Episode 05


बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं

अब तक

कमरे में घुसने के पहले ही वेटर मिला ,

" मैडम ,डिनर। " उसने पूछा।

" सुबह वाला तो अच्छा था न , बस वही आर्डर कर देते हैं , " उन की ओर मुड कर मैंने मुस्कराते कहा।

और वेटर से बोला , " बेडरूम में ही दे देना , मैं प्लेट्स बाहर रख दूंगी। "

लेकिन उस बार भी खाना उन्होंने पूरा मेरे हाथों और होंठों से ही खाया।
उनके हाथ तो 'कहीं और ' बिजी थे।

पूरा खाना मैंने उन्हें उनकी गोद में बैठकर खिलाया ,और उनके हाथ उस टाइट सूट से छलकते उभारों की नाप जोख करने में लगे थे।

उस रात दो राउंड हुआ और सुबह से भी जबरदस्त।

वो भी बिना किसी 'गोली -वोली ' की मदद से।

और जब हम लोग लौट के आये उसके बाद स्लोली लेकिन सिग्निफिकेंटली उनकी हर चीज , खाने की आदत हो ,पहनने की हो एटीट्यूड , सब कुछ बदलने लगा।

आगे

और जब हम लोग लौट के आये उसके बाद स्लोली लेकिन सिग्निफिकेंटली उनकी हर चीज , खाने की आदत हो ,पहनने की हो एटीट्यूड , सब कुछ बदलने लगा।

मैं बता नहीं सकती मैं कित्ती खुश थी और वो भी कम नहीं लेकिन बीच बीच में मुझे 'अपना जलवा 'दिखाना पड़ता था।

खाने में मैंने बताया था न पहले तो ग्रीन्स , वेजिज , इन सब चीजों से उन्हें सख्त नफ़रत थी लेकिन धीरे धीरे , … पर एक दिन अपनी सलाद से कुछ टमाटर की पीसेज उन्होंने निकाल दीं। मैंने उसके साथ ही , अपनी प्लेट की भी सारी टमाटर की पीसेज , उठाके सीधे उनकी प्लेट में , और जब तक उन्होंने खत्म नहीं किया ,

… थोड़ा फोर्स ,थोड़ा समझाना , मनाना।

लेकिन सबसे मजा तब आया जिस दिन मैंने उन्हें बैगन खिलाया , शाम से मैं उन्हें चिढ़ाती रही , आज 'तेरी वाली' की फेवरिट सब्जी है।

अब उनकी ममेरी बहन को बस 'तेरा माल ' , 'तेरी वाली ' कह कर ही बुलाती थी और वो जिस तरह से लजाते ,शरमाते थे की , .

खिलाया तो उन्हें मैंने अपने हाथ से बैगन की कलौंजी , लेकिन किस्से उनके 'उस माल के' चालू रखे जिसके बारे में वो कुछ सुनना भी नहीं पसंद करते थे.

" सोच यार इतना मोटा लम्बा कैसे घोटती होगी वो , अब वो नीचे वाले मुंह से सटाक सटाक घोंटती होगी तो उसके फेवरिट प्यारे प्यारे भइया ऊपर वाले मुंह से तो ,. . "

लेकिन साथ में इनाम भी मैं देती थी उन्हें। उसी रात , 'सब कुछ ' मैंने किया , बस वो लेटे रहे और मैं लेती रही।

उनके खूंटे को किस लिक और सक करने से वोमेन आन टॉप तक , . और वो भी दो बार।

उन्होंने क्या खाना शुरू किया से ज्यादा इम्पार्टेंट था मेरे लिए उन्होंने क्या छोड़ दिया।

खूब ग्रीजी मसाले वाली तेल से भरी सब्जियां खासतौर से आलू ,तले भुने स्नैक्स सुबह शाम , सब अल्लम गल्लम , .

और मैं अपने से ८-१० साल बड़ी लेडीज को देखती थी , हसबैंड उनके , डेली तो छोड़ दिए , हफ्ते में भी एक बार 'कभी हो जाए ' तो बड़ी बात।

१०-१५ दिन में बस एकाध बार , और पॉंच तो सबके निकलनी शुरू हो गयी थी और कई की कमर तो कमरा हो गयी थी।

फिर इनकी जो मायके की आदतें थी उसमें एकदम गारंटी थी इनके साथ भी यही होना था ,

और इनके घर में तो आधे से ज्यादा लोग डायबिटिक थे। उसके साथ ये भी , की घर में दो तरह के खाने तो बनेंगे नहीं , इसलिए

,. जिस स्पीड से पति लोग वेट ऐड कर रहे थे उसकी दुगुनी स्पीड से उनकी पत्नियां , सब कुछ जुड़ा था।

उस तरह के खाने से जिसके ये शौक़ीन थे और जिसकी इनके मायके वालों ने बचपन से आदत डलवा दी थी ,

आर्टरीज तो क्लाग होनी थी।

और बाकी पुरुषों के साथ भी मैं देखती थी यही होता था , फैट और फिर लेस ब्लड फ्लो 'उस जगह 'पर ,

फिर बिचारी लेडीज की नाइट एक्सरसाइज बंद हो जाती थी और फिर बोरडम और फिर जंक फूड्स ,.

मुंह बहुत बनाया उन्होेने ,नखड़े भी किये , जब लंच में कई बार मैंने सिर्फ सूप और सलाद सर्व किया तो ,

लेकिन मैं उन्हें समझाती रही घबड़ा मत मुन्ना अभी स्वीड डिश भी मिलेगी , स्पेशल वाली।

मिली भी उस चटोरे को , मेरी वाली 'खास रसमलाई ' जिसे खाने में मजा भी हम दोनों को आता था

और कैलोरी भी बजाय बढ़ने के दोनों की ही खर्च होती थी।

यहाँ तक की बाहर पार्टी में भी पहले वह सलाद को बाइपास करके सीधे , मटर पनीर या आलू दम की ओर बढ़ते थे लेकिन अब वो जानते थे की मेरी निगाह उन से चिपकी रहती है , और फिर सलाद से प्लेट भरने के बाद ही वो आगे बढ़ते थे।

और सिर्फ मेरी निगाहें ही उन पर टिकी रहती हों ऐसा नहीं था , बहुत से लोगों की स्पेशली लेडीज की , कम्पनी के यंगेस्ट एक्जिकुटिव…

और उसी दिन मिसेज खन्ना ने मुझसे बोला " अरे यार ये तेरा 'घोंचू ' तो दिन पर दिन स्मार्ट होता जा रहा है। मैं सब समझती हूँ ये सब तेरा किया धरा है , काश १०% लेडीज तेरी तरह होतीं न ,. . "

( मिसेज खन्ना से मैं बाद में आप सबको मिलवाने थी लेकिन चलिए अब वो कहानी में आ ही गयी हैं तो ,. सीनियर वाइस प्रेसिडेंट मिस्टर खन्ना, कम्पनी में नंबर २ , की वाइफ और जो कहते हैं पावर बिहाइंड थ्रोन बस वही , कंपनी के प्रेसिडेंट तो थोड़ा अलूफ ही रहते थे ओर आधे टाइम कारपोरेट आफिस या मीटिंग के चक्कर में बाहर , . इसलिए सब कुछ मिस्टर खन्ना के हाथ में था , प्रमोशन , इंक्रीमेंट , परफारमेंस एवैल्युएशन , जॉब अलोकेशन , मिसजे खन्ना हमारी लेडीज क्लब की प्रेसिडेंट थीं। )

उन्हें देखते फिर बोलीं वो ,

" मिस्टर खन्ना कह रहे मुझसे चार पांच दिन पहले , ये अब एकदम बदल गया है, पहले तो कितना इंट्रोवर्ट था , किसी ग्रुप इंट्रैक्शन में हिस्सा नहीं लेता था और कुछ बोलेगा भी तो एकदम रिजिड , रेजिस्टेंट टू चेंज एंड न्यू आइडियाज , लेकिन अब तो इसके बिना , न्यू आडियाज तुरंत ग्रैस्प करता है , ही इज पिकिंग अप आडियाज आफ चेंज मैनेजमेंट। "

मैंने जम के ब्लश किया , उनको थैंक्स किया। असल में मिसेज खन्ना भी हेल्थ फ्रीक थीं और मिस्टर खन्ना के ऊपर भी , .

और सबसे बढ़कर 'थैंक्स ' दिया अपने 'घोंचू ' को ,

रात भर , अगले दिन वीक एन्ड था ,. एक पल भी उन्हें सोने नहीं दिया।

जबरदस्त ब्लो जाब , घर पहुँचते ही।

बेड रूम में पहुँचने के पहले ही मैंने उनकी ट्राउजर के ऊपर से उनके खूंटे को खूब दबाया ,रगड़ा और वहीँ बेल्ट खोल के ,घोंटने तक सरका के ,ब्रीफ के ऊपर से उसे मुंह में लेके खूब चूसा ,चुभलाया।

बिस्तर पर पहुँचने के पहले ही हम दोनों के कपडे पूरे घर में छितराए पड़े थे , और बिस्तर पर भी , पहले उनकी बॉल्स को मुंह में ले के हलके हलके और हाथ से उनके खूंटे को मुठियाती रही ,

फिर अपने दोनों उभारों के बीच लेकर ( मेरे जुबना का तो मेरा सैयां दीवाना था ) , और जब मैंने 'उसे ' घोंटा तो पहले उन्हें 'उनके माल ' के बारे में खूब छेड़कर ,.

खाना और पहनना दोनों ही बहुत इम्पार्टेंट है।

पिंक

खाना और पहनना दोनों ही बहुत इम्पार्टेंट है।

मैं कभी भूल नहीं सकती,शादी के बाद उनकी पहली बर्थडे ,. मैं उनके लिए एक बढ़िया सी इम्पोर्टेड ब्रांड की शर्ट लायी थी ,बस उसमें कुछ पिंक डॉट्स थी ,

मैंने उन्हें पहनाने की कोशिश की तो बस ऐसे देखा की , कुछ गुस्से से कुछ उदासी कुछ इंडिफ्रेन्स से , नहीं पहनी तो नहीं पहनी और फिर न जाने उसे कहाँ,.

जले पर नमक छिड़का अगले दिन मेरी सौतन कम उनकी उस ममेरी बहन ने , दोपहर में आई और आते ही डायलॉग मारा ,

" भाभी आपको भइया की पसंद नहीं मालूम थीं तो मुझसे पूछ लेती न। पिंक कलर तो लड़कियों का रंग है , मर्दो का थोड़ी है। और आप उन के लिए पिंक कलर की ,. "

जल के मैं राख हो गयी। रात भर नींद नहीं आई .

और अब तो हफ्ते में दो दिन , ख़ास तौर से कई बार क्लब में , प्योर सिल्क की पिंक शर्ट,

धीरे धीरे उनकी वार्डरोब पूरी बदल गयी, घर में भी वो शर्ट पैंट या बहुत हुआ तो रात में सोते समय खादी भण्डार टाइप कुरता पाजामा और आप बिलीव करेंगे

उसके अंदर पटरे वाली जांघिया

( लॉजिक था कौन देखता है ,लेकिन मैं तो देखती थी न सब मूड खराब हो जाता था )

उन सब का हफ्ते भर के अंदर मैंने पोंछा और डस्टर बना लिया।

घर में बॉक्सर शार्ट या बरमूडा,

और उसी के साथ साथ मेरी ड्रेसेज भी चेंज हो गईं।

शादी के बाद जो शलवार सूट मैंने बक्से में बंद कर दिए थे वो सब बाहर निकल आये , यहां तक की टॉप्स भी।

और साडी के साथ ब्लाउज

( मेरी जेठानी ने और उस छिपकली ने मेरे सारे बॉक्सेज चेक किये थे , इतना घुट रही थी मैं की कोई प्राइवेसी ही नहीं है लेकिन नए घर में नयी दुल्हन की मज़बूरी,. . और आधे से ज्यादा ब्लाउज को उम्र कैद सुना दी ,

ये ,. . इसका गला कितना लो कट है , भाभी आपने कैसे इसकी फिटिंग दी होगी ,देखा की नहीं , एकदम सब कुछ दिखता है इसमें , इसे पहन के शहर में कैसे निकलेंगी , हम लोगों के घर की ,.

छिपकली ने फैसला सुना दिया।

जेठानी जी को बैकलेस ब्लाउज से एतराज था ,

इतनी प्यारी कच्ची कढ़ाई थी उन पे लेकिन , . मैंने और मम्मी ने मिल डिजाइन सेलेक्ट की थी ,

एक मेरी फ्रेंड फैशन डिजानिंग हाउस में काम करती थी ,उससे कहके , . छिपकली को टाइट होने से भी ऐतराज था ).

उनके पास अपील में जाने से कोई फायदा नहीं था।

वो बिना बात सुने बोल देते , जैसा भाभी कहें

और वो ब्लाउज अब , बस मैं अब वहीं पहनती थी हर फ़ंकशन में और टाइट तो अब मेरे उभारो पर और ज्यादा हो गए थे।

मजा कच्चे टिकोरों का

लेकिन झिझक उनकी ,अच्छे बच्चे की इमेज , एक बड़ी मुश्किल थी , स्मोक तो वो करते थे , और अब बिना मेरे कहे भी , लेकिन आफिस जाने के पहले या कहीं कोई आने वाला हो तो एकदम नहीं।

परेशानी यही थी।

वो बदल तो रहे थे , अपने नए रूप को इंज्वाय भी करना उन्होंने शुरू कर दिया था ,लेकिन घर के अंदर ,सिर्फ मेरे सामने।

बाहर वही ,जो बचपन से अपनी इमेज एक बना रखी थी , उनके असली 'पर्सोना ' जो मन से मजा लेना चाहती थी , एंज्वॉय करना चाहती थी और जो उन्होंने पूरी दुनिया के सामने अपने मायके वालों के सामने एक इमेज बना रखी थी ,

एक तगड़ा अंतर्द्वंद चल रहा था।

मैं उसकी गवाह थी लेकिन सिर्फ मूक गवाह बनने से काम नहीं चलने वाला था , मुझे अपने 'उनके ' जो रियल वो थे , जो मस्ती करना चाहते थे , वाइल्ड होना चाहते थे ,उसे आजाद कराना था।

मैंने एकाध बार कहा भी उनसे

'यार खुल के मस्ती करो न , हम लोग इस एज में एन्जॉय नहीं करेंगे ,मजे नहीं लेंगे तो कब लेंगे।

फिर सब तो खुलेआम , तुम्हारे फ्रेंड्स सब ,. और कौन तेरे मायकेवलियां यहाँ देख रही हैं।

हम लोग तो वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर यहां तेरे जब पे , .

लेकिन मुझे लगा की मुझे ही कुछ करना पडेगा , और मैंने एक दिन , .

नहीं बात स्मोकिंग की नहीं थी ,बात उनके एट्टीट्यूड की थी और चेंज को खुलेआम स्वीकार करने की थी , मजे लेने की थी।

स्मोकिंग तो सिर्फ एक बहाना था ,

एक दिन मेरे यहाँ गेट टूगेदर थी ,कई फ्रेंड्स ,उनकी वाइव्स ,…उन लोगों के आने के ठीक पहले ,मैने एक सिगी सुलगाई , दोचार जोर के कश लिए और पकड़ के जोर की किस ,

और सारा धुंआ इनके मुंह में ,

इसी समय बेल बजी और सारे दोस्त उनकी वाइव्स अंदर ,…

और रीता , इनके एक क्लोज फ्रेंड की वाइफ ने इतना चिढ़ाया , इतना छेड़ा , फिर उसके बाद , सबके सामने ,पार्टी में कहीं भी , बिना झिझक स्मोकिंग।

मैं इनको यही बोलती थी , यार हम दोनों अपने घरों से इतने दूर है , कौन जनता है , … खुल के मजा लेना चाहिए न।

पर धीरे धीरे वह बदल रहे थे ,

एक बार हम लोग बस से जा रहे थे , सामने कोई कॉलेज की लड़की , दसवीं ग्यारहवीं की रही होगी , कॉलेज ड्रेस में , छोटे छोटे उभार

वो कनखियों से उसके कबूतर देख रहे थे।

मैंने और चढ़ाया ,

" मस्त माल है न , तेरे माल से शकल मिलती है न , ,… "

" हूँ , " कुछ शर्मा के कुछ झिझक के वो बोले।

" अरे तो खुल के देखो न ,मम्मे तो देखो साली के , एकदम तेरे माल की साइज के हैं ,दबाने लायक '

" सही कहती हो " अब वो खुल के बोले।

मैंने अपने शाल से अपने को और उनको दोनों को ढक लिया था। मेरे हाथ अब शाल के अंदर उनके 'तने तम्बू ' को हलके हलके दबा रहे थे।

' क्यों दबाने का मन कर रहा है न उसका " मैंने पूछा और खुल के जोर से उनका खूंटा दबा दिया। एकदम टन्न था , पूरा खड़ा।

" सोचो न गुड्डी के बारे में , उसके कच्चे टिकोरे भी तो , खूब कड़े कड़े ,और वो तो तैयार ही रहती है , दबाना था न उसका " और ये बोलते हुए मैंने उनका जिपर खोल दिया।

और वो भी शाल के अंदर से ही मेरे कबूतरों की जम कर मालिश , …

किसी पब्लिक प्लेस में वो पहली बार इतना बोल्ड हुए थे। हम दोनों को मजा आ रहा था।

और वो जहाँ उतरने के लिए खड़ी हुयी , मैंने उन्हें उनके नए स्मार्ट फोन की ओर इशारा किया ,एक पल के लिए झिझके लेकिन उस कबूतर वाली का एक स्नैप ,

वो डर रहे थे की कही वो , लेकिन वो भी , उसने इनकी ओर देखा , एक मीठी सी स्माइल मारी और बस से उत्तर गयी।

" देखा , नो रिस्क नो गेन , थोड़ी हिम्मत घर में दिखाते न तो कब का अपने माल का मजा ले लेते " मैंने एक बार और तुरप जड़ी।

धीमे धीमे उनकी झिझक खत्म हो रही थी और मस्ती बढ़ रही थी।

ऊप्स एक बात मैंने कहने का वादा किया था लेकिन ,कुछ समझ में नहीं आ रहा है की कैसे ,चलिए छोड़िये , अगले पार्ट में।

अँधेरे बंद कमरे -मन के

हाँ तो मैं कह रही थी ,असल में बात कुछ ख़ास नहीं बहुत लोग करते हैं। न सुनाना बेईमानी होगी। फिर भी समझ में नहीं आ रहा है कैसे शुरू करूँ।

बात ये है की मैं एक सीढ़ी ढूंढ रही थी , ऊपर चढ़ने वाली नहीं नीचे उतरने वाली।

हम लोगो की गाडी पटरी पर आ गयी थी , लेकिन आलमोस्ट। मुझे लगता था की जैसे मैंने किसी तिलस्म को तोड़ तो दिया है , जिसमें इनके मायकेवालियों ने इन्हे बंद कर रखा था , लेकिन तब भी ऐसेकई कमरे हैं जिसकी चाभी मेरे पास नहीं है।

बात करते करते वो अक्सर 'आफ ' हो जाते थे , कई बार मुझे लगता था की वो मेरे पास हैं लेकिन ,मेरे पास नहीं है। चारो ओर जैसे रौशनी की दरिया बह रही हो , लेकिन बीच में अँधेरे के बड़े बड़े द्वीप होंऔर वो वहां गम हो जाते हों।

अब हम दोनों एक दुसरे से बहुत खुल गए थे फिर भी ,

और उनमे एक चीज थी उनकी लैपी

वो कई बार उसमें उलझे रहते थे। लेकिन जो चीज जिसने मुझे स्ट्राइक की वो थी , ओ के , हिस्ट्री।

मैंने एक दो बार उनसे उनका लैपी माँगा , तो कुछ देर से दिया उन्होंने। मुझे लगता था की आफिस का कोई काम कर रहे होंगे। लेकिन एक बार मैंने थोड़ी देर कुछ साइट्स देखने के बाद गलती से बंद कर दिया ,और फिर खोला , जब मुझे याद नहीं आया तो हिस्ट्री खोली , कुछ देर बाद मैंने रिएक्ट किया।

मुझसे पहले की सारी हिस्ट्री साफ ,

अब गलती मेरी ही थी , सिम्पल क्यूरियॉसिटी।

फिर तो हर बार जब मैं इन से इन का लैपी मांगती , तो मारे क्यूरियॉसिटी के पहले हिस्ट्री चेक करती

और हर बार वो शुरू से साफ होती।

और एक दिन मौका मिल गया , आफिस से कोई काल आया और उन्हें तुरंत जाना पड़ा।

बस मैंने सीढ़ी लगा ली ,

सिर्फ उनके मन के गहरे अँधेरे कूएँ में ही नहीं , बल्कि उसके अंदर से ढेर सारी सुरंगे निकलती हुईं ,

कुछ पर भारी भारी पत्थर रखे हुए , कुछ जाले पड़े हुएउनके अंदर चलना मुश्किल , मेरी ऐसी 'बोल्ड ब्यूटी ' के लिए भी ,

हिस्ट्री साइट में कुछ तो पोर्न साइट्स थी , वो मेरे लिए अजूबे की बात नहीं थी , सारे मर्द देखते हैं , लेकिन उसमें ऐसे छिप के देखने का क्या , हम साथ साथ भी देख सकते थे। लेकिन पॉर्न से बहुतज्यादा चैट साइट्स , थोड़ी बहुत चैट तो सभी करते हैं लेकिन व्हाटसऐप आने के बाद।

पर चैट साइट्स के नाम देखते ही मुझे जोर का झटका जोर से लगा।

ज्यादातर बी डी एस एम साइट्स थीं।

चैट्रोपॉलिस , आल्ट , बांडेज और भी न जाने क्या क्या ,

और जब मैंने चैट साइट को खोला तो उसके अंदर तरह तरह के रूम , सब रूम , इन्सेस्ट रूम , मिस्ट्रेस रूम।

एक नयी दुनिया।

ये नहीं की बी डी एस एम से के बारे में मुझे पता नहीं था। मुझे मालूम था की मैं थोड़ी डॉमिनेटिंग टेण्डेंसीज रखती हूँ , मुझे लाइट बांडेज स्टोरीज पढने में मजा आता था।

और एक बार मेरी कुछ फ्रेंड्स ने चढ़ा दिया तो मैंने नाम बदल के एक कांटेस्ट में लिटइरोटिका पे एक स्टोरी भी लाइट बांडेज की पोस्ट की। और उन्होंने इनाम में एक फर रैप्ड हैंडकफ भी मुझे दिया जो मैंनेसोचा था की हनीमून में इस्तेमाल करुँगी , पर कर्टसी उनके मायकेवालों के न हनीमून पे गयी न वो डिब्बा खुला।

पर मैंने कभी इस तरह की चैट नहीं की थी।

अब अगला सवाल था की उनकी आई डी कौन सी है।

मैंने थोड़ा जासूसी लगाई। मेरे अंदर का छिपा बॉबी जासूस जाग उठा।

बॉबी जासूस

मैंने थोड़ा जासूसी लगाई। मेरे अंदर का छिपा बॉबी जासूस जाग उठा।

कई चैट रूम में मैंने चेक किया , जिस समय वो निकले थे उसके हिसाब से ,. और तीन चैट साइट्स पे एक नाम मिला जो उनके निकलने के समय का था।

ज्यादा चांसेज थे वही आई डी रही होगी , लेकिन प्रोफाइल चेक करने पे कन्फर्म हो जाता। पर वो पॉसिबल नहीं था , क्योंकि साइट्स पे मैं घूम टहल सकती थी वो भी सिरफ ५ मिनट के लिए उसके बादसाइट पे रजिस्टर करना होता।

बॉबी जासूस ने फिर काम करना शुरू किया।

मुझे मालूम था उनकी लापरवाही और भूलने की आदत , जरूर उन्होंने पासवर्ड कहीं सेव करके रखे होंगे।

और पिछले दिनों मैंने ' दस दिनों में घर बैठे हैकर बनिए ' का कोर्स भी ज्वाइन कर रखा था।

मैंने हिडेन फोल्ड्र्स देखने शुरू किये और एक फोल्डर मिल गया , बिजनेस डेवलेपमेंट , उनके आफिस का काम। अगर कोई देखे भी तो यही सोचेगा की कुछ आफिस का होगा , लेकिन मैं मुस्कराई।

आफिस के काम को छुपा के रखने की क्या जरूरत थी , और खुलते ही

जैसे कोई कारूं का खजाना खुल गया हो।

उन सारी सुरंगो पर बंद पत्थर हट गए।

साइट वाइज आईडी , पासवर्ड , जी टाक सबकी आईडी।

पहले मैंने याहू मेसेंजर , और जी टाक चेक किया ,

एक मजे की बात थी , जिस दिन से हम लोग उन के 'टूर ' से लौटे थे ( वही जहाँ वो 'जोरू का गुलाम ' बने थे और उन का बदलाव शुरू हो गया था ) वो साइट्स खुली भी नहीं थी।

लेकिन तब तक मुझे शक ने आ घेरा और मैंने कंप्यूटर बंद कर दिया।

ये उसी तरह की बात थी जैसे मैं किसी की पर्सनल डायरी पढूं या चिट्ठी खोल के पढूं , गन्दी बात।

कुछ समझ में नहीं आ रहा था , एक तो क्यूरियॉसिटी ऊपर से मैं ये भी सोच रही थी

जितना मैं उन्हें ज्यादा जानूंगी उतना ही हम दोनों के लिए अच्छा होगा।

गनीमत थी मेरी एक फ्रेंड सुजाता ( उनकी एक कुलीग ,जिसकी कुछ दिन पहले शादी हुयी थी की वाइफ ) का फोन आ गया , और आधे घंटे तक हम दोनों मस्ती करते रहे। एक ही टॉपिक होता था , कलकितनी बार , कैसे , कितनी देर तक। और मेरे ध्यान से सब कुछ हट गया।

लेकिन मैं भी न , थोड़ी देर में मैंने फिर कंप्यूटर खोल लिया और अब जब सिम सिम मुझे मालूम हो गया था तो फिर क्या सारी साइट धड़ाम धड़ाम खुल गयीं।

उनकी एक फीमेल आईडी थी , जो मैं सस्पेक्ट कर रही थी , वही।

डॉली और पासवर्ड था ३२ सी।

मुझे बाबी जासूस होने की इस काम के लिए जरूरत नहीं थी , की उनके मन में डॉली और ३२ सी कहाँ से आया।

डॉली →→ गुड्डी एकदम साफ था।

और ३२ सी उसके कच्चे टिकोरे।

यानी उनके मन में मेरी उस छिनाल ननद के लिए साॅफ्ट और हार्ड दोनों कार्नर थे बस उस 'अच्छे बच्चे ' वाली इमेज के पत्थर के चलते ,

और वैसे भी बहुत से लड़के जिनमें थोड़ा भी कांफिडेंस की कमी होती है , लड़कियों की आईडी फेसबुक पे या चैट पे बना के बात करते हैं।

तो शायद यही बात रही हो ,

लेकिन अब मेरे लिए उनकी पुरानी चैट के रिकार्ड भी देखना पॉसिबल था ,

और जिस तरह की ड्रेसेज उन्होंने पहनी थी चैट रूम में , जिस तरह अपने को डिस्क्राइब किया था ,

सब मिसिव

और जिस तरह की ड्रेसेज उन्होंने पहनी थी चैट रूम में , जिस तरह अपने को डिस्क्राइब किया था ,

" ब्रोकेड , लो कट वेरी टाइट बैकलेस चोली शोइंग ३२ सी फर्म एंड हार्ड बूब्स , लॉन्ग हेयर कास्केडिंग ओवर शोल्डर्स , आइस फुल आफ कोहल , लिप्स पेंटेड विथ डार्क लिपस्टिक , …"

ये साफ था की वह आई डी सिर्फ लड़कों को अट्रैक्ट करने के लिए नही थी ,

उनके अंदर के छिपे फेमिनिन पर्सोना को एक्सप्रेस करने के लिए रास्ता ढूंढने का भी एक तरीका था।

लेकिन सब में वो एक सब मिसिव गर्ल की तरह थे , चाहे वो किसी डॉमिनेटिंग महिला के साथ हो या पुरुष के साथ।

६०-६५ % चैट डाली के नाम से थीं।

लेकिन मेल आई डी भी थी जो उनके नाम को ही उलट पुलट के बनायीं गयी थी। और पुरुष की रूप में उनकी जो चैट्स थीं , वो ज्यादातर एम आई एल फ ( मदर ,आई लव टू फक ), और इन्सेस्ट रूम मेंथी।

बड़ी उम्र की औरतों के बीच वो काफी पॉपुलर थे , और वो ख़ास तौर से उन ४० साल की ऊपर की लेडीज के चक्कर में थे , जिसके जोबन खूब बड़े बड़े ३८ + और हिप्स भी बड़े थे यानी + साइज वाली औरतोंके साथ।

और इन्सेस्ट रूम में रोल प्ले में कोई रिश्ता बचा नहीं था ,

लेकिन ब्रदर सिस्टर उनका फेवरिट था।

एक रूम था जहाँ मैं उनका रूप धर के गयी , और मिस्ट्रेस पेट्रीसिया नाम की एक डॉमीनेटरिक्स ने मुझे दबोच लिया।

कुछ बहाना बना के मैं ….

और अपनी हैकर विद्या से और कुछ बॉबी जासूस के रूप में , मैंने पहले तो एम आई ल फ महिलाओं के बारे में पता किया , ज्यादाार असली थीं और वो डॉमिनिट्रेक्स भी कोई प्रोफेशनल थी।

मैंने साइट्स सब बंद आकर दी और अपने फूट प्रिंट्स मिटा दिए।

और वैसे भी मैंने अब कभी भी 'परकाया प्रवेश ' के लिए सभी पासवर्ड जुटा लिए थे।

लेकिन मैं एक बार फिर सोच में पड़ गयी।

क्या करूँ , क्या न करूँ।

एक बात तय थी ये मैं उन्हें कभी बता नहीं सकती थी की उनका ये पहलू मुझे मालूम है।

वो और अपने कोकून में चले जाएंगे , और ये बात मैं मांम से भी शेयर नहीं करुँगी ,

बल्कि खुद भी कोशिश करुँगी अपने जेहन से गायब करने की।

फैंटेसी किस की नहीं होती , और उन की इन फैंटेसी के पीछे तो साफ साफ उनकी 'मायकेवलियां '

जिन्होंने उन्होंने कभी इमोशनली ग्रो नहीं करने दिया , एक अच्छे बच्चे की इमेज में ट्रैप कर दिया ,

लेकिन कहीं तो उनकी मेल सेक्सुअलिटी रास्ता ढूंढती , और इन अँधेरी गलियों , सुरंगो में उन्हें भटकने को छोड़ दिया ,
उनके उस रिप्रेशन ने। इस लिए उन के मन में सिर्फ गांठे ही गांठे बच गयी और वो कुछ ठीक से इंजाव्य नहीं कर पाते।

मेरे उनका रिश्ता नार्मल हसबैंड वाइफ से थोड़ा हटकर था।

और दो बाते हमारे रिश्ते को गवर्न करती थीं ,
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