Update 03

बीते एक साल में मोहिनी का बदन पहले से भर गया था, उसके बूब्स भी अब ज़्यादा बड़े-2 दिखने लगे थे, कुल्हों का उठान अब साड़ी में साफ-2 दिखता था. कुल मिलकर अब वो एकदम कड़क माल होती जा रही थी.

सनडे के सनडे राम मोहन अपनी प्यारी पत्नी की अच्छे से सर्विस जो कर जाते थे.

फ्रेश होकर मुझे भाभी ने बादाम वाला दूध दिया और साथ में कुच्छ बिस्कट बगैरह दे दिए, मेने कहा भाभी इनसे क्या होगा, मुझे तो खाना खाना है,

तो उन्होने प्यार से झिड़कते हुए कहा – नही आज से इस टाइम तुम खाना नही खाओगे, खाना में कॉलेज के लिए रख दिया करूँगी, तो रिसेस में खा लिया करना, घर आकर बस हल्का फूलका और खाना सीधे रात को ही.

अब तुम्हें मे .मेन बना के छोड़ूँगी… मे चाहती हूँ मेरा देवर अपने पूरे परिवार में सबसे ज़्यादा ताक़तवर हो… जब सीना तान कर चले तो लगे मानो कोई शेर आ रहा हो..

मेने हँसते हुए कहा क्यों भाभी खाम्खा मुझे चढ़ा रही हो..

तो वो बोली – तुम इसे मज़ाक समझ रहे हो.. चलो अब छत पर ! तुमहरे बदन की मालिश करनी है फिर देखना कैसा तुम्हारी थकान कोसों दूर खड़ी दिखेगी.

हम दोनो छत पर आ गये, हमारे आधे पोर्षन पर दो-मंज़िला बना हुआ था, वाकई हमारे अलावा आस-पास किसी का इतना उँचा मकान नही था.

गाओं के दूसरे छोर पर सिर्फ़ प्रधान का ही घर हमारे से उँचा था, लेकिन बहुत दूर था वो हमसे.

उपर दो बड़े-2 कमरे और उनके आगे एक वरांडे, इस सबकी एक कंबाइंड छत काफ़ी लंबी चौड़ी थी, जो चारों तरफ 2.5 फीट उँची बाउंड्री से कवर की हुई थी.

भाभी ने एक बिछावन नीचे डाला और मुझे अपनी बनियान उतारकर उसपर लेटने को कहा, नीचे में बस एक टाइट हाफपेंट ही पहने हुए था.

भाभी ने अपनी साड़ी के पल्लू को दुपट्टा की तरह अपने सीने पर कसकर लपेटा और उसे पीठ पर से लाते हुए अपनी कमर में खोंस लिया, कसे हुए ब्लाउस और साड़ी के बाहर से ही उनके सुडौल बूब्स एकदम उभर कर बाहर को निकल आए.

वो मेरे बाजू में उकड़ू बैठ गयी, अपने साथ लाई एक कटोरी जिसमें गुनगुना सरसों का तेल था उसे मेरे सर पास रख दिया, फिर अपने हाथों में ढेर सारा तेल ले कर मेरे सीने और कंधों की मालिश करने लगी.

भाभी के गोरे-2 मुलायम हाथ मेरे शरीर पर उपर-नीचे हो रहे थे, उनकी एक साइड की मांसल जाँघ मेरी कमर से रगड़ रही थी, जब वो उपर को आती तो जाँघ के साथ-2 उनके पेट का हिस्सा भी मेरे शरीर से रगड़ जाता.

मे अपनी आँखें बंद किए हुए ये सब फील कर रहा था, और धीरे-2 एक अजीब सी उत्तेजना मेरे शरीर में भरती जा रही थी.

सीने और कंधों की मालिश के बाद वो थोड़ा नीचे की तरफ हुई और अब उनकी जांघों का एहसास मुझे अपनी जाँघ के निचले भाग पर हुआ, अब वो मेरे पेट और उसके साइड की मालिश करने लगी.

जब उनके हाथ मेरे दूसरी साइड की मालिश करते तो उन्हें ज़्यादा झुकना पड़ता जिससे उनका पेट मेरे कमर से टच होता. ना चाहते हुए भी मेरे हाफपेंट में उभार सा बनाने लगा.

फिर उन्होने मेरे पैरों की तरफ रुख़ किया और पैर के पंजों से शुरू करते हुए वो उपर की तरफ आने लगी, घुटनो के उपर उनके हाथों को फील करते ही मेरी उत्तेजना और बढ़ने लगी और मेरी लुल्ली कड़क हो गयी.

भाभी के हाथ जांघों की मालिश करते हुए उपर और उपर की तरफ आते जा रहे मेने हल्के से अपनी आखें खोलकर देखा तो मालिश करते हुए उनकी नज़र मेरे उभार पर ही टिकी हुई थी और मंद-मंद मुस्करा रही थी.

अब भाभी ने मुझे पलटने के लिए कहा- तो में अपने पेट के बल लेट गया. उन्होने अपनी साड़ी को घुटनों तक चढ़ाया और मेरे उपर दोनो तरफ को पैर करके अपने घुटनो पर बैठ गयी..

लाख कोशिशों के बबजूद भी जब वो मालिश करते हुए हाथ अपनी तरफ करती तो उनके गद्दे जैसे मुलायम नितंब मेरी कमर से टच हो जाते, फिर वो जैसे-2 नीचे को खिसकती गयी अब उनके मोटे-2 चूतड़ मेरी गांद के उपर थे.

जब वो अपना दबाब मेरे उपर डालती तो मेरी नीचे कड़ी हुई नुन्नि जो छाती से दबी हुई थी और ज़्यादा फूलने लगी, मारे उत्तेजना के मेरे मुँह से सिसकी निकलने लगी..

भाभी मन ही मन हसते हुए बोली – क्या हुआ लल्ला जी.. कोई प्राब्लम है..?

अब मे उनको क्या बताऊ कि मुझे क्या प्राब्लम है.. ? फिर भी मेने उनको कहा – आह.. भाभी ज़ोर्से अपना वजन मत रखो, मुझे छत के फर्श से दुख रहा है..

वो – कहाँ दुख रहा है… ?

मे – अरे समझा करो भाभी आप भी ना ! मेरी कमर में और कहाँ ..

वो – ओह्ह्ह.. तो मालिश बंद कर्दु.. ?

मे – नही ! लेकिन थोड़ा वजन कम रखो ना प्लीज़ … फिर वो थोड़ा नीचे को मेरी जांघों के उपर बैठ गयी तो मुझे कुच्छ राहत मिली,

लेकिन अब उन्हें मेरे कंधों तक पहुँचने में ज़्यादा झुकना पड़ रहा था तो उनकी मुनिया मेरी गांद से रगड़ खाने लगी.

उन्हें अब और ज़्यादा मज़ा आने लगा और मालिश के बहाने और तेज-2 हाथ चलाने लगी, कुच्छ देर बाद ही वो अपनी रामदुलारी को मेरी गांद के उपर चेंप कर हाथों को मेरी पीठ पर टिकाए अकड़ कर बैठ गयी और कुच्छ देर ऐसे ही शांत बैठी रही.

मेने सर घूमाकर पीछे देखने की कोशिश की तो उन्होने अपने हाथों का दबाब मेरी पीठ पर और बढ़ा दिया जिसके कारण में देख नही पाया कि वो ऐसे क्यों शांत बैठी हैं..

मालिश करने के बाद जब वो मेरे उपर से उठ गई, तो मे कुच्छ देर यूँही उल्टा पड़ा रहा, क्योंकि मे अपने उभार को दिखाना नही चाहता था.

वाकाई में मेरे शरीर की अकड़न एक दम चली गयी थी, वो बिना कुच्छ कहे अपने कपड़े ठीक करके नीचे चली गयी और मे वहीं पड़े-2 नींद में डूबता चला गया…

अब भाभी रोज़ सुबह 5 बजे मुझे जगा देती, और फ्रेश होके कसरत करवाती, वोही देशी डंड बैठक.. और कुच्छ देशी एक्सर्साइज़.. उसके बाद नहाना-धोना, कॉलेज के रेडी होकर एक लीटर बादाम का दूध पिलाती.

कॉलेज में भी रोज़ गेम्स की प्रॅक्टीस होती, फिर शाम को मालिश, भाभी की मस्तियाँ बढ़ती जा रही थी, लेकिन एक अनदेखी दीवार थी जो हम दोनो को रोके हुए थी अपनी हदें पार करने से.

दूसरी ओर रामा दीदी भी मौका निकाल ही लेती मौज मस्ती का. अब उन दोनो के साथ क्या होता था, मुझे नही पता, लेकिन ऐसे मौकों पर मेरा हाल बहाल हो जाता था, और कुच्छ कर भी नही सकता था, क्योंकि यही पता नही था कि करूँ तो क्या..?

स्पोर्ट्स डे तक मेरा शरीर भाभी की मालिश, खेलों की प्रॅक्टीस और कसरतों की वजह से एक दम पत्थर जैसा हो चुका था,

लोंग जंप में, मे अपने कॉलेज में सबसे आगे था, और कबड्डी में भी मेरी वजह से हमारी क्लास के आगे 12थ की भी टीम हार जाती थी.

फाइनल डे को जो होना था वही हुआ, लास्ट में कुस्ति की प्रतियोगिता भी हुई, जिसमें मेने हिस्सा तो नही लिया था, लेकिन 11थ का एक लड़का जो चॅंपियन हो गया था पास के ही गाओं का, वो घमंड में आगया और उसने पूरे कॉलेज के बच्चों में ओपन चॅलेंज कर दिया.

टीचर्स को उसकी ये बात बुरी लगी, तो प्रिन्सिपल ने अपनी तरफ से बड़ा सा इनाम घोसित करके बोले- सभी बच्चो सुनो, तुम लोगों में से जो भी बच्चा इस लड़के को हरा देगा उसे में अपनी तरफ से **** इनाम दूँगा..

जब कोई आगे नही आया तो मेरे क्लास टीचर बोले – क्यों अंकुश तुम भी नही लड़ सकते इससे..?

मे – नही सर ! मुझे कुस्ति लड़ने का कोई आइडिया नही है, और ना ही मे लड़ना चाहता हूँ.. .

वो मेरे पास आए और धीमी आवाज़ में बोले- मे जानता हूँ तुम्हारे अंदर इससे बहुत ज़्यादा ताक़त है, बस इसके पैंट्रों पर नज़र रखना और अपना बचाव करते रहना.

जब ये थकने लगे तभी उठाके पटक देना… देखो ये अपने कॉलेज की इज़्ज़त का सवाल है, ये लड़का इतनी बदतमीज़ी से सबको चॅलेंज कर रहा है, और .अब तो अपने प्रिन्सिपल साब की भी इज़्ज़त दाँव पर लग गयी है.

मेने कहा ठीक है सर अगर आप चाहते हैं तो मे कोशिश ज़रूर करूँगा.

उन्होने फिर अपनी तरफ से ही अनाउन्स कर दिया कि इससे अंकुश लड़ेगा.

फिर हम दोनो में कुस्ति हुई, वो दाँव पेच में माहिर था, लेकिन ताक़त में मेरे मुकाबले बहुत कम, तो जैसे मेरे टीचर ने बोला था में कुच्छ देर उसके दाव बचाता रहा, फिर एक बार फुर्ती से में उसके पीछे आया और उसकी कमर में लपेटा मारकर दे मारा ज़मीन पर.

लेकिन साला हवा में ही पलटी खा गया और चीत नही हुआ, अब में उसके उपर सवार था और उसको चीत करने की कोशिश करने लगा. जब उसे लगा कि अब वो ज़्यादा देर तक मेरे सामने नही टिक पाएगा, तो उसने अपनी मुट्ठी में रेत भरकर मेरी आँखों में मार दी.

मे बिल-बिलाकर उसे छोड़ कर अपनी आँखो पर हाथ रख कर चीखने लगा, मौका देख कर वो मेरे पीछे आया और मेरी कमर में लपेटा लगा कर मुझे उठाना चाह रहा था, मॅच रफ्फेरी फाउल की विज़ल बजा रहा था लेकिन उसने उसकी नही सुनी.

जैसे ही उसने मुझे उठाने की कोशिश की मेने अपनी एक टाँग उसकी टाँग में अदा दी और ताक़त के ज़ोर्से मेने उसके हाथों से अपने को आज़ाद किया, और पलट कर एक हाथ उसकी गर्दन में लपेटा,

मेने बंद आँखों से ही उसकी गर्दन को कस दिया.

उसने अपनी गर्दन छुड़ाने की लाख कोशिश की लेकिन टस से मस नही हुई, आख़िरकार उसकी साँसें फूलने लगी और रेफ़री ने आकर उसे मेरी गिरफ़्त से छुड़ा लिया.

कोई मेरे लिए पानी ले आया था तो मेने मिट्टी को धोने के बाद अपनी आँखों में पानी मारा, आँखें खुलने तो लगी लेकिन सुर्ख लाल हो चुकी थी.

जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो अभी भी वो ज़ोर-ज़ोर से साँसें ले रहा था और मुझे खजाने वाली नज़रों से घूर रहा था.

प्रिन्सिपल ने उसकी जीत का इनाम उसे नही दिया, और दोनो इनाम मुझे देने लगे, तो मेने मना कर दिया.. और कहा – सर क़ायदे से तो वो अपना मॅच जीत ही गया था, अब ठीक है घमंड में आकर चॅलेंज दे बैठा.

मेरी बात मान कर उसको उसका इनाम दे दिया गया. मुझे तुरंत डॉक्टर को दिखाया और दवा डलवाकर और अपना इनाम लेकर हम घर लौट आए…!

बाहर चौपाल पर ही बाबूजी बैठे थे, उन्होने मेरी आखें देखकर पुछ लिया तो दीदी ने उन्हें सारी बात बता दी.

उन्होने मुझे शाबासी दी और अपने गले से लगा लिया…

मेरे हाथों में दो-दो ट्रोफी देखकर भाभी फूली नही समाई, और उन्होने मुझे अपने सीने से कस लिया, उनकी आँखें डब-डबा गयी…

मेने कारण पुछा तो वो बोली – आज मे अपनी ज़िम्मेदारियों में पास हो गयी, इससे ज़्यादा मेरे लिए और क्या खुशी की बात हो सकती है, माजी ने जिस विश्वास से तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में सौंपा था उसमें मे कितना सफल हुई हूँ ये मुझे इन ट्रॉफिशन के रूप में दिख रहा है...

बाबूजी दरवाजे के पीछे से ये सारी बातें सुन रहे थे, उनसे भी रहा नही गया और अंदर आते हुए बोले- सच कहा बहू तुमने..

आज तुम्हारे कारण मेरा बेटा ये सब कर पाया है.. शायद विमला भी इतना नही कर पाती जितना तुमने इन बच्चों के लिए किया है..

पिताजी की आवाज़ सुन कर भाभी ने झट से अपने सर पर पल्लू डाला और उनके पैर पड़ गयी…

जुग-जुग जियो मेरी बच्ची… तुमने साबित कर दिया कि तुम्हारे संस्कार कितने महान हैं, इतने कम उमर में तुमने इस घर को इतने अच्छे से संभाला है.

मे हर रोज़ भगवान का कोटि-2 धन्यवाद करता हूँ, कि उन्होने हमें एक दुख के बदले तुम्हारे रूप में इतनी बड़ी सौगात दी है.. जीती रहो बेटा.. और अपने घर को इसी तरह सजाती संवारती रहो.. इतना बोल अपनी भीगी आँखें पोन्छ्ते हुए बाबूजी बाहर चले गये….

ऐसी ही कुच्छ खट्टी-मीठी, यादों के सहारे, आपस में मौज मस्ती करते हुए समय अपनी गति से बढ़ता रहा, और देखते-2 हमारे एग्ज़ॅम की डेट भी आ गई..

हम दोनो बेहन भाई पढ़ाई में जुट गये, हम दोनो देर रात तक जाग-2 कर पढ़ते रहते, बीच-2 में आकर भाभी देखने आ जाती की किसी चीज़ की ज़रूरत तो नही है.

दोनो बड़े भाई भी बीच-2 में घर आते और हमें अपने एग्ज़ॅम के एक्सपीरियेन्सस शेयर करके एनकरेज करते.

एक दिन पढ़ते-2 मे थक गया, तो पालग पर लंबा होकर पढ़ने लगा, ना जाने कब मेरी आँख लग गयी और अपने सीने पर खुली बुक रखकर गहरी नींद में सो गया.

पढ़ते-2 रामा जब बोर होने लगी, रात काफ़ी हो गयी थी, आँखों में नींद की खुमारी आने लगी थी, अपनी किताबें उसने टेबल पर रखी. जब उसकी नज़र अपने छोटे भाई पर पड़ी, तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी.

कुच्छ देर वो अपने भाई के मासूम चेहरे को देखती रही, जो सोते हुए किसी मासूम से बच्चे की तरह लग रहा था. उसने धीरे से उसके हाथों के बीच से उसकी बुक निकाली और टेबल पर रख दी.

कुच्छ सोच कर एक शरारत उसके चेहरे पर उभरी और लाइट ऑफ करके वो उसीके बगल में लेट गयी.

छोटू पीठ के बल सीधा लेटा हुआ था, उसके दोनो हाथ उसके सीने पर थे, रामा कुच्छ देर दूसरी ओर करवट लिए पड़ी रही फिर उसका मन नही माना तो वो अपने भाई की तरफ पलट गयी.

अपने एक बाजू को वी शेप में मोड़ कर अपने गाल के नीचे टीकाया और अपने सर को उँचा करके उसने छोटू के चेहरे को देखा, वो अभी भी बेसूध सोया हुआ था.

रामा थोड़ी सी उसकी तरफ खिसकी और हल्के से उसने अपने शारीर को अपने भाई से सटा लिया, और अपनी उपर वाली टाँग उठाकर छोटू के ठीक जांघों के जोड़के उपर रख लिया. कुच्छ देर वो योनि पड़ी रही, फिर वो अपनी टाँग को उसके हाफ पॅंट के उपर रगड़ने लगी.

उसकी टाँग की रगड़ से छोटू की लुल्ली जो अब एक मस्त लंड होती जा रही थी, धीरे-2 अपनी औकात में आने लगा. उसके लौडे का साइज़ फूलता देख रामा कुच्छ सहम सी गयी और उसने अपनी टाँग की घिसाई बंद करदी.

लेकिन कुच्छ देर तक भी छोटू के शरीर में कोई हलचल नही हुई, तो उसकी हिम्मत और बढ़ी और उसने उसके हाथ को अपने सीने पर रख लिया और उपर से अपना हाथ रख कर अपने मुलायम कच्चे -2 अमरूदो पर रगड़ने लगी.

छोटू के हाथ को अपने अमरूदो पर फील करके वो अपनी आँखें बंद करके मुँह से हल्की-2 सिसकियाँ लेने लगी. जैसे-2 उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, उसकी झिझक, उसकी शर्म, भाई-बेहन वाला बंधन सब सिसकियों के माध्यम से बाहर होते जा रहे थे.

उसका शरीर अब मन-माने तरीक़े से थिरकने लगा, और अब वो उसके हाथ के साथ-2 अपनी प्यारी दुलारी मुनिया को अपने भाई की जाँघ से सटा कर उपर-नीचे को होने लगी.

छोटू को नींद में किसी दूसरे शरीर की गर्मी का एहसास हुआ तो उसकी नींद खुल गयी, एक बार उसने अपनी बेहन की तरफ देखा और उसने फिर से अपनी आँखें कस्के बंद कर ली और वो भी मज़ा लेने लगा.

रामा की पाजामी अब थोड़ी-2 गीली होने लगी थी, उसके गीलेपन का एहसास उसकी नंगी जाँघ पर हो रहा था.

अब रामा ने उसका हाथ अपनी गीली चूत के उपर रख दिया और उसे मसलवाने लगी. थोड़ी देर तक अपनी बेहन के हाथ के इशारे से ही वो उसकी गीली चूत को सहलाता रहा, फिर अचानक अपनी उंगली मोड़ कर उसकी चूत जो केवल पाजामी में ही थी, के उपर से सी कुरेदने लगा.

रामा उत्तेजना के आवेग में सब कुच्छ भूल गयी और उसे ये भी एहसास नही रहा कि उसके भाई की उंगली उसकी मुनियाँ को कुरेद रही है, वो बस अपनी बंद आँखों से नीची आवाज़ में मोन करने में लगी अपने कमर को तेज़ी से हिलाए जा रही थी.

एक साथ ही उसका पूरा बदन इतनी ज़ोर से आकड़ा और उसने छोटू के हाथ को बुरी तरह से अपनी राजकुंवर के उपर दबा दिया और उससे चिपक गयी…

दो मिनिट तक वो ऐसे ही चिपकी रही, फिर जब उसका ऑरगसम हो गया तब उसे होश आया और वो उससे अलग होकर लेट गयी.

कुच्छ देर पहले हुए आक्षन को जब उसने अपने दिमाग़ में रीवाइंड किया तब उसे ध्यान आया कि कैसे उसके भाई की उंगली उसकी चूत में घुसी जा रही थी. झट से उसके दिमाग़ ने झटका खाया, कि ये सब उसने नींद में नही किया है.

तो क्या वो जाग रहा था..?? उसने डरी-डरी आँखों से एक बार फिर अपने भाई की तरफ देखा, और जब उसे उसी तरह सोता हुआ पाया तो उसने अपने दिमाग़ को झटक दिया..

और मन ही मन फ़ैसला भी सुना दिया कि ऐसा कुच्छ भी नही हुआ, वो तो सो रहा है.. और अपने मन को तसल्ली देकर वो भी अपने बिसतर पर जाकर लेट गयी, और कुच्छ ही देर में नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया.….

सुबह में जल्दी उठ गया था, फ्रेश-व्रेश होकर भाभी किचेन में थी, उन्होने मुझे चाइ दी बाबूजी को देने के लिए, मेने बाहर जा कर बाबूजी को चाइ दी,

उन्होने मुझे अपने पास बिठाया और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए मुझे एग्ज़ॅम की तैयारियों के बारे में पुछा.

फिर उनका खाली कप लेकर किचेन में रखा, और आँगन में आकर चारपाई पर बैठ गया. थोड़ी देर में दीदी भी फ्रेश होकर बाथरूम से निकली, मेने उन्हें गुड मॉर्निंग विश किया.

उन्होने बड़ी बारीकी से मेरे चेहरे को देखा जब मेरे चेहरे पर उन्हें सामान्य से ही भाव दिखे तो मुस्कराते हुए उन्होने मेरे विश का जबाब दिया और मेरे माथे पर एक किस करके मेरे पास बैठ गयी.

हम दोनो ने साथ में नाश्ता किया, कुच्छ देर भाभी के साथ हसी ठिठोली की और फिर बैठ गये पढ़ाई करने…..!

हमारे बोर्ड एग्ज़ॅम ख़तम हो चुके थे और सम्मर वाकेशन चल रहा था.. आगे दीदी का ग्रॅजुयेशन करने का विचार था, लेकिन बाबूजी उन्हें शहर भेजना नही चाहते थे, तो प्राइवेट करने का फ़ैसला लिया.

बड़े भैया शहर में रहकर जॉब कर रहे थे, और हर सॅटर्डे की शाम घर आते, मंडे अर्ली मॉर्निंग निकल जाते. जॉब के साथ-2 बड़े भैया ने पोस्ट ग्रॅजुयेशन भी शुरू कर दिया था, आगे उनका प्लान पीएचडी करके प्रोफेसर बनाने का था.

कभी-2 मनझले भैया भी आ जाते थे और अब वो ग्रॅजुयेशन के फाइनल एअर में आने वाले थे.

जब रामा दीदी के प्राइवेट ग्रॅजुयेशन करने की बात चली, तो मेने भैया को सजेशन दिया कि क्यों ना भाभी को भी फॉर्म भरवा दिया जाए, वो भी ग्रॅजुयेशन कर लेंगी.

बाबूजी समेत सब मेरी तरफ देखने लगे, भाभी तो मेरी ओर बलिहारी नज़रों से देख रही थी.

दोनो भाइयों ने कुच्छ देर बाद मेरी बात का समर्थन किया, अब सिर्फ़ पिताजी के जबाब की प्रतीक्षा थी. सब की नज़रें उनकी ही तरफ थी.

बाबूजी – तुम क्या कहती हो बहू..? क्या तुम आगे पढ़ना चाहती हो..?

भाभी ने घूँघट में से ही अपना सर हां में हिला दिया… तो बाबूजी ने मुझे अपने पास आने का इशारा किया..

मे डरते-2 उनके पास गया.. उन्होने मेरे माथे पर एक किस किया और बोले – मेरा बेटा अब समझदार हो गया है .. है ना बहू.. जुग-जुग जियो मेरे बच्चे.. मे तो चाहता हूँ कि शिक्षा का अधिकार समान रूप से सबको मिले.. यही बात मेने अपने भाइयों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन तब उनकी समझ में मेरी बात नही आई,

लेकिन अब वो भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे.. चलो देर से ही सही शिक्षा का महत्व समझ तो आया उनकी.

भाभी का मन गद-गद हो रहा था, जैसा ही अकेले में उन्हें मौका मिला, अपने सीने से भींच लिया मुझे और मेरे चेहरे पर चुम्मनों की झड़ी लगा दी…

मे डरते-2 उनके पास गया.. उन्होने मेरे माथे पर एक किस किया और बोले – मेरा बेटा अब समझदार हो गया है .. है ना बहू.. जुग-जुग जियो मेरे बच्चे.. मे तो चाहता हूँ कि शिक्षा का अधिकार समान रूप से सबको मिले.. यही बात मेने अपने भाइयों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन तब उनकी समझ में मेरी बात नही आई,

लेकिन अब वो भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे.. चलो देर से ही सही शिक्षा का महत्व समझ तो आया उनकी.

भाभी का मन गद-गद हो रहा था, जैसा ही अकेले में उन्हें मौका मिला, अपने सीने से भींच लिया मुझे और मेरे चेहरे पर चुम्मनों की झड़ी लगा दी…

थॅंक यू लल्लाजी, तुमने मेरे दिल की बात सबके सामने कह कर मुझे बिनमोल खरीद लिया. आगे पढ़ने की मेरी कितनी ख्वाइश थी, लेकिन जल्दी शादी होने से मन की मन में ही रह गयी.

उस दिन के बाद भाभी का झुकाव मेरी तरफ और ज़्यादा हो गया, और वो हर संभव मुझे अधिक से अधिक खुशी देने की कोशिश करती.

एक दिन सभी भाई घर पर ही थे, बाबूजी बाहर चौपाल पर बैठे, लोगों के साथ गॅप-सडाके में लगे थे.. कि अचानक भाभी का जी मिचलाने लगा और वो श्रिंक मे जा कर उल्टियाँ करने लगी.

अब घर में और कोई बुजुर्ग महिला होती तो वो उनकी परेशानी को समझती.. आनन फानन में बड़े भैया ने उनको स्कूटी पर बिठाया और कस्बे में डॉक्टर को दिखाने चल दिए.

ना जाने क्या हुआ होगा, ये सोचकर मे भी अपनी साइकल जो काफ़ी दिनो से कम यूज़ हो रही थी, उठाई और उनके पीछे-2 चल पड़ा.

डॉक्टर ने उनका चेक-अप किया और भैया से बोले- बधाई हो राम मोहन, तुम बाप बनाने वाले हो..

भैया की खुशी का ठिकाना नही रहा, फिर डॉक्टर की फीस देकर वो बोले- छोटू तू अपनी भाभी को लेकर घर चल में साइकल से आता हूँ, कुच्छ मिठाई-विठाई लेकर..

रास्ते में मेने भाभी को छेड़ा – क्यों भाभी बधाई हो, अब तो आप माँ बनोगी.. लेकिन अपने बच्चे की खुशी में अपने इस नालयक देवर को मत भूल जाना..

वो मेरी पीठ पर अपना गाल सटा कर मुझसे लिपट गयी और बोली- तुम मेरे बच्चे नही हो..? जो मे भूल जाउन्गी..! हां ! आइन्दा ऐसी बात भी मत करना.. वरना में तुमसे कभी बात नही करूँगी.. समझे…

मे – अरे भाभी ! मे तो मज़ाक कर रहा था.. क्या मुझे पता नही है कि आप मुझसे कितना प्यार करती है..

ऐसी ही बातें करते-2 हम घर आ गये… जब घर पर सबको ये खुशख़बरी सुनाई तो सब खुशी से नाचने लगे..

घर में उत्सव जैसा माहौल बन गया था, भैया ने पूरे गाओं में मिठाई बँटवाई, हमारे पूरे परिवार ने मिलकर हमारी इस खुशी में साथ दिया.

भाभी जा रही थी.... पता नही मेरे मन में दो तरह के भाव क्यों आ रहे थे, बोले तो डबल माइंड.. एक तो इस बात की खुशी थी कि भाभी इतने सालों में अपने घर जा रही थी, दूसरा उनसे इतने सालों बाद बिछड़ना हो रहा था.

सच कहूँ तो मुझे उनकी आदत सी हो गयी थी, तो उनके जाने के समय कुच्छ उदास सा हो गया.. जिसे भाभी ने ताड़ लिया और मुझे अकेले में लेजा कर समझाने लगी..

लल्लाजी क्या हुआ..? मेरे जाने से खुश नही हो..?

मे – नही भाभी ! आपको इतने सालों बाद अपने घर जाने का मौका मिला है, मे भला क्यों खुश नही होऊँगा..?

वो – (मेरे गाल पकड़ते हुए), तो फिर ऐसे मुँह क्यों लटका रखा है..?

मे – पता नही भाभी एक तरफ तो आपके जाने की खुशी भी है कि चलो इतने दिनो बाद आपको अपने घर जाने का मौका मिल रहा है,

दूसरी ओर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंदर से कोई चीज़ निकल कर आपके साथ जा रही हो, और मे खाली-2 सा होता जा रहा हूँ..

भाभी कुच्छ देर शांत खड़ी मेरे चेहरे को देखती रही.. फिर अचानक उनकी पलकें भीग गयी, और रुँधे स्वर में बोली – ये मेरे प्रति तुम्हारा लगाव है, जो स्वाभाविक है.. और ऐसा नही कि ये स्थिति केवल तुम्हारी ही है… मेरा भी कुच्छ ऐसा ही हाल है.

तुम्हारी भावना तो केवल मेरे लिए ही हैं तब इतना दुख हो रहा है, लेकिन मेरा तो पूरे घर के साथ है तो सोचो मेरा क्या हाल हो रहा होगा…

फिर भी अगर तुम नही चाहते कि मे जौन तो नही जाउन्गि…

मे – नही..नही..! भाभी प्लीज़ आप मेरी वजह से अपनी खुशी कुर्बान मत करिए, दो महीने की ही तो बात है..

भाभी चली गयी और मे अपना जी कड़ा करके उन्हें बस स्टॅंड तक विदा करके आया.

मन्झ्ले भैया का ये फाइनल एअर था, उन्होने डिसाइड किया था कि वो इस साल के पीसीएस के एग्ज़ॅम में बैठेंगे… बड़े भैया की भी यही सलाह थी जिस पर पिताजी को भी कोई आपत्ति नही थी.

हम बेहन भाई की रास्ते की मस्तियाँ बंद हो गयी थी, लेकिन घर में हम एक दूसरे को छेड़ने का मौका निकाल लेते थे, अब इसमें रेखा दीदी भी शामिल हो गयी थी.

एक दिन दीदी मुझे गुदगुदाके भाग गयी, और दूर खड़ी अपनी जीभ निकाल कर चिढ़ा ने लगी तो मे भी उनकी तरफ भागा… लेकिन वो मेरे हाथ नही आ रही थी..

फुर्रर इधर- तो फुर्रर उधर, किसी तितली की तरफ निकल जाती, एक दो बार हाथ आई भी तो झुक कर अपने को छुड़ा लेती और फिर दूर भाग जाती.. यहाँ तक कि हम दोनो की साँसें उखाड़ने लगी.

अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…

मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे..

अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…

मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे..

मेने एक लंबी सी छलान्ग लगाई और इससे पहले कि वो संभाल कर भाग पाती मेने पीछे से उनकी कमर में लपेटा मार दिया.

वो नीचे को झुकती चली गयी, मे उनके उपर था.. पीठ मेरे सीने से सटी हुई थी, मेने उनको अपनी बाजुओं में कस कर उठा लिया.. वो खिल-खिला रही थी, और मुझसे छोड़ने के लिए बोलती जा रही थी.

उनके हाथ मेरे हाथों के उपर थे, लेकिन उनसे वो मेरे हाथों पर दबाब डाले थी, उन्हें छुड़ाने का कोई प्रयास नही था.

मेरी हाइट दीदी से कुच्छ ज़्यादा ही थी, उनको उपर उठाते हुए मेरे हाथ उनके पेट से सरक कर थोड़ा उपर को हो गये और उनके अमरूद के निचले हिस्से को टच होने लगे.

दीदी लगातार खिल-खिलाए जा रही थी और अपने हाथों से मेरे हाथों को और उपर को खिसकने की कोशिश कर रही थी, अब उनकी कमर का उपरी हिस्सा मेरे ठीक पप्पू के सामने था जो कमर के दबाब से फूलने लगा था.

दीदी ने अब अपने को छुड़ाने के बहाने अपने को और झुकाया और मेरी बाजुओं पर झूल गयी, अपने दोनो पैर हवा में उठा लिए और उन्हें मेरे घुटनों पर जमा लिया.

उसके बाद उन्होने अपनी कमर को और उपर की ओर उच्छला… अब उनके गोल-मटोल चुतड़ों की दरार ठीक मेरे अकड़ चुके पप्पू के सामने थी, वो लगातार मुझसे छोड़ने के लिए बोल रही थी और साथ ही अपने गांद को मेरे बाबू के उपर रगड़ रही थी.

हम दोनो के ही मुँह लाल पड़ गये थे… अभी कुच्छ और आगे होता उसके पहले बाहर के दरवाजे से एक और खिल-खिलाहट की आवाज़ सुनाई दी…

मेने दीदी को छोड़ दिया और हम दोनो ने ही पीछे मुड़कर देखा, दरवाजे पर आशा दीदी खड़ी ताली बजा-बजा कर हमारा खेल देखते हुए हंस रही थी.

आशा – वाह ! भाई-बेहन अकेले अकेले ही खेल में लगे हो… अरे भाई हमें भी शामिल कर्लो…

रामा – देखो ना दीदी, ये छोटू बहुत तंग करता है मुझे, ऐसा कस कर पकड़ लिया कि छोड़ ही नही रहा था..

मे – अच्छा मेरे गुदगुदी किसने की थी हां ! अब बताओ दीदी को.. खुद शुरू करती है, और दोष मेरे उपर डाल रही है..

आशा – अरे बस करो तुम दोनो और बताओ कोई काम-वाम तो नही है तुम दोनो को..?

दोनो एक साथ – नही ऐसा तो कोई काम नही है..

आशा – तो चलो क्यों ना हम लोग खेतों में चलें, वही बाग़ में बैठ कर खेलते हैं, यहाँ कितनी गर्मी है..

मेने कहा – हां दीदी चलो वहीं चलते हैं…. फिर हम बाबूजी को बता कर तीनों खेतों की तरफ चल दिए, जो बस घर से कोई आधा किमी की दूरी पर ही थे…

हमारी लंबी चौड़ी ज़मीन थी, ज़मीन के लगभग सेंटर में 4 एकर का आम और अमरूद का बाग था, जिसमें और भी आमला, बेर जैसे पेड़ थे, लेकिन मुख्य तौर पर आम और अमरूद ही थे.

बगीचे के चारों तरफ के हिस्से बराबर -2 खेत चारों भाइयों में बँटे हुए थे. गाओं की तरफ का हमारा हिस्सा था, और उसके ठीक ऑपोसिट आशा दीदी के खेत थे, चारों की ज़मीन की सिंचाई हमारे ही टबवेल से होती थी.

ये सीज़न आमों का था, लेकिन कच्चे आम लगे थे, पकने में अभी कम से कम एक महीना और लगनेवाला था.

हम तीनों आम के बगीचे में जहाँ घने पेड़ थे उनके नीचे एक चादर बिछा कर बैठ गये, और कार्ड्स खेलने लगे.

गर्मियों की चिलचिलाती दोपहरी में घर से ज़्यादा यहाँ रहट थी, वैसे तो हवा ज़्यादा नही थी, फिर भी जब भी हवा का झोंका आता, तो बड़ी ठंडक पहुँचती उस तमतमाति गर्मी में.

कार्ड खेलते -2 हमें पूरी दोपहरी निकल गयी, 3 बजे रामा दीदी बोली, यार अब चलो, बोर हो गये खेलते-2…

तभी आशा दीदी बोली चलो ठीक है, लेकिन कुच्छ आम ले लेते हैं, शाम को चटनी बनाने के काम आएँगे..

आशा दीदी बोली – छोटू तू ट्राइ करना कुच्छ आम तोड़ने की.. तो मे उचक कर कुच्छ नीचे की तरफ लटके आमों को तोड़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन काफ़ी कोशिश करने पर भी उन्तक पहुँच नही पाया.

दोनो दीदी मिट्टी के ढेले उठाकर आमों को निशाना लगाकर तोड़ने की कोशिश करने लगी, लेकिन निशाना नही लग पा रहा था और एक-आध लगा भी तो कच्चे आम मिट्टी के ढेलों से नही टूट पाए..

आशा – छोटू यार ! तू घोड़ा बन जाय तो तेरे उपर चढ़ कर मे या रामा पहुँच सकती हैं आमों तक.

मे अपने घुटने टेक कर घोड़ा बन गया, पहले रामा दीदी ने ट्राइ किया लेकिन वो नही पहुँच पाई, फिर आशा दीदी ने भी ट्राइ किया, उनका वजन थोड़ा ज़्यादा था, लेकिन मेने उनको भी सहन कर लिया, लेकिन नतीजा वोही धाक के तीन पात.

आशा दीदी बोली, यार ! ये तो बात नही बन रही, तू पेड़ पर चढ़के नही तोड़ सकता क्या.. अब मे आज तक किसी पेड़ पर नही चढ़ा था, तो मेने मना कर दिया…

फिर वो बोली – तो एक काम कर, मुझे उचका दे… मे तोड़ लूँगी..

मेने रामा दीदी की ओर देखा, तो वो मन ही मन मुस्करा रही थी, लेकिन प्रत्यक्ष में कुच्छ नही बोली, मुझे चुप रहते हुए वो फिर बोली- अरे उचका ना ! बिंदास, सोच क्या रहा है.. तू भी ना… !

मेने आशा दीदी को जैसे ही पीछे से पकड़ने की कोशिश की तो वो पलट गयी और वॉली – आगे से उठा, जिससे तुझे भी दिखे कि और कितना उपर करना है…

मेने थोड़ा झुक कर उनकी जांघों को अपने बाजुओं में लपेटा और उपर को उठाया...इस पोज़िशन में उनका यौनी प्रदेश मेरे कमर से थोड़ा उपर माने पेट पर था और उनके बूब्स मेरे मुँह से थोड़ा सा नीचे थे.

उनकी मोटी-2 मांसल जांघों के एहसास ने मेरे शरीर में झुरजुरी सी दौड़ा दी, भारी-भारी गोल मुलायम चुचियों का उपरी भाग मेरी ठोडी को सहला रहा था.

दो-चार आम तो उनकी हद में आ गये और उन्होने उन्हें तोड़ लिया, लेकिन और भी तोड़ने के लिए अभी भी वो नही पहुँच पा रही थी..

आशा – छोटू ! भाई और थोड़ा उपर कर ना !

मेने उन्हें और 6-8” उपर किया तो मेरा मुँह ठीक उनके बूब्स के बीच में आ गया, मेरे गाल उनकी चुचियों पर थे…

अचानक उनके मुँह से एक हल्की से सिसकी निकल गयी.. ईीीइसस्स्शह…सीईईईईईई.., मेने कहा- क्या हुआ दीदी..? तो वो फ़ौरन बोली – कुच्छ नही तू ऐसे ही पकड़े रह बस मे आम को पकड़ने ही वाली हूँ… अरे हिल मत…ना..!

मेरा मुँह और नाक उनकी मोटी-2 चुचियों में दब रहा था, तो उसको थोड़ा इधर-उधर किया… इससे मेरी नाक उनकी चुचियों पर रगड़ने लगी…

वो तो आम तोड़ना भूल कर अपनी आँखें बंद करके मस्ती में खो गयी…

मेरा भी नीचे तंबू बनता जा रहा था, फिर अचानक रामा दीदी बोली – अरे दीदी ! तोडो ना आम जल्दी उसको प्राब्लम हो रही है, कब तक वो ऐसे उठाए खड़ा रहेगा..?

आशा – अरे तोड़ तो रही हूँ… ! छोटू ! भैया थोडा पीछे को हो ना ! ये चार आम थोड़े तेरे पीछे को हैं..

मे जैसे ही थोड़ा पीछे को हुआ, मुझे पता नही था कि ज़मीन थोड़ा उबड़-खाबड़ है, मेरा पैर एक गड्ढे में चला गया और मे पीछे को गिरने लगा…

छोटूऊऊऊऊऊओ….संभाअल… वो चिल्लाई… लेकिन एक बार बॅलेन्स क्या बिगड़ा कि धडाम से में पीछे को गिर पड़ा… आशा दीदी मेरे उपर… उनकी राम दुलारी मेरे आकड़े हुए पप्पू को किस कर रही थी…

उसके 34” के दोनो उभार मेरे सीने में दबे पड़े थे, उत्तेजना के कारण दीदी के निपल भी कड़े होकर मेरे सीने में चुभन पैदा कर रहे थे.

मेरे दोनो हाथ अभी भी उनकी मस्त गद्देदार गांद पर थे… मुझे पता नही चला कि कही चोट-वोट भी लगी है, मे तो बस उनके मादक शरीर के नीचे पड़ा उनकी आँखों में झाँक रहा था, जिसमें एक निमंत्रण दिखाई दिया…

वो भी ऐसे ही कुच्छ देर मज़े के आलम में खोई रही… रामा दीदी पास में खड़ी खिल-खिला रही थी…

फिर मुझे अपनी पीठ में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ और मेने उनसे कहा- अरे दीदी ! उठो मेरी पीठ टूट गयी..!

वो – तो पहले तू मुझे छोड़ तो सही, तभी तो मे उठुँगी…! तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरे दोनो हाथ उसके चुतड़ों पर कसे हुए हैं.

जब मेने उन्हें छोड़ा, तो अपनी चूत को मेरे पप्पू के उपर ज़ोर से रगड़ा और एक मादक सिसकी भरती हुई वो मेरे उपर से उठ गयी…

मे जैसे ही खड़ा हुआ तब मुझे अपनी पीठ में दर्द का एहसास हुआ.. क्योंकि जहाँ में गिरा था, वहाँ एक छोटा सा ब्रिक (एंट) का टुकड़ा पड़ा हुआ था और उस साले ने मेरी पीठ को चटका दिया था.

मे आहह भरते हुए उठा… तो रामा दीदी बोली – क्या हुआ छोटू..? चोट लग गयी क्या..?

मे – हां दीदी इस पत्थर से मेरी पीठ टूट गई शायद, तो आशा दीडे ने मेरी शर्ट उपर करके अपने हाथ से कुच्छ देर सहलाया और बोली- रामा घर जाकर थोड़ा इयोडीक्स की मालिश कर देना ठीक हो जाएगा..

इसी तरह की चुहल बाज़ियों में समय व्यतीत हो रहा था, मेरी दोनो बहनें मेरे साथ दिनो दिन खुलती जा रही थी.. और मे उनकी हरकतों से बुरी तरह उत्तेजित हो जाता था, लेकिन कुच्छ कर नही पाता…

मेने अभी तक अपने लौडे को हाथ में लेकर सिवाय मुताने के और कोई उसे नही किया था.. मन ही मन सोचता था, कि काश इसके आगे भी कुच्छ कर पाता.. लेकिन क्या ? ये कोई आइडिया नही था..

मेरा कोई ऐसा दोस्त भी नही था जिससे मे इस तरह की बातें शेयर कर पाता.. वो दोनो तो मुझे गरम करके अपना काम निकाल कर अपने रास्ते हो लेती और मे यूँ ही चूतिया बना रह जाता…​
Next page: Update 04
Previous page: Update 02