Episode 27
मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी हो। मेरे होश उड़ गये और मेरा सर बिल्कुल हल्का हो गया। मेरा जिस्म काँपने लगा और वो मेरे होंठ चूसता रहा। मेरे शौहर ने भी कभी मेरे होंठों को चूमते हुए इस तरह नहीं चूसा था। ये मेरी ज़िंदगी का पहला माकूल फ्रेंच-किस था। उसने मेरे सर के पीछे वाले अपने हाथ से मेरे सर को पकड़ कर हमारे होंठों को कस कर सी लिया और उसी पल मेरी बांयी तरफ़ वाले लड़के ने अपने दूसरे हाथ से मेरी छाती पकड़ ली और कमीज़ के ऊपर से ही मेरे बूब्स मसलने लगा। मेरी साँसें फूलने लगी और मैं अपने दोनों हाथों से उसके हाथ को पकड़ कर रोकने लगी तो दोनों लड़कों ने मेरी रानों को सहला रहे दूसरे हाथों से हल्का सा ज़ोर लगा कर मेरी टाँगों को खोल दिया और दांयी तरफ़ वाले लड़के ने तपाक से अपना हाथ मेरी सलवार के ऊपर से मेरी चूत पे रख दिया और उसे ऊपर से ही सहलाने लगा। कुछ ही देर में मेरे पेट में अकड़ाव पैदा हुआ और फिर एक ज़ोर का झटका लगा और मेरी चूत में फ़ुव्वारे फूटने लगे। मैं झड़ चुकी थी और मेरी पैंटी और उसके आसपास की सलवार भी भीग गयी। मैं झड़ी तो उस लड़के ने मेरे होंठ चूसने बंद कर दिये और मेरी साँसें भी ठीक हो गयीं।
फिर दूसरा लड़का मुझे फ्रेंच-किस करने लगा तो पहले वाला बोला, “वाह यार मज़ा आ गया... आज तो अंग्रेज़ी वाली को अच्छे से चूसा है और अब अच्छे से चोदेंगे भी! साली मारती बहुत ज़ोर से है... आज उतने ही ज़ोर से हम इसकी मारेंगे!” और फिर वो बारी-बारी मुझे चूमने लगे।
थोड़ी देर बाद जो लड़के हमारे सामने खड़ी उन लड़कियों की गाँड में उंगली कर रहे थे उन्होंने कहा, “चलो बहुत हुआ... अब हमें भी तो त़बस्सूम मैडम का थोड़ा मज़ा लेने दो... तुम इधर आ कर इन लड़कियों के मम्मों को थोड़ा मसल दो... ये भी बहुत गरम हैं आज बरिश की ठंडक में!”
फिर उन चारों ने जगह बदल ली। अब दूसरे दोनों लड़के मेरे अगल-बगल बैठ कर मुझे किस करने और मेरे मम्मे और चूत को सहलाने लगे। फिर उनमें से एक ने मेरी सलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया तो मैंने अपने दोनों हाथों से नाड़ा पकड़ लिया। फिर दोनों लड़कों ने मेरे दुपट्टे के नीचे से मेरी कमीज़ के गले में से हाथ डाल कर मेरे एक-एक मम्मे को पकड़ लिया और उन्हें मसलने लगे। मैं पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी और मैंने अपने हाथ दोनों की एक-एक रान पर रख दिये और उनके किस के बदले में उन्हें किस करने लगी। बेहद अजीब पर मजेदार चुंबन थे। बार-बार वो मेरे होंठ चूमते हुए अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल रहे थे। चारों लड़कों ने शायद पोलो-मिन्ट काफी खा रखी थी इसलिये उन्हें किस करते हुए मुझे मीठा-मीठा लग रहा था।
तभी मौका पाकर उनमें से एक ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल ही दिया और मेरी सलवार और भीगी पैंटी को एक साथ नीचे खींचने लगा। पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने भी अपनी गाँड सीट से ऊपर उठा दी और उसे मेरी सलवार और पैंटी मेरे घुटनों के नीचे तक खींच दी। फिर उसने अपनी उंगली को अपने मुँह में डाल कर गीला किया और मेरी चूत के हल्का सा अंदर ऊपर-ऊपर घुमाने लगा। हाय अल्लाह! मैं तो पागल सी हो गयी और मेरे मुँह से तेज़-तेज़ आहें निकलने लगी। बच्चों से भरी कॉलेज की बस में अपनी नंगी चूत खोले मैं अपने ही स्टूडेंट से उसमें उंगली करवा रही थी। इस एहसास ने मेरी गरमी और बढ़ा दी और मैं कुछ ही पलों में फिर झड़ गयी।
मेरे झड़ते ही उसने मेरी पैंटी ओर सलवार को ऊपर कर दिया और मेरा नाड़ा दोबारा बाँध दिया। फिर वो बोला, “तबस़्सुम़ मैम अगर आपको चुदाई का पूरा मज़ा लेना है तो आप घर फोन कर दीजिये कि आप अपनी किसी सहेली के घर जा रही हो और हमारे स्टॉप पर ही उतर जाओ! ये संजय पास ही अपने घर से कार ले आयेगा... हम इसके खेत पे चलते हैं ऐश करने के लिये.... बाद में शाम को हल्का सा अंधेरा होते ही अपको आपके घर के करीब छोड़ देंगे!”
मैंने थोड़ा शरमाते हुए गर्दन हिलाकर रज़ामंदी ज़ाहिर की। मेरे अब्बू और अम्मी एक हफ़्ते के लिये अजमेर गये हुए थे एक रिश्तेदार की शादी में लेकिन मैं इन लड़कों को ये ज़ाहिर नहीं करना चाहती थी इसलिये अपने पर्स में से मोबाइल निकाल कर झूठमूठ एस-एम-एस करने का नाटक किया। इतने में जब उनका स्टॉप आ गया तो मैं उनके पीछे-पीछे वहीं उतर गयी। बस में आगे बैठी एक टीचर ने पूछा, “अरे तब़्बू... तुम कहाँ छुपी बैठी थी और तुम यहाँ क्यों उतर रही हो?”
मैंने कहा, “मैं यहाँ अपनी एक सहेली के घर जा रही हूँ... कई दिनों से मिली नही उससे और आज किस्मत से जल्दी छुट्टी हो गयी तो मैंने सोचा उसे मिल लूँ.... और मेरा थोड़ा सर दर्द कर रहा था... इसलिये पीछे की सीट पर लेट कर थोड़ा सो गयी थी!”
“अरे तू अभी कुछ दिन पहले भी तो बीमार हो गयी थी! तेरी अम्मी से बोलुँगी कि अपनी बेटी को कुछ अच्छा खिलाया करो... स्लिम और खूबसूरत दिखने के चक्कर में कैसे सूख के मरी जा रही है!” उनमें से सबसे उम्र-दराज़ टीचर जो मेरी अम्मी को जानती थी वो बोली।
“जी सकीना आँटी ज़रूर बता देना... पर मैं इतनी भी कमज़ोर नहीं हूँ... आप मुझे कभी अपनी क्लास के मुस्टंडों की पिटाई करते देखना... फिर पता चलेगा आपको!” मैं हंसते हुए बोली और बस से उतर गयी।
बस से उतरी तो बारिश रुक गयी थी। मैं पीछे की जानिब चल पड़ी और एक साइड वाली गली में मुड़ गयी और एक तन्हा जगह पर जा कर खड़ी हो गयी। हवस में मैं इतनी बहक गयी थी कि उस वक़्त एक मर्तबा भी मुझे किसी तरह की शर्मिंदगी या बद-अखलाक़ी का एहसास नहीं हुआ। मेरी शरमो-हया और सारी सक़ाफ़त और अखलाक़ियत हवस की आग में फ़ना हो गयी थी। धड़कते दिल के साथ मैं बेकरारी से उन लड़कों के आने का इंतज़ार कर रही थी। जिस्म की आग ने मुझे इतना अंधा कर दिया था कि एक दफ़ा भी ख्याल नहीं आया कि मैं कोई गुनाह करने जा रही हूँ और इस बदकारी का क्या नतीजा होगा। मेरी टाँगें काँप रही थी और चूत गिली हो रही थी और इक्साइटमेम्ट में निप्पलों में भी सनसनाहट महसूस हो रही थी।
कुछ ही देर में एक काले शीशों वाली टाटा सफ़ारी आ कर मेरे सामने रुकी और उसका पिछली सीट वाला दरवाजा खुला। उसमें से मेरा एक स्टूडेंट नीचे उतरा और बोला, “अंदर आ जाओ तब़्बु मैडम!” अंदर पीछे की सीट पर एक लड़का बैठा था जबकि दो लड़के आगे बैठे थे। जैसे ही मैं गाड़ी के अंदर घुसकर बैठने लगी तो अंदर बैठे दूसरे लड़के ने मुझे कमर से पकड़ कर ज़ोर से अपनी गोद में खींच लिया। दूसरे ने भी फ़ौरन अंदर बैठते ही गाड़ी का दरवाज़ा बंद किया और गाड़ी चल पड़ी। जिस लड़के की गोद में मैं बैठी थी उसने अपना एक हाथ मेरी बगल में से निकालकर मेरी छाती पर रख दिया और मेरे मम्मे ज़ोर से रगड़ने लगा और दूसरा हाथ उसने मेरी रानों के बीच मेरी चूत पर रख दिया और उसे प्यार से मसलने लगा।
दूसरे लड़के ने मेरे ऊँची पेन्सिल हील वाली सैंडल वाले पैरों को पकड़ा और मेरी टाँगों को अपनी जानिब खींच लिया। अब मेरी टाँगें उसके अगल बगल थीं और वो मेरी टाँगों के बीच। “साली रंडी! कुत्ती! क्लास में बहुत मारती है ना... आज तेरी गाँड ना फाड़ दी तो हमारे नाम बदल देना!” ये कहते ही वो मेरी चूत को ज़ोर से मसलने लगा। दूसरे वाले ने झुक कर मेरे होंठों को अपने होंठों से सी लिया और मेरे निचले होंठ को काटने लगा और मेरे मम्मों को मसलने लगा। तभी आगे बैठा लड़का बोला, “यार दारू के ठेके पे रोकना पहले... दारू पी के तब्बू मैडम जी को चोदने में और मज़ा आयेगा!”
“हाँ यार... इस साली तब़्बू को भी पिलायेंगे तो ये भी खुल के चुदवायेगी....!” दूसरा बोला। कॉलेज की बस में तो चारों लड़के फिर भी मुझसे इज़्ज़त और अदब से बात कर रहे थे लेकिन अब उनका लहज़े में अचानक तब्दीली आ गयी थी और बेहद बद-तमीज़ी से पेश आ रहे थे। ‘मैम’ या ‘मैडम’ कहते हुए भी उनका लहज़ा तंज़िया था।
इधर एक लड़के ने ज़ोर से अपने दाँत मेरी कमीज़ में बाहर निकल रहे थोड़े से कंधे वाले हिस्से पर गड़ा दिये। मेरे मुँह से चींख और सिसकरी एक साथ निकली। उस एक लम्हे में मुझे दर्द और मज़े का एक साथ ऐसा एहसास हुआ कि मुझे लगा कि मैं उसी लम्हे झड़ जाऊँगी लेकिन झड़ी नहीं। वो दोनों मिल के मुझे मसल रहे थे.... चूम रहे थे... काट रहे थे और मेरे होंठों से मुसलसल सिसकारियाँ निकल रही थी। इतने में कार हाइ-वे पे एक शराब के ठेके पे रुकी तो उन्होंने मुझे अपने बीच में सीधी कर के बिठा लिया। आगे ड्राइविंग सीट वाला संज़य उतर कर ठेके पे चला गया। इतनी देर मेरी अगल-बगल बैठे दोनों लड़के मुझे दोनों तरफ से चूमते रहे और मेरे मम्मे और रानें सहलाते रहे। मैं भी मस्त होकर उनकी युनिफॉर्म की ग्रे पैंट के ऊपर से उनके लंड मसलते हुए महसूस करने लगी।
इतने में संजय शराब की बोतल लेकर आ गया। आगे बैठा दूसरा लड़का बोला, “यार गिलास तो हैं नहीं कार में... खेत पे जा के ही दो-दो पैग खींचेंगे!”
ये सुनकर मेरी बगल में बैठा एक लड़का हंसते हुए बोला, “यार तब़्बु मैम को क्यो इंतज़ार करवा रहे हो... लाओ इन्हें तो बोतल से ही पिला दें थोड़ी... तो खेत पे पहुँचने तक इसकी शरम तो खुल जाये...!”
ये सुनकर मैं इंकार करते हुए बोली, “नहीं.. नहीं... मैं शराब नहीं पीती... तुम चारों को पीनी हो तो पियो... मैं नहीं पियुँगी!”
“अरे तब्बू मैम... पी कर तो देखो... जब थोड़ा नशा होगा तो चुदाई में खूब मज़ा आयेगा....!” मेरे बगल में बैठा एक लड़का बोतल खोलते हुए बोला और मेरे होंठों से लगाने लगा तो मैंने मुँह फेरते हुए फिर इंकार किया, “नहीं... मुझे नहीं पीनी... पहले कभी नही पी मैंने...!”
“अरे रंडी तब़्बू साली... पहले नहीं पी तो आज पी ले... अपने स्टूडेंट्स के साथ चुदाने भी तो पहली बार आयी है कि नहीं... या फिर और दूसरे स्टूडेंट्स से चुदवाया है पहले!” उनमें से एक लड़का बोला और सब हंसने लगे। “थोड़ी सी पी लो तबस़्सुम़ मैम... कुछ नहीं होगा... हम चारों के नाम के दो-दो घूँट भर लो बस... फिर अच्छी नहीं लगे तो और ज़ोर नहीं देंगे!” आगे ड्राइविंग सीट से संजय बोला।
वो लोग मानने वाले तो थे नहीं और जब फिर से उस लड़के ने बोतल मेरे मुँह से लगा दी तो पता नही क्यों मैंने और मुज़ाहमत नहीं की और एक बड़ा सा घूँट भर के हलक के नीचे उतार लिया। मेरे हलक और पेट में इस क़दर जलन हुई कि मेरा दम घुटने लगा और मैं खाँसने लगी। मेरी बगल में बैठा एक लड़का मेरी कमर सहलाते हुए बोला, “बस बस त़ब्बू मैडम जी... अभी ठीक हो जायेगा... पहली बार पी रही हो ना इसलिये...!”
फिर कुछ ही लम्हों में मेरी साँसें नॉर्मल हो गयीं और जलन भी खतम हो गयी तो उन्होंने ये कहते हुए फिर बोतल मेरे मुँह से लगा दी कि इस बार मुझे अच्छी लगेगी और तकलीफ भी नहीं होगी। जब मैंने दूसरा घूँट पिया तो उतनी जलन नहीं हुई और ऐसे ही उन्होंने इसरार करते हुए ज़बरदस्ती आठ-दस घूँट पिला दिये। कुछ ही देर में मुझे बेहद खुशनुमा सुरूर महसूस होने लगा और मैं उन लड़कों के बीच में बैठी हुई झूमने लगी।
इतने में उस लड़के का खेत आ गया जो ज्यादा दूर नहीं था। बारिश तो पहले ही बंद हो चुकी थी लेकिन काले बादल अभी भी छाये हुए थे। काले बादलों के बीच में से सूरज की हल्की गुलाबी सी रोशनी क़ायनात को रंगीन बना रही थी। उनके खेत में पानी की मोटर के साथ एक छोटा सा कमरा था। उसके बाहर तीन-चार मजदूर बैठे थे। आगे वाले एक लड़के ने गाड़ी से उतरते ही उनसे कहा, “ओये! आज तुम सबकी छुट्टी है... तुम सब घर जाओ अभी!”
“जी बाबू जी!” ऐसा बोल कर वो सब मजदूर जाने के लिये उठे। इतने में गाड़ी के पीछे वाली सीट का दरवाजा खोल कर एक लड़का मुझे गोद में उठाये बाहर निकला। अरे ये तो वो आपके कॉलेज वाली मास्टरनी है ना! वो शुगर मिल वाले खुर्शीद साहब की लौंडी? इसको चोदने लगे हो बाबू.... आपने तो राम कसम हमारा दिल खुश कर दिया! ऐसी मक्खन जैसी चिकनी गोरी कहाँ मिलेगी और वो भी अपनी ही मास्टरनी! जियो बाबू जियो! और खूब जम कर चोदना! रंडी बना देना आज साली को! और तू घबरा मत मास्टरनी हम किसी से नहीं कहेंगे कि तू इस मोटर पर किनसे चुदी है!” एक मजदूर बोला।
“अच्छा अच्छा... अब तुम जल्दी जाओ यहाँ से!” एक लड़का बोला।
“जाते हैं बाबू जी! पर एक तकलीफ़ होगी आपको! मोटर पर जो चारपायी है ना वो टूट गयी थी इसलिये बनने के लिये गयी हुई है... आपको इसे अंदर कमरे में जो सूखे चारे का ढेर पड़ा है उसी पर चोदना पड़ेगा!” वो मजदूर जाता-जाता बोला।
उस एक लम्हे के लिये मुझे एहसास हुआ कि आज मैं कितनी बिगड़ गयी हूँ और मुझे अपने पर थोड़ी सी शरम भी आयी और थोड़ी घबराहट भी महसूस हुई। लेकिन अगले ही लम्हे चार-चार जवान लड़कों से एक ही साथ खेत में सूखे चारे के ढेर पर चुदने के खयाल से मेरी हवस और ज़्यादा बढ़ गयी। इतने में वो लड़का मुझे गोद से नीचे उतार चुका था। मैं खुद ही मोटर के साथ बने कमरे की जानिब झूमती हुई चलने लगी। एक तो मैंने ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने हुए थे और फिर शराब का सुरूर भी था तो ज़ाहिर है मेरे कदम ज़रा लड़खड़ा से रहे थे। कमरे के दरवाजे के पास पहुँच कर मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो चारों लड़के मेरी जानिब देख कर हंस पड़े।
“बड़ी जल्दी है भई हमारी तब़स्सुम़ मैडम को चुदने की आज तो... फिर शुरू हो जाये!” एक ने कहा और सभी हंस पड़े।
“हाँ-हाँ जल्दी चलो!” दूसरा बोला।
“अरे पहले तब्बू मैम से तो पूछ लो के हम से चुदना है कि नहीं!” तीसरा बोला।
“क्यों त़बस्सूम मैडम चुदोगी हमसे?” एक ने सवाल किया।
अब तक शराब के सुरूर में मैं बिल्कुल बेशरम हो चुकी थी। मैंने मुस्कुराते हुए अपने टीचर वाले कड़क अंदाज़ में कहा, “तो अब क्या ये भी दो-दो थप्पड़ मार के तुम नालायकों को समझाना पड़ेगा...!”
उनमें से एक लड़के ने डॉयलॉग मारा, “हाय तब़स्सुम़ मैडम जी... मार लो थप्पड़ भी मार लो... हमें आपके थप्पड़ से डर नहीं लगता... आपकी सैक्सी अदाओं से लगता है!” और सब हंसने लगे और मुझे भी उसकी बात पे ज़ोर से हंस पड़ी।
“चलो यरों! हरी झंडी मिल गयी”, एक लड़का बोला। फिर वो मुझे लेकर कमरे में घुस गये और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और एक मद्धम सी रोशनी वाला बल्ब चालू कर दिया। उनमें से एक लड़के ने आ कर पीछे से मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे दबोच लिया और मेरे गाल और गर्दन को पीछे से चूमने लगा और मेरे चूतड़ दबाने लगा। मेरे होंठों से सिसकरी निकलने लगी। इतने में दूसरे लड़के ने आगे से मुझे दबोच लिया और मेरे मम्मे और तने हुए निप्पल मसलने लगा। मुझे उसकी पैंट में से उसका तना हुआ लौड़ा अपनी नाफ़ के नीचे चुभता हुआ महसूस हुआ और वैसे ही अपनी कमर के नीचे चूतड़ों के बीच में भी पीछे वाले का लौड़ा महसूस हो रहा था। पीछे वाला लड़का कपड़ों के ऊपर से ही अपने लंड से मेरी गाँड में धक्के मारने लगा तो मैंने भी तड़पते हुए अपने चुतड़ उसके लौड़े पे दबा दिये।
“अरे देखो यार... साली तबस़्सुम मैडम को कितना मज़ा आ रहा है... क्यों री चूतमरानी... बोल मज़ा आ रहा है कि नहीं!” तीसरा लड़का बोला।
मैं कुछ नहीं बोली तो एक लड़का जोर से बोला, “बोल ना साली चूत... शरमा क्यों रही है... खुल के बता मज़ा आ रहा है कि नहीं...?”
मैंने गर्दन हिलाते हुए धीरे से कहा, “हाँ! हाँ! अच्छा लग रहा है!” और आगे वाले लड़के की गर्दन में बाँहें डाल दी।
फिर मेरे आगे खड़े लडके ने मेरी कमीज़ का दामन उठा कर मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और बाकी दोनों लड़के बैठ कर मेरी पेंसिल हील वाले सैंडल खोलने लगे क्योंकि मेरी टाइट चुड़ीदार सलवार बिना सैंडल खोले उतारना मुमकिन नहीं होता। सैंडल खुलते ही उन्होंने मेरी सलवार पैरों तक खिसका दी और पहले एक ने मेरा पैर उठा कर सलवार मेरे पैर से निकाली और फिर दूसरे ने दूसरे पैर से मेरी सलवार निकाल दी। उसके बाद दोनों ने फिर मेरे सैंडल दोबारा पहना कर स्ट्रैप के बकल लगा दिये। मेरे आगे और पीछे मुझसे से चिपक कर खड़े दोनों लड़के अभी भी मुझे चूमते हुए मेरे जिस्म पे हाथ फिरा रहे थे। मैं बिल्कुल मस्त होकर सिसकारियाँ भर रही थी और अपनी गाँड आगे पीछे हिलाते हुए उनकी युनिफॉर्म की पैंटों में तने हुए लौड़ों पर दबाने लगी।
फिर एक लड़का बोला, “अरे अखतर मैम... इतनी बेसब्री क्यों हो रही हो... बहुत टाईम है हमारे पास... हम कहीं भागे नहीं जा रहे... ज़रा ढंग से ऐश करेंगे...!” और अचानक दोनों लड़के मुझसे अलग हो गये। एक लड़का भाग के गाड़ी में से शराब की बोतल ले आया और उन्होंने जल्दी से कमरे में पड़े गिलासों में शराब और पानी डाल कर पाँच पैग तैयार लिये। चारों ने एक-एक गिलास उठया और मुझे भी एक गिलास पकड़ा दिया और फिर चारों लड़के मेरे गिलास से अपने गिलास टकराते हुए ज़ोर से ‘चियर्स’ बोले। मैं तो अब तक पुरी तरह मस्त हो चुकी थी और मैंने भी चियर्स कह के गिलास अपने होंठों से लगा लिया और पीने लगी। इस बार तो शराब में पानी मिला होने की वजह से उसका ज़ायका बिल्कुल बुरा नहीं लगा।
उनमें से एक लड़का बोला, “अरे यार सुरिंदर! अपने फोन पे कोई गरमा-गरम ऑइटम साँग तो बजा यार... आज तब्बू मैडम का मुजरा देखेंगे पहले!”
ये सुनकर मैं चौंकते हुए बोली, “नहीं... नहीं... पागल हो गये हो क्या.... मुझे नाचना नहीं आता!”
“अरे तब़्बू मैडम! क्यों नखरा कर रही हो! तुम क्या कटरीना या हिरोइन तब्बू से कम हो क्या... और गाने पे ठुमके लगाते हुए ज़रा अदा के साथ धीरे-धीरे नंगी ही तो होना है तुम्हें... वो क्या कहते हैं तुम्हरी अंग्रेज़ी में... स्ट्रिपटीज़!” उन्होंने कहा तो मैं उनकी बात मानने को राज़ी हो गयी। चारों अपने-अपने गिलास लेकर ज़मीन पे बैठ गये और सुरिन्दर ने अपने स्मार्ट-फोन पे “चिकनी चमेली... छुप के अकेली... पव्वा चढ़ा के आयी...” लगा दिया। मैंने जल्दी से अपना गिलास खाली किया और फिर बिना सलवार के सिर्फ़ कमीज़ और ऊँची पेन्सिल हील वाले सैंडल पहने एक आइटम-गर्ल की तरह अपने स्टूडेंट्स के बीच में नाचने लगी। वो लोग “वाह-वाह” करने लगे। नाचते-नाचते मैं बारी- बारी से उनके करीब जाती और किसी को झुक कर चूम लेती तो किसी की टाँगों के बीच में पैर रख के लौड़े को सैंडल के पंजे से दबा देती।
फिर एक लड़का खड़े हो कर मेरे साथ चिपक कर नाचने लगा और और मेरी कमीज़ की पीछे से ज़िप मेरी कमर तक खोल दी तो मैंने मुस्कुराते हुए उसे प्यार से धक्का मार के वापस बिठा दिया और नाचते हुए बड़ी शोख अदा से उन्हें तड़पाते हुए धीरे-धीरे अपनी कमीज़ उतारने लगी। कुछ ही लम्हों में मैं सिर्फ़ ब्रा-पैंटी और हाई पेन्सिल हील के सैंडल पहने नशे में झूमती हुई अपने स्टूडेंट्स के सामने नाच रही थी। चारों लड़के मस्त होकर पैंट के ऊपर से ही अपने लौड़े मसलने लगे। ये देख कर मैं भी और ज्यादा गरम हुई जा रही थी। फिर मैंने धीरे-धीरे अपनी ब्रा भी उतार के एक लड़के के चेहरे पर फेंक दी। इतने में गाना खतम हुआ तो सुरेंदर ने वही गाना फिर से चला दिया। मैंने अपने नंगे बूब्स उछालते हुए नाचना ज़ारी रखा। उसके बाद मैंने अपनी गाँड मटकाते हुए धीरे-धीरे पैंटी अपनी टाँगों से नीचे खिसकानी शुरू की तो चारों लड़के आँखें फाड़े हवस-ज़दा नज़रों से मुझे देखने लगे।
जब मैंने अपने पैरों से पैंटी निकाल के हवा में उछाली तो चारों उसे पकड़ने के लिये लपके लेकिन पैंटी उनमें से सबसे बिगड़े और बड़े लड़के कुलदीप के हाथ आयी। वो फतेहाना अंदाज़ में इतराते हुए बैठ कर मेरी गीली पैंटी को सूँघने लगा। अब मैं सिर्फ़ ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल मादरजात नंगी उन लड़कों के बीच में नाच रही थी। मुझे अपने जिस्म पर बाल अच्छे नहीं लगते इसलिये मैं वैक्सिंग करके सिर के अलावा जिस्म के हर हिस्से को बालों से पाक रखती हूँ।
“अरे तबस़्सुम मैडम... साली तू तो मक्खन से भी ज्यादा चिकनी और गोरी है और तेरे गोल-गोल बूब्स कितने प्यारे हैं! इसकी चिकनी चूत भी कितनी गोरी है और गुलाबी है... आज तो मज़ा आ जायेगा इसे चोदने का! और गाँड भी कितनी सैक्सी है... आज साली रंडी की चूत फाड़ देंगे...! मैं तो रसीली गाँड भी मारुँगा साली तब़्बू मैडम की!” ये सब तबसरे करते हुए चारों लड़के खुद भी अपनी कॉलेज की युनिफॉर्म उतार के नंगे होने लगे। उनके नंगे जिस्म और खासतौर पे उनके तने हुए जवान लौड़े देख कर मेरी धड़कने तेज़ हो गयी और फरेफ्ता हो कर उनके लौड़े निहारने लगी। तने हुए चार नौजवान बे-खतना लौड़े मेरी हवस की आग बुझाने के लिये मौजूद थे। चारों लौड़े मेरे मरहूम शौहर के लंड के मुकाबले काफी बड़े थे। उनमें से सबसे छोटा लंड कमज़ कम आठ इंच होगा और कुल्दीप का लंड तो दस-ग्यारह इंच से कम नहीं था। अचानक मुझे शराब का नशा पहले से बुलंद महसूस हो रहा था। ज़िंदगी में पहली दफ़ा जो शराब पी थी।
उनमें से एक लड़का बोला, “ऐसे आँखें फाड़े क्या देख रही हो त़ब्बू मैडम... ये चारों लौड़े आज तेरी जम के खूब चुदाई करेंगे कि तेरी सारी अकड़ निकल जायेगी... कॉलेज में लड़कों की पिटाई करने का बहुत शौक है ना तुझे... आज इन लौड़ों से चुद के तेरी सारी फ्रस्ट्रेशन दूर हो जायेगी!”
“चल मैडम... पहले हमारे लौड़े तो चूस के चिकना कर...!” दूसरा लड़का मुझे नीचे बिठाने के मकसद से मेरे कंधे दबाते हुए बोला। चारों लड़के मुझे घेर के खड़े थे और जैसे ही मैं उनके बीच में उकड़ू बैठी तो एक लड़के ने अपना लंड मेरे चेहरे के आगे कर दिया। उसके लंड की चमड़ी में से बाहर झाँकती टोपी उसकी मज़ी से भीगी हुई थी। मैं अपने शौहर का लंड कईं दफ़ा चूसती थी इसलिये मुझे इन लड़कों के लंड चूसने में कोई परहेज़ नहीं था। वैसे भी इस वक़्त मैं शराब और हवस के नशे में इस कदर मखमूर थी कि कुछ भी नागवार नहीं था।
उस लड़के ने अपना लंड मेरे होंठों पे लगाया तो पेशाब और पसीने की तेज़ बू मेरी नाक में समा गयी लेकिन उस वक़्त मेरी कैफ़ियत ऐसी थी कि वो बू भी मेरे लिये शहवत-अंगेज़ थी। उसके लंड में से चिकना सा मज़ी रिस रहा था। मैंने एक लम्हा भी ताखीर किये बिना अपने होंठ खोलकर उसके लंड की टोपी अपने मुँह में ले ली। उसका तीखा सा तल्ख ज़ायका भी वाकय में मुझे बेहद लज़ीज़ लगा। ठोस और सख्त होने के साथ-साथ उसका लौड़ा गुदगुदा और लचकदार भी था। मेरे लरज़ते होंठों पे तपिश भरा मखसूस एहसास मेरी तिश्नगी बढ़ा रहा था। अपने मुँह के अंदर ही मैं अपनी ज़ुबान उसके लंड के सुपाड़े पे ज़ोर से चारों तरफ़ फिराने लगी जैसे कि वो कोई लज़ीज़ कुल्फ़ी हो। फिर अपने होंठ और ज्यादा खोल कर मैंने उसका लंड अपने मुँह में और अंदर तक ले लिया और बिल्कुल बेहयाई से मस्ती में अपने स्टूडेंट का लौड़ा चूसने लगी। ये बे-खतना लौड़ा मेरे मरहूम शौहर के लंड के मुकाबले काफी बड़ा था।
बाकी तीनों लड़के भी मेरे चारों तरफ़ खड़े थे। मेरे दोनों तरफ़ खड़े लड़के अपने लौड़े मसलते हुए मेरे दोनों गालों पे छुआ रहे थे और पीछे खड़े लडके का लंड मेरी गर्दन पे टकरा रहा था। अपने सामने वाले लड़के का लौड़ा चूसते हुए मैंने अपने दोनों तरफ़ खड़े लड़कों के लंड अपने एक -एक हाथ में पकड़ लिये और उन्हें मसलते हुए उनकी चमड़ी आगे-पीछे करने लगी। चार-चार जवान तगड़े लौड़ों से घिरी हुई मैं बे-इंतेहा मस्ती के आलम में थी। कुछ ही देर में मैं ऐसे बारी-बारी से चारों के लंड बदल-बदल कर अपने मुँह में ले कर मस्ती में शिद्दत से चूसने लगी और साथ-साथ दोनों मुठियों में दो लौड़े मसलने लगी। मेरे दोनों हाथ दो लड़कों के लौड़ों पे मसरूफ़ होने की वजह से मेरे सामने जो भी लड़का मौजूद होता वो खुद अपना लंड मेरे मुँह में डाल कर आगे-पीछे करते हुए चुसवाता और मैं भी पूरी शिद्दत से उनके लौड़े चूस रही थी। उनकी मज़ी का ज़ायका जब मुझे अपनी ज़ुबान पे महसूस होता तो पूरे जिस्म में सनसनी लहर दौड़ जाती। कितना फ़ाहिश मंज़र था। एक टीचर अपने से कम उम्र के स्टूडेंट्स के बीच में उनसे घिरी हुई सिर्फ़ ऊँची हील वाले सैंडल पहने बिकुल नंगी बैठी उनके लौड़े चूस रही थी।
“हाय मैडम... क्या मस्त लंड चूसती है साली.... साली तब़्बू का मुँह इतना मज़ेदार है तो चूत कितनी गरम होगी... मज़ा आ गया... मस्त लंड-चुसक्कड़ है साली!” उन लड़कों के फाहिश तबसरे मेरा जोश और हवस भी बढ़ा रहे थे। अपना लंड मेरे मुँह में चोदते हुए मस्ती में वो लड़के बाज़ दफ़ा अपना लंड मेरे हलक तक ठेल देते तो मेरी साँस घुट सी जाती लेकिन मुझे तड़पते देख कर वो कुछ लम्हों के लिये मेरे थूक से सना हुआ अपना लंड बाहर खींच लेते। मैं खाँसते हुए ज़ोर-ज़ोर से लंबी साँसें लेती तो मेरी हालत पे हंस पड़ते और तबसीरे कसते, “अब पता चला तब़स्सुम मैडम... क्लास में थप्पड़ मार-मार के हमारे गाल सुजा देती है साली!”
इसी तरह करीब आठ-दस मिनट मैं उनके लौड़े चूसती रही। इस दौरान मेरा मुँह और हलक़ भी उनके लौड़ों की जसामत से काफी हद तक मुवाफिक़ हो गये थे। फिर जब एक लड़का बोला कि “चलो यारों... अब इस साली मुसल्ली तब़्बू को चोदना भी है कि नहीं!” तो उन्होंने अपने लौड़े मेरे मुँह और मुठियों में से निकाले।
उनके तने हुए लौड़े मेरे थूक से बूरी तरह तरबतर थे और मेरे खुद के गाल, गला और छाती भी मेरे थूक से भीगे हुए थे। मैं वहीं ज़मीन पे अपने चूतड़ टिका कर बैठ गयी और पास पड़े अपने डुपट्टे से अपना चेहरा, गला और छाती पोंछने लगी। इतने में दो लड़कों ने जल्दी से पाँच गिलासों में फिर से व्हिस्की और पानी मिला कर पैग तैयार कर लिये। मैं तो पहले से ही नशे में मखमूर थी तो मैंने कोई मुज़ाहमत नहीं की और अपना गिलास ले कर धीरे-धीरे पीने लगी। वो चारों भी खड़े-खड़े अपने पैग पी रहे थे। एक लड़का बोला, “वाह तब़्बु मैडम... कमाल का लंड चूसती हो... मज़ा आ गया!”
“वो सुहाना और फ़ातिमा तो बिल्कुल अनाड़ी हैं आपके सामने... तबस़्सुम़ मैडम जी अंग्रेज़ी के साथ-साथ लंड चूसना भी तो सिखाओ उन माँ की लौड़ियों को!” दूसरे लड़के ने कहा और फिर तीसरा बोला, “देखो तो चूस-चूस के हमारे लौड़े किस तरह भिगो दिये त़ब्बू मैडम ने अपने थूक से!” इतने में एक लड़का मेरे हाथ से मेरा आधा भरा गिलास लेते हुए बोला, “तो क्या हुआ दोस्तों... लो साफ़ कर लो अपने-अपने लौड़े!” और ये कहते हुए वो अपना लंड मेरे गिलास में शराब में डुबा के हिलाने लगा। बाकी तीनों लड़के हंसने लगे और फिर उन तीनों ने भी बारी-बारी अपने लंड उस गिलास में डाल कर शराब से धोये। उसके बाद जब उन्होंने वो गिलास मुझे वापस पकड़ाया तो उनका इरादा समझ आते ही मैं हैरान रह गयी ओर थोड़ा गुस्से से बोली, “ये क्या बदतमीज़ी है... तुम लोगों का दिमाग तो ठिकाने पे है?”
“अरे मैडम जी... क्यों भड़क रही हो... अभी यही लौड़े तो मज़े से मुँह में लेकर चूस रही थी और इन पे लिसड़ा हुआ थूक भी तुम्हारा ही तो था...!” एक लड़के ने कहा तो इतने में दूसरा बोला, “अरे पी लो त़बस्सूम मैडम... बड़ा मज़ा आयेगा... चार-चार लौड़ों के मर्दाना फ्लेवर का मज़ा मिलेगा...!”
उन्होंने इसरार किया तो मुझे भी लगा कि वो सही ही तो कह रहे हैं और मैं ज़रा झिझकते हुए पीने लगी। ये देख कर वो खुशी से तालियाँ और सीटियाँ बजाने लगे तो मेरे चेहरे पे भी मुस्कुराहट आ गयी। उसके बाद उन्होंने मुझे खड़ा किया और फिर एक लड़के ने पीछे से मुझे कंधे से पकड़ कर और एक ने आगे से टाँगों से पकड़ कर उठा लिया और सूखी घास पे लिटा दिया। उनमें से सबसे बड़ा लड़का कुल्दीप मेरे ऊपर झुक कर मेर गालों पर, होंठों पर और गर्दन पर सब जगह चूमने लगा। उसका लंड बीच-बीच में मेरी चूत को छू जाता तो मुझे बिजली का झटका सा लगता और मैं सिसक जाती। फिर कुल्दीप गर्दन उठा कर अपने दोस्तों से बोला, “देख क्या रहे हो... आओ मिलकर तब़्बू मैडम की नशीली जवानी को शराब में मिलाकर पियेंगे...!”
उसके बाद बाकी तीनों भी मेरे करीब आ गये। एक लड़के ने मुझे कंधे से पकड़ कर बिठा दिया औरे मेरी दोनों तरफ़ अपनी टाँगें खोलकर मेरे पीछे बैठ गया। उसका लौड़ा मेरी कमर में चुभ रहा था। इतने में दो लड़के मेरे एक-एक पैर पे झुक गये और बोतल से थोड़ी-थोड़ी व्हिस्की मेरे सैंडल और पैरों पे उड़ेल कर उन्हें चाटने और चूमने लगे। उन लड़कों को इस तरह अपने सैंडल के तलवे, हील और स्ट्रेप्स के बीच में से मेरे पैर शराब में भिगो कर चाटते देख मेरे जिस्म में अजीब सी मस्ती भरी लहरें उठने लगी। इसी तरह मेरे जिस्म को शराब में भिगोते हुए वो दोनों आहिस्ता-आहिस्ता मेरी टाँगों को चूमते और चाटते हुए मेरी रानों की जानिब बढ़ने लगे। मेरी बगल में बैठा लड़का मेरे मम्मों पे अपने गिलास में से शराब उड़ेल-उड़ेल कर चाट रहा था और मेरे पीछे वाला मेरी गर्दन और कमर पे व्हिस्की उड़ेल कर चाट रहा था। इसी तरह कुछ देर वो चारों मेरे हुस्न को शराब में भिगो कर चूमते और चाटते रहे।
इतने में सुरिंदर बोला, “बस यार अब नहीं रुका जाता मुझसे... मैं तो अब तब्बू मैडम की चूत मारुँगा!” ये सुनके संज़य बोला, “गाड़ी मेरी... ये खेत मेरे बाप का तो पहले मैं चोदुँगा तब़्बु मैडम को!” इतने में कुल्दिफ बोला, “ओये इसको सुह़ाना और फात़िमा की हेल्प से इसे फंसाने का प्लैन मेरा था और बस में भी मैंने ही सबसे ज्यादा खतरा उठा कर तब़स्सुम मैडम की गाँड में उंगली करी थी तो इसकी चूत में मैं ही सबसे पहले अपना लौड़ा पेलुँगा!”
मुझे सबसे पहले चोदने के लिये उन लड़कों को इस तरह बहस करते देख मुझे बेहद अच्छा लगा और अपने हुस्न पे फ़ख्र सा महसूस हुआ। खैर कुळदीप ही एक बार फिर मुझे लिटा कर मेरे ऊपर आ गया और बाकी तीनों एक तरफ़ हो गये। कुल्दीप ही सबसे लम्बा-चौड़ा था और उसका लंड भी उनमें से सबसे बड़ा था। कुलद़ीप मेरे ऊपर झुक कर मेरे होठों पर अपने होंठ रख कर चूमने लगा। मैं भी उससे लिपट गयी और उसके होंठ और ज़ुबान चूसने लगी। मेरी कमर और चूतड़ों पर सूखा चारा रगड़ खा रहा था पर मेरे अंदर की हवस की आग मुझे इसका एहसास भी नहीं होने दे रही थी।
मेरे होंठों को चूमने के बाद कुल्दीप ने मेरे मम्मे भींच-भींच कर चूसे और चाटे। फिर से वो पास पड़ी बोतल उठा कर फिर से मेरे पेट और नाफ़ पे व्हिस्की उड़ेल कर उन्हें चाटने लगा। उसके बाद उसने दोनों हाथों से मेरे घुटने पकड़ कर मेरी टाँगें खोल दीं। जब वो मेरी चूत पे शराब डाल कर मेरी चूत चाटने लगा तो मैं मस्ती में पागल सी हो गयी। मेरे मरहूम शोहर ने भी कभी मेरी चूत को नहीं चाटा था। ये मेरे लिये बिल्कुल नया तजुर्बा था और मैं जोर-जोर से सिसकने लगी और उसके बाल अपनी मुठ्ठियों में जकड़ कर उसका चेहरा अपनी रानों में भींचने लगी। मेरा पेट अकड़ने लगा और चूत में फुव्वारे फूट पड़े। फिर उसने मेरी टाँगों के बीच में बैठ कर अपने अकड़े हुए सख्त लौड़े को मेरी चूत पे रख दिया तो मैं जोर से सिसक उठी “ऊँऊँम्फफ!”
“ओये कंडोम नहीं डालेगा क्या?” एक लड़के ने पूछा तो कुल्दीप बोला, “साला कंडोम लाया ही कौन है... पता थोड़ी था कि ये छिनाल त़ब्बू इतनी आसानी से आज ही चुदवाने के लिये तैयार होके दौड़ी चली आयेगी हमारे साथ!”
“कोई बात नहीं यार... इसे घर छोड़ते हुए रास्ते में केमिस्ट से आई-पिल दिलवा देंगे!” संज़य ने कहा।
“चल रंडी साली... कुत्तिया तब़स्सुम़ मैडम... तुझे स्वर्ग की सैर कराता हूँ!” कहते हुए कुलद़ीप ने अपना बे-खतना लौड़ा मेरी चूत में डालना शुरू किया। मेरी चूत तो महीनों से चुदी नहीं थी और उससे पहले भी चुदी थी तो अपने मरहूम शौहर के लंड से जो लंबाई और मोटाई दोनों में कुल्दीप के लंड से आधे से भी कम था। इसलिये कुल्दीप को मेरी बेहद भीगी हुई चूत में भी अपना लंड दाखिल करने के लिये काफी ज़ोर लगाना पड़ रह था। दर्द के मारे मेरी ज़ोर से चींख निकल गयी तो उसने फौरन अपने होंठों से मेरे होंठों को सी दिया और ज़ोर से अपना पूरा लौड़ा मेरी चूत में आगे ढकेलने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी से ने गरम-गरम लोहे की मोटी सलाख मेरी चूत में घुसेड़ दी हो। मैं अपना सिर भी नहीं हिला पा रही थी और उसके जिस्म के नीचे कुचली पड़ी हुई दर्द से छटपटा रही थी और वो था कि मेरी चूत फाड़ने पर अमादा था। इतना दर्द तो मुझे अपनी सुहागरात में अपने शौहर से पहली दफ़ा चुदवाने में भी नहीं हुआ था।
उसका लंड मेरी चूत में फंस-फंस कर जा रहा था तो उसने मेरे होंठों से अपने होंठ हटा लिये और मेरी कमर में अपनी बाँहें डाल कर जकड़ते हुए ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचते हुए अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसाने लगा। मेरी टाँगें छटपटा रही थीं और मैं अपनी मुठियों में सूखी घास भींचे हुए बे-तहाशा चींखने लगी, “आआआईईईई.... हाय.... अल्लाह के लिये छोड़ दो... प्लीज़... ऊऊऊँईईई कुऽऽलदीऽऽप बहोत बड़ाऽऽ है तेरा...!”
“और चिल्ला साली रंडी... और चिल्ला... तुझे कहा था ना कि आज तेरी चूत फाड़ देंगे... साली तब़्बू क्लॉस में बहुत मारती है ना!” वो बोला।
“प्लीज़ मुझे छोड़ो... आआआअहहह ईईईई! नहीं प्लीज़...” मैं गिड़गिड़ायी तो चारों हंसने लगे। “अभी बोल रही है छोड़ दो... पर जब दर्द चला जायेगा और मज़ा आने लगेगा तो डियर तब्बू मैडम... तुम ही बार-बार कहोगी कि मुझे चोद दो!” एक लड़का बोला।
“भोंसड़ चुदी! तू खुद ही तो अपनी मर्ज़ी से आयी थी ना चुदने के लिये... हम कोई ज़बरदस्ती नहीं लाये तुझे यहाँ पे...!” दूसरा लड़का बोला।
कुल्दीप ने इतने में अचानक से ज़ोर का झटका मारते हुए अपना तमामतर लौड़ा मेरी चूत में इतनी गहरायी तक पेल दिया जहाँ तक आज से पहले कोई चीज़ दाखिल नहीं हुई थी। इस अचानक हमले से मेरी ज़ोर से चींख निकल गयी, “आआआआईईईईई कुऽऽऽलद़ीऽऽऽप नहींऽऽऽ अळ्ळाऽऽहऽऽऽऽ रहम....!”
वो थोड़ी देर रुका तो मुझे दर्द थोड़ा कम होता महसूस हुआ लेकिन फिर उसने जब लौड़ा बाहर निकालना शुरु किया तो दर्द फिर शुरू हो गय। फिर वो अपने लौड़े को मेरी चूत में अंदर-बाहर करने लगा। कब मेरा दर्द खतम हुआ और कब मेरी दर्द भरी चींखें, गरम आहों और मस्ती भरी सिसकियों में तब्दील हो गयीं और कब मेरी छटपटाती टाँगें और बाँहें खुद-ब-खुद उसकी कमर में लिपट गयीं मुझे इसका पता भी नहीं चला। जैसा कि उन्होंने कहा था, थोड़े दर्द के बाद मुझे इस कदर मज़ा आने लगा कि दिल कर रहा था कि ये चुदाई खतम ही ना हो। वैसे भी कमबख्त ये चुदाई खतम भी कहाँ हो रही थी। वो मेरे कॉलेज का सबसे ताकतवर और बिगड़ा हुआ स्टूडेंट था और आसानी से कहाँ थकने वाला था। अब तो मैं खुद भी मस्ती में सिसकती हुई अपने चूतड़ उठा-उठा कर चुदवा रही थी। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि मेरे जैसी पाक और परहेज़गार और स्ट्रिक्ट टीचर एक दिन इस तरह शराब पी कर बिल्कुल नंगी होकर सूखी घास के ढेर पे सिर्फ़ ऊँची हील के सैंडल पहने अपने ही स्टूडेंट के नीचे लेटी हुई उसके लंड से पुर-जोश अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर चुदवा रही होगी।
पता नहीं कितनी दफ़ा मेरा जिस्म अकड़ा... पर जब भी मेरा जिस्म अकड़ता तो मेरी टाँगें और बाँहें उसकी कमर पर ज़ोर कस जाती और फिर जब मैं झड़ जाती तो मेरी टाँगें और बाँहें भी कुलद़ीप की कमर पे ढीली पड़ जाती। लेकिन वो कमबख्त काफी देर बाद झड़ा और झड़ा भी मेरी चूत में कहीं दूर अंदर तक। मुझे मेरी चूत के गहराइयों में कहीं गरम-गरम फुव्वारा छूटता महसूस हुआ। वो हाँफते हुए मेरे ऊपर गिर पड़ा लेकिन फिर संभल कर मुझे थोड़ी देर किस करने के बाद मेरे ऊपर से हटा।
मैंने देखा की मेरी गाँड के नीचे और आसपास की सुखी घास मेरी चूत से कईं दफ़ा खारिज़ हुए पानी से भीग चुकी थी। इतनी दफ़ा झड़ने के बावजूद मेरा जोश कम नहीं हुआ था क्योंकि कुल्दीप के मूसल जैसे लौड़े से चुदने के बाद मुझे चूत में बेहद खालीपन महसूस हो रहा था और चूत में लंड लेने की तलब बरकरार थी। इसके अलावा मुझे पता था कि अभी तो शुरुआत है। अभी तो तीन और लौड़े मेरी चूत चोदने के लिये बेताब थे। कुल्दीप हटा तो मेरा दूसरा बिगड़ा स्टूडेंट संज़य जिसे पता नहीं क्यों मैं पहले सबसे ज्यादा नफ़रत करती थी और जिसकी सबसे ज्यादा और खतरनाक पिटाई करती थी वो मेरे ऊपर आ गया और मेरे गालों और होंठों को चूमते हुए बोला, “मेरी प्यारी अखतर मैडम... अब मेरी बारी है... आज मुझे कुछ पढ़ाओगी नहीं! ओह सॉरी मैं तो भूल ही गया था... आज तो मैंने आपको सिखाना है कि अपने प्यारे स्टूडेंट की रंडी कैसे बनते हैं!” और वो मेरे होंठों को ज़ोर से चूमने लगा।
वो मुझे चूम भी रहा था और एक हाथ से मेरी छाती मसल रहा था और एक हाथ से मेरी कमर की साइड को सहलाते हुए मेरी बाँह सहला रहा था। उसका लौड़ा भी करीब-करीब कुळ्दी़प के लौड़े के मुकाबले का ही था और मुझे वो अपनी चूत और रानों के बीच में रगड़ता हुआ महसूस हो रहा था। मैं मस्त हो गयी थी और मेरी हवस फिर से भड़क उठी थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैं उससे लिपट गयी और उसे किस करने लगी। “ऊँहह... संजेऽऽय तुम मेरे सबसे अज़ीज़ स्टूडेंट हो गये हो आज!” हवस और शराब के नशे में पता नहीं कहाँ से मेरे मुँह से निकला। मैंने उसकी छाती को किस किया तो उसने मुझे मेरे सिर के बालों से पकड़ कर पीछे खींचा और मेरी गर्दन पर किस करने लगा। फिर मुझे उलटा करके मेरी कमर और मेरी गर्दन को पीछे से किस करने लगा और मेरे कान में बोला, “त़बस्सुम़ मैडम जी! कुल्दीप ने तो आपकी चूत मारी लेकिन मैं तो आपकी गाँड मारुँगा!”
ऐसा कह कर उसने मुझे मेरी कमर से पकड़ कर मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिये। अब मैं अपना सिर आगे झुका कर सूखी घास के ढेर पर टिकाये और कुहनियों और घुटनों के बल कुत्तिया बनी हुई थी। मेरी गाँड हवा में उठी हुई थी। उसने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ पकड़ कर उन्हें खोला और एक उंगली को थूक लगा कर मेरी गाँड पे रगड़ा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। क्या वो वही करने जा रहा था जो मैं सोच रही थी। मैं बेहद डर गयी। मेरे धड़कने बढ़ गयीं और पसीना आ गया। मैंने अपनी टाँगों के बीच में से अपनी गाँड के पीछे लटक रहे उसके टट्टों को देखा और उसके तने हुए लौड़े को देखा जो कमज़-कम दस इंच का था। उसने मेरी कमर को दोनो हाथों से पकड़ा और अपना लौड़ा मेरी गाँड के मुँह पर रखा तो मैं खौफ़ज़दा होकर गिड़गिड़ाते हुए बोली, “नहीं संजय! अल्लाह् के लिये ये ज़ुल्म ना करो... मैंने वहाँ कभी नहीं करवाया पहले.... मैं वहाँ पे तुम्हारा लौड़ा बर्दाश्त नहीं कर सकुँगी! प्लीज़ वहाँ नहीं...!” पिछली कुछ दो घंटों में उनकी सोहबत का मेरे ऊपर इतना असर हुआ कि ज़िंदगी में पहली दफ़ा मैंने “लौड़ा” जैसे गंदे और फ़ाहिश अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किया और उस वक़्त तो मुझे इस बात का एहसास तक भी नहीं हुआ।
लेकिन उसने मेरी एक नहीं सुनी और मुझे अपनी जानिब खींचते हुए अपना लौड़ा मेरी गाँड के छेद में ढकेल दिया। दर्द के मारे मेरी चींखें निकल गयी, “आआआआईईईईई सऽऽन्जयऽऽऽ मरररऽऽऽ गयीऽऽऽऽऽ मैं... अळ्ळाहहहऽऽऽ नहींऽऽऽ!” उसके लौड़े का सुपाड़ा अभी आधा इंच भी अंदर नहीं गया था कि मेरी गाँड फट के हाथ में आ रही थी। मेरी आँखों में आँसू आ गये और मैं चींखे जा रही थी। मैंने कुहनियों के बल आगे भागने की कोशिश की पर उसकी मजबूत बाँहों ने मुझे कमर से जकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया। “कहाँ जा रही है तब्बूमैडम मेरी जान... बड़ा दुख दिया है तूने क्लॉस में... आज मेरी बारी है... चल इधर आ जा मेरी तब़्बूजान!” वो बोला।
उसने और जोर लगाया तो मुझे उसके लौड़े से अपनी गाँड चीरती हुई महसूस हुई। उसका लौड़ा आहिस्ता-आहिस्ता गाँड के अंदर सरकने लगा। मैं रोते हुए दर्द से छटपटाती हुई ज़ोर-ज़ोर से चींख रही थी “आआऊ... आआऊ... नहीं.... प्लीऽऽ... आआऊ... अल्ल्ल्लाहहह... आआऊ... मर गयीऽऽऽ... संजेऽऽयऽऽ बाहर... बाहर निकाल ले ज़ालिम... ऊऊऊऊहहह अल्ल्लाहऽऽऽ चीर दिया मुझे!” मेरी गाँड बुरी तरह फैल गयी थी और बे-इंतेहा दर्द बर्दाश्त के बाहर था। तीन-चार मिनट ही लगे होंगे उसे अपना तमाम लौड़ा मेरी सूखी गाँड में घुसाने में लेकिन मुझे लगा जैसे कि बर्सों लग गये हों। दर्द के मारे मैं करीब-करीब बेहोश ही हो गयी थी।
“अरे भोंसड़ी की तऽऽब्बू मैडम... सब्र कर ज़राऽऽ... अभी अच्छा लगने लगेगा तुझे!” वो बोला और फिर उसने भी अपना लौड़ा अंदर बाहर करना शुरू किया। मैं सुबकते हुए जोर-जोर से कराह रही थी “ओहहह आआऊ... ओहह अल्लाआहहह... आआउ... आआह....” लेकिन कुछ देर बाद दर्द कम होने लगा और मुझे अजीब से मज़े का एहसास होने लगा... दर्द और मज़े का मिलाजुला एहसास। मैं वैसे ही कराहती रही लेकिन अब दर्द के साथ बेहद मज़ा भी आ रहा था और मैं नीचे से एक हाथ पीछे ले जाकर अपनी चूत रगड़ने लगी। जब उसने मेरी गाँड में अपनी मनी इखराज़ की तब तक मैं दो-तीन दफ़ा झड़ गयी।
वो उतरा तो मैं घूम के घास के ढेर पे पीठ के बल लेट गयी। गाँड में हल्का सा दर्द का एहसास अभी भी था तो मैं हाथ से अपनी गाँड का मुआयना करने लगी। चारों लड़के हंसते हुए बोले, “चिंता ना करो तबस़्सुम़ मैडम... कुछ नहीं हुआ... बिल्कुल ठीक है तुम्हारी गाँड... देखो कैसे फैल के खुल गयी है... लगता है और लंड माँग रही है ये!”
संज़य ने मेरी गाँड मार के मुझे मुख्तलिफ़ मज़े से वाक़िफ़ करवाया था लेकिन फिर भी चूत में खालीपन का एहसास और उसमें लंड लेने की बेकरारी बरकरार थी। मुझे पता था बाकी दोनों लड़के भी बेकरार हो रहे थे मुझे चोदने के लिये। मैं बस यही दुआ कर रही थी कि वो दोनों मेरी गाँड ना मारें और बस मेरी चूत की धुंआधार चुदाई कर दें। तीसरे लड़के सुरेंदर ने ज्यादा वक़्त ज़ाया नहीं किया और मेरे ऊपर आ गया। उसका लंड पहले दोनों लड़कों से लंबाई में ज़रा कमतर ज़रूर था लेकिन फिर भी तकरीबन आठ-नौ इंच लंबा था और उसके लंड की खासियत ये थी कि चारों लड़कों में सबसे ज्यादा मोटा था। चूसते वक़्त भी उसकी गैर-मामूली मोटाई की वजह से मुझे सुरिंदऱ का लंड मुँह लेने में सबसे ज्यादा तकलीफ हुई थी।
सुरिंदर ने मेरे ऊपर आते ही लौड़े की टोपी चूत के लबों के दर्मियान दबाते हुए एक ही धक्के में अपना तमाम लौड़ा ज़ोर से मेरी भभकती चूत में पेल दिया। इस तरह अचानक हमले से मेरी ज़ोरदार चींख निकल गयी। उसका मोटा लंड लेने के लिये मेरी चूत की दीवारों को फ़ैलाते हुए एक दफ़ा तो हद्द से ज्यादा खिंचाव बर्दाश्त करना पड़ा लेकिन उसका लंड मेरी रसीली चूत में दाखिल होने के बाद फिर तकलीफ कम हो गयी। मेरी चूत अब उसके लौड़े से ठसाठस भर गयी थी। मस्ती में मैंने अपनी टाँगें उसकी कमर पे लपेट कर कैंची की तरह कस दीं और वो पागलों की तरह मुझे वहशियाना तरीके से दनादन चोदनए लगा। “ऊँऊँह सुऽऽऽरिंदऱऽऽऽ आँआह...” मैं अलमस्त होकर सिसकने और आहें भरने लगी। मुझे चोदते हुए वो मेरे मम्मों पे झुका हुआ मेरे निप्पल और मम्मे मुँह में लेकर चूसने और काटने लगा। कुछ ही देर में मेरा जिस्म अकड़ा और चूत ने पानी छोड़ दिया लेकिन उसने मुझे चोदना ज़ारी रखा।
इतने में चौथा लड़का अनिल बोला, “जल्दी करो यार... मुझसे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा!” तो सुरिंदर ने मेरी चूत में दो-तीन ज़ोरदार धक्के मारे और मेरी कमर में बाँहें डाल कर अपना लौड़ा मेरी चूत में गहरायी तक घुसाये हुए ही घूम कर पलट गया जिससे कि अब मैं उसके ऊपर आ गयी। मैं इस कदर मस्ती के आलम में थी कि उसके ऊपर आगे झुकी हुई मैं उसके लौड़े पे ऊपर-नीचे उछलने लगी। वो भी नीचे से अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर मेरी चुत में लंड ठोक रह था। इतने में सुरेंदर हाँफते हुए बोला, “आजा अनि़ल! साथ में चोदते हैं इस माँ की लौड़ी तबससुम मैडम को!”
सुरिंदर की बात मुझे समझ नहीं आयी कि दोनों कैसे एक साथ मुझे चोद सकते हैं। पिछले तीन-चार दिनों में इंटरनेट पे जो मैंने कुछ-एक ब्लू-फिल्में और गंदी तसवीरें देखी थी तो उनके हिसाब से तो मुझे लगा शायद अनिल मेरे मुँह में लंड डाल कर चुसवायेगा। लेकिन जब मुझे उसके हाथ पीछे अपने चूतड़ों पे महसूस हुए और फिर अगले ही लम्हे उसके लंड का सुपाड़ा अपनी गाँड के छेद पे महसूस हुआ तो मेरी साँसें हलक़ में ही अटक गयीं। “हाय अल्लाह! ये कैसे मुमकिन है!” मैं तो ख्वाब में भी इस तरह की चुदाई का तसव्वुर नहीं कर सकती थी।
इससे पहले कि मैं कुछ रद्दे-अमल कर पाती, अनि़ळ ने एक ही धक्के में बेहद बेरहमी से आठ-नौ इंच लंबा अपना तमाम बे-ख़तना लौड़ा मेरी गाँड में अंदर तक पेल दिया। कुछ देर पहले संजय के लौड़े से चुदने के बाद मेरी गाँड खुल तो गयी थी लेकिन अनिल ने जिस बेरहमी से अपना लंड एक बार में पेला और फिर चूत में भी सुरिंदर का मोटा लौड़ा मौजूद होने के वजह से मैं दर्द के मारे ज़ोर से चींख पड़ी, “नहींईईंईंईंईं अऽऽनिलऽऽऽ.... रुक जाओ ओ ओ ओ ओ.... मर गयीईईई...! एक दफ़ा फिर मेरी आँखों में आँसू आ गये। मेरे दोनों स्टूडेंट मिलकर मेरी चूत और गाँड एक साथ चोदने लगे और मैं सुबकती हुई कराहने और चींखने लगी। चारों लड़के कुछ-कुछ तबसीरे कर रहे थे।
गनिमत है कि इस दफ़ा दो-तीन मिनट में ही दर्द का एहसास कम होना शुरू हो गया। मैं सिसकते हुए बोली, “हाय अल्लाह़! तुम लड़कों का दिमाग खराब हो गया क्या... आहहह.... ऊम्म्म ये क्या कर रहे हो... ऐसे भी कोई करता है क्या... ऊँहहह!” इस दोहरी चुदाई में मुझे अजीब सा मज़ा आने लगा था। एक लंड पीछे खिसकता तो दूसरा लंड अंदर फिसलता। गाँड और चूत के दर्मियान की झिल्ली पे मुझे उन दोनों लड़कों के लौड़े आपस में रगड़ते हुए महसूस हो रहे थे। दोनो लड़के वहशियाना जुनून में अपने लौड़े मेरे दोनों छेदों में बेहद तालमेल के साथ चोद रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरी चूत और गाँड एक हो गयी थीं जिसमें दो अज़ीम लौड़े एक साथ अंदर-बाहर चोद रहे थे। मेरे जिस्म के रोम-रोम में हवस के शोले भड़क रहे थे और बिजली का करंट दौड़ता हुआ महसूस हो रहा था। मेरी मस्ती भरी कराहें उस छोटे से कमरे में गूँजने लगी। ज़िंदगी में मैंने कभी इस कदर लुत्फ़ महसूस नहीं किया था। मेरी चूत ने इस दौरान तीन-चार दफ़ा पानी छोड़ा और फिर दोनों लड़कों ने भी तकरीबन साथ-साथ ही मेरी चूत और गाँड में अपनी-अपनी मनी भर दी।
उसके बाद एक दफ़ा फिर चारों ने अपने-अपने लौड़े मुझसे चुसवाये। उस वक़्त शराब के सुरूर और जिस्मानी लुत्फ़ और सुकून की कैफ़ियत में मैंने अपनी चूत और गाँड में से निकले उनके बेहद नाजिस लौड़े भी खूब शौक़ से मज़े ले कर चूसे। इस दफ़ा चारों ने अपना-अपना रस मेरे मुँह में और चेहरे पर इखराज़ किया।
तब तक शाम हो चुकी थी और मैं बेखुद सी होकर ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी घास के ढेर पे लेटी थी। मैं उनके लौड़ों के रस से भर चुकी थी। लिहाजा अब मुझसे सुबह वाली पर्फ़्यूम की खुशबू नहीं बल्कि शराब और उनके लौड़ों के रस की मस्तानी सी महक आ रही थी। मैं उठ कर अपनी सलवार और कमीज़ की जानिब जाने लगी तो थकान और नशे में ठीक से चल भी नहीं पा रही थी।
“अरे तब्बू मैडम... इतना ज़ोर मत दो... कमर लचक जायेगी... इस हालत में घर कैसे जाओगी... आओ पहले नहला दें तुम्हें!” एक लड़का बोला और मुझे नंगी को ही गोद में उठा के कमरे के बाहर पानी की मोटर के सामने पानी से भरी हौज़ में फेंक दिया। मुझे सैंडल उतारने का मौका भी नहीं दिया उन्होंने। सूरज डूबने से अंधेरा होने लगा था लेकिन आसमान में हल्की सी लाली अभी भी थी। फिर चारों लड़के खुद भी हौज़ में मेरे साथ कूद गये और हम पाँचों दस-पंद्रह मिनट एक दूसरे के साथ छेड़छाड़ करते हुए पानी में नहाते रहे।
जब हम हौद में से नहा कर निकले तो थकान और नशा भी पहले से कम महसूस हो रहा था। चारों लड़कों ने अपने साथ-साथ मेरा जिस्म भी एक तौलिये से पौंछा। उन्होंने खुद अपने कपड़े तो पहन लिये लेकिन मुझे उन्होंने कपड़े पहनने नहीं दिये। मैं खुले खेत में ऊँची पेंसिल हील की सैंडल पहने बिल्कुल नंगी खड़ी थी और हैरत की बात है मुझे ज़रा सी भी शरम महसूस नहीं हो रही थी।
अपने कपड़े पहनने के बाद उनमें से एक लड़का मुझे चूमते हुए बोला, “चलो तबस़्सुम मैडम... अब तुम्हें घर छोड़ दें!” फिर उसने मुझे नंगी को ही गोद में उठा लिया और टाटा सफ़ारी में ले गया। मैंने देखा कि एक लड़का मेरा पर्स और सारे कपड़े इकट्ठे करके ले आया। सब कार में बैठ गये और मेरे घर की जानिब चल पड़े। करीब आधे घंटे का ही रास्ता था। रास्ते में चारों लड़कों ने बारी-बारी अपनी सीट और ड्राइवर बदल-बदल के मुझे खूब चूमा और मसला। मेरी शर्म-ओ-हया तो बिल्कुल काफ़ूर हो ही चुकी थी और मैं सरगर्मी से उनका पूरा साथ दे रही थी और मज़े ले रही थी। उनमें से कोई मेरे गुदाज़ रसीले मम्मों का ज्यादा दिवाना था तो कोई मेरी हसीन गाँड को ज्यादा तवज्जो दे रहा था। एक दिलचस्प बात ये थी कि ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल में मेरे खूबसूरत पैरों पे चारों लड़के फ़िदा थे और चारों ने मेरे सैंडलों और पैरों को काफ़ी चूमा चाटा। इस दौरान थोड़ी सी शराब जो बोतल में बाकी रह गयी थी वो भी उन्होंने बातों-बातों में मुझे ही पिला दी।
रास्ते में एक केमिस्ट की दुकान के करीब कार रोक के एक लड़का उतर कर जल्दी से मेरे लिये ‘आई-पिल’ की गोली ले आया और बोला कि घर जाते ही मैं वो गोली ले लूँ ताकि प्रेगनन्सी की कोई गुंजाईश ना रहे। उन्होंने मेरे घर से थोड़ी दूर पे कार रोकी और सलवार-कमीज़ पहनने में मेरी मदद की। लेकिन उन नामाकूलों ने मेरी ब्रा और पैंटी नहीं लौटायी। उनमें से एक लड़का बोला, “अरे तब़्बू मैडम जी! ये तो हमारे पास निशानी रहेगी कि हमने हमारी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत, गोरी-चिट्टी और हमारे कॉलेज की सबसे स्ट्रिक्ट टीचर तब़स्सुमअख़तर मैडम को जमकर चोदा था! उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुरा दी और फिर अपना दुपट्टा और पर्स लेकर बड़ी बेदिली से कार से उतरी क्योंकि उनके चूमने चाटने और मसलने की वजह से मैं एक दफ़ा फिर बेहद गरम हो चुकी थी।
नशे की हालत में झूमती हुई बड़ी मुश्किल से ऊँची ऐड़ी की सैंडल में चलती हुई मैं घर तक पहुँची। अगर अंधेरा ना हुआ होता और कोई मुझे इस तरह चलते हुए देख लेता तो झट सारा माजरा समझ जाता। हमारे घर ‘आख्तर-हाऊज़’ के गेट पे एक सिक्युरिटी गार्ड अपनी चौंकी में मौजूद होता है लेकिन किस्मत से उस वक़्त वो शायद खाना खाने चला गया था। घर के अंदर भी एक नौकरानी के अलावा कोई नहीं था और वो भी अपने कमरे में मौजूद थी। घर आते ही मैं एक दफ़ा फिर नहाने के लिये बाथरूम में घुस गयी और फिर कपड़े बदल कर उसे खाना लगाने के लिये आवाज़ दी। खाना खा कर मैंने वो आई-पिल की गोली भी ली। बाद में अपने बेडरूम में लेटी हुई मैं सोचने लगी कि कैसे मेरे लुच्चे कमीने स्टूडेंट्स ने अपनी पिटाई का बदला लेने के लिये अपनी टीचर ही चोद डाली। उनका भी क्या कसूर... जब मैं खुद भी तो अपनी हवस की आग की चपेत में अपने तमाम इखलाक़ भूल कर अपनी इज़्ज़त-आबरू और स्टेटस की भी परवाह किये बिना एक ही दिन में एक साथ कितनी ही हरामकारियों में शामिल हो गयी। मुझे तो ज़िनाकारी और शराब के नाम से भी नफ़रत थी और आज मैंने खुद अपनी रज़ामंदी से शराब के नशे में मस्त हो कर चार-चार नौजवान स्टूडेंट्स के साथ हर किस्म की चुदाई का लुत्फ़ उठाया। लेकिन फिर भी मुझे गुनाह या गिल्ट का ज़रा भी एहसास नहीं हो रहा था बल्कि निहायत सुकून और खुशनुदी महसूस हो रही थी। यही सब सोचते-सोचते मेरी आँख लग गयी। उस रात जैसी गहरी और अच्छी नींद मुझे पहले कभी नही आयी।
उस दिन के बाद तो मेरी ज़िंदगी का रुख ही बदल गया... मेरा जीने का अंदाज़... मेरा नज़रिया बिल्कुल बदल गया और मेरे कदम बस बहकते ही चले गये और मैं निहायत ही चुदक्कड़ और ऐय्याश बन गयी। शराब और सिगरेट भी मामूलन पीने लगी। अगले सात दिन मैं घर में अकेली थी क्योंकि अम्मी और अब्बू अजमेर गये हुए थे। उनकी गैर-मौजूदगी का फ़ायदा उठा कर मैं हर रोज़ कॉलेज के बाद शाम के वक़्त चारों स्टूडेंट्स को अपने ही घर पे बुला लेती और कईं घंटों तक उनके साथ शराब के नशे में दिल खोल कर ऐयाशी करती। चारों मिलकर मेरी चूत और जिस्म चूमते चाटते और मुझे खूब मसलते। मैं भी उनके लौड़े मुँह में ले कर चूसती और कभी वो एक-एक करके मेरी चूत चोदते या गाँड मारते और कभी एक साथ दो तो कभी तीन लड़के मेरी चूत और गाँड और मुँह में एक साथ अपने लौड़े डाल कर चोदते। मुझे भी सबसे ज्यादा मज़ा अपनी गाँड और चूत एक साथ दो लौड़ों से चुदवाने में आने लगा। प्रेग्नेन्सी से बचने के लिये मैंने कान्ट्रासेप्टिव पिल्स लेना भी शुरू कर दिया।
वो एक हफ़्ता तो रोज़ शाम को खूब दिल खोल के ऐय्याशी की लेकिन मेरे अम्मी और अब्बू के लौटने के बाद तो हर रोज़ शाम को इस तरह अपने स्टूडेंट्स से मिलना मुमकिन नहीं था। मुझे तो चुदवाने का शद्दीद चस्का लग चुका था। मैं कॉलेज की बस से कॉलेज जाने की बजाय अब फिर से अपनी स्कोरपियो ड्राइव करके जाने लगी। छुट्टी के बाद चारों लड़के मेरे साथ मेरी स्कोरपियो में घर जाते लेकिन उससे पहले रास्ते में हाइवे से एक सुनसान कच्चे रास्ते से होते हुए हम एक पुरानी खंडहर बनी फैक्ट्री के पीछे कार रोकते और कार में ही मैं नंगी होकर उनसे चुदवाती। हफ़्ते के पाँच दिन इस ज़ल्दबाज़ी की चुदाई के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। शाम को फोन पे उनके सैक्सी मेसेज आते तो मैं भी वैसे ही जवाब दे देती। रात को सोने से पहले इंटरनेट पे पोर्न वेबसाइट देखती या फोन पे उन चारों स्टूडेंट्स के साथ गरम-गरम शहवत-अंगेज़ बातें करते हुए मोटे केले या लंबे बैंगन से खुद-लज़्ज़ती का लुत्फ़ उठाती। उनकी टीचर होते हुए भी उन चारों नालायकों की इंगलिश तो मैं ज्यादा सुधार नहीं सकी लेकिन मैं उनसे गंदी-गंदी गालियाँ और फ़ाहिशी गंदी ज़ुबान ज़रूर सीख गयी। उनके साथ गंदे अल्फ़ाज़ों में बात करने में अजीब-सा लुत्फ़ महसूस होता था और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरी ज़ुबान में भी गालियाँ और गंदे अल्फ़ाज़ इस तरह शामिल हो गये कि अब तो किसी से आमतौर पे बातचीत के दौरान मुझे एहतियात बरतनी पड़ती है।