Update 87
औलाद की चाह
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
योनि सुगम- गुरूजी के सेक्स ट्रीटमेंट का प्रभाव
गुरु जी मेरे माथे को चूमते हुए गद्दे से उतरे, जबकि मैं उनके शिष्यों के सामने चमकीले पीले प्रकाश में गद्दे पर बिलकुल नग्न लेटी हुई थी।
गुरुजी: संजीव उसे दवा दे दो और बेटी तुम आराम करो मैं पांच मिनट में वापस आऊंगा।
संजीव ने मुझे एक प्याला थमा दिया जिसमें उसने हरे रंग की दवाई डाल दी थी।
तरल पदार्थ का स्वाद बहुत अच्छा था और जैसे ही यह मेरे गले में उतरा इसने मुझे एक शांत प्रभाव के साथ-साथ एक बहुत ही संतोषजनक एहसास दिया। चूंकि मैं अभी भी उस चरणामृत में मिश्रित दवा के प्रभाव से 100% बाहर नहीं आयी थी और साथ ही साथ वह बहुत ही प्रभावशाली चुदाई जो मैंने अभी-अभी गुरु जी के साथ की थी, मैंने अपनी आँखें बंद करना और गद्दे पर थोड़ी देर आराम करना पसंद किया।
मेरे दिमाग में यही विचार घूम रहे थे की कहाँ मेरे शर्मीले स्वाभाव की वजह से लेडी डॉक्टर्स के सामने कपड़े उतारने में भी मुझे शरम आती थी. लेडी डॉक्टर चेक करने के लिए जब मेरी चूचियों, निपल या चूत को छूती थी तो मैं एकदम से गीली हो जाती थी. और मुझे बहुत शरम आती थी. और अब मैं पांच पुरुषो के सामने नंगी थी , उनमे प्रत्येक के साथ लगभग सम्भोग कर चुकी थी . और उन्होंने मेरे हर अंग से साथ खिलवाड़ किया था और मेरा शायद ही कोई अंग ऐसा था जिसे चूमा और चूसा नहीं गया था .
फिर मेरे दिमाग में यही विचार आये की मुझे इससे पहले संभोग किये हुए कितने दिन हो गए, मन बहुत करता है, पर क्या करूँ, जब मेरा पति अनिल मुझे चोदता है तो कितना मजा आता है ... और अगर मैं गर्भवती हो गयी तो फिर तो काफी दिन बिना चुदाई के ही रहना होगा । आह, ओह अरे गुरूजी का वह वो मूसल लिंग.. वाह ! उसको देखने से छूने से ...पकड़ने से ...सहलाने से कितना कामुक लग रहा था ...ओह गुरूजी के लिंग की महक... ऐसा लिंग देखना बहुत किस्मत की बात है और फिर उससे चुदना। वाह! क्या एहसास था जब वह लिंग मेरे अंदर गया था। ...कितना अच्छा लगता था जब उनका लिंग मेरी योनि में समाता था... (ऐसे सोचते ही मेरी योनि में संकुचन हुआ और मैंने अपनी जांघे थोड़ा भींच ली) वाह! लिंगा महाराज! वाह !
मेरे दिमाग और बंद आँखों के सामने गुरूजी का महा लिंग की छवि घूम रही थी । ओह उनके लिंग की-की चमड़ी खोलकर उसके अग्र भाग के छेद को चूमना कितना उत्तेजक था, उत्तेजना में फुले हुए उसके चिकने अग्र भाग को मुंह में लेकर चूसने में कितना आनंद आया था, गुरूजी के पूरे लिंग को धीरे-धीरे सहलाना, चाटना, उसे अपने होंठों से प्यार कर-कर के योनि के लिए तैयार करना ।कितना आनंदमय और उत्तेजक था।
काश मेरे पति का लिंग गुरूजी के लिंग जैसा होता ।काश मेरे जीवन में सदैव के लिए गुरूजी का लिंग होता, काश वह मुझे बाहों में भरकर रात भर प्यार करते, बार-बार करते, हर रात करते । काश मेरी योनि को वह बार छूते ...सहलाते ...चूमते ... उफ़ उनकी वह जादुई उंगलिया । मेरे जीवन में मेरा पति नेल हालाँकि मुझे बहुत प्यार करता था और हम दोनों ने शादी के बाद लगातार कई दिन सिर्फ चुदाई ही की थी । । लेकिन फिर धीर धीरे सबकी तरह हमारा सम्भोग पहले हर रात में हुआ, फिर एक दिन छोड़ कर । फिर सप्ताहंत के दिनों में, फिर कभी-कभी । महीने में दो तीन बार । फिर सिर्फ बच्चे पाने के लिए सेक्स सिमित रह गया ... अब अनिल और मेरे संबंधों में भी खटास आने लगी थी. अनिल के साथ सेक्स करने में भी अब कोई मज़ा नही रह गया था , ऐसा लगता था जैसे बच्चा प्राप्त करने के लिए हम ज़बरदस्ती ये काम कर रहे हों. सेक्स का आनंद उठाने की बजाय यही चिंता लगी रहती थी की अबकी बार मुझे गर्भ ठहरेगा या नही.
क्यों और कब मेरा सेक्स जीवन इतना नीरस हो गया है? मेरा क्या दोष है? ...क्यों मैं धीरे-धीरे इस सुख से वंचित होती गयी ।
गुरूजी कहते हैं लिंग और योनि का कोई रिश्ता नहीं होता...तो क्या...तो क्या...मैं किसी भी पुरुष से सम्भोग कर लू? ...उफ्फ्फ... नहीं मैं एक परिवार की बहु हूँ मैं ऐसा नहीं कर सकती! ओह! गुरूजी का ...लिं...ग...ग...ग।गगगग... मेरे पति का लिंग! ओह! इतना बढ़िया और लम्बा सम्भोग गुरूजी के मुसल लंग के साथ मेरा मन कर रहा था अब मैं बार-बार वही सुख प्राप्त करूँ ।
मैं न चाहते हुए भी आज जो कुछ भी मैंने किया उसके बारे में सोचने के लिए विवश हो गयी थी। आज जीवन में पहली बार व्यभिचार के सागर में मैं उत्तर गयी थी । मेरा बदन कांप गया, एक तो सामने यज्ञ कुंड में अग्नि धधक रही थी वातावरण वैसे ही गरम हो चुका था और मेरे अंदर की कामाग्नि अभी भी सुलग रही थी । अब गुरूजी के साथ सम्भोग के बाद वह कैसे थमेगी ये मेरी समझ से बाहर था । क्या ये पाप था?
मेरे दिमाग में कुछ शब्द गूंजने लगे मानो गुरूजी कह रहे हो ।
जय लिंगा महाराज!
गुरूजी-रश्मि बेटी! पाप और पुण्य दोनों का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि। पूरी सृष्टि, स्त्री और पुरुष की रचना लिंग देव और योनि माँ ने ही की है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो लिंगा महाराज! की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जन मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, लिंग देव और माँ के आगे इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियाँ भी कोई चीज़ है बेटी! इंद्रियाँ भी लिंग देव के द्वारा ही बनाई हुई हैं, नियम भी उन्ही के बनाये हुए हैं और उनके उपाए भी उन्होंने ही बनाये हैं । ध्यान से सोचो तो सब लिंगा महाराज! की बनाई हुई माया है बस, रचा सब लिंगा महाराज! ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।
मैं पसीने-पसीने हो गयी, बार-बार आँख बंद करके फिर से उस अनैतिक संभोग की कल्पना करती जिससे मेरा बदन बार-बार सनसना जाता, बेचैन होकर मैं कभी इधर उधर देखने लगी, एकाध बार तो मैंने चुपके से अपनी दायीं चूची को खुद ही मसल लिया, और जांघों को मैं रह-रह कर सिकोड़ रही थी, कभी मैं गुरूजी के चुंबन के बारे में सोच कर, तो कभी उनके शिष्यों ने मेरे साथ जो मन्त्र दान में मेरे अंगो का मर्दन किया था वह सोच का लजा जाती और मैंने शर्माकर आँख बंद कर ली, रह-रह कर चुदाई की कल्पना से मेरा मन सिहर उठता, (इस हालत में सांसों की धौकनी बन जाना लाज़मी था)
बस गुरूजी के साथ सम्भोग की मैंने कल्पना की, मेरी कल्पना में गुरूजी ने बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही मेरी नज़र गुरूजी के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस आसान पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और मुझे लगा जैसे-जैसे मैं लेटती गयी गुरूजी प्यार से मुझे चूमते हुए मुझ पर चढ़ गए, "आह गुरूजी और ओह बेटी" की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और गुरूजी का कठोर लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। गुरूजी का लन्ड मेरी प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर मेरी योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल गयी।
ओओओहहहह... गुरूजी ...आआ आहहहह...अम्मममा
बस मैंने मन में गुरूजी के साथ सम्भोग की कल्पना की और वो सब दोहराया जो उन्होंने मेरे साथ किया था , मेरी कल्पना में गुरूजी ने बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही मेरी नज़र गुरूजी के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस आसान पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और मुझे लगा जैसे-जैसे मैं लेटती गयी गुरूजी प्यार से मुझे चूमते हुए मुझ पर चढ़ गए, "आह गुरूजी और ओह बेटी" की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और गुरूजी का कठोर लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। गुरूजी का लन्ड मेरी प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर मेरी योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक हलकी सी सिसकारी निकल गयी।
ओओओहहहह... गुरूजी ...आआ आहहहह...अम्मममा
ईमानदारी से कहूं तो मैं उत्तेजित हो गुरू जी की चुदाई की अद्भुत शांत और लंबी शैली को मानसिक तौर पर दोहरा कर मजे ले रही थी ।
तभी मैंने आँखे खोल कर देखा तो गुरूजी के चारो शिष्य अपना कड़ा लिंग हाथ में पकड़ कर उसे सहला रहे थे और मुझे घूर रहे थे . मुझे अब शर्म लगी और मैं आँखे बंद कर लेती रही . वो चारो आपस में कुछ बात करने लगे .
संजीव: चलो इस तरफ चलते हैं ताकि मैडम को कोई परेशानी न हों।
मैं अपनी आँखें खोले बिना महसूस कर सकती थी कि संजीव और अन्य लोग पूजाघर के दरवाजे की ओर चले गए। मैं काफी सचित थी हालाँकि मुझे नींद आ रही थी । मैं अभी भी पूरी तरह से नंगी थी - कमरे की तेज रोशनी में मेरी चुत, जांघें, पेट, नाभि, स्तन सब कुछ खुल का दिख रहा था । ऐसा नहीं है कि मुझे इसके बारे में पता नहीं था, लेकिन गुरु जी की चुदाई का प्रभाव इतना मंत्रमुग्ध कर देने वाला था कि मैं अपनी नग्नता के बारे में भूल गयी और आराम करने और मैंने उन सुखद क्षणों को फिर से महसूस करना पसंद किया।
संजीव, उदय, निर्मल और राजकमल आपस में धीमे स्वर में गपशप कर रहे थे और उनकी बातचीत का सारा अंश मुझ तक भी नहीं पहुँच रहा था। वास्तव में शुरू में मैंने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जैसे ही मैंने कुछ मुहावरों को सुना, मैं स्वतः ही उन्हें सुनने के लिए इच्छुक हो गयी ।
निर्मल: तुम क्या सोचते हो? ये मैडम इतनी खूबसूरत दिखती हैं, इन्हें बच्चा ना होने की दिक्कत कैसे हो सकती है?
संजीव: शायद मैडम को समस्या नहीं है। लगता है कि उनके पति को उनकी क्षमता से समस्या है।
उदय: निश्चित रूप से, उसकी योनि में एक किशोरी की जकड़न है!
संजीव: क्या रे! हाल के दिनों में आपने किस किशोरी का स्वाद चखा मेरे प्रिय उदय ?
उदय: हा हा... नहीं, मैं तो बस कह रहा हूं...गुरूजी कह रहे थे न बहुत टाइट है ! सच! और फिर यह इतना लंबा हो गया है कि मैंने एक आरसे से किसी किशोरी की चुदाई नहीं की है!
संजीव : उसकी इच्छा देखिए! साला… स्वीट सोलह की किशोरी ! बाबू ढूंढते रह जाओगे!
राजकमल : क्यों? क्या आप सब उस आशा को भूल गए हैं?
संजीव : ओह! मैं उसे कैसे भूल सकता हूँ! क्या माल थी यार! काश! हममें से कोई भी उसे चोद नहीं सका था!
राजकमल : सच कह रहे हो ! लेकिन मैं अभी भी कभी कभी उसके छोटे बालों वाली चुत और तंग सेब और उस हस्तमैथुन की कल्पना करता हूं।
निर्मल: काश आशा भविष्य में फिर से किसी भी समस्या के लिए यहां आए… हे हे …
उदय : फिर भी ! हमें खुश होना चाहिए कि हम उस सेक्सी माल को पूरी तरह नंगी देख पाए।
राजकमल : उउउउउउह! उसके दोस्स्ढ़ वाह क्या दूध थे उसके !
उदय: पियो गिलास भर गया हैं ! हा हा हा…
राजकमल: काश मैं उसे चोद पाता और निश्चित रूप से वह मेरी उम्र के कारण मुझे पसंद करती।
संजीव : हुह! अपनी उम्र का ख्याल करो और खुश रहो! साला!
निर्मल: लेकिन दोस्तों, यह मैडम भी बड़ी आकर्षक भी है क्योंकि वह परिपक्व है और शादीशुदा भी है।
संजीव : उह! हाँ, मैं मानता हूँ! इतनी चुदाई के बाद भी, मैं साली के स्तनों की जकड़न को देखकर चकित रह जाता हूँ!
निर्मल : उउउउह! हाँ, उसके स्तन रबर-टाइट हैं क्या आपने उसके निप्पलों पर ध्यान दिया! उह... हमेशा ध्यान मुद्रा में! हा हा हा…
संजीव: अगर मैं उसका पति होता तो सारी रात उन्हें चूसता!
राजकमल : निमल भैया ! तुम्हारे कद के साथ तुम उस के दिवास्वप्न ही देख सकते हो!
हा हा हा... ठहाकों की गड़गड़ाहट हुई।
निर्मल : चुप रहो ! क्यों? क्या प्रिया मैडम ने सबके सामने नहीं बताया कि वो मुझसे प्यार करती हैं...
संजीव: नाटे के पार्टी नाटी का प्यार...
निर्मल: भाई प्लीज ! उसे "नाटी" मत कहो!
हा हा हा… फिर हंसी का ठहाका लगा।
उदय: लेकिन यार संजीव, तुम कुछ भी कहो, प्रिया मैडम ने हमारे निर्मल को बहुत भोग लगाया।
संजीव : भोग ! एक दिन ये उसके साथ नहाया इस मदर चौद ने बहुत मजे लिए !
उदय : साला ! क्या तुम उसके पति को भूल गए हो! एक शुद्ध अंडरटेकर! क्या उसे पता है कि हमारे निर्मल ने नहाते समय उसकी बीवी का पीठ धो दिया था...
राजकमल : उसे पता चलेगा तो वो हमारे निर्मल भैया को तो निगल ही लेंगा ! हा हा हा..
निर्मल : चुप करो सालो ! शौचालय में उसके साथ मैंने ही प्रवेश किया था !
संजीव : श्रेय! उ-उ-ह! लगता है तुम उस कुतिया का थप्पड़ भूल गये हो ... क्या... क्या नाम था उसका...?
राजकमल : संध्या मैडम! संध्या मैडम!
संजीव : हां, हां। क्यों? मिस्टर निर्मल? क्या आप इसे भूल गए हैं?
निर्मल : हुह! वह महज एक दुर्घटना थी।
राजकमल : ओह! दुर्घटना! मुझे अब भी याद है। सेटिंग लगभग ऐसी ही थी। गुरु जी ने बस उस कुतिया की चुदाई पूरी की थी। फिर कुछ समस्या हुई और इसलिए अगले दिन जन दर्शन निर्धारित किया गया। हम सब उसे गुड नाईट कहते हैं, लेकिन ये चोदू ..
उदय: अरे... रुको ना... ए निर्मल, एक बार और बताओ... उस दिन क्या हुआ था।
निर्मल : हुह! लेकिन यह मेरी गलती नहीं थी...
संजीव: ठीक है, ठीक है, तुम्हारी गलती नहीं थी। लेकिन फिर से बताओ ।
निर्मल: जब मैं उसके कमरे में गया और तुम सब मेरा इंतजार कर रहे थे। सही? अंदर घुसा तो देखा संध्या मैडम आईने के सामने खड़ी थी। मैंने सोचा कि वह अपने बालों में कंघी कर रही है, लेकिन जल्द ही पाया कि वह आईने के सामने अपना पेटीकोट उठाकर अपनी चुत में कुछ चेक कर रही थी। जैसे ही उसने मुझे देखा उसने अपना पेटीकोट गिरा दिया और मेरी ओर मुड़ी। जब मैं उससे बातचीत कर रहा था वह कुतिया लगातार मेरे सामने खुलेआम अपनी चुत को खुरच रही थी। मुझे लगा कि वह मुझे इशारा कर रही है। उसने मुझे बिस्तर बनाने के लिए कहा और जैसे ही मैं ऐसा कर रहा था वह शौचालय चली गई। मैंने देखा कि उसने शौचालय का दरवाजा आधा खुला छोड़ दिया था और जब मैंने अंदर झाँका तो देखा कि वह फिर से अपने पेटीकोट को उठाते हुए अपनी चुत का निरीक्षण कर रही थी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और शौचालय के अंदर चला गया…।
संजीव: और फिर हम सबने उस थप्पड़ की तेज आवाज सुनी!
हा हा हा… फिर हंसी का ठहाका लगा।
राजकमल: लेकिन आप कुछ भी कहें, यह मैडम तो बहुत खास है। उसके पास इतना टाइट और शानदार फिगर है कि ये किसी का भी कोई भी सिर घुमा देगी ।
निर्मल: अरे हाँ, यह मैडम बहुत खास है! ओह! उसके पास कितनी बड़ी सेक्सी गांड है!
संजीव: हा यार! वह एक बम है! हम सभी को एक बार उसे चोदने की कोशिश करनी चाहिए। कसम से बहुत मजा आयेगा ।
राजकमल : अरे... धीरे से... वो हमें सुन सकती है।
निर्मल : हाँ, हाँ। धीरे से... धीरे से।
चुदाई के दौरान और बाद में मेरे मन में जो अच्छी भावनाएँ थीं, वे गुरु जी के शिष्यों की इन बातों को सुनकर धीरे-धीरे लुप्त हो रही थीं! ऐसा लगता था कि उन्हें किसी भी महिला के लिए कोई सम्मान नहीं है! दुर्भाग्य से, गुरु-जी अभी भी वापस नहीं आए थे और मेरे सुनने के लिए और भी बहुत कुछ बचा था!
संजीव: यह कुतिया मुझे चित्रा मैडम की याद दिलाती है!
उदय: ओह! संजीव! तो आपने निशाना बिलकुल ठीक लगाया!
राजकमल: हाँ, हाँ। उसे आश्रम की सर्वश्रेष्ठ सेक्सी कुतिया की उपाधि मिलनी चाहिए!
निर्मल: हाँ! लेकिन ईमानदारी से यार, क्या कोई ऐसी पत्नी रखना चाहेगा?
उदय: बिलकुल नहीं!
संजीव: तुम जब भी उसके कमरे में जाओगे तो तुम्हें वह रंडी हमेशा निकर में ही मिलेगी। मुझे संदेह है कि घर पर भी वह ठीक से कपड़े नहीं पहनती होगी। मोहल्ले के सारे लड़के और अंकल ने एक बार तो उसकी चुदाई जरूर की होगी! हा-हा हा...
राजकमल: अरे एक दो दिन जब उसने दरवाजा खोला तो मैंने उसे हाथ में खीरे के साथ भी पकड़ लिया था!
उदय: लेकिन बॉस, उसने हम सबको संतुष्ट किया था।
संजीव: ओ हाँ, ओ हाँ! अपनी योनि पूजा के बाद वह सभी के लिए उपलब्ध थी।
उदय: साली... एक दिन में उसने दो पुरुषो के साथ किया! क्या सेक्सी कुतिया थी!
उदयः हाँ, लंच के बाद राजकमल के साथ उसने बेड शेयर किया और डिनर के बाद संजीव, तुम्हारी बारी थी और अगले दिन लंच के बाद मैं था और डिनर के बाद इस चोदू की बारी आयी थी!
निर्मल: वह 35 या 36 की थी! ?
संजीव: हाँ, परिपक्व और बहुत अनुभवी। हालांकि उसका फिगर थोड़ा पतला था!
निर्मल: इतनी सेक्स की भूखी थी तो वह तंग कैसे रह सकती है!
उदय: लेकिन फिर भी वह नि: संतान थी!
राजकमल: और तुम्हें याद है जब उसका पति उसे लेने आया था तो वह हमें धन्यवाद कह रहा था!
संजीव: हा-हा हा... उसे पता भी नहीं था कि उसकी पत्नी यहाँ पांच पुरुषो की पांचाली बनी हुई थी।
हँसी की गर्जना अब मेरे पूरे शरीर में रोंगटे खड़े कर रही थी, आनंद से नहीं, डर से!
संजीव: लेकिन मुझे हमेशा उस मारवाड़ी हाउसवाइफ प्रीति के लिए पछताता रहूंगा।
उदय: हाँ, मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि तुमने उसे कैसे जाने दिया! वह तुम्हारे बहुत करीब थी!
संजीव: हाँ यार! शुरू से ही जैसे ये रश्मि तुम्हें पसंद करती है, वैसे ही प्रीति भी मुझे बहुत पसंद करती थी। लेकिन मैं पूरी तरह से नहीं कर सका ...।
राजकमल: संजीब भाई आपको उदय भैया से सीख लेनी चाहिए! देखिए, उसने पहले ही इस मैडम को उनसे चुदाई के अलग से त्यार कर दिया है, जो मुझे लगता है कि आज मैडम को मिली चुदाई को देखते हुए उसके लिए यह आसान होगा ... ।
हा हा हा... फिर से हंसी की एक बड़ी गर्जना हुई और एक ठंडी लहर मानो मेरी रीढ़ को नीचे गिरा रही थी। उदय-उसने भी मेरे साथ सिर्फ एक सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह व्यवहार किया था और कुछ नहीं!
उदय: ज़रूर दोस्तों! मैं यज्ञ के बाद इस सुपर सेक्सी कुतिया को जोर से चोदने का वादा करता हूँ। गुरु जी कह रहे थे कि उसकी चुत अभी बहुत कसी हुई है... उसका पति जरूर चूतिया होगा! साला ठीक के चोदता नहीं होगा ...।
संजीव: मुझे आशा है कि यह रश्मि दूसरी प्रिया नहीं निकलेगी! वह किसी तरह भी फिर से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थी! अरे... गुरु जी से चुदाई के बाद, अगले ही दिन मैं उसे पास की रामशिला पहाड़ी पर घुमाने ले गया। वह जगह सुनसान रहती है और मुझे लगा कि उसे चोदने के लिए यह एक सुरक्षित जगह होगी।
उदय: लेकिन कुछ निरीक्षण चल रहा था...।
संजीव: ठीक है! साला... नापने के लिए उनके पास और कोई दिन नहीं था। जब हम वहाँ बैठे थे और मैं उसे गर्म करने की पूरी कोशिश कर रहा था, तो वे आदमी वहाँ एक कारखाने के लिए कुछ नापने के लिए आए!
उदय: ओह्ह्ह! हाईए! बहुत दुख की बात है!
संजीव: कमीने! काश तुम्हे भी इस रश्मि के साथ ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़े!
निर्मल: ठीक है, ठीक है, जारी रखो!
संजीव: रामशिला में फेल होने के बाद मैंने सोचा था कि लंच के तुरंत बाद मैं अपना चांस ले लूंगा, लेकिन ... आप इन ग्रामीणों को जानते हैं ... दोपहर 02: 00 बजे से। यह कमबख्त गुरु-जी के दर्शन के लिए आश्रम के चारों ओर घूमने लगते हैं। समय इतना कम था कि मैं उसे चुदाई के लिए मना नहीं पा रहा था, लेकिन वास्तव में वह एक नखरेवाली मुश्किल मजबूत महिला थी! बॉस!
उदय: तुम बस चूक गए और वह अब इतिहास है!
संजीव: प्रिया अलग थी यार! आपको विश्वास नहीं होगा कि एक समय मैंने उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए थे और मेरा हाथ उसकी चोली के अंदर था, लेकिन फिर भी वह मानसिक रूप से इतनी मजबूत थी कि मुझे चुदाई के लिए मना कर दिया! ज़रा कल्पना करें! और किसी तरह मैं उस पर जोर नहीं डाल सका ...
राजकमल: ओए! एक महिला आपको अपना ब्लाउज खोलने की अनुमति देने के बाद लेटने से कैसे मना कर सकती है!
संजीव: हुह! ये हाउसवाइव्स...
राजकमल: ये हाउसवाइव्स.. खतरनाक नखरेवाली होती हैं!
संजीव: छद्म रूढ़िवादिता! गुरु जी के सामने वे पूजा के नाम पर कुछ भी करवा लेती हैं, लेकिन फुर्सत में हमारे साथ वे सामाजिक मर्यादाओं, नैतिकता, धोखा आदि के नाम पर नाटक करती हैं।
सही! सही! वे सब एक साथ बोले।
उदय: लेकिन आश्रम में इलाज के लिए ये हाउसवाइफ ही तो आती हैं
निर्मल: जो भी हो मित्र! इन शर्मीली गृहिणियों को यहाँ आश्रम में आकर बेशर्म होते देखना बहुत मजे और खुशी की बात है।
उदय: कुछ साल पहले सेटिंग ज्यादा खुली थी और हम निश्चित रूप से अधिक आनंद लेते थे, निर्मल है न!
निर्मल: अरे हाँ! अब अलग हो गया है! राज पहले होता तो उसे ज्यादा मजे आते!
राजकमल: हाँ जानता हूँ, लेकिन अभी जो मिल रहा है, उससे संतुष्ट हूँ।
उदयः अभी भी बेटा। पहले महा-यज्ञ के लिए आने वाली किसी भी महिला को पूरे समय नग्न रहना पड़ता था... अहा...
संजीव: अब्बे... इतना ही नहीं! नहाने के बारे में कुछ बताओ! राज अपना सिर दीवार पर मारेगा।
उदय: अरे हाँ! राज पहले महा-यज्ञ करने वाली किसी भी महिला को आश्रम में एक छोटे से कृत्रिम तालाब में स्नान करना पड़ता था। टब की गहराई इतनी थी कि अगर कोई बुनियादी तैराकी नियम नहीं जानती तो वह स्नान करने में सक्षम नहीं होगी!
निर्मल: हालाँकि ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली अधिकांश महिलाएँ तैरना जानती हैं-फिर भी नंगी स्त्री को तैरते देखना कुछ अलग ही नज़ारा है!
संजीव: इतना ही नहीं... कुछ गृहणियाँ थीं जो शहरों से आती थीं और तैरना नहीं जानती थीं और हम उन्हें तैरना सिखाते थे। हा-हा हा...
निर्मल: हाँ, हाँ... और मुझे तुरंत ही अलका मैडम याद आती हैं?
उदय: ओहो! वह मैडम जिसने गुरुजी से शिकायत की थी कि तैराकी की कक्षाओं में निर्मल उसके स्तनों को पकड़ता है और वह सीखने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती है! हा-हा हा...
हा हा हा... फिर हंसी की गर्जना हुई। मैं सोच रहा था कि मैं कहाँ आ गयी थी! ये आश्रम है या कोई हरम!
राजकमल: फिर क्या हुआ?
संजीव: अलका मैडम के स्विमिंग टीचर को बदल दिया गया, उदय साहब को नियुक्त कर दिया गया!
निर्मल: हाँ-हाँ ... उसका पहला नुस्खा अलका मैडम की साड़ी थी।
राजकमल: मतलब?
उदय: अबे वह एक हॉट माल थी, लेकिन उसने अपने सुंदर अंग न दिखाने के लिए ऐसा करने का नाटक किया था। पहले दिन उसे तैरते रहने का तरीका दिखाते हुए, मैंने उसके ब्लाउज के ऊपर से उसके स्तनों को जोर से दबाया और निचोड़ा और मैं उसके चेहरे से देख रहा था जिससे पता चला कि वह आनंद ले रही थी। उस दिन के अंत में मैंने उससे कहा कि अगले दिन उसे वजन कम करने के लिए अपनी साड़ी के बिना पानी के अंदर जाने की जरूरत है।
संजीव: और हमारे उदय साहब ने स्विमिंग क्लास पूरी की जब अलका मैडम ब्लाउज और पेटीकोट में पानी के अंदर चली गईं, लेकिन स्विमिंग क्लास के बाद ब्रा में ही बाहर निकलीं!
राजकमल: केवल ब्रा! जय लिंगा महाराज! वाह उदय भाई! जय हो!
उदय: हा-हा हा... दरअसल अलका मैडम अपने पेटीकोट के नीचे कुछ भी नहीं पहनती थीं और-और तो और उन दिनों पैंटी पहनने का चलन शादीशुदा महिलाओं में उतना नहीं था।
निर्मल: एइ एइ... सस्श... ससस्स्स्स्स्स्श्ह्ह्ह्ह्ह्ह। गुरु जी वापस आ रहे हैं।
जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
योनि सुगम- गुरूजी के सेक्स ट्रीटमेंट का प्रभाव
गुरु जी मेरे माथे को चूमते हुए गद्दे से उतरे, जबकि मैं उनके शिष्यों के सामने चमकीले पीले प्रकाश में गद्दे पर बिलकुल नग्न लेटी हुई थी।
गुरुजी: संजीव उसे दवा दे दो और बेटी तुम आराम करो मैं पांच मिनट में वापस आऊंगा।
संजीव ने मुझे एक प्याला थमा दिया जिसमें उसने हरे रंग की दवाई डाल दी थी।
तरल पदार्थ का स्वाद बहुत अच्छा था और जैसे ही यह मेरे गले में उतरा इसने मुझे एक शांत प्रभाव के साथ-साथ एक बहुत ही संतोषजनक एहसास दिया। चूंकि मैं अभी भी उस चरणामृत में मिश्रित दवा के प्रभाव से 100% बाहर नहीं आयी थी और साथ ही साथ वह बहुत ही प्रभावशाली चुदाई जो मैंने अभी-अभी गुरु जी के साथ की थी, मैंने अपनी आँखें बंद करना और गद्दे पर थोड़ी देर आराम करना पसंद किया।
मेरे दिमाग में यही विचार घूम रहे थे की कहाँ मेरे शर्मीले स्वाभाव की वजह से लेडी डॉक्टर्स के सामने कपड़े उतारने में भी मुझे शरम आती थी. लेडी डॉक्टर चेक करने के लिए जब मेरी चूचियों, निपल या चूत को छूती थी तो मैं एकदम से गीली हो जाती थी. और मुझे बहुत शरम आती थी. और अब मैं पांच पुरुषो के सामने नंगी थी , उनमे प्रत्येक के साथ लगभग सम्भोग कर चुकी थी . और उन्होंने मेरे हर अंग से साथ खिलवाड़ किया था और मेरा शायद ही कोई अंग ऐसा था जिसे चूमा और चूसा नहीं गया था .
फिर मेरे दिमाग में यही विचार आये की मुझे इससे पहले संभोग किये हुए कितने दिन हो गए, मन बहुत करता है, पर क्या करूँ, जब मेरा पति अनिल मुझे चोदता है तो कितना मजा आता है ... और अगर मैं गर्भवती हो गयी तो फिर तो काफी दिन बिना चुदाई के ही रहना होगा । आह, ओह अरे गुरूजी का वह वो मूसल लिंग.. वाह ! उसको देखने से छूने से ...पकड़ने से ...सहलाने से कितना कामुक लग रहा था ...ओह गुरूजी के लिंग की महक... ऐसा लिंग देखना बहुत किस्मत की बात है और फिर उससे चुदना। वाह! क्या एहसास था जब वह लिंग मेरे अंदर गया था। ...कितना अच्छा लगता था जब उनका लिंग मेरी योनि में समाता था... (ऐसे सोचते ही मेरी योनि में संकुचन हुआ और मैंने अपनी जांघे थोड़ा भींच ली) वाह! लिंगा महाराज! वाह !
मेरे दिमाग और बंद आँखों के सामने गुरूजी का महा लिंग की छवि घूम रही थी । ओह उनके लिंग की-की चमड़ी खोलकर उसके अग्र भाग के छेद को चूमना कितना उत्तेजक था, उत्तेजना में फुले हुए उसके चिकने अग्र भाग को मुंह में लेकर चूसने में कितना आनंद आया था, गुरूजी के पूरे लिंग को धीरे-धीरे सहलाना, चाटना, उसे अपने होंठों से प्यार कर-कर के योनि के लिए तैयार करना ।कितना आनंदमय और उत्तेजक था।
काश मेरे पति का लिंग गुरूजी के लिंग जैसा होता ।काश मेरे जीवन में सदैव के लिए गुरूजी का लिंग होता, काश वह मुझे बाहों में भरकर रात भर प्यार करते, बार-बार करते, हर रात करते । काश मेरी योनि को वह बार छूते ...सहलाते ...चूमते ... उफ़ उनकी वह जादुई उंगलिया । मेरे जीवन में मेरा पति नेल हालाँकि मुझे बहुत प्यार करता था और हम दोनों ने शादी के बाद लगातार कई दिन सिर्फ चुदाई ही की थी । । लेकिन फिर धीर धीरे सबकी तरह हमारा सम्भोग पहले हर रात में हुआ, फिर एक दिन छोड़ कर । फिर सप्ताहंत के दिनों में, फिर कभी-कभी । महीने में दो तीन बार । फिर सिर्फ बच्चे पाने के लिए सेक्स सिमित रह गया ... अब अनिल और मेरे संबंधों में भी खटास आने लगी थी. अनिल के साथ सेक्स करने में भी अब कोई मज़ा नही रह गया था , ऐसा लगता था जैसे बच्चा प्राप्त करने के लिए हम ज़बरदस्ती ये काम कर रहे हों. सेक्स का आनंद उठाने की बजाय यही चिंता लगी रहती थी की अबकी बार मुझे गर्भ ठहरेगा या नही.
क्यों और कब मेरा सेक्स जीवन इतना नीरस हो गया है? मेरा क्या दोष है? ...क्यों मैं धीरे-धीरे इस सुख से वंचित होती गयी ।
गुरूजी कहते हैं लिंग और योनि का कोई रिश्ता नहीं होता...तो क्या...तो क्या...मैं किसी भी पुरुष से सम्भोग कर लू? ...उफ्फ्फ... नहीं मैं एक परिवार की बहु हूँ मैं ऐसा नहीं कर सकती! ओह! गुरूजी का ...लिं...ग...ग...ग।गगगग... मेरे पति का लिंग! ओह! इतना बढ़िया और लम्बा सम्भोग गुरूजी के मुसल लंग के साथ मेरा मन कर रहा था अब मैं बार-बार वही सुख प्राप्त करूँ ।
मैं न चाहते हुए भी आज जो कुछ भी मैंने किया उसके बारे में सोचने के लिए विवश हो गयी थी। आज जीवन में पहली बार व्यभिचार के सागर में मैं उत्तर गयी थी । मेरा बदन कांप गया, एक तो सामने यज्ञ कुंड में अग्नि धधक रही थी वातावरण वैसे ही गरम हो चुका था और मेरे अंदर की कामाग्नि अभी भी सुलग रही थी । अब गुरूजी के साथ सम्भोग के बाद वह कैसे थमेगी ये मेरी समझ से बाहर था । क्या ये पाप था?
मेरे दिमाग में कुछ शब्द गूंजने लगे मानो गुरूजी कह रहे हो ।
जय लिंगा महाराज!
गुरूजी-रश्मि बेटी! पाप और पुण्य दोनों का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि। पूरी सृष्टि, स्त्री और पुरुष की रचना लिंग देव और योनि माँ ने ही की है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो लिंगा महाराज! की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जन मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, लिंग देव और माँ के आगे इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियाँ भी कोई चीज़ है बेटी! इंद्रियाँ भी लिंग देव के द्वारा ही बनाई हुई हैं, नियम भी उन्ही के बनाये हुए हैं और उनके उपाए भी उन्होंने ही बनाये हैं । ध्यान से सोचो तो सब लिंगा महाराज! की बनाई हुई माया है बस, रचा सब लिंगा महाराज! ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।
मैं पसीने-पसीने हो गयी, बार-बार आँख बंद करके फिर से उस अनैतिक संभोग की कल्पना करती जिससे मेरा बदन बार-बार सनसना जाता, बेचैन होकर मैं कभी इधर उधर देखने लगी, एकाध बार तो मैंने चुपके से अपनी दायीं चूची को खुद ही मसल लिया, और जांघों को मैं रह-रह कर सिकोड़ रही थी, कभी मैं गुरूजी के चुंबन के बारे में सोच कर, तो कभी उनके शिष्यों ने मेरे साथ जो मन्त्र दान में मेरे अंगो का मर्दन किया था वह सोच का लजा जाती और मैंने शर्माकर आँख बंद कर ली, रह-रह कर चुदाई की कल्पना से मेरा मन सिहर उठता, (इस हालत में सांसों की धौकनी बन जाना लाज़मी था)
बस गुरूजी के साथ सम्भोग की मैंने कल्पना की, मेरी कल्पना में गुरूजी ने बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही मेरी नज़र गुरूजी के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस आसान पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और मुझे लगा जैसे-जैसे मैं लेटती गयी गुरूजी प्यार से मुझे चूमते हुए मुझ पर चढ़ गए, "आह गुरूजी और ओह बेटी" की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और गुरूजी का कठोर लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। गुरूजी का लन्ड मेरी प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर मेरी योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल गयी।
ओओओहहहह... गुरूजी ...आआ आहहहह...अम्मममा
बस मैंने मन में गुरूजी के साथ सम्भोग की कल्पना की और वो सब दोहराया जो उन्होंने मेरे साथ किया था , मेरी कल्पना में गुरूजी ने बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही मेरी नज़र गुरूजी के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस आसान पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और मुझे लगा जैसे-जैसे मैं लेटती गयी गुरूजी प्यार से मुझे चूमते हुए मुझ पर चढ़ गए, "आह गुरूजी और ओह बेटी" की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और गुरूजी का कठोर लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। गुरूजी का लन्ड मेरी प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर मेरी योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक हलकी सी सिसकारी निकल गयी।
ओओओहहहह... गुरूजी ...आआ आहहहह...अम्मममा
ईमानदारी से कहूं तो मैं उत्तेजित हो गुरू जी की चुदाई की अद्भुत शांत और लंबी शैली को मानसिक तौर पर दोहरा कर मजे ले रही थी ।
तभी मैंने आँखे खोल कर देखा तो गुरूजी के चारो शिष्य अपना कड़ा लिंग हाथ में पकड़ कर उसे सहला रहे थे और मुझे घूर रहे थे . मुझे अब शर्म लगी और मैं आँखे बंद कर लेती रही . वो चारो आपस में कुछ बात करने लगे .
संजीव: चलो इस तरफ चलते हैं ताकि मैडम को कोई परेशानी न हों।
मैं अपनी आँखें खोले बिना महसूस कर सकती थी कि संजीव और अन्य लोग पूजाघर के दरवाजे की ओर चले गए। मैं काफी सचित थी हालाँकि मुझे नींद आ रही थी । मैं अभी भी पूरी तरह से नंगी थी - कमरे की तेज रोशनी में मेरी चुत, जांघें, पेट, नाभि, स्तन सब कुछ खुल का दिख रहा था । ऐसा नहीं है कि मुझे इसके बारे में पता नहीं था, लेकिन गुरु जी की चुदाई का प्रभाव इतना मंत्रमुग्ध कर देने वाला था कि मैं अपनी नग्नता के बारे में भूल गयी और आराम करने और मैंने उन सुखद क्षणों को फिर से महसूस करना पसंद किया।
संजीव, उदय, निर्मल और राजकमल आपस में धीमे स्वर में गपशप कर रहे थे और उनकी बातचीत का सारा अंश मुझ तक भी नहीं पहुँच रहा था। वास्तव में शुरू में मैंने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जैसे ही मैंने कुछ मुहावरों को सुना, मैं स्वतः ही उन्हें सुनने के लिए इच्छुक हो गयी ।
निर्मल: तुम क्या सोचते हो? ये मैडम इतनी खूबसूरत दिखती हैं, इन्हें बच्चा ना होने की दिक्कत कैसे हो सकती है?
संजीव: शायद मैडम को समस्या नहीं है। लगता है कि उनके पति को उनकी क्षमता से समस्या है।
उदय: निश्चित रूप से, उसकी योनि में एक किशोरी की जकड़न है!
संजीव: क्या रे! हाल के दिनों में आपने किस किशोरी का स्वाद चखा मेरे प्रिय उदय ?
उदय: हा हा... नहीं, मैं तो बस कह रहा हूं...गुरूजी कह रहे थे न बहुत टाइट है ! सच! और फिर यह इतना लंबा हो गया है कि मैंने एक आरसे से किसी किशोरी की चुदाई नहीं की है!
संजीव : उसकी इच्छा देखिए! साला… स्वीट सोलह की किशोरी ! बाबू ढूंढते रह जाओगे!
राजकमल : क्यों? क्या आप सब उस आशा को भूल गए हैं?
संजीव : ओह! मैं उसे कैसे भूल सकता हूँ! क्या माल थी यार! काश! हममें से कोई भी उसे चोद नहीं सका था!
राजकमल : सच कह रहे हो ! लेकिन मैं अभी भी कभी कभी उसके छोटे बालों वाली चुत और तंग सेब और उस हस्तमैथुन की कल्पना करता हूं।
निर्मल: काश आशा भविष्य में फिर से किसी भी समस्या के लिए यहां आए… हे हे …
उदय : फिर भी ! हमें खुश होना चाहिए कि हम उस सेक्सी माल को पूरी तरह नंगी देख पाए।
राजकमल : उउउउउउह! उसके दोस्स्ढ़ वाह क्या दूध थे उसके !
उदय: पियो गिलास भर गया हैं ! हा हा हा…
राजकमल: काश मैं उसे चोद पाता और निश्चित रूप से वह मेरी उम्र के कारण मुझे पसंद करती।
संजीव : हुह! अपनी उम्र का ख्याल करो और खुश रहो! साला!
निर्मल: लेकिन दोस्तों, यह मैडम भी बड़ी आकर्षक भी है क्योंकि वह परिपक्व है और शादीशुदा भी है।
संजीव : उह! हाँ, मैं मानता हूँ! इतनी चुदाई के बाद भी, मैं साली के स्तनों की जकड़न को देखकर चकित रह जाता हूँ!
निर्मल : उउउउह! हाँ, उसके स्तन रबर-टाइट हैं क्या आपने उसके निप्पलों पर ध्यान दिया! उह... हमेशा ध्यान मुद्रा में! हा हा हा…
संजीव: अगर मैं उसका पति होता तो सारी रात उन्हें चूसता!
राजकमल : निमल भैया ! तुम्हारे कद के साथ तुम उस के दिवास्वप्न ही देख सकते हो!
हा हा हा... ठहाकों की गड़गड़ाहट हुई।
निर्मल : चुप रहो ! क्यों? क्या प्रिया मैडम ने सबके सामने नहीं बताया कि वो मुझसे प्यार करती हैं...
संजीव: नाटे के पार्टी नाटी का प्यार...
निर्मल: भाई प्लीज ! उसे "नाटी" मत कहो!
हा हा हा… फिर हंसी का ठहाका लगा।
उदय: लेकिन यार संजीव, तुम कुछ भी कहो, प्रिया मैडम ने हमारे निर्मल को बहुत भोग लगाया।
संजीव : भोग ! एक दिन ये उसके साथ नहाया इस मदर चौद ने बहुत मजे लिए !
उदय : साला ! क्या तुम उसके पति को भूल गए हो! एक शुद्ध अंडरटेकर! क्या उसे पता है कि हमारे निर्मल ने नहाते समय उसकी बीवी का पीठ धो दिया था...
राजकमल : उसे पता चलेगा तो वो हमारे निर्मल भैया को तो निगल ही लेंगा ! हा हा हा..
निर्मल : चुप करो सालो ! शौचालय में उसके साथ मैंने ही प्रवेश किया था !
संजीव : श्रेय! उ-उ-ह! लगता है तुम उस कुतिया का थप्पड़ भूल गये हो ... क्या... क्या नाम था उसका...?
राजकमल : संध्या मैडम! संध्या मैडम!
संजीव : हां, हां। क्यों? मिस्टर निर्मल? क्या आप इसे भूल गए हैं?
निर्मल : हुह! वह महज एक दुर्घटना थी।
राजकमल : ओह! दुर्घटना! मुझे अब भी याद है। सेटिंग लगभग ऐसी ही थी। गुरु जी ने बस उस कुतिया की चुदाई पूरी की थी। फिर कुछ समस्या हुई और इसलिए अगले दिन जन दर्शन निर्धारित किया गया। हम सब उसे गुड नाईट कहते हैं, लेकिन ये चोदू ..
उदय: अरे... रुको ना... ए निर्मल, एक बार और बताओ... उस दिन क्या हुआ था।
निर्मल : हुह! लेकिन यह मेरी गलती नहीं थी...
संजीव: ठीक है, ठीक है, तुम्हारी गलती नहीं थी। लेकिन फिर से बताओ ।
निर्मल: जब मैं उसके कमरे में गया और तुम सब मेरा इंतजार कर रहे थे। सही? अंदर घुसा तो देखा संध्या मैडम आईने के सामने खड़ी थी। मैंने सोचा कि वह अपने बालों में कंघी कर रही है, लेकिन जल्द ही पाया कि वह आईने के सामने अपना पेटीकोट उठाकर अपनी चुत में कुछ चेक कर रही थी। जैसे ही उसने मुझे देखा उसने अपना पेटीकोट गिरा दिया और मेरी ओर मुड़ी। जब मैं उससे बातचीत कर रहा था वह कुतिया लगातार मेरे सामने खुलेआम अपनी चुत को खुरच रही थी। मुझे लगा कि वह मुझे इशारा कर रही है। उसने मुझे बिस्तर बनाने के लिए कहा और जैसे ही मैं ऐसा कर रहा था वह शौचालय चली गई। मैंने देखा कि उसने शौचालय का दरवाजा आधा खुला छोड़ दिया था और जब मैंने अंदर झाँका तो देखा कि वह फिर से अपने पेटीकोट को उठाते हुए अपनी चुत का निरीक्षण कर रही थी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और शौचालय के अंदर चला गया…।
संजीव: और फिर हम सबने उस थप्पड़ की तेज आवाज सुनी!
हा हा हा… फिर हंसी का ठहाका लगा।
राजकमल: लेकिन आप कुछ भी कहें, यह मैडम तो बहुत खास है। उसके पास इतना टाइट और शानदार फिगर है कि ये किसी का भी कोई भी सिर घुमा देगी ।
निर्मल: अरे हाँ, यह मैडम बहुत खास है! ओह! उसके पास कितनी बड़ी सेक्सी गांड है!
संजीव: हा यार! वह एक बम है! हम सभी को एक बार उसे चोदने की कोशिश करनी चाहिए। कसम से बहुत मजा आयेगा ।
राजकमल : अरे... धीरे से... वो हमें सुन सकती है।
निर्मल : हाँ, हाँ। धीरे से... धीरे से।
चुदाई के दौरान और बाद में मेरे मन में जो अच्छी भावनाएँ थीं, वे गुरु जी के शिष्यों की इन बातों को सुनकर धीरे-धीरे लुप्त हो रही थीं! ऐसा लगता था कि उन्हें किसी भी महिला के लिए कोई सम्मान नहीं है! दुर्भाग्य से, गुरु-जी अभी भी वापस नहीं आए थे और मेरे सुनने के लिए और भी बहुत कुछ बचा था!
संजीव: यह कुतिया मुझे चित्रा मैडम की याद दिलाती है!
उदय: ओह! संजीव! तो आपने निशाना बिलकुल ठीक लगाया!
राजकमल: हाँ, हाँ। उसे आश्रम की सर्वश्रेष्ठ सेक्सी कुतिया की उपाधि मिलनी चाहिए!
निर्मल: हाँ! लेकिन ईमानदारी से यार, क्या कोई ऐसी पत्नी रखना चाहेगा?
उदय: बिलकुल नहीं!
संजीव: तुम जब भी उसके कमरे में जाओगे तो तुम्हें वह रंडी हमेशा निकर में ही मिलेगी। मुझे संदेह है कि घर पर भी वह ठीक से कपड़े नहीं पहनती होगी। मोहल्ले के सारे लड़के और अंकल ने एक बार तो उसकी चुदाई जरूर की होगी! हा-हा हा...
राजकमल: अरे एक दो दिन जब उसने दरवाजा खोला तो मैंने उसे हाथ में खीरे के साथ भी पकड़ लिया था!
उदय: लेकिन बॉस, उसने हम सबको संतुष्ट किया था।
संजीव: ओ हाँ, ओ हाँ! अपनी योनि पूजा के बाद वह सभी के लिए उपलब्ध थी।
उदय: साली... एक दिन में उसने दो पुरुषो के साथ किया! क्या सेक्सी कुतिया थी!
उदयः हाँ, लंच के बाद राजकमल के साथ उसने बेड शेयर किया और डिनर के बाद संजीव, तुम्हारी बारी थी और अगले दिन लंच के बाद मैं था और डिनर के बाद इस चोदू की बारी आयी थी!
निर्मल: वह 35 या 36 की थी! ?
संजीव: हाँ, परिपक्व और बहुत अनुभवी। हालांकि उसका फिगर थोड़ा पतला था!
निर्मल: इतनी सेक्स की भूखी थी तो वह तंग कैसे रह सकती है!
उदय: लेकिन फिर भी वह नि: संतान थी!
राजकमल: और तुम्हें याद है जब उसका पति उसे लेने आया था तो वह हमें धन्यवाद कह रहा था!
संजीव: हा-हा हा... उसे पता भी नहीं था कि उसकी पत्नी यहाँ पांच पुरुषो की पांचाली बनी हुई थी।
हँसी की गर्जना अब मेरे पूरे शरीर में रोंगटे खड़े कर रही थी, आनंद से नहीं, डर से!
संजीव: लेकिन मुझे हमेशा उस मारवाड़ी हाउसवाइफ प्रीति के लिए पछताता रहूंगा।
उदय: हाँ, मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि तुमने उसे कैसे जाने दिया! वह तुम्हारे बहुत करीब थी!
संजीव: हाँ यार! शुरू से ही जैसे ये रश्मि तुम्हें पसंद करती है, वैसे ही प्रीति भी मुझे बहुत पसंद करती थी। लेकिन मैं पूरी तरह से नहीं कर सका ...।
राजकमल: संजीब भाई आपको उदय भैया से सीख लेनी चाहिए! देखिए, उसने पहले ही इस मैडम को उनसे चुदाई के अलग से त्यार कर दिया है, जो मुझे लगता है कि आज मैडम को मिली चुदाई को देखते हुए उसके लिए यह आसान होगा ... ।
हा हा हा... फिर से हंसी की एक बड़ी गर्जना हुई और एक ठंडी लहर मानो मेरी रीढ़ को नीचे गिरा रही थी। उदय-उसने भी मेरे साथ सिर्फ एक सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह व्यवहार किया था और कुछ नहीं!
उदय: ज़रूर दोस्तों! मैं यज्ञ के बाद इस सुपर सेक्सी कुतिया को जोर से चोदने का वादा करता हूँ। गुरु जी कह रहे थे कि उसकी चुत अभी बहुत कसी हुई है... उसका पति जरूर चूतिया होगा! साला ठीक के चोदता नहीं होगा ...।
संजीव: मुझे आशा है कि यह रश्मि दूसरी प्रिया नहीं निकलेगी! वह किसी तरह भी फिर से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थी! अरे... गुरु जी से चुदाई के बाद, अगले ही दिन मैं उसे पास की रामशिला पहाड़ी पर घुमाने ले गया। वह जगह सुनसान रहती है और मुझे लगा कि उसे चोदने के लिए यह एक सुरक्षित जगह होगी।
उदय: लेकिन कुछ निरीक्षण चल रहा था...।
संजीव: ठीक है! साला... नापने के लिए उनके पास और कोई दिन नहीं था। जब हम वहाँ बैठे थे और मैं उसे गर्म करने की पूरी कोशिश कर रहा था, तो वे आदमी वहाँ एक कारखाने के लिए कुछ नापने के लिए आए!
उदय: ओह्ह्ह! हाईए! बहुत दुख की बात है!
संजीव: कमीने! काश तुम्हे भी इस रश्मि के साथ ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़े!
निर्मल: ठीक है, ठीक है, जारी रखो!
संजीव: रामशिला में फेल होने के बाद मैंने सोचा था कि लंच के तुरंत बाद मैं अपना चांस ले लूंगा, लेकिन ... आप इन ग्रामीणों को जानते हैं ... दोपहर 02: 00 बजे से। यह कमबख्त गुरु-जी के दर्शन के लिए आश्रम के चारों ओर घूमने लगते हैं। समय इतना कम था कि मैं उसे चुदाई के लिए मना नहीं पा रहा था, लेकिन वास्तव में वह एक नखरेवाली मुश्किल मजबूत महिला थी! बॉस!
उदय: तुम बस चूक गए और वह अब इतिहास है!
संजीव: प्रिया अलग थी यार! आपको विश्वास नहीं होगा कि एक समय मैंने उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए थे और मेरा हाथ उसकी चोली के अंदर था, लेकिन फिर भी वह मानसिक रूप से इतनी मजबूत थी कि मुझे चुदाई के लिए मना कर दिया! ज़रा कल्पना करें! और किसी तरह मैं उस पर जोर नहीं डाल सका ...
राजकमल: ओए! एक महिला आपको अपना ब्लाउज खोलने की अनुमति देने के बाद लेटने से कैसे मना कर सकती है!
संजीव: हुह! ये हाउसवाइव्स...
राजकमल: ये हाउसवाइव्स.. खतरनाक नखरेवाली होती हैं!
संजीव: छद्म रूढ़िवादिता! गुरु जी के सामने वे पूजा के नाम पर कुछ भी करवा लेती हैं, लेकिन फुर्सत में हमारे साथ वे सामाजिक मर्यादाओं, नैतिकता, धोखा आदि के नाम पर नाटक करती हैं।
सही! सही! वे सब एक साथ बोले।
उदय: लेकिन आश्रम में इलाज के लिए ये हाउसवाइफ ही तो आती हैं
निर्मल: जो भी हो मित्र! इन शर्मीली गृहिणियों को यहाँ आश्रम में आकर बेशर्म होते देखना बहुत मजे और खुशी की बात है।
उदय: कुछ साल पहले सेटिंग ज्यादा खुली थी और हम निश्चित रूप से अधिक आनंद लेते थे, निर्मल है न!
निर्मल: अरे हाँ! अब अलग हो गया है! राज पहले होता तो उसे ज्यादा मजे आते!
राजकमल: हाँ जानता हूँ, लेकिन अभी जो मिल रहा है, उससे संतुष्ट हूँ।
उदयः अभी भी बेटा। पहले महा-यज्ञ के लिए आने वाली किसी भी महिला को पूरे समय नग्न रहना पड़ता था... अहा...
संजीव: अब्बे... इतना ही नहीं! नहाने के बारे में कुछ बताओ! राज अपना सिर दीवार पर मारेगा।
उदय: अरे हाँ! राज पहले महा-यज्ञ करने वाली किसी भी महिला को आश्रम में एक छोटे से कृत्रिम तालाब में स्नान करना पड़ता था। टब की गहराई इतनी थी कि अगर कोई बुनियादी तैराकी नियम नहीं जानती तो वह स्नान करने में सक्षम नहीं होगी!
निर्मल: हालाँकि ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली अधिकांश महिलाएँ तैरना जानती हैं-फिर भी नंगी स्त्री को तैरते देखना कुछ अलग ही नज़ारा है!
संजीव: इतना ही नहीं... कुछ गृहणियाँ थीं जो शहरों से आती थीं और तैरना नहीं जानती थीं और हम उन्हें तैरना सिखाते थे। हा-हा हा...
निर्मल: हाँ, हाँ... और मुझे तुरंत ही अलका मैडम याद आती हैं?
उदय: ओहो! वह मैडम जिसने गुरुजी से शिकायत की थी कि तैराकी की कक्षाओं में निर्मल उसके स्तनों को पकड़ता है और वह सीखने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती है! हा-हा हा...
हा हा हा... फिर हंसी की गर्जना हुई। मैं सोच रहा था कि मैं कहाँ आ गयी थी! ये आश्रम है या कोई हरम!
राजकमल: फिर क्या हुआ?
संजीव: अलका मैडम के स्विमिंग टीचर को बदल दिया गया, उदय साहब को नियुक्त कर दिया गया!
निर्मल: हाँ-हाँ ... उसका पहला नुस्खा अलका मैडम की साड़ी थी।
राजकमल: मतलब?
उदय: अबे वह एक हॉट माल थी, लेकिन उसने अपने सुंदर अंग न दिखाने के लिए ऐसा करने का नाटक किया था। पहले दिन उसे तैरते रहने का तरीका दिखाते हुए, मैंने उसके ब्लाउज के ऊपर से उसके स्तनों को जोर से दबाया और निचोड़ा और मैं उसके चेहरे से देख रहा था जिससे पता चला कि वह आनंद ले रही थी। उस दिन के अंत में मैंने उससे कहा कि अगले दिन उसे वजन कम करने के लिए अपनी साड़ी के बिना पानी के अंदर जाने की जरूरत है।
संजीव: और हमारे उदय साहब ने स्विमिंग क्लास पूरी की जब अलका मैडम ब्लाउज और पेटीकोट में पानी के अंदर चली गईं, लेकिन स्विमिंग क्लास के बाद ब्रा में ही बाहर निकलीं!
राजकमल: केवल ब्रा! जय लिंगा महाराज! वाह उदय भाई! जय हो!
उदय: हा-हा हा... दरअसल अलका मैडम अपने पेटीकोट के नीचे कुछ भी नहीं पहनती थीं और-और तो और उन दिनों पैंटी पहनने का चलन शादीशुदा महिलाओं में उतना नहीं था।
निर्मल: एइ एइ... सस्श... ससस्स्स्स्स्स्श्ह्ह्ह्ह्ह्ह। गुरु जी वापस आ रहे हैं।
जारी रहेगी ... जय लिंग महाराज !