Update 02

काव्या इस बात पे ज़रा शर्मा गयी और थोड़ा सा हस दी. स्वाभाविक हैं स्त्री को अपने सौदर्य की स्तुति पसंद होती हैं और वो इसका जवाब शरमाके देती हैं. काव्य भी शरमाके सुलेमान से बात टालते हुए बोली ..."हे हे...आप भी ना सब बस, कुछ भी" . हालाकि उसको ये बात पसंद आई थी.

उसकी हसी को देख के सत्तू ने कहा..."हा सुलेमान भाई..वो अपनी अमीशा पटेल की माफिक..."

अमीशा पटेल का नाम सुनते ही काव्या शर्म से और लाल हो गयी. उस ऑटो मे अमीशा का फोटो लगा था वो भी सिर्फ़ बिकिनी वाला. सुलेमान ने अपना हाथ उस फोटो पे फेरते कहा “ हम्म..बात तो ठीक कही सत्तू तूने..बीबीजी है बिलकुल इस हेरोइनी माफिक..कितनी खुबसूरत हैं”

“बिबिजी हम गलत नाही कहत..आप सच में उस जैसी हो..बल्कि मैं तो कहू उससे भी आगे”

काव्या शर्म से लाल हो रही थी. और वो एक मुस्कराहट से बोली..”अब बस हां..इतनी तारीफ..कहा वो अदाकारा और कहा मैं जिसको एक्टिंग भी नहीं आती.. आप दोनों भी न”

काव्या की चेहरे पे हसी देख सुलेमान को अब ये विश्वास होने लगा क मछली जाल में फस तो गयी हैं. बस उसको डिब्बे में उतारना हैं. और वैसे भी सुलेमान अपनी बातो में कही औरतो को फसाता था. औरतो की जूठ मूठ तारीफ़ भी कोई उससे सीखे. और अब तो सामने तारीफ़ की जैसी योवन सुंदरी हो तब ये कहा चुप रहनेवाला था.

“अरे...क्या बात करे हो बीबीजी...मैं आपकी खूबसूरती की तारीफ हमरी बेगम के सामने कर रहा हु..फिर भी नहीं हिचकिच कर रहा ..और आप हैं के हमको जूठा मान रहे..”

इसपे काव्या बोली, “अरे ..वैसा नहीं...इ आई मीन चलो आप ही बताओ मैं ऐसी कैसे हो सकती हु?”

ऐसा सुनेहरा मौका सुलेमान कैसा जाने देता? उसने झट से दबे स्वर में काव्या के आँखों में आँखे डालके बोल दिया,

“अरे बीबीजी गलत मत समझिएगा...आपको बताऊ, हमरी बेगम को भी ये पसंद हैं. पर पसंद होने से तनिक कोई होता हैं..इसको ऐसे कपडे पहना दिए तो बावली को कैसे लगेंगे...मगर.....आप को अगर ऐसे कपडे पहना दिए न तो ये सत्तू इसकी फोटो निकाल के आपकी फोटो लगा न दू तो बोलना. आप इससे कही अच्छी लगोगी.”

अमीषा पटेल की पोस्टर पे हाथ फिरते सुलेमान जो बात की उससे काव्या को ४४० वाल्ट ज़टका लगा. पर अपनी इतनी तारीफ़ सुनके वो गर्व महसूस कर बैठी और अपने मुस्कराहट से बयां करती रही. काव्या की हर कातिल हसी पे सुलेमान अपनी ज़िज़क बाजू के सलमा पे निकालता था और वो भी शायद अब उसके हमले के मज़े ले रही थी.

सत्तू ने अचानक एक सुनसान मोड़ पे ऑटो रोक दिया. वहा एक मोड़ था और कच्ची सड़क और बहुत सारी झाडीया. वो शायद किसी के खेतो का रास्ता था.

आधे घंटे से चल रहा ऑटो अचानक से एक मोड़ पे रुक गया. सड़क सुनसान थी और कच्ची. काव्या को लगा कही गाँव तो नहीं आ गया. उसने अपने मोबाइल में देखा तो अभी तक उसपर कोई सिग्नल नहीं बता रहा था. वो कुछ बोले उसके पहले ही सुलेमान बोल पड़ा,

”अरे सत्तू आधे रास्ते में ही कहा ऑटो खड़ा कर दिया रे. बहुत कामचोर हो गया हैं रे तू ”

“अबे सुलेमान. तू बीबीजी से बाते कर बैठत तबसे, तुझे क्या मालूम? काम क्या होता हैं? बात कर रहा”

सत्तु तभी ऑटो से उतरा. उसने एक जोर की अंगडाई ली. उसको देख ऐसा लग रहा था के कितने दिनों से वो लगातार ऑटो ही चला रहा हैं. कामचोर सत्तू को काम करना जी पे आता था. वो तो बस जुवे के खर्चे के लिए और मंगलादेवी की चापलूसी के लिए ऐसे काम करता था. अपने गंदे दस्ताने से खुदका मूह साफ़ करके काव्या के तरफ़ होके वो बोला..

"अरे बीबीजी..आप इस सुलेमान भाई के बातो में मत आओ..बड़े मेहनती हैं हम, काम के बिच में किसीको नहीं आने देते पर का हैं के हमरि भी एक मजबूरी हैं..बस 5 मीनट ज़रा रुकियेगा, बहुत ज़ोर से हमको लगी हैं..तनिक जरा धार मार लेते हैं.."

काव्या के सीने की तरफ़ दिखते हुए भरे भरे गोर क्लेवेज पे नजर गडाते हुए उसने अपना एक हाथ अपने पजामे के उपर रखा और वही अपने लंड को बड़ी बेशर्मी से ऊपर से मसलते हुए गंदी तरीके से हसते हुए बोल पड़ा,

"बस थोड़ा टाइम लगेगा बीबीजी ..बहुत देर से रोक के रखी थी..मादरचोद मान नही रहा."

काव्या उसकी गंदी गाली और धार की बात सुनके शर्म से पानी हो गयी. वहा सुलेमान कहाँ चुप रहने वाला था उसने झट से मौके का फायदा उठाते हुए कहा,

"अरी ओ मादरजाद..जल्दी करो ओये..वरना शाम लगवा दोगे गये टाइम की तरह.." और हमेशा की तरह अपनी गन्दी मुस्कान दिखादी.

भरी दोपहर में उस कच्ची सड़क पे सत्तू मुश्किल से बस ४ कदम चला होगा ऑटो से और फिर उसने अपनी पजामे की ज़िप खोल के अपने काले बदबूदार ७ इंच के लंड को आज़ाद कर दिया. कमीना जान बुझके ऐसा खड़ा था जहा से ऑटो मे से उसका लंड एकदम साफ नज़र आए.

काव्या की नज़र जैसे ही सत्तू के आज़ाद काले लंड पे गिरी वो तो सन्न रह गयी. जब उसने सत्तू का लंड देखा. उसने शर्म और रोमांच के मारे नज़रे नीचे कर दी. इतना मूसल लंड उसने जीवन में पहली बार देखा था. सत्तू का मादरजाद खड़ा लंड देख काव्या ने अपनी आँखे थोड़े देर के लिए मूँद ली.

“स्रर्र्र्र्र्र्र्रररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र......” आवाज़ ने माहोल की शांति भंग कर दी.

शायद बदबूदार पेशाब की धार मादरज़ाद सत्तू छ्चोड़े जा रहा था. भरी धुप में भी सुनसान गली में उसकी आवाज़ मानो सब के कानो में गूंज रही थी.

“अरीय हो मेरी..लैला तेरा चूमा लय लू,,,एक चूमा लयलू...”

सत्तू पेशाब करते समय गाना गाने की आदत रखता था. वहा भी वो जोर जोर से देहाती गाने गा रहा था. गानो में वो इतना मश्गुल हो जाता था के आँखे बंद करके अपने बेसुरे आवाज में और उचे टेम्पो में गाना गाने की कोशिश करता था. ठीक वैसा ही गाना उसने शुरू किया. और गाने की धुन के साथ अपना लंड भी हवा में चलाना शुरू कर दीया. जिससे उसके धार कभी दाए तो कभी बाए उड़ जाती. मानो कोई पौधों को पानी डाल रहा हो वो भी नाचते गाते.

सच मे काम वासना की आग भी अजीब होती हैं. काव्या भी कहा उसको रोक पा रही थी. उसकी नज़रे ना चाहते हुए भी सत्तू के लंड पे फिर से चली गयी. शायद इसकी वजह उसका पढाकू दिमाग़ और उसका लाचार पति था. उसका पति महीनो मे कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था वो भी उसके ५ इंच के लिंग से. उसको आज भी पता था कैसे उसके शादी के पहले दिन सुहागरात में रमण के साथ उसने रात बितायी थी. उसकी उम्मीदों पे रमण उतना खरा तो नहीं उतरा पर काव्या ने उस रात जीवन में पहली बार पुरुष का खड़ा लिंग पास से देखा था. तबसे उसने रमण को ही अपने काम जीवन की कड़ी मान ली थी. उसके लिए वही सबसे आकर्षक चीज थी. लेकिन रमण का लंड सत्तू के सामने मानो ऐसा था जैसे कद्दू के मुकाबले ककड़ी रख दी जाये. यहा देहाती मुसल लंड जैसे कोई साप सा दिख रहा था, जो किसी बिल में जाने के खुरत में बैठा हो. भले ही काव्या के विचार उसको शर्म में बांध दे रहे थे लेकिन काव्या की जवानी जो के उफान पे थी वो जालिम जवानी भला इस कामुक दृश्य को देखने की लालसा कैसे जाने देती?

उसकी नज़रे बाजू में बैठे सुलेमान ने ताड़ ली. उसको पक्का लगने लगा काव्या की निगाहे क्या बया कर रही हैं. तभी सुलेमान ज़ोर से बोला..

"अरी ओ सत्तू, आराम से करो... कही बाढ़ ना आ जाए गर्मी मे भी इस जंगल मे".

क्या जाने इस बात से काव्या अचानक हस पड़ी. उस्की मीठी मुस्कान देख के सुलेमान ने झट से बोल दिया...

"आई हाई...देखो मिया..बीबीजी को भी बाढ़ पसंद नही हैं..कैसे खिलके हस पड़ी देखो..".

सुलेमान ने तभी धीरे से काव्या के करीब आके उसके दूध पे नज़र गिडाते हुए हलके से कान मे कहा...

"मैं भी ज़रा धार मार ले आता हूँ बीबीजी..हौला मान ही नहीं रहा. कब से खुला होने का मन कर रहा हैं."

वो इस कदर पुछ रहा था जैसे काव्या से कोई इजाजत माँग रहा हो. और सलमा की तरफ़ देख के बोला..

"मेरी बेगम ज़रा काम करके आता हूँ, तुम भी धार मार लो...वरना रात को फिर से झगडा करोगी.."

और उसने कसके सलमा का बाया दूध दबा डाला. इस बार काव्या ने ये सब देख लिया था. अभी तक काव्या के सामने ज़बरदस्ती वो दोहरे शब्दो का इस्तेमाल करे जा रहा था और हर शब्दो से काव्या सहर उठ रही थी. अब तो उसने सलमा को काव्या की नज़रो के सामने ही दबा डाला. ये देख काव्या तो शर्म से पानी पानी हो गयी और उसने नज़रे बाजू कर दी. और वो करती ही क्या हमेशा की तरह मिया बीवी का रिश्ता बोलके वो अपने आप को समझा रही थी. बाजु में भी तो कुछ अलग नहीं था सत्तू तो अपन ही धुन में हवा में अपना लंड फिराने में मगन था, ये दोनों दृश्य देख काव्या को हसी भी आ रही थी और और शर्म भी पर धीरे धीरे अब उसके मन मे भी कही न कही काम वासना की चिंगारी जल रही थी.

एक तरफ सत्तू का मुसल हथियार और दूसरी तरफ उसके बाजू में ही सुलेमान की कामुक हरकते देख वो जैसे अन्दर से मोम की तरह पिघल रही थी. सुलेमान ये जान बुज़के कर रहा था. एक और बार काव्या के तरफ अपनी गंदे मूह से मुस्कान दिखाके उसने गहरी सांस भरी. इलायची जैसे खुशबु काव्य के मूह से आरही थी. सुलेमान को वो नशा किसी भांग से कम नहीं था. उसको काव्या के जिस्म की हर एक कोने की खुशबू बहुत पसंद आ रही थी. और वो हर मौके का हिसाब बराबरी का उठा रहा था.

सुलेमान भी अब ऑटो से उतरने लगा. तभी जान बुज़कर उसने काव्या के साइड से उतरने का प्रयास किया और उतरते टाइम उसने वो किया जो काव्या ने शायद कभी सोचा न था.

उसने उतरते समय अपना दाया हाथ काव्या के लेफ्ट थाइस पे रखा और ऑटो से उतर गया. उसके मजबूत हाथो ने कुछ सेकेंड के लिए काव्या की मुलायम थाइस को जैसे कुचल ही दिया था. इस अचानक हुए हमले से काव्या डर के मारे चौक सी गयी. उसको जैसे लगा के किसीने उसको दबा दिया हो. उसके मन मे एक जैसे भूचाल आ गया पर साथ ही बहुत महीनो के बाद, वो भी किसी अंजान पर पुरुष के ऐसे सख़्त हाथो का स्पर्श उसके भी मन को भा लिया. सुलेमान की मजबूत पकड़ शायद एकदम सही जगह बैठी थी और कौन जाने उसने इसी वजह से उसका कोई विरोध नही किया. सुलेमान का स्पर्ष इतना कठोर था के काव्या को छोटी सी सनसनी अपनी योनी में आती हुयी महसूस हुयी.

सुलेमान भी सत्तू के पास जाके खड़ा हुवा और ठीक उसके बाजू में ही बेशर्मी से अपना ७.५ इंच का काला मुसल लंड निकाल के चालू हो गया. उसका लंड तो सत्तू जैसा ही बड़ा था पर उसपे कही सारे बाल थे. सुलेमान बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे की दाढ़ी साफ़ करता था ये तो बात बहुत दूर की थी.

वो इतना बेशरम था के उसने पलट के भी देखा और वैसे ही अपना खुला लंड हाथ मे पकड़े हुए काव्या की तरफ शैतानी मुस्कान दे के सलमा से बोला...

"अरी ओ सलमा रानी..जाओ जल्दी वरना आऊ क्या गोदी मे उठाने?"

अपने सख़्त हाथों मे खुदका साप जैसा लंड लिए वो ऐसे बोल रा था जैसे उसने नुमाइश रखी हैं उसकी. खुद के लंड से पेशाब के फवारे वो उड़ा रहा था. जो यहाँ तो कभी वह गिर रहे थे. दोनों कलुटो ने जैसे पेशाब के झरने बहाने चालू किया था जैसे कोई कॉम्पटीशन लगी हो.

यहा ये सब देखकरके काव्या का हाल हद से ज्यादा बेहाल हो रहा था उन दोनो के लंड देख के अब काव्या तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी. रमण के प्रति उसका आदर अब कम हो रह था. जिसके लिंग को वो अपनी संतुष्टि समझती थी वो असल में नकली नोटों की माफिक उसके सामने फीका गिर रहा था. उसके दिल में भले ही रमण के लिए बहुत ज्यादा प्रेम था लेकिन उसकी शारीरिक भूक उसको कही और लेके जा रही थी. इतने बड़े दो मुसल लंड देखके उसकी हालत पतली हो रही थी. जिस लिंग को वो अपनी जिंदगी समझ बैठी थी वो तो इनके सामने जैसे किसी पंक्चर हुए टायर के जैसा था. उसका मन उसे टटोल रहा था. पर उसका आत्मसम्मान उसे ये देखने से रोक रहा था. लालसा और नियमोके बिच फासी काव्या ने तभी अपने आखो पे हाथ रख दिए और मूह निचे छुपा दिया.

शायद अब सूरज भी सर चढ़ के बोल रहा था और काव्या के चूत मे भी हौले से कही सिरहन दौड़ रही थी. अब तो शर्म और आत्मसम्मान से उसकी हालत इतनी ख़राब हो गइ थी के उन दोनो को छोड़ वो बाजू बैठी सलमा से भी अपनी नज़रे नही मिला पा रही थी. लेकिन उसे ये कहा पता था? जो वो सलमा से छुपा रही हैं, वो काम वासना की अंगारे सलमा अब भाप गयी थी.

दूसरी और सलमा करती भी क्या उन कलुटो को वो अभी अभी झेल चुकी थी इसिलिये वो शर्मा तो नही रही थी पर थोड़ा झुठ मूठ का गुस्सा दिखा के अपने नाराज़गी के भाव बता रही थी. उन कलूटो के मुसंडे लंडो ने उसकी कमसिन सावली चूत का चोद चोद के भोसड़ा बना दिया था. उसकी अन् छुई कमसिन चूत को पहली बार सुलेमान ने जब चोदा था तब उसको पता था दर्द के मारे वो दो दिन ठीक से खड़ी तक नहीं हुयी थी. बाद में तो जाने कैसे कैसे दोनों निकम्मोने अपने अरमान उससे पुरे किये थे. अब वो भी इन सबसे जानी पहचानी हो गयी थी. इसीलिए गन्ने के खेतो में हुई चुदाई में उसने भी अब की बार खुद होके मजा लिया था. आखिर गन्ने के खेतो में उसीका तो रस निचोड़ के पिया था दोनों ने और उसने भी पिलाया था. शायद इसी कारण से उसको भी बड़ी देर से पेशाब लगी थी.

और उसने थोडासा साहस करके काव्या की बाहों पे हाथ रख के कुछ कहना चाहा. वो पहली बार काव्या की तरफ मूह कर के बोली .."ब,बीबीजी.."

काव्या ने अपना चहरे पर से अपने हाथ हटाके हटाके सलमा की और देखा और हिचकिचाते हुए बोली.."हा ब्ब,,बोलो..स,,सलमा"

पढ़िलिखी शहर की मॉडर्न हाई प्रोफाइल काव्या की बोली भी जैसे अटके अटके रह गयी थी दोनो कलूटो के मुसल लंड देखके. हालाकी काव्या पेशे से डॉक्टर थी पर इस कदर उसने कभी सीधी देहाती जिंदगी देखि नहीं थी. शादी के ४ महीने बाद से ही रमण के बिजनेस में बीजी हो जाने से उसके सेक्स लाइफ मे मानो सूखा गिर गया था. सो अब इन दो गैर लंडो को देख उसके काम जीवन मे नयी वर्षा की तरह प्रतीत हो रहा था.

सलमा बहुत धीरे स्वरों में आगे बोली, "बीबीजी मैं भी ज़रा कर लेती हु. और बुरा न मानियेगा पर लगा तो आप भी कर लो ..गाओं मे जाने तक वक़्त लगेगा थोडा. अगर आपको लगे तो..."

उसकी सहमी बाते सुन के काव्या जरा अपने होश में आ रही थी. काव्या ने जरा धीरता से कहा, “अरे इसमें बुरा मानने की क्या बात? ये तो नेचुरल हैं. तुम्हे आई है न वैसे मुझे भी आती हैं.”

काव्या ने भी सोचा उसको भी पेशाब लगी हैं. पूरी धूप मे वो अपनी इकलोती बिसलेरी की बॉटल ख़त्म कर चुकी थी. पर वो ज़रा अकड़ रही थी क्योंकि अपने शानदार बाथरूम और बड़े बड़े होटेल के कामोड पे मूतने वाली काव्या को खुले आसमान के नीचे पेशाब करने का कोई अनुभव नही था. पर सलमा को देख उसने भी आख़िर हा मे हा भर ही दी. और दोनो एक साथ ही ऑटो मे से उतर गये.

वहा दोनो कलूटे अपनी धारो मे व्यस्त थे तभी उन्होने देखा सलमा और उसके पिछे काव्या जो अपने हाइ हील्स से अटक अटक के कच्ची सड़को से झाड़ियो के अन्दर चली जा रही हैं उनको देख सुलेमान जोर से बोला

"अरी ओ सलमा रानी..बीबीजी को संभाल के लेके जाओ..और ज़्यादा अंदर मत जाना साप वाप होते हैं यहा. अगर कही घुस गया तो हमको रात मे हमें ही निकालना पड़ेगा..हा...."

दोनों निकम्मे इस बात पे जोर जोर से हस पड़े. जैसे कोई हैवान अपनी हैवानियत पे हसे.

सलमा ने उसकी तरफ़ मूह टेडा करते हुए गुस्से वाले इशारे में जवाब दिया और बिना कुछ बोले आगे चल दी. उसको अपनी हाई हील्स से बहुत प्यार था. हर ड्रेस पे म्याचिंग हील्स पहननेवाली काव्या को पहली बार देहाती कच्ची सडक पर चलते समय वही हील्स सरदर्द जैसा प्रतीत हो रही थी. वो जरा रुकी और अपने हील्स को थोडा एडजस्ट करने लगी सीधी होने के बाद ज़दियो से ठंडी हवा का एक झोंका उसकी तरफ आया. उस गर्मी में उसको इतना सुकून मिला के उसका स्वागत उसने अपनी गोरी मुलायम बाहे फैलाके किया. पल भर के लिए ऐसा लगा के सुनसान जंगले में कोई मोरनी जैसे सुंदरी ने अपने पंख बाहर निकाले हो और कोई नृत्य करने के लिए. एक अंगडाई देने के बाद, काव्या सलमा के पिच्छे धीरे धीरे से जाने लगी.

उन दोनों के थोड़ी दूर जाने के बाद झट से सुलेमान ने सत्तू से धीरे से कहा “अबे बहनचोद, अब क्या दिन यहाँ पे ही डाल देगा,चल तुझे जन्नत की फिल्म दिखाता हु".

तब तक सत्तू जो अपना पेशाब कर चूका था सो वो दोनो भी मौके का फायदा उठाके उन् दोनो के पीछे चुप चाप चल धीरे कदम चल दिए.

बस थोडा सा आगे जाके दो तीन झाड़ियो के बाद एक जगह सलमा रुक गयी. वो जगह थोड़ी साफ़ थी और वहा बस थोड़ी सी घास उगोई हुई थी. काव्या भी अपनी हील्स से अटक अटक के चलके कैसे तो उसके बाजु खड़ी हो गयी.

सलमा जो के इन सब हालात जुदा नही थी उसने बडी आदरता से काव्या से कहा,

"बीबीजी..यहा ठीक रहेगा. कर लो आप यहा."

काव्या ने पहले आसपास एक नज़र दौड़ाई. सचमुच उसको वहा बहुत नयी जैसी अनकही फीलिंग आ रही थी. उसने कभी खुदको वैसे हालात में नहीं पाया था. चारो तरफ झाडिया, दोपहर की धुप और सुनसान इलाका ये सब बाते उसको नयी थी. कहा एक तरफ आलिशान बंगले में मेहन्गे विलायती कमोड पे बैठके अपने सबसे अनमोल अंग से पेशाब की धार छोड़ने वाली काव्या आज, वही धार एक देहाती कच्ची जगह पे छोड़ने वाली थी. बात तो तब और बिगड़ जाती जब कभीकबार उन्ही झाड़ियों से कोई हवा का झोका उसके कमसिन बदनको छू के निकल जाता और उसमे एक रोमांचभरी सिरहन उठा देता.

उसने थोडासा हिचक के सलमा से कहा, "अरे.. नही तुम भी करो यही ,और मैं..?”और वो बोलते बोलते रूक गयी.

सलमा समझ गयी शहर की डोक्टोरिन को ऐसे जगह की आदत नहीं होगी इसलिए शायद वो शर्मा रही हैं. उसपे सलमा ने कहा “ बीबीजी..मुझे पता हैं आप बड़े लोगो को इसकी आदत नहीं होगी पर हम गाँव वाले ऐसे ही सब करते हैं, खुले में”

काव्या ने उसकी बाते सुनके सिर्फ गर्दन हाँ में हिलाकर रेस्पोंसे दिया. और फिर से नज़रे आस पास दौड़ा दी.

सलमा ने उसकी इस हरकत पे जरा हस के चुटकी लेते कहा “ बीबीजी..भला आप भी इतना क्यों शर्मा रहे हो?”

काव्या को ये बात ज़रा लग गयी. उसको लगा सलमा उसको कही शर्मीली तो नहीं समझ रही. काव्या के बारे में एक बात थी. वो बहुत प्रोफेशनल किस्म की महिला थी. उसके सहेलियोके ग्रुप में भी कोई अगर उसको कुछ चिडाता या चैलेंज देता तो उसको ये बात बिलकुल हजम नहीं होती थी. उसको कभी ये पसंद नहीं था के कोई उसको किसी बात पे कम समझे. बस सलमा की मंद हसी को देख अपना ईगो सम्भालाते काव्या ने थोड़े उचे स्वर में कहा “ अरे, वो बात नहीं हैं. अक्चुअली, मुझे न ऐसे आदत नहीं हैं इसलिए लग रहा था कैसे करते हो तुम सब ऐसे, कोई आता तो नहीं न बिचमे ही?”

सलमा काव्या के इस बात पे और ज़रा हस दी. उसने इस बार ज़रा खुलके बात की.

“अरे नही बीबीजी..आप ऐसा मत समझो..बस आप कर लो तनिक, कोई नही आएगा इधर देखिएगा..”

खुद में विश्वास भर के अपने ईगो को बिना हर्ट करके के काव्या और देहाती कमसिन सलमा दोनों एक बार अपने आस पास नज़र डालके अपने आपको पेशाब करने के लिए तय्यार कर रही थी. तब तक सत्तू और सुलेमान जो उनको टटोल रहे थे वो दोनों वहा नज़दीक एक पेड़ के पीछे छुप गये. वहा से उनको उन दोनो के पिछेका का पूरा हिस्सा जैसे 'सीधा' दिख रहा था. दोनों को वैसा देख के, पिछे कलुटो के मन में तो जैसे दावत के बाँध फुल रहे थे.

तभी सलमा अपना सलवार का नाडा खोलते खोलते काव्या से बोली,“बीबीजी, डरो नही साडी कर लो उपर..यहा कोई नही आएगा"

जैसे ही काव्या ने उसकी तरफ़ हा मे इशारा करते देखा वो जैसे चौक ही गयी.

सलमा जिसने अपना सलवार के नाड़े की गाथ ढीली कर दी थी जिसके कारन उसका सलवार उसके जवान पैरो से नीचे सटक कर ज़मीन पे गिर गया था. और उसके पिंडलिया नग्न हो गयी थी. जैसे ही नीचे पेशाब करने के लिए उकड़ू बैठी उसकी खुली चुत काव्या के नज़रो के सामने आ गयी. उसकी चूत उसके ही जैसी सावली थी और उसके उपर बालो का घना साया था. अभी अभी हुयी चुदाई के वजह से उसकी चूत थोड़ी सुज़ भी गयी थी.

क्योंकि पेशे से डॉक्टर होने से उसके इस हालत पे देख काव्या ने एकदम सब भूलके अपनी चुप्पी तोड़ के सलमा से पुछा,

"ओह माय गॉड, डिअर...एक बात पुछू?"

सलमा थोडा शर्मांके वैसे ही अपनी कमीज को अपने हाथ मे पकड़ते हुई बोली "अरे बोलिए ना बीबीजी..क्या हुआ?.."

काव्या उसके चूत पे नज़र टीकाके बोली, "वही जो दिख रहा हैं..डिअर तुम कभी शेव नही करती नीचे?"

सलमा इस बात पे शर्म से पानी हो गयी. उसने अपनी तिर्छी नज़रो से नीचे देखा तो सच मे बालो का जंजाल बन चुका था. शायद जवानी मे जब से कदम रखा था उसने वहा कभी रेज़र लगाई ही नही थी. देहाती सलमा को यह सवाल अजीब लगना स्वाभिविक था. शरमाते हुए वो झिजकते हुए काव्या से बोली "जी वो न..नही बीबीजी.."

काव्या जो एक डॉक्टर थी, उसके लिए ऐसी बातों पे शरमाने की कोई वजह ही नही थी. वो इसपे और खुलके बोली, "अरे...ऐसे कैसे..तुमको ये जगह बिलकुल साफ रखनी चाहिए. इसको ऐसे नहीं रखना कभी. तुम्हे किसीने नहीं बताया क्या? तुम्हारे हज़्बेंड को कुछ नहीं लगा क्या इसका ?"

काव्या ने और बात चलाते हुए बोला, "और तो और तुम उसको ढक कर भी नही रखती? कुछ अंदर पहना भी नही हैं तुमने तो..?"

भले ही काव्या एक डॉक्टर की तरह सीधे उसको सवाल पे सवाल पूछ रही थी पर सलमा ये सब बाते सुनके शर्म से लाल हुए जा रही थी. ठीक वैसे जैसे कुछ समय पहले काव्या को ये माहोल देख के लग रहा था. लेकिन काव्या के इन सवालों का उसके पास कोई जवाब नही था.

सलमा जिसको ये पता था के सुलेमान उसका पति नहीं हैं वो सिर्फ काव्या के सामने ये सब नाटक कर रहा हैं. उसका मकसद सलमा को पता नहीं था पर उसको काव्या को बताने के लिए कोई शब्द भी नहीं थे. वैसे सलमा बोले तो क्या बोले? के 1 घंटे पहले ही सुलेमान ने खुद सलमा की कच्छी उतार के अपने पास रख दी थी जो शायद उस वक़्त उसके जेब मे ही ठुसी हुई थी. बस सलमा कुछ ना बोलते निचे देखते हुए चुप रही और कुछ ही पल मे उसके चूत मे से पेशाब की धार स्रर्र्र्ररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र...........हो के निकलने लगी.

पिछे झाड़ी के बगल खड़े हुए सत्तू और सुलेमान तो जैसे इस सबका मज़ा लेने मे मगन थे. सत्तू ने धीरे से सुलेमान के कानो मे बोला " क्यो बे हरामी..सलमा की चूत चोदने के बाद तूने उसकी कच्छी कहा डाल दी?"

सुलेमान अपनी गन्दि शैतानी मुस्कान देके धीरे से बोला, "अबे मादरचोद..मैने वो अपने जेब मे रखी हैं. उसको तेरे ऑटो मे और चोदने का प्लान था मेरा. पर मा की लोडी बच गयी"

उसपे सत्तू बोला " चल जाने दे..अब तो इसको इस डोक्टोरिन के साथ चोदेगे.."

और इस बात पर दोनों कलूटे अपनी गन्दी हंसी हंस रहे थे. उन् दोनो से अंजान यहा सलमा और काव्या अपने काम मे व्यस्त थे. स्रर्र्र्र्ररर.......धार की आवाज से वहा की शांति थोड़ी ख़त्म हुई. काव्या ने यहा वहा एक और बार देखा और अब वहा वो होने वाला था जो शायद सत्तू और सुलेमान को कोई जन्नत के दरवाजो से कम नही था.

सलमा अपनी धार छोड़ने में व्यस्त थी अब काव्या को भी पेशाब संभाली नहीं जा रही थी. सो काव्या थोड़ासा आगे बढ़ी और सलमा के थोडा बाजू में ही खड़ी हो गयी.

वो ज़रा नीचे बेंड होके अपनी साडी दोनो हाथो से उठाने लगी. धीरे धीरे करते हुए उसकी महंगी शिफोन की साड़ी उसके पैरो से लेके पिंडलीओ तक पूरी गांड के उपर चढ़ जैसे गयी, और वहा वो उसको दोनो हातो से समेट कर खड़ी हो गयी.

यह देख पीछे खड़े दोनो कलूटो के लिंग मे तो जैसे भुचाल आ गया. वो दृश्य ही कुछ ऐसा था के अच्छे अच्छो का पानी निकल जाए. काव्या ने उसकी की साडी कमर तक पकड़ी हुई थी, जिससे उसका पिछवाडा पूरी तरह से साडी से बाहर नग्न हो गया था उसके कारण उसकी महंगी प्यांटी जो के कोटन मटीरियल की पिंक आउटलाइन की एक विलायती ब्रांड कंपनी की थी वो साफ दिख रही थी. उसके पिछवाड़े को वो चिपक के लगी हुयी थी. काव्या की टांगे दूध जैसी गोरी थी के जो किसी भी लंड को पिघला दे. गोरी, दूध जैसे एकदम चिकनी टांगे और उसपे पिच्छेसे भरी उभरी हुई गद्देदार गोल मटोल सुडोल गांड को देखके दोनो कलूटो के मूह मे पानी आ गया.

अप्सरा जैसी सुंदरी काव्या को देख के सामने बैठी सलमा भी चौक गयी. उसने काव्या की खूबसूरती का नज़ारा देख कर उसके प्रति सहिष्णुता दिखाई. अब बारी सलमा की थी जो सवालो के घेरो में बंध रही थी. वैसे ही अपना पेशाब चालू रखते भोली देहाती सलमा ने काव्या से बिना शर्माके पूछा,

"बीबीजी..आपके टाँगो पे तो एके भी बाल नही हैं?"

काव्या उसके इस नादान सवाल पे थोड़ी मुस्कुराते हुए बोली, "अरे, वो वॅक्स किया हैं मैने.”

देहाती सलमा को भले इन चीजो से क्या वास्ता वो चौकके बोली, “क्या?..’वकास’, ...वो क्या होता हैं, कोई इंजेक्शन या तनिक कोणी ओपरेशन होता क्या बीबीजी?”

काव्या को उसके भोलेपन पे मन से हंसी आई. सच में क्या दृश्य था, मेनका जैसी राजसी महिला एक मीठी मुस्कान के साथ साडी कमर तक पकडे हुए अपने हाई हील्स पे कच्ची देहाती जगह खड़ी थी. और उसके बाजू में ही एक देहाती कमसिन जवान लड़की अपने योनी से मूत्र की धार छोड़े जा रही थी. भला कामदेव भी ऐसे चित्र को देख खुदको संभाल न पाएं.

“तुमको भी बताऊगी मैं ओके, हें हें.." काव्या ने उसको मीठी मुस्कान के साथ कवाब दिया.

सलमा को उसके जवाब से संतुष्टि तो नहीं हुयी पर असमझ में गिरी सलमा ने निचे देख अपने काम पे ध्यान केन्द्रित किया. अब आगे जो होने वाला था वो देख के जैसे काम देव भी सत्तू और सुलेमान की किसमत पे जलन महसूस करते होगे.

तभी काव्या ने साडी को एक हाथ से पकड़ा और अपने दूसरे हाथ की नाजुक उंगलिया अपने ब्रांडेड प्यान्ति के अन्दर डलवा दी. आह... अपने नाजुक अंगो से प्यांटी की इलास्टिक को उसने धीरे धीरे नीचे कर दिया.

जैसे ही प्यांटी उसके नाज़ुके अंगो से घुटनों पे अटकी, सप बोलके वो खिसक के निचे गिर गयी. और उसकी साफ सपाट चिकनी दूध जैसी गोरी भरी भरी चूत सलमा के नज़रो के सामने आ गयी.

काव्या वही पे उकड़ू बैठ गयी और साडी को हाथो मे समेट लिया. अंत में वो क्षण आया और खुले आसमान मे अपनी चूत के फाको से बहती पेशाब को काव्या ने देहाती ज़मीन पे छोड़ दिया...

स्रर्र्र्र्रररर्र्रर्र्रर्र्र........

ये सब देखकर वह सत्तू और सुलमन होश खो बैठे थे. एक बार भी उन्होंने अपनी पलके तक नहीं झुकाई थी. एक जैसे वो ये सब देखे जा रहे थे. और काव्या की पिछवाड़े का आँखों से ही स्वाद ले जा रहे थे. जब वो उकडू बैठके पेशाब करने लगी तन उसके योनी से निकली हर वो बूँद उनको किसी अमृत से कम नहीं लग रहा था. उनके मूह में जैसे पानी की बाढ़ आगई थी. किसी बूत की तरह वो उसी जगह पे जकड गए थे.

"आहह....मा कसम..सत्तू इस मादरज़ाद की गांड तो देख. साला कितनी कसी हुई, कितनी गोरी, भरी भरी हैं. इसकी गांड तो मैं पहले मूह से चोदुंगा और फिर इसको हवा अपने गोदी में उठाके मेरे लवडे से दना दन ठोकुंगा."

सुलेमान जो कई बार शहर की सस्ती रंडियो को चोदे हुए था और एक बार एक की गांड भी मार चुका था उसके लिए काव्या जैसे राजसी युवती की गांड मानो जैसे ज़िंदगी का मकसद हो.

दोनों निकम्मे अपने लंड को मल रहे थे. सत्तू ने तो वहा पे ही अपने लंड को निकल के हाथ में पकड़ लिया और वैसे ही मूठ मारते हुए बोल पड़ा, "बहनचोद..इस की गांड देख के तो लवडा पागल बन गया हैं.. कसम जुवे की, लग रा के अभी लंड कही घुसाऊ और मूठ मारू....बोल डालु क्या तेरी गांड मे ही?"

उसकी बाते सुनके दोनो कलूटे शैतानो की तरह हस दिए​
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