Episode 30


पहली बार गीता का स्पर्श उनकी देह से हुआ था ,और वो जैसे झुकी थी , गहरे कटे ब्लाउज से झांकते गीता के कड़े कड़े गोरे गुलाबी उभार उनके कांपते प्यासे होंठों से इंच भर भी दूर नहीं थे।

" वाह वाह ऐसे कैसे जाओगे , मैं जाने थोड़े ही दूंगी। भले आये हो अपनी मर्जी से लेकिन अब जाओगे मेरी मर्जी से , फिर वहां कौन है ,भौजी तो देर सबेरे लौंटेगी न। बैठे रहो चुपचाप ,चलो मैं चाय बनाती हूँ आये हो तो कम से कम मेरे हाथ की चाय तो पी के जाओ न भइया। "

वो बोली और पास ही चूल्हे पर चाय का बर्तन चढ़ा दिया।

चूल्हे की आग की रोशनी में उसका चम्पई रंग ,खुली गोलाइयाँ और दहक़ रही थी।
……चाय बनाते समय भी वो टुकुर टुकुर , अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों से ,उन्हें देख रही थी।

आँचल अभी भी ढलका हुआ था.

" लो भैया चाय " एक कांच की ग्लास में गीता ने चाय ढाल कर उन्हें पकड़ा दिया और दूसरे ग्लास में उड़ेलकर खुद सुड़ुक सुड़ुक पीने लगी।

वास्तव में चाय ने उनकी सारी थकान एक झटके में दूर कर दी। गरम ,कड़क ,. और कुछ और भी था उसमें। या शायद जो उन्होंने बीयर पी थी ,उसका असर रहा होगा।

आँख नचाकर ,शरारत से मुस्कराते हुए गीता ने पूछा ,

" क्यों भैय्या ,चाय मस्त है ना , कड़क। "

और न चाहते हुए भी उनके मुंह से निकल गया ,

" हाँ एकदम तेरी तरह। "

और जिस शोख निगाह से गीता ने मेरी ओर देखा और अदा से बोली ,

" भैया ,आप भी न "

न जाने मुझे क्या हो रहा था , चाय में कुछ था या बीयर का नशा ,

" हे आप नहीं तुम बोलो। " मैं बोल पड़ा।

" धत्त , आप बड़े हो न " खिस्स से हंस पड़ी वो और दूर बादलों में बिजली चमक गयी।

" तो क्या हुआ ,बोल न ,. तुम। " मैंने जिद की।

" ठीक है ,तुम ,. लेकिन तुम को मेरी सारी बातें माननी पड़ेगीं। " उठती हुयी वो बोलीं ,और जब उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया तो पता नहीं जाने अनजाने देर तक उसकी उँगलियाँ ,मेरी उँगलियों से रगडती रहीं।

देह में तो मेरी मस्ती छा रही थी पर सर में कुछ कुछ , अजीब सा ,. "

और मैंने उससे बोल ही दिया ,

" मेरे सर में कुछ दर्द सा ,. "

" अरे अभी ठीक कर देती हूँ ,मैं हूँ न आपकी छोटी बहना। "

और उसने एक कटोरी में तेल लेके आग पे रख दिया गरम होने और मेरे पास आके मुझे भी उठा दिया। मेरे नीचे से मोढा हटा के उसने चटाई बिछा दी।

और फिर एक दम मुझसे सट के ,मेरी छाती पे अपना सीना रगड़ते , उसने बिना कुछ कहे सुने मेरी शर्ट उतार कर वही खूंटी पे टांग दी,

फिर बोली ,

" तुम लेट जाओ ,मैं तेल लगा देती हूँ। "

फिर बोली "नहीं नहीं रुको , आपकी , तेरी पैंट गन्दी हो जाएगी। आप ये मेरी साडी लुंगी बना के पहन लो न। "

और जब तक मैं मना करूँ ,कुछ समझूँ ,सर्र से सरकती हुयी उसकी साडी उसकी देह से अलग हो गयी और बस उसने मेरी कमर के चारो ओर बाँध के मेरी पैंट उतार दी। पेंट भी अब शर्ट के साथ खूंटी पे

और मैं उसकी साडी लुंगी की तरह लपेटे ,

लेकिन मैं उसे पेटीकोट ब्लाउज में देख नहीं पाया ज्यादा ,

उसने मुझे चटाई पर लिटा दिया , पेट के बल ,बोला आँखे बंद क्र लूँ।

मालिश,. तेल मालिश

तेल अब उसके पास था और मेरा सर , .

. ये साफ़ था गीता का पेटीकोट सरक के जाँघों के एकदम ऊपरी हिस्से तक पहुंच गया था ,क्योंकि मेरा सर उसने अपनी खुली मखमली जाँघों पर रखा था और धीरे धीरे अपनी उँगलियों से मेरे सर में ,माथे पर ,कनपटी पर तेल लगा रही थी।

थोड़ी ही देर में आराम हो गया।

सब कुछ भूल कर बस उसके मांसल जंघाओं के स्पर्श का अहसास हो रहा था।

और पता भी नहीं चला की कब गीता की जादुई उँगलियाँ सर से पैर पर पहुँच गयीं।

जादू था बस।

एक एक मसल्स , एक एक रग , कभी धीरे धीरे कभी पूरी ताकत से ,

उनके तलुओं को पहले दोनों हाथों से , फिर मुट्ठी से हलके हलके मुक्कों से मार के , उँगलियों को तोड़ के ,

सारी थकान ,सब दर्द काफूर।

और धीरे धीरे वो मुलायम जादुई उँगलियाँ पिण्डलियों की ओर बढ़ी,धीमे धीमे जो साडी लुंगी की तरह ;लपेटी गयी थी , वो ऊपर और ऊपर होती गयी।

पहले जो उँगलियाँ पिंडलियों से घुटनों तक सहला रही थीं , अब जोर जोर से दबा रही थीं ,अंदर की ओर प्रेस कर रही थी।

वो पेट के बल लेटे हुए थे ,

रात भर का रतजगा ,दिन भर के काम की थकान ,सारा तनाव ,दर्द सब धीमेधीमे बूंदबूंद कर बह रहा था।

और गीता की मुलायम रस भरी उँगलियाँ एकदम नीचे से ऊपर तक , उसके नितम्बो को भी कभी कभी छू लेती थी।

लेकिन थोड़ी देर में दोनों रेशमी हथेलियां सीधे नितंबों पर कभी हलके हलके तो कभी कस के , कभी दबाती ,कभी मसलती तो बस हलके हलके सहला देती।

लुंगी बनी साडी अब पतला सा छल्ला बना उनके कमर में बस ज़रा सा अटका था बाकी देह , गीता की भूखी उँगलियों के हवाले ,

" अरे अरे भैय्या तुम्हारे सर पर तो एकदम कडा कड़ा लग रहा हो , उफ़ , चलो मेरे ब्लाउज की ,देती हूँ अभी ,. हाँ ज़रा सा सर उठाओ , बस ठीक है अभी , हां ये लो। "

जब तक वो हाँ ना करते गीता का ब्लाउज उनके सर के नीचे तकिया बना कर रख दिया था।

गीता भी अब सिर्फ पेटीकोट में और पेटीकोट भी ऊपर , जाँघों तक चढ़ा हुआ।

और एक बार फिर गीता की उंगलियां उनके नितंबों पर ,

पहले तो गीता ने उलटे हाथ से हलके हलके ,कभी धीमे कभी तेजी से नितंबों पर सहलाया ,

जैसे उँगलियाँ उसके पिछवाड़े डांस कर रही हों ,

तबले पर ,मृदंग पर थिरक रही हों।

अब उन्हें सिर्फ वो उँगलियाँ महसूस हो रहीं थीं ,उनकी छुअन कभी सिहरा देने वाली थरथरा देने वाली तो कभी लगता

जैसे हजार बिच्छू उनके पिछवाड़े की पहाड़ियों पर चल रहे हों।

एक ऐसी फीलिंग जो आज तक उन्होंने कभी महसूस नहीं की हो।

खूँटा उनका खड़ा था लेकिन वो जिस तरह लेटे थे , तन्नाया फनफनाता उनकी जांघ और चटाई के बीच दबा कसमसाता।

और वो थिरकती उँगलियाँ कभी कभार नितम्ब के बीच से सरक कर , ' वहां ' भी उत्थित शिश्न को भी छू देतीं लेकिन ऐसे की जैसे बस यूँ हीं ,गलती से।

और वो १००० वाट का करेंट ' वहां ' लगाने के लिए काफी था।

अचानक उन दोनों हाथों ने कस के ,पूरी ताकत से उसके दोनों नितंबों को फैला दिया।

और गीता उस पिछवाड़े के भूरे भूरे छेद को फैलाये रही।

वो कसा दर्रा ,जिसके अंदर अभी तक कोई भी नहीं गया था।

क्या करेगी वो , क्या करेगी वो ,. बस वो सोच रहे थे ,तड़प रहे थे।

और तेल की चार पांच बूंदे बैकबोन के एकदम आखिरी हिस्से से , सरकती ,लुढ़कती पुढकती,

धीमे धीमे उस दरार के अंदर ,

गीता ने पूरी ताकत से दरार को फैला रखा था ,खोल रखा था , अपने कोमल कोमल हाथों से नितंबों को थोड़ा उचका भी दिया।

और सब की सब तेल की बूंदे अंदर।

बस अगले ही पल जैसे कोई खजाने के दरवाजे को बंद कर दे गीता के दोनों हाथों ने दबोच कर दोनों नितंबों को एकदम पास पास सटा दिया ,और आधे तरबूज के कटे दो गोलार्द्धों की तरह आपस में उन्हें रगड़ने लगी।

जैसे कोई चकमक पत्थर को रगड़ कर आग लगाने की कॊशिश कर रहा हो।
नितम्बो की रगड़ , और अंदर जाती ,सरसराती चिकनी तेल की बूंदे।

अंदर तक , एककदम नए तरह का अहसास हो रहा था उन्हें।

और फिर अचानक एक बार फिर गीता ने , नितंबों को फैला दिया और गीता की तेल लगी मंझली ऊँगली , दरार के बीच ,बार बार रगड़ घिस करने लगी।

मन तो कर था की बस वो , . लेकिन गीता बजाय ऊँगली की टिप से प्रेशर लगाने के पूरी ऊँगली दरार में दरेरती ,रगड़ घिस करती ,

मन तो उनका ये कर रहा था की अब बस वो ,. . लेकिन गीता बस रगड़ रही थी , और अचानक

पूरी कलाई के जोर से

गचाक ,

दो तीन धक्के और ,

गचाक गचाक

और पूरी ऊँगली अंदर , वो उसे गोल गोल घुमा रही थी। ठेल रही थी।

फिर कुछ गड़ा उन्हें अंदर , उफ़ दर्द ,. और एक अलग तरह का मज़ा।

किताबों में पढ़ा था उन्होंने था इसके बारे में ,. प्रोस्ट्रेट पर प्रेशर ,.

शायद गीता के ऊँगली की अंगूठी गड रही थी अंदर,पर उसका असर ,सीधे खूंटे पर लग रहा था की कहीं ,.

झटके से खुद धनुषाकार उनकी देह हो गयी और जैसे गीता इसी मौके का इन्तजार कर रही थी ,

बस झट से खूंटे को उसने गचाक से अपनी कोमल गोरी गोरी मुट्ठी में दबोच लिया झटके में जो झटका दिया ,

सुपाड़ा घप्प से खुल गया।

एक हाथ लन्ड मुठिया रहा था तो दूसरे की मंझली ऊँगली गांड में धंसी,

अब गए , अब गए ,. उन्हें लग रहा था ,

कल रात से भूखा था ,पहले सास ने तड़पाया ,आज शाम को मंजू बाई ने।

और अगले पल गीता की चूड़ियों की खनखनाहट भी बंद हो गयी।

दोनो हाथ अलग और अब दोनों हाथ सीधे शोल्डर ब्लेड्स पर फिर मालिश शुरू।

तेल की मालिश कंधो से शुरू होकर बैकबोन के अन्त में ,

एक बार फिर से एक नया नशा तारी होने लगा , सारी थकान गायब और एक नयी ताकत नया जोश ,

लेकिन जैसे ही मालिश शुरू हुयी थी , वैसे ही रुक गयी , और अब गीता की देह का कोई भी अंग उनके देह को छू नहीं रहा था।

मन कर रहा था की गीता कुछ करे , गीता कुछ करे।

और अचानक उनके कान दहक़ उठे , फागुन में दहकते पलाश वन की तरह।

भइय्या ,

गीता के आग से होंठ बस उनके इयरलोब्स को छू गए थे ,उसने चूमा था या बस ऐसे ही ,

" भइय्या , "

और गीता के किशोर जोबन की नोक , उसके छलछलाते थनों का अग्रभाग बस , उनके पीठ को छू सा गया।

लेकिन ये गलती से नहीं था। गीता की दोनों कलाइयों ने उनके हाथ को कस के पकड़ लिया था और भरी भरी छातियाँ पीठ पर रगडती मसलती ,नीचे की ओर ,

और थोड़ी देर में वो रस से भरे उभार पीठ से सरकते फिर सीधे नितंबों पर, साथ ही गीता ने लुंगी बनी साड़ी को जो बस उनकी देह के नीचे दबी कुचली फंसी थी उसे खींच कर दूर कर दिया।

निपल्स अब उनकी गांड के बीच में ,दरारों के बीच जैसे अपनी चूंची से उनकी गांड मार रही हो ,पूरी तेजी से।मस्ती के मारे उनकी हालत खराब हो रही थी।

ऐसा कभी भी नहीं हुआ था ,उनके साथ। कभी भी नहीं।

बीच बीच में कभी कभी उसे लगता है गीता नहीं , गुड्डी है , उसकी अपनी गुड्डी ,ये उभार रुई के फाहे से मुलायम , बड़े बड़े।

खूँटा लगता था मारे जोश के कहीं ,एकदम तन्नाया,

और गीता ने अचानक अपने दोनों हाथों से कमर के पास से पकड़ के ,

गीता की कोमल कोमल उँगलियाँ उसके तन्नाए औजार से छू गयीं ,इतना तगड़ा करेंट लगा की

और अब वो पीठ के बल गीता उसके ऊपर , दोनों लंबी टाँगे ,खुली हुयी जाँघे गीता उसके सीने के दोनों ओर घुटने के बल बैठी थी।

गीता ऑन टॉप , टॉपलेस।

लालटेन की हलकी हलकी रोशनी सीधे गीता के उभारों पर पड़ रही थी , बाकी का हिस्सा मखमली अँधेरे में डूबा हुआ था।

कड़े कड़े किशोर उभार गोरे गोरे दूध से छलछलाते, उनकी ललचायी निगाहें बार बार वहीँ , और उन्होंने हाथ बढाया ,

पर

गीता ने हाथ रोक लिया।

" नहीं भैया , नहीं तुम कुछ नहीं करोगे। छूना मना है /" एक बार फिर हजार चांदी की घंटिया बज उठीं।

" देखो न भैया कैसे हैं मेरे ये , "

अपनी हथेली से दोनों गदराये जोबन को सहलाते ,दबाते उभारते उसने पूछा और अपने खड़े खड़े निपल्स को पहले तर्जनी से उसने फ्लिक किया थोड़ी देर ,फिर अंगूठे और मंझली ऊँगली के बीच दबाते ,मटर के दाने ऐसे कड़े कड़े निपल को रोल करते हुए गीता ने उसे उकसाया।

"बोलो न भैया , बोल न " फिर गीता ने उकसाया।

" बहुत मस्त ,खूब रसीली है तेरी चूंचियां मस्त है एकदम। " वो बोल पड़े।

और जोर से खिलखला पड़ी वो, और बोली

" सच में बहुत रस है तेरी बहना की चूंची में भइय्या , अभी चखाती हूँ इसका मजा। बस अभी , दबाना चूसना लेकिन ज़रा इसकी भी तो हाल चाल पूछ लूँ ,बहुत तड़प रहा है। इसकी भी तो मालिश कर दूँ न भैया। "

झुक के एक बार उनके होंठों पे गीता ने अपने जुबना रगड़ दिए और फिर मुड़ के सीधे खड़े खूंटे की ओर

कुतबमीनार भी मात था , इतना कस के खड़ा था।

झुक के खुले सुपाड़े को गीता ने बस अपने कड़े निपल से रगड़ दिया ,सीधे पी होल ( पेशाब के छेद ) पे।

" क्या मस्त लन्ड है भइय्या , खाली खाली भउजिये को मजा देते हो ,बिचारि बहन भूखी प्यासी तड़पती है कभी कभार उसको भी तो ,. मोटा कितना है ,भौजी को तो बहुत मजा आता होगा। '

गीता की गदराई रसीली चूंचियां कड़े बौराये सुपाड़े को रगड़ रही थीं और उसके मुलायम हाथ , एक हाथ से वो उसके बॉल्स सहला रही थी ,उसकी तर्जनी बार बार पिछवाड़े के छेद के बीच में रगड़ रही थी।

दूसरे हाथ की एक ऊँगली मोटे लन्ड के बेस से दबाते रगड़ते ,सुपाड़े तक , लेकिन सुपाड़े को छूने से पहले वो रुक गयी।

उसकी छुअन इतनी मस्त थी , इतने मजे की और तरह तरह से ,

कभी वो हलके हलके सहलाती , निपल से पेशाब के छेद में सुरसुरी कर देती तो कभी दोनों ताहों से जोर से मथानी की तरह उसे रगडती।

और कभी उसकी एक ऊँगली पिछवाड़े के छेद को छेडती ,गोल छेद के चारो और चक्कर काटती और अचानक गीता ने गचाक से अपनी मंझली ऊँगली पेल दी।

मारे जोश के उन्होंने खुद ही कमर उचका दी।

एक ही झटके में आधी से ज्यादा ऊँगली अंदर थी और दूसरे हाथ से वो जोर जोर से मुठिया रही थी।

लन्ड की हालत खराब थी।

गीता एक बार फिर उनके मुंह के पास उठंगी बैठी थी।

क्यों भैया मजा आया न छुटकी बहिनिया के साथ ,अभी तो बस ,. "

उनकी निगाहें गीता के पेटीकोट पे अटकी थीं , कमर के नीचे बंधा ,जांघ तक चढ़ा। "

और उन्हें देखते देख वो मुस्करा पड़ी ,

" सच में भैया बहुत नाइंसाफी है मैंने तो तेरा सब कुछ देख लिया ,छू लिया ,इतना मस्त मोटा और अपना , खजाना छुपा के बैठी हूँ। "

कुछ देर तक तो वो उनका चेहरा देखती रही फिर उकसाया

" अरे भैया देख क्या रहे हो खोल दो न अपने हाथ से बहन के पेटीकोट का नाड़ा "

उनके आँखों के सामने एक बार फिर गुड्डी का चेहरा घूम गया।

बहन का खजाना

"क्यों भैया मजा आया न छुटकी बहिनिया के साथ ,अभी तो बस ,. "

उनकी निगाहें गीता के पेटीकोट पे अटकी थीं , कमर के नीचे बंधा ,जांघ तक चढ़ा।

और उन्हें देखते देख वो मुस्करा पड़ी ,

" सच में भैया बहुत नाइंसाफी है मैंने तो तेरा सब कुछ देख लिया ,छू लिया ,इतना मस्त मोटा और अपना , खजाना छुपा के बैठी हूँ। "

कुछ देर तक तो वो उनका चेहरा देखती रही फिर उकसाया

" अरे भैया देख क्या रहे हो खोल दो न अपने हाथ से बहन के पेटीकोट का नाड़ा "

उनके आँखों के सामने एक बार फिर गुड्डी का चेहरा घूम गया।

वो भी तो उन्हें ऐसे भैया बोलती थी ,ऐसे ही खूब प्यार से ,. .

और आज कल तो वो कुरता शलवार ही पहनती है ,

शलवार का नाडा।

" शरमाते काहें हो ,भइय्या तुम सच में बहुत बुद्धू हो ,प्यारे वाले बुद्धू , अरे हर बहन यही चाहती है , इससे अच्छी बात क्या हो सकती है बहन के लिए की उसका भाई नाडा खोले , ,. खोलो न। "

और गीता ने खुद उसका हाथ पकड़ के अपने नाड़े पर रख दिया।

बस अपने आप उनके हाथ नाडा खोलने लगे , सरसरा के पेटीकोट नीचे ,

लेकिन मन उनका कहीं और , उस दिन जब वो मौका चूक गए थे।

शादी में ,

गुड्डी ने पहले उनसे केयरफ्री लाने को बोला था और जैसे ही वो निकले ,

ढेर सारी स्माइली के साथ गुड्डी का मेसेज आया

,"आल लाइन क्लीयर ,अब नहीं चहिये। आंटी जी चली गयीं। टाटा बाई बाई। मेरी छुट्टी खत्म "

और साथ में हग की साइन भी।

और लौटते ही उसने सच में हग कर लिया था , उसके रूई के फाहे ऐसे उभार उनके सीने से रगड़ रहे थे ,कितने सिग्नल दिए थे गुड्डी ने।

शाम को लेडीज संगीत था , नो ब्वायज ,लेकिन बाकी लड़को के साथ वो भी छुप के ,

गुड्डी ने चनिया चोली पहन रखी थी और जैसे उन्हें दिखा दिखा के ,कूल्हे मटका के गा , नाच रही थी ,

" कुण्डी मत खड़काना राजा ,सीधे अंदर आना राजा। "

और जब वो बाहर निकली तो सीधे उन्ही से भिड़ गयी , चिढाते बोली ,

"बदमाश मुझे सब मालूम है तुम छिप छिप के देख रहे थे न , "

और उसकी नाक पकड़ के बोली

" बुद्दू ,कुण्डी मत खड़काना सीधे अंदर आना ,समझे। "

और रात में भी , बोली ,. . भैया आज ऊपर आना , . लेकिन वो बुद्धू इत्ते इशारे भी नहीं समझे।

उस रात अगर वो नाड़ा खोल देते ,

और फिर वो वापस आ गए ,

गीता की आवाज ,

" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "

बहन की बुरिया

और फिर वो वापस आ गए ,गीता की आवाज ,

" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "

एकदम संतरे की रस भरी फांके , दोनों गुलाबी मखमली जाँघों के बीच चिपकी दबी।

लग रहा था बस रस अब छलका , तब छलका।

बहुत छोटी सी दरार , दोनों ओर खूब मांसल गद्देदार वो प्रेम केद्वार और चारो और ,काली नहीं

भूरी भूरी छोटी छोटी झांटे केसर क्यारी ऐसे जैसे किसी ने सजाने के लिए लगाई हो ,

जैसे उस प्रेम गली के बाहर वंदनवार हों ,

और अब गीता ने झुक के उनके चेहरे के एकदम पास , वो सिर्फ देख ही नहीं पा रहे थे ,बल्कि सूंघ भी सकते थे , ज़रा सा चेहरा उठा के चख भी सकते थे।

और उन्होंने जैसे ही चेहरा उठाने की कोशिश की , गीता ने प्यार से झिड़क दिया अपने दोनों हाथों से उन्हें वापस उसी जगह ,

" नहीं नहीं भैया सिर्फ देखो न अपनी बहना का खजाना ,बोल न भैय्या कैसे है। "

और वो ,. उनके होंठ प्यासे होंठ तड़प रहे थे।

बस लार टपका रहे थे ,किसी तरह अपने को रोक पा रहे थे।

"बहुत मस्त कितना रस है , क्या खूश्बु ,"

और जोर से उन्होंने गहरी सांस लेकर उस महक का मजा लेने की कोशिश की।

गीता की लंबी लंबी उंगलिया , उन मांसल भगोष्ठ को रगड़ रही थी मसल रही थी।

वो लम्बी गोरी पतली किशोर उँगलियाँ अपने बीच दबाकर अब कभी हलके तो कभी जोर से चूत की दोनों फांकों को,

रस की एक बूँद छलक आयी।

गीता ने उस खजाने को थोड़ा और उसके चेहरे के पास कर दिया , बस वो जीभ निकाल कर चाट सकते थे।

और और

और गीता ने उन्ही रस से गीली उँगलियों से अपने दोनों गुलाबी निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाया और अब,

अंदर की गुलाबी प्रेम गली , एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी।

गीता ने अपना अंगूठा अब उभरे मस्ताए साफ़ साफ़ दिख रहे कड़े क्लीट पर रखा

और उन्हें दिखा के हलके हलके रगड़ने लगी ,

साथ में वो अब सिसक रही थी ,मस्त हो रही थी ,

ओह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह इहह्ह्ह्ह ओह्ह्ह

रस की ढेर सारी बूंदे उसकी सहेली के बाहर चुहचुहा आयी थीं।

बहुत मुश्किल हो रहा था उनको अपने को रोकना ,

उनकी निगाहें बस गीता की रसीली बुर से चिपकी थीं।

और गीता ने हलके हलके अपनी तर्जनी की टिप ,सिर्फ टिप अंदर घुसेड़ी और जोर की चीख भरी।

कुछ देर तक वो ऊँगली की टिप हलके हलके गोल गोल घुमाती रही और जब ऊँगली बाहर निकली तो उसकी टिप रस से चमक रही थी।

उनके प्यासे दहकते होंठों पर वो ऊँगली आके टिक गयी और सब रस लथेड़ दिया।

उनकी जीभ ने बाहर निकल कर सब कुछ चाट लिया ,

" बहुत मन कर रहा है भैया लो चाट लो " वो हंस के बोली

और खुद ही झुक के उसने अपनी बुर , उनके होंठों पर रगड़ दी।

और वो कौन होते थे अपनी प्यारी प्यारी बहना को मना करने वाले।

हलके से पहले उनकी जीभ की नोक ने गीता की बुर पर चुहचुहाती रस की बूंदो को चाट लिया , फिर जोर से सपड़ सपड़ , ऊपर से नीचे तक

कुछ ही देर में वो संतरे की रसीली फांके उनके होंठों के बीच थी और वो कस कस के चूस चुभला रहे थे।

गीता की उत्तेजित क्लीट इनके नाक के पास थी लेकिन वो थोड़ा सा सरकी और सीधे होंठ पे ,

फिर क्या ,उनके होंठ ये दावत कैसे छोड़ देते। जोर जोर से कभी जीभ से उसकी भगनासा सहलाते तो कभी चूस लेते।

" हाँ भैया ,हाँ . मजा आ रहा है न बहन की बुरिया चूसने में ,चूस और चूस। ओह्ह इहह्ह आहहहह उह्ह्ह "

गीता सिसक रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।

लेकिन कुछ देर में बोली ,

" भैय्या तू अपनी बहन के बुर का मजा लो तो ज़रा हमहुँ अपने भैय्या के मस्त लन्ड का मजा ले लें , इतना मस्त गन्ना है ,बिना चूसे थोड़ी छोडूंगी। "
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