Update 16
अब मेने अपने एक हाथ को उनकी कमर की साइड से नीचे ले जाकर उनकी चूत को सहला दिया और अपनी दो उंगलियाँ चूत के अंदर कर के उसे चोदने लगा…
चूत की सुरसूराहट में चाची अपनी गान्ड का दर्द भूल गयी… और सिसकियाँ…भरने लगी…
मौका देख कर मेने एक और धक्का मार दिया और मेरा पूरा लंड गान्ड की सुरंग में खो गया…
वो दर्द से कराह उठी.. तकिये में मुँह देकर बेडशीट को मुत्ठियों में कस लिया…
लेकिन मेने अपनी उंगलियों से उनकी चूत चोदना जारी रखा.. और धीरे-2 कर के गान्ड में लंड अंदर – बाहर करने लगा…
चाची के दोनो छेदो में सुरसुरी बढ़ने लगी और वो अब मस्ती से आकर गान्ड मरवाने लगी…
चूत से उंगलियाँ बाहर निकाल कर उनकी गान्ड पर थपकी देते हुए धक्के लगाने में मुझे असीम आनंद आ रहा था….
चाची भी भरपूर मज़ा लेते हुए अब अपनी गान्ड को मेरे लंड पर पटक रही थी,
जब उनकी मोटी गधि जैसी गान्ड मेरी जांघों से टकराती, तो एक मस्त ठप्प जैसी आवाज़ निकलती… मानो कोई टेबल पर थाप दे रहा हो…
10 मिनिट तक उनकी गान्ड मारने के बाद मेरा पानी उनकी गान्ड में भर गया.. और हम दोनो ही पस्त होकर बिस्तर पर लेट गये…
5 मिनिट के बाद मेने चाची की चुचि को सहलाते हुए पूछा – चाची ! गान्ड मारने में मज़ा आया कि नही…
वो – शुरू में तो लगा कि मेरी गान्ड फट गयी.. बहुत दर्द हुआ .. लेकिन बाद में मज़ा भी खूब आया… लेकिन आहह…. अब फिर से दर्द हो रहा है…माआ…
पर तुम चिंता मत करो , कुछ देर में ठीक हो जाएगा… तुम बताओ.. तुम्हें मज़ा आया या नही…
मे – मुझे तो बहुत मज़ा आया… लेकिन लगता है चाची.. ये तरीक़ा सही नही है..
वो तो आपकी गान्ड ऐसी मस्त है कि मे अपने आप को रोक नही पाया वरना कभी नही मारता…
वो – कोई बात नही… मेरे राजा… तुम्हारे लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है.. ये निगोडी गान्ड क्या चीज़ है…
चाची अब खुल कर गान्ड, लंड, चूत बोलने लगी थी…
मे अपने कपड़े पहन कर घर आया, आज अपनी जान निशा को जो चोदने जाना था…
आकर फ्रेश हुआ… खाना खाया और उसके गाओं जाने की तैयारी में जुट गया…
निशा का मान नही था जाने का, लेकिन भाभी का आदेश था, जाना तो पड़ेगा ही..
भाभी का गाओं कोई 30-35 किमी ही दूर था हमारे यहाँ से, सिंगल रोड था.. पूराना सा.. लेकिन वहाँ ज़्यादा नही चलते थे..
रोड खराब होने के कारण थोड़ा जल्दी निकलना था जिससे दिन के उजाले में ही पहुँच जायें तो ज़्यादा अच्छा था.. वैसे तो ज़्यादा से ज़्यादा 1 घंटा ही लगना था..
हम दोनो को निकलते-2 सबसे मिलते मिलते.. 5 बज गये.. ठंडी के दिन थे.. 5 बजे से ही दिन ढालने लगता था…
एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार करने के बाद भी निशा मेरे साथ खुल नही पा रही थी… बाइक पर भी वो मुझसे दूरी बनाए हुए बैठी थी…
मेने गाओं निकलते ही कहा – निशा इतना दूर क्यों बैठी हो जैसे मे कोई पराया हूँ..
वो – ऐसा क्यों बोलते हो जानू…! बस मुझे शर्म आती है… और कोई बात नही..
मे – मुझसे अब कैसी शर्म…? अब तो हम दोनो प्रेमी हैं ना !
वो – फिर भी मुझे शर्म आती है… , मे चुप हो गया, और गाड़ी दौड़ा दी…
अचानक से सड़क में एक गड्ढा आया, मेने एकदम से ब्रेक लगाए… बुलेट की पिच्छली सीट थोड़ी उँची सी होती है.. ड्राइवर सीट से…
सो ब्रेक लगते ही वो सरकती हुई मेरी पीठ से चिपक गयी.. और डर के मारे मेरे सीने में अपनी बाहें लपेट कर चीख पड़ी…
मे – क्या हुआ डार्लिंग ?
वो – आराम से नही चला सकते..?
मे – आराम से चलाने का समय नही है मेरी जान…! रोड खराब है… लेट हो गये तो रात में इन खद्डो में वैसे भी मुश्किल होगी.. तुम ऐसे ही बैठी रहो ना.. क्या दिक्कत है..
वो हूंम्म.. कर के मुझे कस के पकड़ कर बैठ गयी… मे बीच-2 मे ब्रेक मार देता तो वो और ज़्यादा चिपक जाती…
उसके 32” के ठोस उरोज मेरी पीठ पर दब रहे थे… कुछ देर में उसकी शर्म कम हो गयी और उसने मेरे कंधे से अपना गाल सटा लिया, फिर मेरे गाल को चूमकर बोली – अब खुश..!
मे – तुम्हारा साथ तो मेरे लिए हर हाल में खुशी ही देता है.. जानेमन… तुम खुश हो कि नही.. या अब भी शर्म आ रही है..?
वो – आप मुझे बिल्कुल बेशर्म बना दोगे…
मे – अरे यार ! ऐसे बैठने से भी कोई बेशर्म हो जाता है क्या..? मेने उसे और थोड़ा खोलने के लिए कहा…
निशा मेरे सीने को पकड़ने से मुझे ड्राइविंग में थोड़ा प्राब्लम होती है.. तुम ना मेरी कमर को पकड़ लो…
वो – आप जहाँ कहोगे वहीं पकड़ लूँगी जानू.. और ये कह कर उसने मेरी जांघों पर हाथ रख लिए…
मेने कहा – थोड़ा अंदर की साइड में पाकड़ो, नही तो तुम्हें सपोर्ट नही मिलेगा…
वो – धत्त… अब आप मुझे बिल्कुल बेशर्म करना चाहते हैं… फिर कुछ सोच कर.. अच्छा चलिए आपकी खुशी के लिए ये भी सही.. और उसने अपने हाथ मेरी जाँघो के जोड़ पर रख लिए…
गाड़ी के जंप के कारण उसके हाथ भी इधर-उधर होते.. तो उसकी उंगलिया मेरे लंड को छू जाती … आहह… ये हल्का सा टच ही मेरे लिए बड़ा सुखद लग रहा था…
वो भी अब अपनी शर्म से निकलती जा रही थी और अपनी उंगलियों को मेरे लंड के ऊपर फिरने लगी…
पीछे से वो और अच्छे से चिपक गयी, अब उसकी जांघें मेरी जगहों से सात चुकी थी.. जो कभी-2 गाड़ी के जंप से आपस में रगड़ जाती…
हम दोनो पर एक अनूठा सा उन्माद छाता जा रहा था… लेकिन ये उन्माद कुछ ही देर का था… उसका गाओं आ चुका था, और वो फिरसे मुझसे दूरी बना कर बैठ गयी…
हम जब उसके घर पहुँचे तो घर में अकेली उसकी माँ थी, उसके भाई राजेश शहर में नौकरी पर थे, जो हफ्ते के हफ्ते ही आते थे, पिताजी अभी खेतों से आए नही थे..
निशा को मेरे साथ देखकर वो चोन्क्ते हुए बोली – ये कॉन है बेटी..?
निशा – इनको नही पहचाना मम्मी…? ये दीदी के छोटे देवर ! अंकुश नाम है इनका…
मम्मी – ओह..! आओ बेटा बैठो…! माफ़ करना कभी देखा नही ना तुम्हें इसलिए पुच्छ लिया..
मे – कोई बात नही मम्मी जी.. वैसे भी मे भैया की शादी में ही आया था…
मम्मी – हां ! लेकिन तब तुम बहुत छोटे से थे… अब देखो… क्या गबरू जवान हो गये हो…
मे- ये सब आपकी बेटी का ही कमाल है मम्मी जी…!
वो एकदम से चोन्क्ते हुए बोली – मेरी बेटी का…? वो कैसे…?
मे – अरे मम्मी जी ! भाभी मेरा इतना ख़याल रखती हैं.. कि पुछो मत.. मुझे कभी अपनी माँ की कमी महसूस नही होने दी…
वो – ओह हां ! मोहिनी है ही ऐसी, यहाँ भी सबका बहुत ख़याल करती थी..
कुछ देर में निशा के पिताजी भी आ गये.. वो भी मिलकर बड़े खुश हुए.. और घर के हाल-चाल पुच्छे…
खाना पीना खाकर वो लोग जल्दी ही सोते थे… सो कुछ देर और इधर-उधर की बातें हुई.. और वो दोनो सोने चले गये…
जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..!
सोने के लिए जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..
निशा का घर उनके घर की ज़रूरत के हिसाब से जैसा मध्यम वर्गिया ग्रामीण लोगों का होना चाहिए उस हिसाब से ही था..
तीन कमरे, जिनमें एक में उसके मम्मी-पापा, एक में निशा और एक उसके भाई का था, एक बड़ा सा बैठक कम हॉल जिसमें एक टीवी भी लगा हुआ था…
हॉल से बाहर एक वरांडा… उसके बाद थोड़ी खाली जगह जो बौंड्री से घिरी हुई थी..
हम इस समय हॉल में बैठे टीवी देख रहे थे…मे सोफे पर था, और वो साइड में पड़ी सोफा चेयर पर बैठी थी..
मेने उसकी मम्मी के जाने के कुछ देर बाद निशा से कहा – क्यों डार्लिंग… क्या ख़याल है…?
वो मेरी तरफ मुस्कराते हुए बोली – किस बात का…?
मे – अपनी मम्मी की अग्या का पालन नही करोगी.. ?
वो हंस कर बोली ओह ! वो..! तो अभी चाहिए.. या सोने से पहले…
मेने कहा शुभ काम में देरी नही करना चाहिए.., मेरी बात सुनकर वो चेयर से उठी, और मेरे आगे से होकर किचेन की तरफ दूध लाने के लिए जाने लगी…
मेने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया… तो वो एक झोंके के साथ मेरी गोद में आ गिरी… गिरने से बचने के लिए उसने मेरे गले में बाहें डाल दी…
वो मेरी आँखों में देखते हुए बोली – क्या करते हो…? खुद ही कहते हो दूध लाने को और रोक भी रहे हो…!
मे उस दूध की बात नही कर रहा जानेमन, मुझे तो ये वाला दूध पीना है……ये कहकर मेने उसके एक संतरे पर अपना हाथ रख दिया…
हटो बदमाश कहीं के…., उसने मुझे हल्के से सीने में मुक्का मारा… कितना ग़लत-सलत सोचते हो…
मे – इसमें क्या ग़लत कहा है मेने.. दूध ही तो माँगा है.. नही पिलाना है तो मत पिलाओ.. मे सुबह मम्मी को बोल दूँगा… कि आपकी बेटी ने मुझे दूध दिया ही नही…
उसने शर्म से अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया… मेने उसकी थोड़ी को अपनी उंगलियों से ऊपर कर के उसका चेहरा उठाया… और उसकी झील सी गहरी आँखों में झाँकते हुए कहा-
तुम कितनी मासूम हो निशु…मे सच में बहुत शौभग्यशाली हूँ जिसे इतनी मासूम, और सुंदर सी प्यारी सी लड़की का प्यार मिल रहा है…
मे तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ मेरी जान… आइ लव यू…!
आइ लव यू टू जानू… कहकर वो मेरे सीने से लिपट गयी….!
मेने धीरे से उसकी पीठ पर हाथ रख कर सहला दिया… और एक हाथ से उसके गाल को सहलाकर उसके होंठ चूम लिए…
मे तुमसे दूर नही रह सकती जानू..! वो कुछ देर बाद बोली, तो मेने कहा – मे कॉन सा तुमसे दूर रह सकता हूँ… लेकिन हमें कुछ दिन तो रहना ही पड़ेगा..
वो – अगर तुम मुझे नही मिले तो में मर जाउन्गि… अंकुश..!
सीईईईईईईईई… उसके होंठों पर उंगली रख कर कहा मेने – ऐसे मरने गिरने की बात नही करते… भाभी ने मुझे प्रॉमिस किया है… चाहे कुछ हो जाए.. हम मिलकर ही रहेंगे..
वो – सच ! क्या दीदी को पता है हमरे प्यार के बारे में…?
मे – हां ! और ये बात उन्होने खुद से ही कही है… अब हमें बस कुछ सालों तक इंतजार करना पड़ेगा…
वो फिरसे मुझसे लिपट गयी..ओह ! जानू मे आज बहुत खुश हूँ… लेकिन एक प्रॉमिस करो.. तुम जल्दी-2 मुझसे मिलने आया करोगे… कम से कम महीने में एक बार..
मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है… लेकिन तुम खुद सोचो.. मेरा बार-2 यहाँ आना क्या लोगों में शक पैदा नही करेगा..? क्या तुम्हारे मम्मी-पापा ये चाहेंगे…?
वो – तो फिर मे कैसे रहूंगी इतने दिन … कम-से-कम फोन तो करते रहना..
मे – हां ! ये सही रहेगा.. हम रोज़ रात को फोन से बात कर लिया करेंगे..
इतनी देर से निशा मेरी गोद में बैठी थी… उसकी गोल-मटोल छोटी लेकिन मुलायम गान्ड की गर्मी से मेरा लंड टाइट जीन्स में व्याकुल होने लगा…
मे अपने कपड़े नही लाया था, सो मेने निशा से कहा – यार मुझे कुछ चेंज करना है… ये जीन्स में कंफर्टबल नही लग रहा…
वो मेरी गोद से उठ खड़ी हुई, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने भैया के रूम में ले गयी… उसकी अलमारी से एक पाजामा और टीशर्ट निकाल कर मुझे पकड़ा दिया…
मेने अपने कपड़े निकाल दिए और टीशर्ट पहन ली… मेने जैसे ही अपनी जीन्स निकाली…
मेरे फ्रेंची में खड़े मेरे पप्पू को देखकर वो शर्मा गयी और अपना मुँह फेर लिया…
मेने उसे कुछ नही कहा और मुस्कुरा कर पाजामा पहन लिया…
मेरे सोने का इंतेज़ाम भी इसी रूम में था, तो फिर हम दोनो उसमें पड़े पलंग पर बैठ गये…
मेने फिर एक बार निशा को अपनी गोद में खींच लिया और उसके होंठ चूमकर कहा
निशा ! मेरी एक इच्छा पूरी करोगी..?
वो – क्या..? अगर मेरे बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करूँगी..!
मे - मुझे तुम्हारे रूप सौंदर्य के दर्शन करने हैं..?
वो – क्यों ? अभी क्या मे पर्दे में हूँ..?
मे – तुम्हारा ये संगेमरमर सा बदन तो पर्दे में है ना…!
ये आप कैसी बहकी-2 बातें कर रहे हो…? भला ये भी कोई इच्छा हुई..? वो थोड़ा नाराज़गी भरे स्वर में बोली…
मे बस तुम्हारे इस सुन्दर बदन की छवि अपने मन में बसाना चाहता हूँ.. जिसके सहारे आने वाला लंबा समय गुज़ार सकूँ..
मे तुमसे कोई ज़ोर जबर्जस्ती नही करूँगा, अगर अपने प्यार पर भरोसा कर सको तो..
वो खामोशी से मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, …फिर कुछ सोच कर बोली….
ठीक है ! मे आपसे सच्चा प्रेम करती हूँ… और आशा करती हूँ.. कि आप भी एक सच्चे प्रेमी की नज़र से ही मुझे देखेंगे..
ये कह कर वो मेरी तरफ पीठ कर के खड़ी हो गयी… और बोली… देख लीजिए जैसे देखना चाहते हैं..
मे उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया… और उसके गले पर अपने प्यासे होंठ रख दिए…
उसके होंठों से एक मीठी सी सिसकी निकल पड़ी.. और उसने कस कर अपनी आँखें बंद कर ली…
उसकी कमीज़ की पीठ पर एक ज़िप थी, जो उसके गले से लेकर कमर तक पहुँचती थी… मेने उसके कंधों पर अपने हाथ रखकर उसे सहलाते हुए… अपने हाथ धीरे-2 उसकी ज़िप पर ले आया..
चूत की सुरसूराहट में चाची अपनी गान्ड का दर्द भूल गयी… और सिसकियाँ…भरने लगी…
मौका देख कर मेने एक और धक्का मार दिया और मेरा पूरा लंड गान्ड की सुरंग में खो गया…
वो दर्द से कराह उठी.. तकिये में मुँह देकर बेडशीट को मुत्ठियों में कस लिया…
लेकिन मेने अपनी उंगलियों से उनकी चूत चोदना जारी रखा.. और धीरे-2 कर के गान्ड में लंड अंदर – बाहर करने लगा…
चाची के दोनो छेदो में सुरसुरी बढ़ने लगी और वो अब मस्ती से आकर गान्ड मरवाने लगी…
चूत से उंगलियाँ बाहर निकाल कर उनकी गान्ड पर थपकी देते हुए धक्के लगाने में मुझे असीम आनंद आ रहा था….
चाची भी भरपूर मज़ा लेते हुए अब अपनी गान्ड को मेरे लंड पर पटक रही थी,
जब उनकी मोटी गधि जैसी गान्ड मेरी जांघों से टकराती, तो एक मस्त ठप्प जैसी आवाज़ निकलती… मानो कोई टेबल पर थाप दे रहा हो…
10 मिनिट तक उनकी गान्ड मारने के बाद मेरा पानी उनकी गान्ड में भर गया.. और हम दोनो ही पस्त होकर बिस्तर पर लेट गये…
5 मिनिट के बाद मेने चाची की चुचि को सहलाते हुए पूछा – चाची ! गान्ड मारने में मज़ा आया कि नही…
वो – शुरू में तो लगा कि मेरी गान्ड फट गयी.. बहुत दर्द हुआ .. लेकिन बाद में मज़ा भी खूब आया… लेकिन आहह…. अब फिर से दर्द हो रहा है…माआ…
पर तुम चिंता मत करो , कुछ देर में ठीक हो जाएगा… तुम बताओ.. तुम्हें मज़ा आया या नही…
मे – मुझे तो बहुत मज़ा आया… लेकिन लगता है चाची.. ये तरीक़ा सही नही है..
वो तो आपकी गान्ड ऐसी मस्त है कि मे अपने आप को रोक नही पाया वरना कभी नही मारता…
वो – कोई बात नही… मेरे राजा… तुम्हारे लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है.. ये निगोडी गान्ड क्या चीज़ है…
चाची अब खुल कर गान्ड, लंड, चूत बोलने लगी थी…
मे अपने कपड़े पहन कर घर आया, आज अपनी जान निशा को जो चोदने जाना था…
आकर फ्रेश हुआ… खाना खाया और उसके गाओं जाने की तैयारी में जुट गया…
निशा का मान नही था जाने का, लेकिन भाभी का आदेश था, जाना तो पड़ेगा ही..
भाभी का गाओं कोई 30-35 किमी ही दूर था हमारे यहाँ से, सिंगल रोड था.. पूराना सा.. लेकिन वहाँ ज़्यादा नही चलते थे..
रोड खराब होने के कारण थोड़ा जल्दी निकलना था जिससे दिन के उजाले में ही पहुँच जायें तो ज़्यादा अच्छा था.. वैसे तो ज़्यादा से ज़्यादा 1 घंटा ही लगना था..
हम दोनो को निकलते-2 सबसे मिलते मिलते.. 5 बज गये.. ठंडी के दिन थे.. 5 बजे से ही दिन ढालने लगता था…
एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार करने के बाद भी निशा मेरे साथ खुल नही पा रही थी… बाइक पर भी वो मुझसे दूरी बनाए हुए बैठी थी…
मेने गाओं निकलते ही कहा – निशा इतना दूर क्यों बैठी हो जैसे मे कोई पराया हूँ..
वो – ऐसा क्यों बोलते हो जानू…! बस मुझे शर्म आती है… और कोई बात नही..
मे – मुझसे अब कैसी शर्म…? अब तो हम दोनो प्रेमी हैं ना !
वो – फिर भी मुझे शर्म आती है… , मे चुप हो गया, और गाड़ी दौड़ा दी…
अचानक से सड़क में एक गड्ढा आया, मेने एकदम से ब्रेक लगाए… बुलेट की पिच्छली सीट थोड़ी उँची सी होती है.. ड्राइवर सीट से…
सो ब्रेक लगते ही वो सरकती हुई मेरी पीठ से चिपक गयी.. और डर के मारे मेरे सीने में अपनी बाहें लपेट कर चीख पड़ी…
मे – क्या हुआ डार्लिंग ?
वो – आराम से नही चला सकते..?
मे – आराम से चलाने का समय नही है मेरी जान…! रोड खराब है… लेट हो गये तो रात में इन खद्डो में वैसे भी मुश्किल होगी.. तुम ऐसे ही बैठी रहो ना.. क्या दिक्कत है..
वो हूंम्म.. कर के मुझे कस के पकड़ कर बैठ गयी… मे बीच-2 मे ब्रेक मार देता तो वो और ज़्यादा चिपक जाती…
उसके 32” के ठोस उरोज मेरी पीठ पर दब रहे थे… कुछ देर में उसकी शर्म कम हो गयी और उसने मेरे कंधे से अपना गाल सटा लिया, फिर मेरे गाल को चूमकर बोली – अब खुश..!
मे – तुम्हारा साथ तो मेरे लिए हर हाल में खुशी ही देता है.. जानेमन… तुम खुश हो कि नही.. या अब भी शर्म आ रही है..?
वो – आप मुझे बिल्कुल बेशर्म बना दोगे…
मे – अरे यार ! ऐसे बैठने से भी कोई बेशर्म हो जाता है क्या..? मेने उसे और थोड़ा खोलने के लिए कहा…
निशा मेरे सीने को पकड़ने से मुझे ड्राइविंग में थोड़ा प्राब्लम होती है.. तुम ना मेरी कमर को पकड़ लो…
वो – आप जहाँ कहोगे वहीं पकड़ लूँगी जानू.. और ये कह कर उसने मेरी जांघों पर हाथ रख लिए…
मेने कहा – थोड़ा अंदर की साइड में पाकड़ो, नही तो तुम्हें सपोर्ट नही मिलेगा…
वो – धत्त… अब आप मुझे बिल्कुल बेशर्म करना चाहते हैं… फिर कुछ सोच कर.. अच्छा चलिए आपकी खुशी के लिए ये भी सही.. और उसने अपने हाथ मेरी जाँघो के जोड़ पर रख लिए…
गाड़ी के जंप के कारण उसके हाथ भी इधर-उधर होते.. तो उसकी उंगलिया मेरे लंड को छू जाती … आहह… ये हल्का सा टच ही मेरे लिए बड़ा सुखद लग रहा था…
वो भी अब अपनी शर्म से निकलती जा रही थी और अपनी उंगलियों को मेरे लंड के ऊपर फिरने लगी…
पीछे से वो और अच्छे से चिपक गयी, अब उसकी जांघें मेरी जगहों से सात चुकी थी.. जो कभी-2 गाड़ी के जंप से आपस में रगड़ जाती…
हम दोनो पर एक अनूठा सा उन्माद छाता जा रहा था… लेकिन ये उन्माद कुछ ही देर का था… उसका गाओं आ चुका था, और वो फिरसे मुझसे दूरी बना कर बैठ गयी…
हम जब उसके घर पहुँचे तो घर में अकेली उसकी माँ थी, उसके भाई राजेश शहर में नौकरी पर थे, जो हफ्ते के हफ्ते ही आते थे, पिताजी अभी खेतों से आए नही थे..
निशा को मेरे साथ देखकर वो चोन्क्ते हुए बोली – ये कॉन है बेटी..?
निशा – इनको नही पहचाना मम्मी…? ये दीदी के छोटे देवर ! अंकुश नाम है इनका…
मम्मी – ओह..! आओ बेटा बैठो…! माफ़ करना कभी देखा नही ना तुम्हें इसलिए पुच्छ लिया..
मे – कोई बात नही मम्मी जी.. वैसे भी मे भैया की शादी में ही आया था…
मम्मी – हां ! लेकिन तब तुम बहुत छोटे से थे… अब देखो… क्या गबरू जवान हो गये हो…
मे- ये सब आपकी बेटी का ही कमाल है मम्मी जी…!
वो एकदम से चोन्क्ते हुए बोली – मेरी बेटी का…? वो कैसे…?
मे – अरे मम्मी जी ! भाभी मेरा इतना ख़याल रखती हैं.. कि पुछो मत.. मुझे कभी अपनी माँ की कमी महसूस नही होने दी…
वो – ओह हां ! मोहिनी है ही ऐसी, यहाँ भी सबका बहुत ख़याल करती थी..
कुछ देर में निशा के पिताजी भी आ गये.. वो भी मिलकर बड़े खुश हुए.. और घर के हाल-चाल पुच्छे…
खाना पीना खाकर वो लोग जल्दी ही सोते थे… सो कुछ देर और इधर-उधर की बातें हुई.. और वो दोनो सोने चले गये…
जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..!
सोने के लिए जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..
निशा का घर उनके घर की ज़रूरत के हिसाब से जैसा मध्यम वर्गिया ग्रामीण लोगों का होना चाहिए उस हिसाब से ही था..
तीन कमरे, जिनमें एक में उसके मम्मी-पापा, एक में निशा और एक उसके भाई का था, एक बड़ा सा बैठक कम हॉल जिसमें एक टीवी भी लगा हुआ था…
हॉल से बाहर एक वरांडा… उसके बाद थोड़ी खाली जगह जो बौंड्री से घिरी हुई थी..
हम इस समय हॉल में बैठे टीवी देख रहे थे…मे सोफे पर था, और वो साइड में पड़ी सोफा चेयर पर बैठी थी..
मेने उसकी मम्मी के जाने के कुछ देर बाद निशा से कहा – क्यों डार्लिंग… क्या ख़याल है…?
वो मेरी तरफ मुस्कराते हुए बोली – किस बात का…?
मे – अपनी मम्मी की अग्या का पालन नही करोगी.. ?
वो हंस कर बोली ओह ! वो..! तो अभी चाहिए.. या सोने से पहले…
मेने कहा शुभ काम में देरी नही करना चाहिए.., मेरी बात सुनकर वो चेयर से उठी, और मेरे आगे से होकर किचेन की तरफ दूध लाने के लिए जाने लगी…
मेने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया… तो वो एक झोंके के साथ मेरी गोद में आ गिरी… गिरने से बचने के लिए उसने मेरे गले में बाहें डाल दी…
वो मेरी आँखों में देखते हुए बोली – क्या करते हो…? खुद ही कहते हो दूध लाने को और रोक भी रहे हो…!
मे उस दूध की बात नही कर रहा जानेमन, मुझे तो ये वाला दूध पीना है……ये कहकर मेने उसके एक संतरे पर अपना हाथ रख दिया…
हटो बदमाश कहीं के…., उसने मुझे हल्के से सीने में मुक्का मारा… कितना ग़लत-सलत सोचते हो…
मे – इसमें क्या ग़लत कहा है मेने.. दूध ही तो माँगा है.. नही पिलाना है तो मत पिलाओ.. मे सुबह मम्मी को बोल दूँगा… कि आपकी बेटी ने मुझे दूध दिया ही नही…
उसने शर्म से अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया… मेने उसकी थोड़ी को अपनी उंगलियों से ऊपर कर के उसका चेहरा उठाया… और उसकी झील सी गहरी आँखों में झाँकते हुए कहा-
तुम कितनी मासूम हो निशु…मे सच में बहुत शौभग्यशाली हूँ जिसे इतनी मासूम, और सुंदर सी प्यारी सी लड़की का प्यार मिल रहा है…
मे तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ मेरी जान… आइ लव यू…!
आइ लव यू टू जानू… कहकर वो मेरे सीने से लिपट गयी….!
मेने धीरे से उसकी पीठ पर हाथ रख कर सहला दिया… और एक हाथ से उसके गाल को सहलाकर उसके होंठ चूम लिए…
मे तुमसे दूर नही रह सकती जानू..! वो कुछ देर बाद बोली, तो मेने कहा – मे कॉन सा तुमसे दूर रह सकता हूँ… लेकिन हमें कुछ दिन तो रहना ही पड़ेगा..
वो – अगर तुम मुझे नही मिले तो में मर जाउन्गि… अंकुश..!
सीईईईईईईईई… उसके होंठों पर उंगली रख कर कहा मेने – ऐसे मरने गिरने की बात नही करते… भाभी ने मुझे प्रॉमिस किया है… चाहे कुछ हो जाए.. हम मिलकर ही रहेंगे..
वो – सच ! क्या दीदी को पता है हमरे प्यार के बारे में…?
मे – हां ! और ये बात उन्होने खुद से ही कही है… अब हमें बस कुछ सालों तक इंतजार करना पड़ेगा…
वो फिरसे मुझसे लिपट गयी..ओह ! जानू मे आज बहुत खुश हूँ… लेकिन एक प्रॉमिस करो.. तुम जल्दी-2 मुझसे मिलने आया करोगे… कम से कम महीने में एक बार..
मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है… लेकिन तुम खुद सोचो.. मेरा बार-2 यहाँ आना क्या लोगों में शक पैदा नही करेगा..? क्या तुम्हारे मम्मी-पापा ये चाहेंगे…?
वो – तो फिर मे कैसे रहूंगी इतने दिन … कम-से-कम फोन तो करते रहना..
मे – हां ! ये सही रहेगा.. हम रोज़ रात को फोन से बात कर लिया करेंगे..
इतनी देर से निशा मेरी गोद में बैठी थी… उसकी गोल-मटोल छोटी लेकिन मुलायम गान्ड की गर्मी से मेरा लंड टाइट जीन्स में व्याकुल होने लगा…
मे अपने कपड़े नही लाया था, सो मेने निशा से कहा – यार मुझे कुछ चेंज करना है… ये जीन्स में कंफर्टबल नही लग रहा…
वो मेरी गोद से उठ खड़ी हुई, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने भैया के रूम में ले गयी… उसकी अलमारी से एक पाजामा और टीशर्ट निकाल कर मुझे पकड़ा दिया…
मेने अपने कपड़े निकाल दिए और टीशर्ट पहन ली… मेने जैसे ही अपनी जीन्स निकाली…
मेरे फ्रेंची में खड़े मेरे पप्पू को देखकर वो शर्मा गयी और अपना मुँह फेर लिया…
मेने उसे कुछ नही कहा और मुस्कुरा कर पाजामा पहन लिया…
मेरे सोने का इंतेज़ाम भी इसी रूम में था, तो फिर हम दोनो उसमें पड़े पलंग पर बैठ गये…
मेने फिर एक बार निशा को अपनी गोद में खींच लिया और उसके होंठ चूमकर कहा
निशा ! मेरी एक इच्छा पूरी करोगी..?
वो – क्या..? अगर मेरे बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करूँगी..!
मे - मुझे तुम्हारे रूप सौंदर्य के दर्शन करने हैं..?
वो – क्यों ? अभी क्या मे पर्दे में हूँ..?
मे – तुम्हारा ये संगेमरमर सा बदन तो पर्दे में है ना…!
ये आप कैसी बहकी-2 बातें कर रहे हो…? भला ये भी कोई इच्छा हुई..? वो थोड़ा नाराज़गी भरे स्वर में बोली…
मे बस तुम्हारे इस सुन्दर बदन की छवि अपने मन में बसाना चाहता हूँ.. जिसके सहारे आने वाला लंबा समय गुज़ार सकूँ..
मे तुमसे कोई ज़ोर जबर्जस्ती नही करूँगा, अगर अपने प्यार पर भरोसा कर सको तो..
वो खामोशी से मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, …फिर कुछ सोच कर बोली….
ठीक है ! मे आपसे सच्चा प्रेम करती हूँ… और आशा करती हूँ.. कि आप भी एक सच्चे प्रेमी की नज़र से ही मुझे देखेंगे..
ये कह कर वो मेरी तरफ पीठ कर के खड़ी हो गयी… और बोली… देख लीजिए जैसे देखना चाहते हैं..
मे उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया… और उसके गले पर अपने प्यासे होंठ रख दिए…
उसके होंठों से एक मीठी सी सिसकी निकल पड़ी.. और उसने कस कर अपनी आँखें बंद कर ली…
उसकी कमीज़ की पीठ पर एक ज़िप थी, जो उसके गले से लेकर कमर तक पहुँचती थी… मेने उसके कंधों पर अपने हाथ रखकर उसे सहलाते हुए… अपने हाथ धीरे-2 उसकी ज़िप पर ले आया..