Update 08

जीतूजी ने अपर्णा की और देखा और आँखें झुका कर बोले, "मैं आपको खामखा परेशानी में नहीं डालना चाहता। मैं खुद इसकी सतह तक पहुंचना चाहता हूँ पर क्या बताऊँ? वक्त आने पर मैं आपको खुद बताऊंगा। अभी आप मुझे इस बारेमें प्लीज आग्रह नहीं करें तो अच्छा है।" इतना कह कर कर्नल साहब फुर्ती से सीढ़ियां निचे उतर गए।
अपर्णा उन्हें देखती ही रह गयी। जीतूजी के जाने के तुरंत बाद अपर्णा ने तय किया की वह जल्द ही जीतूजी से बात कर उनसे इसके बारे में सारे राज़ बताने के लिए आग्रह करके मजबूर करेगी। पर उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था की उसे जीतूजी से एकांत में मिलने का मौक़ा कब मिलेगा।
पर दूसरे ही दिन यह मौक़ा मिल गया। सुबह ही श्रेया का फ़ोन आया। श्रेया ने कहा, "अपर्णा बहन एक समस्या हो गयी है। जीतूजी को बुखार है और वह ऑफिस नहीं जा रहे। मेरी कॉलेज में कॉलेज के वार्षिक दिवस का कार्यक्रम है। मुझे तो जाना पडेगा ही। मैं गैर हाजिर नहीं रह सकती। तो क्या तुम अगर फ्री हो तो आज छुट्टी ले सकती हो? दिन में दो तीन बार जीतूजी के पास जा कर उनकी तबियत का जायजा ले सकती हो प्लीज? मेरी बेटी भी बाहर ट्रेनिंग में गयी हुई है।" यह सुन कर अपर्णा खुश हो गयी। वह पिछली शाम से यही सोच रही थी की कैसे वह जीतूजी से अकेले में बात करे।

अपर्णा ने फ़ौरन कहा, "श्रेया आप निश्चिन्त जाइये। जीतूजी की देखभाल मैं कर लुंगी। वह मेरे गुरु हैं और उनकी सेवा करना मेरा सौभाग्य होगा। मुझे आज कॉलेज में कोई ख़ास काम है नहीं। ज्यादातर पीरियड फ्री हैं। मैं छुट्टी ले लुंगी।" श्रेया सुबह ही घर से निकल गयीं। रोहित के दफ्तर चले जाने के बाद अपर्णा थोड़ा सा ठीक-ठाक होकर नहा धो कर फ्रेश हुई और श्रेया और जीतूजी के फ्लैट की और चल पड़ी। फ्लैट की घंटी बजायी तो जीतूजी ने दरवाजा खोला। अपर्णा ने देखा तो जीतूजी तैयार हो रहे थे। उन्होंने बनियान और पतलून पहन रखा था और अपना यूनिफार्म पहनने जा रहे थे।

जीतूजी अपर्णा को देख कर थम गए और आश्चर्य से बोल पड़े, "अरे अपर्णा तुम, इस वक्त. यहां? क्या बात है?" शायद श्रेयाने अपने पतिको नहीं बताया था की उन्होंने अपर्णा को आने के लिए कहा था।
अपर्णा ने पूछा, "अरे आपको बुखार है ना? आप तैयार क्यों हो रहे हैं?"

जीतूजी, "अरे ऐसा छोटा मोटा बुखार तो आता रहता है। इससे घबराएंगे तो काम कैसे चलेगा? लगता है तुम्हें श्रेया ने बता दिया है। श्रेया तो फ़ालतू में बात का बतंगड़ बना रही है।"

अपर्णा ने आगे बढ़ कर जीतूजी का हाथ थामा तो पाया की उनका बदन काफी गरम था। अपर्णा ने जीतूजी का हाथ सख्ती से पकड़ा और बोली, "यह छोटा मोटा बुखार ही? आपका बदन आग जैसे तप रहा है। अब हरबार आपकी नहीं चलेगी। चलो कपडे निकालो।"

कर्नल साहब यह सुनकर आश्चर्य से अपर्णा की और देखने लगे और बोले, "कपडे निकालूँ? क्यों?"

अपर्णा को समझ आया की जीतूजी कहीं उसकी बात का गलत मतलब ना निकालें। उसने तुरंत ही कहा, "मेरा मतलब है, कपडे बदलो। ऑफिस जाने की कोई जरुरत नहीं है। आज आप घर में ही आराम करेंगे। यह मेरा हुकम है।"

कर्नल साहब चुपचाप अपर्णा की अधिकारपूर्ण आवाज सुन कर सकपका गए। आज तक कभी उन्होंने अपर्णा की ऐसी सख्त आवाज सुनी नहीं थी। वह चुपचाप पीछे हटे, अपर्णा को अंदर आने दिया और खुद एक हाथ का टेका ले कर सोफे पर बैठ गए। उनकी कमजोरी साफ़ दिख रही थी।

अपर्णा ने कहा, "कपडे निकाल कर पयजामा पहन लीजिये। दफ्तर में फ़ोन करिये की आज आप नहीं आएंगे। मैं आपके सर पर ठन्डे पानी का कपड़ा लगा कर बुखार को कम करने की कोशिश करती हूँ।" कर्नल साहब चुपचाप बैडरूम में अंदर चले गए और पतलून निकाल कर पजामा पहन कर पलंग पर लेट गए। अपर्णा ने बर्फ के कुछ टुकड़े निकाल कर एक कटोरी में डाले और एक साफ़ कपड़ा लेकर वह जीतूजी के बगल में उनके सीने के पास ही अपने कूल्हे टिका कर पलंग पर बैठ गयी। जीतूजी का बुखार काफी तेज था। अपर्णा ने कपड़ा भिगोया और उसे निचोड़ कर जीतूजी के कपाल पर लगाया और प्यार से उसे दबा कर जीतूजी के सर पर हाथ फिराने लगी। जीतूजी आँखें बंद कर अपर्णा के कोमल हाथोँ के स्पर्श का आनंद लेरहे थे।

बिच में जब वह अपनी आँखें खोलते तो अपर्णा के करारे, फुले हुए, ब्लाउज और ब्रा के अंदर से बाहर आने को व्याकुल मस्त स्तन उनकी आँखों और मुंह के ठीक सामने दीखते थे। अपर्णा के स्तनोँ के बिच की गहरी खाई में से उसकी हल्के चॉकलेट रंग की एरोला की गोलाइयों में कैद निप्पलोँ की हलकी झांकी भी जीतूजी को हो रही थी। अपर्णा के बदन की खुसबू उनको पागल कर रही थी। कई बार अपर्णा के स्तन जीतूजी के मुंह को और आँखों को अनायास ही स्पर्श कर रहे थे। अपर्णा अपने काम में इतनी मशगूल थी की उसे इस बात का कोई भी ख़याल ही नहीं था की उसके मदमस्त स्तन जीतूजी की हालत खराब कर रहे थे। अपर्णा बार बार झुक कर कभी कपड़ा भिगो कर निचोड़ती तो कभी उसे जीतूजी के कपाल पर दबा कर अपने हाथोँ से इनका कपाल और उनका सर प्यार से दबाती और अपना हाथ उस पर फिराती रहती थी।

जब अपर्णा कर्नल साहब के सर पर कपड़ा दबाती तो उसे काफी झुकना पड़ता था जिसके कारण उसके स्तन जीतूजी के मुंहमें ही जा लगते थे। कर्नल साहब ने कई बार कोशिश की वह उन्हें नजरअंदाज करे पर आखिर वह भी तो एक मर्द ही थे ना? कब तक अपने आपको रोक सकते थे? एक बार अचानक ही जब अपर्णा झुकी और उसकी चूँचियाँ जीतूजी के मुंह में जा लगीं तो बीन चाहे जीतूजी का मुंह खुल गया और अपर्णा का एक स्तन जीतूजी के मुंह में घुस गया। कर्नल साहब अपने आपको रोक नहीं पाए और उन्होंने अपर्णा के स्तन को मुंह में लेकर वह उसे मुंह में ही दबाने और चूसने लगे। अपर्णा ने ब्लाउज और ब्रा पहन रखी थीं, पर जीतूजी के मुंह की लार से अपर्णा का ब्लाउज और ब्रा भीग गए। अपर्णा को महसूस हुआ की उसके स्तन जीतूजी अपने मुंह में लेकर चूस रहे थे। अपर्णा को इस कदर अपने इतने करीब पाकर जीतूजी का सर तो ठंडा हो रहा था पर उनके दो पॉंव के बिच उनका लण्ड गरम हो गया था। जल्दी में जीतूजी ने अंदर अंडरवियर भी नहीं पहना था। उनका पयजामा के ऊपर उनके लण्ड के खड़े होने के कारण तम्बू जैसा बन गया था। अपर्णा की पीठ उस तरफ थी इस कारण वह उसे देख नहीं सकती थी।

अपर्णा ने जब पाया की जीतूजी ने उसके एक स्तन को मुंह में लिया था तो वह एकदम घबड़ा गयी। उसने पीछे हटने के लिए एक हाथ का टेका लेने केलिए अपना हाथ पीछे किया तो वह जीतूजी की टाँगों के बिच में जा पहुंचा। अपर्णा ने अपना हाथ वहाँ टिकाया तो जीतूजी का लण्ड ही उसके हाथ में आ गया। यह दूसरी बार हुआ की अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपने हाथ में कपडे के दूसरी और महसूस किया था। एक तरफ अपर्णा को जीतूजी का बुखार की चिंता थी तो दूसरी और उनके नजदीक आने से वह भी तो गरम हो रही थी। अपर्णा की समझ में यह नहीं आ रहाथा की वह करे तो क्या करे? उसका एक स्तन जीतूजी के मुंह में था तो उसका हाथ जीतूजी का लण्ड पकडे हुए था। उसके हाथ में जीतूजी के लण्ड से निकल रही चिकनाहट महसूस हो रही थी। जीतूजी का पजामा भी उनकी टाँगों के बिच में फैली हुई चिकनाहट से भीग चुका था। अपर्णा ने अपना हाथ हिलाया तो उसकी मुठ्ठी में जीतूजी का लण्ड भी हिलने लगा।​
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