Episode 72
सैंडविच बने ,एक ओर मैं और दूसरी ओर उनकी 'वो ' बचपन की माल ,कच्चे टिकोरे वाली
दायीं ओर मैं ,
और बायीं ओर ' वो' ,
कच्चे टिकोरे वाली
सैंडविच बने ,एक ओर मैं और दूसरी ओर उनकी 'वो ' बचपन की माल ,कच्चे टिकोरे वाली
दायीं ओर मैं ,
और बायीं ओर ' वो' ,
'वामा'
सामने जेठानी जी ,मेरी हरकतें देखतीं कुनमुनाती।
" थोड़ा और सरकिये न , अरे गुड्डी काट नहीं खायेगी।"
मैंने उन्हें कुहनी से गुड्डी की ओर ठेला।
वो एकदम फंसे, उनके अंग से गुड्डी के अंग रगड़ रहे थे,
गुड्डी की छोटी सी ऑलमोस्ट माइक्रो स्कर्ट से निकलती उसकी मांसल मखमली जाँघे,
बॉक्सर शार्ट से निकली इनकी मस्क्युलर पावरफुल जाँघों से एकदम सटी,
गुड्डी की खूब गोरी गोरी रेशमी मृणाल बांहे भी इनकी बाँहों से दरकती ,
लेकिन सबसे बड़ी शोल्डर लेस हाल्टर, जिससे न सिर्फ उसके कंधे की खुली खुली गोरी मक्खन सी गोलाइयाँ इनके कंधे से रगड़ खा रही थीं , बल्कि बिना देखे भी उसकी कच्ची अमिया झलक रही थी।
लेकिन गुड्डी उनकी बहना ज़रा भी अनईजी नहीं फील कर रही थी।
बल्कि किशोरी की निगाहें अपने भैय्या के सिक्स पैक्स को ,उनके ट्रांसलूसेंट टी से झांकती देह को थीं।
" हे गुड्डी दे न अपने भइया को , मैंने बोला था न तू देगी तो ये कभी मना नहीं करेंगे ,इन्होने खुद बोला था "
मैंने उसे शूली पर चढ़ाया।
" एकदम भाभी , मेरे भैय्या मेरी बात कभ्भी भी ,कभ्भी भी मना नहीं करते वो तो मैंने आपको इस घर में उतरते ही बता दिया था। चल भैय्या ,मुंह खोल न ,खूब बड़ा सा ,हाँ और बड़ा ,हाँ जिसमें पूरा लड्डू एक बार में आ जाय ,. . "
और सच में उन्होंने खूब बड़ा सा मुंह खोल दिया ,
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया ,इसमें तेरी कच्ची अमिया भी एक बार में आ जायेगी।
गुड्डी ने सलाद की प्लेट से खीरे की सबसे बड़ी पीस निकाल के उनके मुंह में और उन्होंने सीधे गड़प।
गुड्डी विजयी मुस्कान से हम सब लोगों की ओर देख रही थी ,शायद उम्मीद कर रही थी हम लोग ताली बजाएं , ग्रीन्स से कोसों दूर रहने वाले उसके भैया आज खीरा ,सीधे गड़प।
ताली तो मैंने नहीं बजायी लेकिन तारीफ़ वाली नज़र से अपनी 'ननद कम सौतन ज्यादा' ( और अपने 'उनके" की होने वाली रखैल ) मैंने देखा , और वो ख़ुशी से खिल उठी।
" हे गुड्डी ने तुमको दिया तो तू भी तो गुड्डी को दो "
मैंने उन्हें कुहनी मारते बोला।
और उन्होंने एक बैंगन निकाल कर के सीधे गुड्डी की थाली में ,
और मेरी जेठानी को मौका मिल गया अपने देवर की खिंचाई करने का।
" देखो सबसे लंबा और मोटा बैंगन चुन के इन्होने गुड्डी को दिया "
वो हँसते हुए बोलीं।
" अरे दीदी , जैसे ये गुड्डी की कोई बात नहीं मना करते , गुड्डी भी इनकी कोई बात मना नहीं करती ,देखिये अभी हँसते हँसते घोंट लेगी ,पूरा गड़प कर लेगी। "
अब गुड्डी थोड़ा झेंपी पर मैंने भी ,. मैं क्यों मौक़ा छोड़ती और रगड़ने का , बोली
" देख कित्ता तेल लगा के ,. एकदम चिकना सटासट जाएगा , ज़रा भी नहीं पिरायेगा। "
और एक बैगन को अपनी मुट्ठी में लेकर आगे पीछे करते जैसे किसी लंड पे पे मुट्ठ मार रही होऊं उसे दिखाया।
ननद भाभी में इतना तो,. .
लेकिन बजाय झेंपने ,झिझकने और गुस्सा होने के आज उनकी 'वो' भी मजा ले रही थी।
और उनको सर्व कर रही थी ,
हर बार जो उनको कुछ देने के लिए झुकती वो तो ,
हॉल्टर टॉप , तो वैसे ही शोल्डर लेस ,बहुत लो कट ,क्लीवेज को दिखाता ,गोलाइयों को उभारता
,
और वो जब झुक के कुछ उन्हें देती तो बस , गहराई और गोलाई के साथ उस किशोरी के नए नए आये मिल्क टिट्स भी ,
उन्हें क्या मुझे भी दिख जाते थे ,
और मन तो बस यही करता था की उस साली के टॉप में हाथ डाल के नोच लूँ ,दबोच लूँ।
मालुम तो उस एलवल वाली छिनार को भी पड़ रहा था की उसका इस तरह से झुकने से क्या असर उसके प्यारे प्यारे भईया पर पड़ रहा था।
और मैं तो देख ही रही थी उनका खूंटा अब एक बार फिर से सर उठाने लगा है।
लोग कहते हैं की नारियां अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं ,
पर पुरुष की भावनाओ का एक ही बैरोमीटर है ,उनका खूंटा।
और अपनी छुटकी बहिनिया की नयी नयी चूँची देख कर खूंटा एकदम टनटना रहा था।
,
" सोने के थारी में जेवना परोसें ,जेवे गुड्डी का यार ,. . "
मैंने गुनगुनाया तो चिढ़ाते हुए उनकी भौजाई बोलीं
" जेवना या ,. "
" अरे दीदी साफ़ साफ़ बोलियें न ,जेवना नहीं जुबना ,. " मैंने उनकी बात पूरी की।
पर गुड्डी ज़रा भी नहीं झिझकी।
वो देती रही जुबना उभारकर ,उचका कर , झुका कर ,
और वो लेते रहे ललचाकर ,
उनकी निगाहें एकदम एकदम मेरी ननद के टेनिस बॉल्स साइज बूब्स पर बस चिपकी , नदीदों की तरह उसे देखते ललचाते,
और वो गुड्डी भी एकदम पक्की छिनार , दो उँगलियों के बीच पकड़ के बीच सुनहली भिंडी , और उनसे बोलती
,भैय्या ज़रा बड़ा सा मुंह खोलों न
और सीधे उनके मुंह में ,
उनकी उँगलियाँ जाने अनजाने , ज्यादा जानकर उसके चिकने मक्खन गालों पर छू जातीं और ,.
कभी उसके गाल शर्म से गुलाल हो जाते तो कभी वो खिलखिला के हंस उठती और उस सारंग नयनी के गालों में गड्ढे पड़ जाते
" दीदी आपके देवर ऐसे सूखे सूखे खाना खा रहे हैं "
मैंने अपनी जेठानी को चढ़ाया।
देवर की . . . नन्दोई
" दीदी आपके देवर ऐसे सूखे सूखे खाना खा रहे हैं "
मैंने अपनी जेठानी को चढ़ाया।
" अरे देवर की ,.
वो आँख नचा के बोलीं। "
" अरे साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहतीं ,. नन्दोई। अब आपकी छुटकी ननदिया उनकी बचपन का माल है तो वो ननदोई तो हुए ही न ,"
मैंने जवाब दिया ,और बिना अपनी जेठानी का इन्तजार किये चालू हो गयी ,
" मंदिर में घी के दिए जलें ,मंदिर में। "
मैं तुमसे पूछूं , हे ननदी रानी ,हे गुड्डी रानी ,
अरे तोहरे जुबना का कारोबार कैसे चले ,
अरे रातों का रोजगार कैसे चले, हे गुड्डी रानी। "
जेठानी जी भी टेबल पर थाप दे दे के गाने में मेरा साथ दे रही थी ,लेकिन
गुड्डी ने आज बिना लजाये ,झिझके एकदम टिपिकल छिनार ननद की तरह जवाब दिया।
" अरे भौजी , जवानी आएगी तो जुबना भी आएंगे ,
और जब जोबन आएगा तो जोबन का रोजगार भी चलेगा और ग्राहक भी आएंगे /"
" एक ग्राहक तो तेरे बगल में ही बैठा है ,एकदम सट के , तेरे दाएं , "
मैं अपनी ननद से बोली और उंनसे भी छेड़ते हुए पूछा ,
" हे बोलो न कैसा लगता है मेरी ननद के नए नए आये बाला जोबन। "
और अब वो दोनों शर्मा गए ,लेकिन मेरी जेठानी ने एक झटके में गारी का लेवल चौथे गियर में पहुंचा दिया,
" चल मेरी घोड़ी चने के खेत में , . "
एक क्लासिकल गारी जिसके शुरू होते ही आधी से ज्यादा ननदे भागने की फिराक में पड़ जातीं , लेकिन आज की बात और थी
मैं भी गुड्डी को दिखा दिखा के अपनी जेठानी का साथ देने लगी ,
" अरे चने के खेत में बोया है गन्ना ,अरे बोया है गन्ना ,
गुड्डी छिनरो को ले गया बभना , दबाये दोनों जुबना ,चने के खेत में।
चने के खेत में पड़ी थी राई ,अरे पड़ी थी राई।
गुड्डी को चोद रहा उनका भाई ,अरे चोद रहा गुड्डी का भाई ,चने के खेत में। '
लेकिन मेरी ननद और ये ,एक दूसरे में मगन ,
इस छेड़छाड़ में खाना कब ख़तम हो गया पता नहीं चला।
लेकिन उनका खूंटा एकदम तना खड़ा था ,भूखा ये साफ़ पता चल रहा था।
" भाभी स्वीट डिश में क्या है ,भाभी "
गुड्डी ने पूछा।
" अरे तुझसे ज्यादा स्वीट क्या होगा , स्वीट सेवेंटीन या ,. "
मैंने मुस्कराते हुए उससे कहा और इनसे पूछा ,
" क्यों है न मेरी ननद स्वीट स्वीट , तो बस गपक लो न "
लेकिन गुड्डी इत्ती जल्दी हार नहीं मानने वाली थी ,
" अरे भौजी साफ साफ़ क्यों नहीं कह देतीं ,आपने कंजूसी कर दी या लालच। ये कहिये की स्वीट डिश कुछ बनाई नहीं बल्कि है भी नहीं। '
गुड्डी ने मुझे चिढ़ाया।
"है न एकदम है।
ज़रा तू जाके फ्रिज की सेकेण्ड सेल्फ पर एक बड़ी सी फुल प्लेट है , एक दूसरी प्लैट से कवर की हुयी और एकदम चिपकी ,बंद। बस वही ले आ ना। यहीं टेबल पर खोलना। हम सबके सामने , बड़ी स्पेशल सी स्वीट डिश है। "
मैंने गुड्डी को चढ़ाया , और वो ये जा वो जा।
जब तक गुड्डी आयी मैंने और जेठानी जी ने टेबल क्लीन कर दी थी और सिर्फ स्वीट डिश के लिए साफ़ प्लेटें रख दी थी।
और गुड्डी वो प्लेट ले कर आगयी , और उसने टेबल पर ला के रख दिया। एक बड़ी सी प्लेट और साथ में एक दूसरी प्लेट से ढंकी।
खोलो न , मैंने जिद की और
गुड्डी ने खोल दिया
"और मन तो बस यही करता था की उस साली के टॉप में हाथ डाल के नोच लूँ ,दबोच लूँ। "
कोमल जी,
जब सामने शिकार हो और "शिकार" के शिकार का इंतज़ार हो. हाथो को कैसे रोक पायी , समझ सकती हु, पर इंतज़ार का फल , खट्टा- मीठा, नमकीन, गीला, चाशनी स भरा होगा।
लोग कहते हैं की नारियां अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं ,
पर पुरुष की भावनाओ का एक ही बैरोमीटर है ,उनका खूंटा।
सही है ,औरत का पूरा जिस्म एक खुली किताब होता हैं, बस पढ़ने वाली आंखे चाहिए। मर्द के थर्मामीटर का पारा और उसकी आंखे सब बता देती हैं.
मंदिर में घी के दिए जलें ,मंदिर में। "
मैं तुमसे पूछूं , हे ननदी रानी ,हे गुड्डी रानी ,
अरे तोहरे जुबना का कारोबार कैसे चले ,
अरे रातों का रोजगार कैसे चले, हे गुड्डी रानी। "
. .
" अरे चने के खेत में बोया है गन्ना ,अरे बोया है गन्ना ,
गुड्डी छिनरो को ले गया बभना , दबाये दोनों जुबना ,चने के खेत में।
चने के खेत में पड़ी थी राई ,अरे पड़ी थी राई।
गुड्डी को चोद रहा उनका भाई ,अरे चोद रहा गुड्डी का भाई ,चने के खेत में। '
यह हुई न बात, कोमल जी.
"नीचे वाली" मैं " रस - चाशनी" का कारोबार शुरू हो गया है, यह जो मज़ा है लोक गीत के सटीक प्रहार का कोई बच नहीं पाता। अरमान जग जाते हैं.
और गुड्डी वो प्लेट ले कर आगयी , और उसने टेबल पर ला के रख दिया। एक बड़ी सी प्लेट और साथ में एक दूसरी प्लेट से ढंकी।
खोलो न , मैंने जिद की और
गुड्डी ने खोल दिया
बहुत खूब. बस तड़पते हुए। . . इंतज़ार। . . . .
इंतज़ार मैं। . . . .
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका
गुड्डी रानी ने खोल दिया , .
" अरे भौजी साफ साफ़ क्यों नहीं कह देतीं ,आपने कंजूसी कर दी या लालच। ये कहिये की स्वीट डिश कुछ बनाई नहीं बल्कि है भी नहीं। ' गुड्डी ने मुझे चिढ़ाया।
"है न एकदम है।
ज़रा तू जाके फ्रिज की सेकेण्ड सेल्फ पर एक बड़ी सी फुल प्लेट है , एक दूसरी प्लैट से कवर की हुयी और एकदम चिपकी ,बंद। बस वही ले आ ना। यहीं टेबल पर खोलना। हम सबके सामने , बड़ी स्पेशल सी स्वीट डिश है। " मैंने गुड्डी को चढ़ाया , और वो ये जा वो जा।
जब तक गुड्डी आयी मैंने और जेठानी जी ने टेबल क्लीन कर दी थी और सिर्फ स्वीट डिश के लिए साफ़ प्लेटें रख दी थी।
और गुड्डी वो प्लेट ले कर आगयी , और उसने टेबल पर ला के रख दिया। एक बड़ी सी प्लेट और साथ में एक दूसरी प्लेट से ढंकी।
खोलो न , मैंने जिद की और
गुड्डी ने खोल दिया
जैसे ही गुड्डी ने वो प्लेट खोली , गुड्डी की आँखे एकदम फ़ैल गयी, विस्फारित।
वो महक , रस से भीनी सुगंध , वो रंग ,एक नशा सा तारी हो गया सिर्फ देख कर , महक से
छिले,कटे , सिन्दूरी अल्फांसो की खूब लम्बी लम्बी फांके , छलकते हुए रस से भीगे ,
रसीले, स्वाद उसकी महक से भिन रहा था ,सीधे रत्नागरी से एक्सपोर्ट क्वालिटी ,
पूरी प्लेट रसीली बड़ी बड़ी लम्बी रस से भरी ,फांको से भरी थी ,एक महक और बस चखे बिना ही कोई दीवाना हो जाए
असर तो गुड्डी पर प्लेट खोलते ही पड़ा , लेकिन कनखियों से गुड्डी ने अपने 'भैय्या ' की ओर देखा ,
( यही एक्प्रेसन तो मैं देखना चाहती थी , मेरे भैय्या नाम भी नहीं ले सकते , टेबल पर कोई आम की बात कर ले तो उठ जाते हैं , टेबल पर रखना तो दूर ,भाभी आप को ये सब चीजें भैय्या के बारे में जान लेना चाहिए ,पहले दिन से ही ये बात सुनते सुनते ,. )
और उसके भैय्या टेबल से नहीं उठे थे बल्कि हम सभी की तरह अल्फांसो के रस की भीनी भीनी सुगंध का मजा ले रहे थे।
गुड्डी ने एक फांक छूई।
और वो उसका टच फील इंज्वाय कर रही थी , फिर मेरी ननद ने एक फांक उठा कर मुंह से लगाया , खूब रस से भरा हुआ ,
उसे होंठों से थोड़ा किया , फिर हलकी सी बाइट , आम का मीठा मीठा रस छलक रहा था ,
और गुड्डी को स्वाद भी खूब आ रहा था। फिर आधी फांक सीधे मुंह में , चूसने लगी।
बीच में एक दो बार अपने 'भैय्या ' की ओर भी देखा उसने कहीं वो , बुरा तो नहीं मान रहे ,
लेकिन बुरा कौन , वो तो अपनी इस छुटकी बहिनिया की कच्ची कोरी बुर के सपने में डूबे , गुड्डी के रसीले किशोर होंठों के बीच रस से भरी फांक से छलकता रस निहार रहे थे।
गुड्डी ने एक दो फांके मेरी जेठानी को और एक फांक मेरी प्लेट में रखी लेकिन उनके प्लेट में नहीं।
पर उनकी निगाहें उस किशोरी पर टिकी थीं ,कैसे उसने दो उँगलियों के बीच लम्बी मोटी फांक पकड़ रखी थी ,
कैसे उसे अपने गुलाबी भीगे भीगे रसीले होंठो के बीच हलके हलके दबा के चूस रही थी
और कैसे जब रस की एक बूँद छलक कर उसकी ठुड्डी पर आ गयी तो गुड्डी ने कैसे जीभ निकाल के उसे चाट लिया।
गुड्डी की उँगलिया कैसे उस भीने भीने रस से गीली हो रही हैं।
कैटरीना कैफ का मैंगो वाला ऐड याद है न ,
गुड्डी उससे कहीं कहीं ज्यादा सेक्सी रसीली लग रही थी।
मैंने उनको कुहनी मार के उस जादूगरनी के जादू से निकालने की कोशिश की और हलके से ,बहुत धीमे से थोड़ा झिझकते वो बोले ,
" गुड्डी ,. . "
गुड्डी ने एक और बड़ी सी रसीली फांक अपने मुंह में डाल ली और उनकी ओर देखा।
और उस सारंग नयनी ने मुड़ कर अपनी बड़ी बड़ी नाचती गाती रतनारी आँखों से ,जैसे कोई हिरणी मुड़ के देखे ,उन्हें देखा।
उस किशोरी के गुलाबी रसीले होंठों पर आम रस लिपटा हुआ था ,
और दोनों होंठों के बीच एक खूब मोटी सी सिंदूरी रसीली फाँक ,
मैंने उन्हें फिर कोहनी मारी और कान में फुसफुसाया , " अरे बोल न "
गुड्डी , और फिर चुप हो गए।
हम तीनो,मैं, गुड्डी और मेरी जेठानी कान पारे सुन रहे थे ,इन्तजार कर रहे थे।
और उनके बोल फूटे , झटपट जैसे जल्दी से अपनी बात ख़तम करने के चक्कर में हों।
" गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न। "
जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा हो सबको ,सब लोग एकदम पत्त्थर।
गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न।
हम तीनो,मैं, गुड्डी और मेरी जेठानी कान पारे सुन रहे थे ,इन्तजार कर रहे थे।
और उनके बोल फूटे , झटपट जैसे जल्दी से अपनी बात ख़तम करने के चक्कर में हों।
" गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न। "
जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा हो सबको ,सब लोग एकदम पत्त्थर।
गुड्डी के तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था ,
मेरी जेठानी भी एकदम ,
मैंने बात सम्हालने की कोशिश की ,
" अरे गुड्डी चूत मतलब , ये तेरी दोनों जांघो के बीच वाली चीज , नीचे वाले मखमली कोरे होंठ नहीं मांग रहे है ,
बल्कि ऊपर के होंठ के बीच में फंसी सिंदूरी रसीली फांक मांग रहे हैं। अरे आम को चूत ही तो कहते हैं संस्कृत में। रसाल ,मधुर और होता भी तो है वैसे ही चिकना , रसीला।
चाटने चूसने में दोनों ही मजा है , हैं न यही बात। "
उन्होंने सर हिला के हामी भरी , जेठानी मेरी एक नम्बरी क्यों मौक़ा छोड़तीं ,बोली ,
" अरे मान लो गुड्डी से नीचे वाला होंठ मांग ही लिया तो क्या बुरा किया , अरे दे देगी ये समझा क्या है अपनी ननद को। घिस थोड़ी जायेगी "
माहौल एक बार फिर हलका हो गया था। मैंने भी मजा लेते हुए कहा ,
" अरे घिस नहीं जायेगी , फट जाएगी इनके मूसल से "
हँसते हुए मैं बोली।
" तो क्या हुआ ,अरे कोई न कोई तो फाड़ेगा ही ,अपने प्यारे प्यारे भैय्या से ही फड़वा लेगी। "
जेठानी जी ने भी अपनी छुटकी ननद को और रगड़ा।
" और क्या ,फिर ये तो कहती ही हैं , मेरे भय्या कुछ भी ,कुछ भी मांगे मैं मना नहीं करुँगी , लेकिन अभी तो जो वो मांग रहे है वो तो दे दो न बिचारे को "
और चारा भी क्या था बिचारी के पास।
अपने रस से भीगे होंठों के बीच दबे खूब चूसी हुयी फांक को गुड्डी ने निकाल के जैसे ही उनकी ओर बढ़ाया ,
उनका एक हाथ वैसे भी गुड्डी के कंधे पर ही था , बस एकदम सटे चिपके बैठे थे वो ,बस दूसरे हाथ ने झपट कर उस गुड्डी की खायी ,चूसी,चुभलाई आम की फांक को सीधे वो उन होंठों के बीच।
और अब वो उस फांक को वैसे ही चूस रहे ,चाट रहे थे, चख रहे थे जैसे थोड़ी देर पहले उनके बाएं बैठी वो एलवल वाली मजे से चूस रही थी।
मस्त गंध ,अल्फांसो के टैंगी टैंगी स्वाद के साथ , आमरस के साथ उसमें काम रस भी तो मिला था।
उनकी छुटकी बहिनिया के किशोर होंठों का रस ,उसका मुख रस।
खूब मजे से वो चूस रहे थे ,चुभला रहे थे ,कुतर रहे थे।
जैसे कुछ देर पहले गुड्डी के होंठों से आम रस की बूंदे सरक कर ठुड्डी तक पहुँच गयी थीं , वही हालत अब उनकी थी।
लेकिन मेरी निगाहें उन से ज्यादा अपनी ननद और जेठानी पर चिपकी थी जो पहले दिन से मुझे ज्ञान देने में जुटी थीं ,
मेरे भैय्या को ,मेरे देवर को ,तुम्हे कुछ मालूम नहीं ,तेरे मायके में होता है यहां नहीं , भाभी ,भइया को ये एकदम पसंद नहीं ,कित्ती बार तो आपको बोल चुकी हूँ लेकिन आपको तो समझ ही नहीं ,
जो कहते हैं न फट के हाथ में आ जाना , एकदम वही हालत थी मेरी ननद और उससे भी ज्यादा जेठानी का।
गुड्डी का तो मुँह एकदम खुला ,
शाक भी सरप्राइज भी , जो चीज वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी , उसके भैय्या ,
जिठानी की हालत तो गुड्डी से भी खराब जो चीज वो कभी सोच नहीं सकती थी ,उसी घर में ,उसी डाइनिंग टेबल पर जिस पर बैठ के घंटो वो मुझे लेक्चर देती थीं।
एकदम सन्नाटा , पिन ड्राप ,
सन्नाटा तोड़ा उन्होंने ही ,गुड्डी से बोले ,
" अच्छा है न, मस्त टैंगी , तेरे लिए तेरी भाभी ने स्पेशली मंगाया था ,मस्त स्वाद है न "
बिचारी गुड्डी क्या जवाब देती , वो सिर्फ बाजी ही नहीं हारी थी बल्कि बहुत कुछ,
और मैं मन ही मन सोच रही थी ,गुड्डी रानी ये तो सिर्फ शुरुआत है।
किसी तरह तो तुझे पटा के अपने घर ले चल पाऊं न फिर तो , अरे तेरी सील तो तेरे सीधे साधे भैय्या से तुड़वाउंगी ही ,आगे आगे देखना , मंजू बाई और गीता तो बस मौका मिलने की देर है ,
और तेरी कच्ची अमिया कुतरने वालो की कमी नहीं है।
लेकिन बोली मैं उसके सीधे साधे भैया से ,
" अरे कैसे भाई हो ,तूने तो गुड्डी की ले ली लेकिन अब उसको भी तो दो , उस बिचारी के होंठों से ,
और मेरी बात पूरा होने के पहले ही प्लेट से एक बड़ी सी रसीली खूब लम्बी फांक उठा के उन्होंने सीधे गुड्डी के रसीले होंठों के बीच ,
और अबकी गुड्डी ने गड़प लिया।
और जैसे कोहबर में नाउन से लेकर दुल्हन की भौजाइयां तक सिखाती हैं , की कैसे जब दूल्हा उसे कोहबर में खीर खिलाये तो कचाक से वो उसकी ऊँगली काट ले , बस एकदम उसी तरह गुड्डी ने ,जब उन्होंने आम की फांक अपनी ऊँगली से गुड्डी के आमरस से सिक्त मुंह में डाली तो बस ,कचाक से उस शोख ने उनकी ऊँगली काट ली।
मेरी उंगलिया तो किसी और काम में बिजी थीं ,पिंजड़े से शेर को आजाद करने के काम में ,और शार्ट का फायदा भी यही है , जरा सा सरकाओ ,शेर आजाद।
और भूखा शेर बाहर आ गया ,दहाडता ,चिग्घाड़ता। और ऊपर से मैंने अपनी कोमल कोमल मुट्ठी में , उसे पकड़कर मुठियाना शुरू कर दिया।
बस थोड़ी देर में ही वो फनफनाने लगा।
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।
दो न गुड्डी , .
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।
गुड्डी की जोर से उनकी ऊँगली काटने के बाद , उईईईई की तीखी आवाज उनके मुंह से निकली ,
फिर वो उस एलवल वाली से फुसफुसा कर बोले ,
" सुन जब मैं काटूंगा न तो तेरी ,. "
दायीं ओर मैं ,
और बायीं ओर ' वो' ,
कच्चे टिकोरे वाली
सैंडविच बने ,एक ओर मैं और दूसरी ओर उनकी 'वो ' बचपन की माल ,कच्चे टिकोरे वाली
दायीं ओर मैं ,
और बायीं ओर ' वो' ,
'वामा'
सामने जेठानी जी ,मेरी हरकतें देखतीं कुनमुनाती।
" थोड़ा और सरकिये न , अरे गुड्डी काट नहीं खायेगी।"
मैंने उन्हें कुहनी से गुड्डी की ओर ठेला।
वो एकदम फंसे, उनके अंग से गुड्डी के अंग रगड़ रहे थे,
गुड्डी की छोटी सी ऑलमोस्ट माइक्रो स्कर्ट से निकलती उसकी मांसल मखमली जाँघे,
बॉक्सर शार्ट से निकली इनकी मस्क्युलर पावरफुल जाँघों से एकदम सटी,
गुड्डी की खूब गोरी गोरी रेशमी मृणाल बांहे भी इनकी बाँहों से दरकती ,
लेकिन सबसे बड़ी शोल्डर लेस हाल्टर, जिससे न सिर्फ उसके कंधे की खुली खुली गोरी मक्खन सी गोलाइयाँ इनके कंधे से रगड़ खा रही थीं , बल्कि बिना देखे भी उसकी कच्ची अमिया झलक रही थी।
लेकिन गुड्डी उनकी बहना ज़रा भी अनईजी नहीं फील कर रही थी।
बल्कि किशोरी की निगाहें अपने भैय्या के सिक्स पैक्स को ,उनके ट्रांसलूसेंट टी से झांकती देह को थीं।
" हे गुड्डी दे न अपने भइया को , मैंने बोला था न तू देगी तो ये कभी मना नहीं करेंगे ,इन्होने खुद बोला था "
मैंने उसे शूली पर चढ़ाया।
" एकदम भाभी , मेरे भैय्या मेरी बात कभ्भी भी ,कभ्भी भी मना नहीं करते वो तो मैंने आपको इस घर में उतरते ही बता दिया था। चल भैय्या ,मुंह खोल न ,खूब बड़ा सा ,हाँ और बड़ा ,हाँ जिसमें पूरा लड्डू एक बार में आ जाय ,. . "
और सच में उन्होंने खूब बड़ा सा मुंह खोल दिया ,
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया ,इसमें तेरी कच्ची अमिया भी एक बार में आ जायेगी।
गुड्डी ने सलाद की प्लेट से खीरे की सबसे बड़ी पीस निकाल के उनके मुंह में और उन्होंने सीधे गड़प।
गुड्डी विजयी मुस्कान से हम सब लोगों की ओर देख रही थी ,शायद उम्मीद कर रही थी हम लोग ताली बजाएं , ग्रीन्स से कोसों दूर रहने वाले उसके भैया आज खीरा ,सीधे गड़प।
ताली तो मैंने नहीं बजायी लेकिन तारीफ़ वाली नज़र से अपनी 'ननद कम सौतन ज्यादा' ( और अपने 'उनके" की होने वाली रखैल ) मैंने देखा , और वो ख़ुशी से खिल उठी।
" हे गुड्डी ने तुमको दिया तो तू भी तो गुड्डी को दो "
मैंने उन्हें कुहनी मारते बोला।
और उन्होंने एक बैंगन निकाल कर के सीधे गुड्डी की थाली में ,
और मेरी जेठानी को मौका मिल गया अपने देवर की खिंचाई करने का।
" देखो सबसे लंबा और मोटा बैंगन चुन के इन्होने गुड्डी को दिया "
वो हँसते हुए बोलीं।
" अरे दीदी , जैसे ये गुड्डी की कोई बात नहीं मना करते , गुड्डी भी इनकी कोई बात मना नहीं करती ,देखिये अभी हँसते हँसते घोंट लेगी ,पूरा गड़प कर लेगी। "
अब गुड्डी थोड़ा झेंपी पर मैंने भी ,. मैं क्यों मौक़ा छोड़ती और रगड़ने का , बोली
" देख कित्ता तेल लगा के ,. एकदम चिकना सटासट जाएगा , ज़रा भी नहीं पिरायेगा। "
और एक बैगन को अपनी मुट्ठी में लेकर आगे पीछे करते जैसे किसी लंड पे पे मुट्ठ मार रही होऊं उसे दिखाया।
ननद भाभी में इतना तो,. .
लेकिन बजाय झेंपने ,झिझकने और गुस्सा होने के आज उनकी 'वो' भी मजा ले रही थी।
और उनको सर्व कर रही थी ,
हर बार जो उनको कुछ देने के लिए झुकती वो तो ,
हॉल्टर टॉप , तो वैसे ही शोल्डर लेस ,बहुत लो कट ,क्लीवेज को दिखाता ,गोलाइयों को उभारता
,
और वो जब झुक के कुछ उन्हें देती तो बस , गहराई और गोलाई के साथ उस किशोरी के नए नए आये मिल्क टिट्स भी ,
उन्हें क्या मुझे भी दिख जाते थे ,
और मन तो बस यही करता था की उस साली के टॉप में हाथ डाल के नोच लूँ ,दबोच लूँ।
मालुम तो उस एलवल वाली छिनार को भी पड़ रहा था की उसका इस तरह से झुकने से क्या असर उसके प्यारे प्यारे भईया पर पड़ रहा था।
और मैं तो देख ही रही थी उनका खूंटा अब एक बार फिर से सर उठाने लगा है।
लोग कहते हैं की नारियां अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं ,
पर पुरुष की भावनाओ का एक ही बैरोमीटर है ,उनका खूंटा।
और अपनी छुटकी बहिनिया की नयी नयी चूँची देख कर खूंटा एकदम टनटना रहा था।
,
" सोने के थारी में जेवना परोसें ,जेवे गुड्डी का यार ,. . "
मैंने गुनगुनाया तो चिढ़ाते हुए उनकी भौजाई बोलीं
" जेवना या ,. "
" अरे दीदी साफ़ साफ़ बोलियें न ,जेवना नहीं जुबना ,. " मैंने उनकी बात पूरी की।
पर गुड्डी ज़रा भी नहीं झिझकी।
वो देती रही जुबना उभारकर ,उचका कर , झुका कर ,
और वो लेते रहे ललचाकर ,
उनकी निगाहें एकदम एकदम मेरी ननद के टेनिस बॉल्स साइज बूब्स पर बस चिपकी , नदीदों की तरह उसे देखते ललचाते,
और वो गुड्डी भी एकदम पक्की छिनार , दो उँगलियों के बीच पकड़ के बीच सुनहली भिंडी , और उनसे बोलती
,भैय्या ज़रा बड़ा सा मुंह खोलों न
और सीधे उनके मुंह में ,
उनकी उँगलियाँ जाने अनजाने , ज्यादा जानकर उसके चिकने मक्खन गालों पर छू जातीं और ,.
कभी उसके गाल शर्म से गुलाल हो जाते तो कभी वो खिलखिला के हंस उठती और उस सारंग नयनी के गालों में गड्ढे पड़ जाते
" दीदी आपके देवर ऐसे सूखे सूखे खाना खा रहे हैं "
मैंने अपनी जेठानी को चढ़ाया।
देवर की . . . नन्दोई
" दीदी आपके देवर ऐसे सूखे सूखे खाना खा रहे हैं "
मैंने अपनी जेठानी को चढ़ाया।
" अरे देवर की ,.
वो आँख नचा के बोलीं। "
" अरे साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहतीं ,. नन्दोई। अब आपकी छुटकी ननदिया उनकी बचपन का माल है तो वो ननदोई तो हुए ही न ,"
मैंने जवाब दिया ,और बिना अपनी जेठानी का इन्तजार किये चालू हो गयी ,
" मंदिर में घी के दिए जलें ,मंदिर में। "
मैं तुमसे पूछूं , हे ननदी रानी ,हे गुड्डी रानी ,
अरे तोहरे जुबना का कारोबार कैसे चले ,
अरे रातों का रोजगार कैसे चले, हे गुड्डी रानी। "
जेठानी जी भी टेबल पर थाप दे दे के गाने में मेरा साथ दे रही थी ,लेकिन
गुड्डी ने आज बिना लजाये ,झिझके एकदम टिपिकल छिनार ननद की तरह जवाब दिया।
" अरे भौजी , जवानी आएगी तो जुबना भी आएंगे ,
और जब जोबन आएगा तो जोबन का रोजगार भी चलेगा और ग्राहक भी आएंगे /"
" एक ग्राहक तो तेरे बगल में ही बैठा है ,एकदम सट के , तेरे दाएं , "
मैं अपनी ननद से बोली और उंनसे भी छेड़ते हुए पूछा ,
" हे बोलो न कैसा लगता है मेरी ननद के नए नए आये बाला जोबन। "
और अब वो दोनों शर्मा गए ,लेकिन मेरी जेठानी ने एक झटके में गारी का लेवल चौथे गियर में पहुंचा दिया,
" चल मेरी घोड़ी चने के खेत में , . "
एक क्लासिकल गारी जिसके शुरू होते ही आधी से ज्यादा ननदे भागने की फिराक में पड़ जातीं , लेकिन आज की बात और थी
मैं भी गुड्डी को दिखा दिखा के अपनी जेठानी का साथ देने लगी ,
" अरे चने के खेत में बोया है गन्ना ,अरे बोया है गन्ना ,
गुड्डी छिनरो को ले गया बभना , दबाये दोनों जुबना ,चने के खेत में।
चने के खेत में पड़ी थी राई ,अरे पड़ी थी राई।
गुड्डी को चोद रहा उनका भाई ,अरे चोद रहा गुड्डी का भाई ,चने के खेत में। '
लेकिन मेरी ननद और ये ,एक दूसरे में मगन ,
इस छेड़छाड़ में खाना कब ख़तम हो गया पता नहीं चला।
लेकिन उनका खूंटा एकदम तना खड़ा था ,भूखा ये साफ़ पता चल रहा था।
" भाभी स्वीट डिश में क्या है ,भाभी "
गुड्डी ने पूछा।
" अरे तुझसे ज्यादा स्वीट क्या होगा , स्वीट सेवेंटीन या ,. "
मैंने मुस्कराते हुए उससे कहा और इनसे पूछा ,
" क्यों है न मेरी ननद स्वीट स्वीट , तो बस गपक लो न "
लेकिन गुड्डी इत्ती जल्दी हार नहीं मानने वाली थी ,
" अरे भौजी साफ साफ़ क्यों नहीं कह देतीं ,आपने कंजूसी कर दी या लालच। ये कहिये की स्वीट डिश कुछ बनाई नहीं बल्कि है भी नहीं। '
गुड्डी ने मुझे चिढ़ाया।
"है न एकदम है।
ज़रा तू जाके फ्रिज की सेकेण्ड सेल्फ पर एक बड़ी सी फुल प्लेट है , एक दूसरी प्लैट से कवर की हुयी और एकदम चिपकी ,बंद। बस वही ले आ ना। यहीं टेबल पर खोलना। हम सबके सामने , बड़ी स्पेशल सी स्वीट डिश है। "
मैंने गुड्डी को चढ़ाया , और वो ये जा वो जा।
जब तक गुड्डी आयी मैंने और जेठानी जी ने टेबल क्लीन कर दी थी और सिर्फ स्वीट डिश के लिए साफ़ प्लेटें रख दी थी।
और गुड्डी वो प्लेट ले कर आगयी , और उसने टेबल पर ला के रख दिया। एक बड़ी सी प्लेट और साथ में एक दूसरी प्लेट से ढंकी।
खोलो न , मैंने जिद की और
गुड्डी ने खोल दिया
"और मन तो बस यही करता था की उस साली के टॉप में हाथ डाल के नोच लूँ ,दबोच लूँ। "
कोमल जी,
जब सामने शिकार हो और "शिकार" के शिकार का इंतज़ार हो. हाथो को कैसे रोक पायी , समझ सकती हु, पर इंतज़ार का फल , खट्टा- मीठा, नमकीन, गीला, चाशनी स भरा होगा।
लोग कहते हैं की नारियां अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं ,
पर पुरुष की भावनाओ का एक ही बैरोमीटर है ,उनका खूंटा।
सही है ,औरत का पूरा जिस्म एक खुली किताब होता हैं, बस पढ़ने वाली आंखे चाहिए। मर्द के थर्मामीटर का पारा और उसकी आंखे सब बता देती हैं.
मंदिर में घी के दिए जलें ,मंदिर में। "
मैं तुमसे पूछूं , हे ननदी रानी ,हे गुड्डी रानी ,
अरे तोहरे जुबना का कारोबार कैसे चले ,
अरे रातों का रोजगार कैसे चले, हे गुड्डी रानी। "
. .
" अरे चने के खेत में बोया है गन्ना ,अरे बोया है गन्ना ,
गुड्डी छिनरो को ले गया बभना , दबाये दोनों जुबना ,चने के खेत में।
चने के खेत में पड़ी थी राई ,अरे पड़ी थी राई।
गुड्डी को चोद रहा उनका भाई ,अरे चोद रहा गुड्डी का भाई ,चने के खेत में। '
यह हुई न बात, कोमल जी.
"नीचे वाली" मैं " रस - चाशनी" का कारोबार शुरू हो गया है, यह जो मज़ा है लोक गीत के सटीक प्रहार का कोई बच नहीं पाता। अरमान जग जाते हैं.
और गुड्डी वो प्लेट ले कर आगयी , और उसने टेबल पर ला के रख दिया। एक बड़ी सी प्लेट और साथ में एक दूसरी प्लेट से ढंकी।
खोलो न , मैंने जिद की और
गुड्डी ने खोल दिया
बहुत खूब. बस तड़पते हुए। . . इंतज़ार। . . . .
इंतज़ार मैं। . . . .
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका
गुड्डी रानी ने खोल दिया , .
" अरे भौजी साफ साफ़ क्यों नहीं कह देतीं ,आपने कंजूसी कर दी या लालच। ये कहिये की स्वीट डिश कुछ बनाई नहीं बल्कि है भी नहीं। ' गुड्डी ने मुझे चिढ़ाया।
"है न एकदम है।
ज़रा तू जाके फ्रिज की सेकेण्ड सेल्फ पर एक बड़ी सी फुल प्लेट है , एक दूसरी प्लैट से कवर की हुयी और एकदम चिपकी ,बंद। बस वही ले आ ना। यहीं टेबल पर खोलना। हम सबके सामने , बड़ी स्पेशल सी स्वीट डिश है। " मैंने गुड्डी को चढ़ाया , और वो ये जा वो जा।
जब तक गुड्डी आयी मैंने और जेठानी जी ने टेबल क्लीन कर दी थी और सिर्फ स्वीट डिश के लिए साफ़ प्लेटें रख दी थी।
और गुड्डी वो प्लेट ले कर आगयी , और उसने टेबल पर ला के रख दिया। एक बड़ी सी प्लेट और साथ में एक दूसरी प्लेट से ढंकी।
खोलो न , मैंने जिद की और
गुड्डी ने खोल दिया
जैसे ही गुड्डी ने वो प्लेट खोली , गुड्डी की आँखे एकदम फ़ैल गयी, विस्फारित।
वो महक , रस से भीनी सुगंध , वो रंग ,एक नशा सा तारी हो गया सिर्फ देख कर , महक से
छिले,कटे , सिन्दूरी अल्फांसो की खूब लम्बी लम्बी फांके , छलकते हुए रस से भीगे ,
रसीले, स्वाद उसकी महक से भिन रहा था ,सीधे रत्नागरी से एक्सपोर्ट क्वालिटी ,
पूरी प्लेट रसीली बड़ी बड़ी लम्बी रस से भरी ,फांको से भरी थी ,एक महक और बस चखे बिना ही कोई दीवाना हो जाए
असर तो गुड्डी पर प्लेट खोलते ही पड़ा , लेकिन कनखियों से गुड्डी ने अपने 'भैय्या ' की ओर देखा ,
( यही एक्प्रेसन तो मैं देखना चाहती थी , मेरे भैय्या नाम भी नहीं ले सकते , टेबल पर कोई आम की बात कर ले तो उठ जाते हैं , टेबल पर रखना तो दूर ,भाभी आप को ये सब चीजें भैय्या के बारे में जान लेना चाहिए ,पहले दिन से ही ये बात सुनते सुनते ,. )
और उसके भैय्या टेबल से नहीं उठे थे बल्कि हम सभी की तरह अल्फांसो के रस की भीनी भीनी सुगंध का मजा ले रहे थे।
गुड्डी ने एक फांक छूई।
और वो उसका टच फील इंज्वाय कर रही थी , फिर मेरी ननद ने एक फांक उठा कर मुंह से लगाया , खूब रस से भरा हुआ ,
उसे होंठों से थोड़ा किया , फिर हलकी सी बाइट , आम का मीठा मीठा रस छलक रहा था ,
और गुड्डी को स्वाद भी खूब आ रहा था। फिर आधी फांक सीधे मुंह में , चूसने लगी।
बीच में एक दो बार अपने 'भैय्या ' की ओर भी देखा उसने कहीं वो , बुरा तो नहीं मान रहे ,
लेकिन बुरा कौन , वो तो अपनी इस छुटकी बहिनिया की कच्ची कोरी बुर के सपने में डूबे , गुड्डी के रसीले किशोर होंठों के बीच रस से भरी फांक से छलकता रस निहार रहे थे।
गुड्डी ने एक दो फांके मेरी जेठानी को और एक फांक मेरी प्लेट में रखी लेकिन उनके प्लेट में नहीं।
पर उनकी निगाहें उस किशोरी पर टिकी थीं ,कैसे उसने दो उँगलियों के बीच लम्बी मोटी फांक पकड़ रखी थी ,
कैसे उसे अपने गुलाबी भीगे भीगे रसीले होंठो के बीच हलके हलके दबा के चूस रही थी
और कैसे जब रस की एक बूँद छलक कर उसकी ठुड्डी पर आ गयी तो गुड्डी ने कैसे जीभ निकाल के उसे चाट लिया।
गुड्डी की उँगलिया कैसे उस भीने भीने रस से गीली हो रही हैं।
कैटरीना कैफ का मैंगो वाला ऐड याद है न ,
गुड्डी उससे कहीं कहीं ज्यादा सेक्सी रसीली लग रही थी।
मैंने उनको कुहनी मार के उस जादूगरनी के जादू से निकालने की कोशिश की और हलके से ,बहुत धीमे से थोड़ा झिझकते वो बोले ,
" गुड्डी ,. . "
गुड्डी ने एक और बड़ी सी रसीली फांक अपने मुंह में डाल ली और उनकी ओर देखा।
और उस सारंग नयनी ने मुड़ कर अपनी बड़ी बड़ी नाचती गाती रतनारी आँखों से ,जैसे कोई हिरणी मुड़ के देखे ,उन्हें देखा।
उस किशोरी के गुलाबी रसीले होंठों पर आम रस लिपटा हुआ था ,
और दोनों होंठों के बीच एक खूब मोटी सी सिंदूरी रसीली फाँक ,
मैंने उन्हें फिर कोहनी मारी और कान में फुसफुसाया , " अरे बोल न "
गुड्डी , और फिर चुप हो गए।
हम तीनो,मैं, गुड्डी और मेरी जेठानी कान पारे सुन रहे थे ,इन्तजार कर रहे थे।
और उनके बोल फूटे , झटपट जैसे जल्दी से अपनी बात ख़तम करने के चक्कर में हों।
" गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न। "
जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा हो सबको ,सब लोग एकदम पत्त्थर।
गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न।
हम तीनो,मैं, गुड्डी और मेरी जेठानी कान पारे सुन रहे थे ,इन्तजार कर रहे थे।
और उनके बोल फूटे , झटपट जैसे जल्दी से अपनी बात ख़तम करने के चक्कर में हों।
" गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न। "
जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा हो सबको ,सब लोग एकदम पत्त्थर।
गुड्डी के तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था ,
मेरी जेठानी भी एकदम ,
मैंने बात सम्हालने की कोशिश की ,
" अरे गुड्डी चूत मतलब , ये तेरी दोनों जांघो के बीच वाली चीज , नीचे वाले मखमली कोरे होंठ नहीं मांग रहे है ,
बल्कि ऊपर के होंठ के बीच में फंसी सिंदूरी रसीली फांक मांग रहे हैं। अरे आम को चूत ही तो कहते हैं संस्कृत में। रसाल ,मधुर और होता भी तो है वैसे ही चिकना , रसीला।
चाटने चूसने में दोनों ही मजा है , हैं न यही बात। "
उन्होंने सर हिला के हामी भरी , जेठानी मेरी एक नम्बरी क्यों मौक़ा छोड़तीं ,बोली ,
" अरे मान लो गुड्डी से नीचे वाला होंठ मांग ही लिया तो क्या बुरा किया , अरे दे देगी ये समझा क्या है अपनी ननद को। घिस थोड़ी जायेगी "
माहौल एक बार फिर हलका हो गया था। मैंने भी मजा लेते हुए कहा ,
" अरे घिस नहीं जायेगी , फट जाएगी इनके मूसल से "
हँसते हुए मैं बोली।
" तो क्या हुआ ,अरे कोई न कोई तो फाड़ेगा ही ,अपने प्यारे प्यारे भैय्या से ही फड़वा लेगी। "
जेठानी जी ने भी अपनी छुटकी ननद को और रगड़ा।
" और क्या ,फिर ये तो कहती ही हैं , मेरे भय्या कुछ भी ,कुछ भी मांगे मैं मना नहीं करुँगी , लेकिन अभी तो जो वो मांग रहे है वो तो दे दो न बिचारे को "
और चारा भी क्या था बिचारी के पास।
अपने रस से भीगे होंठों के बीच दबे खूब चूसी हुयी फांक को गुड्डी ने निकाल के जैसे ही उनकी ओर बढ़ाया ,
उनका एक हाथ वैसे भी गुड्डी के कंधे पर ही था , बस एकदम सटे चिपके बैठे थे वो ,बस दूसरे हाथ ने झपट कर उस गुड्डी की खायी ,चूसी,चुभलाई आम की फांक को सीधे वो उन होंठों के बीच।
और अब वो उस फांक को वैसे ही चूस रहे ,चाट रहे थे, चख रहे थे जैसे थोड़ी देर पहले उनके बाएं बैठी वो एलवल वाली मजे से चूस रही थी।
मस्त गंध ,अल्फांसो के टैंगी टैंगी स्वाद के साथ , आमरस के साथ उसमें काम रस भी तो मिला था।
उनकी छुटकी बहिनिया के किशोर होंठों का रस ,उसका मुख रस।
खूब मजे से वो चूस रहे थे ,चुभला रहे थे ,कुतर रहे थे।
जैसे कुछ देर पहले गुड्डी के होंठों से आम रस की बूंदे सरक कर ठुड्डी तक पहुँच गयी थीं , वही हालत अब उनकी थी।
लेकिन मेरी निगाहें उन से ज्यादा अपनी ननद और जेठानी पर चिपकी थी जो पहले दिन से मुझे ज्ञान देने में जुटी थीं ,
मेरे भैय्या को ,मेरे देवर को ,तुम्हे कुछ मालूम नहीं ,तेरे मायके में होता है यहां नहीं , भाभी ,भइया को ये एकदम पसंद नहीं ,कित्ती बार तो आपको बोल चुकी हूँ लेकिन आपको तो समझ ही नहीं ,
जो कहते हैं न फट के हाथ में आ जाना , एकदम वही हालत थी मेरी ननद और उससे भी ज्यादा जेठानी का।
गुड्डी का तो मुँह एकदम खुला ,
शाक भी सरप्राइज भी , जो चीज वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी , उसके भैय्या ,
जिठानी की हालत तो गुड्डी से भी खराब जो चीज वो कभी सोच नहीं सकती थी ,उसी घर में ,उसी डाइनिंग टेबल पर जिस पर बैठ के घंटो वो मुझे लेक्चर देती थीं।
एकदम सन्नाटा , पिन ड्राप ,
सन्नाटा तोड़ा उन्होंने ही ,गुड्डी से बोले ,
" अच्छा है न, मस्त टैंगी , तेरे लिए तेरी भाभी ने स्पेशली मंगाया था ,मस्त स्वाद है न "
बिचारी गुड्डी क्या जवाब देती , वो सिर्फ बाजी ही नहीं हारी थी बल्कि बहुत कुछ,
और मैं मन ही मन सोच रही थी ,गुड्डी रानी ये तो सिर्फ शुरुआत है।
किसी तरह तो तुझे पटा के अपने घर ले चल पाऊं न फिर तो , अरे तेरी सील तो तेरे सीधे साधे भैय्या से तुड़वाउंगी ही ,आगे आगे देखना , मंजू बाई और गीता तो बस मौका मिलने की देर है ,
और तेरी कच्ची अमिया कुतरने वालो की कमी नहीं है।
लेकिन बोली मैं उसके सीधे साधे भैया से ,
" अरे कैसे भाई हो ,तूने तो गुड्डी की ले ली लेकिन अब उसको भी तो दो , उस बिचारी के होंठों से ,
और मेरी बात पूरा होने के पहले ही प्लेट से एक बड़ी सी रसीली खूब लम्बी फांक उठा के उन्होंने सीधे गुड्डी के रसीले होंठों के बीच ,
और अबकी गुड्डी ने गड़प लिया।
और जैसे कोहबर में नाउन से लेकर दुल्हन की भौजाइयां तक सिखाती हैं , की कैसे जब दूल्हा उसे कोहबर में खीर खिलाये तो कचाक से वो उसकी ऊँगली काट ले , बस एकदम उसी तरह गुड्डी ने ,जब उन्होंने आम की फांक अपनी ऊँगली से गुड्डी के आमरस से सिक्त मुंह में डाली तो बस ,कचाक से उस शोख ने उनकी ऊँगली काट ली।
मेरी उंगलिया तो किसी और काम में बिजी थीं ,पिंजड़े से शेर को आजाद करने के काम में ,और शार्ट का फायदा भी यही है , जरा सा सरकाओ ,शेर आजाद।
और भूखा शेर बाहर आ गया ,दहाडता ,चिग्घाड़ता। और ऊपर से मैंने अपनी कोमल कोमल मुट्ठी में , उसे पकड़कर मुठियाना शुरू कर दिया।
बस थोड़ी देर में ही वो फनफनाने लगा।
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।
दो न गुड्डी , .
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।
गुड्डी की जोर से उनकी ऊँगली काटने के बाद , उईईईई की तीखी आवाज उनके मुंह से निकली ,
फिर वो उस एलवल वाली से फुसफुसा कर बोले ,
" सुन जब मैं काटूंगा न तो तेरी ,. "