Update 10

सुबह होते ही सब नहा धो कर फ्रेश होकर ट्रैन में ले जाने के लिए नाश्ता बगैरह बची खुची तैयारी होते ही सब कपडे पहन कर तैयार होने लगे। अपर्णा ने अपने पति के आग्रह पर परम्पराओं को तोड़ कर कैप्री (लम्बी सी शोर्ट या हाफ पेण्ट) पहनी थी। ऊपर से खुला टॉप पहना था। टॉप गले के ऊपर से काफी खुला हुआ था पर स्तनों के बिलकुल निचे तना हुआ बंधा था। बालों को एक क्लिप से बाँध कर बाकी खुला छोड़ रखा था। शॉर्ट पहनने के कारण अपर्णा की सुआकार करारी जाँघें कामुक और ललचाने वाला नज़ारा पेश कर रही थी। अपर्णा ने पहनी हुई कैप्री (देसी भाषा में कहें तो चड्डी) निचे से काफी खुली थी, पर घुटने से थोड़ी ही ऊपर तक थी। रोहित ने पिछली शाम अपर्णा के लिए एक वेणी खरीदी थी उसे अपर्णा ने बालों में लटका रखा था। होँठों की कुदरती लालिमा को हलकी सी लिपस्टिक से उनका रसीलापन दिख रहा था। अपर्णा के गाल वैसे ही काफी लालिमा भरे थे। उन्हें और लालिमा आवश्यकता नहीं थी। तैयार हो कर जब अपर्णा कमरे से बाहर आयी और दोनों टाँगें मिलाकर थोड़ा टेढ़ी होकर अपनी पतली कमर और उभरे हुए कूल्हों को उकसाने वाली सेक्सी मुद्रा में खड़ी हो कर जब उसने अपने पति को पूछा, "मैं कैसी लग रही हूँ?"

रोहित ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लेकर, उसके ब्लाउज में से बाहर उभरे हुए स्तनों पर अपना हाथ रख कर, उन्हें ब्लाउज के ऊपर से ही सहलाते हुए अपर्णा के होँठों पर हलकासा चुम्बन करते हुए कहा, "पूरी तरह से खाने लायक। तुम्हें देख कर मुझे तुम्हें खाने को मन करता है।" अपर्णा ने अपने पति को हल्का सा धक्का मारते हुए टेढ़ी नजर कर कहा, "शर्म करो। कल रात तो तुम मुझे पूरा का पूरा निगल गए थे। पेट नहीं भरा था क्या?" रोहित ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, "वह तो डिनर था। मैं तो नाश्ते की बात कर रहा हूँ।" अपर्णा ने अपने पति के होँठों से होँठ चिपकाकर उन्हें एक गहरा चुम्बन किया। फिर कुछ देर बाद हट कर नटखट अदा करती हुई बोली, "नाश्ते में आज यही मिलेगा। इससे ही काम चलाना पडेगा। दुपहर में लंच तो नहीं दे पाउंगी, पर रात को फिर डिनर करने की इच्छा हो तो कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा। चलती ट्रैन में कम्पार्टमेंट में तुम्हें खिलाना थोड़ा मुश्किल है। पर जनाब पहले यह तो देखोकी कहीं जे जे (जीतूजी और श्रेया) घर से बाहर निकले या नहीं?"

अपर्णा ने खिड़की में से झांका तो देखा की जीतूजी और श्रेया अपना सामान उठा कर निचे उतर ही रहे थे। निचे टैक्सी खड़ी थी। सुबह के पांच बजे होंगे। भोर की हलकी लालिमा छायी हुई थी। हवा में थोड़ीसी ठण्डकी खुशनुमा झलक थी। रोहित ने जब श्रेया जी को देखा तो देखते ही रह गए। श्रेया ने फूलों की डिज़ाइन वाला टॉप पहना था और निचे स्कर्ट जिसका छोर घुटनोँ से थोड़ा ज्यादा ही ऊपर तक था पहन रखा था। उनके ब्लाउज के निचे और स्कर्ट के बेल्ट के बिच का खुला हुआ बदन किसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था। पतली कमर, पेट की करारी त्वचा, नाभि में बिच स्थित नाभि बटन और फिर पतली कमर के निचे कूल्हों की और का फैलाव और फिर कातिल सी कमल की डंडी के सामान सुआकार जाँघें किसी भी लोलुप मर्द की आँखों को अपने ऊपर से हटने नहीं दें ऐसी कामुक थीं।

रोहित के निचे उतरते ही दोनों पति दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी की नजर बचाकर चोरी छुपके से ताकने की होड़ में लगे थे। रोहित ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के हाथ में हाथ देते हुए उन्हें "गुड मॉर्निंग" कहा और फिर श्रेया से हाथ मिलाकर उनको हल्का सा औपचारिक आलिंगन किया। उनका मन तो करता था की श्रेया को कस के अपनी बाहों में ले, पर बाकी लोगों की नजरें और आसपास में खिड़कियों से झाँक रहे जिज्ञासु पड़ोसियों का ख्याल रखते हुए ऐसा करने का विचार मुल्तवी रखा। जीतूजी ने पर फिर भी अपर्णा को कस कर अपनी बाहों में लिया और कहा, "तुम बला की खूबसूरत लग रही हो।" और फिर मज़बूरी में अपनी बाहों में से आजाद किया।

उन्हें टैक्सी में स्टेशन पहुँचने में करीब डेढ़ घंटा लगा। ट्रैन प्लेटफार्म पर खड़ी थी। टू टायर ए.सी. कम्पार्टमेंट में ६ बर्थ थीं। चार बर्थ जीतूजी, श्रेया, रोहित और अपर्णा की थीं। अपना और जीतूजी और श्रेया का सामान लगाने के बाद रोहित ने देखा की साइड की ऊपर की बर्थ पर एक करीब २५ वर्ष की कमसिन लड़की थी। लड़की का सामान बर्थ के निचे लगाने के लिए एक जवान साथ में लिए एक प्रौढ़ से आर्मी अफसर दाखिल हुए। उस प्रौढ़ आर्मी अफसर ने अपना परिचय ब्रिगेडियर खन्ना (रिटायर्ड) के नाम से दिया। उन्होंने बताया की वह युवा लड़की, जो की उनकी बेटी से भी कम उम्र की होगी, वह उनकी पत्नी थी। सब इस उधेड़बुन में थे की इतने प्रौढ़ आर्मी अफसर की बीबी इतनी कम उम्र की कैसे हो सकती थी। खैर कुछ देर बाद उन प्रौढ़ आर्मी अफसर के साथ सबकी 'हेलो, हाय' हुई और तब सबको पता चला ब्रिगेडियर खन्ना को अपनी पत्नी के साथ रिज़र्वेशन नहीं मिल पाया था। उन्हें दो कम्पार्टमेंट छोड़ कर रिज़र्वेशन मिला हुआ था। कुछ देर तक बातें करने के बाद जब ट्रैन छूटने वाली थी तब ब्रिगेडियर खन्ना अपने कम्पार्टमेंट में चले गए।

उस के कुछ ही समय बाद कम्पार्टमेंट में साइड वाली निचे की बर्थ पर जिनका रिज़र्वेशन था वह युवा आर्मी अफसर (जिसके यूनिफार्म पर लगे सितारोँ से पता चला की वह कप्तान थे) दाखिल हुए और फिर उन्होंने अपना सामान लगाया। कप्तान की उम्र मुश्किल से पच्चीस या छब्बीस साल की होगी। लगता था की वह अभी अभी राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी से पास हुए थे। उनके सामने ही युवा लड़की अंकिता बैठी हुई थी। दोनों ने एक दूसरे से "हेलो, हाय" किया। ट्रैन ने स्टेशन छोड़ा ही था की कर्नल साहब, रोहित, श्रेया और अपर्णा के सामने एक काला कोट और सफ़ेद पतलून पहने टी टी साहब उपस्थित हुए। हट्टाकट्टा बदन, फुले हुए गाल, लम्बे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और काफी लंबा कद। वह टी टी कम और कोई फिल्म के विलन ज्यादा दिख रहे थे। खैर उन्होंने सब का टिकट चेक किया। टी टी साहब कुछ ज्यादा ही बातें करने के मूड में लग रहे थे।

उन्होंने जब रोहित से उनका गंतव्य स्थान (कहाँ जा रहे हो?) पूछा तो कर्नल साहब ने और रोहित ने कोई जवाब नहीं दिया। जब किसी ने कुछ नहीं बोला तो अपर्णा ने टी टी साहब को कहा, "हम जम्मू जा रहे हैं।"

टी टी साहब फ़ौरन अपर्णा की और मुड़े और बोले, "हां हाँ वह तो मुझे आप के टिकट से ही पता चल गया। पर आप जम्मू से आगे कहाँ जा रहे हैं?" जब फिर रोहित और कर्नल साहब से जवाब नहीं मिला तब टी टी ने अपर्णा की और जिज्ञासा भरी नजरों से देखा। फिर क्या था? अपर्णा ने उनको सारा प्रोग्राम जो उसको पता था सब टी टी साहब को बता दिया।

अपर्णा ने टी टी को बताया की वह सब आर्मी के ट्रेनिंग कैंप में जम्मू से काफी दूर एक ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे। अपर्णा को जब टी टी ने उस जगह का नाम और वह जगह जम्मू से कितनी दुरी पर थी पूछा तो अपर्णा कुछ बता नहीं पायी। अपर्णा को उस जगह के बारे में ज्यादा पता नहीं था। चूँकि कर्नल साहब और रोहित बात करने के मूड में नहीं थे इस लिए टी टी साहब थोड़े मायूस से लग रहे थे। उस समय श्रेया नींद में थीं। रोहित, अपर्णा, कर्नल अभिजीत सिंह और श्रेया जी का टिकट चेक करने के बाद टी टी साहब दूसरे कम्पार्टमेंट में चले गए। उन्होंने उस समय और किसी का टिकट चेक नहीं किया। टी टी के चले जाने के बाद सब ने एक दूसरे को अपना परिचय दिया। साइड की निचे की बर्थ पर स्थित युवा अफसर कप्तान गौरव थे। वह भी श्रेया जी, जीतूजी, रोहित और अपर्णा की तरह ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे।

देखते ही देखते दोनों युवा: कप्तान गौरव और अंकिता खन्ना करीब करीब एक ही उम्र के होने के कारण बातचीत में मशगूल हो गए। अंकिता वाकई में निहायत ही खूबसूरत और कटीली लड़की थी। उसके अंग अंग में मादकता नजर आ रही थी।कप्तान गौरव को मिलते ही जैसे अंकिता को और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था। गौरव का कसरत से कसा हुआ बदन, मांसल बाज़ूओं के स्नायु और पतला गठीला पेट और कमर और काफी लंबा कद देखते ही अंकिता की आँखों में एक अजीब सी चमक दिखी। गौरव का दिल भी अंकिता का गठीला बदन और उसकी मादक आँखें देखते ही छलनी हो गया था। अंकिता के अंग अंग में काम दिख रहा था। अंकिता की मादक हँसी, उसकी बात करते समय की अदाएं, उसके रसीले होँठ, उसके घने काले बाल, उसकी नशीली सुआकार काया कप्तान को भा गयी थी। कप्तान गौरव की नजर अंकिता के कुर्ते में से कूद कर बाहर आने के लिए बेताब अंकिता के बूब्स पर बार बार जाती रहती थी। अंकिता अपनी चुन्नी बार बार अपनी छाती पर डाल कर उन्हें छुपा ने की नाकाम कोशिश करती पर हवाका झोंका लगते ही वह खिसक जाती और उसके उरोज कपड़ों के पीछे भी अपनी उद्दंडता दिखाते। अंकिता का सलवार कुछ ऐसा था की उसके गले के निचे का उसके स्तनोँ का उभार छुपाये नहीं छुपता था। अंकिता की गाँड़ भी निहायत ही सेक्सी और बरबस ही छू ने का मन करे ऐसी करारी दिखती थी। बेचारा गौरव उसके बिलकुल सामने बैठी हुई इस रति को कैसे नजर अंदाज करे?

अपर्णा ने देखा की गौरव और अंकिता पहली मुलाक़ात में ही एक दूसरे के दीवाने हों ऐसे लग रहे थे। दोनों की बातें थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं। अपर्णा अपने मन ही मन में मुस्काई। यह निगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है। जब दो युवा एकदूसरे को पसंद करते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें मिलने से नहीं रोक सकती। अपर्णा को लगा की कहीं यह पागलपन अंकिता की शादीशुदा जिंदगी को मुश्किलमें ना डालदे। कर्नल साहब और रोहित भी उन दो युवाओँ की हरकत देख कर मूंछों में ही मुस्कुरा रहे थे। उनको भी शायद अपनी जवानी याद आ गयी।

रोहित श्रेया की बर्थ पर बैठे हुए थे। श्रेया जी खिड़की के पास नींद में थीं। जीतूजी भी सामने की खिड़की वाली सीट पर थे जबकि अपर्णा बर्थ की गैलरी वाले छोर पर बैठी थी। कम्पार्टमेंट का ए.सी. काफी तेज चल रहा था। देखते ही देखते कम्पार्टमेंट एकदम ठंडा हो गया था। अपर्णा ने चद्दर निकाली अपने बदन पर डाल दी। चद्दर का दूसरा छोर अपर्णा ने जीतूजी को दिया जो उन्होंने भी अपने कंधे पर डालदी। थोड़ी ही देर में जीतूजी की आँखें गहरा ने लगीं, तो वह पॉंव लम्बे कर लेट गए। चद्दर के निचे जीतूजी के पॉंव अपर्णा की जाँघों को छू रहे थे। कप्तान गौरव और अंकिता एक दूसरे से काफी जोश से पर बड़ी ही धीमी आवाज में बात कर रहे थे। बिच बिच में वह एक दूसरे का हाथ भी पकड़ रहे थे यह अपर्णा ने देखा। उन दोनों की बातों को छोड़ कम्पार्टमेंट में करीब करीब सन्नाटा सा था। ट्रैन छूटे हुए करीब एक घंटा हो चुका था तब एक और टिकट निरीक्षक पुरे कम्पार्टमेंट का टिकट चेक करते हुए अपर्णा, रोहित, जीतूजी और श्रेया जी के सामने खड़े हुए और टिकट माँगा।

उन सब के लिए तो यह बड़े आश्चर्य की बात थी। कर्नल साहब ने टिकट चेकर से पूछा, "टी टी साहब, आप कितनी बार टिकट चेक करेंगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर टिकट चेक कर गए हैं। आप एक ही घंटे में दूसरे टी टी हैं। यह कैसे हुआ?" टी टी साहब आश्चर्य से कर्नल साहब की और देख कर बोले, "अरे भाई साहब आप क्या कह रहे हैं? इस कम्पार्टमेंट ही नहीं, मैं सारे ए.सी.डिब्बों के टिकट चेक करता हूँ। इस ट्रैन में ए.सी. के छे डिब्बे हैं। इन डिब्बों के लिए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नहीं है। शायद कोई बहरूपिया आपको बुद्धू बना गया। क्या आपके पैसे तो नहीं गए ना?"

रोहित ने कहा, "नहीं, कोई पैसे हमने दिए और ना ही उसने मांगे।"

टी टी साहब ने चैन की साँस लेते हुए कहा, " चलो, अच्छा है। फ्री में मनोरंजन हो गया। कभी कभी ऐसे बहुरूपिये आ जाते हैं। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।" यह कह कर टी टी साहब सब के टिकट चेक कर चलते बने। रोहित ने जीतूजी की और देखा। जीतूजी गहरी सोच में डूबे हुए थे। वह चुप ही रहे। अपर्णा चुपचाप सब कुछ देखती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

अपर्णा ने अपने दिमाग को ज्यादा जोर ना देते हुए, उस युवा अंकिता लड़की को "हाय" किया । उस को अपने पास बुलाया और अपने बाजूमें बिठाया और बातचित शुरू हुई। अपर्णा ने अपने बैग में से कुछ फ्रूट्स निकाल कर अंकिता को दिए। अंकिता ने एक संतरा लिया और अपर्णा और अंकिता बातों में लग गए। अपर्णा की आदत अनुसार अपर्णा और अंकिता की बहुत ही जल्दी अच्छी खासी दोस्ती हो गयी। अपर्णा को पता लगा की उसका नाम मिसिस अंकिता खन्ना था। सब अंकिता के बारे में सोच ही रहे थे की ऐसा कैसे हुआ की इतनी कम उम्र की युवा लड़की अंकिता की शादी ब्रिगेडियर खन्ना के साथ हुई। अपर्णा ने धीरे धीरे अंकिता के साथ इतनी करीबी बना ली की अंकिता पट पट अपर्णा को अपनी सारी राम कहानी कहने लगी।

अंकिता के पिताजी ब्रिगेडियर खन्ना के ऑर्डरली थे। उनको ब्रिगेडियर साहब ने बच्चों की पढाई और घर बनाने के लिए अच्छा खासा कर्ज दिया था जो वह चुका नहीं पा रहे थे। अंकिता भी ब्रिगेडियर साहब के घर में घर का काम करती थी। ब्रिगेडियर साहब की बीबी के देहांत के बाद जब वह लड़की ब्रिगेडियर साहब के घर में काम करने आती थी तब ब्रिगेडियर साहब ने उसे धीरे धीरे उसे अपनी शैया भगिनी बना लिया। जब अंकिता के पिताजी का भी देहांत हो गया तो वह लड़की के भाइयों ने घर का कब्जा कर लिया और बहन को छोड़ दिया। अंकिता अकेली हो गयी और ब्रिगेडियर साहब के साथ उनकी पत्नी की तरह ही रहने लगी। उन के शारीरिक सम्बन्ध तो थे ही। आखिर में उन दोनों ने लोक लाज के मारे शादी करली।
अपर्णा को दोनों के बिच की उम्र के अंतर का उनकी शादी-शुदा यौन जिंदगी पर क्या असर हुआ यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी। जब अपर्णा ने इस बारे में पूछा तो अंकिता ने साफ़ कह दिया की पिछले कुछ सालों से ब्रिगेडियर साहब अंकिता को जातीय सुख नहीं दे पाते थे। अंकिता ने ब्रिगेडियर साहब से इसके बारे में कोई शिकायत नहींकी। पर जब ब्रिगेडियर साहब उनकी उम्र के चलते जब अंकिता को सम्भोग सुख देने में असफल रहे तो उन्होंने अंकिता के शिकायत ना करने पर भी बातों बातों में यह संकेत दिया था की अगर अंकिता किसी और मर्द उसे शारीरिक सुख देने में शक्षम हो और वह उसे सम्भोग करना चाहे तो ब्रिगेडियर साहब उसे रोकेंगे नहीं।

उनकी शर्त यह थी की अंकिता को यह सब चोरी छुपी और बाहर के लोगों को ना पता लगे ऐसे करना होगा। अंकिता अगर उनको बता देगी या इशारा कर देगी तो वह समझ जाएंगे। अंकिता ने अपर्णा को यह बताया की ब्रिगेडियर साहब उसका बड़ा ध्यान रखते थे और उसे बेटी या पत्नी से भी कहीं ज्यादा प्यार करते थे। वह हमेशा अंकिता को उसकी शारीरक जरूरियात के बारे में चिंतित रहते थे। उन्होंने कई बार अंकिता को प्रोत्साहित किया था की अंकिता कोई मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध रखना चाहे तो रख सकती थी। पर अंकिता ने कभी भी इस छूटका फायदा नहीं लेना चाहा। अंकिता ने अपर्णाको बतायाकी वह ब्रिगेडियर साहब से बहुत खुश थी। वह अंकिता को मन चाहि चीज़ें मुहैय्या कराते थे। अंकिता को ब्रिगेडियर साहब से कोई शिकायत नहीं थी। अपर्णा ने भी अपनी सारी कौटुम्बिक कहानी अंकिता को बतायी और देखते ही देखते दोनों पक्के दोस्त बन गए। बात खत्म होने के बाद अंकिता वापस अपनी सीट पर चली गयी जहां कप्तान गौरव उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

अपर्णा की ऑंखें भी भारी हो रहीं थीं। जीतूजी की लम्बी टाँगें उसकी जाँघों को कुरेद रहीं थीं। अपर्णा ने अपने पॉंव सामने की सीट तक लम्बे किये और आँखें बंद कर तन्द्रा में चली गयी।अपर्णा ने अपनी टाँगें सामने की बर्थ पर रखीं थीं। रोहित सामने की बर्थ पर बैठे हुए ही गहरी नींद में थे। जैसे ही अपर्णा ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला दिया और आमने सामने की बर्थ पर थोड़ी लम्बी हुई की उसे जीतूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास एहसास हुआ।

जीतूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। अपर्णा ने जब यह देखा तो जीतूजी के दोनों पाँव उठाकर अपनी गोद में ले लिए। जीतूजी को ठण्ड ना लगे इस लिए अपर्णा ने एक और रक्खी एक चद्दर और उसके ऊपर रक्खा पड़ा हुआ कम्बल खिंच निकाला और जीतूजी के पुरे शरीर को उस कम्बल से ढक दिया। कम्बल के निचे एक चद्दर भी लगा दी। वही कम्बल और चद्दर का दुसरा छोर अपनी गोद और छाती पर भी डाल दिया। इस तरह ठण्ड से थोड़ी राहत पाकर अपर्णा प्यार से जीतूजी की टाँगों को अपनी गोद में रख कर उस पर हाथ फिरा कर हल्का सा मसाज करने लगी। उसे जीतूजी के पाँव अपनी गोद में पाकर अच्छा लग रहा था। उसे अपने गुरु और अपने प्यारे प्रेमी की सेवा करने का मौक़ा मिला था। वह उन दिनों को याद करने लगी जब वह अपने पिताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नहीं जाते थे। पाँव दबाते हुए अपर्णा जीतूजी की और सम्मान और प्यार भरी नज़रों से देखती रहती थी। उसे जीतूजी के पाँव अपनी गोद में रखने में कोई भी झिझक नहीं महसूस हुई।

अपर्णा ने अपनी टांगें भी लम्बीं कीं और अपने पति रोहित की गोद में रख दीं। रोहित खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं। उन्होंने अपर्णा की और देखा। उन्होंने देखा की जीतूजी की टाँगें उनकी पत्नी अपर्णा की गोद में थीं और अपर्णा उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। अपर्णा ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए।

अपर्णा जीतूजी की टाँगों को सहला और दबा रही थी तब उसे जीतूजी के हाथका स्पर्श हुआ। जीतूजी ने कम्बल के निचे से अपना एक हाथ लंबा कर अपर्णा के हाथ को हलके से थामा और धीरे से उसे दबा कर ऊपर की और खिसका कर उसे अपनी दो जाँघों के बिचमें रख दिया। अब अपर्णा समझ गयी की जीतूजी चाहते थे की अपर्णा जीतूजी के लण्ड को अपने हाथोँ में पकड़ कर सहलाये। अपर्णा जीतूजी की इस हरकतसे चौंक गयी। वह इधर उधर दिखने लगी। सब गहरी नींद सो रहे थे। अपर्णा का हाल देखने जैसा था। अपर्णा ने जब चारों और देखा तो पाया की कम्बल के निचे की उनकी हरकतों को और कोई आसानी से नहीं देख सकता था। सारे परदे फैले हुए होने के कारण अंदर काफी कम रौशनी थी। करीब करीब अँधेरा जैसा ही था।

अपर्णा ने धीरे से अपना हाथ ऊपर की और किया और थोड़ा जीतूजी की और झुक कर जीतूजी के लण्ड को उनकी पतलून के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ा। जीतूजी का लण्ड अभी पूरा कड़क नहीं हुआ था। पर बड़ी जल्दी कड़क हो रहा था। तभी अपर्णा ने चारोँ और सावधानी से देख कर जीतूजी के पतलून की ज़िप ऊपरकी और खिसकायी और बड़ी मशक्कत से उनकी निक्कर हटा कर उनके लण्ड को आज़ाद किया और फिर उस नंगे लण्ड को अपने हाथ में लिया। अपर्णा के हाथ के स्पर्श मात्र से जीतूजी का लण्ड एकदम टाइट और खड़ा हो गया और अपना पूर्व रस छोड़ने लगा। अपर्णा का हाथ जीतूजी के पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ हो गया था। फिर अपर्णा ने अपनी उँगलियों की मुट्ठी बना कर उसे अपनी छोटी सी उँगलियों में लिया। वह जीतूजी का पूरा लण्ड अपनी मुट्ठी में तो नहीं ले पायी पर फिर भी जीतूजी के लण्ड की ऊपरी त्वचा को दबा कर उसे सहलाने और हिलाने लगी।

अपर्णा ने जीतूजी के चेहरे की और देखा तो वह अपनी आँखें मूँदे अपर्णा के हाथ में अपना लण्ड सहलवा कर अद्भुत आनंद महसूस कर रहे थे ऐसा अपर्णा को लगा। उसके बाद अपर्णा ने धीरे धीरे जीतूजी का लण्ड हिलाने की रफ़्तार बढ़ाई। अपर्णा चाहती थी की इससे पहले की कोई जाग जाए, वह जीतूजी का वीर्य निकलवादे ताकि किसीको शक ना हो। अपर्णा के हाथ बड़ी तेजी से ऊपर निचे हो रहे थे। अपर्णा ने कम्बल और चद्दर को मोड़ कर उसकी कुछ तह बना कर ख़ास ध्यान रक्खा की उसके हाथ हिलाने को कोई देख ना पाए। अपर्णा जीतूजी के लण्ड को जोर से हिलाने लगी। अब अपर्णा का हाथ दुखने लगा था। अपर्णा ने देखा की जीतूजी के चेहरे पर एक उन्माद सा छाया हुआ।
थोड़ी देर तक काफी तेजी से जीतूजी का लण्ड हिलाने पर अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी पूरा बदन अकड़ सा गया। जीतूजी अपना वीर्य छोड़ने वालेथे। अपर्णा ने धीरे से अपनी जीतूजी के लण्ड को हिलाने की रफ़्तार कम की। जीतूजी के लण्डके केंद्रित छिद्र से उनके वीर्य की पिचकारी छूट रही थी। अपर्णा को डर लगा की कहीं जीतूजी के वीर्य से पूरी चद्दर गीली ना हो जाए। फिर अपर्णा ने दूसरे हाथ से अपने पास ही पड़ा हुआ छोटा सा नेपकिन निकाला और उसे दूसरे हाथ में देकर अपने हाथ की मुट्ठी बना कर उनका सारा वीर्य अपनी मुट्ठी में और उस छोटे से नेपकिन में भर लिया। नेपकिन भी जीतूजी के वीर्यसे पूरा भीग चुकाथा। जीतू जी के लण्ड के चारों और अच्छी तरह से पोंछ कर अपर्णा ने फिर से उनका नरम हुआ लण्ड और अपना हाथ दूसरे नेपकिन से पोंछा और फिर जीतूजी के लण्ड को उनकी निक्कर में फिर वही मशक्कत से घुसा कर जीतूजी की पतलून की ज़िप बंद की। उसे यह राहत थी की उसे यह सब करते हुए किसीने नहीं देखा था। जीतूजी को जरुरी राहत दिला कर अपर्णा ने अपनी आँखें मुँदीं और सोने की कोशिश करने लगी।

श्रेया पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थीं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नहीं पायीं थीं। श्रेया ने अपनी टाँगें लम्बीं और टेढ़ी कर रखीं थीं जो रोहित की जाँघों को छू रही थीं।

अपर्णा जब आधी अधूरी नींद में थी तब उसे गौरव और अंकिता की कानाफूसी सुनाई दी। अपर्णा समझ गयी की गौरव अंकिता को फाँसने की कोशिश में लगा था। अंकिता भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी। दरअसल अंकिता और गौरव साइड वाली बर्थ लम्बी ना करके बर्थ को ऊपर उठा कर दो कुर्सियां बना कर आमने सामने बैठे थे। अंकिता और गौरव का परिचय हो चुका था। पर शायद अंकिता ने अपनी पूरी कहानी गौरव को नहीं सुनाई थी। अंकिता ने यह नहीं जाहिर किया था की वह शादी शुदा थी। वैसे भी अंकिता को देखने से कोई यह नहीं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। अंकिता ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा निशान नहीं लगा रखा था। ना ही माँग में सिंदूर और नाही कोई मंगल सूत्र। अंकिता ने ऊपर सफ़ेद रंग का टॉप पहना था। उसका टॉप ब्लाउज कहो या स्लीवलेस शर्ट कहो, अंकिता के उन्नत स्तनोँ के उभार को छुपाने में पूरी तरह नाकाम था। अंकिता के टॉप में से उसके स्तन ऐसे उभरे हुए दिख रहे थे जैसे दो बड़े पहाड़ उसकी छाती पर विराजमान हों। अंकिता ने निचे घाघरा सा खुबसुरत नक्शबाजी वाला लंबा फैला हुआ मैक्सी स्कर्ट पहना था जो अंकिता की एड़ियों तक था। अंकिता ने अपने लम्बे घने बालों को घुमा कर कुछ क्लिपों में बाँध रखे थे। होठोँ पर हलकी लिपस्टिक उसके होठोँ का रसीलापन उजागर कर रही थी। और अंकिता की लम्बी गर्दन और चाँद सा गोल चेहरा, जिस पर उसकी चंचल आँखें उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाती थी। अंकिता की गाँड़ का उभार अतिशय रमणीय था।

उसकी पतली कमर के निचे अचानक उदार फैलाव से वह सब मर्दो की आँखों के आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। जब अंकिता चलती थी तो उसकी गाँड़ का मटकना अच्छेअच्छों का पानी निकाल सकता था। जब कभी थोडासा भी हवा का झोंका आता तो अंकिताका घाघरा अंकिता के दोनों पाँव के बिच में घुस जाता और अंकिता की दोनों जाँघों के बिच स्थित चूत कैसी होगी यह कल्पना कर अच्छे अच्छे मर्द का मुठ मारने का मन करता था। अंकिताकी जाँघें सीधी और लम्बी थीं। अंकिता कोई भी भारतीय नारी से कुछ ज्यादा ही लम्बी होगी। उसकी लम्बाई के कारण अंकिता का गठीला बदन भी एकदम पतला लगता था। हम उम्र होने के अलावा एक दूसरे से पहली नजर से ही जातीय आकर्षण होने के कारण गौरव और अंकिता दोनों एक दूसरे से कुछ अनौपचारिकता से बातें कर रहे थे। अपर्णा को जो सुनाई दिया वह कुछ ऐसा था।

गौरव: "अंकिता, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।"

अंकिता: "थैंक यू सर। आप भी तो हैंडसम हो!"

गौरव: "अरे कहाँ? अगर मैं आपको हैंडसम लगता तो आप मेरे करीब आनेसे क्यों झिझ-कतीं?"

अंकिता: "क्या बात करते हैं? मैं आपके करीब ही तो हूँ।"

गौरव ने अपनी टांगों की अंकिता की टांगों से मिलाया और बोला, "देखो हमारे बिच इतना बड़ा फासला है।"

अंकिता: "फासला कहाँ है? आप की टाँगें मेरी टाँगों को टच तो कर रहीं हैं।"

गौरव: "सिर्फ टाँगें ही तो टच कर रहीं है। हमारे बदन तो दूर हैं ना?"

अंकिता: "कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से मिलाने का ख्वाब देख रहे हो?"

गौरव: "क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई पाबंदी है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?"

अंकिता: "नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?"

गौरव: "क्या मतलब?"

अंकिता: "अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।"

गौरव: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"

अंकिता: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"

गौरव: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?"

अंकिता: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"

गौरव: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"

अंकिता: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"

गौरव: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"

अंकिता: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"

गौरव: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"

अंकिता: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना, एक दूसरे की ख़ुशी और भले के लिए कुछ बलिदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"

गौरव: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"

अंकिता गौरव की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। अंकिता की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। गौरव को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अंकिता को चुपचाप देखता रहा। अंकिता के चेहरे पर मायूसी देख कर गौरव ने कहा, "मुझे माफ़ करना अंकिताजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"

अंकिता ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"

गौरव: "अंकिताजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"

अंकिता ने बात को मोड़ देकर गौरव के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब मैं आपसे छोटी हूँ। आप मुझे अंकिताजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम अंकिता है और मुझे आप अंकिता कह कर ही बुलाइये।" अंकिता ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद अंकिता ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह गौरव को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।

गौरव: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम गौरव है। आप मुझे सिर्फ गौरव कह कर ही बुलाइये।"

अंकिता का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह गौरव के साथ आगे बढे या नहीं? पति (ब्रिगेडियर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही दिया था की अंकिता को अगर कहीं कुछ मौक़ा मिले तो उसे चोरी छुपी शारीरिक भूख मिटाने से उनको कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते की सारी बात छिपी रहे। अंकिताके लिए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद हट्टाकट्टा हैंडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की ने भरसक कोशिश में जुटा हुआ था। अब अंकिता पर निर्भर था की वह अपना सम्मान बनाये रखते हुए उस युवक को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे या नहीं। अंकिता ने सोचा यह पहली बार हुआ था की इतना हैंडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोशिश कर रहा था। पहले भी कई युवक अंकिता को लालच भरी नजर से तो देखते थे, पर किसीभी ऐसे हैंडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी भरसक कोशिश नहीं की थी। फिर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर किसी युवक को कहे की "आओ और मेरी शारीरिक भूख मिटाओ?" आखिर वह भी तो एक मानिनी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना सम्मान बनाये रखना था।

काफी सोचने के बाद अंकिता ने तय किया की जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? यह मौक़ा अगर चला गया तो फिर तो उसे अपने हाथोँ की उँगलियों से ही काम चलाना पड़ेगा। एक दिन की चाँदनी आयी है फिर तो अँधेरी रात है ही।

अंकिता ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी गौरवजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"

गौरव ने आगे बढ़कर अंकिता का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"

जैसे ही गौरव ने अंकिता का हाथ थामा तो अंकिता के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। अंकिता के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी अंकिता का हाथ इस तरह नहीं थामा था। अंकिता हमेशा यह सपना देखती रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है। अंकिता को अक्सर सपनेमें वही युवक बारबार आता था और अंकिता का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार अंकिता ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे उत्तेजना और उन्माद के सातवे आसमान पर उठा लेता था। फिर अंकिता ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं गौरव की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।

गौरव ने देखा की जब उसने अंकिता का हाथ थामा और अंकिता ने उसका कोई विरोध नहीं किया और अंकिता अपने ही विचारो में खोयी हुई गौरव के चेहरे की और एकटक देख रही थी, तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने अंकिता को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, अंकिता? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"

अंकिता अपनी तंद्रा से जाग उठी और गौरव की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"

गौरव: "देखो, सब सो रहे हैं। हम जोर से बात नहीं कर सकते। तो फिर मेरे करीब तो बैठो। अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"

अंकिता: "अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते हुए हम कैसे साथ में बैठ सकते हैं? यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"

गौरव: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना अंकिता की हाँ का इंतजार किये गौरव उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थको निचा करना चाहा। मज़बूरी में अंकिता को भी उठना पड़ा। गौरव ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर अंकिता को पहले बैठने का इशारा किया। अंकिता ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो

गौरव ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"

अंकिता और खिसक कर ठीक गौरवके करीब बैठी। उसने महसूस किया की उसकी जाँघें गौरव की जाँघों से घिस रहीं थीं। कम्पार्टमेंट का तापमान काफी ठंडा हो रहा था। गौरव ने धीरे से अंकिता को अपने और करीब खींचा तो अंकिता ने उसका विरोध करते हुए कहा, "क्या कर रहे हो? कोई देखेगा तो क्या कहेगा?" गौरव समझ गया की उसे अंकिता ने अनजाने में ही हरी झंडी दे दी थी। अंकिता ने गौरव का उसे अपने करीब खींचने का विरोध नहीं किया, उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि कोई देख लेगा यह कह कर उसे रोका था।

यह इशारा गौरव के लिए काफी था। गौरव समझ गया की अंकिता मन से गौरव के करीब आना चाहती थी पर उस को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।" गौरव ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला कर बंद कर दिया जिससे उनकी दो बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था।

जब अंकिता ने देखा की गौरव ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, "गौरव यह क्या कर रहे हो?"

गौरव: " मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। आपही ने तो कहा की कहीं कोई देख ना ले। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?"

अंकिता क्या बोलती? उसने चुप रहना ही ठीक समझा। अंकिता को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिचमें से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। अंकिता अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा रहा था। अंकिता को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था। गौरव ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो गौरव ने अंकिता को अपनी और करीब खींचा और अंकिता के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर अंकिता को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया। जैसे ही गौरव ने अंकिता को अपनी गोद में बिठाया की अंकिता मचलने लगी। अंकिता ने महसूस किया की गौरव का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरारमें वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की अंकिता जान गयी की गौरव का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था।

अंकिता से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था।

अंकिता की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे गौरव को अंकिता की हालत का पता लग जाए। साथ साथ अंकिता को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी। हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति से कोई परेशानी नहीं होगी, पर फिर भी अंकिता एक मानिनी शादीशुदा औरत थी। अगर इतनी आसानी से फँस गयी तो फिर क्या मजा? आसानी से मिली हुई चीज़ की कोई कीमत नहीं होती। थोड़ा गौरव को भी कुछ ज्यादा महेनत, मिन्नत और मशक्कत करनी चाहिए ना? अंकिता ने तय किया की अब उसे गौरव को रोकनाही होगा। मन ना मानते हुए भी अंकिता उठ खड़ी हुई।

उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए गौरव को कहा, "बस गौरव। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।".

अंकिता से गौरव को यह नहीं कहा गया की गौरव का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। अंकिता ने गौरव को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया। अंकिता अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी।

अपर्णा ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की अंकिता कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे गौरव भी उठ खड़ा हुआ और अंकिता के पीछे पीछे जाने लगा। अपर्णा से रहा नहीं गया। अपर्णा ने हलके से जीतूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जीतूजी गहरी नींद सो रहे थे। अपर्णा ने जीतूजी के बदन पर पूरी तरह से कम्बल और चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और गौरव और अंकिता की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।

अंकिता आगे भागकर कम्पार्टमेंट के शीशे के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। गौरव भी उसके पीछे अंकिता को लपकने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। अपर्णा ने देखा की गौरव ने भाग कर अंकिता को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। अंकिता भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई गौरव से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी। फिर उससे छूट कर अंकिता ने गौरव को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।"

और क्या था? गौरव को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर अंकिता को पकड़ना चाहा तो अंकिता कूद कर कम्पार्टमेंट का शीशे का दरवाजा खोलकर वहाँ पहुंची जो हिस्सा ऐयर-कण्डीशण्ड नहीं होता। जहां टॉयलेट बगैरह होते हैं। पीछे पीछे गौरव भी भाग कर पहुंचा और अंकिता को लपक कर पकड़ना चाहा।

अंकिता दरवाजे की और भागी। दुर्भाग्य से दरवाजा खुला था। वहाँ फर्श पर कुछ दही या अचार जैसा फिसलन वाला पदार्थ बिखरा हुआ था। अंकिता का पाँव फिसल गया। वह लड़खड़ायी और गिर पड़ी। उस के दोनों पाँव खुले दरवाजे से फिसल कर तेज चल रही ट्रैन के बाहर लटक गए।

गौरव ने फुर्ती से लपक कर ट्रैन के बाहर फिसलकर गिरती हुई अंकिता के हाथ पकड़ लिए। अंकिता के पाँव दरवाजे के बाहर निचे खुली हवा में पायदानों पर लटक रहे थे। वह जोर जोर से चिल्ला रही थी, "बचाओ बचाओ। गौरव प्लीज मुझे मत छोड़ना।"

गौरव कह रहे थे, "नहीं छोडूंगा, पर तुम मेरा हाथ कस के थामे रखना। कुछ नहीं होगा। बस हाथ कस के पकड़ रखना।"

अंकिता गौरव के हाथोँ के सहारे टिकी हुई थी। गौरव के पाँव भी उसी चिकनाहट पर थे। वह अपने को सम्हाल नहीं पाए और चिकनाहट पर पाँव फिसलने के कारण गिर पड़े। गौरव के कमर और पाँव कोच के अंदर थे और उनका सर समेत शरीर का ऊपरी हिस्सा दरवाजेके बाहर था। चूँकि उन्होंने अंकिता के हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ रखे थे, इस लिए वह किसी भी चीज़ का सहारा नहीं ले सकते थे और अपने बदन को फिसल ने से रोक नहीं सकते थे। गौरव ने अपने पाँव फैला कर अपने बदन को बाहर की और फिसलने से रोकना चाहा। पर सहारा ना होने और फर्श पर फैली हुई चिकनाहट के कारण उसका बदन भी धीरे धीरे दरवाजे के बाहर की और खिसकता जा रहा था। पीछे ही अपर्णा आ रही थी। उसने यह दृश्य देखा तो उसकी जान हथेली में आ गयी। कुछ ही क्षण की बात थी की अंकिता और गौरव दोनों ही तेज गति से दौड़ रही ट्रैन के बाहर तेज हवा के कारण उड़कर फेंक दिए जाएंगे।

अपर्णा ने भाग कर फिसल रहे गौरव के पाँव कस के पकडे और अपने दो पाँव फैला कर कोच के कोनों पर अपने पाँव टिका कर गौरव के शरीर को बाहर की और फिसलने से रोकने की कोशिश करने लगी। गौरव अंकिता के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर अपनी जान की बाजी लगा कर उसे बाहर फेंके जाने से रोकने की भरसक कोशिश में लगा हुआ था। तेज हवा और गाड़ी की तेज गति के कारण अंकिता पूरी तरह दरवाजे के बाहर जैसे उड़ रही थी। गौरव ने पूरी ताकत से अंकिता के दोनों हाथ अपने दोनों हाथोँ में कस के पकड़ कर रखे थे। अंकिता के पाँव हवा में झूल रहे थे। अक्सर अंकिता का घाघरा खुल कर छाते की तरह फ़ैल कर ऊपर की और उठ रहा था। अंकिता डिब्बे में से नीचे उतरने वाले पायदान पर अपने पाँव टिकाने की कोशिश में लगी हुई थी।

अपर्णा जोर से "कोई है? हमें मदद करो" चिल्ला ने लगी।

कुछ देर तक तो शीशे का दरवाजा बंद होने के कारण कर्नल साहब और रोहित को अपर्णा की चीखें नहीं सुनाई दी। पर किसी और यात्री के बताने पर अपर्णा की चिल्लाहट सुनकर एकदम कर्नल साहब और रोहित उठ खड़े हुए और भाग के अपर्णा के पास पहुंचे। कर्नल साहब ने जोर से ट्रैन की जंजीर खींची। इतनी तेजी से भाग रही ट्रैन एकदम कहाँ रूकती? ब्रेक की चीत्कार से सारा वातावरण गूँज उठा। ट्रैन काफी तेज रफ़्तार पर थी। अंकिता को लगा की उसके जीवन का आखरी वक्त आ चुका था। उसे बस गौरव के हाथ का सहारा था।

पर गौरव की भी हालत ऐसी थी की वह खुद फिसला जा रहा था। एक साथ दो जानें कभी भी जा सकतीं थीं। गौरव ने अपने जान की परवाह ना करते हुए अंकिता का हाथ नहीं छोड़ा। अंकिता और गौरव के वजन के कारण अपर्णा की पकड़ कमजोर हो रही थी। अपर्णा गौरव के पाँव को ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रही थी। गौरव के पाँव अपर्णा के हाथोँ में से फिसलते जा रहे थे। ट्रैन की रफ़्तार धीरे धीरे कम हो रही थी पर फिर भी काफी थी। अचानक अपर्णा के हाथोँ में से गौरव के पाँव छूट गए। गौरव और अंकिता दोनों देखते ही देखते ट्रैन के बाहर उछल कर निचे गिर पड़े। थोड़ी दूर जाकर ट्रैन रुक गयी।

अंकिता लुढ़क कर रेल की पटरियों से काफी दूर जा चुकी थी। बाहर घाँस और रेत होने के कारण उसे कुछ खरोंचे और एक दो जगह पर कुछ थोड़ी गहरी चोट लगी थी। पर गौरव को पत्थर पर गिरने के कारण काफी घाव लगे थे और उसके सर से खून बह रहा था। निचे गिरने के बाद चोट के कारण गौरव कुछ पल बेहोश पड़े रहे। ट्रैन रुकजाने पर कर्नल साहब और रोहित के साथ कई यात्री निचे उतर कर गौरव और अंकिताको पीछे की और ढूंढने भागे। कुछ दुरी पर उन्हें गौरव गिरे हुए मिले। गौरव रेल की पटरियोंके करीब पत्थरों के पास बेहोश गिरे हुए पड़ेथे। उनके सरसे काफी खून बह रहाथा। अपर्णा भी उतर कर वहाँ पहुंची। उसने अपनी चुन्नी फाड़ कर गौरवके सरपर कस के बाँधी। कुछ देर बाद गौरव ने आँखें खोलीं। कर्नल साहब गौरव को अपर्णा के सहारे छोड़ और पीछे की और भागे और कुछ दुरी पर उन्हें अंकिता दिखाई दी। अंकिता और पीछे गिरी हुई थी। अंकिता के कपडे फटे हुए थे पर उसे ज्यादा चोट नहीं आयीथी। वह उठकर खड़ीथी और अपने आपको सम्हालने की कोशिश कर रही थी। उसका सर चकरा रहा था। वह गौरव को ढूंढने की कोशिश कर रही थी।

कर्नल साहब और कुछ यात्री ने गार्ड के पास रखे प्राथमिक सारवार की सामग्री और दवाइयों से गौरव और अंकिता की चोटों पर दवाई लगाई और पट्टियां बाँधी और दोनों को उठाकर वापस ट्रैन में लाकर उनकी बर्थ पर रखा। अपर्णा और श्रेया जी उन दोनों की देखभाल करने में जुट गए। ट्रैन फिर से अपने गंतव्यकी और जानेके लिए अग्रसर हुई। अंकिता काफी सम्हल चुकी थी। वह गौरव के पाँव के पास जा बैठी। उसने गौरव का हाल देखा तो उसकी आँखों में से आँसुओं की धार बहने लगी। गौरव ने अपने जान की परवाह ना करते हुए उसकी जान बचाई यह उसको खाये जा रहा था। गौरव बच गए यह कुदरत का कमाल था। तेज रफ़्तार से चलती ट्रैन में से पत्थर पर गिरने से इंसान का बचना लगभग नामुमकिन सा होता है। पर गौरव ने फिर भी अपनी जान को जोखिम में डाल कर अंकिता को बचाया यह अंकिता के लिए एक अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव था। उसने सोचा भी नहीं था की कोई इंसान अपनी जान दुसरेकी जान बचाने के लिए ऐसे जोखिम में डाल सकता था। अपर्णा और श्रेया अंकिता को ढाढस देकर यह समझा रहे थे की गौरव ठीक है और उसकी जान को कोई ख़तरा नहीं है।​
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