Episode 73
उन की बात काटती , वो शोख अदा से इतराती बोली ,
" तो काट लेना न डरती हूँ क्या तेरे से , मौके का फायदा उठाने की बात है। मैंने उठा लिया। "
वो भी एकदम अपनी चिरैया से सटे चिपके, एक हाथ उसके कं. धे पर पकड़ कर गुड्डी को जोर से अपनी ओर खींचे ,भींचे ,
गाल से गाल रगड़ खा रहे थे.
इस छेड़ छाड़ का असर मेरी जेठानी पर भी हो रहा था ,बर्दाश्त नहीं हो कर पा रही थीं , उनका वजीर भी मैंने पीट दिया था।
वो उठने की कोशिश कर रही थीं।
बस मैं मन ही मन सोच रही थी ,ये तो शुरुआत है ,
अभी तो बस दस बारह दिन में सास को लिटाऊंगी इनके नीचे तो बस ,शह और मात।
जेठानी जी को रोकने के लिए मैंने प्लेट में से निकालकर दो खूब मोटी रसीली अल्फांसो की सिन्दूरी फांके जेठानी जी की प्लेट में रख दीं और हँसते हुए बोला ,
" दीदी ,सामने इत्ती रसीली आम की फ़ांके हो और कोई उसे छोड़ दे तो , . "
अल्फांसो और जेठानी जी क्या कोई भी ,. उसे चूसते हुए उन्होंने मेरी बात को आगे बढ़ाया और बोलीं ,,
" एकदम रसीली आम की फांके हो या कच्ची खट्टी मीठी अमिया , दोनों को ,. "
और अब उनकी बात गुड्डी ने पूरी की ,एकदम मेरी आँख में आंख डाल कर ,शरारत से ,शोखी से मुस्कराते ,
" भाभी मैं जानती हूँ ऐसे लोगों को क्या कहेंगे , पक्का,एकदम से बुध्धु,"
और फिर खिलखिलाते हुए ,अपने उभार इनकी ओर उचकाके वो शोख इन्हे चिढ़ाते बोली ,
क्यों भय्या है न , बुध्धु,
और इस छेड़छाड़ का सबसे ज्यादा असर इनके खूंटे पर पड़ रहा था ,ठुनक रहा था , फनफना रहा था।
और मैंने भी अब मुठियाने की रफ़्तार एकदम तेज कर दी , और साथ में मेरी एक ऊँगली इनके पिछवाड़े के छेद पर भी
इनको जल्द झाड़ने की सारी ट्रिक मुझे मालूम थीं।
और ये भी अपने लॉलीपॉप को देखकर बावले हो रहे थे ,
इनके हाथों का जोर उसके खुले गोरे गोरे कंधो पर बढ़ गया था , उंगलियां एकदम खुले टॉप से झांकती,उनको ललचाती गोलाइयों पर ,
पर गुड्डी तो एकदम शोला जो भड़के हो रही थी , और आग में घी डाल रही थी।
चुनकर उसने अल्फांसो की एक सबसे मोटी रसीली फांक उठायी , रस छलक रहा था उससे और फिर आम रस से गीले भीगे होंठों रगड़ती,
उन्हें ललचाती रिझाती बोली ,
" क्यों भैय्या ,चहिये ये "
जिस तरह से वो अपने छोटे छोटे उभार उचका कर उन्हें ललचा रही थी ,साफ़ था वो क्या देने की बात कर रही थी।
" दो न गुड्डी , . "
बोले वो , उनकी आँखों की प्यास साफ़ झलक रही थी।
और गुड्डी ने ने आम की उस मोटी रसीली फांक की टिप गड़प कर ली और उसपे हलके से दांत गड़ाते बोली ,
" न न ,ऊँहुँ ,ऐसे थोड़ी , अरे कम से कम तीन बार मांगो , थोड़ा गिड़गिड़ाओ ,रिक्वेस्ट करो ,ऐसे थोड़े ही कोई लड़की दे देगी ,सिर्फ एक बार मांगने पर। "
" दो न गुड्डी ,प्लीज , मेरी अच्छी गुड्डी ,दो न , बहुत मन कर रहा है दे दो न। "
" दे दूँ बोल ,सच्ची में "
गुड्डी ने उन्हें और तड़पाया।
गुड्डी के रसीले होंठ , होंठों में फंसी वो रस से टपकती आम की फांक अब उनके प्यासे होंठो से मुश्किल से दो इंच दूर।
" हाँ ,दो न , दो न ,दो न ,"
तीन तिरबाचा भरते वो बोले।
" चल भैय्या तुम भी क्या याद करोगे ,कोई दिलदार बहिना मिली थी "
वो हलके से बोली ,
और अब गुड्डी ने अपने ऱस से भीगे होंठ , होंठों में फंसी आम की फांक एकदम उनके पास कर दी ,मुश्किल से आधे इंच की दूरी ,
और जब इन्होने अपने होंठ बढाए आम की फांक लेने के लिए तो ,
उस शोख शरीर ने , मुस्कराते हुए ,झट से अपने होंठों के अंदर वो फांक ,गप्प।
पर उस रसीली के होंठ तो इनके होंठों से अभी भी आधे इंच ही दूर थे।
और अब ये भी , एक हाथ से कस के मेरी शोख शोला ननद के सर को पकड़ कर इन्होने अपनी ओर खींचा।
इनके होंठ उस बांकी टीनेजर के रस भरे होंठों पर , और फिर इनके होंठ ,
आम रस से गीले , भीगे उस किशोरी के होंठ , ठुड्डी , चिकने गाल , चाटने चूसने ,.
हार की जीत
आप सोचिये न आप के सामने कोई शोख किशोरी हो ,अरे यही इंटर विंटर में पढ़ने वाली ,
गोरी चम्पई रंग ,
और उस के सिन्दूरी , मीठे , महक से भरे आम रस से गीले गीले ,
गोरे लुनाई वाले चिकने,चिकने गाल , भीगे भीगे होंठ हो
तो उन गालों से ,होंठों से रस चूसने चाटने का.
इन्होने भी नहीं छोड़ा। और जब सब रस चूम चाट के , उनके होंठ पल भर के लिए अलग हुए तो उस कमसिन ने ,
अपने मुंह में से चूसी कुचली ,अधखायी , आम की फांक अपने होंठों के बीच निकाल कर इन्हे फिर ललचाया ,
और जैसे कोई बाज गौरैया पर झपटे ,इनके होंठों ने गुड्डी के होंठों को गपुच लिया ,
अब इनके होंठ गुड्डी के होंठों की चूम नहीं रहे थे बल्कि कचकचा कर के काट रहे ,रगड़ रहे थे ,
इत्ते देर से चिढ़ाने ललचाने का नतीजा, और
कुछ देर में ही इनकी जीभ गुड्डी के मखमली मुंह में घुस गयी।
इनके हाथ भी जो अब तक गुड्डी के मस्ती में पथराये उभारों को चोरी चोरी चुपके चुपके छू देते थे ,
अब खुल के सीधे ऊपर , हलके हलके रगड़ते
इधर उन लोगों की टंग फाइट चल रही थी , उधर इनका लंड भी झड़ने के कगार पर ,
मैंने मुठियाना फुल स्पीड पर कर रखा था,लंड फड़फड़ा रहा था।
प्लेट में आम की सिर्फ एक फांक बची थी ,
बल्कि दो बड़ी बड़ी फांके आपस में पूरी तरह जुडी ,दूसरे हाथ से मैंने वो उठा लिया
और जैसे ही इनके खुले सुपाड़े से सटाया ,पी होल में सुपाड़े के , आम की फांक के टिप से सुरसुरी की ,
बस
बस , ज्वालामुखी फूट पड़ा।
पिछले दो दिन से जब से ये अपने मायके आये थे मैंने इनके इन्हे झड़ने नहीं दिया था ,इसलिए।
सफ़ेद लावे का झरना , कम से कम कटोरी बाहर गाढ़ी थक्केदार मलाई , सारी की सारी आम की उस फांक पर।
मैंने इनके लंड के बेस को एक बार फिर दबाया ,और अबकी बची खुची मलाई रबड़ी फिर बाहर ,
आम की दोनों जुडी हुयी फांके अब इनके वीर्य से पूरी तरह भीगी ,गीली।
झड़ने के साथ ही होंठों ने गुड्डी के होंठों को आजाद कर दिया था ,
अपनी ननद के चिकने गाल दबाते मैं बोली ,
" अरे गुड्डी रानी ,अपने भैय्या के हाथ से तो बहुत फांक गड़प की हो जरा एक भाभी के हाथ से भी। "
और उसके चिरैया की चियारी चोंच की तरह खुले होंठों में , मैंने
इनकी मलाई रबड़ी से भरी टपकती आम की दो जुडी फांके सीधे गुड्डी के मुंह में।
" है न एकदम नया स्वाद ,आराम से मजे मजे ले ले के खाओ न ,टैंगी भी ,मीठा भी "
और अपनी उँगलियों में लगी इनकी बची खुची, मलाई रबड़ी अपनी किशोर ननद के होठों पर लिथेड़ दिया ,
थोड़ा सा उसके चिकने आम रस से भीगे गालों पर भी, अपनी जीत के निशान के तौर पर।
छिनार मजे ले लेकर इनके रस में भीगी आम की फांको का रस लेती रही और फिर जीभ बाहर निकाल कर जो मलाई मैंने उसके होंठों पर लिथेड़ी थी , वो भी चाट ली।
ये ट्रिक मंजू बाई ने बताई थी।
अगर किसी कुँवारी को ,जिसकी चूत अभी तक न फटी हो , किसी मरद की लंड की मलाई खिला दो ,
बस वो एकदम उसकी गुलाम हो जायेगी ,उसकी दीवानी।
पक्का टोटका , अगर उस कोरी चूत वाली को लंड की मलाई आम की फांक पे रख के तो बस ,
फिर तो वो खुद अपनी अनचुदी कसी कोरी चूत लेके , दोनों हाथ से चूत फैला के ,खुद चुदवाने के लिए ,
उस मरद के पीछे पीछे चक्कर काटेगी। हरदम उसकी चूत में बड़े बड़े चींटे काटेंगे ,नम्बरी चुदवासी हो जायेगी वो।
बिचारी जेठानी टेबल अब छोड़ कर उठ गयीं,
और उनके देवर भी वाश बेसिन की ओर ,लेकिन अब तो खेल ख़तम हो चुका था और जेठानी मेरी जीत की गवाह थीं।
" मैं चल रही हूँ अपने कमरे में मेरा सीरयल शुरू हो गया होगा , बिना मेरी ओर देखे ,
जेठानी जी अपने कमरे की ओर चल दी। "
" ठीक है दीदी , मैं और गुड्डी टेबल साफ़ कर के ,मैं इसे ले के ऊपर अपने कमरे में जा रही हूँ ,बहुत दिन बाद मिली है ये इससे बहुत बातें करनी है. "
टेबल समेटते मैं बोली।
गुड्डी तब तक प्लेटें उठा के किचेन में ,
टीवी स्टार्ट होने की आवाज के साथ जेठानी जी की आवाज भी आयी ,
" ठीक है , चाय के टाइम शाम को मैं बुला लूंगी। "
वो सीधे सीढी से ऊपर हमारे कमरे में ,
और मैं गुड्डी के पीछे पीछे किचेन में ,
वो सिंक में झुकी और पीछे से ,
मैंने अपने गले का हार निकाल के गुड्डी की सुराहीदार गरदन में पहना दिया।
चौंक कर पीछे से मुड़कर उस मृगनयनी ने मुझे देखा ,
" पर भाभी मैं तो , . "
मेरे होंठो ने उसके होंठ सील कर दिए , अभी भी थोड़ा सा आम रस लगा था ,उसे जीभ से चाट कर करती मैंने
अपनी प्यारी दुलारी ननदिया को हड़काया ,
" चुप ,अब आगे एक बोल भी नहीं। क्या जीत क्या हार , फिर ये हार तेरे गले में ज्यादा अच्छा लगता है।
और आज से मेरी हर चीज तेरी और तेरी हर चीज मेरी ,कभी भी मना किया ना पिटेगी अपनी भाभी से। "
" एकदम भाभी आप बहोत अच्छी हो "
और अब ननद रानी ने मुझे गले लगा लिया।
" लेकिन उस चार घण्टे से बचत नहीं होगी "
उस के मालपुए ऐसे गाल कचकचा के काटते मैं बोली ,
गुड्डी बनी गुलाम ,
" एकदम भाभी आप बहोत अच्छी हो " और अब ननद रानी ने मुझे गले लगा लिया।
" लेकिन उस चार घण्टे से बचत नहीं होगी "
उस के मालपुए ऐसे गाल कचकचा के काटते मैं बोली ,
फुलझड़ी सी खिलखिलाती वो सुनयना बोली ,
" मालूम है भाभी ,मालूम है , मैं भी उधार नहीं रखती बोलिये न क्या करना है। "
बिना हिचकिचाए अबकी दूसरे गाल पर अपने दांतों के निशान बनाते मैं बोली ,
" यही तो ,मैं कहती हूँ की तू अभी भी बच्ची है एकदम अपने भैय्या की तरह नासमझ। अरी बावरी , इत्ता भी नहीं समझी लड़कियां सिर्फ करवाते हैं करते तो हैं लड़के ,तेरे भैय्या।
तो बस अब तुझे करवाना है और वो भी योर टाइम वाली स्टार्ट जब हम ऊपर पहुँच जाएंगे तेरे भइया के कमरे में ,समझी ,"
पांच मिनट में उसे धकियाती ,पुश करती मैं गुड्डी को ले के अपने कमरे में ,
पैर से मारके धड़ाक ,कमरा बंद।
मैंने बोल्ट भी लगा दिया और सिटकिनी भी।
योर टाइम स्टार्टस नाउ ,दीवाल घडी में ढाई बज रहे थे।
धड़ाक ,
अपने साढ़े चार इंच की हाई हील से मारकर मैंने दरवाजा बंद किया।
सटाक
मैंने दरवाजे की सिटकिनी बंद की
झटाक
मैंने दरवाजे का बोल्ट ,
"मादर,. तेरे सारे खानदान की गांड मार्रूं , चूतमरानो , घडी देख ले , ढाई बजे ,. "
और वो मेरी छुटकी ननद मेरे और दरवाजे के बीच दबी ,पिसी ,रगड़ी सहमी ,
मेरे और दरवाजे के बीच एकदम कुचली जा रही थी।
मेरे बड़े बड़े भारी भारी उरोज उसकी नयी आयी कच्ची अमिया को कस कस के कुचल रहे थे।
जो मजा आ रहा था उस स्साली को रगड़ने में मैं बता नहीं सकती।
जो उसके लिए मैंने हाल्टर टॉप ख़रीदा था इस तरह की ,
गुड्डी की कसी कड़ी गोलाइयों का ऊपरी हिस्सा हमेशा खुला छलकता झलकता रहे।
और अब कड़ाक कड़ाक एक झटके से मैंने टॉप के ऊपर के दो बटन खोल दिए ,अब निपल तक साफ़ नजर आ रहे थे।
गोल गोल मटर के दाने , एकदम कड़े कड़े नए नए आये ,
और फिर उसके कंधो को सहलाती , उसके टॉप की स्किन कलर की नूडल स्ट्रिंग्स भी मैंने सरका के नीचे करदी।
टॉप बस उसके छोटे छोटे उभारों और एक बटन के सहारे बस जैसे तैसे टिका फंसा था।
दूधिया उभार जिसके पीछे पूरे शहर के लौंडे दिवाने थे ,अब आधे से ज्यादा साफ़ साफ़ दिख रहा था।
और और मेरी उँगलियों के टिप का दबाव उसके नए नए आये टिट्स पर ,
अंगूठा उसके निप्स पर और उंगलिया उन उभारों की परिधि नापता हुआ जैसे कोई गोलाप्रकार से एक वृत्त बना रहा हो।
जोर से अपने लम्बे नाख़ून गुड्डी के मांसल गदराते जोबन में गड़ाते मैं बोली ,
" सुन साली , लगता है जम के अपनी चूँची मिजवा दबवा रही है तू ,छिनार।
पहला इंस्ट्रक्शन ,कान खोल के सुन रंडी ,मैं दुहराऊंगी नहीं , तेरी ये चूँचीयां इसी तरह खुली रहनी चाहिए , समझी ,दोनों ये निपल एकदम दिखते झलकते रहने चाहिए , तेरे भय्या को। झुक के, उचका के अगले चार घंटे तक उन्हें दिखाना है तुझे। तेरी इन कच्ची अमियों के बड़े दीवाने हैं वो , इस लिए एकदम खुलकर खोल कर , समझ गयी ,"
जोर से उसके निपल की घुंडियां मरोड़ती मैं बोली।
" हाँ भाभी , " किसी तरह थूक घोंटती बहुत हलके से गुड्डी के मुंह से निकला।
" स्साली ,जोर से बोल , मैंने सुना नहीं। "
एक हलकी सी चपत उसके गोरे नमकीन गालों पर लगाती मैं बोली।
" हाँ भाभी " अबकी वो ठीक से बोली।
धीरे धीरे लौंडिया मेरी मुट्ठी में आ रही थी।
मैंने एक बार और जोर से अपनी बड़ी बड़ी चूँचियों से उसके नवांकुरों को मसल दिया।
बिचारी उसे क्या मालूम , कच्चे टिकोरे सिर्फ उसके भैय्या को है नहीं उसकी भाभी को भी पसंद है।
इससे भी कमसिन लौंडिया सीधे गाँव से ,एकदम कमसिन जब हाईकॉलेज पास कर के बोर्डिंग में आती थीं , ग्यारहवें में।
रैगिंग के पहले दिन,लंड बुर ,चूत ,गांड सब सीखा देती थी मैं रैगिंग में और हफ्ते दस में कोई लौंडिया नहीं बचती थी
जिसे मैं अपनी गुलाबो की चुस्की न लगवा दूँ और जिसकी बिल की गहराई न नाप लूँ।
लेकिन ये माल जिसे मैं अभी रगड़ रही थी ,उन सबसे उमर में भले एकाध साल ऊपर हो लेकिन ,
नमकीन होने में उन सबसे २० नहीं २२ था पूरा।
एक बार मैंने कुतर लिया इन कच्ची अमियों को न
तो फिर सिर्फ मैं क्यों , मम्मी , वो तो उसे अपने साथ गाँव ले जाने पर तुली हैं ,हफ्ते दस दिन लिए ,
और मिसेज खन्ना ,मेरी वनिता मंडल की प्रेजिडेंट जिनकी हेल्प से मैं सेक्रेटरी बनी और इन्हे भी धड़ाधड़ एक के बाद एक प्रमोशन मिले ,
पावर्स मिले , वो भी तो कच्ची कलियों की दीवानी ,
और वो अकेले थोड़ी ,मेरी वनिता मंडल की बाकी सहेलियां भी ,
और उनसे भी तो ननद भाभी का ही रिश्ता रहेगा इसका,
और सबसे बढ़कर इसकी राह देख रहे थीं ,मंजू बाई और गीता।
वो दोनों तो इसे पक्की रंडी बना के ही छोड़ेंगी।
लेकीन इसके पहले आज इस बांकी शोख किशोरी को शीशे में उतारना जरुरी है।
और मैंने उसे अगली शर्त बता दी ,उसके 'सीधे साधे भैय्या के बारे में
अगली शर्त
और मैंने उसे अगली शर्त बता दी ,उसके 'सीधे साधे भैय्या के बारे में
" सुन बहन की लौंड़ी , तूने अपने अच्छे अच्छे सीधे साधे भैय्या का लंड देखा है की नहीं। वो तेरी चूँचियाँ घूरते रहते हैं और तू , तो बस अब तू अगले दो घंटे तक तेरी निगाह सीधे उनके शार्ट से झांकते लंड पे ,एकदम खुल्लम खुला ,
समझी घूर घूर के और अगले पंद्रह मिनट में कम से कम पांच बार शार्ट के ऊपर से तू उनके लंड को छूएगी ,
एकदम साफ़ साफ़ , पकड़ेगी रगडेगी ,ये नहीं की गलती से हाथ लग गया , समझी साली। "
और अबकी जो मेरा हाथ उसके नमकीन गाल पे पड़ा वो कतई प्यार भरी चपत नहीं था।
" ओह्ह हाँ भाभी "
मेरा एक हाथ अभी भी उसके जोबन की नाप जोख कर रहा था और दूसरा उसकी खुली जांघों के बीच उसकी छोटी सी स्कर्ट उठाकर सीधे उसके थांग के ऊपर से उसकी चुनमुनिया को हलके हलके दबा रहा था।
मन तो कर रहा था यहीं पटक के उस स्साली को चोद दूँ ,
अपनी चूत से उसकी चूत को रगड़ रगड़ के ,कचकचा के उसकी चूँचियाँ काट लूँ ,
मन को मैंने बहुत समझया , मान जा कोमलिया ,अभी आज उसके भैय्या के लिए पटा , इसकी नथ उतरवा फिर वो मौका भी जल्दी आएगा।
वो अभी भी अलमारी ठीक कर रहे थे और मुझे गुड्डी की एक पुरानी बात याद आ गयी ,
" मेरे भैय्या कुछ भी अपने हाथ से नहीं करते ,एक ग्लास पानी तक भी नहीं लेते ,भाभी आप को ये सब पता होना चाहिए। "
सररर सररर ,मेरी साडी मैंने उतार के उनकी ओर फेंक दी ,
" अरे जरा सम्हाल के अच्छी तरह से तहिया के रख दी , एकदम ठीक से ,. "
और वो काम पर लग गए ,
मेरे और दरवाजे के बीच दबी उनकी बहना देखती रही।
बिचारी ,अभी उसे बहुत कुछ देखना था।
उस की हिरणी सी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे अपने 'कुछ भी काम न करने वाले भईया को ' मेरी साडी खूब ध्यान से तहियाते देख रही थी।
और में उसकी कच्ची अमिया को , जिसने पूरे शहर भर में आग लगा रखी थी।
लड़की के जवान होने की खबर उसे हो न हो ,उसके मोहल्ले के लौंडों को सबसे पहले हो जाती है।
और यहां तो गुड्डी एकदम जिल्ला टाप माल थी।
वो अपने भैय्या को देख रही थी और मैं उसके नए नए आये उभारों को , और साथ में क्लिक क्लिक क्लिक
भला हो मोबाइल कंपनी वालों का , क्या अच्छे कैमरे बनाते हैं ,
उसकी कच्ची अमिया का
कटाव , उभार कड़ापन , क्लीवेज सब कुछ और साथ में उसकी मटर के दाने के बराबर की घुंडियां भी , एकदम कड़क
स्साली की चूँचियाँ सच में ,एकदम ,.
और हर फोटो में , यहाँ तक की निप्स के क्लोजअप्स में भी
उसका भोला भाला चेहरा , जिससे उसके बचपन की निशानी अभी तक गयी नहीं थी ,
लगता था जैसे उसके दूध के दांत भी न टूटे हों।
पर उसके हाल्टर टॉप से झांकते गदराये जोबन एकदम इस बात की गवाही दे रहे थे की लौंडिया एकदम लेने लायक हो गयी है।
और जब गुड्डी की निगाहैं वापस मेरी ओर आयीं तो मैंने क्लिक क्लिक बंद नहीं किया , बल्कि गरजी ,
" खोल स्साली , तुरंत ".
और साथ में एक कर्रारा झापड़ उसके गाल पे ,
गाल पे मेरी उँगलियाँ छप गयीं।
वो पूरी तरह कन्फुज , दर्द अलग , . .
झपटपट उसने अपनी टॉप का बटन खोल दिया ,और अब तो उसके टेनिस बॉल साइज बूब्स ऑलमोस्ट बाहर ,
क्लिक क्लिक क्लिक क्लिक
गुड्डी के एक हाथ में उसका फोन ,
खोलती है छिनार या लगाऊं कान के नीचे एक,. "
" तो काट लेना न डरती हूँ क्या तेरे से , मौके का फायदा उठाने की बात है। मैंने उठा लिया। "
वो भी एकदम अपनी चिरैया से सटे चिपके, एक हाथ उसके कं. धे पर पकड़ कर गुड्डी को जोर से अपनी ओर खींचे ,भींचे ,
गाल से गाल रगड़ खा रहे थे.
इस छेड़ छाड़ का असर मेरी जेठानी पर भी हो रहा था ,बर्दाश्त नहीं हो कर पा रही थीं , उनका वजीर भी मैंने पीट दिया था।
वो उठने की कोशिश कर रही थीं।
बस मैं मन ही मन सोच रही थी ,ये तो शुरुआत है ,
अभी तो बस दस बारह दिन में सास को लिटाऊंगी इनके नीचे तो बस ,शह और मात।
जेठानी जी को रोकने के लिए मैंने प्लेट में से निकालकर दो खूब मोटी रसीली अल्फांसो की सिन्दूरी फांके जेठानी जी की प्लेट में रख दीं और हँसते हुए बोला ,
" दीदी ,सामने इत्ती रसीली आम की फ़ांके हो और कोई उसे छोड़ दे तो , . "
अल्फांसो और जेठानी जी क्या कोई भी ,. उसे चूसते हुए उन्होंने मेरी बात को आगे बढ़ाया और बोलीं ,,
" एकदम रसीली आम की फांके हो या कच्ची खट्टी मीठी अमिया , दोनों को ,. "
और अब उनकी बात गुड्डी ने पूरी की ,एकदम मेरी आँख में आंख डाल कर ,शरारत से ,शोखी से मुस्कराते ,
" भाभी मैं जानती हूँ ऐसे लोगों को क्या कहेंगे , पक्का,एकदम से बुध्धु,"
और फिर खिलखिलाते हुए ,अपने उभार इनकी ओर उचकाके वो शोख इन्हे चिढ़ाते बोली ,
क्यों भय्या है न , बुध्धु,
और इस छेड़छाड़ का सबसे ज्यादा असर इनके खूंटे पर पड़ रहा था ,ठुनक रहा था , फनफना रहा था।
और मैंने भी अब मुठियाने की रफ़्तार एकदम तेज कर दी , और साथ में मेरी एक ऊँगली इनके पिछवाड़े के छेद पर भी
इनको जल्द झाड़ने की सारी ट्रिक मुझे मालूम थीं।
और ये भी अपने लॉलीपॉप को देखकर बावले हो रहे थे ,
इनके हाथों का जोर उसके खुले गोरे गोरे कंधो पर बढ़ गया था , उंगलियां एकदम खुले टॉप से झांकती,उनको ललचाती गोलाइयों पर ,
पर गुड्डी तो एकदम शोला जो भड़के हो रही थी , और आग में घी डाल रही थी।
चुनकर उसने अल्फांसो की एक सबसे मोटी रसीली फांक उठायी , रस छलक रहा था उससे और फिर आम रस से गीले भीगे होंठों रगड़ती,
उन्हें ललचाती रिझाती बोली ,
" क्यों भैय्या ,चहिये ये "
जिस तरह से वो अपने छोटे छोटे उभार उचका कर उन्हें ललचा रही थी ,साफ़ था वो क्या देने की बात कर रही थी।
" दो न गुड्डी , . "
बोले वो , उनकी आँखों की प्यास साफ़ झलक रही थी।
और गुड्डी ने ने आम की उस मोटी रसीली फांक की टिप गड़प कर ली और उसपे हलके से दांत गड़ाते बोली ,
" न न ,ऊँहुँ ,ऐसे थोड़ी , अरे कम से कम तीन बार मांगो , थोड़ा गिड़गिड़ाओ ,रिक्वेस्ट करो ,ऐसे थोड़े ही कोई लड़की दे देगी ,सिर्फ एक बार मांगने पर। "
" दो न गुड्डी ,प्लीज , मेरी अच्छी गुड्डी ,दो न , बहुत मन कर रहा है दे दो न। "
" दे दूँ बोल ,सच्ची में "
गुड्डी ने उन्हें और तड़पाया।
गुड्डी के रसीले होंठ , होंठों में फंसी वो रस से टपकती आम की फांक अब उनके प्यासे होंठो से मुश्किल से दो इंच दूर।
" हाँ ,दो न , दो न ,दो न ,"
तीन तिरबाचा भरते वो बोले।
" चल भैय्या तुम भी क्या याद करोगे ,कोई दिलदार बहिना मिली थी "
वो हलके से बोली ,
और अब गुड्डी ने अपने ऱस से भीगे होंठ , होंठों में फंसी आम की फांक एकदम उनके पास कर दी ,मुश्किल से आधे इंच की दूरी ,
और जब इन्होने अपने होंठ बढाए आम की फांक लेने के लिए तो ,
उस शोख शरीर ने , मुस्कराते हुए ,झट से अपने होंठों के अंदर वो फांक ,गप्प।
पर उस रसीली के होंठ तो इनके होंठों से अभी भी आधे इंच ही दूर थे।
और अब ये भी , एक हाथ से कस के मेरी शोख शोला ननद के सर को पकड़ कर इन्होने अपनी ओर खींचा।
इनके होंठ उस बांकी टीनेजर के रस भरे होंठों पर , और फिर इनके होंठ ,
आम रस से गीले , भीगे उस किशोरी के होंठ , ठुड्डी , चिकने गाल , चाटने चूसने ,.
हार की जीत
आप सोचिये न आप के सामने कोई शोख किशोरी हो ,अरे यही इंटर विंटर में पढ़ने वाली ,
गोरी चम्पई रंग ,
और उस के सिन्दूरी , मीठे , महक से भरे आम रस से गीले गीले ,
गोरे लुनाई वाले चिकने,चिकने गाल , भीगे भीगे होंठ हो
तो उन गालों से ,होंठों से रस चूसने चाटने का.
इन्होने भी नहीं छोड़ा। और जब सब रस चूम चाट के , उनके होंठ पल भर के लिए अलग हुए तो उस कमसिन ने ,
अपने मुंह में से चूसी कुचली ,अधखायी , आम की फांक अपने होंठों के बीच निकाल कर इन्हे फिर ललचाया ,
और जैसे कोई बाज गौरैया पर झपटे ,इनके होंठों ने गुड्डी के होंठों को गपुच लिया ,
अब इनके होंठ गुड्डी के होंठों की चूम नहीं रहे थे बल्कि कचकचा कर के काट रहे ,रगड़ रहे थे ,
इत्ते देर से चिढ़ाने ललचाने का नतीजा, और
कुछ देर में ही इनकी जीभ गुड्डी के मखमली मुंह में घुस गयी।
इनके हाथ भी जो अब तक गुड्डी के मस्ती में पथराये उभारों को चोरी चोरी चुपके चुपके छू देते थे ,
अब खुल के सीधे ऊपर , हलके हलके रगड़ते
इधर उन लोगों की टंग फाइट चल रही थी , उधर इनका लंड भी झड़ने के कगार पर ,
मैंने मुठियाना फुल स्पीड पर कर रखा था,लंड फड़फड़ा रहा था।
प्लेट में आम की सिर्फ एक फांक बची थी ,
बल्कि दो बड़ी बड़ी फांके आपस में पूरी तरह जुडी ,दूसरे हाथ से मैंने वो उठा लिया
और जैसे ही इनके खुले सुपाड़े से सटाया ,पी होल में सुपाड़े के , आम की फांक के टिप से सुरसुरी की ,
बस
बस , ज्वालामुखी फूट पड़ा।
पिछले दो दिन से जब से ये अपने मायके आये थे मैंने इनके इन्हे झड़ने नहीं दिया था ,इसलिए।
सफ़ेद लावे का झरना , कम से कम कटोरी बाहर गाढ़ी थक्केदार मलाई , सारी की सारी आम की उस फांक पर।
मैंने इनके लंड के बेस को एक बार फिर दबाया ,और अबकी बची खुची मलाई रबड़ी फिर बाहर ,
आम की दोनों जुडी हुयी फांके अब इनके वीर्य से पूरी तरह भीगी ,गीली।
झड़ने के साथ ही होंठों ने गुड्डी के होंठों को आजाद कर दिया था ,
अपनी ननद के चिकने गाल दबाते मैं बोली ,
" अरे गुड्डी रानी ,अपने भैय्या के हाथ से तो बहुत फांक गड़प की हो जरा एक भाभी के हाथ से भी। "
और उसके चिरैया की चियारी चोंच की तरह खुले होंठों में , मैंने
इनकी मलाई रबड़ी से भरी टपकती आम की दो जुडी फांके सीधे गुड्डी के मुंह में।
" है न एकदम नया स्वाद ,आराम से मजे मजे ले ले के खाओ न ,टैंगी भी ,मीठा भी "
और अपनी उँगलियों में लगी इनकी बची खुची, मलाई रबड़ी अपनी किशोर ननद के होठों पर लिथेड़ दिया ,
थोड़ा सा उसके चिकने आम रस से भीगे गालों पर भी, अपनी जीत के निशान के तौर पर।
छिनार मजे ले लेकर इनके रस में भीगी आम की फांको का रस लेती रही और फिर जीभ बाहर निकाल कर जो मलाई मैंने उसके होंठों पर लिथेड़ी थी , वो भी चाट ली।
ये ट्रिक मंजू बाई ने बताई थी।
अगर किसी कुँवारी को ,जिसकी चूत अभी तक न फटी हो , किसी मरद की लंड की मलाई खिला दो ,
बस वो एकदम उसकी गुलाम हो जायेगी ,उसकी दीवानी।
पक्का टोटका , अगर उस कोरी चूत वाली को लंड की मलाई आम की फांक पे रख के तो बस ,
फिर तो वो खुद अपनी अनचुदी कसी कोरी चूत लेके , दोनों हाथ से चूत फैला के ,खुद चुदवाने के लिए ,
उस मरद के पीछे पीछे चक्कर काटेगी। हरदम उसकी चूत में बड़े बड़े चींटे काटेंगे ,नम्बरी चुदवासी हो जायेगी वो।
बिचारी जेठानी टेबल अब छोड़ कर उठ गयीं,
और उनके देवर भी वाश बेसिन की ओर ,लेकिन अब तो खेल ख़तम हो चुका था और जेठानी मेरी जीत की गवाह थीं।
" मैं चल रही हूँ अपने कमरे में मेरा सीरयल शुरू हो गया होगा , बिना मेरी ओर देखे ,
जेठानी जी अपने कमरे की ओर चल दी। "
" ठीक है दीदी , मैं और गुड्डी टेबल साफ़ कर के ,मैं इसे ले के ऊपर अपने कमरे में जा रही हूँ ,बहुत दिन बाद मिली है ये इससे बहुत बातें करनी है. "
टेबल समेटते मैं बोली।
गुड्डी तब तक प्लेटें उठा के किचेन में ,
टीवी स्टार्ट होने की आवाज के साथ जेठानी जी की आवाज भी आयी ,
" ठीक है , चाय के टाइम शाम को मैं बुला लूंगी। "
वो सीधे सीढी से ऊपर हमारे कमरे में ,
और मैं गुड्डी के पीछे पीछे किचेन में ,
वो सिंक में झुकी और पीछे से ,
मैंने अपने गले का हार निकाल के गुड्डी की सुराहीदार गरदन में पहना दिया।
चौंक कर पीछे से मुड़कर उस मृगनयनी ने मुझे देखा ,
" पर भाभी मैं तो , . "
मेरे होंठो ने उसके होंठ सील कर दिए , अभी भी थोड़ा सा आम रस लगा था ,उसे जीभ से चाट कर करती मैंने
अपनी प्यारी दुलारी ननदिया को हड़काया ,
" चुप ,अब आगे एक बोल भी नहीं। क्या जीत क्या हार , फिर ये हार तेरे गले में ज्यादा अच्छा लगता है।
और आज से मेरी हर चीज तेरी और तेरी हर चीज मेरी ,कभी भी मना किया ना पिटेगी अपनी भाभी से। "
" एकदम भाभी आप बहोत अच्छी हो "
और अब ननद रानी ने मुझे गले लगा लिया।
" लेकिन उस चार घण्टे से बचत नहीं होगी "
उस के मालपुए ऐसे गाल कचकचा के काटते मैं बोली ,
गुड्डी बनी गुलाम ,
" एकदम भाभी आप बहोत अच्छी हो " और अब ननद रानी ने मुझे गले लगा लिया।
" लेकिन उस चार घण्टे से बचत नहीं होगी "
उस के मालपुए ऐसे गाल कचकचा के काटते मैं बोली ,
फुलझड़ी सी खिलखिलाती वो सुनयना बोली ,
" मालूम है भाभी ,मालूम है , मैं भी उधार नहीं रखती बोलिये न क्या करना है। "
बिना हिचकिचाए अबकी दूसरे गाल पर अपने दांतों के निशान बनाते मैं बोली ,
" यही तो ,मैं कहती हूँ की तू अभी भी बच्ची है एकदम अपने भैय्या की तरह नासमझ। अरी बावरी , इत्ता भी नहीं समझी लड़कियां सिर्फ करवाते हैं करते तो हैं लड़के ,तेरे भैय्या।
तो बस अब तुझे करवाना है और वो भी योर टाइम वाली स्टार्ट जब हम ऊपर पहुँच जाएंगे तेरे भइया के कमरे में ,समझी ,"
पांच मिनट में उसे धकियाती ,पुश करती मैं गुड्डी को ले के अपने कमरे में ,
पैर से मारके धड़ाक ,कमरा बंद।
मैंने बोल्ट भी लगा दिया और सिटकिनी भी।
योर टाइम स्टार्टस नाउ ,दीवाल घडी में ढाई बज रहे थे।
धड़ाक ,
अपने साढ़े चार इंच की हाई हील से मारकर मैंने दरवाजा बंद किया।
सटाक
मैंने दरवाजे की सिटकिनी बंद की
झटाक
मैंने दरवाजे का बोल्ट ,
"मादर,. तेरे सारे खानदान की गांड मार्रूं , चूतमरानो , घडी देख ले , ढाई बजे ,. "
और वो मेरी छुटकी ननद मेरे और दरवाजे के बीच दबी ,पिसी ,रगड़ी सहमी ,
मेरे और दरवाजे के बीच एकदम कुचली जा रही थी।
मेरे बड़े बड़े भारी भारी उरोज उसकी नयी आयी कच्ची अमिया को कस कस के कुचल रहे थे।
जो मजा आ रहा था उस स्साली को रगड़ने में मैं बता नहीं सकती।
जो उसके लिए मैंने हाल्टर टॉप ख़रीदा था इस तरह की ,
गुड्डी की कसी कड़ी गोलाइयों का ऊपरी हिस्सा हमेशा खुला छलकता झलकता रहे।
और अब कड़ाक कड़ाक एक झटके से मैंने टॉप के ऊपर के दो बटन खोल दिए ,अब निपल तक साफ़ नजर आ रहे थे।
गोल गोल मटर के दाने , एकदम कड़े कड़े नए नए आये ,
और फिर उसके कंधो को सहलाती , उसके टॉप की स्किन कलर की नूडल स्ट्रिंग्स भी मैंने सरका के नीचे करदी।
टॉप बस उसके छोटे छोटे उभारों और एक बटन के सहारे बस जैसे तैसे टिका फंसा था।
दूधिया उभार जिसके पीछे पूरे शहर के लौंडे दिवाने थे ,अब आधे से ज्यादा साफ़ साफ़ दिख रहा था।
और और मेरी उँगलियों के टिप का दबाव उसके नए नए आये टिट्स पर ,
अंगूठा उसके निप्स पर और उंगलिया उन उभारों की परिधि नापता हुआ जैसे कोई गोलाप्रकार से एक वृत्त बना रहा हो।
जोर से अपने लम्बे नाख़ून गुड्डी के मांसल गदराते जोबन में गड़ाते मैं बोली ,
" सुन साली , लगता है जम के अपनी चूँची मिजवा दबवा रही है तू ,छिनार।
पहला इंस्ट्रक्शन ,कान खोल के सुन रंडी ,मैं दुहराऊंगी नहीं , तेरी ये चूँचीयां इसी तरह खुली रहनी चाहिए , समझी ,दोनों ये निपल एकदम दिखते झलकते रहने चाहिए , तेरे भय्या को। झुक के, उचका के अगले चार घंटे तक उन्हें दिखाना है तुझे। तेरी इन कच्ची अमियों के बड़े दीवाने हैं वो , इस लिए एकदम खुलकर खोल कर , समझ गयी ,"
जोर से उसके निपल की घुंडियां मरोड़ती मैं बोली।
" हाँ भाभी , " किसी तरह थूक घोंटती बहुत हलके से गुड्डी के मुंह से निकला।
" स्साली ,जोर से बोल , मैंने सुना नहीं। "
एक हलकी सी चपत उसके गोरे नमकीन गालों पर लगाती मैं बोली।
" हाँ भाभी " अबकी वो ठीक से बोली।
धीरे धीरे लौंडिया मेरी मुट्ठी में आ रही थी।
मैंने एक बार और जोर से अपनी बड़ी बड़ी चूँचियों से उसके नवांकुरों को मसल दिया।
बिचारी उसे क्या मालूम , कच्चे टिकोरे सिर्फ उसके भैय्या को है नहीं उसकी भाभी को भी पसंद है।
इससे भी कमसिन लौंडिया सीधे गाँव से ,एकदम कमसिन जब हाईकॉलेज पास कर के बोर्डिंग में आती थीं , ग्यारहवें में।
रैगिंग के पहले दिन,लंड बुर ,चूत ,गांड सब सीखा देती थी मैं रैगिंग में और हफ्ते दस में कोई लौंडिया नहीं बचती थी
जिसे मैं अपनी गुलाबो की चुस्की न लगवा दूँ और जिसकी बिल की गहराई न नाप लूँ।
लेकिन ये माल जिसे मैं अभी रगड़ रही थी ,उन सबसे उमर में भले एकाध साल ऊपर हो लेकिन ,
नमकीन होने में उन सबसे २० नहीं २२ था पूरा।
एक बार मैंने कुतर लिया इन कच्ची अमियों को न
तो फिर सिर्फ मैं क्यों , मम्मी , वो तो उसे अपने साथ गाँव ले जाने पर तुली हैं ,हफ्ते दस दिन लिए ,
और मिसेज खन्ना ,मेरी वनिता मंडल की प्रेजिडेंट जिनकी हेल्प से मैं सेक्रेटरी बनी और इन्हे भी धड़ाधड़ एक के बाद एक प्रमोशन मिले ,
पावर्स मिले , वो भी तो कच्ची कलियों की दीवानी ,
और वो अकेले थोड़ी ,मेरी वनिता मंडल की बाकी सहेलियां भी ,
और उनसे भी तो ननद भाभी का ही रिश्ता रहेगा इसका,
और सबसे बढ़कर इसकी राह देख रहे थीं ,मंजू बाई और गीता।
वो दोनों तो इसे पक्की रंडी बना के ही छोड़ेंगी।
लेकीन इसके पहले आज इस बांकी शोख किशोरी को शीशे में उतारना जरुरी है।
और मैंने उसे अगली शर्त बता दी ,उसके 'सीधे साधे भैय्या के बारे में
अगली शर्त
और मैंने उसे अगली शर्त बता दी ,उसके 'सीधे साधे भैय्या के बारे में
" सुन बहन की लौंड़ी , तूने अपने अच्छे अच्छे सीधे साधे भैय्या का लंड देखा है की नहीं। वो तेरी चूँचियाँ घूरते रहते हैं और तू , तो बस अब तू अगले दो घंटे तक तेरी निगाह सीधे उनके शार्ट से झांकते लंड पे ,एकदम खुल्लम खुला ,
समझी घूर घूर के और अगले पंद्रह मिनट में कम से कम पांच बार शार्ट के ऊपर से तू उनके लंड को छूएगी ,
एकदम साफ़ साफ़ , पकड़ेगी रगडेगी ,ये नहीं की गलती से हाथ लग गया , समझी साली। "
और अबकी जो मेरा हाथ उसके नमकीन गाल पे पड़ा वो कतई प्यार भरी चपत नहीं था।
" ओह्ह हाँ भाभी "
मेरा एक हाथ अभी भी उसके जोबन की नाप जोख कर रहा था और दूसरा उसकी खुली जांघों के बीच उसकी छोटी सी स्कर्ट उठाकर सीधे उसके थांग के ऊपर से उसकी चुनमुनिया को हलके हलके दबा रहा था।
मन तो कर रहा था यहीं पटक के उस स्साली को चोद दूँ ,
अपनी चूत से उसकी चूत को रगड़ रगड़ के ,कचकचा के उसकी चूँचियाँ काट लूँ ,
मन को मैंने बहुत समझया , मान जा कोमलिया ,अभी आज उसके भैय्या के लिए पटा , इसकी नथ उतरवा फिर वो मौका भी जल्दी आएगा।
वो अभी भी अलमारी ठीक कर रहे थे और मुझे गुड्डी की एक पुरानी बात याद आ गयी ,
" मेरे भैय्या कुछ भी अपने हाथ से नहीं करते ,एक ग्लास पानी तक भी नहीं लेते ,भाभी आप को ये सब पता होना चाहिए। "
सररर सररर ,मेरी साडी मैंने उतार के उनकी ओर फेंक दी ,
" अरे जरा सम्हाल के अच्छी तरह से तहिया के रख दी , एकदम ठीक से ,. "
और वो काम पर लग गए ,
मेरे और दरवाजे के बीच दबी उनकी बहना देखती रही।
बिचारी ,अभी उसे बहुत कुछ देखना था।
उस की हिरणी सी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे अपने 'कुछ भी काम न करने वाले भईया को ' मेरी साडी खूब ध्यान से तहियाते देख रही थी।
और में उसकी कच्ची अमिया को , जिसने पूरे शहर भर में आग लगा रखी थी।
लड़की के जवान होने की खबर उसे हो न हो ,उसके मोहल्ले के लौंडों को सबसे पहले हो जाती है।
और यहां तो गुड्डी एकदम जिल्ला टाप माल थी।
वो अपने भैय्या को देख रही थी और मैं उसके नए नए आये उभारों को , और साथ में क्लिक क्लिक क्लिक
भला हो मोबाइल कंपनी वालों का , क्या अच्छे कैमरे बनाते हैं ,
उसकी कच्ची अमिया का
कटाव , उभार कड़ापन , क्लीवेज सब कुछ और साथ में उसकी मटर के दाने के बराबर की घुंडियां भी , एकदम कड़क
स्साली की चूँचियाँ सच में ,एकदम ,.
और हर फोटो में , यहाँ तक की निप्स के क्लोजअप्स में भी
उसका भोला भाला चेहरा , जिससे उसके बचपन की निशानी अभी तक गयी नहीं थी ,
लगता था जैसे उसके दूध के दांत भी न टूटे हों।
पर उसके हाल्टर टॉप से झांकते गदराये जोबन एकदम इस बात की गवाही दे रहे थे की लौंडिया एकदम लेने लायक हो गयी है।
और जब गुड्डी की निगाहैं वापस मेरी ओर आयीं तो मैंने क्लिक क्लिक बंद नहीं किया , बल्कि गरजी ,
" खोल स्साली , तुरंत ".
और साथ में एक कर्रारा झापड़ उसके गाल पे ,
गाल पे मेरी उँगलियाँ छप गयीं।
वो पूरी तरह कन्फुज , दर्द अलग , . .
झपटपट उसने अपनी टॉप का बटन खोल दिया ,और अब तो उसके टेनिस बॉल साइज बूब्स ऑलमोस्ट बाहर ,
क्लिक क्लिक क्लिक क्लिक
गुड्डी के एक हाथ में उसका फोन ,
खोलती है छिनार या लगाऊं कान के नीचे एक,. "