Update 13

कुच्छ देर मोहिनी और चाची वग़ैरह उसके साथ समय बिताकर उसके स्वाभाव और विचार जानने की कोशिश करें…

बाबूजी – सही कहा तुमने.. हम कल ही इस विषय पर एमएलए से बात कर लेते हैं.. फिर देखते हैं वो क्या कहते हैं…

कृष्णा – कल क्यों ? अभी फोन से बात कर सकते हैं, अगर वो मान गये तो कल ही चलते हैं देखने…

भाभी हँसते हुए बोली – देखा बाबूजी… देवर्जी को कितनी जल्दी पड़ी है.. शादी की..

भाभी की बात सुनकर सभी हँसने लगे, तो छोटे भैया झेन्प्ते हुए बोले –

अरे वो बात नही है भाभी.. मेने सोचा कल सनडे है, फिर हम लोग अपनी ड्यूटी पर चले जाएँगे…

बाबूजी – ठीक है अभी बात कर लेते हैं.. छोटू उनका नंबर लगा..

मेने एमएलए का नंबर डाइयल किया, दो-चार बेल जाने के बाद उन्होने कॉल पिक की..

एमएलए – हेलो ! में एमएलए रस बिहारी बोल रहा हूँ.. आप कॉन..?

मे – एमएलए साब नमस्ते ! मे अंकुश **** गाओं से.. श्री शंकर लाल शर्मा जी का बेटा..

एमएलए – नमस्ते बेटा ! बोलो.. कैसे फोन किया..?

मे – लीजिए बाबूजी आपसे बात करना चाहते हैं.. फिर मेने उन्हें फोन दिया…

दोनो तरफ से रामा-कृष्णा होने के बाद बाबूजी ने उन्हें जो हमारे बीच डिसाइड हुआ था वो सब बता दिया..

एमएलए फ़ौरन तैयार हो गये और तय हुआ कि कल ही हम लड़की देखने चलेन्गे..

उसी टाइम मे जाकर तीनों चाचा-चाचियों को बुला लाया और उनसे कल सुबह लड़की देखने चलने की बात की…

बड़े चाचा और चाची ने बहाना करके मना कर दिया, जो संभावना भी थी लेकिन उनकी जगह आशा दीदी को ले जाने के लिए मान गये, मझली चाची और छोटे चाचा – चाची जाने के लिए तैयार हो गये…

दूसरे दिन सुबह ही मे कस्बे में जाके एक इंनोवा किराए से तय कर आया.. कृष्णा भैया की अपनी गाड़ी थी.. तो दो गाड़ियों में हम 10 लोग आराम से जा सकते थे..

एमएलए का घर राम भैया के कॉलेज वाले शहर में ही था.. तो समय के हिसाब से हम 10 बजे निकल लिए..

भैया की गाड़ी मे भैया के साथ बड़े भैया, भाभी और छोटी चाची बैठ गये.. बाकी 6 लोग क़ुआलिस में बैठ गये…

मे ड्राइवर के साथ था.. बीच की सीट पर रामा, आशा दीदी और छोटे चाचा बैठ गये, और पीछे की सीट पर बाबूजी और मन्झलि चाची बैठे थे…

इस तरह बैठने का मेरा ही प्लान था.. जिससे बाबूजी को थोडा चाची के साथ बैठने का समय मिल सके.. और बॅक व्यू मिरर से मुझे ये बात पक्की भी हो गयी.. कि उन दोनो के बीच ट्यूनिंग अच्छी चल रही है…..

चाची का पल्लू ढलका हुआ था, बाबूजी उनकी जाँघ सहला रहे थे, और शायद चाची का हाथ बाबूजी के हथियार पर था….!

11:30 तक हम उनके घर पहुँच गये.. एमएलए ने हम सबके स्वागत सत्कार में कोई कमी नही रखी..

एमएलए की लड़की कामिनी, अत्यंत ही खूबसूरत , 5’6” की हाइट, 34-28-35 का फिगर, रंग फक्क गोरा, अच्छे नैन नक्श…कुल मिलाकर देखने में एक सुन्दर सी कन्या के सारे गुण थे…

लेकिन अंदर के गुणों को भाभी और चाचियों को ही परखना था…,

सो चाय नाश्ते के बाद वो उसे एक कमरे में ले गयी और वहाँ उन्होने उसकी खूब जाँच पड़ताल कर ली…

अंदर से आकर भाभी छोटे भैया के पास ही बैठ गयी, और उन्होने उनके कान में फुसफुसा कर कहा…

मुझे तो लड़की कोई खास नही लगी, क्यों आप क्या कहते हो देवर्जी..?

भैया ने भाभी की तरफ बड़े अस्चर्य के साथ देखा… मानो पुच्छ रहे हों.. कि इतना अच्छा माल आपको पसंद नही आया…

भैया के चेहरे पर घोरे निराशा के भाव छा गये.. और एक लंबी सी साँस छोड़कर बोले – ठीक है भाभी ! आपको पसंद नही है तो कोई बात नही.. चलो चलते हैं फिर…

उनकी रोनी सी शक्ल देख कर भाभी ठहाका लगा कर हँसने लगी… सभी लोग उनकी तरफ देखने लगे…

बाबूजी – इस तरह से क्यों हँस रही हो बहू… हुआ क्या है..?

भाभी हँसते हुए बोली… अरे बाबूजी मेने थोड़ा मज़ाक में देवर्जी को बोल दिया कि मुझे लड़की खास नही लगी.. तो देखो कैसी रोनी सी शक्ल हो गयी है इनकी…

हाहहाहा…

भाभी की बात पर वहाँ मौजूद सभी लोग हँसने लगे.. और भैया.. झेंप गये..

भाभी – भाई मुझे तो लड़की बहुत पसंद आई… मेरी देवरानी होने के सारे गुण हैं उसमें.. अब आप लोग अपना कहिए…

दोनो चाचियों ने भी हामी भर दी.. और रिश्ता तय हो गया…

आनन-फानन में रिंग सेरेमनी भी कर दी गयी… फिर सगाई की तारीख पक्का करके हम सबने खाना खाया, और विदा हो लिए…

नवेंबर के महीने में शादी की डेट निकली… दोनो तरफ से तय हुआ कि शादी से एक हफ्ते पहले वो लोग सगाई की रसम करने हमारे यहाँ आएँगे…

सारे डेट वग़ैरह फिक्स करने के बाद निमंत्रण पत्र बनवा लिए गये और उन्हें सब जगह भेज दिया गया…

भैया दोनो अपने-2 जॉब पर चले गये, मे और बाबूजी परिवार के वाकी लोगों के सहयोग से शादी की तैयारियों में जुट गये…

आख़िर इलाक़े के एमएलए की लड़की की शादी थी, तो किसी बात की कमी ना हो उनके स्टेटस के हिसाब से इसका पूरा ध्यान रखा गया…

सगाई के दो दिन पहले से ही कुच्छ खास रिश्तेदार जैसे मेरी दोनो बुआएं, मामा-मामी.. और भाभी के भाई राजेश अपनी छोटी बेहन के साथ . गये…

निशा… भाभी की छोटी बेहन… मेरे उम्र की.. एकदम सिंगल पीस… भाभी की ट्रू कॉपी…

फककक गोरा बदन… गाओं की लालमी लिए गाल… सुतवान नाक.. तीखे नयन.. लंबे काले घने बाल… 5’7” की हाइट… 33-26-34 का फिगर…चंचल हिरनी जैसी शोख अदाएँ…

बोलती तो मानो कहीं दूर कोई कोयल कुहकी हो…और अगर हँस पड़े…. तो मानो गुलशन में बाहर खिल उठे….

शाम को मे शादी की तैयारियों में लगा… शहर से लौटा था.. छोटे चाचा के साथ.. बुलेट पर कुच्छ समान लेकर लौटे थे हम दोनो....

मेने जैसे ही अपनी चौपाल पर गाड़ी खड़ी की.. घर के दरवाजे से निकल कर बाहर को आती हुई वो एक हल्की सी काली साड़ी में मेरे सामने खड़ी दिखी…

इससे पहले मेने उसे कभी नही देखा था, भैया की शादी पर मे बहुत छोटा था..बाद में ना मे कभी वहाँ गया, और ना वो कभी हमारे यहाँ आई थी..

मे सारे काम धाम, भूलकर उसकी सुंदरता में खो गया…

वो भी एकटक मुझे ही घूर रही थी…

कुच्छ लोग और भी वहाँ मौजूद थे… जो हम दोनो को एक दूसरे को घूरते हुए ही देखने लगे.. लेकिन कोई कुच्छ बोला नही…

10-15 मिनिट के बाद उसके पीछे से ताली बजने की आवाज़ के साथ भाभी की खिल-खिलाती आवाज़ सुनकर मे चोंक पड़ा.. वो भी हड़बड़ा कर नीचे देखने लगी..

वाउ ! तोता मैना मिलते ही एक दूसरे में गुम हो गये… हँसते हुए भाभी ने तंज़ मारा…

भाभी की बात सुनकर मे झेंप गया और नज़रें झुका कर स्माइल दी.. तब तक भाभी मेरे बगल में आकर खड़ी हो गयी…

मेने फुसफुसा कर कहा – ये कॉन है भाभी…? मेने इसे पहले कभी नही देखा..?

भाभी – इसमें इतने फुसफुसाने की क्या बात है.. तुम खुद ही पूछ लो इससे…

मे – बताओ ना भाभी…! मेरे मूह से भाभी सुनकर वो नज़रें झुकाए मंद मंद हँसने लगी…

भाभी – ये निशा है.. मेरी छोटी बेहन.. तुम्हारी साली है अभी तो…आगे का पता नही… हहेहहे…

और निशा ! ये हैं मेरे लाड्ले देवर, अंकुश उर्फ बुलेट राजा.. हहेहहे..

फर्स्ट एअर में हैं.. यहीं कॉलेज में..… और मेरा कान उमेठ्ते हुए बोली - बस हो गया ना इंट्रो अब चलो अपने काम में लगो….

वहाँ खड़े सभी लोग हँसने लगे.. तब मेरा ध्यान गया.. कि वहाँ मेरी दोनो बुआ मीरा और शांति अपने बच्चों के साथ थीं…!

मीरा बुआ – क्यों भाई छोटे उस्ताद, साली के मोहपाश में ऐसे खो गये, ये भी ध्यान नही दिया कि कोई और भी है यहाँ..

मेने जाकर दोनो बूआओं के पाँव छुये तो आशीर्वाद देते हुए शांति बुआ बोली – अब ये छोटे उस्ताद नही है दीदी.. देख नही रही हो…

हमारे घर में हैं कोई इसके मुकाबले का गबरू जवान…किसी फिल्म का हीरो सा लगता है अपना छोटू….!

मीरा बुआ ने अपने हाथ मेरे उपर उवारे, और माथा चूम कर बोली – किसी की नज़र ना लगे मेरे बेटे को…!

उसके बाद में घर के अंदर चला गया.. भाभी ने मुझे नाश्ता कराया.. उनके पास खड़ी निशा, रूचि को गोद में लिए चोर नज़रों से मेरी ओर देख रही थी…

मे – भाभी ! आपकी बेहन क्या कर रही है आजकल.. ?

भाभी – मुझे क्या तुमने इसका सीक्रेटरी समझ रखा है.. ? जो भी पुच्छना है, सीधे-सीधे उसको ही पुछो ना !

मे – हां तो साली साहिबा ! आजकल क्या कर रही हो..? आइ मीन पढ़ाई लिखाई…

पहली बार उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.. लगा जैसे कोई कोयल कुहकी हो.. 12थ के एग्ज़ॅम दिए थे इस बार… नज़रें झुकाए जबाब दिया उसने.

मे – रिज़ल्ट क्या रहा..? तो वो बोली – पास हो गयी हो.. अच्छे नंबरों से..

मे – आगे का क्या प्लान है.. ?

तो उसने कहा – प्राइवेट फॉर्म भरना है.. बीए का.

मे – भाभी.. इन्हें यहीं बुला लो ना ! अपने कॉलेज में अड्मिशन दिलवा देते हैं..

भाभी – अच्छा जी ! तो साली को पर्मनेंट अपने पास रखना चाहते हो…! तुम तो बड़े चालू हो.. क्यों री निशा.. तू रहेगी यहाँ मेरे पास….

तभी रूचि बोल पड़ी… हां मम्मी.. मौसी भी हमारे पास रहेगी.. मुझे मौसी बहुत अच्छी लगती है…

मे – अरे वाह ! हमारी बिटिया को भी इतना जल्दी अपने बस में कर लिया इन्होने.. वास्तव में ये कोई जादू जानती हैं…

भाभी – तो क्या किसी और को भी बस में कर लिया है इसने..? हाँ !

मे उनकी बात सुनकर हड़बड़ा गया.. और झेन्प्ते हुए बोला – व.व.वो.. मे ..तो.. बस… ऐसे ही बोला.. कि अभी कुच्छ घंटों में ही रूचि अपनी मौसी के फेवर में बोलने लगी…

मेरी हड़बड़ाहट देख कर भाभी और रामा दीदी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी और निशा भी दबी आवाज़ में उनका साथ देने लगी… मे अपनी इज़्ज़त बचा कर घर से बाहर चला गया………..!!

रात को खाने के बाद, मे और चाचा लोग बैठक में बाबूजी के पास बैठे हिसाब-किताब कर रहे थे.. क्या-क्या हो गया, क्या-क्या करना वाकी है, कैसे और कौन करेगा यही सब तय कर रहे थे…

तभी रूचि भागती हुई मेरे पास आई और मेरी गोद में आकर बैठते हुए बोली – चाचू… आपको मम्मी बुला रही है…

मेने उसके गाल को चूमा और बोला – अभी चलते हैं… तुम थोड़ी देर चाचू के पास बैठो… तो वो ज़िद करते हुए बोली – नही अभी चलो…

मे उसे और कुच्छ समझाता कि बाबूजी बोले – तू जा बेटा, हम देख लेंगे वाकई का.. वो एक बार ज़िद पकड़ गयी तो फिर किसी की सुनने वाली नही है..

मे उसे गोद में लेकर वहाँ से घर चला आया.. रास्ते में मेने उसे पुछा.. बेटा अभी मम्मी कहाँ हैं..

रूचि – वो मेरे वाले घर में हैं..

मे – तुम्हारे वाले घर में..? वो कहाँ है…?

रूचि – ओह… चाचू ! आप बिल्कुल बुद्धू हो क्या..? मेरा घर नही पता आपको..? अरे वही जहाँ मम्मी और मे रहते हैं…

मे – ओह अच्छा.. ! हां अब याद आया मुझे.. चलो वहीं चलते हैं…

मे रूचि को लिए भाभी के रूम में चला गया.. वहाँ उनके साथ दीदी और निशा दोनो बैठी हुई थी…

मुझे देखते ही भाभी बोली – आओ लल्लाजी.. बैठो.. वो तीनों बॅड पर बैठी हुई थी, मे जाकर बाजू में पड़ी चेयर पर बैठ गया..

रूचि मेरी गोद से उतर कर उन तीनों के बीच जाकर बैठ गयी…

भाभी – हां तो लल्लाजी .. सब तैयारियाँ हो गयीं या अभी कुच्छ वाकी है.. ?

मे – ऑलमोस्ट हो ही गयीं हैं भाभी… बस सुबह जल्दी जाके कस्बे से सब समान उठवा कर लाना है..

भाभी – वो निशा के अड्मिशन वाली बात तुमने ऐसे ही मज़ाक में कही थी या सीरियस्ली बोला था…?

मे – मेने आपसे कभी मज़ाक किया है..?

भाभी – लेकिन अब तो आधा साल निकल गया… अब कॉन अड्मिशन कर लेगा..?

मे – वो आप मुझपर छोड़ दो.. वाकई निशा जी अपना देखें, क्या ये कोर्स कवर कर पाएँगी…?

भाभी ने निशा की तरफ देखा… तो वो उनका आशय समझ कर बोली – ये हेल्प करेंगे तो हो भी सकता है..

फिर भाभी मेरी ओर देखने लगी – मेने कहा.. मे क्या हेल्प कर पाउन्गा.. ज़्यादा से ज़्यादा अपने नोट्स ही शेयर कर सकता हूँ… वाकी तो इनको ही देखना है…!

भाभी – मुझे लगता है निशा, अब बहुत देर हो चुकी है इस सबके लिए.. तू जैसा करना चाहती थी वोही कर…

इतना कह कर भाभी उठ गयी और बोली – चलो रामा तुम मेरे साथ आओ, थोड़ा मिलकर किचेन का काम निपटा लेते हैं..

निशा – मे भी आपके साथ आती हूँ दीदी..

भाभी – नही ! तू यहीं रुक, रूचि के पास.. बातें करो..

उनके साथ मे भी उठ खड़ा हुआ… तो भाभी ने मेरे दोनो हाथ पकड़े और पलंग पर बिठाते हुए बोली – तुम कहाँ चले लल्ला जी…?

थोड़ा साली के साथ बैठ कर समय बतियाओ… मस्ती मज़ाक करो… तुम दोनो का रिश्ता ही ऐसा है.. इसमें झिझकना कैसा… और आज मौका भी है एक दूसरे से बात करने का.. कल तो भीड़ बढ़ जाएगी….

इतना बोलकर वो दोनो निकल गयीं… जाते-2 दीदी ने एक शरारत भरी स्माइल दी, और मुझे थंप्स अप का इशारा करते हुए, भाभी के पीछे चली गयी…

मे पलंग पर बैठा था, रूचि मेरे पास आ गई, और मेरी गोद में बैठ गयी..

निशा पलंग के नीचे खड़ी थी, तो रूचि ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली – आप भी हमारे साथ बैठो ना मौसी…

निशा – नही बेटा.. मे ठीक हूँ, और तुम्हारे पास ही तो हूँ…

मे – बच्ची कह रही है तो बैठ भी जाइए… अब जब भाभी ने बोल ही दिया है जान-पहचान बढ़ने के लिए तो फिर.. ये हिचक क्यों…

वो धीरे से थोड़ा दूरी बनाकर हमारे बगल में बैठ गयी..

निशा अपनी गोद में अपने हाथों को रखे, आपस में अपनी उंगलियों से खेलती नज़रें झुकाए.. सिकुड़ी सिमटी सी बैठी थी…!

मेने रूचि से कहा – बेटा ! अपनी मौसी से पुछो, वो इतना डर क्यों रही है…

क्या हमारे घर में उनको कोई प्राब्लम है… !

वो तपाक से बोली – नही तो मे कहाँ डर रही हूँ, और आपने ऐसा क्यों बोला कि मुझे यहाँ प्राब्लम है..?

मे – वो आप ऐसे सिकुड़ी, सिमटी सी बैठी हो ना इसलिए.. पुछा.. की शायद आप यहाँ अनकंफर्टबल फील कर रही होगी…

वो कुच्छ नही बोली.. और ज़्यादा अपनी उंगलियों से खेलने लगी, .. मेने उसके चेहरे की तरफ गौर किया, तो पाया की वो भी कुछ ज़्यादा लाल हो रहा था, शर्म से उसके होंठों में कंपन जैसा हो रहा था…

मे – शायद आपको ठंड लग रही है.. एक काम करिए, आप कंबल ओढ़ लीजिए..

वो – नही.. नही.. मुझे तुंड नही लग रही.. मे ठीक हूँ.. आपको लग रही हो तो आप ओढ़ लीजिए…

मे – भाई हमें तो लग रही है.. क्यों रूचि बेटा.. कंबल ओढें…? रूचि ने हामी भर दी तो मे पालग पर और उपर की तरफ सरक कर रूचि को गोद में बिठा कर आगे घुटनों पर कंबल डाल लिया..

फिर मेने कहा – देखिए निशा जी.. शर्म या शेखी में कुच्छ नही रखा.. ठंड तो है ही, लीजिए आप भी डाल लीजिए अपने उपर..

अगर एक ही कंबल में आपको कोई प्राब्लम है तो दूसरा ले लीजिए, यही कही रखा होगा.. वैसे ये भी डबल बेड का ही है..

तो कुच्छ सोच कर उसने भी मेरे बगल में बैठ कर अपने पैर सिकोड लिए और पालती मारकर कंबल ओढ़ लिया…..

रूचि मेरी गोद से निकल कर उसकी गोद की तरफ जाने लगी.. तो उसने भी मेरी तरफ झुक कर उसे लेने के लिए हाथ बढ़ाए, इस चक्कर में उसका एक हाथ मेरी जाँघ से टच हो गया…

हाथ लगते ही उसका शरीर कंप-कंपा गया… रूचि को ठीक से बिठा कर उसने अपनी नज़रें झुका ली, और चोरी-2 मेरी ओर देखने लगी…

मेने रूचि के गाल को चूम कर कहा – क्यों बेटा ! मौसी क्या आ गई.. चाचू की गोद अच्छी नही लग रही है अब… मेरी बात सुन वो मुस्कराने लगी…

मेने बात करने की गर्ज से कहा – वैसे निशा जी ! भाभी ने बाहर तोता-मैना कहा था.. उसका क्या मतलब है…?

उसने एक पल के लिए मेरी ओर देखा… मेरी नज़रों से नज़र मिलते ही उसकी सुर्मयि आँखों के दरवाजे फिर से बंद हो गये… और उसने अपनी नज़रें झुका ली…

बताइए ना ! क्या मतालाव है उस बात का…? मेने फिर कहा… तो वो इस बार मेरी आँखों में आँखें डालकर देखने लगी..

शायद ये जानना चाहती थी कि मे वाकई उस बात से अंजान हूँ, या जानबूझकर पुच्छ रहा हूँ…

बताइए ना ! क्या मतलव है उस बात का…? मेने फिर कहा… तो वो इस बार मेरी आँखों में आँखें डालकर देखने लगी..

शायद ये जानना चाहती थी कि मे वाकई उस बात से अंजान हूँ, या जानबूझकर पुच्छ रहा हूँ…

मेरी आँखों में शरारत के कोई भाव ना देख, वो बोली – सच में आपको तोता – मैना की कहानी नही मालूम..?

मे – क्या..? ये कोई कहानी है..? सच में मेने कभी किसी से नही सुनी.. आप सुनाइए ना.. प्लीज़…

वो शर्मा कर फिर से नीचे की ओर देखने लगी… और इस बार उसने रूचि से कहा –

रूचि ! तेरे चाचू तो सच में बड़े भोले हैं.. इतने बड़े हो गये और इन्हें अभी तक तोता –मैना के बारे में पता नही है…

फिर वो रूचि से ही मुखातिब होकर बोली – रूचि तुझे पता है.. तोता मैना ना ! एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे… ये बोलते वक़्त उसके गालों पर शर्म की लाली साफ साफ दिखाई दे रही थी…….

निशा ने फिर एक बार अपने आप को संयत किया और फिर आगे बोलना शुरू किया –

कहते हैं… उन दोनो का प्यार 7 जन्मों तक चला… जिनमें हीर-रांझा, शीरी- फरहद, लैला – मजनूं, रोमीयो-जूलियट, सोहनी-महिवाल,

एक जन्म में तो वो बंदर-बंदरिया भी थे, पक्षियों में तोता-मैना… इस तरह 7 जन्म तक उनका प्यार चलता रहा…

मे – तो क्या वो लैला –मजनूं और हीर-रांझा जो पिक्चर बनी हैं… उनके उपर ही बनी हैं…

वो – हां ! और वो किसी भी जन्म में एक नही हो पाए… अंत में एक-दूसरे की बाहों में ही दम तोड़ा…

कहानी बताते-2 वो मेरी आँखों में देखती हुई खो गयी… में भी अपलक उसकी झील सी गहरी आँखों में डूब सा गया…

ना जाने कैसे और कब हमारे हाथ एक दूसरे के हाथों में आ गये थे….

जाने कैसा आकर्षण था हम दोनो के बीच, की हम एक दूसरे की तरफ झुकते चले गये…

दोनो के होठों को आपस में जुड़ने के लिए कुच्छ ही फासला शेष था, एक दूसरे की साँसें आपस में टकराने लगी थी…कि , तभी रूचि बोल पड़ी..

फिर क्या हुआ मौसी…? आगे सूनाओ ना !

रूचि की आवाज़ सुनकर हम दोनो ही जैसे नींद से जागे… और हड़बड़ा कर सीधे होकर बैठ गये…नज़रें स्वतः ही झुकती चली गयी…

निशा – बेटा कहानी ख़तम हो गयी, अब तुम चाचू की गोद में बैठो.. मे अभी आती हूँ.. इतना बोल कर उसने रूचि को मेरी गोद में बिठाया और खुद पलंग से उठ गयी…..!

ना जाने मेरे अंदर कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी, कि मेने उसका हाथ पकड़ लिया… और बोला –

लेकिन निशा जी मेरे मन में कुच्छ और भी सवाल हैं..

उसने मेरे हाथ के उपर अपना हाथ रख दिया और उसे प्यार से हटते हुए बोली –

उनका जबाब अपनी भाभी से पुच्छ लेना.. इतना कह कर वो रूम से बाहर चली गयी….

मे ठगा सा वहीं बैठा रह गया… किसी महान चूतिया की तरह….

फिर कुच्छ देर और वहीं बैठा रूचि के साथ खेलता रहा… कुच्छ देर बाद वो मेरी गोद में ही सो गयी..

उसे पलंग पर लिटा कर मे भी अपने कमरे में सोने चला गया..

बिस्तर पर पड़े-2 मे निशा की बातों के बारे में ही सोचता रहा… नींद मेरी आँखों से कोसों दूर जा चुकी थी…

रह-रह कर मेरे मन में यही सवाल कोंध रहा था.. की जब कहानी की सच्चाई ये है.. तो भाभी ने हमें तोता-मैना क्यों कहा..?

क्या ये महज़ एक जुमला था या कुच्छ और…?

जो भी हो… मेरा मन उसकी ओर खिंचा जा रहा था…उसकी वो झील सी आँखें जिनमें ना जाने कैसा आकर्षण था…मेरे ख़यालों में आ जाती और मे अपने अनादर अनजानी बेचैनी महसूस करने लगता..…!

मेने इस बार कस कर अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, कि उसका मासूम सा चेहरा फिरसे मेरे सामने आगेया.. मे फिरसे उसके ख़यालों में खोने लगा..

बार -2 उसकी मधुर आवाज़ कानों में गूंजने लगती.. अभी में इन ख्वाओं ख़यालों से बाहर निकलने के लिए जूझ ही रहा था कि दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनाई दी…

मेने झट से अपनी आँखें खोल दी… देखा तो सामने भाभी दूध का ग्लास हाथ में लिए खड़ी थी… मुझे जागते हुए पाकर वो मेरे पास आकर बैठ गयी…

दूध का ग्लास मेरे हाथ में दिया और मेरे चेहरे की तरफ गौर से देखने लगी..

मेने ग्लास खाली करके उन्हें पकड़ा दिया, खाली ग्लास को हाथ लेते हुए वो बोली..

लल्ला ! कुच्छ परेशान लग रहे हो…? बात क्या है, नींद नही आरहि.. ?

एक बार मेरे मन में आया कि भाभी से पुच्छ लूँ… लेकिन फिर सोचा.. पता नही वो कैसे रिएक्ट करेंगी…

मे – कुच्छ नही भाभी, बस दिनभर की भाग दौड़ से थोड़ा थकान सी है.. और वाकी बचे कामों के बारे में सोच रहा था, इसलिए नींद नही आई अबतक..

भाभी – चलो अब ज़्यादा टेन्षन ना लो, और सो जाओ.. और मेरे सर को प्यार से सहला कर वो चली गयी….

कुच्छ देर की कोशिशों के बाद उसके ख़यालों में खोया हुआ मे भी नींद के आगोश में चला गया…

दूसरे दिन दोनो भाई भी आ गये… उन्होने सारी तैयारियों का जायज़ा लिया.. कुच्छ शहरी स्टाइल से चेंजस भी कराए…

घर में भीड़-भाड़ ज़्यादा हो गयी थी… दिन भर की भाग दौड़ के कारण निशा से मेरी और कोई बात नही हो पाई.. बस एक-दो बार आमना सामना हुआ…

नज़रें चार होते ही उसके चेहरे पर शर्मीली सी मुस्कान आ जाती.. और फिरसे नज़रें नीची करके वो मेरी आँखों से ओझल हो जाती…!

लेकिन जितनी देर मे घर में होता… मेरी नज़रें उसीको तलाश करती रहती.., मे समझ नही पा रहा था, कि आख़िर ये कैसा आकर्षण है…!​
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