Update 15
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी प्रियंका दीदी को अपनी खोली के अंदर ले लिया और अपनी खोली का दरवाजा मेरे सामने ही बंद कर दिया मेरे मुंह पर... कुछ देर तक मैं वहां पर हैरान-परेशान खड़ा रहा.. मुझे तुम कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है मेरे साथ.... आखिर यह सब कुछ मेरे साथ ही क्यों हो रहा है...
खोली के अंदर से मेरी प्रियंका दीदी की कामुक सिसकियां आने लगी थी.... मैंने वहां दरवाजे पर खड़े रहना ठीक नहीं समझा... मुझे सच में बहुत बुरा लग रहा था... अपनी सगी बहन को एक ठरकी सिक्युरिटी इंस्पेक्टर की खोली के अंदर भेजने के बाद....
मुझे अच्छी तरह से पता था कि अंदर खोली में वह मेरी बहन के साथ क्या कर रहा होगा... लेकिन मेरी और मेरे परिवार की ऐसी मजबूरी थी कि हम कुछ भी नहीं कर सकते थे... यह सब कुछ इतना आसान नहीं था मेरे लिए..
मैं अपने बोझिल थके हुए कदमों के साथ निराशा का भाव अपने चेहरे पर लिए हुए उस खोली के दरवाजे से पीछे की तरफ जाने लगा... जहां पर मेरा दोस्त बिल्लू अपनी ऑटो में बैठा हुआ मेरी तरफ देख रहा था..
उसके पास पहुंच कर मैंने उससे कहा..(उसको ₹200 देते हुए)..
मैं: तुम अब अपने घर जा सकते हो... कल सुबह मैं तुमको फोन करूंगा तो आ जाना फिर से..
बिल्लू : क्या बात कर रहा है यार... क्या वह थानेदार रात भर तेरी प्रियंका दीदी को..... साला इतना स्टेमिना होगा उसके अंदर..
( उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी)
मैं: देख बिल्लू... तु मेरे सबसे अच्छा दोस्त है... अगर तूने यह बात गांव में किसी को भी बताई तो हमारे घर की इज्जत खाक में मिल जाएगी... हम किसी को भी मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाएंगे... मुझसे वादा कर तू गांव में जाने के बाद यह बात किसी को भी नहीं बताएगा...
बिल्लू: तू मेरी फिक्र मत कर यार... मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा... तेरे लिए तो अपनी जान भी हाजिर है... लेकिन तेरी प्रियंका दीदी का क्या होगा... साला थानेदार तो देखने में बहुत बड़ा हरामी मुसंडा लग रहा है... तेरी प्रियंका दीदी का खून खच्चर ना कर दे....
बोलते हुए उसका लहजा बेहद कामुक हो गया था..
वह मेरी प्रियंका दीदी को अभी भी एक कुंवारी कन्या समझ रहा था...
मैं: ठीक है अब तू जा... मैं सुबह मैं तुझे कॉल करूंगा..
उसने अपने ऑटो स्टार्ट की और जाने से पहले मुझसे बोला...
सबसे अच्छा दोस्त हूं तेरा... मुझे भी कभी मौका देना अपनी प्रियंका दीदी के साथ...
और फिर वह वहां से निकल गया....
सर्दी के मौसम में और सुनसान सड़क पर मैं वहीं खड़ा रह गया और उसकी कही हुई बातों के बारे में सोचने लगा... मेरा सर घूमने लगा था... मेरी प्रियंका दीदी अंदर इंस्पेक्टर हरिलाल के साथ ना जाने क्या कर रही होगी सोच सोच कर मुझे चक्कर आने लगे थे...
अचानक इंस्पेक्टर साहब की खोली का दरवाजा खुला... उन्होंने ही दरवाजा खोला था.. उन्होंने इशारा करके मुझे अपने पास बुलाया...
जब मैं उनके पास गया तो मैंने देखा इंस्पेक्टर साहब सिर्फ अपनी लुंगी में खड़े थे... उनकी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाएं देख कर मैं अचंभित हो रहा था.... सीने पर काले काले बाल... थोड़ा सा निकला हुआ पेट... घनी काली रौबदार मूंछ देखकर मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी...
इंस्पेक्टर हरिलाल: सैंडी एक काम कर... यहां पास में ही एक मेडिकल शॉप की दुकान है... वहां से तू एक मैनफोर्स कंडोम 8 इंच साइज का और साथ में वियाग्रा की चार गोलियां लेकर आना... समझ गया ना..
मैं: जी सर...
इंस्पेक्टर हरिलाल: तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है...
मैं: नहीं सर...
थानेदार साहब( मुझे पांच सौ का नोट देते हुए): जा जल्दी लेकर आ... वरना कांड हो जाएगा तेरी बहन के साथ..
मैं उनके हाथ से नोट लेकर भागता हुआ मेडिकल शॉप की तरफ गया.. और वहां से कंडोम और वियाग्रा लेकर किसी तरह दौड़ता भागता इंस्पेक्टर हरिलाल की खोली के पास पहुंचा...
मैंने उनकी खोली का दरवाजा खटखटाया...
कौन है माधर्चोद... अंदर से इंस्पेक्टर हरिलाल की कड़क आवाज सुनाई दी मुझे..
मैं: सर मैं हूं... सैंडी... आपने मुझे दवाई लेने के लिए भेजा था ना..
इंस्पेक्टर हरिलाल: रुक आता हूं अभी...
थानेदार साहब ने दरवाजा खोला अपनी खोली का... वह बिल्कुल नंगे खड़े थे .... उनकी टांगों के बीच में उनका खड़ा 8 इंच का खूब मोटा मुसल देख कर मुझे हैरानी होने लगी..... मुझे हैरानी इस बात की नहीं थी कि उनका मुंह से 8 इंच लंबा और मोटा है... बल्कि वह पूरी तरह से लाल था... उस पर लाल लिपस्टिक के निशान बने हुए थे.... जाहिर है वह मेरी प्रियंका दीदी के होठों के निशान थे..
चूस चूस कर मेरी मेरी प्रियंका दीदी ने अपने होठों की सारी लाल लिपस्टिक थानेदार साहब के 8 इंच के मुसल लोड़े के ऊपर उतार दी थी... जो मेरी आंखो के सामने लहरा रहा था..
इंस्पेक्टर हरिलाल: क्या देख रहा है बहन चोद... तेरी बहन ने चूस चूस कर लाल कर दिया है मेरे काले लोड़े को....
मैंने अपनी नजर नीचे की तरफ झुका ली और कुछ नहीं बोला..
इंस्पेक्टर हरिलाल: मेरी दवाई और कंडोम लाया है कि नहीं माधर्चोद...
मैं: जी सर लाया हूं...
बोलकर मैंने दवाई और कंडोम का पैकेट उनकी तरफ बढ़ा दिया...
थानेदार साहब ने मेरे हाथ से ले लिया और मेरे चेहरे पर अपनी खोली का दरवाजा बंद करने वाले थे ही मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब... मेरे भाई को भी अंदर ही बुला लीजिए ना... सर्दी के मौसम में रात भर बाहर कैसे खड़ा रहेगा...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... एक बार फिर से सोच ले... तेरा सगा भाई है ... रात में मुझे कोई ड्रामा नहीं चाहिए... अंदर आने के बाद तेरे भाई अब तूने कोई ड्रामा किया तुम मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..
मेरी प्रियंका दीदी: मैं वादा करती हूं थानेदार जी... मेरे भाई को अंदर ले लीजिए... वह कुछ भी नहीं करेगा ..चुपचाप सो जाएगा नीचे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चल भोंसड़ी के... तू भी अंदर आ जा...
मेरा हाथ पकड़ कर इंस्पेक्टर साहब ने मुझे अपनी खोली के अंदर खींच लिया... मुझे राहत का अहसास हुआ क्योंकि बाहर बहुत सर्दी थी... और कमरे के अंदर गर्मी थी..... बिना हीटर के...
दरअसल कमरे के अंदर एक चौकी पर मेरी प्रियंका दीदी नंगी पड़ी हुई थी... उनकी लहंगा चोली उस चौकी के नीचे पड़ी हुई थी.. ब्रा पेंटी कहां पर है उसका तो नामोनिशान ही नहीं था...
.. मेरी बहन की आंखों में कामुक मदहोशी थी.... मुझे देख कर भी मेरी बहन पर कोई असर नहीं हुआ था वह तो उसी अंदाज में अपनी टांगे फैलाए हुए लेटी हुई थी.
मेरी प्रियंका दीदी की पतली पतली दोनों टांगों के बीच उनकी कसी हुई मक्खन जैसी नाजुक गुलाबी चूत के ऊपर छोटे-छोटे काले काले बाल उग आए थे... ऐसा लग रहा था मेरी दीदी ने कुछ दिनों से अपनी साफ सफाई नहीं की थी... पतली कमर... अनार जैसी तनी हुई बड़ी-बड़ी चूचियां... खड़े-खड़े लाल निपल्स.... माथे पर बिंदी... होठों पर प्यास.... मेरी प्रियंका दीदी के होठों की लाली लिपस्टिक गायब हो चुकी थी... जो अब थानेदार साहब के मुसल पर लगी हुई थी... मैं पूरा माजरा समझ गया था..
थानेदार साहब ने अपने अलमीरा खोलकर दो कंबल निकाले...
अपनी चौकी के नीचे उन्होंने एक कंबल बिछा दिया और मुझे लेटने के लिए इशारा कर दिया.... मैं चुपचाप उस कंबल के ऊपर लेट गया... थानेदार साहब ने दूसरा कंबल मेरे ऊपर डाल दिया... और बोले..
हरिलाल: चुपचाप सो जा ... बहुत ठंड है बाहर... मैं तेरी बहन के साथ थोड़ा बहुत प्यार करूंगा.... अगर बीच में कुछ नाटक किया तो रात भर बाहर सड़क पर ठंड में सोना पड़ेगा तुझे..
मैं: नहीं सर... मैं कोई नाटक नहीं करूंगा... मैं सो जाता हूं.
ऐसा बोलकर मैंने दूसरे कंबल से अपने आप को पूरी तरह ढक लिया था.... मुझे वाकई बेहद सर्दी लग रही थी... कमरे के अंदर आने के बाद और कंबल के नीचे सोने के बाद मुझे थोड़ी बहुत राहत का अहसास होने लगा था... और मुझे नींद आने लगी.... लेकिन नींद आने से पहले ही मेरी आंखों की नींद उड़ गई... मेरी प्रियंका दीदी की मादक सिसकियां सुनकर..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब... रुक जाएंगे ना... मेरे भाई को तो कम से कम सो जाने दीजिए ..."उईई माँ!! अरे हाय... मर गई..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप कर साली... मुझे करने दे जो मेरा मन है... तेरा भाई तुझे इसीलिए तो लाया है यहां पर...
मेरी प्रियंका दीदी: हाय मर गई... दैया रे दैया... आपका बहुत बड़ा है.. दया कीजिए हम पर... धीरे... हाय मम्मी रे...
दरअसल थानेदार साहब मुझे सोता हुआ समझकर मेरी दीदी के ऊपर सवार हो गए थे और अपना काला लंबा मुसल मेरी बहन के गुलाबी छेद के ऊपर टीका कर ऊपर से दबाव बना रहे थे..
ना नूकुर करते हुए नखरे दिखाते हुए मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी गांड उठा कर उस मुसल को अपने अंदर लेने का प्रयास कर रही थी...
मैंने कंबल को थोड़ा सा अपने चेहरे से हटा कर चौकी के ऊपर अपनी गर्दन उठाकर देखा तो हतप्रभ रह गया..
मेरी प्रियंका दीदी थानेदार साहब को अपनी बाहों में लपेट के उनको अपने छेद पर आक्रमण करने की दावत दे रही थी... और थानेदार साहब ने भी वही किया... एक झटके में ही उन्होंने की ऐसा जोर का ठाप मारा कि उसका आधा लंड मेरी प्रियंका दीदी की चुत मे घुस गया...
मेरी प्रियंका दीदी: "उइइइ माँ मै मरी!" हाय दैया थानेदार साहब... बड़े जालिम हो आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... जालिम मैं हूं? साली रंडी तू तो मर्डर भी करती है... बता तूने जुनेद को कैसे मारा?
मेरी प्रियंका दीदी: "उईई माँ!! अरे ज़ालिम क्या कर कर रहा है? थोड़ा धीरे से कर" कहती ही रह गयी और वह इंजन के पिस्टन की तरह मेरी बहन की चूत का ढोल पीटने की शुरुआत करने की तैयारी करने लगे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: तमीज से बात कर रंडी... साली ....
कमरे में मद्धम लाइट जल रही थी.. उन दोनों को तो बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि मैं अपना सर अपने कंबल से बाहर निकाल कर चौकी के ऊपर झांक रहा हूं... वैसे भी उन दोनों को मेरी परवाह नहीं थी...
थानेदार साहब का लंड बहुत बड़ा था और कुछ मेरी प्रियंका दीदी की चुत बहुत सिकुड़ी थी... इसलिये उनका लंड अन्दर जाने के बज़ाय वहीं अटक कर रह गया...
थानेदार साहब ने तुरन्त ही पास रखी घी की कटोरी से कुछ घी निकाला और अपने लंड पर घी चुपड़ कर तुरन्त फिर से लंड को चूत पर रख कर धक्का मारा. इस बार लंड तो अन्दर घुस गया पर मेरी बहन के मुंह से जोरो कि चीख निकल पड़ी,
"आह्ह्ह मै मरी!! हाय ज़ालिम तेरा लंड है या बांस का खुंटा!"
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी प्रियंका दीदी की तड़पती हुई सिसकियों का कोई भी परवाह नहीं किया... और वह ताबड़तोड़ झटके देने लगे..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय राजा मर गयी! उइइइइ माँ! थोड़ा धीमे करो ना!" थानेदार जी... मर गई रे मैया...
थानेदार साहब अपनी पूरी ताकत से मेरी बहन के अंदर बाहर होने लगे थे.. उन्हें बिल्कुल भी परवाह नहीं थी कि मैं यहीं पर हूं..
मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी छोटी गांड उठा उठा उनका साथ दे रही थी..
चारपाई के ऊपर थानेदार साहब और मेरी प्रियंका दीदी के बीच एक जबरदस्त प्यार का युद्ध चल रहा था... जिसमें थानेदार साहब मेरी बहन के ऊपर हावी होने लगे थे... मेरी प्रियंका दीदी की कामुक सिसकियां और मादक आहे आग में घी का काम कर रही थी थानेदार साहब के लिए.. वह पूरी तरह से फॉर्म में आ गए थे और तबाड़-तोड़ धक्के मारने लगे.
मेरी प्रियंका दीदी ने अब नीचे से अपनी गांड उठाना बंद कर दिया था... मेरी दीदी तो बस अब थानेदार साहब के मजबूत औजार को झेल रही थी... मेरी दीदी पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी: है राजा मर गयी! उइइइइ माँ! थोड़ा धीमे करो ना!" थानेदार साहब... हाय मेरी जान लोगे क्या...
इंस्पेक्टर हरिलाल तो राजधानी ट्रेन बने हुए थे..वह धक्के पे धक्के मारे जा रहे थे....रूम मे हचपच हचपच की ऐसी आवाज़ आ रही थी मानो 110 की.मी. की रफ़तार से गाड़ी चल रही हो.
कुछ देर में ही मेरी प्रियंका दीदी कामुकता के सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी और मजे में कुछ भी बड़बड़ा रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी( अपनी कामुकता में बड़बड़आती हुई): हाय थानेदार साहब... हाय मेरे राजा...मारो मेरी चुत! हाय बड़ा मज़ा आ रहा है! आह्ह्ह बस ऐसे ही करते रहो आह्ह्ह!! आउच!! और जोर से पेलो मेरे राजा!! फाड़ दो मेरी बुर को आह्ह्ह्ह!! पर यह क्या मेरी चूचियों से क्या दुशमनी है? इन्हे उखाड़ देने का इरादा है क्या? हाय! ज़रा प्यार से दबाओ मेरी चूचियों को थानेदार जी....
मैंने चौकी के ऊपर सर उठा कर देखा तो पाया इंस्पेक्टर हरिलाल मेरी बहन की दोनों अनार जैसी चूचियों को बड़ी ही बेदर्दी से किसी होर्न की तरह दबाते हुए घचाघच पेले जा रहे थे...
मेरी बहन की दोनों चूचियां लाल हो चुकी थी... भूरे रंग के खड़े-खड़े निपल्स थानेदार को और भी चुनौती दे रहे थे.... थानेदार साहब ने अपने दोनों हाथों से मेरी बहन की चूचियों का घमंड मसल के रख दिया.. फिर एक निप्पल को अपने मुंह में लेकर ऐसे चूसने लगे जैसे एकदम दुरुस्त मर्द किसी पके हुए आम को चूसता है...
मेरी प्रियंका दीदी चुदाई की खुमारी में बेहाल हो चुकी थी... उनको तो अब कोई होश नहीं था... ना ही कोई लाज शर्म....चुदाई की प्यास मेरी बहन के चेहरे से साफ साफ झलक रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी की की वासना की आग में जलती हुई गर्म भट्ठी जैसी गुलाबी चूत में थानेदार साहब ने तकरीबन 15 मिनट तक बिना रुके हुए पेला.... इस दौरान मेरी दीदी दो बार झड़ गई थी... थानेदार साहब भी झड़ गय... अपने मुसल का सफेद गाढ़ा रस मेरी बहन की तितली के अंदर भरने के बाद वह मेरी बहन के बगल में लेट गय और लंबी लंबी सांसे लेने लगे... मेरी प्रियंका दीदी की दोनों टांगे कांप रही थी... थानेदार ने मेरी बहन की जलती हुई भट्टी के अंदर गरम-गरम लावा भर दिया था...
आंखें बंद किए हुए मेरी प्रियंका दीदी किसी दूसरी दुनिया में खोई हुई थी..
चुदाई के दौरान कंडोम फट गया था... और मेरी बहन की चिकनी चमेली के अंदर घुस गया था... थानेदार की नजर जब मेरी बहन की चूत के ऊपर गई तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई...
थानेदार साहब को एक शरारत सूझी... उन्होंने मेरी प्रियंका दीदी की गरम गीली गुलाबी चूत को अपनी दो उंगलियों से फैला कर अंदर फंसा हुआ फटा हुआ कंडोम खींच कर निकाल लिया और मेरे ऊपर फेंक दिया..
इंस्पेक्टर हरिलाल की इस हरकत पर मेरी बहन अपना होश संभाल उनकी तरफ प्यासी निगाहों से देखते हुए मीठी-मीठी शिकायत करने लगी..
थानेदार साहब की चौड़ी छाती पर बड़े प्यार से मक्का मारते हुए मेरी दीदी इतराते हुए बोल रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब.. आप तो बड़े जालिम हो...
थानेदार साहब( प्यार से मुस्कुरा कर): क्यों मेरी छम्मक छल्लो... मैं तुमको जालिम क्यों लग रहा हूं... मैं तो तुम्हारी मदद कर रहा हूं ताकि तुम इस केस से अपने आप से बचा सको... वरना अभी तुम्हारी मम्मी को नहीं बल्कि तुम को सलाखों के पीछे होना चाहिए था...
मेरी प्रियंका दीदी: मैं अपनी मां की कसम खाकर कहती हूं सर... मैंने किसी का मर्डर नहीं किया है.. मैं भला किसी का खून कैसे कर सकती हूं.. प्लीज आप मुझ पर शक ना कीजिए...
इंस्पेक्टर हरिलाल: शक करने की वजह है मेरे पास बहन की लोड़ी... जुनैद के मोबाइल फोन से जो वीडियो ऑडियो और व्हाट्सएप चैट मिले उन सब में सिर्फ तू और कुछ देर के लिए तेरी रुपाली दीदी भी है... पर हमारे पास रूपाली को गिरफ्तार करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं है... लेकिन तेरे खिलाफ तो पूरे सबूत है...
मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब... मैं और मेरी दीदी मजबूर थे... उन दोनों ने पहले मेरी रूपाली दीदी का बलात्कार किया था और वीडियो भी बना लिया था... इसी कारण से मुझे भी उनके साथ जाना पड़ा... जुनेद मुझसे प्यार करने लगा था... मैं भी उसको पसंद करने लगी थी.. मैं उसका मर्डर क्यों करूंगी..
स्पेक्टर हरिलाल: क्योंकि तुम दोनों बहने और तुम्हारा परिवार उस गुंडे के जाल में फंसा हुआ था... इसीलिए तुमने प्लान करके उसका मर्डर किया है..
मेरी प्रियंका दीदी( अपनी आंखों में आंसू लिए): नहीं सर यह बात पूरी तरह से सच नहीं है...
इंस्पेक्टर हरिलाल: क्यों सच क्यों नहीं है... क्राइम सीन पर तेरे मौजूद होने के बहुत सारे सबूत है हमारे पास.. तेरी फटी हुई पेंटी वहीं पर पड़ी हुई थी... जिस पर तेरा वीर्य और जुनेद का भी वीर्य लगा हुआ था ... फॉरेंसिक टेस्ट में तो सब कुछ सामने आ जाएगा... उस दिन के वीडियो में भी जो जुनैद के मोबाइल से बरामद हुआ है.... मर्डर के 1 घंटे पहले ...तू उसमें उसके लंड के ऊपर बैठकर कूद रही है... देख कर तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगता कि उसने तुम्हारे साथ कोई जोर जबरदस्ती की है..
मेरी प्रियंका दीदी: आपकी बात ठीक है इंस्पेक्टर साहब... उस दिन उसने मेरे साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की थी... हम दोनों नहीं पूरे दिन इंजॉय किया था... मुझे भी उस दिन बहुत मजा आया था जैसा आज आपके साथ आ रहा है... लेकिन फिर मैं अपने घर चली आई थी.. मुझे वाकई में नहीं पता है कि उसके बाद क्या हुआ...
इंस्पेक्टर हरिलाल: ठीक है मेरी रानी... मैं तेरी पूरी मदद करूंगा... इस केस में से तुम को निकालने के लिए... पर तुम भी तो मेरी मदद करो ना मेरी जान... मेरी माल आओ मुझे प्यार करो...
मेरी प्रियंका दीदी ( बड़े कामुक अंदाज में प्यार से उनकी तरफ देखते हुए बोली): प्यार करना आप के बस की बात नहीं है थानेदार जी.. आप तो दरिंदे हो.. बिल्कुल दरिंदे की तरफ पेलते हो... आपने तो वह कंडोम भी फाड़ दिया...
इंस्पेक्टर हरिलाल( हंसते हुए): इसमें मेरी गलती नहीं है... गलती तो तेरे इस बहन चोद भाई की है... यह छोटे साइज का कंडोम लेकर आया था.. लगता है इसका लोड़ा भी छोटा है... शायद इसीलिए अपने साइज का खरीद लाया था..
मेरी प्रियंका दीदी: मेरे भाई को कुछ मत बोलिए ना सर.... मैं आई हूं तो आप की सेवा करने के लिए ही ना... मुझे अपनी सेवा का मौका दीजिए ना सर...
मेरी प्रियंका दीदी को कामुक तरीके से मचलते हुए और खुद से लिपटते हुए देखकर थानेदार साहब के ऊपर एक अजीब किस्म की दरिंदगी सवार हो गई... मेरी बहन का बाल पकड़ लिया और जबरदस्ती करते हुए उनको नीचे की तरफ ले गए और अपना मुरझाया हुआ काला लंड मेरी दीदी के मुंह में जबरदस्ती डाल दिया...
मेरी प्रियंका दीदी तो हैरान हो गई थी हरिलाल को इस तरह से रंग बदलते हुए देखकर... फिर भी मेरी दीदी ने संयम से काम लिया और बड़े प्यार से उसके मुरझाए हुए लंड को अपने मुंह में लेकर अपनी जीभ से प्यार करने लगी... चाटने लगी.... चूसने भी लगी...
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी दीदी के सर पर दबाव बना रखा....
थानेदार साहब: चूस मेरी रानी... मेरा लौड़ा चूस.... फिर से खड़ा कर दे मेरे लोड़े को चूतमरानी...... रंडी .... मां चोद दूंगा तेरी....
मेरी प्रियंका दीदी अपने काम में लगी हुई थी...
मेरे चेहरे के पास वह फटा हुआ कंडोम पड़ा हुआ था... जिसमें मेरी दीदी और थानेदार साहब का मिलाजुला काम रस लगा हुआ था... उसकी महक ही मुझे अजीब लग रही थी...
जैसा थानेदार साहब चाह रहे थे मेरी दीदी बिल्कुल वैसा ही कर रही थी... बिना कोई नखरा दिखाए... उनका हाथ मेरी बहन के सर पर था.. चूस चूस कर मेरी प्रियंका दीदी ने थानेदार साहब के लंड को एक बार फिर से कुतुबमीनार की तरह खड़ा कर दिया... फिर अपने दोनों रसीले जोबन के बीच में लेकर उनके कड़े हथियार को हिलाने लगी..
उत्तेजना के मारे मेरी प्रियंका दीदी के किसमिस के आकार के निपल्स फुल कर अंगूर की तरह बड़े हो गए थे... और मेरी बहन अपने दोनों अंगूरों से थानेदार हरीलाल के मोटे लंबे लंड को छेड़ रही थी....
थानेदार हरिलाल: मेरी रानी.... तू सच में बहुत ही मस्त माल है.. तेरे जैसी चिकनी लौंडिया को चोदने का मुझे आज तक मौका नहीं मिला था... आज तो तुझे भरपूर मजा दूंगा अपने लोड़े से...
मेरी प्रियंका दीदी: आपका लंड भी मुसल के जैसा है साहब... हमने भी आज तक इतना बड़ा नहीं देखा था...
मेरी प्रियंका दीदी की कामुक अदाएं देखकर... उनकी रसभरी उत्तेजित करने वाली बातें सुनकर इंस्पेक्टर हरिलाल तो पूरी तरह से पागल हो चुका था.. उनके अंदर का जानवर जाग चुका था...
मेरी बहन के होठों और चुचियों ने ऐसा जादू दिखाया था की थानेदार साहब का लोड़ा आसमान की बुलंदियों को छू रहा था..
उन्होंने अब मेरी प्रियंका दीदी का बाल पकड़कर को जबरदस्ती घोड़ी बना दिया उसी बिस्तर पर और खुद पीछे आ गए..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार जी... बड़े बेरहम मर्द हो आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप साली रंडी.....
थानेदार साहब एक बॉडीबिल्डर मर्द थे... बहुत ताकत थी उनके अंदर... मेरी प्रियंका दीदी तो उनकी ताकत के आगे बिल्कुल बेबस लग रही थी..
पीछे आने के बाद उन्होंने मेरी प्रियंका दीदी छोटे-छोटे उभरे हुए गांड के दोनों भाग को अपने मजबूत हाथों में दबोच कर अलग अलग किया... और फिर अपना मोटा लण्ड मेरी बहन की गांड की छत के ऊपर टिका कर एक करारा झटका दिया... उनका आधा मुसल मेरी दीदी की गांड के छेद में घुसकर अटक गया... मेरी बहन के मुंह से एक जोरदार चीख निकली... लेकिन थानेदार साहब ने कोई परवाह नहीं की...
मेरी प्रियंका दीदी: “ऊईई…ई…ई…ई… मां.... मार डाला रे.... थानेदार साहब... यह क्या कर रहे हैं आप..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप कर साली रंडी की औलाद.... बहन की लोहड़ी तेरी गांड मार रहा हूं.... ज्यादा चीखेगी चिल्लाएगी तो तेरा गांडू भाई जाग जाएगा...
थानेदार साहब को लग रहा था कि मैं सो चुका हूं... लेकिन जिसकी बहन बगल में अपनी गांड में लौड़ा लिय चिल्ला रही होगी वाह भाई भला कैसे सो सकता है... मैं बस आंखें बंद करने का नाटक कर रहा था...
थानेदार साहब ने अपना लौड़ा बाहर की तरफ खींचा और फिर से एक जबरदस्त झटका दिया और मेरी बहन की गांड को चीरते हुए उनका लौड़ा मेरी प्रियंका दीदी की गांड के छेद में समा चुका था..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय रे थानेदार साहब...अरे राम!! थोड़ा तो रहम खाओ, मेरी गांड फटी जा रही है रे ज़ालिम! थोड़ा धीरे से, अरे बदमाश अपना लंड निकाल ले मेरी गांड से नही तो मैं मर जाऊंगी आज ही!"
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप्प! साली छिनाल, नखरा मत कर नही तो यहीन पर चाकु से तेरी चुत फाड़ दूंगा, फिर ज़िन्दगी भर गांड ही मरवाते रहना! थोड़ी देर बाद खुद ही कहेगी कि हाय मज़ा आ रहा है, और मारो मेरी गांड."
मेरी प्रियंका दीदी तड़प रही थी, छटपटा रही थी... दर्द के मारे उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे थे... मेरी दीदी अपनी गांड इधर-उधर हिला रही थी ताकि थानेदार साहब का मोटा लंड उनकी गांड के छेद में से निकल जाए... लेकिन इंस्पेक्टर हरिलाल की पकड़ मजबूत थी... उन्होंने 1 इंच भी टस से मस नहीं होने दिया... पूरी मजबूती के साथ मेरी दीदी को पकड़कर उनकी गांड में अपना लौड़ा ठेलके आनंद लेते रहे...
वह कुछ देर तक इसी पोजीशन में मेरी बहन के ऊपर सवार होकर अपने हाथों से मेरी बहन की चूचियों के साथ खेलते रहे..
और फिर उन्होंने धीरे-धीरे मेरी बहन की गांड को चोदना शुरू कर दिया..
थानेदार साहब ने अपना लंड अन्दर-बाहर करना शुरू किया मेरी बहन की गांड में.... मेरी दीदी ने भी चीखना चिल्लाना बंद कर दिया था और उनके मुसल को अपनी गांड में एडजस्ट करने की कोशिश लग करने लगी थी...
मेरी प्रियंका दीदी को अच्छी तरह से पता था कि यह कमीना बिना उनकी गांड मारे मानने वाला नहीं है.... इसीलिए मेरी बहन भी उनका साथ देने लगी.. और इंजॉय करने की कोशिश करने लगी..
थानेदार साहब ने तो शुरुआत धीमी रफ्तार से की थी लेकिन धीरे-धीरे उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी, और अब वह ठापाठप किसी पिस्टन की तरह मेरी प्रियंका दीदी की गांड मार रहे थे...
मेरी दीदी भी अपनी गांड आगे पीछे करके उनको सहयोग दे रही थी..
थानेदार साहब ने मेरी प्रियंका दीदी के बाल पकड़ रखे थे जैसे किसी घोड़ी को दौड़आते हुए जॉकी उसकी लगाम को पकड़ के रखता है ..
दूसरे हाथ की उंगलियों से वह मेरी बहन की गुलाबी चुनमुनिया को छेड़ रहे थे.... मेरी बहन तो झरने की तरफ झड़ रही थी... मेरी प्रियंका दीदी अपनी गांड में होने वाले दर्द को भूल गई थी.....
देख कर तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी दीदी गांड मरवाते हुए बहुत मजे में है... और थानेदार साहब के आनंद की तो सीमा ही नहीं थी..
मेरी बहन को गंदी गंदी गालियां देते हुए वह अब अपनी पूरी रफ्तार से मेरी बहन की गांड मार रहे थे...
मेरी प्रियंका दीदी: हाय मज़ा आ रहा है! और जोर से मारो, और मारो और बना दो मेरी गांड का भुर्ता! और दबाओ मेरे मम्में, और जोर दिखाओ अपने लंड का और फाड़ दो मेरी गांड. अब दिखाओ अपने लंड की ताकत!" थानेदार साहब... हाय मां..
तकरीबन 10 मिनट के बाद....
थानेदार साहब: साली रंडी तेरी मां का भोसड़ा चोद.....अब गया, अब और नही रुक सकता! ले साली रण्डी, गांडमरानी, ले मेरे लंड का पानी अपनी गांड मे ले!" कहते हुए थानेदार साहब के लंड ने मेरी प्रियंका दीदी गांड मे अपने वीर्य की उलटी कर दी. वह चूचियां दाबे मेरी प्रियंका दीदी कमर से इस तरह चिपक गया था मानो मीलों दौड़ कर आया हो...
फिर अपना मुसल मेरी बहन की गांड में से निकालकर उनके बगल में लेट गया और आराम करने लगा....
मुझे लगा कि आज रात का प्रोग्राम तो खत्म हो गया.... मेरी दीदी की गांड ने खूब अच्छे से निचोड़ लिया होगा इस हरामजादे थानेदार का...
मेरी बहन भी शांत पड़ी हुई थी... थानेदार साहब भी अपनी आंखें बंद किए हुए लेटे हुए थे... कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था... बस लंबी-लंबी थकी हुई सांसे ले रहे थे... मुझे लग गया था कि आज का प्रोग्राम तो खत्म हो गया... राहत का अहसास होते ही मुझे नींद आने लगी और मैं सो गया..
मैं तकरीबन 2 या 3 घंटे सोया था कि मेरी नींद खुल गई... दरअसल मेरी नींद मेरी बहन की चीख सुनकर खुल गई थी..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब... मर गई रे मां...
जब मैंने अपना सर ऊपर की तरफ उठाकर देखा तो पाया कि थानेदार साहब एक बार फिर मेरी प्रियंका दीदी के ऊपर चढ़े हुए थे और मेरी बहन को पेल रहे थे... उनकी गुलाबी चिकनी चुनमुनिया में... उनका मोटा मूसल अपनी पूरी ताकत और रफ्तार से मेरी बहन की चिकनी चमेली की धज्जियां उड़ा रहा था...
मेरी प्रियंका दीदी उनके नीचे लेटी हुई अपनी दोनों टांगे उठा कर हाय हाय मर गई कर रही थी..
मेरी बहन की एक चूची को मुंह में लेकर और दूसरी चूची को अपने हाथ से मसलते हुए थानेदार साहब मेरी बहन की जबरदस्त ठुकाई कर रहे थे..
दरअसल गांड मारने के बाद इंस्पेक्टर हरिलाल भी सो गए थे और मेरी बहन भी उनसे लिपट के सो गई थी...
सुबह 5:00 बजे जब थानेदार साहब की आंख खुली और उन्होंने मेरी बहन को खुद से लिपटा हुआ पाया तो उनके अरमान एक बार फिर जाग गए थे.. और वह मेरी बहन के ऊपर चढ़कर उनको फिर से चोदने लगे थे..
मेरी प्रियंका दीदी की पायल और चूड़ियों की खन खन और उनकी कामुक सिसकियां पूरे कमरे में तूफान मचा रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी: "हाय मै दर्द से मरी.............दर्द हो रहा है!! प्लीज थोड़ा धीरे डालो! मेरी बुर फटी जा रही है!!" थानेदार साहब...
इंस्पेक्टर हरिलाल: "अरे चुप साली, तबियत से चुदवा नही रही है और हल्ला कर रही है, मेरी फटी जा रही है, जैसे कि पहली बार चुदवा रही है. अभी-अभी चुदवा चुकी है चूतमरानी और हल्ला कर रही है जैसे कोई सील बन्द कुंवारी लड़की हो." नाटक करेगी तो तेरे भाई के ऊपर लेटा कर तुझे चोदूंगा....
मेरी प्रियंका दीदी: नहीं थानेदार साहब... ऐसा मत कीजिए... मैं आपका साथ दे रही हूं ... मेरे भाई को सोने दीजिए..
थानेदार साहब: ठीक है बहन की लोड़ी...
थानेदार साहब मेरी बहन को गोद में उठाकर बिस्तर के ऊपर खड़े हो गए.. और मेरी बहन को अपने लोड़े के ऊपर उछाल उछाल के चोदने लगे..
थानेदार हरिलाल के इस अंदाज पर मेरी बहन उनकी दीवानी होने लगी थी... उनकी ताकत उनके मर्दानगी उनके मजबूत लोड़े के खूंखार झटके सहने के बाद मेरी दीदी मन ही मन उनके ऊपर फिदा होने लगी थी..
मेरी प्रियंका दीदी की बुर भी पानी छोड़ने लगी..... बुर भीगी होने के कारण लंड बुर मे आराम से अन्दर बाहर जाने लगा..
तकरीबन 5 मिनट तक थानेदार साहब ने इसी अंदाज में मेरी बहन को अपनी गोद में उठाकर मजा दिया और खुद भी मजा लिया..
मेरी प्रियंका दीदी भी अपने दोनों बाहें उनके गले में डालकर उनकी होंठों को चूमते हुए मस्त हो गई थी.... मेरी प्रियंका दीदी की दोनों टांगे थानेदार साहब की कमर के इर्द-गिर्द लटकी हुई झूल रही थी..
थानेदार साहब मेरी बहन की दोनों छोटी-छोटी गांड के भाग को थामे हुए मेरी बहन को अपने लोड़े पर उछाल रहे थे... खड़े-खड़े... मेरी बहन को ठोक रहे थे...
तकरीबन 5 मिनट के बाद थानेदार साहब ने मेरी प्रियंका दीदी को अपनी गोद में से उतार दिया और खुद नीचे लेट गय...
अपने हाथ में अपना मुंह का लंबा लंड थामे हुए वह मेरी बहन को अपने लंड के ऊपर बैठने के लिए आमंत्रित करने लगे अपनी आंखों से...
मेरी दीदी ने उनके खुले निमंत्रण को स्वीकार किया... और अपनी गुलाबी चुनमुनिया को अपनी दो उंगलियों से फैला कर उनके मोटे लंड के ऊपर बैठ गई और कूदने लगे.... मेरी दीदी उठक बैठक लगाने लगी थी..
थानेदार साहब ने मेरी बहन को अपने ऊपर लेटा लिया और खुद भी नीचे से झटके देने लगे....
जब इंस्पैक्टर हरिलाल नीचे से उपर उचक कर अपने लंड को मेरी प्रियंका दीदी की बुर मे ठांसता था, मेरी बहन की दोनो चूचियां पकड़ कर नीचे की ओर खींचता था जिससे लंड पूरा चुत के अन्दर तक जा रहा था.
इस तरह से वह चोदने लगा और साथ-साथ मेरी दीदी के मम्मे भी पम्पिंग कर रहा था, और कभी मेरी दीदी के गालों पर बटका भर लेता था तो कभी दीदी के निप्पल अपने दांतों से काट खाता था.... पर जब वह मेरी प्रियंका दीदी के होठों को चूसता तो मेरी दीदी बेहाल हो जाती थी और नीचे से अपनी गांड उठा उठा के थानेदार साहब को मजा देने लगी थी...
थानेदार मेरी बहन की नर्म मुलायम गुलाबी चिकनी चमेली का भोसड़ा बना रहा था... और शायद मेरी दीदी भी यही चाहती थी...
मेरी प्रियंका दीदी वासना के उन्माद में बड़बड़ा रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब.."हाय मेरे राजा!! मज़ा आ रहा है, और जोर से चोदो और बना दो मेरी चुत का भोसड़ा!!"
थानेदार साहब तो अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे... वह बड़ी प्यार से मेरी दीदी की ले रहे थे... उनका लोड़ा बहुत धीमी रफ्तार के साथ मेरी बहन की चुनमुनिया में अंदर बाहर हो रहा था...
दूसरी तरफ मेरी प्रियंका दीदी चाहती थी कि थानेदार साहब उनको रगड़ के रख दे... खूब कस कस के उनकी ठुकाई करें...
मेरी दीदी अपनी गांड उठा उठा उनको इशारा कर रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी: "हाय राजा ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना, और मज़ा आयेगा, इतना धीरे क्यों मार रहे हो मेरी चुत?"
थानेदार साहब को मेरी बहन की जलती हुई भट्टे के अंदर अपना लोड़ा अंदर बाहर करते हुए बहुत मजा आ रहा था.... उनको तो कोई भी जल्दी नहीं थी... बड़े प्यार से वह मेरी बहन की ठुकाई कर रहे थे...
गुलाबी फुदफुदाती बुर को फाड़ के रख दे... चटनी बना दे उनकी.. दरअसल मेरी प्रियंका दीदी ही इंस्पेक्टर साहब को चोद रही थी... नीचे से ही... थानेदार साहब तो बस मेरी बहन की चूचियों को पी रहे थे....
मेरी प्रियंका दीदी: "हाय राजा ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना, और मज़ा आयेगा, इतना धीरे क्यों मार रहे हो मेरी चुत?"
मेरी बहन की कामुक बातें सुनकर थानेदार साहब ने अपनी स्पीड बढ़ा दी.. उनकी रफ्तार राजधानी ट्रेन की तरह हो गई... ऐसा लग रहा था कि वह अपने बिस्तर को तोड़ देंगे... मेरी दीदी भी मजे और आनंद के मारे मचलने लगी थी...
और फिर थानेदार साहब ने अपना मक्खन भर दिया मेरी दीदी की कोख में... ढेर सारा सफेद माल मेरी बहन की चिकनी चमेली में डालने के बाद वह नीचे लेट कर सुस्ताने लगे...
मेरी दीदी भी झड़ गई थी उनके साथ...
तकरीबन 20 मिनट के बाद थानेदार साहब ने मुझे जगाया... मैं तो जगा हुआ ही था... मैं झटपट उठ कर खड़ा हो गया... मैंने देखा कि मेरी बहन घर जाने के लिए तैयार हो रही है... अपनी लहंगा चोली पहनने के बाद दीदी अपने चेहरे पर मेकअप कर रही थी..
मेरी बहन की फटी पेंटी मेरी आंखों के सामने थी...
जब मेरी बहन तैयार हो गई तू इस्पेक्टर हरिलाल ने अपनी जीप में बिठाकर मुझे और मेरी बहन को अपने घर पहुंचा दिया सुबह 5:30 बजे के आसपास...
उस वक्त भी अंधेरा था... भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि किसी पड़ोसी ने हमें नहीं देखा था उस वक्त...
जब इंस्पेक्टर हरिलाल ने हमारे घर की घंटी बजाई थी... मेरी रूपाली दीदी ने दरवाजा खोला था... आधी नींद में...
मेरी रूपाली दीदी को देखकर इंस्पेक्टर हरीलाल का लोड़ा, जो रात भर मेरी प्रियंका दीदी की कुटाई करते हुए थका नहीं था , तान के खड़ा हो गया और मेरी रूपाली दीदी को सलामी देने लगा..
मेरी रूपाली दीदी कि आंखें ही शर्म के मारे झुक गई थी... और उन झुकी हुई आंखों के साथ मेरी दीदी अपनी कनखियों से उस खूंखार मुसल को जो इंस्पेक्टर हरिलाल के पजामे में तना हुआ था, मुस्कुराने लगी थी.. बेहद कामुक अंदाज में...
मेरी रूपाली दीदी: आइए ना इंस्पेक्टर साहब अंदर आइए ना.. चाय पिएंगे क्या आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: नहीं..... मैं तो बस दूध पीता हूं...
मैं: ठीक है साहब आप हमारे घर के अंदर आइए मैं दूध लेकर आता हूं..
इंस्पेक्टर हरिलाल: हां दूध लेकर आ... तब तक मैं तुम्हारी दोनों बहनों के साथ बातचीत करता हूं..
मेरी रूपाली दीदी ने मुझे आंखों से इशारा किया..... और मैं दूध लेने के लिए मदर डेयरी की तरफ चला गया.... दुकान खोलने में कुछ देर थी...
मैं दूध की दुकान पर तकरीबन 30 मिनट तक बैठा रहा... सुबह के 5:30 बज चुके थे और अब उजाला होने लगा था..... दूध की दुकान मेरे दोस्त मुन्ना की ही थी.... मुन्ना मुझसे तकरीबन 2 साल बड़ा था पर वह मुझसे बड़ी अच्छी जान पहचान थी उसकी.. कुछ देर इंतजार करने के बाद... मुझे मुन्ना दिखाई दिया आता हुआ...
वह अपनी आंखें मलता हुआ मेरे पास आया.... और मुझे देख कर उसे थोड़ा आश्चर्य भी हुआ..... आज मैं पहली बार उसकी दूध की दुकान पर खड़ा था...
मुन्ना: क्या बात है बहन के लोड़े... तू यहां पर क्या कर रहा है...
सैंडी..
मैं: यार मुझे बस आधा लीटर दूध दे दे.... मेरे घर में दूध खत्म हो गया है..
मुन्ना: बहन चोद तेरे घर में दूध की क्या दिक्कत हो गई... तेरे घर में तो एक से बढ़कर एक दूध देने वाली है... सुबह-सुबह अपनी चंदा भाभी को ही घोड़ी बनाकर दूध निकाल सकता है तू तो...
मैं: चुप कर साले... कुछ भी बकवास करता है ..... चल जल्दी से आधा लीटर दूध निकाल कर दे दे मुझे...
मुन्ना: बकवास नहीं कर रहा हूं बहन के लोड़े... आज तो मैंने तेरी रूपाली दीदी को भी देखा.... क्या मस्त पटाखा माल हो गई है तेरी रुपाली दीदी... मार्केट में देखा था.... तेरी रुपाली दीदी भी तो दुधारू लग रही थी..
मैं: साले क्या बकवास कर रहा है... सुबह-सुबह तू पागल हो गया है..
मुन्ना: साले पागल तो मुझे तेरी प्रियंका दीदी ने कर दिया है.. उसकी छलकती हुई छोटी सी गांड और बड़े-बड़े आम देखकर तो मैं पागल ही हुआ रहता हूं..... तू मुझसे अपनी प्रियंका दीदी की शादी क्यों नहीं करवा देता.... साला तुझे मैं 500000 दूंगा..
मैं : बकवास मत कर और मुझे एक आधा लीटर दूध का पैकेट दे...
उसने मुझे एक आधा लीटर दूध का पैकेट दे दिया और बदले में मुझसे पैसा भी नहीं लिया...
उजाला होने से पहले ही मैं अपने घर के दरवाजे के सामने खड़ा था... दूध के पैकेट अपने हाथ में लिए हुए... मेरे घर का दरवाजा खुला हुआ था... मुझे आश्चर्य हुआ देखकर... मैं अपने घर के अंदर घुस गया और हॉल में पहुंच गया.... वहां पर कोई भी नहीं था......
लेकिन मेरी रूपाली दीदी के बेडरूम से कामुक सिसकियां और अजीब अजीब आवाजें निकल रही थी..... मैं अपनी बहन के बेडरूम के पास गया तो देखा कि दरवाजा खुला पड़ा है...
अंदर झांकने पर मैंने देखा..... वह बोला मेरे लिए ठीक नहीं है... लेकिन फिर भी दोस्तों मैं बता रहा हूं..... अंदर बेडरूम में मेरी रूपाली दीदी घोड़ी बनी हुई थी अपने बिस्तर पर..... और मेरी प्रियंका दीदी उनके ऊपर घोड़ी बनी हुई थी...... दरअसल मेरी दोनों बहने एक के ऊपर एक लेटी हुई थी... और पीछे से थानेदार साहब अपने घुटनों के बल बैठे हुए पीछे से अपने खड़े लंड से मेरी रूपाली दीदी की गांड मार रहे थे.... वह अपनी पूरी रफ्तार से मेरी बहन की गांड मार रहे थे... अपना सारा ताकत उन्होंने मेरी दीदी की गांड में डाल दिया था....... थानेदार साहब नंगे थे और उनके माथे पर पसीना था..... पेट और छाती पर भी पसीना दिखाई दे रहा था.... दरअसल थानेदार साहब तो पूरी तरह से पसीने में भीगे हुए थे..... मदमस्त काला बड़ा सा लोड़ा मेरी रूपाली दीदी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था लेकिन पूरा अंदर बाहर नहीं हो पा रहा था.... क्योंकि थानेदार साहब के खड़े लंड के ऊपर मेरी रूपाली दीदी का मंगलसूत्र लिपटा हुआ था..... मेरी बहन अपनी गांड आगे पीछे कर रही थी और थानेदार साहब को उकसा रही थी.... अपनी गांड में और जोर-जोर से करने के लिए.....
मेरी प्रियंका दीदी तो निष्क्रिय होकर रूपाली दीदी के ऊपर बैठी हुई थी... उनको है रात और आश्चर्य हो रहा था... यह मेरी प्रियंका दीदी के लिए भी नया अनुभव था और मेरे लिए भी......
जैसे ही मैं कमरे के अंदर घुसा उन तीनों की नजर मेरे ऊपर पड़ी..... लेकिन उनकी का काम लीला में कोई फर्क नहीं पड़ा मुझे देखने के बावजूद....... बल्कि इसका तो उल्टा ही असर हुआ... मुझे देखकर थानेदार साहब कुटिल तरीके से मुस्कुराए... और फिर अपना मोटा लंबा काला लंड बाहर की तरफ खींच कर फिर से अंदर की तरफ डाल दिए और बड़ी बेदर्दी से मेरी बहन की गांड चोदने लगे...
मेरे वहां मौजूद होने के बावजूद भी मेरी रूपाली दीदी अपनी गांड आगे पीछे हिलाते हुए उनका भरपूर साथ दे रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी ने अपनी कनखियों से मुझे कमरे से बाहर जाने का इशारा किया....... और मैं कमरे से बाहर आ गया.... लेकिन वही दरवाजे के पास खड़े होकर अंदर के होने वाले कार्यक्रम का नजारा लेने का कोशिश करने लगा छुप छुपा के......
कुछ ही देर में अंदर कमरे की परिस्थितियां बदल चुकी थी... मेरी प्रियंका दीदी घोड़ी बनी हुई थी और थानेदार साहब पीछे से उनकी गांड मार रहे थे.... और मेरी रूपाली दीदी नीचे लेटी हुई थानेदार हरीलाल के दोनों बड़े बड़े आंड को चाट रही थी..
मेरी रूपाली दीदी उनके दोनों बड़े बड़े लटके हुए आंड को अपनी जीभ से चाट रही थी फिर मुंह में लेकर चूसने लगी थी.. इस दौरान उनके आंड के ऊपर बंबू की तरह खड़ा काले रंग का मोटा लौड़ा मेरी प्रियंका दीदी की गांड की सुराख में अपनी रफ्तार के साथ आगे पीछे हो रहा था... मानना पड़ेगा थानेदार साहब को और उनकी मर्दानगी को भी... सारी रात मेरी प्रियंका दीदी को बजाने के बाद भी उनके अंदर अभी और भी ताकत बची हुई थी.. तकरीबन 5 मिनट तक इसी पोज में और खूब रफ्तार से मेरी प्रियंका दीदी की गांड मारने के बाद उन्होंने मेरी दोनों बहन की पोजीशन को बदल दिया आपस में..
अब मेरी रूपाली दीदी अपनी गांड उठा उठा कर उनका लौंडा ले रही थी अपनी गांड के छेद में... और उनके दोनों आंड को चाटने का काम मेरी प्रियंका दीदी का हो चुका था.... थानेदार साहब तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे..
थानेदार साहब को मेरी रूपाली दीदी की इस सूखी जमीं पर बादल बनकर खूब बरसना था और वह खूब जमकर बरसे.... मेरी बहन की गांड के आरपार करते हुए उन्होंने मेरी बहन को सुबह सुबह ही चांद तारे दिखा दिए थे... मेरी रूपाली दीदी भी खूब मस्ती में थी... और थानेदार साहब को अपनी अदाओं से उकसा रही थी...
बेदर्दी से सुपर स्पीड से चोद रहे थे थानेदार साहब मेरी रूपाली दीदी की गांड को... और फिर ढेर हो गय.. मेरी बहन की गांड में... अपना ढेर सारा सफेद लावा डालकर... सुस्ताने लगे ...
खोली के अंदर से मेरी प्रियंका दीदी की कामुक सिसकियां आने लगी थी.... मैंने वहां दरवाजे पर खड़े रहना ठीक नहीं समझा... मुझे सच में बहुत बुरा लग रहा था... अपनी सगी बहन को एक ठरकी सिक्युरिटी इंस्पेक्टर की खोली के अंदर भेजने के बाद....
मुझे अच्छी तरह से पता था कि अंदर खोली में वह मेरी बहन के साथ क्या कर रहा होगा... लेकिन मेरी और मेरे परिवार की ऐसी मजबूरी थी कि हम कुछ भी नहीं कर सकते थे... यह सब कुछ इतना आसान नहीं था मेरे लिए..
मैं अपने बोझिल थके हुए कदमों के साथ निराशा का भाव अपने चेहरे पर लिए हुए उस खोली के दरवाजे से पीछे की तरफ जाने लगा... जहां पर मेरा दोस्त बिल्लू अपनी ऑटो में बैठा हुआ मेरी तरफ देख रहा था..
उसके पास पहुंच कर मैंने उससे कहा..(उसको ₹200 देते हुए)..
मैं: तुम अब अपने घर जा सकते हो... कल सुबह मैं तुमको फोन करूंगा तो आ जाना फिर से..
बिल्लू : क्या बात कर रहा है यार... क्या वह थानेदार रात भर तेरी प्रियंका दीदी को..... साला इतना स्टेमिना होगा उसके अंदर..
( उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी)
मैं: देख बिल्लू... तु मेरे सबसे अच्छा दोस्त है... अगर तूने यह बात गांव में किसी को भी बताई तो हमारे घर की इज्जत खाक में मिल जाएगी... हम किसी को भी मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाएंगे... मुझसे वादा कर तू गांव में जाने के बाद यह बात किसी को भी नहीं बताएगा...
बिल्लू: तू मेरी फिक्र मत कर यार... मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा... तेरे लिए तो अपनी जान भी हाजिर है... लेकिन तेरी प्रियंका दीदी का क्या होगा... साला थानेदार तो देखने में बहुत बड़ा हरामी मुसंडा लग रहा है... तेरी प्रियंका दीदी का खून खच्चर ना कर दे....
बोलते हुए उसका लहजा बेहद कामुक हो गया था..
वह मेरी प्रियंका दीदी को अभी भी एक कुंवारी कन्या समझ रहा था...
मैं: ठीक है अब तू जा... मैं सुबह मैं तुझे कॉल करूंगा..
उसने अपने ऑटो स्टार्ट की और जाने से पहले मुझसे बोला...
सबसे अच्छा दोस्त हूं तेरा... मुझे भी कभी मौका देना अपनी प्रियंका दीदी के साथ...
और फिर वह वहां से निकल गया....
सर्दी के मौसम में और सुनसान सड़क पर मैं वहीं खड़ा रह गया और उसकी कही हुई बातों के बारे में सोचने लगा... मेरा सर घूमने लगा था... मेरी प्रियंका दीदी अंदर इंस्पेक्टर हरिलाल के साथ ना जाने क्या कर रही होगी सोच सोच कर मुझे चक्कर आने लगे थे...
अचानक इंस्पेक्टर साहब की खोली का दरवाजा खुला... उन्होंने ही दरवाजा खोला था.. उन्होंने इशारा करके मुझे अपने पास बुलाया...
जब मैं उनके पास गया तो मैंने देखा इंस्पेक्टर साहब सिर्फ अपनी लुंगी में खड़े थे... उनकी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाएं देख कर मैं अचंभित हो रहा था.... सीने पर काले काले बाल... थोड़ा सा निकला हुआ पेट... घनी काली रौबदार मूंछ देखकर मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी...
इंस्पेक्टर हरिलाल: सैंडी एक काम कर... यहां पास में ही एक मेडिकल शॉप की दुकान है... वहां से तू एक मैनफोर्स कंडोम 8 इंच साइज का और साथ में वियाग्रा की चार गोलियां लेकर आना... समझ गया ना..
मैं: जी सर...
इंस्पेक्टर हरिलाल: तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है...
मैं: नहीं सर...
थानेदार साहब( मुझे पांच सौ का नोट देते हुए): जा जल्दी लेकर आ... वरना कांड हो जाएगा तेरी बहन के साथ..
मैं उनके हाथ से नोट लेकर भागता हुआ मेडिकल शॉप की तरफ गया.. और वहां से कंडोम और वियाग्रा लेकर किसी तरह दौड़ता भागता इंस्पेक्टर हरिलाल की खोली के पास पहुंचा...
मैंने उनकी खोली का दरवाजा खटखटाया...
कौन है माधर्चोद... अंदर से इंस्पेक्टर हरिलाल की कड़क आवाज सुनाई दी मुझे..
मैं: सर मैं हूं... सैंडी... आपने मुझे दवाई लेने के लिए भेजा था ना..
इंस्पेक्टर हरिलाल: रुक आता हूं अभी...
थानेदार साहब ने दरवाजा खोला अपनी खोली का... वह बिल्कुल नंगे खड़े थे .... उनकी टांगों के बीच में उनका खड़ा 8 इंच का खूब मोटा मुसल देख कर मुझे हैरानी होने लगी..... मुझे हैरानी इस बात की नहीं थी कि उनका मुंह से 8 इंच लंबा और मोटा है... बल्कि वह पूरी तरह से लाल था... उस पर लाल लिपस्टिक के निशान बने हुए थे.... जाहिर है वह मेरी प्रियंका दीदी के होठों के निशान थे..
चूस चूस कर मेरी मेरी प्रियंका दीदी ने अपने होठों की सारी लाल लिपस्टिक थानेदार साहब के 8 इंच के मुसल लोड़े के ऊपर उतार दी थी... जो मेरी आंखो के सामने लहरा रहा था..
इंस्पेक्टर हरिलाल: क्या देख रहा है बहन चोद... तेरी बहन ने चूस चूस कर लाल कर दिया है मेरे काले लोड़े को....
मैंने अपनी नजर नीचे की तरफ झुका ली और कुछ नहीं बोला..
इंस्पेक्टर हरिलाल: मेरी दवाई और कंडोम लाया है कि नहीं माधर्चोद...
मैं: जी सर लाया हूं...
बोलकर मैंने दवाई और कंडोम का पैकेट उनकी तरफ बढ़ा दिया...
थानेदार साहब ने मेरे हाथ से ले लिया और मेरे चेहरे पर अपनी खोली का दरवाजा बंद करने वाले थे ही मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब... मेरे भाई को भी अंदर ही बुला लीजिए ना... सर्दी के मौसम में रात भर बाहर कैसे खड़ा रहेगा...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... एक बार फिर से सोच ले... तेरा सगा भाई है ... रात में मुझे कोई ड्रामा नहीं चाहिए... अंदर आने के बाद तेरे भाई अब तूने कोई ड्रामा किया तुम मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..
मेरी प्रियंका दीदी: मैं वादा करती हूं थानेदार जी... मेरे भाई को अंदर ले लीजिए... वह कुछ भी नहीं करेगा ..चुपचाप सो जाएगा नीचे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चल भोंसड़ी के... तू भी अंदर आ जा...
मेरा हाथ पकड़ कर इंस्पेक्टर साहब ने मुझे अपनी खोली के अंदर खींच लिया... मुझे राहत का अहसास हुआ क्योंकि बाहर बहुत सर्दी थी... और कमरे के अंदर गर्मी थी..... बिना हीटर के...
दरअसल कमरे के अंदर एक चौकी पर मेरी प्रियंका दीदी नंगी पड़ी हुई थी... उनकी लहंगा चोली उस चौकी के नीचे पड़ी हुई थी.. ब्रा पेंटी कहां पर है उसका तो नामोनिशान ही नहीं था...
.. मेरी बहन की आंखों में कामुक मदहोशी थी.... मुझे देख कर भी मेरी बहन पर कोई असर नहीं हुआ था वह तो उसी अंदाज में अपनी टांगे फैलाए हुए लेटी हुई थी.
मेरी प्रियंका दीदी की पतली पतली दोनों टांगों के बीच उनकी कसी हुई मक्खन जैसी नाजुक गुलाबी चूत के ऊपर छोटे-छोटे काले काले बाल उग आए थे... ऐसा लग रहा था मेरी दीदी ने कुछ दिनों से अपनी साफ सफाई नहीं की थी... पतली कमर... अनार जैसी तनी हुई बड़ी-बड़ी चूचियां... खड़े-खड़े लाल निपल्स.... माथे पर बिंदी... होठों पर प्यास.... मेरी प्रियंका दीदी के होठों की लाली लिपस्टिक गायब हो चुकी थी... जो अब थानेदार साहब के मुसल पर लगी हुई थी... मैं पूरा माजरा समझ गया था..
थानेदार साहब ने अपने अलमीरा खोलकर दो कंबल निकाले...
अपनी चौकी के नीचे उन्होंने एक कंबल बिछा दिया और मुझे लेटने के लिए इशारा कर दिया.... मैं चुपचाप उस कंबल के ऊपर लेट गया... थानेदार साहब ने दूसरा कंबल मेरे ऊपर डाल दिया... और बोले..
हरिलाल: चुपचाप सो जा ... बहुत ठंड है बाहर... मैं तेरी बहन के साथ थोड़ा बहुत प्यार करूंगा.... अगर बीच में कुछ नाटक किया तो रात भर बाहर सड़क पर ठंड में सोना पड़ेगा तुझे..
मैं: नहीं सर... मैं कोई नाटक नहीं करूंगा... मैं सो जाता हूं.
ऐसा बोलकर मैंने दूसरे कंबल से अपने आप को पूरी तरह ढक लिया था.... मुझे वाकई बेहद सर्दी लग रही थी... कमरे के अंदर आने के बाद और कंबल के नीचे सोने के बाद मुझे थोड़ी बहुत राहत का अहसास होने लगा था... और मुझे नींद आने लगी.... लेकिन नींद आने से पहले ही मेरी आंखों की नींद उड़ गई... मेरी प्रियंका दीदी की मादक सिसकियां सुनकर..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब... रुक जाएंगे ना... मेरे भाई को तो कम से कम सो जाने दीजिए ..."उईई माँ!! अरे हाय... मर गई..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप कर साली... मुझे करने दे जो मेरा मन है... तेरा भाई तुझे इसीलिए तो लाया है यहां पर...
मेरी प्रियंका दीदी: हाय मर गई... दैया रे दैया... आपका बहुत बड़ा है.. दया कीजिए हम पर... धीरे... हाय मम्मी रे...
दरअसल थानेदार साहब मुझे सोता हुआ समझकर मेरी दीदी के ऊपर सवार हो गए थे और अपना काला लंबा मुसल मेरी बहन के गुलाबी छेद के ऊपर टीका कर ऊपर से दबाव बना रहे थे..
ना नूकुर करते हुए नखरे दिखाते हुए मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी गांड उठा कर उस मुसल को अपने अंदर लेने का प्रयास कर रही थी...
मैंने कंबल को थोड़ा सा अपने चेहरे से हटा कर चौकी के ऊपर अपनी गर्दन उठाकर देखा तो हतप्रभ रह गया..
मेरी प्रियंका दीदी थानेदार साहब को अपनी बाहों में लपेट के उनको अपने छेद पर आक्रमण करने की दावत दे रही थी... और थानेदार साहब ने भी वही किया... एक झटके में ही उन्होंने की ऐसा जोर का ठाप मारा कि उसका आधा लंड मेरी प्रियंका दीदी की चुत मे घुस गया...
मेरी प्रियंका दीदी: "उइइइ माँ मै मरी!" हाय दैया थानेदार साहब... बड़े जालिम हो आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: बहन की लोड़ी... जालिम मैं हूं? साली रंडी तू तो मर्डर भी करती है... बता तूने जुनेद को कैसे मारा?
मेरी प्रियंका दीदी: "उईई माँ!! अरे ज़ालिम क्या कर कर रहा है? थोड़ा धीरे से कर" कहती ही रह गयी और वह इंजन के पिस्टन की तरह मेरी बहन की चूत का ढोल पीटने की शुरुआत करने की तैयारी करने लगे..
इंस्पेक्टर हरिलाल: तमीज से बात कर रंडी... साली ....
कमरे में मद्धम लाइट जल रही थी.. उन दोनों को तो बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि मैं अपना सर अपने कंबल से बाहर निकाल कर चौकी के ऊपर झांक रहा हूं... वैसे भी उन दोनों को मेरी परवाह नहीं थी...
थानेदार साहब का लंड बहुत बड़ा था और कुछ मेरी प्रियंका दीदी की चुत बहुत सिकुड़ी थी... इसलिये उनका लंड अन्दर जाने के बज़ाय वहीं अटक कर रह गया...
थानेदार साहब ने तुरन्त ही पास रखी घी की कटोरी से कुछ घी निकाला और अपने लंड पर घी चुपड़ कर तुरन्त फिर से लंड को चूत पर रख कर धक्का मारा. इस बार लंड तो अन्दर घुस गया पर मेरी बहन के मुंह से जोरो कि चीख निकल पड़ी,
"आह्ह्ह मै मरी!! हाय ज़ालिम तेरा लंड है या बांस का खुंटा!"
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी प्रियंका दीदी की तड़पती हुई सिसकियों का कोई भी परवाह नहीं किया... और वह ताबड़तोड़ झटके देने लगे..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय राजा मर गयी! उइइइइ माँ! थोड़ा धीमे करो ना!" थानेदार जी... मर गई रे मैया...
थानेदार साहब अपनी पूरी ताकत से मेरी बहन के अंदर बाहर होने लगे थे.. उन्हें बिल्कुल भी परवाह नहीं थी कि मैं यहीं पर हूं..
मेरी प्रियंका दीदी भी अपनी छोटी गांड उठा उठा उनका साथ दे रही थी..
चारपाई के ऊपर थानेदार साहब और मेरी प्रियंका दीदी के बीच एक जबरदस्त प्यार का युद्ध चल रहा था... जिसमें थानेदार साहब मेरी बहन के ऊपर हावी होने लगे थे... मेरी प्रियंका दीदी की कामुक सिसकियां और मादक आहे आग में घी का काम कर रही थी थानेदार साहब के लिए.. वह पूरी तरह से फॉर्म में आ गए थे और तबाड़-तोड़ धक्के मारने लगे.
मेरी प्रियंका दीदी ने अब नीचे से अपनी गांड उठाना बंद कर दिया था... मेरी दीदी तो बस अब थानेदार साहब के मजबूत औजार को झेल रही थी... मेरी दीदी पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी: है राजा मर गयी! उइइइइ माँ! थोड़ा धीमे करो ना!" थानेदार साहब... हाय मेरी जान लोगे क्या...
इंस्पेक्टर हरिलाल तो राजधानी ट्रेन बने हुए थे..वह धक्के पे धक्के मारे जा रहे थे....रूम मे हचपच हचपच की ऐसी आवाज़ आ रही थी मानो 110 की.मी. की रफ़तार से गाड़ी चल रही हो.
कुछ देर में ही मेरी प्रियंका दीदी कामुकता के सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी और मजे में कुछ भी बड़बड़ा रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी( अपनी कामुकता में बड़बड़आती हुई): हाय थानेदार साहब... हाय मेरे राजा...मारो मेरी चुत! हाय बड़ा मज़ा आ रहा है! आह्ह्ह बस ऐसे ही करते रहो आह्ह्ह!! आउच!! और जोर से पेलो मेरे राजा!! फाड़ दो मेरी बुर को आह्ह्ह्ह!! पर यह क्या मेरी चूचियों से क्या दुशमनी है? इन्हे उखाड़ देने का इरादा है क्या? हाय! ज़रा प्यार से दबाओ मेरी चूचियों को थानेदार जी....
मैंने चौकी के ऊपर सर उठा कर देखा तो पाया इंस्पेक्टर हरिलाल मेरी बहन की दोनों अनार जैसी चूचियों को बड़ी ही बेदर्दी से किसी होर्न की तरह दबाते हुए घचाघच पेले जा रहे थे...
मेरी बहन की दोनों चूचियां लाल हो चुकी थी... भूरे रंग के खड़े-खड़े निपल्स थानेदार को और भी चुनौती दे रहे थे.... थानेदार साहब ने अपने दोनों हाथों से मेरी बहन की चूचियों का घमंड मसल के रख दिया.. फिर एक निप्पल को अपने मुंह में लेकर ऐसे चूसने लगे जैसे एकदम दुरुस्त मर्द किसी पके हुए आम को चूसता है...
मेरी प्रियंका दीदी चुदाई की खुमारी में बेहाल हो चुकी थी... उनको तो अब कोई होश नहीं था... ना ही कोई लाज शर्म....चुदाई की प्यास मेरी बहन के चेहरे से साफ साफ झलक रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी की की वासना की आग में जलती हुई गर्म भट्ठी जैसी गुलाबी चूत में थानेदार साहब ने तकरीबन 15 मिनट तक बिना रुके हुए पेला.... इस दौरान मेरी दीदी दो बार झड़ गई थी... थानेदार साहब भी झड़ गय... अपने मुसल का सफेद गाढ़ा रस मेरी बहन की तितली के अंदर भरने के बाद वह मेरी बहन के बगल में लेट गय और लंबी लंबी सांसे लेने लगे... मेरी प्रियंका दीदी की दोनों टांगे कांप रही थी... थानेदार ने मेरी बहन की जलती हुई भट्टी के अंदर गरम-गरम लावा भर दिया था...
आंखें बंद किए हुए मेरी प्रियंका दीदी किसी दूसरी दुनिया में खोई हुई थी..
चुदाई के दौरान कंडोम फट गया था... और मेरी बहन की चिकनी चमेली के अंदर घुस गया था... थानेदार की नजर जब मेरी बहन की चूत के ऊपर गई तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई...
थानेदार साहब को एक शरारत सूझी... उन्होंने मेरी प्रियंका दीदी की गरम गीली गुलाबी चूत को अपनी दो उंगलियों से फैला कर अंदर फंसा हुआ फटा हुआ कंडोम खींच कर निकाल लिया और मेरे ऊपर फेंक दिया..
इंस्पेक्टर हरिलाल की इस हरकत पर मेरी बहन अपना होश संभाल उनकी तरफ प्यासी निगाहों से देखते हुए मीठी-मीठी शिकायत करने लगी..
थानेदार साहब की चौड़ी छाती पर बड़े प्यार से मक्का मारते हुए मेरी दीदी इतराते हुए बोल रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब.. आप तो बड़े जालिम हो...
थानेदार साहब( प्यार से मुस्कुरा कर): क्यों मेरी छम्मक छल्लो... मैं तुमको जालिम क्यों लग रहा हूं... मैं तो तुम्हारी मदद कर रहा हूं ताकि तुम इस केस से अपने आप से बचा सको... वरना अभी तुम्हारी मम्मी को नहीं बल्कि तुम को सलाखों के पीछे होना चाहिए था...
मेरी प्रियंका दीदी: मैं अपनी मां की कसम खाकर कहती हूं सर... मैंने किसी का मर्डर नहीं किया है.. मैं भला किसी का खून कैसे कर सकती हूं.. प्लीज आप मुझ पर शक ना कीजिए...
इंस्पेक्टर हरिलाल: शक करने की वजह है मेरे पास बहन की लोड़ी... जुनैद के मोबाइल फोन से जो वीडियो ऑडियो और व्हाट्सएप चैट मिले उन सब में सिर्फ तू और कुछ देर के लिए तेरी रुपाली दीदी भी है... पर हमारे पास रूपाली को गिरफ्तार करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं है... लेकिन तेरे खिलाफ तो पूरे सबूत है...
मेरी प्रियंका दीदी: थानेदार साहब... मैं और मेरी दीदी मजबूर थे... उन दोनों ने पहले मेरी रूपाली दीदी का बलात्कार किया था और वीडियो भी बना लिया था... इसी कारण से मुझे भी उनके साथ जाना पड़ा... जुनेद मुझसे प्यार करने लगा था... मैं भी उसको पसंद करने लगी थी.. मैं उसका मर्डर क्यों करूंगी..
स्पेक्टर हरिलाल: क्योंकि तुम दोनों बहने और तुम्हारा परिवार उस गुंडे के जाल में फंसा हुआ था... इसीलिए तुमने प्लान करके उसका मर्डर किया है..
मेरी प्रियंका दीदी( अपनी आंखों में आंसू लिए): नहीं सर यह बात पूरी तरह से सच नहीं है...
इंस्पेक्टर हरिलाल: क्यों सच क्यों नहीं है... क्राइम सीन पर तेरे मौजूद होने के बहुत सारे सबूत है हमारे पास.. तेरी फटी हुई पेंटी वहीं पर पड़ी हुई थी... जिस पर तेरा वीर्य और जुनेद का भी वीर्य लगा हुआ था ... फॉरेंसिक टेस्ट में तो सब कुछ सामने आ जाएगा... उस दिन के वीडियो में भी जो जुनैद के मोबाइल से बरामद हुआ है.... मर्डर के 1 घंटे पहले ...तू उसमें उसके लंड के ऊपर बैठकर कूद रही है... देख कर तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगता कि उसने तुम्हारे साथ कोई जोर जबरदस्ती की है..
मेरी प्रियंका दीदी: आपकी बात ठीक है इंस्पेक्टर साहब... उस दिन उसने मेरे साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की थी... हम दोनों नहीं पूरे दिन इंजॉय किया था... मुझे भी उस दिन बहुत मजा आया था जैसा आज आपके साथ आ रहा है... लेकिन फिर मैं अपने घर चली आई थी.. मुझे वाकई में नहीं पता है कि उसके बाद क्या हुआ...
इंस्पेक्टर हरिलाल: ठीक है मेरी रानी... मैं तेरी पूरी मदद करूंगा... इस केस में से तुम को निकालने के लिए... पर तुम भी तो मेरी मदद करो ना मेरी जान... मेरी माल आओ मुझे प्यार करो...
मेरी प्रियंका दीदी ( बड़े कामुक अंदाज में प्यार से उनकी तरफ देखते हुए बोली): प्यार करना आप के बस की बात नहीं है थानेदार जी.. आप तो दरिंदे हो.. बिल्कुल दरिंदे की तरफ पेलते हो... आपने तो वह कंडोम भी फाड़ दिया...
इंस्पेक्टर हरिलाल( हंसते हुए): इसमें मेरी गलती नहीं है... गलती तो तेरे इस बहन चोद भाई की है... यह छोटे साइज का कंडोम लेकर आया था.. लगता है इसका लोड़ा भी छोटा है... शायद इसीलिए अपने साइज का खरीद लाया था..
मेरी प्रियंका दीदी: मेरे भाई को कुछ मत बोलिए ना सर.... मैं आई हूं तो आप की सेवा करने के लिए ही ना... मुझे अपनी सेवा का मौका दीजिए ना सर...
मेरी प्रियंका दीदी को कामुक तरीके से मचलते हुए और खुद से लिपटते हुए देखकर थानेदार साहब के ऊपर एक अजीब किस्म की दरिंदगी सवार हो गई... मेरी बहन का बाल पकड़ लिया और जबरदस्ती करते हुए उनको नीचे की तरफ ले गए और अपना मुरझाया हुआ काला लंड मेरी दीदी के मुंह में जबरदस्ती डाल दिया...
मेरी प्रियंका दीदी तो हैरान हो गई थी हरिलाल को इस तरह से रंग बदलते हुए देखकर... फिर भी मेरी दीदी ने संयम से काम लिया और बड़े प्यार से उसके मुरझाए हुए लंड को अपने मुंह में लेकर अपनी जीभ से प्यार करने लगी... चाटने लगी.... चूसने भी लगी...
इंस्पेक्टर हरिलाल ने मेरी दीदी के सर पर दबाव बना रखा....
थानेदार साहब: चूस मेरी रानी... मेरा लौड़ा चूस.... फिर से खड़ा कर दे मेरे लोड़े को चूतमरानी...... रंडी .... मां चोद दूंगा तेरी....
मेरी प्रियंका दीदी अपने काम में लगी हुई थी...
मेरे चेहरे के पास वह फटा हुआ कंडोम पड़ा हुआ था... जिसमें मेरी दीदी और थानेदार साहब का मिलाजुला काम रस लगा हुआ था... उसकी महक ही मुझे अजीब लग रही थी...
जैसा थानेदार साहब चाह रहे थे मेरी दीदी बिल्कुल वैसा ही कर रही थी... बिना कोई नखरा दिखाए... उनका हाथ मेरी बहन के सर पर था.. चूस चूस कर मेरी प्रियंका दीदी ने थानेदार साहब के लंड को एक बार फिर से कुतुबमीनार की तरह खड़ा कर दिया... फिर अपने दोनों रसीले जोबन के बीच में लेकर उनके कड़े हथियार को हिलाने लगी..
उत्तेजना के मारे मेरी प्रियंका दीदी के किसमिस के आकार के निपल्स फुल कर अंगूर की तरह बड़े हो गए थे... और मेरी बहन अपने दोनों अंगूरों से थानेदार हरीलाल के मोटे लंबे लंड को छेड़ रही थी....
थानेदार हरिलाल: मेरी रानी.... तू सच में बहुत ही मस्त माल है.. तेरे जैसी चिकनी लौंडिया को चोदने का मुझे आज तक मौका नहीं मिला था... आज तो तुझे भरपूर मजा दूंगा अपने लोड़े से...
मेरी प्रियंका दीदी: आपका लंड भी मुसल के जैसा है साहब... हमने भी आज तक इतना बड़ा नहीं देखा था...
मेरी प्रियंका दीदी की कामुक अदाएं देखकर... उनकी रसभरी उत्तेजित करने वाली बातें सुनकर इंस्पेक्टर हरिलाल तो पूरी तरह से पागल हो चुका था.. उनके अंदर का जानवर जाग चुका था...
मेरी बहन के होठों और चुचियों ने ऐसा जादू दिखाया था की थानेदार साहब का लोड़ा आसमान की बुलंदियों को छू रहा था..
उन्होंने अब मेरी प्रियंका दीदी का बाल पकड़कर को जबरदस्ती घोड़ी बना दिया उसी बिस्तर पर और खुद पीछे आ गए..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार जी... बड़े बेरहम मर्द हो आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप साली रंडी.....
थानेदार साहब एक बॉडीबिल्डर मर्द थे... बहुत ताकत थी उनके अंदर... मेरी प्रियंका दीदी तो उनकी ताकत के आगे बिल्कुल बेबस लग रही थी..
पीछे आने के बाद उन्होंने मेरी प्रियंका दीदी छोटे-छोटे उभरे हुए गांड के दोनों भाग को अपने मजबूत हाथों में दबोच कर अलग अलग किया... और फिर अपना मोटा लण्ड मेरी बहन की गांड की छत के ऊपर टिका कर एक करारा झटका दिया... उनका आधा मुसल मेरी दीदी की गांड के छेद में घुसकर अटक गया... मेरी बहन के मुंह से एक जोरदार चीख निकली... लेकिन थानेदार साहब ने कोई परवाह नहीं की...
मेरी प्रियंका दीदी: “ऊईई…ई…ई…ई… मां.... मार डाला रे.... थानेदार साहब... यह क्या कर रहे हैं आप..
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप कर साली रंडी की औलाद.... बहन की लोहड़ी तेरी गांड मार रहा हूं.... ज्यादा चीखेगी चिल्लाएगी तो तेरा गांडू भाई जाग जाएगा...
थानेदार साहब को लग रहा था कि मैं सो चुका हूं... लेकिन जिसकी बहन बगल में अपनी गांड में लौड़ा लिय चिल्ला रही होगी वाह भाई भला कैसे सो सकता है... मैं बस आंखें बंद करने का नाटक कर रहा था...
थानेदार साहब ने अपना लौड़ा बाहर की तरफ खींचा और फिर से एक जबरदस्त झटका दिया और मेरी बहन की गांड को चीरते हुए उनका लौड़ा मेरी प्रियंका दीदी की गांड के छेद में समा चुका था..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय रे थानेदार साहब...अरे राम!! थोड़ा तो रहम खाओ, मेरी गांड फटी जा रही है रे ज़ालिम! थोड़ा धीरे से, अरे बदमाश अपना लंड निकाल ले मेरी गांड से नही तो मैं मर जाऊंगी आज ही!"
इंस्पेक्टर हरिलाल: चुप्प! साली छिनाल, नखरा मत कर नही तो यहीन पर चाकु से तेरी चुत फाड़ दूंगा, फिर ज़िन्दगी भर गांड ही मरवाते रहना! थोड़ी देर बाद खुद ही कहेगी कि हाय मज़ा आ रहा है, और मारो मेरी गांड."
मेरी प्रियंका दीदी तड़प रही थी, छटपटा रही थी... दर्द के मारे उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे थे... मेरी दीदी अपनी गांड इधर-उधर हिला रही थी ताकि थानेदार साहब का मोटा लंड उनकी गांड के छेद में से निकल जाए... लेकिन इंस्पेक्टर हरिलाल की पकड़ मजबूत थी... उन्होंने 1 इंच भी टस से मस नहीं होने दिया... पूरी मजबूती के साथ मेरी दीदी को पकड़कर उनकी गांड में अपना लौड़ा ठेलके आनंद लेते रहे...
वह कुछ देर तक इसी पोजीशन में मेरी बहन के ऊपर सवार होकर अपने हाथों से मेरी बहन की चूचियों के साथ खेलते रहे..
और फिर उन्होंने धीरे-धीरे मेरी बहन की गांड को चोदना शुरू कर दिया..
थानेदार साहब ने अपना लंड अन्दर-बाहर करना शुरू किया मेरी बहन की गांड में.... मेरी दीदी ने भी चीखना चिल्लाना बंद कर दिया था और उनके मुसल को अपनी गांड में एडजस्ट करने की कोशिश लग करने लगी थी...
मेरी प्रियंका दीदी को अच्छी तरह से पता था कि यह कमीना बिना उनकी गांड मारे मानने वाला नहीं है.... इसीलिए मेरी बहन भी उनका साथ देने लगी.. और इंजॉय करने की कोशिश करने लगी..
थानेदार साहब ने तो शुरुआत धीमी रफ्तार से की थी लेकिन धीरे-धीरे उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी, और अब वह ठापाठप किसी पिस्टन की तरह मेरी प्रियंका दीदी की गांड मार रहे थे...
मेरी दीदी भी अपनी गांड आगे पीछे करके उनको सहयोग दे रही थी..
थानेदार साहब ने मेरी प्रियंका दीदी के बाल पकड़ रखे थे जैसे किसी घोड़ी को दौड़आते हुए जॉकी उसकी लगाम को पकड़ के रखता है ..
दूसरे हाथ की उंगलियों से वह मेरी बहन की गुलाबी चुनमुनिया को छेड़ रहे थे.... मेरी बहन तो झरने की तरफ झड़ रही थी... मेरी प्रियंका दीदी अपनी गांड में होने वाले दर्द को भूल गई थी.....
देख कर तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी दीदी गांड मरवाते हुए बहुत मजे में है... और थानेदार साहब के आनंद की तो सीमा ही नहीं थी..
मेरी बहन को गंदी गंदी गालियां देते हुए वह अब अपनी पूरी रफ्तार से मेरी बहन की गांड मार रहे थे...
मेरी प्रियंका दीदी: हाय मज़ा आ रहा है! और जोर से मारो, और मारो और बना दो मेरी गांड का भुर्ता! और दबाओ मेरे मम्में, और जोर दिखाओ अपने लंड का और फाड़ दो मेरी गांड. अब दिखाओ अपने लंड की ताकत!" थानेदार साहब... हाय मां..
तकरीबन 10 मिनट के बाद....
थानेदार साहब: साली रंडी तेरी मां का भोसड़ा चोद.....अब गया, अब और नही रुक सकता! ले साली रण्डी, गांडमरानी, ले मेरे लंड का पानी अपनी गांड मे ले!" कहते हुए थानेदार साहब के लंड ने मेरी प्रियंका दीदी गांड मे अपने वीर्य की उलटी कर दी. वह चूचियां दाबे मेरी प्रियंका दीदी कमर से इस तरह चिपक गया था मानो मीलों दौड़ कर आया हो...
फिर अपना मुसल मेरी बहन की गांड में से निकालकर उनके बगल में लेट गया और आराम करने लगा....
मुझे लगा कि आज रात का प्रोग्राम तो खत्म हो गया.... मेरी दीदी की गांड ने खूब अच्छे से निचोड़ लिया होगा इस हरामजादे थानेदार का...
मेरी बहन भी शांत पड़ी हुई थी... थानेदार साहब भी अपनी आंखें बंद किए हुए लेटे हुए थे... कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था... बस लंबी-लंबी थकी हुई सांसे ले रहे थे... मुझे लग गया था कि आज का प्रोग्राम तो खत्म हो गया... राहत का अहसास होते ही मुझे नींद आने लगी और मैं सो गया..
मैं तकरीबन 2 या 3 घंटे सोया था कि मेरी नींद खुल गई... दरअसल मेरी नींद मेरी बहन की चीख सुनकर खुल गई थी..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब... मर गई रे मां...
जब मैंने अपना सर ऊपर की तरफ उठाकर देखा तो पाया कि थानेदार साहब एक बार फिर मेरी प्रियंका दीदी के ऊपर चढ़े हुए थे और मेरी बहन को पेल रहे थे... उनकी गुलाबी चिकनी चुनमुनिया में... उनका मोटा मूसल अपनी पूरी ताकत और रफ्तार से मेरी बहन की चिकनी चमेली की धज्जियां उड़ा रहा था...
मेरी प्रियंका दीदी उनके नीचे लेटी हुई अपनी दोनों टांगे उठा कर हाय हाय मर गई कर रही थी..
मेरी बहन की एक चूची को मुंह में लेकर और दूसरी चूची को अपने हाथ से मसलते हुए थानेदार साहब मेरी बहन की जबरदस्त ठुकाई कर रहे थे..
दरअसल गांड मारने के बाद इंस्पेक्टर हरिलाल भी सो गए थे और मेरी बहन भी उनसे लिपट के सो गई थी...
सुबह 5:00 बजे जब थानेदार साहब की आंख खुली और उन्होंने मेरी बहन को खुद से लिपटा हुआ पाया तो उनके अरमान एक बार फिर जाग गए थे.. और वह मेरी बहन के ऊपर चढ़कर उनको फिर से चोदने लगे थे..
मेरी प्रियंका दीदी की पायल और चूड़ियों की खन खन और उनकी कामुक सिसकियां पूरे कमरे में तूफान मचा रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी: "हाय मै दर्द से मरी.............दर्द हो रहा है!! प्लीज थोड़ा धीरे डालो! मेरी बुर फटी जा रही है!!" थानेदार साहब...
इंस्पेक्टर हरिलाल: "अरे चुप साली, तबियत से चुदवा नही रही है और हल्ला कर रही है, मेरी फटी जा रही है, जैसे कि पहली बार चुदवा रही है. अभी-अभी चुदवा चुकी है चूतमरानी और हल्ला कर रही है जैसे कोई सील बन्द कुंवारी लड़की हो." नाटक करेगी तो तेरे भाई के ऊपर लेटा कर तुझे चोदूंगा....
मेरी प्रियंका दीदी: नहीं थानेदार साहब... ऐसा मत कीजिए... मैं आपका साथ दे रही हूं ... मेरे भाई को सोने दीजिए..
थानेदार साहब: ठीक है बहन की लोड़ी...
थानेदार साहब मेरी बहन को गोद में उठाकर बिस्तर के ऊपर खड़े हो गए.. और मेरी बहन को अपने लोड़े के ऊपर उछाल उछाल के चोदने लगे..
थानेदार हरिलाल के इस अंदाज पर मेरी बहन उनकी दीवानी होने लगी थी... उनकी ताकत उनके मर्दानगी उनके मजबूत लोड़े के खूंखार झटके सहने के बाद मेरी दीदी मन ही मन उनके ऊपर फिदा होने लगी थी..
मेरी प्रियंका दीदी की बुर भी पानी छोड़ने लगी..... बुर भीगी होने के कारण लंड बुर मे आराम से अन्दर बाहर जाने लगा..
तकरीबन 5 मिनट तक थानेदार साहब ने इसी अंदाज में मेरी बहन को अपनी गोद में उठाकर मजा दिया और खुद भी मजा लिया..
मेरी प्रियंका दीदी भी अपने दोनों बाहें उनके गले में डालकर उनकी होंठों को चूमते हुए मस्त हो गई थी.... मेरी प्रियंका दीदी की दोनों टांगे थानेदार साहब की कमर के इर्द-गिर्द लटकी हुई झूल रही थी..
थानेदार साहब मेरी बहन की दोनों छोटी-छोटी गांड के भाग को थामे हुए मेरी बहन को अपने लोड़े पर उछाल रहे थे... खड़े-खड़े... मेरी बहन को ठोक रहे थे...
तकरीबन 5 मिनट के बाद थानेदार साहब ने मेरी प्रियंका दीदी को अपनी गोद में से उतार दिया और खुद नीचे लेट गय...
अपने हाथ में अपना मुंह का लंबा लंड थामे हुए वह मेरी बहन को अपने लंड के ऊपर बैठने के लिए आमंत्रित करने लगे अपनी आंखों से...
मेरी दीदी ने उनके खुले निमंत्रण को स्वीकार किया... और अपनी गुलाबी चुनमुनिया को अपनी दो उंगलियों से फैला कर उनके मोटे लंड के ऊपर बैठ गई और कूदने लगे.... मेरी दीदी उठक बैठक लगाने लगी थी..
थानेदार साहब ने मेरी बहन को अपने ऊपर लेटा लिया और खुद भी नीचे से झटके देने लगे....
जब इंस्पैक्टर हरिलाल नीचे से उपर उचक कर अपने लंड को मेरी प्रियंका दीदी की बुर मे ठांसता था, मेरी बहन की दोनो चूचियां पकड़ कर नीचे की ओर खींचता था जिससे लंड पूरा चुत के अन्दर तक जा रहा था.
इस तरह से वह चोदने लगा और साथ-साथ मेरी दीदी के मम्मे भी पम्पिंग कर रहा था, और कभी मेरी दीदी के गालों पर बटका भर लेता था तो कभी दीदी के निप्पल अपने दांतों से काट खाता था.... पर जब वह मेरी प्रियंका दीदी के होठों को चूसता तो मेरी दीदी बेहाल हो जाती थी और नीचे से अपनी गांड उठा उठा के थानेदार साहब को मजा देने लगी थी...
थानेदार मेरी बहन की नर्म मुलायम गुलाबी चिकनी चमेली का भोसड़ा बना रहा था... और शायद मेरी दीदी भी यही चाहती थी...
मेरी प्रियंका दीदी वासना के उन्माद में बड़बड़ा रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी: हाय थानेदार साहब.."हाय मेरे राजा!! मज़ा आ रहा है, और जोर से चोदो और बना दो मेरी चुत का भोसड़ा!!"
थानेदार साहब तो अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे... वह बड़ी प्यार से मेरी दीदी की ले रहे थे... उनका लोड़ा बहुत धीमी रफ्तार के साथ मेरी बहन की चुनमुनिया में अंदर बाहर हो रहा था...
दूसरी तरफ मेरी प्रियंका दीदी चाहती थी कि थानेदार साहब उनको रगड़ के रख दे... खूब कस कस के उनकी ठुकाई करें...
मेरी दीदी अपनी गांड उठा उठा उनको इशारा कर रही थी..
मेरी प्रियंका दीदी: "हाय राजा ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना, और मज़ा आयेगा, इतना धीरे क्यों मार रहे हो मेरी चुत?"
थानेदार साहब को मेरी बहन की जलती हुई भट्टे के अंदर अपना लोड़ा अंदर बाहर करते हुए बहुत मजा आ रहा था.... उनको तो कोई भी जल्दी नहीं थी... बड़े प्यार से वह मेरी बहन की ठुकाई कर रहे थे...
गुलाबी फुदफुदाती बुर को फाड़ के रख दे... चटनी बना दे उनकी.. दरअसल मेरी प्रियंका दीदी ही इंस्पेक्टर साहब को चोद रही थी... नीचे से ही... थानेदार साहब तो बस मेरी बहन की चूचियों को पी रहे थे....
मेरी प्रियंका दीदी: "हाय राजा ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना, और मज़ा आयेगा, इतना धीरे क्यों मार रहे हो मेरी चुत?"
मेरी बहन की कामुक बातें सुनकर थानेदार साहब ने अपनी स्पीड बढ़ा दी.. उनकी रफ्तार राजधानी ट्रेन की तरह हो गई... ऐसा लग रहा था कि वह अपने बिस्तर को तोड़ देंगे... मेरी दीदी भी मजे और आनंद के मारे मचलने लगी थी...
और फिर थानेदार साहब ने अपना मक्खन भर दिया मेरी दीदी की कोख में... ढेर सारा सफेद माल मेरी बहन की चिकनी चमेली में डालने के बाद वह नीचे लेट कर सुस्ताने लगे...
मेरी दीदी भी झड़ गई थी उनके साथ...
तकरीबन 20 मिनट के बाद थानेदार साहब ने मुझे जगाया... मैं तो जगा हुआ ही था... मैं झटपट उठ कर खड़ा हो गया... मैंने देखा कि मेरी बहन घर जाने के लिए तैयार हो रही है... अपनी लहंगा चोली पहनने के बाद दीदी अपने चेहरे पर मेकअप कर रही थी..
मेरी बहन की फटी पेंटी मेरी आंखों के सामने थी...
जब मेरी बहन तैयार हो गई तू इस्पेक्टर हरिलाल ने अपनी जीप में बिठाकर मुझे और मेरी बहन को अपने घर पहुंचा दिया सुबह 5:30 बजे के आसपास...
उस वक्त भी अंधेरा था... भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि किसी पड़ोसी ने हमें नहीं देखा था उस वक्त...
जब इंस्पेक्टर हरिलाल ने हमारे घर की घंटी बजाई थी... मेरी रूपाली दीदी ने दरवाजा खोला था... आधी नींद में...
मेरी रूपाली दीदी को देखकर इंस्पेक्टर हरीलाल का लोड़ा, जो रात भर मेरी प्रियंका दीदी की कुटाई करते हुए थका नहीं था , तान के खड़ा हो गया और मेरी रूपाली दीदी को सलामी देने लगा..
मेरी रूपाली दीदी कि आंखें ही शर्म के मारे झुक गई थी... और उन झुकी हुई आंखों के साथ मेरी दीदी अपनी कनखियों से उस खूंखार मुसल को जो इंस्पेक्टर हरिलाल के पजामे में तना हुआ था, मुस्कुराने लगी थी.. बेहद कामुक अंदाज में...
मेरी रूपाली दीदी: आइए ना इंस्पेक्टर साहब अंदर आइए ना.. चाय पिएंगे क्या आप...
इंस्पेक्टर हरिलाल: नहीं..... मैं तो बस दूध पीता हूं...
मैं: ठीक है साहब आप हमारे घर के अंदर आइए मैं दूध लेकर आता हूं..
इंस्पेक्टर हरिलाल: हां दूध लेकर आ... तब तक मैं तुम्हारी दोनों बहनों के साथ बातचीत करता हूं..
मेरी रूपाली दीदी ने मुझे आंखों से इशारा किया..... और मैं दूध लेने के लिए मदर डेयरी की तरफ चला गया.... दुकान खोलने में कुछ देर थी...
मैं दूध की दुकान पर तकरीबन 30 मिनट तक बैठा रहा... सुबह के 5:30 बज चुके थे और अब उजाला होने लगा था..... दूध की दुकान मेरे दोस्त मुन्ना की ही थी.... मुन्ना मुझसे तकरीबन 2 साल बड़ा था पर वह मुझसे बड़ी अच्छी जान पहचान थी उसकी.. कुछ देर इंतजार करने के बाद... मुझे मुन्ना दिखाई दिया आता हुआ...
वह अपनी आंखें मलता हुआ मेरे पास आया.... और मुझे देख कर उसे थोड़ा आश्चर्य भी हुआ..... आज मैं पहली बार उसकी दूध की दुकान पर खड़ा था...
मुन्ना: क्या बात है बहन के लोड़े... तू यहां पर क्या कर रहा है...
सैंडी..
मैं: यार मुझे बस आधा लीटर दूध दे दे.... मेरे घर में दूध खत्म हो गया है..
मुन्ना: बहन चोद तेरे घर में दूध की क्या दिक्कत हो गई... तेरे घर में तो एक से बढ़कर एक दूध देने वाली है... सुबह-सुबह अपनी चंदा भाभी को ही घोड़ी बनाकर दूध निकाल सकता है तू तो...
मैं: चुप कर साले... कुछ भी बकवास करता है ..... चल जल्दी से आधा लीटर दूध निकाल कर दे दे मुझे...
मुन्ना: बकवास नहीं कर रहा हूं बहन के लोड़े... आज तो मैंने तेरी रूपाली दीदी को भी देखा.... क्या मस्त पटाखा माल हो गई है तेरी रुपाली दीदी... मार्केट में देखा था.... तेरी रुपाली दीदी भी तो दुधारू लग रही थी..
मैं: साले क्या बकवास कर रहा है... सुबह-सुबह तू पागल हो गया है..
मुन्ना: साले पागल तो मुझे तेरी प्रियंका दीदी ने कर दिया है.. उसकी छलकती हुई छोटी सी गांड और बड़े-बड़े आम देखकर तो मैं पागल ही हुआ रहता हूं..... तू मुझसे अपनी प्रियंका दीदी की शादी क्यों नहीं करवा देता.... साला तुझे मैं 500000 दूंगा..
मैं : बकवास मत कर और मुझे एक आधा लीटर दूध का पैकेट दे...
उसने मुझे एक आधा लीटर दूध का पैकेट दे दिया और बदले में मुझसे पैसा भी नहीं लिया...
उजाला होने से पहले ही मैं अपने घर के दरवाजे के सामने खड़ा था... दूध के पैकेट अपने हाथ में लिए हुए... मेरे घर का दरवाजा खुला हुआ था... मुझे आश्चर्य हुआ देखकर... मैं अपने घर के अंदर घुस गया और हॉल में पहुंच गया.... वहां पर कोई भी नहीं था......
लेकिन मेरी रूपाली दीदी के बेडरूम से कामुक सिसकियां और अजीब अजीब आवाजें निकल रही थी..... मैं अपनी बहन के बेडरूम के पास गया तो देखा कि दरवाजा खुला पड़ा है...
अंदर झांकने पर मैंने देखा..... वह बोला मेरे लिए ठीक नहीं है... लेकिन फिर भी दोस्तों मैं बता रहा हूं..... अंदर बेडरूम में मेरी रूपाली दीदी घोड़ी बनी हुई थी अपने बिस्तर पर..... और मेरी प्रियंका दीदी उनके ऊपर घोड़ी बनी हुई थी...... दरअसल मेरी दोनों बहने एक के ऊपर एक लेटी हुई थी... और पीछे से थानेदार साहब अपने घुटनों के बल बैठे हुए पीछे से अपने खड़े लंड से मेरी रूपाली दीदी की गांड मार रहे थे.... वह अपनी पूरी रफ्तार से मेरी बहन की गांड मार रहे थे... अपना सारा ताकत उन्होंने मेरी दीदी की गांड में डाल दिया था....... थानेदार साहब नंगे थे और उनके माथे पर पसीना था..... पेट और छाती पर भी पसीना दिखाई दे रहा था.... दरअसल थानेदार साहब तो पूरी तरह से पसीने में भीगे हुए थे..... मदमस्त काला बड़ा सा लोड़ा मेरी रूपाली दीदी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था लेकिन पूरा अंदर बाहर नहीं हो पा रहा था.... क्योंकि थानेदार साहब के खड़े लंड के ऊपर मेरी रूपाली दीदी का मंगलसूत्र लिपटा हुआ था..... मेरी बहन अपनी गांड आगे पीछे कर रही थी और थानेदार साहब को उकसा रही थी.... अपनी गांड में और जोर-जोर से करने के लिए.....
मेरी प्रियंका दीदी तो निष्क्रिय होकर रूपाली दीदी के ऊपर बैठी हुई थी... उनको है रात और आश्चर्य हो रहा था... यह मेरी प्रियंका दीदी के लिए भी नया अनुभव था और मेरे लिए भी......
जैसे ही मैं कमरे के अंदर घुसा उन तीनों की नजर मेरे ऊपर पड़ी..... लेकिन उनकी का काम लीला में कोई फर्क नहीं पड़ा मुझे देखने के बावजूद....... बल्कि इसका तो उल्टा ही असर हुआ... मुझे देखकर थानेदार साहब कुटिल तरीके से मुस्कुराए... और फिर अपना मोटा लंबा काला लंड बाहर की तरफ खींच कर फिर से अंदर की तरफ डाल दिए और बड़ी बेदर्दी से मेरी बहन की गांड चोदने लगे...
मेरे वहां मौजूद होने के बावजूद भी मेरी रूपाली दीदी अपनी गांड आगे पीछे हिलाते हुए उनका भरपूर साथ दे रही थी...
मेरी प्रियंका दीदी ने अपनी कनखियों से मुझे कमरे से बाहर जाने का इशारा किया....... और मैं कमरे से बाहर आ गया.... लेकिन वही दरवाजे के पास खड़े होकर अंदर के होने वाले कार्यक्रम का नजारा लेने का कोशिश करने लगा छुप छुपा के......
कुछ ही देर में अंदर कमरे की परिस्थितियां बदल चुकी थी... मेरी प्रियंका दीदी घोड़ी बनी हुई थी और थानेदार साहब पीछे से उनकी गांड मार रहे थे.... और मेरी रूपाली दीदी नीचे लेटी हुई थानेदार हरीलाल के दोनों बड़े बड़े आंड को चाट रही थी..
मेरी रूपाली दीदी उनके दोनों बड़े बड़े लटके हुए आंड को अपनी जीभ से चाट रही थी फिर मुंह में लेकर चूसने लगी थी.. इस दौरान उनके आंड के ऊपर बंबू की तरह खड़ा काले रंग का मोटा लौड़ा मेरी प्रियंका दीदी की गांड की सुराख में अपनी रफ्तार के साथ आगे पीछे हो रहा था... मानना पड़ेगा थानेदार साहब को और उनकी मर्दानगी को भी... सारी रात मेरी प्रियंका दीदी को बजाने के बाद भी उनके अंदर अभी और भी ताकत बची हुई थी.. तकरीबन 5 मिनट तक इसी पोज में और खूब रफ्तार से मेरी प्रियंका दीदी की गांड मारने के बाद उन्होंने मेरी दोनों बहन की पोजीशन को बदल दिया आपस में..
अब मेरी रूपाली दीदी अपनी गांड उठा उठा कर उनका लौंडा ले रही थी अपनी गांड के छेद में... और उनके दोनों आंड को चाटने का काम मेरी प्रियंका दीदी का हो चुका था.... थानेदार साहब तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे..
थानेदार साहब को मेरी रूपाली दीदी की इस सूखी जमीं पर बादल बनकर खूब बरसना था और वह खूब जमकर बरसे.... मेरी बहन की गांड के आरपार करते हुए उन्होंने मेरी बहन को सुबह सुबह ही चांद तारे दिखा दिए थे... मेरी रूपाली दीदी भी खूब मस्ती में थी... और थानेदार साहब को अपनी अदाओं से उकसा रही थी...
बेदर्दी से सुपर स्पीड से चोद रहे थे थानेदार साहब मेरी रूपाली दीदी की गांड को... और फिर ढेर हो गय.. मेरी बहन की गांड में... अपना ढेर सारा सफेद लावा डालकर... सुस्ताने लगे ...