Update 81

औलाद की चाह

CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

स्तनपान

इससे पहले कि मैं गद्दे पर लेटती, मैंने उत्सुकता से कुछ और चरणामृत पी लिया, क्योंकि मुझे काफी प्यास लग रही थी, यह बिल्कुल नहीं जानते हुए कि यह केवल मेरी यौन इच्छा को तेज करेगा। संजीव मेरे पास आया और मेरे घाघरे को एक हाथ से पकड़ लिया और मेरी जांघों को कपड़े से पोंछ दिया, क्योंकि वे मेरे योनि रस से चिपचिपे हो गए थे। उसने इसे इतने आकस्मिक दृष्टिकोण के साथ किया कि मैं दंग रह गया क्योंकि मैं पूरी तरह से उंगली की चुदाई के बाद सांस लेने के लिए हांफने लगा। मुझे बिल्कुल अपने बचपन के दिनों की तरह महसूस हुआ जब मैं पहली या दूसरी कक्षा में जूनियर कॉलेज में थी और अपनी कॉलेज की वर्दी में पेशाब कर चुकी थी और चौथी कक्षा का कर्मचारी मुझे मेरी स्कर्ट खींच कर साफ कर रहा था!

संजीव ने मेरे चुत के बालों से रस की बूंदों को भी पोंछा! मैं बेशर्मी का सबसे बड़ा विज्ञापन दिखा रही थी क्योंकि यहाँ मैं एक भरे-पूरे शरीर वाली शर्मीली महिला जो शादीशुदा थी, 30+ थी और अब उस गद्दे पर लगभग नग्न लेटी हुई थी और मेरी बालों वाली चुत पूरी तरह से खुली हुई थी!

गुरु जी: धन्यवाद संजीव।

कुछ मिनटों के बाद, गुरूजी ने घोषणा की

गुरु-जी:-रश्मि अब तुम आलथी पालथी मार कर बैठ जाओ । बच्चो को स्तनपान करवाओ . इससे तुम्हे स्तनपान करवाने का अनुभव मिलेगा जिससे तुम्हे अपने बच्चो को स्तनपान और दूध पिलाने में आसानी रहेगी ।-अब माँ योनी के स्तन नग्न है। वह माँ है। वह अपने स्तनों से मनुष्यों का पोषण करती है। वैसे ही अब माँ हम सबका पालन पोषण करेगी। "

इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती कि क्या हो रहा है...

गुरूजी:-आओ मेरे शिष्यों ... जैसे एक माँ अपने बच्चे को दूध पिलाती है और उसका पालन पोषण करती है। तुम सभी योनि से उत्पन्न हुए हो। योनि माँ तुम्हारी माँ है। ...आओ ...स्तनपान करो आओ माँ के स्तनों को चूसो।

मैंआश्चर्यचकित थी। अभी तो मेरे कोई बच्चा नहीं हुआ है मेरे स्तनों में दूध नहीं उतरा है मैं कैसे स्तनपान करवा सकती हूँ।

सबसे पहले राजकमल मेरी गोद में लेट गया। बौना निर्मल दूध का बर्तन और गिलास लेकर मेरे पीछे चला गया। धीरे से राजकमल ने अपने सर के पिछले हिस्से को उठा लिया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि उसका मुँह मेरे स्तनों के पास हो। फिर गुरूजी ने कहा,

गुरूजी:-राजकमल अब स्तनपान करो"।

धीरे-धीरे राजकमल ने मेरे बाए स्तन को अपने मुँह में ले लिया और उन्हें चूसने लगा। पीछे से उदय ने दूध से भरे गिलास को मेरे स्तनों पर डाल दिया। दूध धीरे-धीरे स्तनों से टपकने लगा... एरोला में... और फिर राजकमल के मुंह में। गुरजी कुछ मंत्रो का उच्चारण कर रहे थे ।

इसी तरह मैंने गुरूजी के चारो शिष्यों को मैंने स्तनपान कराया... राजकमल ने दाए स्तन से दूध पिया

मैं: उउ...आआहह!

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

और फिर उदय ने बाए स्तन से दूध पिया और उसके बाद संजीव ने दाए स्तन से दूध पिया और मैं अब बहुत उत्तेजित हो गयी थी और मेरी चूचिया सूज गयी थी और मेरे स्तन अब कड़े हो गए थे । स्तनपान ने मेरे अंदर की कामुकता को और बढ़ा दिया। संजीव के बाद बौने निर्मल ने मेरे बाए स्तन से दूध पिया तो उसने मेरे स्तन पर काटा तो मैं चिल्ला पड़ी

रश्मी:-आअह्ह्ह्ह क्या कर रहे हो निर्मल?

तो गुरूजी उसकी शरारत भांप गये और उसे डांटा । तो वह मेरे स्तन चूसने लगा ।

गुरूजी:-निर्मल! शरारत नहीं, चुपचाप स्तनपान करो वरना माँ योनी की नाराजगी तुम्हे झेलनी होगी।

निर्मल:-क्षमा कीजिये गुरूजी! और वह मेरे स्तन चूसने लगा ।

मैं: आह

गुरूजी:-निर्मल क्षमा मुझसे नहीं रश्मि जो इस समय योनि माँ अहइँ उनसे मांगो । बेटी रश्मि निर्मल कद के साथ-साथ आयु में भी सबसे छोटा होने के कारण थोड़ा नटखट है इसे क्षमा कर दो ।

निर्मल:-माँ योनि मुझे क्षमा कर दो!

मैं अपने होठों को अपने दांतों से भींच रही थी और परमानंद में लगभग कांप रही थी। मैं कुछ बोलती उससे पहले ही गुरूजी ने मन्त्र उच्चारण किया

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

फिर संजीव हाथ जोड़ कर बोला

संजीव:-गुरूजी अब आप स्तनपान कर माँ योनि का आशीर्वाद प्राप्त कीजिये "।

गुरूजी मेरी गोद में लेट गए अब मैंने उनका सर एक बच्चे की तरह लिया। धीरे से मैंने उनके सिर के पिछले हिस्से को उठाया और अपने स्तनों के पास ले गई। गुरूजी का मुंह मेरे स्तनों के पास आ गया और धीरे-धीरे गुरूजी ने मेरे स्तन अपने मुँह में ले लिए...... वाह...स्वर्गीय अनुभूति...धीरे-धीरे गुरूजी ने स्तन को चुसना और चबाना शुरू किया। जैसे ही गुरूजी मेरे स्तन चूसना शुरू किया। पीछे से उदय ने दूध से भरे गिलास को मेरे स्तनों पर डाल दिया। दूध धीरे-धीरे स्तनों से टपकने लगा... एरोला में... और फिर गुरूजी के मुंह में। मेरी योनि लगातार रस भ रही थी और मैंने देखा गुरूजी का लंड बिलकुल कड़ा ही खड़ा हो गया था । जैसे ही उदय ने दूध डाला... यह मेरे स्तनों से गुरूजी के मुंह, चेहरे पर टपकने लगा। वास्तव में, केवल मेरे निप्पल ही नहीं, एरोला। और गुरूजी ने मेरे स्तनों को का एक हिस्सा भी अपने मुंह में डाल लिया।

मैंने आगे की ओर झुक कर अपना स्तन गुरूजी के मुँह में भर दिया और गुरुजी ने मेरा निप्पल चुमनाऔर चूसना शुरू कर दिया। मेरे पास कराहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था राजकमल मंत्रो का उच्चारण कर रहा था ।

मैं:-हम्म... नहीं... हम्म... आह ओह्ह्ह ... हममम...

गिलास का दूध खत्म हो गया और उसी के साथ राजकमल ने मन्त्र बोला

राजकमल:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

गुरूजी ने स्तनपान बंद किया और खड़े होकर बोले ।

गुरु जी: धन्यवाद राजकमल।

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!" हे माँ योनि! जिस प्रकार आपने हमे अपना स्तनपान करवाया है उसी प्रकार रश्मि को भी अपने संतान को स्तनपान करवाने का सुअवसर देने के लिए उसकी संतान की इच्छा पूर्ण कीजिये ।

गुरुजी:- शिष्यों वह देवी योनी हैं… लेकिन वही रश्मि इस पूजा की मुख्य यजमान भी हैं और हमे उन्हें भी दुग्ध पान करवाना हैं ताकि उन्हें भी माँ योनि की पूरी कृपा मिले।

मैं चौंक गई थी ... शर्मिंदा थी ... "ओह माई ... ओह माय .... मैं खुद कैसे करुँगी कैसे पाने स्तनों से स्तनपान करुँगी .. नहीं गुरूजी .... मैं नहीं कर सकती ... .. ” … इससे पहले कि मैं अपनी बात पूरी कर पाती गुरूजी ने मुझसे कहा ... ।

गुरूजी :- रश्मि अब आप लेट जाओ और अब शिष्यों अब आप उन्हें मलाई खिलाएं और भोग लगाएं।

अब चारो शिष्य मेरे बदन पर लगे दूध को चाटने लगे और मेरे बदन पर लगे दूध और मलाई को चाट-चाट कर मेरे ओंठो पर अपने, मुँह से मुझे मलाई खिलाने लगे । कोई मेरे नीपल चाट रहा था तो कोई मेरे स्तन चूस रहा था और कोई मेरी नाभि और कोई मेरी योनि चाट और चूस रहा था और वहाँ पर लगा दूध और पञ्चमृत का भोग अपने मुँह में इकठ्ठा लकर मुझे मेरे ओंठो पर ओंठ लगा कर मुझे खिला कर भोग लगा रहे थे। इस कामुक हमले से मेरी हालत बहुत कामुक हो गयी थी ।

चार लोग अगर बदन एक साथ चूम और चूस रहे हो तो मेरी क्या हालत होगी इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।

मैं मजे से आअह्ह्ह! आअह्ह्ह! कर रही थी और मेरी कमर और चूतड़ उचक रहे थे।

इस कामुक चटाई से मेरी कामोतेजना और बढ़ गयी और मेरी योनि से लगातार रस बह रहा था । मुझे उस समय मेरे पति ने मेरी जो सुहागरात पर चटाई की थी वह याद आ रही थी जब मेरे पति में मेरा पूरा बदन चाट डाला था ।

फिर जल्द ही मेरा पूरा बदन एक बार अकड़-सा गया और फिर उसमें अत्यंत आनन्ददायक झटके से आने लगे। पहले 2-3 तेज़ और फिर न जाने कितने सारे हल्के झटकों से मैं सिहर गई।

मेरी योनि में कोलाहल हुआ और चूत रस की कुछ बूंदे बाहर छलक गयी और उस समय उदय मेरी योनि चाट रहा था और उसने प्यार से अपना हाथ मेरी पीठ और स्तनों पर कुछ देर तक फिराया।

उस समय राजकमल मेरे ओंठो पर मलाई चटा रहा था उसने मेरे ओंठो पर ओंठ रख कर अपनी जीभ के ज़ोर से पहले मेरे ओंठ और फिर दांत खोले और अपनी जीभ को मेरे मुँह में घुसा दिया। फिर जीभ को दायें-बाएँ और ऊपर नीचे करके मेरे मुँह के रस को चूसने लगा और अपनी जीभ से मेरे मुँह का अंदर से मुआयना करने लगा। उसी समय निर्मल मेरे स्तन चूस रहा था और साथ ही उसने अपना हाथ से मेरे स्तनों को दबा रहा था और संजीव मेरी नाभि चाट रहा था और मेरे पेट पर दोबारा से हाथ घुमाना चालू कर दिया। कुछ देर राजकमल ने अपनी जीभ से मेरे मुँह में खेलने के बाद मैंने उसकी जीभ अपने मुँह में ले ली और उसे चूसने लगी।

फिर जब मैंने उसके ओंठो पर लगी मलाई चाट ली तो राजकमल की जगह निर्मल ने ले ली और निर्मल मुझे मेरे स्तनों पर लगी मलाई अपने मुँह में भर कर चटाने लगा । उसने मेरे ओंठो पर ओंठ रख कर अपने मुँह में मलाई का गोला बनाया और अपनी जीभ से उस गोलों को और फिर अपनी जीभ को मेरे मुँह में घुसा दिया।

फिर जब मैंने निर्मल के ओंठो पर लगी मलाई चाट ली तो निर्मल की जगह संजीव ने ले ली और संजीव मुझे मेरे पेट और नाभि पर लगी मलाई अपने मुँह में भर कर चटाने लगा । उसने मेरे ओंठो पर ओंठ रख कर अपने मुँह में मलाई भर कर उस मलाई को और फिर अपनी जीभ के साथ मेरे मुँह में घुसा दिया और मैं उसकी जीभ चूसने लगी ।

फिर जब मैंने संजीव के ओंठो पर लगी मलाई चाट ली तो संजीव के स्थान पर उदय आ गया और उसने मुझे मेरी योनि और जांघो पर लगी मलाई और मेरा योनि रस अपने मुँह में भर कर मुझे चटाने लगा । उसने मेरे ओंठो पर ओंठ रख कर अपने मुँह में वह मलाई और चुतरस का मिश्रण भर कर मुझे चटाया और फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी और मैं उसका मुँह चाटने और उसकी जीभ चूसने लगी ।

मैं: उउ...आआहह!

इस तरह से जब मेरे बदन पूरा साफ़ हो गया तो गुरूजी ने मन्त्र उच्चारण किया ।

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

एक बार चारो ने मुरा बदन हाथ फिर कर जांचा और अब कही दूध बाकी नहीं था और सबने बारी बार मुझे एक बार चूमा और फिर गुरूजी ने दुबारा मन्त्र उच्चारण किया

गुरूजी:-"ओम ... ह्रीं, क्लीं ... ... नमः!"

मैं बहुत शर्मिंदा महसूस कर रही थी और बोला "सॉरी...सॉरी" ...फिर से गुरूजी बोले

गुरूजी:-ठीक है...बेटी ये स्वाभाविक है। तुमने बहुत अच्छा किया ।

गुरु जी ने मुझे अभी-अभी मिले कामोत्तेजना से उबरने के लिए कुछ समय दिया और फिर से शुरू कर दिया। तब तक मैं गहरी साँसे लेती हुई उस गद्दे पर लेटी रही, मेरी खुली हुई चूत, मेरी पूरी नंगी जांघें और टांगें, मेरी मिनीस्कर्ट मेरे गोल कूल्हों के नीचे थी और मेरे स्तन मेरी स्ट्रैपलेस छोटी चोली से लगभग नीचे गिर रहे थे। गुरु जी आँखे ब्नद कर कुछ "अर्चना" कर रहे थे, जबकि उनके चारों शिष्य लगातार मेरी रसीली जवानी को देख रहे थे! कुछ समय बाद गुरूजी ने आँखे खोली

गुरु जी: बेटी, क्या तुम मेरी बात सुनने की हालत में हो?

मैं अब बहुत शांत और आराम महसूस कर रही थी क्योंकि मेरा रस बह चुका था।

मैं: ये... हाँ गुरु-जी।

मैंने लापरवाही से उत्तर दिया।

गुरु जी: बेटी, अपना ध्यान योनि पूजा के लक्ष्य से मत निकलने दो। इससे आपको फोकस्ड रहने में मदद मिलेगी। जैसा कि मैंने कहा, आपको उस यौन क्रिया का आनंद लेना चाहिए जो आप इसके दौरान प्राप्त होती है। ठीक? क्या आपने इसका आनंद लिया और साथ-साथ मन्त्र उच्चारण करती रहो ।

मैं थोड़ा शर्माते हुए हिचकी

मैं:-ओ... ओके गुरु जी।

मैंने नम्रता से उत्तर दिया।

गुरूजी:-इसमें शरमाने की जरूरत नहीं है इसमें यौन आनद भी मिलेगा और ध्यान भी भटकायेगा पर अगर तुम अपना लक्ष याद रखोगी तो उससे तुम्हे फोकसे रहने में मदद मिलेगी।

मैं:-जी गुरु जी।​
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