Update 06
उसने उसी पोर्न फिल की तरह बहुत धीरे से अपने दोनों हाथ काव्या के पैरो के बाजु में रखे. और खुदको को झुकाके उसके जांघो की तरफ मूह ले लिया. बहुत ही धीरे धीरे वो ये सब किये जा रहा था. काव्या की जांघो से आती हुयी मादक खुशबू उसको करीब से सुंघनी थी. उसने ठीक वैसा ही किया अपनी नाक को उसके बड़ी कुशलता से उसके गद्देदार जांघो से सटा दिया.
“आह...रंडी....मेरा निकल रहा हैं...आह..”
वहां सुलेमान अब अपनी चरम सीमा पे खड़ा था. उसका लंड अब सलमा की चूत खा के तृप्त होने जा रहा था. सलमा जो बस कुछ ही पल के पहले अपना पानी छोड़ गयी थी. उसको भी ये अंदाजालग गया के सुलेमान अपनी पिचकारी कभि भी छोड़ सकता हैं. लेकिन उस भोली कमसिन को ये नहीं समझ रहा था के वो लंड और अन्दर की तरफ क्यों सरका रहा हैं. तभी सुलेमान अपने आखरी धक्के देते हुए बोल पड़ा,
”आह...मेरी रंडी..बोल हमारी मदत करेगी न...”
“किस बात में भड़वे...आह..”
लंड और चूत के अन्दर की और घुसाते वो बोला, “कल तू उस डोक्टोरनी से मिलने जाएगी,,आह...और..और उसको मेरे घर तक लाएगी..”
“आह,...तेरे पाप में मुझे क्यों मिला रहा हैं...नहीं करती मैं ऐसा कुछ...”
“रंडी..तेरी क्या जा रही हैं....आह...इतना नहीं कर सकती क्या ...लंड तो ले रही हैं गपा गप...”
“नही...आह...म्म...नहीं करुँगी...क्या करेगा तु...कमीने....”, गुस्से से और कसमसाते हुए सलमा ने जवाब दिया.
“साली तू ऐसी नहीं मानेगी..रुक तेरा इन्तेजाम हैं मेरे पास..”
ऐसा बोलकर सुलेमान ने सलमा को जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और उसके होठो को अपने होठो में कैद कर डाला. उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी के सलमा हिल भी नही पा रही थी. उसका नाक उसकी नाक से साँसे चुरा रहा था. होठ उसके होठो की गिरफ्त में थे. बड़े कस के वो उस्को चूस रहा था. अपना बदन फेविकोल की तरह चिपकाके दोनों भी पसीने से एकदम लदबद खाट पे पड़े थे. वैसे ही अंग से अंग रगडके सुलेमान ने वो किआ जो सलमाने कभी सोचा ही नहीं था. उसने सलमा के चूत में अन्दर तक घुसे अपने लंड से वीर्य की धार सर्रर्रर्र ... बोलके छोड़ डी.
उसका लिंग आधे घंटे से फुला हुआ था. मुसल लंड सलमा की चूत में ही अपना वीर्य थूक रहा था. एक बड़ी पिचकारी ऐसे निकली के वो सलमा के बच्चेदानी पे जा कर ही रुक गयी. गरम गरम लावा उसको महसूस हुआ. सलमा ने भी आह निकली, “हाअय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य...हाआआआआआआ..गयीईईईई
ईईईईईईईईईईईईईईईईए....मीईईईईईईई,,,,हाआआआअ..कमीने.....कुत्ते”
पहली बार किसी ने कमसिन के चूत के अन्दर अपना पानी छोड़ा था. सलमा उस वक़्त सब चीजो से परे हो गयी. उसकी आवाज भी कमजोर गिरने लगी और उसकी आँखे संतुष्टि से बंद हो गयी और साथ ही नये अनुभव में उसका अंतर्मन लीन हो गया.
“आः.......रंडी.......ले साली.....आह...काव्या....”
सुलेमान वैसे हो दबोच के सलमा के चूत में अपने लंड की पिचकारी छोड़े जा रहा था. कुछ समय के बाद उसके लंड ने पिचकारी बंद कर दी. सलमा की चूत से उसका वीर्य निचे सर्र होक टपक रहा था. दोनों निढाल हो पड़े थे. सुलेमान वैसे ही उसके बदन पर चिपके हुए ढेर हो गया. काव्या का नाम अंतिम क्षण में लेके जैसे उसने आने वाले समय के संकेत दिए. पसीना शराब और वीर्य तीनो की खुशबू से झोपडी का समा रंगीन हो गया था. सत्तू बाजु में ही शराब में चूर अपना लंड हाथ में लिए अभी भी इंतज़ार में लगा हुआ था. शायद उसको आज इंतज़ार से ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला था. तभी मौसम ने भी रुख बदल दिया. शाम होने को थी गाँव क बादलो ने भी इस नज़ारे पे करवट बदल दी. आसमान में बादल आने लगे. और हलकी सी बूंदा बंदी शुरू हो गयी.
बस फिर क्या? अब वो उसके वश में हो गया था. उसने अपनी हिम्मत बढाई और दायने हाथ की उँगलियों से काव्या की प्यांति को एक तरफ से उठा लिया और बाए हाथ से उसको बहुतही हल्का सा महसूस किया. प्यांति बाजु में करने के कारन काव्या की चूत पूरी बाहर आ गयी. कुछ भी हो आज काव्या की चूत का दर्शन बार बार मिल रहा था. कुछ घंटो के पहले ही झाड़ियो में उसकी चूत ने अपना पेशाब छोड़ा था तब सब ने उसका नयनसुख लिया. और अब तो इतने करीब से कोई उसके साथ अपनी उँगलियों से खेल रहा था. वक़्त इतना तेज़ी से करवट बदलेगा ये तो काव्या की खुबसूरत चूत को भी पता चल गया होगा.
रफीक ने एक टक से उसकी चूत पे नजर डाली. उसका लंड तो मानो चीख रहा था, कबका कच्छे के बाहर आकर दंगल मचा रहा था. बस उसको चाहिए था वो सुनहरा छेद जिसका मजा रफीक की आँखे उठा रही थी. रफीक थोडा नजदीक गया. उसने अपनी जुबान काव्या के अंगो पे बेहद धीरे से चलाई. बड़े कोमलता से वो उनको चाट रहा था. उसका रोम रोम उत्तेंजित हो रहा था.
उसने अपनी नाक काव्या के योनी पे टिकाई. उसकी मादक खुशबू लेकर के वो और बेकाबू हो गया. उसने अपने बाये हाथ की बिच वाली ऊँगली काव्या के चूत के ऊपर से नीचे की तरफ बहुत ही हलके से घुमाई. वो स्पर्श, वो एहसास, वो महक उसकी उत्तेजना को सीमा पार बढ़ा रही थी. अब प्रेम जो चरम सीमा पर था वो रफीक को अलग दुनिया में ले जा रहा था. उसी बहाव में बहते उसकी जबान उसके मूह से बाहर आ गयी. बिना कुछ देरी लगाते उसकी उँगलियों की जगह उसके जबान ने ले ली. और देहाती नवयुवक ने देखते ही देखते शहरी राजसी महिला के मखमली चूत पे अपनी जबान फिरा दी.
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यहाँ दूसरी और सलमा की जबान और मूह भी कहा खुले थे. सत्तु मादरजाद अपना मुसल लंड उसके मूह में दबाते जा रहा था. उसके बालों को पकड़ के वो लंड को पूरी तकाद से उसके मूह के अन्दर बाहर कर रहा था.
“आह...रंडी...सलमा....चूस....रंडी...”
उम..उ...ऊउम्मम्म...की आवाज के अलावा सलमा के पास कोई शब्द नहीं थे. मुसल लंड उसके मूह चोदे जा रह था. उसकी चीखे आवाज सब दब रही थी. ऊपर से सुलेमान का सांड जैसा बदन उसके ऊपर कहर बरसाके सो गया था.
गल्प गल्प.....कर कर के सलमा का मूह को अछि तरह चोद के सत्तू अपनी प्यास बुझा रहा था. उसने अपने एक हाथ से सलमा के दूध के ऊपर की घुंडी को चिकोटी काट ली.
“आई.....हाई.....चूस रंडी....जोर लगा..:”
सालमाँ की आँखों से पानी टपक गया. वो पानी रोने का नहीं था बस एक मीठा सा दर्द था. जो अब उसको सहने की आदत लग गयी थी. लंड का पसीना, खोली में शराब का असर उसका गला सुखा रही थी. बस राहत थी तो बाहर से आती हुई ठंडी हवा और मीट्टी की खुशबु. उसके मूह से निकलती थूक से सत्तू का लंड पूरा का पूरा भीग गया था. सलमा को भी ये पता था के दोनों कलुटो से पीछा छूडाना हैं तो उसको खुद खेल में उतरना ही होगा. ठीक जैसे सुलेमान के साथ उसने अपना सहयोग दिखाया. उसने वक़्त ना गवाते ठीक उसी समय अपने बाय हात मे सत्तू का लंड पकड़ा और मूह के अन्दर चलने दिया.
सत्तू ये देख के बहुत खुश हुआ और बोल पड़ा..”आज पक्की रंडी बन गयी हो सलमा...आः...मजा आ गया तुमको ऐसा देखके.,,...मेरी रंडी...चूस और चूस...“
वासना भी अजीबी होती हैं. हर वो शरीर का पुर्जा जो इसमें जुट जाए वो पूरी तरह से उसके आधीन हो जाता हैं. एक तरफ एक लंड और एक तरफ एक चूत दोनों को भी बड़ी तबियत से चूसा जा रहा था.
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रफीक जो बेकाबू बन गया था उसने अपने होठ काव्या के चूत को लगा दिए. उसको कुछ खारा और मीठा मिक्स स्वाद आने लगा. वो बस उसको और चखना चाहता था. उसने बेकाबू में अपनी जीभ को थोडा अन्दर की और सरकाया..और काव्या के मूह से पहली बार सिसक निकल गयी....स्स्सीईईई.......
रफीक की मानो साँसे रुक गयी. वो वैसे ही प्यांति को पकड़ के जुबान अन्दर डालके अटक गया. बिलकुल किसी मूर्ति के माफिक. पर काव्या ने जो बडबडाया उसको देख के उसने चैन की सांस छोड़ी..
“ऊओम्म्म......रमण,,,,लव मी,...बेबी.....”
काव्या नींद में रमण के ख्वाब देख रही थी. उसके योनी में लगी आग उसके नींद को भड़का रही थी. उसका दीमाग समझ रहा था के वो पति रमण के साथ हैं और रमण उसको प्यार कर रहा हैं. खैर रमण की याद में खोयी काव्या को सपनो में देख रफीक को समझ गया वो अभी भी नींद में ही हैं. उसने अपना ध्यान फिर से काव्या की चूत पे ले लिया पर अपने नज़रे काव्या के चेहरे पे ही रखी.
अपना दबाव उसने बड़ी आहिस्ते से काव्या के चूत पे बढ़ाया. उसको अपनी जीभ से वो चाट रहा था. बहुत ही नाजुकता से और धीरे से वो ये सब कर रहा था. उसको हर वो सिन याद रहा था जिस पोर्न में वो लड़का उस महिला की योनी में अपन मूह दबाता हैं, उसको चाटता हैं. उसी तरह से वो कर रहा था.उसने मूह ऊपर किया और अपना थूक काव्या के योनी पे बड़े तरीके से थूक दिया. काव्य की चूत उससे लदबद भर गयी. बस फिर क्या उसने उसके चूत के समुन्दर में अपना मूहसे एक छलाग लागा दी. और जीभ को अन्दर की और सरकाने का प्रयास शुरू रखा.
यहाँ वो चाट रहा था वह काव्या सिसक रही थी काव्या की हर सिसक की तरफ ध्यान डे के वो सब कर रहा था. वही दूसरी तरफ सलमा जो के सत्तू का लंड चूस रही थी. जैसे सब तरफ वासना ने अपनि बाजी चलायी थी फरक था तो किसिकी आँखे खुली थी किसीकी बंद. कोई जाग रहा था तो कोई नींद में था.
अपने थूक और जुबान से काव्या की योनी में रफीक ने अपना डेरा जमाया था. २० साल का ये नवयुवक किसी अनुभवी नर जैसे खुदको इस्तेमाल कर रहा था. जीवन में प्रथम किसी महिला की योनी को स्पर्ष करने से उसका स्वाद लेने तक का अनुभव उसको मिल गया था. वो भी किस्मत में जब ऐसी राजसी महिला हो तो क्या कहना. जिसके कोने कोने में सुन्दरता और मादकता का पंचम रस का समावेश हो. जहा भी मुख डालो वह से कुछ न कुछ ज़रूर आनंद मिले ऐसे मादक और सुन्दर शरीर की देवी उसके सामने थी. जिसने उसके काम जीवन का आरम्भ में ही उसको प्रसन्न होके कोई वरदान दिया हो.
अपने जवान काम वासना और प्रेम भाव में डूबा ये नवयुवक इस सुंदरी के सबसे अनमोल शरीर का बड़े ही विलोभनीय अंदाज़ से भोग कर रहा था. उसके मूह में योनी का स्वाद अब पूरा उतर गया था. और साथ ही उसका जवान लंड उस स्वाद से, उस अनुभव से उछल उछल के उच्चतम शिखर पे जा पहुंच गया.
लालसा न हो वो वासना कैसे? बस यही तो हो रहा था वहा. रफीक की लालसा काव्या की और बढ़ रही थी. छूने से ले कर महसूस कर ने तक, अब वो स्वाद भोगने तक पहुच गयी तो थी. पर अभी भी कही कुछ सूनापन उसके दिमाग को टटोल रहा था. वो था उसके नवजीवन भाव से भरा पड़ा कमसिन लंड और उसकी भूक. इसी लालसा भरे विचारो ने फिरसे उसके उलझे मनों को प्रश्नों के आहट से जगा डाला.
पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..गाओ में से निकल देंगे तुमको...रुको
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और क्या करने वाले लोग...जा मजे कर..
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...
दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. पर कहते हैं न बहुमत की सरकार होती हैं वैसे ही उसका बहुमत पहले मत की और था. क्योंकि उसकी वासना और झूम के तना हुआ लंड उसके पक्ष में खड़े थे. जो उसके दिमाग की मा चुदा रहे थे.
दूसरी तरफ सत्तू सलमा का कब से मूह चोदे जा रहा था. मुसल लंड पूरा उसके थूक से भीग गया था. सलमा भी खुद से उसका लंड चुसे जा रहा थी. सुलेमान का सांड जैसा शरीर का बोझ उठाके उसके मूह से लेक्र पुरे शारीर पे पसीना बिखर गया था. चेहरे पे बाल बिखर रहे थे. सच में आज किसी पक्की रंडी की माफिक वो लग रही थी. उसके नाजुक देहाती होठ सत्तू के लंड को रगड़ खा रहे थे और जुबान उसके टोपे को छेड़ रही थी. उसके लंड के झाटे तक थूक से लद बद हो गए थे. सबके कारण उसके लंड की नसे तन रही थी और, वो और लंड फुल कर चरम उसकी सीमा पर बढ़ रहा था. सत्तू हर उसके दबाव का आनंद अपनी आँखे बंद किये हुए होठो पे संतुष्टता के भाव लिए उठा रहा था.
पर वासना के पुजारी ये कलुटे शांत रहे तो कैसे? जब मादरजाद ने अपनी आँखे खोली तो उसको और एक पाशविक बात सूझी. उसने सलमा का दूध कस के मसलते हुए कहा...
“आह....रंडी....आह....तनिक निचे की गोटीया भी ली लो तोहार मूह में....चोद दो आज.....”
उसने बिना समय गवाए सलमा के बालो को खींचकर अपना लंड उसके मूह से निकाल के निचे की गोटियों को सलमा के खुले मूह में ठूस दिया. और बहुत जोर से शैतानी हसी हस दि.
“आह....छिनाल...इसको भी चूस...”
सलमा ने उनको चूसते-चूसते उसकी और इस बार भी गुस्से से देखा पर वैसे ही उसने अपना ध्यान अपने मुखमैथुन पे केन्द्रित किया ठीक जैसे रफीक ने किया था. नारी हो या नर ध्यान वही था जहा वासना का पगडा भरी था. यहाँ पर भी बहुमत का पक्ष काम वासना ने जीत लिया.
दोनों मनो की बात सुन के, रफीक ने सोचा क्यों न बस एक बार काव्या की योनी को बाहर से लंड से छू दिया जाए. बस इतना एक बार करने थोड़ी कुछ होगा? बस एक बार अम्मी की कसम. एक बार करवादे खुदा. फिर से मिन्नते मांगते मांगते कब उसकी जुबान काव्या के चूत के और अन्दर की और फिसल गयी उसको समझा ही नहीं. और ऐसा ही कुछ आगे हो गया जैसे उसकी मन्नत कबुल की गयी हो.
“उम्म्म......रमण......आऊच......याह”
एक जोर की सिसक काव्या ने छोड़ दी. नींद में उसके ये भाव देख के लग रहा था नवयुवक के खेलो ने अपना गहरा जादू उसके ऊपर चलाया दिया हो. उसकी मन्नत काबुल हो गयी हो. वासना के सपनो में खोयी काव्या नींद में सब लुफ्त उठा रही थी सिर्फ उसका साथी रमण था. शायद उसके लिए भी ये अनुभव नया था. उसका बिजी रहनेवाल पति रमण जो कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था शायद ही उसने उसकी राजसी योनी को इस कदर चखा हो जैसे ये नवयुवक चुसे रहा था. इसीका असर ये हुवा के काव्या का बाया हाथ अपने आप ही उसके योनी की और सरक गया. और उसकी उँगलियाँ योनी के ऊपर आ गयी ठीक रफीक के मूह निचे.
रफीक उसकी हर एक हरकत गौर से देख रहा था. क्या नजारा बन गया था. काव्या की ऊँगली खुद होक उसके योनी में प्रवेश कर रही थी. तभी जैसे कोई शिकारी शिकार पास आते हु उसपे टूट पड़े वैसे रफीक ने उसकी ऊँगली को अपने मूह में भींच लिया. और उसको भी चूत के साथ चाटना शुरू किया.
नाजुक उंगलिया, नरम गरम चूत दोनों को मजे से और धीरे धीरे चाटते उसकी थूक और चूत का रस दोनों एक दुसरे में मिल रहा थे. इन सबे से उसको संभाले नहीं जा रहा था और तभी उसने अपना दूसरा हाथ अपने लंड पे ले लिया और उसकी चमड़ी को आगे पीछे करना चालू कर दिया.
“उम.......याह,.....ऊऊऊऊम्म्म्म..बेबी...”
काव्या की आहे उसकी हर हरकत से तेज़ हो रही थी. काव्या की बाये हाथ की ऊँगली अब उसके मूह में चली गयी. ठीक उस पोर्न फिल्म कि तरह प्रतित हो रहा था. जिसमे मोडल का एक हाथ चूत पे और एक हात मूह में हो. रफीक ये सब देख बेकाबू हो रहा था. और उससे भी बुरी हालत उसके लंड की थी. जिसको को मल रहा था.
वही सलमा की हालत भी कहा सस्ता थी. सत्तू मादरजाद झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. लग रहा था देसी दारू का नशा उसके लंड में उतर गया हो. सलमा ने उसका लंड को हाथ में समेटा और उसकी टोपी पे थूक दिया. बड़े कामुकता से उसको मूह में फिर से डाल दिया. और अपने होठो से ऊपर से निचे पूरी तरह से सरकाना चालू कर दिया. उसके लंड की गोटियों को वो बड़े मन लग्गाए चूस रही थी. जैसे उसने प्रतिज्ञा ली हो इस बार वो उसका पानी निकल के दम लेगी. इस चाल से सत्तू ने भी एक आह छोड़ी.
“आः.....छिनाल....चूस...”
दोनों तरफ चुसना और चुसाना अपने चरम सीमा पर पहुँच गया था.. दोनों तरफ सिसक, आन्हे तेज़ हो रही थी. और जल्दी ही किसी भी समय कामुकता का रस दोनों के मूख में बारिश की तरह बरसने वाला हो. किसी अलग अंदाज से देखे तो लग रहा था ये काम वासना की यह सर्जिकल स्ट्राइक कभी भी अपने मुकाम पे विजय प्राप्त कर सकती हैं.
“उम.....याह...रमण....बेबी...उम्म्म....म्मम्म”
गहरी नींद में काव्या जोर जोर से सिसक रही थी. कबसे रफीक अपने मूह से उसकी राजसी सी चूत की मा चोदे जा रहा था. पुरे जोश से अब वो उसकी चूत चाट रहा था. काव्या के कमर पे दोनों तरफ हाथ डालके उसकी चूत बेताबी से चाटते हुए अपनी पूरी जीभ उसके चूत के अन्दर घुसाके रफीक उसका स्वाद सही मायने में किसी अनुभवी चुद्द्कड़ के जैसे चख रहा था. तभी उसको काव्या के चूत से कुछ सिरहन आती महसूस हुयी. शायद बहुत देर से जो खेल चल रहा उस खेल की सीमा उसने पार की. रफीक के देर तक ऐसे चूत चाटने से नींद में खोइ काव्या के जिस्म में एक सरसराहट दौड़ गयी. वो इतनी जोर की थी के नींद में भी उस सिरहन ने काव्या की जवानी को पिघला कर रख दिया. शायद वो मौका आ ही गया जहा जीवन में पहली बार उस नवयुवकको वो काम रस चखने मिलना था जिसका उसने कभी अनुभव नहीं लिया होगा.
एक बड़ी आह के साथ शहर की डोक्टोरिन साहिबा ने अपने होठ काटते हुए एक कसमसाते हुए आह भरी,
“ओह...माय बेबी.....आह......”, अपना पानी छोड़ दिया.
अपने इस तीखी सिसक के साथ ही मीठी काव्या झड गयी. नींद में ही उसकी योनी ने अपना पानी छोड़ दिया. जो सीधे उसकी चूत से निकल कर रफीक के मूह में उतर गया. बहुत अजीब स्वाद था उसके लिए वो. जैसे बहुत मेहनत करके कोई रस निचोड़ा जाए. वो काम रस चख के वो नवयुवक इतना तो समझ गया के ये पेशाब तो नहीं हैं पर क्या हैं? क्या वही जो वो पोर्न फिल्मो में वो देखता हैं? स्त्री का काम रस? हाँ. ये वही हैं. इस बातो को उसके दिमाग ने पल भर में समझ लिया. और उस रस को चखना उसने बिना वक़्त गवाते ताबड़तोड़ शुरू कर दिया.
उस रस का बहाव उसके योनी से होते हुए उसके नाजुक गद्देदार जन्घो पे और नीचे बिस्तर पर टपक रहा था. रफीक पुरे मन से उसको चाट रहा था. किसी कुत्ते के माफिक उसको सूंघ रहा था. उसकी जीभ बड़ी फुर्तीली थी वो अपने बेहतर काम पे खुश थी. रफीक जो धीरे धीरे सब समझ रह था उसके लिए ये सब नया था. टार्ज़न फिलम की तरह वो हर बात को पहले देखता, टटोलता, महसूस करता. चूत को गीली कर तो उसने पहली ही कर दिया था, अब वो उसको चाट-चाट के साफ़ कर रहा था.
उस वक़्त वो खुदको विजेता जैसा महसूस कर रहा था. और क्यों ना माने? वो सच में विजयपथ पे विजेता बन गया था. जीवन में पहली ही वासना खेल में उसने एक सुंदरी का कामरस निकाल ले उसको चखा जो था. भले ही उसके जीभ ने ये कारनामा किया हो पर उफान में तो उसका लंड ही था जो अब उसके नियंत्रण से बाहर निकल गया था.
रस तो किशोरीलाल के भव्य बंगले में एक आलिशान बिस्तर पे बहा था वैसे ही सुलेमान के झोपडी में भी एक खाट पे बहने वाला था. सत्तू मादरजाद अपने कगार पे खड़ा था. उसका मुसल लंड कब से सलमा का मूह रोंद रहा था. सलमा के गले तक उसके लंड ने अपनी मौजूदगी करवाई थी. सोयी हुयी सलमा के मूह में खुदका मुसल लंड घुसा-घुसा के वो उसका कोना कोना चोद रहा था. पुरे लंड पे उसकी थूक चढ़ गयी थी, लंड की नसे पहले से ज्यादा तन गयी थी और सलमा का गला सुख के मरे पडा हुआ था.
“आह...रंडी...चुस....” गल्प.. गल्प .. खस खस,... हचाक गचाक से लंड मुह को चोदे जा रहा था. और इसी चुदम चुदाई में सत्तू ने भी अपना वीर्य निकाल दिया.
“आह,....सलमा.अ........रंडी......आया....”
सलमा ने पूरी ताकद उसका लंड अपने मूह से निकाला उसको जोर से खासी आई. पर वह तो....ढेर सारा वीर्य थूक से लदबद पलक झपकते ही उसके देहाती खुबसूरत सावले पसीने से ढके मूह पे सररर बोलके बह गया . उसके मूह पे , नाक पे उस वीर्य की बारिश को जगह मिली. सलमा के बालो पर भी कुछ बुंदे छा गयी. सत्तू बड़े सुकून की आह भर भर के धार छोड़े जा रह था और सलमा का मूह को किसी कारागीर की तरह अपने वीर्य से रंग रहा था. सलमा के चेहरे पे अपना लंड मलते हुए सत्तू संतुष्टता से बोल पड़ा,
“रंडी...आज तूने कमाल कर दिया..खुश कर दिया...छिनाल..चल साफ़ कर लंड को फिर सुलेमान को थोडा सरकता हु तेरे जिस्म पे से...”
सलमा की तरफ वो ही चारा था. उसने बची अपनी ताकद से सत्तू का लंड अपने मूह में भर दिया और उसको जबान से साफ़ करने लगी. उसको बाहर निकाल के आस पास से चाट कर साफ़ करने लगी. सत्तू उसको देखके मन से हस पड़ा. और थोडा सा सुलेमान को धक्का देकर वही ज़मीन पे निढाल होकर गिर पड़ा.
वीर्य से भरा पूरा चहरा और पसीने से लदबद शरीर को सँभालते देहाती कमसीन सलमा भी वही थक के ढेर हो गयी. बस वो होश में थी पर थकान से कमजोर हो गयी थी. उसने जब नज़र दौड़ाई तो उसको दोनों कलुटे तो जैसे घोड़े बेचके ऐसे पड़े हुए दिखे मानो अब महीनो बाद वो जागने वाले हो. खैर झोपडी में सन्नाता छा गया और बारिश की बुँदे टपकती छत से सलमा के बदन पे गिरने लगी.
दोनों तरफ वासना संतुष्ट हो चुकी थी. सब एक दुसरे को भोग के सुन्न गिर पड़े थे. पर शायद कोई था जो अभी भी तड़प रहा था. वो था रफीक का कमसिन लंड.
जैसे कोई बच्चा किसी चोकोलेट के लिए बचपना करता हैं. वैसे ही कुछ बचपना रफीक का लंड उसके दिमाक से कर रहा था. वो तो उसकी जबान से भी खुद्को बेनसीब समझा रहा था. उसके बचपने से फिर से रफीक असमंजस में गिर गया और वही बैचनी ने उसके विचारों को फिर से जागृत कर दिया.
पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..जा आगे
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..तू बस मत कर
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और तू सोच मत..जा अब तक कुछ हुआ क्या ?
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...
दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. लेकिन कहते हैं न बूढ़े की तजुर्बा और बच्चे का बचपना इसको कोई जवाब नहीं होता. वही हुआ खुदके लंड के बचपने से तंग नवयुवक रफीक ने फिर से आँखे बंद कर के ऊपर वाले से मिन्नत की,
“य..एक बार...बस एक बार...फिर कभी नहीं...अम्मी की कसम”
अपनी सौतेली मा की कसम ले के उसने आँखे खोली. सामने थी सुंदरी महिला नींद में ढेर और उसकी खुली पड़ी चूत. एक बार खड़ा होकर उसने उसको गौर से देखा और अपने लंड को हाथ में मलते हुए उसके बाजू में बहुत धीरे से जा के सो गया. अब बस उसके सामने था काव्या का कामुक महकता जिस्म और खुली पड़ी बेत्ताब चूत.
पर बहुत देर से तना अनुभव से कम नवयुवक का लंड इस क्रिया के लिए सच में तैयार था? ये सवाल का जवाब तो आने वाला वक़्त ही बता सकेगा. खैर बहुत बड़ी हिम्मत दिखाई थी इस नवयुवक ने जो उसके डर को हौले हौले मिटा रही थी.
नवयुवक अपने चरम पहल पे विराजमान था. उसने आज अपने जीवन की एक बहुत बड़ी बात को आज अंजाम दिया था. २० साल के इस जवान बच्चे ने आज खुद को एक मर्द होने का एहसास समझाया था. और क्या किस्मत पायी इस जवान कद के युवक ने, अपने पहले ही जवानी के खेल में काम रस पिया तो भी ऐसे राजसी सुंदरी स्त्री का. वो स्वाद वो अब कभी नहीं भूलने वाला. बड़े आराम से और तमंनाओंसे अपने मिन्नतो से भरी हुयी मेहनत का वो फल जो था.
काव्या के चेहरे को रफीक ने गौर से देखा. उसने काव्या के चहरे को अपने एक हाथ से पकड़ कर फिराया. उसके मादक होठो को छूकर उसका लंड जोर से तन गया.
सच में बड़े ही गहरी नींद में थी ये कामुक परी. उसका एक हाथ ऊपर मूह से लुढ़क के गले के पास था तो दूसरा जांघो पे टिका था. दोनों पैर खुल गए थे जिसके कारण चूत खुली पड़ो हुयी थी. उसके होठ भी खुल गए थे जैसे वो नन्द में कुछ बुदबुदाती हो. अपने खुबसूरत जिस्म से पूरा समा मादक बनानेवाली इस सुंदरी की ये हालत देख के तो बूढ़े लंड में भी तनाव आ जाये. और यहाँ तो अभी-अभी जवान हुआ लंड था. गहरी नींद में डूबी काव्या जो कुछ देर पहले ही झड गयी थी जिसके कारण उसके चेहरे पे एक अलग ही सुकून छाया दिख रहा था. पर फिर भी उसके गुलाबी पंखुरी जैसे होठ, सेब जैसे गाल और माथे पे बिखरे हुए रेशमी बाल उस मासूम चेहरे को एक काम देवी जैसा दर्शा रहे थे. खैर अपने होठो पे जबान फिराते वो खुद काव्या के मद मस्त जिस्म के बाजू में लेट गया.
रफीक ने काव्या का आराम से देखा. उसकी चुचिया जो ब्रा में कैद थी उसको देखके लग रहा था वही ब्रा फाड़ के मसल कर उनको पी लिया जाये. शायद कोई और होता तो वो कर भी लेता. पर यही तो फर्क होता हैं वासना और प्रेम में. रफीक कमजोर दिल का इंसान जो था. भले ही उसका लंड उस वक़्त अकड़ खाए था पर दिल काव्या पे मेहरबान था. उसने उसके मादक स्वरुप को भी प्रेम भरी नजरो से देखा. उसे ऐसा लग रहा था वही काव्या के बालो को सवारा जाए, उसके होठो पे लिपस्टिक लगाई जाए, गालो पे लाली पाउडर लगाया जाए. उसके बदन की मालिश की जाये, किसी गुडिया की तरह नए कपडे पहनाये जाए और उसको लिपट के कम्बल के निचे गरम चिपक के सोया जाए. ऐसे प्रेमभाव में खोये नवयुवक को एक अप्रतिम प्रेम का अनूप आनंद प्राप्त हो रहा था. वैसे ही काव्या के बाजु में लेट कर वो उसकी चूत को सहला रहा था.
सच में दोस्तों, प्रेम और वासना में बड़ा फर्क होता हैं. वासना जहा सिर्फ भोग का दूसरा नाम हैं वही प्रेम एक नाजुक सा छुपा हुआ कोई कोमल भाव. वासना का रिश्ता शरीर के अस्तित्व से होता हैं, मनुष्य जो चीज में वासना से लीन हो, उसको वो बंद आखो से भी ध्वस्त कर बैठता हैं, न किसी चीज की शर्म हया, या कोई गंदगी की घिन, उसको रोकती हैं. बस उसको चाहिए होती हैं वो डोर जिससे वो अपने अरमान बाँध सके. जब तक शरीर में उर्जा रहती हैं वो उस डोर को खींचते रहता हैं और जैसे ही उर्जा निकल जाती हैं किसी कटी पतंग की तरह वो भी टूट के ढेर हो जाता हैं. लेकिन प्रेम इसके बिलकुल उल्टा होता हैं. उसमे एक अलग ही ओढ़ रहती हैं. जो हर पल एक दुसरे को करीब खिचती हैं और किसी डोर की तरह टूटती भी नहीं. उसमे सपने होते हैं. जहा इंसान खुली आँखों से सपने देखने लगता हैं. उसी प्रेम की बहाव में नवयुवक रफीक बह रहा था. उसने काव्या का हाथ अपने लंड पे धीरे धीरे मलना शुरू किया.
उस स्पर्श में बहा हां कर उसको भी काव्या के साथ मीठे-मीठे सपने दिख रहे थे. लेकिन साथ ही वासना का पगडा भी उसको छेड़ रहा था. प्रेम और वासना दोनों भाव में बह कर कमजोर दिल के नवयुवक रफीक का लंड अब सहनशक्ति के परे हो रहा था. उसने खुली आँखों से काव्या की चूत के और गौर से देखा. और अपने लंड के बचपने को पूरा करने की जोखिम उठा दी. एक बार काव्या के चेहरे को टटोलकर अपने निचे के हिस्से को ज़रा आगे खिसका के उसने काव्या के जांघो से अपनी जांघे बहुत ही धीरे से चिपका दी.
आह....क्या स्पर्श था. उसने अपनी आँखे ही मूँद ली थोड़ी देर के लिए. जीवन पे पहली बार किसी स्त्री के योनी से हुआ मुलायम स्पर्श उसके मन को भा लिया. एक बार फिर से वासना के पक्ष में पैर रख के उस ने अपना तना हुआ लंड हाथो में पकड़ा और एक बहुत धीमी सिसक के साथ ही निचे काव्या के चूत के इलाके के पास उसको टिका दिया.
उसके कोमल गद्देदार चूत के ऊपर से अपना लंड को गोल गोल उपर निचे घुमाना शुरू किया. उसको मानो जन्नत जैसा अनुभव प्राप्त हो रहा था. फिरसे वो प्रेम और वासना के भाव में उलझ गया. वो मुलायम स्पर्श उसके नाजुक दिल के प्रेम भरे भाव को छू गया. और बहुत देर से तना हुआ लंड भी उस आभास को झेल नहीं पाया.उसके कोमल स्पर्ष ने लंड की नसों को तान दिया. लंड के टोपी को सिरहन महसूस होने लगी. ऐसा अनुभव हो रहा था के जवान लंड पिघलने वाला हैं. काव्या की योनी किसी आग की तरह प्रतीत हो रही थी जिसके जलन से यहाँ शमा पिघलने वाला था.
और वही हुआ. शायद उपरवाले ने उसकी मिन्नत सुनी नहीं. इस बार का प्रयास फेल हो गया. अनुभव से कमी होना और प्रेम के भावो में गिरा हुआ नवयुवक ने जैसेही काव्या के चूत के अन्दर लंड घुसाने की कोशिश करता हैं उसके कमसिन लंड ने वही अपना दम तोड़ दिया. एक झटके में ही वो उसने वही अपना वीर्य छोड़ दिया.
जीवन में पहली बार अपनी पिचकारी उसने किसी चूत के ऊपर छोड़ दी. रफीक तो मानो किसी दूसरी दुनिया में था. उसने आँखे बंद करके अपना पानी छुटने दिया. जो काव्या के पेट पे, चूत से प्यान्ति और निचे जांघो से लुडक कर चद्दर पे गिर गया. आखरी बूंद तक उसने लंड को हाथ से निचोड़ा. उसका पानी भले जल्दी निकल गया था पर आनंद का पूर्ण रूप से उसने अनुभव प्राप्त किया था.
खेल ख़तम हो गया था. रफीक अभी भी आँखे बंद किये लंड को हाथ में लिए वही था. शायद प्रेम भाव से बाहर आना उसको मुश्किल हो रहा था.
तभी अचानक “ डिंग डाँग.....”
बाहर से दरवाजे की बेल बजी. रफीक के होश ही उड़ गए. उसकी धड़कने तेज़ी से दौड़ाने लगी. उसने दिवार पे लटकाई घडी की और देखा शाम के ५ बजे थे. वक़्त कैसा गुज़रा उसको समझा ही नहीं. बाहर बदल भी धीमी बारिश कर रहे थे. अँधेरा छाने लगा था. इस समय किशोरीलाल के बंगले में भले कौन आ सकता हैं?
“मा की चूत...कौन हैं इस समय?”
गुस्से में उसने खुद से बडबडाया. और झट से बेड से उठ खड़ा हुआ . अपना कच्छा उसने ठीक किया. अभी भी उसका लंड थोडा तना हुआ था. उसने कैसे तो उसको एडजस्ट किया. कोई जागने से पहले उसने वह से निकलना ही मुनासिफ समझा. अचानक वो रूम के दरवाजे की तरफ रुका और काव्या पे एक आखरी नज़र डालके के उसने अपने होठो से एक फ़्लाइंग किस काव्या की और फेकी. और रूम से बाहर की और निकल पड़ा. यहाँ वह देख उसने मुख्य दरवाजे की और कदम बढाए. उसके मन में गुस्सा था के इस वक़्त कौन हो सकता हैं. शायद इतना ज्यादा के वो उसकी मा चोद दे.
क्रमश:
“आह...रंडी....मेरा निकल रहा हैं...आह..”
वहां सुलेमान अब अपनी चरम सीमा पे खड़ा था. उसका लंड अब सलमा की चूत खा के तृप्त होने जा रहा था. सलमा जो बस कुछ ही पल के पहले अपना पानी छोड़ गयी थी. उसको भी ये अंदाजालग गया के सुलेमान अपनी पिचकारी कभि भी छोड़ सकता हैं. लेकिन उस भोली कमसिन को ये नहीं समझ रहा था के वो लंड और अन्दर की तरफ क्यों सरका रहा हैं. तभी सुलेमान अपने आखरी धक्के देते हुए बोल पड़ा,
”आह...मेरी रंडी..बोल हमारी मदत करेगी न...”
“किस बात में भड़वे...आह..”
लंड और चूत के अन्दर की और घुसाते वो बोला, “कल तू उस डोक्टोरनी से मिलने जाएगी,,आह...और..और उसको मेरे घर तक लाएगी..”
“आह,...तेरे पाप में मुझे क्यों मिला रहा हैं...नहीं करती मैं ऐसा कुछ...”
“रंडी..तेरी क्या जा रही हैं....आह...इतना नहीं कर सकती क्या ...लंड तो ले रही हैं गपा गप...”
“नही...आह...म्म...नहीं करुँगी...क्या करेगा तु...कमीने....”, गुस्से से और कसमसाते हुए सलमा ने जवाब दिया.
“साली तू ऐसी नहीं मानेगी..रुक तेरा इन्तेजाम हैं मेरे पास..”
ऐसा बोलकर सुलेमान ने सलमा को जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और उसके होठो को अपने होठो में कैद कर डाला. उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी के सलमा हिल भी नही पा रही थी. उसका नाक उसकी नाक से साँसे चुरा रहा था. होठ उसके होठो की गिरफ्त में थे. बड़े कस के वो उस्को चूस रहा था. अपना बदन फेविकोल की तरह चिपकाके दोनों भी पसीने से एकदम लदबद खाट पे पड़े थे. वैसे ही अंग से अंग रगडके सुलेमान ने वो किआ जो सलमाने कभी सोचा ही नहीं था. उसने सलमा के चूत में अन्दर तक घुसे अपने लंड से वीर्य की धार सर्रर्रर्र ... बोलके छोड़ डी.
उसका लिंग आधे घंटे से फुला हुआ था. मुसल लंड सलमा की चूत में ही अपना वीर्य थूक रहा था. एक बड़ी पिचकारी ऐसे निकली के वो सलमा के बच्चेदानी पे जा कर ही रुक गयी. गरम गरम लावा उसको महसूस हुआ. सलमा ने भी आह निकली, “हाअय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य...हाआआआआआआ..गयीईईईई
ईईईईईईईईईईईईईईईईए....मीईईईईईईई,,,,हाआआआअ..कमीने.....कुत्ते”
पहली बार किसी ने कमसिन के चूत के अन्दर अपना पानी छोड़ा था. सलमा उस वक़्त सब चीजो से परे हो गयी. उसकी आवाज भी कमजोर गिरने लगी और उसकी आँखे संतुष्टि से बंद हो गयी और साथ ही नये अनुभव में उसका अंतर्मन लीन हो गया.
“आः.......रंडी.......ले साली.....आह...काव्या....”
सुलेमान वैसे हो दबोच के सलमा के चूत में अपने लंड की पिचकारी छोड़े जा रहा था. कुछ समय के बाद उसके लंड ने पिचकारी बंद कर दी. सलमा की चूत से उसका वीर्य निचे सर्र होक टपक रहा था. दोनों निढाल हो पड़े थे. सुलेमान वैसे ही उसके बदन पर चिपके हुए ढेर हो गया. काव्या का नाम अंतिम क्षण में लेके जैसे उसने आने वाले समय के संकेत दिए. पसीना शराब और वीर्य तीनो की खुशबू से झोपडी का समा रंगीन हो गया था. सत्तू बाजु में ही शराब में चूर अपना लंड हाथ में लिए अभी भी इंतज़ार में लगा हुआ था. शायद उसको आज इंतज़ार से ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला था. तभी मौसम ने भी रुख बदल दिया. शाम होने को थी गाँव क बादलो ने भी इस नज़ारे पे करवट बदल दी. आसमान में बादल आने लगे. और हलकी सी बूंदा बंदी शुरू हो गयी.
बस फिर क्या? अब वो उसके वश में हो गया था. उसने अपनी हिम्मत बढाई और दायने हाथ की उँगलियों से काव्या की प्यांति को एक तरफ से उठा लिया और बाए हाथ से उसको बहुतही हल्का सा महसूस किया. प्यांति बाजु में करने के कारन काव्या की चूत पूरी बाहर आ गयी. कुछ भी हो आज काव्या की चूत का दर्शन बार बार मिल रहा था. कुछ घंटो के पहले ही झाड़ियो में उसकी चूत ने अपना पेशाब छोड़ा था तब सब ने उसका नयनसुख लिया. और अब तो इतने करीब से कोई उसके साथ अपनी उँगलियों से खेल रहा था. वक़्त इतना तेज़ी से करवट बदलेगा ये तो काव्या की खुबसूरत चूत को भी पता चल गया होगा.
रफीक ने एक टक से उसकी चूत पे नजर डाली. उसका लंड तो मानो चीख रहा था, कबका कच्छे के बाहर आकर दंगल मचा रहा था. बस उसको चाहिए था वो सुनहरा छेद जिसका मजा रफीक की आँखे उठा रही थी. रफीक थोडा नजदीक गया. उसने अपनी जुबान काव्या के अंगो पे बेहद धीरे से चलाई. बड़े कोमलता से वो उनको चाट रहा था. उसका रोम रोम उत्तेंजित हो रहा था.
उसने अपनी नाक काव्या के योनी पे टिकाई. उसकी मादक खुशबू लेकर के वो और बेकाबू हो गया. उसने अपने बाये हाथ की बिच वाली ऊँगली काव्या के चूत के ऊपर से नीचे की तरफ बहुत ही हलके से घुमाई. वो स्पर्श, वो एहसास, वो महक उसकी उत्तेजना को सीमा पार बढ़ा रही थी. अब प्रेम जो चरम सीमा पर था वो रफीक को अलग दुनिया में ले जा रहा था. उसी बहाव में बहते उसकी जबान उसके मूह से बाहर आ गयी. बिना कुछ देरी लगाते उसकी उँगलियों की जगह उसके जबान ने ले ली. और देहाती नवयुवक ने देखते ही देखते शहरी राजसी महिला के मखमली चूत पे अपनी जबान फिरा दी.
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यहाँ दूसरी और सलमा की जबान और मूह भी कहा खुले थे. सत्तु मादरजाद अपना मुसल लंड उसके मूह में दबाते जा रहा था. उसके बालों को पकड़ के वो लंड को पूरी तकाद से उसके मूह के अन्दर बाहर कर रहा था.
“आह...रंडी...सलमा....चूस....रंडी...”
उम..उ...ऊउम्मम्म...की आवाज के अलावा सलमा के पास कोई शब्द नहीं थे. मुसल लंड उसके मूह चोदे जा रह था. उसकी चीखे आवाज सब दब रही थी. ऊपर से सुलेमान का सांड जैसा बदन उसके ऊपर कहर बरसाके सो गया था.
गल्प गल्प.....कर कर के सलमा का मूह को अछि तरह चोद के सत्तू अपनी प्यास बुझा रहा था. उसने अपने एक हाथ से सलमा के दूध के ऊपर की घुंडी को चिकोटी काट ली.
“आई.....हाई.....चूस रंडी....जोर लगा..:”
सालमाँ की आँखों से पानी टपक गया. वो पानी रोने का नहीं था बस एक मीठा सा दर्द था. जो अब उसको सहने की आदत लग गयी थी. लंड का पसीना, खोली में शराब का असर उसका गला सुखा रही थी. बस राहत थी तो बाहर से आती हुई ठंडी हवा और मीट्टी की खुशबु. उसके मूह से निकलती थूक से सत्तू का लंड पूरा का पूरा भीग गया था. सलमा को भी ये पता था के दोनों कलुटो से पीछा छूडाना हैं तो उसको खुद खेल में उतरना ही होगा. ठीक जैसे सुलेमान के साथ उसने अपना सहयोग दिखाया. उसने वक़्त ना गवाते ठीक उसी समय अपने बाय हात मे सत्तू का लंड पकड़ा और मूह के अन्दर चलने दिया.
सत्तू ये देख के बहुत खुश हुआ और बोल पड़ा..”आज पक्की रंडी बन गयी हो सलमा...आः...मजा आ गया तुमको ऐसा देखके.,,...मेरी रंडी...चूस और चूस...“
वासना भी अजीबी होती हैं. हर वो शरीर का पुर्जा जो इसमें जुट जाए वो पूरी तरह से उसके आधीन हो जाता हैं. एक तरफ एक लंड और एक तरफ एक चूत दोनों को भी बड़ी तबियत से चूसा जा रहा था.
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रफीक जो बेकाबू बन गया था उसने अपने होठ काव्या के चूत को लगा दिए. उसको कुछ खारा और मीठा मिक्स स्वाद आने लगा. वो बस उसको और चखना चाहता था. उसने बेकाबू में अपनी जीभ को थोडा अन्दर की और सरकाया..और काव्या के मूह से पहली बार सिसक निकल गयी....स्स्सीईईई.......
रफीक की मानो साँसे रुक गयी. वो वैसे ही प्यांति को पकड़ के जुबान अन्दर डालके अटक गया. बिलकुल किसी मूर्ति के माफिक. पर काव्या ने जो बडबडाया उसको देख के उसने चैन की सांस छोड़ी..
“ऊओम्म्म......रमण,,,,लव मी,...बेबी.....”
काव्या नींद में रमण के ख्वाब देख रही थी. उसके योनी में लगी आग उसके नींद को भड़का रही थी. उसका दीमाग समझ रहा था के वो पति रमण के साथ हैं और रमण उसको प्यार कर रहा हैं. खैर रमण की याद में खोयी काव्या को सपनो में देख रफीक को समझ गया वो अभी भी नींद में ही हैं. उसने अपना ध्यान फिर से काव्या की चूत पे ले लिया पर अपने नज़रे काव्या के चेहरे पे ही रखी.
अपना दबाव उसने बड़ी आहिस्ते से काव्या के चूत पे बढ़ाया. उसको अपनी जीभ से वो चाट रहा था. बहुत ही नाजुकता से और धीरे से वो ये सब कर रहा था. उसको हर वो सिन याद रहा था जिस पोर्न में वो लड़का उस महिला की योनी में अपन मूह दबाता हैं, उसको चाटता हैं. उसी तरह से वो कर रहा था.उसने मूह ऊपर किया और अपना थूक काव्या के योनी पे बड़े तरीके से थूक दिया. काव्य की चूत उससे लदबद भर गयी. बस फिर क्या उसने उसके चूत के समुन्दर में अपना मूहसे एक छलाग लागा दी. और जीभ को अन्दर की और सरकाने का प्रयास शुरू रखा.
यहाँ वो चाट रहा था वह काव्या सिसक रही थी काव्या की हर सिसक की तरफ ध्यान डे के वो सब कर रहा था. वही दूसरी तरफ सलमा जो के सत्तू का लंड चूस रही थी. जैसे सब तरफ वासना ने अपनि बाजी चलायी थी फरक था तो किसिकी आँखे खुली थी किसीकी बंद. कोई जाग रहा था तो कोई नींद में था.
अपने थूक और जुबान से काव्या की योनी में रफीक ने अपना डेरा जमाया था. २० साल का ये नवयुवक किसी अनुभवी नर जैसे खुदको इस्तेमाल कर रहा था. जीवन में प्रथम किसी महिला की योनी को स्पर्ष करने से उसका स्वाद लेने तक का अनुभव उसको मिल गया था. वो भी किस्मत में जब ऐसी राजसी महिला हो तो क्या कहना. जिसके कोने कोने में सुन्दरता और मादकता का पंचम रस का समावेश हो. जहा भी मुख डालो वह से कुछ न कुछ ज़रूर आनंद मिले ऐसे मादक और सुन्दर शरीर की देवी उसके सामने थी. जिसने उसके काम जीवन का आरम्भ में ही उसको प्रसन्न होके कोई वरदान दिया हो.
अपने जवान काम वासना और प्रेम भाव में डूबा ये नवयुवक इस सुंदरी के सबसे अनमोल शरीर का बड़े ही विलोभनीय अंदाज़ से भोग कर रहा था. उसके मूह में योनी का स्वाद अब पूरा उतर गया था. और साथ ही उसका जवान लंड उस स्वाद से, उस अनुभव से उछल उछल के उच्चतम शिखर पे जा पहुंच गया.
लालसा न हो वो वासना कैसे? बस यही तो हो रहा था वहा. रफीक की लालसा काव्या की और बढ़ रही थी. छूने से ले कर महसूस कर ने तक, अब वो स्वाद भोगने तक पहुच गयी तो थी. पर अभी भी कही कुछ सूनापन उसके दिमाग को टटोल रहा था. वो था उसके नवजीवन भाव से भरा पड़ा कमसिन लंड और उसकी भूक. इसी लालसा भरे विचारो ने फिरसे उसके उलझे मनों को प्रश्नों के आहट से जगा डाला.
पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..गाओ में से निकल देंगे तुमको...रुको
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और क्या करने वाले लोग...जा मजे कर..
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...
दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. पर कहते हैं न बहुमत की सरकार होती हैं वैसे ही उसका बहुमत पहले मत की और था. क्योंकि उसकी वासना और झूम के तना हुआ लंड उसके पक्ष में खड़े थे. जो उसके दिमाग की मा चुदा रहे थे.
दूसरी तरफ सत्तू सलमा का कब से मूह चोदे जा रहा था. मुसल लंड पूरा उसके थूक से भीग गया था. सलमा भी खुद से उसका लंड चुसे जा रहा थी. सुलेमान का सांड जैसा शरीर का बोझ उठाके उसके मूह से लेक्र पुरे शारीर पे पसीना बिखर गया था. चेहरे पे बाल बिखर रहे थे. सच में आज किसी पक्की रंडी की माफिक वो लग रही थी. उसके नाजुक देहाती होठ सत्तू के लंड को रगड़ खा रहे थे और जुबान उसके टोपे को छेड़ रही थी. उसके लंड के झाटे तक थूक से लद बद हो गए थे. सबके कारण उसके लंड की नसे तन रही थी और, वो और लंड फुल कर चरम उसकी सीमा पर बढ़ रहा था. सत्तू हर उसके दबाव का आनंद अपनी आँखे बंद किये हुए होठो पे संतुष्टता के भाव लिए उठा रहा था.
पर वासना के पुजारी ये कलुटे शांत रहे तो कैसे? जब मादरजाद ने अपनी आँखे खोली तो उसको और एक पाशविक बात सूझी. उसने सलमा का दूध कस के मसलते हुए कहा...
“आह....रंडी....आह....तनिक निचे की गोटीया भी ली लो तोहार मूह में....चोद दो आज.....”
उसने बिना समय गवाए सलमा के बालो को खींचकर अपना लंड उसके मूह से निकाल के निचे की गोटियों को सलमा के खुले मूह में ठूस दिया. और बहुत जोर से शैतानी हसी हस दि.
“आह....छिनाल...इसको भी चूस...”
सलमा ने उनको चूसते-चूसते उसकी और इस बार भी गुस्से से देखा पर वैसे ही उसने अपना ध्यान अपने मुखमैथुन पे केन्द्रित किया ठीक जैसे रफीक ने किया था. नारी हो या नर ध्यान वही था जहा वासना का पगडा भरी था. यहाँ पर भी बहुमत का पक्ष काम वासना ने जीत लिया.
दोनों मनो की बात सुन के, रफीक ने सोचा क्यों न बस एक बार काव्या की योनी को बाहर से लंड से छू दिया जाए. बस इतना एक बार करने थोड़ी कुछ होगा? बस एक बार अम्मी की कसम. एक बार करवादे खुदा. फिर से मिन्नते मांगते मांगते कब उसकी जुबान काव्या के चूत के और अन्दर की और फिसल गयी उसको समझा ही नहीं. और ऐसा ही कुछ आगे हो गया जैसे उसकी मन्नत कबुल की गयी हो.
“उम्म्म......रमण......आऊच......याह”
एक जोर की सिसक काव्या ने छोड़ दी. नींद में उसके ये भाव देख के लग रहा था नवयुवक के खेलो ने अपना गहरा जादू उसके ऊपर चलाया दिया हो. उसकी मन्नत काबुल हो गयी हो. वासना के सपनो में खोयी काव्या नींद में सब लुफ्त उठा रही थी सिर्फ उसका साथी रमण था. शायद उसके लिए भी ये अनुभव नया था. उसका बिजी रहनेवाल पति रमण जो कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था शायद ही उसने उसकी राजसी योनी को इस कदर चखा हो जैसे ये नवयुवक चुसे रहा था. इसीका असर ये हुवा के काव्या का बाया हाथ अपने आप ही उसके योनी की और सरक गया. और उसकी उँगलियाँ योनी के ऊपर आ गयी ठीक रफीक के मूह निचे.
रफीक उसकी हर एक हरकत गौर से देख रहा था. क्या नजारा बन गया था. काव्या की ऊँगली खुद होक उसके योनी में प्रवेश कर रही थी. तभी जैसे कोई शिकारी शिकार पास आते हु उसपे टूट पड़े वैसे रफीक ने उसकी ऊँगली को अपने मूह में भींच लिया. और उसको भी चूत के साथ चाटना शुरू किया.
नाजुक उंगलिया, नरम गरम चूत दोनों को मजे से और धीरे धीरे चाटते उसकी थूक और चूत का रस दोनों एक दुसरे में मिल रहा थे. इन सबे से उसको संभाले नहीं जा रहा था और तभी उसने अपना दूसरा हाथ अपने लंड पे ले लिया और उसकी चमड़ी को आगे पीछे करना चालू कर दिया.
“उम.......याह,.....ऊऊऊऊम्म्म्म..बेबी...”
काव्या की आहे उसकी हर हरकत से तेज़ हो रही थी. काव्या की बाये हाथ की ऊँगली अब उसके मूह में चली गयी. ठीक उस पोर्न फिल्म कि तरह प्रतित हो रहा था. जिसमे मोडल का एक हाथ चूत पे और एक हात मूह में हो. रफीक ये सब देख बेकाबू हो रहा था. और उससे भी बुरी हालत उसके लंड की थी. जिसको को मल रहा था.
वही सलमा की हालत भी कहा सस्ता थी. सत्तू मादरजाद झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. लग रहा था देसी दारू का नशा उसके लंड में उतर गया हो. सलमा ने उसका लंड को हाथ में समेटा और उसकी टोपी पे थूक दिया. बड़े कामुकता से उसको मूह में फिर से डाल दिया. और अपने होठो से ऊपर से निचे पूरी तरह से सरकाना चालू कर दिया. उसके लंड की गोटियों को वो बड़े मन लग्गाए चूस रही थी. जैसे उसने प्रतिज्ञा ली हो इस बार वो उसका पानी निकल के दम लेगी. इस चाल से सत्तू ने भी एक आह छोड़ी.
“आः.....छिनाल....चूस...”
दोनों तरफ चुसना और चुसाना अपने चरम सीमा पर पहुँच गया था.. दोनों तरफ सिसक, आन्हे तेज़ हो रही थी. और जल्दी ही किसी भी समय कामुकता का रस दोनों के मूख में बारिश की तरह बरसने वाला हो. किसी अलग अंदाज से देखे तो लग रहा था ये काम वासना की यह सर्जिकल स्ट्राइक कभी भी अपने मुकाम पे विजय प्राप्त कर सकती हैं.
“उम.....याह...रमण....बेबी...उम्म्म....म्मम्म”
गहरी नींद में काव्या जोर जोर से सिसक रही थी. कबसे रफीक अपने मूह से उसकी राजसी सी चूत की मा चोदे जा रहा था. पुरे जोश से अब वो उसकी चूत चाट रहा था. काव्या के कमर पे दोनों तरफ हाथ डालके उसकी चूत बेताबी से चाटते हुए अपनी पूरी जीभ उसके चूत के अन्दर घुसाके रफीक उसका स्वाद सही मायने में किसी अनुभवी चुद्द्कड़ के जैसे चख रहा था. तभी उसको काव्या के चूत से कुछ सिरहन आती महसूस हुयी. शायद बहुत देर से जो खेल चल रहा उस खेल की सीमा उसने पार की. रफीक के देर तक ऐसे चूत चाटने से नींद में खोइ काव्या के जिस्म में एक सरसराहट दौड़ गयी. वो इतनी जोर की थी के नींद में भी उस सिरहन ने काव्या की जवानी को पिघला कर रख दिया. शायद वो मौका आ ही गया जहा जीवन में पहली बार उस नवयुवकको वो काम रस चखने मिलना था जिसका उसने कभी अनुभव नहीं लिया होगा.
एक बड़ी आह के साथ शहर की डोक्टोरिन साहिबा ने अपने होठ काटते हुए एक कसमसाते हुए आह भरी,
“ओह...माय बेबी.....आह......”, अपना पानी छोड़ दिया.
अपने इस तीखी सिसक के साथ ही मीठी काव्या झड गयी. नींद में ही उसकी योनी ने अपना पानी छोड़ दिया. जो सीधे उसकी चूत से निकल कर रफीक के मूह में उतर गया. बहुत अजीब स्वाद था उसके लिए वो. जैसे बहुत मेहनत करके कोई रस निचोड़ा जाए. वो काम रस चख के वो नवयुवक इतना तो समझ गया के ये पेशाब तो नहीं हैं पर क्या हैं? क्या वही जो वो पोर्न फिल्मो में वो देखता हैं? स्त्री का काम रस? हाँ. ये वही हैं. इस बातो को उसके दिमाग ने पल भर में समझ लिया. और उस रस को चखना उसने बिना वक़्त गवाते ताबड़तोड़ शुरू कर दिया.
उस रस का बहाव उसके योनी से होते हुए उसके नाजुक गद्देदार जन्घो पे और नीचे बिस्तर पर टपक रहा था. रफीक पुरे मन से उसको चाट रहा था. किसी कुत्ते के माफिक उसको सूंघ रहा था. उसकी जीभ बड़ी फुर्तीली थी वो अपने बेहतर काम पे खुश थी. रफीक जो धीरे धीरे सब समझ रह था उसके लिए ये सब नया था. टार्ज़न फिलम की तरह वो हर बात को पहले देखता, टटोलता, महसूस करता. चूत को गीली कर तो उसने पहली ही कर दिया था, अब वो उसको चाट-चाट के साफ़ कर रहा था.
उस वक़्त वो खुदको विजेता जैसा महसूस कर रहा था. और क्यों ना माने? वो सच में विजयपथ पे विजेता बन गया था. जीवन में पहली ही वासना खेल में उसने एक सुंदरी का कामरस निकाल ले उसको चखा जो था. भले ही उसके जीभ ने ये कारनामा किया हो पर उफान में तो उसका लंड ही था जो अब उसके नियंत्रण से बाहर निकल गया था.
रस तो किशोरीलाल के भव्य बंगले में एक आलिशान बिस्तर पे बहा था वैसे ही सुलेमान के झोपडी में भी एक खाट पे बहने वाला था. सत्तू मादरजाद अपने कगार पे खड़ा था. उसका मुसल लंड कब से सलमा का मूह रोंद रहा था. सलमा के गले तक उसके लंड ने अपनी मौजूदगी करवाई थी. सोयी हुयी सलमा के मूह में खुदका मुसल लंड घुसा-घुसा के वो उसका कोना कोना चोद रहा था. पुरे लंड पे उसकी थूक चढ़ गयी थी, लंड की नसे पहले से ज्यादा तन गयी थी और सलमा का गला सुख के मरे पडा हुआ था.
“आह...रंडी...चुस....” गल्प.. गल्प .. खस खस,... हचाक गचाक से लंड मुह को चोदे जा रहा था. और इसी चुदम चुदाई में सत्तू ने भी अपना वीर्य निकाल दिया.
“आह,....सलमा.अ........रंडी......आया....”
सलमा ने पूरी ताकद उसका लंड अपने मूह से निकाला उसको जोर से खासी आई. पर वह तो....ढेर सारा वीर्य थूक से लदबद पलक झपकते ही उसके देहाती खुबसूरत सावले पसीने से ढके मूह पे सररर बोलके बह गया . उसके मूह पे , नाक पे उस वीर्य की बारिश को जगह मिली. सलमा के बालो पर भी कुछ बुंदे छा गयी. सत्तू बड़े सुकून की आह भर भर के धार छोड़े जा रह था और सलमा का मूह को किसी कारागीर की तरह अपने वीर्य से रंग रहा था. सलमा के चेहरे पे अपना लंड मलते हुए सत्तू संतुष्टता से बोल पड़ा,
“रंडी...आज तूने कमाल कर दिया..खुश कर दिया...छिनाल..चल साफ़ कर लंड को फिर सुलेमान को थोडा सरकता हु तेरे जिस्म पे से...”
सलमा की तरफ वो ही चारा था. उसने बची अपनी ताकद से सत्तू का लंड अपने मूह में भर दिया और उसको जबान से साफ़ करने लगी. उसको बाहर निकाल के आस पास से चाट कर साफ़ करने लगी. सत्तू उसको देखके मन से हस पड़ा. और थोडा सा सुलेमान को धक्का देकर वही ज़मीन पे निढाल होकर गिर पड़ा.
वीर्य से भरा पूरा चहरा और पसीने से लदबद शरीर को सँभालते देहाती कमसीन सलमा भी वही थक के ढेर हो गयी. बस वो होश में थी पर थकान से कमजोर हो गयी थी. उसने जब नज़र दौड़ाई तो उसको दोनों कलुटे तो जैसे घोड़े बेचके ऐसे पड़े हुए दिखे मानो अब महीनो बाद वो जागने वाले हो. खैर झोपडी में सन्नाता छा गया और बारिश की बुँदे टपकती छत से सलमा के बदन पे गिरने लगी.
दोनों तरफ वासना संतुष्ट हो चुकी थी. सब एक दुसरे को भोग के सुन्न गिर पड़े थे. पर शायद कोई था जो अभी भी तड़प रहा था. वो था रफीक का कमसिन लंड.
जैसे कोई बच्चा किसी चोकोलेट के लिए बचपना करता हैं. वैसे ही कुछ बचपना रफीक का लंड उसके दिमाक से कर रहा था. वो तो उसकी जबान से भी खुद्को बेनसीब समझा रहा था. उसके बचपने से फिर से रफीक असमंजस में गिर गया और वही बैचनी ने उसके विचारों को फिर से जागृत कर दिया.
पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..जा आगे
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..तू बस मत कर
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और तू सोच मत..जा अब तक कुछ हुआ क्या ?
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...
दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. लेकिन कहते हैं न बूढ़े की तजुर्बा और बच्चे का बचपना इसको कोई जवाब नहीं होता. वही हुआ खुदके लंड के बचपने से तंग नवयुवक रफीक ने फिर से आँखे बंद कर के ऊपर वाले से मिन्नत की,
“य..एक बार...बस एक बार...फिर कभी नहीं...अम्मी की कसम”
अपनी सौतेली मा की कसम ले के उसने आँखे खोली. सामने थी सुंदरी महिला नींद में ढेर और उसकी खुली पड़ी चूत. एक बार खड़ा होकर उसने उसको गौर से देखा और अपने लंड को हाथ में मलते हुए उसके बाजू में बहुत धीरे से जा के सो गया. अब बस उसके सामने था काव्या का कामुक महकता जिस्म और खुली पड़ी बेत्ताब चूत.
पर बहुत देर से तना अनुभव से कम नवयुवक का लंड इस क्रिया के लिए सच में तैयार था? ये सवाल का जवाब तो आने वाला वक़्त ही बता सकेगा. खैर बहुत बड़ी हिम्मत दिखाई थी इस नवयुवक ने जो उसके डर को हौले हौले मिटा रही थी.
नवयुवक अपने चरम पहल पे विराजमान था. उसने आज अपने जीवन की एक बहुत बड़ी बात को आज अंजाम दिया था. २० साल के इस जवान बच्चे ने आज खुद को एक मर्द होने का एहसास समझाया था. और क्या किस्मत पायी इस जवान कद के युवक ने, अपने पहले ही जवानी के खेल में काम रस पिया तो भी ऐसे राजसी सुंदरी स्त्री का. वो स्वाद वो अब कभी नहीं भूलने वाला. बड़े आराम से और तमंनाओंसे अपने मिन्नतो से भरी हुयी मेहनत का वो फल जो था.
काव्या के चेहरे को रफीक ने गौर से देखा. उसने काव्या के चहरे को अपने एक हाथ से पकड़ कर फिराया. उसके मादक होठो को छूकर उसका लंड जोर से तन गया.
सच में बड़े ही गहरी नींद में थी ये कामुक परी. उसका एक हाथ ऊपर मूह से लुढ़क के गले के पास था तो दूसरा जांघो पे टिका था. दोनों पैर खुल गए थे जिसके कारण चूत खुली पड़ो हुयी थी. उसके होठ भी खुल गए थे जैसे वो नन्द में कुछ बुदबुदाती हो. अपने खुबसूरत जिस्म से पूरा समा मादक बनानेवाली इस सुंदरी की ये हालत देख के तो बूढ़े लंड में भी तनाव आ जाये. और यहाँ तो अभी-अभी जवान हुआ लंड था. गहरी नींद में डूबी काव्या जो कुछ देर पहले ही झड गयी थी जिसके कारण उसके चेहरे पे एक अलग ही सुकून छाया दिख रहा था. पर फिर भी उसके गुलाबी पंखुरी जैसे होठ, सेब जैसे गाल और माथे पे बिखरे हुए रेशमी बाल उस मासूम चेहरे को एक काम देवी जैसा दर्शा रहे थे. खैर अपने होठो पे जबान फिराते वो खुद काव्या के मद मस्त जिस्म के बाजू में लेट गया.
रफीक ने काव्या का आराम से देखा. उसकी चुचिया जो ब्रा में कैद थी उसको देखके लग रहा था वही ब्रा फाड़ के मसल कर उनको पी लिया जाये. शायद कोई और होता तो वो कर भी लेता. पर यही तो फर्क होता हैं वासना और प्रेम में. रफीक कमजोर दिल का इंसान जो था. भले ही उसका लंड उस वक़्त अकड़ खाए था पर दिल काव्या पे मेहरबान था. उसने उसके मादक स्वरुप को भी प्रेम भरी नजरो से देखा. उसे ऐसा लग रहा था वही काव्या के बालो को सवारा जाए, उसके होठो पे लिपस्टिक लगाई जाए, गालो पे लाली पाउडर लगाया जाए. उसके बदन की मालिश की जाये, किसी गुडिया की तरह नए कपडे पहनाये जाए और उसको लिपट के कम्बल के निचे गरम चिपक के सोया जाए. ऐसे प्रेमभाव में खोये नवयुवक को एक अप्रतिम प्रेम का अनूप आनंद प्राप्त हो रहा था. वैसे ही काव्या के बाजु में लेट कर वो उसकी चूत को सहला रहा था.
सच में दोस्तों, प्रेम और वासना में बड़ा फर्क होता हैं. वासना जहा सिर्फ भोग का दूसरा नाम हैं वही प्रेम एक नाजुक सा छुपा हुआ कोई कोमल भाव. वासना का रिश्ता शरीर के अस्तित्व से होता हैं, मनुष्य जो चीज में वासना से लीन हो, उसको वो बंद आखो से भी ध्वस्त कर बैठता हैं, न किसी चीज की शर्म हया, या कोई गंदगी की घिन, उसको रोकती हैं. बस उसको चाहिए होती हैं वो डोर जिससे वो अपने अरमान बाँध सके. जब तक शरीर में उर्जा रहती हैं वो उस डोर को खींचते रहता हैं और जैसे ही उर्जा निकल जाती हैं किसी कटी पतंग की तरह वो भी टूट के ढेर हो जाता हैं. लेकिन प्रेम इसके बिलकुल उल्टा होता हैं. उसमे एक अलग ही ओढ़ रहती हैं. जो हर पल एक दुसरे को करीब खिचती हैं और किसी डोर की तरह टूटती भी नहीं. उसमे सपने होते हैं. जहा इंसान खुली आँखों से सपने देखने लगता हैं. उसी प्रेम की बहाव में नवयुवक रफीक बह रहा था. उसने काव्या का हाथ अपने लंड पे धीरे धीरे मलना शुरू किया.
उस स्पर्श में बहा हां कर उसको भी काव्या के साथ मीठे-मीठे सपने दिख रहे थे. लेकिन साथ ही वासना का पगडा भी उसको छेड़ रहा था. प्रेम और वासना दोनों भाव में बह कर कमजोर दिल के नवयुवक रफीक का लंड अब सहनशक्ति के परे हो रहा था. उसने खुली आँखों से काव्या की चूत के और गौर से देखा. और अपने लंड के बचपने को पूरा करने की जोखिम उठा दी. एक बार काव्या के चेहरे को टटोलकर अपने निचे के हिस्से को ज़रा आगे खिसका के उसने काव्या के जांघो से अपनी जांघे बहुत ही धीरे से चिपका दी.
आह....क्या स्पर्श था. उसने अपनी आँखे ही मूँद ली थोड़ी देर के लिए. जीवन पे पहली बार किसी स्त्री के योनी से हुआ मुलायम स्पर्श उसके मन को भा लिया. एक बार फिर से वासना के पक्ष में पैर रख के उस ने अपना तना हुआ लंड हाथो में पकड़ा और एक बहुत धीमी सिसक के साथ ही निचे काव्या के चूत के इलाके के पास उसको टिका दिया.
उसके कोमल गद्देदार चूत के ऊपर से अपना लंड को गोल गोल उपर निचे घुमाना शुरू किया. उसको मानो जन्नत जैसा अनुभव प्राप्त हो रहा था. फिरसे वो प्रेम और वासना के भाव में उलझ गया. वो मुलायम स्पर्श उसके नाजुक दिल के प्रेम भरे भाव को छू गया. और बहुत देर से तना हुआ लंड भी उस आभास को झेल नहीं पाया.उसके कोमल स्पर्ष ने लंड की नसों को तान दिया. लंड के टोपी को सिरहन महसूस होने लगी. ऐसा अनुभव हो रहा था के जवान लंड पिघलने वाला हैं. काव्या की योनी किसी आग की तरह प्रतीत हो रही थी जिसके जलन से यहाँ शमा पिघलने वाला था.
और वही हुआ. शायद उपरवाले ने उसकी मिन्नत सुनी नहीं. इस बार का प्रयास फेल हो गया. अनुभव से कमी होना और प्रेम के भावो में गिरा हुआ नवयुवक ने जैसेही काव्या के चूत के अन्दर लंड घुसाने की कोशिश करता हैं उसके कमसिन लंड ने वही अपना दम तोड़ दिया. एक झटके में ही वो उसने वही अपना वीर्य छोड़ दिया.
जीवन में पहली बार अपनी पिचकारी उसने किसी चूत के ऊपर छोड़ दी. रफीक तो मानो किसी दूसरी दुनिया में था. उसने आँखे बंद करके अपना पानी छुटने दिया. जो काव्या के पेट पे, चूत से प्यान्ति और निचे जांघो से लुडक कर चद्दर पे गिर गया. आखरी बूंद तक उसने लंड को हाथ से निचोड़ा. उसका पानी भले जल्दी निकल गया था पर आनंद का पूर्ण रूप से उसने अनुभव प्राप्त किया था.
खेल ख़तम हो गया था. रफीक अभी भी आँखे बंद किये लंड को हाथ में लिए वही था. शायद प्रेम भाव से बाहर आना उसको मुश्किल हो रहा था.
तभी अचानक “ डिंग डाँग.....”
बाहर से दरवाजे की बेल बजी. रफीक के होश ही उड़ गए. उसकी धड़कने तेज़ी से दौड़ाने लगी. उसने दिवार पे लटकाई घडी की और देखा शाम के ५ बजे थे. वक़्त कैसा गुज़रा उसको समझा ही नहीं. बाहर बदल भी धीमी बारिश कर रहे थे. अँधेरा छाने लगा था. इस समय किशोरीलाल के बंगले में भले कौन आ सकता हैं?
“मा की चूत...कौन हैं इस समय?”
गुस्से में उसने खुद से बडबडाया. और झट से बेड से उठ खड़ा हुआ . अपना कच्छा उसने ठीक किया. अभी भी उसका लंड थोडा तना हुआ था. उसने कैसे तो उसको एडजस्ट किया. कोई जागने से पहले उसने वह से निकलना ही मुनासिफ समझा. अचानक वो रूम के दरवाजे की तरफ रुका और काव्या पे एक आखरी नज़र डालके के उसने अपने होठो से एक फ़्लाइंग किस काव्या की और फेकी. और रूम से बाहर की और निकल पड़ा. यहाँ वह देख उसने मुख्य दरवाजे की और कदम बढाए. उसके मन में गुस्सा था के इस वक़्त कौन हो सकता हैं. शायद इतना ज्यादा के वो उसकी मा चोद दे.
क्रमश: