Episode 33


फिर उसने बैठ कर अपना ह़िंदू लंड मेरे चेहरे के सामने ला कर मेरे होंठों पर रख दिया। मैंने शरारत से उसकी आँखों में देखते हुए अपने होंठ खोल कर उसका अनकटा लंड जो कि मेरी चूत और उसके खुद के पानी से सना हुआ था, अपने मुँह में ले लिया। उसके मर्दाना ह़िंदू लंड में अभी भी काफी सख्ती बरकरार थी। मुझे अपनी चूत और उसके लण्ड के पानी का मिलाजुला स्वाद बहुत ही लज़ीज़ लग रहा था। मेरे चूसने से उसका लण्ड फिर फूलने लगा और उसने झटके मारते हुए मेरा मुँह चोदना शुरू कर दिया।

अचानक उसने अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाला। उसका ह़िंदू अज़ीम लंड फिर से पूरा सख्त हो कर फूल गया था। “चल साली मुसल्ली राँड! घोड़ी बन जा! अब तेरी मुस्लि़मा नवाबी गाँड की धज्जियाँ उड़ाउँगा!” उसने कहा। रमेश अक्सर अपने आठ इंच लंबे मोटे लंड से मेरी नवाबी गाँड मारता था और मुझे भी बेहद मज़ा आता था लेकिन बलराम का लंड तो उससे कहीं ज्यादा लम्बा मोटा था। इसलिये मुझे थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई लेकिन इतना अज़ीम अनकटा लण्ड अपनी गाँड में लेने के ख्याल से सनसनी भी महसुस होने लगी। मैंने बलराम को देखते हुए कहा, “नहीं! नहीं! तुम्हारा ये गदाधारी लण्ड-ए-अज़ीम तो मेरी गाँड फाड़ डालेगा!” लेकिन मेरी आवाज़ मुस्तकिल नहीं थी और मेरी आँखों और चेहरे के जज़्बातों से भी बलराम समझ गया कि मैं सिर्फ नखरा कर रही हूँ।

“मुझे पता है मुसल्ली राँड! तेरी मोटी गाँड में भी बहुत खुजली है! एक बार मेरा लंड अपनी छिनाल मुस्लि़मा नवाबी गाँड में ले लेगी तो हर रोज़ गाँड मरवाने के लिये भीख माँगेगी!” वो बोला और मुझे बिस्तर से उठाकर ज़मीन पर खड़ा किया और मुझे बिस्तर पर झुकने को कहा। “चल मुसल्ली छिनाल! खड़ी-खड़ी ही बिस्तर पर हाथ रख कर झुक जा!” जैसे ही मैं बिस्तर पर झुकी, बलराम ने मेरे चूतड़ों पर दो-तीन थप्पड़ मारे और फिर मेरी गाँड के छेद पर अपने लंड का गदा जैसा सुपाड़ा टिका दिया और फिर धीरे-धीरे मेरी गाँड में घुसेड़ने लगा।

“आआईईईईऽऽऽ! अल्लाहऽऽऽऽ मर गयी!!!” मैं दर्द बर्दाश्त करते हुए चिल्लायी। उसने बिना तवज्जो दिये मेरी गाँड में अपना खंबे जैसा ह़िंदू मर्दाना लंड घुसेड़ना ज़ारी रखा। “हायऽऽ अल्लाहऽऽऽ! नहींऽऽऽ अल्लाह!” मेरी आवाज़ दर्द और वासना दोनों मौजूद थीं। दर्द भी इस कदर था कि मैं खुद को छटपटाने से रोक नहीं पा रही थी और तड़प कर ज़ोर-ज़ोर से अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम ने फिर मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ मारे और फिर झुक कर मेरे छटपटाते जिस्म को अपनी मजबूत बाँह में कस कर पकड़ लिया और अपना बाकी का ह़िंदू ना-कटा लंड मेरी गाँड में ढकेलने लगा।

धीरे-धीरे मेरा दर्द काफूर होने लगा और मुझे और मज़ा आने लगा। मेरी गाँड बलराम के ह़िंदू लण्ड पर चिपक कर कस गयी और मैं उसके नीचे दबी हुई उसका लंड अपनी गाँड में और अंदर लेने की कोशिश में अपने चूतड़ उछालने लगी। कुछ ही लम्हों में उसका तमाम लण्ड मेरी गाँड में दाखिल हो गया। अब बलराम ज़ोर-ज़ोर से झटके मारने लगा और उसके मर्दाना पुट्ठे मेरे चूतड़ों पर टकराने लगे। “चोदो मेरे हि़न्दु राजा! मेरी मुस्लि़मा नवाबी गाँड में अपना शाही लण्ड ज़ोर-ज़ोर से चोदो!” मैं मस्ती में बोलते हुए अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम अब इतनी ज़ोर-ज़ोर से झटके मार कर अपना लण्ड मेरी छिनाल कसी हुई नवाबी गाँड में पेल रहा था कि मैं ऊँची हील के सैंडल में अपने पैरों पर खड़ी नहीं रह सकी और अपने पैर और टाँगें ज़मीन से हवा में उठा कर बिस्तर पर पेट के बल सपाट झुक गयी। अब मेरी चूत भी नीचे से बिस्तर पर रगड़ रही थी। करीब दस मिनट तक बलराम ने मेरी गाँड अपने ह़िंदू अज़ीम लंड से मारी और मेरी चूत ने तीन बार पानी छोड़ा। फिर बलराम भी मेरी कमर पर झुका और तमाम ह़िंदू लण्ड मेरी गाँड में ठाँस कर रुक गया और फिर मेरी गाँड अपने पानी से भर दी।

हम दोनों कुछ देर इसी तरह पड़े हाँफते रहे और पिर धीरे-धीरे बलराम ने अपना ह़िंदू अनकटा लंड मेरी मुस़लिमा गाँड में से बाहर निकाला। फिर वो खड़ा हुआ तो मैं भी पलट कर उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुराने लगी।

मैं बैठ कर अपने खुले हुए बाल बाँधने लगी तो बलराम झुक कर मेरी मुस्लि़म चूचियाँ पकड़ कर आहिस्ता से दबाने लगा। उसका लण्ड अब ढीला पड़ गया था लेकिन फिर भी छः-सात इंच का था। मेरे शौहर असलम शरीफ की लुल्ली तो सख्त होकर भी मुश्किल से तीन-चार इंच की होती थी। बलराम का ह़िंदू लंड अपने पानी से सना हुआ चिपचिपा रहा था। मैंने उसे पकड़ अपने मुँह में भर लिया और चूसते हुए साफ करने लगी। बलराम जी के ह़िंदूलंड को चूसते हुए मुझे सिर्फ लंड के पानी का ही लज़ीज़ स्वाद नहीं बल्कि अपनी गाँड का भी हल्का-हल्का सा जाना-पहचाना ज़ायका आ रहा था। इससे पहले भी कईं बार मैंने रमेश से गाँड मरवाने के बाद उसके लण्ड से ये मज़ेदार ज़ायका लिया था।

इतने में बलराम ने कहा, “शबाना बेगम! आओ तुम्हें अपने लंड की शराब पिलता हूँ!”

“तुम मुझे अपना पेशाब पिलाये बगैर मानोगे नहीं!” मैं मुस्कुराते हुए अदा से बोली। “एक बार पी कर देख फिर तू खुद ही पेशाब पिये बगैर मानेगी नहीं!” उसने हंसते हुए जवाब दिया। फिर उसने मुझे बिस्तर से उतार कर नीचे ज़मीन पर बैठने को कहा तो मैं उसकी टाँगों के बीच में घुटने मोड़ कर बैठ गयी। अब तो मैं भी उसका पेशाब चखने के लिये मुतजस्सिस थी और गर्दन उठा कर मैं बलराम की आँखों में झाँकते हुए अदा से अपने होंठों पर जीभ फिराने लगी और बोली, “अब जल्दी से पिला दो अपने लण्ड की शराब! मैं भी देखूँ कितना नशा है इसमें!”

उसने मेरे मुलायम सुर्ख होंठों पर अपना लंड टिकाया तो मैंने होंठ खोल कर उसके लंड का आधा सुपाड़ा मुँह में ले लिया। एक लम्हे बाद ही बलराम आहिस्ता-आहिस्ता मेरे मुँह में पेशाब करने लगा। जब मेरा मुँह उसके गरम पेशाब से भर गया तो उसने अपना लंड मेरे होंठों से पीछे हटा लिया। मैंने मुँह में भरे फेशब को धीरे-धीरे मुँह में ही घुमाया और फिर आहिस्ता से अपने हलक में उतार दिया। मेरे मुँह में एक साथ कितनी ही तरह के ज़ायके एक-एक करके फूट पड़े। नमकीन, कसैला, थोड़ी सी खट्टास, थोड़ी सी कड़वाहट और फिर हल्की सी मिठास। उफ्फ अल्लाह! क्या कहुँ! इतने सारे ज़ायकों का गुलदस्ता था। फिर बलराम ने इसी तरह मेरे मुँह में सात-आठ बार अपना पेशाब भरा और हर बार मैं मुँह में पेशाब घुमा-घुमा कर पीते हुए आँखें बंद करके एक साथ इतने सारे ज़ायकों की लज़्ज़त लेने लगी। बलराम के पेशाब का आखिरी कतरा पीने के बाद मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए बलराम की आँखों में देखते हुए बोली, “शुक्रिया मेरे हि़न्दु सरताज़! मुझे पेशाब के मज़ेदार ज़ायके से वाकिफ कराने के लिये! वाकय में बेहद लज़िज़ और नशीली शराब है ये!”

उसके बाद हम नंगे ही उस बेडरूम में गये जहाँ मेरा शौहर असलम शरीफ खर्राटे मार कर नशे में धुत्त सो रहा था। क्योंकि हमारे कपड़े उसी कमरे में थे। मेरा नशा इतनी देर में ज़रा भी कम नहीं हुआ था और मैं बलराम के मर्दाना ह़िंदू जिस्म के सहारे ही लड़खड़ाती हुई चल रही थी। कमरे में आ कर बलराम अपने कपड़े पहनने लगा और मैं नशे में झूमती हुई नंगी ही बिस्तर पर बैठ कर उसे देखने लगी। शौहर असलम मेरे पास ही लेटा हुआ खर्राटे मार रहा था। अपने कपड़े पहनते हुए बलराम बोला, “ज़रा अपने शौहर का लंड कितना बड़ा है मुझे भी बता!” बलराम की बात सुनकर मैं हंस पड़ी और शौहर असलम के पास खिसक कर मैं आहिस्ते से शौहर का पजामा खोलने लगी। उसने अंदर चड्डी नहीं पहनी थी तो मैंने आहिस्ता से पजामा खींच कर नीचे कर दिया और उसकी लुल्ली की तरफ इशारे करके हंसने लगी। बलराम ने देखा तो वो भी ज़ोर से हंसने लगा।

शौहर असलम की लुल्ली छोटी होने की वजह से ठीक से नज़र भी नहीं आ रही थी। मैंने हंसते हुए बलराम को इशारे से अपनी दो उंगलियाँ फैला कर बताया कि जब असलम की लुल्ली खड़ी होती है तो तीन इंच की होती है। बलराम ने पास आकर अपने ह़िंदू बड़े कड़क मूसल जैसे लंड पर मेरा हाथ रखा और मसलते हुए बड़ा करने लगा और मेरी आँखों में देखने लगा। उसकी ह़िंदू अदायें मेरी मुस्लि़म चूत को शर्मिंदा कर रही थी लेकिन मैं अपनी चूत और गाँड में उसके हि़न्दु लंड का पानी लेकर चुदक्कड़ हो चुकी थी।

उसने अपने सारे कपड़े पहन लिये और मैं नंगी ही नशे झूमती उसके साथ फिर से बाहर हॉल में आ गयी। हम दोनों अभी भी मेरे शौहर का मज़ाक उड़ाते हुए हंस रहे थे। बाहर हॉल में आ कर फिर हम दोनों ने कुछ देर किस किया और मैंने उसकी पैंट की चेन खोलकर अपना एक हाथ अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया। मेरे होंठों को चूमते हुए बलराम बोला, “लगता है शबाना बेगम का अभी भी मन नहीं भरा!”

“ऊँहुँ!” मैंने ना में सिर हिलाया और फिर बोली, “वादा करो मुझे हर रोज़ इसी तरह चोदोगे!” वो हंसने लगा और पिर बोला, “तेरी मुस्लि़मा चूत और गाँड कि तो हर रोज़ रात को छत्त पर अपने हि़न्दू लण्ड से चुदाई करुँगा मुसल्ली राँड!” फिर उसकी पैंट में आगे से हाथ डाले हुए मैं उसका ह़िंदू लंड पकड़ कर दरवाजे तक ले जाकर अलविदा कहा।

दूसरे दिन सुबह-सुबह मैं रिश्तेदारों से मिलने जाने के लिये बुऱका पहने शौहर असलम के साथ निकली। बलराम भी बाहर खड़ा सिगरेट पी रहा था। असलम मिय़ाँ अपनी पुरानी गाड़ी स्टार्ट करने लगे और मैं खड़ी होकर बलराम से इशारे लड़ाने लगी। कभी वो किस करने का इशारा करता कभी असलम की छोटी लुल्ली पर हंसकर हाथ से बताता। मैं भी बाहर खड़ी होकर कभी अपनी मुस्लि़म चूची उभार कर दिखाती और कभी हवा में किस करती कभी अपना अंगुठा मुँह में डाल कर लंड चूसने का इशारा करती। फिर गाड़ी स्टार्ट हुई तो मैं पीछे बैठ कर जाते हुए बलराम को अपना हिजाब हटा कर किस करती हुई चली गयी।

उस दिन से मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी। शुरू-शुरू में मैंने रमेश और बलराम दोनों को एक -दूसरे के बारे में नहीं बताया। मुझे डर था कि उन दोनों में से कहीं कोई नाराज़ ना हो जाये और मैं उन दोनों में से किसी को भी खोना नहीं चाहती थी। मैंने रमेश से बहाना बना दिया कि मेरे शौहर को हमारे तल्लुकात के बारे में शक हो गया है और इसलिये मैं उससे रात को छत्त पर नहीं मिल पाउँगी। दिन में वो जब चाहे मुझे चोद सकता है। उधर बलराम से मैं रात को ही मिल सकती थी क्योंकि दिनभर वो अपने शोरूम में होता था। अब मैं दिन में शौहर के जाने के बद रमेश के ह़िंदू लंड की रखैल बन कर चुदती। फिर रात को असलम मियाँ के नशे में चूर हो जाने के बाद मैं भी शराब पी कर छत्त पर बलराम के मूसल ह़िंदू से चुदने पहुँच जाती और आधी रात के बाद तक उसके साथ चुदवा कर नशे में झूमती हुई वापस नीचे आती।

हर रोज़ सुबह-सुबह मैं उसका ताज़ा पेशाब पीने छत्त पर पहुँच जाती। उस वक्त शौहर असलम मियाँ नीचे तैयार हो रहे होते थे। मुझे पेशाब पीने की इतनी लत्त लग गयी कि जब मैं रमेश के साथ होती तो उसका पेशाब भी पीने लगी और यहाँ तक कि कुछ ही दिनों में अपना खुद का पेशाब भी पीना शुरू कर दिया। अब तो आलम ये है कि जब कभी भी मुझे मूतना होता है तो मैं बाथरूम जाने की बजाय एक बड़े गिलास में ही पेशाब करती हूँ और फिर मज़े ले-ले कर पीती हूँ।

बलराम मुझे बहुत ही ज़लील तरीके से रंडी की तरह चोदता था। मुझसे हमेशा नयी-नयी ज़लील और ज़ोखिम भरी हरकतें करवा कर मुझे गरम करता था और मुझे भी इसमें बेहद मज़ा आता था और मैं भी उसकी हर फरमाइश पुरी रज़ामंदी से पूरी करती थी। बलराम हर हफ्ते मुझे नये-नये फैशन की ऊँची हील वाली सैंडल की एक-दो जोड़ी तोहफे में देता था। एक बार उसने बहुत ही कीमती और खूबसुरत ऊँची हील के सैंडलों की जोड़ी दिखाय़ी और बोला कि अगर मुझे चाहिये तो उसके शो-रूम पर आकर लेने होंगे लेकिन मुझे सिर्फ बुऱका पहन कर आना होगा। पैरों में सैंडलों के आलावा बुऱके के नीचे कुछ भी पहनने से मना कर दिया। अगले ही दिन मैंने सिर्फ बुऱका और ऊँची हील के सैंडल पहने और बिल्कुल नंगी रिक्शा में बैठ कर बाज़ार पहुँच गयी। फिर वैसे ही भीड़भाड़ वाले बज़ार में भी करीब आधा किलोमितर पैदल चल कर बलराम के शो-रूम पर पहुँची।

ऐसे ही करीब चार महीने निकल गये। इस दौरान मैंने चुदक्कड़पन की तमाम हदें पार कर दीं। रात को तो मैं अब असलम मियाँ की शराब में नींद की गोलियाँ मिला देती ताकि सुबह तक खर्राटे मार कर सोता रहे। मैं अब छत्त से होकर बलराम के घर में उसके बिस्तर में पुरी-पूरी रात गुज़रने लगी। कईं बार बलराम रात को हमरे घर आ जाता और हम दोनों शौहर असलम मियाँ की मौजूदगी में रात भर ऐय्याशी करते। फिर एक दिन रमेश को मेरे और बलराम के रिश्ते के बारे में पता चल गया। पहले तो थोड़ा नाराज़ हुआ पर फिर मैंने प्यार से उसे मना लिया और बलराम को भी रमेश से अपने ताल्लुकतों के बारे में बता दिया। फिर तो दोनों ह़िंदू मर्द मिलकर अक्सर रात-रात भर मुझे चोदने लगे। कभी छत्त पर तो कभी बलराम के घर में और कभी मेरे ही घर में। दोनों एक साथ मेरी गाँड और चूत में अपने-अपने ह़िंदू हलब्बी मर्दना लण्ड डाल कर चोदते तो मैं मस्ती में चींखें मार-मार कर दोहरी चुदाई का मज़े लेती।

ये सिलसिला करीब एक साल तक चला। फिर एक दिन अचानक मेरी ज़िंदगी में फिर से अंधेरा छा गया। मेरे शौहर असलम शरीफ का तबादला दूसरे शहर में हो गया। जिस्मनी तस्कीन और अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिये मैं फिर बैंगन और मोमबत्ती जैसी बेजान चीज़ों की मातहत हो गयी। लेकिन अब इस तरह मेरी प्यास नहीं बुझती थी। मुझे तो रमेश और बलराम के लंबे मोटे ह़िंदू हलब्बी मर्दाना लौड़ों से दिन रात चुदने और दोहरी चुदाई की इतनी आदत हो गयी थी कि मैं कितनी भी कोशिश करती और घंटों अपनी चूत और गाँड में मोटी-मोटी मोमबत्तियाँ और दूसरी बेजान चीज़ें घुसेड़-घुसेड़ कर चोदती लेकिन करार नहीं मिलता। इसी दौरान हमारे घर से थोड़ी दूर एक मदरसे में उस्तानी की ज़रूरत थी तो मैंने दरख्वास्त दे दी और मेरा इन्तखाब भी हो गया। अब मैं सुबह दस बजे से दोपहर में दो बजे तक मदरसे में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी। इस वजह से अब कम से कम आधा दिन तो अब मैं मसरूफ रहने लगी।

फिर एक महीने बाद मेरे शौहर किसी काम से एक हफ्ते के लिए दफ्तर के काम से बाहर गये। मैं भी दोपहर में मदरसे से लौटते हुए बुऱका पहने अपनी प्यासी मुस्लि़म चूत लेकर शॉपिंग के लिये बाज़ार गयी। अभी मैं मदरसे से निकल कर चलते हुए बीस मिनट का रास्ता ही तय कर पायी थी कि सामने से एक औरत बुऱका पहने मेरी ही तरह ऊँची हील की सैंडल में शोख अंदाज़ में आ रही थी। उसने भी चेहरे से नकाब हटा रखा था। जब वो पास आयी तो मैंने पहचाना के ये तो नाज़िया है। “हाय अल्लाह! नाज़िया तू!” मैंने खुशी से कहा। “तू शबाना... शब्बो तू?” नाज़िया भी हंसते हुए मुझसे लिपट गयी। हम दोनों खुशी से गले मिले और बातें करने लगे कि अचानक एक बाइक तेज़ी से आयी। हम लोग जल्दी से एक तरफ़ हट गये और उस लड़के ने जल्दी से अपनी बाइक दूसरी तरफ़ मोड़ ली और गुस्से से जाते-जाते बोला, “रंडियाँ साली! देख कर चलो सालियों!” और कहता हुआ चला गया। उसकी गालियाँ सुनकर मुझे रमेश और बलराम की याद आ गयी और जिस्म में एक सनसनी फैल गयी। अपने जज़्बात छिपाने के लिये मैंने नज़रें झुका लीं। फिर नाज़िया की तरफ़ देखा तो उसने शरारत भरे अंदाज़ में कहा, “लगता है ये हज़रत हि़ऩ्दू लंड वाले हैं!” और कहकर ज़ोर से हंसते हुए बोली, “चल छोड़ ना शब्बो! बता कि यहाँ कैसे आयी?” मुझे हैरत हुई कि नाज़िया जो कॉलेज की सबसे अव्वल दर्जे की तालिबा थी, उसके मुँह से ह़िंदू लंड सुनकर मेरी आँखें खुली रह गयीं। मैंने कहा, “बेहया कहीं की! चुप कर!”

फिर वो मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गयी। फिर हम दोनों ने अपने बुऱके उतारे। जैसे ही नाज़िया ने अपना बुऱका उतारा तो मेरे मुँह से निकला, “सुभान अल्लाह नाज़िया!” उसका जिस्म बहुत गदराया हुआ था। गहरे गले की कसी हुई कमीज़ से उसके मुस्लि़मा मम्मे उभरे हुए नज़र आ रहे थे और उसके गोल-गोल चूतड़ भी ऊँची हील के सैंडल की वजह से उभरे हुए थे। उसने मेरी चूचियों को देखते हुए कहा, “सुभान अल्लाह क्या? खुद को देख माशा अल्लाह है माशा अल्लाह!” इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया। नाज़िया ने दरवाजा खोला और एक शख्स कुर्ता पजामा पहने अंदर आया। “ये कौन मोहतरमा हैं?” वो बोला तो नाज़िया ने कहा, “जी आपकी साली समझें! ये मेरी कॉलेज की सहेली है शबाना इज़्ज़त शरीफ!” वो अंदर चला गया और नाज़िया ने शरारत से कहा, “ये दाढ़ी वाला बंदर ही मिला था मुझे शादी करने के लिये!” मैंने नाज़िया की बाजू पर मारते हुए कहा, “चुप कर!” फिर थोड़ी देर बाद नाज़िया का शौहर बाहर निकल कर जाने लगा और बोला, “आज काम है... शायद लौटते वक्त देर हो जायेगी!” और कहते हुए चला गया।

नाज़िया ने मुझे बिठया और पूछा, “बता क्या पियेगी?” “कुछ भी चलेगा!” मैंने कहा तो वो चहकते हुए बोली, “कुछ भी?” मैंने कहा, “हाँ कुछ भी जो तेरा मन हो!” फिर वो थोड़ा हिचकते हुए बोली, “यार मेरा मन तो एकाध पैग लगाने का हो रहा है... तू... पता नहीं... पीती है कि नहीं!” मैं तो उसकी बात सुनकर खुश हो गयी और बोली, “क्यों नहीं! इसमें इतना हिचक क्यों रही है... ज़रूर पियुँगी! अपनी सहेली के साथ शराब पीने में तो मज़ा अ जायेगा!”

फिर हम दोनों ने अगले आधे घंटे में दो-दो पैग खींच दिये और यहाँ वहाँ की आम बातें की… जैसे तेरा सलवार सूट बहुत खूबसूरत है कहाँ से लिया...! कौन सी फिल्म देखी वगैरह-वगैरह! इस दौरान उसकी बातों से मुझे एहसास हुआ कि वो भी अपने शौहर से खुश नहीं है। उसके शौहर की भी सरकारी नौकरी है और मेरे शौहर असलम की तरह ही उसे भी अपनी हसीन बीवी की कोई कद्र नहीं है। मैंने भी अपने शौहर के बारे में इशारे से बताया लेकिन ह़िंदूमर्दों से अपने नाजायज़ ताल्लुकात का बिल्कुल ज़िक्र नहीं किया। एक बार उसने मेरे सैंडलों की तारीफ करते हुए पूछा कि “कहाँ से लिये” तो मेरे मुँह से निकलते-निकलते रह गया कि “ये तो मेरे आशिक ने तोहफे में दिये हैं।” मैंने उस दिन भी बलराम से मिले पचासियों जोड़ी सैंडलों में से एक जोड़ी पहन रखे थे।

मीठा-मीठा सा नशा छाने लगा था। शराब का तीसरा पैग पीते हुए नाज़िया कुछ मचलते हुए अंदाज़ में बोली, “शब्बो! एक बात बता! जब रास्ते में उस हि़ऩ्दू लड़के ने गाली दी तो तुझे कैसा लगा?” मैंने कहा “हट बे-हया! बड़ी शोख हो गयी है तू!” इतना सुनते ही वो बोली, “मैं सब जानती हूँ। तेरे जज़्बात मैं वहीं समझ गयी थी!” फिर उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “जल्दी से पी और चल ऊपर चल शब्बो जान!” हमने अपने गिलास खाली किये और फिर वो मुझे ऊपर ले गयी और ऊपर ले जाकर उसने पीछे वाली खिड़की खोली। हाय अल्लाह ये क्या? नीचे तो एक दंगल जिमखाना था जहाँ कुछ चार लोग वरज़िश कर रहे थे। नंगे वरज़िशी पहलवान जिस्मों पर छोटी सी लंगोटी! मैंने नाज़िया को शर्मीले अंदाज़ में कहा, “ऊफ़्फ़ तौबा! ये क्या दिखा रही है कमबख्त?” नाज़िया ने शरारत से कहा, “तो फिर ये तेरी बिल्ली जैसी भूरी आँखों में चमक क्यों आ गयी शब्बो... इन नंगे हि़न्दु मर्दों के जिस्म देख कर?”

इतने में वरज़िश करते हुए एक पहलवान ने ऊपर देखते हुए इशारे से नाज़िया से पूछा कि “ये कौन है?” नाज़िया ने थोड़ा चिल्ला कर कहा, “मुस्लि़म चूत!” और हंस पड़ी। मुझे भी उसकी इस शरारत से हंसी आ गयी। शराब का नशा अब पहले से तेज़ होने लगा था। मैंने नाज़िया को देखते हुए हंस कर कहा, “तू ना जितनी शर्मीली थी कॉलेज में उतनी बे-हया हो गयी है!” “क्या करूँ? अगर शौहर मेरे शौहर जैसा हो तो बे-हया होना लाज़मी है!” नाज़िया ने मेरी तरफ आँख मारते हुए कहा और सीने से ओढ़नी हटा कर अपनी मुस्लि़मा चूचियों को उभार कर बोली, “वो मेरा हि़न्दू चोदू है शब्बो!” और इशारे से एक चुम्मा उसकी तरफ़ किया। मुझे बहुत खुशी हुई कि मेरी सहेली भी मेरी तरह ह़िंदू अनकटे लंड की दिवानी है और उसके ह़िंदू मर्द से नाजायज़ ताल्लुकात हैं। मैंने फिर खिड़की से देखा तो उफ़्फ़ अल्लाह ये क्या... उस ह़िंदू पहलवान मर्द ने अपनी लंगोटी से अपना ह़िंदू त्रिशूल निकाला हुआ था और उसने जान कर उसे खड़ा नहीं किया था। एक लम्बा सा मोटा ह़िंदू लंड नीचे लटका हुआ था। मेरी मुस्लि़म हिजाबी आँखें उसके ह़िंदू नंगे अनकटे लंड को हवस से देख रही थीं। नाप में बिल्कुल बलराम के लंड की तरह था लेकिन थोड़ा सांवला था।

अब नाज़िया ने उसको इशारे से कहा कि अपना ह़िंदू लंड खड़ा करे। वो मुस्कुराया और फिर नाज़िया को अपनी मुस्लि़म चूची बाहर निकालने का इशारा किया। नाज़िया ने अपनी गहरे गले की कमीज़ में हाथ डाला और अपना गोरा बड़ा मुस्लि़म मम्मा बाहर निकाला और फिर नाज़िया ने शरारत से उसे सलाम किया। वो भी बड़ा बदमाश था उसने सलाम करते हुए अपने ह़िंदू लंड की तरफ़ इशारा किया कि इसको सलाम कर! उसने अपने ह़िंदू लंड को काबू में रखा था और उसे उठने नहीं दिया और फिर इशारे से नाज़िया को नीचे दंगल में आने को कहा।

मैंने नाज़िया की तरफ़ देखा तो उसने आँख मारते हुए कहा, “चल असलम कटवे की मुस्लि़मा बीवी! आज तुझे अपने हि़ऩ्दू यार के लंड के नज़ारे दिखाती हूँ !” मैंने भी नाज़िया का मुस्लि़म चूतड़ दबाया और कहा, “अभी जो आया था ना वो तेरा कटवा शौहर... वो तो तेरी हसीन मुस्लि़म चूत देखने के भी काबिल नहीं है नाज़ू!” हम दोनों हंसते हुए नीचे हॉल में गये और जल्दी से एक-एक पैग और खींचा। फिर हम अपने-अपने सैंडल के अलावा सारे कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगी हो गयीं। नाज़िया ने मेरी नंगी मुस्लि़म चूचियों को दबाया और बोली, “माशा अल्लाह शबाना इज़्ज़त शरीफ रंडी जी! हि़न्दु मर्दों के लिये कैसे खुशी से तेरी मुस्लि़मा चूचियाँ कैसे सख्त हो गयी हैं।” फिर हमने अपना अपना बुऱका पहना। सिर्फ बुऱका और ऊँची-ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने फिर हम दोनों पीछे वाले दरवाजे से बाहर निकल कर ह़िंदू दंगल के मैदान में दाखिल हो गयीं। नशे की खुमारी में हम दोनों के कदम ज़रा से डगमगा रहे थे।

दंगल के मैदान से गुज़र कर हम अंदर गये जहाँ लंगोटी बाँधे चार नंगे ह़िंदू मर्द मौजूद थे, जिनके वरज़िशी जिस्म हमारे हिजाबी जिस्मों को जैसे प्यार से चोदने के लिये बेताब थे। अंदर आते ही नाज़िया झटके से अपनी नकाब हटाकर जल्दी जल्दी चारों ह़िंदू पहलवानों को सलाम-सलाम कहते हुए अपने आशिक से जाकर लिपट गयी जिसने पहले से ही अपने लंगोट से अपना ह़िंदू त्रिशूल लटकाया हुआ था। ये देख कर मेरी बुऱके में छुपी नंगी मुस्लि़म चूत भी जोश खाने लगी। करीब एक महीने से ह़िंदू लंड के लिये तरस रही थी मेरी रंडी मुस्लि़म चूत। जैसे ही मैंने बाकी तीन ह़िंदू पहलवानों को देखा तो उफ़्फ़ अल्लाह! ये क्या? इन ह़िंदू मर्दों ने भी अपने-अपने ह़िंदू त्रिशूल निकाल लिये थे और तीनों मर्दों के अनकटे बड़े-बड़े लौड़े खड़े हुए फनफना रहे थे। तीनों के लंड करीब दस से बारह इंच लंबे और मोटे थे। उनमें से एक ने अपने कड़क ह़िंदू लंड को सहलाते हुए मुझे सलाम किया और कहा “मुस्लि़म लौंडिया ज़रा अपने चेहरे से हिजाब हटा! देखें तो सही बुऱके में छुपा हुआ माल कैसा है!”

मैंने मुस्लि़मा अंदाज़ में अपने चेहरे से नकाब हटाया। “राम कसम! साली हिजाबी राँड मस्त है...!” मेरी भूरी आँखें और हसीन खूबसूरत चेहरा देख कर सबके ह़िंदू लंड और कड़क हो गये। एक ह़िंदू मर्द मेरे पास आया और मेरे बुऱके में छुपे गोल मुस्लि़म मम्मे को हल्के से मार कर बोला, “साली मस्त कटवी है तू हिजाबी राँड!” उसके मारते ही मेरे मुँह से सिसकी निकली और मैंने शोखी भरे अंदाज़ में कहा, “उफ़्फ़ आहिस्ता से हि़न्दु पहलवान जी! आपका नाम क्या है?” लेकिन उसे ठीक से सुनाई नहीं दिया। उसने मेरे पीछे हाथ डाल कर मेरे मुस्लि़मा चूतड़ों को ज़ोर से दबाया और बोला, “ज़रा ऊँचा बोल मेरी मुल्लनी रंडी जान!” मैंने फिर उसके होंठों के पास होंठ रखते हुए कहा, “आपका नाम क्या है गरम हि़ऩ्दू पहलवान मर्द जी?”

उसने जोश में मेरा एक मुस्लि़म चूतड़ और एक हिजाबी मम्मे को ज़ोर से दबाते हुए कहा, “किशन नाम है मेरा... साली गरम मुस्लि़म रंडी!” और फिर मेरे मुस्लि़म सुर्ख होंठों पर अपने हि़न्दू होंठ रख दिये। उफ़्फ़ अल्लाह! मेरे होंठ गरम थे और उसके भी। मैं आँखें बंद करके जोश में उसके होंठों को चूस रही थी। मेरा मुस्लि़म हाथ उसके हि़न्दू अनकटे लंड की तरफ़ बड़ा और उसके हि़न्दू त्रिशूल को पकड़ते ही मेरी आँखें हैरत से खुल गयी। तौबा! ये क्या! इतना गरम और सख्त हि़न्दू लंड! वो समझ गया। उसने अपने हि़न्दू होंठ मेरे होंठों से हटाये और बोला, “लौंडिया ये कटवा मुलायम लंड नहीं है... ये मेरा कट्टर हि़ऩ्दु त्रिशूल है साली!”

नाज़िया जो मेरे बिल्कुल करीब ही बैठी थी अपने आशिक के लंड को पकड़ कर मेरी तरफ़ देखते हुए बोली, “शबाना देख ये मेरा धगड़ा चोदू विजय शिंदे है” और फिर अपना पाकिज़ा मुँह खोल कर विजय का बड़ा सा लंड चूसने लगी। देखते ही देखते विजय शिंदे का अनकटा हि़न्दू मोटा लंड मेरी सहेली नाज़िया के मुस्लि़मा मुँह में और बड़ा हो गया। नाज़िया मस्ती से उसे चूसने लगी और विजय की तरफ़ देख कर बोली, “मेरी चिकनी मुसल्ली गरम चूत को अपने हि़न्दु त्रिशूल लंड से चोद डालो मेरे हि़न्दू सनम!” और फिर से उसके लंड पर टूट पड़ी और लंड चूसते हुए उसने मेरी गाँड पर मार कर कहा, “मेरी शबाना जान! देख क्या रही है जल्दी से किशन की हि़न्दू मुरली अपने मुस्लि़म मुँह में लेकर बजाना शुरू कर!”

मैं हंस पड़ी और किशन का लंड पकड़ कर नाज़िया से बोली, “चुप कर हिजाबी रंडी! पहले खुद अच्छे से विजय जी का शिवलिंग तो चूस कमबख्त!” मैं घुटने टेक कर बैठ गयी और किशान का एक फुटा लौड़ा मुँह में ले कर चूसने लगी। बलराम का लौड़ा भी ऐसा ही अज़ीम था इसलिये किशन का लौड़ा भी मज़े से अपने मुँह में ठूँस कर चूस रही थी। मेरे पीछे खड़े हुए दूसरे हि़न्दू मर्द ने ज़ोर से मेरे चूतड़ पर मारा। जैसे ही मैं उफ़्फ़ करते हुए पलटी उसने मेरी मुस्लि़मा चूची पकड़ ली और बोला, “साली कटल्ली लौंडिया! किशन की मुरली ही बजाती रहेगी या रवि लोहिया का लोहा भी चूसेगी।” मैंने रवि की तरफ़ देखा और किशन की मुरली की तरफ़ बुऱके वाली गाँड करके रवि का लोहे जैसा लंड चूसने लगी। पीछे से किशन ने मेरा बुऱका उठा कर मेरी मुस्लि़म गाँड नंगी कर दी। उधर विजय शिंदे नाज़िया के बाल पकड़ कर अपना हि़न्दू लंड उसके मुँह में चोद रहा था और चौथा हि़न्दू जिसका नाम विशाल था, उसने नाज़िया का बुऱका खोलना शुरू किया। बुऱका उतरते ही नाज़िया बिल्कुल नंगी हो गयी और विजय शिंदे के लंड को लगातार चूसती रही। उसके जिस्म पर अब ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल के अलावा और कुछ नहीं था।

इधर मैंने रवि के लंड को चूसते हुए अपनी नंगी मुसल्ली गाँड किशन की तरफ़ की हुई थी। नाज़िया ने विजय का लंड मुँह से निकल कर कहा, “शब्बो जान! बोल दूँ इन हि़ऩ्दू मर्दों को कि तू मदरसे की उसतानी है।”

ये सुनते ही किशन जिसके सामने मेरी गाँड कुत्तिया बनी हुई थी, उसने पीछे से मेरी चूत को अपनी उंगलियों से पकड़ कर कहा, “हाँ साली रंडी नाज़िया तूने ठीक कहा… इसके होंठ भी गरम थे और राम कसम साली मुल्लनी की चूत भी गरम है!” फिर सवालिया अंदाज़ में किशन ने मुझसे पूछा, “साली राँड! हिजाब में चेहरा छुपा कर बच्चों को सबक सिखाने की बजाय अगर तू इस तरह शराब पी कर अपनी चूत खोल कर फिरेगी तो ठीक नहीं रहेगा?” मैंने तंज़िया अंदाज़ में कहा, “ये सवाल मुझसे पूछ रहे हो या मेरी कुत्तिया बनी मु़स्लिम चूत से मेरे किशन कनहैया!” इस पर सब हंस पड़े और मैं भी हंस रही थी कि अचानक किशन ने अपनी गरम हि़न्दू मुरली मेरी मुस्लि़मा चूत में ज़ोर से झटके के साथ घुसेड़ दी! “उफ़्फ़ अल्लाहहऽऽऽ,, मर गयीऽऽऽ कमबख्त नाज़ूऽऽ मेरी चूत फट गयीऽऽऽ, अल्लाहऽऽऽ प्लीज़ किशन निकालो! तुम्हारा ये अनकटा त्रिशूल मेरी चूत फाड़ रहा हैऽऽ उफ़्फ़ निकालो!”

नाज़िया ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी, “अब क्या हुआ हसीन शब्बो! तेरी खूबसूरती पर मरने वाले मुल्ले कटवे तो अब शरम से झुक जायेंगे कि तूने अपनी मुसल्ली चूत किशन के लंड से चुदाई है!” मैंने हल्के गुस्से से कहा, “चुप कर कुत्तिया रंडी! मेरी चूत में मूसल घुसा है और तुझे हरामी कटवों की पड़ी है?” मैं बोल ही रही थी कि विशाल ने नाज़िया की गाँड में दमदार लंड घुसेड़ कर कहा, “ज़रा अब बता कि तू क्या करेगी जब कटवे मुल्ले तेरी गाँड चुदने की बात सुनेंगे?” नाज़िया चिल्ला उठी, “उफफफऽऽऽ विशाआऽऽल धगड़े चोदू! मेरी गाँड में मूसल घुसेड़ ही दिया तुमने ना!” जैसे ही नाज़िया का मुँह खुला, विजय ने अपना हि़न्दू लंड उसके मुँह में डाल कर कहा, “बज़ार में ऊँची सैंडल पहन कर अपनी गाँड मटका-मटका कर और चूची उछाल कर हमारे हि़न्दू लंड को इसी लिये तो गरम करती है तुम मुल्लियाँ कि हम तुम्हारी मुस्लि़मा गाँड और चिकनी छिनाल चूत मारें! है ना मेरी नाज़िया जान?” नाज़िया ने मुँह में से लंड निकाला फिर अपनी ज़ुबान बाहर करके विजय शिंदे के गेंदों की थैली से चाटती हुई लंड के गुलाबी टोपे तक ज़ुबान फेर कर बोली, “हम बज़ार में इसलिये अपनी गाँड मटकाती और मुस्लि़म चूचियाँ उछालती हैं ताकि तुम जैसे गरम मर्दाना हि़ंदु धगड़े हमारी चिकनी मखमली मुल्लनी चूत को चोद कर हमारी प्यास बुझायें... मेरे हि़न्दू सनम!”

वहाँ नाज़ू की मुस्लि़म गाँड विशाल अपने हि़न्दू लंड से चोद रहा था और यहाँ किशन मेरी मुस़्लिम चूत को चीर कर अपने लंड को आगे पीछे कर रहा था। मैं रवि लोहिया का काला लंड चूस रही थी और उसके हि़न्दू लंड की झाँटों के बाल मेरे सुर्ख मुस्लि़म होंठों पे बिखरे हुए थे जैसे मेरे होंठों को सहला रहे हों। रवि अब मेरे सामने लेट गया और मैं झुक कर उसका लंड चूसने लगी। मेरे बुऱके से दोनों मुस्लि़म चूचियाँ बाहर निकल कर लटक रही थी। विजय शिंदे जो नाज़िया का मुँह चोद रहा था, उसने झुक कर मेरी मुस्लि़म चूची को पकड़ लिया। मैंने विजय की तरफ़ देखा तो उसने मेरी चूची को दबाते हुए कहा, “राँड! कैसा लग रहा है अपना हिजाबी मम्मा मेरे हिंन्दू हाथों से मसलवाते हुए?” मैंने रवि का लंड मुँह में से निकाला और विजय के हाथ पे हाथ रख कर अपनी मुस्लि़म चूची को और दबवाया और बोली, “मेरा शौहर असलम... कमबख्त दोनों हाथ से भी दबाता है मेरी मुस्लि़म चूची तो ऐसी मर्दानगी नहीं ज़ाहिर होती विजय जी!” इधर रवि लोहिया ने फिर से मेरे मुसल्ली मुँह में लंड घुसेड़ते हुए दूसरे हाथ से नाज़िया की लटकती चूची पकड़ ली और दबाने लगा। अब विशाल नाज़िया की चोदू गाँड पर ज़ोर ज़ोर से झटके मारने लगा और यहाँ मेरी कुत्तिया बनी मुस्लि़म चूत को किशन भी ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा।

चुदाई ज़ोर पकड़ने लगी और हम दोनों मुसल्लियों के मुँह से “हाय अल्लाह। उफफ अल्लाह!” निकलने लगा। इधर रवि लोहिया मेरे बाल पकड़ कर अपने लंड को ऐसे मेरा मुँह चोदने लगा कि जैसे पानी निकालने वाला हो। उधर विजय भी मेरी मुस्लि़म चूची दबाते हुए नाज़िया के प्यारे मुस्लि़म मुँह में ऐसे ही लंड चोदने लगा कि पानी निकालने वाला हो। इधर मेरी मुस्लि़म चूत उधर नाज़िया की मुस्लि़म गाँड ज़ोर से चोदी जा रही थी। फिर चारों मर्दों ने एक दूसरे को इशारा किया और हम दोनों को तंज़िया अंदाज़ में कहा, “प्यारी मुल्लनी रंडी शबाना और हिजाबी रंडी नाज़िया! अब तैयार हो जाओ हमारे हि़ंन्दू त्रिशूलों से मलाई की धार तुम दोनों राँडों के मुँह , चूत और गाँड में छूटने वाली है।” मैंने रवि लोहिया का तमाम लंड अपने हलक तक अंदर ले लिया और उसके हि़न्दू लंड के बाल मेरी नाक में घुस गये। पीछे से किशन ने अपना पूरा लंड बाहर निकाला और मुझे गाली देते हुए फिर से ज़ोर के एक झटके से अंदर दाखिल हो गया, “हिजाबी राँड!!” कहते हुए किशन के लंड से एक तेज़ धार मेरी मुल्लनी चूत में महसूस हुई। अभी मैं चूत में किशान की मलाई महसूस ही कर रही थी कि मेरे मुँह में रवि लोहिया के लोहे जैसे लण्ड से मलाई की धार फूट पड़ी। मैं भी जोशिले अंदाज़ में रवि के लंड को ज़ोर से चूसने लगी और उसका हि़ंन्दू त्रिशूल लंड मेरे थूक और उसकी हि़न्दू मलाई से तरबतर हो गया।

उधर मेरी नज़र नाज़िया की तरफ़ गयी। उफफ उसकी आँखें भी बस मेरी तरफ़ देख रही थीं और विजय शिंदे का लंड भी मलाई से भरा हुआ था। विजय शिंदे का मोटा लंड मुँह में भरा होने की वजह से नाज़िया के मुँह से कम ही आवाज़ आ रही थी। मैंने नाज़िया की गाँड की तरफ़ देखा तो विशाल जो नाज़ू की मुसल्ली गाँड चोद रह था, वो भी जोशिले अंदाज़ में आखिरी मरहले में था और उसके अज़ीम त्रिशूल से भी पानी निकल रहा था शायद। इधर किशन ने लगातार कुछ देर झटके मारते हुए अपने धार्मिक लंड से सारा पानी मेरी मुस़्लिमा चूत में भर दिया और गाँड को सहलाने लगा। चारों हि़न्दू मर्दों ने अपना-अपना पानी हमारी हमारे छेदों में भर दिया और लंड निकाल कर खड़े हो गये।

हम दोनों नंगी मुस्लि़म मस्तानी हिजाबी औरतें उन चार जवान वरज़िशी पहलवान मर्दों के बीच बस ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी ज़मीन पर बैठी हुई थीं। अब उन्होंने हमारे नकाब हमारे हाथ में देकर कहा, “ज़रा अब इन नकाबों से हमारे जवान गदाधारी हि़न्दू लौड़ों को साफ़ करो हमारी रखैलों!” हम दोनों ने नंगे जिस्मों पर सिर्फ़ नकाब पहना और चारों का लंड नकाब से समेट कर मुँह में लेकर साफ़ किया। चारों ने फिर लंगोट बाँधे और हमारे बुऱके हाथ में दिये और कहा “अब ऐसे ही सिर्फ नकाब और सैंडल पहन कर नंगी रंडी बनकर दोनों हि़ंन्दू दंगल से अपने घर जाओगी।” फिर चारों ने हमारे तरफ़ बारी-बारी देखते हुए कहा, “खुदा हाफ़िज़ छिनाल मुल्लनियों! तुम्हारी छिनाल चूत और गाँड हमेशा हमारी रखैल रहेंगी।” फिर हम दोनों ने भी शरारत से वैसे ही नकाब पहने और दंगल के दरवाजे से पहले बाहर झाँका लेकिन कोई नहीं था। नशे की खुमारी अब तक बरकरार थी और ऊँची पेंसिल हील की सैंडलों में डगमगाते हुए जितना तेज़ हो सकता था हम अपनी मुस्लि़म चूचियाँ उछालती और गाँड मटकाती हुई अपने घर में आ गयी।

मेरी चूत और नाज़िया की गाँड में से गाढ़ी हि़न्दू मलाई बाहर बह रही थी। हमने शराब का एक-एक पैग खींचा और फिर मैं नाज़िया से खुशी से लिपट गयी और बोली, “नाज़ू छिनाल तूने सच में आज मेरी उस्तानी चूत को बहुत मज़े दिलवाये... मेरी रंडी सहेली.. जब से इस शहर में आयी हूँ.... ऐसी चुदाई के लिये तरस गयी थी।” नाज़िया भी अपनी मुस्लि़म चूची मेरी चूची से चिपकाते हुए गले लगी और बोली, “रंडी शब्बो आज तूने भी मेरे साथ आकर मेरी मुसल्ली गाँड को और मज़े से चुदवाने का मौका दिया!”

“तो क्या तूने आज से पहले कभी गाँड नहीं चुदवायी थी…?” मैंने हैरत से पूछा तो नाज़िया बोली, “तो तुझे बहुत तजुर्बा है क्या गाँड मरवाने का? तेरा कटवा शौहर तेरी गाँड चोदता है क्या?” “उस नामर्द से तो मेरी चूत भी नहीं चोदी जाती गाँड क्या खाक मारेगा!” मैं बोली और फिर मैंने उसे रमेश और बलराम से अपनी चुदाई के बारे में बताया। इसी दौरान नाज़िया मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमते हुए मेरी चूचियाँ दबाने लगी। किसी औरत के साथ ये मेरा पहला मौका था। फिर उसने मेरी चूत चाट कर साफ की और मैंने उसकी गाँड अपनी ज़ुबान से साफ की।

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने कहा, “जा आ गया तेरा ढीला कटवा शौहर!” नाज़ू हंसती हुई बोली, “आज इसके लंड पर सोते हुए पैर रख कर ज़ोर से सैंडल की हील घुसेड़ दुँगी... फिर किस्सा तमाम!” हम दोनों ज़ोर से हंसने लगी। उस दिन के बाद तो मैं हर रोज़ मदरसे से लौटते हुए नाज़िया के घर के पीछे दंगल में पहुँच जाती और उन चारों हि़न्दूमर्दों से खूब चुदवा-चुदवा कर घर वापस आती। कईं बार अगर नाज़िया मेरे साथ नहीं होती तो भी मैं अकेली उन चारों मर्दों से एक साथ रंडी की तरह चुदवाती और उनका पेशाब भी पीती।
Next page: Episode 34
Previous page: Episode 32