Update 02

श्रेया ने अपनी गाँड़ ऊपर उठायी और एक बड़ी सुनामी की लहर जैसे उसके पुरे बदन में दौड़ पड़ी। वह गहरी साँस ले कर कराह ने लगी, "कप्तान साहब काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।" अभिजीत सिंह ने श्रेया से कहा, "तुम्हारे लिए मैं कप्तान साहब नहीं, मैं अभिजीत सिंह भी नहीं। मैं तुम्हारे लिए जीतू हूँ। आज से तुम मुझे जीतू कह कर ही बुलाना।" श्रेया ने तब अपनी रिक्वेस्ट फिरसे दुहराते हुए कहा, "जीतू जी काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।" जीतू जी ने देखा की श्रेया अब मानसिक रूप से उनसे चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी तो वह श्रेया की दोनों टाँगों के बिच आगये और उन्होंने अपना लण्ड श्रेया के छोटे से छिद्र के केंद्र बिंदु पर रखा। श्रेया के लिए उस समय जैसे क़यामत की रात थी। वह पहली बार किसी का लण्ड अपनी चूत में डलवा रही थी। और पहली ही बार उसे महसूस हुआ जैसे "प्रथम ग्राहे मक्षिका" मतलब पहले हे निवालें में किसी के मुंह में जैसे मछली आजाये तो उसे कैसा लगेगा? वैसे ही अपनी पहली चुदाई में ही उसे इतने मोटे लण्ड को चूत में डलवाना पड़ रहा था। श्रेया को अफ़सोस हुआ की क्यों नहीं उसने पहले किसी लड़के से चुदवाई करवाई? अगर उसने पहले किसी लड़के से चुदवाया होता तो उसे चुदवाने की कुछ आदत होती और यह डर ना लगता। पर अब डर के मारे उसकी जान निकली जा रही थी। पर अब वह करे तो क्या करे? उसे तो चुदना ही था। उसने खुद जीतूजी को चोदने के लिए आमंत्रित किया था। अब वह छटक नहीं सकती थी। श्रेया ने अपनी आँखें मुंदी और जीतूजी का लण्ड पकड़ कर अपनी चूत की गीली सतह पर रगड़ने लगी ताकि उसे लण्ड को उसकी चूत के अंदर घुसने में कम कष्ट हो। वैसे भी जीतूजी का लण्ड अपने ही छिद्र से पूर्व रस से चिकनाहट से सराबोर लिपटा हुआ था।

जैसे ही श्रेया की चूत के छिद्र पर उसे निशाना बना कर रख दिया गया की तुरंत उसमें से पूर्व रस की बूंदें बन कर टपकनी शुरू हुई। श्रेया ने अपनी आँखें मूँद लीं और जीतू के लण्ड के घुसने से जो शुरुआती दर्द होगा उसका इंतजार करने लगी। अभिजीत सिंहने अपना लण्ड हलकेसे श्रेया की चूत में थोड़ा घुसेड़ा। श्रेया को कुछ महसूस नहीं हुआ। अभिजीत सिंह ने यह देखा कर उसे थोड़ा और धक्का दिया और खासा अंदर डाला। तब श्रेया के मुंह से आह निकली। उसके चेहरे से लग रहा था की उसे काफी दर्द महसूस हुआ होगा। अभिजीत सिंह को डर लगा की कहीं शायद उसका कौमार्य पटल फट ना गया हो, क्यूंकि श्रेया की चूत से धीरे धीरे खून निकलने लगा। तभी अभिजीत सिंह ने अपना लण्ड निकाल कर साफ़ किया। उनके लिए यह कोई बार पहली बार नहीं था। पर श्रेया खून देखकर थोड़ी सहम गयी। हालांकि उसे भी यह पता था की कँवारी लडकियां जब पहली बार चुदती हैं तो अक्सर यह होता है। श्रेया ने सोचा की अब घबरा ने से काम चलेगा नहीं। जब चुदवाना ही है तो फिर घबराना क्यों? उसने अभिजीत सिंह से कहा, "जीतू जी आप ने आज मुझे एक लड़की से औरत बना दिया। अब मैं ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहती। आप मेरी चिंता मत कीजिये। मैं आपके सामने टाँगे फैला कर लेटी हूँ। अब प्लीज देर मत कीजिये। मुझे जी भर कर चोदिये। मैं इस रात का महीनों से इंतजार कर रही थी।"

अभिजीत सिंह अपनी टाँगें फैलाये नग्न लेती हुई अपनी खूबसूरत माशूका को देखते ही रहे। उन्होंने श्रेया की चूत के ऊपर फैले हुए खूनको टिश्यू पेपर अंदर डाल कर उससे खून साफ़ किया। उन्होंने फिर श्रेया की चूत पर अपना लण्ड थोड़ा सा रगड़ कर फिर चिकना किया और धीरे धीरे श्रेया की खुली हुई चूत में डाला। अपने दोनों हाथों से उन्होंने माशूका के दोनों छोटे टीलों जैसे उरोजों को पकड़ा और प्यार से दबाना और मसलना शुरू किया। अपनी माशूकाकी नग्न छबि देखकर जीतूजी के लण्ड की नर्सों में वीर्य तेज दबाव से नर्सों को फुला रहा था। पता नहीं उन रगों में कितना वीर्य जमा था। जीतूजी ने एक धक्का और जोर से दिया और उस बार श्रेया की चूत में आधे से भी ज्यादा लण्ड घुस गया। ना चाहते हुए भी श्रेया के मुंह से लम्बी ओह्ह्ह निकल ही गयी। उसके कपोल पर प्रस्वेद की बूँदें बन गयी थीं। जाहिर था उसे काफी दर्द महसूस हो रहा था। पर श्रेया ने अपने होँठ भींच कर और आँखें मूँद कर उसे सहन किया और जीतू जी को अपने कूल्हे ऊपर उठाकर उनको लण्ड और अंदर डालने के लिए बाध्य किया। धीरे धीरे प्रिय और प्रियतमा के बिच एक तरह से चोदने और चुदवाने की जुगल बंदी शुरू हुई। हालांकि श्रेया को काफी दर्द हो रहा था पर वह एक आर्मी अफसर की बेटी थी। दर्द को जाहिर कैसे करती? जीतूजी के धक्के को श्रेया उतनी ही फुर्ती से ऊपर की और अपना बदन उठाकर जवाब देती। उसके मन में बस एक ही इच्छा थी की वह कैसे अपने प्रियतम को ज्यादा से ज्यादा सुख दे जिससे की उनका प्रियतम उनको ज्यादा से ज्यादा आनंद दे सके। जीतू जी मोटा और लम्बा लण्ड जैसे ही श्रेया की सनकादि चूत के योनि मार्ग में घुसता की दो आवाजें आतीं। एक श्रेया की ओहह ह... और दुसरी जीतूजीके बड़े और मोटे अंडकोष की श्रेया की दो जाँघों के बिच में छपाट छपाट टकरा ने की आवाज। यह आवाजें इतनी सेक्सी और रोमांचक थीं की दोनों का दिमाग सिर्फ चोदने परही केंद्रित था। देर रात तक अभिजीत सिंह और श्रेया ने मिलकर ऐसी जमकर चुदाई की जो की शायद अभिजीत सिंह ने भी कभी किसी लड़की से नहीं की थी। श्रेया के लिए तो वह पहला मौक़ा था।

कॉलेज और कॉलेज में कई बार कई लड़कों से उसकी चुम्माचाटी हुई थी पर कोई भी लड़का उसे जँचा नहीं। अभिजीत सिंह की बात कुछ और ही थी। अच्छी तरह चुदाई होने के बाद आधी रात को श्रेया ने अभिजीत सिंह से कहा, "मैं आपसे एक बार नहीं हर रोज चुदवाना चाहती हूँ। मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ।"

अभिजीत सिंह उस लड़की श्रेया को देखतेही रहे। कुछ सोच कर उन्होंने श्रेया से कहा, "देखो श्रेया। मैं एक खुला आजाद पंछी हूँ। मुझे बंधन पसंद नहीं। मैं यह कबुल करता हूँ की आपके पहले मैंने कई औरतों को चोदा है। मैं शादी के बंधन में फँस कर यह आजादी खोना नहीं चाहता इसके अलावा तुम तो शायद जानती ही हो की मैं इन्फेंट्री डिवीज़न में हूँ। मेरा काम ही लड़ना है। मेरी जान का कोई भरोसा नहीं। अगले महीने ही मुझे कश्मीर जाना है। मुझे पता नहीं मैं कब लौटूंगा या लौटूंगा भी की नहीं l मुझसे शादी करके आप को वह जिंदगी नहीं मिलेगी जो आम लड़की चाहती है। पता नहीं, शादी के चंद महीनों में ही आप बेवा हो जाओ। इस लिए यह बेहतर है की आपका जब मन करे मुझे इशारा कर देना। हम लोग जम कर चुदाई करेंगे। पर मेरे साथ शादी के बारे में मत सोचो।"

श्रेया हंस कर बोली, "जनाब, मैं भी आर्मी के बड़े ही जाँबाज़ अफसर की बेटी हूँ। मेरे पिताजी ने कई लड़ाइयाँ लड़ी हैं और मरते मरते बचे हैं। रही बात आपकी आजादी की तो मैं आपको यह वचन देती हूँ की मैं आपको शादी के बाद भी कभी भी किसी भी महिला से मिलने और उनसे कोई भी तरह का शारीरिक या मानसिक रिश्ता बनाने से रोकूंगी नहीं l

यह मेरा पक्का वादा है। मैं वादा करती हूँ की मुझसे शादी करने के बाद भी आप आजाद पंछी की तरह ही रहोगे। बल्कि अगर कोई सुन्दर लड़की आपको जँच गयी, तो मैं उसे आपके बिस्तर तक पहुंचाने की जी जान लगा कर कोशिश करुँगी l पर हाँ, मेरी भी एक शर्त है की आप मुझे जिंदगी भर छोड़ोगे नहीं और सिर्फ मेरे ही पति बन कर रहोगे। आप किसी भी औरत को मेरे घर में बीबी बनाकर लाओगे नहीं।"

अभिजीत सिंह हंस पड़े और बोले, "तुम गजब की खूबसूरत हो। और भी कई सुन्दर, जवान और होनहार लड़के और आर्मी अफसर हैं जो तुमसे शादी करने के लिए जी जान लगा देंगे। फिर मैं ही क्यों?"

तब श्रेया ने अभिजीत सिंह के गले लगकर कहा, "डार्लिंग, क्यूंकि मैं तुम्हारी होने वाली बीबी हूँ और तुम लाख बहाने करो मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूँ। मुझे तुम्हारे यह मोटे और तगड़े लण्ड से रोज रात चुदवाना है, तब तक की जब तक मेरा मन भर ना जाए। और मैं जानती हूँ, मेरा मन कभी नहीं भरेगा। मैं तुम्हारे बच्चों की माँ बनना चाहती हूँ। अब तुम्हारी और कोई बहाने बाजी नहीं चलेगी। बोलो तुम मुझसे शादी करोगे या नहीं?"

अभिजीत सिंह ने अपनी होने वाली पत्नी श्रेया को उसी समय आपने बाहुपाश में लिया और होँठों को चूमते हुए कहा, "डार्लिंग मैंने कई औरतों को देखा है, जाना है और चोदा भी है। पर मैंने आज तक तुम्हारे जैसी बेबाक, दृढ निश्चयी और दिलफेंक लड़की को नहीं देखा। मैं तुम्हारा पति बनकर अपने आप को धन्य महसूस करूंगा l मैं भी तुम्हें वचन देता हूँ की मैं भी तुम्हें एक आजाद पंछी की तरह ही रखूंगा और तम्हें भी किसी पराये मर्द से शारीरिक या मानसिक सम्बन्ध बनाने से रोकूंगा नहीं। पर हाँ मेरी भी यह शर्त है की तुम हमेशा मेरी ही पत्नी बनकर रहोगी और पति का दर्जा और किसी मर्द को नहीं दोगी। " उस बात के कुछ ही महीनोंके बाद अभिजीत सिंह और श्रेया उन दोनों के माँ बाप की रज़ामंदी के साथ शादी के बंधन में बंध गए। यह थी कर्नल साहब और उनकी पत्नी श्रेया की प्रेम कहानी।

जिस दिन कर्नल साहब की औपचारिक रूप से रोहित और उसकी पत्नी अपर्णा से पहली बार रोहित और अपर्णा के घर में मुलाक़ात हुई और कर्नल साहब का पहले गरम और बाद में अपर्णा को देख कर नरम होना हुआ l उस रात को रोहित ने अपनी पत्नी अपर्णा को हलके फुल्के लहजे में कहा, "लगता है, कर्नल साहब पर तुम्हारा जादू चल गया है। आज तो तुम्हें वह बड़े घूर घूर कर देख रहे थे। तुम भी तो कर्नल साहब को देख कर चालु हो गयी थी, कहीं तुम भी तो?" अपर्णा हँस कर नकली गुस्से में रोहित की छाती पर हल्का सा घूँसा मार कर बोली, "धत्त! क्या पागलों जैसी बात कर रहे हो। ऐसी कोई बात नहीं है। कर्नल साहब हमारे पडोसी हैं। अगर मैं इतनी लम्बी और मोटी उनके सामने बैठूंगी या खड़ी रहूंगी, तो उनको मेरे अलावा कुछ दिखाई भी तो नहीं देगा। तब तो वह मुझे ही देखेंगे ना? तुम ना हर बार कुछ ना कुछ उलटा पुल्टा सोचते रहते हो। तुम्हें हमेशा कोई ना कोई नयी शरारत सूझती रहती है। वह बड़े चुस्त और तंदुरस्त हैं। रोज सुबह वह कैसी दौड़ लगाते हैं? और तुम? देखो तुम्हारी यह तोंद कैसी निकली हुई है? ज़रा कर्नल साहब से कुछ सीखो।" रोहित ने महसूस किया की उसकी बीबी अपर्णा भी कर्नल साहब के तेज तर्रार व्यक्तित्व और कसरत के कारण सुगठित बदन से काफी प्रभावित लग रही थी। कुछ देर बाद अपर्णा ने पूछ ही लिया, "कर्नल साहब क्या करते हैं?" रोहित ने कहा, "आर्मी में कर्नल हैं। बड़े ही सुसम्मानित अफसर हैं। उनको कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया है। कहते हैं की लड़ाई में वह अपनी जान पर खेल जाते हैं। कई बार उन्होंने युद्ध में अकेले ही बड़ी से बड़ी चुनौतियों का मुकाबला किया है। कई मैडल उन्होंने इतनी कम उम्र में ही पा लिए हैं। जल्द ही हमें अब उनके घर जाना ही होगा। बाकी सब अगली बार उनसे मिलते ही या तो तुम उनसे सीधे ही पूछ लेना या फिर मैं उनको पूछ कर तुम्हें बता दूंगा।"

अपर्णा अपने पति की बात सुनकर थोड़ी सकपका गयी और बोली, "ऐसी कोई बात नहीं। मैं तो वैसे ही पूछ रही थी।" वैसे ही आते जाते जब भी कभी रोहित से मुलाकात होती तो कर्नल साहब उसे बड़े ही अंतरंग भाव से अपने घर आने का न्योता देना ना चूकते। एक रात को रोहित ने अपर्णा से कहा, "आज कर्नल साहब मिले थे। पहले उन्होंने कई बार मुझे तुम्हारे साथ उनके घर आने के लिए आग्रह किया था। पर आज तो वह अड़ ही गए। उन्होंने कहा की अगर हम उनके घर नहीं गए तो वह नाराज हो जाएंगे।" अपर्णा ने कहा, "हाँ, आज श्रेया जी भी मुझे मार्किट में मिली थीं। वह मुझे बड़ा आग्रह कर रही थी की हम उनके घर जाएँ। मुझे लगता है की अब हमें उनके घर जल्द ही जाना चाहिए।" रोहित और अपर्णा ने कर्नल साहब को फ़ोन कर अगले शुक्रवार की शाम उनके वहाँ पहुँचने का प्रोग्राम बनाया। उनके पहुँचते ही कर्नल साहबने व्हिस्की, रम, जिन, बियर इत्यादि पेय पेश किये, जबकि उनकी पत्नी श्रेया ने साथ साथ कुछ हलके फुल्के नमकीन आदि पहले से ही सजा के रखे हुए थे। कर्नल साहब और अपने पति रोहित के आग्रह के बावजूद, अपर्णा ने कोई भी कड़क पेय लेने से साफ़ मना कर दिया। हालांकि वह कभी कभी बियर पी लेती थी।

रोहित ने देखा की कर्नल साहब को यह अच्छा नहीं लगा पर वह चुप रहे। कर्नल साहब की पत्नी श्रेया ने सब का मन रखने के लिए एक ग्लास में बियर डाला। कर्नल साहब और रोहित ने व्हिस्की के गिलास भरे।

जब प्राथमिक औपचारिक बातें हो गयीं तब अपर्णा के बार बार पूछने पर कर्नल साहब ने बताया की वह आतंकी सुरक्षाबल में कमांडो ग्रुप में कर्नल थे। उन्होंने कई बार युद्ध मैं शौर्य प्रदर्शन किया था जिसके कारण उन्हें कई मेडल्स मिले थे। रोहित की पत्नी अपर्णा के पिताजी भी आर्मी में थे और आर्मी वालों को अपर्णा बड़े सम्मान से देखती थी। अपर्णा की यह शिकायत हमेशा रही की वह आर्मी में भर्ती होना चाहती थी पर उन दिनों आर्मी में महिलाओं की भर्ती नहीं होती थी। उसे देश सेवा की बड़ी लगन थी और वह एन.सी.सी. में कडेट रह चुकी थी। जाहिर है उसे आर्मी के बारे में बहोत ज्यादा उत्सुकता और जिज्ञाषा रहती थी। जब अपर्णा बड़ी उत्सुकता से कर्नल साहब को उनके मेडल्स के बारे में पूछने लगी तो कर्नल साहब ने खड़े होकर बड़े गर्व के साथ एक के बाद एक उन्हें कौन सा मैडल कब मिला था और कौन से जंग में वह कैसे लड़े थे और उन्हें कहाँ कहाँ घाव लगे थे, उसकी कहानियां जब सुनाई तो अपर्णा की आँखों में से आंसू झलक उठे। कर्नल साहब भी युद्ध के उनके अनुभव के बारेमें अपर्णा को विस्तार से बताने लगे। आधुनिक युद्ध कैसे लड़ा जाता है और पुराने जमाने के मुकाबले नयी तकनीक और उपकरण कैसे इस्तेमाल होते हैं वह कर्नल साहब ने रोहित की पत्नी अपर्णा को भली भाँती समझाया। अपर्णा के मन में कई प्रश्न थे जो एक के बाद एक वह कर्नल साहब को पूछने लगी। कर्नल साहब भी सारे प्रश्नों का बड़े धैर्य, गंभीरता और ध्यान से जवाब दे रहे थे।

उस शाम रोहित ने महसूस किया की उसकी पत्नी अपर्णा कर्नल साहब के शौर्य और वीरता की कायल हो गयी थी। काफी देर तक कर्नल साहब की पत्नी श्रेया और रोहित चुपचाप अपर्णा और कर्नल साहब की बातें सुनते रहे। कुछ देर बाद रोहित जब बोर होने लगा तो उसने कर्नल साहब की पत्नी श्रेया से पूछा, "श्रेया जी, आप क्या करती हैं?" श्रेया ने बताया की वह भी आर्मी अफसर की बेटी हैं और अब वह आर्मी पब्लिक कॉलेज में सामाजिक विज्ञान (पोलिटिकल साइंस) पढ़ाती हैं। बात करते करते रोहित को पता चला की कर्नल साहब की बीबी श्रेया ने राजकीय विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की है और वह राजकीय मसलों पर काफी कुछ पढ़ती रहती हैं। श्रेया बोलनेमें कुछ शर्मिलि थीं। रोहित की बीबी अपर्णा की तरह वह ज्यादा नहीं बोलती थी। पर दिमाग की वह बड़ी कुशाग्र थी। उनकी राजकीय समझ बड़ी तेज थी। रोहित की पत्नी अपर्णा और कर्नल साहब आर्मी की बातों में व्यस्त हो गए तो रोहित और श्रेया अपनी बातों में जुट गए। श्रेया के बदन की सुकोमल और चिकनी त्वचा देखने में बड़ी आकर्षक थी। उसका बदन और खासकर चेहरा जैसी शीशे का बना हो ऐसे पारदर्शक सा लगता था। उसका चेहरा एक बालक के सामान था। वह अक्सर ब्यूटी पार्लर जाती थी जिसके कारण उसकी आँखों की भौंहें तेज कटार के सामान नुकीली थीं। उसके शरीर का हर अंग ना तो पतला था और ना ही मोटा। हर कोने से वह पूरी तरह सुआकार थी। उसके स्तन बड़े और फुले हुए थे। उसकी गाँड़ की गोलाई और घुमाव खूबसूरत थी। रोहित को उसके होँठ बड़े ही रसीले लगे। रोहित को ऐसा लगा जैसे उन में से हरदम रस बहता रहता हो। उससे भी कहीं ज्यादा कटीली थी श्रेया की नशीली आँखें। उन्हें देखते ही ऐसा लगता था जैसे वह आमंत्रण दे रही हों।

रोहित और कर्नल साहब की पत्नी श्रेया ने जब राजकीय बातें शुरू की तो रोहित को पता चला की वह राजकीय हालात से भली भाँती वाकिफ थीं। बात करते हुए श्रेया ने कहा की वह काफी समय से रोहित से मिलने के लिए बड़ी उत्सुक थी। उसने रोहित की पत्नी अपर्णा से रोहित के बारे में सुना था। श्रेया ने रोहित के कई लेख पढ़े थे और वह रोहित की लिखनी से काफी प्रभावित थी।

जब रोहित ने श्रेया से बात शुरू की तब उसे पता चला की बाहर से एकदम गंभीर, संकोच-शील और अमिलनसार दिखने वाली श्रेया वाकई में काफी बोल लेती थी और कभी कभी मजाक भी कर लेती थी। जब उन्होंने पोलिटिकल विज्ञान और इतिहास की बातें शुरू की तो श्रेया अचानक वाचाल सी हो गयी। रोहित को ऐसा भी लगा की शायद अपने पति कर्नल साहब के प्रति उनके मन में कुछ रंजिश सी भी है। रोहित ने मन ही मन तय किया की वह जल्द ही पता करेगा की उन दोनों में रंजिश का क्या कारण हो सकता था। समय बीतता ही गया पर कर्नल साहब और रोहित की पत्नी अपर्णा को जैसे समय का कोई पता ही नहीं था। कर्नल साहब की बातें ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थीं और अपर्णा एक के बाद एक बड़ी ही उत्सुकता से प्रश्न पूछ कर उनको गजब का प्रोत्साहन देरही थी। इधर रोहित और श्रेया की बातें जल्द ही ख़त्म हो गयीं। रोहित अपनी घडी को और देखने लगा तब श्रेया ने एक बात कही जिससे शायद श्रेया की रंजिश के बारे में रोहित को कुछ अंदाज हुआ। कर्नल साहब की पत्नी श्रेया ने कहा, "इनका (कर्नल साहब का) व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा अनोखा है की कोई भी सुन्दर स्त्री से यह जब बात करने लगते हैं तब उनकी बातें ख़तम ही नहीं होतीं। और जब कोई सुन्दर स्त्री उनसे बात करने लगती है तो वह स्त्री भी उनसे सवाल पूछते थकती नहीं है। इनकी बातें ही इतनी रसीली और नशीली होती हैं की बस।"

रोहित कर्नल साहब की बीबी श्रेया की बात सुनकर समझ नहीं पाया की श्रेया अपने पति की तारीफ़ कर रही थी या शिकायत। जाहिर है की पत्नी कितनी ही समझदार क्यों ना हो, कहीं ना कहीं जब किसी और औरत के साथ अपने पति के जुड़ने की बात आती है तो वह थोड़ा नकारात्मक तो हो ही जाती है। उनकी बात सुनकर रोहित हँस पड़ा और बोला, "देखिये ना श्रेया जी, हम दोनों भी तो काफी समय से बातचीत में इतने तल्लीन थे की समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा। मैं भी आपके पति जैसा ही हूँ। बस एक फर्क है। आप जैसी खूबसूरत और सेक्सी औरत को देखकर मैं भी बोलता ही जा रहा हूँ। पर क्या इसमें मेरा कसूर है? कौन भला आपकी और आकर्षित नहीं होगा? मैं भी तो अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रहा हूँ।" फिर थोड़ा रुक कर रोहित ने कहा, "श्रेया जी मेरी बात का कहीं आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना?"

श्रेया ने रोहितकी और शर्माते हुए तिरछी नज़रों से देखा और मुस्कुरायी और बोली, "वाह रे रोहित साहब, आप ने तो एक ही वाक्य में मुझे बहुत कुछ कह दिया! पहले तो आप ने बातों बातों में ही अपनी तुलना मेरे पति के साथ कर दी। फिर आपने मुझे सेक्सी भी कह डाला। और आखिर में आप ने यह भी कह दिया की आप मेरी और आकर्षित हैंl पर ज़रा ध्यान रखिये। आप कांटो की राह पर मत चलिए, कहीं पाँव में कांटें न चुभ जाएँ। आपका मुझे पता नहीं पर मेरे पति को आप नहीं जानते। वह इतने रोमांटिक हैं की अच्छी से अच्छी औरतें भी उनकी बातों में आ जाती हैं। देखिये कहीं आपकी पत्नी उनके चक्कर में ना फँसे।" रोहित जोर से हँस पड़ा। उसने पट से जवाब दिया, "मुझे कोई चिंता नहीं है श्रेया जी। पहले तो मैं मेरी पत्नी को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ। वह ऐसे ही किसी की बातों में फँसने वाली नहीं है। दूसरे अगर मान भी लिया जाए की ऐसा कुछ हो सकता है तो आप हैं ना मेरा बीमा। अगर उन्होंने मेरी पत्नी को फाँस दिया तो वह कहाँ बचेंगे?" इतना कह कर रोहित चुप हो गया। श्रेया रोहित की बात जरूर समझ गयी होंगी, पर कुछ न बोली।

कर्नल साहब के घर पर हुई पहली मुलाकात के चंद दिन बाद रोहित की पत्नी अपर्णा के पिता, जो एक रिटायर्ड आर्मी अफसर थे, का हार्ट अटैक के कारण अचानक ही स्वर्गवास हो गया। अपर्णा का अपने पिता से काफी लगाव था। पिता के देहांत के पहले रोज अपर्णा उनसे बात करती रहती थी। देहांत के एक दिन पहले ही अपर्णा की पिताजी के साथ काफी लम्बी बातचीत हुई थी। पिताजी के देहांत का समाचार मिलते ही अपर्णा बेहोश सी हो गयी थी। रोहित बड़ी मुश्किल से उसे होश में ला पाया था। अपर्णा के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। अपर्णा की माताजी का कुछ समय पहले ही देहांत हुआ था। पिताजी ने कभी अपर्णा को माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। रोहित अपनी पत्नी अपर्णा को लेकर अपने ससुराल पहुंचा। वहाँ भी अपर्णा के हाल ठीक नहीं थे। वह ना खाती थी ना कुछ पीती थी। पिताजी के क्रिया कर्म होने के बाद जब वह वापस आयी तो उसका मन ठीक नहीं था। रोहित ने अपर्णा का मन बहलाने की बड़ी कोशिश की पर फिर भी अपर्णा की मायूसी बरकरार थी। वह पिता जी की याद आने पर बार बार रो पड़ती थी। जब यह हादसा हुआ उस समय कर्नल साहब और उनकी पत्नी श्रेया दोनों श्रेया के मायके गए हुए थे। श्रेया अपने पिताजी के वहाँ थोड़े दिन रुकने वाली थी। जिस दिन कर्नल साहब अपनी पत्नी श्रेया को छोड़ कर वापस आये उसके दूसरे दिन कर्नल साहब की मुलाक़ात रोहित से घर के निचे ही हुई। कर्नल साहब अपनी कार निकाल रहे थे। वह कहीं जा रहे थे। रोहित को देख कर कर्नल साहब ने कार रोकी और रोहित से समाचार पूछा तो रोहित ने अपनी पत्नी अपर्णा के पिताजी के देहांत के बारे में कर्नल साहब को बताया।

कर्नल साहब सुनकर काफी दुखी हुए। उस समय ज्यादा बात नहीं हो पायी। उसी दिन शामको कर्नल साहब रोहित और अपर्णा के घर पहुंचे। श्रेया कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी थी।

रोहित ने दरवाजा खोल कर कर्नल साहब का स्वागत किया। कर्नल साहब आये है यह सुनकर अपर्णा बाहर आयी तो कर्नल साहब ने देखा की अपर्णा की आँखें रो रो कर सूजी हुई थीं। कर्नल साहब के लिए अपर्णा रसोई घर में चाय बनाने के लिए गयी तो उसको वापस आने में देर लगी। रोहित और कर्नल साहब ने रसोई में ही अपर्णा की रोने की आवाज सुनी तो कर्नल साहब ने रोहित की और देखा। रोहित अपने कंधे उठा कर बोला, "पता नहीं उसे क्या हो गया है। वह बार बार पिताजी की याद आते ही रो पड़ती है। मैं हमेशा उसे शांत करने की कोशिश करता हूँ पर कर नहीं पाता हूँ। चाहो तो आप जाकर उसे शांत करने की कोशिश कर सकते हो। हो सकता है वह आपकी बात मान ले।" रोहित ने रसोई की और इशारा करते हुए कर्नल साहब को कहा। कर्नल साहब उठ खड़े हुए और रसोई की और चल पड़े। रोहित खड़ा हो कर घर के बाहर आँगन में लॉन पर टहलने के लिए चल पड़ा।

कर्नल साहब ने रसोई में पहुँचते ही देखा की अपर्णा रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ी सिसकियाँ ले कर रो रही थी। अपर्णा की पीठ कर्नल साहब की और थी। कर्नल साहब ने पीछे से धीरे से अपर्णा के कंधे पर हाथ रखा। अपर्णा मूड़ी तो उसने कर्नल साहब को देखा। उन्हें देख कर अपर्णा उनसे लिपट गयी और अचानक ही जैसे उसके दुखों का गुब्बारा फट गया। वह फफक फफक कर रोने लगी। अपर्णा के आँखों से आंसूं फव्वारे के सामान बहने लगे। कर्नल साहब ने अपर्णा को कसके अपनी बाँहों में लिया और अपनी जेब से रुमाल निकाला और अपर्णा की आँखों से निकले और गालों पर बहते हुए आंसू पोंछने लगे। उन्होंने धीरे से पीछे से अपर्णा की पीठ को सहलाते हुए कहा, "अपर्णा, तुमने कभी किसी आर्मी अफसर की लड़ाई में मौत होते हुए देखि है?" अपर्णा ने अपना मुंह ऊपर उठाकर कर्नल साहब की और देखा। रोते रोते ही उसने अपनी मुंडी हिलाते हुए इशारा किया की उसने नहीं देखा। तब कर्नल साहब ने कहा, "मैंने एक नहीं, एक साथ मेरे दो भाइयों को दुश्मन की गोली यों से भरी जवानी में शहीद होते हुए देखा है। मैंने मेरी दो भाभियों को बेवा होते देखा है। मैं उनके दो दो बच्चों को अनाथ होते हुए देखा है। और जानती हो उनके बच्चों ने क्या कहा था?" कर्नल साहब की बात सुनकर अपर्णा का रोना बंद हो गया और वह अपना सर ऊपर उठाकर कर्नल साहब की आँखों में आँखें डालकर देखने लगी पर कुछ ना बोली। फिर कर्नल साहब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "मैं जब बच्चों को ढाढस देने के लिए गया, तो दोनों बच्चे मुझसे लिपट कर कहने लगे की वह भी लड़ाई में जाना चाहते है और दुश्मनों को मार कर उनके पिता का बदला जब लेंगे तब ही रोयेंगे। जो देश के लिए कुर्बानी देना चाहते हैं वह वह रो कर अपना जोश और जस्बात आंसूं के रूप में जाया नहीं करते।"

कर्नल साहब की बात सुनकर अपर्णा का रोना और तेज हो गया। वह कर्नल साहब से और कस के लिपट गयी बोली, "मेरे पिता जी भी लड़ाई में ही अपनी जान देना चाहते थे। उनको बड़ा अफ़सोस था की वह लड़ाई में शहीद नहीं हो पाए।" कर्नल साहब ने तब अपर्णा का सर चूमते हुए कहा, "अपर्णा डार्लिंग, जो शूरवीर होते हैं, उनकी मौत पर रो कर नहीं, उनके असूलों को अमल में लाकर, इनके आदर्शों की राह पर चलकर, जो काम वह पूरा ना कर पाए इन कामों को पूरा कर उनके जीवन और उनके देहांत का गौरव बढ़ाते हैं। यही उनके चरणों में हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके क्या उसूल थे? उन्होंने किस काम में अपना जीवन समर्पण किया था यह तो बताओ मुझे, डिअर?"

उनकी बात सुनकर अपर्णा कुछ देर तक कर्नल साहब से लिपटी ही रही। उसका रोना धीरे धीरे कम हो गया। फिर वह अपने को सम्हालते हुए कर्नल साहब से धीरे से अलग हुई और उनकी और देख कर उनका हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, "कर्नल साहब, आप ने मुझे चंद शब्दों में ही जीवन का फलसफा समझा दिया। मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ?" कर्नल साहब ने अपर्णा की हथेली दबाते हुए कहा, "तुम मुझे जीतू, कह कर बुलाओगी तो मेरा अहसान चुकता हो जाएगा।" अपर्णा ने कहा, "कर्नल साहब मेरे लिए आप एक गुरु सामान हैं। मैं आपको जीतू कह कर कैसे बुला सकती हूँ?" कर्नल साहब ने कहा, "चलो ठीक है। तो तुम मुझे जीतू जी कह कर तो बुला सकती हो ना?" अपर्णा कर्नल साहब की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली, "जीतूजी, आपका बहुत शुक्रिया, मुझे सही रास्ता दिखाने के लिए। मेरे पिताजी ने अपना जीवन देश की सेवा में लगा दिया था। उनका एक मात्र उद्देश्य यह था की हमारा देश की सीमाएं हमेशा सुरक्षित रहे। उस पर दुश्मनों की गन्दी निगाहें ना पड़े। उनका दुसरा ध्येय यह था की देश की सेवा में शहीद हुए जवानों के बच्चे, कुटुंब और बेवा का जीवन उन जवानों के मरने से आर्थिक रूप से आहत ना हो।"

कर्नल ने कहा, "आओ, हम भी मिलकर यह संकल्प करें की हम हमारी सारी ताकत उन के दिखाए हुए रास्ते पर चलने में ही लगा दें। हम निर्भीकता से दुश्मनों का मुकाबला करें और शहीदों के कौटुम्बिक सुरक्षा में अपना योगदान दें। यही उनके देहांत पर उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उनका सच्चा श्राद्ध होगा।" अपर्णा की आँखों में आँसू आ गये। अपर्णा कर्नल से लिपट गयी और बोली, "जीतूजी, जितना योगदान मुझसे बन पडेगा मैं दूंगी और उसमें आपको मेरा पथ प्रदर्शक और मार्ग दर्शक बनना होगा।" कर्नल ने मुस्कराते हुए कहा, "यह मेरा सौभाग्य होगा। पर डार्लिंग, मुझमें एक कमजोरी है और मैं तुम्हें इससे अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। जब मैं तुम्हारी सुन्दरता, जांबाज़ी और सेक्सीपन से रूबरू होता हूँ तो अपने रंगीलेपन पर नियत्रण नहीं रख पाता हूँ। मैं आपका पूरा सम्मान करता हूँ पर मुझसे कभी कहीं कोई गलती हो जाए तो आप बुरा मत मानना प्लीज?"

अपर्णा ने भी शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "आप के रँगीलेपन को मैंने महसूस भी किया और वह दिख भी रहा है।" क्या अपर्णा का इशारा कर्नल की टाँगों के बिच के फुले हुए हिस्से की और था? पता नहीं। शायद अपर्णा ने जब कर्नल साहब को जफ्फी दी तो जरूर उसने कर्नल साहब का रँगीलापन महसूस किया होगा।

जब अपर्णा कर्नल साहब के साथ चाय लेकर मुस्काती हुई ड्राइंग रूम में वापस आयी तो उसे मुस्काती देख कर रोहित को यकीन ही नहीं हुआ की यह वही उसकी पत्नी अपर्णा थी जो चंद मिनट पहले अपना रोना रोक ही नहीं पा रही थी।

रोहित ने कर्नल साहब की और मुड़ कर कहा, "कर्नल साहब, आपने अपर्णा पर क्या जादू कर दिया? मुझे यकीन ही नहीं होता की आपने कैसे अपर्णा को मुस्काना सीखा दिया। मैं आपका बहुत बहुत शुक्र गुजार हूँ। अपर्णा को मुस्कराना सीखा कर आज आपने मेरी जिंदगी में नया रंग भर दिया है। आपने तो मेरी बिगड़ी हुई जिंदगी बना दी मेरी परेशानी दूर कर दी।"

कर्नल साहब ने हंस कर कहा, "रोहित भाई, मैंने अपर्णा को हँसता कर दिया है इसका मतलब यह नहीं की आप उस पर अचानक ही चालु हो जाओ। रात को उसे ज्यादा परेशान मत करना। उसे थोड़ा आराम करने देना।"

कर्नल साहब की बात सुनकर रोहित हँस पड़ा।

रोहित की पत्नी अपर्णा शर्म से अपना मुंह चुनरी में छुपाती हुई रसोई की और भागते हुए बोली, "जीतूजी अब बस भी कीजिये। मेरी ज्यादा खिचाई मत करिये।"​
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