Episode 32

मंजू बाई - बचपन की खेली खायी ,प्रौढा, भरी भरी देह ,गदराये ३८ डी डी वाले जोबन वाली , हर दांव पेंच में माहिर।

दोनों ने एक दूसरे को पकड़ रखा था ,दबोच रखा था इस ताकत से की लग रहा था की बस सारी हड्डी पसली टूट जायेगी।

देह से देह रगड़ती ,होंठ से होंठ रगड़ते ,

पहल गीता ने की ,

उसके नाजुक किशोर गुलाबी रस से छलकते होंठ , मंजू बाई के होंठों से सरकते फिसलते , सीधे बड़े बड़े कड़े कड़े जोबन पर

जोबन के उभारो के नीचे ,

होंठों ने पहले उन मांसल रस कलशों की परिक्रमा की ,चुम्बन अर्चन किया और फिर धीमे धीमे ऊपर की ओर ,

मंजू बाई के कंचे ऐसे निपल एकदम कड़े खड़े मस्ताए ,

कुछ देर तक गीता की जीभ मंजू बाई के निपल्स फ्लिक करती रही ,उसके चारों ओर घूमती तड़पाती रही फिर एक झटके में ,

गीता के बाज ऐसे होंठों ने निपल झट से और पूरा निपल गीता के मखमली शोले ऐसे मुंह में ,

गीता जोर जोर से चूस रही थी ,चुभला रही थी।

गीता की देह भले जवान हो गयी हो ,उसके उभारो का कटाव ,कड़ापन आग लगाता हो पर उसके चेहरे पे अभी भी ,

वही भोलापन वही इनोसेंस ,

उरोजों की रगड़ा रगड़ी से कम मस्त नहीं था ,गीता -मंजू बाई के बीच चार आँखों का खेल ,

गीता की बड़ी बड़ी भोली भोली आँखे मंजू बाई को ललचा रही थीं ,उकसा रही थी।

और अपने छोटे कड़े जुबना वो मंजू बाई के होंठों के पास उचका रही थी ,ललचा रही थी ,

मंजू पास आती तो वो सरक जाती , कन्नी काट लेती चपल हिरनी की तरह ,

लेकिन मंजू बाई को इस लुका छिपी की आदत नहीं थी ,बचपन से वो खुला खेल फर्रुखाबादी खेलती थी ,

एक झटके में उसने गीता को पकड़ के निहुरा दिया जैसे कोई लौंडेबाज किसी लौंडे को जबरन निहुरा रहा हो गांड मारने को

या फिर डॉगी पोज में , कोई लड़की झुकी इन्तजार कर रही हो लन्ड खाने को

मंजू बाई के बड़े बड़े गदराये जोबन अब गीता की चिकनी पीठ पर फिसल रहे थे ,

शोल्डर ब्लेड्स से गीता के भारी भारी नितम्बो तक ,

और एक झटके से मंजू बाई ने निहुरी झुकी , गीता के उभार पकड़ लिए ,

क्या कोई मरद मसलेगा , जिस तरह मंजू बाई गीता की किशोर छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूंचियां मसल रही थीं।

और ये कन्या क्रीड़ा देख कर उनका औजार कब से एक दम पत्थर का हुआ तना खड़ा था।

मंजू बाई ने अपना दूसरा हाथ गीता की फैली मखमली खुली जाँघों के बीच घुसेड़ा और सीधे गीता की चूत भींच ली।

मंजू बाई की हथेली उसे मसल रही थी ,रगड़ रही थी , गीता की कच्ची किशोर चूत पिघल रही थी

और एक झटके में मंजू बाई बाई ने पेल दी ,एक नहीं दो उँगलियाँ एक साथ

गीता चीख उठी ,फिर सिसकने लगी ,

मंजू बाई की उँगलियाँ जड़ तक धंसी ,कभी अंदर बाहर तो कभी गोल

उनकी निगाहैं बस गीता की चूत और मंजू बाई की उँगलियों से चिपकी।

सटासट गपागप ,सटासट गपागप

और अचानक मंजू बाई ने मीठे शीरे से डूबी ऊँगली निकाल कर उनके भूखे होंठों पर रगड़ दी ,

"ले साल्ले गांडू ,चाट अपनी बहन की चूत का रस , पक्का बहनचोद बनाउंगी तुझे मैं। बहन के रस से मीठा कुछ भी नहीं ,. "

और कुछ ही देर में वो रस से भीगी ऊँगली उनके मुंह में थी ,वो सपड़ सपड़

लेकिन मौके का फायदा उठाने में गीता का सानी नहीं था ,मछली की तरह वो फिसल निकली ,

अब मंजू बाई नीचे

गीता ऊपर

क्लासिक 69 .

मंजू बाई की बुर में मुंह मारते , गीता बोली

" और माँ के भोंसडे का रस , . "

" अरे पूछ ले न अपने यार से ,अपने भइय्या से अभी तो चूस चाट रहा था। "

मंजू बाई कौन मौका छोड़ने वाली थी ,नीचे से गीता की चूत चाटती वो बोली।

और साथ ही मौक़ा पा के मंजू बाई ने बाजी पलट दी थी ,अब वो ऊपर और गीता नीचे ,

लेकिन 69 के पोज में चूत चुसाई चल रही थी।

वो गीता के मुंह की ओर बैठे , अब मंजू बाई के खूब भारी बड़े बड़े ४० + चूतड़ एकदम उनके पास

और मंजू बाई की बुर के नीचे दबी गीता ने मदद की गुहार लगाई।

" भैया आओ न मेरा साथ दो ,चल हम दोनों मिल के माँ को झाड़ देते है। ये छिनार अभी झड़ी है इत्ता जल्दी नहीं झड़ेगी ,आओ न भईया "

वो बोली।

और गीता ने उनका हाथ पकड़ कर सीधे उनकी ऊँगली मंजू बाई की बुर में ,एक साथ दो उँगलियाँ ,

अब वो मंजू बाई की बुर में ऊँगली कर रहे थे और गीता मंजू बाई की बुर को पूरी ताकत से चूस रही थी। डबल अटैक।

उंगलिया उनकी मंजू बाई की बुर में घसर घसर अंदर बाहर हो रही थीं ,

लेकिन निगाहे उनकी मंजू बाई के गदराये भरे भरे मोटे नितम्बो से ही चिपकी थी ,ललचाती ,ललकती।

एकदम परफेक्ट , परफेक्ट ४० +

मज़ा पिछवाड़े का

अब मंजू बाई के खूब भारी बड़े बड़े ४० + चूतड़ एकदम उनके पास

और मंजू बाई की बुर के नीचे दबी गीता ने मदद की गुहार लगाई।

" भैया आओ न मेरा साथ दो ,चल हम दोनों मिल के माँ को झाड़ देते है। ये छिनार अभी झड़ी है इत्ता जल्दी नहीं झड़ेगी ,आओ न भईया "

वो बोली।

और गीता ने उनका हाथ पकड़ कर सीधे उनकी ऊँगली मंजू बाई की बुर में ,एक साथ दो उँगलियाँ ,

अब वो मंजू बाई की बुर में ऊँगली कर रहे थे और गीता मंजू बाई की बुर को पूरी ताकत से चूस रही थी।

डबल अटैक।

उंगलिया उनकी मंजू बाई की बुर में घसर घसर अंदर बाहर हो रही थीं ,

लेकिन निगाहे उनकी मंजू बाई के गदराये भरे भरे मोटे नितम्बो से ही चिपकी थी ,ललचाती ,ललकती।

एकदम परफेक्ट , परफेक्ट ४० +

खूब बड़े बड़े , भरे हुए लेकिन एक इंच भी एक्स्ट्रा फ्लेश नहीं , सब मसल्स , टाट और फर्म , कड़े शेपली

मंजू बाई की खूब रसीली चिकनी मांसल जाँघे जहां नितम्बो के रूप में उभरती थी , बस लगता था किसी मैदान के ठीक बाद दो पहाड़ियां,

मंजू बाई के पिछवाड़े की फोटो किसी भी एक्सट्रीम बूटी या ४० + बूटी वाले साइट में जगह पा सकती थी। मैक्सिमम हिट भी मिलते ,

और उन दोनों मांसल पहाड़ियों के बीच वो पतली सी दरार एक दर्रे ऐसी ,जिसकी तलाश में लोग भटकते हों ,
एक बहुत छोटा सा भूरा छेद ,कसा कसा ,

जिसके चारो ओर हलकी हल्की बहुत छोटी छोटी कुछ सिलवटें सी पड़ीं,.

उनकी निगाहें वहीँ अटकी।

उनका एक हाथ बहुत प्यार से उन मस्त नितंबों को सहला रहा था ,

दूसरे हाथ की दो उंगलिया ,जड़ तक मंजू बाई की बुर में धंसी घसर घसर

गीता की शरारतें कम होने को नहीं आ रही थीं।

मंजू बाई की बुर चूसना रोक कर ,

गीता ने अपने दोनों हाथों से मंजू बाई की बुर के बड़े बड़े भगोष्ठों को पूरी ताकत से चियार दिया, जैसे किसी बुलबुल ने अपनी चोंच चियार दी हो।

" देखो न भैया ,माँ के भोसड़े का अंदर का नजारा,,"

अंदर की मांसल दीवालें , रस से भीगी ,गीली , लाल गुलाबी

" हैं न मस्त "

गीता ने मुंह उठा के उससे पुछा।

" हाँ एकदम "

मस्ती में चूर वो बोले।

" तो चोदो न घचाघच माँ की बुर ,इत्ती आसानी से वो नहीं झड़ने वाली "

और गीता ने मंजू के लैबिया को छोड़ दिया।

एकबार फिर कचकचा के मंजू बाई की बुर ने उनकी उँगलियों को दबोच लिया जैसे कोई मखमली पकड़ हो जबरदस्त ,
जो उँगलियों को बाहर निकलने से रोक रही हो।

जोर जोर से पूरी ताकत से वो गपागप ,कलाई के पूरे जोर से

और ऊपर से मंजू बाई भी लपलप लपलप गीता की चूत चाटते ,चूसते रुक रुक के बोलती ,

" पेल साले देखतीं हूँ तेरी ताकत लगता है बचपन में खूब अपनी माँ के भोसड़े में ऊँगली की थी ,मादरचोद। बचपन से ही ऊँगली करने में एक्सपर्ट थे ,मादरचोद। गीता चूस कस के ,देखती हूँ कितनी ताकत है ,भाई बहन में "

और साथ में मंजू बाई की बुर कस के उनकी उँगलियों को सिकोड़ कर निचोड़ भी रही थीं।

"भैया, दिखा दो माँ को अपनी ताकत , चल हम दोनों मिल के,. "

गीता ने जोश दिलाया।

फिर क्या था , उनकी दोनों उँगलियाँ ,

नक़ल से मोड़ कर उन्होंने चम्मच की तरह बना लिया और वो नकल मंजू बाई के भोंसडे की अंदरूनी मखमली दीवाल पर रगड़घिस्स

साथ में गीता भी अब कस के कभी मंजू बाई के दोनों रसीले मोटे मोटे लेबिया चूसती तो कभी जीभ से क्लीट को छेड़ती।

मंजू बाई की बुर रस की फुहार बरसा रही थी ,इनकी उँगलियों को भिगो रही थी। एकदम कीचड़ हो रही थी उसकी बुर और उसी में इनकी उँगलियाँ सटासट सटासट ,

पर निगाहें उनकी अभी भी मंजू बाई के गोल गोल चूतड़ों पर अटकी हुयी थी ,खूब कड़े भरे भरे ,

और बीच में एक छोटा सा कसा भूरा छेद ,उन्हें ललचाता ,उकसाता , उनका मन तो कर रहा था की,.

और उनके मन की बात गीता ने ताड़ ली , एक पल के लिए भोंसडे की चुसाई रोक के वो बोली ,

" भैया ,माँ पक्की छिनार है ,इत्ती आसानी से नहीं झड़ेगी। मैं अगवाड़े और तू पिछवाड़े , माँ का असली रस तो उस की ,. "

और जब तो वो कुछ सोचते समझते ,गीता की मजबूत कलाई ने उनके हाथ को पकड़ कर , उनकी बुर में रगड़घिस कर रही उँगलियों को निकाल के सीधे पिछवाड़े के छेद पर सटा दिया।

बहुत ताकत थी गीता की कलाई में ,

उनकी कलायी पकड़ के जो गीता ने पुश किया था एक ऊँगली के दो नक्कल सीधे मंजू बाई की गांड के अंदर।

और फिर जैसे कोई बोतल का ढक्कन घुमाये , बस उसी तरह घुमाते थोड़ी देर में आधी से ज्यादा ऊँगली गांड ने खा ली।

मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।
एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए

एक नया मजा

मंजू बाई की गांड भी जैसे कोई बिछुड़े प्रेमी को भेंटे ,उसी तरह बहुत कस के उनकी ऊँगली को दबोच रही थी ,सिकोड़ रही थी।

एकदम एक नया मजा मिल रहा था उन्हें और एक बार फिर उन्होंने ऊँगली को चम्मच की तरह मोड़ा और गांड की अंदरूनी दीवारों को करोचते हुए ,रगड़ते हुए

पहले तो उनकी ऊँगली की टिप पे , फिर पुरी ऊँगली पे एक अजब सी फीलिंग ,जैसे कोई मखमली सी ,लसलसी लसलसी , गूई सी

एक पल के लिए तो झिझके , पता नहीं कैसा कैसा लग रहा था लेकिन जब जोश से मंजू बाई की गांड ने उनकी ऊँगली को प्यार दुलार से भींच कर रिस्पांड किया फिर तो सब कुछ भूल के

गांड के अंदरूनी दीवारों को रगड़ते , पुश करते , गांड का छल्ला तो गीता के जोर ने ही पार करा दिया था अब तो वो एकदम गांड के अंदरूनी हिस्से का मजा ले रहे थे।

हलके हलके मंजू बाई भी अपनी गांड को पुश कर के जता रही थी की उसे कितना मजा आ रहा है।

लेकिन लाख कोशिश करने पर भी उनकी ऊँगली जड़ तक नहीं घुस पा रही थी ,मंजू बाई की गांड इतनी कसी थी।

गीता नीचे से चूसने में लगी थी लेकिन उसे उनकी हालत का अहसास था ,

" ऐसे नहीं जायेगी ऊँगली पूरी भैया , . "

वो बोली और जब तक वो कुछ समझपाते गीता की चिट्ठी कलाई ने उनका हाथ पकड़ा और ऊँगली गांड से बाहर निकाल दी।

और उसी ताकत से वो ऊँगली ने गीता ने उनके मुंह में घुसेड़ दी।

एक पल के लिए तो वो हिचकिचाए , वो ऊँगली तो अभी तक मंजू बाई की गांड में ,

कितना लिसलिसा गूई सा ,. लेकिन गीता के जोर के आगे कुछ चलता है क्या।

"अरे भैया , माँ की गांड का मक्खन है माँ का प्रसाद , अच्छी तरह से थूक लगा लो ,हाँ और अबकी दोनों ऊँगली। दोनों में थूक खूब लगा लेना। "

दोनों ऊँगली जो कुछ देर पहले मंजू बाई का बुर मंथन कर रही थी ,अब उनके थूक से लिसड़ी ,अबकी सीधे मंजू बाई की गांड में।

इस बार दोनों उंगलियां जड़ तक जा के ही रुकी और वो तूफानी चुदाई उन्होंने ऊँगली से की , उन्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की ऊँगली में क्या लिपट रहा है ,

और साथ में जिस तरह से मंजू बाई गांड सिकोड़ रही थी ,उनकी ऊँगली निचोड़ रही थी ,जवाब में धक्के लगा रही थी और सबसे बढ़ के ,एक गालिया दे रही थी

" अरे मादरचोद , तूझसे अपने सामने तेरी माँ का भोसड़ा मरवाउंगी , बचपन के गांडू ,
अभी तेरी गांड में कोहनी तक हाथ पेलुंगी बहनचोद। जो कसी कसी गांड लिए फिरता है न देखना , दस दिन के अंदर तुझे पक्का गांडू बना दूंगी। '

लेकिन बीच बीच में गीता पक्का बहन का रोल अदा कर रही थी उसका साथ दे के , बोली

" अरी माँ ,भैया को गांडू बनाएगी तो भइय्या को तो मजा ही आ जायेगा। वो तो खुद गांडू बनना चाहते है ,लेकिन ये बता तूझे मेरे भैया से गांड में ऊँगली करवाने में मजा आ रहा है न खूब ,बात क्यों बदलती है। "

" छिनार ,तेरा भाई है तो मेरा भी तो कुछ लगता है। मैं अपने बेटे से अपना भोसड़ा मरवाउं ,गांड मरवाऊं तुझे क्या। और बेटा गांड नहीं मारेगा तो क्या तेरी तरह अपने भाई से मरवाउंगी ,भाई चोद। "

मंजू बाई भी जवाब देने का मौका क्यों छोड़ती।

लेकिन गांड और बुर दोनों पर हमले का असर ये हुआ की अब मंजू बाई झड़ने के कगार पर बार बार पहुँच जाती ,

लेकिन झड़ नहीं रही थी।

उन्होंने अब एक बार अब अपनी दोनों उँगलियाँ मंजू बाई की गांड से बाहर निकाल के

दोनों हाथ से पूरी ताकत से मंजू बाई की गांड का छेद चियार दिया ,

" देख भैय्या , माँ की गांड में कितना माल है ,"

और जिस तरह गीता ने आँख मारी वो इशारा समझ गए।

नीचे गीता ने अपने दोनों होंठों के बीच मंजू बाई के बुर के दोनों होंठों को दबोचा और कस के चूसना शुरू किया ,

और उधर उनके होंठों ने पिछवाड़े के छेद को ,

ऐसा नहीं है पिछवाड़े के छेद को चाटने चूसने का ये उनका पहला मौका था ,

मैंने तो बर्थडे के ही दिन ,

और जबरदस्त अंदर जीभ डाल के उन्होंने चाटा चूसा भी था ,

फिर उनकी सास ने तो सारी हदें उस रात पर करवा दी थी ,जिस दिन उनकी नथ उतारी , लेकिन घर के बाहर ये पहली बार

और गीता और मंजू बाई मिल के जो उन्होंने अपनी सास के साथ किया था ,

उससे भी ज्यादा

जीभ उनकी अंदर उतर चुकी थी , पिछवाड़े की सुरंग में ,अँधेरी गीली गीली गली में , पूरे अंदर तक

सपड़ सपड़.

उसका असर जबरदस्त हुआ , और मंजू बाई ने गीता की कसी चूत चूसने के साथ उनकी गांड पर भी हमला बोल दिया।

मंजू बाई की जीभ गीता की रसीली चूत में धंसी हुयी थी , होंठ चूत के गुलाबी किशोर होंठ चूस रहे थे और अब मंजू बाई का मोटा अंगूठा , गीता की गांड की दरार पर।

थोड़ी देर तक मंजू बाई अपना अंगूठा गीता की गांड पर रगड़ती रही और फिर अचानक पूरी ताकत से गीता की कसी गांड में उसने अंगूठा पेल दिया।

गीता झड़ने लगी ,फिर तो जैसे तूफ़ान आ गया।

गीता का बदन तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रहा था फिर भी उसने मंजू बाई की चुसाई नहीं छोड़ी और कचकचा के गीता ने मंजू बाई की क्लीट काट ली /

और अब मंजू बाई भी ,

एक बार

बार बार

लगातार , दोनो झड़ रही थीं ,

और उनकी जीभ भी साथ साथ मंजू बाई की गांड में पूरी तेजी के साथ

कुछ देर में लस्त पस्त होकर तीनो वहीँ मिटटी के फर्श पर पड़े रहे।

न अपनी सुध थी न दूसरे की न वक्त की

चाँद जैसे कुछ देर के लिए रुक गया था , और फिर तेजी से डग भरते हुए अपने रस्ते चलने लगा।

मंजू और गीता

कुछ देर में लस्त पस्त होकर तीनो वहीँ मिटटी के फर्श पर पड़े रहे।

न अपनी सुध थी न दूसरे की न वक्त की

चाँद जैसे कुछ देर के लिए रुक गया था , और फिर तेजी से डग भरते हुए अपने रस्ते चलने लगा।

चांदनी को छेड़ने वाले आवारा बादल भी इधर उधर बिखर गए थे।

किसी में उठने की ताकत नहीं बची थी।

वो दोनों तो झड़ के लथर पथर थी और ये बिचारे अभी भी बिना झड़े , बम्बू उसी तरह तना , लेकिन थक तो वो भी गए थे।

कुछ देर बात गीता अंगड़ाई लेती हुयी उठी ,प्यार से उनको देखा और ठसके से मुस्कराते हुए अपने भैया की गोद में जा के बैठ गयी , प्यार से दुलराते सहलाते 'उसे ' पकड़ लिया और बोली , लेकिन वो बात उनसे नहीं बल्कि उनके 'उससे ' कर रही थी ,

" बहुत गुस्सा हो न। मालुम है मुझे , गुस्सा होने वाली बात है है। मैं झड़ गयी ,माँ झड़ गयी लेकिन तू वैसा ही भूखा प्यासा , गुस्से की बात है ही। "

और ये कहते गीता ने एक झटके से जो चमड़ा खींचा तो सुपाड़ा खुल गया ,

खूब मोटा , लाल गुस्साया , मांसल सुपाड़ा

प्यार से एक दो तमाचे हलके से गीता ने तन्नाए लन्ड को मारा और अंगूठा सुपाड़े पे रगड़ते ,मुस्करा के बोली।

" पगले दिलवाऊंगी न ,पक्का , अरे अभी रात बाकी है पूरी।

सबसे पहले माँ के भोंसड़ा , बहुत पियासी ,चुदवासी है वो छिनार , खूब हचक के चोदना उसको। "

तब तक मंजू बाई भी उन दोनों के पास आके बैठ गयीं थी और उन्होंने भी गीता की बात में टुकड़ा लगाया ,

" लेकिन तू कौन कम , . . "

और अब उनकी ओर प्यासी आँखों से देखती गीता भी बोली ,

" सच्ची भैय्या , कित्ते महीने होगये जब से वो ,मेरा मरद कमाने गया , फिर मैं पेट से थी इधर उधर भी कुछ नहीं ,
और मेरे मरद का था भी तो एकदम केंचुए जैसा। "

फिर उनके होंठों को चूम के कस कस मुठियाते बोली ,

" और मेरे भैया का तो एकदम कड़ियल नाग है कितना मोटा ,कित्ता कड़क। देख भैया तुझसे कितनी मस्ती से चुदवाती हूँ , एकदम निचोड़ लुंगी , और उसके बाद बिना नागा बहन के साथ मजे लेना। "

मंजू बाई की निगाह उनके चेहरे पर थी ,एकदम चमक रहा था।

गीता समझ गयी और हंसते हुए बोली ,

" अरी माँ क्या देख रही है तेरा ही तो रस है , भोंसडे का ,गांड का , देख तेरे बेटे ने कित्ते कस कस के चाटा है। ज़रा तू भी चख ले न "

मंजू बाई से दुबारा कहना नहीं पड़ा और तेजी से मंजू बाई के होंठ उनके चेहरे से रस चाटने चूसने लगे।

गीता उनके गोद में बैठी थी और उन्होंने पकड़ रखा था , कस के सीधे गीता के किशोर उभारो के नीचे।

गीता ने उनका हाथ पकड़ के सीधे अपने छोटे छोटे उभार पे रख दिया ,थोड़ा मुह बनाते , मानो कह रही हो , "

क्या भैया तुम्हे ये भी नहीं मालुम , जवान होती बहन कोगोद में बैठाने पर उसे कैसे पकड़ते हैं। "

और वो सीधे भले हो लेकिन इतने अनाड़ी भी नहीं थे ,

एक हाथ की उंगलियां गीता के खड़े मटर के दाने की साइज के निपल को पकड़ के पुल करने लगे और दूसरा हाथ गीता की टेनिस बाल साइज चूँचियों को हलके हलके दबाना लगा।

जवाब में गीता ने भी लन्ड को अब पूरी तेजी रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।

मंजू अभी भी उनके मुंह को चूस चाट के साफ़ कर रही थी।

अचानक गीता को कुछ याद आया , वो बोली ,

" माँ तुम सिर्फ पान लायी थी या पाउच भी ? "

"पाउच भी लायी थी लाती हूँ " मंजू बोली

और कुछ ही देर में मंजू बाई ६-७ पाउच के पैकेट ले आयी.

उनके मायके में तो सवाल ही नहीं था ,

लेकिन पिछले कुछ दिनों में मैंने और फिर उससे भी बढ़कर उन्हें 'विदेशी ' का स्वाद तो चखा दिया था , देसी तो लेकिन उससे सौ गुना ज्यादा

" चल उठ जा के ग्लास ले आज , बड़ी देर से सिंहासन पे बैठी है। "

मंजू बाई ने गीता को बोला पर उसने साफ़ मान कर दिया ,

" नहीं नहीं माँ , बड़ा मस्त सिंहासन है भैया का ,ला मुझे दे न ग्लास की कोई जरूरत नहीं , दे मुझे एक पाउच न। अरे हमारी देह में तो ग्लास ही ग्लास है। "

पाउच फाड़ के पहले तो गीता ने सीधे आधा अपने मुंह में गटक लिया , लेकिन गले के अंदर एक बूँद नहीं गयी। गीता का मुलायम गाल एकदम फूला फूला

और उनके गोद में बैठी कस के उन्हें अपनी ओर खींचा ,

फिर गीता के मुंह की देसी दारु आधे से ज्यादा सीधे उनके मुंह में और फिर पेट में ,

अगला पाउच मंजू बाई के मुंह से होते हुए उनके पेट में ,

एक पाउच तो गीता ने उन्हें प्यार से छोटे बच्चे की तरह अपनी गोद में लिटाया और फिर गीता की नशीली चूँचियों से टपकती हुयी बूंदे सीधे उनके मुंह में

" एक भी बूँद इधर उधर हुयी न भैया तो बहुत मारूँगी। "

गीता ने धमकाया।

जो थोड़ी बहुत बची तो उसे हाथ में ले के गीता ने सीधे उनके लन्ड पे मालिश की ,

" अरे असली नशा तो इसे होना चहिये न "

और मंजू बाई ने तो सीधे अपनी नीचे वाली कुप्पी में भर कर पिलाया।

डेढ़ पौने दो बोतल के बराबर तो उन लोगों के अंदर गया ही होगा ,और उसमें से कम से कम एक बोतल सिर्फ उनके अंदर ,

मंजू और गीता की देह से हो के।

गुड्डी

और फिर मंजू बाई ने गुड्डी की बात छेड़ दी।

" तू जानती है ,इसकी एक छोटी बहन भी है,एकदम मस्त पटाखा माल। मैंने फोटो देखी है।

साली क्या चूंचियां है मस्त ,शक्ल से चुदवासी लगती है।

तुझसे थोड़ी ही छोटी होगी , पक्की छिनार , नाम क्या है उसका , ?"

मंजू बाई बोलीं।

" गुड्डी " उन्होंने बोल दिया।

गीता उनकी जाँघों पे सर रख के लेटी थी , अपने होंठों से खड़े मस्ताए लन्ड को कभी चूम लेती थी तो कभी हाथ से पकड़ के मुठियाती थी।

एक बार फिर जैसे उनके हथियार से बात कर रही हो ,गीता ने उसे हलके हलके सहलाते बोला ,

" ये मैं न पूछुंगी की साल्ले तूने उसे चोदा की नहीं , ये बोल की उसकी चूत , झांटे आने के पहले फाड़ी या बाद में।
चुदती तो होगी ही ,इत्ता मस्त लन्ड जिसके भाई का हो वो तो खुद पकड़ के गप्प कर लेगी। "

और जब उन्होंने कबूल किया की गुड्डी अभी तक अनचुदी है ,

तो फिर तो गीता गुस्से से अलफ।

" उससे तो मैं बाद में निपटूंगी बोल इस बिचारे को क्यों भूखा रखा , ऐसा मस्त माल घर में और मेरा यार भूखा रहे ,

अगर कभी मुझसे मिलेगी न वो तेरी,… “

और उनके मुंह से निकल गया की वो दस पंद्रह दिन में आने वाली है तो फिर तो गीता और मंजू बाई दोनों चालू ,

" भैया , अगर अपने सामने उसे न चुदवाया इस लन्ड से तो कहना , बुर ,गांड मुंह सब में घोंटेगी छिनार

और खुद पकड़ के सबके सामने घोंटेगी। बिचारे मेरे प्यारे सीधे भैया को इतना तड़पाया। "

गीता बोली।

" साली को एकदम रन्डी बना दूंगी बस हम दोनों माँ बेटी के हवाले कर देना ,बस एक दिन के लिए। कोठे की रंडी मात सारे ट्रिक चुदाई के सीख जायेगी। "

मंजू बाई ने जोड़ा।

" अरे माँ ये सब बातें भैया से बोलने की हैं क्या , बस भैया तू उसे ले आ ,आगे की जिम्मेदारी हम दोनों की। ये बोल उस की चूंचियां कितनी बड़ी है। "

गीता अब फिर एक बार उनकी गोद में बैठ गयी थी।

" बस तुझसे थोड़ी ही छोटी हैं "

उन्होंने गीता की चूंची रगड़ते मसलते बोला।

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