Update 14
घर, गाओं, कॉलेज में और भी लड़कियाँ थी, लेकिन ऐसा कभी किसी के साथ नही हुआ था…तो फिर अब क्यों…?
आख़िर सगाई का समय आ गया.. म्ला अपने सगे संबंधियों समेत हमारे दवाजे पर आ चुके थे…
गाओं की रीति-रिवाजों और घर मोहल्ले की औरतों के मंगाळाचरण के बीच सगाई की रसम पूरी हुई… उसके बाद हमने सारे गाओं को दावत दी…
लगान पत्रिका के हिसाब से 3 दिन पहले हल्दी की रस्म थी…पूरे घर, आँगन में चारों तरफ खुशी भरा माहौल व्याप्त था…
पूरे आस-पास के इलाक़े में इस शादी को लेकर चर्चाएँ थीं, हो भी क्यों ना… आख़िर तो एक एमएलए की लड़की और डीएसपी की शादी जो थी…
आज हल्दी की रस्म होनी थी… वार के नहाने से पहले उसे हल्दी लगाई जाती थी, उसके कुच्छ घंटे के बाद बेसन से उबटन करके नहलाया जाता था,
नहाने तक के सारे काम वार खुद नही करता था, उसकी भाभी, चाची, बहनें या फिर बुआएं मिलकर करती थी…
आँगन में मनझले भैया.. मात्र अंडरवेर के उपर एक लूँगी लपेट कर एक लकड़ी के पटरे पर बैठ गये..
एक बर्तन में हल्दी और चंदन का लेप घोला हुआ था.. पंडित जी ने मंत्रोचारण करके विधि शुरू कराई.. बहनों और बूआओं ने भैया के शरीर पर हल्दी का लेप लगा कर शुरुआत की..
उसके बाद चाचियों ने हल्दी लगाई… उसके बाद भाभी का नंबर आया…
मे भैया के पीछे खड़ा कौतूहल वश ये सब देख रहा था… भाभी मज़ाक करते-2 भैया के हल्दी लगा रही थी… कभी-2 उनके गालों पर हल्दी लगते-2 चॉंट लेती.. तो भैया के मूह से आउच.. करके मीठी कराह निकल जाती…
मे सब इन्ही चुहल बाज़ियों का आनंद ले रहा था सभी एक दूसरे से हसी-ठिठोली कर रहे थे…
अचानक निशा ने हल्दी के बर्तन से हल्दी अपने हाथों में लेकर छुपा ली.. किसी का ध्यान उसकी तरफ नही था…
वो चुपके से मेरे करीब आई और अपने हल्दी भरे हाथ मेरे गालों पर रगड़ दिए…
जैसे ही मुझे पता लगा.. और मेने उसके हाथ पकड़ने की कोशिश की… खिल-खिलाती हुई वो मेरे से दूर भाग गयी…
सबकी नज़रें मेरी तरफ मूड गयी… सब लोग हँसते-2 लॉट पॉट हो रहे थे…
शांति बुआ ने मेरी गैरत को ललकारा… हाए रे लल्ला… कैसा मर्द है तू.. साली तुझे हल्दी लगा गयी… और तू कुच्छ नही कर पाया… तुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए…
तो मेने भी अपने हाथों में हल्दी ली और उसकी तरफ बढ़ने लगा… वो मेरे से बचने के लिए इधर से उधर भागने लगी…
मनझले भैया ने मुझे उकसाया…. शाबास छोटू… छोड़ना मत उसको… अगर बच गयी… तो समझ लेना हमारी नाक कट जाएगी…
मे उसके पीछे लपका… बचने के लिए वो इधर-से-उधर भागने लगी.. पूरे आँगन में.. लेकिन मेने उसका पीछा नही छोड़ा…..
अंत में उसे कोई रास्ता नही सूझा तो वो झीने पर चढ़ गयी.. और उपर के कमरे में घुस गयी…
लेकिन इससे पहले कि वो उसका दरवाजा अंदर से बंद कर पाती.. मेने दरवाजे को धक्का देकर खोल दिया…………!
अब वो कहीं भाग नही सकती थी.. सो कमरे के एक कोने में जाकर खड़ी हो गयी… गर्दन नीची किए, सिमटी सी सरमाई सी…होठों पर एक मीठी सी मुस्कान लिए…
मे धीरे – 2 कदम बढ़ाता हुआ उसके नज़दीक जाने लगा, ना जाने क्यों…? जैसे – 2 मेरे कदम उसकी तरफ बढ़ रहे थे, पूरे शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना पैदा होने लगी…
जिसमें वासना लेशमात्र भी नही थी, मेरे शरीर के सारे रौंय खड़े होने लगे…शरीर में अजीब सी कंपकंपाहाट सी होने लगी.
अभी में उससे कुच्छ कदम दूर ही था, कि उसके लरजते होंठ हिले…काँपती सी आवाज़ में बोली – प्लीज़ अंकुश जी, मुझे जाने दो…
मेने कदम आगे बढ़ाते हुए कहा – वार करके हथियार डालना ठीक नही है..जब तक अपने जैसा फेस आपका नही हो जाता, यहाँ से हिलना भी संभव नही होगा.
अब ये आपके उपर निर्भर करता है, कि प्यार से होगा या फिर…..मेने जान बूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी और आगे बढ़ा…
वो खिल-खिलाती हुई फ़ौरन ज़मीन पर उकड़ू बैठ गयी, और अपने चेहरे को घुटनों में देकर छिपाने की कोशिश करने लगी…!
मे उसके सर पर खड़ा होकर बोला – बचना बेकार है निशा जी… आपने सोए हुए शेर को जगा दिया है… अच्छा होगा प्यार से लगवा लो… वरना मुझे जबर्जस्ती करना भी आता है…
वो – प्लीज़ अंकुश जी मत करिए ना… मान जाइए प्लीज़…!
मे – शुरुआत तो आपने ही की है… अब ख़तम तो मुझे करना ही पड़ेगा ना… ये कहकर मेने अपने हाथ उसकी बगलों में फँसा दिए…
उसने अपने घुटने शरीर से और ज़ोर्से सटा लिए और ज़्यादा सर झुका कर उनके बीच कर लिया…!
अपने शरीर को उसने ऐसा कस लिया, कि मेरे हाथ उसके अंदर घुस नही पा रहे थे..
तो मेने उसके बगलों में गुदगुदी कर दी.. वो खिल-खिलाकर अपने बदन को इधर से उधर लहराने लगी..
इतने में ही मुझे मौका मिल गया और मेरे हल्दी भरे हाथों ने उसके दोनो गालों को रगड़ दिया…
उसने हथियार डाल दिए और खड़ी हो गयी.. मेरे हाथ अभी भी उसके गालों पर ही थे.. उसकी पीठ मेरे पेट और सीने से सटी हुई थी….!
वो अब भी मेरे हाथों को अपने गालों से हटाने की कोशिश में लगी थी, लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ…
मे उसके गाल मलने में लीन हो गया…आगे को झुक कर उसने अपने चेहरे को नीचे करने की कोशिश की जिससे उसकी अन्छुई गान्ड पीछे को होकर मेरी जांघों से सट गयी…
उसकी मक्खन जैसी मुलायम गान्ड मुझे और ज़्यादा उससे चिपकने पर मजबूर करने लगी…दोनो के शरीर में एक कंपकपि सी हो रही थी.
जब काफ़ी देर तक ये चलता रहा, तो आख़िर में उसने अपने हथियार डाल दिए और बोली –
अब तो छोड़ दीजिए प्लीज़… अब तो आपके मन की हो गयी ना… वो फुसफुसाई…
मे – मन की आप कहाँ होने दे रही हैं निशा जी !… मेने उसके ठीक कान के पास अपने होठ लेजा कर कहा…
वो – और कितना रगडेन्गे…? पूरा तो रगड़ दिया…
मे – लेकिन आपने प्यार से तो रगड़ने नही दिया ना !... ज़बरदस्ती में मज़ा नही आया !
वो – प्यार से और कैसे होता है…?
मेने उसको अपनी तरफ घुमाया, और अपने हल्दी लगे गाल जो उसने रंग दिए थे.. उनको उसके गालों से रगड़ने लगा..
मेरे खुरदुरे शेव किए हुए गालों की रगड़ अपने गालों पर महसूस करके
निशा की आँखें बंद हो गयी.. और उसकी साँसें भारी होने लगी…
छोड़िए ना प्लीज़… कोई आजाएगा… वो काँपते से स्वर में बोली…
तो आने दो… ये कह कर मेने अपने होठ उसके होठों पर रख दिए, और एक प्यार भरा चुंबन लेकर उसको छोड़ दिया….
वो शर्मीली स्माइल करती हुई वहाँ से भाग गयी.. और कमरे के दरवाजे से निकल कर साइड में दीवार से पीठ टिका कर लंबी-2 साँसें लेने लगी…
उसके पीछे-2 में भी बाहर आया… और उसको वहाँ खड़ा देख कर मेने अपने दोनो हाथ उसके सर के आजू-बाजू से निकालकर दीवार पर टिका कर बोला…
निशा जी आप बहुत सुंदर हो… ! मे आपको पसंद करने लगा हूँ…!
उसने कोई जबाब नही दिया.. बस एक बार उसके होंठ लरजे…और फिर मेरे बाजू के नीचे से सर निकल कर किसी चाचल हिरनी की तरह झीने से भागती हुई नीचे चली गयी…
मे मन ही मन मुस्करा उठा, और धीरे-2 नीचे की तरफ बढ़ गया…
आँगन में खड़े सब लोग उसका हल्दी से पुता चेहरा देख कर हँसने लगे..
भैया ने कहा – शाबास मेरे शेर.. ये हुई ना कुच्छ बात.. फिर बोले – खाली हल्दी ही लगाई या कुच्छ और… भी…. हाहहहाहा….
मेरी मुस्कराहट देख कर भाभी भाँप गयी.. कि बात अब हल्दी लगाने तक ही नही रही.. वो मन ही मन खुश हो रही थीं…
घर में रिश्तेदारो की भीड़-भाड़ बढ़ती जा रही थी, सो अब सिर्फ़ आँखों -2 में ही प्यार पल रहा था.. जो दिलों में और ज़्यादा हलचल बढ़ती जा रही थी…
भैया की शादी बड़ी धूम-धाम से संपन्न हो गयी… घर में एक सदस्या की बढ़ोत्तरी हो गयी थी… और आज नयी भाभी कामिनी अपने प्रियतम की बाहों में थी…
उनको तो फर्स्ट फ्लोर पर एक सेपरेट कमरा सज़ा सजाया मिल गया था सुहागरात मनाने के लिए… लेकिन वाकी लोगों को अड्जस्ट करने के लिए… काफ़ी मुश्किलें थी…
सभी चाचाओं के घर भी फुल थे… हमारे घर में तो और ही बुरा हाल था, बारात से लौटे, हारे थके सभी लोग जिसको जहाँ जगह मिली घुस गये रज़ाई लेकर…
काम निपटाते-2, और सभी रिश्तेदारों के इंतेज़ाम करते -2 मे अकेला रह गया..
घर में सब जगह एक चक्कर लगा के देखा कि शायद कहीं जगह मिल जाए..
आख़िरकार हॉल में दीवार की तरफ एक आदमी के लायक जगह मुझे मिल ही गयी…
नींद से आखें मुन्दने लगी थी.. रज़ाई ढूँढने की कोशिश की, तो कहीं नही दिखी…
तो में वहीं लास्ट में अपने घुटने जोड़कर दीवार की तरफ मूह करके सो गया…
मेने ये भी जानने की कोशिश नही कि बगल में रज़ाई ओढ़े कौन सो रहा है..
इधर आँखों में नींद और उपर से ठंड, मेने आधी नींद में ही बगल में सोने वाले की रज़ाई थोड़ी सी अपनी तरफ खींची और उसकी तरफ करवट लेकर रज़ाई अपने उपर कर ली…
शांति बुआ ने, अपनी रज़ाई खींचती देख उन्होने पीच्चे पलट कर देखा तो मुझे गहरी नींद में सोता देख कर वो थोड़ा और पीछे हो गयी जिससे एक सिंगल टेंट की रज़ाई में हम दोनो का गुज़ारा चल सके…
इस चक्कर में उनके मांसल कूल्हे मेरी जांघों से सट गये… एक रज़ाई में दो शरीर सटने से गर्मी आ ही जाती है… तो हम दोनो की ठंड भी गायब हो गयी…
लेकिन बुआ की नींद उड़ चुकी थी.. और वो धीरे-2 अपने कूल्हे मेरी जांघों के उपर रगड़ने लगी,
मांसल कुल्हों के दबाब से मेरी टाँगें जो कुच्छ मूडी हुई थी वो भी सीधी हो गयी…
अब शांति बुआ की चौड़ी चकली गान्ड का दबाब मेरे लंड पर भी होने लगा था….कुच्छ तो गान्ड की गर्मी,
उपर से वो धीरे- 2 मेरे लंड के उपर नीचे हो रही थी…सो मेरा लंड नींद में भी अपनी औकात में आने लगा…
जब सपने में किसी के स्पर्श के एहसास से लॉडा खड़ा होकर पानी फेंक देता है… तो यहाँ तो ये सब साक्षात डबल धमाल चल रहा था…
जैसे-2 मेरा लंड पाजामे में उठता जा रहा था, बुआ उतनी ही अपनी गान्ड को और पीछे करके मेरे लंड पर रगड़ने लगी…
उसने ठीक अपनी गान्ड की दरार मेरे लंड की सीध में सेट करके अपनी गान्ड को मूव करने लगी…..
कई रातों से ठीक से ना सोने की वजह से मेरी नींद बहुत गहरी थी, मुझे दीन दुनिया की कोई खबर नही थी.. जिसका पूरा फ़ायदा बुआ उठा रही थी..
हॉल में शायद ही कोई होगा जो नींद में ना हो…
अब बुआ ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने एक चुचे पर रख लिया और उसे मेरे हाथ के साथ मसल्ने लगी..
उन्होने अपनी साड़ी को भी कमर तक चढ़ा लिया..और मेरे लंड की कडकनेस्स का अपनी पैंटी के उपर से ही भरपूर मज़ा लेने लगी…
बुआ की पैंटी गीली होने लगी थी, और वो बेहद गरम हो चुकी थी… उसे पक्का यकीन हो गया था कि अब मे नींद से उठ नही सकता..
बुआ ने पलट कर मेरी तरफ अपना मूह कर लिया… और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे पाजामे को घुटनो तक सरका दिया…
फ्रेंची में फनफनाता मेरा लंड उसको और उत्तेजित करने लगा, तो उन्होने उसे अपनी मुट्ठी में कस लिया…
मेरे लंड के आकार और उसकी अकड़ देख कर बुआ के मूह से सिसकी निकल गयी.. और मन ही मन फुसफुसाई… हइई…दैयाअ… कितना मस्त लंड है छोटू का… इसको चूत में लेने में कितना मज़ा आएगा…
उफफफफफ्फ़…. सोचकर ही मेरी चूत गीली हो गयी.., अगर ये मेरी चूत में जाए तो क्या होगा….? अहह…
इस सोच के साथ ही उसने हिम्मत भी कर डाली, और मेरे फ्रेंची को खिसका नीचे कर दिया…
अब मेरा नंगा सुडौल 8” का गरमा-गरम किसी रोड जैसा कड़क लंड, बुआ की मुट्ठी में क़ैद था, जिसे वो धीरे – 2 उपर नीचे करके मुठियाने लगी…
वो नीचे को खिसकी, और उसने मेरे लंड का चुम्मा ले लिया, फिर धीरे से चाट कर अपनी चूत को रगड़ने लगी….
वासना बुआ के सर पर सवार हो चुकी थी, सो उसने अपनी पैंटी को निकाल फेंका,
मुझे कंधे से धक्का देकर सीधा किया और रज़ाई ओढ़े ही ओढ़े, अपनी चौड़ी गान्ड लेकर मेरे उपर सवार हो गयी…
मेरे दोनो ओर अपने घुटने टिकाए उसने अपनी गीली रस से सराबोर गरम चूत को मेरे लंड पर सेट किया और उसके ऊपर बैठती चली गयी…
मेरा लंड शायद बुआ की चूत के हिसाब से ज़्यादा मोटा था.., क्योंकि उसे अंदर करते हुए उसे दर्द का अहसास हुआ और उसने अपने होंठ कस कर भींच लिए…!
धीरे-2 कर के उसने मेरे पूरे लंड को उसकी चूत ने निगल लिया, और फिर मेरे ऊपर पसर कर हांपने लगी….!
उसकी खरबूजे जैसी चुचियाँ मेरे चौड़े चक्ले सीने से दब कर ब्लाउज को फाडे डाल रही थी…
नीम बेहोशी जैसी नींद की हालत में, मुझे ये सब सपने में होता प्रतीत हो रहा था…
लेकिन जब लंड पर चूत की गर्मी और गीलापन महसूस होते ही मेरी नींद खुल गयी.. और मेने अपनी आँखे खोल कर देखा…
शांति बुआ मेरे सीने में अपने बड़े-2 मुलायम चुचों को दबाए अपना मुँह मेरे कंधे से सटाये पड़ी हाँफ रही थी…
पहले तो मे उसको पहचान ही नही पाया…, इसलिए मेने उसके दोनो कंधे पकड़ कर जैसे ही उठाया वो सकपका गयी.. और उसने फिर से अपना मुँह मेरे कंधे में छुपा लिया…
मेने चोंक कर बुआ से कहा – शांति बुआ आप ! और आप ये क्या कर रही हो..? हटो मेरे ऊपर से.. कोई देख लेगा तो क्या कहेगा…?
बुआ – प्लीज़ छोटू ! मुझे माफ़ कर्दे…, यार ! तेरे इस लंड की गर्मी मेरे से सहन नही हुई… अब थोड़ी देर और रुक जा.. मेरा राजा बेटा…!
मे – पर बुआ ! क्या ये सही है..? आप मेरी माँ समान हो….!
बुआ – अब सही ग़लत सोचने का समय निकल चुका है.. बेटा.. अब अपनी बुआ को ठंडी हो लेने दे, वरना ये कम्बख़्त मेरी चूत मुझे सोने नही देगी…
मे चुप रह गया.., कुछ देर बाद बुआ ने अपना काम शुरू कर दिया और वो अपनी मस्त गद्देदार गान्ड को मेरे लंड पर आगे पीछे करने लगी..
वो अपनी गान्ड को ज़्यादा नही उछाल पा रही थी क्योंकि अगर ग़लती से भी कोई जाग गया, और रज़ाई के अंदर भूकंप आता देख लिया तो बुआ के साथ-2 मेरी भी पूरी तरह भॅड पिट जानी थी..!
बाबूजी अपनी बेहन की चुदाई कैसे बर्दास्त करते वो भी अपने बेटे से…., तो पता लगते ही, वो गान्ड कुटाई होनी थी… कि भगवान ही जाने….!
इसी डर के चलते, बुआ की लय थोड़ी मध्यम ही रही, मे तो कोई कोशिश कर ही नही सकता था…!
तो जैसे तैसे कर के बुआ ने अपना पानी निकाल ही लिया.. और चूत में मेरा लंड घुसाए हुए वो मेरे ऊपर लेट कर हाँफने लगी…
मे – अब क्या हुआ बुआ ? रुक क्यों गयी..?
अरे छोटू ! मेरा तो हो गया…वो फुसफुसा कर बोली…
ये सुनते ही मेरी झान्टे सुलग गयीं… इसकी माँ की चूत मारु…, भेन्चोद इसका हो गया तो ये खुश और मेरा क्या…?
भेन्चोद यहाँ लंड फटने की कगार पर है, और ये भोसड़ी की अपनी चूत झाड के फारिग हो गयी….!
सारा डर रखा ताक पर, लपक कर मेने उसे बाजू में लिटाया और उसको अपनी तरफ गान्ड घुमाने को कहा…
वो ना नुकुर करने लगी… मुझे गुस्सा आने लगा.. मेने कहा – बुआ अब ये ठीक नही होगा, चुप चाप उधर करवट ले लो वरना में सबको जगा के बताता हूँ..
उसकी गान्ड फट गयी, और झट से अपनी मोटी गुद गुदि गान्ड मेरी ओर करदी.. मेने थोड़ा सा अपना सर पीछे को किया, टाँगों को उसकी तरफ कर के उसकी ऊपर की टाँग को उसके पेट से लगाया..
मेरे और बुआ के सर के बीच अब 45 डिग्री का आंगल था, उसकी चूत मेरे लंड के ठीक सामने खुली पड़ी थी…
मेने घचक से पूरा लंड एक ही झटके में पेल दिया… उसके मुँह से एक दबी दबी सी कराह… निकल गयी..
बुआ की चुचियों को ब्लाउज के उपर से मसल्ते हुए मे ढका-धक धक्के मारने लगा…
मेरे धक्कों की स्पीड इतनी ज़्यादा थी कि उसकी हाल ही झड़ी चूत सूखने लग गयी.. और घर्षण से उसमें जलन होने लगी…
बुआ गिडगिडाते हुए बोली – छोटू धीरे कर बेटा… मेरी चूत में जलन हो रही है..
मे क्या करूँ तो.. आपने मेरे लॉड को क्यों जगाया.. अब झेलो…
थोड़ी देर बाद उसकी चूत फिर से पनियाने लग गयी और वो भी मज़े ले लेकर मेरे धक्कों पर अपनी गान्ड पीछे धकेल - धकेल कर चुदाई का मज़ा लेने लगी…
आधे घंटे में बुआ दो बार पानी छोड़ गयी, तब जाकर मेने उसकी पोखर को अपने गाढ़े पानी से भरा…
मेने अपना लंड बुआ की चूत से निकाला, पच की आवाज़ के साथ वो बाहर आ गया, उसके पेटिकोट से अपने लंड को पोंच्छ कर करवट लेकर मे सो गया………………
अगली सुबह तोड़ा देर से उठा, आज नयी दुल्हन को अपने देवर को गोद में बिठाने की रसम थी… रामा दीदी ने ही मुझे झकझोर कर उठाया…
अलसाया सा मे अपनी आँखों को मिचमिचाते हुए उठा और झल्लाकर बोला – क्या है..? क्यों मुझे सोने नही देती…
वो- अरे सब तेरा इंतेजार कर रहे हैं… आज नयी भाभी तुझे अपनी गोद में बिठा कर लाड करने वाली हैं…
मेरी उठने की कतयि इच्छा नही थी, लेकिन नयी भाभी की गोद में बैठने के नाम से ही मेरे अंदर गुद गुदि सी पैदा हो गयी…,
मेरा सारा आलस्य भाग खड़ा हुआ, और झटपट उठके बाथरूम की तरफ भागा…
रामा दीदी खिल खिलाकर हँसते हुए बड़बड़ाई… देखो नयी भाभी की गोद में बैठने के नाम से ही कैसी नींद भाग गयी….हहेहहे…
मे 1 घंटे में नहा धोकर फ्रेश होकर एक लाल सुर्ख रंग की टाइट टीशर्ट और ब्लू जीन्स पहन कर आँगन में पहुँचा…
वहाँ सब रसम के लिए मेरा इंतेज़ार कर रहे थे… सबकी नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी, तो टिकी ही रह गयी…
निशा तो मानो किसी सम्मोहन से बँधी.. मुझे बड़ी ही प्यारी नज़रों से देखे जारही थी…
टाइट कसी हुई टीशर्ट में मेरी कसरती बॉडी के सारे कट्स दिखाई दे रहे थे.. सीना एकदम बाहर.. उसके नीचे के पॅक्स… बाजुओं की मछलिया…
मेने आज एक स्पेशल इंपोर्टेड पर्फ्यूम भी लगाया हुआ था… वैसे इन सब की मुझे कभी आदत नही थी…
आँगन में घर के बड़े लोगों को छोड़, वाकई सभी लोग मौजूद थे..
पूरे आँगन में एक कालीन का बिच्छवान डाला हुआ था.. सेंटर में दो मोटे-2 गद्दे जिन पर एक साफ-सुथरी चादर,
जिसके ऊपर कामिनी भाभी.. पालती मारे सुर्ख लाल जोड़े में अपनी नज़रें झुकाए बैठी थी...
आख़िर सगाई का समय आ गया.. म्ला अपने सगे संबंधियों समेत हमारे दवाजे पर आ चुके थे…
गाओं की रीति-रिवाजों और घर मोहल्ले की औरतों के मंगाळाचरण के बीच सगाई की रसम पूरी हुई… उसके बाद हमने सारे गाओं को दावत दी…
लगान पत्रिका के हिसाब से 3 दिन पहले हल्दी की रस्म थी…पूरे घर, आँगन में चारों तरफ खुशी भरा माहौल व्याप्त था…
पूरे आस-पास के इलाक़े में इस शादी को लेकर चर्चाएँ थीं, हो भी क्यों ना… आख़िर तो एक एमएलए की लड़की और डीएसपी की शादी जो थी…
आज हल्दी की रस्म होनी थी… वार के नहाने से पहले उसे हल्दी लगाई जाती थी, उसके कुच्छ घंटे के बाद बेसन से उबटन करके नहलाया जाता था,
नहाने तक के सारे काम वार खुद नही करता था, उसकी भाभी, चाची, बहनें या फिर बुआएं मिलकर करती थी…
आँगन में मनझले भैया.. मात्र अंडरवेर के उपर एक लूँगी लपेट कर एक लकड़ी के पटरे पर बैठ गये..
एक बर्तन में हल्दी और चंदन का लेप घोला हुआ था.. पंडित जी ने मंत्रोचारण करके विधि शुरू कराई.. बहनों और बूआओं ने भैया के शरीर पर हल्दी का लेप लगा कर शुरुआत की..
उसके बाद चाचियों ने हल्दी लगाई… उसके बाद भाभी का नंबर आया…
मे भैया के पीछे खड़ा कौतूहल वश ये सब देख रहा था… भाभी मज़ाक करते-2 भैया के हल्दी लगा रही थी… कभी-2 उनके गालों पर हल्दी लगते-2 चॉंट लेती.. तो भैया के मूह से आउच.. करके मीठी कराह निकल जाती…
मे सब इन्ही चुहल बाज़ियों का आनंद ले रहा था सभी एक दूसरे से हसी-ठिठोली कर रहे थे…
अचानक निशा ने हल्दी के बर्तन से हल्दी अपने हाथों में लेकर छुपा ली.. किसी का ध्यान उसकी तरफ नही था…
वो चुपके से मेरे करीब आई और अपने हल्दी भरे हाथ मेरे गालों पर रगड़ दिए…
जैसे ही मुझे पता लगा.. और मेने उसके हाथ पकड़ने की कोशिश की… खिल-खिलाती हुई वो मेरे से दूर भाग गयी…
सबकी नज़रें मेरी तरफ मूड गयी… सब लोग हँसते-2 लॉट पॉट हो रहे थे…
शांति बुआ ने मेरी गैरत को ललकारा… हाए रे लल्ला… कैसा मर्द है तू.. साली तुझे हल्दी लगा गयी… और तू कुच्छ नही कर पाया… तुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए…
तो मेने भी अपने हाथों में हल्दी ली और उसकी तरफ बढ़ने लगा… वो मेरे से बचने के लिए इधर से उधर भागने लगी…
मनझले भैया ने मुझे उकसाया…. शाबास छोटू… छोड़ना मत उसको… अगर बच गयी… तो समझ लेना हमारी नाक कट जाएगी…
मे उसके पीछे लपका… बचने के लिए वो इधर-से-उधर भागने लगी.. पूरे आँगन में.. लेकिन मेने उसका पीछा नही छोड़ा…..
अंत में उसे कोई रास्ता नही सूझा तो वो झीने पर चढ़ गयी.. और उपर के कमरे में घुस गयी…
लेकिन इससे पहले कि वो उसका दरवाजा अंदर से बंद कर पाती.. मेने दरवाजे को धक्का देकर खोल दिया…………!
अब वो कहीं भाग नही सकती थी.. सो कमरे के एक कोने में जाकर खड़ी हो गयी… गर्दन नीची किए, सिमटी सी सरमाई सी…होठों पर एक मीठी सी मुस्कान लिए…
मे धीरे – 2 कदम बढ़ाता हुआ उसके नज़दीक जाने लगा, ना जाने क्यों…? जैसे – 2 मेरे कदम उसकी तरफ बढ़ रहे थे, पूरे शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना पैदा होने लगी…
जिसमें वासना लेशमात्र भी नही थी, मेरे शरीर के सारे रौंय खड़े होने लगे…शरीर में अजीब सी कंपकंपाहाट सी होने लगी.
अभी में उससे कुच्छ कदम दूर ही था, कि उसके लरजते होंठ हिले…काँपती सी आवाज़ में बोली – प्लीज़ अंकुश जी, मुझे जाने दो…
मेने कदम आगे बढ़ाते हुए कहा – वार करके हथियार डालना ठीक नही है..जब तक अपने जैसा फेस आपका नही हो जाता, यहाँ से हिलना भी संभव नही होगा.
अब ये आपके उपर निर्भर करता है, कि प्यार से होगा या फिर…..मेने जान बूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी और आगे बढ़ा…
वो खिल-खिलाती हुई फ़ौरन ज़मीन पर उकड़ू बैठ गयी, और अपने चेहरे को घुटनों में देकर छिपाने की कोशिश करने लगी…!
मे उसके सर पर खड़ा होकर बोला – बचना बेकार है निशा जी… आपने सोए हुए शेर को जगा दिया है… अच्छा होगा प्यार से लगवा लो… वरना मुझे जबर्जस्ती करना भी आता है…
वो – प्लीज़ अंकुश जी मत करिए ना… मान जाइए प्लीज़…!
मे – शुरुआत तो आपने ही की है… अब ख़तम तो मुझे करना ही पड़ेगा ना… ये कहकर मेने अपने हाथ उसकी बगलों में फँसा दिए…
उसने अपने घुटने शरीर से और ज़ोर्से सटा लिए और ज़्यादा सर झुका कर उनके बीच कर लिया…!
अपने शरीर को उसने ऐसा कस लिया, कि मेरे हाथ उसके अंदर घुस नही पा रहे थे..
तो मेने उसके बगलों में गुदगुदी कर दी.. वो खिल-खिलाकर अपने बदन को इधर से उधर लहराने लगी..
इतने में ही मुझे मौका मिल गया और मेरे हल्दी भरे हाथों ने उसके दोनो गालों को रगड़ दिया…
उसने हथियार डाल दिए और खड़ी हो गयी.. मेरे हाथ अभी भी उसके गालों पर ही थे.. उसकी पीठ मेरे पेट और सीने से सटी हुई थी….!
वो अब भी मेरे हाथों को अपने गालों से हटाने की कोशिश में लगी थी, लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ…
मे उसके गाल मलने में लीन हो गया…आगे को झुक कर उसने अपने चेहरे को नीचे करने की कोशिश की जिससे उसकी अन्छुई गान्ड पीछे को होकर मेरी जांघों से सट गयी…
उसकी मक्खन जैसी मुलायम गान्ड मुझे और ज़्यादा उससे चिपकने पर मजबूर करने लगी…दोनो के शरीर में एक कंपकपि सी हो रही थी.
जब काफ़ी देर तक ये चलता रहा, तो आख़िर में उसने अपने हथियार डाल दिए और बोली –
अब तो छोड़ दीजिए प्लीज़… अब तो आपके मन की हो गयी ना… वो फुसफुसाई…
मे – मन की आप कहाँ होने दे रही हैं निशा जी !… मेने उसके ठीक कान के पास अपने होठ लेजा कर कहा…
वो – और कितना रगडेन्गे…? पूरा तो रगड़ दिया…
मे – लेकिन आपने प्यार से तो रगड़ने नही दिया ना !... ज़बरदस्ती में मज़ा नही आया !
वो – प्यार से और कैसे होता है…?
मेने उसको अपनी तरफ घुमाया, और अपने हल्दी लगे गाल जो उसने रंग दिए थे.. उनको उसके गालों से रगड़ने लगा..
मेरे खुरदुरे शेव किए हुए गालों की रगड़ अपने गालों पर महसूस करके
निशा की आँखें बंद हो गयी.. और उसकी साँसें भारी होने लगी…
छोड़िए ना प्लीज़… कोई आजाएगा… वो काँपते से स्वर में बोली…
तो आने दो… ये कह कर मेने अपने होठ उसके होठों पर रख दिए, और एक प्यार भरा चुंबन लेकर उसको छोड़ दिया….
वो शर्मीली स्माइल करती हुई वहाँ से भाग गयी.. और कमरे के दरवाजे से निकल कर साइड में दीवार से पीठ टिका कर लंबी-2 साँसें लेने लगी…
उसके पीछे-2 में भी बाहर आया… और उसको वहाँ खड़ा देख कर मेने अपने दोनो हाथ उसके सर के आजू-बाजू से निकालकर दीवार पर टिका कर बोला…
निशा जी आप बहुत सुंदर हो… ! मे आपको पसंद करने लगा हूँ…!
उसने कोई जबाब नही दिया.. बस एक बार उसके होंठ लरजे…और फिर मेरे बाजू के नीचे से सर निकल कर किसी चाचल हिरनी की तरह झीने से भागती हुई नीचे चली गयी…
मे मन ही मन मुस्करा उठा, और धीरे-2 नीचे की तरफ बढ़ गया…
आँगन में खड़े सब लोग उसका हल्दी से पुता चेहरा देख कर हँसने लगे..
भैया ने कहा – शाबास मेरे शेर.. ये हुई ना कुच्छ बात.. फिर बोले – खाली हल्दी ही लगाई या कुच्छ और… भी…. हाहहहाहा….
मेरी मुस्कराहट देख कर भाभी भाँप गयी.. कि बात अब हल्दी लगाने तक ही नही रही.. वो मन ही मन खुश हो रही थीं…
घर में रिश्तेदारो की भीड़-भाड़ बढ़ती जा रही थी, सो अब सिर्फ़ आँखों -2 में ही प्यार पल रहा था.. जो दिलों में और ज़्यादा हलचल बढ़ती जा रही थी…
भैया की शादी बड़ी धूम-धाम से संपन्न हो गयी… घर में एक सदस्या की बढ़ोत्तरी हो गयी थी… और आज नयी भाभी कामिनी अपने प्रियतम की बाहों में थी…
उनको तो फर्स्ट फ्लोर पर एक सेपरेट कमरा सज़ा सजाया मिल गया था सुहागरात मनाने के लिए… लेकिन वाकी लोगों को अड्जस्ट करने के लिए… काफ़ी मुश्किलें थी…
सभी चाचाओं के घर भी फुल थे… हमारे घर में तो और ही बुरा हाल था, बारात से लौटे, हारे थके सभी लोग जिसको जहाँ जगह मिली घुस गये रज़ाई लेकर…
काम निपटाते-2, और सभी रिश्तेदारों के इंतेज़ाम करते -2 मे अकेला रह गया..
घर में सब जगह एक चक्कर लगा के देखा कि शायद कहीं जगह मिल जाए..
आख़िरकार हॉल में दीवार की तरफ एक आदमी के लायक जगह मुझे मिल ही गयी…
नींद से आखें मुन्दने लगी थी.. रज़ाई ढूँढने की कोशिश की, तो कहीं नही दिखी…
तो में वहीं लास्ट में अपने घुटने जोड़कर दीवार की तरफ मूह करके सो गया…
मेने ये भी जानने की कोशिश नही कि बगल में रज़ाई ओढ़े कौन सो रहा है..
इधर आँखों में नींद और उपर से ठंड, मेने आधी नींद में ही बगल में सोने वाले की रज़ाई थोड़ी सी अपनी तरफ खींची और उसकी तरफ करवट लेकर रज़ाई अपने उपर कर ली…
शांति बुआ ने, अपनी रज़ाई खींचती देख उन्होने पीच्चे पलट कर देखा तो मुझे गहरी नींद में सोता देख कर वो थोड़ा और पीछे हो गयी जिससे एक सिंगल टेंट की रज़ाई में हम दोनो का गुज़ारा चल सके…
इस चक्कर में उनके मांसल कूल्हे मेरी जांघों से सट गये… एक रज़ाई में दो शरीर सटने से गर्मी आ ही जाती है… तो हम दोनो की ठंड भी गायब हो गयी…
लेकिन बुआ की नींद उड़ चुकी थी.. और वो धीरे-2 अपने कूल्हे मेरी जांघों के उपर रगड़ने लगी,
मांसल कुल्हों के दबाब से मेरी टाँगें जो कुच्छ मूडी हुई थी वो भी सीधी हो गयी…
अब शांति बुआ की चौड़ी चकली गान्ड का दबाब मेरे लंड पर भी होने लगा था….कुच्छ तो गान्ड की गर्मी,
उपर से वो धीरे- 2 मेरे लंड के उपर नीचे हो रही थी…सो मेरा लंड नींद में भी अपनी औकात में आने लगा…
जब सपने में किसी के स्पर्श के एहसास से लॉडा खड़ा होकर पानी फेंक देता है… तो यहाँ तो ये सब साक्षात डबल धमाल चल रहा था…
जैसे-2 मेरा लंड पाजामे में उठता जा रहा था, बुआ उतनी ही अपनी गान्ड को और पीछे करके मेरे लंड पर रगड़ने लगी…
उसने ठीक अपनी गान्ड की दरार मेरे लंड की सीध में सेट करके अपनी गान्ड को मूव करने लगी…..
कई रातों से ठीक से ना सोने की वजह से मेरी नींद बहुत गहरी थी, मुझे दीन दुनिया की कोई खबर नही थी.. जिसका पूरा फ़ायदा बुआ उठा रही थी..
हॉल में शायद ही कोई होगा जो नींद में ना हो…
अब बुआ ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने एक चुचे पर रख लिया और उसे मेरे हाथ के साथ मसल्ने लगी..
उन्होने अपनी साड़ी को भी कमर तक चढ़ा लिया..और मेरे लंड की कडकनेस्स का अपनी पैंटी के उपर से ही भरपूर मज़ा लेने लगी…
बुआ की पैंटी गीली होने लगी थी, और वो बेहद गरम हो चुकी थी… उसे पक्का यकीन हो गया था कि अब मे नींद से उठ नही सकता..
बुआ ने पलट कर मेरी तरफ अपना मूह कर लिया… और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे पाजामे को घुटनो तक सरका दिया…
फ्रेंची में फनफनाता मेरा लंड उसको और उत्तेजित करने लगा, तो उन्होने उसे अपनी मुट्ठी में कस लिया…
मेरे लंड के आकार और उसकी अकड़ देख कर बुआ के मूह से सिसकी निकल गयी.. और मन ही मन फुसफुसाई… हइई…दैयाअ… कितना मस्त लंड है छोटू का… इसको चूत में लेने में कितना मज़ा आएगा…
उफफफफफ्फ़…. सोचकर ही मेरी चूत गीली हो गयी.., अगर ये मेरी चूत में जाए तो क्या होगा….? अहह…
इस सोच के साथ ही उसने हिम्मत भी कर डाली, और मेरे फ्रेंची को खिसका नीचे कर दिया…
अब मेरा नंगा सुडौल 8” का गरमा-गरम किसी रोड जैसा कड़क लंड, बुआ की मुट्ठी में क़ैद था, जिसे वो धीरे – 2 उपर नीचे करके मुठियाने लगी…
वो नीचे को खिसकी, और उसने मेरे लंड का चुम्मा ले लिया, फिर धीरे से चाट कर अपनी चूत को रगड़ने लगी….
वासना बुआ के सर पर सवार हो चुकी थी, सो उसने अपनी पैंटी को निकाल फेंका,
मुझे कंधे से धक्का देकर सीधा किया और रज़ाई ओढ़े ही ओढ़े, अपनी चौड़ी गान्ड लेकर मेरे उपर सवार हो गयी…
मेरे दोनो ओर अपने घुटने टिकाए उसने अपनी गीली रस से सराबोर गरम चूत को मेरे लंड पर सेट किया और उसके ऊपर बैठती चली गयी…
मेरा लंड शायद बुआ की चूत के हिसाब से ज़्यादा मोटा था.., क्योंकि उसे अंदर करते हुए उसे दर्द का अहसास हुआ और उसने अपने होंठ कस कर भींच लिए…!
धीरे-2 कर के उसने मेरे पूरे लंड को उसकी चूत ने निगल लिया, और फिर मेरे ऊपर पसर कर हांपने लगी….!
उसकी खरबूजे जैसी चुचियाँ मेरे चौड़े चक्ले सीने से दब कर ब्लाउज को फाडे डाल रही थी…
नीम बेहोशी जैसी नींद की हालत में, मुझे ये सब सपने में होता प्रतीत हो रहा था…
लेकिन जब लंड पर चूत की गर्मी और गीलापन महसूस होते ही मेरी नींद खुल गयी.. और मेने अपनी आँखे खोल कर देखा…
शांति बुआ मेरे सीने में अपने बड़े-2 मुलायम चुचों को दबाए अपना मुँह मेरे कंधे से सटाये पड़ी हाँफ रही थी…
पहले तो मे उसको पहचान ही नही पाया…, इसलिए मेने उसके दोनो कंधे पकड़ कर जैसे ही उठाया वो सकपका गयी.. और उसने फिर से अपना मुँह मेरे कंधे में छुपा लिया…
मेने चोंक कर बुआ से कहा – शांति बुआ आप ! और आप ये क्या कर रही हो..? हटो मेरे ऊपर से.. कोई देख लेगा तो क्या कहेगा…?
बुआ – प्लीज़ छोटू ! मुझे माफ़ कर्दे…, यार ! तेरे इस लंड की गर्मी मेरे से सहन नही हुई… अब थोड़ी देर और रुक जा.. मेरा राजा बेटा…!
मे – पर बुआ ! क्या ये सही है..? आप मेरी माँ समान हो….!
बुआ – अब सही ग़लत सोचने का समय निकल चुका है.. बेटा.. अब अपनी बुआ को ठंडी हो लेने दे, वरना ये कम्बख़्त मेरी चूत मुझे सोने नही देगी…
मे चुप रह गया.., कुछ देर बाद बुआ ने अपना काम शुरू कर दिया और वो अपनी मस्त गद्देदार गान्ड को मेरे लंड पर आगे पीछे करने लगी..
वो अपनी गान्ड को ज़्यादा नही उछाल पा रही थी क्योंकि अगर ग़लती से भी कोई जाग गया, और रज़ाई के अंदर भूकंप आता देख लिया तो बुआ के साथ-2 मेरी भी पूरी तरह भॅड पिट जानी थी..!
बाबूजी अपनी बेहन की चुदाई कैसे बर्दास्त करते वो भी अपने बेटे से…., तो पता लगते ही, वो गान्ड कुटाई होनी थी… कि भगवान ही जाने….!
इसी डर के चलते, बुआ की लय थोड़ी मध्यम ही रही, मे तो कोई कोशिश कर ही नही सकता था…!
तो जैसे तैसे कर के बुआ ने अपना पानी निकाल ही लिया.. और चूत में मेरा लंड घुसाए हुए वो मेरे ऊपर लेट कर हाँफने लगी…
मे – अब क्या हुआ बुआ ? रुक क्यों गयी..?
अरे छोटू ! मेरा तो हो गया…वो फुसफुसा कर बोली…
ये सुनते ही मेरी झान्टे सुलग गयीं… इसकी माँ की चूत मारु…, भेन्चोद इसका हो गया तो ये खुश और मेरा क्या…?
भेन्चोद यहाँ लंड फटने की कगार पर है, और ये भोसड़ी की अपनी चूत झाड के फारिग हो गयी….!
सारा डर रखा ताक पर, लपक कर मेने उसे बाजू में लिटाया और उसको अपनी तरफ गान्ड घुमाने को कहा…
वो ना नुकुर करने लगी… मुझे गुस्सा आने लगा.. मेने कहा – बुआ अब ये ठीक नही होगा, चुप चाप उधर करवट ले लो वरना में सबको जगा के बताता हूँ..
उसकी गान्ड फट गयी, और झट से अपनी मोटी गुद गुदि गान्ड मेरी ओर करदी.. मेने थोड़ा सा अपना सर पीछे को किया, टाँगों को उसकी तरफ कर के उसकी ऊपर की टाँग को उसके पेट से लगाया..
मेरे और बुआ के सर के बीच अब 45 डिग्री का आंगल था, उसकी चूत मेरे लंड के ठीक सामने खुली पड़ी थी…
मेने घचक से पूरा लंड एक ही झटके में पेल दिया… उसके मुँह से एक दबी दबी सी कराह… निकल गयी..
बुआ की चुचियों को ब्लाउज के उपर से मसल्ते हुए मे ढका-धक धक्के मारने लगा…
मेरे धक्कों की स्पीड इतनी ज़्यादा थी कि उसकी हाल ही झड़ी चूत सूखने लग गयी.. और घर्षण से उसमें जलन होने लगी…
बुआ गिडगिडाते हुए बोली – छोटू धीरे कर बेटा… मेरी चूत में जलन हो रही है..
मे क्या करूँ तो.. आपने मेरे लॉड को क्यों जगाया.. अब झेलो…
थोड़ी देर बाद उसकी चूत फिर से पनियाने लग गयी और वो भी मज़े ले लेकर मेरे धक्कों पर अपनी गान्ड पीछे धकेल - धकेल कर चुदाई का मज़ा लेने लगी…
आधे घंटे में बुआ दो बार पानी छोड़ गयी, तब जाकर मेने उसकी पोखर को अपने गाढ़े पानी से भरा…
मेने अपना लंड बुआ की चूत से निकाला, पच की आवाज़ के साथ वो बाहर आ गया, उसके पेटिकोट से अपने लंड को पोंच्छ कर करवट लेकर मे सो गया………………
अगली सुबह तोड़ा देर से उठा, आज नयी दुल्हन को अपने देवर को गोद में बिठाने की रसम थी… रामा दीदी ने ही मुझे झकझोर कर उठाया…
अलसाया सा मे अपनी आँखों को मिचमिचाते हुए उठा और झल्लाकर बोला – क्या है..? क्यों मुझे सोने नही देती…
वो- अरे सब तेरा इंतेजार कर रहे हैं… आज नयी भाभी तुझे अपनी गोद में बिठा कर लाड करने वाली हैं…
मेरी उठने की कतयि इच्छा नही थी, लेकिन नयी भाभी की गोद में बैठने के नाम से ही मेरे अंदर गुद गुदि सी पैदा हो गयी…,
मेरा सारा आलस्य भाग खड़ा हुआ, और झटपट उठके बाथरूम की तरफ भागा…
रामा दीदी खिल खिलाकर हँसते हुए बड़बड़ाई… देखो नयी भाभी की गोद में बैठने के नाम से ही कैसी नींद भाग गयी….हहेहहे…
मे 1 घंटे में नहा धोकर फ्रेश होकर एक लाल सुर्ख रंग की टाइट टीशर्ट और ब्लू जीन्स पहन कर आँगन में पहुँचा…
वहाँ सब रसम के लिए मेरा इंतेज़ार कर रहे थे… सबकी नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी, तो टिकी ही रह गयी…
निशा तो मानो किसी सम्मोहन से बँधी.. मुझे बड़ी ही प्यारी नज़रों से देखे जारही थी…
टाइट कसी हुई टीशर्ट में मेरी कसरती बॉडी के सारे कट्स दिखाई दे रहे थे.. सीना एकदम बाहर.. उसके नीचे के पॅक्स… बाजुओं की मछलिया…
मेने आज एक स्पेशल इंपोर्टेड पर्फ्यूम भी लगाया हुआ था… वैसे इन सब की मुझे कभी आदत नही थी…
आँगन में घर के बड़े लोगों को छोड़, वाकई सभी लोग मौजूद थे..
पूरे आँगन में एक कालीन का बिच्छवान डाला हुआ था.. सेंटर में दो मोटे-2 गद्दे जिन पर एक साफ-सुथरी चादर,
जिसके ऊपर कामिनी भाभी.. पालती मारे सुर्ख लाल जोड़े में अपनी नज़रें झुकाए बैठी थी...