Episode 27
मम्मी को थोड़ा पसीना आता भी ज्यादा था। पसीने से उनका पतले कपडे का ब्लाउज एकदम उनके उभारों से चिपक गया था। और वैसे भी वो बहुत ज्यादा झलकउवा था , 'सब कुछ ' दिख रहा था।
गोरे गोरे गुदाज मांसल उभार ,एकदम ब्लाउज से चिपके, मम्मी की शियर पारदर्शी लेसी हाफ कप स्किन कलर की ब्रा कुछ भी छिपा ढँक नहीं पा रही थी।
न सिर्फ उनके इंच भर के कड़े मस्त निपल साफ़ साफ दिख रहे थे ,बल्कि चारो ओर का ब्राउन गोल गोल अरियोला भी खुल के झलक रहा था।
और इसी एक झलक के लिए तो वो कब से बेचैन थे।
और इस गर्मी में एक अलग तरह की गर्मी 'उन्हें ' बेचैन कर रही थी ,
फिर देह गंध ,पसीने की , रूप के नशे की ,.
उनके होंठ कांख से सरक कर बूब्स के खुले साइड के हिस्से पे आ चुके थे, कभी जीभ से वो मम्मी की गोरी गोरी चूंची की साइड पे वो फ्लिक करते तो कभी चाट लेते।
मम्मी ने उनका एक हाथ पकड़ के जैसे सहारे के लिए अपने दूसरे बूब्स के ऊपर रख दिया था
और अपने इरादे को एकदम साफ़ करने के लिए उनकी हथेली को सीधे अपने निपल के ऊपर रख कर खुल के दबा भी रही थीं।
हिम्मत पा कर के उनकी नदीदी उँगलियाँ ,मम्मी के खूब गहरे लो कट ब्लाउज के झरोखे से ,
क्लीवेज को अब खुल के छू रही थीं।
लेकिन सिर्फ वही नहीं ,मम्मी भी अब खुले खेल पे आगयी थीं।
उनका बोनर ,पगलाया ,बौराया मम्मी की साडी बनी लुंगी से बाहर आ चुका था और अब मम्मी की मुट्ठी में कैद था
एक झटके में मम्मी ने कस के मुठियाया और उनका मोटा मांसल सुपाड़ा बाहर।
खूँटा मम्मी की पकड़ से बाहर निकल आया लेकिन मम्मी का हमला अब सीधा और तेज हो गया था।
मम्मी ने अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उनके सुपाड़े को जोर से दबोच रखा था और उसे रगड़ मसल रही थीं।
कुछ देर बाद उनका बड़ा शार्प नाख़ून सीधे उनके बॉल्स से शुरू हो के ,कड़े तने मांसल खूंटे के निचले भाग को रगड़ता खरोंचता सीधे पेशाब के छेद तक
और अब साथ में ,टिपिकल मम्मी उवाच ,
" बहन के भंडुए खूँटा तो खूब मस्त खड़ा किया है।
देख बहुत जल्द जाएगा ये तेरी माँ के भोंसडे में,
हचक हचक के चोदना उसके भोंसडे को ,
अरे बहुत रस है उस के भोंसडे में , बोल बहनचोद मन कर रहा है न माँ के भोंसडे को चोदने का , . "
उन का मुंह तो मम्मी की पसीने से भीगी कांख और साइड से खुले बूब्स के बीच फंसा ,दबा था ,
लेकिन जो उनके मुंह से आवाजें निकली तो उसे सिर्फ हामी ही कहा जा सकता है।
वैसे भी मम्मी के सामने हामी के अलावा वो कुछ सोच भी नहीं सकते थे।
और अब मम्मी खुल के उनके तन्नाए लन्ड को मुठिया रही थीं। और साथ में ,
" अरे घबड़ा मत ,जल्द ही जिस भोंसडे से निकला है न उसी में घुसड़वाउंगी।
और अपने सामने। हचक के पेलना दोनों चूंची पकड़ के। बहुत मजा आएगा ,कोई ना नुकुर नहीं समझे मादरचोद। अरे मादरचोद होने का मजा ही अलग है ,मेरे मुन्ने को सब मजा दिलवाऊंगी ,बहन का माँ का। "
मम्मी का दूसरा हाथ भी खाली नहीं बैठा था , वो उनके खुले सीने पे उनके निपल के चारो ओर ,उनकी तर्जनी हलके हलके सहलाते बहुत प्यार से धीरे धीरे जैसे नयी लौंडिया को पटाने के लिए उसके नए आये अंकुर के चारो ओर हलके सहलाये, बस उसी तरह ,. . और अचानक जोर से मम्मी ने उनके निपल को स्क्रैच कर दिया।
ये बात मुझे भी मालुम थी और मम्मी को भी कि ,उनके निपल किसी नयी जवान होती लौंडिया से कम सेंसिटिव नहीं है।
दूसरा हाथ जो मुठिया रहा था जोर जोर से ,
एक बार फिर खूंटे को खुला छोड़ के नीचे बॉल्स पे ,हलके से सहलाते सहलाते उन्हें उसे जोर से दबा दिया और एक बार फिर नाख़ून फिर बॉल्स के पीछे पिछवाड़े के छेद तक स्क्रैच कर रहा था और वापस वहां से खूँटा जहाँ बॉल्स से मिलता है , उस जगह को पहले खूब जोर से दबाया और फिर लंबे शार्प नाख़ून से लन्ड के बेस से लेकर सुपाड़े तक स्क्रैच करते ,
" बोल चोदेगा न अपनी माँ को ,इसी मस्त लन्ड से उसके भोंसडे को , बोल ,बोल चढ़ेगा न उसके ऊपर , चोदेगा न अपनी माँ के भोसड़े को "
और अबकी साफ़ साफ़ जवाब सुनने के लिए मम्मी ने उनके सर को आजाद कर दिया अपनी कांख और उभारों के बीच से ,
और खुल के बोला भी उन्होंने ,
" हाँ मम्मी चोदूँगा। "
लेकिन मम्मी के लिए इतना काफी नहीं था। जब तक अपने दामाद से अपनी समधन के लिए खुल के वो गाली न सुन ले ,
" अरे मुन्ने खुल के बोल न ,किस के भोंसडे को चोदेगा,बोल साफ़ साफ़। "
मम्मी ने जोर से उनके खूंटे को दबाते पूछा।
और मेरे कान को विश्वास नहीं हुआ ,उन्होंने एकदम खुल के बोला लेकिन उनकी आवाज कुछ कुछ घंटी में दब गयी।
बेल दुबारा बजी।
" मंजू बाई होगी ,आज दोपहर से वो काम पे आने वाली थी। "
बिजली भी आगयी , पंखा फिर से चलने लगा।
" अरे मुन्ने खुल के बोल न ,किस के भोंसडे को चोदेगा,बोल साफ़ साफ़। " मम्मी ने जोर से उनके खूंटे को दबाते पूछा।
और मेरे कान को विश्वास नहीं हुआ ,उन्होंने एकदम खुल के बोला लेकिन उनकी आवाज कुछ कुछ घंटी में दब गयी।
बेल दुबारा बजी।
" मंजू बाई होगी ,आज दोपहर से वो काम पे आने वाली थी। "
बिजली भी आगयी , पंखा फिर से चलने लगा।
मैंने जाके दरवाजा खोला ,
आगे आगे मंजू बाई ,पीछे पीछे मैं।
अंदर हालात बदल गयी थीं लेकिन कोई भी देख के कुछ देर पहले मचे तूफ़ान का निशान साफ़ साफ़ दिख रहा था।
मम्मी ने उनका खूँटा भले ही अंदर कर दिया हो तोप ढँक दिया हो ,लेकिन वो वैसा ही बौराया ,भूखा पगलाया खड़ा था।
वो और मम्मी एकदम चिपके बैठे थे।
मम्मी का हाथ बड़े अधिकार पुर्वक उनके कंधे पर था उन्हें अपनी ओर खींचे ,चिपकाये हुए।
आँचल अभी भी मम्मी का लुढ़का पुढका था ,और उनकी ललचायी निगाहे दोनों पहाड़ियों के बीच ,गोरी मांसल गुदाज घाटी में चिपकी।
मंजू बाई
मंजू बाई ,.
३५ -३६ की उमर ,लंबा चौड़ा खूब भरा शरीर , रंग गोरा नही तो ज्यादा सांवला भी नहीं , बस हल्का सा सलोना सांवला।
खूब गठी देह ,जैसे काम करने वालियों की होती हैं , कसी कसी पिंडलियां , दीर्घनितम्बा ,
छातियाँ भी बड़ी बड़ी लेकिन एकदम कठोर ठोस,
मम्मी को वो पहचानती थी। उनसे दुआ सलाम कर के मुझसे बोली ,
" बहूजी आज सुबह ही आयी हूँ , अपनी बेटी गीता को भी साथ ले आयी हूँ उसकी ससुराल से वापस , . "
उसकी बात मैं काटती ,अचरज से बीच में बोली,
" पर गीता को, तुम तो कह रही थी . उसे एक महीने पहले ही बच्चा हुआ है , . तो इतनी जल्दी ,. ससुराल से। "
" अरे बहू जी उसका मरद तो पंजाब चला गया कमाने ,साल दस महीने में एक बार कभी आता है ,कभी वो भी नहीं। और ऊपर से गीता की सास ,छिनाल खुद तो पूरे गाँव को चढ़ाती है अपने ऊपर ,पंचभतारी ,इस उमर में भी दबवाने मिसवाने में ,नैन मटक्का करने में शरम नहीं ,. "
" सही कहती है तू सारी सासें आजकल ऐसी ही होती है बहुओं की , " उनकी ओर देख के मुस्करा के मैं बोली।
जिस तरह से उन्होंने ब्लश किया ,मम्मी भी समझ गयीं और मन्जू बाई भी की मेरा इशारा किधर है। मंजू बाई ने अपनी बात जारी रखी
" और गीता की सास से भी दो हाथ आगे गीता की ननद है।
करमजली अपने ससुराल से झगड़ा करके आ गयी है और असल बात ये है की गाँव के सारे लौंडों से फसी है वो ,भैय्या भैय्या बोलती है और सबके सा,थ गन्ने के खेत में कबड्डी खेलती है। माँ बेटी दोनों नम्बरी छिनार , और गीता की ननद ,मेरी बेटी का नाम धरती है। गीता की सास मुझसे बोलने लगी , तुझे बेटी को ले जाना हो तो ले जाओ लेकिन मैं बच्चे को नहीं ले जाने दूंगी। तो मैं भी बोली की रखो तुम बच्चे को और मैं गीता को ले आयी। "
फिर कुछ रुक कर वो बोली ,
"बहू जी मुझे मालुम है मैं इतनी दिन नहीं आयी ,आप को कितनी तकलीफ हुयी होगी ,. लेकिन "
अबकी उस बात मम्मी ने काटी। इनके चिकने गाल पे प्यार से हाथ फिराते बोलीं ,
" अरे कोई तकलीफ नहीं हुयी ,मंजू बाई। ये था न ,झाड़ू पोंछा ,बर्तन सब कुछ इसी के जिम्मे था ,हाँ थोडा नौसिखिया है तो तू आगयी है तो कुछ सिखा विखा देना इसको "
मंजू बाई की निगाह इनकी पर ,बल्कि उन्होंने जो साडी पहनी थी मम्मी की लुंगी बना के और उससे भी बढ़कर ,.
उसमें तने तंबू के बम्बू पर गयी।
और वहीँ अटक गयी।
तंबू तना भी जबरदस्त था।
मम्मी ने मंजू बाई को इशारे से अपने पास बुलाया और पर्स से ५०० का नोट निकाल कर दिया।
वो ना ना करती रही ,लेकिन पहले तो मम्मी ने मंजू बाई के कान में कुछ फुसफुसाया , फिर बोलीं ,
" अरे तेरी बेटी के पहलौठा बच्चा हुआ है न तो उसके दूध पीने के लिए। "
मंजू बाई ने वो नोट पहले तो माथे पर लगाया , फिर झुके झुके ही अपनी चोली में खोंस लिया।
मंजू बाई की कसी चोली से दोनों बड़े बड़े उभार बाहर छलक रहे थे।
और इनकी लालची निगाह दोनों छलकते उभारों पर ,बीच की गहराई में धंसी , फंसी।
लेकिन मम्मी की निगाह से इनकी चोरी कैसे बचती , उन्होंने मंजू बाई से इनकी ओर इशारा कर के पूछ लिया ,
" सुन तू मेरी बेटी को बहू कहती है तो फिर ,. तेरी बेटी इसकी क्या लगेगी। "
मंजू बाई इशारा समझ गयी थी , मुस्करा के इनकी ओर देख के बोली ,
" बहन लगेगी ,और क्या। "
और फिर अपने बड़े बड़े उभार छलकाते हुए पल्लू खोंस लिया।
( गीता ,मंजू बाई की बेटी ,देह तो मंजू बाई ऐसे थी खूब भरी भरी थी ,गदरायी लेकिन रंग एकदम गोरा चम्पई था ,जैसे कोई दूध में केसर डाल दे।
एक बार मैंने मंजू बाई से , वो पोंछा लगा रही थी , को चिढाते हुए पूछा भी ,मंजू बाई तेरा रंग तो ,. . और तेरी बेटी एकदम चिट्टी। मुस्करा के वो बोली ,इसका बाप बहुत गोरा था ,रंग बाप पे गया है। मैंने फिर पूछा तेरा मर्द तो। हंसते हुए उसने फिर साफ़ साफ बोला ,अरे बहू जी आप तो समझती हो ,मेरा मरद नहीं ,इसका बाप )
और जैसे ही वो मुड़ी तो इनकी निगाह उसके दीर्घ नितंबों और बीच की दरार पर।
मंजू बाई कुछ अपने मोटे मोटे ३८++ चूतड़ मटका भी ज्यादा रही थी।
मम्मी ने फिर उसे रोक के बोला ,
" अरे मंजू बाई ज़रा तू इनको भी कुछ काम वाम सिखा दे न ,अब कभी तुम नहीं आओगी तो सब काम इसे ही तो करना पड़ता है न। "
और फिर इनसे भी मम्मी बोलीं ,
" जा सब सीख ले ठीक से ,मंजू बाई सिखा देंगीं। और तू हेल्प करा देगा तो काम भी जल्दी निपट जाएगा। "
जैसे ही ये उठे मंजू बाई के पास जाने के लिए ,मम्मी ने हलके से आँख मारते हुए उनसे धीरे से बोला ,
" ग्रीन सिग्नल ".
इससे बड़ी ख़ुशी की बात इनके लिए क्या हो सकती थी।
चेहरे पर से ख़ुशी एकदम छलक रही थी और खूँटा अलग एकदम तन्नाया हुआ।
वो मंजू के बाई पास पहुंचे ही थे ,की मम्मी ने फिर बोला ,
" अरे ज़रा अच्छी तरह सब काम सिखा देना ,झाड़ना ,पोंछना , रगड़ रगड़ के ,. और अगर ये न सीखे न . . तो जबरदस्ती भी कर सकती हो तुम ,सिखाने के लिए। "
मम्मी का इशारा एकदम साफ़ था।
और मंजू बाई भी ,उसने एकदम मालिकाना अंदाज में अपनी हथेली इनके पिछवाड़े रखते , मुड़ के मम्मी की ओर देखते हुए बोला ,
" एकदम आप चिंता न करिये सब सीखा दूंगी। झाड़ना ,पोंछना सब ,. "
और उन्हें हलके से पुश करते हुए किचेन की ओर चली।
तब तक मुझे एक शरारत सूझी , मैंने मम्मी को याद कराया।
" अरे मम्मी कल रात अपने इतने प्यार से इनका एक घर में पुकारने का नाम रखा था लेकिन अब तक एक बार भी उस नाम से उन्हें पुकारा नहीं ,कितना बुरा लग रहा होगा उन्हें न। "
मम्मी तुरंत समझ गयी और उन्हें बुलाया ,
" सुन बहनचोद ,. . "
और अब मंजू बाई के चौंकने की बारी थी।
वो आश्चर्य से मेरी ओर मुंह कर के देख रही थी।
" अरे मंजू बाई , ये इनके प्यार का नाम है। घर में पुकारने का नाम। इनकी सास ने बड़े प्यार से इनका ये नाम रखा है। अब घर में हम सब लोग इन्हें इसी नाम से बुलाएंगे। "
सब लोग पर जोर देने से मंजू बाई अच्छी तरह समझ गयी।
उधर इनकी सास इन्हें समझा रही थीं ,
" सुन बहनचोद , अभी हम लोग शापिंग के लिए जा रहे हैं। दो तीन घंटे के बाद ही लौटेंगे। तब तक तुम मंजू बाई की सब बाते मानना ,एकदम ध्यान से , जो जो ये सिखाये एकदम अच्छी तरह सीखना। रगड़ रगड़ के बरतन चमकाने ,किचेन के सब काम के साथ हर जगह झाड़ू , . अंदर तक झड़वाना इससे मंजू बाई ,. डस्टिंग ,हर जगह ,. कोई जगह बचनी नहीं चाहिए ,. . और मंजू बाई तुम अपने सामने ,. . "
" एकदम ,. आप लोग जाइये ,सब चीज अच्छी तरह सिखा दूंगी। अब आपने मुझे ये काम सौपा है तो ,. आप लोग आराम से लौट के आइये। आप के आने तक एकदम चमाचम मिलेगी,सब चीज । "
मंजू बाई ने बात काट के हामी भरी। मंजू बाई का हाथ अभी भी उनके पिछवाड़े ही था।
मैं और मम्मी घर के बाहर निकल रहे थे की मैं अपने को रोक नहीं पायी , दरवाजे से ही मैंने हंकार लगाई ,
" अरे बहनचोद ,ज़रा आके दरवाजा बंद कर दे न। "
मम्मी कार में बैठ चुकी थीं।
जब वो दरवाजा बंद करने आये तो उनके होंठो पे एक हलकी सी चुम्मी लेते मैंने उनके कान में बोला
" ग्रीन सिग्नल "
मंजू बाई की सीख
हम लोग शापिंग कर रहे थे और मंजू बाई उन्हें 'सिखा ' रही थी।
उन्होंने सोचा था की बस वो देखेंगे और मंजू बाई सब काम करेगी ,बहुत होगा तो उन्हें कुछ बता समझा देगी ,या फिर थोड़ा बहुत हाथ बंटाना ,
लेकिन यहाँ एकदम उलटा हो रहा था।
सब काम उन्हें ही करना पड़ रहा था ,उलटे मंजू बाई हड़का अलग रही थी।
वो डिशेज साफ़ कर रहे थे और मंजू बाई ,.
" क्या कैसे कर रहे हो , ठीक से साफ़ करो रगड़ रगड़ के ,. . क्या सब ताकत तेरी बहन ने चूस ली?"
उन्होंने कुछ और ताकत लगाई लेकिन मंजू बाई को नहीं जमा , वो बोली ,
" अच्छा चल आती हूँ मैं ,कर के दिखाती हूँ तुझे , "
और फिर मंजू बाई ने अपना आँचल अपनी कमर में लपेट के पेटीकोट में खोंस लिया।
दोनों गद्दर ब्लाउज फाड़ जोबन , खूब कड़े कड़े ,एकदम इनकी आँखों के सामने। पतले ब्लाउज में उभार कटाव ,कड़ापन सब दिख रहा था। ब्रा वो पहनती नहीं थी।
एकबार फिर इनका 'कुतुबमीनार ' तन के खड़ा हो गया। ब्रा वो कभी नहीं पहनती थी लेकिन उसके उभार आँचल में छुपे ढके रहते थे और जब पल्लू उसने कमर में लपेट लिया तो फिर सब कुछ साफ़ साफ़ ,.
मंजू बाई एकदम इनसे सट के चिपक के खड़ी हो गयी।
कनखियों से वो इनका उठा हुआ तंबू देख रही थी ,लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी।
मंजू बाई के उभारों का जो इनके खूंटे पे असर हुआ वो सब साफ़ समझ रही थी, कोई नौसिखिया तो थी नहीं ,
ऐसे खेलों की पुरानी खिलाडन थी।
वो एक कटोरी साफ़ कर रहे थे।
झुक के अपने उभार की नोक उनके एक हाथ से रगड़ते मंजू बाई बोली ,
" अरे कैसे अपनी बहिनिया की कटोरी में ऊँगली डालते हो ,दो अंदर एक बाहर ,. हाँ बस वैसे ही , . ठीक बस ,. अब ज़रा रगड़ रगड़ जैसे , . अपनी छुटकी बहिनिया की कटोरी में ऊँगली डाल के ,. हाँ जोर जोर से मांजो , देखो चमक जायेगी। जैसे तेरी बहन का चेहरा चमक जाता होगा न तेरी ऊँगली से , . हाँ बस वैसे ही। देख चमक गया न। अरे मेरे मुन्ने तू बहुत जल्द सीख जाएगा , बस चुपचाप मेरी बात मानता रह। "
मंजू बाई का एक उभार उनकी पीठ से रगड़ खा रहा था बार बार और नल खुला हुआ था ,तेज धार से छर छर ,. . उसकी बूंदो से मंजू बाई का ब्लाउज भी थोड़ा गीला हो गया था।
एकदम उसके जोबन से चिपक गया था। अब न सिर्फ उभार ,कटाव और कड़ापन ही दिख रहा था बल्कि ब्लाउज के अंदर का पूरा नजारा।
खड़ा खूँटा उनका और टनटना गया था।
ये बात मंजू बाई से छिपी नहीं थी।
" अरे चल जल्दी जल्दी कर बहुत काम करवाना है तुझसे अभी ,"
वो बोली और मंजू बाई के इस डबल मीनिंग डायलाग का और गहरा असर उनके ऊपर पड़ा।
मंजू बाई अब खुल के उनके लुंगी फाड़ते खूंटे की ओर देख रही थी ,बिना किसी झिझक ,हिचक के।
बर्तन वो मांज चुके थे तो मंजू बाई बोली ,
"चल रगड़ना सीख लिया न , अच्छी तरह से। अब धुलवाउंगी बाद में ,धुलना भी सीखा दूंगी ,लेकिन चल पहले झाड़ू उठा। आज झाड़ना तेरा काम है और झड़वाना मेरा अच्छी तरह समझ ले। "
वो दोनों लोग किचेन से निकले ,मंजू बाई ने उनके हाथ में झाड़ू पकड़ा दी थी।
जितना असर उनके ऊपर मंजू बाई के बूब्स का हो रहा था उतना ही उसके डबल मिनिग बातों का भी , ' झाड़ना ' और ;झड़वाना' से मंजू बाई का क्या मतलब है वो अच्छी तरह समझ रहे थे।
सबसे पहले बैडरूम से उसने शुरू कराया और साथ में ही हड़काना ,
" अरे ज़रा ताकत लगा के , कस के झाड़ ने। तेरी बहन ने क्या सारी ताकत निचोड़ ली है जो इतना , . अरे आगे पीछे सब झड़वाउंगी मुन्ने तुझसे , अभी बहुत ,. "
फिर बिस्तर के नीचे भी ,
" अरे अंदर भी , अंदर डाल के ,क्या बाहर बाहर मजा आएगा। पूरा अंदर डाल के झाड़ो ,कोई कोना बचना नहीं चाहिए। अरे मायके में क्या ऐसे ही ऊपर झापर झाड़ के काम चला लेते थे ,कुछ सिखाया नहीं तेरी माँ बहनों ने ,कैसे पूरा अंदर डाल डाल के। . चल कोई बात नहीं मैं हूँ न सब सीखा दूंगी अपने मुन्ने को अच्छे से झाड़ना ,झड़वाना सब। "
वो झुक कर झाड़ू लगा रहे थे , हिप्स उठे हुए। मंजू बाई ने प्यार से उनके उठे हिप्स पे एक चपत लगाते कहा।
लेकिन साथ ही साथ उनकी लुंगी बनी साडी भी उसने उठा दी ,ऑलमोस्ट कमर तक और छल्ले की तरह लपेट दी।
" ऐसे ही हाँ अरे मुन्ने मुझसे क्या शर्मा रहा है ,. हाँ और ,थोड़ा और चूतड़ ऊपर उठा , अरे बचपन में सारे लौंडेबाज तेरी चिकनी गांड मारने के लिए जैसे घोड़ी बनाते होंगे न बस वैसे ही उठा हाँ अब ठीक, ऐसे पूरा जोर लगेगा अंदर तक झाड़ने में। "
दोनों जाँघों के बीच हाथ डाल के जब मंजू बाई ने उनके चूतड़ ऊपर करवाये तो ,मंजू बाई की उंगलिया सिर्फ उनके चूतड़ से ही नहीं बल्कि तन्नाए खूँटे से भी रगड़ खा गयी.
' हथियार तो जबरदस्त है ,भूखा भी है और बौराया भी "मंजू बाई समझ गयीं थी।
और बेडरूम करने के बाद जब वो निकलने लगे तो मंजू बाई सामने खड़ी , अभी भी मंजू बाई ने आँचल कमर में खोंस रखा था इसलिए मंजू बाई की दोनों 'चोटियां ' सीधे उनके मुंह के सामने ,
" अरे मुन्ना मेरे कहाँ निकले अभी बाथरूम बाकी है न। सब कमरा बोला था न और वहां तो एकदम चमाचम होना चाहिए न। "
मंजू बाई ने उनको पकड़ कर बाथरूम की ओर ठेल दिया।
वो बाथरूम का दरवाजा खोल ही रहे थे की एक आवाज ने उन्हें रोक दिया।
रेफ्रिजरेटर का दरवाजा खुलने की आवाज ,.
एक बडा सा लाल एपल , कश्मीरी ,मंजू बाई ने निकाल लिया था।
उन्हें दिखाते हुए दांत से एक बड़ी सी बाइट मंजू बाई ने काटी और मुस्करा के बोली ,
" तुझे भी मिलेगा , अरे मुन्ना काम कर पहले। मालुम है मुझे मुन्ना बहुत भूखा है ,
दूंगी अभी सब दूंगी लेकिन चल पहले काम कर और हाँ , . "
कमोड की ओर इशारा कर के बोलीं ,
" इसे अच्छी तरह चमकाना ,एकदम सफ़ेद ,कोई दाग वाग नहीं ,ऊँगली से चेक कर लेना। मैं आके अभी चेक करुँगी ,चल काम शुरू कर। "
उन्होंने बाथरूम धोना ,साफ़ करना शुरू कर दिया और मंजू बाई ,बाथरूम के दरवाजे पे ऐपल की बाइट लेती ,
जब उन्होंने सब काम ख़तम कर लिया तो मंजू बाई अंदर आई और अपने हाथ से उनके मुंह में ऐपल की एक बाइट बड़ी सी दी और फिर मंजू बाई ने उन्हे ऐपल पकड़ाया ,
लेकिन एक पल के लिए वो झिझके ,
" गन्दा है हाथ। "
हलके से हाथ की ओर इशारा करते वो बोले पर मंजू ने हड़का लिया ,
" अरे कुछ गन्दा नहीं होता ,चल पकड़ " जोर से वो बोली ,और उन्होंने अधखाया ऐपल पकड़ लिया।
झुक के मंजू बाई ने अंदर तक चेक किया , सब चमाचम।
"एक बाइट और ले के मुझे दे दे"
अब उनकी झिझक ख़तम हो गयी थी। एक बाइट लेकर ऐपल उन्होंने मंजू बाई को पकड़ा दिया।
और उसके पीछे हाल में वो ,
आगे आगे मंजू बाई ,
उसके कसर मसर करते बड़े बड़े कसे चूतड़ ,उनके बीच की साफ़ दिखती दरार ,.
हालत उनकी खराब हो रही थी।
मंजू बाई सब समझ रही थी और उसने और आग में घी डाला , मुड़ के उनकी ओर देख के जीभ निकाल के चिढा दिया फिर जीभ से अपने मोटे मोटे होंठ चाट लिए।
" चल शुरू कर , . " मंजू बाई ने हाल में पहुँचते बोला।
एक बार वो फिर झुके हुए ,पिछवाड़ा खूब ऊपर हवा में , साडी एकदम ऊपर चिपकी , अंदर घुस घुस के झाड़ू लगाते।
मंजू बाई बार बार उनके अधखुले पिछवाड़े में अब खुल के हाथ लगाती ,पुश करती तो कभी सीधे बीच की दरार में ऊँगली डाल के जोर से रगड़ देती।
थोड़ी देर में आधा हाल ही हो पाया था की मंजू बाई की पीछे से आवाज आयी ,
" अच्छा चल उठ ऐसे तो बहुत टाइम लग जाएगा। "
जब वो मुड़े मंजू बाई की ओर ,उन्हें लगा शायद गुस्से में बोल रही लेकिन वो मुस्करा रही थी।
उनकी ओर बचा हुआ अधखाया सेब दिखा के उसने पूछा ,
" बोल चाहिए "
बोल चाहिए
" बोल चाहिए "
लेकिन जिस तरह से उसने आँखे नचाके , अपने मस्त उभारों को और उभार के ये सवाल पूछा था ,ये मुश्किल था समझना की वो सवाल अधखाये सेब के लिए पूछ रही है अपने गदराये जोबन के लिए ,
" बोल न चाहिए ,मुंह खोल के बोल तभी दूंगी। "
हंस के वो बोली।
" हाँ चाहिए " बस उनके मुंह से निकल गया।
"लालची ,देती हूँ। "
और बचा खुचा सेब मंजू बाई ने एक बारगी ही अपने मुंह में पुश कर दिया ,सब का सब मुंह के अंदर और कुछ देर तक चुभलाती रही।
फिर जब तक उन्हें कुछ समझ में आये ,मंजू बाई ने कस के उन्हें अपनी बांहों में जकड लिया।
ब्लाउज फाड़ते मंजू बाई के बड़े बड़े कड़े कड़े उरोज अब सीधे बरछी की तरह उनकी छाती में धंस रहे थे।
मंजू बाई अपने बंद होंठ उनके होंठो पे रगड़ रही थी और साथ में मंजू बाई का एक हाथ उनके नितंबों पे कस के दबोचता , उंगली उनके मांसल मुलायम नितंबों में धंसाता ,
और फिर मंजू बाई की मोटी रसीली जीभ सीधे जबरदस्ती उनके मुंह को खोलती अंदर ,
जैसे किसी कुँवारी तड़पड़ाती ,छटपटाती कच्ची कली की बंद चूत में जबरदस्ती मोटा लन्ड पेल दे।
उनके होंठ खुल गए थे और मंजू बाई के भी।
अधखाया , थूक में लिसड़ा , जूठा ,कुचा कुचाया , सेब के टुकड़े मंजू बाई के मुंह से सीधे उनके मुंह में।
मंजू बाई की जीभ ठेल रही थी ,एक एक अधखाया सेब का टुकड़ा सीधे उनके मुंह में साथ में मंजू बाई का सैलाइवा ,
चूमने चूसने और उनके सीने पर अपने जोबन जोर जोर से रगड़ने के साथ , अब मंजू बाई की जाँघे भी चारो ओर से ,
उसका भरतपुर , सीधे उनके खड़े खूंटे को रगड़ता ,दरेरता।
उन्होंने अपने को पूरी तरह मंजू बाई के हवाले कर दिया था।
चार पांच मिनट तक ,
और उस के बाद जैसे ही मंजू बाई ने उन्हें दबोचा था वैसे ही छोड़ दिया ,हाँ छोड़ने के पहले उसने ढेर सारा सैलाइवा इनके मुंह पे गाल पे लपेट दिया।
,
और दूर खड़ी हो के एक पल मुस्कराती रही ,फिर आँख नचा के बोली।
" थोड़ी देर तुम ने झाड़ लिया ,अब मैं झाड़ती हूँ ,दोनों मिल के ,. तो फिर जल्दी हो जाएगा , वरना तो वैसे बहुत टाइम लगेगा। मैं झाड़ती हूँ तू डस्टिंग कर ले बस फटाक से हो जाएगा। "
और ये कह के मंजू बाई ने उनके हाथ से झाड़ू ले लिया , और झुक के ,. झुकने के पहले उसने अपनी साड़ी पेटीकोट एडजस्ट किया ,ऊपर सरकाया खूब ऊपर।
न सिर्फ उसकी मांसल कसी कसी पिण्डलियां दिख रही थीं बल्कि केले के तने ऐसी चौड़ी ,चिकनी ,मखमली जाँघों का भी काफी हिस्सा।
वो झुक के झाड़ू लगा रही थी लेकिन इनकी निगाहें तो बस उसके उठे हुए चूतड़ों पर और उससे भी ज्यादा ,
मंजू बाई के निहुरने से ,पेड़ की डाली से लदे झुके फल की तरह ,मंजू बाई के गदराये उभारों पर एकदम चिपकी थीं।
मंजू बाई ने उन देखते हुए देखा , लेकिन बजाय बुरा मानने के जोर से मुस्करायी ,बोली ,
" चाहिए " मंजू बाई की निगाहें इस समय सीधे उभारों की तरफ थी ,इशारा बहुत साफ़ था।
अबकी बिना किसी झिझक के उनके मुंह से निकल गया ,हाँ चहिये।
" चल देती हूँ ,लेकिन पहले मिल के जल्दी काम ख़तम करते हैं , मैं झाड़ती हूँ तू डस्टिंग कर ले , पक्का। "
उनकी निगाहे कुछ देर तक मंजू बाई के उठे चूतड़ों और झुके उभारो पर चिपकी रही फिर वो डस्टिंग करने में लग गए।
डस्टिंग करते करते उनकी निगाह पिक्चर फ्रेम पे पड़ी जिसमें गुड्डी की तस्वीर लगी थी।
वो उसे झाड़ रहे थे की पीछे से काम ख़तम कर के मंजू बाई भी आगयी।
" बड़ा पटाखा माल है ,कौन है ये। "
" मेरी बहन है ,छोटी। गुड्डी। "
उन्होंने बोल दिया।
" कबूतर तो बड़े मस्त हैं इसके , खूब दबाये होंगे तूने। "
मंजू बाई ने अपना फैसला सुनाया और उन्हें खींच के किचेन की ओर ले गयी जहाँ बचा खुचा काम उनका इन्तजार कर रहा था।
गोरे गोरे गुदाज मांसल उभार ,एकदम ब्लाउज से चिपके, मम्मी की शियर पारदर्शी लेसी हाफ कप स्किन कलर की ब्रा कुछ भी छिपा ढँक नहीं पा रही थी।
न सिर्फ उनके इंच भर के कड़े मस्त निपल साफ़ साफ दिख रहे थे ,बल्कि चारो ओर का ब्राउन गोल गोल अरियोला भी खुल के झलक रहा था।
और इसी एक झलक के लिए तो वो कब से बेचैन थे।
और इस गर्मी में एक अलग तरह की गर्मी 'उन्हें ' बेचैन कर रही थी ,
फिर देह गंध ,पसीने की , रूप के नशे की ,.
उनके होंठ कांख से सरक कर बूब्स के खुले साइड के हिस्से पे आ चुके थे, कभी जीभ से वो मम्मी की गोरी गोरी चूंची की साइड पे वो फ्लिक करते तो कभी चाट लेते।
मम्मी ने उनका एक हाथ पकड़ के जैसे सहारे के लिए अपने दूसरे बूब्स के ऊपर रख दिया था
और अपने इरादे को एकदम साफ़ करने के लिए उनकी हथेली को सीधे अपने निपल के ऊपर रख कर खुल के दबा भी रही थीं।
हिम्मत पा कर के उनकी नदीदी उँगलियाँ ,मम्मी के खूब गहरे लो कट ब्लाउज के झरोखे से ,
क्लीवेज को अब खुल के छू रही थीं।
लेकिन सिर्फ वही नहीं ,मम्मी भी अब खुले खेल पे आगयी थीं।
उनका बोनर ,पगलाया ,बौराया मम्मी की साडी बनी लुंगी से बाहर आ चुका था और अब मम्मी की मुट्ठी में कैद था
एक झटके में मम्मी ने कस के मुठियाया और उनका मोटा मांसल सुपाड़ा बाहर।
खूँटा मम्मी की पकड़ से बाहर निकल आया लेकिन मम्मी का हमला अब सीधा और तेज हो गया था।
मम्मी ने अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उनके सुपाड़े को जोर से दबोच रखा था और उसे रगड़ मसल रही थीं।
कुछ देर बाद उनका बड़ा शार्प नाख़ून सीधे उनके बॉल्स से शुरू हो के ,कड़े तने मांसल खूंटे के निचले भाग को रगड़ता खरोंचता सीधे पेशाब के छेद तक
और अब साथ में ,टिपिकल मम्मी उवाच ,
" बहन के भंडुए खूँटा तो खूब मस्त खड़ा किया है।
देख बहुत जल्द जाएगा ये तेरी माँ के भोंसडे में,
हचक हचक के चोदना उसके भोंसडे को ,
अरे बहुत रस है उस के भोंसडे में , बोल बहनचोद मन कर रहा है न माँ के भोंसडे को चोदने का , . "
उन का मुंह तो मम्मी की पसीने से भीगी कांख और साइड से खुले बूब्स के बीच फंसा ,दबा था ,
लेकिन जो उनके मुंह से आवाजें निकली तो उसे सिर्फ हामी ही कहा जा सकता है।
वैसे भी मम्मी के सामने हामी के अलावा वो कुछ सोच भी नहीं सकते थे।
और अब मम्मी खुल के उनके तन्नाए लन्ड को मुठिया रही थीं। और साथ में ,
" अरे घबड़ा मत ,जल्द ही जिस भोंसडे से निकला है न उसी में घुसड़वाउंगी।
और अपने सामने। हचक के पेलना दोनों चूंची पकड़ के। बहुत मजा आएगा ,कोई ना नुकुर नहीं समझे मादरचोद। अरे मादरचोद होने का मजा ही अलग है ,मेरे मुन्ने को सब मजा दिलवाऊंगी ,बहन का माँ का। "
मम्मी का दूसरा हाथ भी खाली नहीं बैठा था , वो उनके खुले सीने पे उनके निपल के चारो ओर ,उनकी तर्जनी हलके हलके सहलाते बहुत प्यार से धीरे धीरे जैसे नयी लौंडिया को पटाने के लिए उसके नए आये अंकुर के चारो ओर हलके सहलाये, बस उसी तरह ,. . और अचानक जोर से मम्मी ने उनके निपल को स्क्रैच कर दिया।
ये बात मुझे भी मालुम थी और मम्मी को भी कि ,उनके निपल किसी नयी जवान होती लौंडिया से कम सेंसिटिव नहीं है।
दूसरा हाथ जो मुठिया रहा था जोर जोर से ,
एक बार फिर खूंटे को खुला छोड़ के नीचे बॉल्स पे ,हलके से सहलाते सहलाते उन्हें उसे जोर से दबा दिया और एक बार फिर नाख़ून फिर बॉल्स के पीछे पिछवाड़े के छेद तक स्क्रैच कर रहा था और वापस वहां से खूँटा जहाँ बॉल्स से मिलता है , उस जगह को पहले खूब जोर से दबाया और फिर लंबे शार्प नाख़ून से लन्ड के बेस से लेकर सुपाड़े तक स्क्रैच करते ,
" बोल चोदेगा न अपनी माँ को ,इसी मस्त लन्ड से उसके भोंसडे को , बोल ,बोल चढ़ेगा न उसके ऊपर , चोदेगा न अपनी माँ के भोसड़े को "
और अबकी साफ़ साफ़ जवाब सुनने के लिए मम्मी ने उनके सर को आजाद कर दिया अपनी कांख और उभारों के बीच से ,
और खुल के बोला भी उन्होंने ,
" हाँ मम्मी चोदूँगा। "
लेकिन मम्मी के लिए इतना काफी नहीं था। जब तक अपने दामाद से अपनी समधन के लिए खुल के वो गाली न सुन ले ,
" अरे मुन्ने खुल के बोल न ,किस के भोंसडे को चोदेगा,बोल साफ़ साफ़। "
मम्मी ने जोर से उनके खूंटे को दबाते पूछा।
और मेरे कान को विश्वास नहीं हुआ ,उन्होंने एकदम खुल के बोला लेकिन उनकी आवाज कुछ कुछ घंटी में दब गयी।
बेल दुबारा बजी।
" मंजू बाई होगी ,आज दोपहर से वो काम पे आने वाली थी। "
बिजली भी आगयी , पंखा फिर से चलने लगा।
" अरे मुन्ने खुल के बोल न ,किस के भोंसडे को चोदेगा,बोल साफ़ साफ़। " मम्मी ने जोर से उनके खूंटे को दबाते पूछा।
और मेरे कान को विश्वास नहीं हुआ ,उन्होंने एकदम खुल के बोला लेकिन उनकी आवाज कुछ कुछ घंटी में दब गयी।
बेल दुबारा बजी।
" मंजू बाई होगी ,आज दोपहर से वो काम पे आने वाली थी। "
बिजली भी आगयी , पंखा फिर से चलने लगा।
मैंने जाके दरवाजा खोला ,
आगे आगे मंजू बाई ,पीछे पीछे मैं।
अंदर हालात बदल गयी थीं लेकिन कोई भी देख के कुछ देर पहले मचे तूफ़ान का निशान साफ़ साफ़ दिख रहा था।
मम्मी ने उनका खूँटा भले ही अंदर कर दिया हो तोप ढँक दिया हो ,लेकिन वो वैसा ही बौराया ,भूखा पगलाया खड़ा था।
वो और मम्मी एकदम चिपके बैठे थे।
मम्मी का हाथ बड़े अधिकार पुर्वक उनके कंधे पर था उन्हें अपनी ओर खींचे ,चिपकाये हुए।
आँचल अभी भी मम्मी का लुढ़का पुढका था ,और उनकी ललचायी निगाहे दोनों पहाड़ियों के बीच ,गोरी मांसल गुदाज घाटी में चिपकी।
मंजू बाई
मंजू बाई ,.
३५ -३६ की उमर ,लंबा चौड़ा खूब भरा शरीर , रंग गोरा नही तो ज्यादा सांवला भी नहीं , बस हल्का सा सलोना सांवला।
खूब गठी देह ,जैसे काम करने वालियों की होती हैं , कसी कसी पिंडलियां , दीर्घनितम्बा ,
छातियाँ भी बड़ी बड़ी लेकिन एकदम कठोर ठोस,
मम्मी को वो पहचानती थी। उनसे दुआ सलाम कर के मुझसे बोली ,
" बहूजी आज सुबह ही आयी हूँ , अपनी बेटी गीता को भी साथ ले आयी हूँ उसकी ससुराल से वापस , . "
उसकी बात मैं काटती ,अचरज से बीच में बोली,
" पर गीता को, तुम तो कह रही थी . उसे एक महीने पहले ही बच्चा हुआ है , . तो इतनी जल्दी ,. ससुराल से। "
" अरे बहू जी उसका मरद तो पंजाब चला गया कमाने ,साल दस महीने में एक बार कभी आता है ,कभी वो भी नहीं। और ऊपर से गीता की सास ,छिनाल खुद तो पूरे गाँव को चढ़ाती है अपने ऊपर ,पंचभतारी ,इस उमर में भी दबवाने मिसवाने में ,नैन मटक्का करने में शरम नहीं ,. "
" सही कहती है तू सारी सासें आजकल ऐसी ही होती है बहुओं की , " उनकी ओर देख के मुस्करा के मैं बोली।
जिस तरह से उन्होंने ब्लश किया ,मम्मी भी समझ गयीं और मन्जू बाई भी की मेरा इशारा किधर है। मंजू बाई ने अपनी बात जारी रखी
" और गीता की सास से भी दो हाथ आगे गीता की ननद है।
करमजली अपने ससुराल से झगड़ा करके आ गयी है और असल बात ये है की गाँव के सारे लौंडों से फसी है वो ,भैय्या भैय्या बोलती है और सबके सा,थ गन्ने के खेत में कबड्डी खेलती है। माँ बेटी दोनों नम्बरी छिनार , और गीता की ननद ,मेरी बेटी का नाम धरती है। गीता की सास मुझसे बोलने लगी , तुझे बेटी को ले जाना हो तो ले जाओ लेकिन मैं बच्चे को नहीं ले जाने दूंगी। तो मैं भी बोली की रखो तुम बच्चे को और मैं गीता को ले आयी। "
फिर कुछ रुक कर वो बोली ,
"बहू जी मुझे मालुम है मैं इतनी दिन नहीं आयी ,आप को कितनी तकलीफ हुयी होगी ,. लेकिन "
अबकी उस बात मम्मी ने काटी। इनके चिकने गाल पे प्यार से हाथ फिराते बोलीं ,
" अरे कोई तकलीफ नहीं हुयी ,मंजू बाई। ये था न ,झाड़ू पोंछा ,बर्तन सब कुछ इसी के जिम्मे था ,हाँ थोडा नौसिखिया है तो तू आगयी है तो कुछ सिखा विखा देना इसको "
मंजू बाई की निगाह इनकी पर ,बल्कि उन्होंने जो साडी पहनी थी मम्मी की लुंगी बना के और उससे भी बढ़कर ,.
उसमें तने तंबू के बम्बू पर गयी।
और वहीँ अटक गयी।
तंबू तना भी जबरदस्त था।
मम्मी ने मंजू बाई को इशारे से अपने पास बुलाया और पर्स से ५०० का नोट निकाल कर दिया।
वो ना ना करती रही ,लेकिन पहले तो मम्मी ने मंजू बाई के कान में कुछ फुसफुसाया , फिर बोलीं ,
" अरे तेरी बेटी के पहलौठा बच्चा हुआ है न तो उसके दूध पीने के लिए। "
मंजू बाई ने वो नोट पहले तो माथे पर लगाया , फिर झुके झुके ही अपनी चोली में खोंस लिया।
मंजू बाई की कसी चोली से दोनों बड़े बड़े उभार बाहर छलक रहे थे।
और इनकी लालची निगाह दोनों छलकते उभारों पर ,बीच की गहराई में धंसी , फंसी।
लेकिन मम्मी की निगाह से इनकी चोरी कैसे बचती , उन्होंने मंजू बाई से इनकी ओर इशारा कर के पूछ लिया ,
" सुन तू मेरी बेटी को बहू कहती है तो फिर ,. तेरी बेटी इसकी क्या लगेगी। "
मंजू बाई इशारा समझ गयी थी , मुस्करा के इनकी ओर देख के बोली ,
" बहन लगेगी ,और क्या। "
और फिर अपने बड़े बड़े उभार छलकाते हुए पल्लू खोंस लिया।
( गीता ,मंजू बाई की बेटी ,देह तो मंजू बाई ऐसे थी खूब भरी भरी थी ,गदरायी लेकिन रंग एकदम गोरा चम्पई था ,जैसे कोई दूध में केसर डाल दे।
एक बार मैंने मंजू बाई से , वो पोंछा लगा रही थी , को चिढाते हुए पूछा भी ,मंजू बाई तेरा रंग तो ,. . और तेरी बेटी एकदम चिट्टी। मुस्करा के वो बोली ,इसका बाप बहुत गोरा था ,रंग बाप पे गया है। मैंने फिर पूछा तेरा मर्द तो। हंसते हुए उसने फिर साफ़ साफ बोला ,अरे बहू जी आप तो समझती हो ,मेरा मरद नहीं ,इसका बाप )
और जैसे ही वो मुड़ी तो इनकी निगाह उसके दीर्घ नितंबों और बीच की दरार पर।
मंजू बाई कुछ अपने मोटे मोटे ३८++ चूतड़ मटका भी ज्यादा रही थी।
मम्मी ने फिर उसे रोक के बोला ,
" अरे मंजू बाई ज़रा तू इनको भी कुछ काम वाम सिखा दे न ,अब कभी तुम नहीं आओगी तो सब काम इसे ही तो करना पड़ता है न। "
और फिर इनसे भी मम्मी बोलीं ,
" जा सब सीख ले ठीक से ,मंजू बाई सिखा देंगीं। और तू हेल्प करा देगा तो काम भी जल्दी निपट जाएगा। "
जैसे ही ये उठे मंजू बाई के पास जाने के लिए ,मम्मी ने हलके से आँख मारते हुए उनसे धीरे से बोला ,
" ग्रीन सिग्नल ".
इससे बड़ी ख़ुशी की बात इनके लिए क्या हो सकती थी।
चेहरे पर से ख़ुशी एकदम छलक रही थी और खूँटा अलग एकदम तन्नाया हुआ।
वो मंजू के बाई पास पहुंचे ही थे ,की मम्मी ने फिर बोला ,
" अरे ज़रा अच्छी तरह सब काम सिखा देना ,झाड़ना ,पोंछना , रगड़ रगड़ के ,. और अगर ये न सीखे न . . तो जबरदस्ती भी कर सकती हो तुम ,सिखाने के लिए। "
मम्मी का इशारा एकदम साफ़ था।
और मंजू बाई भी ,उसने एकदम मालिकाना अंदाज में अपनी हथेली इनके पिछवाड़े रखते , मुड़ के मम्मी की ओर देखते हुए बोला ,
" एकदम आप चिंता न करिये सब सीखा दूंगी। झाड़ना ,पोंछना सब ,. "
और उन्हें हलके से पुश करते हुए किचेन की ओर चली।
तब तक मुझे एक शरारत सूझी , मैंने मम्मी को याद कराया।
" अरे मम्मी कल रात अपने इतने प्यार से इनका एक घर में पुकारने का नाम रखा था लेकिन अब तक एक बार भी उस नाम से उन्हें पुकारा नहीं ,कितना बुरा लग रहा होगा उन्हें न। "
मम्मी तुरंत समझ गयी और उन्हें बुलाया ,
" सुन बहनचोद ,. . "
और अब मंजू बाई के चौंकने की बारी थी।
वो आश्चर्य से मेरी ओर मुंह कर के देख रही थी।
" अरे मंजू बाई , ये इनके प्यार का नाम है। घर में पुकारने का नाम। इनकी सास ने बड़े प्यार से इनका ये नाम रखा है। अब घर में हम सब लोग इन्हें इसी नाम से बुलाएंगे। "
सब लोग पर जोर देने से मंजू बाई अच्छी तरह समझ गयी।
उधर इनकी सास इन्हें समझा रही थीं ,
" सुन बहनचोद , अभी हम लोग शापिंग के लिए जा रहे हैं। दो तीन घंटे के बाद ही लौटेंगे। तब तक तुम मंजू बाई की सब बाते मानना ,एकदम ध्यान से , जो जो ये सिखाये एकदम अच्छी तरह सीखना। रगड़ रगड़ के बरतन चमकाने ,किचेन के सब काम के साथ हर जगह झाड़ू , . अंदर तक झड़वाना इससे मंजू बाई ,. डस्टिंग ,हर जगह ,. कोई जगह बचनी नहीं चाहिए ,. . और मंजू बाई तुम अपने सामने ,. . "
" एकदम ,. आप लोग जाइये ,सब चीज अच्छी तरह सिखा दूंगी। अब आपने मुझे ये काम सौपा है तो ,. आप लोग आराम से लौट के आइये। आप के आने तक एकदम चमाचम मिलेगी,सब चीज । "
मंजू बाई ने बात काट के हामी भरी। मंजू बाई का हाथ अभी भी उनके पिछवाड़े ही था।
मैं और मम्मी घर के बाहर निकल रहे थे की मैं अपने को रोक नहीं पायी , दरवाजे से ही मैंने हंकार लगाई ,
" अरे बहनचोद ,ज़रा आके दरवाजा बंद कर दे न। "
मम्मी कार में बैठ चुकी थीं।
जब वो दरवाजा बंद करने आये तो उनके होंठो पे एक हलकी सी चुम्मी लेते मैंने उनके कान में बोला
" ग्रीन सिग्नल "
मंजू बाई की सीख
हम लोग शापिंग कर रहे थे और मंजू बाई उन्हें 'सिखा ' रही थी।
उन्होंने सोचा था की बस वो देखेंगे और मंजू बाई सब काम करेगी ,बहुत होगा तो उन्हें कुछ बता समझा देगी ,या फिर थोड़ा बहुत हाथ बंटाना ,
लेकिन यहाँ एकदम उलटा हो रहा था।
सब काम उन्हें ही करना पड़ रहा था ,उलटे मंजू बाई हड़का अलग रही थी।
वो डिशेज साफ़ कर रहे थे और मंजू बाई ,.
" क्या कैसे कर रहे हो , ठीक से साफ़ करो रगड़ रगड़ के ,. . क्या सब ताकत तेरी बहन ने चूस ली?"
उन्होंने कुछ और ताकत लगाई लेकिन मंजू बाई को नहीं जमा , वो बोली ,
" अच्छा चल आती हूँ मैं ,कर के दिखाती हूँ तुझे , "
और फिर मंजू बाई ने अपना आँचल अपनी कमर में लपेट के पेटीकोट में खोंस लिया।
दोनों गद्दर ब्लाउज फाड़ जोबन , खूब कड़े कड़े ,एकदम इनकी आँखों के सामने। पतले ब्लाउज में उभार कटाव ,कड़ापन सब दिख रहा था। ब्रा वो पहनती नहीं थी।
एकबार फिर इनका 'कुतुबमीनार ' तन के खड़ा हो गया। ब्रा वो कभी नहीं पहनती थी लेकिन उसके उभार आँचल में छुपे ढके रहते थे और जब पल्लू उसने कमर में लपेट लिया तो फिर सब कुछ साफ़ साफ़ ,.
मंजू बाई एकदम इनसे सट के चिपक के खड़ी हो गयी।
कनखियों से वो इनका उठा हुआ तंबू देख रही थी ,लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी।
मंजू बाई के उभारों का जो इनके खूंटे पे असर हुआ वो सब साफ़ समझ रही थी, कोई नौसिखिया तो थी नहीं ,
ऐसे खेलों की पुरानी खिलाडन थी।
वो एक कटोरी साफ़ कर रहे थे।
झुक के अपने उभार की नोक उनके एक हाथ से रगड़ते मंजू बाई बोली ,
" अरे कैसे अपनी बहिनिया की कटोरी में ऊँगली डालते हो ,दो अंदर एक बाहर ,. हाँ बस वैसे ही , . ठीक बस ,. अब ज़रा रगड़ रगड़ जैसे , . अपनी छुटकी बहिनिया की कटोरी में ऊँगली डाल के ,. हाँ जोर जोर से मांजो , देखो चमक जायेगी। जैसे तेरी बहन का चेहरा चमक जाता होगा न तेरी ऊँगली से , . हाँ बस वैसे ही। देख चमक गया न। अरे मेरे मुन्ने तू बहुत जल्द सीख जाएगा , बस चुपचाप मेरी बात मानता रह। "
मंजू बाई का एक उभार उनकी पीठ से रगड़ खा रहा था बार बार और नल खुला हुआ था ,तेज धार से छर छर ,. . उसकी बूंदो से मंजू बाई का ब्लाउज भी थोड़ा गीला हो गया था।
एकदम उसके जोबन से चिपक गया था। अब न सिर्फ उभार ,कटाव और कड़ापन ही दिख रहा था बल्कि ब्लाउज के अंदर का पूरा नजारा।
खड़ा खूँटा उनका और टनटना गया था।
ये बात मंजू बाई से छिपी नहीं थी।
" अरे चल जल्दी जल्दी कर बहुत काम करवाना है तुझसे अभी ,"
वो बोली और मंजू बाई के इस डबल मीनिंग डायलाग का और गहरा असर उनके ऊपर पड़ा।
मंजू बाई अब खुल के उनके लुंगी फाड़ते खूंटे की ओर देख रही थी ,बिना किसी झिझक ,हिचक के।
बर्तन वो मांज चुके थे तो मंजू बाई बोली ,
"चल रगड़ना सीख लिया न , अच्छी तरह से। अब धुलवाउंगी बाद में ,धुलना भी सीखा दूंगी ,लेकिन चल पहले झाड़ू उठा। आज झाड़ना तेरा काम है और झड़वाना मेरा अच्छी तरह समझ ले। "
वो दोनों लोग किचेन से निकले ,मंजू बाई ने उनके हाथ में झाड़ू पकड़ा दी थी।
जितना असर उनके ऊपर मंजू बाई के बूब्स का हो रहा था उतना ही उसके डबल मिनिग बातों का भी , ' झाड़ना ' और ;झड़वाना' से मंजू बाई का क्या मतलब है वो अच्छी तरह समझ रहे थे।
सबसे पहले बैडरूम से उसने शुरू कराया और साथ में ही हड़काना ,
" अरे ज़रा ताकत लगा के , कस के झाड़ ने। तेरी बहन ने क्या सारी ताकत निचोड़ ली है जो इतना , . अरे आगे पीछे सब झड़वाउंगी मुन्ने तुझसे , अभी बहुत ,. "
फिर बिस्तर के नीचे भी ,
" अरे अंदर भी , अंदर डाल के ,क्या बाहर बाहर मजा आएगा। पूरा अंदर डाल के झाड़ो ,कोई कोना बचना नहीं चाहिए। अरे मायके में क्या ऐसे ही ऊपर झापर झाड़ के काम चला लेते थे ,कुछ सिखाया नहीं तेरी माँ बहनों ने ,कैसे पूरा अंदर डाल डाल के। . चल कोई बात नहीं मैं हूँ न सब सीखा दूंगी अपने मुन्ने को अच्छे से झाड़ना ,झड़वाना सब। "
वो झुक कर झाड़ू लगा रहे थे , हिप्स उठे हुए। मंजू बाई ने प्यार से उनके उठे हिप्स पे एक चपत लगाते कहा।
लेकिन साथ ही साथ उनकी लुंगी बनी साडी भी उसने उठा दी ,ऑलमोस्ट कमर तक और छल्ले की तरह लपेट दी।
" ऐसे ही हाँ अरे मुन्ने मुझसे क्या शर्मा रहा है ,. हाँ और ,थोड़ा और चूतड़ ऊपर उठा , अरे बचपन में सारे लौंडेबाज तेरी चिकनी गांड मारने के लिए जैसे घोड़ी बनाते होंगे न बस वैसे ही उठा हाँ अब ठीक, ऐसे पूरा जोर लगेगा अंदर तक झाड़ने में। "
दोनों जाँघों के बीच हाथ डाल के जब मंजू बाई ने उनके चूतड़ ऊपर करवाये तो ,मंजू बाई की उंगलिया सिर्फ उनके चूतड़ से ही नहीं बल्कि तन्नाए खूँटे से भी रगड़ खा गयी.
' हथियार तो जबरदस्त है ,भूखा भी है और बौराया भी "मंजू बाई समझ गयीं थी।
और बेडरूम करने के बाद जब वो निकलने लगे तो मंजू बाई सामने खड़ी , अभी भी मंजू बाई ने आँचल कमर में खोंस रखा था इसलिए मंजू बाई की दोनों 'चोटियां ' सीधे उनके मुंह के सामने ,
" अरे मुन्ना मेरे कहाँ निकले अभी बाथरूम बाकी है न। सब कमरा बोला था न और वहां तो एकदम चमाचम होना चाहिए न। "
मंजू बाई ने उनको पकड़ कर बाथरूम की ओर ठेल दिया।
वो बाथरूम का दरवाजा खोल ही रहे थे की एक आवाज ने उन्हें रोक दिया।
रेफ्रिजरेटर का दरवाजा खुलने की आवाज ,.
एक बडा सा लाल एपल , कश्मीरी ,मंजू बाई ने निकाल लिया था।
उन्हें दिखाते हुए दांत से एक बड़ी सी बाइट मंजू बाई ने काटी और मुस्करा के बोली ,
" तुझे भी मिलेगा , अरे मुन्ना काम कर पहले। मालुम है मुझे मुन्ना बहुत भूखा है ,
दूंगी अभी सब दूंगी लेकिन चल पहले काम कर और हाँ , . "
कमोड की ओर इशारा कर के बोलीं ,
" इसे अच्छी तरह चमकाना ,एकदम सफ़ेद ,कोई दाग वाग नहीं ,ऊँगली से चेक कर लेना। मैं आके अभी चेक करुँगी ,चल काम शुरू कर। "
उन्होंने बाथरूम धोना ,साफ़ करना शुरू कर दिया और मंजू बाई ,बाथरूम के दरवाजे पे ऐपल की बाइट लेती ,
जब उन्होंने सब काम ख़तम कर लिया तो मंजू बाई अंदर आई और अपने हाथ से उनके मुंह में ऐपल की एक बाइट बड़ी सी दी और फिर मंजू बाई ने उन्हे ऐपल पकड़ाया ,
लेकिन एक पल के लिए वो झिझके ,
" गन्दा है हाथ। "
हलके से हाथ की ओर इशारा करते वो बोले पर मंजू ने हड़का लिया ,
" अरे कुछ गन्दा नहीं होता ,चल पकड़ " जोर से वो बोली ,और उन्होंने अधखाया ऐपल पकड़ लिया।
झुक के मंजू बाई ने अंदर तक चेक किया , सब चमाचम।
"एक बाइट और ले के मुझे दे दे"
अब उनकी झिझक ख़तम हो गयी थी। एक बाइट लेकर ऐपल उन्होंने मंजू बाई को पकड़ा दिया।
और उसके पीछे हाल में वो ,
आगे आगे मंजू बाई ,
उसके कसर मसर करते बड़े बड़े कसे चूतड़ ,उनके बीच की साफ़ दिखती दरार ,.
हालत उनकी खराब हो रही थी।
मंजू बाई सब समझ रही थी और उसने और आग में घी डाला , मुड़ के उनकी ओर देख के जीभ निकाल के चिढा दिया फिर जीभ से अपने मोटे मोटे होंठ चाट लिए।
" चल शुरू कर , . " मंजू बाई ने हाल में पहुँचते बोला।
एक बार वो फिर झुके हुए ,पिछवाड़ा खूब ऊपर हवा में , साडी एकदम ऊपर चिपकी , अंदर घुस घुस के झाड़ू लगाते।
मंजू बाई बार बार उनके अधखुले पिछवाड़े में अब खुल के हाथ लगाती ,पुश करती तो कभी सीधे बीच की दरार में ऊँगली डाल के जोर से रगड़ देती।
थोड़ी देर में आधा हाल ही हो पाया था की मंजू बाई की पीछे से आवाज आयी ,
" अच्छा चल उठ ऐसे तो बहुत टाइम लग जाएगा। "
जब वो मुड़े मंजू बाई की ओर ,उन्हें लगा शायद गुस्से में बोल रही लेकिन वो मुस्करा रही थी।
उनकी ओर बचा हुआ अधखाया सेब दिखा के उसने पूछा ,
" बोल चाहिए "
बोल चाहिए
" बोल चाहिए "
लेकिन जिस तरह से उसने आँखे नचाके , अपने मस्त उभारों को और उभार के ये सवाल पूछा था ,ये मुश्किल था समझना की वो सवाल अधखाये सेब के लिए पूछ रही है अपने गदराये जोबन के लिए ,
" बोल न चाहिए ,मुंह खोल के बोल तभी दूंगी। "
हंस के वो बोली।
" हाँ चाहिए " बस उनके मुंह से निकल गया।
"लालची ,देती हूँ। "
और बचा खुचा सेब मंजू बाई ने एक बारगी ही अपने मुंह में पुश कर दिया ,सब का सब मुंह के अंदर और कुछ देर तक चुभलाती रही।
फिर जब तक उन्हें कुछ समझ में आये ,मंजू बाई ने कस के उन्हें अपनी बांहों में जकड लिया।
ब्लाउज फाड़ते मंजू बाई के बड़े बड़े कड़े कड़े उरोज अब सीधे बरछी की तरह उनकी छाती में धंस रहे थे।
मंजू बाई अपने बंद होंठ उनके होंठो पे रगड़ रही थी और साथ में मंजू बाई का एक हाथ उनके नितंबों पे कस के दबोचता , उंगली उनके मांसल मुलायम नितंबों में धंसाता ,
और फिर मंजू बाई की मोटी रसीली जीभ सीधे जबरदस्ती उनके मुंह को खोलती अंदर ,
जैसे किसी कुँवारी तड़पड़ाती ,छटपटाती कच्ची कली की बंद चूत में जबरदस्ती मोटा लन्ड पेल दे।
उनके होंठ खुल गए थे और मंजू बाई के भी।
अधखाया , थूक में लिसड़ा , जूठा ,कुचा कुचाया , सेब के टुकड़े मंजू बाई के मुंह से सीधे उनके मुंह में।
मंजू बाई की जीभ ठेल रही थी ,एक एक अधखाया सेब का टुकड़ा सीधे उनके मुंह में साथ में मंजू बाई का सैलाइवा ,
चूमने चूसने और उनके सीने पर अपने जोबन जोर जोर से रगड़ने के साथ , अब मंजू बाई की जाँघे भी चारो ओर से ,
उसका भरतपुर , सीधे उनके खड़े खूंटे को रगड़ता ,दरेरता।
उन्होंने अपने को पूरी तरह मंजू बाई के हवाले कर दिया था।
चार पांच मिनट तक ,
और उस के बाद जैसे ही मंजू बाई ने उन्हें दबोचा था वैसे ही छोड़ दिया ,हाँ छोड़ने के पहले उसने ढेर सारा सैलाइवा इनके मुंह पे गाल पे लपेट दिया।
,
और दूर खड़ी हो के एक पल मुस्कराती रही ,फिर आँख नचा के बोली।
" थोड़ी देर तुम ने झाड़ लिया ,अब मैं झाड़ती हूँ ,दोनों मिल के ,. तो फिर जल्दी हो जाएगा , वरना तो वैसे बहुत टाइम लगेगा। मैं झाड़ती हूँ तू डस्टिंग कर ले बस फटाक से हो जाएगा। "
और ये कह के मंजू बाई ने उनके हाथ से झाड़ू ले लिया , और झुक के ,. झुकने के पहले उसने अपनी साड़ी पेटीकोट एडजस्ट किया ,ऊपर सरकाया खूब ऊपर।
न सिर्फ उसकी मांसल कसी कसी पिण्डलियां दिख रही थीं बल्कि केले के तने ऐसी चौड़ी ,चिकनी ,मखमली जाँघों का भी काफी हिस्सा।
वो झुक के झाड़ू लगा रही थी लेकिन इनकी निगाहें तो बस उसके उठे हुए चूतड़ों पर और उससे भी ज्यादा ,
मंजू बाई के निहुरने से ,पेड़ की डाली से लदे झुके फल की तरह ,मंजू बाई के गदराये उभारों पर एकदम चिपकी थीं।
मंजू बाई ने उन देखते हुए देखा , लेकिन बजाय बुरा मानने के जोर से मुस्करायी ,बोली ,
" चाहिए " मंजू बाई की निगाहें इस समय सीधे उभारों की तरफ थी ,इशारा बहुत साफ़ था।
अबकी बिना किसी झिझक के उनके मुंह से निकल गया ,हाँ चहिये।
" चल देती हूँ ,लेकिन पहले मिल के जल्दी काम ख़तम करते हैं , मैं झाड़ती हूँ तू डस्टिंग कर ले , पक्का। "
उनकी निगाहे कुछ देर तक मंजू बाई के उठे चूतड़ों और झुके उभारो पर चिपकी रही फिर वो डस्टिंग करने में लग गए।
डस्टिंग करते करते उनकी निगाह पिक्चर फ्रेम पे पड़ी जिसमें गुड्डी की तस्वीर लगी थी।
वो उसे झाड़ रहे थे की पीछे से काम ख़तम कर के मंजू बाई भी आगयी।
" बड़ा पटाखा माल है ,कौन है ये। "
" मेरी बहन है ,छोटी। गुड्डी। "
उन्होंने बोल दिया।
" कबूतर तो बड़े मस्त हैं इसके , खूब दबाये होंगे तूने। "
मंजू बाई ने अपना फैसला सुनाया और उन्हें खींच के किचेन की ओर ले गयी जहाँ बचा खुचा काम उनका इन्तजार कर रहा था।