Update 02

सही मौका देख, राम ने एक फाइनल स्ट्रोक लगा दिया और पूरा 6” लंड उसकी सील पॅक चूत में फिट कर दिया.

मोहिनी की फिर एक बार जोरदार चीख निकल गयी, लेकिन अब राम को रुकना मुश्किल हो रहा था, तो वो धीरे-2 आराम से धक्के लगाता रहा…

मोहिनी की चूत अब सेट हो चुकी थी, अब वो भी धीरे-2 अपनी लय में आती जा रही थी, और अपने पति के धक्कों का जबाब नीचे से देने लगी.

कहते हैं हर अंधेरी रात के बाद एक रुपहला सबेरा ज़रूर आता है, मोहिनी भी कुच्छ पल पहले की पीड़ा भूल कर दुगने जोश से चुदने लगी.

आख़िरकार दोनो पति पत्नी एक साथ अपनी मंज़िल पर पहुँच ही गये, और दोनो ही एक साथ स्खलित होकर लंबी-2 साँस लेते हुए एक-दूसरे से चिपक गये.

कुच्छ देर बाद जब दोनो को थोड़ा राहत हुई तो अपने सुख-दुख, घर परिवार, आने वाले भविष्य की बातें करने लगे, साथ साथ अपने हाथों को हरकत भी देते जा रहे थे.

मोहिनी की अब झिझक कम हो गयी थी सो वो भी अपने हाथों को अपने पति के अंगों पर फिरा रही थी, उनके साथ खेल रही थी.

कुच्छ ही देर में एक बार फिर तूफान उठा और वो दोनो फिरसे एक दूसरे में समाते चले गये…

पहली रात का भरपूर सुख उठाते हुए उन्हें सुबह के 4 बज गये, फिर एक ऐसी नींद में डूब गये, जो सीधी सुबह 7 बजे दरवाजा खट खटाने की आवाज़ सुन कर ही खुली.

दूसरे दिन सनडे था, कॉलेज बंद था, तो मैं थोड़ा देर तक सो लेता था. दीदी जब नहा धो कर फ्रेश हो गयी तब उन्होने मुझे जगाया.

रोज़ तो भाभी सोते हुए झुक कर मेरे माथे पर किस करती थी, और बड़े प्यार से आवाज़ देकर मुझे उठाती थी, मे बिना आँखें खोले उनके गले लग जाता था.

आज ऐसा नही हुआ, दीदी ने आते ही सीधा मुझे ज़ोर से हिलाया और ज़ोर से आवाज़ देने लगी, छोटू…छोटू… उठ जा 8 बज गये, कब तक सोएगा..

मेने सोचा भाभी ही होंगी, सो दोनो हाथ उनके गले लगने के लिए उपर किए…

भाभी होती तो झुक कर उठती, दीदी पलंग के साइड में बैठ कर हिला रही थी, आँखें बंद किए ही मेने जैसे ही अपने दोनो हाथ उपर किए तो वो उनके बूब्स से टकरा गये….

मुझे बंद आँखों से कोई अंदाज़ा नही लगा, सोचा भाभी का गला और थोड़ा उपर को है, तो ऐसे ही हाथों को उनके बदन से रगड़ते हुए उपर ले जाने लगा.

उनके बूब मेरे हाथों से एक तरह से मसल गये…

हाथ लगते ही पहले तो दीदी ने सोचा ग़लती से लग गये होंगे.. और उन्हें ज़्यादा कुच्छ फील नही हुआ, लेकिन जब मेरे हाथों से उनके रूई जैसे मुलायम बूब्स मसल गये तो वो थोड़ा सॉक्ड हो गयी…

उसके कुंवारे मन की भावनाओ को करेंट सा लगा, और उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर ज़ोर्से झटक दिया..

मेरा हाथ चारपाई की पाटी से जा टकराया, खटक से मेरी आँखें खुल गयी और मे उठकर अपना हाथ झटकने लगा…मेरे हाथ में दर्द होने लगा और मैं ज़ोर से दीदी के उपर चिल्लाया…

क्या करती हो, मेरा हाथ तोड़ दिया… माआ…. आह्ह्ह्ह…

दीदी गुस्से से चिल्लाती हुई बोली – ये क्या कर रहा था तू ..? हां..!

मे और ज़ोर्से चिल्लाया – आप यहाँ क्या कर रही थी ?

आवाज़ सुन कर भाभी दौड़ी हुई आई और बोली – अरे ! आप दोनो क्यों गुस्सा हो रहे हो..? हुआ क्या है..?

मे – देखो ना भाभी, दीदी ने मेरा हाथ तोड़ दिया, कितना दर्द हो रहा है.. और उल्टा मुझ पर ही चिल्ला रही है..

भाभी ने दीदी की तरफ देखा… तो वो नज़र नीची करके बिना कुच्छ बोले वहाँ से चली गयी…

भाभी ने मेरे पास बैठ कर मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर सहलाया और फिर प्यार से मेरे गाल पर हाथ रख कर बोली – कोई बात नही मेरे प्यारे लल्ला जी.. चलो अब उठ जाओ, मे आयोडेक्स लगा दुगी ठीक हो जाएगा.

मे उठकर फ्रेश होने चला गया, दूसरी तरफ भाभी ने दीदी से उस घटना के बारे में पुछा तो उन्होने सकुचाते हुए सब बता दिया…

भाभी थोड़ी देर मॅन ही मन मुस्काराई, फिर बोली – ये उस बेचारे ने जान बुझ कर तो नही किया होगा, उसको लगा होगा कि रोज़ की तरह में उसे उठाती हूँ, तो वो मेरे गले लग जाते हैं, बस यही सोच कर गले लगने जा रहे होंगे और ग़लती से हाथ टच हो गया होगा, इतना माइंड मत किया करो ठीक है..,!

रामा – लेकिन भाभी आप भी उसे ज़्यादा सर मत चढ़ाओ, अब वो भी बड़ा हो रहा है…!

मोहिनी – मेरे लिए तो तुम दोनो बच्चे ही हो, तुम दोनो को संभालने की मेरी ज़िम्मेदारी है.. तुम छोटू के बारे में चिंता ना करो और मुझपे भरोसा रखो…..!!

हम दोनो तैयार होकर कॉलेज के लिए निकल लिए. दोनो एक ही साइकल से कॉलेज जाते थे, मे साइकल लेके घर से बाहर निकला तो देखा दीदी अपना बॅग लिए मेरे इंतजार में ही खड़ी थी.

मे भी अपने पिताजी और भाइयों की तरह काफ़ी तंदुरुस्त शरीर का था, इस उमर में भी मेरी हाइट भाभी के बराबर थी (5’5”) दीदी से लंबा था..

अच्छा खाना पीना दूध घी का, उपर से भाभी का एक्सट्रा लाड प्यार, तो थोड़ा भारी भी होता जा रहा था मेरा शरीर.

वैसे तो माँ का दर्जा तो कोई और नही ले सकता, पर सच कहूँ तो भाभी के लाड प्यार ने मुझे अपनी माँ की ममता को भी भूलने पर विवश कर दिया था.

मेने दीदी को अनदेखा करके साइकल लेके चल दिया, तो दीदी ने आवाज़ देकर रुकने को कहा और बोली – अरे ! मुझे कॉन ले जाएगा..? तू तो अकेला ही भगा जा रहा है..

मेने साइकल तो रोक ली लेकिन कोई जबाब नही दिया और उल्टे अपने गाल फूला लिए, जैसे मे उनसे बहुत ज़्यादा नाराज़ हूँ.

दीदी मेरे पास आई और अपने दोनो कानों को पकड़ कर सॉरी बोला – छोटू ! भैया अपनी दीदी को माफ़ कर्दे..!

मेने कहा ठीक है.. माफ़ किया.. लेकिन मेरे हाथ में अभी भी दर्द है तो मुझसे डबल बिठा कर साइकल नही चलेगी, आप चलो…

मजबूरी में दीदी ने साइकल लेली, और में पीछे कॅरियर पर बैठ गया. गाओं से निकल कर हम सड़क पर आ गये, लेकिन दीदी की साँस फूलने लगी, और वो साइकल खड़ी करके हाँफने लगी…

आ..स्सा..आ..सससा.. उफ़फ्फ़…छोटू.. तू बहुत भारी है रे… मेरे से नही चलेगी.. तू जा अकेला.. मे पैदल ही आ जाती हूँ… ज्यदा दूर भी नही है… थोड़ा लेट ही होंगी और क्या..?

मे – हूंम्म… फिर शाम को बाबूजी से जूते पड़वाना हैं…! अगर उन्हें पता चला कि आप अकेली पैदल कॉलेज गयी हो तो जानती हो ना क्या करेंगे वो…?

वो – तो फिर क्या करें..? तेरे हाथ में तो दर्द है, डबल सवारी हॅंडल कैसे साधेगा तू..?

मे – एक काम हो सकता है, आप हॅंडल पकडो, मे कॅरियर पर दोनो ओर को पैर करके पेडल मारता हूँ..!

वो – चला पाएगा तू ऐसे.. ?

मे – हां आप शुरू करो.. . फिर हम ने ऐसे ही साइकल चलाना शुरू कर दिया, मे पीछे से पेडल मारने लगा, लेकिन बिना कुच्छ पकड़े ताक़त लग ही नही पा रही थी..

नोट : जिन लोगों ने इस तरह से साइकल चलाई हो वो इस सिचुयेशन को भली भाँति समझ सकते हैं..

मे – दीदी ! बिना कुच्छ पकड़े मेरी ताक़त पेडल के उपर नही लग पा रही, क्या करूँ?

दीदी- तो सीट को आगे से पकड़ ले..

मेने दोनो हाथों को सीट के आगे ले गया लेकिन उनकी दोनो जांघे बीच में आ रही थी, मेने कहा दीदी अपने पैर तो उपर करो, तो उन्होने अपने दोनो पैर उठा कर आगे सामने वाले फ्रेम के डंडे पर रख लिए..

मेने सीट के दोनो साइड से हाथ आगे ले जाकर अपने हाथों की उंगलियों को एक-दूसरे में फँसा लिया और साइकल पर पेडल मारने लगा, अब मुझे ताक़त लगाने में आसानी हो रही थी.

लेकिन दीदी अपने पैर ज़्यादा देर तक डंडे से टिका नही पाई और उनके पैर नीचे की ओर सरकने लगे जिससे उनकी मोटी-2 मुलायम जांघे मेरी कलाईयों पर टिक गयी.

जोरे लगाने में मेरा सर भी आगे पीछे को होता तो मेरी नाक और सर उनकी पीठ से टच होने लगते.

रामा को आज दूसरी बार अपने भाई के शरीर के टच का अनुभव हो रहा था, जो शुरू तो मजबूरी से हुआ लेकिन अब उसके कोमल मन की भावनाएँ कुच्छ और ही तरह से उठने लगी.

जांघों पर हाथों का स्पर्श, पीठ पर नाक और सर के बार टच होने से उसको सुबह अपने स्तनों पर हुए अपने भाई के हाथों का मसलना याद आने लगा, उसके कोमल अंगों में सुरसूराहट होने लगी.

ना चाहते हुए भी वो थोड़ा सा और आगे को खिसक गयी और आगे-पीछे हिला-हिलाकर अपनी मुनिया को अपने भाई की उंगलियों से टच करने लगी.

उसकी पेंटी में गीला पन का एहसास उसे साफ महसूस हुआ और वो मन ही मन गुड-गुडाने लगी. वो अपने आप को कोस रही थी कि क्यों उसने सुबह अपने भाई को नाराज़ किया, थोड़ी देर और अपने स्तनों को मसलवा लेती तो कितना मज़ा आता.

यही सब सोचती हुई वो मन ही मन खुश हो रही थी, और अब उसने अपने भाई को और अपने पास आने का मंसूबा बना लिया.

वो दोनो कॉलेज पहुँचे और अपनी-2 क्लास में जा कर पढ़ाई में लग गये.

उमर कोई भी हो, साथ के यार दोस्त सब तरह की बातें तो करते ही हैं, आप चाहो या ना चाहो, वो सब बातें आपको भी असर तो डालती ही हैं.

रामा की भी क्लास में कुच्छ ऐसी लड़कियाँ थी, जो इस उमर में भी लंड का स्वाद ले चुकी थी, और आपस में वो एक दूसरे से इस तरह की बातें भी करती थी.

तो ऐसा तो बिल्कुल भी नही था कि रामा को इन सब बातों की कोई समझ ही ना हो, लेकिन वो उन दूसरी लड़कियों जैसी नही थी की कहीं भी किसी के भी साथ मज़े ले सके.

उसके अपने घर के संस्कार इसके लिए कतई उसको इस तरह की इज़ाज़त नही दे सकते थे..

सारे दिन रामा का पढ़ाई में मन नही लगा, रह-रह कर आज उसको दिन की घटनयें याद आ रही थी, और उनसे पैदा हुई अनुभूतयों को सोच-2 कर रोमांचित होती रही.

टाय्लेट करते समय आज पहली बार उसका मन किया कि अपनी पूसी को सहलाया जाए, और ये ख्याल आते ही उसका हाथ स्वतः ही अपनी पयर मुनिया पर चला गया, और वो उसे सहलाने लगी.

थोड़ा अच्छा भी लगा उसे, पर अब वो अपनी बंद आँखों से इस आभास को अपने भाई की उंगलियों के टच से हुई अनुभूति से कंपेर करने लगी…..!

कॉलेज 9 बजे सुबह शुरू होता था और 3 बजे ऑफ हो जाता था, छुट्टी के बाद दोनो भाई बेहन घर लौट लिए. रामा ने लौटते वक़्त का कुच्छ और ही प्लान सोच लिया था.

छुट्टी होते ही वो छोटू के पास आई जो स्टॅंड से अपनी साइकल निकाल कर पैदल ही गेट की तरफ आ रहा था. रामा पहले से ही गेट पर जाकर खड़ी हो गयी थी.

अपना कॉलेज बॅग भी हॅड्ल पर लटकाते हुए बोली – भाई तेरे हाथ का दर्द अब कैसा है, कुच्छ कम हुआ या वैसा ही है..

मे – वैसे फील नही होता है, लेकिन कुच्छ करने पर थोड़ा दुख़्ता है..

रामा – मेने सोचा तुझे कॅरियर से पेडल मारने में थोड़ा ज़्यादा ताक़त लगानी पड़ रही थी ना सुबह, तो इधर से हम दोनो साथ में पेडल चलाएँगे…

मे – अरे ! लेकिन पेडल तो इतना छोटा है, उसपर दोनो के पैर कैसे आ पाएँगे..?

रामा – अरे ! तू देख तो सही, आ जाएँगे, मे अपनी एडी से ज़ोर लगाउन्गी, तू बाहर से पंजों से लगाना. हो जाएगा देखना.

तो वो सीट पर बैठ गयी और मे कॅरियर पर दोनो ओर पैर करके बैठ गया.

मे – लेकिन दीदी ! अब मे पाकडूँगा कैसे..?

रामा – तू मेरी जांघों के उपर से सीट को पकड़ ले… और उसने अपनी एडियों से साइकल आगे बढ़ाई, मेने भी उसकी एडियों की बगल से बाहर की तरफ अपने पंजे जमा लिए और हम दोनो मिलकर पेडलों पर ज़ोर लगाने लगे.

जैसे ही कॉलेज की भीड़ से बाहर निकले, रामा ने सीट पकड़ने के लिए कहा. मेने अपने दोनो हाथ उसकी कमर की साइड से लेजा कर सीट की आगे की नोक पर जमा लिए.

सुबह के मुकाबले अब मुझे ताक़त भी कम लगानी पड़ रही थी, रामा बोली- क्यों भाई अब तो ज़्यादा ज़ोर नही लगाना पड़ रहा तुझे…?

मे – हां दीदी ! अब सही है, और साइकल भी तेज चल रही है…

हम दोनो मिलकर साइकल चलने लगे, दीदी के शरीर से उठने वाले पसीने की गंध मेरी नाक से अंदर जा रही रही थी.. और धीरे-2 मेने अपना गाल उसकी पीठ पर टिका दिया.

उधर अपने भाई की बाजुओं का दबाब अपनी जांघों पर बिल्कुल उसकी पूसी के बगल से पाकर रामा की मुनिया में सुर-सुराहट होने लगी और वो उसे आगे-पीछे हिल-हिल कर उसके हाथों से रगड़ने लगी.

मज़े से उसकी आँखें बंद होने लगी, जिसकी वजह से साइकल लहराने लगी, छोटू को लगा कि साइकल गिरने वाली है, तो वो चिल्लाया – दीदी क्या कर रही हो..? साइकल गिर जाएगी..

अपने भाई की आवाज़ सुनकर रामा को होश आया और वो ठीक से बैठ कर हॅंडल पर फोकस करने लगी.

रामा – भाई तू मेरी पीठ से क्यों चिपका है.. ?

मे – अरे दीदी ! सीट पकड़ने के लिए हाथ आगे करूँगा तो मुझे भी आगे खिसक कर बैठना पड़ेगा ना..!

रामा – तो तू एक काम कर..! सीट की जगह मुझे पकड़ ले.. और अपने एक हाथ से मेरा उधर का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ के जोड़ पर अंदर की तरफ रख दिया और बोली- दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख ले… ठीक है..

मेने हां बोलकर दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख लिया, अब मेरे दोनो हाथों की उंगलिया एकदम उसकी पूसी के उपर थी, मेरे मन में ऐसी कोई भावना नही थी कि अपनी बेहन को टीज़ करूँ लेकिन वो आगे-पीछे होकर अब मेरे हाथों से अपनी मुनिया की फुल मसाज करा रही थी.

घर पहुँचते पहुँचते रामा इतनी एक्शिटेड हो गयी, की उसका फेस लाल भभुका हो गया, कान गरम हो गये, और उसकी पेंटी पूरी तरह गीली हो गयी, जो मुझे लगा शायद पसीने की वजह से हो.

घर पहुँचते ही वो जल्दी से साइकल मुझे पकड़ा कर बाथरूम को भागी, और करीब 10 मिनिट बाद उसमें से निकली, तब तक मेने साइकल आँगन में खड़ी की, दोनो बाग उतारे, और अपने कपड़े निकाल कर फ्रेश होने बाथ रूम की तरफ गया, वो उसमें से निकल रही थी.

मेने पुछा- दीदी इतनी तेज़ी से बाथरूम में क्यों भागी..? तो वो बोली- अरे यार बहुत ज़ोर्से बाथरूम लगी थी….. मेने सोचा शायद ठीक ही कह रही होगी.

मे फ्रेश होकर भाभी के रूम में चला गया, वो बेसूध होकर सो रही थी, अब मुझे तो पता नही था कि बेचारी, रात भर भैया के साथ पलंग तोड़ कुश्ती खेलती रही हैं.

सोते हुए वो इतनी प्यारी लग रही थी मानो कोई देवी की मूरत हो, साँसों के साथ उनका वक्ष उपर नीचे हो रहा था, जो आज कुच्छ ज़्यादा ही उठा हुआ लगा मुझे.

मे उनके पास बैठ गया और उनका एक हाथ अपने हाथों मे लेकर अपने गाल पर रख कर सहलाया और धीरे से आवाज़ लगाई… लेकिन वो गहरी नींद में थी सो कोई असर नही पड़ा.

तो मेने उनका हाथ हिलाकर थोड़ा उँची आवाज़ में पुकारा – भाभी ! भाभी .. उठिए ना… भूख लगी है.. खाना दो ..!

वो थोड़ा सा कुन्मुनाई और मेरी ओर करवट लेकर फिर सो गयी, करवट लेते समय उनका दूसरा हाथ मेरी जाँघ पर आ गया. उनका साड़ी का पल्लू सीने से अलग हो गया और ब्लाउस में कसे उनके उरोजो का उपरी हिस्सा लगभग 1/3 दिखाई पड़ने लगा.

दोनो उरोज एक-दूसरे से सट गये थे, अब उन दोनो के बीच एक पतली सी दरार जैसी बनी हुई थी.

मेरा मन किया कि इस दरार में उंगली डाल कर देखूं, लेकिन एक ममतामयी भाभी की छवि ने मुझे रोक दिया, और मे उनके पास से चला आया.

बाहर आकर देखा तो दीदी खाना लेकर खा रही थी, मेने कहा – मुझे नही बुला सकती थी खाने के लिए.

वो बोली – मुझे लगा तू बिना भाभी के दिए नही खाएगा.. सो इसलिए नही पुछा, चल आजा मेरे साथ ही खाले दोनो मिलकर खाते हैं.

मे भी दीदी के साथ ही बैठ गया खाने और फिर हम दोनो बेहन भाई ने एक ही थाली में बैठ कर खाना खाया, जो मुझे कुच्छ ज़्यादा अच्छा लगा एक साथ खाने में.

आप भी कभी अपने परिवार के साथ एक थाली में ख़ाके देखना ज़्यादा टेस्टी लगेगा, ये मेरा अपना अनुभव है…

शाम को भाभी टीवी के सामने बैठ कर सब्जी काट रही थी, दीदी बड़ी चाची के यहाँ गयी थी, नीलू भैया से नोट्स लेने.…

यहाँ थोड़ा अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के बारे में बताना ज़रूरी है..

मेरे 3 चाचा : बड़े राम किशन पिताजी से दो साल छोटे खेती करते हैं, उमर 44, चाची जानकी देवी उमर 42 इनके 3 बच्चे हैं दो बड़ी बेटियाँ रेखा और आशा, उमर 22 और 19, बड़ी बेटी की शादी मेरे भैया से एक साल बाद ही हुई थी, तीसरा बेटा नीलू जो रामा दीदी के बराबर का उन्ही की क्लास में पढ़ता है.

दूसरे (मंझले) चाचा : रमेश उमर 41, ये भी खेती ही करते है, चाची निर्मला 38 की होंगी, इनके दो बच्चे हैं, दोनो ही लड़के हैं सोनू और मोनू.. सोनू मेरे से दो साल बड़ा है, और मोनू मेरी उमर का है लेकिन मेरे से एक क्लास पीछे है.

दो बुआ – मीरा और शांति 36 और 33 की उमर दोनो की शादी अच्छे घरों में हुई है ज़्यादा डीटेल समय आने पर..

तीसरे चाचा जो सब बेहन भाइयों में छोटे हैं नाम है राकेश 12थ तक पढ़े हैं, इसलिए पिताजी ने इन्हें कॉलेज 4थ क्लास की नौकरी दिलवा दी और खेती तो है ही साथ में तो अच्छी कट रही है इनकी इस समय 30 के हो चुके हैं.

छोटी चाची रश्मि उमर 26 साल, सच पुछो तो चाचा के भाग ही खुल गये, चाची एकदम हेमा मालिनी जैसी लगती हैं.. शादी के 6 साल बाद भी अभी तक कोई बच्चा पैदा नही कर पाए हैं.

भाभी सोफे पर बैठी सब्जी काट रही थी शाम के खाने के लिए, मे बाहर आँगन में चारपाई पर बैठा अपना आज का होम वर्क कर रहा था.

थोड़ी देर बाद भाभी मेरे पास आकर सिरहाने की तरफ बैठ गयी और पीछे से मेरे सर पर हाथ फेर्कर बोली – लल्ला ! होम वर्क कर रहे हो… !

मे – हां भाभी आज टीचर ने ढेर सारा होम वर्क दे दिया है, उसी को निपटा रहा हूँ. वैसे हो ही गया है बस थोड़ा सा ही और है.

वो – दूध लाउ पीओगे..?

मे – नही अभी नही रात को खाने के बाद पी लूँगा… अरे हां भाभी ! याद आया, आपकी तबीयत कैसी है अब?

वो – हां ? मुझे क्या हुआ है..? भली चन्गि तो हूँ…!

मे – नही ! वो दो दिन से आप कुच्छ लंगड़ा कर चल रही थी, और जब मेने कॉलेज से आके आपको बहुत जगाया, लेकिन आप उठी ही नही, सोचा शायद आपको कोई प्राब्लम हुई हो..?

वो थोड़ा शरमा गयी, फिर शायद थोड़ी देर पिच्छली दो रातें याद आई होगी तो उनके चेहरे पर एक शामिली मुस्कान तैर गयी…और उनके दोनो गालों में गड्ढे बन गये..

मेने जैसे ही उनके डिंपल देखे, मेरा जी ललचाने लगा तो मेने अपनी उंगली के पोर को उनके डिंपल में घुसा दिया और उंगली को गोल-गोल सहला कर बोला- भाभी मे आपसे कुच्छ मांगू तो आप नाराज़ तो नही होगी ना..!

उन्होने हँसते हुए ही मेरे बालों में उंगलियाँ डाली और बोली – ये क्या बात हुई.. भला..? तुम्हें आज तक मेने किसी चीज़ के लिए मना किया है जो ऐसे माँग रहे हो..? सब कुच्छ तो तुम्हारा ही है इस घर में…

बताओ मुझे क्या चाहिए मेरे प्यारे देवर को और ये कह कर मेरे गाल को प्यार से अपने एक अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर हल्का सा चॉंट दिया.

मे – मेरा जी करता है, एक बार आपके डिंपल को चूमने का… बोलो चूम लूँ..?

वो कुच्छ देर तक मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, फिर एक मुस्कान उनके चेहरे पर तैर गयी और बोली – एक शर्त पर…

मे – क्या..? इसके लिए आप जो कहोगी मे करूँगा…

वो – मुझे भी अपने गाल चूमने दोगे तो ही मे अपने चूमने दूँगी.. बोलो मंजूर है..?

मे – हे हे हे… इसमें क्या है ? आप तो कभी भी मेरा चुम्मा ले ही लेती हो ना..

वो – नही ये कुच्छ स्पेशल वाला होगा.. मेने कहा जैसे आप चाहो वैसे ले लेना.. तो वो हँसते हुए बोली ठीक हैं तो फिर तुम ले लो..पहले.

मेने उनके हँसते ही उसके गाल को चूम लिया और उनके डिंपल में अपनी जीभ की नोक डाल दी. वो खिल खिलाकर हँसते हुए बोली- हटो चीटिंग करते हो, जीभ लगाने की कब बात हुई थी..?

फिर मेने बिना कहे दूसरे गाल पर भी ऐसा ही किया.

उन्होने कहा – बस हो गया..? अब मेरी बारी है फिर उन्होने मेरा सर अपने सीने से सता लिया और मेरे गाल पर अपने दाँत गढ़ा दिए..

मेरे मुँह से चीख निकल गयी लेकिन उन्होने मेरा गाल नही छोड़ा और उसे अपने होठों में दबा कर पपोर लिया, और कुच्छ देर तक काटने वाली जगह पर अपने होठों से ही सहलाने लगी..

मेरा दर्द पता नही कहाँ च्छूमंतर हो गया और मुझे मज़ा आने लगा, मेरी आँखें बंद हो गयी,

फिर उन्होने ऐसा ही दूसरे गाल पर भी किया, इस बार दर्द हुआ पर मे चीखा नही और उनके होठों के सहलाने का मज़ा लेता रहा.

क्यों कैसा लगा मेरा चुम्मा जब भाभी ने पुछा तो मेने कहा – आहह.. भाभी मज़ा आ गया, ऐसा चुम्मा तो आप रोज़ लिया करो,

और ये बोलकर मे उनकी जाँघ पर अपना सर रख कर लेट गया और उनकी पतली कमर में अपनी बाहें लपेट कर उनके ठंडे-2 पेट पर अपना मुँह रख कर बोला- भाभी आप कोई जादू तो नही जानती..?

वो – क्यों मेने क्या जादू कर दिया तुम पर..?

मे – कुच्छ देर पहले मेरा दिमाग़ थका-2 सा लग रहा था, लेकिन आपने सारी थकान ख़तम करदी मेरी, ये बोलकर मेने उनके ठंडे पेट को चूम लिया.. ..

वो मेरा सर चारपाई पर टिका कर हँसती हुई खाना बनाने चली गयी और मे फिर अपने होमे वर्क में लग गया…!

दूसरी सुबह हम फिर कॉलेज के लिए रेडी होकर ले साइकल निकाल लिए.. आज मेरा हाथ एकदम फिट था, सो मेने साइकल बढ़ा दी और दीदी को बैठने के लिए बोला.

दीदी ने जैसे ही बैठने के लिए कॅरियर पकड़ा, वो सीट के नीचे वाले जॉइंट से अलग होकर पीछे को लटक गया.. दीदी चिल्लाई – छोटू रुक, ये कॅरियर तो निकल गया..

मे – तो अब क्या करें, चलो पैदल ही चलते हैं वहीं जाकर मेकॅनिक से ठीक करा लेंगे, बॅग दोनो साइकल पर टाँग उसके हॅड्ल को पकड़ कर हम दोनो निकल पड़े पैदल कॉलेज को.

पीछे से नीलू भैया साइकल पर आ रहे थे, उनके पीछे आशा दीदी जो अब 12थ में थी, लेट पढ़ने बैठी थी इसलिए वो अभी 12थ में ही थी. दोनो भाई बेहन एक ही क्लास में थे.

हमें देख कर उन्होने भी अपनी साइकल रोकी और पुछा की क्या हुआ, हमने अपनी प्राब्लम बताई तो वो दोनो भी बोले कि ठीक है हम भी तुम दोनो के साथ पैदल ही निकलते हैं.

रामा दीदी ने उनको कहा- अरे नही आप लोग निकलो क्यों खम्खा हमारी वजह से लेट होते हो, तो वो निकल गये..

जैसे ही हम सड़क पर पहुँचे.. तो दीदी बोली – छोटू ! भाई ऐसे तो हम लोग लेट हो जाएँगे, पहला पीरियड नही मिल पाएगा, वो भी मेरा तो फिज़िक्स का है..

मे – तो क्या करें आप ही बताओ..

वो – एक काम करते हैं, में आगे डंडे पर बैठ जाती हूँ.. कैसा रहेगा.

मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है, आप बैठो.. तो वो आगे डंडे पर बैठ गयी और मे फिरसे साइकल चलाने लगा….!!

कॉलेज के लिए थोड़ा लेट हो रहा था तो मेने साइकल को तेज चलाने के लिए ज़्यादा ताक़त लगाई जिससे मेरे दोनो घुटने अंदर की तरफ हो जाते और सीना आगे करना पड़ता पेडल पर ज़्यादा दबाब डालने के लिए.

मेरे लेफ्ट पैर का घुटना दीदी के घुटनो में अड़ने लगा तो वो और थोड़ा पीछे को हो गयी, जिससे उनके कूल्हे राइट साइड को ज़यादा निकल आए और उनकी पीठ मेरे पेट से सटने लगी.

मेरी राइट साइड की जाँघ उनके कूल्हे को रब करने लगी और लेफ्ट पैर उनकी टाँगों को..

उनके कूल्हे से मेरी जाँघ के बार-बार टच होने से मेरे शरीर में कुच्छ तनाव सा बढ़ने लगा, और मेरी पॅंट में क़ैद मेरी लुल्ली, जो अब धीरे-2 आकर लेती जा रही थी थी अकड़ने लगी.

दीदी भी अब जान बूझकर अपनी पीठ को मेरे पेट और कमर से रगड़ने लगी, अपना सर उन्होने और थोड़ा पीछे कर लिया और अपना एक गाल मेरे चेहरे से टच करने लगी.

ज़ोर लगाने के लिए मे जब आगे को झुकता तो हम दोनो के गाल एक दूसरे से रगड़ जाते.. और पूरे शरीर में एक सनसनी सी फैलने लगती.

आधे रास्ते पहुँच, दीदी बोली- छोटू थोड़ा और तेज कर ना लेट हो रहे हैं.. तो मेने अपने दोनो हाथ हॅंडल के बीच की ओर लाया जिससे और अच्छे से दम लगा सकूँ..

लेकिन सही से पकड़ नही पा रहा था…. हॅंडल….! क्योंकि दीदी के दोनो बाजू बीच में आ रहे थे. तो उसने आइडिया निकाला और अपने दोनो बाजू मेरे बाजुओं के उपर से लेजाकर हॅंडल के दस्तानों को पकड़ लिया, जहाँ नोर्मली चलाने वाला पकड़ता है.

हॅंडल को बीच की तरफ पकड़कर अब साइकल चलाने में दम तो लग रहा था और साइकल भी अब बहुत तेज-तेज चल रही थी लेकिन अब मेरे लेफ्ट साइड की बाजू दीदी के बूब्स को रगड़ने लगी.

दूसरी ओर मेरी दाई जाँघ दीदी के मुलायम चूतड़ को रगड़ा दे रही थी..

मेरे शरीर का करेंट बढ़ता ही जा रहा था, उधर दीदी की तो आँखें ही बंद हो गयी, वो और ज़्यादा अपने बूब्स को जानबूझ कर मेरे बाजू पर दबाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर-ज़ोर्से भींचने लगी.

उत्तेजना के मारे हम दोनो के ही शरीर गरम होने लगे थे.

कॉलेज पहुँच दीदी ने साइकल से उतरते ही मेरे गाल पर एक किस कर दिया और थॅंक यू बोलकर भागती हुई अपनी क्लास रूम में चली गयी.

छुट्टी के बाद लौटते वक़्त जब मेने दीदी को पुछा की आपने थॅंक्स क्यो बोला था, तो बोली – अरे यार समय पर कॉलेज पहुँचा दिया तूने इसके लिए और क्या..! वैसे तू क्या समझा था..?

मे – कुच्छ नही, मे क्या समझूंगा.., आज पहली बार आपने थॅंक्स बोला इसलिए पुछा. वो नज़र नीची करके स्माइल करने लगी.

घर लौटते वक़्त भी ऐसा ही कुच्छ हमारे साथ हुआ, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर दीदी ने अपनी लेफ्ट बाजू मेरी जाँघ पर ही रखड़ी थी और अपने अल्प-विकसित उभारों को मेरी बाजू से रग़ाद-2 कर खुद भी उत्तेजित होती रही और मुझे भी बहाल कर दिया.

अब ये हमारा रोज़ का ही रूटिन सा बन गया था, दिन में एक बार कम से कम मे भाभी का चुम्मा लेता, बदले में वो भी मेरे गाल काट कर अपने होठों से सहला देती, कभी-2 तो मे अपना सर या गाल या फिर मुँह उनके स्तनों पर रख कर रगड़ देता.

दूसरी तरफ दीदी और मे भी दिनों दिन मस्ती-मज़ाक में बढ़ते ही जा रहे थे, लेकिन सीमा में रह कर.

ऐसे ही मस्ती मज़ाक में दिन गुज़रते चले गये, और ये साल बीत गया, मे अब नयी क्लास में आ गया था, दीदी 12थ में पहुँच गयी, ये साल हम दोनो का ही बोर्ड था, सो शुरू से ही पढ़ाई पर फोकस करना शुरू कर दिया….

उधर बड़े भैया का बी.एड कंप्लीट होने को था, घर में खर्चे भी कंट्रोल में होने शुरू हो गये थे क्योंकि बड़े भैया की पढ़ाई का खर्चा तो अब नही रहा था, और आने वाले कुच्छ महीनो में अब वो भी जॉब करने वाले थे.

हम दोनो भाई-बेहन ने भाभी से जुगाड़ लगा कर एक व्हीकल लेने के लिए पहले भैया के कानो तक बात पहुँचाई और फिर हम सबने मिलकर बाबूजी को भी कन्विन्स कर लिया, जिसमें छोटे भैया का भी सपोर्ट रहा.

अब घर के सभी सदस्यों की बात टालना भी बाबूजी के लिए संभव नही था, ऐसा नही था कि उनको पैसों का कोई प्राब्लम था, लेकिन एक डर था कि मे व्हीकल मॅनेज कर पाउन्गा या नही.

सबके रिक्वेस्ट करने पर वो मान गये और उन्होने एक बिना गियर की टू वीलर दिलवा दी, अब हम दोनो भाई-बेहन टाइम से कॉलेज पहुँच जाते थे.

दीदी ने भी चलाना सीख लिया तो कभी मे ले जाता और कभी वो, जब मे चलाता तो वो मेरे से चिपक कर बैठती और अपने नये विकसित हो रहे उरोजो को मेरी पीठ से सहला देती.

जब वो चलती तो जानबूझ कर अपने हिप्स मेरे आगे रगड़ देती, जिससे मेरा पप्पू बेचारा पॅंट में टाइट हो जाता और कुच्छ और ना पता देख मन मसोस कर रह जाता, लेकिन दीदी उसे अच्छे से फील करके गरम हो जाती.

ऐसे ही कुच्छ महीने और निकल गये, इतने में बड़े भैया को भी एक इंटर कॉलेज में लेक्चरर की जॉब मिल गयी, लेकिन शहर में ही जिससे उनके घर आने के रूटिन में कोई तब्दीली नही हुई.

इस बार कॉलेज में आन्यूयल स्पोर्ट्स दे मानने का आदेश आया था, रूरल एरिया का कॉलेज था सो सभी देहाती टाइप के देशी गेम होने थे, जैसे खो-खो, कबड्डी, लोंग जंप, हाइ जंप…लड़कियों के लिए अंताक्षरी, संगीत, डॅन्स…

मेरी बॉडी अपने क्लास के हिसाब से बहुत अच्छी थी, सो स्पोर्ट्स टीचर ने मेरे बिना पुच्छे ही मेरा नाम स्पोर्ट्स के लिए लिख लिया, और सबसे प्रॅक्टीस कराई, जिसमें

मेरा कबड्डी और लोंग जंप में अच्छा प्रद्र्षन रहा और मे उन दोनो खेलों के लिए सेलेक्ट कर लिया.

सारे दिन खेलते रहने की वजह से शरीर तक के चूर हो रहा था, पहले से कभी कुच्छ खेलता नही था, तो थकान ज़्यादा महसूस हो रही थी.

कॉलेज से लौटते ही मेने बॅग एक तरफ को पटका और बिना चेंज किए ही आँगन में पड़ी चारपाई पर पसर गया. सारे कपड़े पसीने और मिट्टी से गंदे हो रखे थे.

थोड़ी ही देर में मेरी झपकी लग गयी, जब भाभी ने आकर मुझे इस हालत में देखा तो वो मेरे बगल में आकर बैठ गयी, और मेरे बालों में उंगलिया फिराते हुए मुझे आवाज़ दी.

मेने आँखें खोल कर उनकी तरफ देखा तो वो बोली – क्या हुआ, आज ऐसे आते ही पड़ गये, ना कपड़े चेंज किए, और देखो तो क्या हालत बना रखी है कपड़ों की.. बॅग भी ऐसे ही उल्टा पड़ा है…

किसी से कुस्ति करके आए हो..? मेने कहा नही भाभी, असल में आज कॉलेज में स्पोर्ट्स दे के लिए गेम हुए, और मेरा दो खेलों के लिए सेलेक्षन हो गया है.

सारे दिन खेलते-2 बदन टूट रहा है, कभी खेलता नही हूँ ना.. इसलिए.. प्लीज़ थोड़ी देर सोने दो ना भाभी..

अरे.. ! ये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में कैसे नींद आ सकती है, शरीर में कीटाणु लगे हुए हैं, चलो उठो ! पहले नहा के फ्रेश हो जाओ, कुच्छ खा पीलो, फिर देखना अपनी भाभी के हाथों का चमत्कार, कैसे शरीर की थकान छुमन्तर करती हूँ.. चलो.. अब उठो..!

और उन्होने जबर्दुस्ति हाथ से पकड़ कर मुझे खड़ा कर दिया, और पीठ पर हाथ रख कर जबर्जस्ति पीछे से धकेलते हुए बाथरूम में भेज दिया….!​
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