आश्रम के गुरुजी - 06

“मैडम ,मैडम . “

किसी औरत की आवाज़ थी. मेरी नींद खुल गयी . मेरी नाइटी खिसककर ऊपर हो गयी थी जिससे मेरी गोरी मांसल जांघें दिख रही थी. मैंने नाइटी नीचे को खींची और अंगड़ाई लेते हुए बेड से उठ गयी. मेरे मन में ख्याल आया आश्रम में तो मुझे कोई औरत नही दिखी , फिर ये आवाज़ देने वाली कौन होगी ?

मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा एक औरत बाहर खड़ी है.

“मैडम , मेरा नाम मंजू है. मैं गुरुजी की शिष्या हूँ. मैं कुछ दिनों के लिए बाहर गयी थी इसलिए आपसे नही मिल पाई. कल रात को ही आश्रम वापस आई हूँ.”

मैंने मंजू को ध्यान से देखा , लगभग 35 बरस की होगी, रंग कुछ सावला , थोड़ी मोटी थी. चेहरा मुस्कान लिए हुए और बड़ी बड़ी चूचियाँ और बड़े नितंब. मंजू भी आश्रम के कपड़े पहने हुए थी.

मैंने उसे अंदर बुलाया.

“आपको यहाँ देखकर अच्छा लगा. वरना मैं तो सोच रही थी की मैं ही यहाँ अकेली औरत हूँ. आपकी वजह से मेरा साथ हो जाएगा.”

मंजू – मैडम , यहाँ औरत और मर्द में भेदभाव नही किया जाता. गुरुजी अपने सभी शिष्यों को एक सा मानते हैं. इसलिए आप उसकी फिकर ना करें. जय लिंगा महाराज.

“जय लिंगा महाराज.”

आश्रम का मंत्र मैंने भी बोला. फिर मैंने मंजू से कहा , मैं बाथरूम हो आती हूँ.

जब मैं बाथरूम से वापस आई तो देखा , मंजू ने बेड सही कर दिया है और कमरे में झाड़ू लगा रही है.

मंजू – मैडम , आप जल्दी से तैयार हो जाओ. 6:30 पर गुरुजी के सामने उपस्थित होना है. ये आपके स्टरलाइज़्ड अंडरगार्मेंट्स हैं. समीर ने मुझसे कहा की ये अब सूख गये हैं मैडम को दे देना.

“थैंक्स मंजू. कल शाम तो मैं आश्रम के मर्दों के सामने बिना ब्रा पैंटी के थी. ज़रा सोचो , मेरी क्या हालत हुई होगी. और ये टाइट ब्लाउज से परेशानी और बढ़ गयी.”

ऐसा कहते हुए मैंने अपने ब्लाउज की तरफ इशारा किया.

मंजू मुस्कुरायी.

मंजू – हाँ मैडम , परिमल बता रहा था की आपकी चूचियों के लिए ब्लाउज का कप साइज़ छोटा हो रहा है.

मैं हक्की बक्की रह गयी. इस आश्रम में हर कोई मेरे बारे में सब कुछ ज़ानता है. कोई भी बात किसी से कहो तो पूरे आश्रम को पता चल जाती है.

मैं सोचने लगी की क्या परिमल ने ये भी सबको बता दिया की मेरे झुककर टॉवेल उठाने से उसे क्या नज़ारा दिखा था ?

मंजू – मैडम , आप फिकर मत करो. गुरुजी से आज्ञा ले लेना , फिर मैं मदद कर दूँगी.

“एक ब्लाउज चेंज करने के लिए गुरुजी को परेशान करने की क्या ज़रूरत है ?”

मंजू – हाँ मैडम , आश्रम के नियमो के मुताबिक हर चीज़ गुरुजी को बतानी पड़ती है. चाहे हमारे कपड़ो की बात हो या कुछ और.

फिर मैंने ब्लाउज पहनकर मंजू को दिखाया की ऊपर के दो हुक नही लग रहे और कल शाम मुझे ऐसे ही आश्रम में रहना पड़ा.

मंजू- मैडम , बिना हुक लगे हुए आप बहुत आकर्षक लग रही हो. बिना ब्रा के भी आपकी चूचियाँ तनी हुई रहती हैं.

मैं शरमा गयी , लेकिन मुझे अच्छा भी लगा. मेरे पति अनिल ने भी मुझसे कहा था की तुम्हारी चूचियाँ उठी हुई रहती हैं.

फिर मैंने मंजू की तरफ पीठ कर ली और ब्रा पहनने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था की ना जाने कितने समय बाद मैं ब्रा पहन रही हूँ जबकि कल शाम की ही तो बात थी. ब्रा पहनकर मुझे बड़ी राहत महसूस हुई , फिर मैंने जल्दी से पैंटी पहन कर पेटीकोट और साड़ी पहन ली. अपने अंडरगार्मेंट्स वापस पाकर मुझे एक सेक्यूरिटी जैसी कुछ फीलिंग आई , वरना तो कपड़े पहने होने के बावजूद कुछ असुरक्षित सा महसूस कर रही थी.

फिर कमरा बंद करके हम गुरुजी से मिलने गये. मंजू मेरे आगे चल रही थी. एक औरत होने के बावजूद मेरा ध्यान उसके हिलते हुए भारी नितंबों पर गया. वो पूरी गोल मटोल दिखती थी, उसका चेहरा, उसकी चूचियाँ , उसके नितंब सब गोल मटोल थे. लेकिन फिर भी वो चुस्त थी और तेज चाल से चल रही थी. मुझे उसके साथ थोड़ा तेज चलना पड़ रहा था.

गुरुजी ध्यान मग्न थे. उस समय वहाँ पर और कोई नही था. हमें देखकर गुरुजी मुस्कुराए.

फिर कुछ ऐसा हुआ जो इससे पहले तो मैंने नही देखा था.

मंजू – गुरुजी एक समस्या है.

गुरुजी – क्या समस्या है मंजू ?

मंजू – गुरुजी , कल रात मेरी कमर में तेज दर्द उठा . अब दर्द काफ़ी कम हो गया है , लेकिन थोड़ी परेशानी हो रही है.

गुरुजी – हम्म्म …….शायद कुछ मांसपेशियों का दर्द होगा. यहाँ आओ , मैं देखता हूँ.

गुरुजी फर्श में बैठे हुए थे. हम दोनों उनसे कुछ फीट की दूरी पर खड़े थे. मंजू गुरुजी के पास गयी और उनके सामने खड़ी हो गयी. जो मैंने देखा वो मैं बता रही हूँ , सामने खड़ी थी मतलब इतने नज़दीक़ की गुरुजी की आँखों के सामने कुछ इंच की दूरी पर उसकी चूत थी. फिर वो पीछे मुड़ी और मेरी तरफ मुँह कर लिया , अब उसके भारी नितंब गुरुजी के चेहरे को लगभग छू रहे थे. फिर गुरुजी ने अपने दोनों हाथों से मंजू की कमर को पकड़ा और पूछा , यहाँ पर दर्द है ?

मंजू ने हाँ कहा.

फिर गुरुजी ने जो किया उससे मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया. उन्होने दोनों हाथों से साड़ी के बाहर से मंजू के नितंबों को दबाना शुरू किया. जहाँ पर मैं खड़ी थी उस एंगल से सब मुझे साफ दिख रहा था. पहले उन्होने हल्के हल्के दबाया जैसे कुछ टटोल रहे हों कोई नस वगैरह. फिर दोनों हाथों में मंजू के नितंबों को कस कर दबाने लगे. मंजू के नितंब खूब फैले हुए थे तो गुरुजी की हथेलियों में नही आ रहे थे. गुरुजी बैठे हुए मंजू के नितंबों को निचोड़ रहे थे और मंजू चुपचाप खड़ी थी.

हे भगवान ! ये मैं क्या देख रही हूँ. कोई औरत किसी मर्द को ऐसे कैसे अपने बदन में हाथ लगाने दे सकती है. मेरे तो पति भी ऐसा करें तो मुझे बहुत शरम आएगी.

मुझे बड़ी हैरानी हुई की मंजू के चेहरे पर कोई भाव नही थे , कोई शिकन नही. कुछ देर तक ऐसा चलता रहा. फिर मैंने देखा गुरुजी ने दोनों हाथों से ज़ोर से नितंबों को निचोड़ा और फिर अपने हाथ हटा लिए. मंजू चुपचाप खड़ी थी लेकिन नितंबों को इतना मसलने से उसके बदन में गर्मी तो चढ़ी होगी. मैं खुद उत्तेजना महसूस कर रही थी. फिर मंजू ने गुरुजी की तरफ मुँह कर लिया.

मैं सोचने लगी की क्या मैं फ़िज़ूल में गुरुजी के बारे में गंदा सोच रही हूँ ? हो सकता है दर्द करने वाली मांसपेशी को ढूंढने के लिए उन्होने ऐसा किया हो. पर जो भी हो, अगर ऐसा करना ज़रूरी हो तो ये एकांत में करना चाहिए था . दूसरों के सामने इतनी निर्लज़्ज़ता ठीक नही. किसी को ग़लतफहमी भी हो सकती है.

गुरुजी – मंजू तुम्हें अपनी कमर और नितंबों पर गरम पानी का शेक करना होगा और ये दवाई दिन में दो बार लेना.

ऐसा कहते हुए गुरुजी ने वहीं पर रखा हुआ एक बॉक्स खोला जिसमे 40 – 50 बॉटल रंग बिरंगी दवाइयों की थी. शायद जड़ी बूटियों वाली दवाइयों के घोल बने हुए थे.

अपनी दवाई लेकर मंजू वहाँ से चली गयी.

अब गुरुजी ने मेरी तरफ ध्यान दिया और मुझसे बैठने को कहा.

गुरुजी – सावित्री मुझे खेद है की तुम्हें इतनी देर खड़े रहना पड़ा. अपने अंडरगार्मेंट्स वापस पाकर तो तुम अच्छा महसूस कर रही होगी , क्यूँ है ना ?”

गुरुजी मुझे देखकर मुस्कुराते हुए बोले.

अब मैं ऐसे कमेंट्स की आदी होने लगी थी. लेकिन फिर भी ऐसे प्रश्न से मुझे शरम तो आनी ही थी. मैंने सिर्फ़ अपना सर हाँ में हिला दिया.

गुरुजी – सावित्री , आज से मैं तुम्हारा उपचार शुरू करूँगा. जय लिंगा महाराज.

“जय लिंगा महाराज.”

गुरुजी – सावित्री, तुम्हारी शादीशुदा जिंदगी के कुछ डिटेल्स मैं जानना चाहता हूँ. शरमाना मत और कुछ भी मत छुपाना. दिमाग़ खुला रखना. जो भी प्रश्न तुम्हारे दिमाग़ में आए मुझसे ज़रूर पूछना. तुम्हारी समस्या ऐसी है की अगर तुम खुलोगी नही तो सही से उपचार नही हो पाएगा.

मैंने फिर से सहमति में सर हिला दिया.

गुरुजी – अभी जब मैंने अंडरगार्मेंट्स की बात कही तो मैंने नोटिस किया तुम शरमा गयी थी. ऐसा क्यूँ सावित्री ? जब तक तुम ये बात नही समझोगी की ये सब नेचुरल और नॉर्मल चीजें हैं, तब तक तुम्हारी दीक्षा अधूरी रहेगी. जैसे तुमने ब्रा पैंटी पहनी है , वैसे ही मैंने कपड़ो के भीतर अंडरवेयर पहना हुआ है. इसमे शरमाने की क्या बात है , बताओ सावित्री ?

“उम्म…....जी गुरुजी. कुछ नही है.”

गुरुजी – ठीक है. अब ये बताओ की तुम एक हफ्ते में कितनी बार संभोग करती हो ?

“लगभग दो बार.”

गुरुजी – संभोग से तुम्हें पूर्ण संतुष्टि मिलती है ?

मैंने हाँ में सर हिला दिया.

गुरुजी – संभोग करते समय तुम पूरी तरह से उत्तेजना महसूस करती हो या तुम्हें लगता है की अभी थोड़ी देर और जारी रहना चाहिए था या किसी दूसरी तरह से किया जाना चाहिए था या कुछ और ?

“नही गुरुजी. मुझे ऐसा कुछ कभी नही लगा.”

गुरुजी – ठीक है. सब कुछ नॉर्मल ही लग रहा है. और तुम्हें पीरियड्स भी रेग्युलर आते हैं.

आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 06.1

गुरुजी – ठीक है. सब कुछ नॉर्मल ही लग रहा है. और तुम्हें पीरियड्स भी रेग्युलर आते हैं. अब ये बताओ सावित्री की एक सेशन में तुम कितनी बार संभोग करती हो ? एक बार या एक से ज़्यादा ?

एक मर्द के सामने ऐसे प्रश्नों के जवाब देते हुए मैं पहले से ही नर्वस हो रही थी , अब तो मेरा पूरा चेहरा शरम से लाल हो चुका था.

“शादी के बाद कुछ महीनों तक तो दो बार , पर अब एक ही बार.”

गुरुजी – सावित्री , शादी के शुरुवाती दिनों में जब तुम दो बार संभोग करती थी तो तुम्हारी योनि से दो बार स्खलन होता था ? और क्या दोनों बार बराबर स्खलन होता था या कम ज़्यादा ?

“जी , दो बार होता था. पर कभी कभी ऐसा भी होता था की मेरे पति दो बार स्खलित हो जाते थे पर मैं एक ही बार होती थी.”

गुरुजी – तुम्हारा स्खलन ज़्यादा मात्रा में निकलता है या कम ?

“नही. ज़्यादा नही . मेरा मतलब…....”

ऐसी निजी बातों को बोलते वक़्त मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी , मुझे बोलने को सही शब्द ही नही मिल रहे थे. क्या बोलूं ? कैसे बोलूं ?

गुरुजी – मुझे बताओ सावित्री. अपने दिमाग़ को खुला रखो और खुलकर बोलो.

“जी वो …..मुझे आजकल ऐसा लगता है की जब मैं गरम हो जाती हूँ तो संभोग खत्म होने के बाद भी कुछ गर्मी बाहर निकल नही पाती , अंदर ही रह जाती है.”

गुरुजी – ठीक है सावित्री. जो जानकारी मैं चाहता था वो मुझे मिल गयी है.

फिर गुरुजी आँख बंद करके कुछ पलों के लिए ध्यानमग्न हो गये.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज. देखो सावित्री, तुम गर्भवती तभी होओगी , जब संभोग के दौरान तुम्हारा ज़्यादा स्खलन होगा. तुमसे बात करके मुझे ऐसा लग रहा है की तुम उत्तेजना की चरम सीमा तक नही पहुँच पा रही हो , इसलिए स्खलन कम हो रहा है और वो गर्मी तुम्हारे अंदर ही रह जा रही है जिससे तुम्हें एक अपूर्णता का एहसास होता है और पूर्ण संतुष्टि नही मिल पाती. बहुत सारी विवाहित जोडियों में ये समस्या पायी जाती है और इसमे चिंता की कोई बात नही है. पर अगर कोई औरत पूरी तरह से उत्तेजित हो रही है लेकिन फिर भी उसकी योनि से पर्याप्त स्खलन नही हो रहा है तो फिर ये चिंता की बात है.

फिर गुरुजी थोड़ा रुके , जैसे मेरे किसी प्रश्न का इंतज़ार कर रहे हों.

“अगर स्खलन पर्याप्त नही हो रहा है तो फिर क्या होता है , गुरुजी ?”

गुरुजी – देखो सावित्री, अगर स्खलन कम होता है तो फिर औरत के अंडाणु भी कम मात्रा में पैदा होते हैं और इससे गर्भवती होने के चान्स बहुत कम हो जाते हैं. लेकिन तुम चिंता मत करो क्यूंकी योनि से स्खलन को बढ़ाने के लिए कुछ तरीके हैं और जड़ी बूटियों से भी इसको बदाया जा सकता है . लेकिन इसके लिए तुम्हें जैसा मैं बताऊँ , बिना किसी संकोच या शंका के वैसा ही करना होगा.

“गुरुजी, मैं गर्भवती होने के लिए कुछ भी करूँगी. मैं आपको बता नही सकती पिछले कुछ महीनो से मैं कितने डिप्रेशन में हूँ की सभी औरतें तो माँ बनती हैं , मैं ही क्यूँ नही बन पा रही. जैसी आप आज्ञा देंगे मैं वैसा ही करूँगी.”

गुरुजी – ठीक है सावित्री. लेकिन ये इतना आसान भी नही है , समझ लो.

सबसे पहले मुझे ये जानना होगा की तुम्हारी योनि से स्खलन की मात्रा क्या है. क्या तुम हस्तमैथुन करती हो ?

अब तो मेरा गला सूखने लगा था. 28 बरस की अपनी जिंदगी में मुझे कभी भी ऐसे प्रश्नों का जवाब नही देना पड़ा था. शरम से उस वक़्त मेरा क्या हाल था मैं बता नही सकती .

“हाँ गुरुजी , पर कभी कभार ही करती हूँ और स्खलन भी बहुत कम ही होता है.”

मैं हस्तमैथुन की आदी नही थी . मेरे साथ जो भी हुआ अपनेआप हुआ. मतलब शादी के बाद तो ज़रूरत कम ही पड़ती है . शादी से पहले कभी कामुक सपने आते थे तो चूत गीली हो जाती थी . या फिर कभी बस, ट्रेन में किसी आदमी ने बदन से छेड़छाड़ की हो तो तब या फिर घर आकर बेड में लेटती थी तब उस घटना के बारे में सोचकर चूत गीली हो जाती थी. पर ये सब नेचुरल था.

लेकिन अब गुरुजी की बातें सुनकर मैं सोच रही थी की योनि से पर्याप्त स्खलन कैसे होगा ? खाली बेड में लेटकर कामुक बातें सोचकर तो नही हो पाएगा. और मेरे पति भी यहाँ नही हैं , तो मैं पूर्ण रूप से उत्तेजित होऊँगी कैसे ?

गुरुजी – सावित्री , मुझे तुम्हारी योनि से स्खलन की मात्रा जाननी पड़ेगी और उसके आधार पर आगे का उपचार होगा.

“लेकिन गुरुजी , मेरे पति के बिना कैसे होगा ? किसी दूसरे मर्द के साथ तो मैं नही कर सकती ना ….”

गुरुजी – सावित्री , तुम क्या सोच रही हो , मुझे नही मालूम. क्या तुम ये सोचती हो की मैं तुम्हें किसी दूसरे मर्द के साथ सोने के लिए कहूँगा ? मैं जानता हूँ की तुम एक हाउसवाइफ हो और समाज के बंधनों से बँधी हुई हो.

गुरुजी की बात से मैंने राहत की साँस ली पर अभी भी मेरी समझ में नही आया की बिना किसी मर्द के साथ संभोग किए मैं पूर्ण रूप से उत्तेजित कैसे होऊँगी ?

गुरुजी – सावित्री, उपचार का सबसे पहला भाग है ‘माइंड कंट्रोल’. तुम्हें अपने दिमाग़ से सब कुछ हटा देना है और सिर्फ़ अपने शरीर से नेचुरली रेस्पॉन्ड करना है. मतलब इस बात पर ध्यान मत दो की तुम कहाँ पर हो , किसके साथ हो , बस जैसी भी सिचुयेशन मैं तुम्हें दूँगा तुम उसको नॉर्मल तरीके से लो. अपने दिमाग़ पर कंट्रोल करना है और नेचुरली रियेक्ट करना है. ये उपचार का हिस्सा है , चिंता करने की कोई ज़रूरत नही . जय लिंगा महाराज.

मैंने हाँ में सर हिला दिया पर मुझे ज़्यादा कुछ समझ नही आया की करना क्या है.

गुरुजी – देखो, मैं तुम्हें समझाता हूँ. सबसे पहले जड़ी बूटी से बनी दवाइयाँ. ये दवाई तुम्हें दिन में दो बार लेनी है. एक सुबह सवेरे पेशाब करने के बाद और फिर रात में सोते समय ले लेना. कितनी मात्रा में लेना है वो बॉटल में लिखा है. ठीक है ?

मैंने दवाई की बॉटल लेकर सर हिला दिया.

गुरुजी – ये दूसरी दवाई है. जब भी तुम आश्रम से बाहर जाओगी तो इसे खाकर ही जाना. और ये तेल है. जब तुम दोपहर में नहाओगी तो नहाने से पहले इस तेल से पूरे बदन की मालिश करना. और नहाने के लिए सिर्फ़ जड़ी बूटी वाले पानी से ही नहाना , जिससे दीक्षा से पहले नहाया था. मेरे ख्यालसे इस तेल को तुम कल से लगाना , आज रहने दो.

“ठीक है गुरुजी. जड़ी बूटी से नहाकर कल मुझे बहुत तरोताज़गी महसूस हुई थी.”

गुरुजी – हाँ, जड़ी बूटी से स्नान से बदन में ताज़गी महसूस होती है और ऊर्जा बढ़ जाती है. और हाँ ये जो तेल है इसको अपनी चूचियों पर मत लगाना. उसके लिए ये दूसरा तेल है. याद रखना , चूचियों की मालिश के लिए ये हरे रंग का तेल है. ठीक है ?

मैंने एक आज्ञाकारी छात्र की तरह से सर हिला दिया. लेकिन एक मर्द के मुँह से चूचियों की मालिश , ऐसे शब्द सुनकर ब्रा के अंदर मेरे निप्पल तन कर कड़क हो गये.

गुरुजी – सावित्री, तेल से मालिश के बारे में राजेश तुम्हें बता देगा. शायद तुम्हारी उससे बातचीत नही हुई है. वो बहुत व्यस्त रहता है क्यूंकी आश्रम में खाना वही बनाता है.

“हाँ गुरुजी. मैंने कल उसे देखा था , जब आपने परिचय करवाया था पर बातचीत नही हुई.”

गुरुजी – अच्छा, दवाइयाँ तो तुम्हें समझा दी. अब बात करते हैं ‘माइंड कंट्रोल’ की. ये देखो, ये ‘सोकिंग पैड’ है , जब भी तुम आश्रम से बाहर जाओगी तो इसे पहन लेना. अगले दो दिन तक तुम्हें ये करना है.

गुरुजी ने मुझे एक छोटा सफेद चौकोर कॉटन पैड दिया. मेरी समझ में नही आया इसे पहनना कैसे है ?

“गुरुजी , मैं इसे पहनूँगी कैसे ?”

शायद मेरी जिंदगी का वो सबसे बेवक़ूफी भरा प्रश्न था , जो मैंने पूछा.

गुरुजी – सावित्री , मैंने तुम्हें बताया था की जब तुम उत्तेजित होती हो तो तुम्हारी योनि से स्खलन कितना होता है , ये मुझे जानना है. ये खास किस्म का सोकिंग पैड उसी के लिए है. तुम अपनी पैंटी के अंदर अपनी योनि के छेद के ऊपर इसे लगा लेना.

ये सुनते ही मेरा चेहरा शरम से सुर्ख लाल हो गया. मैं इतनी शरमा गयी की गुरुजी से आँख नही मिला पा रही थी. गुरुजी के मुँह से योनि का छेद सुनकर मेरे कान गरम हो गये. उस बिना हुक लगे हुए टाइट ब्लाउज में मेरी चूचियाँ तनकर कड़क हो गयीं. क्या क्या सुनने को मिल रहा था , एक तो वैसे ही मैं शर्मीली थी.

गुरुजी – सावित्री , इस पैड को अपनी पैंटी के अंदर ऐसे रखना की ये खिसके नही. एक एक बूँद इसमे जानी चाहिए , तब सही मात्रा पता चलेगी. सही से मैनेज कर लोगी ना ?

मैंने फर्श की तरफ देखते हुए सर हिला दिया. मैं चाह रही थी की कैसे भी ये डिस्कशन खत्म हो. मुझे लग रहा था अगर ये टॉपिक और लंबा चला तो गुरुजी मुझसे साड़ी कमर तक ऊपर उठाने को ना कह दें. और फिर मेरी पैंटी में हाथ डालकर पैड कहाँ पर लगाना है बता देंगे. हे भगवान !

“ठीक है गुरुजी. मैं समझ गयी.”

गुरुजी – ठीक है सावित्री. मैं चाहता हूँ की आज और कल के लिए तुम्हें कम से कम दो बार ओर्गास्म आए. तभी स्खलन की सही मात्रा पता चलेगी. याद रखना , तुम्हें कोई सिचुयेशन बहुत अजीब या अभद्र या अपमानजनक लग सकती है , पर ये सब उपचार का ही हिस्सा होगा. इसलिए तुम्हें नॉर्मल होकर रियेक्ट करना होगा और जो हो रहा है उसे होने देना. जय लिंगा महाराज.

“जय लिंगा महाराज.”

गुरुजी – सावित्री , मैं चाहता हूँ की तुम आश्रम के दैनिक कार्यों में हिस्सा लो. तुम किचन में मदद कर सकती हो . और अगर चाहो तो दोपहर बाद कुछ और गतिविधियों जैसे योगा , स्विमिंग में भाग ले सकती हो.

“ठीक है गुरुजी. जो मुझे सही लगेगा मैं उस काम में ज़रूर मदद करूँगी.”

गुरुजी – अब तुम जाओ सावित्री. मेरे आदेश तुम तक मेरे शिष्य पहुँचा देंगे , क्या करना है, कहाँ जाना है वगैरह. लिंगा महाराज में आस्था रखना , सब ठीक होगा.

“धन्यवाद गुरुजी. जय लिंगा महाराज.”

मैं वहाँ से अपने कमरे में चली आई. गुरुजी की ‘माइंड कंट्रोल’ वाली बात से मुझे टेंशन हो रही थी. गुरुजी ने कहा था की जो हो रहा हो , उसे होने देना , पर मुझसे कैसे होगा ये सब. बिना पति के दिन में दो बार ओर्गास्म कैसे आएँगे ?

शादी के शुरुवाती दिनों में मुझे बहुत तेज ओर्गास्म आते थे पर धीरे धीरे पति के साथ सेक्स भी एक रुटीन जैसा हो गया था.

फिर मैंने अपने मन को दिलासा दी की और कोई चारा भी तो नही है क्यूंकी गुरुजी को ये जानकारी लेनी है की मेरी योनि से स्खलन नॉर्मल है की नही.​
Next article in the series 'आश्रम के गुरुजी': आश्रम के गुरुजी - 07
Previous article in the series 'आश्रम के गुरुजी': आश्रम के गुरुजी - 05