Episode 25
टीवी पर सीरियल आ रहा था , बहुत हलकी आवाज में ,लेकिन अब उसे कौन देख रहा था ,यहाँ सामने हॉट हॉट पूरी अडल्ट फिल्म चल रही थी ( जैसी हमारे मोहल्ले वाला केबल वाला रोज रात में एक बजे से लगाता था )
मैंने बोल ही दिया , आओ न। इन्तजार करना बहुत मुश्किल हो रहा था।
और वो आ गए ,मेरे साथ हलकी सी रजाई जो मैंने ओढ़ रखी थी उसके अंदर।
एसी फुल ब्लास्ट पर चल रहा था।
वो आये और मैंने उन्हें दबोच लिया ,आज मैं शिकारी थी और वो शिकार ,. मम्मी से तो वो बच गए लेकिन मुझसे नहीं बचने वाले थे।
मैंने उन्हें गपूच लिया और हलके सहलाती रही , कभी गालों को कभी होंठों को।
फिर हलके से दबा लिया।
जल्दी नहीं थी मुझे रात अभी जवान थी , और मुझे धीमे धीमे मजा लेना था।
वह चुपचाप लेटे , बस थोड़ा लजाते कुनमुनाते ,
जो करना था मैं कर रही थी , उनकी लंबी लंबी गहरी साँसे बस उनकी उत्सुकता ,उत्तेजना का राज खोल रही थीं।
और मुझे पता चल रहा था की उन्हें कितना मजा आ रहा था।
बाहर रात धीरे धीरे झर रही थी ,
हलकी सी खुली खिड़की सी रात रानी की भीनी भीनी खुशबू अंदर आ रही थी और साथ साथ में थोड़ी थोड़ी मीठी मीठी चांदनी भी।
और फिर हलकी सी खट खट की आवाज हुयी ,
हम दोनों ने उसे अनसुनी कर दिया।
हम दोनों आपस में ही खोये थे ,लेकिन आवाज तेज हो गयी फिर और फिर बार बार,
और फिर मम्मी की आवाज सुनाई पड़ी ,
"तुम लोग सो गए हो क्या" ?
जब तक ये अपना हाथ मेरे मुंह पे लाकर मेरा मुंह भींचते ,मेरे मुंह से निकल ही गया
" हाँ मम्मी "
और उसी समय मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया लेकिन अब हो क्या सकता था।
" दरवाजा खोलो न " मम्मी की टिपकिकल डिमांडिंग आवाज सुनाई पड़ी।
खूब निदासी आँखों के साथ जुम्हाई लेते ,अंगड़ाई लेते मैंने जाके दरवाजा खोला।
ये एकदम रजाई ओढ़ के दीवार की ओर दुबक गए ,आँखे जोर से बंद कर के।
" अभी अभी नींद लगी थी ,बहुत तेज। आप देर से नॉक कर रही थीं क्या ?" मैंने बहाना बनाया। और ये भी जोड़ा ,
" बिचारे तो थके मांदे , आधे घंटे पहले ही पलंग पर पड़ते सो गए। "
" आधे घण्टे हो गए नॉक करते , तुम न घोड़े बेच कर के सोती हो ,बचपन की आदत है तेरी। " मम्मी ने बुरा सा मुंह बना के हड़काया और मतलब साफ़ किया ,
" थोड़ी देर पहले ही नींद खुल गयी थी मेरी ,फिर नहीं आ रही थी। मैंने सोचा चलो सीरियल का रिपीट आ रहा होगा देख लूँ ,शुरू हो गया क्या ?
उनकी निगाहें टीवी पर गडीं थी और मेरी बिस्तर पर जहाँ ये दुबके छिपे पड़े थे।
बस मैंने उन्हें बचाने के लिये ,. मैं घुस गयी रजाई में एकदम उनसे चिपक कर ,
" आइये न मम्मी ,बस अभी शुरू हुआ है। "
और मम्मी भी रजाई में धंस ली सीरियल देखने लगी।
गनीमत थी उनके और मम्मी के बीच में मैं थी , चीन की दीवाल की तरह।
मम्मी का ध्यान पूरी तरह सीरियल पर लगा था और मैंने मना रही थी किसी तरह आधा घंटा पूरा हो सीरियल ख़तम हो और मॉम जायँ अपने कमरे में।
आधे घण्टे ख़तम हो गए ,सीरियल भी ख़तम हो गया लेकिन मम्मी बजाय जाने के चैनेल सर्फ़ करने लगीं और मुझसे बोली ,
" ज़रा पानी लाओ , गला सूख रहा है। "
मैं एक दो मिनट रुकी पर रास्ता भी क्या था ,मैं पलंग से उठ कर गयी और जब लौटी तो ,. .
शर्माती डरती दुल्हन
गठरी मोठरी बने , अपने घुटनों में सर छिपाये घबडाते लजाते वो वो बैठे थे ,दुल्हन के जोड़े में एकदम गौने की रात में शर्माती डरती दुल्हन की तरह। और मम्मी एकदम अब उनके सामने , ठुड्डी पे हाथ लगाए उनका मुखड़ा देखने की कोशिश में ,
और मुझे देखते ही मम्मी बोलीं,
" इत्ता मस्त माल छुपा के रखा था मुझसे , " मम्मी ने आँखे चढ़ा के मुझसे बोला और फिर उनका घूंघट खोलने के चक्कर में पड़ गयीं।
बिचारे वो शर्मा रहे थे घबड़ा रहे थे लैकिन अंदर अंदर उनका मन भी कर रहा था।
और अचानक मम्मी ने पूरे जोर से ,हलकी फुल्के से नहीं ,सीधे उनके होंठ पर कचकचा के चूम लिया। अपने दोनों भरे भरे होंठों के बीच उनके रसीले ,लाल लिस्प्टिक लगे होंठों को भर के जोर से उन्होंने काट लिया ,और देर तक चूसती रहीं।
यहीं नहीं ,मम्मी ने इतने पर भी नहीं छोड़ा और उनके रूज लगे ,फूले फूले गालों को भी कचकचा के काट लिया।
हलकी सी सिसकी निकल गयी उनकी।
" तेरी छिनार बहन भी ऐसे ही गाल कटवाती है न ,बोल बहन के भंडवे " चिढाते हुए मम्मी ने बोला ,तो मैं क्यों मौका छोड़ देती। मैं भी बोल पड़ी ,
" अरे मम्मी साफ़ साफ़ ये क्यों नहीं पूछती की क्या ये भी अपनी उस बहिनिया के ऐसे ही गाल काटते थे ?"
मम्मी का ध्यान अब लेकिन थोड़ा नीचे पहुँच गया था। उन्होंने आँचल जबरन हटा दिया था , कसी लो कट चोली और पैडेड ब्रा में हल्का सा क्लीवेज भी झलक रहा था।
मम्मी ने जोर से सीटी मारी और उनके गाल पे चिकोटी काट के बोली ,
"तेरे गेंदें तो ,तेरी उस साली से भी बड़ी बड़ी लगती है , रंडी के ,. बोल क्या साइज है तेरे माल की "
" ३२ सी ,. " हलके से उनकी आवाज निकली।
" और मेरी समधन के ,बोल साले भंडुए। "मम्मी अपने असली टारगेट को कैसे भूलतीं।
" ३८ डी डी " अबकी उन्होंने थोड़ा हिचिकचाते लेकिन बोल दिया।
" मन करता है न दबाने को ,घबड़ा मत बहुत जल्द , . " मम्मी ने उन्हें एस्योर किया और तोप का मुंह मेरी ओर मोड़ दिया ,
" बहुत मस्त दुल्हन है न ,अगर दुल्हन इतनी मस्त है तो फिर सुहाग रात भी मस्त मनानी चाहिए न " वो मुझसे बोलीं और बिना मेरे जवाब का इन्तेजार किये उनकी ओर जिस लोलुप खा जाने वाली निगाहों से देखने लगीं की वो काँप गए।
लेकिन मैं क्यों छोड़ती मैंने भी आग में घी डाला,
" एकदम मम्मी ,बिचारी इतना सज धज के ,सिंगार पटार कर के बैठी है ,फिर भी अगर आज इस की सुहागरात नहीं मनी ,अगर ये कोरी रह गयी तो ,. . अपने मायकेमें जा के शिकायत करेगी न ,सबका नाम बदनाम करेगी। "
मम्मी की निगाह उनके गोरे चिकने चेहरे पे अटकी हुयी थी ,
"अरे इसके मायके वालों का भोंसड़ा मारूँ ,. " उनके मुंह से निकला।
मम्मी अब अपने पूरे रंग में आ गयी थी ,फिर बोलीं ," लेकिन जरा अपनी इस प्यारी प्यारी दुल्हन को ठीक से देख तो लूँ , और उनसे बोलीं ,
" अरे जानम उठ जा जरा चल के दिखा तो। "
" सुना नहीं ,अरे मम्मी को अपने जोबन का जलवा तो दिखा। " मैं भी मम्मी के साथ जुगल बंदी में शामिल हो गयी थी। "जरा उठो न ,खड़े हो ,चल के दिखाओ। " मैंने निहोरा किया और उठ के वो खड़े हो गए , पलंग के पास ही।
लजाते झिझकते एकदम मूर्ती की तरह , लेकिन क्या रूप था।
पिंक पटोला , अञ्चल सर से बस छलकता सा ,थोड़ा थोड़ा सीधी मांग दिख रही थी और उसमें सिन्दूर दमक रहा था। ऊपर से नीचे गहने ,सिंगार और सब से बढ़ कर जिस तरह लाज से उनकी आँखे झुकी थीं ,जिस तरह उँगलियों में उन्होंने पल्लू हलके से घबड़ाते हुए पकड़ रखा था।
मम्मी की निगाहें तो बस ऊपर से नीचे तक बार बार उन्हें सहला रही थी , बस निगाह हटती ही नहीं थी जैसे उनके रूप और जोबन से। फिर किसी तरह उन्हें उकसाती बोलीं ,
" ज़रा चल के दिखाओ न , थोड़ा सा ,मैं भी तो देखूं न , हस्तिनी की चाल है या चित्रिणी की ,गज गामिनी हो या ,. "
एक पल तो वो ठिठके लेकिन ,बहुत धीमे धीमे ,एकदम नयी दुल्हन की तरह लजाते सम्हलते , भरे भरे नितम्ब हलके हलके मादक मदिर डोलते ,
मम्मी तो बस चित्रलिखी सी देखती रहीं लेकिन मैंने मुंह में ऊँगली डाल के जोर की सीटी मारी और गुनगुनाया ,
" अरे गोरी चलो न हंस की चाल ,ज़माना दुश्मन है ,. "
मम्मी ने कुछ गुस्से से कुछ मुस्कारते तिरछी निगाह कर के मेरी ओर देखा और उनकी निगाहें ,फिर कैटवाक पर जम गयीं।
अचानक उनकी आवाज का टोन बदला ,एकदम आइस कोल्ड ,तलवार की धार की तरह शार्प ,
" स्ट्रिप "
मॉम
अचानक उनकी आवाज का टोन बदला ,एकदम आइस कोल्ड ,तलवार की धार की तरह शार्प ,
" स्ट्रिप "
वो बस पत्थर से हो गए ,जैसे उन्हें समझ में न आरहा हो क्या हुआ।
" सूना नहीं। " मम्मी की आवाज अब और कडक होगयी।
बस अब उन्होंने पल्लू खोलना शुरू किया ,लेकिन मम्मी की आवाज एकदम ठंडी और बिजली की तरह कड़क ,
" डोंट यू लिसेन ,आई सेड स्ट्रिप , , नाट डिसरोब , . स्ट्रिप इन अ अट्रैक्टिव वे "
अब तो मैं भी सहम गयी थी ,मैंने उनकी चोट को कुछ हल्का करने के लिए मुस्कराते हुए बोला ,
" अरे जैसे वो तेरी वो छिनार बहिनिया ,कच्चे टिकोरे वाली स्ट्रिपटीज करेगी न , जब हम सब उसको ट्रेन कर देंगे , मुजरा करवाएंगे उससे ,
लेकिन वो जैसे सिर्फ मम्मी की बात सुन रहे थे ,
क्या चक्कर लिया उन्होंने धीमे से और साड़ी का पल्लू चक्कर लेते हुए पेटीकोट से निकाला , फिर कुछ लजाते कुछ ललचाते ,
कुछ छिपाते कुछ दिखाते , कभी झुक के अपने क्लीवेज का जलवा तो कभी पीछे से नितम्बो का जादू ,.
थोड़ी देर में साडी उनके पैरों पर लहराती ,सरसराती गिर पड़ी।
एकदम पद्मा खन्ना ,जानी मेरा नाम वाली ,
मेरे हुस्न के लाखों रंग कौन सा रंग देखोगे .
मैंने खुल के गाया ,
लेकिन अबकी मम्मी ने नहीं देखा मेरी ओर , उनके मन में कुछ और था। और अब मैं समझ चुकी थी उनका सोना ,ये कहना की मिलते हैं ब्रेक के बाद ,कल सिर्फ बहाना था। और एक तरह से सच भी , आखिर बारह कब के बज गए थे ,और तारीख बदल चुकी थी।
निगाहें तो मेरी भी उन पर से नहीं हट रही थीं ,
पिंक कच्छी लो कट डीप बैकलेस चोली ,गुलाबी साटिन का पेटीकोट ,
' गुड ' मम्मी के मुंह से हलके से निकला ,मम्मी की लंबी लंबीगोरी गोरी उँगलियाँ उनके गुलाबी गालों पर फिसल रही थीं ,पिघल रही थीं।
चाँद खिड़की से चुपके से अपना रस्ता भूलके झाँक रहा था ,पुराना लालची।
मेरी निगाहे भी बस वहीँ ठहर गयी थीं ,
सब कुछ रुका हुआ था.
अचानक खूब भरे भरे रसीले स्कारलेट लिप ग्लास कोटेड होंठों पर मम्मी के लंबे तीखे नाख़ून और ,बिल्ली की तरह नोच लिए।
गुड वो बोलीं और फिर उनकी उंगलिया पैडेड ब्रा से उभरे उभारों पर आ के टिक गयीं ,कभी छूती कभी बस हलके से सहला देतीं।
मम्मी लगता है 'कहीं और' पहुँच गयी थी।
' बैठ जाओ ' मम्मी बहुत हलके से बोलीं लेकिन अब उनके कान जैसे मम्मी के हर शब्द का वेट कर रहे थे और वह कुर्सी पर बैठ गए।
बस। मम्मी ने फर्श पर गिरी फैली उनकी पिंक पटोला साडी उठायी और कस के उनके हाथ पैर कुर्सी से बाँध दिए बल्किं गांठे भी चेक कर ली। सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में कुर्सी पे बैठे वो अब टस से मस नहीं हो सकते थे।
माम बस उंनसे कुछ कदम दूर पलंग पर बैठ गयीं और उन्हें प्यार से देखती सराहती , पूछा ,
" बोल कैसे लग रहा है " . और खुद ही जवाब दिया , " मैं तो अपना माल ठोक बजा के ही लेती हूँ। "
फिर उन्होंने वो हरकत की जिससे उनकी क्या किसी भी मर्द की हालत खराब हो जाती।
जोर से उन्होंने अंगड़ाई ली और दोनों कबूतर आलमोस्ट ट्रांसपरेंट नाइटी से चिपक गए ,उड़ने को बेताब।
सास , हॉट सास
फिर उन्होंने वो हरकत की जिससे उनकी क्या किसी भी मर्द की हालत खराब हो जाती।
जोर से उन्होंने अंगड़ाई ली और दोनों कबूतर आलमोस्ट ट्रांसपरेंट नाइटी से चिपक गए ,उड़ने को बेताब।
यहां तक तो गनीमत थी , चट चट कर दो चुटपुटिया बटन खुल गए। क्लीवेज तो अभी भी दिख रहा था , अब दोनों मांसल गोलाइयाँ आलमोस्ट निप्स तक अनावृत्त ,खुल के जादू कर रही थीं।
लेकिन उसके बाद मम्मी ने जो किया बस वो पागल नहीं हुए।
मम्मी ने उन्हें दिखाते ललचाते ,अपनी फ्रंट ओपन ब्रा के हुक खोल दिए और उसे बाहर निकाल दिया।
परफेक्ट विक्टोरिया सीक्रेट
और ब्रा उनके चेहरे के ऊपर लहराने लगीं , कभी वो उनके गालों को छू जाती तो कभी इंच भर दूर
मम्मी अब खड़ी हो गयी थीं , झुकने पर मम्मी के उभार बस उनके चेहरे पर ,
किसी भी दिन तो वो ,. . पर आज उनके हाथ पैर बंधे थे , इंच भर भी नहीं हिल सकते थे बिचारे।
लेकिन पेटीकोट में तो उनके तंबू तना हुआ था।
" लगता है इन्हें अपनी बहन के मस्त टिकोरे याद आ रहे हैं ,तभी इतना तन्ना रहे हैं। "
" एकदम सही कह रही है तू लेकिन ज़रा चेक कर ले न " और मम्मी ने झुक के उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया , पर उसके पहले अपनी हाइ हील से हलके से उसे मसल दिया ,और तारीफ़ से तक मेरी ओर देखा,
" एकदम पत्थर " उनकी निगाहें बिना बोले बोल रही थीं।
पेटीकोट उतर चुका था और 'वो'ऐसा खड़ा था ,पैंटी को बस फाड़ता।
" सही कह रही है तू ये साला तो एकदम पक्का बहनचोद है ,बहन की कच्ची अमिया को याद करके ये हाल है तो जब सामने मिलेगी तो बस चढ़ ही जाएगा " और ये बोलते हुए मम्मी पलंग पे बैठ गयीं ,एक पैर फर्श पर और दूसरा धीमे धीमे उठा के उन्होंने पलंग पर रख लिया।
नाइटी पहले तो मम्मी के घुटनो तक चढ़ गयी और ऊपर , . फिर और ऊपर ,.
हलकी हल्की काली झुरमुट , एकदम उनकी गोरी गोरी काँखों से मैचिंग ,. .
गोरी गोरी काँखे
नाइटी पहले तो मम्मी के घुटनो तक चढ़ गयी और ऊपर , . फिर और ऊपर ,.
हलकी हल्की काली झुरमुट , एकदम उनकी गोरी गोरी काँखों से मैचिंग ,. .
उंनकी निगाहें वहीँ और ;खूंटे' की हालत खराब ,
मम्मी ने टाँगे थोड़ी और फैलायीं और अपने तरकश से दूसरा तीर चलाया ,
" सच बोल ,किसकी याद कर के ये हाल हो रहा है ,अपनी उस छिनार बहन की या मेरी समधन की गजब के जोबन है ना। "
सच में इतना कडा मैंने 'उसे ; कभी न देखा था।
मुझे ये देख कर बहुत मजा आ रहा था ,बस मैंने मम्मी के होंठ पर सीधे अपने होंठ ,
" बोल ये कर सकते हो अपनी मम्मी के साथ "मैंने छेड़ा।
"अरे ये तो कुछ नहीं देख अभी क्या क्या करेगा ये मेरी समधन के साथ ,घबड़ा मत तेरे सामने करेगा।"
मुझे मालूम था ,मम्मी की कौन सी चीज उनकी हालत सबसे ज्यादा ख़राब करती थी ,और
ये बात मम्मी को भी मालुम थी ,
मम्मी के गदराये कड़े कड़े रसीले जोबन।
और मम्मी ने नाइटी के बाकी हुक भी खोल दिए और छलक कर दोनों कबूतर , उड़ने को बेताब , बाहर।
उनके चेहरे का टेंसन देखते बनता था और वो मोटा सांप भी अब उनकी पैंटी से बाहर झाँकने लगा था। एकदम सख्त।
मैं उनको तड़पाने के खेल में शामिल हो गयी थी , मेरी उँगलियाँ उनके कड़े निपल के चारो ओर ,उन्हें दिखाते ललचाते घूम रही थी।
" बोल मेरी समधन के भी ऐसे ही है न ," मम्मी ने छेड़ा
" हाँ ,ऐसे ही खूब रसीले,. बड़े बड़े ,. " उनके मुंह से निकल गया।
मेरे होंठ जो मम्मी के होंठों पर थे , उनसे अलग हो गए
" हे देख मैं अपनी मम्मी के साथ कैसे मजे लेती हूँ ,तू ले सकता है क्या अपनी मम्मी के साथ "
और मेरे होंठ सीधे मम्मी के निपल्स पर , पहले हलके हलके लिक करती रही , फिर चूसना शुरू कर दिया।
मम्मी ने जोर से मेरे सर को पकड़ के अपनी ओर दबाया और मजे लेते उनसे बोलीं ," बोल न "
मस्ती से उनकी हालत खराब थी ,हाँ हाँ तुरंत उनके मुंह से निकल पड़ा।
" सिर्फ उनकी चूंची चूसेगा या चोदेगा भी समधन को। "
मम्मी ने रगड़ा और कस के।
उनका खूँटा लग था की उनकी पैंटी बस फाड़ के निकल जाएगा।
और मम्मी ने हाथ बढ़ा के उनकी उनकी पैंटी खोल दी , और रामपुरी चाक़ू की तरह वो झटक के बाहर आ गया।
खूब मोटा और कड़क,
मैं और मम्मी अब पलंग के किनारे बैठी थीं ,और जिस तरह मम्मी की निगाहें वहां चिपकी थीं साफ़ लग रहा था सास को दामाद का पसंद आ गया है।
फुसफुसाते हुए मुझसे बोलीं बोलीं , " है कड़क न " ,और मैं मुस्करा उठी।
मैंने एक बार तारीफ़ की निगाह से उनकी ओर देखा, बिना बिना नागा रोज मुझे तीन बार झाड़ के ही झड़ता था।
हाँ साइज में , किस्से कहानियों के ९ इंच वालों की तरह नहीं था , लेकिन एक तो तलवार की साइज के साथ तलवारबाजी आनी भी जरुरी है और उसके बारे में मुझसे ज्यादा कौन जानता था ,खासतौर से उनकी इस स्पेशल बर्थडे के बाद से ,जब से उनकी झिझक हिचक ख़तम हुयी है।
और साइज में भी उनका ६+ इंच भारतीय औसत से कहीं आगे था , करीब ७५% से तो क्याद बड़ा ही था ( ३८. ८४ %--- ५. १ से ६ इंच, ३२. ४९ % --३. १ से ५ इंच और ३. ७६ % तीन इंच से भी छोटा ). वह उन १६. ६९ % में थे जिनकी साइज ६ इंच से ७ इंच के बीच होती है।)
मॉम की इस तारीफ़ भरी निगाह का और छेड़ने का मेरे पास एक ही जवाब था,
चुम्मी ,
मेरे होंठ जो उनके रसीले होंठों पर थे सरक कर सीधे उनके ३६ डी डी उभारों पर आगये , पहले तो नाइटी के ऊपर से ,और फिर नाइटी सरका केसीधे तनतनाये निपल पर ,
मैं चूस भी रही थी ,चाट भी रही थी जीभ से फ्लिक भी कर रही थी ,
उनकी निगाहे हम दोनों की ओर लगी थी ,ललचाती।
और मम्मी आज मेरी हर हरकत का जवाब मुझे नही बल्कि ,उन्हें दे रही थीं।
वैसे भी बार मॉम की निगाहे उनके तने फड़फड़ाते खूंटे की ओर ही मुड़ रही थीं ,
एक झटके से उन्होंने 'उसे' अपनी गोरी गोरी मुलायम मुट्ठी में कस के पकड़ा और पूरी ताकत से चमड़ी पकड़ के खीँच दी ,
पहाड़ी आलू ऐसा बड़ा सा खूब मोटा गुलाबी सुपाड़ा बाहर ,तड़पता ,फड़फड़ाता ,भूखा ,.
मम्मी मैं भी आऊं आप दोनों के साथ , . हलके से सिसकी के साथ उनके मुंह से आवाज निकल पड़ी।
माँ बेटी ,. .
और दामाद
मम्मी मैं भी आऊं आप दोनों के साथ , . हलके से सिसकी के साथ उनके मुंह से आवाज निकल पड़ी।
और जवाब में मम्मी के लंबे शार्प नाख़ून ,रेड पेंटेड ,. सीधे उनके मांसल सुपाड़े पे गड गए।
और यही नहीं पहले तो उन्होंने अंगूठे से उनके खुल एक्सपोज्ड पी होल को सहलाया ,दबाया और फिर , . मंझली ऊँगली का नाख़ून अंदर ,
सिसकते हुए वो अचानक से चीख पड़े ,.
बिना उनकी चीख की परवाह किये ,मम्मी मुझसे बोली
" ये नयी दुल्हन तो बहुत चीखती है ,इसका मुंह बंद करना पडेगा। "
और मुंह बंद करने के लिए इससे अच्छा क्या होता ,
मम्मी की सफ़ेद कॉटन पैंटी जो उन्होंने जब से यहां आयी थी तब से पहन रखी थी ,दो दिन से भी उपर ,
उनके अगवाड़े पिछवाड़े का सब ' गंध ,स्वाद ' सब कुछ उसमें समाया ,
उनकी देह के हर छेद का रस सीज सीज कर ,उसे भिगाता हुआ ,
एकदम देह रस से गमकता ,
उसकी बॉल बनाकर सीधे उनके मुंह के अंदर ,पूरी ताकत से ठूंस दी।
और उसे बंद करने के लिए ?
शायद एक पल सोचना पड़ा होगा लेकिन मम्मी की ३६ डीडी धवल लेसी हॉफ कप सेक्सी ब्रा से अच्छा और क्या होता ,उनका मुंह बंद करने के लिए ,जिसे देख कर वो हरदम ललचाते रहते थे।
बस दो दिन की मॉम के रस से भीगी गीली पैंटी उनके मुंह में और ब्रा मुंह के बाहर ,
मुझे प्रेजिडेंट गाइड का इनाम मिला था ,मेरी बाँधी गाँठ कोई नहीं खोल पाता था ,मेरे सिवाय।
बस मैंने गाँठ बाँध दी ,और अब गोंगो की आवाज के अलावा कुछ भी नहीं निकल सकता था उनके मुंह से।
" यार तेरी तो चांदी हो गयी ,मॉम का देह रस सीधे तेरे मुंह में और उससे भी बढ़कर ब्रा तेरे होंठों पर ,लेले मन भर स्वाद। "
मैंने छेड़ा।
लेकिन मम्मी दूसरे काम में लगी थीं ,उन्होंने उनकी भी 'पैंटी और ब्रा भी उतार दी।
और अब वो गाँठ उन्होंने अपने दामाद की लगाई जो मैंने गर्ल गाइड के समय कभी भी नहीं सीखी थी न किसी ने सिखाया था ,
हाँ सुना जरूर था।
और जब बॉबी जासूस बन कर उनकी फेवरिट 'फेमडाम' पिक्चरों के खजाने का पता लगाया तो देखा भी,
सी बी टी
कॉक एंड बॉल टार्चर
और मम्मी वही कर रही थीं, उसका बहुत लाइट रिफाइंड संस्करण ,
और मैं देख रही थी ,सीख रही थी।
ब्रा और पैंटी , से उन्होंने बॉल और कॉक को बांध दिया ,चार पांच चक्कर , और इस कस के ,. .
बस मोटा सुपाड़ा खुल कर खुला था।
जैसे गिफ्ट रैप करते हैं न बस वैसे ही उन्होंने एक फूल की तरह गाँठ बाँध दी। खूब कस के।
और अपने दामाद के गाल पे प्यार से हलकी सी चपत लगाते बोलीं ,
" मुन्ना , अब हम कुछ भी करें , तू कुछ भी कर ,. . लेकिन झड़ेगा नहीं। पक्का ,मेरी गारंटी। "
और जैसे अपनी बात के सबूत के तौर पे जोर जोर से मॉम ने उनका खड़ा सुपाड़ा रगड़ा। खूब जोर जोर से ,
उनके दामाद के चेहरे से लग रहा था की बस मस्ती से उनकी हालात खराब हो रही है ,लेकिन
कम तो छोड़िये पृ कम की भी एक बूँद नहीं निकली।
" रात भर तड़पाऊंगी रज्जा लेकिन झड़ने नहीं दूंगी समझे। "
रात भर तड़पाऊंगी रज्जा
और जैसे अपनी बात के सबूत के तौर पे जोर जोर से मॉम ने उनका खड़ा सुपाड़ा रगड़ा। खूब जोर जोर से ,
उनके दामाद के चेहरे से लग रहा था की बस मस्ती से उनकी हालात खराब हो रही है ,लेकिन
कम तो छोड़िये पृ कम की भी एक बूँद नहीं निकली।
" रात भर तड़पाऊंगी रज्जा लेकिन झड़ने नहीं दूंगी समझे। "
मम्मी की आवाज में जो सेक्स था ,और आवाज से बढ़कर उनके मम्मो का जादू ,मम्मी की ब्रा तो उनका मुंह बंद करने के काम में लगी थी।
बस उनके गदराये छलकते जोबन अब इंच भर भी दूर नहीं थे उनके तड़पते होंठो से।
पारदर्शी नाइटी का कवर भी अब खुला हुया था।
कुछ देर में मॉम मेरे साथ फिर पलंग पर बैठगयी थीं
और अब उनकी स्टिलेटो सैंडल फिर से मैदान में आगयी।
मम्मी ने ,क्या कोई मथानी से दही मथेगा ,अपनी दोनों सैंडल के बीच
जिस तरह से उनके पगलाए लन्ड को वो रगड़ रही थी।
और मैं खिलखिला रही थी ,हंस रही थी।
" तुम अब लाख कोशिश करो नहीं झड़ोगे और झड़ोगे तो अपनी मां बहन के भोंसडे में, "
माँ ने अपना फैसला सुनाया।
" चलो एक मौक़ा और ,अगर हम जब ग्रीन सिगनल देंगे तो भी ,जिस किसी के लिए भी ग्रीन सिंगनल देंगे उसी के साथ। "
मैंने हंस के सजा थोड़ी हलकी की
,लेकिन एक बात मुझे कुछ साफ़ नहीं समझ में आयी और मैंने मम्मी के कान में अपना शक जाहिर कर दिया ,
" मम्मी आपकी समधन की बात तो ठीक है , मेरी ननद ,. भोंसडे वाली। वो बिचारी तो अब तक अनचुदी है अपने प्यारे भैया के लन्ड के इंतज़ार में। "
" अरे तो तुझे यहां ले आएगी न ,नथ तो यही उतारेगा लेकिन आठ दस दिन इसके मजा लेने के बाद ,गाँव भेज देना मेरे पास। दस बारह दिन मेरे पास रहेगी न तो , सोलहवें सावन का मजा अच्छे से ले लेगी ,अगवाड़ा पिछवाड़ा सब। "
फिर कुछ देर रुक कर उनकी और देख के मुस्कराते हुए बोलीं ,
" अरे फिर मैंने इसे पांच बच्चो का आशीष भी दिया है वो भी चार साल में , वो भी उसी की बुर से निकलेंगे ,आखिर इस का पुराना माल है , नथ उतारने से थोड़े ही काम चलेगा ,उसे गाभिन भी करना पडेगा न। तो जल्दी ही वो भी हो जायेगी ,. । "
मम्मी चाहे जितना धीमे बोल रही हों ,वो चाहे जितना अनसुनी कर रहे हों , . लेकिन मैं साफ़ समझ रही थी ,कान पारे वो सब सुन रहे हैं।
और यह सब कहते हुए भी मम्मी ने उनके खूंटे को अपनी सैंडल के बीच मसलना नहीं बंद किया और साथ में वो अपनी ४ इंच की हील
कभी कभी उनके सुपाड़े में
गड़ा देती थीं।
और जिस तरह से वो तनतना रहे थे ,सिसकियाँ भर रहे थे ,. ये साफ़ था की उन्हें बहुत मजा आ रहा है।
बाहर हलकी हलकी बारिश शुरू हो गयी।
सावन का मस्त मौसम था।
सावन
बाहर हलकी हलकी बारिश शुरू हो गयी।
सावन का मस्त मौसम था।
" हे इस खिलौने को ज़रा बरामदे में चलते हैं न , थोड़ा झूला झुलाते है। "
मम्मी बोलीं और मम्मी ने उनकी साडी की एक लीश बना के पहले तो उनकी कमर में फंसाया और फिर जो कॉक और बॉल्स में गाँठ बंधी थी उसमें से डाल के ,आलमोस्ट खींचते हुए बाहर बरामदे में ले आयीं।
जहाँ झूला पड़ा हुआ था।
मन तो झूला झूलने का होता था , लेकिन शहर में आम और नीम के दरख्त घर के बाजू में तो होते नहीं न ही अमराइयाँ ,जहां चार पांच हम उम्र लड़कियां ,भौजाइयां झूले की पेंगों के साथ मस्तियाँ कर सकें ,कजरी की धुन के साथ चिकोटियां काट के भाभियों से बीते रात की कहानियां पूछ सकें।
गाँव तो शहर में आता नहीं ,कहीं बहुत दूर ख़तम हो जाता है।
और अब शादी के बाद एक बार जब मैं गाँव गयी तो देखा अब गाँव में भी गांव नहीं रहा।
रहते तो हम लोग लखनऊ में थे ,लेकिन पास में ही मलीहाबाद के पास काफी बड़े आम के बाग़ थे , पुराना मकान था , और साल में एक दो बार मैं भी चली जाती थी ,ख़ास तौर से सावन में ,. वो घर आज कल की जुबान में फ़ार्म हाउस में तब्दील हो गया था। लेकिन मॉम का निज़ाम अब भी पुराने ज़माने वाला था ,सख्त भी ,मुलायम भी। और मॉम भी अब लखनऊ में भी कहां ,. शाम दिल्ली में तो दिन मुम्बई में ,. पर इस के बावजूद आमों के मौसम में वो अभी भी महीने भर तो गाँव में रहती ही थीं।
तीज में यहां भी क्लब में मेहंदी ,झूला ,गाने होते थे ,लेकिन जैसे बचपन में गुड्डे गुड़िया का खेल खेलते थे न बस वैसे ही गाँव गांव ,एकदम आज के बम्बइया फिल्मों की भोजपुरी ,न वो रस न वो मिठास ,न अपनापन।
चलिए कहाँ की बात कहाँ ले पहुंची।
यहाँ झूला बरामदे में पड़ा था ,बस इनसे कह के चुल्ले पे दो रस्सियां डलवा के ,बीच में एक पीढ़ा सा डाल के, बरामदा खूब लंबा सा था ,इसलिए पेंग मारने की जगह भी ,और आँगन सटा था तो बारिश की फुहार ,पुरवाई ,.
मम्मी ने इसे हैमॉक की तरह करवा दिया ,आते ही। वहां से पूरा घर भी नजर आता था।
बस उसी झूले पे इन्हें चढ़ा दिया।
कमरे से निकलने के पहले इनके हाथ पैर तो खुल ही गए थे लेकिन एक बार फिर जैसे ही इनके हाथों ने रस्सी पकड़ी ,वो फिर बांध दिए गए।
बांधे गए अबकी मेरी ब्रा से
और बांधने वाली मैं थी ,एकदम सख्त गांठे।
और मम्मी उनसे उनकी टाँगे उठवाने में लगीं थी।
" टांग उठा ,और ऊंचा जैसे तेरी माँ बहन उठाती हैं न हाँ वैसे ही ,और ,चौड़ा कर और ,और,. अरे छिनारों ने तुझे टांग फैलाना भी नहीं सिखाया , खुद तो झांटे बाद में आयीं ,टाँगे पहले फैलाना शुरू कर दिया ,. "
मम्मी मेरी इनइमीटेबल मम्मी ,असली प्यारी वाली ,. आज पूरे रंग में थीं।
और उन्होंने टाँगे खूब ऊँची ,चौड़ी कर दिया।
बस मम्मी ने झूले की रस्सी से उन उठी फैली टांगो को बाँध दिया।
और एक्जामिन किया ,. लेकिन अभी भी उन्हें कुछ कमी लगी।
पास पड़े केन के सोफे पर के सारे कुशन वो उठा लायीं ,
और जैसे कोई मरद ,
गौने की रात अपनी नयी नवेली दुल्हन के चूतड़ के नीचे ,बिस्तर पर के सारे तकिये लगा के ऊंचा उठा दे ,जिससे मोटा लौंडा भी वो घचाक से घोट सके ,बिलकुल वैसे।
और अब उनके चूतड़ एकदम हवा में उठे थे , दूर से भी दिख रहे थे।
लेकिन मॉम का काम इससे भी ख़तम नहीं हुआ।
इधर उधर बिना मुझसे कुछ बोले ,वो कुछ ढूंढती रही और उन्हें मिल भी गया।
एक लंबा मोटा सा डंडा ,
बस वो उन्होंने उनके खुले पैरों और झूले की रस्सी से ऐसे बाँध दिया की बस ,
अब वो लाख कोशिश कर लें, पैर उनके ऐसे ही खुले रहने वाले थे।
मैं प्यार से उनके बाल बिगाड़ रही थी ,सहला रही थी।
और मम्मी भी , उनकी प्यारी प्यारी लम्बी लंबी गोरी नटखट उँगलियाँ ,
उनके मोटे तड़पते छटपटाते खूंटे के 'बेस' को सहला रही थीं ,छू रही थीं , रगड़ रही थीं।
कभी मम्मी का अंगूठा उनके मांसल सुपाड़े को दबाता तो कभी घिस देता ,
और अचानक ,
मॉम के लंबे तीखे नाखूनों ने , खूब जोर से सुपाड़े पे खरोंच लिया।
पैंटी का गैग उनके मुंह में ठूंसे होने के वावजूद , हलकी सी चीख निकल गयी।
और मैंने भी साथ में, आखिर मम्मी के दामाद थे तो मेरे मेरे भी तो साजन थे , मेरी छिनार ननदिया के बचपन के यार ,
मेरे होंठ जो उनकी चौड़ी छाती पे प्यार से टहल रहे थे ,चूम रहे कभी जीभ की नोक से उनके निप्स को हलके से फ्लिक करते थे ,
उनके निप्स भी उनकी छुटकी बहिनिया की तरह एक दम टनटना रहे थे।
और अचानक ,
मैंने भी , कचकचा के उनके निप्स को काट लिया , हलके से नहीं पूरी ताकत से।
दर्द से वो बिलबिला उठे।
कभी नीम नीम ,कभी शहद शहद
कभी वो मजे से पागल हो उठते तो कभी दर्द से।
मेरी और मम्मी दोनों की जुगलबंदी चल रही थी साथ साथ।
ऊपर का हिस्सा मेरे जिम्मे ,नीचे का उनके हवाले।
लेकिन उन्हें कैसे लग रहा था , उनकी हालत का असली अंदाज उनके खूंटे के कड़ेपन से लग रहा था।
इतना कड़ा ,इतना तगड़ा तो मैंने उसे तब भी नहीं देखा था जब उन्होंने वियाग्रा की डबल डोज ली थी।
और मम्मी की हरकते रुकने का नाम नहीं ले रही थी , उनकी उँगलियाँ ,उनके नाख़ून हर बार तड़पाने के नए तरीके ढूंढ़ रहे थे।
उनके नाख़ून कभी उनके पी होल में तो कभी उनके बॉल्स को स्क्रैच कर लेते ,
कभी वो मुट्ठी में उनके बॉल्स को लेके जोर से मसल देती ,
कभी हलके से उनके बौराये पगलाये लन्ड पे चपत लगा देतीं।
मैं मम्मी की हरकतें देख रही थीं।
मम्मी ने मुझे देखते हुए देखा तो मुस्करा के दूर हट गयीं , जैसे कह रही हों अब तेरी बारी।
मैंने एक जोर का झटका दिया और काले काले बादलों ने चाँद को घेर लिया।
मेरे लंबे घने बाल खुल गए।
और फिर मेरे बालों ने अपना जादू दिखाना शुरू कर दिया , पहले तो हलके हलके उनके तड़पते खूंटे को मैं और तड़पाती रही ,फिर उससे बांधकर , कस के ,. . आगे पीछे ,.
पूरे दस मिनट तक ,
आज तक इस ट्रिक से वो पांच छ मिनट में ही ,लेकिन आज
और आधे घंटे से ऊपर हो गए थे मुझे और मॉम को उन्हें तंग करते छेड़ते ,उसके बाद मेरे काले बालों का ये जादू ,
,.
लेकिन मैं छोड़ने वाली नहीं थी उन्हें इतनी आसानी से ,इत्ता मस्त खड़ा लन्ड हो और ,.
थोड़ी देर मेंरे होंठ उनके सुपाड़े पर सपड़ सपड़ और फिर उसके बाद ,
टिट फक ,.
वो तड़प रहे थे ,मचल रहे थे , अपने चूतड़ पटक रहे थे , पर,.
बांसुरी ऐसे ही मस्त कड़ी थी ,
अब मुझे समझ में आया सी बी टी का असली मजा उनकी लन्ड की ताकत के साथ जो मम्मी ने गाँठ लगाई थी ये उसी का नतीजा था।
मम्मी नेकहा भी तो था , तू चाहे जो कुछ भी कर ले अब ये झड़ने वाला नहीं।
ये तो किसी भी लड़की के लिए एक सपना हो सकता है , एक लंबा खूब मोटा कड़क लन्ड ,जो तब तक न झड़े वो जब तक न चाहे।
मैंने मम्मी की ओर मुस्करा के देखा और उन्होंने भी मेरा मतलब समझ के, न वो सिर्फ मुस्करायीं ,बल्कि जोर से आँख मार के उन्होंने मुझे अपने पास बुला भी लिया। बांहों में मुझे भींच के बोलीं ,
" अब इस छिनार की नथ उतारने का समय आ गया है। बहुत तड़प रही है बिचारि। "
"एकदम मम्मी लेकिन ज़रा अपने इस माल को ठीक से देख तो लीजिये। " मैंने टुकड़ा लगाया।
मैंने बोल ही दिया , आओ न। इन्तजार करना बहुत मुश्किल हो रहा था।
और वो आ गए ,मेरे साथ हलकी सी रजाई जो मैंने ओढ़ रखी थी उसके अंदर।
एसी फुल ब्लास्ट पर चल रहा था।
वो आये और मैंने उन्हें दबोच लिया ,आज मैं शिकारी थी और वो शिकार ,. मम्मी से तो वो बच गए लेकिन मुझसे नहीं बचने वाले थे।
मैंने उन्हें गपूच लिया और हलके सहलाती रही , कभी गालों को कभी होंठों को।
फिर हलके से दबा लिया।
जल्दी नहीं थी मुझे रात अभी जवान थी , और मुझे धीमे धीमे मजा लेना था।
वह चुपचाप लेटे , बस थोड़ा लजाते कुनमुनाते ,
जो करना था मैं कर रही थी , उनकी लंबी लंबी गहरी साँसे बस उनकी उत्सुकता ,उत्तेजना का राज खोल रही थीं।
और मुझे पता चल रहा था की उन्हें कितना मजा आ रहा था।
बाहर रात धीरे धीरे झर रही थी ,
हलकी सी खुली खिड़की सी रात रानी की भीनी भीनी खुशबू अंदर आ रही थी और साथ साथ में थोड़ी थोड़ी मीठी मीठी चांदनी भी।
और फिर हलकी सी खट खट की आवाज हुयी ,
हम दोनों ने उसे अनसुनी कर दिया।
हम दोनों आपस में ही खोये थे ,लेकिन आवाज तेज हो गयी फिर और फिर बार बार,
और फिर मम्मी की आवाज सुनाई पड़ी ,
"तुम लोग सो गए हो क्या" ?
जब तक ये अपना हाथ मेरे मुंह पे लाकर मेरा मुंह भींचते ,मेरे मुंह से निकल ही गया
" हाँ मम्मी "
और उसी समय मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया लेकिन अब हो क्या सकता था।
" दरवाजा खोलो न " मम्मी की टिपकिकल डिमांडिंग आवाज सुनाई पड़ी।
खूब निदासी आँखों के साथ जुम्हाई लेते ,अंगड़ाई लेते मैंने जाके दरवाजा खोला।
ये एकदम रजाई ओढ़ के दीवार की ओर दुबक गए ,आँखे जोर से बंद कर के।
" अभी अभी नींद लगी थी ,बहुत तेज। आप देर से नॉक कर रही थीं क्या ?" मैंने बहाना बनाया। और ये भी जोड़ा ,
" बिचारे तो थके मांदे , आधे घंटे पहले ही पलंग पर पड़ते सो गए। "
" आधे घण्टे हो गए नॉक करते , तुम न घोड़े बेच कर के सोती हो ,बचपन की आदत है तेरी। " मम्मी ने बुरा सा मुंह बना के हड़काया और मतलब साफ़ किया ,
" थोड़ी देर पहले ही नींद खुल गयी थी मेरी ,फिर नहीं आ रही थी। मैंने सोचा चलो सीरियल का रिपीट आ रहा होगा देख लूँ ,शुरू हो गया क्या ?
उनकी निगाहें टीवी पर गडीं थी और मेरी बिस्तर पर जहाँ ये दुबके छिपे पड़े थे।
बस मैंने उन्हें बचाने के लिये ,. मैं घुस गयी रजाई में एकदम उनसे चिपक कर ,
" आइये न मम्मी ,बस अभी शुरू हुआ है। "
और मम्मी भी रजाई में धंस ली सीरियल देखने लगी।
गनीमत थी उनके और मम्मी के बीच में मैं थी , चीन की दीवाल की तरह।
मम्मी का ध्यान पूरी तरह सीरियल पर लगा था और मैंने मना रही थी किसी तरह आधा घंटा पूरा हो सीरियल ख़तम हो और मॉम जायँ अपने कमरे में।
आधे घण्टे ख़तम हो गए ,सीरियल भी ख़तम हो गया लेकिन मम्मी बजाय जाने के चैनेल सर्फ़ करने लगीं और मुझसे बोली ,
" ज़रा पानी लाओ , गला सूख रहा है। "
मैं एक दो मिनट रुकी पर रास्ता भी क्या था ,मैं पलंग से उठ कर गयी और जब लौटी तो ,. .
शर्माती डरती दुल्हन
गठरी मोठरी बने , अपने घुटनों में सर छिपाये घबडाते लजाते वो वो बैठे थे ,दुल्हन के जोड़े में एकदम गौने की रात में शर्माती डरती दुल्हन की तरह। और मम्मी एकदम अब उनके सामने , ठुड्डी पे हाथ लगाए उनका मुखड़ा देखने की कोशिश में ,
और मुझे देखते ही मम्मी बोलीं,
" इत्ता मस्त माल छुपा के रखा था मुझसे , " मम्मी ने आँखे चढ़ा के मुझसे बोला और फिर उनका घूंघट खोलने के चक्कर में पड़ गयीं।
बिचारे वो शर्मा रहे थे घबड़ा रहे थे लैकिन अंदर अंदर उनका मन भी कर रहा था।
और अचानक मम्मी ने पूरे जोर से ,हलकी फुल्के से नहीं ,सीधे उनके होंठ पर कचकचा के चूम लिया। अपने दोनों भरे भरे होंठों के बीच उनके रसीले ,लाल लिस्प्टिक लगे होंठों को भर के जोर से उन्होंने काट लिया ,और देर तक चूसती रहीं।
यहीं नहीं ,मम्मी ने इतने पर भी नहीं छोड़ा और उनके रूज लगे ,फूले फूले गालों को भी कचकचा के काट लिया।
हलकी सी सिसकी निकल गयी उनकी।
" तेरी छिनार बहन भी ऐसे ही गाल कटवाती है न ,बोल बहन के भंडवे " चिढाते हुए मम्मी ने बोला ,तो मैं क्यों मौका छोड़ देती। मैं भी बोल पड़ी ,
" अरे मम्मी साफ़ साफ़ ये क्यों नहीं पूछती की क्या ये भी अपनी उस बहिनिया के ऐसे ही गाल काटते थे ?"
मम्मी का ध्यान अब लेकिन थोड़ा नीचे पहुँच गया था। उन्होंने आँचल जबरन हटा दिया था , कसी लो कट चोली और पैडेड ब्रा में हल्का सा क्लीवेज भी झलक रहा था।
मम्मी ने जोर से सीटी मारी और उनके गाल पे चिकोटी काट के बोली ,
"तेरे गेंदें तो ,तेरी उस साली से भी बड़ी बड़ी लगती है , रंडी के ,. बोल क्या साइज है तेरे माल की "
" ३२ सी ,. " हलके से उनकी आवाज निकली।
" और मेरी समधन के ,बोल साले भंडुए। "मम्मी अपने असली टारगेट को कैसे भूलतीं।
" ३८ डी डी " अबकी उन्होंने थोड़ा हिचिकचाते लेकिन बोल दिया।
" मन करता है न दबाने को ,घबड़ा मत बहुत जल्द , . " मम्मी ने उन्हें एस्योर किया और तोप का मुंह मेरी ओर मोड़ दिया ,
" बहुत मस्त दुल्हन है न ,अगर दुल्हन इतनी मस्त है तो फिर सुहाग रात भी मस्त मनानी चाहिए न " वो मुझसे बोलीं और बिना मेरे जवाब का इन्तेजार किये उनकी ओर जिस लोलुप खा जाने वाली निगाहों से देखने लगीं की वो काँप गए।
लेकिन मैं क्यों छोड़ती मैंने भी आग में घी डाला,
" एकदम मम्मी ,बिचारी इतना सज धज के ,सिंगार पटार कर के बैठी है ,फिर भी अगर आज इस की सुहागरात नहीं मनी ,अगर ये कोरी रह गयी तो ,. . अपने मायकेमें जा के शिकायत करेगी न ,सबका नाम बदनाम करेगी। "
मम्मी की निगाह उनके गोरे चिकने चेहरे पे अटकी हुयी थी ,
"अरे इसके मायके वालों का भोंसड़ा मारूँ ,. " उनके मुंह से निकला।
मम्मी अब अपने पूरे रंग में आ गयी थी ,फिर बोलीं ," लेकिन जरा अपनी इस प्यारी प्यारी दुल्हन को ठीक से देख तो लूँ , और उनसे बोलीं ,
" अरे जानम उठ जा जरा चल के दिखा तो। "
" सुना नहीं ,अरे मम्मी को अपने जोबन का जलवा तो दिखा। " मैं भी मम्मी के साथ जुगल बंदी में शामिल हो गयी थी। "जरा उठो न ,खड़े हो ,चल के दिखाओ। " मैंने निहोरा किया और उठ के वो खड़े हो गए , पलंग के पास ही।
लजाते झिझकते एकदम मूर्ती की तरह , लेकिन क्या रूप था।
पिंक पटोला , अञ्चल सर से बस छलकता सा ,थोड़ा थोड़ा सीधी मांग दिख रही थी और उसमें सिन्दूर दमक रहा था। ऊपर से नीचे गहने ,सिंगार और सब से बढ़ कर जिस तरह लाज से उनकी आँखे झुकी थीं ,जिस तरह उँगलियों में उन्होंने पल्लू हलके से घबड़ाते हुए पकड़ रखा था।
मम्मी की निगाहें तो बस ऊपर से नीचे तक बार बार उन्हें सहला रही थी , बस निगाह हटती ही नहीं थी जैसे उनके रूप और जोबन से। फिर किसी तरह उन्हें उकसाती बोलीं ,
" ज़रा चल के दिखाओ न , थोड़ा सा ,मैं भी तो देखूं न , हस्तिनी की चाल है या चित्रिणी की ,गज गामिनी हो या ,. "
एक पल तो वो ठिठके लेकिन ,बहुत धीमे धीमे ,एकदम नयी दुल्हन की तरह लजाते सम्हलते , भरे भरे नितम्ब हलके हलके मादक मदिर डोलते ,
मम्मी तो बस चित्रलिखी सी देखती रहीं लेकिन मैंने मुंह में ऊँगली डाल के जोर की सीटी मारी और गुनगुनाया ,
" अरे गोरी चलो न हंस की चाल ,ज़माना दुश्मन है ,. "
मम्मी ने कुछ गुस्से से कुछ मुस्कारते तिरछी निगाह कर के मेरी ओर देखा और उनकी निगाहें ,फिर कैटवाक पर जम गयीं।
अचानक उनकी आवाज का टोन बदला ,एकदम आइस कोल्ड ,तलवार की धार की तरह शार्प ,
" स्ट्रिप "
मॉम
अचानक उनकी आवाज का टोन बदला ,एकदम आइस कोल्ड ,तलवार की धार की तरह शार्प ,
" स्ट्रिप "
वो बस पत्थर से हो गए ,जैसे उन्हें समझ में न आरहा हो क्या हुआ।
" सूना नहीं। " मम्मी की आवाज अब और कडक होगयी।
बस अब उन्होंने पल्लू खोलना शुरू किया ,लेकिन मम्मी की आवाज एकदम ठंडी और बिजली की तरह कड़क ,
" डोंट यू लिसेन ,आई सेड स्ट्रिप , , नाट डिसरोब , . स्ट्रिप इन अ अट्रैक्टिव वे "
अब तो मैं भी सहम गयी थी ,मैंने उनकी चोट को कुछ हल्का करने के लिए मुस्कराते हुए बोला ,
" अरे जैसे वो तेरी वो छिनार बहिनिया ,कच्चे टिकोरे वाली स्ट्रिपटीज करेगी न , जब हम सब उसको ट्रेन कर देंगे , मुजरा करवाएंगे उससे ,
लेकिन वो जैसे सिर्फ मम्मी की बात सुन रहे थे ,
क्या चक्कर लिया उन्होंने धीमे से और साड़ी का पल्लू चक्कर लेते हुए पेटीकोट से निकाला , फिर कुछ लजाते कुछ ललचाते ,
कुछ छिपाते कुछ दिखाते , कभी झुक के अपने क्लीवेज का जलवा तो कभी पीछे से नितम्बो का जादू ,.
थोड़ी देर में साडी उनके पैरों पर लहराती ,सरसराती गिर पड़ी।
एकदम पद्मा खन्ना ,जानी मेरा नाम वाली ,
मेरे हुस्न के लाखों रंग कौन सा रंग देखोगे .
मैंने खुल के गाया ,
लेकिन अबकी मम्मी ने नहीं देखा मेरी ओर , उनके मन में कुछ और था। और अब मैं समझ चुकी थी उनका सोना ,ये कहना की मिलते हैं ब्रेक के बाद ,कल सिर्फ बहाना था। और एक तरह से सच भी , आखिर बारह कब के बज गए थे ,और तारीख बदल चुकी थी।
निगाहें तो मेरी भी उन पर से नहीं हट रही थीं ,
पिंक कच्छी लो कट डीप बैकलेस चोली ,गुलाबी साटिन का पेटीकोट ,
' गुड ' मम्मी के मुंह से हलके से निकला ,मम्मी की लंबी लंबीगोरी गोरी उँगलियाँ उनके गुलाबी गालों पर फिसल रही थीं ,पिघल रही थीं।
चाँद खिड़की से चुपके से अपना रस्ता भूलके झाँक रहा था ,पुराना लालची।
मेरी निगाहे भी बस वहीँ ठहर गयी थीं ,
सब कुछ रुका हुआ था.
अचानक खूब भरे भरे रसीले स्कारलेट लिप ग्लास कोटेड होंठों पर मम्मी के लंबे तीखे नाख़ून और ,बिल्ली की तरह नोच लिए।
गुड वो बोलीं और फिर उनकी उंगलिया पैडेड ब्रा से उभरे उभारों पर आ के टिक गयीं ,कभी छूती कभी बस हलके से सहला देतीं।
मम्मी लगता है 'कहीं और' पहुँच गयी थी।
' बैठ जाओ ' मम्मी बहुत हलके से बोलीं लेकिन अब उनके कान जैसे मम्मी के हर शब्द का वेट कर रहे थे और वह कुर्सी पर बैठ गए।
बस। मम्मी ने फर्श पर गिरी फैली उनकी पिंक पटोला साडी उठायी और कस के उनके हाथ पैर कुर्सी से बाँध दिए बल्किं गांठे भी चेक कर ली। सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में कुर्सी पे बैठे वो अब टस से मस नहीं हो सकते थे।
माम बस उंनसे कुछ कदम दूर पलंग पर बैठ गयीं और उन्हें प्यार से देखती सराहती , पूछा ,
" बोल कैसे लग रहा है " . और खुद ही जवाब दिया , " मैं तो अपना माल ठोक बजा के ही लेती हूँ। "
फिर उन्होंने वो हरकत की जिससे उनकी क्या किसी भी मर्द की हालत खराब हो जाती।
जोर से उन्होंने अंगड़ाई ली और दोनों कबूतर आलमोस्ट ट्रांसपरेंट नाइटी से चिपक गए ,उड़ने को बेताब।
सास , हॉट सास
फिर उन्होंने वो हरकत की जिससे उनकी क्या किसी भी मर्द की हालत खराब हो जाती।
जोर से उन्होंने अंगड़ाई ली और दोनों कबूतर आलमोस्ट ट्रांसपरेंट नाइटी से चिपक गए ,उड़ने को बेताब।
यहां तक तो गनीमत थी , चट चट कर दो चुटपुटिया बटन खुल गए। क्लीवेज तो अभी भी दिख रहा था , अब दोनों मांसल गोलाइयाँ आलमोस्ट निप्स तक अनावृत्त ,खुल के जादू कर रही थीं।
लेकिन उसके बाद मम्मी ने जो किया बस वो पागल नहीं हुए।
मम्मी ने उन्हें दिखाते ललचाते ,अपनी फ्रंट ओपन ब्रा के हुक खोल दिए और उसे बाहर निकाल दिया।
परफेक्ट विक्टोरिया सीक्रेट
और ब्रा उनके चेहरे के ऊपर लहराने लगीं , कभी वो उनके गालों को छू जाती तो कभी इंच भर दूर
मम्मी अब खड़ी हो गयी थीं , झुकने पर मम्मी के उभार बस उनके चेहरे पर ,
किसी भी दिन तो वो ,. . पर आज उनके हाथ पैर बंधे थे , इंच भर भी नहीं हिल सकते थे बिचारे।
लेकिन पेटीकोट में तो उनके तंबू तना हुआ था।
" लगता है इन्हें अपनी बहन के मस्त टिकोरे याद आ रहे हैं ,तभी इतना तन्ना रहे हैं। "
" एकदम सही कह रही है तू लेकिन ज़रा चेक कर ले न " और मम्मी ने झुक के उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया , पर उसके पहले अपनी हाइ हील से हलके से उसे मसल दिया ,और तारीफ़ से तक मेरी ओर देखा,
" एकदम पत्थर " उनकी निगाहें बिना बोले बोल रही थीं।
पेटीकोट उतर चुका था और 'वो'ऐसा खड़ा था ,पैंटी को बस फाड़ता।
" सही कह रही है तू ये साला तो एकदम पक्का बहनचोद है ,बहन की कच्ची अमिया को याद करके ये हाल है तो जब सामने मिलेगी तो बस चढ़ ही जाएगा " और ये बोलते हुए मम्मी पलंग पे बैठ गयीं ,एक पैर फर्श पर और दूसरा धीमे धीमे उठा के उन्होंने पलंग पर रख लिया।
नाइटी पहले तो मम्मी के घुटनो तक चढ़ गयी और ऊपर , . फिर और ऊपर ,.
हलकी हल्की काली झुरमुट , एकदम उनकी गोरी गोरी काँखों से मैचिंग ,. .
गोरी गोरी काँखे
नाइटी पहले तो मम्मी के घुटनो तक चढ़ गयी और ऊपर , . फिर और ऊपर ,.
हलकी हल्की काली झुरमुट , एकदम उनकी गोरी गोरी काँखों से मैचिंग ,. .
उंनकी निगाहें वहीँ और ;खूंटे' की हालत खराब ,
मम्मी ने टाँगे थोड़ी और फैलायीं और अपने तरकश से दूसरा तीर चलाया ,
" सच बोल ,किसकी याद कर के ये हाल हो रहा है ,अपनी उस छिनार बहन की या मेरी समधन की गजब के जोबन है ना। "
सच में इतना कडा मैंने 'उसे ; कभी न देखा था।
मुझे ये देख कर बहुत मजा आ रहा था ,बस मैंने मम्मी के होंठ पर सीधे अपने होंठ ,
" बोल ये कर सकते हो अपनी मम्मी के साथ "मैंने छेड़ा।
"अरे ये तो कुछ नहीं देख अभी क्या क्या करेगा ये मेरी समधन के साथ ,घबड़ा मत तेरे सामने करेगा।"
मुझे मालूम था ,मम्मी की कौन सी चीज उनकी हालत सबसे ज्यादा ख़राब करती थी ,और
ये बात मम्मी को भी मालुम थी ,
मम्मी के गदराये कड़े कड़े रसीले जोबन।
और मम्मी ने नाइटी के बाकी हुक भी खोल दिए और छलक कर दोनों कबूतर , उड़ने को बेताब , बाहर।
उनके चेहरे का टेंसन देखते बनता था और वो मोटा सांप भी अब उनकी पैंटी से बाहर झाँकने लगा था। एकदम सख्त।
मैं उनको तड़पाने के खेल में शामिल हो गयी थी , मेरी उँगलियाँ उनके कड़े निपल के चारो ओर ,उन्हें दिखाते ललचाते घूम रही थी।
" बोल मेरी समधन के भी ऐसे ही है न ," मम्मी ने छेड़ा
" हाँ ,ऐसे ही खूब रसीले,. बड़े बड़े ,. " उनके मुंह से निकल गया।
मेरे होंठ जो मम्मी के होंठों पर थे , उनसे अलग हो गए
" हे देख मैं अपनी मम्मी के साथ कैसे मजे लेती हूँ ,तू ले सकता है क्या अपनी मम्मी के साथ "
और मेरे होंठ सीधे मम्मी के निपल्स पर , पहले हलके हलके लिक करती रही , फिर चूसना शुरू कर दिया।
मम्मी ने जोर से मेरे सर को पकड़ के अपनी ओर दबाया और मजे लेते उनसे बोलीं ," बोल न "
मस्ती से उनकी हालत खराब थी ,हाँ हाँ तुरंत उनके मुंह से निकल पड़ा।
" सिर्फ उनकी चूंची चूसेगा या चोदेगा भी समधन को। "
मम्मी ने रगड़ा और कस के।
उनका खूँटा लग था की उनकी पैंटी बस फाड़ के निकल जाएगा।
और मम्मी ने हाथ बढ़ा के उनकी उनकी पैंटी खोल दी , और रामपुरी चाक़ू की तरह वो झटक के बाहर आ गया।
खूब मोटा और कड़क,
मैं और मम्मी अब पलंग के किनारे बैठी थीं ,और जिस तरह मम्मी की निगाहें वहां चिपकी थीं साफ़ लग रहा था सास को दामाद का पसंद आ गया है।
फुसफुसाते हुए मुझसे बोलीं बोलीं , " है कड़क न " ,और मैं मुस्करा उठी।
मैंने एक बार तारीफ़ की निगाह से उनकी ओर देखा, बिना बिना नागा रोज मुझे तीन बार झाड़ के ही झड़ता था।
हाँ साइज में , किस्से कहानियों के ९ इंच वालों की तरह नहीं था , लेकिन एक तो तलवार की साइज के साथ तलवारबाजी आनी भी जरुरी है और उसके बारे में मुझसे ज्यादा कौन जानता था ,खासतौर से उनकी इस स्पेशल बर्थडे के बाद से ,जब से उनकी झिझक हिचक ख़तम हुयी है।
और साइज में भी उनका ६+ इंच भारतीय औसत से कहीं आगे था , करीब ७५% से तो क्याद बड़ा ही था ( ३८. ८४ %--- ५. १ से ६ इंच, ३२. ४९ % --३. १ से ५ इंच और ३. ७६ % तीन इंच से भी छोटा ). वह उन १६. ६९ % में थे जिनकी साइज ६ इंच से ७ इंच के बीच होती है।)
मॉम की इस तारीफ़ भरी निगाह का और छेड़ने का मेरे पास एक ही जवाब था,
चुम्मी ,
मेरे होंठ जो उनके रसीले होंठों पर थे सरक कर सीधे उनके ३६ डी डी उभारों पर आगये , पहले तो नाइटी के ऊपर से ,और फिर नाइटी सरका केसीधे तनतनाये निपल पर ,
मैं चूस भी रही थी ,चाट भी रही थी जीभ से फ्लिक भी कर रही थी ,
उनकी निगाहे हम दोनों की ओर लगी थी ,ललचाती।
और मम्मी आज मेरी हर हरकत का जवाब मुझे नही बल्कि ,उन्हें दे रही थीं।
वैसे भी बार मॉम की निगाहे उनके तने फड़फड़ाते खूंटे की ओर ही मुड़ रही थीं ,
एक झटके से उन्होंने 'उसे' अपनी गोरी गोरी मुलायम मुट्ठी में कस के पकड़ा और पूरी ताकत से चमड़ी पकड़ के खीँच दी ,
पहाड़ी आलू ऐसा बड़ा सा खूब मोटा गुलाबी सुपाड़ा बाहर ,तड़पता ,फड़फड़ाता ,भूखा ,.
मम्मी मैं भी आऊं आप दोनों के साथ , . हलके से सिसकी के साथ उनके मुंह से आवाज निकल पड़ी।
माँ बेटी ,. .
और दामाद
मम्मी मैं भी आऊं आप दोनों के साथ , . हलके से सिसकी के साथ उनके मुंह से आवाज निकल पड़ी।
और जवाब में मम्मी के लंबे शार्प नाख़ून ,रेड पेंटेड ,. सीधे उनके मांसल सुपाड़े पे गड गए।
और यही नहीं पहले तो उन्होंने अंगूठे से उनके खुल एक्सपोज्ड पी होल को सहलाया ,दबाया और फिर , . मंझली ऊँगली का नाख़ून अंदर ,
सिसकते हुए वो अचानक से चीख पड़े ,.
बिना उनकी चीख की परवाह किये ,मम्मी मुझसे बोली
" ये नयी दुल्हन तो बहुत चीखती है ,इसका मुंह बंद करना पडेगा। "
और मुंह बंद करने के लिए इससे अच्छा क्या होता ,
मम्मी की सफ़ेद कॉटन पैंटी जो उन्होंने जब से यहां आयी थी तब से पहन रखी थी ,दो दिन से भी उपर ,
उनके अगवाड़े पिछवाड़े का सब ' गंध ,स्वाद ' सब कुछ उसमें समाया ,
उनकी देह के हर छेद का रस सीज सीज कर ,उसे भिगाता हुआ ,
एकदम देह रस से गमकता ,
उसकी बॉल बनाकर सीधे उनके मुंह के अंदर ,पूरी ताकत से ठूंस दी।
और उसे बंद करने के लिए ?
शायद एक पल सोचना पड़ा होगा लेकिन मम्मी की ३६ डीडी धवल लेसी हॉफ कप सेक्सी ब्रा से अच्छा और क्या होता ,उनका मुंह बंद करने के लिए ,जिसे देख कर वो हरदम ललचाते रहते थे।
बस दो दिन की मॉम के रस से भीगी गीली पैंटी उनके मुंह में और ब्रा मुंह के बाहर ,
मुझे प्रेजिडेंट गाइड का इनाम मिला था ,मेरी बाँधी गाँठ कोई नहीं खोल पाता था ,मेरे सिवाय।
बस मैंने गाँठ बाँध दी ,और अब गोंगो की आवाज के अलावा कुछ भी नहीं निकल सकता था उनके मुंह से।
" यार तेरी तो चांदी हो गयी ,मॉम का देह रस सीधे तेरे मुंह में और उससे भी बढ़कर ब्रा तेरे होंठों पर ,लेले मन भर स्वाद। "
मैंने छेड़ा।
लेकिन मम्मी दूसरे काम में लगी थीं ,उन्होंने उनकी भी 'पैंटी और ब्रा भी उतार दी।
और अब वो गाँठ उन्होंने अपने दामाद की लगाई जो मैंने गर्ल गाइड के समय कभी भी नहीं सीखी थी न किसी ने सिखाया था ,
हाँ सुना जरूर था।
और जब बॉबी जासूस बन कर उनकी फेवरिट 'फेमडाम' पिक्चरों के खजाने का पता लगाया तो देखा भी,
सी बी टी
कॉक एंड बॉल टार्चर
और मम्मी वही कर रही थीं, उसका बहुत लाइट रिफाइंड संस्करण ,
और मैं देख रही थी ,सीख रही थी।
ब्रा और पैंटी , से उन्होंने बॉल और कॉक को बांध दिया ,चार पांच चक्कर , और इस कस के ,. .
बस मोटा सुपाड़ा खुल कर खुला था।
जैसे गिफ्ट रैप करते हैं न बस वैसे ही उन्होंने एक फूल की तरह गाँठ बाँध दी। खूब कस के।
और अपने दामाद के गाल पे प्यार से हलकी सी चपत लगाते बोलीं ,
" मुन्ना , अब हम कुछ भी करें , तू कुछ भी कर ,. . लेकिन झड़ेगा नहीं। पक्का ,मेरी गारंटी। "
और जैसे अपनी बात के सबूत के तौर पे जोर जोर से मॉम ने उनका खड़ा सुपाड़ा रगड़ा। खूब जोर जोर से ,
उनके दामाद के चेहरे से लग रहा था की बस मस्ती से उनकी हालात खराब हो रही है ,लेकिन
कम तो छोड़िये पृ कम की भी एक बूँद नहीं निकली।
" रात भर तड़पाऊंगी रज्जा लेकिन झड़ने नहीं दूंगी समझे। "
रात भर तड़पाऊंगी रज्जा
और जैसे अपनी बात के सबूत के तौर पे जोर जोर से मॉम ने उनका खड़ा सुपाड़ा रगड़ा। खूब जोर जोर से ,
उनके दामाद के चेहरे से लग रहा था की बस मस्ती से उनकी हालात खराब हो रही है ,लेकिन
कम तो छोड़िये पृ कम की भी एक बूँद नहीं निकली।
" रात भर तड़पाऊंगी रज्जा लेकिन झड़ने नहीं दूंगी समझे। "
मम्मी की आवाज में जो सेक्स था ,और आवाज से बढ़कर उनके मम्मो का जादू ,मम्मी की ब्रा तो उनका मुंह बंद करने के काम में लगी थी।
बस उनके गदराये छलकते जोबन अब इंच भर भी दूर नहीं थे उनके तड़पते होंठो से।
पारदर्शी नाइटी का कवर भी अब खुला हुया था।
कुछ देर में मॉम मेरे साथ फिर पलंग पर बैठगयी थीं
और अब उनकी स्टिलेटो सैंडल फिर से मैदान में आगयी।
मम्मी ने ,क्या कोई मथानी से दही मथेगा ,अपनी दोनों सैंडल के बीच
जिस तरह से उनके पगलाए लन्ड को वो रगड़ रही थी।
और मैं खिलखिला रही थी ,हंस रही थी।
" तुम अब लाख कोशिश करो नहीं झड़ोगे और झड़ोगे तो अपनी मां बहन के भोंसडे में, "
माँ ने अपना फैसला सुनाया।
" चलो एक मौक़ा और ,अगर हम जब ग्रीन सिगनल देंगे तो भी ,जिस किसी के लिए भी ग्रीन सिंगनल देंगे उसी के साथ। "
मैंने हंस के सजा थोड़ी हलकी की
,लेकिन एक बात मुझे कुछ साफ़ नहीं समझ में आयी और मैंने मम्मी के कान में अपना शक जाहिर कर दिया ,
" मम्मी आपकी समधन की बात तो ठीक है , मेरी ननद ,. भोंसडे वाली। वो बिचारी तो अब तक अनचुदी है अपने प्यारे भैया के लन्ड के इंतज़ार में। "
" अरे तो तुझे यहां ले आएगी न ,नथ तो यही उतारेगा लेकिन आठ दस दिन इसके मजा लेने के बाद ,गाँव भेज देना मेरे पास। दस बारह दिन मेरे पास रहेगी न तो , सोलहवें सावन का मजा अच्छे से ले लेगी ,अगवाड़ा पिछवाड़ा सब। "
फिर कुछ देर रुक कर उनकी और देख के मुस्कराते हुए बोलीं ,
" अरे फिर मैंने इसे पांच बच्चो का आशीष भी दिया है वो भी चार साल में , वो भी उसी की बुर से निकलेंगे ,आखिर इस का पुराना माल है , नथ उतारने से थोड़े ही काम चलेगा ,उसे गाभिन भी करना पडेगा न। तो जल्दी ही वो भी हो जायेगी ,. । "
मम्मी चाहे जितना धीमे बोल रही हों ,वो चाहे जितना अनसुनी कर रहे हों , . लेकिन मैं साफ़ समझ रही थी ,कान पारे वो सब सुन रहे हैं।
और यह सब कहते हुए भी मम्मी ने उनके खूंटे को अपनी सैंडल के बीच मसलना नहीं बंद किया और साथ में वो अपनी ४ इंच की हील
कभी कभी उनके सुपाड़े में
गड़ा देती थीं।
और जिस तरह से वो तनतना रहे थे ,सिसकियाँ भर रहे थे ,. ये साफ़ था की उन्हें बहुत मजा आ रहा है।
बाहर हलकी हलकी बारिश शुरू हो गयी।
सावन का मस्त मौसम था।
सावन
बाहर हलकी हलकी बारिश शुरू हो गयी।
सावन का मस्त मौसम था।
" हे इस खिलौने को ज़रा बरामदे में चलते हैं न , थोड़ा झूला झुलाते है। "
मम्मी बोलीं और मम्मी ने उनकी साडी की एक लीश बना के पहले तो उनकी कमर में फंसाया और फिर जो कॉक और बॉल्स में गाँठ बंधी थी उसमें से डाल के ,आलमोस्ट खींचते हुए बाहर बरामदे में ले आयीं।
जहाँ झूला पड़ा हुआ था।
मन तो झूला झूलने का होता था , लेकिन शहर में आम और नीम के दरख्त घर के बाजू में तो होते नहीं न ही अमराइयाँ ,जहां चार पांच हम उम्र लड़कियां ,भौजाइयां झूले की पेंगों के साथ मस्तियाँ कर सकें ,कजरी की धुन के साथ चिकोटियां काट के भाभियों से बीते रात की कहानियां पूछ सकें।
गाँव तो शहर में आता नहीं ,कहीं बहुत दूर ख़तम हो जाता है।
और अब शादी के बाद एक बार जब मैं गाँव गयी तो देखा अब गाँव में भी गांव नहीं रहा।
रहते तो हम लोग लखनऊ में थे ,लेकिन पास में ही मलीहाबाद के पास काफी बड़े आम के बाग़ थे , पुराना मकान था , और साल में एक दो बार मैं भी चली जाती थी ,ख़ास तौर से सावन में ,. वो घर आज कल की जुबान में फ़ार्म हाउस में तब्दील हो गया था। लेकिन मॉम का निज़ाम अब भी पुराने ज़माने वाला था ,सख्त भी ,मुलायम भी। और मॉम भी अब लखनऊ में भी कहां ,. शाम दिल्ली में तो दिन मुम्बई में ,. पर इस के बावजूद आमों के मौसम में वो अभी भी महीने भर तो गाँव में रहती ही थीं।
तीज में यहां भी क्लब में मेहंदी ,झूला ,गाने होते थे ,लेकिन जैसे बचपन में गुड्डे गुड़िया का खेल खेलते थे न बस वैसे ही गाँव गांव ,एकदम आज के बम्बइया फिल्मों की भोजपुरी ,न वो रस न वो मिठास ,न अपनापन।
चलिए कहाँ की बात कहाँ ले पहुंची।
यहाँ झूला बरामदे में पड़ा था ,बस इनसे कह के चुल्ले पे दो रस्सियां डलवा के ,बीच में एक पीढ़ा सा डाल के, बरामदा खूब लंबा सा था ,इसलिए पेंग मारने की जगह भी ,और आँगन सटा था तो बारिश की फुहार ,पुरवाई ,.
मम्मी ने इसे हैमॉक की तरह करवा दिया ,आते ही। वहां से पूरा घर भी नजर आता था।
बस उसी झूले पे इन्हें चढ़ा दिया।
कमरे से निकलने के पहले इनके हाथ पैर तो खुल ही गए थे लेकिन एक बार फिर जैसे ही इनके हाथों ने रस्सी पकड़ी ,वो फिर बांध दिए गए।
बांधे गए अबकी मेरी ब्रा से
और बांधने वाली मैं थी ,एकदम सख्त गांठे।
और मम्मी उनसे उनकी टाँगे उठवाने में लगीं थी।
" टांग उठा ,और ऊंचा जैसे तेरी माँ बहन उठाती हैं न हाँ वैसे ही ,और ,चौड़ा कर और ,और,. अरे छिनारों ने तुझे टांग फैलाना भी नहीं सिखाया , खुद तो झांटे बाद में आयीं ,टाँगे पहले फैलाना शुरू कर दिया ,. "
मम्मी मेरी इनइमीटेबल मम्मी ,असली प्यारी वाली ,. आज पूरे रंग में थीं।
और उन्होंने टाँगे खूब ऊँची ,चौड़ी कर दिया।
बस मम्मी ने झूले की रस्सी से उन उठी फैली टांगो को बाँध दिया।
और एक्जामिन किया ,. लेकिन अभी भी उन्हें कुछ कमी लगी।
पास पड़े केन के सोफे पर के सारे कुशन वो उठा लायीं ,
और जैसे कोई मरद ,
गौने की रात अपनी नयी नवेली दुल्हन के चूतड़ के नीचे ,बिस्तर पर के सारे तकिये लगा के ऊंचा उठा दे ,जिससे मोटा लौंडा भी वो घचाक से घोट सके ,बिलकुल वैसे।
और अब उनके चूतड़ एकदम हवा में उठे थे , दूर से भी दिख रहे थे।
लेकिन मॉम का काम इससे भी ख़तम नहीं हुआ।
इधर उधर बिना मुझसे कुछ बोले ,वो कुछ ढूंढती रही और उन्हें मिल भी गया।
एक लंबा मोटा सा डंडा ,
बस वो उन्होंने उनके खुले पैरों और झूले की रस्सी से ऐसे बाँध दिया की बस ,
अब वो लाख कोशिश कर लें, पैर उनके ऐसे ही खुले रहने वाले थे।
मैं प्यार से उनके बाल बिगाड़ रही थी ,सहला रही थी।
और मम्मी भी , उनकी प्यारी प्यारी लम्बी लंबी गोरी नटखट उँगलियाँ ,
उनके मोटे तड़पते छटपटाते खूंटे के 'बेस' को सहला रही थीं ,छू रही थीं , रगड़ रही थीं।
कभी मम्मी का अंगूठा उनके मांसल सुपाड़े को दबाता तो कभी घिस देता ,
और अचानक ,
मॉम के लंबे तीखे नाखूनों ने , खूब जोर से सुपाड़े पे खरोंच लिया।
पैंटी का गैग उनके मुंह में ठूंसे होने के वावजूद , हलकी सी चीख निकल गयी।
और मैंने भी साथ में, आखिर मम्मी के दामाद थे तो मेरे मेरे भी तो साजन थे , मेरी छिनार ननदिया के बचपन के यार ,
मेरे होंठ जो उनकी चौड़ी छाती पे प्यार से टहल रहे थे ,चूम रहे कभी जीभ की नोक से उनके निप्स को हलके से फ्लिक करते थे ,
उनके निप्स भी उनकी छुटकी बहिनिया की तरह एक दम टनटना रहे थे।
और अचानक ,
मैंने भी , कचकचा के उनके निप्स को काट लिया , हलके से नहीं पूरी ताकत से।
दर्द से वो बिलबिला उठे।
कभी नीम नीम ,कभी शहद शहद
कभी वो मजे से पागल हो उठते तो कभी दर्द से।
मेरी और मम्मी दोनों की जुगलबंदी चल रही थी साथ साथ।
ऊपर का हिस्सा मेरे जिम्मे ,नीचे का उनके हवाले।
लेकिन उन्हें कैसे लग रहा था , उनकी हालत का असली अंदाज उनके खूंटे के कड़ेपन से लग रहा था।
इतना कड़ा ,इतना तगड़ा तो मैंने उसे तब भी नहीं देखा था जब उन्होंने वियाग्रा की डबल डोज ली थी।
और मम्मी की हरकते रुकने का नाम नहीं ले रही थी , उनकी उँगलियाँ ,उनके नाख़ून हर बार तड़पाने के नए तरीके ढूंढ़ रहे थे।
उनके नाख़ून कभी उनके पी होल में तो कभी उनके बॉल्स को स्क्रैच कर लेते ,
कभी वो मुट्ठी में उनके बॉल्स को लेके जोर से मसल देती ,
कभी हलके से उनके बौराये पगलाये लन्ड पे चपत लगा देतीं।
मैं मम्मी की हरकतें देख रही थीं।
मम्मी ने मुझे देखते हुए देखा तो मुस्करा के दूर हट गयीं , जैसे कह रही हों अब तेरी बारी।
मैंने एक जोर का झटका दिया और काले काले बादलों ने चाँद को घेर लिया।
मेरे लंबे घने बाल खुल गए।
और फिर मेरे बालों ने अपना जादू दिखाना शुरू कर दिया , पहले तो हलके हलके उनके तड़पते खूंटे को मैं और तड़पाती रही ,फिर उससे बांधकर , कस के ,. . आगे पीछे ,.
पूरे दस मिनट तक ,
आज तक इस ट्रिक से वो पांच छ मिनट में ही ,लेकिन आज
और आधे घंटे से ऊपर हो गए थे मुझे और मॉम को उन्हें तंग करते छेड़ते ,उसके बाद मेरे काले बालों का ये जादू ,
,.
लेकिन मैं छोड़ने वाली नहीं थी उन्हें इतनी आसानी से ,इत्ता मस्त खड़ा लन्ड हो और ,.
थोड़ी देर मेंरे होंठ उनके सुपाड़े पर सपड़ सपड़ और फिर उसके बाद ,
टिट फक ,.
वो तड़प रहे थे ,मचल रहे थे , अपने चूतड़ पटक रहे थे , पर,.
बांसुरी ऐसे ही मस्त कड़ी थी ,
अब मुझे समझ में आया सी बी टी का असली मजा उनकी लन्ड की ताकत के साथ जो मम्मी ने गाँठ लगाई थी ये उसी का नतीजा था।
मम्मी नेकहा भी तो था , तू चाहे जो कुछ भी कर ले अब ये झड़ने वाला नहीं।
ये तो किसी भी लड़की के लिए एक सपना हो सकता है , एक लंबा खूब मोटा कड़क लन्ड ,जो तब तक न झड़े वो जब तक न चाहे।
मैंने मम्मी की ओर मुस्करा के देखा और उन्होंने भी मेरा मतलब समझ के, न वो सिर्फ मुस्करायीं ,बल्कि जोर से आँख मार के उन्होंने मुझे अपने पास बुला भी लिया। बांहों में मुझे भींच के बोलीं ,
" अब इस छिनार की नथ उतारने का समय आ गया है। बहुत तड़प रही है बिचारि। "
"एकदम मम्मी लेकिन ज़रा अपने इस माल को ठीक से देख तो लीजिये। " मैंने टुकड़ा लगाया।