आश्रम के गुरुजी - 04

फिर मैं परिमल के साथ दीक्षा लेने चले गयी. दीक्षा वाले कमरे में बहुत सारे देवी देवताओं के चित्र लगे हुए थे. वो कमरा मेरे कमरे से थोड़ा बड़ा था. एक सिंहासन जैसा कुछ था जिसमें एक मूर्ति के ऊपर फूलमाला डाली हुई थी और सुगंधित अगरबत्तियाँ जल रही थीं.

उस कमरे में गुरुजी और समीर थे. परिमल मुझे अंदर पहुँचाके कमरे का दरवाज़ा बंद करके चला गया. उस कमरे में आने के बाद मैं बहुत नर्वस हो रही थी.

गुरुजी -सावित्री , अब तुम्हारे दीक्षा लेने का समय आ गया है. यहाँ हम सब लिंगा महाराज के भक्त हैं और थोड़ी देर में दीक्षा लेने के बाद तुम भी उनकी भक्त बन जाओगी. लेकिन तुम्हारी दीक्षा हमसे भिन्न होगी क्यूंकी तुम्हारा लक्ष्य माँ बनना है. जय लिंगा महाराज. सावित्री , लिंगा महाराज बहुत शक्तिशाली देवता हैं. अगर तुम अपने को पूरी तरह से उनके चरणों में समर्पित कर दोगी तो वो तुम्हारे लिए चमत्कार कर सकते हैं. लेकिन अगर तुमने पूरी तरह से अपने को समर्पित नही किया तो अनुकूल परिणाम नही मिलेंगे. जय लिंगा महाराज.

फिर समीर ने भी जय लिंगा महाराज बोला और मुझसे भी यही बोलने को कहा.

मैंने भी जय लिंगा महाराज बोल दिया लेकिन मुझे इसका मतलब पता नही था.

गुरुजी – सावित्री , लिंगा महाराज की दीक्षा लेने से तुम्हारे शरीर और आत्मा की शुद्धि होगी. इसके लिए पहले तुम्हें अपने शरीर को नहाकर शुद्ध करना होगा. तुम यहाँ बने हुए बाथरूम में जाओ. वहाँ बाल्टी में जो पानी है उसमें खास किस्म की जड़ी बूटी मिली हुई हैं . तुम उस पानी से नहाओ और अपने पूरे बदन में लिंगा को घुमाओ.

ऐसा कहकर गुरुजी ने मुझे वो लिंगा दे दिया , जो एक काला पत्थर था. लगभग 6 – 7 इंच लंबा और 1 इंच चौड़ा था. और एक सिरे पर ज़्यादा चौड़ा था. फास्ट फ़ूड सेंटर में जैसा एग रोल मिलता है देखने में वैसा ही था , मतलब एक छोटे बेस पर एग रोल रखा हो वैसा.

लेकिन मेरे मन में ये बात नही आई की ये जो आकृति है , गुरुजी इसके माध्यम से पुरुष के लिंग को दर्शा रहे हैं.

गुरुजी – सावित्री , जड़ी बूटी वाले पानी से अपने बदन को गीला करना . उसके बाद वहीं पर मग में साबुन का घोल बना हुआ है , उस साबुन को लगाना. फिर अपने पूरे बदन में लिंगा को घुमाना.

“ठीक है गुरुजी.”

गुरुजी – सावित्री तुम गर्भवती होने के लिए दीक्षा ले रही हो , इसलिए लिंगा को अपने ‘ यौन अंगों ‘ पर छुआकर , तीन बार जय लिंगा महाराज का जाप करना.

मैने हाँ में सर हिला दिया. लेकिन गुरुजी के मुँह से ‘ यौन अंगों ‘ का जिक्र सुनकर मुझे बहुत शरम आई और मेरा चेहरा सुर्ख लाल हो गया.

गुरुजी – सावित्री , औरतें सोचती हैं की उनके ‘ यौन अंगों ‘ का मतलब है योनि. लेकिन ऐसा नही है. पहले तुम मुझे बताओ की तुम्हारे अनुसार ‘ यौन अंग ‘ क्या हैं ? शरमाओ मत , क्यूंकी शरमाने से यहाँ काम नही चलेगा.

गुरुजी का ऐसा प्रश्न सुनकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. मैं हकलाने लगी और जवाब देने के लिए मुझे शब्द ही नही मिल रहे थे.

“जी वो……...‘ यौन अंग ‘ मतलब ………जिनसे संभोग किया जाता है.”

दो मर्दों के सामने मेरा शरम से बुरा हाल था.

गुरुजी – सावित्री , तुम्हें यहाँ खुलना पड़ेगा. अपना दिमाग़ खुला रखो. खुलकर बोलो. शरमाओ मत. ठीक है, अपने उन ‘ यौन अंगों ‘ का नाम बताओ जहाँ पर लिंगा को छुआकर तुम्हें मंत्र का जाप करना है.

अब मुझे जवाब देना मुश्किल हो गया. गुरुजी मुझसे अपने अंगों का नाम लेने को कह रहे थे.

“जी वो ……वो ….मेरा मतलब……….. चूची और चूत.” हकलाते हुए काँपती आवाज़ में मैंने जवाब दिया.

गुरुजी – ठीक है सावित्री . मैं समझता हूँ की एक औरत होने के नाते तुम शरमा रही हो. तुमने सिर्फ़ दो बड़े अंगों के नाम लिए. तुमने कहा की तुम अपनी चूची पर लिंगा को घुमाकर मंत्र का जाप करोगी. लेकिन तुम अपने निपल्स को भूल गयी ? जब तुम अपने पति के साथ संभोग करती हो तो उसमे तुम्हारे निपल्स की भी कुछ भूमिका होती है की नही ?

मैने शरमाते हुए हाँ में सर हिला दिया. अब घबराहट से मेरा गला सूखने लगा था. कुछ ही मिनट पहले मैं परिमल को टीज़ कर रही थी पर शायद अब मेरा वास्ता बहुत अनुभवी लोगों से पड़ रहा था, जिनके सामने मेरे गले से आवाज़ ही नही निकल रही थी.

गुरुजी – सावित्री तुम अपने नितंबों का नाम लेना भी भूल गयी. क्या तुम्हें लगता है की नितंब भी ‘यौन अंग’ हैं ? अगर कोई तुम्हें वहाँ पर छुए तो तुम्हें उत्तेजना आती है की नही ?

हे ईश्वर ! मेरी कैसी परीक्षा ले रहे हो. मैं क्या जवाब दूं.

मैं सर झुकाए गुरुजी के सामने बैठी थी. ज़ोर ज़ोर से मेरा दिल धड़क रहा था. मेरे पास बोलने को कुछ नही था. मैंने फिर से हाँ में सर हिला दिया.

गुरुजी की आवाज़ बहुत शांत थी और एक बार भी उन्होने मेरी बिना ब्रा की चूचियों की तरफ नही देखा था. उनकी आँखें मेरे चेहरे पर टिकी हुई थी और उनकी आँखों में देखने का साहस मुझमे नही था.

गुरुजी – सावित्री देखा तुमने. हम कई चीज़ों को भूल जाते हैं. तुम्हारे शरीर का हर वो अंग , जिसमे संभोग के समय तुम्हें उत्तेजना आती है, हर उस अंग पर लिंगा को छुआकर तुम्हें तीन बार मंत्र का जाप करना है. तुम्हारी चूचियाँ, निपल्स, नितंब, चूत, जांघें और तुम्हारे होंठ. तुम्हें पूरे मन से मेरी आज्ञा का पालन करना होगा तभी तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति होगी.

समीर – मैडम, ये कपड़े आप नहाने के बाद पहनोगी.

फिर समीर ने मुझे भगवा रंग की साड़ी , ब्लाउज और पेटीकोट दिए. मेरे पास पहनने को कोई अंडरगार्मेंट नही था.

मैं कपड़े लेकर बाथरूम को जाने लगी. तभी मुझे ख्याल आया गुरुजी फर्श में बैठे हुए हैं तो उनकी नज़र पीछे से मेरे हिलते हुए नितंबों पर पड़ रही होगी. मेरे पति अनिल ने एक बार मुझसे कहा था की जब तुम पैंटी नही पहनती हो तब तुम्हारे नितंब कुछ ज़्यादा ही हिलते हैं.

लेकिन फिर मैंने सोचा की मैं गुरुजी के बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हूँ की वो पीछे से मेरे हिलते हुए नितंबों को देख रहे होंगे. गुरुजी तो इन चीज़ों से ऊपर उठ चुके होंगे.

फिर मैं बाथरूम के अंदर चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया. वहाँ इतनी तेज़ रोशनी थी की मेरी आँखे चौधियाने लगी. मुझे बड़ी हैरानी हुई की बाथरूम में इतनी तेज लाइट लगाने की क्या ज़रूरत है ?

बाथरूम के दरवाज़े में कपड़े टाँगने के लिए हुक लगे हुए थे और ये मेरे कमरे की तरह ऊपर से खुला हुआ नही था.

मैंने साड़ी उतार दी लेकिन उस तेज रोशनी में बड़ा अजीब लग रहा था. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं सूरज की तेज रोशनी में नहा रही हूँ. मैंने अपने ब्लाउज के बटन खोले और मेरी चूचियाँ ब्रा ना होने से झट से बाहर आ गयीं. फिर मैंने पेटीकोट भी उतारकर हुक पे टाँग दिया. अब मैं पूरी नंगी हो गयी थी.

मैंने बाल्टी में हाथ डालकर अपनी हथेली में जड़ी बूटी वाला पानी लिया. उसमे कुछ मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी . पता नही क्या मिला रखा था.

फिर मैंने पानी से नहाना शुरू किया और मग में रखे हुए साबुन के घोल को अपने बदन में मला.

उसके बाद मैंने लिंगा को पकड़ा , जो पत्थर का था लेकिन फिर भी भारी नही था. लिंगा को मैंने अपनी बायीं चूची पर लगाया और जय लिंगा महाराज का जाप किया. और फिर ऐसा ही मैंने अपनी दायीं चूची पर किया. उस पत्थर के मेरी नग्न चूचियों पर छूने से मुझे अजीब सी सनसनी हुई और कुछ पल के लिए मेरे बदन में कंपकंपी हुई.

इस तरह से अपने पूरे नंगे बदन में मैंने लिंगा को घुमाया. और अपनी चूत , नितंबों , जांघों और होठों पर लिंगा को छुआकर मंत्र का जाप किया.

ऐसा करने से मेरा बदन गरम हो गया और मैंने उत्तेजना महसूस की. फिर मैंने टॉवेल से गीले बदन को पोछा और आश्रम के कपड़े पहनने लगी.

[ ये तो मैंने सपने में भी नही सोचा था की अपने नंगे बदन पर जो मैं ये लिंगा को घुमा रही हूँ, ये सब टेप हो रहा है और इसीलिए वहाँ इतनी तेज लाइट का इंतज़ाम किया गया था. ]

आश्रम के कपड़ों में पेटीकोट तो जैसे तैसे फिट हो गया पर ब्लाउज बहुत टाइट था. मुझे पहले ही इस बात की शंका थी की कहीं इनके दिए हुए कपड़े मिसफिट ना हो. मेरी चूचियों के ऊपर ब्लाउज आ ही नही रहा था और ब्लाउज के बटन लग ही नही रहे थे . अभी ब्रा नही थी अगर ब्रा पहनी होती तो बटन लगने असंभव थे. जैसे तैसे तीन हुक लगाए लेकिन ऊपर के दो हुक ना लग पाने से चूचियाँ दिख रही थीं. मैंने साड़ी के पल्लू से ब्लाउज को पूरा ढक लिया और बाथरूम से बाहर आ गयी.

गुरुजी – सावित्री , जैसे मैंने बताया , वैसे ही नहाया तुमने ?

“जी गुरुजी “

गुरुजी – ठीक है. अब यहाँ पर बैठो और लिंगा महाराज की पूजा करो.

गुरुजी ने पूजा शुरू की , वो मंत्र पढ़ने लगे और बीच बीच में मेरा नाम और मेरे गोत्र का नाम भी ले रहे थे. मैं हाथ जोड़ के बैठी हुई थी. लिंगा महाराज से मैंने अपने उपचार के सफल होने की प्रार्थना की.

समीर भी पूजा में गुरुजी की मदद कर रहा था. करीब आधे घंटे तक पूजा हुई. अंत में गुरुजी ने मेरे माथे पर लाल तिलक लगाया और मैंने झुककर गुरुजी के चरण स्पर्श किए.

जब मैं गुरुजी के पाँव छूने झुकी तो हुक ना लगे होने से मेरी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर आने लगी. मैं जल्दी से सीधी हो गयी वरना मेरे लिए बहुत ही असहज स्थिति हो जाती.

गुरुजी – सावित्री , अब तुम्हारी दीक्षा पूरी हो चुकी है. अब तुम मेरी शिष्या हो और लिंगा महाराज की भक्त हो. जय लिंगा महाराज.

“ जय लिंगा महाराज” , मैंने भी कहा.

गुरुजी – अब मैं कल सुबह 6:30 पर तुमसे मिलूँगा. और आश्रम में तुम्हें क्या करना है ये बताऊँगा. अब तुम जा सकती हो सावित्री .

मैं उस कमरे से बाहर आ गयी और अपने कमरे में चली आई , समीर भी मेरे साथ था.

समीर – मैडम, गुरुजी के पास ले जाने के लिए मैं कल सुबह 6:15 पर आऊँगा. और आपके अंडरगार्मेंट्स भी ले आऊँगा. कुछ देर में परिमल आपका डिनर लाएगा.

फिर समीर चला गया.​
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