Update 12
पत्नी की अदला-बदली - 05
अपर्णा निचे की बर्थ पर थी और जीतूजी उसकी ऊपर वाली बर्थ पर। श्रेया निचे वाली बर्थ पर और रोहित उसके ऊपर वाली बर्थ पर।
रात के साढ़े नौ बजे अपर्णा ने अपने कम्पार्टमेंट की बत्तियां बुझा दीं। उसे पता था की आजकी रात कुछ ना कुछ तो होगा ही। कोई ना कोई नयी कहानी जरूर बनेगी। अपर्णा को पति को किये हुए वादे की याद आयी। अपर्णा को तो अपने पति से किये हुए वादे को पूरा करना था। रोहित जी अपनी पत्नी से लिए हुए ट्रैन में रात को अपर्णा का डिनर करने के वादे को पूरा जरूर करना चाहेंगे। उसे पता था की अंकिता को रात को निचे की बर्थ में गौरव के पास आना ही था। जरूर उस रात को ट्रैन में कुछ ना कुछ तो होना ही था। क्या होगा उस विचार मात्र के रोमांच से अपर्णा के रोंगटे खड़े होगये। पर अपर्णा भी राजपूतानी मानिनी जो थी। उसने अपने रोमांच को शांत करना ही ठीक समझा और बत्ती बुझाकर एक अच्छी औरत की तरह अपने बिस्तर में जा लेटी।
कम्पार्टमेंट में सब कुछ शांत हो चुका था। जरूर प्रेमी प्रेमिकाओं के ह्रदय में कामाग्नि की धधकती आग छुपी हुई थी। पर फिर भी कम्पार्टमेंट में वासना की लपटोँ में जलते हुए बदनोंकी कामाग्नि भड़के उसके पहले छायी शान्ति की तरह सब कुछ शांत था। कुछ शोर तब होता था जब दो गाड़ियाँ आमने सामने से गुजरती थीं। वरना वातानुकूलित वातावरण में एक सौम्य सी शान्ति छायी हुई थी। जब ट्रैन कोई स्टेशन पर रूकती तो कहीं दूर कोई यात्री के चढ़ने उतर ने की धीमी आवाज के सिवाय कहीं किसीके खर्राटे की तो कहीं किसी की हलकी लयमय साँसे सुनाई दे रहीथीं। सारी बत्तियाँ बुझाने के कारण और सारे परदे से ढके होने के कारण पुरे कम्पार्टमेंट में घना अँधेरा छाया हुआ था। कहीं कुछ नजर नहीं आता था। एक कोने में टिमटिमाती रात्रि बत्ती कुछ कुछ प्रकाश देने में भी निसहाय सी लग रही थी। कभी कभी कोई स्टेशन गुजरता तब उसका प्रकाश परदे में रह गयी पतली सी दरार में से मुश्किल ही अँधेरे को हल्का करने में कामयाब होता था।
काम वासना से संलिप्त ह्रदय बाकी यात्रियों को गहरी नींद में खो जाने की जैसे प्रतीक्षा कर रहे थे। बिच बिचमें नींद का झोका आ जाने के कारण वह कुछ विवश सा महसूस कर रहे थे। अंकिता की आँखों में नींद कहाँ? उसे पता था की उसका प्रियतम गौरव जरूर उसके निचे उतर ने प्रतीक्षा में पागल हो रहा होगा। आज रात क्या होगा यह सोच कर अंकिता के ह्रदय की धड़कन तेज हो रही थीं और साँसे धमनी की तरह चल रहीं थीं। अंकिता की जाँघों के बिच उसकी चूत काफी समय से गीली ही हो रही थी। गौरव काफी चोटिल थे। तो क्या वह फिर भी अंकिता को वह प्यार दे पाएंगे जो पानेकी अंकिता के मन में ललक भड़क रही थी? पर अंकिता गौरव को इतना प्यार करती थी और गौरव की इतनी ऋणी थी की अपनी काम वासना की धधकती आग को वह छुपाकर तब तक रखेगी जब तक गौरव पूरी तरह स्वस्थ ना हो जाएँ। यह वादा अंकिता ने अपने आपसे किया था। उससे भी बड़ा प्रश्न यह था की क्या अंकिता को स्वयं निचे उतर कर गौरव के पास जाना चाहिए? चाहे गौरव ने अंकिता के लिए कितनी भी कुर्बानी ही क्यों ना दी हो, क्या अंकिता को अपना मानिनीपन अक्षत नहीं रखना चाहिए? पुरुष और स्त्री की प्रेम क्रीड़ा में पहल हमेशा पुरुष की ही होनी चाहिए इस मत में अंकिता पूरा विश्वास रखती थी।
स्त्रियां हमेशा मानिनी होती हैं और पुरुष को ही अपने घुटने जमीं पर टिका कर स्त्री को रिझाकर मनाना चाहिए जिससे स्त्री अपने बदन समेत अपनी काम वासना अपने प्रियतम पर न्योछावर करे यही संसार का दस्तूर है, यह अंकिता मानती थी। पर अंकिता की अपने बदन की आग भी तो इतनी तेज भड़क रही थी की क्या वह मानिनीपन को प्रधानता दे या अपने तन की आग बुझाने को? यह प्रश्न उसे खाये जा रहा था। क्या गौरव इतने चोटिल होते हुए अंकिता को मनाने के लिए बर्थ के निचे उतर कर खड़े हो पाएंगे? अंकिता के मन में यह भी एक प्रश्न था। वह करे तो क्या करे?
आखिर में अंकिता ने यह सोचा की क्यों ना गौरव को उसे मनाना कुछ आसान किया जाए? ताकि गौरव को बर्थ से उठकर अंकिता को मनाने के लिए उठना ना पड़े? यह सोच कर अंकिता ने अपनी चद्दर का एक छोर धीरे धीरे सरका कर निचे की और जाने दिया ताकि गौरव उसे खिंच कर उस के संकेत की प्रतीक्षा में जाग रही (पर सोने का ढोंग कर रही) अंकिता को जगा सके। कुछ देर बीत गयी। अंकिता बड़ी बेसब्री से इंतजार में थी की कब गौरव उसकी चद्दर खींचे और कब वह अपना सर निचे ले जाकर यह देखने का नाटक करे की क्या हुआ? जिससे गौरव को मौक़ा मिले की वह अंकिता को निचे उतर ने का आग्रह करे। पर शायद गौरव सो चुके थे। अंकिता ऊपर बेचैन इंतजार में परेशान थी। काफी कीमती समय बितता जा रहा था।
अपर्णा को डर था की उस रात कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उसके पति रोहित ने उससे से वचन जो लिया था की दिन में ना सही पर रात को जरूर वह अपर्णा को खाने मतलब अपर्णा की लेने (मतलब अपर्णा को चोदने) जरूर आएंगे। शादी के इतने सालों बाद भी रोहित अपर्णा का दीवाना था। दूसरे जीतूजी जो अपर्णा को पाने के पिए सब कुछ दॉंव पर लगाने के लिए आमादा थे। जिन्होंने कसम खायी थी की वह अपर्णा पर अपना स्त्रीत्व समर्पण करने के लिए (मतलब चुदवाने के लिए) कोई भी दबाव नहीं डालेंगे। पर अपर्णा और जीतूजी के बिच यह अनकही सहमति तो थी ही की अपर्णा जीतूजी को भले उसको चोदने ना दे पर बाकी सबकुछ करने दे सकती है। यह बात अलग है की जीतूजी खुद अपर्णा का आधा समर्पण स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे या नहीं। वह भी तो आर्मी के सिपाही थे और बड़े ही अड़ियल थे।
अपर्णा को तब जीतूजी का प्रण याद आया। उन्होने बड़े ही गभीर स्वर में कहा था की जब अपर्णा ने उन्हें नकार ही दिया था तब वह कभी भी सामने चल कर अपर्णा को ललचाने की या अपने करीब लाने को कोशिश नहीं करेंगे। अपर्णा के सामने यह बड़ी समस्या थी। वह जीतूजी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी पर फिर वह उनको अपना समर्पण भी तो नहीं कर सकती थी।
अपर्णा जीतूजी को भली भाँती जानती थी। जहां तक उसका मानना था जीतूजी तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक अपर्णा कोई पहल ना करे। वैसे तो माननीयों पर मॅंडराने के लिए उनको चाहने वाले बड़े बेताब होते हैं। पर उस रात तो उलटा ही हो गया। अपर्णा अपने पति की अपनी बर्थ पर इंतजार कर रही थी। साथ साथ में उसे यह भी डर था की कहीं जीतूजी ऊपर से सीधा निचे ना उतर जाएँ। पर जहां अपर्णा दो परवानोँ का इंतजार कर रही थी, वहाँ कोई भी आ नहीं रहा था। उधर अंकिता अपने प्रेमी के संकेत का इंतजार कर रही थी, पर गौरव था की कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा था। दोनों ही मानीनियाँ अपने प्रियतम से मिलने के लिए बेताब थी। पर प्रियतम ना जाने क्या सोच रहेथे? क्या वह अपनी प्रिया को सब्र का फल मीठा होता है यह सिख दे रहे थे? या कहीं वह निंद्रा के आहोश में होश खो कर गहरी नींद में सो तो नहीं गए थे?
काफी समय बीत जाने पर अपर्णा समझ गयी की उसका पति रोहित गहरी नींद में सोही गया होगा। वैसे भी ऐसा कई बार हो चुका था की अपर्णा को रात को चोदने का प्रॉमिस कर के रोहित कई बार सो जाते और अपर्णा बेचारी मन मसोस कर रह जाती।
रात बीतती जा रही थी। रोहित का कोई पता ही नहीं था। तब अपर्णाने महसूस किया की उसकी ऊपर वाली बर्थ पर कुछ हलचल हो रही थी। इसका मतलब था की शायद जीतूजी जाग रहे थे और अपर्णा के संकेत का इंतजार कर रहे थे। अपर्णा की जाँघों के बिच का गीलापन बढ़ता जा रहा था। उसकी चूत की फड़कन थमने का नाम नहीं ले रही रही थी। गौरव और अंकिता की प्रेम लीला देख कर अपर्णा को भी अपनी चूत में लण्ड लड़वाने की बड़ी कामना थी। पर वह बेचारी करे तो क्या करे? पति आ नहीं रहे थे। जीतूजीसे वह चुदवा नहीं सकती थी।
रात बीतती जा रही थी। अपर्णा की आँखों में नींद कहाँ? दिन में सोने कारण और फिर अपने पति के इंतजार में वह सो नहीं पा रही थी। उस तरफ श्रेया जी गहरी नींद में लग रही थीं।
ट्रैन की रफ़्तार से दौड़ती हुई हलकी सी आवाज में भी उनकी नियमित साँसें सुनाई दे रहीं थीं। रोहित जी भी गहरी नींद में ही होंगें चूँकि वह शायद अपनी पत्नी के पास जाने (अपनी पत्नी को ट्रैन में चोदने) का वादा भूल गए थे। लगता था जीतूजी भी सो रहे थे। अपर्णा की दोनों जाँघों के बिच उसकी में चूत में बड़ी हलचल महसूस हो रही थी। अपर्णा ने फिर ऊपर से कुछ हलचल की आवाज सुनी। उसे लगा की जरूर जीतूजी जाग रहे थे। पर उनको भी निचे आने की कोई उत्सुकता दिख नहीं रही थी। अपर्णा अपनी बर्थ पर बैठ कर सोचने लगी। उसे समझ नहीं आया की वह क्या करे। अगर जीतूजी जागते होंगे तो ऊपर शायद वह अपर्णा के पास आने के सपने ही देख रहे होंगे। पर शायद उनके मन में अपर्णा के पास आने में हिचकिचाहट हो रही होगी, क्यूंकि अपर्णा ने उनको नकार जो दिया था। अपर्णा को अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था तो जीतूजी पर तरस आ रहा था। तब अचानक अपर्णा ने ऊपर से लुढ़कती चद्दर को अपने नाक को छूते हुए महसूस किया। चद्दर काफी निचे खिसक कर आ गयी थी। अपर्णा के मन में प्रश्न उठने लगे। क्या वह चद्दर जीतूजी ने कोई संकेत देने के लिए निचे खिस्काइथी? या फिर करवट लेते हुए वह अपने आप ही अनजाने में निचे की और खिसक कर आयी थी? अपर्णा को पता नहीं था की उसका मतलब क्या था? या फिर कुछ मतलब था भी या नहीं? यह उधेङबुन में बिना सोचे समझे अपर्णा का हाथ ऊपर की और चला गया और अपर्णा ने अनजाने में ही चद्दर को निचे की और खींचा। खींचने के तुरंत बाद अपर्णा पछताने लगी। अरे यह उसने क्या किया? अगर जीतूजी ने अपर्णा का यह संकेत समझ लिया तो वह क्या सोचेंगे? पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अपर्णा के चद्दर खींचने पर भी ऊपर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।
अपर्णा को बड़ा गुस्सा आया। अरे! यह कर्नल साहब अपने आप को क्या समझते हैं? क्या स्त्रियों का कोई मान नहीं होता क्या? भाई अगर एक बार औरतने मर्दको संकेतदे दियातो क्या उस मर्दको समझ जाना नहीं चाहिए? फिर अपर्णा ने अपने आप पर गुस्सा करते हुए और जीतूजी की तरफदारी करते हुए सोचा, "यह भी तो हो सकता है ना की जीतूजी गहरी नींद में हों? फिर उन्हें कैसे पता चलेगा की अपर्णा कोई संकेत दे रही थी? वह तो यही मानते थे ना की अब अपर्णा और उनके बिच कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं होगी? क्यूंकि अपर्णा ने तो उनको ठुकरा ही दिया था। इसी उधेड़बुन में अपर्णा का हाथ फिर से ऊपर की और चला गया और अपर्णा ने चद्दर का एक हिस्सा अपने हाथ में लेकर उसे निचे की और खींचना चाहा तो जीतूजी का घने बालों से भरा हाथ अपर्णा के हाथ में आ गया। जीतूजी के हाथ का स्पर्श होते ही अपर्णा की हालत खराब! हे राम! यह क्या गजब हुआ! अपर्णा को समझ नहीं आया की वह क्या करे? उसी ने तो जीतूजी को संकेत दिया था। अब अगर जीतूजी ने उसका हाथ पकड़ लिया तो उसमें जीतूजी का क्या दोष? जीतूजी ने अपर्णा का हाथ कस के पकड़ा और दबाया। अपर्णा का पूरा बदन पानी पानी हो गया।
वह समझ नहीं पायी की वह क्या करे? अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी का हाथ धीरे धीरे निचे की और खिसक रहा था। अपर्णा की जाँघों के बिच में से तो जैसे फव्वारा ही छूटने लगा था। उसकी चूत में तो जैसे जलजला सा हो रहा था। अपर्णा का अपने बदन पर नियत्रण छूटता जा रहा था। वह आपने ही बस में नहीं थी। अपर्णा ने रात को नाइटी पहनी हुई थी। उसे डर था की उसकी नाइटी में उसकी पेन्टी पूरी भीग चुकी होगी इतना रस उसकी चूत छोड़ रहीथी। जीतूजी कब अपनी बर्थ से निचे उतर आये अपर्णा को पता ही तब चला जब अपर्णा को जीतूजी ने कस के अपनी बाहों में ले लिया और चद्दर और कम्बल हटा कर वह अपर्णा को सुला कर उसके साथ ही लम्बे हो गए और अपर्णा को अपनी बाहों के बिच और दोनों टांगों को उठा कर अपर्णा को अपनी टांगों के बिच घेर लिया। फिर उन्होंने चद्दर और कम्बल अपने ऊपर डाल दिया जिससे अगर कोई उठ भी जाए तो उसे पता ना चले की क्या हो रहा था। जीतूजी ने अपर्णा का मुंह अपने मुंह के पास लिया और अपर्णा के होँठों से अपने होँठ चिपका दिए। जीतूजी के होठोँ के साथ साथ जीतूजी की मुछें भी अपर्णा के होठोँ को चुम रहीं थीं। अपर्णा को अजीब सा अहसास हो रहा था। पिछली बार जब जीतूजी ने अपर्णा को अपनी बाहों में किया था तब अपर्णा होश में नहीं थी। पर इस बार तो अपर्णा पुरे होशो हवास में थी और फिर उसी ने ही तो जीतूजी को आमंत्रण दिया था।
अपर्णा अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। उससे जीतूजी का यह आक्रामक रवैया बहुत भाया। वह चाहती थी की जीतूजी उसकी एक भी बात ना माने और उसके कपडे और अपने कपडे भी एक झटके में जबरदस्ती निकाल कर उसे नंगी करके अपने मोटे और लम्बे लण्ड से उसे पूरी रात भर अच्छी तरह से चोदे। फिर क्यों ना उसकी चूत सूज जाए या फट जाए। अपर्णा जानती थी की अब वह कुछ नहीं कर सकती थी। जो करना था वह जीतूजी को ही करना था। जीतूजी का मोटा लण्ड अपर्णा की चूत को कपड़ों के द्वारा ऐसे धक्के मार रहा था जैसे वह अपर्णा की चूतको उन कपड़ों के बिच में से खोज क्यों ना रहा हो? या फिर जीतूजी का लण्ड बिच में अवरोध कर रहे सारे कपड़ों को फाड़ कर जैसे अपर्णा की नन्हीं कोमल सी चूत में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। जीतूजी मारे कामाग्नि से पागल से हो रहे थे। शायद उन्होंने भी अंकिता और गौरव की प्रेम गाथा सुनी थी। जीतूजी पागल की तरह अपर्णा के होँठों को चुम रहे थे। अपर्णा के होँठों को चूमते हुए जीतूजी अपने लण्ड को अपर्णा की जाँघों के बिच में ऐसे धक्का मार रहे थे जैसे वह अपर्णा को असल में ही चोद रहें हों।
अपर्णाको जीतूजी का पागलपन देख कर यकीन हो गया की उस रात अपर्णा की कुछ नहीं चलेगी। जीतूजी उसकी कोई बात सुनने वाले नहीं थे और सचमें ही वह अपर्णाकी अच्छी तरह बजा ही देंगे। जब अपर्णा का कोई बस नहीं चलेगा तो बेचारी वह क्या करेगी? उसके पास जीतूजी को रोकने का कोई रास्ता नहीं था। यह सोच कर अपर्णा ने सब भगवान पर छोड़ दिया। अब माँ को दिया हुआ वचन अगर अपर्णा निभा नहीं पायी तो उसमें उसका क्या दोष? अपर्णा जीतूजी के पुरे नियत्रण में थी। जीतूजी के होँठ अपर्णा के होँठों को ऐसे चुम और चूस रहे थे जैसे अपर्णा का सारा रस वह चूस लेना चाहते थे। अपर्णा के मुंह की पूरी लार वह चूस कर निगल रहे थे। अपर्णा ने पाया की जीतूजी उनकी जीभ से अपर्णा का मुंह चोदने लगे थे। साथ साथ में अपने दोनों हाथ अपर्णा की गाँड़ पर दबा कर अपर्णा की गाँड़ के दोनों गालों को अपर्णा की नाइटी के उपरसे वह ऐसे मसल रहे थे की जैसे वह उनको अलग अलग करना चाहते हों। जीतूजी का लण्ड दोनों के कपड़ों के आरपार अपर्णा की चूत को चोद रहा था। अगर कपडे ना होते तो अपर्णा की चुदाई तो हो ही जानी थी। पर ऐसे हालात में दोनों के बदन पर कपडे कितनी देर तक रहेंगे यह जानना मुश्किल था। यह पक्का था की उसमें ज्यादा देर नहीं लगेगी। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। अपर्णा के मुंह को अच्छी तरह चूमने और चूसने के बाद जीतूजी ने अपर्णा को घुमाया और करवट लेने का इशारा किया।
अपर्णा बेचारी चुपचाप घूम गयी। उसे पता था की अब खेल उसके हाथों से निकल चुका था। अब आगे क्या होगा उसका इंतजार अपर्णा धड़कते दिल से करने लगी।
जीतूजी ने अपर्णा को घुमा कर ऐसे लिटाया की अपर्णा की गाँड़ जीतूजी के लण्ड पर एकदम फिट हो गयी। जीतूजी ने अपने लण्ड का एक ऐसा धक्का मारा की अगर कपडे नहीं होते तो जीतूजी का लण्ड अपर्णा की गाँड़ में जरूर घुस जाता। अपर्णा को समझ नहीं आ रहा था की वह कोई विरोध क्यों नहीं कर रही थी? ऐसे चलता रहा तो चंद पलों में ही जीतूजी उसको नंगी कर के उसे चोदने लगेंगे और वह कुछ नहीं कर पाएगी। पर हाल यह था की अपर्णा के मुंह से कोई आवाज निकल ही नहीं रही थी। वह तो जैसे जीतूजी के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली की तरह उनके हर इशारे का बड़ी आज्ञा कारी बच्चे की तरह पालन कर रही थी। जीतूजी ने अपने हाथसे अपर्णा की नाइटी के ऊपर के सारे बटन खोल दिए और बड़ी ही बेसब्री से अपर्णा की ब्रा के ऊपर से ही अपर्णा की चूँचियों को दबाने लगे। अपर्णा के पास अब जीतूजी की इच्छा पूर्ति करने के अलावा कोई चारा नहीं था। अपर्णा ना तो चिल्ला सकती थी नाही कुछ जोरों से बोल सकती थी क्यूंकि उसके बगल में ही उसका पति रोहित , श्रेया, गौरव और अंकिता सो रहे थे।
अपर्णा समझ गयी की जीतूजी अपर्णा की ब्रा खोलना चाहते थे। अपर्णा ने अपने हाथ पीछे की और किये और अपनी ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा की पट्टियों के खुलते ही अपर्णा के बड़े फुले हुए उरोज जीतूजी के हथेलियों में आगये। जीतूजी अपर्णा की गाँड़ में अपने लण्ड से धक्के मारते रहे और अपने दोनों हाथोँ की हथलियों में अपर्णा के मस्त स्तनोँ को दबाने और मसलने लगे। अपर्णा भी चुपचाप लेटी हुई पीछे से जीतूजी के लण्ड की मार अपनी गाँड़ पर लेती हुई पड़ी रही। अब जीतूजी को सिर्फ अपर्णा की नाइटी ऊपर उठानी थी और पेंटी निकाल फेंकनी थी। बस अब कुछ ही समय में जीतूजी के लण्ड से अपर्णाकी चुदाई होनी थी। अपर्णा ने अपना हाथ पीछे की और किया। जब इतना हो ही चुका था तब भला वह क्यों ना जीतूजी का प्यासा लण्ड अपने हाथोँ में ले कर उसको सहलाये और प्यार करे? पर जीतूजी का लण्ड तो पीछे से अपर्णा की गाँड़ मार रहा था (मतलब कपडे तो बिच में थे ही)l अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड उनके पयजामें के ऊपर से ही अपनी छोटी सी उँगलियों में लेना चाहा। जीतूजी ने अपने पयजामे के बटन खोल दिए और उनका लण्ड अपर्णा की उँगलियों में आ गया। जीतूजी का लण्ड पूरा अच्छी तरह चिकनाहट से लथपथ था। उनके लण्ड से इतनी चिकनाहट निकल रही थी की जैसे उनका पूरा पयजामा भीग रहा था।
चूँकि अपर्णा ने अपना हाथ अपने पीछे अपनी गाँड़ के पास किया था उस कारण वह जीतूजी का लण्ड अपने हाथोँ में ठीक तरह से ले नहीं पा रही थी। खैर थोड़ी देर में उसका हाथ भी थक गया और अपर्णा ने वापस अपना हाथ जीतूजी के लण्ड पर से हटा दिया। जीतूजी अब बड़े मूड में थे। वह थोड़े से टेढ़े हुए और उन्होंने अपने होँठ अपर्णा की चूँचियों पर रख दिए। वह बड़े ही प्यार से अपर्णा की चूँचियों को चूसने और उसकी निप्पलोँ को दाँतसे दबाने और काटने लगे। उन्होंने अपना हाथ अपर्णा की जाँघों के बिच लेना चाहा। अपर्णा बड़े असमंजसमें थी की क्या वह जीतूजी को उसकी चूत पर हाथ लगाने दे या नहीं।
यह तय था की अगर जीतूजी का हाथ अपर्णा की चूत पर चला गया तो अपर्णा की पूरी तरह गीली हो चुकी पेंटी अपर्णा के मन का हाल बयाँ कर ही देगी। तब यह तय हो जाएगा की अपर्णा वाकईमें जीतूजीसे चुदवाना चाहती थी। जीतूजी का एक हाथ अपर्णा की नाइटी अपर्णा की जाँघों के ऊपर तक उठाने में व्यस्त था की अचानक उन्हें एहसास हुआ की कुछ हलचल हो रही थी।
दोनों एकदम स्तब्ध से थम गए। रोहित बर्थ के निचे उतर रहे थे ऐसा उनको एहसास हुआ।
अपर्णा की हालत एकदम खराबथी। अगर रोहित जी को थोड़ासा भी शक हुआकी जीतूजी उसकी पत्नी की बर्थ में अपर्णा के साथ लेटे हुए हैं तो क्या होगा यह उसकी कल्पना से परे था। फिर तो वह मान ही लेंगें के उनकी पत्नी अपर्णा जीतूजी से चुदवा रही थी। फिरतो सारा आसमान टूट पडेगा। जब रोहितने अपर्णाको यह इशारा किया था की शायद जीतूजी अपर्णा की और आकर्षित थे और लाइन मार रहे थे तब अपर्णा ने अपने पति को फटकार दिया था की ऐसा उनको सोचना भी नहीं चाहिए था। अब अगर अपर्णा जीतूजी से सामने चलकर उनकी पीठ के पीछे चुदवा रही हो तो भला एक पति को कैसा लगेगा?
अपर्णा ने जीतूजी के मुंह पर कस के हाथ रख दिया की वह ज़रा सा भी आवाज ना करे। खैर जीतूजी और अपर्णा दोनों ही कम्बल में इस तरह एक साथ जकड कर ढके हुए थे की आसानी से पता ही नहीं लग सकता की कम्बल में एक नहीं दो थे। पर अपर्णा को यह डर था की यदि उसके पति की नजर जीतूजी की बर्थ पर गयी तो गजब ही हो जाएगा। तब उन्हें पता लग जाएगा की जीतूजी वहाँ नहीं थे। तब उन्हें शक हो की शायद वह अपर्णा के साथ लेटे हुए थे।
खैर रोहित बर्थ से निचे उतरे और अपनी चप्पल ढूंढने लगे। रोहित जी को जल्दी ही अपनी चप्पल मिल गए और वह तेज चलते हुए, और हिलती हुई गाडी में अपना संतुलन बनाये रखने के लिए कम्पार्टमेंट के हैंडल बगैरह का सहारा लेते हुए डिब्बे के एक तरफ वाले टॉयलेट की और बढ़ गए। उनके जातेही अपर्णा और जीतूजी दोनों की जान में जान आयी। अपर्णा को तो ऐसा लगा की जैसे मौतसे भेंट हुई और जान बच गयी। जैसे ही रोहित जी आँखों से ओझल हुए की जीतूजी फ़ौरन उठकर फुर्ती से बड़ी चालाकी से कम्पार्टमेंट की दूसरी तरफ जिस तरफ रोहित नहीं गए थे उस तरफ टॉयलेट की और चल पड़े।
अपर्णा ने फ़ौरन अपने कपडे ठीक किये और अपना सर ठोकती हुई सोने का नाटक करती लेट गयी। आज माँ ने ही उसकी लाज बचाई ऐसा उसे लगा। थोड़ी ही देर में पहले रोहित जी टॉयलेट से वापस आये। उन्होंने अपनी पत्नी अपर्णा को हिलाया और उसे जगाने की कोशिश की। अपर्णा तो जगी हुई ही थी। फिर भी अपर्णा ने नाटक करते हुए आँखें मलते हुए धीरे से पूछा, "क्या है?"
रोहित ने एकदम अपर्णा के कानों में अपना मुंह रख कर धीमी आवाजमें कहा, "अपना वादा भूल गयी? आज हमने ट्रैन में रात में प्यार करने का प्रोग्राम जो बनाया था?" अपर्णा ने कहा, "चुपचाप अपनी बर्थ पर लेट जाओ। कहीं जीतू जी जग ना जाएँ।" रोहित ने कहा, "जीतूजी तो टॉयलेट गए हैं। अब तुमने वादा किया था ना? पूरा नहीं करोगी क्या?" अपर्णा ने कहा, "ठीक है। जब जीतूजी वापस आजायें और सो जाएँ तब आ जाना।" रोहित ने खुश हो कर कहा, "तुम सो मत जाना। मैं आ जाऊंगा।" अपर्णा ने कहा, "ठीक है बाबा। अब थोड़ी देर सो भी जाओ। फिर जब सब सो जाएँ तब आना और चुपचाप मेरे बिस्तर में घुस जाना, ताकि किसी को ख़ास कर श्रेया और जीतूजी को पता ना चले।" रोहित ने खुश होते हुए कहा, "ठीक है। बस थोड़ी ही देर में।" ऐसा कहते हुए रोहित अपनी बर्थ पर जाकर जीतूजी के लौटने का इंतजार करने लगे। अपर्णा मन ही मन यह सब क्या हो रहा था इसके बारे में सोचने लगी।
यहां देखिये, क्या हो रहा है?
यहां तो एक कामिनी कामुक स्त्री अंकिता चाहती थी की कप्तान गौरव उसे ललचाये और उससे सम्भोग करे। कप्तान गौरव के अंकिता की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान करने तक के जाँबाज़ करतब से वह इतनी पूर्णतया अभिभूत हो गयी थी, की वह खुद सामने चलकर अपना कामाग्नि कप्तान गौरव से कुछ हद तक शांत करवाना चाहती थी। वह अपना शील और अपनी इज्जत कप्तान गौरव को सौंपना चाहती थी। पर कप्तान गौरव तो गहरी नींद में सोये हुए लग रहे थे। ऊपर की बर्थ में लेटी हुई कामाग्नि लिप्त कामिनी अंकिता, गौरव से अभिसार करने के लिए उन की पहल का इंतजार कर रही थी, या यूँ कहिये की तड़प रही थी। पहले जो बड़ी मानिनी बन कर गौरव की पहल को नकार रही थी वह खुद अब अपनी बदन में भड़क रही काम की ज्वाला को गौरव के बदन से मिला कर संतृप्त करना चाह रही थी। पर आखिर कामिनी भी मानिनी तो है ही ना? मानिनी कितनीही कामातुर क्यों नाहो, वह अपना मानिनी रूप नहीं छोड़ सकती। वह चाहती है की पुरुष ही पहल करे। जब गौरव से कोई पर्याप्त पहल नहीं हुई तो व्याकुल कामिनी ने अपनी चद्दर का एक छोर जानबूझ कर निचे की और सरका दिया। उसने गौरव को एक मौक़ा दिया की गौरव उसे खिंच कर इशारा दे और उसे निचे अपनी बर्थ पर बुलाले। तब फिर कामिनी का मानिनीपन भी पूरा हो जाएगा और वह गौरव पर जैसे मेहरबानी कर उसे अपना बदन सौंप देगी। पर काफी समय व्यतीत होने पर भी गौरव की और से कोई इशारा नहीं हुआ। समय बीतता जाता था। अंकिता को बड़ा गुस्सा आ रहा था। यह क्या बात हुई की उसे रात को आने का न्योता दे कर खुद सो गए? अंकिता ने अपनी निचे खिसकाई हुई चद्दर ऊपर की और खिंच ली और करवट बदल कर चद्दर ओढ़ कर सो गयी।
पर अंकिता की आँखों में नींद कहाँ? वह तो जागते हुए गौरव के साथ अभिसार (चुदाई) के सपने देख रही थी। अंकिता का मन यह सोच रहा था की जिसका शरीर इतना कसा हुआ और जो इतने अच्छे खासे कद का था ऐसे जाबाँझ सिपाही का लण्ड कैसा होगा? जब गौरव के हाथ अंकिता की चूँचियों को छुएंगे और उन्हें दबाने और मसलने लगेंगे तो अंकिता का क्या हाल होगा? जब ऐसे जवान का हाथ अंकिता की चूत पर उसकी हलकी झाँट पर फिरने लगेगातो क्या अंकिता अपनी कराहट रोक पाएगी? अंकिता की चूत यह सोच कर इतनी गीली हो रही थी की उसके लिए अब और इंतजार करना नामुमकिन सा लग रहा था। अंकिता का मन जब ऐसे विचारों में डूबा हुआ ही था की उसे अचानक कुछ हलचल महसूस हुई। अंकिता ने थोड़ा सा पर्दा हटा कर देखा तो पाया की रोहित अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे। अंकिता को मन में कहीं ना कहीं ऐसा अंदेशा हुआ की कुछ ना कुछ तो होने वाला था। उसने परदे का एक कोना सिर्फ इतना ही हटाया की उसमें से वह देख सके।
अंकिता ने देखा की रोहित शायद अपनी चप्पल ढूंढ रहे थे। थोड़ी ही देर में अंकिता ने देखा की रोहित वाशरूम की और चल दिए। अंकिता को यह देख कुछ निराशा हुई।
वह सोच रही थी की रोहित जी शायद निचे की बर्थ पर लेटी हुई दो में से एक स्त्री के साथ सोने जा रहे थे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अंकिता के मन में पहले ही कुछ शक था की वह दोनों जोड़ियाँ एक दूसरे के प्रति कुछ ज्यादा ही रूमानी लग रही थीं। खैर, अंकिता दुखी मन से पर्दा धीरे से खिंच कर बंद करने वाली ही थी की उसके मुंह से आश्चर्य की सिसकारी निकलते निकलते रुक गयी। अंकिता ने ऊपर की बर्थ पर लेटे हुए कर्नल साहब की परछाईं सी आकृति को निचे की बर्थ पर लेटी हुई अपर्णाजी के बिस्तर में से अफरातफरी में बाहर निकलते हुए देखा। अंकिता की तो जैसे साँसे ही रुक गयी। अरे? अपर्णाजी जो अंकिता को दोपहर गौरव के बारे में पाठ पढ़ा रही थीं, उनके बिस्तरमें कर्नल अंकल? कर्नल साहब कब अपर्णा जी के बिस्तर में घुस गए? कितनी देर तक कर्नल साहब अपर्णाजी के बिस्तर में थे? यह सवाल अंकिता के दिमाग में घूमने लगे।
अंकिता का माथा ही ठनक गया। क्या अपर्णाजी चलती ट्रैन में श्रेया के पति कर्नल साहब से चुदवा रही थीं? एक पुरुष का एक स्त्री के साथ एक ही बिस्तर में से इस तरह अफरातफरी में बाहर निकलना एक ही बात की और इशारा करता था की कर्नल साहब अपर्णाजी की चुदाई कर रहे थे। और वह भी तब जब अपर्णाजी के पति सामने की ही ऊपर की बर्थ में सो रहे थे? और फिर वह अपर्णा जी के बिस्तर में से बाहर निकल कर दूसरी और भाग खड़े हुए तब जब अपर्णाजी के पति अपनी बर्थ से निचे उतर वाशरूम की और चल दिए थे। अंकिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। वह चुपचाप अपने बिस्तर में पड़ी आगे क्या होगा यह सोचती हुई कर्नल साहब और रोहित के वापस आने का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में पहले रोहित वापस आये। अंकिता ने देखा की वह अपर्णाजी की बर्थ पर जाकर, झुक कर अपनी बीबी को जगा कर कुछ बात करने की कोशिश कर रहे थे। कुछ देर तक उन दोनोंके बिच में कुछ बातचीत हुई, पर अंकिता को कुछ भी नहीं सुनाई दिया। फिर अंकिता ने देखा की रोहित एक अच्छे बच्चे की तरह वापस चुपचाप अपनी ऊपर वाली बर्थ में जाकर लेट गए।
अंकिता को लगा की कुछ न कुछ तो खिचड़ी पक रही थी। थोड़ी देर तक इंतजार करने पर फिर कर्नल साहब भी वाशरूम से वापस आ गए। वह थोड़ी देर निचे अपर्णाजी की बर्थ के पास खड़े रहे। अंकिता को ठीक से तो नहीं दिखा पर उस ने महसूस किया की अपर्णाजी के बिस्तर में से शायद अपर्णाजी का हाथ निकला। आगे क्या हुआ वह अँधेरे के कारण अंकिता देख नहीं पायी, पर उसके बाद कर्नल साहब अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चले गए। डिब्बे में फिर से सन्नाटा छा गया। अंकिता देखने लगी पर काफी देर तक कोई हलचल नहीं हुई।
ऐसे ही शायद एक घंटेके करीब हो चुका होगा। अंकिता आधी नींद में और आधे इंतजार में ना तो सो पा रही थी ना जग पा रही थी। Iनिराश होकर अंकिता की आँख बंद होने वाली ही थी की अंकिता को फिर कुछ हलचल का अंदेशा हुआ। फिर अंकिता ने पर्दा हटाया तो पाया की रोहित फिर अपनी बर्थ से निचे उतर रहे थे। इस बार अंकिता को लगा की जरूर कुछ ना कुछ नयी कहानी बनने वाली थी। अंकिता ने रोहित की परछाईं को जब अपनी बीबी अपर्णाजी की बर्थ की और जाते हुए देखा तो अंकिता समझ गयी की रोहित का मूड़ कुछ रोमांटिक हो रहा था और चलती ट्रैन में वह अपनी बीबी की चुदाई का आनंद लेने के मूड़ में लग रहे थे।
अंकिता बड़ी सतर्कता और ध्यान से देखने लगी। देखते ही देखते रोहित चुपचाप अपनी बीबी की बर्थ में अपर्णाजी का कम्बल और चद्दर ऊपर उठा कर उसमें घुस गए। बापरे! उस वक्त अंकिता के चेहरे के भाव देखने लायक थे। एक ही रात में दो दो आशिकाना हरकत? अंकिता सोच रही थी की अपर्णाजी की चुदाई अभी कर्नल साहब कर ही चुके थे की अब अपर्णाजी अपने पतिसे चुदवायेंगीं? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो नयी पीढ़ी से भी कहीं आगे थी! अपर्णा जी के स्टैमिना के लिए भी अंकिता के मन में काफी सम्मान हुआ। अंकिता जानती थी की कर्नल साहब और रोहित अच्छे खासे जवान और तंदुरस्त थे। उनका लण्ड और स्टैमिना भी काफी होगा। ऐसे दो दो मर्दों से एक ही रात में चुदवाना भी मायने रखता था। अंकिता देखती ही रही की रोहित कैसे अपनी पत्नी अपर्णाजी की चुदाई करते हैं। पर अँधेरे और ढके हुए होने के कारण काफी देर तक मशक्कत करने पर भी वह कुछ देख नहीं पायी।
रात के दो बज रहे थे। अंकिता को नींद आ ही गयी।
अंकिता आधा घंटा गहरी नींद सो गयी होगी तब उसने अचानक गौरव की साँसे अपने नाक पर महसूस की। आँखें खुली तो अंकिता ने पाया की वह निचे की बर्थ पर गौरव की बाहों में थी। गौरव उसे टकटकी लगा कर देख रहा था। सारे पर्दे बंद किये हुए थे। अंकिता के पतले बदन को गौरव ने अपनी दो टांगों में जकड रखा था और गौरव की गौरव बाँहें अंकिता की पीठ पर उसे जकड़े हुए लिपटी हुई थीं। गौरव ने अंकिता को अपने ऊपर सुला दिया था। दोनों के बदन चद्दर और कम्बल से पूरी तरह ढके हुए थे। अंकिता जैसे गौरव में ही समा गयीथी। छोटीसी बर्थपर दो बदन ऐसे लिपट कर लेटे हुए थे जैसे एक ही बदन हो। अंकिता की चूत पर गौरव का खड़ा कड़क लौड़ा दबाव डाल रहा था। अंकिता का घाघरा काफी ऊपरकी ओर उठा हुआ था। अंकिता तब भी आंधी नींद में ही थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था की वह कैसे ऊपर से निचे की बर्थ पर आगयी। अंकिता ने गौरव की और देखा और कुछ खिसियानी आवाज में पूछा, "गौरव, मैं ऊपर की बर्थ से निचे कैसे आ गयी?"
गौरव मुस्कुराये और बोले, "जानेमन तुम गहरी नींद सो रही थी। मैंने तुम्हें जगाया नहीं। मैं तुम्हें अपनों बाहों में लेना चाहता था। तो मैंने तुम्हें हलके से अपनी बाहों में उठाया और उठाकर यहां ले आया।"
"अरे बाबा, तुम्हें कई घाव हैं और अभी तो वह ताजा हैं।" अंकिता ने कहा।
"ऐसी छोटी मोटी चोटें तो हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं। फिर तुम भी तो कोई ख़ास भारी नहीं हो। तुम्हें उठाना बड़ा आसान था। बस यह ध्यान रखना था की कोई देख ना ले।" गौरव ने अपनी मूछों पर ताव देते हुए कहा। गौरव ने फिर अंकिता का सर अपने दोनों हाथोँ में पकड़ा और अंकिता के होँठों पर अपने होँठ चिपका दिए। अंकिता कुछ पल के किये हक्कीबक्की सी गौरव को देखती ही रही।
फिर वह भी गौरव से चुम्बन की क्रियामें ऐसे जुड़ गयी जैसे उन दोनों के होंठ सील गए हों। गौरव और अंकिता दोनों एक दूसरे के होँठों और मुंह में से सलीवा याने लार को चूस रहे थे। अंकिता ने अपनी जीभ गौरव के मुंह में डाल दो थी। गौरव उससे सारे रस जैसे निकाल कर निगल रहा था। गौरव के चेहरे पर बंधीं पट्टियां होने के कारण अंकिता कुछ असमंजस में थी की कहीं गौरव को कोई दर्द ना हो। पर गौरव थे की दर्द की परवाह किये बिना अंकिता को अपने बदन पर ऐसे दबाये हुए थे की जैसे वह कहीं भाग ना जाये। अंकिता बिलकुल गौरव के बदन से ऐसी चिपकी हुई थी की उसकी सांस भी रुक गयी थी। अंकिता को कभी किसी ने इतनी उत्कटता से चुम्बन नहीं किया था। उसके लिए यह पहला मौक़ा था जब किसी हट्टेकट्टे हृष्टपुष्ट लम्बे चौड़े जवान ने उसे इतना गाढ़ आलिंगन किया हो और इस तरह उसे चुम रहा हो। गौरव अंकिता का सारा रस चूस चूस कर निगल रहा था यह अंकिता को अच्छा लगा। कुछ देर बाद गौरव अपनी जीभ अंकिता के मुंह में डाल और अंकिता के मुंह के अंदर बाहर कर अंकिता के मुंह को अपनी जीभ से चोदने लगा।
अंकिता बोल पड़ी, "गौरव यह क्या कर रहे हो?"
गौरव ने कहा, "प्रैक्टिस कर रहा हूँ।"
अंकिता, "किस चीज़ की प्रैक्टिस?"
गौरव: "जो मुझे आखिर में करना है उसकी प्रैक्टिस."
गौरव की बात सुनकर अंकिता की जाँघों के बिच से रस चुने लगा। अंकिता की टाँगें ढीली पड़ गयीं।
अंकिता ने गौरव की और शरारत भरी आँखें नचाते हुए पूछा, "अच्छा? जनाब ने यहाँ तक सोच लिया है?"
गौरव ने कहा, "मैंने तो उससे आगे भी सोच रखा है।"
वह गौरव की बात का जवाब नहीं दे पायी। अंकिता समझ गयी थी की गौरव का इशारा किस और है। शायद गौरव उसके साथ जिंदगी बिताने की बात कर रहे थे। अंकिताके चेहरे पर उदासी छा गयी। वह जानती थी की वह गौरव की इच्छा पूरी करने में असमर्थ थी। गौरव को पता नहीं था की वह शादी शुदा थी। पर अँधेरे में भी गौरव समझ गए की अंकिता कुछ मायूस सी लग रही थी।गौरव अंकिता की आँखों में झाँक कर उसे देखने लगा।
अंकिता ने पूछा, "क्या देख रहे हो?"
गौरव: "तुम्हारी खूबसूरत आँखें देख रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ की मेरी माशूका कुछ मायूस है।"
अंकिता: "क्या तुम इतने अँधेरे में भी मेरी आँखें देख सकते हो? मेरे चेहरे के भाव पढ़ सकते हो? मेरी आँखों में तुम्हें क्या दिख रहा है?"
गौरव: "तुम्हारी आँखों में मैं मेरी सूरत देख रहा हूँ।"
अंकिता शर्माती हुई बोली, "यह बात सच है। मेरी आँखों में, मेरे मन में अभी तुम्हारे सिवा कोई और नहीं है।"
गौरव ने कहा, "कोई और होना भी नहीं चाहिए, क्यूंकि मैं तुमसे बेतहाशा प्यार करने लगा हूँ। मैं नहीं चाहूँगा की मेरी प्यारी जानू और किसी की और मुड़ कर भी देखे।"
अंकिता: "माशा अल्लाह! अभी तो हमें मिले हुए इन मीन चंद घंटे ही हुए हैं और मियाँ मुझे प्यार करने और अपना हक़ जमाने भी लग गए?"
गौरव: "प्यार घंटों का मोहताज नहीं होता, जानेमन! प्यार दिल से दिल के मिलने से होता है।"
अंकिता, "देखो गौरव! आप मेरे बारेमें कुछ भी नहीं जानते। प्यार में कई बार इंसान धोका खा सकता है। तुम्हें मेरे बीते हुए कल के बारे में कुछ भी तो पता नहीं है।"
गौरव, "मैं तुम्हारे बीते हुए कल के बारे में कुछ नहीं जानना चाहता। मैं प्यार में धोका खाने के लिए भी तैयार हूँ।" गौरव की बात सुनकर अंकिता की आँखों में पानी भर आया। पहली बार किसी छैलछबीले नवयुवक ने अंकिता से ऐसी प्यार भरी बात कही थी। उस दिन तक अगर किसी भी युवक ने अंकिता की और देखा था तो सिर्फ हवस की नजर से ही देखा था। पर गौरव तो उसे अपनी जिंदगी की रानी बनाना चाहते थे।
अंकिता ने अपने होँठ गौरव के होँठ से चिपका कर कहा, "आगे की बात बादमें करेंगे। अभी तो मैं तुम्हारी ही हूँ । तुम मुझे प्यार करना चाहते हो ना? तो करो।" फिर अंकिता ने गौरव के कानों के पास अपना मुंह ले जा कर कहा, "क्या तुम्हें पता है की अभी इस वक्त हम अकेले ही नहीं है जो इस ट्रैन में एक दूसरे से इतने घने प्यार में मशगूल हैं?"
गौरव ने अंकिता की और आश्चर्य से देखा और बोले, "क्या मतलब?"
अंकिता ने कहा, "मैं क्या कहूं? मुझे कहते हुए भी बड़ी शर्म आ रही है। यह जो अपर्णाजी हैं ना? जिन्होंने तुम्हें बचाने की भरसक कोशिश की थी? वह भी काफी तेज निकली! मैंने अभी अभी देखा की पहले उनके बिस्तर में श्रेया के पति कर्नल साहब घुसे हुए थे। पता नहीं कबसे घुसे हुए होंगे और उन्होंने अपर्णा जी के साथ क्या क्या किया होगा? फिर वह बाहर निकल आये तो कुछ देर बाद अभी अभी अपर्णाजी के पति रोहित अपनी पत्नी अपर्णाजी की बर्थ में उनके कम्बल में घुसे हुए हैं। शायद इस वक्त जब हम बात कर रहे हैं तो वह कुछ और कर रहे होंगे।"
गौरव को यह सुनकर अंकिता की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह बोल पड़े, "अंकिता तुम क्या कह रही हो? एक ही रात में दो दो मर्दों से लीला? भाई कमाल है! यह पुरानी पीढ़ी तो हम से भी आगे है!"
फिर कुछ सोच कर बोले, "उनको जो करना है, करने दो। हम अपनी बात करते हैं। हम बात क्यों कर रहे हैं? भाई हम भी तो कुछ करें ना?"