Episode 86

वो मस्त पंजाबी कुड़ी ,जिसके उभार अपनी उम्र से दो साल बड़ी लड़कियों को भी चैलेंज करते हुए ,एकदम कड़क , इनकी गोद में

लेकिन असली बात तो इसके आगे थी
इनका हाथ उस पंजाबी कुड़ी के टॉप के अंदर गोलाइयों की नाप जोख तो कब की ख़तम कर चुका था अब तो खुल के रगड़ाई मसलाई हो रही थी मेरी ननद की जुबना की।

और वो पंजाबी कुड़ी ,दिया भी कौन कम ,स्साली एकदम मेरी पक्की ननद ,उसका हाथ इनके जींस के अदंर और साफ़ लग रहा था की उसने हथियार मुट्ठी में पकड़ रखा है।

मेरी उस पंजाबी ननद ने , नाप जोख तो कब की पूरी कर ली थी अब तो बस वो हलके हलके मुठिया रही थी ,अपनी कोमल मुट्ठी में मस्त खूंटे का मजा ले रही थी।

छन्दा ,गुड्डी की दूसरी सहेली थी तो थोड़ी छुईमुई टाइप लेकिन वो भी तो अपने कजिन्स के खूंटे घोंट चुकी थी , तो इनकी दूसरी जांघ पे वो और उनका दूसरा हाथ बाहर से ही सही खुल केछंदा रानी के जोबन का रस लूट रहा था।

यही तो जवानी की मजा है ,

गोद में दो दो टीनेजर , इंटर में पढ़ने वाली नए नए जुबना वाली बैठी हों ,और उनके जुबना का रस मेरे सैयां ,उन के भैय्या लूट रहे हों ,.

गुड्डी ने सामने टेबल पर पकौड़े , रमोला ऊप्स कोला रख दिया ,

इन्होने छन्दा के उभार पर से हाथ हटाना चाहा तो मेरी आँखों ने उन्हें जोर से घुड़क दिया ,और अपनी ननदों को उकसाया ,

"अरे सालियों ,तीन तीन बहने जिस भाई के पास बैठीं हो ,सामने ,और एक से एक जबरदंग जोबन वाली ,मस्त माल।उस भाई को अपना हाथ इस्तेमाल करना पड़े।

" एकदम नहीं भाभी आपने समझा क्या है हम बहनों को ,. " दिया बोली।

वो कुड़ी सच में हॉट थी। बिना अपना उनकी जींस के अंदर घुसा हाथ निकाले उस शोख ने दूसरे हाथ से एक पकौड़ी उठायी ,और नहीं नहीं उनके मुंह में नहीं अपने मुंह में गड़प कर ली ,पूरी की पूरी और कुछ देर तक कुचल कर , हाथ से उनका सर कस के पकड़ा और दिया के होंठ मेरे सैंया के होंठों से चिपक गए , दिया की जीभ अंदर

और पकौड़ी ईमानदारी से आधी आधी बाँट ली गयी।

और अगली बार छन्दा ने देखा देखी यही।

मैं क्यों छोड़ती अपनी ननद को, जब छन्दा और उनके बीच टंग फाइट चल रही थी मैंने ,दिया के साथ और एक खूब मोटी बैंगनी ,

अपने होंठों से दिया के मुंह में।

" बैंगन तो तुझे बहुत पसंद होगा , " मैंने उसे चिढ़ाया।

"एकदम भाभी , लेकिन अब उसकी जरूरत नहीं पड़ती ज्यादा ,मेरा सगा भाई है न। उसकी हिम्मत जो अपनी बहन को इग्नोर करे "

खिलखिलाती उस शोख ने अपनी सारी कहानी एक लाइन में कह दी।

दिया ने तबतक कोका कोला का ग्लास उठाया और पहली घूँट में ही उसे अंदाज मिल गया , मेरी ओर मुस्करा के देखा ,आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया और तीनो टीनेजर्स ने एक साथ , अपने भैया के साथ टोस्ट किया ,

"टू अवर सेक्सिएस्ट ,हैंड्समेस्ट भैय्या "

दूसरा टोस्ट मैंने प्रपोज

" टू माई सेक्सिएस्ट छिनाल ननदों के नाम पर "
और सब ने टोस्ट किया , उन्होंने भी।

आधे से ज्यादा ग्लास खाली था। एक बार और फिर मेरी ननदों के टुन्न होने में कोई कसर बाकी नहीं थी।

खासतौर से छन्दा , वो अभी भी थोड़ा थोड़ा ,.

मैंने दिया को छन्दा की ओर देखते हुए इशारा किया , और मुस्कराते हुए उसने हामी भर दी।

" अबकी बॉटम्स अप ,पूरा ग्लास खाली। जिसकी ग्लास में एक बूँद भी बचा न ये ,बस उसे ये छूना पकड़ना घोंटना तो दूर ,देखने को भी नहीं मिलेगा ये जादू का डंडा ,भैय्या का। "

दिया का हाथ तो अभी तक उनकी जींस में था , उनके मुस्टंडे को पकडे ,उसे जींस के अंदर से उचकाते हुए उसने चैलेन्ज किया , खास तौर से छन्दा को उकसाया।

गुड्डी तो खेल समझ ही रही थी ,वो छन्दा की ओर से आ गयी ,

" अरे दिया ,तू समझती है क्या अपनी छन्दा को देख तुझसे पहले ग्लास खाली करेगी वो " और गुड्डी ने ग्लास उठाया ,बॉटम्स अप।

सच में छन्दा ने ग्लास खाली कर दिया ,ये तो गुड्डी को भी नहीं मालूम था क्या होने वाला था ,सिर्फ मुझे अंदाज था।

सुपीरीयर रम , ,स्ट्रांगेस्ट। और दो पेग से ज्यादा ,

" हे दिया ,इत्ती देर से तू पकड़ के बैठी है मुझे भी , . "छन्दा बोल रही थी।

छन्दा

सच में छन्दा ने ग्लास खाली कर दिया ,ये तो गुड्डी को भी नहीं मालूम था क्या होने वाला था ,सिर्फ मुझे अंदाज था।

सुपीरीयर रम , ,स्ट्रांगेस्ट। और दो पेग से ज्यादा ,

" हे दिया ,इत्ती देर से तू पकड़ के बैठी है मुझे भी , . "छन्दा बोल रही थी।

" क्या पकड़ के बैठी है ये नाम तो बता ,ननद रानी। " मैंने उसे छेड़ा।

" अरे भाभी ,नाम लेने में इसकी फट रही है तो क्या भईया का पकड़ेगी क्या घोटेगी। " दिया ने उसे और उकसाया।

मैं समझ गयी थी दिया एकदम मेरे मन मुताबिक़ वाली ननद है मेरी।

" अरे छन्दा बोल दे न यार आपस में तो ,हमीं लोग तो है और फिर भाभी भी तो हमारी तरह से ही ,. " गुड्डी ने हाँके में ज्वाइन करते

छन्दा को हमारी ओर खेदा।

" छन्दा बोल दे तो अभी दे देती हूँ , तुझे और मैंने तो जींस के अंदर से पकड़ा था तू ऊपर से पकड़ लेना।

और छन्दा ने बोल दिया ,खूब जोर से चियर्स हुआ।

मैंने खुद उनकी जींस की बेल्ट खोल दी , ज़िप भी ढीली कर दी , . और गुड्डी और दिया ने पकड़ के छन्दा का हाथ इनकी जींस के अंदर ,

अब छन्दा इनकी गोद में इनके दोनों हाथ उसके कुर्ते के अंदर ,और ,. वो बाहर तो नहीं निकाला ,लेकिन बटन ज़िप खुलने से छन्दा का हाथ आराम से उसे पकडे हुए था।

मैं दिया और गुड्डी अब बेड पर आ गए थे।

गुड्डी के मन में जो सवाल कुलबुला रहा था सुबह से ,जो बाजी लगी थी उसका रिज्लट जानने को ,

" बोल न किसका २० है ,. " दिया से वो पूछ रही थी।

सुबह इनके मुस्टंडे की जो फोटो मैंने गुड्डी को इनके फोन से भेज दे थी वो दिया के हाथ लग गयी थी बस दिया और गुड्डी के बीच बाजी लग गयी।

अगर दिया के भैय्या का बीस होगा तो गुड्डी दिया के भैय्या के साथ

और अगर गुड्डी के भैय्या का बीस होगा तो दिया गुड्डी के भैय्या के साथ

" स्साली ,कमीनी , तेरे भैय्या का एकदम बीस नहीं है। मैंने पकड़ के ,दबा के मसल के नाप के देख लिया। "

दिया गुड्डी एकदम तेल पानी लेके चढ़ गयी।

" मतलब " गुड्डी के चेहरे का रंग उतर गया।

क्या वो बाजी हार गयी ,उसको पूरा भरोसा था ,ऊपर से मैंने भी उसे ,

क्या उसे दिया के भाई से ,

दिया खिलखिलाने लगी ,

" अरे पढ़ने में भले तू मुझसे कित्ती ही तेज क्यों ,खूंटे के मामले में मैं ही ,. कत्तई२० नहीं है तेरे भईया का "

फिर कुछ रुक कर गुड्डी की आँखों में झांकती वो पंजाबी कुड़ी बोली ,

" २४ होगा बल्कि २६ , तेरे भैय्या का ,२० नहीं। कलाई इतना मोटा होगा कम से कम और लम्बा कितना। सबसे बढ़कर कड़क भी खूब है ,हार्ड भी एकदम स्टील. और सब से बढ़के लम्बी रेस का घोडा है तेरे भैय्या का। "

अब मेरी बारी थी दिया को हड़काने की ,जोर से घुड़का मैंने उसे ,

" छिनार , क्या मेरे भइया तेरे भइया लगा रखी है ,क्या गुड्डी के भैय्या तो तेरे भैया नहीं है, बल्कि भैय्या कम सैंया। "

" एकदम भाभी सॉरी , "कान पकड़ते दिया बोली।

मैंने मुस्कराते हुए टॉप फाड़ते हुए उसके अनार मसल दिए , और निपल्स पिंच करती बोली ,

" दिया यार तेरा तो फायदा हो गया न ये बाजी हार के "

" एकदम भाभी " खिलखिलाती हुयी वो फुलझड़ी बोली , फिर गुड्डी से कहा ,

" घबड़ा मत यार पहले तू अपनी सील खुलवा ले ,उसके बाद मैं नंबर लगवाउंगी।

रस रंग - ननद की सहेलियों के संग

बस इनकी भी हालत ख़राब थी ,एक हाथ छन्दा के शलवार क्या पैंटी के अंदर , और दूसरा ब्रा के अंदर।

मेरे साथ गुड्डी और दिया भी लेकिन दोनों के हाथों में मोबाइल , स्नैप स्नैप।

" तेरे फेसबुक पे पोस्ट कर दूँ ,?" दिया ने आँख नचाते हुए छेड़ा।

" अरे मेरे प्यारे भइया हैं , तो क्या तू ही इनसे मजे लेगी। ला मेरा मोबाइल ,सेल्फी तो खींच लूँ मैं खुद ही पोस्ट कर दूंगी सेल्फी। "

छन्दा बोली

एक हाट किस ,न उन्होंने छन्दा की शलवार से हाथ बाहर निकाला , न छन्दा ने अपने भइया के खूंटे को छेड़ा ,दो चार सेल्फी और फिर दिया ने अपने झोला छाप पर्स से एक सेल्फी स्टिक भी निकाल के छन्दा को ,

और फिर तो फुल बाड़ी सेल्फी ,आधी दर्जन से ज्यादा हर ऐंगल में ,

फिर मेरे गुड्डी के दिया के सबके फोन बजने लगे ,

गुड्डी की सारी सहेलियां फेसबुक में भी थी मेरे और व्हाट्सऐप पे भी ,

वो सारी की सारी सेल्फी मेरे मोबाइल में ,फेसबुक पे ,व्हाट्सऐप पे।

" हे खाली अपने बहनों के साथ मस्ती ही करते रहोगे या कुछ खिलाओ पिलाओगे "

अब उनकी हड़काये जाने की बारी थी। उन्हें तो मैंने बोला ही ,गुड्डी की सहेलियों को भी उकसाया ,

" अरे यार जरा अपने भैय्या की जेब तो ढीली करवाओ तुम सब कैसी बहनें हो। "

" जेब तो ये ढीली करवा लेंगी ,लेकिन भैय्या इन दोनों की भी ढीली कर देंगे। "

गुड्डी झट से अपने भैय्या की ओर से बोली।

तबतक छन्दा उनकी गोद से उतरकर हमारे पास आ गयी थी ,और अपने फेसबुक पर सेल्फी पर कमेंट्स और लाइक्स देख रही थी। २ ८ कमेंट्स और १४७ लाइक्स आचुकी थीं। जवाब उसी ने गुड्डी को दिया ,

" अरे यार हमारी तो कब की ढीली हो गयी है , अब तेरा नंबर है ,जो ये मोटा मूसल घुसेगा न कोरी कच्ची बिल में ,. भाभी अब की ये बचने न पाए। "

" एकदम नहीं बचेगी ,इसीलिए तो साथ ले जा रही हूँ ,नहीं मानेगी तो हाथ पेअर बाँध के ,. " मैंने छन्दा को अश्योर किया।

" और भाभी एकदम सूखी ,नो वैसलीन ,नो बोरोलीन , नो के वाई जेली , ,. " दिया भी अब गुड्डी के पीछे पड़ गयी थी। "रानी जी ने बहुत दिन बचा के रखा है अपनी। "

गुड्डी मीठा मीठा मुस्करा रही थी ,अपनी सहेलियों की बातों में उसको भी रस आ रहा था।

"एकदम दिया , मैं भी आर्गेनिक हूँ , नथिंग आर्टिफिशियल ,. आर्गेनिक, नेचुरल। बहुत हुआ तो इनके भैय्या का थूक ,वो भी बस थोड़ा सा ,उनके सुपाड़े पर फटे तो ठीक से फटे "

वो कमरे में चले गए थे शायद वॉलेट लेने।

मेरी निगाह घडी पर पड़ी ,ढाई बज चुके थे।

तबतक जेठानी जी की आवाज आयी ,मुझे बुलाती।

एक बार ,दो बार ,तीन बार ,. .

रस भंग - मेरी जेठानी

तबतक जेठानी जी की आवाज आयी ,मुझे बुलाती।

एक बार ,दो बार ,तीन बार ,. .

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मुझे लगा की कहीं वो ऊपर ही न आ जाएँ सारा माहौल ,

"हे तुम सब जाओ ,ज़रा अपने भैय्या को कस के लूटना मैं ज़रा नीचे जा रही हूँ। "

"एकदम भाभी ,और भैय्या भी कौन सा हम सब को लूटते समय कोई कसर छोड़ेंगे ,लेकिन ज्यादा टाइम नहीं लगेगा ,बस पास में ही एक पिज्जा शाप है। डेढ़ दो घंटे में आप के सैंया आप के पास. "

दिया ने पूरा प्लान बता दिया।
और मैं पकौड़े की खाली प्लेटें ,खाली ग्लास ट्रे में ले के नीचे।

और नीचे जेठानी जी पूरी आग।

सुबह सुबह जो वो चंद्रमुखी लग रही थीं ,इस समय ज्वालामुखी।

चेहरा तनतनाया , भृकुटी तनी, उग्र भंगिमा गुस्से के मारे बोल नहीं फूट रहे थे।

पहले ज़माने में जो लोग शाप वाप देते थे ऐसे ही लगते होंगे।

मेरे हाथ में ट्रे ,पकौड़ियों की प्लेटें ,ग्लास।

बोली वो हीं,

' घडी देखा है ?'

अब ये कौन सा सवाल हुआ ,हम दोनों जहां बरामदे में खड़े थे ,वहीँ एक दीवाल पर घडी जी टिक टिक कर रही थीं।

मेरी पतली कलाई में ,मम्मी जो अमेरिका से लायी थीं ,टिफैनी की डायमंड स्टडेड गोल्ड वाच शुशोभित हो रही थी।

मैंने जवाब नहीं दिया। समय मैंने देख लिया था।

ढाई बज रहे थे।

और जिस दिन से शादी के बाद से मैं इस घर में आयी थी ,सूरज पूरब से पश्चिम हो जाए ,जेठानी जी खाना डेढ़ बजे के पहले। और खाना बनाना लगाना उन्हें बुलाना ,सब काम और किसका ,छोटी बहु का।

इस बार एक अच्छे मैनेजर की तरह वो काम मैंने इन्हे डेलीगेट कर दिया था।

पर आज। और मुझे भूख इस लिए नहीं लगी की, टाइम का अंदाज भी नहीं की. उन चुलबुलियों के साथ मैंने ढेर सारी पकौड़ी उदरस्थ कर ली थी।

उनकी निगाह उसी ट्रे पर पड़ी जो कुछ देर पहले पकोड़ियों और कोक से लदी फंदी ऊपर गयी थी और अब एकदम खाली ,नीचे।

और मैं हिचकिचाते हुए जैसे कोई लड़का फिर फेल हो गया हो ,उस तरह ,बहुत धीमे से बोली ,

:वो गुड्डी की सहेलियां , मुझसे मिलने आयी थीं ,बोलीं भाभी बहुत भूख लगी है आप के हाथ की पकौड़ी खाने का मन ,. "

और अब वो ज्वालामुखी फूट पड़ा।

" तुम भी न ,. तुम भी ,. . सींग कटा के बछेड़ियों में शामिल होने का शौक चर्राया है। अरे कु,छ दिन में तुम्हारी शादी के दो साल हो जायँगे ,घर गृहसथी की जिम्मेदारी, पुराना ज़माना होता तो नौ महीने में केहाँ केहां , और इन कल की घोड़ियों के साथ खी खी में मगन ,

किसी तरह मैंने अपने मन से कहा शांत गदाधारी भीम शांत , चार साल से ऊपर हो गए थे इन्हे इस घर में आये और केहाँ केहां कौन कहे ,ढंग की उलटी भी नहीं

जेठानी जी फिर बोलीं ,अबकी गुस्से के साथ बड़े होने का अहम् और ज्ञान देने का भाव भी ,

तुझसे कित्ती बार समझाया है ,आग और फूस का साथ ठीक नहीं। एक तो तेरी वो ननद ही इनके पीछे लगी है ,ऊपर से उसकी सहेलियां भी। और अब वो बच्चियां नहीं रहीं। सासु जी घर पर नहीं है तो हमारी तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है , तुझे इतना समझाया गुड्डी को साथ मत ले जाओ , कहीं कुछ ऊंच नीच हो जाए तो , . नहीं लेकिन मेरी कौन सुनता है इस घर में। और ऊपर से तुमने अपने मर्द को कौन सी सोंठ पिला दी है , . एकदम जोरू का ,. और फिर गुड्डी ,. फिर मरद जात को क्या दोष देना ,औरत को अपना खुद ,. .

दीदी मैं खाना लगाती हूँ , बहुत देर हो गयी आपको , मुझे मालूम है टाइम ऊपर नीचे होने से आपको एसिडटी ,.

उनकी बात को काटते हुए पुराने जमाने की जेमिनी की सामाजिक फिल्मों में जिस तरह से आज्ञाकारी सुशील संस्कारी बहु होती थीं एकदम उस तरह,नीची आँख किये सर झुकाये मैं बोली।

ज्वालामुखी

जेठानी जी फिर बोलीं ,अबकी गुस्से के साथ बड़े होने का अहम् और ज्ञान देने का भाव भी ,

तुझसे कित्ती बार समझाया है ,आग और फूस का साथ ठीक नहीं। एक तो तेरी वो ननद ही इनके पीछे लगी है ,ऊपर से उसकी सहेलियां भी। और अब वो बच्चियां नहीं रहीं। सासु जी घर पर नहीं है तो हमारी तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है , तुझे इतना समझाया गुड्डी को साथ मत ले जाओ , कहीं कुछ ऊंच नीच हो जाए तो , . नहीं लेकिन मेरी कौन सुनता है इस घर में। और ऊपर से तुमने अपने मर्द को कौन सी सोंठ पिला दी है , . एकदम जोरू का ,. और फिर गुड्डी ,. फिर मरद जात को क्या दोष देना ,औरत को अपना खुद ,. .

दीदी मैं खाना लगाती हूँ , बहुत देर हो गयी आपको , मुझे मालूम है टाइम ऊपर नीचे होने से आपको एसिडटी ,.

उनकी बात को काटते हुए पुराने जमाने की जेमिनी की सामाजिक फिल्मों में जिस तरह से आज्ञाकारी सुशील संस्कारी बहु होती थीं एकदम उस तरह,नीची आँख किये सर झुकाये मैं बोली।

लेकिन मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की सीढ़ियों से धड़धड़ ,वो ,गुड्डी और गुड्डी की सहेलियां , जैसे परियों का अखाडा चले ,जैसे बाग़ में अचानक बेमौसम बहार आ जाये और हर कली ,फूल बनने के लिए बेताब हो उठे

माली एक कलियाँ तीन,

एक ओर वो मस्त पंजाबी कुड़ी ,जिसका जोबन फटा पड़ रहा था ,दिया

और इनके दूसरे ओर ,वो नमक की खान ,नमकीन , छन्दा।

गुड्डी साथ में ,बस थोड़ा सा पीछे ,जैसे कह रही हो , कमिनियों माल तो मेरा है ,चल थोड़ी देर तू दोनों भी मौज मस्ती कर ले।

दिया और छन्दा के बीच में ये , एक हाथ छन्दा के टेनिस बॉल्स साइज बूब्स पे और दूसरा दिया की टॉप के अंदर।

और जिस तरह उनकी जींस की ज़िप आधी खुली थी ये साफ था इस कमीनियों ने खूंटे को बाहर निकाल के भी अच्छी तरह नाप जोख की है।

" हम लोग जरा भैय्या को लूटने जा रहे हैं। " जोबन लुटाती उनकी 'बहने ' गुड्डी की सहेलियां बोलीं।

" बस पास में ही एक नया पिज़्ज़ेरिया खुला है , . " उन्होंने साफ किया। और फिर बिना इस बात का अहसास किये की मौसम अचानक बदल गया है ,

वो मुझसे पूछ बैठे ,चलेगी क्या ?

जेठानी जी तो , जैसे कोई एकदम गरम तवे पर पानी की दो चार बूंदे डाल दे और जोर से तवा छनक उठे।

लेकिन जिस तरह जेठानी जी ने उनकी ओर देखा ,

ज्वालामुखी बनी जेठानी जी की अब ज्वाला धधक उठी।

और वो समझ गए ,मामला सीरियस ही नहीं महा सीरियस है।

बिचारी गुड्डी , वो आग में घी की तरह ,. जल गयी।

उसके मुंह से निकल गया ,

" चलिए कोई बात नहीं ,आप लोगों के लिए पैक करवा के भिजवा दूंगीं। "

अब तो जेठानी जी ,

" नहीं नहीं न कोई जाएगा , और न कुछ पैक कर के आएगा। "

उन्होंने हमेशा की तरह बीच का रास्ता निकाला ,

" बस भाभी , हम लोग अभी गए अभी आये। पास में ही है एकदम। "

गनीमत था की छन्दा और दिया बाहर निकल गयी थी।

और झटपट ये गुड्डी का हाथ पकड़ के बाहर निकल गए।

जो काली घटा इत्ती देर से उमड़ घुमड़ रही थी वो जम के बरसी ,

और किस के ऊपर मेरे ऊपर

शादी के बाद के शुरू के दिनों में ये आम बात थी , लेकिन तब भी इतनी तेजी कभी नहीं देखी मैंने

और तब सहायक भूमिका में उनके गुड्डी ही रहती थी ,इसलिए सारे डायलॉग उन्हें नहीं बोलने पड़ते थे।

नेपथ्य में कभी कभी मेरी सासु जी भी ,

और आज वो अकेले , डाकिनी ,पिशाचिनी , सब की शक्तियां उनके अंदर

बात उन्होंने अपने मोहरे से शुरू की जो अब होस्टाइल हो चुकी थी।

" ये गुड्डी भी न ,अकेले कम थी क्या जो अपनी सहेलियों को भी बुला लायी , डोरे डालने के लिए " किसी तरह उनके मुंह से निकला।

कोई दूसरा समय होता मैं बोल उठती ,

"अरे दीदी वो चीज ऐसी है की जितना भी इस्तेमाल करो ख़तम नहीं होने वाली। मुझे मिल बाँट के खाने में कोई ऐतराज नहीं ,खास तौर से उनके मायकेवालियों से। "

पर अभी तो जितने आग उगलने वाले ड्रैगन मैंने मिडल अर्थ की कहानियों में पढ़े थे ,सबकी शक्ति उनके अंदर समाहित हो गयी।

इसलिए बस मैं चुप ही रही।

" और सब तेरी गलती है , तुझे कितनी बार समझाया ,आग और फूस का साथ ,. ये नयी नयी लड़कियां , . और मर्द कोई दोस नहीं देगा। लेकिन तुझे समझ में आये तो न , दो चार अक्षर ज्यादा पढ़ लेने से ज्ञान नहीं आ जाता , बस सब को इसी बात का घमंड , अरे तुझसे बड़ी हूँ ,चार साल पहले तुझसे इस घर में आयी. "

( यह बात उन की सही थी ,लेकिन उम्र में मुझसे सिर्फ दो साल ही बड़ी थी , और अगर ये बता दूँ की उनकी शादी किस उम्र में हुयी तो ये सारे मॉडरेटर लोग मिल के मुझे मेरे कोमल कोमल कान पकड़ के फोरम से बाहर निकाल देंगे। )

भले तू थोड़ा ज्यादा पढ़ी लिखी है लेकिन बड़ा कौन है ,इस घर की सारी जिम्मेदारी ,संस्कार सब ,. और मेरा देवर भी न , तूने पता नहीं पहली ही रात को क्या घुट्टी पिलाई की , . एकदम तेरे पीछे लट्टू , एकदम पीछे पड़ गया तुझे अपने साथ ले जाने को , अरे सब की शादी होती है सब कमाने जाते हैं हमरे गाँव में भी पंजाब ,लुधियाना ,दुबई कौन अपनी जोरू को ले जाता है , . साल दो साल में आये ,. हफ्ता दस दिन रहे ,.

नौ महीना बाद ,.

अरे ई पढ़ाई लिखाई का का मतलब की सब घोर के पी जाएंगे। सास भी मान गयीं ,मैंने लाख समझाया लेकिन उनका लड़का बस दस पंद्रह दिन एक बार ज़रा घर सेट हो जाए फिर मैं खुद छोड़ जाऊंगा ,. और पूरे आठ महीने बाद आयी हो और ,. गुड्डी को अपने साथ ,. "

उनका बड़बड़ाना जारी था।

वो दिन

"भले तू थोड़ा ज्यादा पढ़ी लिखी है लेकिन बड़ा कौन है ,इस घर की सारी जिम्मेदारी ,संस्कार सब ,. और मेरा देवर भी न , तूने पता नहीं पहली ही रात को क्या घुट्टी पिलाई की , . एकदम तेरे पीछे लट्टू , एकदम पीछे पड़ गया तुझे अपने साथ ले जाने को , अरे सब की शादी होती है सब कमाने जाते हैं हमरे गाँव में भी पंजाब ,लुधियाना ,दुबई कौन अपनी जोरू को ले जाता है , . साल दो साल में आये ,. हफ्ता दस दिन रहे ,. नौ महीना बाद ,. अरे ई पढ़ाई लिखाई का का मतलब की सब घोर के पी जाएंगे। सास भी मान गयीं ,मैंने लाख समझाया लेकिन उनका लड़का बस दस पंद्रह दिन एक बार ज़रा घर सेट हो जाए फिर मैं खुद छोड़ जाऊंगा ,. और पूरे आठ महीने बाद आयी हो और ,. गुड्डी को अपने साथ ,. "

उनका बड़बड़ाना जारी था।

" बस मैं अभी खाना लगाती हूँ दीदी ,सच में बहुत देर हो गयी। "

किसी तरह अपने आंसू छिपाती रोकती मैं किचेन में धंस गयी।

शादी के बाद नयी नयी दुल्हन के लिए किचेन अपने कमरे के बाद दूसरी सबसे बड़ी छिपने की जगह होती है।

लेकिन जेठानी जी वहां भी पीछा नहीं छोड़ती थीं, मेरे पीछे पीछे किचेन में आके, एकदम मेरे पीछे खड़े होके , ऐसे ऐसे ताने, व्यंग बाण, बाहर तो मेरी सास के सामने एकदम मीठी बनी रहती थीं, और कोई पड़ोसन आ जाए तो और ज्यादा,एकदम मेरी सबसे बड़ी शुभचिंतक, लेकिन अकेले में,.

और कोई एक चीज़ हो तो बताऊँ, मेरी पढाई, रूप जोबन, और सबसे बढ़कर मेरा घर परिवार, मेरा मायका,

एक दिन बगल की एक पड़ोसन आयी थीं, ( बैठने की जगह मेरी तय थी, जेठानी जी ने पहले दिन ही मुझे बता दिया था , सास मेरी पलंग पर और जेठानी वहीँ पायताने या सामने कुर्सी पर, और मेरे लिए एक झीलंगहिया मचिया), पड़ोसन की बहू की कहीं नौकरी लग गयी थी, दूर के एक एक गाँव के कॉलेज में, पड़ोसन उसी का गुणगान कर रही थीं, मेरी बहू बहुत पढ़ी लिखी है, बीएड भी कर लिया है, . मेरी सास से नहीं रहा गया उन्होंने मुझे उकसाया, बोलीं पड़ोसन से,

" अरे मेरी बहू ने भी बहुत पढ़ाई की है,क्या कहते हैं वो मेडल वोडल भी मिले हैं उसको,. मैं तो भूल भी जाती हूँ, बता दे न बहू ,. . "

मैं समझ गयी सास ने प्वाइंट स्कोर करने के लिए मुझे आगे किया है और मैं क्यों उन्हें हारने देती,.

बस मैंने अपनी सारी डिग्रियां, डिप्लोमा सर्टिफिकेट तक गिना दिये और ये भी की दो उसमें से फॉरेन की युनिवरसिटी के है ( ये नहीं बताया की कोर्स ऑनलाइन वाले थे )

और मेरी सास भी कम नहीं थीं, उन्होंने पहले से एन्टिसिपेट कर लिया था की पड़ोसन का अगला सवाल क्या होगा इसलिए वो जवाब उन्होंने पहले ही दे दिया,

"मैं तो कहतीं हूँ इतनी पढ़ी लिखी हो कहीं नौकरी, तो ये खुद मना कर देती है , बोलती है नहीं माँ जी , बस आप के पास . . क्या करुँगी नौकरी कर के, फिर मेरे छोटे बेटे की नौकरी भी इतनी अच्छी है, बोलती है , वो तो है न नौकरी करने के लिए , मैं क्यों करूँ किसी की गुलामी, टाइम पर आना, टाइम पर जाना,

सास ने एक साथ कई प्वाइंट स्कोर कर लिए थे, मेरी पढाई, मेरा उन का ख्याल करना, सास के बेटे की अच्छी नौकरी,. और पड़ोसन का बेटा कहीं पास में पंसारी की दूकान पे काम करता था,.

लेकिन पड़ोसन भी इतनी जल्दी पारी की हार मानने के लिए तैयार नहीं थी, एक मिनट के लिए उन्होंने मेरी ओर देखा,. और फिर बोलीं,

" रूप गुन पढाई सब में जबरदस्त बहू लायी हैं,. आप बेटे की नौकरी कहाँ पर है आपकी , प्राइवेट में तो छुट्टी भी मुश्किल से मिलती है इसलिए मैंने लड़के को कहीं बाहर नहीं जाने दिया , चार पैसा कम मिले तो क्या, आँख के सामने तो है, और इस उमर में दुःख सुख आप बेटे पास में रहें,. "

लेकिन मेरी सास भी, बोलीं

" आप एकदम सही कहती हैं,. लेकिन क्या करें, चिरिया चिनगुन भी बड़े होने पर घोंसले से उड़ जाते हैं , फिर उसकी नौकरी बहुत दूर नहीं है , कार से तीन चार घंटे,. "

जब मैं पानी पढाई के बारे में बता रही थी तो मेरी सास का चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था, . लेकिन उस समय तो मैं भूल गयी थी, बाद में मुझे याद आया, एक पल के लिए कनखियों से मैंने देखा था की मेरी जेठानी का चेहरा एकदम झांवा हो गया था,.

और उस का इनाम मिला तुरंत ही, जेठानी कुछ भी उधार नहीं रखती थीं, . रोज तो भले किचेन में चार ट्रिप करनी पड़े,. अगर एक बार में ही सब कुछ ले जाने की कोशिश करूँ तो तुरंत ज्ञान मिल जाता था,. . अरे कहीं एकाध प्याला भी टूट गया न , सेट खराब हो जाएगा, तेरी जेठ की मेहनत की कमाई का है, मायके से नहीं लायी हो,. पर आज जब मैं तीसरे ट्रिप में बाकी के समान उठा रही थी और सास उठ के अपने कमरे में जा रही थीं सास की ओर देख के वो बड़े दुलार से बोलीं, चल मैं तेरा हाथ बटा देती हूँ, वरना कहेगी की अपने मायके में तो एक ग्लास पानी हाथ से उठा के नहीं पिया , और यहाँ ससुराल में काम करवा करवाके ,

सिर्फ एक ग्लास उन्होंने उठाया, मेरे पीछे पीछे,. और क्या बादल गरजे बरसे,.

( हाँ मुझे हड़काते समय ये ध्यान वो रखती थीं की किचेन से बाहर आवाज न जाये और एकदम मुझसे सट के ,

मेरी जुबान खुलने का सवाल ही नहीं था, बस मुंह झुकाये बरतन साफ़ कर रही थी.

" इतना बढ़ चढ़ कर चबड चबड जुबान चलाने की क्या जरूरत थी, पूरे मोहल्ले में जा के गायेगी वो, अरे हम भी बियाह के इसी आंगन में आये थे, साल भर तो जो आस पड़ोस छोड़ दो, जो घर में किसी ने आवाज सुनी हो, लेकिन तुम भी न और ऊपर से अंगरेजी भूँक रही थी, . क्या सोची होगी वो, . ( गलती मेरी थी, डिग्री, डिप्लोमा सर्टिफकेट गिनाते गिनाते एक लाइन अंग्रेजी की भी मेरे मुंह से निकल गयी थी ), बहू पढ़ी लिखी है लेकिन ये सास जेठानी नौकरी नहीं करने दे रही हैं,. अरे मैं क्या करूँ, मेरी सास की ही,. "

एक सांस में वो इतना बोल गयीं फिर जैसे ड्रैगन लोग आग फूंकने के बाद रिफिल करते हैं, बस थोड़ा सा पाज और फिर चालू, जहाँ छोड़ा था वहीँ से, .

" मैंने इतना समझाया था सास को लेकिन वो भी न, मैंने बोला था, अरे हाईकॉलेज, इंटर बहुत है, कौन नौकरी करानी है। अरे औरत क काम क्या है, सादी बियाह हो गया, मरद के पास सोओ, पेट फुलाओ, नौवें महीना,. अरे बंस चलाओ , कुल परंपरा का ख्याल रखो, संस्कार भी कोई चीज है लेकिन नहीं,. . "

फिर हर बार की तरह वो अपना उदाहरण लेकर चालू हो गयीं,.

" अरे हम भी गुड सेकेण्ड डिवीजन इंटर पास है, ब्लाक मेंहदी कम्पटीशन में पार्टीसेप्शन सर्टिफिकेट मिला था, लेकिन देखा है मुझे कभी उसके बारे में बोलते हुए,. ( बरामदे में एक बड़ा सा गोल्डन फ्रेम में वो पार्टिसिपेशन सर्टिफिकेट सुशोभित था , और पहले ही दिन मुझे दिखाया गया था और ये बात भी सही थी की वो मेंहदी अच्छी लगाती थी), मेरी सहेली जैनब भी, बीए किया बी एड किया और वहीँ अपने गाँव में ही इतनी बढ़िया नौकरी, कॉन्ट्रेट टीचर की, सरकारी नौकरी ,. लेकिन कभी बोलती हूँ मैं , लेकिन तुम भी नहीं, दो अक्षर पढ़ लेने से कुछ नहीं होता, मैं इस घर में पहले आयी हूँ , तुमसे बड़ी हूँ , रहूंगी , . और इतना रगड़ रगड़ के कप मत धो, खरोंच पद जायेगी, कुछ भी गुनढंग मायके से सीख के नहीं आयी "

और वो दनदनाती हुयी किचेन से बाहर,

मेरा तो मन हुआ झन्नाक से कप वाश बेसिन में पटक कर तोड़ दूँ,. लेकिन,. और ये कोई एक दिन की बात नहीं थी, बेडरुम के बाद मुझे किचेन में ही शान्ति मिलती थी पर वहां भी, .

और इनके साथ भी, . वो तो बाद में समझ में आया, जो कुछ शादी के बाद हो रहा था, . इन्ही मेरी जेठानी जी का खेल था, रात भर तो ये एकदम लिपटे चिपटे, कोई दिन नागा नहीं जाता था , दो तीन बार तो कम से कम, . लेकिन जहाँ मैं नीचे आयी बस एकदम से, .

बीते हुए कल

और इनके साथ भी, .

वो तो बाद में समझ में आया, जो कुछ शादी के बाद हो रहा था, . इन्ही मेरी जेठानी जी का खेल था, रात भर तो ये एकदम लिपटे चिपटे, कोई दिन नागा नहीं जाता था , दो तीन बार तो कम से कम, . लेकिन जहाँ मैं नीचे आयी बस एकदम से, . हाँ जब कोई नहीं होता था तो न मैं उन्हें ललचाने से चूकती थी, न वो चोरी छिपे, तांक झाँक से, बदमाशी में तो बदमाशों के सरदार, पहले दिन से ही मैं समझ गयी थी और लालची नंबर वन भी,.

दूज्यौ खरै समीप कौ लेत मानि मन मोदु।

होत दुहुन के दृगनु हीं बतरसु हँसी-विनोदु।

बस वही बिहारी के दोहे वाली बात, आँखों ही आँखों में इशारे होते बात चीत होती, मैं उन्हें चिढ़ाती ललचाती, वो मुझे मनाते, निहोरा करते,.

लेकिन जेठानी के पैरों की आहट और वो एकदम पूरी तरह,. चोर सिक्युरिटी का खेल,
और उनके या घर के किसी के सामने होने पर,. उनका मामला तो एकदम, न तुम हमें जानों न हम तुम्हे जाने वाला हो जाता

और ये मुझे बहुत खराब लगता, बहुत खराब, ये ही तो थे जिनसे मैं रूठ सकती थी, मन की कह सकती थी और ये भी,

एक दिन मैंने सुन लिया की जेठानी इनसे कह रही थीं, . और कितने गंदे ढंग से,. .

" रात भर तो चढ़े चिपके रहते हो, और दिन में भी, . कुछ तो लाज शरम,. तेरी भैया की भी शादी हुयी थी,. मैं भी नयी नयी बियाह के इसी घर में आयी थी, तुम दिन में भी चक्कर काटते रहते हो जैसे कभी, . . पता नहीं पहले दिन से तुझे क्या घुट्टी पिला दी है,.

अरे मैं , जब सब लोग सो जाते थे , तब वो भी दबे पाँव तेरे भैया के पास,. और सुबह सबके उठने के पहले,. मैं कमरे से बाहर,.

और दिन में मजाल क्या, जो कहीं आस पास, लगता है नोखे की तुम्हारी सादी हुयी है,. अरे अपना नहीं घर की सोचो, घर परिवार की इज्जत, क्या कहेंगे लोग की फलाने का,. "

बाद में मेरे समझ में आया इनके ऊपर जो 'लोग क्या कहेंगे'वाला डर था, उसको चढाने में मेरी जेठानी का सबसे बड़ा हाथ था

और एक दिन तो उन्होंने क्या क्या नहीं कहा इन्हे,

मैं वहां नहीं थी, किचेन में प्याज काट रही थी,. लेकिन बाद में मुझे समझ में आया, जेठानी जी समझा अपने देवर को रही थीं लेकिन निशाने पर मैं ही थी, उन्हें इस बात का साफ अंदाज था की किचेन में मैं सुन रही थी सब कुछ,.

" मान लो उस को सरम लिहाज नहीं है, वो तो बाहर से आयी है, जो महतारी ने सिखाया होगा, मैं तो दो दिन में समझ गयी थी थी, कोई गुन ढंग संस्कार, ये सब पैसा पढाई से नहीं आता, संस्कार बचपन से सीखता है,. लेकिन तुम तो,. एकदम महरानी अपने आँचर में तोहके बाँध के,. दिन भर जब देखो तब ओहि के चक्कर,. अरे थोड़ा घर से बाहर जाओ, अपने दोस्तों से मिलो, काम धाम, ये क्या जब से ये आयी है घर घिस्सू, जोरू के आगे पीछे, देखती माता जी भी है , लेकिन वो बोलती है नहीं , बुरा उनको भी बहुत लगता है,. "

पहली बार प्याज काटते हुए मेरी आँखों से गंगा जमुना बह रही थी,

गलती मेरी ही थी, हम दोनों सोच रहे थे कोई नहीं है. फर्स्ट नाइट से मुझे पता चल गया था ये लड़का मेरे चोली के फूलों के पीछे पागल है, पागल मतलब असली वाला पागल, दीवाना,. वो बरामदे के दूसरे कोने से मुझे देख रहे थे,. मैंने इधर उधर देखा की कोई नहीं है, बस मैंने ज़रा सा आँचल ढलका दिया,. . चोली कट ब्लाउज,. उभार क्लीवेज,. पल भर भी नहीं,. बेचारे की हालत खराब, फिर मैंने होंठों पर जीभ फिरा दी, और अपने खुले क्लीवेज की ओर हलके से देख लिया

और वहां तम्बू तन गया.

मैं जोर से मुस्करा रही थी, लेकिन तब तक जेठानी जी के पैरों की आवाज सुनाई पड़ी और मैं किचेन में और वो कोई किताब लेके बैठ गए,.

पर जेठानी की निगाह से कुछ बचता था क्या,.

और वो चालू हो गयीं और बात उन की कहीं से शुरू हो, मेरे मम्मी मेरे परिवार पर उन का नजला गिरता, शराबी कबाबी, सारी नैतिकता जीभ से शुरू होकर जीभ पर ख़तम हो जाती थी, और कई बार मेरी सास भी चपेट में आ जाती थीं,

" मैंने सास से दसों बार मना किया था, लेकिन कोई मेरा सुने तब न, अरे अपने से नीचे घर की लड़की लानी चाहिए, भले ही थोड़ी गरीब हो, दब के रहेगी, कितनी तो मेरी जान पहचान की लेकिन,. वो भी न वो शकल देख के मोहा गयीं। . . अब गुन लक्षण,

उन की रेडियो मिर्ची चालू थी और मेरी आँखों से गंगा जमुना, प्याज काटने के साथ साथ

तभी मेरी सास आ गयीं, और उन्होंने मुझे हड़का लिया, मेरी आँखों की नमी उनसे नहीं छुपा पायी मैं,

" क्या हुआ " उन्होंने पूछ लिया

" कुछ नहीं, वो प्याज काट रही थी न तो मेरी आँख में हर बार,. "

मैंने झूठ बोलने की कोशिश की पर सच उनको भी पता चल गया और मुझे भी की , उन्हें सब समझ में आ गया,

मुस्करा के वो बोलीं

" तो मत काट न, जो मेरी चाँद सी दुल्हन की आँख गीली करे, . ले मैं काट देती हूँ, मुझे कुछ नहीं होगा तू ज़रा सा जा के आराम कर, सुबह से चूल्हे में घुसी रहती है. "

कुछ दिन बाद मेरी समझ में आया सासू जी की मजबूरी, . . उन्हें रहना तो जेठानी के ही साथ था, जेठ जी भी नम्बरी चुप्पे, जेठानी के सामने उनका भी मुंह नहीं खुलता था, . पता नहीं क्या जॉब था उनका दो चार दिन घर में रहते, फिर हफ्ते दस दिन बाहर ,.

कोई दिन नांगा नहीं जाता था ,.

तब तो कित्ती ही बार ,और बजाय सम्हलाने के ,मनाने के , नमक छिड़कने वालों की कमी नहीं होती थी।

एक बार ऐसे ही जेठानी जी की किसी बात पर मेरी आँख गीली थी ,मेरे मायके वालों को , और मायके में था कौन मम्मी के सिवाय ,. शराबी कबाबी , ,. . संस्कार ,.

और गुड्डी आ गयी , बजाय कुछ पूछने के और ,.

" क्यों भाभी , मायके के किसी यार की याद आ गयी थी?"

डिश बेस्ट सर्व्ड कोल्ड

एक बार ऐसे ही जेठानी जी की किसी बात पर मेरी आँख गीली थी ,मेरे मायके वालों को , और मायके में था कौन मम्मी के सिवाय ,. शराबी कबाबी , ,. . संस्कार ,.

और गुड्डी आ गयी , बजाय कुछ पूछने के और ,.

" क्यों भाभी , मायके के किसी यार की याद आ गयी थी?"

लेकिन मैं अब बदल गयी थी , मैंने तय कर लिया था भागो नहीं बदलो , इनको भी इनके मायकेवालों को भी।

खाना मैंने गरम करना शुरू कर दिया था लेकिन मैं अपने को बार बार समझा रही थी

रिवेंज इज अ डिश बेस्ट सर्व्ड कोल्ड।

और अपनी स्ट्रेटजी सोच रही थी।

रिट्रीट ,रिट्रीट ,. किसी तरह मैं उन्हें जवाब न दूँ उनका गुस्सा ठंडा होने दूँ , पता करूँ उनकी ताकत किस मौके का वो इस्तेमाल करना चाहती हैं।

मैं अपने दिमाग के घोड़े तेजी से दौड़ा रही थी,मैंने जो मम्मी से सीखा, क्लब की पॉलिटिक्स में मिसेज खन्ना से सीखा था,

कुछ भी गड़बड़ नहीं होना चहिये, कुछ भी नहीं, क्या था जेठानी के पास,

अब ये तो एकदम हमारे थे , जेठानी जी की ' खाने पीने ' आदतें सुधारने में मुझसे ज्यादा इनका हाथ था ,

गुड्डी भी , अब तो कोचिंग में चलने के लिए हमारे साथ चलने के लिए खुद बेताब थी, फिर उसकी कितनी फोटुएं मेरी मोबाइल में कैद थीं टॉपलेस, हर तरह के और अब तो इनसे ज्यादा वो गरमा रही थी अपनी टाँगे फैलाने को,

सास्सू जी अभी थी नहीं तो, . .

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,

मेरे यहाँ आने के पहले ही मम्मी ने दस बार समझाया था, चेताया था, ' देख कोमलिया यहाँ सिर्फ तू और ये हैं, तो सब कुछ,. अब वो तेरे मन की बात समझने लगा है और तू भी, . लेकिन जब उसके मायके में रहेगी न तो असली टेस्टिंग होगी तेरी, पुरानी यादें, और सब से बढ़कर पहले की आदतें, उन की भौजाई, अगर वो वहां जाके भी नहीं बदले तो समझो, . "

और ये ये बदले क्या, मुझसे भी दो हाथ आगे थे , मेरी जेठानी और ननद दोनों के मामले में, . एक पल के लिए भी नहीं हिचके, पोर्क चिकेन पिज्जा , मटन कबाब सब कुछ उन्होंने खुद आर्डर किया अपनी भाभी के लिए, अपने हाथ से खिलाया, . फुल टाइम मस्ती,

लेकिन,

मुझे शुन त्जू की आर्ट आफ वार याद आ रही थी, नो योर एनमी, और क्या मैं अपने जेठानी जी के बारे में कुछ जानती हूँ ,. मैंने दिमाग पर बहुत जोर डाला, . असल में कुछ भी नहीं, और बिना उनके बारे में जाने, अच्छी तरह समझे, उनकी सारी कमजोरियां, अतीत,.

और मेरी सबसे बड़ी वीकनेस, ये ,. और इनसे जुड़ी गुड्डी इनकी बचपन की,.

और अचानक मेरी चमकी, जोर से चमकी,

अगर गुड्डी को हम लोगों के साथ जाने से जेठानी ने रोक दिया तो ये,. कैसे कर पाएंगी पता नहीं

लेकिन मेरा वो सबसे बड़ा वीक प्वायंट था, एक तो ये फ्रस्ट्रेट होंगे , दूसरी गुड्डी यहाँ अकेले तो जेठानी जी उसकी अच्छी तरह खबर लेंगी , और फिर न मुझ पर कोई विश्वास करेगा,

मैंने झटाक से एक स्वाट किया, मेरी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ ये , हर मौसम में मेरे साथ और अब गुड्डी भी, सेक्स मौज मस्ती तो ठीक थी , ननद भाभी की छेड़खानी, हो तो ठीक न हो तो भी , लेकिन मैंने मन ही मन तय कर लिया उसका मेडिकल इंट्रेंस का सपना और वो बिना कोचिंग ज्वाइन किये मुश्किल था , बिना हमारे साथ चले,

लेकिन वीकनेस ये थी की मुझे इस प्लान को भरभंड करने वाली जेठानी के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था , और मेरी सास , जेठानी के साथ ही रहती थीं , उन्हें वो लीवरेज कर सकती थीं

अपॉरचुनिटी अभी से अच्छी कुछ नहीं थी, उस का इंटर का रिजल्ट आनेवाला था , उसके घर वाले भी मान गए थे और सास मेरी यहाँ थी नहीं ,

थ्रेट , वही जेठानी जी ,

इसलिए मैंने तय किया अभी मैं शांत रहूंगी , पहले जेठानी जी को उनके पत्ते खोलने दूंगी और फिर नहले पे दहला जड़ूंगी।
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