Episode 24


कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद शबाना ने अपने कंधे उचकाये। जगबीर ने अपना लण्ड उसकी गाँड से निकाला और बाथरूम में घुस गया। शबाना ने प्रताप का लण्ड चाट कर साफ़ किया और उसके पास ही लेट गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे।

“कैसा लगा शब्बो जान?”

“एक पर एक तुम्हें नहीं, मुझे फ्री मिला है!” फिर दोनों हंसने लगे।

“लेकिन, जगबीर भरोसे का आदमी तो है ना?”

“जानू… एक दम पक्का भरोसे का है... और वो सरदार है... तुम बिल्कुल बेफ़िक्र रहो... वो उनमें से नहीं है जो तुम्हें परेशान य बदनाम करेगा!”

“बस मैं यही चाहती हूँ!”

तभी जगबीर बाहर आ गया. शबाना उठी और अपनी सैंडल खटखटाती हुई बाथरूम में घुस गयी। वो भी तज़ीन की तरह ही नशे में झूम रही थी और कदम बहक रहे थे।

“यार ये तो उम्मीद से दुगना हो गया!”

“हाँ लेकिन ध्यान रहे किसी को पता ना चले! अच्छे घर की हैं ये दोनों!”

“जानता हूँ यार! किसी को बताकर क्या मुझे अपना ही खाना बिगाड़ना है? और मेरी बीवी को पता चलेगा तो मेरी खुद शामत आ जायेगी! वाहे गुरू की कृपा है... हम क्यों किसी को तकलीफ़ में डालेंगे यार! सब कुछ तो है अपने पास!” बाथरूम में मूतती हुई शबाना ये सुनकर इत्तमिनान भी हुआ और खुश भी।

“क्या कर रहे हो दोनों? शबाना कहाँ है? और जगबीर तूने क्या यहाँ भी मज़े कर लिये क्या?” ताज़ीन की आवाज़ थी ये। नशे में झूमती हूई वो उस कमरे में दाखिल हुई। अभी भी उसने सिर्फ सैंडल ही पहने हुए थे और बिल्कुल नंगी ही थी।

“अब आप तो बाथरूम में घुस गयी थीं और बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं तो क्या करता... सोचा आपकी भाभी को डबल मज़ा दे दिया जाये?”

“अब तो आ गयी हूँ मैं... मुझे डबल मज़ा नहीं दोगे क्या?”

शबाना की गाँड और चूत दोनों की खुजली एक साथ शाँत हो गयी थी। वो अब भी मस्तिया रही थी और उसे लग रहा था जैसे अब भी उसकी चूत में प्रताप का और गाँड में जगबीर का लण्ड घुसा हुआ है और वो चुदाई करवा रही है। उसने झटपट अपनी चूत और गाँड की खबर ली, गाऊन पहना और बाहर आ गयी। ब्रा और फैंटी पहन कर उसे अपना मूड नहीं खराब करना था और फिर चूत और गाँड को भी तो खुला रखना था... आखिर इतनी मेहनत जो की थी दोनों ने!

जब वो बाहर आयी तो ज़मीन पर उसकी ननद ताज़ीन की डबल चुदाई चल रही थी। ताज़ीन जगबीर के ऊपर बैठ कर झुकी हुई अपनी चूत में उसका लण्ड लेकर चुदवा रही थी और उसके पीछे प्रताप उसकी कमर पर झुका हुआ उसकी गाँड में दनादन अपना लण्ड अंदर-बाहर चोद रहा था। कमरे में ताज़ीन की सिसकरियाँ और आहें गूँज रही थीं।

बाद में चारों फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में फिर से बैठ कर व्हिस्की के पैग पीने लगे!

तभी एक तसवीर देख कर जगबीर ने कहा, “तो इन हज़रत की बीवी हैं आप?”

“जी हाँ! यही परवेज़ हैं! क्या आप जानते हैं इन्हें?”

“नहीं बस ऐसे ही पूछ लिया, क्या वो शहर से बाहर गये हैं?”

“हाँ, कल शाम को आ जायेंगे!”

शराब का ग्लास रखते हुए जगबीर ने अपने कपड़े पहनते हुए कहा, “ठीक है तो हम चलते हैं, फिर मिलेंगे... अगर आपने याद किया तो!”

“अरे इतनी जल्दी क्या है... रात का एक ही बज रहा है!” ताज़ीन ने कहा, “परवेज़ तो कल शाम को आयेगा... सुबह यहीं से नहा धोकर चले जाना... तब तक एक और राऊँड हो जाये चुदाई का...!”

“अरे मोहतर्मा! जिनकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, वो जितनी जल्दी हो घर पहुँचना चाहेगा!” कहकर हँस दिया जगबीर।

“अच्छा तो वो क्या ऐसे ही काम छोड़ कर आ जायेगा... शहर से बाहर ही नहीं जायेगा?” शबाना ने बीच में चुटकी ली। शराब का नशा बरकरार था उसपर।

“अरे भाई, वो शहर से बाहर जायेगा तो भी यही कहेगा कि शहर में ही है... हो सकता है परवेज़ सुबह छः बजे आ जाये, रिस्क क्यों लेना?”

“चलो ठीक है! वैसे भी सुबह जल्दी ऑफिस जाना है!” प्रताप ने सोफ़े पर से उठते हुए कहा और कपड़े पहनने लगा।

शबाना और ताज़ीन ने भी ज़्यादा ज़िद्द नहीं की। प्रताप और जगबीर दोनों निकाल गये।

शबाना और ताज़ीन ने अपने बिस्तर ठीक किये और दोनों एक दम तस्कीन से खुश होकर सो गयी।

सुबह छः बजे घंटी बजने पर शबाना ने दरवाज़ा खोला दूध लेने के लिये। “परवेज़ तुम? इतनी जल्दी? तुम तो शाम को आने वाले थे ना?” एक दम चौंक गयी थी शबाना।

“क्यों मेरा जल्दी आना अच्छा नहीं लगा तुम्हें?”

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं, यूँ ही पूछ लिया!”

शबाना ने चैन की साँस ली। वो आज मरते-मरते बची थी। अगर जगबीर ने जाने के लिये ज़ोर नहीं दिया होता तो प्रताप भी वहीं होता और आज उसकी शामत ही आने वाली थी। ये सोचकर उसका दिमाग एक दम घूम गया। उसके कानों में जगबीर के अल्फाज़ गूँजने लगे “हो सकता है सुबह छः बजे ही आ जायें।” उसका दिमाग चक्कर घिन्नी की तरह घूम गया। उसे शक होने लगा कि जगबीर को पहले ही पता था कि परवेज़ सुबह आने वाला है।

सुबह छः बजे आने के बावजूद परवेज़ नौ बजे ही घर से फिर निकल गया।

“ताज़ीन आपा, आपको जगबीर की बात याद है?”

“कौनसी?” बेफ़िक्र ताज़ीन ने जवाब दिया।

“वही जो उसने जाने से पहले कही थी...!” शबाना ने ताज़ीन की आँखों में झाँकते हुए पूछा।

“जिसकी बीवी इतनी सुन्दर हो... वो वाली? वो तो उसने सच ही कहा था!”

“वो नहीं...! सुबह छः बजे वाली... परवेज़ सुबह छः बजे ही आये थे... ठीक उसी वक्त जो जगबीर ने बताया था।” शबाना की आवाज़ में डर और चिंता दोनों साफ़ झलक रही थी।

“ऐसे ही तुक्का लगा दिया होगा!” ताज़ीन अब भी बेफ़िक्र थी।

जगबीर ने उससे ये क्यों कहा कि वो शहर से बाहर जायेगा तो भी यही कहेगा शहर में ही है! तो क्या जगबीर सच्चाई से उलटा बोल रहा था? मतलब कि परवेज़ शहर में ही था लेकिन उसे कहकर गया कि वो बाहर जा रहा है? लेकिन परवेज़ झूठ क्यों बोलेगा? और जगबीर ने उलटा क्यों कहा अगर वो जानता था कि परवेज़ शहर में ही है! जहाँ तक जगबीर का सवाल है... सरदार ना सिर्फ़ चालाक और होशियार था बल्कि काफी सुलझा हुआ और इन्टेलिजेन्ट भी था। जो भी थोड़ी बहुत वो उसे समझी थी, उससे यही ज़ाहिर होता था कि वो बिना मतलब के इतनी बातें करने वालों में से नहीं था। कईं सवाल शबाना के ज़हन में गूँज रहे थे लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं था।

दोपहर में एक बजे के करीब शबाना ने प्रताप को फोन लगाया।

“हैलो, प्रताप कहाँ हो?”

“ऑफिस में! कहो कैसे याद किया?” प्रताप ने पूछा।

“प्रताप, ये जगबीर क्या करता है?” शबाना ने सीधे-सीधे सवाल किया।

“क्यों जान अब पीछे से वार करने वाले पसंद आ गये... हम तो लुट जायेंगे... जानेमन!” प्रताप ने रोमांटिक होते हुए कहा।

“धत्त, ऐसी कोई बात नहीं है... ऐसे ही पूछ रही हूँ!” शबाना ने शरमाते हुए कहा।

“वो आसिस्टेंट कमिशनर ऑफ पुलीस है! तीन साल पहले ही आई-पी-एस में टॉप किया था उसने। काफी ऊँची चीज़ है वो... काम है क्या कुछ? कहो तो हम ही आ जाते हैं!”

“चुपचाप काम करो अपना! हर वक्त यही सूझता है तुम्हें!” शबाना ने प्यार से डाँटते हुए कहा। “वैसे एक दो दिन में फोन करके बताऊँगी.... ताज़ीन आपा भी बेताब हैं तुमसे फिर मिलने के लिये!”

फोन रखने पर शबाना की परेशानी अब बढ़ गयी थी। मतलब कि जगबीर सचमुच काफी पहुँचा हुआ आदमी था... और उसने जो भी कहा था... वो बात जितनी सीधी दिख रही थी... उतनी थी नहीं.... ज़रूर कुछ वजह रही होगी!

“शबाना क्या सोच रही हो?” ताज़ीन के सवाल ने उसका ध्यान तोड़ा।

“कुछ नहीं, आपका भाई अचानक आज जल्दी आ गया!”

“हाँ! आज तो हुम बाल बाल बच गये! अगर मेरे कहने पर जग्गू और प्रताप रुक जाते तो आज तो गये ही थे काम से!”

अगले पंद्रह दिनों के दौरान ताज़िन के जाने से पहले प्रताप चार बार आया दिन के वक्त और तीनों ने मिलकर काफी ऐश करी। प्रताप ने बताया कि जगबीर किसी केस में उलझा हुआ है और दिन के वक्त वो समय नहीं निकाल पायेगा।

“हाय जगबीर!”

“हाय! कौन?”

“अच्छा, तो अब आवाज़ भी नहीं पहचानते हैं जनाब!”

“ओहो! शबाना जी! बड़े दिनों बाद याद किया?” बड़े अदब से चुटकी ली जगबीर ने।

“क्या करें! तुम तो याद करते नहीं... सो मैंने ही फोन कर लिया... एक महीने तुम्हारे फोन की राह देखी है!” शिकायत भरे लहज़े में कहा शबाना ने।

“आप बुला लेती तो मैं हाज़िर हो जाता!” जगबीर के पास जवाब तैयार था।

“अभी आ सकते हो?”

“अभी नहीं... कल आ जाता हूँ अगर आपको आपत्ति ना हो तो!”

“ठीक है... तो कल ग्यारह बजे?”

“ओके शबाना जी!” और फिर शबाना के जवाब का इंतज़ार किये बिना फोन काट दिया जगबीर ने।

“सरदार बहुत तेज़ है... लेकिन साला है बहुत ही दिलचस्प!” शबाना ने मन ही मन खुद से कहा।

उसने दोबारा फोन लगाया “हाँ ज़रीना, मैं घर पर ही हूँ, तुम ज़ीनत को भेज सकती हो!”

ज़रीना शबाना से उम्र में पंद्रह साल बड़ी थी लेकिन सबसे अच्छी सहेली थी और थोड़ी ही दूरी पर रहती थी। इसलिये कभी-कभी आ जाती थी। उसकी बेटी ज़ीनत के बी-एस-सी फर्स्ट ईयर के इग़्ज़ैम थे और उसने शबाना से रिक्वेस्ट की थी थोड़ी मदद कर देने के लिये क्योंकि शबाना कैमिस्ट्री में एम-एस-सी थी। दरवाज़े की दस्तक से शबाना का ध्यान भंग हुआ। कोई था शायद बाहर।

ज़ीनत आयी थी। उसे अंदर बुला कर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। ज़ीनत काफी खूबसूरत थी और उसके मम्मे उसकी उम्र को काफी पीछे छोड़ चुके थे। उसका जिस्म देखकर कोई भी यही सोचेगा कि तेईस-चौबीस की है। पहनावा भी काफी मॉडर्न किस्म का था। कॉनवेंट में पढ़ी-लिखी ज़ीनत रोज़ घुटनों के ऊपर तक की स्कर्ट पहन कर कॉलेज जाती थी और ज़रीना ने काफी छूट दे रखी थी उसे। आखिर इकलौती औलाद थी वो।

“आपा! कल कैमिस्ट्री की इग़्ज़ैम है और मुझे तो कुछ समझ नहीं आता है! ये टेबल और कैमिकल फोर्मुले तो मेरी जान ले लेंगे!” काफी झुंझलायी हुई थी ज़ीनत।

“कोई बात नहीं, मैं समझा दुँगी!” शबाना ने प्यार से कहा।

तीन घंटे की पढ़ाई के बाद ज़ीनत काफी खुश थी। उसका लगभग सारा पोर्शन खत्म हो चुका था। “थैंक यू आपा! मुझे तो लगा था मैं गयी इस बार! आपने बचा लिया!” कहते हुए उसने शबाना को गले लगा लिया।

अगले दिन परवेज़ के जाने के बाद, वो जगबीर का इंतज़ार करने लगी थी। बहुत अच्छे से सजधज कर तैयार हुई वो। हरे रंग की नेट वाली झीनी साड़ी पहनी... वो भी बिना पेटीकोट के, जिससे उसकी टाँगें साफ झलक रही थीं। उसका ब्लाऊज़ भी इतना छोटा था कि उसके नीचे ब्रा की जरूरत ही नहीं थी। पैरों में चॉकलेट ब्राऊन रंग के ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल उसके फिगर को और ज्यादा सैक्सी बना रहे थे।

ठीक ग्यारह बजे जगबीर आ गया।

“क्यों डार्लिंग बड़े दिनों बाद याद किया... वो भी जब प्रताप बाहर गया है.... जब तक वो था... आपने तो मुझे याद ही नहीं किया!” जगबीर ने सवाल में ही जवाब दाग दिया था।

“लगता है कि तुम उसके बिना कुछ कर नहीं सकते! हर बार उसकी मदद चाहिये क्या?” शबाना ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया।

“पता चल जायेगा जानेमन!” कहते हुए जगबीर ने उसे बाँहों में उठा लिया।

“क्यों आज शराब नहीं लाये?” शबाना ने पूछा।

“मैं दिन में नहीं पीता!” अब जगबीर उसके जिस्म को हर जगह से दबा रहा था।

“दिन में शबाब का मज़ा तो लेते हो लेकिन शराब नहीं पीते...?” शबाना ने हंसते हुए कहा।

“काम पर भी तो जाना है बाद में... आपको पीनी है तो ले आता हूँ... जीप में ही रखी है!”

“अब तुम्हारे इस लज़ीज़ क़बाब के साथ शराब पीना तो बनता ही है...!” पैंट के ऊपर से जगबीर के लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भींचते हुए शबाना ने कहा।

फिर जगबीर अपनी जीप में से व्हिस्की की बोतल ले आया और शबाना अपने लिये पैग बना कर जगबीर की गोद में बैठ कर पीने लगी। जगबीर ने शबाना की साड़ी का पल्लू हटाया और उसके ब्लाऊज़ के ऊपर से ही उसके मम्मों को दबाने लगा। उसके होंठों को अपने होंठों में दबाते हुए उसने एक हाथ उसके मम्मों पर रख दिया और दूसरे हाथ से उसकी साड़ी को ऊँचा उठा कर उसकी गाँड को ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा। उसने शबाना को एक दम जकड़ लिया। शबाना उसके लण्ड को अपनी चूत पर महसूस कर सकती थी और उसकी तो जैसे साँस अटक रही थी। इसी दौरान शबाना शराब के तीन पैग जल्दी-जल्दी गटक चुकी थी और काफी नशे में थी और बेहद मस्ती में भर गयी थी। शबाना का छोटा सा ब्लाऊज़ भी ज़मीन पर एक तरफ पड़ा था और जगबीर उसके नंगे भरे-भरे मम्मों को भींचते हुए उसके निप्पल चूसते हुए दाँतों से काट रहा था।

जगबीर फिर उसे बेडरूम में ले गया और खड़े-खड़े ही उसकी साड़ी को खींच कर निकाल दिया। पेटीकोट तो शबाना ने पहना ही नहीं था। जगबीर उसकी टाँगों के बीच बैठ गया और उसकी पैंटी उतार दी। अब उसका मुँह शबाना की नाभि को चूस रहा था और उसका एक हाथ शबाना की दोनों टाँगों के बीच उसकी जाँघों पर सैर कर रहा था। उसने शबाना की जाँघ पर दबाव बनाया और शबाना ने अपने पैर फ़ैला दिये। अब वो जगबीर को अपनी चूत खिलाने के लिये तैयार थी। उसने अपनी चूत आगे की तरफ़ ढकेल दी। ऊँची हील की सैंडल में खड़ी शबाना नशे और मस्ती में झूम रही थी। जगबीर ने अपने दोनों हाथों को उसकी टाँगों के बीच से लेकर उसकी गाँड पर रख दिये। शबाना की टाँगें और फ़ैल गयीं और उसकी आगे की तरफ़ निकली हुई चूत अब जगबीर के मुँह के ठीक सामने थी। “ससीसीईईऽऽऽ!” सिसकरी छूट गयी शबाना की जब जगबीर की जीभ ने उसकी चूत को चाटा और उसके किनारों पर ज़ोर से जीभ रगड़ दी। जगबीर की जीभ शबाना की चूत में घुसती जा रही थी और शबाना के पैर जैसे उखड़ने को थे। जगबीर के हाथ जो शबाना की टाँगों के बीच से पीछे की तरफ़ थे, उनसे शबाना के हाथों की कलाइयों को पकड़ लिया। अब शबाना की चूत और आगे की तरफ़ निकल आयी और जगबीर की जीभ उसकी चूत में और अंदर धंस गयी।

जगबीर ने इसी स्थिति में उसे उठा लिया और एक धक्का देकर बेड के बिल्कुल किनारे पर पटक दिया और खुद बेड के नीचे घुटनों के बल बैठ गया। शबाना की गाँड के नीचे से निकले हुए जगबीर के हाथों की वजह से उसकी चूत एक दम उठ गयी थी और ब्राऊन सैंडलों वाले पैर हवा में लहरा रहे थे और उसकी टाँगें एक दम फ़ैली हुई थीं। उसकी चूत में जगबीर की जीभ धंसती जा रही थी। जगबीर ने उसकी चूत में छुपे गुलाबी दाने को अपने होंठों में जकड़ लिया और उसपर बेतहाशा अपनी जीभ रगड़ कर चूमने लगा। शबाना की सिसकारियाँ फूट गयी और उसकी चूत में खलबली मच गयी। उसकी मस्ती पूरे परवान पर थी और वो हिल भी नहीं सकती थी। उसकी कलाइयों को जगबीर ने पूरी ताकत से पकड़ रखा था और उसकी गाँड बिस्तर से हवा में पूरी उठी हुई थी। उसकी गाँड ने एक ज़ोर का झटका दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। अब जगबीर ने उसकी कलाइयों को छोड़ा और अपने हाथ उसकी टाँगों के बीच से निकाल लिये। अब वो बिल्कुल धाराशायी हो गयी बिस्तर पर। “ओह गॉड...मज़ा आ गया जगबीर!”

जगबीर ऊपर चढ़ गया और उसके होंठों को चूमने लगा। शबाना ने जगबीर की बालों से भरी छाती पर हाथ फिराने शुरू कर दिये। अच्छा लगता था उसे जब जगबीर की बालों से भरी छाती उसके चिकने और भरे हुए मम्मों को रगड़ती थी। अजीब तरह की गुदगुदी सी होती थी उसे। अब शबाना बैठ गयी और उसने जगबीर की पैंट के बटन खोले और उसकी पैंट और अंडरवीयर निकाल कर फेंक दिये। उसने जगबीर के लण्ड को अपने हाथों में लिया और उसकी जड़ से टोपी तक अपना हाथ ऊपर नीचे करने लगी। उसके लण्ड की चमड़ी के पीछे होते ही उसका लाल-लाल गोल सुपाड़ा जैसे हमले की तैयारी में नज़र आता था। शबाना झुकी और जगबीर का लण्ड चूसना शुरू कर दिया। उसने जगबीर के लण्ड के सुपाड़े को मुँह में लिया और उसका स्वाद अपनी जीभ पर महसूस करने लगी। उसकी जीभ जगबीर के लण्ड के मूतने वाले छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी। उसके सुपाड़े को अपनी जीभ में लपेट कर शबाना उसके हर हिस्से का मज़ा ले रही थी। जगबीर उसके सर पर हाथ रख कर उसे दबाने लगा। अब शबाना जगबीर के पूरे लण्ड को अपने मुँह में ले रही थी। जगबीर का लण्ड उसके गले तक जा रहा था और उसकी आँखें जैसे बाहर आने को हो गयीं। उसने लण्ड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर थोड़ी कोशिश के बाद वो अब उसके लण्ड को अपने मुँह में एडजस्ट कर चुकी थी। अब जगबीर को पूरा मज़ा मिल रहा था। शबाना बिल्कुल रंडी की तरह अच्छी तरीके से उसका लण्ड चूस रही थी - नीचे से ऊपर... ऊपर से नीचे। फिर जगबीर ने उसे बिस्तर से नीचे उतरने को कहा।

शबाना नशे और मस्ती में झूमती हुई बिस्तर से उतर कर नीचे खड़ी होकर झुक गयी और अपने हाथ बेड पर रख दिये। अब वो बेड का सहारा लेकर गाँड उठाये खड़ी थी। जगबीर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। ऊँची ऐड़ी की सैंडल की वजह से शबाना की गाँड उठ कर उघड़ी हुई थी और वो गाँड मटकाते हुए आराम से जगबीर के लण्ड का अपनी चूत में घुस जाने का इंतज़ार करने लगी। जगबीर ने शबाना के पैरों को और फैलाया और अपने लण्ड को पकड़ कर शबाना कि उठी गाँड पर रगड़ने लगा। वो उसके पीछे खड़ा होकर उसकी उठी हुई गाँड से लेकर उसकी चूत तक अपने लण्ड को रगड़ रहा था। शबाना की सिसकारियों से कमरा गूँज रहा था। शबाना की चूत के मुँह पर उसने अपने लण्ड को एडजस्ट किया और धीरे-धीरे बड़े प्यार से लण्ड के सुपाड़े को उसकी चूत में पहुँचा दिया।

शबाना ने मदहोश होकर अपनी गाँड और उठा दी और जगबीर ने अपना लण्ड एक झटके से पूरा का पूरा शबाना की चूत में ढकेल दिया। शबाना को एक झटका सा लगा और उसकी सिसकारियाँ फूटने लगीं। जगबीर ने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकड़ा और नीचे से जोर-जोर से झटके मारने शुरू कर दिये और शबाना की कमर को पकड़ कर एक लय में उसके जिस्म को हिलाने लगा। शबाना का पूरा जिस्म हिल रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी चूत को कोई उठा-उठा कर जगबीर के लण्ड पर पटक रहा था, और जगबीर का लण्ड उसकी चूत को चीरते हुए उसके पेट में घुस रहा था।

शबाना की सिसकारियाँ अब मदहोशी की चीखों में बदल चुकी थी। उसकी चूत के थपेड़े जगबीर के लण्ड पर बेतहाशा पड़ रहे थे। जगबीर ने उसकी कमर को कस कर पकड़ रखा था और शबाना की गाँड से लेकर उसके कंधों तक उसके जिस्म को झकझोर कर रख दिया था। जगबीर उसे बुरी तरह चोदे जा रहा था और शबाना के सैंडल वाले पैर ज़मीन से उठने लगे थे। जगबीर ने उसकी कमर को छोड़ दिया और उसकी जाँघों को अंदर की तरफ़ से पकड़ कर उसे ऊपर उठा लिया। अब शबाना अपने हाथों को बेड पर टिकाये हवा में लहरा रही थी और जगबीर उसकी चूत में बेतहाशा धक्के लगाये जा रहा था। जगबीर के धक्के एक दम तेज़ हो गये और शबाना की चूत में जैसे ज्वालामुखी फट गया। पता नहीं किसका पानी कब गिरा, दोनों के जिस्म अब शाँत पड़ने लगे। जगबीर ने शबाना की जाँघें छोड़ दीं तो खटाक की आवाज़ के साथ शाबाना के पैरों में बंधे सैंडल ज़मीन पर पड़े। शबाना घूमी और धड़ाम से बेड पर गिर गयी। “जगबीर मज़ा आ गया.. लव यू डार्लिंग!” जगबीर भी उसकी बगल में लेट गया और शबाना ने उसके होंठों को चूम लिया।

शबाना की मौज हो चली थी। अच्छे दिन निकाल रहे थे चुदाई में। कभी जगबीर तो कभी प्रताप और कभी दोनों से खूब ज़ोरों में चुदाई करवा रही थी शबाना! या यूँ कहें चुदाई के पूरे मज़े लूट रही थी वो!

एक दिन सुबह परवेज़ अभी निकला ही था कि फोन की घंटी घनघना उठी। अशरफ़ का फोन था। अशरफ़ शबाना का छोटा भाई था। उसका फोन कभी आता नहीं था - हमेशा उसके अम्मी-अब्बा ही फोन करते थे।

“हैलो, बोलो अशरफ़, सब ठीक तो है?” शबाना ने पूछा।

“ठीक है आपा! आप सुनाओ!” अशरफ़ शबाना से आठ साल छोटा था और उसे आपा ही बुलाता था।

“मेरी सगाई तय हुई है और आपको लड़की देखने आना है। परसों सुबह से पहले पहुँचना है!” अशरफ़ ने जल्दी से बात पूरी की।

“इतनी जल्दी कैसे आऊँ...? और परवेज़ नहीं आ सकेंगे इतनी जल्दी में!” शबाना को पता था कि परवेज़ अगले दिन काम से बाहर जाने वाला था, तो उसे अकेले ही जाना पड़ेगा। दूसरी परेशानी यह थी कि परवेज़ की गैर-हाज़री में उसने प्रताप और जगबीर दोनों को अगली रात अपने यहाँ चुदाई के मज़े लूटने के बुला रखा था।

“क्या शब्बो आपा! इसमें क्या प्रॉब्लम है? आप कोई बच्ची तो हो नहीं कि अकेली नहीं आ सकती... सीधी बस है और कोई बदली भी करनी है नहीं - सीधे वहाँ से बैठ जाओ और यहाँ पर मैं लेने आ ही जाऊँगा!” अशरफ़ ने आराम से कहा।

“लेकिन शाम की ही बस लेनी पड़ेगी अब!” शबाना तय नहीं कर पा रही थी, इस हालात से कैसे निपटा जाये!

“प्लीज़ आपा! सफ़र है ही कितना... सात-आठ घंटे में यहाँ पर पहुँच जाओगी और मैं बस स्टैंड से ले आऊँगा!” अशरफ़ ने ज़ोर दिया।

“देखो अशरफ़, बस रात को दो बजे पहुँचेगी... तुम लेने आ जाना... कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिये... इतनी रात को कोई रिक्शा वगैरह भी नहीं मिलती वहाँ और सब कितना सुनसान होता है!”

“आप चिंता ना करो आपा! कोई गड़बड़ नहीं होगी!” अशरफ़ ने उसे यकीन दिलाया। खैर बहुत इल्तज़ा करने के बाद शबाना राज़ी हो गयी।

परवेज़ को तो बाहर जाना था तो उसने तो जाने से मना कर दिया, मगर शबाना के अकेले जाने में उसने कोई एतराज़ नहीं दिखाया। शबाना को आटो-रिक्शा से बस स्टैंड जाने की सलाह देकर परवेज़ तो अगले दिन दोपहर को ही निकल गया। शबाना ने उदास मन से प्रताप और जगबीर को भी बता दिया कि चुदाई का प्रोग्राम रद्द करना पड़ेगा।

शबाना की बस शाम को छः बजे थी। जगबीर उसे बस स्टैंड तक अपनी जीप में छोड़ने के लिये आने वाला था। शबाना चार बजे तक बिल्कुल तैयार हो गयी और जगबीर का इंतज़ार करने लगी। आज उसने चमकीली सुनहरी कढ़ाई की हुई लाल रंग की नेट वाली साड़ी और छोटा सा सैक्सी ब्लाऊज़ पहन रखा था। साथ में उसने ऊँची पेंसिल हील वाले सुनहरी रंग के स्ट्रैपी सैंडल पहने हुए थे। जगबीर आया तो शबाना से रहा नहीं गया और वो जगबीर से लिपट कर उसके होंठ चूमते हुए उसका लण्ड सहलाने लगी। वक्त ज्यादा नहीं था तो जगबीर ने शबाना को डायनिंग टेबल पर हाथ राख कर आगे झुकाते हुए खड़ा करके पीछे से उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊठा दिये। फिर उसकी पैंटी खींच कर जाँघों से नीचे खिसका दी जो अगले ही पल उसके पैरों में गिर पड़ी। फिर उसने शबाना की कमर में हाथ डाल कर उसकी चूत में अपना लण्ड घुसेड़ दिया और खड़े- खड़े ही उसे दनादन चोदने लगा। जब दोनों का पानी छूट गया तो शबाना घूम कर नीचे बैठ गयी और जगबीर का लण्ड चाट-चाट कर चूसते हुए साफ किया। उसकी साड़ी थोड़ी बेतरतीब सी हो गयी थी लेकिन अब बदलने का वक्त नहीं था क्योंकि देर होने की वजह से बस छूटने का डर था। वैसे भी वो ऊपर बुऱका ही तो पहनने वाली थी। जल्दी में उसने पैंटी भी नहीं पहनी और साड़ी के नीचे उसकी जाँघों पर जगबीर के लंड का पानी और उसकी खुद की चूत का पानी भी बह रहा था।

शबाना ने फटाफट अपना बुऱका पहना और जगबीर ने उसे बस छूटने के ठीक पहले बस तक पहुँचा दिया। रात को पौने दो बजे शबाना ने बस से उतरकर चारों तरफ़ देखा। उसके अलावा और कोई नहीं उतरा था। गुप अंधेरे में तेज़ हवा की साँय-साँय की आवाज़ के अलावा पूरा सन्नाटा था। अशरफ़ का दूर-दूर तक कोई पता नहीं था। उसने अशरफ़ को फोन लगाया। “अशरफ़ कहाँ है तू?” वो थोड़ी घबरायी हुई थी। “शब्बो आपा! मेरी गाड़ी खराब हो गयी है... आप बस थोड़ी दूर पैदल चल कर आ जाइये! गाड़ी को ऐसे ही छोड़ने में खतरा है... यहाँ पर गाड़ी चोरी होने में देर नहीं लगेगी। मैं यहीं पर पनवाड़ी चौंक पर खड़ा हूँ!” अशरफ़ ने ऐसे जवाब दिया जैसे वो तैयार था इस हालत के लिये।

“मैं अकेले नहीं आ सकती! तू जानता है कि वहाँ तक पैदल आने के लिये उस सुनसान रास्ते से आना होगा!” शबाना के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी थी। वो जानती थी पगडंडी बिल्कुल सुनसान होती है। “आपा कुछ नहीं होगा! आप आ जाओ!” अशरफ़ ने बिना उसका जवाब सुने फोन काट दिया।
Next page: Episode 25
Previous page: Episode 23