Episode 33


" वाह भैया निगाह रखते हो उसकी चूंची पे। " हंस के गीता बोली , चल आने दो मेरे बराबर तो मैं ही रगड़ मसल के कर दूंगी उसकी। फिर मेरी छिनार माँ भी है , हम तीनो ,भैया मैं और माँ मिल के उसका हलवा बनाएंगे। "

और मंजू को याद आ गया।

" हे तूने बोला था न भैया आएंगे तो अपना स्पेशल हलवा खिलाएगी तो जा ले आ न " मंजू बाई ने गीता को हड़काया।

और गीता उठ के अपने चूतड़ मटकाती रसोई की ओर चल दी।

मंजू बाई भी उनका हाथ पकड़ के आंगन में ले आयी और चटाई वहीँ बिछा दी।

मस्त हवा आ रही है यहाँ ,वो बोली और उनका हाथ पकड़ के बैठा दिया।

" असली नशा तो तुझे गीता के हलवे को खा के होगा , देखना क्या मजा आता है और गीता न बिना खिलाये छोड़ेगी नहीं। "

मंजू बाई उनके बगल में बैठी ,मुस्कराके उनके गालों को सहलाती बोल रही थीं।

एक बार फिर ठंडी ठंडी हवा चल रही थी ,आसमान में वो आवारा बादल फिर इक्कट्ठे हो रहे थे।

हवा में मिटटी की सोंधी सोंधी महक से लग रहा था की आसपास कही पानी बरस रहा है। मंजू बाई के घर के बाहर के बड़े से नीम के पेड़ की परछाईं आंगन में आ रही थी।

और अचानक उनके मन में मंजू बाई की शाम की बात , जब उसने बोला था की रात में दस बजे आना तो ये भी कहा था की तुझे सब कुछ खाना पीना पडेगा जो गीता खिलाएगी ,गीता की देह ,.

और मंजू बाई की बातों ने फिर उसके सोचने में ब्रेक लगा दिया।

" हे ये मत कहना की तुमने अपनी बहन को नहीं चोदा तो भोंसडे का भी मजा नहीं लिया ,

अरे तेरे घर में साले दो दो मस्त माल और तू ऐसे ही , चल अब हम लोगों के कब्जे में आ गया है न तो तुझे ऐसा हरामी बना देंगे की

तू किसी को न छोड़ेगा ,न माँ न बहन।

अरे इता मस्त मोटा लन्ड ले के , "

कान उनके मंजू बाई की बातें सुन रहे थे लेकिन मन में कही शाम की उसकी बात गूँज रही थी , गीता की देह से , और गीता हलवा

क्या खिलाएगी वो

तबतक फिर सुना उन्होंने मंजू की आवाज गीता आ न तेरा भाई भूखा बैठा है।

आती हूँ माँ और भैया को तो आज सीधे अपनी कड़ाही से खिलाऊंगी।

फिर उनके मन में कुछ कुछ ,

लेकिन गीता किचेन से कढाही लेकर निकली ,

ताजे गरम गरम बेसन के हलवे की खुशबू।

प्यासे की प्यास

लेकिन गीता किचेन से कढाही लेकर निकली ,

ताजे गरम गरम बेसन के हलवे की खुशबू।

न कोई प्लेट न कटोरी न चम्मच

लेकिन अब तक वो समझ गए थे गीता का इश्टाइल

उसने अपने हाथ से लेकर पहले तो उन्हें ललचाते हुए सीधे अपने मुंह में डाल दिया

और जो ऊँगली में लगा था उनके गालों में पोंछ दिया।

फिर गीता के होंठ सीधे उनके होंठों पे

गीता के मुंह से , गीता के थूक से मिला , लिथड़ा सीधे उनके मुंह में , गीता ने अपनी जीभ ठेल दी ,साथ में बेसन का हलवा

" ऐसे ही खिलाऊंगी ,घोटाउंगी तुझे जबरन , सटासट घोंटेगा तू , गपागप लीलेगा। समझे मुन्ना "

मंजू बाई बोली और उनके गाल पर लगा हुआ हलवा चाट लिया , फिर बोली

" अरे वाह मीठे हलवे का नमकीन गाल के साथ मिल के क्या मस्त स्वाद आता है। "

और अगली बार चाटते हुए कचकचा के काट भी लिया पूरी ताकत से मंजू बाई ने

वो बिचारे चीख भी नहीं पाए , उनका मुंह तो गीता ने सील कर रखा था अपने मुंह से और गीता की जीभ उनके मुंह में घुसी

" तेरे भइय्या के गाल किसी मस्त नमकीन लौंडिया से कम मजेदार नहीं है , देख गांडू कितने मजे से कटवा रहा है। "

और मंजू बाई ने दुबारा उनके चिकने गाल काट लिए।

मुंह का हलवा ख़तम हो जाने के बाद गीता ने अपनी हलवे में लिपटी ऊँगली उनके मुंह में घुसेड़ दी और वो लगे चाटने चूसने। "

" माँ , ये तेरा बेटा सिर्फ गांडू ही नही है देख लन्ड चूसने में भी पक्का है देख कैसे ऊँगली चूस रहा है जैसे मोटा लन्ड हो उसके मुंह में। "

गीता ने एक ऊँगली और मुंह में ठूंसते हुए चिढाया।

" अरे और क्या , और जो कुछ कमी होगी तो मैं सीखा दूँगीं न। एकदम पक्का उस्ताद,लन्ड चूसने में
अपनी माँ बहन को भी मात कर देगा। अरे हम दोनों मिल के एक साथ चूसेंगे न मोटा मोटा लन्ड। "

मंजू बाई उनके गाल को एक बार फिर कचकच काटते बोलीं।

और अब मंजू बाई की बारी थी अपने मुंह से उन्हें हलवा खिलाने की और साथ में वो बोली ,

" अभी तो कुचा कुचाया खिला रहीं हूँ और बस अभी थोड़ी देर में पचा पचाया भी खिलाऊंगी , और जरा भी ना नुकुर किया न तो बहुत पिटोगे। "

मंजू बाई कुछ प्यार से ,कुछ धमकाते बोलीं और फिर उनके मुंह से थोड़ा खाया ,थोड़ा अधखाया हलवा सीधे उनके मुंह में।

" अरे माँ , भैया कुछ भी मना नहीं करेंगे देख लेना ,अरे उनकी माँ बहने किसी को भी नहीं मना करतीं न , जो कहता है उसके आगे अपनी टाँगे उठा देती हैं पीछे चिकनाई लगा के टहलती हैं की क्या पता कब मोटा लन्ड मिल जाए ,

तो ये काहें मना करेंगे , हम लोग जो भी खिलाएंगे पिलायेंगे ,सब कुछ प्यार से खाएंगे ,पियेंगे , क्यों है न भैया।

और फिर माँ जो हलवा हम तुम खा रहे हैं वो सब भी तो सुबह होते होते इनके पेट में जाएगा , हमारे पेट और इनके मुंह के रास्ते। "

और उनके कान को काटते हलके से हस्की आवाज में वो छिनार लौंडिया बोली ,

" क्यों भईया खाओगे न "

" अब तो तुम्हारे हवाले हूँ जो करवाओ करूँगा। " मुस्कराते हुए वो बोले।

उन दोनों ने उन्हें अपना हाथ इस्तेमाल करने की जहमत नहीं दी।

गीता मंजूबाई ने अपने मुंह से ही उन्हें सारा हलवा खिलाया और वैसे भी उनके दोनों हाथ मस्त मगन थे ,

एक हाथ में किशोर चूचियां जिसे दबाते मसलते उन्हें बार बार गुड्डी की याद आ रही थी ,

और

दूसरा तो खूब बड़ा मस्त कड़ा ,

आलमोस्ट उनकी सास की समधन

कुछ ही देर में हलवा ख़तम हो गया आलमोस्ट।
और एक झटके में गीता ने कड़ाही से सारा बचा हुआ हलवा निकाल कर सीधे उसके मुंह में , गरमागरम।

मुंह एकदम जल गया।

ओह्ह उह्ह्ह ,पूरा मुंह गरम गरम हलवे से भर गया था , आँखों में पानी आ गया।

पानी पानी , मुश्किल से वो बोले।

खिलंदड़ी गीता ने हलके से धक्के से उन्हें चटाई पर पीठ के बल गिरा दिया , और मुस्करा के बोली,

" छोटा बच्चा पानी पियेगा , मुंह जल गया क्या ?"

वो एकदम उसके मुंह के पास ,दोनों पैर गीता के उनके हाथों पर मजबूती से ,

वो उनकी छाती के ऊपर ,गीता की कमर एकदम उनके मुंह के पास।

गीता ने अपने हाथों से सँड़सी की तरह उनके सर को दबोच रखा था।

आसमान बादलों से भर गया था , काला अँधेरा , हवा तेज हो गयी थी ,
लग रहा था पानी अब बरसा तब बरसा।

गीता और झुकी ,उसकी किशोर कच्ची संतरे की फांको ऐसी रसीली चूत बस उनके होंठों से इंच भर दूर ,

उनका मुंह जल रहा था , और उस शोख ने उनकी आँख में झाँक के पूछा ,

" बोल , बहुत प्यास लगी है ,भैया , पिला दूँ पानी। "

किसी तरह उनके मुंह से निकल हां हां।

और उधर मंजू बाई भी ,

" अरे पिला दो न बिचारे पियासे को पानी , तड़प रहा है दो बूँद को , काहें तड़पा रही हो। प्यासे की प्यास बुझाने से बड़ा पुण्य मिलता है। "

आसमान में काली स्याही पुत गयी थी , घुप अँधेरा ,

अचानक बिजली चमकी बहुत तेज

और उसकी रौशनी में उन्होंने देखा ,

किशोर चम्पई देह यष्टि ,छरहरी , उसकी काले बाल नागिन की तरह लहरा रहे थे ,

उसकी गुलाबी चूत इंच भर भी नहीं दूर थी उनके प्यासे खुले होंठों से ,

वो उसकी तेज मस्की महक महसूस कर रहे थे।

उफ्फ्फ

" पियेगा पानी , एक बूँद भी बाहर छलकी न तो बहुत पीटूंगी। "

दिख कुछ नहीं रहा था ,सिर्फ आवाज सुनाई पड़ रही थी।

समझ वो भी रहे थे ,गीता भी और मंजू बाई भी।

बारिश की पहली बूँद उनकी देह पर गिरी।

और गीता के निचले होंठों से सुनहरी बूँद ,पहले होंठो पर फिर सरक कर सीधे उनके खुले मुंह में।

लालटेन की पीली रौशनी में पीली सुनहरी बूंदे ,

रिमझिम हलकी हलकी बूंदो की आवाज आंगन ,छत से आ रही थी।

अब सुनहली बूंदे धीरे धीरे धार बन कर उन के मुंह में

धीरे धीरे ,छलछल छलछल

और गीता ने तेजी से अपनी नशीली चूत से उनके खुले प्यासे होंठ बंद कर दिए , और अब तो

घल घल घल घल

जैसे कोई चोद रहा हो ,उसी तरह गीता ने उनके मुंह से अपनी चूत रगड़ रही थी ,जोर जोर से धक्के मारते

एक एक बूँद

देर तक , और जब उठी तो हटने के साथ गीता ने एक गहरी चुम्मी उनके होंठों पे और जीभ उनके मुंह के अंदर।

उनके मुंह में अभी भी , पर गीता को परवाह नहीं थी।

और गीता के बाद फिर मंजू बाई।

बारिश बहुत तेज हो गयी थी।

मंजू बाई की मांसल जाँघों के बीच उनका सर जकड़ा हुआ था , गीता ने लालटेन पास में ही रख दी थी इसलिए अब बहुत कुछ दिख रहा था।

काली काली झांटे , खूब मोटे मोटे मंजू बाई की बुर के मांसल होंठ ,

और खूब देर तक।

गीता बगल में बैठी देखती रही ,उनका सर सहलाती रही।

तीनो आंगन में बारिश से भीग रहे थे।

और जब मंजू बाई उठीं

काली काली घनी झांटो के बीच चार पांच बड़ी बड़ी पीली सुनहली बूंदे ,

सर उठाके , जीभ निकाल के उन्होंने चाट लिया।

बारिश की तेज धार अब एक बार हलकी हलकी रिमझिम बूंदो में बदल गयी।

लेकिन इच्छाओ की आंधी और वासना की बारिश की तेजी में कोई कमी नही आयी थी।

बारिश

बारिश बहुत तेज हो गयी थी।

मंजू बाई की मांसल जाँघों के बीच उनका सर जकड़ा हुआ था ,

गीता ने लालटेन पास में ही रख दी थी इसलिए अब बहुत कुछ दिख रहा था।

काली काली झांटे ,

खूब मोटे मोटे मंजू बाई की बुर के मांसल होंठ ,

और खूब देर तक।

गीता बगल में बैठी देखती रही ,उनका सर सहलाती रही।

तीनो आंगन में बारिश से भीग रहे थे।
और जब मंजू बाई उठीं

काली काली घनी झांटो के बीच चार पांच बड़ी बड़ी पीली सुनहली बूंदे ,

सर उठाके , जीभ निकाल के उन्होंने चाट लिया।

बारिश की तेज धार अब एक बार हलकी हलकी रिमझिम बूंदो में बदल गयी।

लेकिन इच्छाओ की आंधी और वासना की बारिश की तेजी में कोई कमी नही आयी थी।

टिप टिप टिप

पानी छत की ओरी से , नीम के पेड़ की शाखों से गिर रहा था।

रह रह कर मोटी मोटी बूंदे आंगन को गीला कर रही थीं ,

और

उन तीनो की वासना में तपती देह को भी भीगा रही थीं।

पर काम की अगन ,कम होने को नहीं आ रही थी।

वो सैंडविच बने थे ,

एक खेली खायी प्रौढा और नयी नवेली बछेड़ी के बीच

गदराये पथराये ३८ डी डी और नए नए उभरते ३२ सी के बीच

भोंसडे और कसी चूत के बीच।

आगे से मंजू बाई और पीछे से गीता ,दोनों ने कस के दबोच रखा था उन्हें।

अद्भुत , वो सोच भी नहीं सकते थे ऐसा अनुभव मजा सिर्फ मजा

" मादरचोद , क्या दो मरद ही एक साथ ,किसी लौंडिया का मजा ले सकते हैं। "

गीता की कोयल सी आवाज उनके कान में गुंजी ,गीता ने हलके से उनके ईयरलोब को चुभलाते हुए काट लिया ,

और फिर

गीता की कमल की डंडी सी कोमल बांह,उनकी कांख के अंदर से घुस कर उनकी छाती को अँकवार में बाँध दिया ,

गीता की उँगलियाँ,नाख़ून सहला रही थीं ,उनका चौड़ा सीना ,तन्नाए निप्स ,

गीता का दूसरा हाथ ,उनके कोमल नितम्बो को प्यार से सहला रहा था

और हलके हलके नितंबों की दरार के बीच गीता की शरारती उँगलियाँ

गीता के नए नए आये कोमल रुई के फाहे से मस्त उभार , खूब गदराये ,दूध से भरे छलकते , पीछे से उनकी पीठ पर रगड़ रहे थे।

"मार ले साल्ले बहनचोद की गांड ,अब तक किस के लिए बचा के रखा है ,बहन के भंडुए "

आगे से मंजू गरजी।

मंजू बाई की बड़ी बड़ी चूंचियां , खूब भारी लेकिन एकदम कड़ी आगे से उनके सीने को जोर जोर से दबा रहा था ,रगड़ रहा था ,पूरी ताकत से पीस रही थी अपने पथरीले जोबन की चक्की से उनके सीने को पीस रही थीं।

मंजू बाई का बायां हाथ अपनी बेटी गीता की रेशमी चिकनी पीठ पर , हलके हलके टहल रहा था और फिर उसे पकड़ कर कस के वो उनकी ओर खींच रही थी ,प्रेस कर रही थी.

मंजू बाई का दायां हाथ उनके कड़े खड़े चर्मदण्ड को हलके हलके सहलाता हुआ , और उसकी भारी चिकनी खुली जाँघे ,उनकी जाँघों पर रगड़ती। चर्मदण्ड का खुला मुंह ,मंजू बाई की गुलाबी सहेली के मुँह को बस सहलाता हलके से रगड़ता ,

और मंजू बाई ने उन्हें चूम लिया। हलके से नहीं ,अपने दोनों पान के रंग से रँगे ,रसीले होंठों के बीच कस के उनके होंठों को पकड़ के वो चुभलाने चूसने लगी और कचकचा के काट लिया ,साथ में मंजू बाई की मोटी जीभ उनके मुंह के अंदर घुस गयी ,.

गीता के उनके सीने पर टहलते कोमल हाथ ने कचकचा के उनके निप्स को नोच लिया पूरी ताकत से और गीता का दूसरा हाथ जो उनके नितम्ब की दरार के बीच में था ,पूरी ताकत के साथ उसने पेल दिया उनकी कसी गांड में जबरदस्ती , बेरहमी से।

गांड के छल्ले को दरेरता ,रगड़ता ,घिसता अंदर तक।

मंजू बाई की उँगलियाँ अब मुट्ठी बन के उनके चर्मदण्ड को हलके हलके मुठिया रही थीं। अपने अंगूठे से वो कभी लन्ड के बेस को दबा देती तो कभी जोर से खुले सुपाड़े को रगड़ देती।

गीता की उंगलिया धीरे धीरे हौले हौले उनकी गांड में गोल गोल घूम रही थीं। और साथ में वो शोख किशोरी अपने कड़े अकड़े जोबन की बरछी की नोक उनकी पीठ में चुभा रही थी।

आगे से मंजू बाई के ३८ डी डी साइज के जोबन उनके सीने पे रगड़ रहे थे। पीछे से किशोरी के उभार और आगे से एक प्रौढा के उरोज

टिप टिप टिप बड़ी बड़ी बूंदिया उन तीनो के ऊपर पड़ रही थी।

काले काले बादल ,एकदम घुप्प अँधेरा ,हाथ को हाथ न सूझे ऐसा

सिर्फ देह से देह के रगडने का अहसास हो रहा था।
….
दोनों ओर से उनपर प्रेशर बढ़ रहा था ,आगे से एक खेली खायी गदरायी प्रौढा का और पीछे से जोबन के जोश में डूबी नयी बछेड़ी का।

एक प्रौढ़ा ,

एक किशोरी

दोनों ओर से उनपर प्रेशर बढ़ रहा था ,

आगे से एक खेली खायी गदरायी प्रौढा का और पीछे से जोबन के जोश में डूबी नयी बछेड़ी का।

उनका बौराया ,भूखा डंडा बस तड़प रहा था ,मन कर रहा था , कुछ न हो तो मंजू बाई ही मुठिया के एक बार झाड़ दे।

कब से तड़प रहे थे बिचारे वो , पर किस्मत ,.

मंजू बाई के मुठियाते हाथ ने उनके प्यासे चर्मदण्ड को छोड़के सीधे अपनी मुट्ठी में कस के उनके पेल्हड़ को ,बॉल्स को जकड़ लिया

और लगी दबाने।

पिछवाड़े गीता की दो उंगलिया पूरी ताकत से उनके गांड के अंदर बाहर , कभी गोल गोल

और आगे से मंजू बाई की मखमली मांसल मोटी मोटी जाँघों ने उनकी टांगो को इस तरह दबोच रखा था की वो हिल भी नहीं सकते थे ,

उनका खड़ा तन्नाया लन्ड सीधे मंजू बाई की बुर से रगड़ खा रहा था।

गीता का जो हाथ उनके सीने पे उनके निप्स को नोच खसोट रहा था ,रगड़ रहा था सरक के अब नीचे ,

गच्च से गीता ने उनके मोटे कड़े लन्ड को पकड़ लिया और जोर जोर से मंजू बाई के भोसड़े पर रगड़ाती , उन्हें चिढाया ,

" क्यों मादरचोद ,मजा आ रहा है न माँ के भोंसडे पर लन्ड रगडने में। "

और उसी के साथ गीता ने अपनी तीसरी ऊँगली भी गचाक से उनकी गांड में पेल दी।

उनकी चीख घुट के रह गयी ,मंजू बाई की जीभ अभी भी उनके मुंह में थी ,उनके होंठ मंजू बाई के होंठों ने दबोच रखे थे।

लेकिन उनके होंठों को आजाद करते मंजू बाई ने छेड़ा ,गीता से पूछा ,

" क्या हाल है इस गांडू बहनचोद की गांड का,. "

मंजू बाई की तीन उंगलियां उनके बॉल्स को हथेली के साथ दबा रही थीं ,प्रेस कर रही थीं लेकिन तर्जनी और मंझली , पिछवाड़े के गोल दरवाजे का चक्कर काट रही थी।

" अरी माँ ,इस मादरचोद की गांड नहीं है रसीली चूत है हमारी तरह। बस आगे की जगह पीछे है ,चल मिल के हम दोनों इसको तेरे भोंसडे से भी चौड़ा कर देंगे ,बहुत बचा के रखा था गुड्डी के भंडुए ने , डाल के देख ले न ,चिल्लाने दे माँ के खसम को। "

और मंजू बाई ने गांड के पास चक्कर काटती दोनों उँगलियाँ एक झटके में उनके गांड में उतार दी।

एक साथ पांच उंगलिया

जोर से चीखे वो , पर बारिश की आवाज में कौन सुनने वाला था।

मंजू बाई को मालुम था उन्हें चुप कराने का तरीका ,

एक बार फिर से उनके होंठ मंजू बाई के होंठों के बीच और तेजी से काट लिया उनके होंठों को मंजू बाई ने।

गांड बहुत तेज दुःख रही थी ,दोनों की पांच उँगलियाँ अंदर ,

लेकिन एक अलग मजा भी आ रहा था जैसे मंजू बाई की बुर पे रगड़ते सुपाड़े पे आ रहा था।

गीता ने जैसे उनकी मन की बात भांपते , मंजू बाई की बुर के दोनों होंठों को खूब जोर से फैला के उनका मोटा सुपाड़ा उसमें फंसा दिया ,

फिर जैसे एक साथ , पूरी ताकत से धक्का , आगे से भी पीछे से भी

और आधा लन्ड मंजू बाई की रसीली बुर ने घोंट लिया।

और उसी के साथ मंजू गीता की पांच उंगलिया घचाक घचाक उनकी गांड मारने लगी , पूरी ताकत से।

गीता ने अपनी उँगलियाँ मोड़ ली और उस के नकल गांड की दीवालों पर करोच रहीं थीं ,रगड़ रही थी पूरी ताकत से ,

तड़प रहे थे वो दर्द से मजे से

खबरदार जो झड़े तो , पीछे से गीता ने वार्न किया।

मंजू बाई के होंठों ने अब उनके होंठों को आजाद कर दिया और मंजू के होठ उन गालो को चूम रहे थे चाट रहे थे ,

बीच बीच में कचकचा के काट लेते ,मंजू बाई की लार उनके गालो को गीला कर रही थी , भिगो रही थी।

मंजू बाई की बुर ,नीचे जोर जोर से आधे से ज्यादा घुसे उनके लन्ड को सिकोड़ रही थी ,पूरी ताकत से निचोड़ रही थी।

उन्होंने एक दो बार कोशिश की पर मंजू ने जोर से बरज दिया।

वो जान चुके थे जब तक इन दोनों की मर्जी नहीं होगी ,कुछ भी नहीं हो सकता ,

मंजू बाई की बुर जिस तरह से उनके सुपाड़े को ,उसकी बुर में आधे घुसे लन्ड को , रुक रुक के भींच रही थी

एक जबरदस्त थ्रोबिंग फीलिंग हो रही थी , मस्ती के मारे उनकी आँखे बंद हो रही थी।

अचानक मंजू बाई के होंठ उनके गालों से सरक के सीधे उनके सीने पे ,पूरी ताकत से मंजू बाई ने उनके निप्स को कचकचा के काट लिया ,
वो जोर से चीखे , उईई आहहह ओहह उईईईईई ,

और उनकी गांड मथती गीता की तीन उँगलियाँ जो जम के करोच रही थीं ,रगड़ रही थी ,

मौके का फायदा उठा के सीधे उनके खुले मुंह में।

लिसड़ी लिपटी गीली ,उनके गांड के रस से

एकदम गले तक गीता ने उँगलियाँ ठेल दी थीं और जोर से बोली ,

" चाट साले मादरचोद , बचपन के माँ के यार पैदायशी मादरचोद ,तेरे सारे खानदान की बुर मारूँ , गांडू चाट ,चाट जोर जोर से। "

और उस के साथ मंजू बाई की तगड़ी जाँघों ने एक धक्का और मारा ,

आलमोस्ट पूरा , ६ इंच से ज्यादा लन्ड अब मंजू बाई की बुर में था।

उसी के साथ मंजू बाई ने दो और उंगलिया उनकी गांड में पेल दी ,

मंजू बाई की चार मोटी मोटी उँगलियाँ उनकी गांड में ,हचक हचक कर ,

और उसी सुर ताल में मंजू बाई की बुर ,जाँघे धक्का मारती ,उनके लन्ड पे आगे पीछे होती

हचक हचक कर चोद्ती

पानी तेज हो गया था। हवा झंझावात में बदल रही थी।

देर तक मंजू बाई के धक्के , गीता की शरारते , उसके जोबन का रस , आगे पीछे दोनों और से

लेकिन उस समय उन दोनों ने उन्हें झड़ने नहीं दिया।

वोमेन आन टॉप

झड़े वो ,लेकिन थोड़ी देर बाद मंजू बाई के भोंसडे में।

और वो भी शायद मुश्किल था ,बिना गीता की मदद के।

तरसाने तड़पाने में दोनों एक दूसरे से बढ़कर थीं ,

लेकिन मंजू बाई की बात ही अलग थी ,उसके तरकश में इतने तीर थे ,इत्ते ट्रिक मालुम थे मजे देने के ,मजे लेने के।

और एक बार फिर मंजू बाई उसके ऊपर चढ़कर हचक हचक कर चोद रही थी ,

परफेक्ट वोमेन आन टॉप ,

उन्हें कुछ. भी करने की इजाजत नहीं थी.

सब कुछ मंजू बाई ही , उनके ऊपर चढ़ी मंजू बाई ने अपनी मजबूत तगड़ी सँडसी ऐसी कलाईयों से उनके हाथों को कस के दबोच रखा था। वो हिल भी नहीं सकते थे।

जिस गदराये जोबन के वो दीवाने थे कभी झुक के उनके सीने पे रगड़ देती तो कभी उनके ललचाये होंठों पे ,

पर जब वो मुंह खोलके चूसना चाहते तो अपने बड़े बड़े निपल हटा लेती।

मंजू बाई की भरी भरी जाँघों में कसी पिंडलियों में बहुत ताकत थी ,

जिस ताकत से वो धक्के मारती थी क्या कोई मरद गौने की रात अपनी दुल्हन की कसी चूत फाड़ेगा।

लेकिन वो पूरा लन्ड नहीं घोंटती थी ,सुपाड़ा अंदर लेकर अपनी भोंसडे के अंदर उसकी मसल्स को इस तरह दबाती ,निचोड़ती

की कोई नया लौंडा हो या कच्चा कमजोर मर्द तो मिनट भर में पानी छोड़ देता।

और फिर सरकते हुए जोर जोर से धक्के मारते , उनकी छाती पे अपनी बड़ी बड़ी चूंचियां रगड़ते दो तिहाई लन्ड घोट लेती।

साथ में गालियां ,उनकी माँ बहन को ,एक से एक गन्दी ,

और सब से बढ़कर उनसे दिलवाती , उनका अपना नाम लगवाकर , और ऊपर से धमकी अगर गालियां रुकी तो बिना उन्हें झाड़े हट जायेगी उनके ऊपर से।

कभी उनका मुंह खुलवाकर ,मंजू बाई अपने मुंह से लार की एक बूँद , एक तार की तरह सीधे उनके मुंह में ,.

एक से एक किंकी ऐक्शन , गर्हित

आज रात से पहले जो वो सोच भी नहीं सकते थे , सब उनसे करवा रही थी।

और बस एक बार झड़ने के लिए वो कुछ भी करने को तैयार थे।

मंजू बाई तो तीन बार झड़ चुकी थी ,एक बार उन्होंने चूस के ,एक बार गीता ने चूस के और एक बार उन के लन्ड के धक्को ने उसे झाड़ दिया था ,

लेकिन जब उनके झड़ने का नंबर आता तो वो छिनार,.

और एक बार फिर उन्हें लग रहा था , जब वो बस एकदम कगार पे थे , खुद नीचे से धक्का मार मार के उस विपरीत रति में साथ देना चाहते थे , पर मंजू बाई उठने लगी , उन्हें कुछ समझ में नहीं आया ,

गीता बगल में खड़ी थी , उन्होंने उसकी ओर बड़ी बेकसी से देखा ,बेचारगी से।

वो मुस्करायी ,होंठों से आँखों से , पलकें उसकी जरा सा झुकी और अगले ही पल

मंजू बाई के हाथ गीता के कब्जे में थे , साथ साथ मंजू बाई के कंधे गीता जोर जोर से दबा रही थी ,

लन्ड एक बार फिर सरकता हुया ,मंजू बाई की झांटो से ढंकी मांसल भोंसडे में

" भैया " गीता बोली और बस वो इशारा समझ गए।

उनके खुले हाथ अब मंजू बाई की कमर पे थे , ऊपर से गीता मंजू बाई को पुश कर रही थी ,नीचे से उनके दोनों हाथ मंजू बाई की कमर को पकड़ के अपनी ओर खींच रहे थे ,बस कुछ देर में पहली बार उनका मोटा लन्ड मंजू बाई की बुर में जड़ तक घुसा था ,लन्ड का बेस मंजू बाई की क्लीट पर रगड़ खा रहा था।

और अब वो पागल हो गए , इतनी जोर जोर से उन्होंने नीचे से उछल उछल कर धक्के मारना शुरू किया ,लन्ड को उसकी बुर में मथानी की तरह गोल गोल घूम रहा था।

और अब मंजू बाई की हालत खराब होने का टाइम आ रहा था।

गीता ने उसे बार बार गुदगुदी लगा के काबू में कर लिया और मंजू बाई के दोनों हाथ उसकी कमर के पीछे ,मंजू बाई के ही आंगन में पड़े ब्लाउज से बाँध दिए।

" अब चोदो भइय्या कस कस के इसको ,साली बचपन में झांटे भी नहीं आयी थी तो मेरे मामा से अपने भैया से चुदवाने लगी और आज मेरे भैया से चुदवाने का मौका आया है तो गांड पटक रही है ,छिनारपना कर रही है , तूने मेरे भैया की ताकत नहीं देखी माँ ,पक्का मादरचोद है ,पैदायशी। आज तेरे भोंसडे का कचूमर बनाएगा माँ ,मेरा भैय्या। "

गीता हँसते हुए उनसे ,मंजू बाई से बोली।

और जब उनके दोनों हाथ फ्री हो गए थे तो उन्हें भी हाथों का इस्तेमाल आता था ,कुछ आता था कुछ मैंने सीखा दिया था।

कभी जोर जोर से वो मंजू बाई की चूंचियां मसलते रगड़ते ,उसके निपल पल करते , तो कभी एक हाथ मंजू बाई के क्लीट को रगडने लगता , तो कभी दोनों हाथों से मंजू बाई को अपनी और खींच कर कचकचा कर उसकी चूंचियां काट लेते ,

वो बिलबिला रही थी ,चिल्ला रही थी एक से एक गालियां दे रही थी ,पर,.

" भइया कुतिया बना के चोद इस कुतिया को डाल दो सारा पानी इसकी बच्चेदानी के अंदर। "

गीता ने चढ़ाया उन्हें।

जिस बहन ने ये मौका दिलवाया था , उसकी बात भला वो क्यों न मानते , और फिर

डॉगी पोज उनकी भी तो फेवरिट थी।

अगले पल ही उस कच्चे आंगन में मंजू बाई झुकी ,निहुरी ,कुतिया बनी

और वो पीछे से हचक हचक कर

साथ में दोनों हाथों से चूंची की रगड़ाई , वो समझ गए थे की मंजू बाई के जादू के बटन उसके निपल हैं ,

हर औरत के जादू के बटन अलग होते हैं ,जिन पे हाथ लगते ही वो पागल हो जाती है ,थोड़ी देर में ही झड़ने के कगार पर पहुँच जाती है।

बस क्या था चुदाई रोक के ,कुछ देर वो सिर्फ उसके निपल जोर जोर से खींचते ,मसलते ,नाखूनों से जोर जोर से स्क्रैच करते ,और फिर

आलमोस्ट सुपाड़े तक लन्ड निकाल कर एक झटके में पूरी ताकत से धक्का सीधे बच्चेदानी पर ,

दो चार धक्के में ही वो झड़ने के कगार पर पहुँच गयी लेकिन गीता ने आँख से रुकने का इशारा किया ,बस ये तड़पाया उन्होंने

और जब मंजू बाई झड़ी तो भी वो नहीं रुके पूरी तेजी से चोदते रहे ,

और जैसे ही मंजू बाई का झड़ना रुका उन्होंने एक हाथ से तेजी से उसके क्लीट को नोच लिया और दूसरा हाथ मंजू बाई के निपल पर

वो फिर झड़ने लगी ,तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी ,सिसक रही थी।

मंजू बाई की चीखें ,सिसकियाँ पूरे घर में गूँज रही थी।

गीता मुस्करा रही थी ,और अब उन्होंने धकापेल चुदाई शुरू कर दी ,हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे ,

बीस पच्चीस मिनट तक बिना रुके , मंजू बाई की चूल चूल ढीली हो गयी।

और अब जब मंजू बाई ने झड़ना शुरू किया उसकी बुर ने इनके लन्ड को भींचना निचोड़ना शुरू किया तो साथ ही वो भी

इतने दिन तड़पने के बाद

ज्वालामुखी फुट पड़ा था , लावा निकल रहा था।

देर तक

कटोरी भर रबड़ी मलाई सीधे मंजू बाई की बच्चेदानी में।

और जब वो हटे तो बस वो थेथर होकर उसी आंगन में गिर पड़ी ,कटे पेड़ की तरह। वो भी बगल में लेट गए।

और जो कटोरी भर रबड़ी मलाई मैंने मंजू बाई के भोसड़े में उड़ेली थी ,सीधे बच्चेदानी में वो कुछ कुछ छलक कर मंजू बाई की काली काली झांटो के झुरमुट पर भी थक्के थक्के,

कुछ देर में मंजू बाई अंगड़ाई लेते उठीं और गीता को अपने पास बुलाया।

और मंजू बाई ने अपनी दो ऊँगली एक झटके में अपनी बुर में पेल कर ,गोल गोल घुमा कर , ढेर सारी मलाई निकाली और गीता की ओर बढ़ाती बोली ,

" अपने भैया की रखैल , बहुत भैय्या ,भैया कर रही थी न ले गटक भैय्या का माल। "

और बिना हिचक गीता ने मुंह खोल ,जीभ निकाल सारी मलाई चाट ली और बचा खुचा चूस चूस के , एक थक्का गीता के गुलाबी किशोर होंठो,

पर था ,

जीभ निकाल के गीता ने उसे भी चाट लिया और बोली ,' वाह , माँ बहुत स्वादिष्ट है ,ऐसा स्वाद मैंने आज तक नहीं चखा। "

लेकिन मंजू बाई के पास गीता की बात सुनने का समय नहीं था , वो सीधे उनके मुंह पे ,अपना भोंसड़ा उनके मुंह पे रगडती बोली ,

"ले मुन्ना खा ले , माँ के भोसड़े से निकली मलाई का स्वाद और होता है ,जीभ अंदर डाल के चाट , एक भी क़तरा बचा न तो माँ बहुत पीटेगी। "

और वो सपड़ सपड़ एकदम पक्के कम स्लट की तरह

और उधर गीता उनका गन्ना चूसने लगी ,

" अरे भैया तेरे गन्ने में जो लगा बचा है वो मैं चूस के साफ़ कर देती हूँ।
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