Episode 34
मस्ती ,. आल नाईट
"ले मुन्ना खा ले , माँ के भोसड़े से निकली मलाई का स्वाद और होता है ,जीभ अंदर डाल के चाट , एक भी क़तरा बचा न तो माँ बहुत पीटेगी। "
और वो सपड़ सपड़ एकदम पक्के कम स्लट की तरह
और उधर गीता उनका गन्ना चूसने लगी ,
" अरे भैया तेरे गन्ने में जो लगा बचा है वो मैं चूस के साफ़ कर देती हूँ। "
गीता केहोंठ पल भर में गन्ने पर और मलाई चाटते चाटते उसने ,जोर जोर से चूसना भी शुरू कर दिया।
इनके होंठों से मंजू बाई की रसीली बुर चिपकी थी और मेरे रसीले गन्ने से ,गीता के होंठ
पांच सात मिनट ही गीता ने चूसा होगा पर जंगबहादुर को खड़ा करने के लिए काफी था।
पर तबतक मंजू बाई ने गीता को बुला लिया ,
' हे अपने भैया की दुलारी ,चल आज तुझे तेरे भैया की मलाई खिलाती हूँ। "
अब वो खेल से बाहर थे और गीता ,मंजू बाई की 69 वाली कुश्ती चालू।
मंजू बाई ऊपर
गीता नीचे
और एक बार फिर गीता के चेहरे की तरफ बैठे , उसे मंजू बाई की चाटते चूसते ये देख रहे थे।
लन्ड उनका गीता ने चूस के ही खड़ा कर दिया था और ये लेसबीयन रेसलिंग देख के और ,. ८-१० मिनट वो देखते रहे ,ललचाते रहे ,
मंजू बाई का रसीला भोंसड़ा , गीता के उसे चूसते चाटते होंठ
और उनका लन्ड और बौराया , भूखा , पगलाया ,खड़ा
एक बार फिर गीता ने इशारा किया ,
और गीता ने सही समझा की पता नहीं ये इशारा समझे न समझ तो सीधे उनका लन्ड पकड़ कर के मंजू बाई के भोसड़े से नहीं सिर्फ सटा दिया बल्कि पुश करके उनका तड़पता सुपाड़ा घुसा दिया ,
फिर क्या था उन्होंने जो मंजू बाई के मोटे मोटे चूतड़ पकड़ के जबरदस्त धक्के मारे बस दो चार धक्के में उनका पूरा लम्बा मोटा खूँटा ,मंजू बाई के भोंसडे ने घोंट लिया।
एक बार वो अभी कुछ देर पहले ही झड़े थे इसलिए इस बार तो ,.
और अबकी गीता भी तो थी खेल तमाशे में हिस्सा लेने को मौजूद थी।
कुछ देर जब वो मंजू बाई के भोंसडे परखच्चे उड़ा चुके होते तो ,
गीता अपने कोमल कोमल हाथों से उनके मोटे खूंटे को निकाल के गप्प से अपने मुंह में , और मंजू बाई की ओर इशारे से कहती ,
" तड़पने दो छिनार को "
कुछ देर चुम्मा चाटी ,चूसा चासी के बाद ,
फिर वो हचक हचक के मंजू बाई की भोंसडे की चुदाई में
और गीता भी कभी मंजू बाई के मोटे मोटे लेबिया को चूसती तो कभी हलके से उसकी तड़पती क्लीट को काट लेती।
इस दुहरे हमले का असर हुआ जल्द ही ,मंजू बाई झड़ने के कगार पर पहुँच गयी तो गीता ने न उसे धीमा होना दिया और खुद बल्कि कचकचा के मंजू बाई के क्लीट पर अपने दांत गड़ा दिए ,
बस थोड़े ही देर में मंजू बाई ,
ओह्ह उह्ह्ह आह आह ,. जोर जोर से झड़ना शुरू कर देती।
और उनके धक्को की रफ़्तार और तेज हो जाती।
दो तीन बार झड़ने के बाद जब मंजू बाई एकदम थेथर हो गयी तब भी उन दोनों ने नहीं छोड़ा ,
बार बार वो कहती एक मिनट बस एक मिनट और जवाब में वो
सुपाड़ा आलमोस्ट बाहर तक निकाल के उसकी दोनों बड़ी बड़ी चूंचियां पकड़ के एक तूफानी धक्का सीधे उसके बच्चेदानी पे ,
साथ ही बहुत बेरहमी से उसके निपल नोच भी लेते।
,
मंजू बाई की चीखे पूरे आँगन में गूँज रही थीं।
३०-४० मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई और उस को तीन बार झाड़ने के बाद ही वो उसके खेले खाये भोंसडे में झड़े,झड़ते रहे।
मंजू बाई के भोंसडे में मलाई भर गयी और बाहर बहने लगी ,
नीचे गीता थी ही उसने सब चाट चुट के ,
भोर की लाली पूरब से दिखने लगी बादलों का घूंघट उठा के ,
रात की काली मिटने लगी ,पूरब में किसी ने आसमान के साँवले सलोने मुंह पे सिन्दूर मल दिया।
बारिश कब की बंद हो चुकी थी , छत और पेड़ से चूने वाली टप टप बूंदे ,अब एकदम धीमी हो गयी थीं।
लेकिन उन की काम क्रीड़ा पर कोई असर नहीं पड़ा ,
चार बार , दो बार मंजू बाई के साथ और दो बार गीता के साथ सिगनल डाउन हुआ। .
मस्ती . थ्री सम इश्टाइल
चार बार , दो बार मंजू बाई के साथ और दो बार गीता के साथ सिगनल डाउन हुआ। .
एक से एक किंक , एक से एक गर्हित हरकतें , न कहने लायक ,न सुनने लायक ,न लिखने लायक ,न पढने लायक।
उन दोनों छिनारों ने क्या क्या किया , क्या क्या उनसे करवाया , सोच के भी बाहर
और बहुत चीजें उन्होंने सीखीं भी ,मंजू बाई ने उन्हें किसी लड़की के थन से दूध दूहना सिखाया ,
पहिलौटी बियाई के दूध का क्या जादुई असर होता है ये भी समझाया।
गीता तो जैसे गुड्डी के पीछे हाथ धो कर पड़ गयी थी।
उनके कुछ सोये ,कुछ थके कुछ मुरझाये हथियार पे , सीधे अपने थन से दूध की धार डालते हुए , उस ढूध को लन्ड पे मसलते रगड़ते बोली ,
" आएगी न वो छिनार , तेरी बहना ,जिस ने मेरे सीधे साधे भैय्या को इतना तड़पाया ,
पहली चुदाई में ही भैया से गाभिन करना , सारी मलाई सीधे उसकी बच्चेदानी में , बस नौ महीने में जब बियाएगी न तो बस ,
फिर तो दूध की कोई कमी नहीं ,
और जब तक वो नहीं बियाएगी न मैं हूँ न भैया , अब मैं अपनी ससुराल नहीं जाने वाली , तेरा ख्याल रखूंगी। "
" और एक बात बताऊँ , पहलौठी का दूध और कुँवारी अनचुदी बुर के फटने का ,. एकदम जादू होता है "
मंजू बाई अपने जादू के पिटारे का ज्ञान बांटती बोली।
" अरे ये तो बहुत बढ़िया है माँ , पंद्रह बीस दिन की तो बात है , "
गीता अपनी मुट्ठी में दूध ले के उनके अब जागे फुंफकारते लन्ड पे रगड़ते बोली ,
" जब तू जाओगे न उस के साथ सुहागरात मनाने , बस अपने हाथ से तैयार करुँगी मैं तुझे और जाने के पहले बजाय तेल के यही लगा के भेजूंगी ,पेल देना एक बार में। जब झिल्ली फटेगी तो सारे मुहल्ले में चीख सुनाई पड़नी चाहिए उसकी। बस ,हो जायेगा न पहलौठी का दूध और कुँवारी की झिल्ली फटने का ,. . क्यों माँ। "
मंजू बाई की ओर देख कर वो बोली।
" एकदम तेरी पिलानिंग एकदम सही है , "
मंजू बाई ने मुस्करा के कहा और उसका असर भी समझाया ,
" उसके बाद तो मुन्ना तेरा एकदम लोहे का खम्भा हो जाएगा। और लोहे का तो खैर अभी गीता जो कर रही है उसी से , सांडे के तेल से १२ गुना ज्यादा असर होता है पहलौठी के दूध का। लेकिन उस के बाद न सिर्फ खूब कड़ा रहेगा ,लेकिन जहदेगा भी तभी जब तुम चाहोगे। हाँ उसका असर उस छिनार गुड्डी पर भी होगा , रोज भिनसारे से उसकी चूत कुलबुलाने लगेगी। बिना लन्ड घोंटे नींद नहीं आयगी छिनार को। "
" अरे माँ ,उस की चिंता काहें करती हो ,मैं हूँ न साली को पूरा रंडी बना दूंगी। जो अबतक नहीं सीखी ,वो सब सीखा दूंगी ,खुद ही लौंडे फांसने लगेगी ,लेकिन उसके पहले मेरे भैय्या से गाभिन होना पडेगा। "
गीता हँसते हुए बोली।
इन सब का असर ये हुआ की उनका लन्ड एक बार फिर से जंगबहादुर हो गया चूत के लिए बेताब ,
क्या क्या नहीं हुआ उस रात , बल्कि सुबह होने वाली थी
गीता को हचक के चोदने के बाद
आंगन में मस्त पुरवाई चल रही थी ,भोर की लालिमा में सब कुछ दिख रहा था।
तेज हवा दरवाजे पर बार बार ,
लग रहा था की कोई दरवाजा खटका रहा है ,
गीता का चम्पई रंग , गले में मंगलसूत्र , आँखों में भरा भरा काजर ,और मांग में दमकता सिन्दूर ,
गीता चुदाई में पूरा साथ दे रही थी ,चूतड़ उचका उचका के ,
उनके सीने पे रसीले जोबन रगड़ कर ,रसीली गालियां उनके मायकेवालों को दे कर ,
ब्याहता औरतों को चोदने का यही मजा है , उनकी झिझक ,संकोच कब की खत्म हो चुकी होती है ,
और लन्ड के लिए ललक भी तगड़ी होती है।
जितना मजा उन्हें गीता को चोदने में आ रहा था उससे ज्यादा उसके दूध से छलकते थनों को दबाने ,रगडने मलसने में,
गीता की दूध से भरी छातियों को खींच खींच के दूध छलकाने का मजा ही और था।
बहन का दूध
गीता की दूध से भरी छातियों को खींच खींच के दूध छलकाने का मजा ही और था।
ऊपर से मंजू बाई उन्हें और उकसा रही थी।
" अरे जरा अपनी बहन का दूध दुह के दिखाओ न , बहनचोद।
अरे अभी तो साल भर ये दूध देगी ही और जब बिसुक गयी न , तो तुझी से गाभिन कराउंगी इसे ,और नौ महीने बाद फिर से दूध। "
मंजू बाई ने समझाया।
वो गीता की चूँचियों से निकला दूध गीता की ही चूंचियों में पोत रहे थे ,लपेट रहे थे।
थोड़ी देर में ही गीता की गोरी गुलाबी चूंचियां ,एकदम दूधिया।
गीता नीचे से चूतड़ उछाल के जबरदस्त धक्के लगाते उन्हें आँख मार के मंजू बाई से बोली ,
"सही है माँ ,और उस बीच इन की वो बहिनिया ,
वो दूध देने लगेगी न ,बस आते ही देखना महीने भर के अंदर उसे गाभिन करा दूँगीं, उसे तो तब पता चलेगा जब उस का पेट फूल जाएगा। बस भैया मेरा वायदा दस महीने के अंदर सोहर होगा। "
लेकिन मंजू बाई किचेन में चली गयी थी ,जब लौटी तो उसके हाथ में एक बड़ी सी पुरानी सी शीशी , शहद से भरी।
मंजू बाई ने उसमें से शहद निकाल के अपनी उँगलियों से खुद गीता की दूध से डूबी चूँचियों पर पोतना शुरू कर दिया और साथ में उन्हें समझा भी रही थीं ,
" ये कोई ऐसा वैसा शहद नहीं है , ख़ास आम के बौर का, पुराना ,जबरदस्त असर होता है इसका। "
कुछ देर में ही आधी बोतल खाली हो गयी थी ,सारी की सारी गीता के जुबना पे ,
चुदाई अपने चरम वेग पर पहुँच गयी थी।
सुबह हुआ चाहती थी ,
गीता जोर जोर से झड़ रही थी , सावन भादो में कांपते पत्तो की तरह उसकी देह काँप रही थी ,
और वो बस , लेकिन मंजू बाई ने अपने हाथ से पकड़ के उनके शिष्न को बाहर कर दिया और सीधे गीता की दोनों चूँचियों पर ,
ढेर सारी थक्केदार मलाई सीधे गीता की चूँचियों पे ,
और अब गीता ने लन्ड पकड़ कर दबाना भींचना शुरू कर दिया ,एक बार फिर से मलाई की पिचकारी दोनों जोबन पर ,
गाढ़े सफ़ेद थक्कों से उसकी छातियाँ भर गयी , बस कहीं कहीं शहद
और बचा खुचा गीता के चेहरे पर ,अच्छा खासा फेसियल हो गया।
कुछ वो समझ रहे थे बाकी गीता के हाथों ने उन्हें समझा दिया ,
उनका मुंह सीधे गीता के उभारों पे ,
गीता का दूध ,आम केबौर का शहद और उनकी मलाई
और साथ गीता की पहले दो ,फिर तीन उँगलियाँ उनकी गांड के अंदर जोर जोर से उनकी गांड मारती , जोश दिलाती ,
"चाट साले ,चाट मादरचोद ,अरे अपने सामने तुझे उस भोंसडे में घुसाउंगी जिससे तू निकला है ,
माँ का यार चाट अपनी बहन की चूंची। "
जब तक चाट चाट के उन्होंने पूरे जोबन को साफ़ नहीं किया ,गीता ने नहीं छोड़ा।
"जबरदस्त असर होगा इसका देखना तुम क्या मस्त ताकत मिलेगी , तेरा झंडा हरदम खड़ा रहेगा ,कभी थकान नहीं लगेगी , और दो चार औरतो को तू बिना सांस लिए निपटा देगा। "
जब वो वापस निकले , तो छह बज गए थे।
एकदम थके,पस्त।
रात में चार बार ,दो बार मंजू बाई के साथ और दो बार गीता के साथ ,निचोड़ के रख दिया था दोनों ने। लेकिन मजा भी बहुत आया।
मंजू बाई तो कहीं काम पे चली गयी थी ,जब वो निकले उस के पहले।
गीता ने चाय पिला दी थी चलने के पहले इसलिए थोड़ी थकन कम हो गयी ,ताकत वापस आ गयी।
घर वापसी
घर पहुँच के उन्हें लगा
जल्द से जल्द काम निपटा लें , सब के आने के पहले ,. .
काम बहुत पड़ा था।
डस्टिंग ,क्लीनिंग और सुबह के काम की तैयारी ,
देह चूर चूर हो रही थी ,ऐसा मजा कभी नहीं आया जो जो हुआ ,जो जो उन दोनों ने मिल के कराया ,
इत्ती फैंटेसी थी उनकी ,
ब्ल्यू फिल्मे ,नेट की साइट्स ,
न कभी पढ़ी न कभी सोची
किसी तरह सब बातें भूलाने की कोशिश करते उन्होंने अपना काम शुरू किया ,
डस्टिंग ,झाड़ू लगाना ,बिस्तर
और जब वो टॉयलेट क्लीन कर रहे थे , मॉम का , एकदम चमकता होना चाहिए मालुम था उन्हें ,
जैसे कोई जबरदस्ती दरवाजा खोल के चला आये , बस कल रात की यादें धड़धड़ा कर घुस जाएँ
चार बार झड़े थे वो लेकिन वो गीता के साथ ,पहली बार
बादल कम हो चुके थे , भोर दस्तक दे रही थी लेकिन रात भी अलसा रही थी ,जाने को।
मस्त हवा चल रही थी , वो थोड़े थके लेकिन खूँटा खूब तन्नाया ,भूखा
और मंजू बाई के बड़े बड़े खूब भारी चूतड़ उनके चेहरे के ठीक ऊपर
गीता ने उन्हें चिढाते हुए अपने तगड़े हाथों से नीचे का पिछवाड़े का छेद खोलते हुए ,हंस के बोला ,
" भैय्या , माँ के पिछवाड़े का स्वाद तो तूने ले ही लिया ,ऊँगली से, जीभ अंदर डाल के , अब ज़रा अंदर का नजारा देख भी लो न। "
सीधे उनकी आँखों के सामने ,
उनको लग गया क्या होने वाला है ,
खूब बड़ा सा खुला हुआ गांड का छेद
और उन्होंने अपने होंठ जोर से भींच के बंद कर लिए पर गीता और मंजू बाई की जुगल बंदी के आगे पूरी रात उनकी नहीं चली तो इस समय क्या चलती।
गीता खिलखिलाई
" अरे भैया तेरी माँ बहन तो झट से खोल देती हैं अपने सब छेद , तू काहें खोलने में झिझक रहा है ,खोल न बड़ा सा मुंह , . "
और उस छिनार ने पूरी ताकत से उनके नथुने बंद कर दिए और साथ ही जोर से उनके निप्स पकड़ के मोड़ दिए ,
कुछ दर्द से ,कुछ सांस लेने के लिए उन्होंने जैसे ही मुंह खोला ,मंजू बाई का खुला गांड का छेद सीधे उनके खुले मुंह पे ,
और गीता उनका हाथ आँगन में पड़े अपने ब्लाउज से बांधते बोली ,
" ये हुयी न बात ,माँ मैं कह रही थी न भैय्या खुद अपना मुंह खोल के , देख कित्ता बड़ा मुंह खोला है उन्होंने , . "
और उसके साथ ही गीता ने आंगन में पड़े अपने ब्लाउज से उनके हाथ कस के मोड़ के बाँध दिए और कान में हलके से हड़काते बोली,
" खबरदार जो मुंह बंद करने की कोशिश की , बस तू पड़ा रह ऐसे ही अब जो करना होगा हम दोनों करेंगे। "
वो बंद कर सकते भी नहीं थी उनके नथुनों पे अब मंजू बाई के एक हाथ का कब्जा था ,
और गीता उनके खूंटे के ऊपर अपनी कसी चूत को रगड़ते ,
वो उसकी चूत चूस चुके थे ,चाट चुके थे ,ऊँगली कर चुके थे लेकिन चोदने के लिए तड़प रहे थे ,
और अब मंजू बाई की गांड उनके चेहरे पर ,
देख तो नहीं सकते थे लेकिन छुअन महसूस कर सकते थे , गीता की गुड़ की डली ऐसी आवाज सुन तो सकते थे ,
" चल भैय्या तू बहुत तड़प रहा था न तुझे बहन की चूत का मजा चखा ही देती हूँ ,चल बहनचोद। बस तू लेटे रहना आज मैं दूँगी मजा , . "
और गीता की चूत के होंठ उनके तन्नाए सुपाड़े से रगड़ रहे थे ,
मंजू ने एक बार फिर अपने दोनों हाथों से अपनी गांड खूब जोर से चियार दी थी ,
" अरे भैया , प्लीज मेरी खातिर एक बार ज़रा सा जीभ निकाल के ,हाँ हाँ , थोड़ा सा और , बस ज़रा सा चाट लो न माँ की , . "
और उसी के साथ गीता ने जो धक्का मारा उनका सुपाड़ा गीता की कसी किशोर चूत में ,
और उनकी जीभ तो बस अब उनके बजाय मंजू बाई और गीता की गुलाम हो चुकी थी ,निकल कर सीधे मंजू बाई की खुली ,.
गीता की चूत जोर जोर से उनके लन्ड को भींच रही थी और गीता की आवाज ,उनके कान में
" चाट साले मादरचोद ,अरे एक बार माँ का परसाद मिल गया न तो देखना बहुत जल्द जिस भोंसडे से निकला है उसे भी ऐसे ही चाटेगा , और हम सब के सामने, . . "
और उसी के साथ गीता ने भी पूरा जोर लगाया ,मंजू बाई ने भी ,.
गीता ने एक साथ दो उँगलियाँ उनकी गांड में भी पेल दी ,पूरे जड़ तक गोल गोल घुमाते
मंजू बाई की आवाज ,.
ले मुन्ना ले न , ले और
आधे घंटे तक ,.
लेकिन तब तक घंटी बजी ,
गनीमत थी ,मोबाइल की ,दरवाजे की नहीं।
और वो रात से वापस दिन में लौटे।
मेरा ही मेसेज था ,
" हम लोग निकल रहे हैं , ३०-४० मिनट में पहुंचेंगे "
सफाई वो कर चुके थे।
उन्होंने चैन की सांस ली , खुद नहा धो के फ्रेश हुए , फिर चाय के लिए पानी गरम करने को रखा ,ब्रेकफास्ट की तैयारी और तभी दरवाजे की घंटी बजी।
हम लोग आ गए थे।
घर
हम लोग आ गए थे।
दरवाजा उन्होंने खोला , थोड़े थके लग रहे थे , थके तो हम लोग भी थे।
लेकिन मेरी निगाह सीधे 'नीचे वहीँ',
और मैं अपनी मुस्कान नहीं रोक पायी।
मॉम सीधे बैडरूम में ,साथ में मैं और पीछे पीछे वो ,
मम्मी फ्रेश होने गयी और नीचे हाथ डाल के मैंने 'उसे' पकड़ लिया ,
" लगता है अबकी सिग्नल डाउन हो गया , "
दबाते मसलते मैंने उन्हें चिढाया ,
वो भी न ,टिपिकल वो , लजाते ,शरमाते ,झिझकते
" चाय ला रहा हूँ अभी "
चाय ख़तम करने के साथ ही मम्मी ने अपना प्रोग्राम बता दिया ,
" मैं बहुत थकी हूँ , चार पांच घण्टे सोऊंगी , तू भी थोड़ा आराम कर ले ,ब्रेकफास्ट में कुछ बस सिम्पल सा। "
और पल भर में मम्मी खराटे लेने लगी ,साथ में मैं भी ,
वो अपने ,मेरे कमरे में