ चुकी थी की मेरे पास अब कोई विकल्प नहीं था ।

मेरी योनि पूरी गीली हो गयी थी और मेरे चूचक तन गए थे । स्वाभिक तौर पर मैं भी अब उत्तेजित थी ।और फिर जब मुझे लगा गुरूजी का लिंग पूरी तरह से कठोर है मैं घूमी एक तेज़ गति में मैंने अपना सिरउनके लिंग पर गिरा दिया और मेरा गर्म मुँह गुरूजी के लंड के धड़कते लंडमुंड को ढँक रहा है।

गुरु जी भी अपना नियंत्रण खो बैठे थे और जोर से हांफने लगे क्योंकि गुरूजी के लिंग के चारों ओर उन्हें मेरे कोमल मखमली होंठों की रमणीय अनुभूति हुई। मैंने कई बार बेकाबू होकर सफलतापूर्वक उनके पूरे लिंग को अपने मुँह में दबा लिया। धीरे से उनके लिंग को चूसना शुरू कर दिया। राजकमल के मन्त्र उच्चारण समाप्त हो गया ।

गुरूजी: जय लिंगा महाराज!

मैं समझ गयी अब मेरे पास एक मिनट का समय और है और अपनी एक हाथ की उंगलियों के साथ लंड के शाफ्ट के चारों लपेट लिया और मुँह ऊपर और नीचे पंप करने लगी, जबकि उसके दूसरे हाथ ने गुरूजी के नडकोषो को सहलाया और उनकी मालिश की। मैंने अपने मुँह का गुरूजी के लंड पर कुशलता से इस्तेमाल किया, सिर को निगल लिया और लयबद्ध गतियों में उसे मुँह से अंदर और बाहर पंप किया।

मुझे लगता है कि गुरूजी उस समय सातवें आसमान पर थे और मैं खुश थी की आखिरकार मैंने गुरजी के लिंग को जागृत कर दिया है और उसे चूस लिया है, यह एक अद्भुत अनुभव था।

गुरूजी: जय लिंगा महाराज!

गुरूजी: "लिंगम जीवन के बीज पैदा करता है, सभी जीवन शक्ति का स्रोत।" उसने मेरी ओर देखे बिना कहा, गुरूजी अभी भी अपने लंड को सहला रहे थे। गुरूजी के लंड पर लगे पदार्थ का स्वाद मेरे मुँह में था जो द्रव्य से मिलता जुलता था और मुझे अच्छा लग रहा था । और मेरी आँखे शर्म और आननद से बंद हो गयी थी ।

गुरुजी–रश्मि तुम्हे बहुत बढ़िया किया केवल बढ़िया नहीं बल्कि आजतक यहाँ जितनी भी महिलाये आयी हैं उनसे बेहतर किया, अपनी आँखें खोलो। 'जागरण क्रिया' पूरी हो चुकी है। अपने मुँह से लिंगा निकाल लो।

मैं वहीं हांफते हुए बैठ गयी और लिंग को मुँह से निकला लिया । मैंने देखा गुरूजी अब अपने लिंग पर हाथ फिरा रहे थे। मैंने एक बार ऊपर देखा, एक चुटीली मुस्कराहट गुरूजी की चेहरे पर थी ।

कहानी जारी रहेगी​
Next page: Update 80
Previous page: Update 78
Previous article in the series 'आश्रम के गुरुजी': आश्रम के गुरुजी - 06