Update 07
एक साथ हम दोनो के मूह से मस्ती भारी आहह…. फुट पड़ी…
उफफफफफफफफफफफ्फ़…. इतना मज़ा…. ! भाभी आधे लंड को लेकर अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगी मानो वो उसे मथकर उसमें से रस निकालना चाहती हो…..
मेरे सब्र का बाँध टूट गया , और मेने उन्हें पलग पर लिटा दिया, टाँगे हवा में उठाकर एक भरपूर ताक़तवर धक्का जड़ दिया…
एक बार फिर एक दर्द की लहर सी मेरे लंड से उठी, जो मज़े के आलम में कन्हि खो गयी, उधर भाभी भी अपने होठों को कसकर दवाए अपने दर्द को पी गयी..
हम दोनो ही मस्ती के ऊडन खटोले में बैठ कर दूर आसमानों में उड़ चले…
कमरे में हमारी जांघों की थप सुनाई दे रही थी… मेरे ताक़तवर धक्कों के बावजूद भी भाभी कुच्छ ना कुच्छ बोलकर मुझे और उत्साहित कर रही थी..
जब एक ही मुद्रा में हमें काफ़ी देर हो गयी.. तो भाभी ने हाथ के इशारे से रुकने को कहा…
फिर मुझे अपने उपर से उठा कर वो पलट गयी और अपने घुटने जोड़ कर पलंग पर घोड़ी की तरह निहुर गयी…
अब उनकी मस्त 38” की गद्देदार कसी हुई गांद मेरे सामने थी, जिसे देखकर मे अपना आपा खो बैठा और उनके एक चूतड़ को काट लिया…
आअहह…..काटो मत…जानुउऊ…, वो दर्द से तडपी..तो मेने उस जगह को चूमा और फिर उनके दोनो चुतड़ों को बारी-बारी से चाटने लगा…
अपना मूह उनकी मोटी गांद में डाल दिया और उनकी चूत और गांद के छेद को चाटने लगा…....
आह्ह्ह्ह… अब अपना मूसल डालो मेरे रजाआा… क्यों तड़पाते हूओ…
भाभी की हालत मुझसे देखी नही गयी और मेने पीछे से अपना लंड उनकी चूत में पेल दिया…
ईईीीइसस्स्स्स्शह……हइईईईई….रामम्म्मममम….अब छोड़ूऊ…लल्लाआ….. आराम सीईए….उफफफफफफफफफफफ्फ़….. कितना मज़ाअ देतीई हूऊ…तुम… मुझे अपना गुलामम्म्म.. बनाआ.. लियाअ…
जी करता है, इसे हर समय अपनी मुनिया में ही डाले रहूं….डालोगे नाआ….!
ये अब आपका ही है….भाभिईीईई….जब चाहो…पकड़ के डाल लएनाअ….हुउन्न्ह…
मेरी जांघे तपाक से उनके भारी चुतड़ों पर पड़ने लगी… कभी-2 मे उनकी गांद मसल देता, तो कभी उनके चुतड़ों पर थप्पड़ जड़ देता…
भाभी और ज़ोर्से चोदने को बोलती…मेरे शरीर से पसीना निकलने लगा… लेकिन चुदाई…चरम…पर पहुँचती जा रही थी…
आधे घंटे की धुँआधार चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ ही झड़ने लगे…भाभी की यौनी से लगातार कामरस बरस रहा था…
झड़ने के बाद वो पलंग पर औंधी पसर गयी और में उनकी पीठ पर लड़ गया..
10-15 मिनिट हम ऐसे ही बेसूध पड़े रहे और अपनी उखड़ी हुई साँसों को इकट्ठा करते रहे…
हमारा मस्ती भरा ये खेल सुबह के 4 बजे तक यूँही चलता रहा, फिर थक कर चूर हम एक-दूसरे की बाहों में लिपट कर सो गये…
सुबह 7 बजे रामा दीदी ने दवाजा खटखटाया… तब जाकर भाभी की नींद खुली..उन्होने अंदर से ही आवाज़ देकर कहा…
अभी थोड़ी देर में आती हूँ, रूचि को दूध पिलाकर….!
फिर भाभी ने अपने कपड़े पहने, मुझे झकज़ोर कर जगाया.. जब में जाग गया तो वो बोली –
लल्ला.. तुम कपड़े पहनो, में बाहर निकल कर देखती हूँ, रास्ता साफ देख कर बाहर निकल जाना …
रामा पुच्छे तो कह देना कि जल्दी जाग कर वॉक पर गया था.. ओके..
इस तरह से भाभी ने मेरे जन्म दिन का ये अनौखा तोहफा देकर मुझे जिंदगी भर के लिए अपना बना लिया…
वैसे तो वो मेरा हर तरह का ख्याल रखती ही थी, बस यही काम वाकी था, सो वो भी पूरा हो गया था..
अब वो मेरे लिए मेरी मा से भी बढ़कर मेरी ज़रूरत बन चुकी थी..
मेने अपने नये खुले डिग्री कॉलेज में ही अड्मिशन ले लिया था, जिससे अब मे हमेशा भाभी के पास ही रह सकता था…
एक दिन छुट्टी का दिन दोनो भाई आए हुए थे मेने भाभी को अपनी एक डिमॅंड पहले ही बता दी थी…
सो जब रात को सभी एक साथ बैठ कर खाना खा रहे थे कि भाभी ने भूमिका बनाते हुए बात शुरू की..,
भाभी, भैया से बोली - सुनो जी..! मे क्या कह रही थी.. कि यहाँ घर पर एक बाइक और होनी चाहिए…,
स्कूटी तो रामा के लायक ही है.. छोटू लल्ला अब बड़े हो गये है.. कॉलेज भी जाते हैं.. तो मे चाहती हूँ उनके लिए एक मोटर बाइक ले देते तो…
भाभी की बात से सभी खाना रोक कर उनकी ओर देखने लगे…! सबको यूँ अपनी ओर देखते पा, भाभी कुच्छ हड़बड़ा गयी…
फिर कुच्छ संभाल कर बोली – क्या मेने कुच्छ ग़लत कह दिया..?
बड़े भैया – तुम्हें लगता है कि ये बाइक चला लेगा.. स्कूटी तो ढंग से आती नही अभी तक…..
तभी तपाक से रामा दीदी बोल पड़ी – क्या फ़र्राटे से स्कूटी चलाता है छोटू… और आपको पता है भैया, एक दिन तो अपने दोस्त की बुलेट लेके घर आया था..
दोनो भैया जो शायद अभी तक मुझे बच्चा ही समझ रहे थे… चोंक पड़े…और दोनो के मूह से एक साथ निकला… क्या बुलेट..चला लेता है ये..?
मे – हां भैया.. उसमें क्या है.. वो तो और आसान है चलाने में..
बड़े भैया – तो मोहिनी तुमने बाबूजी से पुछ लिया है..?
भाभी – बाबूजी मेरी बात कभी नही टालते.. उनकी गॅरेंटी मे लेती हूँ.. पर देखो ना…,
जिसका एक भाई असिस्टेंट प्रोफेसर, और दूसरा डीएसपी, उनका छोटा भाई लड़कियों वाली स्कूटी से कॉलेज जाए.. अच्छा नही लगता ना…!
छोटे भैया ताव में आकर बोले – तो ठीक है भाभी.. मेरी तरफ से छोटू के लिए बाइक तय… बोल भाई कोन्सि चाहिए…?
भाभी तपाक से बोली – बुलेट… !
बड़े भैया – क्या..? मोहिनी तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है.. जानती हो बुलेट की कितनी कीमत है..!
भाभी – अब डीएसपी साब दिलवा रहे हैं… तो इससे कम क्या होनी चाहिए.. क्यों बड़े देवर जी… मे सही कह रही हूँ ना..!
छोटे भैया – अब भाभी का हुकुम सर आँखों पर…
ठीक है छोटू, कल मेरे साथ चलना, अपने शहर से तुझे एक नयी बुलेट डेलक्स दिलवा देता हूँ… अब खुश..?
मे भैया के गले लग गया और उन्हें थॅंक्स बोला..
जब मे उनके गले लगा तब उन्हें पता चला कि मे उनसे भी 2” लंबा हो गया हूँ.. तो भैया हँस कर बोले.. सच में तू बुलेट चलाने लायक हो गया है..!
तभी रामा दीदी बोल पड़ी… भैया मे भी चलूं आपके साथ.. ? मुझे भी कुच्छ शॉपिंग करवा दीजिए ना .. प्लीज़..!
भाभी – हां देवेर्जी.. बेचारी का मन भी बहाल जाएगा.. एक-दो दिन दोनो बेहन भाई शहर घूम लेंगे.. और उसे भी कुच्छ दिलवा देना..
भैया ने हामी भर दी.. और भाभी ने शाम को बाबूजी से भी पर्मिशन ले ली.
अकेले में मेने भाभी को गोद में उठाकर पूरे घर का चक्कर लगा डाला…
दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…
दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…
मे आगे ड्राइवर के बगल में बैठा था और दीदी-भैया पीछे की सीट पर बातें करते हुए अपना समय पास करते जा रहे थे..
वो दोनो भी कुच्छ सालों पहले एक साथ कॉलेज जाना, साथ खेलना बैठना काफ़ी सालों तक रहा था, आज वो दोनो अपनी पुरानी बातों, साथ बिताए लम्हों को याद करते जा रहे.
उनकी बातें सुनकर मुझे पता चला कि हम भाइयों और बेहन के बीच कितना प्रेम है एक दूसरे के लिए..
शायद इसकी एक वजह माँ की असमय मृत्यु भी थी, जिसकी वजह से सब जल्दी ही अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझने लगे थे.
उनकी पोस्टिंग जिस शहर में थी, वो हमारे गाओं से तकरीबन 100-110 किमी दूर था,
गाओं से कुच्छ दूर मैं हाइवे तक सिंगल और खराब रास्ता ही था, लेकिन उसके बाद हाइवे अच्छा था.
बातों-2 में समय का पता ही नही चला और कोई 3 घंटे बाद हम उनके शहर पहुँच गये..
भैया पहले सीधे अपने ऑफीस गये, वहाँ अपने स्टाफ से हमें मिलवाया फिर अपने ऑफीस के काम का अपडेट लेकर हम तीनों शॉपिंग के लिए निकल गये..
पहले मेरे लिए एक बुलेट बुक कराई, जो कल तक मिलने वाली थी, फिर हम दोनो के लिए कपड़े वैगैरह खरीदे.. इसी में शाम हो गयी..
दूसरे दिन भैया हमें एक सिनिमा हॉल की टिकेट देकर अपने ऑफीस निकल गये..
अपने ऑफीस की ही एक गाड़ी हमारे लिए रख दी जो हमें पूरे दिन घुमाने वाली थी..
3 से 6 वेल शो हम दोनो मूवी देखने हॉल में घुस गये.. अक्षय कुमार की कोई अच्छी मूवी लगी थी..
दीदी ने नये खरीदे कपड़ों में से एक पिंक कलर की टीशर्ट और एक ब्लू लीन्स पहन रखी थी, मे भी एक वाइट टीशर्ट और जीन्स पहने हुए था..
इस ड्रेस में दीदी क्या ग़ज़ब लग रही थी, मे तो उन्हें देखता ही रह गया.. और मेरे मूह से निकल गया.. वाउ ! दीदी क्या लग रही हो …
वो एकदम से शर्मा गयी, और फिर बोली – सच बता भाई.. मे अच्छी लग रही हूँ ना..!
मे – ग़ज़ब दीदी ! आप तो एकदम से बदल गयी हो… कोई कह नही सकता कि ये कोई गाओं की लड़की होगी..
वो – तू भी किसी हीरो से कम नही लग रहा… देखना कहीं कोई लड़की गश ख़ाके ना गिर पड़े…
मे – अब आप मेरी टाँग खींच रही हो..
वो – नही सच में.. और आगे बढ़के मेरे गाल पर किस कर लिया.. मे तो अचानक उनके किस करने से गन-गन गया…!
हॉल में अंधेरा था, कुच्छ वॉल साइड की लाइट्स थी जिससे हल्का-2 उजाला फैला हुआ था. हम अपने नंबर की सीट जो बाल्कनी में सबसे उपर की रो में थी बैठ गये.
अच्छी मूवी होने की वजह से कुछ देर में ही हॉल फुल हो गया.. और कुच्छ ही देर में सभी लाइट्स ऑफ हो गयी.. और एक दो आड के बाद मूवी स्टार्ट हो गयी.
हॉल में अंधेरा इतना था, कि हमें अपने बाजू वाले की भी पहचान नही हो रही थी कि कॉन बैठा है..
मूवी शुरू हुए अभी कुच्छ ही मिनिट हुए थे कि दीदी का हाथ मेरी जाँघ पर महसूस हुआ..
मे चुपचाप बैठा मूवी देखता रहा.. अब धीरे-2 वो मेरी जाँघ को सहलाने लगी.. और उसे उपर जांघों के बीच ले आई…
अब उनकी उंगलिया मेरे लंड से टच हो रही थी… वो टाइट जीन्स में क़ैद बेचारा ज़ोर मारने लगा..
लेकिन जीन्स इतनी टाइट थी कि कुच्छ ज़ोर नही चल रहा था उसका…
दीदी का हाथ और कुच्छ हरकत करता उससे पहले मे थोड़ा सीधा हो गया और अपनी सीट पर आगे को खिसक गया… !
दीदी ने फ़ौरन अपना हाथ खींच लिया और मेरे मूह की तरफ देखने लगी.. लेकिन मे मूवी देखने में ही लगा रहा…
मे थोड़ा आगे होकर दीदी की साइड वाले अपने बाजू को थोड़ा उनकी सीट की तरफ चौड़ा दिया,
अब हॅंडल पर आगे मेरा बाजू टिका हुआ था और मेरे पीछे ही दीदी ने भी अपना बाजू टिका लिया और मेरी सीट की तरफ को होगयि…
पोज़िशन ये होगयि.. कि अगर मे ज़रा भी पीछे को होता तो मेरा बाजू उनके बूब को प्रेस करता…!
हम दोनो कुच्छ देर यूँही बैठे रहे.. उसको ज़्यादा देर चैन कहाँ पड़ने वाला था.. सो अपना हाथ मेरी बॉडी और बाजू के बीच से होकर फिर मेरी जाँघ पर रख दिया, और फिर वही पहले वाली हरकतें…!
मे उन्हें बोलने के लिए पीछे की तरफ होकर उनकी ओर को हुआ… मेरा बाजू एल्बो से उपर का हिस्सा उनके बूब पर रख गया…!
जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, और मे अलग होने ही वाला था कि उसने मेरा बाजू थाम लिया और उसे और ज़ोर्से अपनी चुचि पर दबा दिया…!
आह्ह्ह्ह… क्या नरम एहसास था, रूई जैसी मुलायम उसकी चुचि मेरी बाजू से दबी हुई थी.. मुझे रोमांच भी हो रहा था,
लेकिन मेरे मन में हमेशा ही उनके प्रति एक भाई-बेहन वाली फीलिंग पैदा हो जाती थी और मे आगे बढ़ने से अपने को रोक लेता था…!
दीदी ने अपना गाल भी मेरे बाजू से सटा रखा था…मेने उनके कान के पास मूह लेजा कर कहा – दीदी ये आप क्या कर रही हो..?
वो – मे क्या कर रही हूँ..?
मे – यही ! अभी आप ऐसे चिपकी हो मेरे से, कभी मेरी जाँघ सहलाती हो… ये
सब…. क्या ठीक है..?
वो – क्यों ! तुझे कोई प्राब्लम है इस सबसे..?
मे – हां ! हम बेहन-भाई हैं, और ये सब हमारे रिस्ते में ठीक नही है..
वो – अच्छा ! और भाभी देवर के रिस्ते में ये सब ठीक है..?
मे – क्या..?? आप कहना क्या चाहती हो..? साफ-साफ कहो…!
वो – आजकल तेरे और भाभी के बीच जो भी हो रहा है ना ! वो मुझे सब पता है.. यहाँ तक कि तेरे बर्थ’डे वाली सारी रात उनके कमरे में जो हुआ वो भी..
मे एक दम से सकपका गया.. और हैरत से उनकी तरफ देखने लगा…..
वो - ऐसे क्या देख रहा है…? क्या ये भी बताऊ, कि कब-कब, तुम दोनो ने क्या-क्या किया और कहाँ किया है..?
लेकिन तू फिकर मत कर मे किसी को कुच्छ नही कहूँगी…बस थोड़ा सा मेरे बारे में भी सोच…!
अब मेरे पास बोलने के लिए कुच्छ नही था… सो जैसे गूंगी औरत लंड की तरफ देखती है ऐसे ही बस उसे देखता ही रहा…!
वो – अब चुप क्यों है ! कुच्छ तो बोल… ?
मे – ठीक है दीदी ! आप जैसा चाहती हैं वैसा ही होगा, लेकिन अभी यहाँ कुच्छ मत करो… वरना मुझे कुच्छ -2 होने लगता है…!
वो – तो फिर कहाँ और कैसे होगा.. ? यहाँ भी कुच्छ तो मज़े कर ही सकते हैं ना !
मेने पूरी तरह हथियार डाल दिए और अपने आपको उसके हवाले कर दिया….
दीदी अपनी चुचि को मेरे बाजू से रगड़ कर कान में फुसफुसाई… अपनी जिप खोल ना भाई..
मे – क्या करोगी…?
वो – मुझे देखना है तेरा वो कैसा है…!
मे – यहाँ अंधेरे में क्या दिखेगा… ?
वो – अरे यार तू भी ना, बहुत पकाता है.. तू खोल तो सही मे अपने हाथ में लेकर देखना चाहती हूँ..! प्लीज़ यार ! खोल दे…
मे – रूको एक मिनिट.. और मेने सीट से पीठ सटकर कमर को उचकाया और अपना बेल्ट और जिप खोल दिया..
उसने तुरंत अपना हाथ जीन्स के अंदर डाल दिया और फ्रेंची के उपर से ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…
मे – अह्ह्ह्ह… कैसा है..?
वो – हाईए.. छोटू ! ये तो बड़ा तगड़ा है…यार !
मे – क्यों तुम्हें अच्छा नही लगा…? तो वो झेंप गयी और शर्म से अपना गाल मेरे बाजू पर सटा दिया…
वो उसे हौले-2 सहलाने लगी और उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने बूब पर रख दिया…और बोली – तू भी इसे प्रेस करना !
मेने कहा रूको, और फिर मेने अपना बाजू उसके सर के पीछे से लेजा कर उसके दूसरी साइड वाले बूब के उपर रख दिया और धीरे-2 दबाने लगा…
मेने उसके गाल को चूमते हुए उसके कान में कहा- तुम भी अपनी जिप खोलो ना दीदी !
तो उसने झट से अपनी जीन्स खोल दी और मेने अपना हाथ उसकी पेंटी के उपर रख कर उसकी मुनिया को सहला दिया…
सीईईईईई…. हल्की सी सिसकी उसके मूह से निकल गयी, उसकी पेंटी थोड़ी-2 गीली हो रही थी.. और अब मेरे दो तरफ़ा हमले से उसकी और हालत खराब होने लगी…
हम दोनो मस्ती में एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे, कि तभी इंटेरवाल हो गया, और जल्दी से अपने सीटो पर सही से बैठकर अपने-2 कपड़े दुरुस्त किए और बाहर चल दिए…
इंटेरवाल के बाद भी हम दोनो ऐसे ही मस्ती करते रहे, और इस दौरान वो एक बार झड भी चुकी थी..
मेरा भी लंड फूलकर फटने की स्थिति में पहुँच गया था..
मूवी ख़तम होने के बाद हम घर लौट लिए, रास्ते भर हम दोनो चुप ही रहे, वो मुझसे नज़र चुरा रही थी, और मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी.
मेने गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठे ही उससे पुछा – क्या हुआ दीदी, बात क्यों नही कर रही..?
वो – भाई देख यहाँ अब कुच्छ मत करना, वरना ड्राइवर को शक़ हो जाएगा …
मेने कहा – तो बात तो कर ही सकती हो.. फिर वो इधर-उधर की बातें करने लगी..
घर पहुँच कर फ्रेश हुए, थोड़ा टीवी देखा और कुच्छ देर बाद भैया आ गये…
एजेन्सी वाला बुलेट की डेलिवरी घर पर कर गया था, भैया ने सब पेपर चेक कर लिए..
रात देर तक हम तीनो बेहन भाई देर तक बात-चीत करते रहे.. भैया ने हमने दिन में क्या-2 किया वो सब पुछा.. और फिर अपने-2 बिस्तर पर जाकर सो गये..
दूसरे दिन हम निकलने वाले थे, भैया ने सुबह ही पंप पर जाकर बुलेट का टॅंक फुल करा दिया था, निकलने से पहले भैया बोले –
छोटू ! रास्ते में एक बहुत अच्छी जगह है, जंगलों के बीच झरना सा है, झील है.. देखने लायक जगह है..
अगर देखना हो तो किसी से भी पुच्छ कर चले जाना.. बहुत मज़ा आएगा तुम दोनो को..
फिर हम दोनो भैया से गले मिलकर चल दिए अपने घर की तरफ
डग-डग-डग….. बुलेट अपनी मस्त आवाज़ के साथ हाइवे पर दौड़ी चली जा रही थी..
जो मेने कभी सपने में भी नही सोचा था, आज मुझे मिल गया था..… मेरी पसंदीदा बाइक जिसे दूसरों को चलाते देख बस सोचता था, कि काश ये मेरे पास भी होती.
और आज भाभी की वजह से मेरे हाथों में थी, मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था इस वक़्त…
भैया के घर से निकलते वक़्त दीदी एक सलवार सूट में थी… शहर से निकल कर जैसे ही हमारी बुलेट रानी मैं हाइवे पर आई, दीदी ने मुझे गाड़ी एक साइड में खड़ी करने को कहा..
मेने सोचा इसको सू सू आ रही होगी, सो मेने एक पेड़ के नीचे बुलेट रोक दी और पुछा – क्या हुआ दीदी.. गाड़ी क्यों रुकवाई..?
उसने कोई जबाब नही दिया और मुस्कराते हुए अपने कपड़े उतारने लगी…! मेने कहा- अरे दीदी ऐसे सरेआम कपड़े क्यों निकाल रही हो.. पागल हो गयी हो क्या ?
फिर भी उसने कोई जबाब नही दिया और अपनी कमीज़ उतार दी…
मेरी आँखें फटी रह गयी.. वो उसके नीचे एक हल्के रंग की पतली सी टीशर्ट पहने थी..
फिर वो अपनी सलवार का नाडा खोलने लगी.. और उसे जैसे ही नीचे सरकाया, तो उसके नीचे एक स्लेक्स की टाइट फिट घुटने तक की पिंक कलर की लिंगरी पहने थी..
उसके दोनो कपड़े इतने हल्के थे कि उसकी ब्रा और पेंटी उनमें से दिखाई दे रही थी, वो इन कपड़ों में एकदम शहर की पटाखा माल लग रही थी.
ब्रा में कसे उसके 32 साइज़ के गोरे-2 बूब और पेंटी में कसी उसकी 33-34 की गांद देखकर मेरा पापुआ उछल्ने लगा.
मे भी इस समय एक हल्की सी टीशर्ट और एक होजरी का पाजामा ही पहने था, जो कि काफ़ी कंफर्टबल था रास्ते के लिए.
पाजामा में मेरा तंबू सा बनने लगा था.. लेकिन मे अभी भी बुलेट की सीट पर ही बैठा था, इसलिए वो उसको नही दिखा.
मेने मन ही मन कहा.. हे प्रभु आज किसी तरह इससे बचा लेना…!
ऐसा नही था, कि मे दीदी के साथ फ्लर्ट नही करना चाहता था, लेकिन जिस तरह वो दिनो-दिन मेरे साथ खुलती जा रही थी,
इसी से पता चल रहा था कि अब हम ज़्यादा दिन दूर नही रह पाएँगे..
मे जैसे ही आगे बढ़ने की कोशिश करता, मेरे मन में कहीं ना कहीं ये सवाल उठने लगता., कि नही यार ! ये तेरी बेहन है.. और बेहन के साथ……ये ग़लत होगा.
लेकिन उसके कोमल मन को कॉन समझाए…?
और अब तो उसने मेरे हथियार के दर्शन भी कर लिए थे…
मे यही सब बुलेट के दोनो ओर पैर ज़मीन पर टिकाए सीट पर बैठा सोच ही रहा था कि वो मेरे पीछे दोनो तरफ लड़कों की तरह पैर करके बैठ गयी और बोली--- अब चलो…
मेने किक लगाई और हमारी बुलेट रानी फिर से डग-डग करती हाइवे पर दौड़ने लगी…
उसने अपने बाल भी खोल दिए थे जो अब हवा में लहरा रहे थे.. मस्ती में उसने अपनी दोनो बाजू हवा में लहरा दी और हवा की तेज़ी को अपने पूरे शरीर पर फील करने लगी…
मे – अरे दीदी ! आराम से बैठो ना.. गिर जाओगी…!
वो – क्यों तुझे चलाना नही आता क्या..?
मे – ऐसा नही है.. अगर कहीं कोई गड्ढा आ गया या किसी भी वजह से ब्रेक भी लगाना पड़ सकता है तो तुम डिसबॅलेन्स हो सकती हो..
उसने मुझे घुड़कते हुए कहा – तू बस अपनी ड्राइविंग पर ध्यान दे.. और मुझे मेरा मज़ा लूटने दे…
मे फिर चुप हो गया.. थोड़ी देर बाद वो बाइक पर खड़ी हो गयी और चिल्लाने लगी—
याहूऊओ….याहूऊ… जिससे उसकी आवाज़ हवा में लहराने सी लगी और उसके खुद के कनों को सर सराने लगी……
ऐसी ही मस्ती में वो बाइक के पीछे मज़े लूटती जा रही थी…
फिर रोड पर कुच्छ गड्ढे से आना शुरू हो गये, तो मेने उसे रोक दिया और ठीक से पकड़ कर बैठने के लिए बोला.
तभी एक बड़ा सा गड्ढा आ गया और गाड़ी उछल गयी… वो अच्छा हुआ कि उच्छलने से पहले उसने मुझे पकड़ लिया था……
अब उसे पता चला कि में क्यों पकड़ने के लिए बोल रहा था… मेरी कमर में बाहें लपेट कर दीदी बोली –
देखभाल कर चला ना भाई.. घर पहुँचने देगा या रास्ते में ही निपटाके जाएगा मुझे…
मे – मेने तो पहले ही कहा था कि पकड़ लो कुच्छ..
दीदी मेरी कमर में अपनी बाहें लपेटकर मुझसे चिपक गयी, जिससे उसके कड़क अमरूद जैसी चुचियाँ मेरी पीठ में गढ़ी जा रही थी, अपना गाल मेरे कंधे पर रख कर मेरी गर्दन से सहलाते हुए मज़े लेने लगी…
नॉर्मली बुलेट जमके चलने वाली बाइक है, फिर भी वो उच्छलने के बहाने से अपनी चुचियों को मेरी पीठ से रगड़ रही थी, उसके मूह से हल्की-2 सिसकियाँ भी निकल रही थी…
धीरे-2 सरकते हुए उसके हाथ मेरे लौडे को टच करने लगे, उसका स्पर्श होते ही उसने उसे थाम लिया और धीरे-2 मसल्ने लगी…
मे – दीदी अपना हाथ हटाओ यहाँ से कोई आते-जाते देख लेगा तो क्या सोचेगा..?
वो – तो देखने दे ना..! हमें यहाँ कों जानता है.., तू भी ना बहुत बड़ा फटतू है यार..!
मे – अरे दीदी ! ये हाइवे है… ग़लती से अपना कोई पहचान वाला गुजर रहा हो तो.. और उसने जाके बाबूजी, या और किसी घरवाले को बता दिया… तब किसकी फटेगी…?
वो – चल ठीक है चुपचाप गाड़ी चला तू… कोई निकलता दिखेगा तो मे हाथ हटा लिया करूँगी..
इतना बोलकर उसे और अच्छे से मसल्ने लगी जिससे मेरा लंड और अकड़ गया.. अब वो पाजामा को फाड़ने की कोशिश कर रहा था..
अपने हाथों में उसका आकर फील करके दीदी बोली – वाउ ! छोटू, तेरा ये तो एकदम डंडे जैसा हो गया है यार....
मे – मान जाओ दीदी ! वरना मेरा ध्यान भटक गया ना, और गाड़ी ज़रा भी डिसबॅलेन्स हुई तो दोनो ही गये समझो..
आक्सिडेंट की कल्पना से ही वो कुच्छ डर गयी और उसने मेरे लंड से अपने हाथ हटा लिए..
लेकिन पीठ से अपनी चुचियों को नही हटाया, और तिर्छि बैठ कर अपनी मुनिया को मेरे कूल्हे के उभरे हुए हिस्से से सटा लिया,
धीरे-2 उपर नीचे होकर अपनी चुचि और मुनिया को को मेरे शरीर से रगड़-2 कर मज़े लेने लगी…
हम 60-70 किमी निकल आए थे, भैया ने जो जगह घूमने के लिए बताई थी, वो आने वाली थी…
उफफफफफफफफफफफ्फ़…. इतना मज़ा…. ! भाभी आधे लंड को लेकर अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगी मानो वो उसे मथकर उसमें से रस निकालना चाहती हो…..
मेरे सब्र का बाँध टूट गया , और मेने उन्हें पलग पर लिटा दिया, टाँगे हवा में उठाकर एक भरपूर ताक़तवर धक्का जड़ दिया…
एक बार फिर एक दर्द की लहर सी मेरे लंड से उठी, जो मज़े के आलम में कन्हि खो गयी, उधर भाभी भी अपने होठों को कसकर दवाए अपने दर्द को पी गयी..
हम दोनो ही मस्ती के ऊडन खटोले में बैठ कर दूर आसमानों में उड़ चले…
कमरे में हमारी जांघों की थप सुनाई दे रही थी… मेरे ताक़तवर धक्कों के बावजूद भी भाभी कुच्छ ना कुच्छ बोलकर मुझे और उत्साहित कर रही थी..
जब एक ही मुद्रा में हमें काफ़ी देर हो गयी.. तो भाभी ने हाथ के इशारे से रुकने को कहा…
फिर मुझे अपने उपर से उठा कर वो पलट गयी और अपने घुटने जोड़ कर पलंग पर घोड़ी की तरह निहुर गयी…
अब उनकी मस्त 38” की गद्देदार कसी हुई गांद मेरे सामने थी, जिसे देखकर मे अपना आपा खो बैठा और उनके एक चूतड़ को काट लिया…
आअहह…..काटो मत…जानुउऊ…, वो दर्द से तडपी..तो मेने उस जगह को चूमा और फिर उनके दोनो चुतड़ों को बारी-बारी से चाटने लगा…
अपना मूह उनकी मोटी गांद में डाल दिया और उनकी चूत और गांद के छेद को चाटने लगा…....
आह्ह्ह्ह… अब अपना मूसल डालो मेरे रजाआा… क्यों तड़पाते हूओ…
भाभी की हालत मुझसे देखी नही गयी और मेने पीछे से अपना लंड उनकी चूत में पेल दिया…
ईईीीइसस्स्स्स्शह……हइईईईई….रामम्म्मममम….अब छोड़ूऊ…लल्लाआ….. आराम सीईए….उफफफफफफफफफफफ्फ़….. कितना मज़ाअ देतीई हूऊ…तुम… मुझे अपना गुलामम्म्म.. बनाआ.. लियाअ…
जी करता है, इसे हर समय अपनी मुनिया में ही डाले रहूं….डालोगे नाआ….!
ये अब आपका ही है….भाभिईीईई….जब चाहो…पकड़ के डाल लएनाअ….हुउन्न्ह…
मेरी जांघे तपाक से उनके भारी चुतड़ों पर पड़ने लगी… कभी-2 मे उनकी गांद मसल देता, तो कभी उनके चुतड़ों पर थप्पड़ जड़ देता…
भाभी और ज़ोर्से चोदने को बोलती…मेरे शरीर से पसीना निकलने लगा… लेकिन चुदाई…चरम…पर पहुँचती जा रही थी…
आधे घंटे की धुँआधार चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ ही झड़ने लगे…भाभी की यौनी से लगातार कामरस बरस रहा था…
झड़ने के बाद वो पलंग पर औंधी पसर गयी और में उनकी पीठ पर लड़ गया..
10-15 मिनिट हम ऐसे ही बेसूध पड़े रहे और अपनी उखड़ी हुई साँसों को इकट्ठा करते रहे…
हमारा मस्ती भरा ये खेल सुबह के 4 बजे तक यूँही चलता रहा, फिर थक कर चूर हम एक-दूसरे की बाहों में लिपट कर सो गये…
सुबह 7 बजे रामा दीदी ने दवाजा खटखटाया… तब जाकर भाभी की नींद खुली..उन्होने अंदर से ही आवाज़ देकर कहा…
अभी थोड़ी देर में आती हूँ, रूचि को दूध पिलाकर….!
फिर भाभी ने अपने कपड़े पहने, मुझे झकज़ोर कर जगाया.. जब में जाग गया तो वो बोली –
लल्ला.. तुम कपड़े पहनो, में बाहर निकल कर देखती हूँ, रास्ता साफ देख कर बाहर निकल जाना …
रामा पुच्छे तो कह देना कि जल्दी जाग कर वॉक पर गया था.. ओके..
इस तरह से भाभी ने मेरे जन्म दिन का ये अनौखा तोहफा देकर मुझे जिंदगी भर के लिए अपना बना लिया…
वैसे तो वो मेरा हर तरह का ख्याल रखती ही थी, बस यही काम वाकी था, सो वो भी पूरा हो गया था..
अब वो मेरे लिए मेरी मा से भी बढ़कर मेरी ज़रूरत बन चुकी थी..
मेने अपने नये खुले डिग्री कॉलेज में ही अड्मिशन ले लिया था, जिससे अब मे हमेशा भाभी के पास ही रह सकता था…
एक दिन छुट्टी का दिन दोनो भाई आए हुए थे मेने भाभी को अपनी एक डिमॅंड पहले ही बता दी थी…
सो जब रात को सभी एक साथ बैठ कर खाना खा रहे थे कि भाभी ने भूमिका बनाते हुए बात शुरू की..,
भाभी, भैया से बोली - सुनो जी..! मे क्या कह रही थी.. कि यहाँ घर पर एक बाइक और होनी चाहिए…,
स्कूटी तो रामा के लायक ही है.. छोटू लल्ला अब बड़े हो गये है.. कॉलेज भी जाते हैं.. तो मे चाहती हूँ उनके लिए एक मोटर बाइक ले देते तो…
भाभी की बात से सभी खाना रोक कर उनकी ओर देखने लगे…! सबको यूँ अपनी ओर देखते पा, भाभी कुच्छ हड़बड़ा गयी…
फिर कुच्छ संभाल कर बोली – क्या मेने कुच्छ ग़लत कह दिया..?
बड़े भैया – तुम्हें लगता है कि ये बाइक चला लेगा.. स्कूटी तो ढंग से आती नही अभी तक…..
तभी तपाक से रामा दीदी बोल पड़ी – क्या फ़र्राटे से स्कूटी चलाता है छोटू… और आपको पता है भैया, एक दिन तो अपने दोस्त की बुलेट लेके घर आया था..
दोनो भैया जो शायद अभी तक मुझे बच्चा ही समझ रहे थे… चोंक पड़े…और दोनो के मूह से एक साथ निकला… क्या बुलेट..चला लेता है ये..?
मे – हां भैया.. उसमें क्या है.. वो तो और आसान है चलाने में..
बड़े भैया – तो मोहिनी तुमने बाबूजी से पुछ लिया है..?
भाभी – बाबूजी मेरी बात कभी नही टालते.. उनकी गॅरेंटी मे लेती हूँ.. पर देखो ना…,
जिसका एक भाई असिस्टेंट प्रोफेसर, और दूसरा डीएसपी, उनका छोटा भाई लड़कियों वाली स्कूटी से कॉलेज जाए.. अच्छा नही लगता ना…!
छोटे भैया ताव में आकर बोले – तो ठीक है भाभी.. मेरी तरफ से छोटू के लिए बाइक तय… बोल भाई कोन्सि चाहिए…?
भाभी तपाक से बोली – बुलेट… !
बड़े भैया – क्या..? मोहिनी तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है.. जानती हो बुलेट की कितनी कीमत है..!
भाभी – अब डीएसपी साब दिलवा रहे हैं… तो इससे कम क्या होनी चाहिए.. क्यों बड़े देवर जी… मे सही कह रही हूँ ना..!
छोटे भैया – अब भाभी का हुकुम सर आँखों पर…
ठीक है छोटू, कल मेरे साथ चलना, अपने शहर से तुझे एक नयी बुलेट डेलक्स दिलवा देता हूँ… अब खुश..?
मे भैया के गले लग गया और उन्हें थॅंक्स बोला..
जब मे उनके गले लगा तब उन्हें पता चला कि मे उनसे भी 2” लंबा हो गया हूँ.. तो भैया हँस कर बोले.. सच में तू बुलेट चलाने लायक हो गया है..!
तभी रामा दीदी बोल पड़ी… भैया मे भी चलूं आपके साथ.. ? मुझे भी कुच्छ शॉपिंग करवा दीजिए ना .. प्लीज़..!
भाभी – हां देवेर्जी.. बेचारी का मन भी बहाल जाएगा.. एक-दो दिन दोनो बेहन भाई शहर घूम लेंगे.. और उसे भी कुच्छ दिलवा देना..
भैया ने हामी भर दी.. और भाभी ने शाम को बाबूजी से भी पर्मिशन ले ली.
अकेले में मेने भाभी को गोद में उठाकर पूरे घर का चक्कर लगा डाला…
दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…
दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…
मे आगे ड्राइवर के बगल में बैठा था और दीदी-भैया पीछे की सीट पर बातें करते हुए अपना समय पास करते जा रहे थे..
वो दोनो भी कुच्छ सालों पहले एक साथ कॉलेज जाना, साथ खेलना बैठना काफ़ी सालों तक रहा था, आज वो दोनो अपनी पुरानी बातों, साथ बिताए लम्हों को याद करते जा रहे.
उनकी बातें सुनकर मुझे पता चला कि हम भाइयों और बेहन के बीच कितना प्रेम है एक दूसरे के लिए..
शायद इसकी एक वजह माँ की असमय मृत्यु भी थी, जिसकी वजह से सब जल्दी ही अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझने लगे थे.
उनकी पोस्टिंग जिस शहर में थी, वो हमारे गाओं से तकरीबन 100-110 किमी दूर था,
गाओं से कुच्छ दूर मैं हाइवे तक सिंगल और खराब रास्ता ही था, लेकिन उसके बाद हाइवे अच्छा था.
बातों-2 में समय का पता ही नही चला और कोई 3 घंटे बाद हम उनके शहर पहुँच गये..
भैया पहले सीधे अपने ऑफीस गये, वहाँ अपने स्टाफ से हमें मिलवाया फिर अपने ऑफीस के काम का अपडेट लेकर हम तीनों शॉपिंग के लिए निकल गये..
पहले मेरे लिए एक बुलेट बुक कराई, जो कल तक मिलने वाली थी, फिर हम दोनो के लिए कपड़े वैगैरह खरीदे.. इसी में शाम हो गयी..
दूसरे दिन भैया हमें एक सिनिमा हॉल की टिकेट देकर अपने ऑफीस निकल गये..
अपने ऑफीस की ही एक गाड़ी हमारे लिए रख दी जो हमें पूरे दिन घुमाने वाली थी..
3 से 6 वेल शो हम दोनो मूवी देखने हॉल में घुस गये.. अक्षय कुमार की कोई अच्छी मूवी लगी थी..
दीदी ने नये खरीदे कपड़ों में से एक पिंक कलर की टीशर्ट और एक ब्लू लीन्स पहन रखी थी, मे भी एक वाइट टीशर्ट और जीन्स पहने हुए था..
इस ड्रेस में दीदी क्या ग़ज़ब लग रही थी, मे तो उन्हें देखता ही रह गया.. और मेरे मूह से निकल गया.. वाउ ! दीदी क्या लग रही हो …
वो एकदम से शर्मा गयी, और फिर बोली – सच बता भाई.. मे अच्छी लग रही हूँ ना..!
मे – ग़ज़ब दीदी ! आप तो एकदम से बदल गयी हो… कोई कह नही सकता कि ये कोई गाओं की लड़की होगी..
वो – तू भी किसी हीरो से कम नही लग रहा… देखना कहीं कोई लड़की गश ख़ाके ना गिर पड़े…
मे – अब आप मेरी टाँग खींच रही हो..
वो – नही सच में.. और आगे बढ़के मेरे गाल पर किस कर लिया.. मे तो अचानक उनके किस करने से गन-गन गया…!
हॉल में अंधेरा था, कुच्छ वॉल साइड की लाइट्स थी जिससे हल्का-2 उजाला फैला हुआ था. हम अपने नंबर की सीट जो बाल्कनी में सबसे उपर की रो में थी बैठ गये.
अच्छी मूवी होने की वजह से कुछ देर में ही हॉल फुल हो गया.. और कुच्छ ही देर में सभी लाइट्स ऑफ हो गयी.. और एक दो आड के बाद मूवी स्टार्ट हो गयी.
हॉल में अंधेरा इतना था, कि हमें अपने बाजू वाले की भी पहचान नही हो रही थी कि कॉन बैठा है..
मूवी शुरू हुए अभी कुच्छ ही मिनिट हुए थे कि दीदी का हाथ मेरी जाँघ पर महसूस हुआ..
मे चुपचाप बैठा मूवी देखता रहा.. अब धीरे-2 वो मेरी जाँघ को सहलाने लगी.. और उसे उपर जांघों के बीच ले आई…
अब उनकी उंगलिया मेरे लंड से टच हो रही थी… वो टाइट जीन्स में क़ैद बेचारा ज़ोर मारने लगा..
लेकिन जीन्स इतनी टाइट थी कि कुच्छ ज़ोर नही चल रहा था उसका…
दीदी का हाथ और कुच्छ हरकत करता उससे पहले मे थोड़ा सीधा हो गया और अपनी सीट पर आगे को खिसक गया… !
दीदी ने फ़ौरन अपना हाथ खींच लिया और मेरे मूह की तरफ देखने लगी.. लेकिन मे मूवी देखने में ही लगा रहा…
मे थोड़ा आगे होकर दीदी की साइड वाले अपने बाजू को थोड़ा उनकी सीट की तरफ चौड़ा दिया,
अब हॅंडल पर आगे मेरा बाजू टिका हुआ था और मेरे पीछे ही दीदी ने भी अपना बाजू टिका लिया और मेरी सीट की तरफ को होगयि…
पोज़िशन ये होगयि.. कि अगर मे ज़रा भी पीछे को होता तो मेरा बाजू उनके बूब को प्रेस करता…!
हम दोनो कुच्छ देर यूँही बैठे रहे.. उसको ज़्यादा देर चैन कहाँ पड़ने वाला था.. सो अपना हाथ मेरी बॉडी और बाजू के बीच से होकर फिर मेरी जाँघ पर रख दिया, और फिर वही पहले वाली हरकतें…!
मे उन्हें बोलने के लिए पीछे की तरफ होकर उनकी ओर को हुआ… मेरा बाजू एल्बो से उपर का हिस्सा उनके बूब पर रख गया…!
जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, और मे अलग होने ही वाला था कि उसने मेरा बाजू थाम लिया और उसे और ज़ोर्से अपनी चुचि पर दबा दिया…!
आह्ह्ह्ह… क्या नरम एहसास था, रूई जैसी मुलायम उसकी चुचि मेरी बाजू से दबी हुई थी.. मुझे रोमांच भी हो रहा था,
लेकिन मेरे मन में हमेशा ही उनके प्रति एक भाई-बेहन वाली फीलिंग पैदा हो जाती थी और मे आगे बढ़ने से अपने को रोक लेता था…!
दीदी ने अपना गाल भी मेरे बाजू से सटा रखा था…मेने उनके कान के पास मूह लेजा कर कहा – दीदी ये आप क्या कर रही हो..?
वो – मे क्या कर रही हूँ..?
मे – यही ! अभी आप ऐसे चिपकी हो मेरे से, कभी मेरी जाँघ सहलाती हो… ये
सब…. क्या ठीक है..?
वो – क्यों ! तुझे कोई प्राब्लम है इस सबसे..?
मे – हां ! हम बेहन-भाई हैं, और ये सब हमारे रिस्ते में ठीक नही है..
वो – अच्छा ! और भाभी देवर के रिस्ते में ये सब ठीक है..?
मे – क्या..?? आप कहना क्या चाहती हो..? साफ-साफ कहो…!
वो – आजकल तेरे और भाभी के बीच जो भी हो रहा है ना ! वो मुझे सब पता है.. यहाँ तक कि तेरे बर्थ’डे वाली सारी रात उनके कमरे में जो हुआ वो भी..
मे एक दम से सकपका गया.. और हैरत से उनकी तरफ देखने लगा…..
वो - ऐसे क्या देख रहा है…? क्या ये भी बताऊ, कि कब-कब, तुम दोनो ने क्या-क्या किया और कहाँ किया है..?
लेकिन तू फिकर मत कर मे किसी को कुच्छ नही कहूँगी…बस थोड़ा सा मेरे बारे में भी सोच…!
अब मेरे पास बोलने के लिए कुच्छ नही था… सो जैसे गूंगी औरत लंड की तरफ देखती है ऐसे ही बस उसे देखता ही रहा…!
वो – अब चुप क्यों है ! कुच्छ तो बोल… ?
मे – ठीक है दीदी ! आप जैसा चाहती हैं वैसा ही होगा, लेकिन अभी यहाँ कुच्छ मत करो… वरना मुझे कुच्छ -2 होने लगता है…!
वो – तो फिर कहाँ और कैसे होगा.. ? यहाँ भी कुच्छ तो मज़े कर ही सकते हैं ना !
मेने पूरी तरह हथियार डाल दिए और अपने आपको उसके हवाले कर दिया….
दीदी अपनी चुचि को मेरे बाजू से रगड़ कर कान में फुसफुसाई… अपनी जिप खोल ना भाई..
मे – क्या करोगी…?
वो – मुझे देखना है तेरा वो कैसा है…!
मे – यहाँ अंधेरे में क्या दिखेगा… ?
वो – अरे यार तू भी ना, बहुत पकाता है.. तू खोल तो सही मे अपने हाथ में लेकर देखना चाहती हूँ..! प्लीज़ यार ! खोल दे…
मे – रूको एक मिनिट.. और मेने सीट से पीठ सटकर कमर को उचकाया और अपना बेल्ट और जिप खोल दिया..
उसने तुरंत अपना हाथ जीन्स के अंदर डाल दिया और फ्रेंची के उपर से ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…
मे – अह्ह्ह्ह… कैसा है..?
वो – हाईए.. छोटू ! ये तो बड़ा तगड़ा है…यार !
मे – क्यों तुम्हें अच्छा नही लगा…? तो वो झेंप गयी और शर्म से अपना गाल मेरे बाजू पर सटा दिया…
वो उसे हौले-2 सहलाने लगी और उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने बूब पर रख दिया…और बोली – तू भी इसे प्रेस करना !
मेने कहा रूको, और फिर मेने अपना बाजू उसके सर के पीछे से लेजा कर उसके दूसरी साइड वाले बूब के उपर रख दिया और धीरे-2 दबाने लगा…
मेने उसके गाल को चूमते हुए उसके कान में कहा- तुम भी अपनी जिप खोलो ना दीदी !
तो उसने झट से अपनी जीन्स खोल दी और मेने अपना हाथ उसकी पेंटी के उपर रख कर उसकी मुनिया को सहला दिया…
सीईईईईई…. हल्की सी सिसकी उसके मूह से निकल गयी, उसकी पेंटी थोड़ी-2 गीली हो रही थी.. और अब मेरे दो तरफ़ा हमले से उसकी और हालत खराब होने लगी…
हम दोनो मस्ती में एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे, कि तभी इंटेरवाल हो गया, और जल्दी से अपने सीटो पर सही से बैठकर अपने-2 कपड़े दुरुस्त किए और बाहर चल दिए…
इंटेरवाल के बाद भी हम दोनो ऐसे ही मस्ती करते रहे, और इस दौरान वो एक बार झड भी चुकी थी..
मेरा भी लंड फूलकर फटने की स्थिति में पहुँच गया था..
मूवी ख़तम होने के बाद हम घर लौट लिए, रास्ते भर हम दोनो चुप ही रहे, वो मुझसे नज़र चुरा रही थी, और मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी.
मेने गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठे ही उससे पुछा – क्या हुआ दीदी, बात क्यों नही कर रही..?
वो – भाई देख यहाँ अब कुच्छ मत करना, वरना ड्राइवर को शक़ हो जाएगा …
मेने कहा – तो बात तो कर ही सकती हो.. फिर वो इधर-उधर की बातें करने लगी..
घर पहुँच कर फ्रेश हुए, थोड़ा टीवी देखा और कुच्छ देर बाद भैया आ गये…
एजेन्सी वाला बुलेट की डेलिवरी घर पर कर गया था, भैया ने सब पेपर चेक कर लिए..
रात देर तक हम तीनो बेहन भाई देर तक बात-चीत करते रहे.. भैया ने हमने दिन में क्या-2 किया वो सब पुछा.. और फिर अपने-2 बिस्तर पर जाकर सो गये..
दूसरे दिन हम निकलने वाले थे, भैया ने सुबह ही पंप पर जाकर बुलेट का टॅंक फुल करा दिया था, निकलने से पहले भैया बोले –
छोटू ! रास्ते में एक बहुत अच्छी जगह है, जंगलों के बीच झरना सा है, झील है.. देखने लायक जगह है..
अगर देखना हो तो किसी से भी पुच्छ कर चले जाना.. बहुत मज़ा आएगा तुम दोनो को..
फिर हम दोनो भैया से गले मिलकर चल दिए अपने घर की तरफ
डग-डग-डग….. बुलेट अपनी मस्त आवाज़ के साथ हाइवे पर दौड़ी चली जा रही थी..
जो मेने कभी सपने में भी नही सोचा था, आज मुझे मिल गया था..… मेरी पसंदीदा बाइक जिसे दूसरों को चलाते देख बस सोचता था, कि काश ये मेरे पास भी होती.
और आज भाभी की वजह से मेरे हाथों में थी, मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था इस वक़्त…
भैया के घर से निकलते वक़्त दीदी एक सलवार सूट में थी… शहर से निकल कर जैसे ही हमारी बुलेट रानी मैं हाइवे पर आई, दीदी ने मुझे गाड़ी एक साइड में खड़ी करने को कहा..
मेने सोचा इसको सू सू आ रही होगी, सो मेने एक पेड़ के नीचे बुलेट रोक दी और पुछा – क्या हुआ दीदी.. गाड़ी क्यों रुकवाई..?
उसने कोई जबाब नही दिया और मुस्कराते हुए अपने कपड़े उतारने लगी…! मेने कहा- अरे दीदी ऐसे सरेआम कपड़े क्यों निकाल रही हो.. पागल हो गयी हो क्या ?
फिर भी उसने कोई जबाब नही दिया और अपनी कमीज़ उतार दी…
मेरी आँखें फटी रह गयी.. वो उसके नीचे एक हल्के रंग की पतली सी टीशर्ट पहने थी..
फिर वो अपनी सलवार का नाडा खोलने लगी.. और उसे जैसे ही नीचे सरकाया, तो उसके नीचे एक स्लेक्स की टाइट फिट घुटने तक की पिंक कलर की लिंगरी पहने थी..
उसके दोनो कपड़े इतने हल्के थे कि उसकी ब्रा और पेंटी उनमें से दिखाई दे रही थी, वो इन कपड़ों में एकदम शहर की पटाखा माल लग रही थी.
ब्रा में कसे उसके 32 साइज़ के गोरे-2 बूब और पेंटी में कसी उसकी 33-34 की गांद देखकर मेरा पापुआ उछल्ने लगा.
मे भी इस समय एक हल्की सी टीशर्ट और एक होजरी का पाजामा ही पहने था, जो कि काफ़ी कंफर्टबल था रास्ते के लिए.
पाजामा में मेरा तंबू सा बनने लगा था.. लेकिन मे अभी भी बुलेट की सीट पर ही बैठा था, इसलिए वो उसको नही दिखा.
मेने मन ही मन कहा.. हे प्रभु आज किसी तरह इससे बचा लेना…!
ऐसा नही था, कि मे दीदी के साथ फ्लर्ट नही करना चाहता था, लेकिन जिस तरह वो दिनो-दिन मेरे साथ खुलती जा रही थी,
इसी से पता चल रहा था कि अब हम ज़्यादा दिन दूर नही रह पाएँगे..
मे जैसे ही आगे बढ़ने की कोशिश करता, मेरे मन में कहीं ना कहीं ये सवाल उठने लगता., कि नही यार ! ये तेरी बेहन है.. और बेहन के साथ……ये ग़लत होगा.
लेकिन उसके कोमल मन को कॉन समझाए…?
और अब तो उसने मेरे हथियार के दर्शन भी कर लिए थे…
मे यही सब बुलेट के दोनो ओर पैर ज़मीन पर टिकाए सीट पर बैठा सोच ही रहा था कि वो मेरे पीछे दोनो तरफ लड़कों की तरह पैर करके बैठ गयी और बोली--- अब चलो…
मेने किक लगाई और हमारी बुलेट रानी फिर से डग-डग करती हाइवे पर दौड़ने लगी…
उसने अपने बाल भी खोल दिए थे जो अब हवा में लहरा रहे थे.. मस्ती में उसने अपनी दोनो बाजू हवा में लहरा दी और हवा की तेज़ी को अपने पूरे शरीर पर फील करने लगी…
मे – अरे दीदी ! आराम से बैठो ना.. गिर जाओगी…!
वो – क्यों तुझे चलाना नही आता क्या..?
मे – ऐसा नही है.. अगर कहीं कोई गड्ढा आ गया या किसी भी वजह से ब्रेक भी लगाना पड़ सकता है तो तुम डिसबॅलेन्स हो सकती हो..
उसने मुझे घुड़कते हुए कहा – तू बस अपनी ड्राइविंग पर ध्यान दे.. और मुझे मेरा मज़ा लूटने दे…
मे फिर चुप हो गया.. थोड़ी देर बाद वो बाइक पर खड़ी हो गयी और चिल्लाने लगी—
याहूऊओ….याहूऊ… जिससे उसकी आवाज़ हवा में लहराने सी लगी और उसके खुद के कनों को सर सराने लगी……
ऐसी ही मस्ती में वो बाइक के पीछे मज़े लूटती जा रही थी…
फिर रोड पर कुच्छ गड्ढे से आना शुरू हो गये, तो मेने उसे रोक दिया और ठीक से पकड़ कर बैठने के लिए बोला.
तभी एक बड़ा सा गड्ढा आ गया और गाड़ी उछल गयी… वो अच्छा हुआ कि उच्छलने से पहले उसने मुझे पकड़ लिया था……
अब उसे पता चला कि में क्यों पकड़ने के लिए बोल रहा था… मेरी कमर में बाहें लपेट कर दीदी बोली –
देखभाल कर चला ना भाई.. घर पहुँचने देगा या रास्ते में ही निपटाके जाएगा मुझे…
मे – मेने तो पहले ही कहा था कि पकड़ लो कुच्छ..
दीदी मेरी कमर में अपनी बाहें लपेटकर मुझसे चिपक गयी, जिससे उसके कड़क अमरूद जैसी चुचियाँ मेरी पीठ में गढ़ी जा रही थी, अपना गाल मेरे कंधे पर रख कर मेरी गर्दन से सहलाते हुए मज़े लेने लगी…
नॉर्मली बुलेट जमके चलने वाली बाइक है, फिर भी वो उच्छलने के बहाने से अपनी चुचियों को मेरी पीठ से रगड़ रही थी, उसके मूह से हल्की-2 सिसकियाँ भी निकल रही थी…
धीरे-2 सरकते हुए उसके हाथ मेरे लौडे को टच करने लगे, उसका स्पर्श होते ही उसने उसे थाम लिया और धीरे-2 मसल्ने लगी…
मे – दीदी अपना हाथ हटाओ यहाँ से कोई आते-जाते देख लेगा तो क्या सोचेगा..?
वो – तो देखने दे ना..! हमें यहाँ कों जानता है.., तू भी ना बहुत बड़ा फटतू है यार..!
मे – अरे दीदी ! ये हाइवे है… ग़लती से अपना कोई पहचान वाला गुजर रहा हो तो.. और उसने जाके बाबूजी, या और किसी घरवाले को बता दिया… तब किसकी फटेगी…?
वो – चल ठीक है चुपचाप गाड़ी चला तू… कोई निकलता दिखेगा तो मे हाथ हटा लिया करूँगी..
इतना बोलकर उसे और अच्छे से मसल्ने लगी जिससे मेरा लंड और अकड़ गया.. अब वो पाजामा को फाड़ने की कोशिश कर रहा था..
अपने हाथों में उसका आकर फील करके दीदी बोली – वाउ ! छोटू, तेरा ये तो एकदम डंडे जैसा हो गया है यार....
मे – मान जाओ दीदी ! वरना मेरा ध्यान भटक गया ना, और गाड़ी ज़रा भी डिसबॅलेन्स हुई तो दोनो ही गये समझो..
आक्सिडेंट की कल्पना से ही वो कुच्छ डर गयी और उसने मेरे लंड से अपने हाथ हटा लिए..
लेकिन पीठ से अपनी चुचियों को नही हटाया, और तिर्छि बैठ कर अपनी मुनिया को मेरे कूल्हे के उभरे हुए हिस्से से सटा लिया,
धीरे-2 उपर नीचे होकर अपनी चुचि और मुनिया को को मेरे शरीर से रगड़-2 कर मज़े लेने लगी…
हम 60-70 किमी निकल आए थे, भैया ने जो जगह घूमने के लिए बताई थी, वो आने वाली थी…