Update 09

पत्नी की अदला-बदली - 04

अपर्णा की हालत साँप छछूंदर निगले ऐसी हो गयी। ना वह निगल सकती थी और ना वह उगल सकती थी। ना वह जीतूजी को रोक सकती थी और नाही उन्हें आगे बढ़ने की इजाजत दे सकती थी। वह करे तो क्या करे? उस रात वह भी ठीक तरह सो नहीं पायी थी। उसके दिमाग में पिछली शामकी घंटनाएँ पूरी रात घूमती रहीथीं। रोहित का पीछा कौन कर रहा था? क्यों कर रहा था? वाकई में कर भी रहा था की नहीं? यह सवाल उसको खाये जा रहे थे। पर उस समय वह सब सोचने का वक्त नहीं था। उसे एक ही चिंता थी। अगर जीतूजी उसे चोदने के लिए मजबूर करेंगे तो वह क्या करेगी? एक बात साफ़ थी। अपर्णा जानती थी की उसमें उतनी हिम्मत नहीं थी की वह जीतूजी को रोक सके। इसका कारण यह था की वह खुद भी कहीं ना कहीं अपने मन की गहराइयों में जीतूजी से चुदवाना चाहती थी। अपर्णा को जीतूजी का मोटा, लंबा लण्ड उसकी चूत में कैसे फिट होगा उसकी जिज्ञासा मार रही थी। वह उस लण्ड को अपनी चूत में अनुभव करना चाहती थी। तो दूसरी और उसने माँ को दिया हुआ वचन था। उसे अपने पति से धोका करेगी उसकी चिंता नहीं थी, क्यूंकि उसके पति को अगर अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए राजी हो जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी यह अपर्णा जानती थी। बल्कि अपर्णा के पति रोहित तो अपर्णा को जीतूजी का नाम लेकर उकसाने के लिए जी भर कोशिश कर रहे थे। जाहिर था की रोहित चाहते थे की कभी ना कभी अपर्णा जीतूजी से चुदवाले ताकि उनका रास्ता साफ़ हो जाये। मतलब अपर्णा के पति रोहित जी भी तो जीतूजी की बीबी श्रेया को चोदना चाहते थे ना? अगर अपर्णा जीतूजी से चुदवाने लगी तो फिर अपर्णा भी तो अपने पति रोहित को जीतूजी की बीबी श्रेया को चोदने से कैसे रोक सकती है?

हालांकि अपर्णा ने कभी अपने पति को किसी भी औरत को चोदने से रोकना नहीं चाहा। अपर्णा जानती थी की उसके पति भी रंगीले मिज़ाज के तो हैं ही। वह विदेश में जाते हैं तो वहाँ तो औरतें, अगर कोई मर्द मन भाया तो, अक्सर अपनी टाँगों को खोलने में देर नहीं करतीं। मर्दों को अपने देश की तरह वहाँ खूबसूरत औरतों को चोदने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ते। इस लिए अपर्णा ने मानसिक रूप से यह स्वीकार कर लिया था की उसके पति रोहित मौक़ा मिलने पर दूसरी औरतों को चोदते थे और इसके बारे में ना तो वह अपने पति से पूछती थी और ना तो उसके पति अपर्णा को कुछ बताते थे। तो मानसिक रूप से उनका वैवाहिक जीवन खुला सा ही था। पर बात यहां अपर्णा की अपनी अस्मिता की थी। अपर्णा को लगा की वह उस समय ज्यादा कुछ सोचने की स्थिति में नहीं थी। दबाव के मारे उसका सर फटा जा रहा था। उसे कुछ ज्यादा ही थकान महसूस हो रही थी। उसकी बगल में जीतूजी भी शायद नींद में थे क्यूंकि काफी समय से उन्होंने अपनी आँखें खोली नहीं थी और उनकी साँसे एक ही गति से मंद मंद चल रहीं थी। अपर्णा को एक नींद की झपकी आ गयी और वह जीतूजी के बदन पर ही लुढ़क गयी। उसका एक स्तन जीतूजी के मुंह में था वह जानते हुए भी वह उस समय कुछ कर पाने के लिए असमर्थ थी।

अपर्णा गहरी नींद में बेहोश सी हालत में जीतूजी के मुंह में अपना एक स्तन धरे हुए जीतूजी के ऊपर अपना बदन झुका कर ही सो गयी। कर्नल साहब भी बुखार के कारण आधी निंद और आधे जागृत अवस्था में थे। उनके जहन में अजीब सा रोमांच था। उनके सपनों की रानी अपर्णा उनपर अपना पूरा बदन टिका कर सो रही थी। उसका एक मद मस्त स्तन जीतूजी के मुंह में था जिसका रसास्वादन वह कर रहे थे, हालांकि अपर्णा ने ब्लाउज और ब्रा पहन रक्खी थी।

जब कर्नल साहब थोड़ा अपनी तंद्रा से बाहर आये तो उन्होंने अपर्णा का आधा बदन अपने बदन पर पाया। कर्नल साहब जानते थे की अपर्णा एक मानिनी थी। वह किसी भी मर्द को अपना तन आसानी से देने वाली नहीं थी। श्रेया ने उनको बताया था की अपर्णा एक राजपूतानी थी और उसने प्रण लिया था की वह अगर किसीको अपना तन देगी तो उसको देगी जो अपर्णा के ऊपर अपना प्राण तक न्योछवर करने के लिए तैयार हो। किसी भी ऐसे वैसे मर्द को अपर्णा अपना तन कभी नहीं देगी। कर्नल साहब ऐसी महिलाओं की इज्जत करना जानतेथे। वह कभी भी स्त्रियोंकी कमजोरी का फायदा उठाने में विश्वास नहीं रखते थे। यह उनके उसूल के खिलाफ था। पर उनकी भी हालत ख़राब थी। वह ना सिर्फ अपर्णा के बदन के, बल्कि अपर्णा के पुरे व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। अपर्णा की सादगी, भोलापन, शूरवीरता, देश प्रेम, जोशके वह कायलथे। अपर्णा की बातें करते हुए हाथों और उँगलियों को हिलाना, आँखों को नचाना बगैरह अदा पर वह फ़िदा थे। और फिर उन्होंने अपर्णा को इस हाल में अपने पर गिरने के लिए मजबूर भी तो नहीं किया था। अपर्णा अपने आप ही आकर उनकी इतनी करीबी सेवा में लग गयी थी। उन्होंने अपने लण्ड पर भी अपर्णा का हाथ महसूस किया था। कर्नल साहब भी क्या करे? क्या अपर्णा उनपर अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार थी? यह सब सवाल कर्नल साहब को भी खाये जा रहे थेl

खैर कर्नल साहब थोड़ा खिसके और अपर्णा के स्तन को मुंह से निकाल कर अपर्णा को धीरे से अपने बगल में सुला दिया। अपर्णा का ब्लाउज और उसकी ब्रा जीतूजी के मुंह की लार के कारण पूरी तरह गीली हो चुकी थी। जीतूजी को अपर्णा के स्तन के बिच में गोला किये हुए अपर्णा के स्तन का गहरे बादामी रंग का एरोला और उसके बिलकुल केंद्र में स्थित फूली हुई निप्पल की झांकी हो रही थी। कर्नल साहब की समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। पर उस समय उन्होंने देखा की अपर्णा गहरी नींद सो रही थी। उन्होंने अपर्णा को एक करवट लेकर ऐसे लिटा दिया जिससे अपर्णा का पिछवाड़ा कर्नल साहब की और हो। अपर्णा की गाँड़ कर्नल साहब के लण्ड से टकरा रही थी। कर्नल साहब ने अपना हाथ अपर्णा की बाँह और कंधेके ऊपर से अपर्णा के स्तन पर रख दिया। वह इतना तो समझ गए थे की अपर्णा को अपना बदन जीतूजी से छुआ ने में कोई भारी आपत्ति नहीं होगी। क्यूंकि जीतूजी ने पहले भी तो अपर्णा के स्तन छुए थे। उस समय अपर्णा ने कोई विरोध नहीं किया था। अपर्णा गहरी नींद में एक सरीखी साँसे लेती हुई मुर्दे की तरह लेटी हुई थी। उसे कुछ होश न था। जीतूजी ने धीरे से अपर्णा के ब्लाउज के बटन खोल दिए। फिर उन्होंने दूसरे हाथ से पीछे से अपर्णा की ब्रा के हुक खोल दिए। अपर्णा के अल्लड़ करारे स्तन पूरी स्वच्छंदता से आज़ाद हो चुके थे। जीतूजी बदन में रोमांचक सिहरनें उठ रही थी। जीतूजी के रोंगटे खड़े हो गए थे। जीतूजी ने दुसरा हाथ धीरे से अपर्णा के बदन के निचे से घुसा कर अपर्णा को अपनी बाँहों में ले लिया। जीतूजी दोनों हाथोँ से अपर्णा के स्तनोँ को दबाने मसलने और अपर्णा के स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में लग गए। अपने हाथों की हाथेलियों में अपर्णा के दोनों स्तनोँ को महसूस करते ही जीतूजी का लण्ड फुंफकार मारने लगा था। कर्नल साहब ने अपर्णा का निचला बदन अपनी दोनों टाँगों के बीचमें ले लिया। अपर्णा उस समय जीतूजी की दोनों बाँहों में और उनकी दोनों टांगों के बिच कैद थी।

ऐसा लगता था जैसे उस समय अपर्णा थी ही नहीं।

अपर्णा और जीतूजी दोनों जैसे एक ही लग रहे थे। जीतूजी का लण्ड इतना फुंफकार रहा था की जीतूजी उसे रोकना नामुमकिन सा महसूस कर रहे थे। जीतूजी महीनों से अपर्णा को अपने इतने करीब अपनी बाहों में लाने के सपने देख रहे थे। अपर्णा के स्तन, उसकी गाँड़, उसका पूरा बदन और ख़ास कर उसकी चूत चूसने के लिए वह कितने व्याकुल थे? उसी तरह उनकी मँशा थी की एक ना एक दिन अपर्णा भी उनका लण्ड बड़े प्यार से चूसेगी और अपर्णा एक दिन उनसे आग्रह करेगी वह अपर्णा को चोदे। यह उनका सपना था। यह सब सोच कर भला ऊनका लण्ड कहाँ रुकता? जीतूजी का लण्ड तो अपनी प्यारी सखी अपर्णा की चूत में घुसने के लिए बेचैन था। उसे अपर्णा की चूत में अपना नया घर जो बनाना था। अपर्णा उस समय साडी पहने हुए थी। कर्नल साहब ने देखा की अपर्णा को ऊपर निचे खिसकाने के कारण अपर्णा की साडी उसकी जाँघों से ऊपर तक उठ चुकी थी। अपर्णा की करारी मांसल सुडौल नंगी जाँघें देख कर जीतूजी का मन मचल रहा था। पर जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रक्खा और अपर्णा को खिंच कर कस कर अपनी बाँहों में और अपनी टाँगों के बिच दबोचा और अपर्णा के बदन का आनंद लेने लगे।

जाहिर था की जीतूजी का मोटा लंबा लण्ड पजामें में परेशान हो रहा था। एक शेर को कैद में बंद करने से वह जैसे दहाड़ता है वैसे ही जीतूजी लण्ड पयजामे में फुंफकार मार रहा था। अपर्णा की गाँड़ और उसकी ऊपर उठी हुई साडी के कारण जीतूजी का लण्ड अपर्णा की गाँड़ की बिच वाली दरार में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। पर बिच में साडी का मोटासा लोचा था। जीतूजी अपर्णा की गाँड़ में साडी के कपडे के पीछे अपना लण्ड घुसा कर संतोष लेने की कोशिश कर रहे थे। पर अपर्णा के नंगे स्तन उनकी हथेलियों में खेल रहे थे। उसे सहलाने में, उन्हें दबानेमें और मसलने में और उन स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में जीतूजी मशगूल ही थे की उन्हें लगा की अपर्णा जाग रही थी।

अपनी नींद की गहरी तंद्रा में अपर्णा ने ऐसे महसूस किया जैसे वह अपने प्यारे जीतूजी की बाँहों में थी। उसे ऐसा लगा जैसे जीतूजी उसकी चूँचियों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते तो कभी उसकी निप्पलों को अपनी उँगलियों में कुचलते थे। वह मन ही मन बड़ा आनंद महसूस कर रही थी। उसे यह सपना बड़ा प्यारा लग रहा था। बेचारी को क्या पता था की वह सपना नहीं असलियत थी? जब धीरे धीरे अपर्णा की तंद्रा टूटी तो उसने वास्तव में पाया की वह सचमुच में ही जीतूजी की बाँहों और टाँगों के बिच में फँसी हुई थी। जीतूजी का मोटा और लम्बा लण्ड उसकी गाँड़ की दरार को टोंच रहा था। हालांकि उसकी गाँड़ नंगी नहीं थी। बिच में साडी, घाघरा और पेंटी थी, वरना शायद जीतूजी का लण्ड उसकी गाँड़ में या तो चूत में चला ही जाता। शायद अपर्णा की गाँड़ में तो जीतूजी का मोटा लण्ड घुस नहीं पाता पर चूत में तो जरूर वह चला ही जाता। अपर्णा ने यह भी अनुभव किया की वास्तव में ही जीतूजी उसके दोनों स्तनों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते और कुचलते थे। वह इस अद्भुत अनुभव का कुछ देर तक आनंद लेती रही। वह यह सुनहरा मौक़ा गँवा देना नहीं चाहती थी। ऐसे ही थोड़ी देर पड़े रहने के बाद उसने सोचा की यदि वह ऐसे ही पड़ी रही तो शायद जीतूजी उसे स्वीकृति मानकर उसकी साडी, घाघरा ऊपर कर देंगे और उसकी पेंटी को हटा कर उसको चोदने के लिए उस के ऊपर चढ़ जाएंगे और तब अपर्णा उन्हें रोक नहीं पाएगी। अपर्णा ने धीरे से अपने स्तनों को सहलाते और दबाते हुए जीतूजी के दोनों हाथ अपने हाथ में पकडे। जीतूजी का विरोध ना करते हुए अपर्णा ने उन्हें अपने स्तनोँ के ऊपर से नहीं हटाया। बस जीतूजी के हाथों को अपने हाथों में प्यार से थामे रक्खा।

जीतूजी फिर भी बड़े प्यार से अपर्णा के स्तनों को दबाते और सँवारते रहे। अपर्णा ने जीतूजी के हाथों को दबा कर यह संकेत दिया की वह जाग गयी थी। अपर्णा ने फिर जीतूजी के हाथों को ऊपर उठा कर अपने होठों से लगाया और दोनों हाथों को धीरे से बड़े प्यार से चूमा। फिर अपना सर घुमा कर अपर्णा ने जीतूजी की और देखा और मुस्काई। हालांकि अपर्णा जीतूजी को आगे बढ़ने से रोकना जरूर चाहती थी पर उन्हें कोई सदमा भी नहीं देना चाहती थी। अपर्णा खुद जीतूजी से चुदवाना चाहती थी। पर उसे अपनी मर्यादा का पालन भी करना था। अपर्णा ने धीरे से करवट बदली और जीतूजी के हाथों और टाँगों की पकड़ को थोड़ा ढीले करते हुए वह पलटी और जीतूजी के सामने चेहरे से चेहरा कर प्रस्तुत हुई।

अपर्णा ने जीतूजी जी की आँखों से आँखें मिलाई और हल्का सा मुस्कुराते हुए जीतूजी को धीरे से कहा, "जीतूजी, मैं आपके मन के भाव समझती हूँ। मैं जानती हूँ की आप क्या चाहते हैं। मेरे मन के भाव भी अलग नहीं हैं। जो आप चाहते हैं, वह मैं भी चाहती हूँ l जीतूजी आप मुझे अपनी बनाना चाहते हो, तो मैं भी आपकी बनना चाहती हूँ। आप मेरे बदन की चखना करते हो तो मैं भी आपके बदन से अपने बदन को पूरी तरह मिलाना चाहती हूँ। पर इसमें मुझे मेरी माँ को दिया हुआ वचन रोकता है। मैं आपको इतना ही कहना चाहती हूँ की आप मेरे हो या नहीं यह मैं नहीं जानती, पर मैं आपको कहती हूँ की मैं मन कर्म और वचन से आपकी हूँ और रहूंगी। बस यह तन मैं आपको पूरी तरह से इस लिए नहीं सौंप सकती क्यूंकि मैं वचन से बंधी हूँ l इसके अलावा मैं पूरी तरह से आपकी ही हूँ। यदि आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार कर सकतेहो तो मुझे अपनी बाँहों में ही रहने दो और मुझे स्वीकार करो। बोलो क्या आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार करने के लिए तैयार हो?

यह सुनकर कर्नल साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कभी सोचा नहीं था की वास्तव में कोई उनसे इतना प्रेम कर सकता है। उन्होंने अपर्णा को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हें कोई भी रूप में कैसे भी अपनी ही मानता हूँ।" यह सुनकर कर अपर्णा ने अपनी दोनों बाँहें जीतूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर अपर्णा ने अपने होँठ जीतूजी से होँठ पर चिपका दिए। जीतूजी भी पागल की तरह अपर्णा के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने अपर्णा की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और अपर्णा के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की अपर्णा ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें अपर्णा का सब कुछ मिल गया हो।

जीतूजी गदगद हो कर बोले, "मेरी प्यारी अपर्णा, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।" अपर्णा ने जीतूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, "मैं कहीं श्रेया का हक़ तो नहीं छीन रही?" जीतूजी ने भी हंस कर कहा, "तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? श्रेया का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?"

अपर्णा ने जीतूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, "जीतूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।"

जीतूजी कुछ समझे इसके पहले अपर्णा ने जीतूजी की दो जॉंघोंके बिचमें से उनका लण्ड पयजामेके ऊपरसे पकड़ा। अपर्णा ने अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल दिए और उसके हाथ में जीतूजी इतना मोटा और लम्बा लण्ड आ गया की जिसको देख कर और महसूस कर कर अपर्णा की साँसे ही रुक गयीं। उसने फिल्मों में और रोहित जी का भी लंड देखा था। पर जीतूजी का लण्ड वाकई उनके मुकाबले कहीं मोटा और लंबा था। उसके लण्ड के चारों और इर्दगिर्द उनके पूर्वश्राव पूरी चिकनाहट फैली हुई थी। अपर्णा की हथेली में भी वह पूरी तरहसे समा नहीं पाता था। अपर्णा ने उसके इर्दगिर्द अपनी छोटी छोटी उंगलियां घुमाईं और उसकी चिकनाहट फैलाई। अगर उसकी चूतमें ऐसा लण्ड घुस गया तो उसका क्या हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह लण्ड अपनी चूत में नहीं लेना था। अपर्णा सोचने लगीकी श्रेया जब जीतूजी से चुदवाती होंगी तो उनका क्या हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस लण्ड से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उन्हें अब जीतूजी के लण्ड को घुसाने में उतना कष्ट नहीं होता होगा जितना पहले होता होगा।

अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "जीतूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिचही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की रोहित श्रेया के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?"

जीतूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को रोहित की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।" अपर्णा को बुरा लगा की जीतूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जीतूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जीतूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की "हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जीतूजी अपर्णाको चोद भी सके और माँ का वाचन भंग भी ना हो।" पर अपर्णा यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद अपर्णा उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह अपर्णा को इस जनम में तो जीतूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।

अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी छोटी छोटी हथेलियों में लिया और उसे सहलाने और हिलाने लगी। वह चाहती थी की जीतूजीका वीर्य स्खलन उसकी उँगलियों में हो और वह भले ही उस वीर्य को अपनी चूत में ना डाल सके पर जीतूजी की ख़ुशी के लिए वह उस वीर्य काआस्वादन जरूर करेगी। अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड को पहले धीरे से और बाद में जैसे जैसे जीतूजी का उन्माद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से हिलाने लगी। साथ साथ में अपर्णा और जीतूजी मुस्काते हुए एक प्यार भरे प्रगाढ़ चुम्बनमें खो गए।

कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में अपर्णा की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जीतूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते अपर्णा की बाहें भी थक रही थीं तब जीतूजी का बदन एकदम अकड़ गया। उन्होंने अपर्णा के स्तनों को जोरसे दबाया और "ओह.... अपर्णा..... तुम कमाल हो....." कहते हुए अचानक ही जीतूजी के लण्ड के छिद्र से जैसे एक फव्वारा फूट पड़ा जो अपर्णा के चेहरे पर ऐसे फ़ैल गया जैसे अपर्णा का चेहरा कोई मलाई से बना हो। उस दिन सुबह ही सुबह अपर्णा ने ब्रेकफास्ट में वह नाश्ता किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। अपर्णा ने जीतूजी से एक वचन माँगते हुए कहा, "जीतूजी मैं और आप दोनों, आपकी पत्नी श्रेया को और मेरे पति रोहित को हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा के बारे में कुछ भी नहीं बताएँगे। वैसे तो उनसे छुपाने वाली ऐसी कोई बात तो हुई ही नहीं जिसे छिपाना पड़े पर जो कुछ भी हुआ है उसे भी हम जाहिर नहीं करेंगे l मैं हमारे बिच हुई प्रेम क्रीड़ा को मेरे पति रोहित और आप की पत्नी श्रेया से छिपा के रखना चाहती हूँ ताकि सही समय पर उन्हें मैं इसे धमाके से पेश करुँगी की दोनों चौंक जाएंगे और तब बड़ा मजा आएगा।"

कर्नल साहब अपर्णा की और विस्मय से जब देखने लगे तब अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थाम कर कहा, "आप कैसे क्या करना है वह सब मुझ पर छोड़ दीजिये। मैं चाहती हूँ की आपकी पत्नी और मेरी दीदी श्रेया से मेरे पति रोहित का ऐसा धमाकेदार मिलन हो की बस मजा आ जाये!" अपर्णा का आगे बोलते हुए मुंह खिन्नता और निराशा से मुरझा सा गया जब वह बोली, "मेरे कारण मैं आपको चरम पर ले जा कर उस उन्मादपूर्ण सम्भोग का आनंद नहीं दे पायी जहां मेरे साथ मैं आपको ले जाना चाहती थी l पर मैं चाहती हूँ की वह दोनों हमसे कहीं ज्यादा उस सम्भोग का आनंद लें, उनके सम्भोग का रोमांच और उत्तेजना इतनी बढ़े की मजा आ जाए। इस लिए जरुरी है की हम दोनों ऐसा वर्तन करेंगे जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं और हम दोनों एक दूसरे के प्रति वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे पहले करते थे। आप श्रेया से हमेशा मेरे बारे में ऐसे बात करना जैसे मैं आपके चुंगुल में फँसी ही नहीं हूँ।" जीतूजी ने अपर्णा अपनी बाहों में ले कर कहा, "बात गलत भी तो नहीं है। तुम इतनी मानिनी हो की मेरी लाख मिन्नतें करने पर भी तुम कहाँ मानी हो? आखिरकार तुमने अपनी माँ का नाम देकर मुझे अंगूठा दिखाही दियाना?" जब अपर्णा यह सुनकर रुआंसी सी हो गयी, तो जीतूजी ने अपर्णा को कस कर चुम्बन करते हुए कहा, "अरे पगली, मैं तो मजाक कर रहा था। पर अब जब तुमने हमारी प्रेम क्रीड़ा को एक रहस्य के परदेमें रखने की ठानी ही है तो फिर मैं एक्टिंग करने में कमजोर हूँ। मैं अब मेरे मन से ऐसे ही मान लूंगा की जैसे की तुमने वाकई में मुझे अंगूठा दिखा दिया है और मेरे मन में यह रंजिश हमेशा रखूँगा और हो सकता है की कभी कबार मेरे मुंहसे ऐसे कुछ जले कटे शब्द निकल भी जाए। तब तुम बुरा मत मानना क्यूंकि मैं अपने दिमाग को यह कन्विंस कर दूंगा की तुम कभी शारीरिक रूप से मेरे निकट आयी ही नहीं और आज जो हुआ वह हुआ ही नहीं l आज जो हुआ उसे मैं अपनी मेमोरी से इरेज कर दूंगा, मिटा दूंगा। ठीक है? तुम भी जब मैं ऐसा कुछ कहूं या ऐसा वर्तन करूँ तो यह मत समझना की मैं वाकई में ऐसा सोचता हूँ। पर ऐसा करना तो पडेगा ही। तो बुरा मत मानना, प्लीज?"

जीतूजी ने फिर थम कर थोड़ी गंभीरतासे अपर्णा की और देख कर कहा, "पर जानूं, मैं भी आज तुमसे एक वादा करता हूँ। चाहे मुझे अपनी जान से ही क्यों ना खेलना पड़े, अपनी जान की बाजी क्यों ना लगानी पड़े, एक दिन ऐसा आएगा जब तुम सामने चल कर मेरे पास आओगी और मुझे अपना सर्वस्व समर्पण करोगी l मैं अपनी जान हथेली में रख कर घूमता हूँ। मेरे देश के लिए इसे मैंने आज तक हमारी सेना में गिरवी रखा था। अब मैं तुम्हारे हाथ में भी इसे गिरवी रखता हूँ l अगर तुम राजपूतानी हो तो मैं भी हिंदुस्तानी फ़ौज का जाँबाज़ सिपाही हूँ। मैं तुम्हें वचन देता हूँ की जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मैं तुम पर अपना वचन भंग करने का कोई मानसिक दबाव नहीं बनाऊंगा। इतना ही नहीं, मैं तुम्हें भी कमजोर नहीं होने दूंगा की तुम अपना वचन भंग करो।"

अपर्णा ने जब जीतूजी से यह वाक्य सुने तो वह गदगद हो गयी। अपर्णा के हाथ में जीतूजी का आधा तना हुआ लंड था जिसे वह प्यार से सेहला रही थी। अचानक ही अपर्णा के मन में क्या उफान आया की वह जीतूजी के लण्ड पर झुक गयी और उसे चूमने लगी। अपर्णा की आँखों में आँसू छलक रहे थे l अपर्णा जीतूजी के लण्ड को चूमते हुए और उनके लण्ड को सम्बोधित करते हुए बोली, "मेरे प्यारे जीतूजी के प्यारे सिपाही! मुझे माफ़ करना की मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली, जो मेरी दो जॉंघों के बिच है, उसके घर में घुस ने की इजाजत नहीं दे सकती। तुम मुझे बड़े प्यारे हो। मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली से भले ही ना मिला पाऊँ पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।" अपर्णा ने जीतूजी के पॉंव सीधे किये और फिर से सख्त हुए उनके लण्ड के ऊपर अपना मुंह झुका कर लण्ड को अपने मुंह में लेकर उसे चूमने और चूसने लगी। हर बार जब भी वह जीतूजी के लण्ड को अपने मुंह से बाहर निकालती तो आँखों में आँसूं लिए हुए बोलती, "मुझे माफ़ करना मेरे जीतूजी के दूत, मुझे माफ़ करना। मैं तुम्हें तुम्हारी सखी से मिला नहीं सकती।" अपर्णा ने फिर से जीतूजी के लण्ड को कभी हाथों से तो कभी मुंह में चूस कर और हिला कर इतना उन्माद पूर्ण और उत्तेजित किया की एक बार फिर जीतूजी का बदन ऐसे अकड़ गया और एक बार फिर जीतूजी के लण्ड के छिद्र में से एक पिचकारी के सामान फव्वारा छूटा और उस समय अपर्णा ने उसे पूरी तरह से अपने मुंह में लिया और उसे गटक गटक कर पी गयी।

उस दिन तक अपर्णा ने कभी कभार अपने पति का लंड जरूर चूमा था और एक बार हल्का सा चूसा भी था, पर उनका वीर्य अपने मुंह में नहीं लिया था। अपर्णा को ऐसा करना अच्छा नहीं लगता था। पर आज बिना आग्रह किये अपर्णा ने अपनी मर्जी से जीतूजी का पूरा वीर्य पी लिया। अपर्णा को उस समय जरासी भी घिन नहीं हुई और शायद उसे जीतूजी के वीर्य का स्वाद अच्छा भी लगा। कहते हैं ना की अप्रिय का सुन्दर चेहरा भी अच्छा नहीं लगता पर अपने प्रिय की तो गाँड़ भी अच्छी लगती है। काफी देर तक अपर्णा आधे नंगे जीतूजी की बाँहों में ही पड़ी रही। अब उसे यह डर नहीं था की कहीं जीतूजी उसे चुदने के लिए मजबूर ना करे। जीतूजी के बदन की और उनके लण्ड की गर्मी अपर्णा ने ठंडी कर दी थी। जीतूजी अब काफी अच्छा महसूस कर रहे थे। अपर्णा उठ खड़ी हुई और अपनी साडी ठीक ठाक कर उसने जीतूजी को चूमा और बोली, "जीतूजी, मैं एक बात आपसे पूछना भूल ही गयी। मैं आपसे यह पूछना चाहती थी की आप कुछ वास्तव में छुपा रहे हो ना, उस पीछा करने वाले व्यक्ति के बारे में? सच सच बताना प्लीज?"

कर्नल साहब ने अपर्णा की और ध्यान से देखा और थोड़ी देर मौन हो गए, फिर गंभीरता से बोले, "देखो अपर्णा, मुझे लगता है शायद यह सब हमारे मन का वहम था। जैसाकी आपके पति रोहित ने कहा, हमें उसे भूल जाना चाहिए।" अपर्णा को फिर भी लगा की जीतूजी सारी बात खुलकर बोलना उस समय ठीक नहीं समझते और इस लिए अपर्णा ने भी उस बात को वहीँ छोड़ देना ही ठीक समझा।

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उस सुबहके बाद कर्नल साहब और अपर्णा एक दूसरे से ऐसे वर्तन करने लगे जैसे उस सुबह उनके बिच कुछ हुआ ही नहीं और उनके बिच अभी दूरियां वैसे ही बनी हुई थीं जैसे पहले थीं।

पहाड़ों में छुट्टियां मनाने जाने का दिन करीब आ रहा था। अपर्णा अपने पति रोहित के साथ पैकिंग करने और सफर की तैयारी करने में जुट गयी। दोनों जोड़ियों का मिलना उन दिनों हुआ नहीं। फ़ोन पर एक दूसरे से वह जरूर सलाह मशवरा करते थे की तैयारी ठीक हो रही है या नहीं। एक बार जब अपर्णा ने जीतूजी को फ़ोन कर पूछा की क्या जीतूजी श्रेया छुट्टियों में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, तो जीतूजी ने अपर्णा को फ़ोन पर ही एक लंबा चौड़ा भाषण दे दिया।

कर्नल साहब ने कहा, "अपर्णा मैं आप और रोहित से यह कहना चाहता हूँ की यह कोई छुट्टियां मनाने हम नहीं जा रहे। यह भारतीय सेना का भारत के युवा नागरिकों के लिए आतंकवाद से निपटने में सक्षम बनाने के लिए आयोजित एक ट्रेनिंग प्रोग्राम है l इस में सेना के कर्मचारियों के रिश्तेदार और मित्रगण ही शामिल हो सकते हैं। इस प्रोग्राम में शामिल होने के किये जरुरी राशि देने के अलावा सेना के कोई भी आला अधिकारी की सिफारिश भी आवश्यक है। सब शामिल होने वालों का सिक्योरिटी चेक भी होता है l इस में रोज सुबह छे बजे कसरत, पहाड़ों में ट्रेक्किंग (यानी पहाड़ चढ़ना या पहाड़ी रास्तों पर लंबा चलना), दोपहर आराम, शाम को आतंकवाद और आतंक वादियों पर लेक्चर और देर शाम को ड्रिंक्स, डान्स बगैरह का कार्यक्रम हैl हम छुट्टियां तो मनाएंगे ही पर साथ साथ आम नागरिक आतंकवाद से कैसे लड़ सकते हैं या लड़ने में सेना की मदद कैसे कर सकते हैं उसकी ट्रेनिंग दी जायेगी। मैं भी उन ट्रैनिंग के प्रशिक्षकों में से एक हूँ। आपको मेरा लेक्चर भी सुनना पडेगा।"

रोहित को यह छुट्टियां श्रेया के करीब जानेका सुनहरा मौक़ा लगा। साथ साथ वह इस उधेड़बुन में भी थे की इन छुट्टियों में कैसे अपर्णा और जीतूजी को एक साथ किया जाए की जिससे उन दोनोंमें भी एक दूसरेके प्रति जबरदस्त शारीरिक आकर्षण हो और मौक़ा मिलते ही दोनों जोड़ियों का आपस में एक दूसरे के जोड़ीदार से शारीरिक सम्भोग हो। वह इस ब्रेक को एक सुनहरी मौक़ा मान रहे थे।

जिस दिन सुबह ट्रैन पकड़नी थी उसके अगले दिन रात को बिस्तर में रोहित और अपर्णा के बिच में कुछ इस तरह बात हुई। रोहित अपर्णा को अपनी बाहों में लेकर बोले, "डार्लिंग, कल सुबह हम एक बहुत ही रोमांचक और साहसिक यात्रा पर निकल रहे हैं और मैं चाहता हूँ की इसे और भी उत्तेजक और रोमांचक बनाया जाए।". यह कह कर रोहित ने अपनी बीबी के गाउन के ऊपर से अंदर अपना हाथ डालकर अपर्णा के बूब्स को सहलाना और दबाना शुरू किया।

अपर्णा मचलती हुई बोली, "क्या मतलब?" रोहित ने अपर्णा की निप्पलों को अपनी उँगलियों में लिया और उन्हें दबाते हुए बोले, "हनी, हमने जीतूजी को आपको पढ़ाने के लिए जो योगदान दिया है उसके बदले में कुछ भी तो नहीं दिया l हाँ यह सच है की उन्होंने भी कुछ नहीं माँगा। ना ही उन्होंने कुछ माँगा और नाही हम उन्हें कुछ दे पाए हैं। तुम भी अच्छी तरह जानती हो की जीतूजी से हम गलती से भी पैसों की बात नहीं कर सकते। अगर उन्हें पता लगा की हमने ऐसा कुछ सोचा भी था तो वह बहुत बुरा मान जाएंगे। फिर हम करें तो क्या करें? तो मैंने एक बात सोची है। पता नहीं तुम मेरा समर्थन करोगी या नहीं। हम दोनों यह जानते हैं की जीतूजी वाकई तुम पर फ़िदा हैं। यह हकीकत है और इसे छिपाने की कोई जरुरत नहीं है। मुझे इस बात पर कोई एतराज नहीं है। हम जवान हैं और एक दूसरे की बीबी या शौहर के प्रति कुछ थोड़ा बहोत शारीरिक आकर्षण होता है तो मुझे उसमें कोई बुराई नहीं लगती।" अपने पति की ऐसे बहकाने वाली बात सुनकर अपर्णा की साँसे तेज हो गयीं। उसे डर लगा की कहीं उसके पति को अपर्णा की जीतूजी के साथ बितायी हुई उस सुबह का कुछ अंदाज तो नहीं हो गया था? शायद वह बातों ही बातों में इस तरह उसे इशारा कर रहे थे। रोहित ने शायद अपर्णा की हालत देखि नहीं।

अपनी बात चालु रखते हुए वह बोले, "मैं ऐसे कई कपल्स को जानता हूँ जो कभी कभार आपसी सहमति से या जानबूझ कर अनजान बनते हुए अपनी बीबी या शौहर को दूसरे की बीबी या शौहर से शारीरिक सम्बन्ध रखने देते हैं। फिर भी उनका घरसंसार बढ़िया चलता है, क्यूंकि वह अपने पति या पत्नी को बहोत प्यार करते हैं l उन्हें अपने पति या पत्नी में पूरा विश्वास है की जो हो रहा है वह एक जोश और शारीरिक उफान का नतीजा है। वक्त चलते वह उफान शांतहो जाएगा। इस कारण जो हो रहा है उसे सहमति देते हैं या फिर जानते हुए भी अपने शोहर या बीबी की कामना पूर्ति को ध्यान में रखे हुए ऑंखें मूँद कर उसे नजरअंदाज करते हैं। जीतूजी तुम्हारी कंपनी एन्जॉय करते हैं यह तो तुम भी जानती हो। में चाहता हूँ की इस टूर में तुम जीतूजी के करीब रहो और उन्हें कंपनी दे कर कुछ हद तक उनके मन में तुम्हारी कंपनी की जो इच्छा है उसे पूरी करो। अगर तुम्हें जीतूजी के प्रति शारीरिक आकर्षण ना भी हो तो यह समझो की तुम कुछ हद तक उनका ऋण चुका रही हो।"

पति की बात सुनकर अपर्णा गरम होने लगी। अपर्णा के पति अपर्णा को वह पाठ पढ़ा रहे थे जिसमें अपर्णा ने पहले ही डिग्री हासिल कर ली थी। उसके बदन में जीतूजीके साथ बितायी सुबह का रोमांच कायम था। वह उसे भूल नहीं पा रही थी। अपने पति की यह बात सुन कर अपर्णा की चूत गीली हो गयी। उसमें से रस रिसने लगा।

अपर्णा ने पति रोहित के पायजामे का नाड़ा खोला और उसमें हाथ डाल कर वह अपने पति का लण्ड सहलाने लगी। तब उसे जीतूजी का मोटा और लंबा लण्ड जैसे अपनी आँखों के सामने दिखने लगा। अनायास ही अपर्णा अपने पति के लण्ड के साथ जीतूजी के लण्ड की तुलना करने लगी। रोहित का लण्ड काफी लंबा और मोटा था और जब तक अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड नहीं महसुस किया था तब तक तो वह यही समझ रही थी की अपने पति रोहित के लण्ड जितना लंबा और मोटा शायद ही किसी मर्द का लण्ड होगा। पर जीतूजी का लण्ड देखने के बाद उसकी गलतफहमी दूर हो गयी थी। हो सकता है की जीतूजी के लण्ड से भी लंबा और मोटा किसी और मर्द का लण्ड हो।

लेकिन अपर्णा यह समझ गयी थी की किसी भी औरतकी पूर्णतयः कामुक संतुष्टि केलिए जीतूजी का लण्ड ना सिर्फ काफी होगा बल्कि शुरू शुरू में काफी कष्टसम भी हो सकता है। यही बात श्रेया ने भी तो अपर्णा को कही थी। अपनी कामुकता को छिपाते हुए स्त्री सुलभ लज्जा के नखरे दिखाते हुए अपर्णा ने अपने पति के लण्ड को हिलाना शुरू किया और बोली, "देखो जानू! मुझसे यह सब मत करवाओ। मुझे तुम अपनी ही रहने दो। तुम जो सोच रहे या कह रहे हो ऐसा सोचने से या करने से गड़बड़ हो सकती है। तुम जीतूजी को तो भली भांति जानते हो ना? तुम्हें तो पता है, उस दिन सिनेमा हॉल में क्या हुआ था? तुम्हारे जीतूजी कितने उत्तेजित हो गए थे और मेरे साथ क्या क्या करने की कोशिश कर रहे थे और मैं भी उन्हें रोक नहीं पा रही थी? वह तो अच्छा था की हम सब इतने बड़े हॉल में सब की नज़रों में थे l वरना पता नहीं क्या हो जाता? हाँ मैं यह जानती हूँ की तुम श्रेया पर बड़ी लाइन मार रहे हो और उन्हें अपने चंगुल में फाँसने की कोशिश कर रहे हो। तो मैं तुम्हें पूरी छूट देती हूँ की यदि उन दोनों को इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो तुम खूब उनके साथ घूमो फिरो और जो चाहे करो। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है।"

अपर्णा की धड़कन तेज हो गयी थीं। वह अपने पति के ऊपर चढ़ गयी। उनके होँठों पर अपने होँठ रख कर अपर्णा उनको गहरा चुम्बन करने लगी। अपर्णा का अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। पर अपर्णा को आखिर अपने आप पर नियत्रण तो रखना ही पडेगा। उसने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "जहां तक जीतूजी का ऋण चुकाने का सवाल है तो जैसे आप कहते हो अगर श्रेया को एतराज नहीं हो तो मैं जीतूजी का पूरा साथ दूंगी, पर तुम मुझसे यह उम्मीद मत रखना की मैं उससे कुछ ज्यादा आगे बढ़ पाउंगी। तुम मेरी मँशा और मज़बूरी भली भाँती जानते हो।" रोहित ने निराशा भरे स्वर में कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की तुम अपनी माँ से वचनबद्ध हो की तुम सिर्फ उसीको अपना सर्वस्व अर्पण करोगी जो तुम पर जान न्योछावर करता है। खैर तुम उन्हें कंपनी तो दे ही सकती हो ना?" अपर्णा ने अपने पति की नाक, कपाल और बालों को चुम्बन करते हुए कहा, अरे भाई कंपनी क्या होती है? हम सब साथ में ही तो होंगे ना? तो फिर मैं उन्हें कैसे कंपनी दूंगी? कंपनी देने का तो सवाल तब होता है ना अगर वह अकेले हों?"

रोहित ने अपनी पत्नीके मदमस्त कूल्होंपर अपनी हथेली फेरते हुए और उसकी गाँड़ के गालोँ को अपनी उँगलियों से दबाते हुए कहा, "अरे मेरी बुद्धू बीबी, मेरे कहने का मतलब है दिन में या इधर उधर घूमते हुए, जब हम सब अलग हों या साथ में भी हों तब भी तुम जीतूजी के साथ रहना , मैं श्रेया के साथ रहूंगा। हम हमारा क्रम बदल देंगे। रात में तो फिर हम पति पत्नी रोज की तरह एक साथ हो ही जाएंगे ना? इसमें तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?"

अपर्णा ने टेढ़ी नजरों से अपने पति की और देखा और शरारत भरी आँखें नचाते हुए पूछा, "क्यों मियाँ? रात को क्या जरुरत है अपनी बीबी के पास आने की? रात को भी अपनी श्रेया के साथ ही रहना ना?"

रोहित ने भी उसी लहजे में जवाब देते हुए कहा, "अच्छा, मेरी प्यारी बीबी? रात में तुम मुझे श्रेया के साथ रहने के लिए कह कर कहीं तुम अपने जीतूजी के साथ रात गुजारने का प्लान तो नहीं बना रही हो?" अपने पति की वही शरारत भरी मुस्कान और करारा जवाब मिलने पर अपर्णा कुछ झेंप सी गयी। उसके गाल शर्म से लाल हो गए। अपनी उलझन और शर्मिंदगी छिपाते हुए रोहित की कमर में एक हल्काफुल्का नकली घूँसा मारती हुई अपनी आँखें निचीं करते हुए l अपर्णा बोली, "क्या बकते हो? मेरा कहने का मतलब ऐसा नहीं था। खैर, मजाक अपनी जगह है। मुझे जीतूजी को कंपनी देने में क्या आपत्ति हो सकती है? मुझे भी उनके साथ रहना, घूमना फिरना, बातें करना अच्छा लगता है। आप जैसा कहें। मैं जरूर जीतूजी को कंपनी दूंगी। पर रात में मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी हाँ!"

रोहित ने अपनी बीबी अपर्णा को अपनी बाँहों में भरते हुए अपर्णा का गाउन दोनों हाथों में पकड़ा और कहा, "अरे भाई, वह तो तुम रहोगी ही। मैं भी तो तुम्हारे बगैर अपनी रातें उन वादियों में कैसे गुजारूंगा? मुझसे तो तुम्हारे बगैर एक रात भी गुजर नहीं सकती।" अपर्णा ने अपने पति को उलाहना देते हुए कहा, "अरे छोडो भी! तुम्हें मेरी फ़िक्र कहाँ? तुम्हें तो दिन और रात श्रेया ही नजर आ रही है। भला उस सुंदरी के सामने तुम्हारी सीधी सादी बीबी कहाँ तुम्हें आकर्षक लगेगी?" रोहितने शरारतभरे लहजेमें अपने लण्ड की और इशारा करते हुए कहा, "अच्छा? तो यह जनाब वैसे ही थोड़े अटेंशनमें खड़े हैं?" अपर्णा ने अपने पति की नाक पकड़ी और कहा, "क्या पता? यह जनाब मुझे देख कर या फिर कोई दूसरी प्यारी सखी की याद को ताजा कर अल्लड मस्त हो कर उछल रहे हैं।" अपर्णा की शरारत भरी और सेक्सी बातें और अदा के साथ अपनी बीबी की कोमल उँगलियों से सहलवाने के कारण रोहित का लण्ड खड़ा हो गया था। उसके छिद्र में से उसका पूर्वरस स्राव करने लगा। रोहित ने दोनों हाथोँ से अपर्णा का गाउन ऊपर उठाया।

अपर्णा ने अपने हाथ ऊपर उठा कर अपना गाउन अपने पति रोहितको निकाल फेंकने दिया,अपर्णा ने उस रात गाउन के निचे कुछ भी नहीं पहना था। उसे पता था की उस रात उसकी अच्छी खासी चुदाई होने वाली थी। अपने पति का कड़क लण्ड अपने हाथों में हिलाते हुए पति के कुर्ता पयजामे की और ऊँगली दिखाते हुए कहा, "तुम भी तो अपना यह परिवेश उतारो ना? मैं गरम हो रही हूँ।" रोहित अपनी कमसिन बीबी के करारे फुले हुए स्तनों को, उसके ऊपर बिखरे हुए दाने सामान उभरी हुई फुंसियों से मण्डित चॉकलेटी रंगकी एरोला के बीचो बिच गुलाबी रंग की फूली हुई निप्पलोँ को दबाने और मसलने का अद्भुत आनंद ले रहे थे। अपना दुसरा हाथ रोहितने अपनी बीबी की चूत पर हलके हलके फिराते हुए कहा, "गरम तो तुम हो रही हो। यह मेरी उँगलियाँ महसूस कर रहीं हैं। यह गर्मी किसके कारण और किसके लिए है?"

अपर्णा बेचारी कुछ समझी नहीं या फिर ना समझने का दिखावा करती हुई बोली, "मैं भी तो यही कह रही हूँ, तुम अब बातें ना करो, चलो चढ़ जाओ और जल्दी चोदो। हमारे पास पूरी रात नहीं है। कल सुबह जल्दी उठना है और निकलना है।" अपर्णा पतिका लण्ड फुर्तीसे हिलाने लगी। उसकी जरुरत ही नहीं थी। क्यूंकि रोहित का लण्ड पहले ही फूल कर खड़ा हो चुका था। जैसे ही रोहित ने अपनी दो उंगलियां अपनी बीबी अपर्णा की चूत में डालीं तो अपर्णा का पूरा बदन मचल उठा। रोहित अपनी बीबी की चूत की सबसे ज्यादा संवेदनशील त्वचा को अपनी उँगलियों से इतने प्यार और दक्षता से दबा और मसला रहे थे की अपर्णा बिन चाहे ही अपनी गाँड़ बिस्तरे पर रगड़ ने लगी। अपर्णा ने मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगीं। सुबह जीतूजी से हुआ शारीरिक आधा अधूरा प्यार भी अपर्णा को याद आनेसे पागल करने के लिए काफी था। उस पर अपने पति से सतत जीतूजी की बातें सुन कर उसकी उत्तेजना रुकने का नाम नहीं ले रही थी। अपर्णा अब सारी लज्जा की मर्यादा लाँघ चुकी थी।

अपर्णा ने अपने पति का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे अपने स्तनों पर रगड़ते हुए बोली, "रोहित, मुझे ज्यादा परेशान मत करो। प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड जल्दी ही डालो और उसे मेरी चूत में खूब रगड़ो। प्लीज जल्दी करो।" रोहित भी तो अपनी पत्नी को चोदने के लिए पागल हो रहा था। रोहित ने झट से अपना पयजामा और कुरता निकाल फेंका और फुर्ती से अपनी बीबी की टाँगें चौड़ी कर के उसके बिच में अपनी बीबी की प्यारी छोटी सी चूत को बड़े प्यार से निहारने लगा। सालों की चुदाई के बावजूद भी अपर्णा की चूत का छिद्र वैसा ही छोटा सा था। उसे चोद कर रोहित को जो अद्भुत आनंद आता था वह वही जानता था। अपर्णा को जब रोहित चोदता था तो पता नहीं कैसे अपर्णा अपनी चूत की दीवारों को इतना सिकुड़ लेती थी की रोहित को ऐसा लगता था जैसे उसका लण्ड अपर्णा की चूत में से बाहर ही नहीं निकल पायेगा।

अपर्णा की चूत चुदवाते समय अंदर से ऐसी गजब की फड़कती थी की रोहित ने कभी किसी और औरत की चूत में उसे चोदते समय ऐसी फड़कन नहीं महसूस की थी। रोहित के मन की इच्छा थी की जो आनंद वह अनुभव कर रहा था उस आनंद को कभी ना कभी जीतूजी भी अनुभव करें। पर रोहित यह भी जानता थाकी उसकी बीबी अपर्णा अपने इरादों में पक्की थी। वह कभी भी किसी भी हालत में जीतूजी या किसी और को अपनी चूत में लण्ड घुसा ने की इजाजत नहीं देगी। इस जनम में तो नहीं ही देगी। रोहित ने फिर सोचा, क्या पता उस बर्फीले और रोमांटिक माहौल में और उन खूबसूरत वादियों में शायद अपर्णा को जीतूजी पर तरस ही आ जाये और अपनी माँ को दिया हुआ वचन भूल कर वह जीतूजी को उसे चोदने की इजाजत देदे। पर यब सब एक दिलासा ही था। अपर्णा वाकई में एक जिद्दी राजपूतानी थी। रोहित यह अच्छी तरह जानता था। अपर्णा जीतूजी के लिए कुछ भी कर सकती थी पर उन्हें अपनी चूत में लण्ड नहीं डालने देगी। बस जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में डलवाने का एक ही तरिका था और वह था अपर्णा को धोखेमें रख कर उसे चुदवाये। जैसे: उसे नशीला पदार्थ खिला कर या शराब के नशे में टुन्न कर या फिर घने अँधेरे में धोखे से अपर्णा को रोहित पहले खुद चोदे और फिर धीरे से जीतूजी को अपर्णा की टांगों के बिच ले जाकर उनका लण्ड अपनी पत्नी की चूत में डलवाये।

अपर्णा जीतूजी को अपना पति समझ कर चुदवाये तब तो शायद यह हो सकता था। पर ऐसा करना बड़ा ही खतरनाक हो सकता था। अपर्णा जीतूजी का लण्ड को महसूस कर शायद समझ भी जाए की वह उसके पति का लण्ड नहीं है। रोहित कतई भी इसके पक्ष में नहीं था और वह ऐसा सोचने के लिए भी अपने आपको कोसने लगा।

खैर, जीतूजी से अपनी बीबी अपर्णा को चुदवाने की बात सोचकर रोहित का लण्ड भी फुफकारने लगा। रोहित ने फिर एक नजर अपनी बीबी अपर्णा की चूत को देखा और धीरे से अपना लण्ड अपर्णा की दोनों टांगों के बिच रखा और हलके हलके उसे उसकी सतह पर रगड़ने लगा। सालों के बाद भी रोहित अपनी बीबी की चूत का कायल था। पर वह यह भी जानता था की अपर्णा की चूत में पहली बार लण्ड डालते समय उसे काफी सावधानी रखनी पड़ती थी। चूत का छिद्र छोटा होने के कारण लण्ड को पहली बार चूत में घुसाते समय उसे अपने पूर्व रस को लण्ड पर अच्छी तरह लपेट कर उसे स्निग्ध बना कर फिर धीरे धीरे अपर्णा के प्रेम छिद्र में घुसाना और फिर अपर्णा की चूत की सुरंग में उसे आगे बढ़ाना था। थोड़ी सी भी जल्दी अपर्णा को काफी दर्द दे सकती थी। अपने पति रोहित की उलझन अपर्णा देख रही थी। अपर्णा ने प्यार से अपने पति का लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और खुद ही उसे अपनी चूत की होठोँ पर हलके से रगड़ कर उन्हें थोड़ा खोल कर लण्ड के लिए जगह बनायी और अपने पति का लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ कर अपने पति को इंगित किया की वह अब धीरे धीरे उसे अंदर घुसेड़े और और उसे चोदना शुरू करे। रोहित ने अपना लण्ड घुसेड़ कर हलके हलके धक्का देकर अपनी बीबी को चोदना शुरू किया। शुरुआत का थोड़ा मीठा दर्द महसूस कर अपर्णा के मुंह से हलकी सिसकारियां निकलने लगीं। धीरे धीरे रोहित ने अपनी पत्नी अपर्णा को चोदने के गति तेज की। अपर्णा भी साथ साथ अपना पेडू ऊपर की और उठाकर अपने पति को चोदने में सहायता करने लगी। अपर्णा की चूत स्निग्धता से भरी हुई थी और इस कारण उसे ज्यादा दर्द नहीं हुआ। रोहित जी को अपनी बीबी को चोदे हुए कुछ दिन हुए थे और इस लिए वह बड़े मूड़ में थे।

रोहित और उनकी बीबी अपर्णा के बिच में हुए जीतूजी के वार्तालाप के कारण दोनों पति पत्नी काफी गरम थे। अपर्णा अपने मन में सोच रही थी की उसकी चूत में अगर उस समय जीतूजी का लण्ड होता तो शायद उसकी तो चूत फट ही जाती। रोहित जोर शोर से अपनी बीबी की चूत में अपना लण्ड पेल रहा था। अपर्णा भी अपने पति को पूरा साथ दे कर उन्हें, "जोर से... और डालो, मजा आ गया" इत्यादि शब्दों से प्रोत्साहित कर रही थी। रोहित की जाँघें अपर्णा की जाँघों के बिच टकरा कर "फच्च फच्च" आवाज कर रही थीं। रोहित का अंडकोष अपर्णा की गाँड़ को जोर से टक्कर मार रहा था।

अपर्णा कभी कभी अपने पति का अंडकोष अपने हाथों की उँगलियों में पकड़ कर सहलाती रहती थी जिसके कारण रोहित का उन्माद और भी बढ़ जाता था। अपनी बीबी को चोदते हुए हाँफते हुए रोहित ने कहा, "डार्लिंग, हम यहां एक दूसरे से प्यार कर रहे हैं, पर बेचारे जीतूजी इतनी रात गए अपने दफ्तर में लगे हुए हैं।"

अपर्णाने अपने पति की बात सुनकर अपनी जिज्ञासा को दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, "क्यों? ऐसा क्या हुआ? जीतूजी इस समय अपने दफ्तर में क्यों है?" रोहित ने कहा, "हमारे देश पर पडोशी देश की नजरें ठीक नहीं है। देश की सेना इस वक्त वॉर अलर्ट पर है। पाकिस्तानी जासूस भारतीय सेना की गतिविधियां जानने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। मुझे डर था की ऐसी परस्थितियों में कहीं हमारा यह प्रोग्राम आखिरी वक्त में रद्द ना हो जाए।" यह सुन कर अपर्णा को एक झटका सा लगा। अपर्णा को उस एक हफ्ते में जीतूजी के करीब रहने का एके सुनहरा मौक़ा मिल रहा था। अगर वह ट्रिप कैंसल हो गयी तो यह मौक़ा छूट जाएगा, यह डर उसे सताने लगा। अपने पति को चुदाई में रोकते हुए अपर्णा ने पूछा, "क्या ऐसा भी हो सकता है?"

रोहित जी ने अपना लण्ड अपनी बीबी अपर्णा की चूत में ही रखते हुए कहा, "ऐसा होने की संभावना नहीं हैं क्यूंकि अगर कैंसिल होना होता तो अब तक हो जाता। दूसरे मुझे नहीं लगता की अभी लड़ाई का पूरा माहौल है l शायद दोनों देश एक दुसरेकी तैयारी का जायजा ले रहें हैं। पर सरहद की दोनों पार जासूसी बढ़ गयी है। एक दूसरे की सेना की हलचल जानने के लिए दोनों देश के अधिकारी कोई कसर नहीं छोड़ रहे l सुरक्षा पत्रकार होने के नाते मुझे भी मिनिस्ट्री में बुलाया गया था। चूँकि हमारे सूत्रों से मुझे सेना की हलचल के बारे में काफी कुछ पता होता है इस लिए मुझे हिदायत दी गयी है की सेना की हलचल के बारे में मैं जो कुछ भी जानता हूँ उसे प्रकाशित ना करूँ और नाही किसीसे शेयर करूँ।" यह सुनकर की उनका प्रोग्राम कैंसिल नहीं होगा, अपर्णा की जान में जान आयी। अपर्णा उस कार्यक्रम को जीतूजी से करीब आने का मौक़ा मिलने के अलावा पहाड़ो में ट्रैकिंग, नदियों में नहाना, सुन्दर वादियों में घूमना, जंगल में रात को कैंप फायर जला कर उस आग के इर्द गिर्द बैठ कर नाचना, गाना, ड्रिंक करना, खाना इत्यादि रोमांचक कार्यक्रम को मिस करना नहीं चाहती थी। अपर्णा ने अपने पति को चुदाई जारी करने के लिए अपना पेडू ऊपर उठा कर संकेत दिया। रोहित ने भी अपना लण्ड फिर से अपर्णा की चूत में पेलना शुरू किया। दोनों पति पत्नी कामुकता की आगमें जल रहे थे। अगले सात दिन कैसे होंगें उसकी कल्पना दोनों अपने-अपने तरीके से कर रहे थे। अपर्णा जीतूजी के बारे में सोच रही थी और रोहित श्रेया के बारे में।​
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