Update 06
रोहित और कर्नल साहब पता लगाने की कोशिश कर रहे थे की रिजल्ट कब आएगा, पर जवाब एकदम वही रटा रटाया मिलता, "जैसे ही तारीख तय होगी तो आपको बता दिया जाएगा।"
काफी दिनों के बीत जाने के बाद भी रिजल्ट के कोई आसार नहीं थे। करीब बिस दिन बीत गए इस बात को।
एक दिन रोहित सुबह करीब साढ़े आठ बजे ऑफिस जाने की तैयारी में थे। वह डाइनिंग टेबल पर बैठ नाश्ता कर रहे थे की अचानक घर की घंटी बजी।
अपर्णा ने जैसे ही दरवाजा खोला की कर्नल साहब को हाथ में एक अखबार थामे सामने खड़े हुए पाया। उनका मुंह एकदम दुखी और कुम्हलाया हुआ था। अपर्णा ने जब देखा की कर्नल साहब एकदम हतोत्साहित, उदास और हाथ में अखबार लिए हुए देखा तो अपर्णा की जान हथेली में आगयी। जरूर कोई बहुत दुःख भरा समाचार होगा।
रोहित भी टेबल के पास खड़े हो गए और बोले, "कर्नल साहब, क्या हुआ? आप इतने उदास क्यों लग रहे हो? क्या कोई दुःख भरा समाचार है?" यह सुनकर कर्नल साहब बड़े दुखी दिखाई दिए। वह अपर्णा की और देख कर बोले, मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था। यह क्या हो गया?"
अपर्णा की सांस रुक गयी। वह बोली, "पर जीतूजी बताओ ना आखिर बात क्या है?"
कर्नल साहब ने दुःख भरी आवाज में कहा, "रिजल्ट आ गया है। पर अपर्णा का नाम पासिंग लिस्ट में नहीं है।" ऐसा कह कर वह पास में रखे हुए सोफे पर बड़ी मुश्किल से बैठ गए। समाचार सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया।
रोहित ने कहा, "पर ऐसा कैसे हो सकता है? अपर्णा ने तो कहा था उसका पेपर बहुत अच्छा गया है?"
कर्नल साहब ने रोहित की और दुःख भरी नज़रों से देखा और कहा, "मेरी सारी महेनत पानी में गयी। अफ़सोस मैं अपर्णा को गणित में पास नहीं करवा पाया।"
अपर्णा एकदम कर्नल साहब के पास आयी और उनका हाथ थामा और बोली, "कोई बात नहीं कर्नल साहब। दुखी मत होइए। इस बात से जिंदगी ख़तम नहीं हो गयी। हम दूसरी बार कोशिश करेंगे।"
रोहित ने कर्नल साहब के हाथसे अखबार लिया और बोले, "ऐसा हो नहीं सकता। कहीं ना कहीं अखबार की छपाई में भी गलती हो सकती है। ऐसा कर जब रोहित ने अखबार खोला तो पाया की पहले ही पेज पर अपर्णा की बड़ी फोटो छपी थी और उसके निचे लिखा था, "गणित में सबसे सर्वोत्तम अंक दिल्ली की एक शादी शुदा महिला अपर्णा वर्मा को।" यह देख कर रोहित की आँखें फटी की फटी ही रह गयी।
रोहित ने कर्नल साहब की और आश्चर्य से देखा तो कर्नल साहब एकदम हँस पड़े। उन्होंने आगे झुक कर अपर्णा के घुटनों को दोनों हाथों में पकड़ कर ऊपर उठा लिया और बोले, "अरे पागल, तुम पास नहीं हुई, तुम पुरे देश में टॉप आयी हो!"
अपर्णा को कर्नल साहब की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने तुरंत अपने पति रोहित के हाथों से अखबार छीन लिया और पहले ही पेज पर अपना फोटो देख कर स्तब्ध रह गयी। कर्नल साहब की बाहों में ही रहते हुए रोहित की पत्नी अपर्णा ने कर्नल साहब को नकली गुस्से भरे घूंसे मारने शुरू किये और बोली, "जीतूजी, आपने तो मेरा हार्ट फ़ैल ही कर दिया था।"
कर्नल साहब ने कहा, "हार्ट फ़ैल हो तुम्हारे दुश्मनों का। तुम ना सिर्फ फर्स्ट आयी हो, तुमने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। अपर्णा डार्लिंग आज तुमने तो कमाल कर दिया।"
अपर्णा ने जीतूजी के सर पर चुम्मा करते हुए कहा, "यह कमाल मेरा नहीं आपका है। अगर आप मुझे पढ़ाने के लिए इतनी महेनत ना करते तो मैं टॉप करने की बात ही क्या, पास भी नहीं हो पाती।"
रोहित ने कहा, "कर्नल साहब, अपर्णा ठीक कह रही है। उसे गणित विषय से ही नफरत थी लेकिन आप ने उस नफरत को मोहब्बत में बदल दिया।"
अपर्णा ने गाउन पहन रखा था। उस का पेट और उसके निचे का हस्सा कर्नल साहब के मुंह के पास ही था। कर्नल साहब ने अपर्णा के पेट पर गाउन के ऊपर से ही चुम्मी करते हुए कहा, "ठीक है, मैंने महेनत की, पर अपर्णा ने पूरा मन लगा कर पढ़ाई की और नतीजा आपके सामने है। आज मैं बहुत खुश हूँ। भाई रोहित, आज तो पार्टी हो जाए।"
अपर्णा ने अपने पति रोहित की और देख कर कहा, "पार्टी करने का काम आप दोनों का है। मुझे तो जब आप बुलाओगे तो मैं आ जाउंगी।"
रोहित ने कहा, "अरे भाई अब तो पार्टियों का दौर चलता ही रहेगा।"
उस पुरे दिन रोहित और अपर्णा ने घर का फ़ोन पुरे दिन बजता रहा। कई अखबार और टीवी चैनल्स के प्रतिनिधि आये। उस दिन रोहित और कर्नल साहब ने एक दिन की छुट्टी ले ली। हर इंटरव्यू में अपर्णा ने इस सफलता का श्रेय कर्नल साहब को दिया। अखबारों में अपर्णा की फोटो कर्नल साहब के साथ छपी। एक अखबार ने तो कर्नल साहब की जीवनी भी प्रकाशित कर डाली। उस दिन शाम को सब इतने थके हुए थे की आखिरी इंटरव्यू ख़तम होते ही रोहित अपर्णा और अभिजीत सिंहजी अपने घर में जाकर ढेर हो गए।
जब घर का सारा काम ख़तम कर श्रेया बैडरूम में आयी तो उनके पति जीतूजी टीवी पर समाचार देख रहे थे। हर चैनल पर थोड़ा ही सही पर कहीं ना कहीं उनकी और अपर्णा की तस्वीर या इंटरव्यू जरूर आया था। श्रेया ने बिस्तरे में आते हुए अपने पति जीतूजी को कहा, "आज तो तुमने अपना कमाल दिखा ही दिया। हर जगह तुम्हारी चेली अपर्णा तुम्हारे ही गुण गाया करती थी। मानना पड़ेगा। अपर्णा तुम्हारी पक्की चेली है। वह तुम्हारे अहसानों के निचे इतनी दबी है की तुम जो चाहो उससे ले सकते हो।"
जीतूजी ने टेढ़ी नज़रों से अपनी बीबी की और देख कर पूछा, "तुम कहना क्या चाहती हो?"
श्रेया ने कहा, "अनजान मत बनो. मैं तुम्हारी बीबी हूँ। तुम्हारी नस नस पहचानती हूँ। क्या मैं नहीं जानती तुम्हारे मन में अपर्णा के लिए क्या भाव हैं? अरे मुझसे मत छुपाओ। मैंने तुम्हें शादी के पहले वचन दिया था की अगर तुम्हें कोई सुन्दर औरत पसंद आ गयी तो मैं उसे तुम्हारे बिस्तर तक लाने में तुम्हारी पूरी मदद करुँगी। मैं आज भी मेरे उस वचन पर कायम हूँ। पर जीतूजी मैं एक बात से हैरान हूँ।"
कर्नल साहब ने पूछा, "क्या?"
श्रेया ने कहा, "आजतक कई लड़कियों और औरतों को मैंने आप पर मरते हुए देखा है। इनमें से मैं भी एक हूँ। पर आज तक मैंने आपको कोई औरत के लिए इतना तड़पते हुए नहीं देखा। पर आज आपकी आँखों में अपर्णा के लिए आपकी वह चाहत या यूँ कहिये कामुकता जो मैंने देखि है वैसी मैंने पहले कभी किसी औरत के लिए नहीं देखि? मैं जानती हूँ की अगर आपको मौक़ा मिलेगा तो आप उसे चोदना भी चाहेंगे। पतिदेव, सच बोलना। मेरी बात ठीक है ना? इस बात को ले कर मैं आप से कत्तई भी नाराज नहीं हूँ। जैसा की हमने एक दूसरे से वादा किया है, मैं आपकी ही बीबी रहूंगी। पर तुम्हारे मन में उस लड़की के लिए कुछ ना कुछ है ना? आखिर बात क्या है इस औरत में?"
जीतूजी ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लिया और उसके बूब्स की निप्पलोँ पर अपना हाथ फिराते हुए बोले, "मैं जानता हूँ। मैं मानता हूँ की मैं अपर्णा की और काफी आकर्षित हूँ। तुम्हारी बात गलत नहीं है की मैं कहीं ना कहीं मेरे मन में अपर्णा के लिए सिर्फ गुरु शिष्या के ही भाव नहीं है। देखो मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा। पर मैं चाहता हूँ की वह मेरे पास अपनी मर्जी से आये। और दूसरी बात तुमने तो तुम्हारे सवाल का जवाब खुद ही दे दिया।"
श्रेया ने अपने पति की और आश्चर्य से देखा और पूछा, " वह कैसे?"
जीतूजी, "देखो डार्लिंग, तुम मेरी पत्नी हो। तुम अगर मेरी पसंद की औरत की इर्षा करो तो यह स्वाभाविक है, और इसी लिए मैं अपर्णा की तारीफ़ तुम्हारे सामने करने में डरता हूँ। पर जब तुमने पूछ ही लिया है और जब तुम यह कह रही हो की तुम्हें इर्षा नहीं होगी तो सुनो l पहली बात यह की अपर्णा बेतहाशा खूबसूरत है। उसके व्यक्तित्व में ही सुंदरता झलकती है। उसके अंग अंग में से अनंग टपकता है। पर आश्चर्य तो यह है की उसे यह पता ही नहीं वह कितनी खूबसूरत हैl तुम्हारे सवाल के जवाब में मैं यह कहता हूँ की तुम ने खुद कहा नहीं की हर जगह अपर्णा मेरे ही गुणगान गा रही थी? इसका मतलब यह की जो इंसान दूसरे का एहसान कभी ना भूले और अपनी काबिलियत पर अहंकार ना करे ऐसे इंसान कम होते हैं और उनकी कदर करनी चाहिए l और आखिरी बात, अपर्णा का मन काँच की तरह साफ़ है। इस चीज़ से मैं बहुत आकर्षित हुआ हूँ। मैं नहीं जानता की क्या अपर्णा भी मेरी और आकर्षित हुई है या फिर मरे अहसान के निचे दबी होने के कारण मुझे बर्दाश्त कर रही है?"
कर्नल साहब की पत्नी श्रेया ने अपने हाथ की ऊँगली से चुटकी बजाते हुए कहा, "मेरे लिए तो यह चुटकी बजाने वाली बात है। तुम निश्चिन्त रहो, मैं ना सिर्फ तुम्हारी प्यारी अपर्णा के मनका हाल जान कर तुम्हें बताउंगी, बल्कि मैं पूरी कोशिश करुँगी की एक ना एक दिन मैं उसे तुम्हारे बिस्तर पर लाकर तुमसे चुदवाउंगी बल्कि मैं तुम दोनों के सामने खड़ी होकर तुम दोनो को चोदते हुए देखूंगी।" सारी बातचीत सुनकर कर्नल साहब का लण्ड एक एकदम लोहे के छड़ सामान खड़ा हो गया। उन्होंने श्रेया का गाउन हटा कर उसे नग्न कर दिया। फिर उसकी बिस्तर पर लेटी हुई नग्न काया देख कर बोले, "हनी, आज भी तुम शादी के इतने सालों के बाद भी वैसी ही कमसिन लग रही हो जैसी मैंने तुम्हें पहली बार चोदने के पहले नंगी देखा था। शादी के इतने सालों और एक बच्चे के बाद भी तुम ज़रा भी बदली नहीं हो।"
श्रेया ने नाक सिकुड़ते हुए हँसते हुए कहा, "पर तुम्हें तो फिर भी दूसरे की थाली ही ज्यादा स्वादिष्ट लगती है। "
कर्नल साहब ने अपनी तरफ से एक गुब्बारा छोड़ते हुए कहा, "अच्छा? तो कहो तो तुम उस शाम को सिनेम हॉल में रोहित जी से चिपक चिपक कर क्या कर रही थी?"
श्रेया ने अपने पति की छाती में नकली घूंसा मारते हुए शर्मा ते हुए कहा, "चलो छोडो इन सब बातों को लगता है आज तुम्हें चोदने का बड़ा मूड है।"
कर्नल साहब अपनी बीबी की बात सुनकर ठहाका मार कर हँसकर बोले, "अरे, तुम अगर अपर्णा को मेरे साथ बिस्तर पर सुलाओगी तो मैं क्या मैं तुम्हें छोडूंगा? मैं भी तुम्हारे प्यारे रोहित को लाकर तुम्हारे साथ उसी बिस्तर पर ना सुलाकर तुम्हें अगर ना चुदवाया तो मेरा नाम कर्नल अभिजीत सिंह नहीं।"
दोनों पति पत्नी एक लम्बी और धमाकेदार चुदाई में मग्न हो गए। जीतूजी चोद तो श्रेया को रहे थे पर मन में अपर्णा ही थी। श्रेया चुदवा तो अपने पति से रही थी पर लण्ड उसको रोहित का दिख रहा था।
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दूसरे दिन सुबह कर्नल साहब की पत्नी श्रेया सुबह जब उठी तो उसे कुछ थकान सी लग रही थी। पिछली रात पति के साथ हुई धमासान चुदाई के कारण वह थोड़ी थकी हुई थी। कर्नल साहब को दफ्तर में कुछ अधिक और अर्जेंट काम था इस लिए वह जल्दी ही ऑफिस चले गए थे। श्रेया अपने मन में सोच रही ही थी की वह कैसे अपर्णा से बात करे की अचानक अपर्णा का ही फ़ोन आया।
अपर्णा ने श्रेया से कहा, "दीदी, मैं तुमसे मिलकर कुछ बात करना चाहती हूँ। आप कितने बजे फ्री होंगीं? मैं कितने बजे आऊं?"
कर्नल साहब की पत्नी श्रेया सोचने लगी आखिर अपर्णा उनसे क्या बात करना चाहती होगी? वाकई में तो श्रेया को ही रोहित की पत्नी अपर्णा से बात करनी थी। श्रेया ने अपर्णा से कहा, "अपर्णा, आप जब जी चाहे आओ, पर आप जब आओ तो मेरे साथ बैठने के लिए आना। आने के बाद जाने की जल्दी मत करना। आज मेरा भी मन तुमसे बहोत बात करने को कर रहा है। मैं अभी ही उठी हूँ और थोड़ासा थकी हुई हूँ। अक्सर जब मैं थकी होती हूँ तो जीतूजी मुझे सुबह की चाय बना के पिलाते हैं। तुम अभी ही आ जाओ ना? तुम जैसी हो वैसी ही आ जाओ l तुम्हें चेंज करने की भी जरुरत नहीं है। हम आमने सामने ही तो रहते हैं। कौनसा तुम्हें बाहर जाना है? अगर तुम्हें एतराज ना हो तो आज मैं मेरे घरमें ही तुम्हारी बनायी हुई चाय पीना चाहती हूँ।"
श्रेया जी की बात सुनकर अपर्णा का चेहरा खिल उठा। इतना बढ़िया परीक्षा का परिणाम आने के बावजूद अपर्णा को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जीतूजी के साथ हुई शारीरिक हरकतों के कारण अपर्णा श्रेया के बारेमें सोचकर थोड़ा अपने आप को दोषी महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की वह कैसे श्रेया जी का सामना कर पाएगी। जब सामने चल कर श्रेया ने ही इतना अपनापन दिखाया तो अपर्णा की हिम्मत बढ़ गयी और वह थोड़ी ठीकठाक होकर बिना कपडे बदले तुरंत जाने के लिए निकल पड़ी। अपर्णा गाउन पहने हुए थी। सो वह ऐसे ही कर्नल साहब की पत्नी श्रेया को मिलने के लिए चल पड़ी।
सुबह के दस बजे होंगे। सब मर्द लोग अपने दफ्तर जा चुके थे। कॉलेज में छुट्टियां चल रही थीं।
श्रेया उठ कर बाथरूम नहाने गयी और नहाकर बाहर निकल एक तौलिये में लिपटे हुए अपने बालों को कंघीं कर रही थी की घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उन्होंने दरवाजा खोले बिना ही पूछा, "कौन है?" जब अपर्णा की आवाज सुनी तब उन्होंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और अपर्णा को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद किया।
अपर्णा ने नमस्ते किया तो श्रेया ने अपर्णा को अपनी बाँहों में लपेट लिया और बोली, "अरे हम बहने हैं। आओ गले लग जाओ।" फिर अपर्णा का हाथ पकड़ श्रेया उसे अपने बैडरूम में ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कूल्हे टिका कर बैठी और रोहित की पत्नी अपर्णा को अपने पास बैठने के लिए इशारा किया। अपर्णा तो श्रेया को देखती ही रह गयी। तौलिये में लिपटी अर्धनग्न अवस्था में श्रेया गजब का कमाल ढा रही थीं। पलंग की और इशारा कर के श्रेया बोली, "बैठो न? ऐसे मुझे क्या देख रही हो? तुम आयी तो मैं बस नहा कर निकली ही हूँ। सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, सब्जी वाले, सफाई करने वाले इत्यादि मर्द लोग आ जाते हैं। तुम थी तो मैंने दरवाजा खोला वरना इस हाल मैं किसी मर्द के सामने जाकर मुझे हार्ट अटैक थोड़े ही दिलवाना है? आज ज़रा मैं थकी हुई हूँ। कल रात देर रात हो गयी थी। आज मेरा बदन थोड़ा दर्द कर रहा है।"
अपर्णा समझ गयी की पिछली रात जीतूजी ने जरूर अपनी पत्नी श्रेया की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर अपर्णा के बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उसने जीतूजी का मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस किया था। जब जीतूजी उस लण्ड से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का क्या हाल होता होगा यह सोच कर रोहित की पत्नी अपर्णा काँप उठी। अरे बापरे! अगर कहीं ऐसी नौबत आयी की अपर्णा को श्रेया जी के पति जीतूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच मात्र से ही अपर्णा के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत में से पानी रिसने लगा। अपर्णा ने पहली बार श्रेया को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अर्ध नग्न हालत में देखा था। अपर्णा श्रेया को देखती ही रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी श्रेया जैसे ही बिन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रहीं थीं। वह अपर्णा से करीब एक या दो साल बड़ी होंगीं। पर क्या बदन! और क्या बदन का अनूठा लावण्य! अपर्णा को ज़रा भी हैरानगी नहीं हुई की उसके अपने पति रोहित जीतूजी की पत्नी श्रेया के पीछे पागल थे। श्रेया के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले हुए थे। एक हाथ में कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रहीं थीं। तौलिया ज्यादा चौड़ा नहीं था इस कारण ना सिर्फ श्रेया के उन्मत्त उरोजों का उद्दंड उभार, बल्कि उन गुम्बजोँ के शिखर के रूप में फूली हुई निप्पलोँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थीं। श्रेया ने अपर्णा को उनका बदन ताड़ते हुए देखा तो अपर्णा को अपने करीब खींचा। एक पुतले की तरह मंत्रमुग्ध अपर्णा श्रेया के खींचने से उनके इतने निकट पहुंची की दोनों एक दूसरे की धमन सी आवाज करती हुई तेज साँसे महसूस कर रहे थे। अपर्णा का तो उसी समय मन किया की वह आगे बढ़कर श्रेया की छाती के ऊपर स्थित फैले हुए उन दो मस्त टीलों पर अपनी हथेलियां रखदे और उनकी मुलायमता, सख्ती या लचक अपनी हाथों में महसूस करे। पर स्त्री सुलभ मर्यादा और इस डर से की कहीं श्रेया अपर्णा की इस हरकत को गलत ना समझले इस लिए रुक गयी।
अपर्णा को श्रेया के पति जीतूजी से इर्षा हुई जो श्रेया के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले।
जब श्रेया जी ने अपर्णा की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। अपर्णा ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर श्रेया के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी। हायरे दैया!! जिस ढंग से श्रेया अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया श्रेया की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी। श्रेया की जाँघें देखकर अपर्णा से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, "श्रेया आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जीतूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवी के वह पति हैं।" श्रेया ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर अपर्णा, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। अपर्णा भौंचक्का सी श्रेया को देखती ही रही और वह श्रेया की बाहों में उनसे जुड़ गयी। अपर्णा को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब श्रेया ने कहा, "देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ। श्रेया जी ने अपना हाथ अपर्णा के बदन पर सरकाते हुए अपर्णा के कँधों को सहलाना शुरू किया।
श्रेया ने कहा, "देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?"
अपर्णा क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। अपर्णा ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही।
तब श्रेया बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।"
अपर्णा के हाथ में हाथ ले कर अपर्णा के हाथ को सहलाते हुए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?"
अपर्णा ने श्रेया के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, "दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।"
श्रेया को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। श्रेया ने पूछा, "मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?"
अपर्णा तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और श्रेया के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जीतूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती!
मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जीतूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जीतूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।"
श्रेया ने अपर्णा को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, "अपर्णा, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जीतूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।" श्रेया जी ने अपर्णा को अपने और करीब खींचा और बोली, "अपर्णा, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?"
अपर्णा ने कहा, "दीदी, मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?"
श्रेया ने अपर्णा की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ l देखो मेरी छोटी बहन अपर्णा, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जीतूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती हैl वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?" अपर्णा ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी। अपर्णा के हाथ अपने हाथ में लेकर श्रेया बोली, "बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?"
अपर्णा ने श्रेया जी की और देखा और बोली, "दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?"
तब श्रेया ने अपर्णा की नाक पकड़ कर कहा, "देखो बहन, मैं जीतूजी की बीबी हूँ। और हमेशा रहूंगी। लेकिन मैंने उस दिन सिनेमा हॉल में तुम्हारे और मेरे पति के बिच हुई अठखेलियां देखीं थीं। मैं उसके लिए तुम्हें या मेरे पति को ज़रा सी भी जिम्मेवार नहीं मानती। ऐसे माहौल में ऐसी वैसी बातें हो ही जाती हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरी और तुम्हारे पति के बिच उससे भी कहीं ज्यादा अठखेलियाँ हुई थीं।"
अपर्णा श्रेया जी की बात सुनकर कुछ खिसियानी सी लग रही थी तब श्रेया ने अपर्णा के गले में अपनी बाँहें डाल कर अपर्णा की आँखों में आँखें मिलाकर कहा, "देखो, शादी के कुछ सालों बाद मर्द लोग इधर उधर ताकते ही रहते हैं। हमारे पति तो फिर भी अच्छे हैं की ज्यादा इधर उधर ताँक झाँक नहीं कर रहे। और की भी तो वह हम पर ही की l कर्नल साहब तुम पर डोरे डाल रहे हैं तो तुम्हारे पति की नजर मुझपर है। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है की तुम्हारे पति रोहित मुझे बहुत पसंद हैं और अगर मौक़ा मिला तो मैं उनके साथ सोना भी चाहती हूँ। मेरे पति जीतूजी को भी इस बारे में पता है, हालांकि हमारी साफ़ साफ़ बात नहीं हुई।"
श्रेया जी की ऐसी बेख़ौफ़ वाणी सुनकर अपर्णा की आँखें फटी की फटी ही रह गयीं। उसे समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या बोले। एक भारतीय नारी इतनी खुल्लमखुल्ला कैसे अपने मन की बात बता रही थी? उनकी बात गलत तो नहीं थी। पर समझने में और बोलने में फर्क है। अपर्णा ने भी तो श्रेया जी के पति जीतूजी का लण्ड पकड़ा था? वह कैसे यह झुठला सकती थी?"
अपर्णा ने अपना सर हिलाकर हामी भरी की वह समझ रही है।
श्रेया ने कहा, "देखो बहन, मैं जानती हूँ की हम मर्द की तरह इतने खुल कर वह सब नहीं कर सकते जो वह कर सकते हैं। एक मेरी निजी और गुह्य बात मैं तुमसे आज शेयर करना चाहती हूँ। क्या मैं तुमसे हमारी कुछ गुप्त बातें शेयर कर सकती हूँ?"
अपर्णा ने कहा, "हाँ बिलकुल दीदी। मैं वादा करती हूँ की आपने अपने मन की बात कही है तो मैं उसे किसीके साथ भी शेयर नहीं करुँगी। यहां तक की आपने पति से भी नहीं। मैं भी आजसे आपको मेरे मन की हर एक बात बताउंगी और कुछ भी नहीं छुपाउंगी। हम एक दूसरे से अपनी कोई भी बात नहीं छुपायेंगे।"
श्रेया ने हँस कर कहा, " मेरे पति और तुम्हारे जीतूजी ने हमारी शादी से पहले कई महिलाओं को आकर्षित किया था और मैं जानती थी की उन्होंने कई स्त्रियों को चोदा भी था l तुम नहीं जानती की मैं मेरे पति यानी जीतूजी से शादी से पहले हमारी दूसरी मुलाक़ात में ही चुदवा चुकी थी। मैं उनसे एक क्लब मैं मिली थी और पहली ही मुलाक़ात में उनपर फ़िदा हो गयी थी। मैंने तब तय किया था की अगली मुलाक़ात में ही मैं जीतूजी से जरूर चुदवाउंगी।" अपर्णा श्रेया का यह रूप पहली बार देख रही थी। वह जानती थी की श्रेया जी साफ़ साफ़ बोलती हैं। पर वह इतना खुल्लमखुल्ला चोदना, चुदाई, लण्ड, चूत बगैरह इस तरह बेबाक बोलेंगी उसकी तो कल्पना भी अपर्णा ने नहीं की थी। श्रेया बिना रुके बोले जा रही थीं।
"दूसरी मुलाक़ात में मैंने जीतूजी को साफ़ साफ़ कह दिया की मैं उनसे चुदवाना चाहती थी। जीतूजी मुझे आँखें फाड़ कर देखते रहे! उन्हें तब तक मेरे जैसी मुंहफाड़ स्त्री नहीं मिली थी। वह क्या कहते? मुझ पर तो वह पहले से ही फ़िदा थे! बस हम दोनों ने उसी दिन उसी क्लब में कमरा ले कर पहली बार घमासान चुदाई की। और मैंने उनसे शादी से काफी पहले दूसरी मुलाक़ात में ही चुदवाया। जब मेरी उन्होंने जम कर चुदाई की तब मैंने वहाँ ही तय कर लिया था की मैं उनसे बार बार चुदवाना चाहती थी। मैं जीतूजी से शादी करना चाहती थी। मैं उनके बच्चों की माँ बनना चाहती थी।
शुरू में जीतूजी मुझसे शादी करने के लिए इस लिए तैयार नहीं थे की मेरे साथ शादी करने से उनकी आझादी छीन जा रही थी। शादी के पहले उनपर कई लडकियां और औरतें ना सिर्फ फ़िदा थीं पर उनके साथ सोने के लिए मतलब चुदने के लिए भी आती थीं। पर मैंने भी तय किया था की मैं शादी करुँगी तो जीतूजी से ही। नहीं तो शादी ही नहीं करुँगी। बहन तुम शायद यह भी ना मनो की जीतूजी ने ही मेरा सील तोड़ा था। हालांकि मैं कॉलेज मैं भी बड़ी बेबाक और उद्दंड लड़की मानी जाती थी और सारे लड़के मुझे मिलने या यूँ कहिये की चोदने के लिए पागल थे। मैं सबके साथ घूमती थी, कुछ लड़कों के साथ चुम्माचाटी भी करती थी। पर मेरी चूत में मैंने पहेली बार जीतूजी का ही लण्ड डलवाया। मेरा सब कुछ मैंने पहली बार तुम्हारे जीतूजी को ही दिया। कोई और औरत उन्हें फाँस ले उससे पहले ही मैंने उनसे शादी करने का वचन ले लिया। तब मैंने उनसे वादा किया था की मेरे साथ शादी करने से उनकी आजादी नहीं छीन जायेगी। मैं उनको किसी भी औरत से मिलने या चोदने से नहीं रोकूंगी। इतना ही नहीं, मैंने उनसे वादा किया था की अगर उन्हें कोई औरत पसंद आए तो उसे मेरे पति के बिस्तर तक पहुंचाने में मैं उनकी सहायता करुँगी।"
अपर्णा यह सुनकर अजूबे से श्रेया जी को देखती ही रही। श्रेया अपर्णा का सर अपनी छाती पर रखती हुई बोली, " अपर्णा, मेरे पति तुम्हारी कामना करते हैं। उन्होंने मुझे कहा तो नहीं पर मैं जानती हूँ की वह तुम्हारे साथ सोना चाहते हैं। साफ़ साफ़ कहूं तो वह तुम्हें प्यार करना और चोदना चाहते हैं। तो फिर मुझे उनकी मदद करनी पड़ेगी l उसके लिए मुझे तुम्हार सहमति चाहिए। तुम्हारा कमसिन बदन देख कर मैं ही जब विचलित हो जाती हूँ तो मेरे पति की तो बात ही क्या? वह तो एक हट्टेकट्टे जवान मर्द है? जहाँ तक तुम्हारे पति रोहित का सवाल है, वह तुम मुझ पर छोड़ दो।"
श्रेया जी की बेबाक बातें सुनकर अपर्णा की तो बोलती ही बंद हो गयी थी। अपर्णा बेचारी चौड़ी, फूली हुई आँखों से श्रेया जी बातें सुन रही थी। अपर्णा ने देखा की श्रेया का तौलिया खिसक गया था और उनके उन्नत स्तन अपर्णा के सामने खुले हुए थे और उन स्तनों के शिखर पर गुलाबी फूली हुई निप्पलेँ इतनी मन को हरने वाली थीं की ना चाहते हुए भी अपर्णा की कोहनी एक स्तन पर लग ही गयी। अपर्णा की आँखें उनके वक्ष स्थल पर ऐसी टिकी हुई थीं की हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
यह देख श्रेया बोली, "बहन देख क्यों रही हो? इन्हें अपने हाथोँ में महसूस करो। महसूस करना चाहती हो? सोचो मत। आओ बेबी, दोनों हाथों से पकड़ो और उन्हें महसूस करो। मैं पहली बार इतनी खूबसूरत स्त्री से मेरी चूँचियाँ मसलवाने का मौका पा रही हूँ। शादी के बाद आज तक इन पर मात्र जीतूजी का ही अधिकार रहा है।" श्रेया ने कहा, "शादी के बाद से आज तक इन पर तुम्हारे जीतूजी का सम्पूर्ण अधिकार रहा था। पर हाँ तुम्हारे पति रोहित ने भी इन्हें महसूस किया है और मसला भी है। बहन तुमने कसम ली है की तुम रोहित से कुछ नहीं कहोगी, और बुरा भी नहीं मानोगी। उसमें जितने वह दोषी हैं, उससे ज्यादा मैं गुनेहगार हूँ।" श्रेया ने अपर्णा का हाथ अपने हाथों में लिया और पकड़ कर अपनी छाती पर रखा। श्रेया जी का तौलिया वैसे ही खुल गया और श्रेया अपर्णा के सामने ही सम्पूर्ण नग्न अवस्था में अपर्णा की बाँहों में थीं। अपर्णा के लिए यह अपने जीवन की एक अद्भुत और अकल्पनीय घटना थी। कई बार अपर्णा के मन में कोई ना कोई मर्द के बारे में, उसके लण्ड के बारे में या उसको नंगा देखने के बारे में विचार हुए होंगें। अपर्णा ने पहले नग्न औरतों की तस्वीरों को भी देखा था। पर यह पहली बार था की अपर्णा साक्षात किसी औरत को ऐसे निर्वस्त्र देख रही थी और वह भी स्वयँ एक रति के सामान बला की कामुक और खूबसूरत श्रेया जी जैसी स्त्री उसकी नजर के सामने नंगी प्रस्तुत थी।
अपर्णा ने श्रेया जी के उन्नत स्तनों पर अपना हाथ फिराते हुए कहा, "ना बहन, मैं कुछ नहीं कहूँगी। बल्कि मुझे उस बात का काफी कुछ अंदेशा था भी।" अपर्णा फिर कुछ खिसियानी सी हो गयी और उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने थोड़ा सम्हल कर कहा, "दीदी मैं आज आप से भी एक गुनाह कुबुल करती हूँ की आपके पति जीतूजी को मैंने भी मेरे बूब्स छूने दिया था। यह उस दिन सिनेमा हॉल में हुआ था। दीदी मैं अपने आपको रोक नहीं पायी थी और ना ही जीतूजी। मैंने उनको कई जगह से छुआ भी था। आप भी अपने पति जीतूजी से इस बारेमें कुछ मत कहियेगा।"
यह सुन कर श्रेया जी ने अपने होँठ अपर्णा के होँठ पर रख दिए और अपर्णा के होठोँ का रस चूसती हुई बोली, "पगली! तू क्या सोचती है? यह सब मुझे पता नहीं? अरे मैंने ही तो सब के मन की बात जानने के लिए यह खेल रचा था। अब तक जो हम सब के मन में था उस दिन सब बाहर आ गया।"
अपर्णा ने झिझकते हुए पूछा, "पर दीदी क्या यह सब सही है?"
श्रेया ने कहा, "देखो मेरी बहन। शादी के कुछ सालों बाद सब पति पत्नी एक दूसरे से थोड़े बोर हो जाते हैं। हमारी चुदाई में कोई नवीनता नहीं रहती। कोई अनअपेक्षित रोमांच नहीं रहता। पति और पत्नी दोनों का मन करता है की कुछ अलग हो, कुछ एक्साइटमेंट हो। इस लिए दोनों ही अपने मन में तो किसी और मर्द या औरत की कामना करते हैं पर डर के मारे या फिर सही पार्टनर ना मिलने के कारण कुछ कर नहीं पाते। कई मर्द या औरत चोरी छुपी अपने पति पति अथवा पत्नी की पीठ के पीछे किसी और मर्द या स्त्री से रिश्ते करते हैं या चोदते हैं। यह सब स्वाभाविक है। पर इस में एक मर्यादा रखनी चाहिए की अपना पति अथवा पत्नी अपनी है और दूसरी का पति अथवा पत्नी उस की ही है। उसे हथियाने की कोशिश कत्तई भी नहीं करनी चाहिए। बस चाह पूरी की फिर भले ही आप उसे प्यार करो पर उस पर अपना हक़ नहीं जमा सकते। यह मर्यादा अगर रख पाएं तो यह सही है। और इसमें एक और बात भी है। ऐसे में पति और पत्नी की सहमति जरुरी है, चाहे वह समझानेसे या फिर उकसाने से आये। और पति को पत्नी की सहमति तभी ही मिल सकती है जब पत्नी को अपने पति में पूरा विश्वास हो।" श्रेया ने अपर्णा को होठोँ पर काफी उत्कट और उन्माद भरा चुम्बन किया। दोनों महिलाये एक दूसरे के मुंह में जीभ डालकर एक दूसरे के मुंह की लार चूस रहीं थीं।
अपर्णा तब तक श्रेया के साथ काफी तनावमुक्त महसूस कर रही थी। अपर्णा ने देखा की श्रेया के बदन से तौलिया सरक गया था और श्रेया को उसकी कोई चिंता नहीं थी। वैसे तो अपर्णा को भी उस बात से कोई शिकायत नहीं थी क्यूंकि वह भी तो श्रेया के करारे और उन्मादक बदन की कायल थी।
श्रेया ने अपर्णा की ललचायी नजर अपने बदन पर फिसलते देखि तो वह मुस्कुरायी और अपर्णा की ठुड्डी अपनी हथेली में पकड़ कर बोली, "अरे बहन देखती क्या है। महसूस कर।" श्रेया ने अपर्णा के सर पर हाथ दबाया जिससे अपर्णा को बरबस ही आना सर नीचा करना पड़ा और उसक मुंह श्रेया जी उन्मत्त स्तनों तक आ पहुंचा। अपर्णा के होँठ श्रेया जी की फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ को छूने लगे। अपर्णा के होँठ अपने आप ही खुल गए और देखते ही देखते श्रेया जी की निप्पलेँ अपर्णा के मुंह में गायब हो गयीं।
अपर्णा ने जैसे ही श्रेया की करारी निप्पलोँ को अपने होठोँ के बिच में महसूस किया तो उसके रोंगटे खड़े होगये। अपर्णा ने कभी यह सोचा भी नहीं था की कभी उसे कोई स्त्री के बदन को छूने के कारण इतनी उत्तेजना पैदा होगी। इससे अपर्णा के बदन में जैसे बिजली का करंट दौड़ गया। उसके बदन में सिहरन हो उठी। अचानक उसे ऐसा लग जैसे उस का सर घूम रहा हो। उसने महसूस किया की उसकी चूत में से स्त्री रस चू ने लगा। उसकी पैंटी उसे गीली महसूस हुई। अपर्णा ने श्रेया जी को धीरे से कहा, "दीदी, आप यह क्या कर रही हो? देखो मेरी हालत खराब हो रही है। मेरी पैंटी गीली हो रही है।
श्रेया ने कहा, "मेरी बहन अपर्णा, आज मुझे भी तुम पर बहुत प्यार आ रहा है। तुम मेरी गोद में आ जाओगी?" जब अपर्णा ने कोई जवाब नहीं दिया तो श्रेया ने अपर्णा को ऊपर उठाकर धीरे से अपनी गोद में बिठा दिया। अपर्णा भी चुपचाप उठकर श्रेया की गोद में बैठ गयी। अपर्णा को भी अपनी दीदी पर उस दिन न जाने कैसा प्यार उमड़ रहा था। श्रेया ने अपर्णा के ब्लाउज में अपना हाथ डाला और बोली, "तुम्हारे बूब्स इतने मुलायम और फिर भी इतने सख्त हैं की उनपर हाथ फिरते मेरा ही मन नहीं भरता।" श्रेया की हरकत देख कर अपर्णा थोड़ी घबड़ा गयी। उसे डर लगा की कहीं श्रेया समलैंगिक कामुक स्त्री तो नहीं है?" श्रेया अपर्णा के मन की बात समझ गयीं और बोली, "अपर्णा यह मत समझना की मैं समलैंगिक स्त्री हूँ। मुझे तुम्हारे जीतूजी से चुदवाने में अद्भुत आनंद आता है। पर हाय री अपर्णा! मैं वारी वारी जाऊं! तेरा बदन ही ऐसा कामणखोर है की मेरा भी मन मचल जाता है। क्या तुझे कुछ नहीं होता?" अपर्णा बेचारी चुपचाप श्रेया के कमसिन बदन को देखने लगी। श्रेया के उन्नत स्तन अपर्णाके मुंहके पास हीथे। श्रेया के बदन की कामुक सुगंध अपर्णा के तन में भी आग लगाने का काम कर रही थी।
श्रेया अपर्णा के कान में अपना मुंह दबा कर बोली, "अपर्णा, मेरे पति का लण्ड बहोत बड़ा है और (श्रेया अपनी उँगलियाँ बड़ी चौड़ी फैला कर बोली) इतना मोटा है। जो कोई उनसे एक बार चुदवाले वह उनसे चुदवाये बगैर रह नहीं सकता। अरे मैंने शादी भी तो मेरे पति का लण्ड देख कर ही तो की थी? एक बात कहूं बहन बुरा तो नहीं मानोगी?"
अपर्णा ने सर हिला कर ना कहा तो श्रेया ने कहा, "मेरी बहन अपर्णा! मेरे पति से तू भी एक बार अगर चुदवा लेगी ना, तो फिर तू उनसे बार बार चुदवाना चाहेगी।"
काफी दिनों के बीत जाने के बाद भी रिजल्ट के कोई आसार नहीं थे। करीब बिस दिन बीत गए इस बात को।
एक दिन रोहित सुबह करीब साढ़े आठ बजे ऑफिस जाने की तैयारी में थे। वह डाइनिंग टेबल पर बैठ नाश्ता कर रहे थे की अचानक घर की घंटी बजी।
अपर्णा ने जैसे ही दरवाजा खोला की कर्नल साहब को हाथ में एक अखबार थामे सामने खड़े हुए पाया। उनका मुंह एकदम दुखी और कुम्हलाया हुआ था। अपर्णा ने जब देखा की कर्नल साहब एकदम हतोत्साहित, उदास और हाथ में अखबार लिए हुए देखा तो अपर्णा की जान हथेली में आगयी। जरूर कोई बहुत दुःख भरा समाचार होगा।
रोहित भी टेबल के पास खड़े हो गए और बोले, "कर्नल साहब, क्या हुआ? आप इतने उदास क्यों लग रहे हो? क्या कोई दुःख भरा समाचार है?" यह सुनकर कर्नल साहब बड़े दुखी दिखाई दिए। वह अपर्णा की और देख कर बोले, मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था। यह क्या हो गया?"
अपर्णा की सांस रुक गयी। वह बोली, "पर जीतूजी बताओ ना आखिर बात क्या है?"
कर्नल साहब ने दुःख भरी आवाज में कहा, "रिजल्ट आ गया है। पर अपर्णा का नाम पासिंग लिस्ट में नहीं है।" ऐसा कह कर वह पास में रखे हुए सोफे पर बड़ी मुश्किल से बैठ गए। समाचार सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया।
रोहित ने कहा, "पर ऐसा कैसे हो सकता है? अपर्णा ने तो कहा था उसका पेपर बहुत अच्छा गया है?"
कर्नल साहब ने रोहित की और दुःख भरी नज़रों से देखा और कहा, "मेरी सारी महेनत पानी में गयी। अफ़सोस मैं अपर्णा को गणित में पास नहीं करवा पाया।"
अपर्णा एकदम कर्नल साहब के पास आयी और उनका हाथ थामा और बोली, "कोई बात नहीं कर्नल साहब। दुखी मत होइए। इस बात से जिंदगी ख़तम नहीं हो गयी। हम दूसरी बार कोशिश करेंगे।"
रोहित ने कर्नल साहब के हाथसे अखबार लिया और बोले, "ऐसा हो नहीं सकता। कहीं ना कहीं अखबार की छपाई में भी गलती हो सकती है। ऐसा कर जब रोहित ने अखबार खोला तो पाया की पहले ही पेज पर अपर्णा की बड़ी फोटो छपी थी और उसके निचे लिखा था, "गणित में सबसे सर्वोत्तम अंक दिल्ली की एक शादी शुदा महिला अपर्णा वर्मा को।" यह देख कर रोहित की आँखें फटी की फटी ही रह गयी।
रोहित ने कर्नल साहब की और आश्चर्य से देखा तो कर्नल साहब एकदम हँस पड़े। उन्होंने आगे झुक कर अपर्णा के घुटनों को दोनों हाथों में पकड़ कर ऊपर उठा लिया और बोले, "अरे पागल, तुम पास नहीं हुई, तुम पुरे देश में टॉप आयी हो!"
अपर्णा को कर्नल साहब की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने तुरंत अपने पति रोहित के हाथों से अखबार छीन लिया और पहले ही पेज पर अपना फोटो देख कर स्तब्ध रह गयी। कर्नल साहब की बाहों में ही रहते हुए रोहित की पत्नी अपर्णा ने कर्नल साहब को नकली गुस्से भरे घूंसे मारने शुरू किये और बोली, "जीतूजी, आपने तो मेरा हार्ट फ़ैल ही कर दिया था।"
कर्नल साहब ने कहा, "हार्ट फ़ैल हो तुम्हारे दुश्मनों का। तुम ना सिर्फ फर्स्ट आयी हो, तुमने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। अपर्णा डार्लिंग आज तुमने तो कमाल कर दिया।"
अपर्णा ने जीतूजी के सर पर चुम्मा करते हुए कहा, "यह कमाल मेरा नहीं आपका है। अगर आप मुझे पढ़ाने के लिए इतनी महेनत ना करते तो मैं टॉप करने की बात ही क्या, पास भी नहीं हो पाती।"
रोहित ने कहा, "कर्नल साहब, अपर्णा ठीक कह रही है। उसे गणित विषय से ही नफरत थी लेकिन आप ने उस नफरत को मोहब्बत में बदल दिया।"
अपर्णा ने गाउन पहन रखा था। उस का पेट और उसके निचे का हस्सा कर्नल साहब के मुंह के पास ही था। कर्नल साहब ने अपर्णा के पेट पर गाउन के ऊपर से ही चुम्मी करते हुए कहा, "ठीक है, मैंने महेनत की, पर अपर्णा ने पूरा मन लगा कर पढ़ाई की और नतीजा आपके सामने है। आज मैं बहुत खुश हूँ। भाई रोहित, आज तो पार्टी हो जाए।"
अपर्णा ने अपने पति रोहित की और देख कर कहा, "पार्टी करने का काम आप दोनों का है। मुझे तो जब आप बुलाओगे तो मैं आ जाउंगी।"
रोहित ने कहा, "अरे भाई अब तो पार्टियों का दौर चलता ही रहेगा।"
उस पुरे दिन रोहित और अपर्णा ने घर का फ़ोन पुरे दिन बजता रहा। कई अखबार और टीवी चैनल्स के प्रतिनिधि आये। उस दिन रोहित और कर्नल साहब ने एक दिन की छुट्टी ले ली। हर इंटरव्यू में अपर्णा ने इस सफलता का श्रेय कर्नल साहब को दिया। अखबारों में अपर्णा की फोटो कर्नल साहब के साथ छपी। एक अखबार ने तो कर्नल साहब की जीवनी भी प्रकाशित कर डाली। उस दिन शाम को सब इतने थके हुए थे की आखिरी इंटरव्यू ख़तम होते ही रोहित अपर्णा और अभिजीत सिंहजी अपने घर में जाकर ढेर हो गए।
जब घर का सारा काम ख़तम कर श्रेया बैडरूम में आयी तो उनके पति जीतूजी टीवी पर समाचार देख रहे थे। हर चैनल पर थोड़ा ही सही पर कहीं ना कहीं उनकी और अपर्णा की तस्वीर या इंटरव्यू जरूर आया था। श्रेया ने बिस्तरे में आते हुए अपने पति जीतूजी को कहा, "आज तो तुमने अपना कमाल दिखा ही दिया। हर जगह तुम्हारी चेली अपर्णा तुम्हारे ही गुण गाया करती थी। मानना पड़ेगा। अपर्णा तुम्हारी पक्की चेली है। वह तुम्हारे अहसानों के निचे इतनी दबी है की तुम जो चाहो उससे ले सकते हो।"
जीतूजी ने टेढ़ी नज़रों से अपनी बीबी की और देख कर पूछा, "तुम कहना क्या चाहती हो?"
श्रेया ने कहा, "अनजान मत बनो. मैं तुम्हारी बीबी हूँ। तुम्हारी नस नस पहचानती हूँ। क्या मैं नहीं जानती तुम्हारे मन में अपर्णा के लिए क्या भाव हैं? अरे मुझसे मत छुपाओ। मैंने तुम्हें शादी के पहले वचन दिया था की अगर तुम्हें कोई सुन्दर औरत पसंद आ गयी तो मैं उसे तुम्हारे बिस्तर तक लाने में तुम्हारी पूरी मदद करुँगी। मैं आज भी मेरे उस वचन पर कायम हूँ। पर जीतूजी मैं एक बात से हैरान हूँ।"
कर्नल साहब ने पूछा, "क्या?"
श्रेया ने कहा, "आजतक कई लड़कियों और औरतों को मैंने आप पर मरते हुए देखा है। इनमें से मैं भी एक हूँ। पर आज तक मैंने आपको कोई औरत के लिए इतना तड़पते हुए नहीं देखा। पर आज आपकी आँखों में अपर्णा के लिए आपकी वह चाहत या यूँ कहिये कामुकता जो मैंने देखि है वैसी मैंने पहले कभी किसी औरत के लिए नहीं देखि? मैं जानती हूँ की अगर आपको मौक़ा मिलेगा तो आप उसे चोदना भी चाहेंगे। पतिदेव, सच बोलना। मेरी बात ठीक है ना? इस बात को ले कर मैं आप से कत्तई भी नाराज नहीं हूँ। जैसा की हमने एक दूसरे से वादा किया है, मैं आपकी ही बीबी रहूंगी। पर तुम्हारे मन में उस लड़की के लिए कुछ ना कुछ है ना? आखिर बात क्या है इस औरत में?"
जीतूजी ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लिया और उसके बूब्स की निप्पलोँ पर अपना हाथ फिराते हुए बोले, "मैं जानता हूँ। मैं मानता हूँ की मैं अपर्णा की और काफी आकर्षित हूँ। तुम्हारी बात गलत नहीं है की मैं कहीं ना कहीं मेरे मन में अपर्णा के लिए सिर्फ गुरु शिष्या के ही भाव नहीं है। देखो मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा। पर मैं चाहता हूँ की वह मेरे पास अपनी मर्जी से आये। और दूसरी बात तुमने तो तुम्हारे सवाल का जवाब खुद ही दे दिया।"
श्रेया ने अपने पति की और आश्चर्य से देखा और पूछा, " वह कैसे?"
जीतूजी, "देखो डार्लिंग, तुम मेरी पत्नी हो। तुम अगर मेरी पसंद की औरत की इर्षा करो तो यह स्वाभाविक है, और इसी लिए मैं अपर्णा की तारीफ़ तुम्हारे सामने करने में डरता हूँ। पर जब तुमने पूछ ही लिया है और जब तुम यह कह रही हो की तुम्हें इर्षा नहीं होगी तो सुनो l पहली बात यह की अपर्णा बेतहाशा खूबसूरत है। उसके व्यक्तित्व में ही सुंदरता झलकती है। उसके अंग अंग में से अनंग टपकता है। पर आश्चर्य तो यह है की उसे यह पता ही नहीं वह कितनी खूबसूरत हैl तुम्हारे सवाल के जवाब में मैं यह कहता हूँ की तुम ने खुद कहा नहीं की हर जगह अपर्णा मेरे ही गुणगान गा रही थी? इसका मतलब यह की जो इंसान दूसरे का एहसान कभी ना भूले और अपनी काबिलियत पर अहंकार ना करे ऐसे इंसान कम होते हैं और उनकी कदर करनी चाहिए l और आखिरी बात, अपर्णा का मन काँच की तरह साफ़ है। इस चीज़ से मैं बहुत आकर्षित हुआ हूँ। मैं नहीं जानता की क्या अपर्णा भी मेरी और आकर्षित हुई है या फिर मरे अहसान के निचे दबी होने के कारण मुझे बर्दाश्त कर रही है?"
कर्नल साहब की पत्नी श्रेया ने अपने हाथ की ऊँगली से चुटकी बजाते हुए कहा, "मेरे लिए तो यह चुटकी बजाने वाली बात है। तुम निश्चिन्त रहो, मैं ना सिर्फ तुम्हारी प्यारी अपर्णा के मनका हाल जान कर तुम्हें बताउंगी, बल्कि मैं पूरी कोशिश करुँगी की एक ना एक दिन मैं उसे तुम्हारे बिस्तर पर लाकर तुमसे चुदवाउंगी बल्कि मैं तुम दोनों के सामने खड़ी होकर तुम दोनो को चोदते हुए देखूंगी।" सारी बातचीत सुनकर कर्नल साहब का लण्ड एक एकदम लोहे के छड़ सामान खड़ा हो गया। उन्होंने श्रेया का गाउन हटा कर उसे नग्न कर दिया। फिर उसकी बिस्तर पर लेटी हुई नग्न काया देख कर बोले, "हनी, आज भी तुम शादी के इतने सालों के बाद भी वैसी ही कमसिन लग रही हो जैसी मैंने तुम्हें पहली बार चोदने के पहले नंगी देखा था। शादी के इतने सालों और एक बच्चे के बाद भी तुम ज़रा भी बदली नहीं हो।"
श्रेया ने नाक सिकुड़ते हुए हँसते हुए कहा, "पर तुम्हें तो फिर भी दूसरे की थाली ही ज्यादा स्वादिष्ट लगती है। "
कर्नल साहब ने अपनी तरफ से एक गुब्बारा छोड़ते हुए कहा, "अच्छा? तो कहो तो तुम उस शाम को सिनेम हॉल में रोहित जी से चिपक चिपक कर क्या कर रही थी?"
श्रेया ने अपने पति की छाती में नकली घूंसा मारते हुए शर्मा ते हुए कहा, "चलो छोडो इन सब बातों को लगता है आज तुम्हें चोदने का बड़ा मूड है।"
कर्नल साहब अपनी बीबी की बात सुनकर ठहाका मार कर हँसकर बोले, "अरे, तुम अगर अपर्णा को मेरे साथ बिस्तर पर सुलाओगी तो मैं क्या मैं तुम्हें छोडूंगा? मैं भी तुम्हारे प्यारे रोहित को लाकर तुम्हारे साथ उसी बिस्तर पर ना सुलाकर तुम्हें अगर ना चुदवाया तो मेरा नाम कर्नल अभिजीत सिंह नहीं।"
दोनों पति पत्नी एक लम्बी और धमाकेदार चुदाई में मग्न हो गए। जीतूजी चोद तो श्रेया को रहे थे पर मन में अपर्णा ही थी। श्रेया चुदवा तो अपने पति से रही थी पर लण्ड उसको रोहित का दिख रहा था।
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दूसरे दिन सुबह कर्नल साहब की पत्नी श्रेया सुबह जब उठी तो उसे कुछ थकान सी लग रही थी। पिछली रात पति के साथ हुई धमासान चुदाई के कारण वह थोड़ी थकी हुई थी। कर्नल साहब को दफ्तर में कुछ अधिक और अर्जेंट काम था इस लिए वह जल्दी ही ऑफिस चले गए थे। श्रेया अपने मन में सोच रही ही थी की वह कैसे अपर्णा से बात करे की अचानक अपर्णा का ही फ़ोन आया।
अपर्णा ने श्रेया से कहा, "दीदी, मैं तुमसे मिलकर कुछ बात करना चाहती हूँ। आप कितने बजे फ्री होंगीं? मैं कितने बजे आऊं?"
कर्नल साहब की पत्नी श्रेया सोचने लगी आखिर अपर्णा उनसे क्या बात करना चाहती होगी? वाकई में तो श्रेया को ही रोहित की पत्नी अपर्णा से बात करनी थी। श्रेया ने अपर्णा से कहा, "अपर्णा, आप जब जी चाहे आओ, पर आप जब आओ तो मेरे साथ बैठने के लिए आना। आने के बाद जाने की जल्दी मत करना। आज मेरा भी मन तुमसे बहोत बात करने को कर रहा है। मैं अभी ही उठी हूँ और थोड़ासा थकी हुई हूँ। अक्सर जब मैं थकी होती हूँ तो जीतूजी मुझे सुबह की चाय बना के पिलाते हैं। तुम अभी ही आ जाओ ना? तुम जैसी हो वैसी ही आ जाओ l तुम्हें चेंज करने की भी जरुरत नहीं है। हम आमने सामने ही तो रहते हैं। कौनसा तुम्हें बाहर जाना है? अगर तुम्हें एतराज ना हो तो आज मैं मेरे घरमें ही तुम्हारी बनायी हुई चाय पीना चाहती हूँ।"
श्रेया जी की बात सुनकर अपर्णा का चेहरा खिल उठा। इतना बढ़िया परीक्षा का परिणाम आने के बावजूद अपर्णा को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जीतूजी के साथ हुई शारीरिक हरकतों के कारण अपर्णा श्रेया के बारेमें सोचकर थोड़ा अपने आप को दोषी महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की वह कैसे श्रेया जी का सामना कर पाएगी। जब सामने चल कर श्रेया ने ही इतना अपनापन दिखाया तो अपर्णा की हिम्मत बढ़ गयी और वह थोड़ी ठीकठाक होकर बिना कपडे बदले तुरंत जाने के लिए निकल पड़ी। अपर्णा गाउन पहने हुए थी। सो वह ऐसे ही कर्नल साहब की पत्नी श्रेया को मिलने के लिए चल पड़ी।
सुबह के दस बजे होंगे। सब मर्द लोग अपने दफ्तर जा चुके थे। कॉलेज में छुट्टियां चल रही थीं।
श्रेया उठ कर बाथरूम नहाने गयी और नहाकर बाहर निकल एक तौलिये में लिपटे हुए अपने बालों को कंघीं कर रही थी की घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उन्होंने दरवाजा खोले बिना ही पूछा, "कौन है?" जब अपर्णा की आवाज सुनी तब उन्होंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और अपर्णा को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद किया।
अपर्णा ने नमस्ते किया तो श्रेया ने अपर्णा को अपनी बाँहों में लपेट लिया और बोली, "अरे हम बहने हैं। आओ गले लग जाओ।" फिर अपर्णा का हाथ पकड़ श्रेया उसे अपने बैडरूम में ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कूल्हे टिका कर बैठी और रोहित की पत्नी अपर्णा को अपने पास बैठने के लिए इशारा किया। अपर्णा तो श्रेया को देखती ही रह गयी। तौलिये में लिपटी अर्धनग्न अवस्था में श्रेया गजब का कमाल ढा रही थीं। पलंग की और इशारा कर के श्रेया बोली, "बैठो न? ऐसे मुझे क्या देख रही हो? तुम आयी तो मैं बस नहा कर निकली ही हूँ। सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, सब्जी वाले, सफाई करने वाले इत्यादि मर्द लोग आ जाते हैं। तुम थी तो मैंने दरवाजा खोला वरना इस हाल मैं किसी मर्द के सामने जाकर मुझे हार्ट अटैक थोड़े ही दिलवाना है? आज ज़रा मैं थकी हुई हूँ। कल रात देर रात हो गयी थी। आज मेरा बदन थोड़ा दर्द कर रहा है।"
अपर्णा समझ गयी की पिछली रात जीतूजी ने जरूर अपनी पत्नी श्रेया की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर अपर्णा के बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उसने जीतूजी का मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस किया था। जब जीतूजी उस लण्ड से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का क्या हाल होता होगा यह सोच कर रोहित की पत्नी अपर्णा काँप उठी। अरे बापरे! अगर कहीं ऐसी नौबत आयी की अपर्णा को श्रेया जी के पति जीतूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच मात्र से ही अपर्णा के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत में से पानी रिसने लगा। अपर्णा ने पहली बार श्रेया को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अर्ध नग्न हालत में देखा था। अपर्णा श्रेया को देखती ही रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी श्रेया जैसे ही बिन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रहीं थीं। वह अपर्णा से करीब एक या दो साल बड़ी होंगीं। पर क्या बदन! और क्या बदन का अनूठा लावण्य! अपर्णा को ज़रा भी हैरानगी नहीं हुई की उसके अपने पति रोहित जीतूजी की पत्नी श्रेया के पीछे पागल थे। श्रेया के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले हुए थे। एक हाथ में कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रहीं थीं। तौलिया ज्यादा चौड़ा नहीं था इस कारण ना सिर्फ श्रेया के उन्मत्त उरोजों का उद्दंड उभार, बल्कि उन गुम्बजोँ के शिखर के रूप में फूली हुई निप्पलोँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थीं। श्रेया ने अपर्णा को उनका बदन ताड़ते हुए देखा तो अपर्णा को अपने करीब खींचा। एक पुतले की तरह मंत्रमुग्ध अपर्णा श्रेया के खींचने से उनके इतने निकट पहुंची की दोनों एक दूसरे की धमन सी आवाज करती हुई तेज साँसे महसूस कर रहे थे। अपर्णा का तो उसी समय मन किया की वह आगे बढ़कर श्रेया की छाती के ऊपर स्थित फैले हुए उन दो मस्त टीलों पर अपनी हथेलियां रखदे और उनकी मुलायमता, सख्ती या लचक अपनी हाथों में महसूस करे। पर स्त्री सुलभ मर्यादा और इस डर से की कहीं श्रेया अपर्णा की इस हरकत को गलत ना समझले इस लिए रुक गयी।
अपर्णा को श्रेया के पति जीतूजी से इर्षा हुई जो श्रेया के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले।
जब श्रेया जी ने अपर्णा की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। अपर्णा ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर श्रेया के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी। हायरे दैया!! जिस ढंग से श्रेया अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया श्रेया की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी। श्रेया की जाँघें देखकर अपर्णा से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, "श्रेया आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जीतूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवी के वह पति हैं।" श्रेया ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर अपर्णा, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। अपर्णा भौंचक्का सी श्रेया को देखती ही रही और वह श्रेया की बाहों में उनसे जुड़ गयी। अपर्णा को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब श्रेया ने कहा, "देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ। श्रेया जी ने अपना हाथ अपर्णा के बदन पर सरकाते हुए अपर्णा के कँधों को सहलाना शुरू किया।
श्रेया ने कहा, "देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?"
अपर्णा क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। अपर्णा ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही।
तब श्रेया बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।"
अपर्णा के हाथ में हाथ ले कर अपर्णा के हाथ को सहलाते हुए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?"
अपर्णा ने श्रेया के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, "दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।"
श्रेया को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। श्रेया ने पूछा, "मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?"
अपर्णा तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और श्रेया के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जीतूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती!
मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जीतूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जीतूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।"
श्रेया ने अपर्णा को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, "अपर्णा, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जीतूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।" श्रेया जी ने अपर्णा को अपने और करीब खींचा और बोली, "अपर्णा, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?"
अपर्णा ने कहा, "दीदी, मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?"
श्रेया ने अपर्णा की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ l देखो मेरी छोटी बहन अपर्णा, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जीतूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती हैl वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?" अपर्णा ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी। अपर्णा के हाथ अपने हाथ में लेकर श्रेया बोली, "बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?"
अपर्णा ने श्रेया जी की और देखा और बोली, "दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?"
तब श्रेया ने अपर्णा की नाक पकड़ कर कहा, "देखो बहन, मैं जीतूजी की बीबी हूँ। और हमेशा रहूंगी। लेकिन मैंने उस दिन सिनेमा हॉल में तुम्हारे और मेरे पति के बिच हुई अठखेलियां देखीं थीं। मैं उसके लिए तुम्हें या मेरे पति को ज़रा सी भी जिम्मेवार नहीं मानती। ऐसे माहौल में ऐसी वैसी बातें हो ही जाती हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरी और तुम्हारे पति के बिच उससे भी कहीं ज्यादा अठखेलियाँ हुई थीं।"
अपर्णा श्रेया जी की बात सुनकर कुछ खिसियानी सी लग रही थी तब श्रेया ने अपर्णा के गले में अपनी बाँहें डाल कर अपर्णा की आँखों में आँखें मिलाकर कहा, "देखो, शादी के कुछ सालों बाद मर्द लोग इधर उधर ताकते ही रहते हैं। हमारे पति तो फिर भी अच्छे हैं की ज्यादा इधर उधर ताँक झाँक नहीं कर रहे। और की भी तो वह हम पर ही की l कर्नल साहब तुम पर डोरे डाल रहे हैं तो तुम्हारे पति की नजर मुझपर है। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है की तुम्हारे पति रोहित मुझे बहुत पसंद हैं और अगर मौक़ा मिला तो मैं उनके साथ सोना भी चाहती हूँ। मेरे पति जीतूजी को भी इस बारे में पता है, हालांकि हमारी साफ़ साफ़ बात नहीं हुई।"
श्रेया जी की ऐसी बेख़ौफ़ वाणी सुनकर अपर्णा की आँखें फटी की फटी ही रह गयीं। उसे समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या बोले। एक भारतीय नारी इतनी खुल्लमखुल्ला कैसे अपने मन की बात बता रही थी? उनकी बात गलत तो नहीं थी। पर समझने में और बोलने में फर्क है। अपर्णा ने भी तो श्रेया जी के पति जीतूजी का लण्ड पकड़ा था? वह कैसे यह झुठला सकती थी?"
अपर्णा ने अपना सर हिलाकर हामी भरी की वह समझ रही है।
श्रेया ने कहा, "देखो बहन, मैं जानती हूँ की हम मर्द की तरह इतने खुल कर वह सब नहीं कर सकते जो वह कर सकते हैं। एक मेरी निजी और गुह्य बात मैं तुमसे आज शेयर करना चाहती हूँ। क्या मैं तुमसे हमारी कुछ गुप्त बातें शेयर कर सकती हूँ?"
अपर्णा ने कहा, "हाँ बिलकुल दीदी। मैं वादा करती हूँ की आपने अपने मन की बात कही है तो मैं उसे किसीके साथ भी शेयर नहीं करुँगी। यहां तक की आपने पति से भी नहीं। मैं भी आजसे आपको मेरे मन की हर एक बात बताउंगी और कुछ भी नहीं छुपाउंगी। हम एक दूसरे से अपनी कोई भी बात नहीं छुपायेंगे।"
श्रेया ने हँस कर कहा, " मेरे पति और तुम्हारे जीतूजी ने हमारी शादी से पहले कई महिलाओं को आकर्षित किया था और मैं जानती थी की उन्होंने कई स्त्रियों को चोदा भी था l तुम नहीं जानती की मैं मेरे पति यानी जीतूजी से शादी से पहले हमारी दूसरी मुलाक़ात में ही चुदवा चुकी थी। मैं उनसे एक क्लब मैं मिली थी और पहली ही मुलाक़ात में उनपर फ़िदा हो गयी थी। मैंने तब तय किया था की अगली मुलाक़ात में ही मैं जीतूजी से जरूर चुदवाउंगी।" अपर्णा श्रेया का यह रूप पहली बार देख रही थी। वह जानती थी की श्रेया जी साफ़ साफ़ बोलती हैं। पर वह इतना खुल्लमखुल्ला चोदना, चुदाई, लण्ड, चूत बगैरह इस तरह बेबाक बोलेंगी उसकी तो कल्पना भी अपर्णा ने नहीं की थी। श्रेया बिना रुके बोले जा रही थीं।
"दूसरी मुलाक़ात में मैंने जीतूजी को साफ़ साफ़ कह दिया की मैं उनसे चुदवाना चाहती थी। जीतूजी मुझे आँखें फाड़ कर देखते रहे! उन्हें तब तक मेरे जैसी मुंहफाड़ स्त्री नहीं मिली थी। वह क्या कहते? मुझ पर तो वह पहले से ही फ़िदा थे! बस हम दोनों ने उसी दिन उसी क्लब में कमरा ले कर पहली बार घमासान चुदाई की। और मैंने उनसे शादी से काफी पहले दूसरी मुलाक़ात में ही चुदवाया। जब मेरी उन्होंने जम कर चुदाई की तब मैंने वहाँ ही तय कर लिया था की मैं उनसे बार बार चुदवाना चाहती थी। मैं जीतूजी से शादी करना चाहती थी। मैं उनके बच्चों की माँ बनना चाहती थी।
शुरू में जीतूजी मुझसे शादी करने के लिए इस लिए तैयार नहीं थे की मेरे साथ शादी करने से उनकी आझादी छीन जा रही थी। शादी के पहले उनपर कई लडकियां और औरतें ना सिर्फ फ़िदा थीं पर उनके साथ सोने के लिए मतलब चुदने के लिए भी आती थीं। पर मैंने भी तय किया था की मैं शादी करुँगी तो जीतूजी से ही। नहीं तो शादी ही नहीं करुँगी। बहन तुम शायद यह भी ना मनो की जीतूजी ने ही मेरा सील तोड़ा था। हालांकि मैं कॉलेज मैं भी बड़ी बेबाक और उद्दंड लड़की मानी जाती थी और सारे लड़के मुझे मिलने या यूँ कहिये की चोदने के लिए पागल थे। मैं सबके साथ घूमती थी, कुछ लड़कों के साथ चुम्माचाटी भी करती थी। पर मेरी चूत में मैंने पहेली बार जीतूजी का ही लण्ड डलवाया। मेरा सब कुछ मैंने पहली बार तुम्हारे जीतूजी को ही दिया। कोई और औरत उन्हें फाँस ले उससे पहले ही मैंने उनसे शादी करने का वचन ले लिया। तब मैंने उनसे वादा किया था की मेरे साथ शादी करने से उनकी आजादी नहीं छीन जायेगी। मैं उनको किसी भी औरत से मिलने या चोदने से नहीं रोकूंगी। इतना ही नहीं, मैंने उनसे वादा किया था की अगर उन्हें कोई औरत पसंद आए तो उसे मेरे पति के बिस्तर तक पहुंचाने में मैं उनकी सहायता करुँगी।"
अपर्णा यह सुनकर अजूबे से श्रेया जी को देखती ही रही। श्रेया अपर्णा का सर अपनी छाती पर रखती हुई बोली, " अपर्णा, मेरे पति तुम्हारी कामना करते हैं। उन्होंने मुझे कहा तो नहीं पर मैं जानती हूँ की वह तुम्हारे साथ सोना चाहते हैं। साफ़ साफ़ कहूं तो वह तुम्हें प्यार करना और चोदना चाहते हैं। तो फिर मुझे उनकी मदद करनी पड़ेगी l उसके लिए मुझे तुम्हार सहमति चाहिए। तुम्हारा कमसिन बदन देख कर मैं ही जब विचलित हो जाती हूँ तो मेरे पति की तो बात ही क्या? वह तो एक हट्टेकट्टे जवान मर्द है? जहाँ तक तुम्हारे पति रोहित का सवाल है, वह तुम मुझ पर छोड़ दो।"
श्रेया जी की बेबाक बातें सुनकर अपर्णा की तो बोलती ही बंद हो गयी थी। अपर्णा बेचारी चौड़ी, फूली हुई आँखों से श्रेया जी बातें सुन रही थी। अपर्णा ने देखा की श्रेया का तौलिया खिसक गया था और उनके उन्नत स्तन अपर्णा के सामने खुले हुए थे और उन स्तनों के शिखर पर गुलाबी फूली हुई निप्पलेँ इतनी मन को हरने वाली थीं की ना चाहते हुए भी अपर्णा की कोहनी एक स्तन पर लग ही गयी। अपर्णा की आँखें उनके वक्ष स्थल पर ऐसी टिकी हुई थीं की हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
यह देख श्रेया बोली, "बहन देख क्यों रही हो? इन्हें अपने हाथोँ में महसूस करो। महसूस करना चाहती हो? सोचो मत। आओ बेबी, दोनों हाथों से पकड़ो और उन्हें महसूस करो। मैं पहली बार इतनी खूबसूरत स्त्री से मेरी चूँचियाँ मसलवाने का मौका पा रही हूँ। शादी के बाद आज तक इन पर मात्र जीतूजी का ही अधिकार रहा है।" श्रेया ने कहा, "शादी के बाद से आज तक इन पर तुम्हारे जीतूजी का सम्पूर्ण अधिकार रहा था। पर हाँ तुम्हारे पति रोहित ने भी इन्हें महसूस किया है और मसला भी है। बहन तुमने कसम ली है की तुम रोहित से कुछ नहीं कहोगी, और बुरा भी नहीं मानोगी। उसमें जितने वह दोषी हैं, उससे ज्यादा मैं गुनेहगार हूँ।" श्रेया ने अपर्णा का हाथ अपने हाथों में लिया और पकड़ कर अपनी छाती पर रखा। श्रेया जी का तौलिया वैसे ही खुल गया और श्रेया अपर्णा के सामने ही सम्पूर्ण नग्न अवस्था में अपर्णा की बाँहों में थीं। अपर्णा के लिए यह अपने जीवन की एक अद्भुत और अकल्पनीय घटना थी। कई बार अपर्णा के मन में कोई ना कोई मर्द के बारे में, उसके लण्ड के बारे में या उसको नंगा देखने के बारे में विचार हुए होंगें। अपर्णा ने पहले नग्न औरतों की तस्वीरों को भी देखा था। पर यह पहली बार था की अपर्णा साक्षात किसी औरत को ऐसे निर्वस्त्र देख रही थी और वह भी स्वयँ एक रति के सामान बला की कामुक और खूबसूरत श्रेया जी जैसी स्त्री उसकी नजर के सामने नंगी प्रस्तुत थी।
अपर्णा ने श्रेया जी के उन्नत स्तनों पर अपना हाथ फिराते हुए कहा, "ना बहन, मैं कुछ नहीं कहूँगी। बल्कि मुझे उस बात का काफी कुछ अंदेशा था भी।" अपर्णा फिर कुछ खिसियानी सी हो गयी और उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने थोड़ा सम्हल कर कहा, "दीदी मैं आज आप से भी एक गुनाह कुबुल करती हूँ की आपके पति जीतूजी को मैंने भी मेरे बूब्स छूने दिया था। यह उस दिन सिनेमा हॉल में हुआ था। दीदी मैं अपने आपको रोक नहीं पायी थी और ना ही जीतूजी। मैंने उनको कई जगह से छुआ भी था। आप भी अपने पति जीतूजी से इस बारेमें कुछ मत कहियेगा।"
यह सुन कर श्रेया जी ने अपने होँठ अपर्णा के होँठ पर रख दिए और अपर्णा के होठोँ का रस चूसती हुई बोली, "पगली! तू क्या सोचती है? यह सब मुझे पता नहीं? अरे मैंने ही तो सब के मन की बात जानने के लिए यह खेल रचा था। अब तक जो हम सब के मन में था उस दिन सब बाहर आ गया।"
अपर्णा ने झिझकते हुए पूछा, "पर दीदी क्या यह सब सही है?"
श्रेया ने कहा, "देखो मेरी बहन। शादी के कुछ सालों बाद सब पति पत्नी एक दूसरे से थोड़े बोर हो जाते हैं। हमारी चुदाई में कोई नवीनता नहीं रहती। कोई अनअपेक्षित रोमांच नहीं रहता। पति और पत्नी दोनों का मन करता है की कुछ अलग हो, कुछ एक्साइटमेंट हो। इस लिए दोनों ही अपने मन में तो किसी और मर्द या औरत की कामना करते हैं पर डर के मारे या फिर सही पार्टनर ना मिलने के कारण कुछ कर नहीं पाते। कई मर्द या औरत चोरी छुपी अपने पति पति अथवा पत्नी की पीठ के पीछे किसी और मर्द या स्त्री से रिश्ते करते हैं या चोदते हैं। यह सब स्वाभाविक है। पर इस में एक मर्यादा रखनी चाहिए की अपना पति अथवा पत्नी अपनी है और दूसरी का पति अथवा पत्नी उस की ही है। उसे हथियाने की कोशिश कत्तई भी नहीं करनी चाहिए। बस चाह पूरी की फिर भले ही आप उसे प्यार करो पर उस पर अपना हक़ नहीं जमा सकते। यह मर्यादा अगर रख पाएं तो यह सही है। और इसमें एक और बात भी है। ऐसे में पति और पत्नी की सहमति जरुरी है, चाहे वह समझानेसे या फिर उकसाने से आये। और पति को पत्नी की सहमति तभी ही मिल सकती है जब पत्नी को अपने पति में पूरा विश्वास हो।" श्रेया ने अपर्णा को होठोँ पर काफी उत्कट और उन्माद भरा चुम्बन किया। दोनों महिलाये एक दूसरे के मुंह में जीभ डालकर एक दूसरे के मुंह की लार चूस रहीं थीं।
अपर्णा तब तक श्रेया के साथ काफी तनावमुक्त महसूस कर रही थी। अपर्णा ने देखा की श्रेया के बदन से तौलिया सरक गया था और श्रेया को उसकी कोई चिंता नहीं थी। वैसे तो अपर्णा को भी उस बात से कोई शिकायत नहीं थी क्यूंकि वह भी तो श्रेया के करारे और उन्मादक बदन की कायल थी।
श्रेया ने अपर्णा की ललचायी नजर अपने बदन पर फिसलते देखि तो वह मुस्कुरायी और अपर्णा की ठुड्डी अपनी हथेली में पकड़ कर बोली, "अरे बहन देखती क्या है। महसूस कर।" श्रेया ने अपर्णा के सर पर हाथ दबाया जिससे अपर्णा को बरबस ही आना सर नीचा करना पड़ा और उसक मुंह श्रेया जी उन्मत्त स्तनों तक आ पहुंचा। अपर्णा के होँठ श्रेया जी की फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ को छूने लगे। अपर्णा के होँठ अपने आप ही खुल गए और देखते ही देखते श्रेया जी की निप्पलेँ अपर्णा के मुंह में गायब हो गयीं।
अपर्णा ने जैसे ही श्रेया की करारी निप्पलोँ को अपने होठोँ के बिच में महसूस किया तो उसके रोंगटे खड़े होगये। अपर्णा ने कभी यह सोचा भी नहीं था की कभी उसे कोई स्त्री के बदन को छूने के कारण इतनी उत्तेजना पैदा होगी। इससे अपर्णा के बदन में जैसे बिजली का करंट दौड़ गया। उसके बदन में सिहरन हो उठी। अचानक उसे ऐसा लग जैसे उस का सर घूम रहा हो। उसने महसूस किया की उसकी चूत में से स्त्री रस चू ने लगा। उसकी पैंटी उसे गीली महसूस हुई। अपर्णा ने श्रेया जी को धीरे से कहा, "दीदी, आप यह क्या कर रही हो? देखो मेरी हालत खराब हो रही है। मेरी पैंटी गीली हो रही है।
श्रेया ने कहा, "मेरी बहन अपर्णा, आज मुझे भी तुम पर बहुत प्यार आ रहा है। तुम मेरी गोद में आ जाओगी?" जब अपर्णा ने कोई जवाब नहीं दिया तो श्रेया ने अपर्णा को ऊपर उठाकर धीरे से अपनी गोद में बिठा दिया। अपर्णा भी चुपचाप उठकर श्रेया की गोद में बैठ गयी। अपर्णा को भी अपनी दीदी पर उस दिन न जाने कैसा प्यार उमड़ रहा था। श्रेया ने अपर्णा के ब्लाउज में अपना हाथ डाला और बोली, "तुम्हारे बूब्स इतने मुलायम और फिर भी इतने सख्त हैं की उनपर हाथ फिरते मेरा ही मन नहीं भरता।" श्रेया की हरकत देख कर अपर्णा थोड़ी घबड़ा गयी। उसे डर लगा की कहीं श्रेया समलैंगिक कामुक स्त्री तो नहीं है?" श्रेया अपर्णा के मन की बात समझ गयीं और बोली, "अपर्णा यह मत समझना की मैं समलैंगिक स्त्री हूँ। मुझे तुम्हारे जीतूजी से चुदवाने में अद्भुत आनंद आता है। पर हाय री अपर्णा! मैं वारी वारी जाऊं! तेरा बदन ही ऐसा कामणखोर है की मेरा भी मन मचल जाता है। क्या तुझे कुछ नहीं होता?" अपर्णा बेचारी चुपचाप श्रेया के कमसिन बदन को देखने लगी। श्रेया के उन्नत स्तन अपर्णाके मुंहके पास हीथे। श्रेया के बदन की कामुक सुगंध अपर्णा के तन में भी आग लगाने का काम कर रही थी।
श्रेया अपर्णा के कान में अपना मुंह दबा कर बोली, "अपर्णा, मेरे पति का लण्ड बहोत बड़ा है और (श्रेया अपनी उँगलियाँ बड़ी चौड़ी फैला कर बोली) इतना मोटा है। जो कोई उनसे एक बार चुदवाले वह उनसे चुदवाये बगैर रह नहीं सकता। अरे मैंने शादी भी तो मेरे पति का लण्ड देख कर ही तो की थी? एक बात कहूं बहन बुरा तो नहीं मानोगी?"
अपर्णा ने सर हिला कर ना कहा तो श्रेया ने कहा, "मेरी बहन अपर्णा! मेरे पति से तू भी एक बार अगर चुदवा लेगी ना, तो फिर तू उनसे बार बार चुदवाना चाहेगी।"