Update 11
कम्पार्टमेंट में एक डॉक्टर थे उन्होंने दोनों को चेक किया और कहा की उन दोनों को चोटें आयींथी पर कोई हड्डी टूटी हो ऐसा नहीं लग रहा था।
कुछ देर बाद गौरव बैठ खड़े हुए और इधर उधर देखने लगे। सर पर लगी चोट के कारण उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी। उन्होंने अंकिता को अपने पाँव के पास बैठे हुए और रोते हुए देखा। गौरव ने झुक कर अंकिता के हाथ थामे और कहा, "अब सब ठीक है। अब रोना बंद करो। मैंने तुम्हें कहा था ना, की सब ठीक हो जाएगा? हम भारतीय सेना के जवान हमेशा अपनी जान अपनी हथेली में लेकर घूमते हैं। चाहे देश की अस्मिता हो या देशवासी की जान बचानी हो। हम अपनी जान की बाजी लगा कर उन्हें बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मैं बिलकुल ठीक हूँ तुम भी ठीक हो। अब जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो।"
थोड़ी देर बाद अपर्णा और श्रेया अपनी बर्थ पर वापस चले गये। अंकिता ने पर्दा फैला कर गौरव की बर्थ को परदे के पीछे ढक दिया। पहले तो वह गौरव के पर्दा फैलाने पर एतराज कर रही थी। पर अब वह खुद पर्दा फैला कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर ना जाकर निचे गौरव की बर्थ पर ही अपने पाँव लम्बे कर एक छोर पर बैठ गयी। अंकिता ने गौरव को बर्थ पर अपने शरीर को लंबा कर लेटने को कहा। गौरव के पाँव को अंकिता ने अपनी गोद में ले लिए और उनपर चद्दर बिछा कर वह गौरव के पाँव दबाने लगी। अंकिताके पाँव गौरव ने करवट लेकर अपनी बाहों में ले लिए और उन्हें प्यार से सहलाने लगा। देखते ही देखते कप्तान गौरव गहरी नींद में सो गये। धीरे धीरे अंकिता की आँखें भी भारी होने लगीं। संकड़ी सी बर्थ पर दोनों युवा बदन एक दूसरे के बदन को कस कर अपनी बाहों में लिए हुए लेट गए। एक का सर दूसरे की पाँव के पास था। ट्रैन बड़ी तेज रफ़्तार से धड़ल्ले से फर्राटे मारती हुई भाग रही थी।
गौरव की चोटें गहरी थीं और शायद कोई हड्डी नहीं टूटी थी पर मांसपेशियों में काफी जख्म लगे थे और बदन में दर्द था। अंकिता के कप्तान गौरव के बर्थ पर ही लम्बे होने से गौरव के बदन का कुछ हिस्सा दबा और दर्द होने के कारण कप्तान गौरव कराह उठे। अंकिता एकदम बैठ गयी और उठ कर गौरव के पाँव के पास जा बैठी। गौरव के पाँव को अपनी गोद में रख कर उस पर कम्बल डालकर वह हल्के से गौरव के पाँव को सहलाने लगी। फिर अंकिता की अपनी आँखें भी भारी हो रही थीं। अंकिता बैठे बैठे ही गौरव के पाँव अपनी गोद में लिए हुए सो गयी।
अंकिता के सोनेके कुछ देर बाद अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना अंकिता को मिलने के लिए अंकिता की बर्थ के पास पहुँचने वाले थे, तब अपर्णा ने उन्हें देखा। अपर्णा को डर था की कहीं अंकिता के पति अंकिता को गौरव के साथ कोई ऐसी वैसी हरकत करते हुए देख ना ले इसलिए वह ब्रिगेडियर साहब को नमस्ते करती हुई एकदम उठ खड़ी हुई और जीतूजी के पाँव थोड़े से खिसका कर अपर्णा ने ब्रिगेडियर साहब को अपने पास बैठाया। अपर्णा ने ब्रिगेडियर खन्ना साहब से कहा की उस समय अंकिता सो रही थी और उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं था। अपर्णा ने फिर ब्रिगेडियर खन्ना साहब को समझा बुझा कर अपने पास बैठाया और अंकिता और गौरव के साथ घटी घटना के बारे में सब बताया। कैसे अंकिता फिसल गयी फिर गौरव भी फिसले और कैसे गौरव ने अंकिता की जान बचाई।
अंकिता के पति ब्रिगेडियर खन्ना ने भी अपर्णा को बताया की जब गाडी करीब एक घंटे तक कहीं रुक गयी थी तब उन्होंने किसी को पूछा की क्या बात हुईथी। तब उनके साथ वाली बर्थ बैठे जनाब ने उन्हें बताया की कोई औरत ट्रैन से निचे गिर गयी थी और कोई आर्मीके अफसर ने उसे बचाया था। उन्हें क्या पता था की वह वाक्या उनकी अपनी पत्नी अंकिता के साथ ही हुआ था?
यह सब बातें सुनकर अंकिता के पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब बड़े चिंतित हो गए और वह अंकिता के पास जाने की जिद करने लगे तब अपर्णा ने उन्हें रोकते हुए ब्रिगेडियर साहब को थोड़ी धीरज रखने को कहा और बाजू में सो रहे जीतूजी को जगाया और ब्रिगेडियर खन्ना से बातचीत करने को कहा। ब्रिगेडियर साहब जैसे ही जीतूजी से घूम कर बात करनेमें लग गए की अपर्णा उठखडी हुई और उसने परदे के बाहर से अंकिता को हलके से पुकारा।
अंकिता को सोये हुए आधे घंटे से कुछ ज्यादा ही समय हुआ होगा की वह जागी तो अंकिता ने पाया की गौरव की साँसे धीमी रफ़्तार से नियमित चल रही थीं। कभी कभार उनके मुंह से हलकी सी खर्राटे की आवाज भी निकलने लगी। अंकिता को जब तसल्ली हुई की गौरव सो गए हैं तब उसने धीरे से अपने ऊपर से कम्बल हटाया और अपनी गोद में से गौरव का पाँव हटाकर निचे रखा। अंकिता ने गौरव के पाँव पर कम्बल ओढ़ा दिया और पर्दा हटा कर ऊपर अपनी बर्थ पर जाने के लिए उठने ही लगी थी की उसे परदे के उस पार अपर्णा की आवाज सुनिए दी। उसको अपने पति ब्रिगेडियर खन्ना की भी आवाज सुनाई दी। अंकिता हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। उस ने पर्दा हटाया और अपर्णा को देखा। अपर्णा अंकिता का हाथ पकड़ कर उसे ब्रिगेडियर साहबके पास ले गयी। अपर्णा ने अपने पति ब्रिगेडियर साहब को देखा तो उनके चरण स्पर्श करने झुकी।
ब्रिगेडियर साहब ने अपनी पत्नी अंकिता को उठाकर गले लगाया और पूछा, "अंकिता बेटा (ब्रिगेडियर खन्ना कई बार प्यार से अंकिता को अपनी पत्नी होने के बावजूद अंकिता की कम उम्र के कारण उसे बेटा कह कर बुलाया करते थे।) मैंने अभी अभी इन (अपर्णा की और इशारा करते हुए) से सूना की तुम ट्रैन के निचे गिर गयी थी? मेरीतो जान हथेली में आ गयी जब मैंने यह सूना। उस वक्त मैं गहरी नींदमें था और मुझे किसीने बताया तक नहीं। मेरा कोच काफी पीछे है। मैंने यह भी सूना की कप्तान गौरव ने तुम्हें अपनी जान पर खेल कर बचाया? क्या यह सच है?" ब्रिगेडियर खन्ना फिर अपनी पत्नी के बदन पर हलके से हाथ फिराते हुए बोले, "जानूं, तुम्हें ज्यादा चोट तो नहीं आयी ना?"
अंकिता ने ब्रिगेडियर साहब की छाती में अपना सर लगा कर कहा, "हाँ जी यह बिलकुल सच है। मैं कप्तान गौरवजी के कारण ही आज ज़िंदा हूँ। मुझे चोट नहीं आयी पर गौरवजी काफी चोटिल हुए हैं। वह अभी सो रहे हैं।" अपर्णा और कर्नल साहब की और इशारा करते हुए अंकिता ने कहा, "इन्होने गौरव साहब की पट्टी बगैरह की। एक डॉक्टर ने देखा और कहा की गौरव जी की जान को कोई ख़तरा नहीं है।"
फिर अंकिता ने अपने पति को जो हुआ उस वाकये की सारी कहानी विस्तार से सुनाई। अंकिता ने यह छुपाया की गौरव अंकिता को पकड़ने के लिए उस के पीछे भाग रहे थे और गौरव की चंगुल से बचने के लिए वह भाग रही थी तब वह सब हुआ। हालांकि यह उसे बताना पड़ा की गौरव उसके पीछे ही कुछ बात करने के लिए तेजी से भागते हुए हुए आ रहे थे तब उसे धक्का लगा और वह फिसल गयी और साथ में गौरव भी फिसल गए। ऐसे वह वाक्या हुआ। अंकिता को डर था की कहीं उसके पति उसकी कहानी की सच्चाई भाँप ना ले।
अंकिता की सारी कहानी सुनने के बाद ब्रिगेडियर साहब ने अंकिता के बाल सँवारते हुए कहा, "अंकिता, शुक्र है तुम्हें ज्यादा चोट नहीं आयी और गौरव भी बच गए। चलो जो हुआ सो हुआ। अब तुम मेरी बात बड़े ध्यान से सुनो। तुम अब गौरव का अच्छी तरह ख्याल रखना। वह अकेला है। उसे कोई तकलीफ ना हो l उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना। उनके साथ ही रहना। उन्होंने तुम्हारी ही नहीं मेरी भी जान बचाई है। मेरी जान तुमहो। उन्होंने तुम्हारी जान बचाकर हकीकत में तो मेरी जान बचाई है। ओके बच्चा? मैं चलता हूँ। तुम अपना भी ध्यान रखना।"
यह कह कर अपर्णा और जीतूजी को धन्यवाद देते और नमस्कार करते हुए ब्रिगेडियर साहब धीरे धीरे कम्पार्टमेंट की दीवारों का सहारा लेते हुए अपने कम्पार्टमेंट की और चल दिए।
अपने पति का इतना जबरदस्त सहारा और प्रोत्साहन पाकर अंकिता की आँखें नम हो गयीं। वह काफी खुश भी थी। "गौरव के साथ ही रहना, उन का ख़ास ध्यान रखना। उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना।". क्या उसके पति ब्रिगेडियर साहब यह कह कर उसे कुछ इशारा कर रहे थे? अंकिता इस उधेङबुन में थी की अपर्णा ने अंकिता को बताया की उन्होंने अंकिता और गौरव के लिए भी दोपहर का खाना आर्डर किया था। खाना आ भी चुका था। अपर्णा ने अंकिता को कहा की वह गौरव को भी जगाये और खाने के लिए कहे। अंकिता ने प्यार से गौरव को जगा कर बर्थ पर बिठा कर खाने के लिए आग्रह किया। गौरव को चेहरे और पाँव पर गहरी चोटें आयी थीं, पर वह कह रहे थे की वह ठीक हैं। गौरव खाने के लिए मना कर रहे थे पर अंकिता ने उनकी एक ना सुनी। चेहरे पर पट्टी लगाने के कारण उन्हें शायद ठीक ठीक देखने में दिक्कत हो रही थी। अंकिता ने खाने की प्लेट अपनी गोद में रखकर कप्तान गौरव के मना करने पर भी उन्हें एक एक निवाला बना कर अपने हाथों से खिलाना शुरू किया।
अपर्णा, श्रेया, रोहित और जीतूजी इस दोनों युवा का प्यार देख कर एक दूसरे की और देख कर शरारती अंदाज में मुस्कराये। सबके मन में शायद यही था की "जवाँ दिल की धड़कनों में भड़कती शमाँ। आगे आगे देखिये होता ही क्या।" प्यार और एक दूसरे के प्रति का ऐसा भाव देख सब के मन में यही था की कभी ना कभी जवान दिलों में भड़कती प्यार की यह छोटी सी चिंगारी जल्द ही आगे चल कर जवान बदनों में काम वासना की आग का रूप ले सकती है।
अपर्णा अंकिता के एकदम पास खिसक कर बैठ गयी और अंकिता के कानों में अपना मुंह लगा कर कोई न सुने ऐसे फुसफुसाते हुए कहा l "अंकिता, क्या इतना प्यार कोई किसी को कर सकता है? गौरव ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए तुम्हारी जान बचाई। कोई भी स्त्री के लिए कोई भी पुरुष इससे ज्यादा क्या बलिदान दे सकता है भला? मैं देख रही थी की गौरव तुम्हारे करीब आने की कोशिश कर रहा था और तुम उससे दूर भाग रही थी। ऐसे जाँबाज़ पुरुष के लिए अपना स्त्रीत्व की ही क्या; कोई भी कुर्बानी कम है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने अंकिता को आँख मारी और फिर अपने काम में लग गयी।
अपर्णा की बात अंकिता के जहन में बन्दुक की गोली के तरह घुस गयी। एक तो उसका तन और मन भी ऐसी मर्दानगी देख कर मचल ही रहा था उस पर अपर्णा की सटीक बात अंकिता के दिल को छू गयी। खाने के बाद अंकिता फिर से गौरव के पाँव से सट कर बैठ गयी। फिर से सारे परदे बंद हुए। क्यों की गौरव को तब भी काफी दर्द था, इस कारण अंकिता ने मन ना मानते हुए भी गौरव को प्यार से उसकी साइड की निचली बर्थ पर लिटा कर उसे कंबल ओढ़ा कर खुद जैसे ही अपनी ऊपर वाली बर्थ पर जाने लगी थी की उसने महसूस किया की कप्तान गौरव ने उसकी बाँह पकड़ी।
अंकिता ने मूड के देखा तो गौरव का चेहरा कम्बल से ढका हुआ था और शायद वह सो रहे थे पर फिर भी वह अंकिता को दूर नहीं जाने देना चाहते थे। अंकिता के चेहरे पर बरबस एक मुस्कान आ गयी। अंकिता गौरव का हाथ ना छुड़ाते हुए वहीं खड़ी रही। गौरव ने अंकिता का हाथ पकडे रखा। फिर अंकिता धीरे से हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर फिर भी गौरव ने हाथ नहीं छोड़ा और अंकिता का हाथ पकड़ अपना चेहरा ढके हुए रखते अंकिता को अपने पास बैठने का इशारा किया। अंकिता गौरव के सर के पास गयी और धीरे से बोली, "क्या बात है? कुछ चाहिए क्या?"
परदे को उठा कर अपना मुंह अंकिता के मुंह के पास लाकर बोले, "अंकिता, क्या अब भी तुम मुझसे रूठी हुई हो? मुझे माफ़ नहीं करोगी क्या?"
अंकिता ने अपने हाथ गौरव के मुंह पर रख दिए और बोली, "क्या बात कर रहें हैं आप? भला मैं आपसे कैसे नाराज हो सकती हूँ?"
गौरव ने कहा, "फिर उठ कर ऊपर क्यों जाने लग़ी? नींद आ रही है क्या?"
अंकिता ने गौरव की बात काटते हुए कहा, "मुझे कोई नींद नहीं आ रही। भला इतना बड़ा हादसा होने के बाद कोई सो सकता है? जो हुआ यह सोचते ही मेरा दिल धमनी की तरह धड़क रहा है। पता नहीं मैं कैसे बच गयी। मेरी जान तुम्हारी वजह से ही बची है गौरव!"
गौरव ने फट से अपने हाथ अंकिता की छाती पर रखने की कोशिश करते हुए कहा, "मैंने तुम्हें कहाँ बचाया? बचाने वाला सबका एक ही है। उसने तुम्हें और मुझे दोनों को बचाया। यह सब फ़ालतू की बातें छोडो। तुमने क्या कहा की तुम्हारा दिल तेजी से धड़क रहा है? ज़रा देखूं तो वह कितनी तेजी से धड़क रहा है?"
अंकिता ने इधर उधर देखा। कहीं कोई उन दोनों की प्यार की लीला देख तो नहीं रहा? फिर सोचा, "क्या पता कोई अपना मुंह परदे में ही छिपाकर उनको देख ना रहा हो?"
अंकिता ने एक हाथ से गौरव की नाक पकड़ कर उसे प्यार से हिलाते हुए और दूसरे हाथ से धीरे से प्यार से गौरव का हाथ जो अंकिता के स्तनोँ को छूने जा रहा था उसको अपने टॉप के ऊपर से हटाते हुए कहा, "जनाब को इतनी सारी चोटें आयी हैं, पर फिर भी रोमियोगिरी करने से बाज नहीं आते? अगर मैं आपके पास बैठी ना, तो सो चुके आप! मैं चाहती हूँ की आप आराम करो और एकदम फुर्ती से वापस वैसे ही हो जाओ जैसे पहले थे। मैं चाहती हूँ की कल सुबह तक ही आप दौड़ते फिरते हो जाओ। फिर अगले पुरे सात दिन हमारे हैं। अब सो जाओ ना प्लीज? तुम्हें आराम की सख्त जरुरत है।"
गौरव ने अंकिता की हाथों को अपने करीब खींचा और उसे मजबूर किया की वह गौरव के ऊपर झुके। जैसे ही अंकिता झुकी की गौरव ने करवट ली, कम्बल हटाया और अंकिता के कानों के करीब अपना मुंह रख कर कहा, "मुझे आराम से भी ज्यादा तुम्हारी जरुरत है।"
अंकिता ने मुंह बनाते हुए कहा, "हाय राम मैं क्या करूँ? यह मजनू तो मान ही नहीं रहे! अरे भाई सो जाओ और आराम करो। ऐसे जागते और बातें करते रहोगे तो आराम तो होगा ही नहीं ऊपर से कोई देखेगा और शक करेगा।"
गौरव ने जिद करते हुए कहा, "नहीं मैं ऐसे नहीं मानूंगा। अगर तुम मुझसे रूठी नहीं हो तो बस एक बार मेरे मुंह के करीब अपना मुंह तो लाओ, फिर मैं सो जाऊंगा। आई प्रॉमिस।"
अंकिता ने अपना मुंह गौरव के करीब किया तो गौरव ने दोनों हाथों से अंकिता का सर पकड़ा और अपने होँठ अंकिता के होँठों पर चिपका दिए।
हालांकि सारे परदे ढके हुए थे और कहीं कोई हलचल नहीं दिख रही थी, पर फिर भी गौरव की फुर्ती से अपने होठोँ को चुम लेने से अंकिता यह सोच कर डर रही थी की इतने बड़े कम्पार्टमेंट में कहीं कोई उन्हें प्यार करते हुए देख ना ले। पर अंकिता भी काफी उत्तेजित हो चुकी थी। गौरव ने अंकिता का सर इतनी सख्ती से पकड़ा था की चाहते हुए भी अंकिता उसे गौरव के हाथों से छुड़ाने में असमर्थ थी। मजबूर होकर "जो होगा देखा जाएगा" यह सोच कर अंकिता ने भी अपनी बाँहें फैला कर गौरव का सर अपनी बाँहों में लिया और गौरव के होँठों को कस के चुम्बन करने लगी। दोनों जवाँ बदन एक दूसरे की कामवासना में झुलस रहे थे। अंकिता गौरव के मुंह की लार चूस चूस कर अपने मुंह में लेती रही। गौरव भी अपनी जीभ अंकिता के मुंह में डाल कर उसे ऐसे अंदर बाहर करने लगा जैसे वह अंकिता के मुंह को अपनी जीभ से चोद रहा हो। इस तरह काफी देर तक चिपके रहने के बाद अंकिता ने काफी मशक्कत कर अपना सर गौरव से अलग किया और बोली, "गौरव! चलो भी! अब तो खुश हो ना? अब बहोत हो गया। अब प्लीज जाओ और आराम करो। मेरी कसम अब और कुछ शरारत की तो!"
गौरव ने कहा, "ठीक है तुमने कसम दी है तो सो जाऊंगा। पर ऐसे नहीं मानूंगा। पहले यह वचन दो की रात को सब सो जाएंगे उसके बाद तुम चुपचाप मेरी बर्थपर निचे मेरे पास आ जाओगी।"
अंकिता ने गौरव को दूर करते हुए कहा, "ठीक है बाबा देखूंगी। पर अब तो छोडो।"
गौरव ने जिद करते हुए कहा, "ना, मैं नहीं छोडूंगा। जब तक तुम मुझे वचन नहीं दोगी।"
अंकिता ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, "ठीक है बाबा मैं वचन देती हूँ। अब तुम छोडो ना?"
गौरव ने कहा, "ऐसे नहीं, बोलो क्या वचन देती हो?"
अंकिता ने कहा, "रातको जब सब सो जाएंगे, तब मैं चुपचाप निचे उतरकर तुम्हारी बर्थपर आ जाऊंगी । बस?"
गौरव ने कहा, "पर अगर तुम सो गयी तो?"
अंकिता ने अपना सर पटकते हुए कहा, अरे भगवान् यह तो मान ही नहीं रहे! अच्छा बाबा अगर मैं सो गयी तो तुम मुझे आकर उठा देना। अब तो ठीक है?"
गौरव ने धीरे से कहा, "ठीक है जानूं पर भूलना नहीं और अपने वादे से मुकर मत जाना."
अंकिता ने आँख मारकर कहा, "नहीं भूलूंगी और किये हुए वादे से मुकरूंगी भी नहीं। पर अब तुम आराम करो वरना मैं चिल्लाऊंगी, की यह बन्दा मुझे सता रहा है।"
गौरव ने हँसते हुए अंकिता का हाथ छोड़ दिया और जैसे डर गए हों ऐसे अपना मुंह कम्बल में छिपा कर एक आँख से अंकिता की और देखते हुए बोले, "अरे बाबा, ऐसा मत करना। मैं अब तुम्हें नहीं छेड़ूँगा। बस?"
गौरव की बात सुन अंकिता बरबस ही हंसने लगी। अपने दोनों हाथ जोड़कर गौरव को नमस्ते की मुद्रा कर मुस्काती हुई अंकिता गौरव के साथ हो रही कामक्रीड़ा के परिणाम रूप अपनी दोनों जाँघों के बिच हुए गीलेपन को महसूस कर रही थी। काफी समय के बाद अपनी दो जाँघों के बिच चूत में हो रही मीठी मचलन अंकिता के मन में कोई अजीब सी अनुभूति पैदा कर रही थी। अंकिता जब अपना घाघरा अपनी जाँघों के उपर तक उठाकर अपनी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ने लगी तो गौरव धीरे से बोला, "अपने आपको सम्हालो! निचे वाला (यानी गौरव) सब कुछ देख रहा है!" लज्जित अंकिता ने अपने पाँव निचे किये। गौरव की हरकतों से परेशान होने पर कुछ भी ना कर पाने के कारण मजबूर, अंकिता अपना घाघरा ठीक ठाक करती हुई अपने आपको सम्हाल कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर पहुंची और लम्बे हो कर लेट कर पिछले चंद घंटों में हुए वाक्योँ के बारेमें सोचने लगी।
ट्रैन मंजिल की और तेजी से अग्रसर हो रही थी।
कम्पार्टमेंट में शामके करीब पांच बजे कुछ हलचल शुरू हुई। गौरव के अलावा सब लोग बैठ गए। अंकिता ने गौरव के लिए चाय मंगाई। कुछ बिस्किट और चाय पिलाकर अंकिता ने गौरव को डॉक्टर की दी हुई कुछ दवाइयाँ दीं। दवाइयाँ खाकर गौरव फिर लेट गए। गौरव ने कहा की उनका दर्द कुछ कम हो रहा था। डॉक्टर ने टिटेनस का इंजेक्शन पहले ही दे दिया था। अंकिता गौरव के पाँव के पास ही बैठी बैठ गौरव को देख रही थी और कभी पानी तो कभी एक बिस्कुट दे देती थी। अन्धेरा होते ही शामका खाना आ पहुंचा। फिर अंकिता ने अपने हाथों से गौरव को बिठा कर खाना खिलाया। अपर्णा, श्रेया, कर्नल साहब और रोहित ने भी देखा की अंकिता गौरव का बहोत ध्यान रख रही थी।
सब ने खाना खाया और थोड़ी सी गपशप लगाकर ज्यादातर लोग अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो गए। कई यात्रियों ने कान पर ईयरफोन्स लगा अपने सेल फ़ोन में कोई मूवी, या गाना या कोई और चीज़ देखने में ही खो गए। रात के नौ बजते ही सब अपना अपना बिस्तर बनाने में लग गए। सुबह करीब ६ बजे जम्मू स्टेशन आने वाला था। अंकिता ने गौरव को उठाया और उसका बिस्तर झाड़ कर अच्छी तरह से चद्दर और कम्बल बिछा कर गौरव को लेटाया। गौरव अब धीरे धीरे बैठने लगा था। शामको एक बार अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब भी आये और गौरव को हेलो, हाय किया। इस बार उन्होंने गौरव के साथ बैठकर गौरव का हाल पूछा और फिर अंकिता के गाल पर हलकी सी किस करके वह अपनी बर्थ के लिए वापस चले गए। गौरव को फिर भी अंदेशा ना हुआ की अंकिता ब्रिगेडियर साहब की पत्नी थी। रात का अँधेरा घना हो गया था। काफी यात्री सो चुके थे। एक के बाद एक बत्तियां बुझती जा रहीं थीं।
अंकिता ने भी जब पर्दा फैलाया तब गौरव ने फिर अंकिता का हाथ पकड़ा और अपने करीब खिंच कर कानों में पूछा, "अपना वादा तो याद है ना?" अंकिता ने बिना बोले अपनी मुंडी हिलाकर हामी भरी और मुस्काती हुई अपना घाघरा सम्हालते हुए अपनी ऊपर की बर्थ पर चढ़ गयी।
कुछ देर बाद गौरव बैठ खड़े हुए और इधर उधर देखने लगे। सर पर लगी चोट के कारण उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी। उन्होंने अंकिता को अपने पाँव के पास बैठे हुए और रोते हुए देखा। गौरव ने झुक कर अंकिता के हाथ थामे और कहा, "अब सब ठीक है। अब रोना बंद करो। मैंने तुम्हें कहा था ना, की सब ठीक हो जाएगा? हम भारतीय सेना के जवान हमेशा अपनी जान अपनी हथेली में लेकर घूमते हैं। चाहे देश की अस्मिता हो या देशवासी की जान बचानी हो। हम अपनी जान की बाजी लगा कर उन्हें बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मैं बिलकुल ठीक हूँ तुम भी ठीक हो। अब जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो।"
थोड़ी देर बाद अपर्णा और श्रेया अपनी बर्थ पर वापस चले गये। अंकिता ने पर्दा फैला कर गौरव की बर्थ को परदे के पीछे ढक दिया। पहले तो वह गौरव के पर्दा फैलाने पर एतराज कर रही थी। पर अब वह खुद पर्दा फैला कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर ना जाकर निचे गौरव की बर्थ पर ही अपने पाँव लम्बे कर एक छोर पर बैठ गयी। अंकिता ने गौरव को बर्थ पर अपने शरीर को लंबा कर लेटने को कहा। गौरव के पाँव को अंकिता ने अपनी गोद में ले लिए और उनपर चद्दर बिछा कर वह गौरव के पाँव दबाने लगी। अंकिताके पाँव गौरव ने करवट लेकर अपनी बाहों में ले लिए और उन्हें प्यार से सहलाने लगा। देखते ही देखते कप्तान गौरव गहरी नींद में सो गये। धीरे धीरे अंकिता की आँखें भी भारी होने लगीं। संकड़ी सी बर्थ पर दोनों युवा बदन एक दूसरे के बदन को कस कर अपनी बाहों में लिए हुए लेट गए। एक का सर दूसरे की पाँव के पास था। ट्रैन बड़ी तेज रफ़्तार से धड़ल्ले से फर्राटे मारती हुई भाग रही थी।
गौरव की चोटें गहरी थीं और शायद कोई हड्डी नहीं टूटी थी पर मांसपेशियों में काफी जख्म लगे थे और बदन में दर्द था। अंकिता के कप्तान गौरव के बर्थ पर ही लम्बे होने से गौरव के बदन का कुछ हिस्सा दबा और दर्द होने के कारण कप्तान गौरव कराह उठे। अंकिता एकदम बैठ गयी और उठ कर गौरव के पाँव के पास जा बैठी। गौरव के पाँव को अपनी गोद में रख कर उस पर कम्बल डालकर वह हल्के से गौरव के पाँव को सहलाने लगी। फिर अंकिता की अपनी आँखें भी भारी हो रही थीं। अंकिता बैठे बैठे ही गौरव के पाँव अपनी गोद में लिए हुए सो गयी।
अंकिता के सोनेके कुछ देर बाद अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना अंकिता को मिलने के लिए अंकिता की बर्थ के पास पहुँचने वाले थे, तब अपर्णा ने उन्हें देखा। अपर्णा को डर था की कहीं अंकिता के पति अंकिता को गौरव के साथ कोई ऐसी वैसी हरकत करते हुए देख ना ले इसलिए वह ब्रिगेडियर साहब को नमस्ते करती हुई एकदम उठ खड़ी हुई और जीतूजी के पाँव थोड़े से खिसका कर अपर्णा ने ब्रिगेडियर साहब को अपने पास बैठाया। अपर्णा ने ब्रिगेडियर खन्ना साहब से कहा की उस समय अंकिता सो रही थी और उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं था। अपर्णा ने फिर ब्रिगेडियर खन्ना साहब को समझा बुझा कर अपने पास बैठाया और अंकिता और गौरव के साथ घटी घटना के बारे में सब बताया। कैसे अंकिता फिसल गयी फिर गौरव भी फिसले और कैसे गौरव ने अंकिता की जान बचाई।
अंकिता के पति ब्रिगेडियर खन्ना ने भी अपर्णा को बताया की जब गाडी करीब एक घंटे तक कहीं रुक गयी थी तब उन्होंने किसी को पूछा की क्या बात हुईथी। तब उनके साथ वाली बर्थ बैठे जनाब ने उन्हें बताया की कोई औरत ट्रैन से निचे गिर गयी थी और कोई आर्मीके अफसर ने उसे बचाया था। उन्हें क्या पता था की वह वाक्या उनकी अपनी पत्नी अंकिता के साथ ही हुआ था?
यह सब बातें सुनकर अंकिता के पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब बड़े चिंतित हो गए और वह अंकिता के पास जाने की जिद करने लगे तब अपर्णा ने उन्हें रोकते हुए ब्रिगेडियर साहब को थोड़ी धीरज रखने को कहा और बाजू में सो रहे जीतूजी को जगाया और ब्रिगेडियर खन्ना से बातचीत करने को कहा। ब्रिगेडियर साहब जैसे ही जीतूजी से घूम कर बात करनेमें लग गए की अपर्णा उठखडी हुई और उसने परदे के बाहर से अंकिता को हलके से पुकारा।
अंकिता को सोये हुए आधे घंटे से कुछ ज्यादा ही समय हुआ होगा की वह जागी तो अंकिता ने पाया की गौरव की साँसे धीमी रफ़्तार से नियमित चल रही थीं। कभी कभार उनके मुंह से हलकी सी खर्राटे की आवाज भी निकलने लगी। अंकिता को जब तसल्ली हुई की गौरव सो गए हैं तब उसने धीरे से अपने ऊपर से कम्बल हटाया और अपनी गोद में से गौरव का पाँव हटाकर निचे रखा। अंकिता ने गौरव के पाँव पर कम्बल ओढ़ा दिया और पर्दा हटा कर ऊपर अपनी बर्थ पर जाने के लिए उठने ही लगी थी की उसे परदे के उस पार अपर्णा की आवाज सुनिए दी। उसको अपने पति ब्रिगेडियर खन्ना की भी आवाज सुनाई दी। अंकिता हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। उस ने पर्दा हटाया और अपर्णा को देखा। अपर्णा अंकिता का हाथ पकड़ कर उसे ब्रिगेडियर साहबके पास ले गयी। अपर्णा ने अपने पति ब्रिगेडियर साहब को देखा तो उनके चरण स्पर्श करने झुकी।
ब्रिगेडियर साहब ने अपनी पत्नी अंकिता को उठाकर गले लगाया और पूछा, "अंकिता बेटा (ब्रिगेडियर खन्ना कई बार प्यार से अंकिता को अपनी पत्नी होने के बावजूद अंकिता की कम उम्र के कारण उसे बेटा कह कर बुलाया करते थे।) मैंने अभी अभी इन (अपर्णा की और इशारा करते हुए) से सूना की तुम ट्रैन के निचे गिर गयी थी? मेरीतो जान हथेली में आ गयी जब मैंने यह सूना। उस वक्त मैं गहरी नींदमें था और मुझे किसीने बताया तक नहीं। मेरा कोच काफी पीछे है। मैंने यह भी सूना की कप्तान गौरव ने तुम्हें अपनी जान पर खेल कर बचाया? क्या यह सच है?" ब्रिगेडियर खन्ना फिर अपनी पत्नी के बदन पर हलके से हाथ फिराते हुए बोले, "जानूं, तुम्हें ज्यादा चोट तो नहीं आयी ना?"
अंकिता ने ब्रिगेडियर साहब की छाती में अपना सर लगा कर कहा, "हाँ जी यह बिलकुल सच है। मैं कप्तान गौरवजी के कारण ही आज ज़िंदा हूँ। मुझे चोट नहीं आयी पर गौरवजी काफी चोटिल हुए हैं। वह अभी सो रहे हैं।" अपर्णा और कर्नल साहब की और इशारा करते हुए अंकिता ने कहा, "इन्होने गौरव साहब की पट्टी बगैरह की। एक डॉक्टर ने देखा और कहा की गौरव जी की जान को कोई ख़तरा नहीं है।"
फिर अंकिता ने अपने पति को जो हुआ उस वाकये की सारी कहानी विस्तार से सुनाई। अंकिता ने यह छुपाया की गौरव अंकिता को पकड़ने के लिए उस के पीछे भाग रहे थे और गौरव की चंगुल से बचने के लिए वह भाग रही थी तब वह सब हुआ। हालांकि यह उसे बताना पड़ा की गौरव उसके पीछे ही कुछ बात करने के लिए तेजी से भागते हुए हुए आ रहे थे तब उसे धक्का लगा और वह फिसल गयी और साथ में गौरव भी फिसल गए। ऐसे वह वाक्या हुआ। अंकिता को डर था की कहीं उसके पति उसकी कहानी की सच्चाई भाँप ना ले।
अंकिता की सारी कहानी सुनने के बाद ब्रिगेडियर साहब ने अंकिता के बाल सँवारते हुए कहा, "अंकिता, शुक्र है तुम्हें ज्यादा चोट नहीं आयी और गौरव भी बच गए। चलो जो हुआ सो हुआ। अब तुम मेरी बात बड़े ध्यान से सुनो। तुम अब गौरव का अच्छी तरह ख्याल रखना। वह अकेला है। उसे कोई तकलीफ ना हो l उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना। उनके साथ ही रहना। उन्होंने तुम्हारी ही नहीं मेरी भी जान बचाई है। मेरी जान तुमहो। उन्होंने तुम्हारी जान बचाकर हकीकत में तो मेरी जान बचाई है। ओके बच्चा? मैं चलता हूँ। तुम अपना भी ध्यान रखना।"
यह कह कर अपर्णा और जीतूजी को धन्यवाद देते और नमस्कार करते हुए ब्रिगेडियर साहब धीरे धीरे कम्पार्टमेंट की दीवारों का सहारा लेते हुए अपने कम्पार्टमेंट की और चल दिए।
अपने पति का इतना जबरदस्त सहारा और प्रोत्साहन पाकर अंकिता की आँखें नम हो गयीं। वह काफी खुश भी थी। "गौरव के साथ ही रहना, उन का ख़ास ध्यान रखना। उन्हें किसी तरह की कोई भी जरुरत हो तो तुम पूरी करना।". क्या उसके पति ब्रिगेडियर साहब यह कह कर उसे कुछ इशारा कर रहे थे? अंकिता इस उधेङबुन में थी की अपर्णा ने अंकिता को बताया की उन्होंने अंकिता और गौरव के लिए भी दोपहर का खाना आर्डर किया था। खाना आ भी चुका था। अपर्णा ने अंकिता को कहा की वह गौरव को भी जगाये और खाने के लिए कहे। अंकिता ने प्यार से गौरव को जगा कर बर्थ पर बिठा कर खाने के लिए आग्रह किया। गौरव को चेहरे और पाँव पर गहरी चोटें आयी थीं, पर वह कह रहे थे की वह ठीक हैं। गौरव खाने के लिए मना कर रहे थे पर अंकिता ने उनकी एक ना सुनी। चेहरे पर पट्टी लगाने के कारण उन्हें शायद ठीक ठीक देखने में दिक्कत हो रही थी। अंकिता ने खाने की प्लेट अपनी गोद में रखकर कप्तान गौरव के मना करने पर भी उन्हें एक एक निवाला बना कर अपने हाथों से खिलाना शुरू किया।
अपर्णा, श्रेया, रोहित और जीतूजी इस दोनों युवा का प्यार देख कर एक दूसरे की और देख कर शरारती अंदाज में मुस्कराये। सबके मन में शायद यही था की "जवाँ दिल की धड़कनों में भड़कती शमाँ। आगे आगे देखिये होता ही क्या।" प्यार और एक दूसरे के प्रति का ऐसा भाव देख सब के मन में यही था की कभी ना कभी जवान दिलों में भड़कती प्यार की यह छोटी सी चिंगारी जल्द ही आगे चल कर जवान बदनों में काम वासना की आग का रूप ले सकती है।
अपर्णा अंकिता के एकदम पास खिसक कर बैठ गयी और अंकिता के कानों में अपना मुंह लगा कर कोई न सुने ऐसे फुसफुसाते हुए कहा l "अंकिता, क्या इतना प्यार कोई किसी को कर सकता है? गौरव ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए तुम्हारी जान बचाई। कोई भी स्त्री के लिए कोई भी पुरुष इससे ज्यादा क्या बलिदान दे सकता है भला? मैं देख रही थी की गौरव तुम्हारे करीब आने की कोशिश कर रहा था और तुम उससे दूर भाग रही थी। ऐसे जाँबाज़ पुरुष के लिए अपना स्त्रीत्व की ही क्या; कोई भी कुर्बानी कम है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने अंकिता को आँख मारी और फिर अपने काम में लग गयी।
अपर्णा की बात अंकिता के जहन में बन्दुक की गोली के तरह घुस गयी। एक तो उसका तन और मन भी ऐसी मर्दानगी देख कर मचल ही रहा था उस पर अपर्णा की सटीक बात अंकिता के दिल को छू गयी। खाने के बाद अंकिता फिर से गौरव के पाँव से सट कर बैठ गयी। फिर से सारे परदे बंद हुए। क्यों की गौरव को तब भी काफी दर्द था, इस कारण अंकिता ने मन ना मानते हुए भी गौरव को प्यार से उसकी साइड की निचली बर्थ पर लिटा कर उसे कंबल ओढ़ा कर खुद जैसे ही अपनी ऊपर वाली बर्थ पर जाने लगी थी की उसने महसूस किया की कप्तान गौरव ने उसकी बाँह पकड़ी।
अंकिता ने मूड के देखा तो गौरव का चेहरा कम्बल से ढका हुआ था और शायद वह सो रहे थे पर फिर भी वह अंकिता को दूर नहीं जाने देना चाहते थे। अंकिता के चेहरे पर बरबस एक मुस्कान आ गयी। अंकिता गौरव का हाथ ना छुड़ाते हुए वहीं खड़ी रही। गौरव ने अंकिता का हाथ पकडे रखा। फिर अंकिता धीरे से हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर फिर भी गौरव ने हाथ नहीं छोड़ा और अंकिता का हाथ पकड़ अपना चेहरा ढके हुए रखते अंकिता को अपने पास बैठने का इशारा किया। अंकिता गौरव के सर के पास गयी और धीरे से बोली, "क्या बात है? कुछ चाहिए क्या?"
परदे को उठा कर अपना मुंह अंकिता के मुंह के पास लाकर बोले, "अंकिता, क्या अब भी तुम मुझसे रूठी हुई हो? मुझे माफ़ नहीं करोगी क्या?"
अंकिता ने अपने हाथ गौरव के मुंह पर रख दिए और बोली, "क्या बात कर रहें हैं आप? भला मैं आपसे कैसे नाराज हो सकती हूँ?"
गौरव ने कहा, "फिर उठ कर ऊपर क्यों जाने लग़ी? नींद आ रही है क्या?"
अंकिता ने गौरव की बात काटते हुए कहा, "मुझे कोई नींद नहीं आ रही। भला इतना बड़ा हादसा होने के बाद कोई सो सकता है? जो हुआ यह सोचते ही मेरा दिल धमनी की तरह धड़क रहा है। पता नहीं मैं कैसे बच गयी। मेरी जान तुम्हारी वजह से ही बची है गौरव!"
गौरव ने फट से अपने हाथ अंकिता की छाती पर रखने की कोशिश करते हुए कहा, "मैंने तुम्हें कहाँ बचाया? बचाने वाला सबका एक ही है। उसने तुम्हें और मुझे दोनों को बचाया। यह सब फ़ालतू की बातें छोडो। तुमने क्या कहा की तुम्हारा दिल तेजी से धड़क रहा है? ज़रा देखूं तो वह कितनी तेजी से धड़क रहा है?"
अंकिता ने इधर उधर देखा। कहीं कोई उन दोनों की प्यार की लीला देख तो नहीं रहा? फिर सोचा, "क्या पता कोई अपना मुंह परदे में ही छिपाकर उनको देख ना रहा हो?"
अंकिता ने एक हाथ से गौरव की नाक पकड़ कर उसे प्यार से हिलाते हुए और दूसरे हाथ से धीरे से प्यार से गौरव का हाथ जो अंकिता के स्तनोँ को छूने जा रहा था उसको अपने टॉप के ऊपर से हटाते हुए कहा, "जनाब को इतनी सारी चोटें आयी हैं, पर फिर भी रोमियोगिरी करने से बाज नहीं आते? अगर मैं आपके पास बैठी ना, तो सो चुके आप! मैं चाहती हूँ की आप आराम करो और एकदम फुर्ती से वापस वैसे ही हो जाओ जैसे पहले थे। मैं चाहती हूँ की कल सुबह तक ही आप दौड़ते फिरते हो जाओ। फिर अगले पुरे सात दिन हमारे हैं। अब सो जाओ ना प्लीज? तुम्हें आराम की सख्त जरुरत है।"
गौरव ने अंकिता की हाथों को अपने करीब खींचा और उसे मजबूर किया की वह गौरव के ऊपर झुके। जैसे ही अंकिता झुकी की गौरव ने करवट ली, कम्बल हटाया और अंकिता के कानों के करीब अपना मुंह रख कर कहा, "मुझे आराम से भी ज्यादा तुम्हारी जरुरत है।"
अंकिता ने मुंह बनाते हुए कहा, "हाय राम मैं क्या करूँ? यह मजनू तो मान ही नहीं रहे! अरे भाई सो जाओ और आराम करो। ऐसे जागते और बातें करते रहोगे तो आराम तो होगा ही नहीं ऊपर से कोई देखेगा और शक करेगा।"
गौरव ने जिद करते हुए कहा, "नहीं मैं ऐसे नहीं मानूंगा। अगर तुम मुझसे रूठी नहीं हो तो बस एक बार मेरे मुंह के करीब अपना मुंह तो लाओ, फिर मैं सो जाऊंगा। आई प्रॉमिस।"
अंकिता ने अपना मुंह गौरव के करीब किया तो गौरव ने दोनों हाथों से अंकिता का सर पकड़ा और अपने होँठ अंकिता के होँठों पर चिपका दिए।
हालांकि सारे परदे ढके हुए थे और कहीं कोई हलचल नहीं दिख रही थी, पर फिर भी गौरव की फुर्ती से अपने होठोँ को चुम लेने से अंकिता यह सोच कर डर रही थी की इतने बड़े कम्पार्टमेंट में कहीं कोई उन्हें प्यार करते हुए देख ना ले। पर अंकिता भी काफी उत्तेजित हो चुकी थी। गौरव ने अंकिता का सर इतनी सख्ती से पकड़ा था की चाहते हुए भी अंकिता उसे गौरव के हाथों से छुड़ाने में असमर्थ थी। मजबूर होकर "जो होगा देखा जाएगा" यह सोच कर अंकिता ने भी अपनी बाँहें फैला कर गौरव का सर अपनी बाँहों में लिया और गौरव के होँठों को कस के चुम्बन करने लगी। दोनों जवाँ बदन एक दूसरे की कामवासना में झुलस रहे थे। अंकिता गौरव के मुंह की लार चूस चूस कर अपने मुंह में लेती रही। गौरव भी अपनी जीभ अंकिता के मुंह में डाल कर उसे ऐसे अंदर बाहर करने लगा जैसे वह अंकिता के मुंह को अपनी जीभ से चोद रहा हो। इस तरह काफी देर तक चिपके रहने के बाद अंकिता ने काफी मशक्कत कर अपना सर गौरव से अलग किया और बोली, "गौरव! चलो भी! अब तो खुश हो ना? अब बहोत हो गया। अब प्लीज जाओ और आराम करो। मेरी कसम अब और कुछ शरारत की तो!"
गौरव ने कहा, "ठीक है तुमने कसम दी है तो सो जाऊंगा। पर ऐसे नहीं मानूंगा। पहले यह वचन दो की रात को सब सो जाएंगे उसके बाद तुम चुपचाप मेरी बर्थपर निचे मेरे पास आ जाओगी।"
अंकिता ने गौरव को दूर करते हुए कहा, "ठीक है बाबा देखूंगी। पर अब तो छोडो।"
गौरव ने जिद करते हुए कहा, "ना, मैं नहीं छोडूंगा। जब तक तुम मुझे वचन नहीं दोगी।"
अंकिता ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, "ठीक है बाबा मैं वचन देती हूँ। अब तुम छोडो ना?"
गौरव ने कहा, "ऐसे नहीं, बोलो क्या वचन देती हो?"
अंकिता ने कहा, "रातको जब सब सो जाएंगे, तब मैं चुपचाप निचे उतरकर तुम्हारी बर्थपर आ जाऊंगी । बस?"
गौरव ने कहा, "पर अगर तुम सो गयी तो?"
अंकिता ने अपना सर पटकते हुए कहा, अरे भगवान् यह तो मान ही नहीं रहे! अच्छा बाबा अगर मैं सो गयी तो तुम मुझे आकर उठा देना। अब तो ठीक है?"
गौरव ने धीरे से कहा, "ठीक है जानूं पर भूलना नहीं और अपने वादे से मुकर मत जाना."
अंकिता ने आँख मारकर कहा, "नहीं भूलूंगी और किये हुए वादे से मुकरूंगी भी नहीं। पर अब तुम आराम करो वरना मैं चिल्लाऊंगी, की यह बन्दा मुझे सता रहा है।"
गौरव ने हँसते हुए अंकिता का हाथ छोड़ दिया और जैसे डर गए हों ऐसे अपना मुंह कम्बल में छिपा कर एक आँख से अंकिता की और देखते हुए बोले, "अरे बाबा, ऐसा मत करना। मैं अब तुम्हें नहीं छेड़ूँगा। बस?"
गौरव की बात सुन अंकिता बरबस ही हंसने लगी। अपने दोनों हाथ जोड़कर गौरव को नमस्ते की मुद्रा कर मुस्काती हुई अंकिता गौरव के साथ हो रही कामक्रीड़ा के परिणाम रूप अपनी दोनों जाँघों के बिच हुए गीलेपन को महसूस कर रही थी। काफी समय के बाद अपनी दो जाँघों के बिच चूत में हो रही मीठी मचलन अंकिता के मन में कोई अजीब सी अनुभूति पैदा कर रही थी। अंकिता जब अपना घाघरा अपनी जाँघों के उपर तक उठाकर अपनी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ने लगी तो गौरव धीरे से बोला, "अपने आपको सम्हालो! निचे वाला (यानी गौरव) सब कुछ देख रहा है!" लज्जित अंकिता ने अपने पाँव निचे किये। गौरव की हरकतों से परेशान होने पर कुछ भी ना कर पाने के कारण मजबूर, अंकिता अपना घाघरा ठीक ठाक करती हुई अपने आपको सम्हाल कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर पहुंची और लम्बे हो कर लेट कर पिछले चंद घंटों में हुए वाक्योँ के बारेमें सोचने लगी।
ट्रैन मंजिल की और तेजी से अग्रसर हो रही थी।
कम्पार्टमेंट में शामके करीब पांच बजे कुछ हलचल शुरू हुई। गौरव के अलावा सब लोग बैठ गए। अंकिता ने गौरव के लिए चाय मंगाई। कुछ बिस्किट और चाय पिलाकर अंकिता ने गौरव को डॉक्टर की दी हुई कुछ दवाइयाँ दीं। दवाइयाँ खाकर गौरव फिर लेट गए। गौरव ने कहा की उनका दर्द कुछ कम हो रहा था। डॉक्टर ने टिटेनस का इंजेक्शन पहले ही दे दिया था। अंकिता गौरव के पाँव के पास ही बैठी बैठ गौरव को देख रही थी और कभी पानी तो कभी एक बिस्कुट दे देती थी। अन्धेरा होते ही शामका खाना आ पहुंचा। फिर अंकिता ने अपने हाथों से गौरव को बिठा कर खाना खिलाया। अपर्णा, श्रेया, कर्नल साहब और रोहित ने भी देखा की अंकिता गौरव का बहोत ध्यान रख रही थी।
सब ने खाना खाया और थोड़ी सी गपशप लगाकर ज्यादातर लोग अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो गए। कई यात्रियों ने कान पर ईयरफोन्स लगा अपने सेल फ़ोन में कोई मूवी, या गाना या कोई और चीज़ देखने में ही खो गए। रात के नौ बजते ही सब अपना अपना बिस्तर बनाने में लग गए। सुबह करीब ६ बजे जम्मू स्टेशन आने वाला था। अंकिता ने गौरव को उठाया और उसका बिस्तर झाड़ कर अच्छी तरह से चद्दर और कम्बल बिछा कर गौरव को लेटाया। गौरव अब धीरे धीरे बैठने लगा था। शामको एक बार अंकिताके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब भी आये और गौरव को हेलो, हाय किया। इस बार उन्होंने गौरव के साथ बैठकर गौरव का हाल पूछा और फिर अंकिता के गाल पर हलकी सी किस करके वह अपनी बर्थ के लिए वापस चले गए। गौरव को फिर भी अंदेशा ना हुआ की अंकिता ब्रिगेडियर साहब की पत्नी थी। रात का अँधेरा घना हो गया था। काफी यात्री सो चुके थे। एक के बाद एक बत्तियां बुझती जा रहीं थीं।
अंकिता ने भी जब पर्दा फैलाया तब गौरव ने फिर अंकिता का हाथ पकड़ा और अपने करीब खिंच कर कानों में पूछा, "अपना वादा तो याद है ना?" अंकिता ने बिना बोले अपनी मुंडी हिलाकर हामी भरी और मुस्काती हुई अपना घाघरा सम्हालते हुए अपनी ऊपर की बर्थ पर चढ़ गयी।