Episode 70
" बैठ न कब तक खड़ी रहेगी तू ," उसे जबरन बैठाती मेरी जेठानी बोली।
वो छटपटा रही थी छूटने की कोशिश कर रह थी , पर मैंने और जेठानी जी ने कस के उसके कंधे दबा रखे थे।
कंधो पर मेरे हाथ थे लेकिन मेरी शरारती उंगलियां उसके उभरते उभारों को शैतानी से हलके से छू भी रही थीं।
'इनकी ' गोद में
वो छटपटा रही थी छूटने की कोशिश कर रह थी , पर मैंने और जेठानी जी ने कस के उसके कंधे दबा रखे थे।
कंधो पर मेरे हाथ थे लेकिन मेरी शरारती उंगलियां उसके उभरते उभारों को शैतानी से हलके से छू भी रही थीं।
और 'उन्होंने ' भी अपने हाथों से उसकी पतली कमर को कस के पकड़ लिया की
कहीं वो गिर न जाए पर उसका असर गुड्डी के उभारों पर हुआ।
वो टेनिस बाल साइज के बूब्स अब और उभर के दिख रहे थे।
" अरे एक हाथ नीचे लगाओ ,एक ऊपर " मैंने हँसते हुए उन्हें सलाह दी।
" छोड़िये न भाभी ,प्लीज "
वो बोली
" अरे उससे कहो प्लीज जिसने पकड़ रखा हो ,हमने तो कब का छोड़ दिया। "
खिलखिलाते हुए मैं और जेठानी जी बोले।
हम दोनों बगल में रखे पलंग पर बैठ चुके थे ,
पर इनके हाथ की पकड़ एक हाथ अभी भी पतली कमर पर थी और दूसरा गुड्डी के नवांकुर उभारो के बेस पर ,. .
वो शर्मा रही थी ,सिकुड़ रही थी ,कसर मसर कर रही थी ,
बिचारी हम सबके सामने 'इनकी ' गोद में बैठी ,
बल्कि साफ साफ कहूं तो इनके फनफनाये मोटे कड़े लंड पर बैठी ,एकदम छुई मुई हो रही थी।
" अरे दीदी उनसे क्यों कहेंगी , उनसे तो कहेंगी ,अरे जरा और जोर से पकड़ो न भैय्या उप्पस मेरा मतलब ,सैंया। "
मैं छेड़ने का मौका क्यों छोड़ती ,
लेकिन वो
बांकी हिरणी , गर्दन ज़रा सी तिरछी कर के , उसकी एक आवारा लट उसके लजाते गुलाब से गालों को छेड़ रही थी ,इनसे बोल ही उठी ,
" छोड़ो न भैय्या। "
लेकिन मैं क्यों छोड़ती ,मैं इनसे अपनी जेठानी से बड़ी सीरियसली बोली,
" अरे इसका मतलब है ,भईया छोडो न ,क्यों गलत जगह पकड़ रखा है ,सही जगह पकड़ो न "
हम दोनों , मैं और मेरी जेठानी खिलखिलाने लगे और इनके हाथ की उँगलियाँ सच में सरक् कर , गुड्डी के बूब्स के निचले हिस्से पर ,
बिचारी गुड्डी जोर से लजा रही थी और हम दोनों ने बात बदल दी।
" अरे तो इसमें कौन सी बड़ी बात है ,छुटपन में क्या अपनी भय्या के गोद में नहीं बैठी थीं क्या ,
फिर जवान होने पर क्या फरक पड़ जाता है। "
जेठानी ने समझाते बोला।
मैंने भी उनकी बात में में हामी भरी और कहा ,
" अरे यही तो मैं भी कह रही हूँ ,अरे भैय्या की गोद में बैठने से क्या ,लेकिन इन्ही के मन में चोर है जो इतना उचक रही हैं। "
" भाभी , . . "
गुड्डी के मुंह से सिर्फ इतने बोल निकले ,लेकिन उसका छुड़ाने की कोशिश करना ,कसर मसर बंद हो चुके थे।
"अच्छा चल बोल क्या लेगी ,"
उठ कर मैं उसके पास जाके बोली ,
" वरना कहेगी दोनों भाभियाँ एक साथ पीछे पड़ गयी और खाने पीने को कुछ पूछा ही नहीं। बोल , गरम या ठंडा। "
मुस्कराते गुड्डी बोली ,
" ठंडा भाभी "
" और क्या इत्ता लम्बा मोटा हीटर का राड नीचे से गरमा रहा होगा तो फिर , . . अच्छा कॉक आई मीन कोक चलेगा न।“
मेरी निगाह गुड्डी के जवानी के फूलों की ओर गयी , कसे टाइट कुर्ते में एकदम छलक कर,खूब कड़े कड़े ,भरे भरे किशोर उभार , यहाँ तक की नए नए आये मिल्क टिट्स भी झलक रहे थे।
और मैं सोच रही थी , बस कुछ देर की बात है ये मस्त उभार एकदम खुल के सहलाये जाएंगे ,मसले जाएंगे ,रगड़े जायेंगे जम कर।
और इनके नदीदे हाथ कमर छोड़, के एक तो उभार के निचले हिस्से पर और दूसरा उस किशोरी के कंधे पर ,
बीच बीच में उसके मक्खन ऐसे मुलायम गाल भी छू दे रहा था ,सहला रहा था।
तभी मेरे सवाल के जवाब में गुड्डी की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा।
"कुछ भी भाभी, आप जो भी पिला दें ,चलेगा बल्कि एकदम भाभी दौड़ेगा। "
वो हंस के बोली .
और जो वो खिलखला के हंसी तो उस हंसिनी के गालों में गहरे गड्ढे पड़ गए।
इन्ही गड्ढो पे तो साले लौंडे मरते हैं मैंने सोचा ,फिर पूछा ,
" क्यों ननद रानी तो लॉक कर दिया जाय , कॉक ऊप्स आई मीन कोक। "
"एकदम भाभी ,जो भी आप पिलायें " वो खिलखिलाते हुए बोली।
और मैंने सोचा ," चल यार तू भी क्या याद करेगी , जो जो नहीं पीया है वो सब पिलाऊंगी। और एक बार बस तू , मंजू और गीता के हाथों में पड़ जा न बस ,तो वो छिनारें तो सब कुछ खिला पिला के ही छोड़ेंगी।
रम + कोला
और मैंने सोचा ,
" चल यार तू भी क्या याद करेगी , जो जो नहीं पीया है वो सब पिलाऊंगी। और एक बार बस तू , मंजू और गीता के हाथों में पड़ जा न बस ,तो वो छिनारें तो सब कुछ खिला पिला के ही छोड़ेंगी।
अभी तो रमोला चख ले , वहां पहुंच के सुनहली शराब , ऐपल जूस पक्का , और, तेरे इन्ही सीधे साधे भैया के सामने "
और मैं किचेन की ओर
और अपनी प्यारी प्यारी कच्ची जवानी वाली ननदों के लिए जो स्पेशल ड्रिंक मैं बनाती थी बस वही ,
सिम्पल ,
एक टम्बलर में आइस क्यूब्स , उसके ऊपर कोक पोर किया ,
फिर रम ( मैं अपने साथ लायी थीं न ,रम ,जिन ,वोडका सब कुछ ) और जस्ट अ डैश ऑफ लाईम।
तैयार ननद स्पेशल।
हाँ अब ये ननद भी स्पेशल थी तो ड्रिंक भी थोड़ा ,. .
ग्लास पंजाबी लस्सी वाली और रम भी थोड़ा ज्यादा ही , दो पेग से ज्यादा का ही असर होगा।
और जब मैं उसे 'कोला 'देने लगी तो ,'एक्सीडेंटली' थोड़ा सा छलक गया ,
ऊप्स मैं बोली , गिरा तो थोड़ा सा लेकिन सीधे बूब्स पे और ड्रेन्च होकर अब उसकी टीनेज ब्रा के कप ही नहीं बल्कि उभार भी ,
" बैठ जा और ये ग्लास दोनों हाथों से पकड़ के गटक ले और वरना और गिरेगा ,मैं पोंछ देती हूँ। "
वो बिचारी ,बिना कुछ सोचे समझे ,दोनों हाथों से ग्लास पकड़ के , एक बार फिर से उनकी गोद में और बड़ा सा सिप लिया ,रमोला का।
नयी नयी चढ़ती जवानी वाली ननद की चूँची दबाने ,मसलने से ज्यादा मजा क्या होगा किसी भाभी के लिए ,
और अभी तो उसके दोनों हाथ फंसे ग्लास पकड़ने में।
एक रुमाल लेके ,जहाँ ड्रिंक गिरा था वहां उसे सुखाने के लिए ,मैंने पोंछना सुखाना शुरू कर दिया।
पोंछना तो एक बहाना था ,इसी बहाने मैं भी उसके नए नए आये जोबन का ,.
पहले हलके हलके फिर एकदम खुल के जोर जोर रगड़ते हुए ,
समझ तो वो भी रही थी ,
लेकिन करती भी क्या ,उसके तो दोनों हाथ ग्लास पकड़ने में फंसे थे।
और इसी उहापोह में जल्दी जल्दी वो तीन चार सिप गटक गयी ,आधा ग्लास खाली ,यानी एक पेग से ज्यादा रम मेरी ननद रानी के पेट में।
और अब मैंने उनकी ओर रुख किया ,उन्हें हड़काते ,उकसाते बोली ,
" बहन ,बहन करते रहते हो हरदम ,क्या सिरफ गोद में बिठाने के लिए छोटी बहन है ,अरे बिचारी इत्ती गीलीहो रही है ,ये लो कपड़ा ज़रा कस के रगड़ रगड़ के सुखाओ ,"
मेरा कहना कहिये या इशारा वो साफ़ साफ़ समझ गए ,और मेरे हाथ से वो रुमाल उन्होंने ले ली।
सूखा तो क्या था लेकिन मेरे रगड़ने से वो गीला पैच और फ़ैल गया था ,
फायदा हम सब का हो गया. गुड्डी के छोटे छोटे सर उठाये मिल्क टिट अब साफ़ झलक रहे थे।
उन्होंने रगड़ना तो शुरू किया ,लेकिन बहुत हलके हलके , .
यही उनमें खराबी थी ,शरमाना ,झिझकना ,हिचक ,इसीलिए इनसे कोई लौंडिया पटती नहीं थी।
और डांट पड़ गयी।
" अरे बिचारि इत्ती गीली हो रही है , और तुम इत्ते धीरे धीरे ,ऐसे तो शाम तक ये ऐसी ही रहेगी , जरा कस के रगड़ो न ,वरना मुझे दे दो। "
"नहीं नहीं करता हूँ न ,. "
और फिर एक मर्द की तरह जिसकी गोद में एक खूबसूरत किशोरी बैठी हो उसकी तरह ,
और मैंने अपनी तोप का रुख गुड्डी की तरफ किया ,
" अरे क्या इत्ते धीमे धीमे पी रही हो ,ख़तम करो न एक घूँट में , . "
और मैंने खुद ग्लास पकड़ कर थोड़ा पुश ,.
बचा खुचा ड्रिंक एक घूँट में उसके अंदर ,लेकिन इस चक्कर में थोड़ा सा और ,. . गिरा लेकिन अबकी गुड्डी की प्याजी कमीज के अंदर
,गले से होते हुए , और दूसरा बूब भी , एक बड़ा सा पैच। "
" उप्प्स सारी यार आधे से ज्यादा कोक तो मैंने तेरे ऊपर गिरा दिया , दे और ले आती हूँ। "
नहीं नहीं भाभी ,वो कहती रही लेकिन ग्लास लेके मैं किचेन में , वहां गुड्डी की आवाज सुनाई दी ,
" अच्छा भाभी बस जरा सा। "
उसकी बात मान के अबकी ग्लास तो मैंने नार्मल साइज की रखी लेकिन रम तीन चौथाई ,.
और जब मैं लौटी तो मेरी बात मान के वो नए आये पैच पर भी मेरी दी हुयी हैंकी से रगड़ घिस रगड़ घिस कर रहे थे।
ना न करते ,वो ग्लास , अबकी बिना गिराए मैं गुड्डी को पिला के ही मानी।
ढाई तीन पेग रम से ऊपर ही गया होगा , बस दस पन्दरह मिनट में असर शुरू हो जाएगा .
यही गुड्डी जरा सा गारी वारी गाने में उसके भाई का नाम लगा के छेड़ दो तो कित्ता बुरा मान जाती थी ,
और आज खुद अपने उन्ही भैय्या के गोद में , . गोद में क्या खड़े लंड पर बैठ कर रमोला का ग्लास पर ग्लास गटक रही है ,
और उसके भैय्या भी जो ज़रा सा अनजाने में कंडोम उन की इसी बहना फोटो के पास रख दिया तो इत्ता बुरा मान गए ,इसी घर में।
और आज यहीं हम सब के सामने , न सिर्फ उसे गोद में बिठाये हैं बल्कि खुल के उस के जुबना रगड़ रहे हैं।
यही तो मैं चाहती थी।
और इस मिशन में मेरी जेठानी खुल के मेरे साथ थीं ,
जब मैं रमोला का ग्लास ले के लौटी तो वो ,एकदम स्तर वाले मजाक एकदम खुल्लम खुल्ला टाइप से अपने देवर और ननद दोनों को ,
"अरे देवर खाली ऊपर ही सुखाए रहे हो ये तो नीचे भी गीली हो रही होगी। जरा वहां भी तो हाथ डाल के सुखा दो। "
और उसी समय मैं आयी रमोला का चिल्ड ग्लास ले के।
गुड्डी से ज्यादा तो ये शर्मा रहे थे ,
इसी बात पर तो मुझे चिढ लगती थी ,स्साली लौंडिया तो खुद इनकी गोद में बैठऔर के लंड पर अपने मोटे मोटे चूतड़ रगड़ रही है
और खुद , लौंडिया ऐसे शर्मा रहे हैं।
जेठानी जी चालू थीं ,
" अरे शलवार का नाडा खोल के हाथ अंदर डाल दो ना , क्या ऊपर झापर ,न तुझको मजा आ रहा होगा न इसको। अरे यही तो उमर है शलवार का नाड़ा खुलवाने का ,तू नहीं खोलेगा तो कोई और खोल देगा ,एलवल में ,इसके मोहल्ले में लम्बी लाइन लगी है नाड़ा खोलने वालों की। :
" अरे नहीं दीदी और कोई क्यों खोलेगा यही खोलेंगे , इनके घर का माल है ,इनके बचपन का माल है , क्यों गुड्डी अच्छा तू ही बता अपने शलवार का नाड़ा किससे खुलवाएगी, अपने भैय्या से या किसी और से "
मैंने सीधे गुड्डी से ही पूछ लिया।
ग्लास ख़तम कर के बगल में रखती , कुछ शरारत से कुछ अदा से कुछ खीझ कर बस वो इतना बोली ,
" भाभी ,. आप भी न "
और मैंने टॉपिक चेंज कर दिया ,
" अच्छा ये बता तुझे कोक पसंद है या पेप्सी।तेरे भैय्या को तो पेप्सी पसंद है। "
मुड़कर उनकी ओर ,गर्दन तिरछी कर के जिस तरह से उसने इनकी ओर देखा , प्यार एकदम शीरे की तरह टपक रहा था।
प्यार से शहद घुली आवाज में गुड्डी उनसे बोली ,
" भईया ,पेप्सी ,आफ कोर्स। " "
और मेरे गुलाबी होंठों पर मुस्कराहट थिरक उठी।
शरारत से मैंने आँखे नचाते हुए उसके भइया को कोंचा।
" हे जरा अपनी छुटकी बहिनिया से , गुड्डी रानी को तनी पेप्सी का फुल फ़ार्म तो समझा दो। "
बस उनके मुंह पे तो जैसे किसी ने गुलाल पोत दिया हो , ऐसे शर्माए जैसे
गौने की रात के बाद किसी नयी बहुरिया से उसकी ननद जेठानी ने रात का हाल पूछ लिया हो।
यही उनमे एक खराब बात थी ,शरम ,बिना बात की झिझक ,
अरे लौंडिया अभी जिसका इंटर का रिजल्ट भी नहीं निकला हो ,कैसे ठसक से इनके मोटे खूंटे पे बैठी है ,
और ये लौंडिया माफिक शर्मा रहे हैं।
गनीमत हो मेरी जेठानी का और ननदिया का ,
" बोलो बोलो न देवर जी " जेठानी जी ने उकसाया।
बिना जाने समझे मेरी ननद भी बोल उठी ,
" हाँ भैय्या बोल न "
" प्लीज इंसर्ट ,. . " और ये इतना बोल के रुक गए।
" पूरा बोलो न अब तो गुड्डी खुद ही पूछ रही है " मैंने घूर के उन्हें देखते हुए बोला और एक झटके में वो पूरा बोल गए
" प्लीज ,इंसर्ट पेनिस . . "
प्यार से शहद घुली आवाज में गुड्डी उनसे बोली ,
" भईया ,पेप्सी ,आफ कोर्स। " "
और मेरे गुलाबी होंठों पर मुस्कराहट थिरक उठी।
शरारत से मैंने आँखे नचाते हुए उसके भइया को कोंचा।
" हे जरा अपनी छुटकी बहिनिया से , गुड्डी रानी को तनी पेप्सी का फुल फ़ार्म तो समझा दो। "
बस उनके मुंह पे तो जैसे किसी ने गुलाल पोत दिया हो , ऐसे शर्माए जैसे
गौने की रात के बाद किसी नयी बहुरिया से उसकी ननद जेठानी ने रात का हाल पूछ लिया हो।
यही उनमे एक खराब बात थी ,शरम ,बिना बात की झिझक ,
अरे लौंडिया अभी जिसका इंटर का रिजल्ट भी नहीं निकला हो ,कैसे ठसक से इनके मोटे खूंटे पे बैठी है ,
और ये लौंडिया माफिक शर्मा रहे हैं।
गनीमत हो मेरी जेठानी का और ननदिया का ,
" बोलो बोलो न देवर जी "
जेठानी जी ने उकसाया।
बिना जाने समझे मेरी ननद भी बोल उठी ,
" हाँ भैय्या बोल न "
" प्लीज इंसर्ट ,. . " और ये इतना बोल के रुक गए।
" पूरा बोलो न अब तो गुड्डी खुद ही पूछ रही है "
मैंने घूर के उन्हें देखते हुए बोला और एक झटके में वो पूरा बोल गए
," प्लीज ,इंसर्ट पेनिस स्लोली "
" अरे का इतनी जल्दी जल्दी बोल गए गबड़ गबड़ मैंने सुना ही ठीक से बोल न जोर से और जरा जरा धीरे धीरे। "
जेठानी जी चढ़ बैठीं।
बिचारे ,कोई रास्ता नहीं बचा बोला उन्होंने फिर से।
" प्लीज ,. . इंसर्ट ,. . पेनिस ,. स्लोली। "
अब गुड्डी के शर्माने की बारी थी और मेरी और जेठानी जी के खिलखिलाने की।
मुश्किल से हंसी रुकी और मैंने अपनी ननद रानी से पूछ लिया ,
" तो गुड्डी तू क्या बोल रही थी , भइय्या पेप्सी ,मतलब , भइय्या प्लीज इंसर्ट पेनिस स्लोली। "
और मैं फिर खिलखिलाने लगी ,लेकिन जेठानी जी छुटकी ननदिया की बचत में आ गयीं।
" अरे तो गुड्डी कौन गलत कह रही है ,इत्ता मोटा लम्बा खूंटा कतौं मारे जोश के एक झटके में , इहै तो कह रही थी ,
न भैय्या तानी धीरे धीरे डलिहा , एक़दाम कुँवार कसी कच्ची हौ , मना थोड़े कर रही है इनको। "
और मैंने एक फेवरिट भोजपुरी गाना गुनगुनाया , जोर जोर से ,
" तानी धीरे धीरे डलिहा बड़ा दुखाला रजऊ। अरे तनी धीरे धीरे , . . "
लेकिन जेठानी जी की बात ख़तम नहीं हुयी थी वो अपने देवर ,ननद को समझाते बोलीं
"हाँ एक बात हमार मान लो गुड्डी ,
पहली बार कडुवा तेल, खूब अच्छी तरह इनके भी और अपनी बिलियों में अंगूरी डाल डाल कर , देखना एकदम सटासट जाएगा "
मेरा तो प्लान था गुड्डी की सील सूखे तुड़वाने का , बहुत हुआ तो दो चार बूँद थूक वो भी खाली सुपाड़े के मुंह पर ,
लेकिन अब जेठानी जी बड़ी हैं उन्ही की बात,. कडुआ तेल ही सही।
लेकिन अब गुड्डी जोर से शर्मा रही थी तो मैंने टॉपिक चेंज कर दिया।
और जा के उस के पास खड़ी हो गयी।
सच में जो 'गलती ' से रमोला मैंने अपनी ननद रानी के छोटे छोटे उभारों पर गिराया था ,
उस का पैच साफ साफ़ उसकी खूबसूरत प्याजी कमीज़ पे पड़ गया था ,
और रगड़ने से बजाय सूखने के वो और फ़ैल गया था।
कमीज देह से चिपक गयी थी , जोबन के उभार कटाव तो छोड़िये ,निपल तक एकदम साफ़ साफ़ ,.
उस कच्ची अमिया के टिट्स देख कर तो मेरी हालत खराब हो रही थी , न जाने वो बिचारे कैसे सम्हाल रहे होंगे अपने को।
" यार तू तो सच में एकदम गीली हो गयी है "
, गुड्डी के उभारों के चारो ओर ऊँगली से हलके हलके दबाते मैं बोली,
और एक झटके में अंगूठे और तर्जनी के बीच उस किशोरी के मटर के दाने ऐसे टिट्स को दबा के रोल करने लगी।
" उतार जल्दी इसे न वरना तेरी इत्ती प्यारी कमीज भी खराब हो जायेगी और तुझे भी जुकाम हो जाएगा , और कहो तो मैं ही खोल दूँ "
मेरा दूसरा हाथ उसके बटन तक पहुँच गया ,
" नहीं भाभी कैसे ,ओह्ह छोड़िये न "
अब वो बिचारी घबड़ायी।
" ऊप्स मेरा मतलब दूसरे कपडे पहन ले , चेंज कर ले "
मैं समझाते बोली ,और तब तक रोकते रोकते मेरे हाथों ने उसकी कमीज की एक बटन खोल दी थी।
" लेकिन क्या , कौन। . . हाँ नहीं। . . मतलब क्या पहनूं "
गुड्डी बिचारीकन्फ्यूज।
" अरे मैं भी न , तेरे भैया एकदम बुद्धू हैं और इनके संग में ,मैं भी एकदम बुद्धू हो गयी हूँ।
अरे तेरे लिए इन्होने एक बहुत अच्छी ड्रेस खरीदी है , बस मैं ले आती हूँ ,तुम उसे चेंज कर इसे टांग दो ,तुम्हारे जाने तक सूख जायेगी। "
तब तक प्रेशर कुकर की सीटी बजी और मेरी जेठानी बाहर।
"प्याजी कसी शलवार कमीज
उसकी छरहरी देह के सारे कटाव उभार उजागर कर रही थी ,और वो भी उसकी हमउम्र किशोरियों से कहीं ज्यादा ही उभरे। "
कोमल जी ,
वाह,के जानलेवा शुरुआत करि है, प्याज़ी कलर का लेहंगा सिलवाया थान मैंने पिछले साल एक शादी के लिए , प्याज़ी कलर मस्त लगता है, कोई आँख ऐसी नहीं जो देखे बिना रह जाये , एक नज़र तो पड ही जाती है. और यह जो फोटो मैं लड़की ने दुपट्टा गले मैं डाला है चिपका के , मैं भी ऐसे ही, डाला करती थी, कॉलेज मैं, आज भी कभी ससुराल से बाहर होती हु जब यह अरमान निकल लेती हूँ.
" और सुन लो ,खड़ा तुमने किया है तो अब बैठाना भी तेरे ही हाथ में हैं। ",
कोमल जी, सही कहा औरत इसी काम के लिए ही पैदा हुई है, अपने अंदर सब समां के , आखिर बैठा ही देती है "उसको".
"बल्कि साफ साफ कहूं तो इनके फनफनाये मोटे कड़े लंड पर बैठी ,एकदम छुई मुई हो रही थी।" ,
उफ़, कोमल जी, आपने तो हमारी एक बस यात्रा की याद दिला दी, बस मैं जगह काम थी, साजन जी, सुटकैस पे और मैं उनकी गोद मैं , सभी ऐसे ही एडजस्ट कर के बैठे थे उस समय , रात का समय था , उनका "वो" करने लगा बदमाशी , मैं इधर देखु, उधर देखु, थोड़ा उठ जाउ, फिर रगड़ लग जाये , उनकी सिसकी और मेरी जान एक साथ हलक मैं. लोग क्या सोचेंगे खैर रास्ता कट ही गया, पर "उसकी" हालत ख़राब हो गई थी.
" अरे तो गुड्डी कौन गलत कह रही है ,इत्ता मोटा लम्बा खूंटा कतौं मारे जोश के एक झटके में , इहै तो कह रही थी ,
न भैय्या तानी धीरे धीरे डलिहा , एक़दाम कुँवार कसी कच्ची हौ , मना थोड़े कर रही है इनको। "
और मैंने एक फेवरिट भोजपुरी गाना गुनगुनाया , जोर जोर से ,
" तानी धीरे धीरे डलिहा बड़ा दुखाला रजऊ। अरे तनी धीरे धीरे , . . "
कोमल जी आपका यह अंदाज मार ही जाता है, ठेठ देसी , सीधा दिल के पार , मज़ा ही आ गया , साथ ही, ब्रोकेड ब्लाउज और फ्लावर प्रिंट साड़ी कमाल है.
उस कच्ची अमिया के टिट्स देख कर तो मेरी हालत खराब हो रही थी , न जाने वो बिचारे कैसे सम्हाल रहे होंगे अपने को।
" यार तू तो सच में एकदम गीली हो गयी है "
कोमल जी, मैं भी "गीली" हुई, "सच्ची", अब नयी गदराई जवानी की गर्मी, नरमी और अगर "कन्या रस " की शौकीन हो तो न कबीले बर्दास्थ सिचुएशन , अब तो जैसा औरतो का गीला होना आपकी कहानी पढ़ के ज़रूरी हो गया है, हो ही जाती हैं, अपने आप , कितने और कितनो के अरमान आप पूरा किये देती हैं आप .
तेरे लिए इन्होने एक बहुत अच्छी ड्रेस खरीदी है , बस मैं ले आती हूँ ,तुम उसे चेंज कर इसे टांग दो ,तुम्हारे जाने तक सूख जायेगी। "
हो गई शुरआत , एक शिकार की क्या हालत हो सकती है उस समय, यह सोच के ही, पसीना आ गया , हाँ जी, माथे पे और निचे भी. उफ़, मैं होती तो बस लेट जाती , फुल सरेंडर ,, मैं आपकी। . . कर लो जो चाहे। . . .
सच कहु, इसी आगे , मैं पढ़ भी न पाती आज, शुक्रिया कोमल जी, आपकी जादू भरी लेखनी को सलाम। . .
अब तो अगली कड़ी मैं। . .
इंतज़ार मैं। . . . .
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -