Episode 29


लेकिन पंद्रह मिनट में उनकी प्लानिंग फेल हो गयी। बड़ा लंबा सा मुंह मम्मी ने लटकाया लेकिन ,

उनकी एक सहेली थीं ,पक्की वालीं। शहर के दूसरे कोने में रहती थीं ,उनका फोन आ गया था ,लेडीज संगीत था ,ओनली लेडीज।

आल नाइट और डिनर भी।

उन्हें कुछ देर पहले ही पता चला था की मम्मी यहाँ है इसलिए उन्होंने इनवाइट कर लिया।

बिचारि मम्मी ,उनको मना भी नहीं कर सकती और यहां,…

सवा नौ बजे तक हम लोग ऑलमोस्ट तैयार हो गए थे।

मैंने मम्मी को सजेस्ट भी किया की इनको भी ले चलते हैं पर मम्मी ,उन्होंने साफ मना कर दिया।

" अरे नहीं यार , भले ही वो मेरी कितनी भी पुरानी सहेली क्यों न हो ,उसने , इनको तो बुलाया नहीं न , . इसलिए ठीक नहीं होगा। "

मैं और मम्मी कार में बैठ चुके थे तब तब मुझे एक काम याद आया ,उतर कर जैसे मैं आयी तो ये पोर्च में ही मिल गए।

" मंजू बाई का घर तो तुमने देखा ही है ,पास में ही तो है।

बस , जाके उससे बोल देना सुबह आने की जरुरत नहीं है। तुम तो अकेले ही होंगे तो एक आदमी का क्या बर्तन , और फिर हम लोगों को भी कल आते आते ९-१० तो बज ही जाएगा।

बस अभी चले जाना की कहीं वो सो वो न जाए। "

और मैं वापस गाडी में ,साढ़े नौ के पहले हम लोग रास्ते में थे।

लेकिन उनके घर में घुसते ही मेरा एक मेसेज मिला ,

ग्रीन सिग्नल.

और जैसे ही मैं और मम्मी गए ,घर में एक बार फिर सन्नाटा पसर गया , सन्नाटा और अकेलापन,.

वो चुपचाप ड्राइंग में रूम में बैठे बाहर के दरवाजे की ओर देख रहे थे ,जहां से कल सुबह तक कोई आनेवाला नहीं था।

रात का इन्तजार सिर्फ मम्मी नहीं वो भी कर रहे थे ,

उन्हें बस बार बार कल रात की ,मम्मी की बात की याद आ रही थी ,

" मादरचोद ,अभी तो कुछ नहीं है ,बस ये शुरुआत है ,अरे अभी ट्रेलर है ,ट्रेलर , असली फिल्लम तो कल रात चलेगी ,रात भर सोने नहीं दूंगी। "

सोने तो मम्मी ने उन्हें कल रात भी नहीं दिया था ,लेकिन , . आज शाम से बस उन्हें लग रहा था की कब रात होगी ,. कब रात ,. .

लेकिन,

कल जो उनके साथ हुआ था रात भर उसे सोच सोच के डर तो लग रहा था उन्हें,. लेकिन मन भी बहुत कर रहा था।

इट वाज लाइक आल ड्रेस्ड अप एंड नो व्हेयर टू गो।

कुछ देर उदासी में वो डूबे रहे , फिर उनकी निगाह बार पे पड़ी। जहां बैठे थे वहीँ ,उन्होंने खोल लिया ,

" इसमें क्या बुरा है ,अरे पीते हो तो स्टाइल से पीयो ,प्रापर ग्लास, मग प्रापर ,. "

ये मॉम की उनके लिए गिफ्ट थी , कल ही तो लायी थीं वो।

उनके घर में पीना तो दूर कोई नाम भी नहीं ले सकता था।

लेकिन यहां एक दो बार थोड़ा जबरदस्ती ,थोड़ा मान मनौवल कर के , धीरे धीरे ,. और अब तो

उन्होंने अपने दिमाग में आ रहे ख्याल को झटक दिया।

अरे उनके ससुराल में सभी पीते हैं ,सभी ,. लेडीज भी तो फिर ,. और उन्होंने बार खोल लिया।

दो मग सामने ही रखे थे।

वही जो मम्मी उनके लिए लायी थीं शाम को,. . और उनको याद आया गया ,कैसे मम्मी ने उन्हें छेड़ते हुए कहा था की ,

" तू क्या सोचता था हम तेरे लिए जो लाये हैं उसपे तेरा नाम भी लिखा है ,देखो न। "

और जो बियर का मग था उसपे एक किशोरी की तस्वीर सी बनी थी , उसका हैंडल बस आते हुए उभारों सा था और उस पर इंग्रेव्ड था ,बी सी।

ये कहने का मतलब नहीं था बी सी का मतलब क्या है और उनकी आँखों के सामने गुड्डी की शक्ल घूम गयी।

और उन्होंने बिना कुछ सोचे लबालब बियर से से भर दिया।

लेकिन जैसे ही उनके होंठ बियर से लगे उनका ख्याल दूसरी ओर चला गया ,

गीता की ओर ,

मंजू बाई की बेटी।

उनका ख्याल दूसरी ओर चला गया ,

गीता की ओर ,मंजू बाई की बेटी।

गुड्डी से मुश्किल से साल भर ही तो बड़ी होगी , और साल भर पहले उसकी शादी भी होगयी और अब बच्चा भी

और वो गुड्डी को छोटा ,. सच में वो तो कब से ,

फिर एक बार मंजू बाई की ओर उनका ध्यान लौट गया।

काम वाली है तो लेकिन , . देह कितनी मस्त है ,उसके गदराये जोबन ,कितना मजा आएगा ,.

और मजा कितना देती है , उनकी निगाह घड़ी की ओर पड़ी।

नहीं ठीक नहीं होगी ,

सोचा उन्होंने लेकिन मन में मंजू और गीता ही घूम रही थीं ,

एक बार फिर खाली बीयर का मग उन्होंने भर लिया ,लबालब ,

उनकी ऊँगली मग के हैंडल पर टहल रही थी ,किसी किशोरी के उभारों ऐसा गढ़ा था ,

गीता के भी तो ऐसे ही ,

और मंजू बाई क्या कह रही थी , दूध छलछलाता रहता है।

सच में सीधे ब्रेस्ट से दूध , .

नहीं नहीं झटके दे कर उन्होंने वो ख्याल अपने मन से निकाला और बार में बियर का मग खाली कर दिया।

घर में पूरा सन्नाटा था।

और सुबह तक कोई आने वाला नहीं था ,सुबह क्या ९-१० बजे तक।

फिर एक बार मंजू की शक्ल ,

फिर उन्हें याद आया की मंजू के यहां जाना तो पडेगा ,उसे बोलना होगा न की सुबह नहीं आना है।

अब तक कह आते तो ,

कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,उन्होंने मग तीसरी बार भर लिया।

और मग खाली करते उन्होंने फैसला कर लिया था ,

मंजू बाई के यहाँ तो वो जाएंगे लेकिन अंदर नहीं ,बाहर से ही उसे बुलाकर बता देंगे।

निकलते समय उन्हें याद आया की उन्हें ' ग्रीन सिगनल " तो मिल गया है ,

ऊपर से कल से उनका एकदम तन्नाया,.

उन्होंने बाहर ताला बंद करते समय सर झटका ,

कुछ भी हो बस उसके घर के अंदर नहीं जाएंगे तो कुछ नहीं होगा ,बस बता के चले आएंगे।

बियर का कुछ कुछ असर हो रहा था उनके ऊपर।

गीता

बाहर आसमान में कुछ नशे में धुत्त आवारा बादल टहल रहे थे ,चांदनी को छेड़ते। कभी वो घेर के खड़े हो जाते चंद्रमुख को तो बस रौशनी हलकी हो जाती और जब जबरन वो लोफर बादल उस के चेहरे पर हाथ रख कर भींच लेते तो घुप्प अँधेरा।

मंजू बाई का घर पास में ही था।

कुछ झोपड़ियां स्लम की तरह ,कच्चे पक्के मकान और उसी के आखिर में एक गली में , मंजू बाई का घर।

थोड़ा कच्चा ,थोड़ा पक्का।

गली में सन्नाटा हो चला था।

आसमान में तो वैसे ही चांदनी और बादलों का लुकाछिपी का खेल चल रहा था ,गली में कुछ कमजोर लैम्पपोस्ट के बल्ब , कमजोर हलकी पीली रोशनी से स्याह अँधेरे को हटाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे ,

और मंजू बाई के घर के पास के लैम्प पोस्ट का बल्ब निशानेबाजी की प्रैक्टिस का शिकार हो गया था।

घुप्प अँधेरा।

चारो और सन्नाटा था ,फिर मंजू बाई के घर के आसपास कोई घर था भी नहीं , बस एक बड़ा सा पुराना नीम का पेड़ , जिसकी टहनियां मंजू बाई के आंगन को झुक कर छू लेती थीं।

घर की दीवालें तो कच्ची थी ,लेकिन छत पक्की।

उन्होंने आसपास देखा, कोई नहीं दिख रहा था। थोड़ी देर पहले दस बजने के घंटे की आवाज कहीं से आयी थी।

बस मैं नाक करूँगा , और मंजू बाई को बोल कर की उसे कल सुबह नहीं आना है ,ये बता के चला आऊंगा। घर के अंदर एकदम नहीं घुसूंगा।

बार बार ये मन में अपनी सोच दुहरा रहे थे।

लेकिन मंजू बाई के घर का दरवाजा खुला हुआ था , अँधेरे में अदंर से लालटेन की हल्की कमजोर पीली रौशनी बस छन छन कर आ रही थी।

क्या करें ,क्या करें ये सोचते रहे , फिर सांकल खड़का दी।

कोई जवाब नहीं मिला।

अबकी हिम्मत कर सांकल उन्होंने और जोर से खड़काई ,फिर भी कोई जवाब नहीं मिला।

उठंगे ,अधखुले दरवाजे से उन्होंने देखा ,

अंदर कुछ दिख नहीं रहा था , बस एक कच्चा सा छोटा सा बरामदा ,उसके बगल में एक कमरा। लेकिन कोई भी नही दिख रहा था।

उन्होंने अपना इरादा पक्का किया , बस एक बार और सांकल खड़काऊँगाँ , कोई निकला तो ठीक वरना चला जाऊंगा। अंदर नहीं जाऊंगा।

आसमान में आवारा बादलों की संख्या बढ़ गयी थी ,

और कुछ देर रुक के उन्होंने थोड़ी तेजी से सांकल खड़काई ,हलकी आवाज में बोला भी

मंजू बाई ,

लेकिन कोई जवाब नहीं ,और खुले दरवाजे से अंदर का कच्चा बरामदा ,थोड़ा सा कच्चा आँगन साफ़ दिख रहा था।

उहापोह में उनके पैर ठिठके थे।

" कही सो तो नहीं गयी वो लेकिन इस तरह दरवाजा खोल के ,. "

कुछ नहीं तय कर पा रहे थे वो।

" बस एक सेकेण्ड के लिए अदंर जा के ,बस बोल के वापस आ जाऊंगा। "

कमजोर मन से सोचा उन्होंने।

अंदर कोई भी नहीं दिखा।

बस कच्चे बरामदे के एक कोने में लालटेन जल रही थी ,हलकी हलकी परछाईं बरामदे के दीवारों पर पड़ रही थी।

छोटे से आँगन में भी एक दरवाजा था बाहर का।

कमरा बंद था ,.

उनकी निगाह आंगन की ओर लगी थी तभी बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज आयी।

चरर , और फिर सांकल लगने की ,ताला लगने की।

मुड़ कर वो दरवाजे के पास पहुंचे ,पर दरवाजा बाहर से बंद हो चुका था।

एक बार उन्होंने फिर बरामदे की ओर देखा , कच्चा मिट्टी के फर्श का बरामदा , उसके एक कोने में टिमटिमाती लालटेन।

फिर वो दरवाजे के पास गए ,हिलाया ,डुलाया ,झाँक कर देखा।

दरवाजा अच्छी तरह बंद था , कुण्डी में लगा ताला भी दरवाजे की फांक से दिख रहा था।

किसी ने बाहर से दरवाजा बन्द कर ताला लगा दिया था।

गीता

और फिर एक खिलखिलाहट ,जैसे चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठी हों।

और उन्होंने मुड़ कर देखा तो जैसे कोई सपना हो , एक खूबसूरत परछाईं , एक साया सा ,

बस वो जड़ से होगये जैसे उन्हें किसी ने मूठ मार दी हो।

झिलमिलाती दीपशिखा सी , और एक बार फिर वही हजार चांदी के घंटियों की खनखनाहट ,

' भइया क्या हुआ , क्या देख रहे हो , मैं ही तो हूँ "

उस जादू की जादुई आवाज ने , वो जादू तोडा.

" माँ ने कहा था तुम आओगे ,अरे ताला बाहर से मैंने ही बंद किया है। ये रही ताली। "

चूड़ियों की खनखनाहट के साथ कलाई हिला के उसने चाभी दिखाई.

बुरा हो दीवार का , अमिताभ बच्चन का,।

एकदम फ़िल्मी स्टाइल ,

और लग भी रही थी वो एक फ़िल्मी गाँव की छोरी की तरह ,

लेकिन निगाह उनकी बस वहीँ चिपकी थी जहां चाभी छुपी थी ,

छल छलाते ,छलकते हुए गोरे गोरे दूध से ,

दूध से भरे दोनों थन।

एकदम जोबन से चिपका एकदम पतले कपडे का ब्लाउज , बहुत ही लो कट ,

ब्रा का तो सवाल ही नहीं था ,

अपनी माँ की तरह वो भी नहीं पहनती थी और आँचल कब का सरक कर, ढलक कर ,.

गोल गोल गोलाइयाँ।

"भइया क्या देख रहे हो ,. " शरारत से खिलखिलाते उसने पूछा।

मालुम तो उसे भी था की उनकी निगाहें कहाँ चिपकी है। ,

चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,

माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।

साडी भी खूब नीचे कस के बाँधी ,न सिर्फ गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया खुल के दिख रही थी ,ललचा रही थी , बल्कि भरे भरे कूल्हे की हड्डियां भी जहन पर साडी बस अटकी थी।

और खूब भरे भरे नितम्ब।

पैरों में चांदी की घुँघुरु वाली पायल ,घुंघरू वाले बिछुए , कामदेव की रण दुंदुभि और उन का साथ देती ,

खनखनाती ,चुरमुर चुरमुर करती लाल लाल चूड़ियां ,कलाई में , पूरे हाथ में , कुहनी तक।

गले में एक मंगल सूत्र ,गले से एकदम चिपका और ठुड्डी पर एक बड़ा सा काला तिल ,

एक दम फ़िल्मी गोरियों की तरह , लेकिन मेकअप वाला नहीं एकदम असली।

हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ जाते।

और एक बार फिर हंस के ,खिलखलाते हुए उसने वही सवाल दुहराया , एकदम उनके पास आके , अपने एक हाथ से अपनी लम्बी चोटी लहराते ,उसमें लगा लाल परांदा जब उनके गालों निकल गया तो बस ४४० वोल्ट का करेंट उन्हें मार गया।

" भैया क्या देख रहे हो , बैठो न ,पहली बार तो आये हो। "

और गीता ने उनकी और एक मोढ़ा बढ़ा दिया। और खुद घस्स से पास में ही फर्श पर बैठ गयी।

मोढ़े पर बैठ कर उन्होंने उस जादू बंध से निकलने की कोशिश की , बोलना शुरू किया ,

" असल में मैं आया था ये कहने की ,. लेकिन दरवाजा खुला था इसलिए अंदर आ गया ,. "

लेकिन नए नए आये जोबन के जादू से निकलना आसान है क्या ,और ऊपर से जब वो दूध से छलछला रहा हो ,नयी बियाई का थन वैसे ही खूब गदरा जाता है और गीता के तो पहले से ही गद्दर जोबन ,.

फिर जिस तरह से वो मोढ़े पर बैठे थे और वो नीचे फर्श पर बैठी थी , बिन ढंके ब्लाउज से उसकी गहराई , उभार और कटाव सब एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था।

एक बार फिर आँख और जुबान की जंग में आँखों की जीत हो गयी थी ,उनकी बोलती बंद हो गयी थी।

" हाँ भैया बोल न ,. "

उसने फिर उकसाया।

वह उठ कर जाना चाहते थे लेकिन उनके पैर जमीन से चिपक गए थे। दस दस मन के।

और फिर ताला भी बाहर से बंद था और चाभी गीता की ,

हिम्मत कर के उन्होंने फिर बोलना शुरू किया ,

" असल में ,असल में ,. मैं ये कहने आया था न की तेरी माँ से की,. की ,. कल ,. "

एक बार फिर चांदी के घुंघरुओं ने उनकी आवाज को डुबो दिया।

गीता बड़े जोर से खिलखिलाई।

" अरे भैय्या , वो मैंने माँ को बोल दिया है। यही कहना था की न भौजी कल सबेरे खूब देर में आएँगी , वो और उनकी माँ कही बाहर गयी है ,यही न "

चंपा के फूल झड रहे थे। बेला महक रही थी।

उनकी निगाहें तो बस उसके गोल गोल चन्दा से चेहरे पर , लरजते रसीले होंठों पर चिपकी थी।

" अब तुम कहोगे की मुझे कैसे मालुम हो गया ये सब तो भैया हुआ ये ,की मैं बनिया के यहाँ कुछ सौदा सुलुफ लेने गयी थी , बस निकली तो भौजी दिख गयीं। गाडी चला रही थी. एकदम मस्त लग रही थी गाडी चलाते। बस ,मुझे देख के गाडी रोक लिया। "

गीता दोनों हाथों से स्टियरिंग व्हील घुमाने की एक्टिंग कर रही थी और उनकी निगाह उसकी कोमल कोमल कलाइयों पर ,लम्बी लम्बी उँगलियों से चिपकी हुयी थी।

जब इतना कुछ देखने को हो तो सुनता कौन है। गीता चालू रही

" भौजी बहुत अच्छी है , मुझसे बहुत देर तक बातें की फिर बोली की वो लोग रात भर बाहर रहेंगी ,कल सबेरे भी बहुत देर में आएँगी। घर पे आप अकेले है , इसलिए मैं माँ को बोल दूँ की सबेरे जाने की जरुरत नहीं है बस दुपहरिया को आये। और मैंने माँ को बोल भी दिया। वो भी बाहर गयी है , मुझसे रास्ते में मिली थी , तो बस आप का काम मैंने कर दिया ,ठीक न। "

और एक बार फिर दूध खील बिखेरती हंसी ,उस हंसिनी की।

और अब जब वो तन्वंगी उठी तो बस उसके उभार उनकी देह से रगड़ते , छीलते , ,. ऊपर से कटार मारती काजर से भरी कजरारी निगाहें ,

बरछी की नोक सी ब्लाउज फाड़ते जुबना की नोक।

" भैया कुछ खाओगे ,पियोगे? "

अब वो खड़ी थी तो उनकी निगाह गीता के चिकने चम्पई पेट पर ,गहरी नाभी पर थी।

गीता के सवाल ने उन्हें जैसे जगा दिया और अचानक कही से उनके मन में मंजू बाई की बात कौंध गयी ,

" ,. लेकिन तुझे पहले खाना पीना पडेगा ,गीता का , सब कुछ ,. लेकिन घबड़ाओ मत हम दोनों रहेंगे न ,एकदम हाथ पैर बाँध के , जबरदस्ती ,. "

और वो घबड़ा के बोले ,

" नहीं नहीं कुछ नहीं मैं खा पी के आया हूँ ,बस चलता हूँ। " उन्होंने मोढ़े पर से उठने की कोशिश की।

पर झुक कर गीता ने उनके दोनों कंधे पकड़ के रोक लिया।

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