Update 13

चलिए, हम वापस अपनी कहानी पर आते हैं।

अंकिता ने गौरव के गालों को चूमते हुए कहा, "तो फिर करो ना, किसने रोका है?" अंकिता के मन में गौरव के लिए इतना प्यार उमड़ पड़ा की वह गौरव के होँठों के अलावा उसके कपाल, उस के चेहरे पर बंधी पट्टियां, उसके नाक, कान और बालों को भी चूमने लगी। अंकिता की चूत में से पानी की धार बहने लगी थी। गौरव का लण्ड एकदम अटेंशन में खड़ा हुआ था और अंकिता की चूत को कपड़ों के माध्यम से कुरेद रहा था। गौरवका एक हाथ अंकिता की गाँड़ की और बढ़ रहा था। अंकिता की सुआकार गाँड़ पर हाथ पहुंचते ही अंकिता के पुरे बदन में एक तेज सिहरन सी फ़ैल गयी। अंकिता के मुंह से बरबस ही सिसकारी निकल गयी। गौरव अंकिता की गाँड़ के गालों को बड़े प्यार से दबाया और उन्हें उँगलियाँ से चूँटी भर कर दबाने और मसलने लगा।

अंकिता पर अजीब सी मदहोशी छा गयी थी। गौरव ने उसकी जान बचाई थी तो उसकी जान, उसका बदन और उसकी रूह पर भी गौरव का पूरा हक़ था। गौरव को वह अपना सबकुछ अर्पण कर देना चाहती थी। आगे चाहे कुछ भी हो, अंकिता गौरव को अपनी जात सौंपने के लिए बेबस हो रही थी।

अंकिता ने फिर गौरव की आँखों में आँखें डाल कर पूछा, 'तुम इस रात मुझसे क्या चाहते हो?"

गौरव ने कहा, "मैं तुम्हें पूरी तरह से मेरी बनाना चाहता हूँ।"

अंकिता ने कहा, "तो बनाओ ना? मैंने कहाँ रोका है? पर एक बात ध्यान रहे। मैं तुम्हारे आगे के सपने पुरे ना कर सकुंगी! मैं चाहती हूँ की मैं पूरी जिंदगी तुम्हारी बन कर रहूं। पर शायद यह मेरी ख्वाहिश ही बन कर रह जायेगी। शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं।"

गौरव को लगा की अंकिता कुछ गंभीर बात करना चाहती थी। उसने पूछा, "जानेमन बोलो ना ऐसी क्या बात है?"

अंकिता ने गौरव के गालों पर चुम्मी भरते हुए कहा, "आज की रात हम दोनों की रात है। आज और कोई बात माने नहीं रखती। मैं एक बात और कहना चाहती हूँ। यह सात दिन हमारे रहेंगे, यह मेरा तुमसे वादा है। मैं पूरी जिंदगी का वादा तो नहीं कर सकती पर यह सात दिन मौक़ा मिलते ही मैं दिन में या रात में तुम्हारे पास कुछ ना कुछ जुगाड़ करके पहुँच ही जाउंगी और फिर उस वक्त मैं सिर्फ तुम्हारी ही रहूंगी। तुम मुझसे जी भर कर प्यार करना। हाँ मैं तुम्हें सबके सामने नहीं मिल सकती। मेरे बारे में किसी से भी कोई बात या पूछताछ ना करना। यह बात ध्यान रहे।"

गौरव अंकिता की बात सुनकर बड़े ही अचम्भे में पड़ गए। आखिर ऐसी कौनसी रहस्य वाली बात थी, जो अंकिता उन्हें नहीं कहना चाहती थी? पर गौरव जानते थे की जिससे प्यार करते हैं उस पर विश्वास रखना और उनकी बात का सम्मान करना जरुरी है। गौरव ने और कुछ सोचना बंद किया और वह अंकिता के चारों और फैले हुए बालों में खो गए।

ट्रैन तेजी से दिशा को चीरती हुई भाग रही थी। उसकी हलचल से गौरव और अंकिता के बदन ऐसे हिल रहे थे वह दोनों चुदाई में लगे हों। अंकिता का हाथ बरबस ही उन दोनों के शरीर के बिच में घुस कर गौरव की जाँघों के बिच में गौरव के खड़े हुए लण्ड के पास जा पहुंचा। वह गौरव के लण्ड को अपनी उँगलियों में महसूस करना चाहती थी। गौरव का लण्ड अंकिता की उठी हुई जाँघों के बिच था और इतना लम्बा था की बिच में थोड़ा अंतर होते हुए भी वह अंकिता की चूत में ठोकर मार रहा था। अंकिता के हाथ लण्ड के ऊपर महसूस करते ही गौरव की बोलती बंद हो गयी। अंकिता ने गौरव के लण्ड के इर्दगिर्द अपनी उँगलियों की गोलाई बनाकर उसमें उसको मुठी में पकड़ना चाहा। कपडे के दूसरी और भी गौरव का लण्ड अंकिता की मुठी में तो ना समा सका पर फिर भी अंकिता ने गौरव के लण्ड को गौरव के पयजामे के ऊपर से ही सहलाना शुरू किया। गौरवने मारे उत्तेजना के अंकिता के सर को फिर से अपने हाथों में पकड़ कर उसे अपने मुंह से चिपका कर अंकिता को गाढ़ चुम्बन करने लगा। गौरव का लण्ड अपने पूर्व रस का स्राव कर रहा था। पहले से ही उसका लण्ड उसके पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ था। अंकिता के पकड़ने से जैसे उसके लण्ड में बिजली का कर्रेंट दौड़ ने लगा। गौरव के लण्ड की सारी नसें उसके वीर्य के दबाव से फूल गयी। गौरव ने अपने दोनों हाथ अंकिता के सर से हटाए और अंकिता की चोली पर रख कर चोली के ऊपर से ही उसके स्तनोँ को गौरव दबाने लगे। गौरव और अंकिता अपने प्यार की उच्चतम ऊंचाइयों को छूना चाहते थे। अंकिता गौरव के लण्डको हल्के हल्केसे सहलाने लगी। गौरव के लण्ड से निकली चिकनाहट गौरव के पयजामे को भी गिला और चिकना कर अंकिता की उँगलियों में चिपक रही थी। अंकिता इसे महसूस कर मन ही मन मुस्कुरायी। गौरव की उत्तेजना वह समझ रही थी। वह जानती थी गौरव उन्हें चोदना चाहते थे और वह खुद भी उनसे चुदना चाहती थी। पर चुदाई के पहले थोड़ी छेड़छाड़ का खेल तो खेलना बनता है ना?

गौरव ने अंकिता के ब्लाउज के ऊपर से अपनी उँगलियाँ घुसा कर अंकिता के उन्मत्त दो फलों को अपन उंगलयों में पकड़ना चाहा। पर अंकिता के स्तनोँ का भराव इतना था की अंकिता की चोली और ब्रा इतनी टाइट थी की उसमें में हाथ डाल कर उनको छूना उस हाल में कठिन था। गौरव ने जल्दी में ही अंकिता की पीठ पर से अंकिता के ब्लाउज के बटन खोल दिए। बटन खुल जाने पर गौरव ने ब्रा के हुक भी खोल दिए। अंकिता के स्तन अब पूर्णतयाः आजाद थे। गौरव ने अंकिता को अपने ऊपर ही बैठ जाने के लिए बाध्य किया और अंकिता के अल्लड़ स्तन जो पूरी आजादी मिलते हुए भी और इतने मोटे होने के बावजूद भी अकड़े हुए बिना झूले खड़े थे उनको दोनों हाथों में पकड़ कर उन्हें दबाने और मसलने लगे।

अंकिता के स्तनोँ के बिच छोटी छोटी फुँसियों का जाल फैलाये हलकी गुलाबी चॉकलेट रंग की एरोला जिसके ठीक बिच में उसकी फूली हुई निप्पलोँ को गौरव अपनी उँगलियों में पिचकाने लगे। अचानक अंकिता को अपनी कोहनी में कुछ चिकनाहट महसूस हुई। अंकिता को अजीब लगा की उसकी कोहनी में कैसे चिकनाहट लगी। यह गौरव के लण्ड से निकला स्राव तो नहीं हो सकता। अंकिता ने अपने फ़ोन की टोर्च जलाई तो देखा की उसकी कोहनी में गौरव का लाल खून लगा था।

तलाश करने पर अंकिता ने पाया की उन दोनों के बदन को रगड़ने से एक जगह लगा घाव जो रुझ रहा था उस में से खून रिस ने लगा था। पर गौरव थे की कुछ आवाज भी नहीं की। वह अपनी माशूका को यह महसूस नहीं करवाना चाहते थे की वह दर्द में है। अंकिता को महसूस हुआ की गौरव का दर्द अभी भी था। क्यूंकि जब भी अंकिता ट्रैन के हिलने के कारण अथवा किसी और वजह से गौरव के ऊपर थोड़ी हिलती थी तो गौरव के मुंह से कभी कभी एकदम धीमी सिसकारी निकल जाती थी। तभी अंकिता समझ गयी की गौरव अपना दर्द छिपाने की भरसक कोशिश कर रहे थे। वह अंकिता को प्यार करने के लिए इतने उतावले हो रहे थे की अपना दर्द नजर अंदाज कर रहे थे। अंकिता को गौरव का हाल देख बड़ा आश्चर्य हुआ। क्या कोई मर्द किसी स्त्री को कभी इतना प्यार भी कर सकता है? ना सिर्फ गौरव ने अपनी जान पर खेल कर अंकिता को बचाया पर उसे प्यार करने के लिए अपना दर्द भी छुपाने लगा। अंकिता ने उस से पहले कभी किसी से इतना प्यार नहीं पाया था। अंकिता ने सोचा ऐसे प्यारे बांके बहादुर जांबाज और विरले नवजवान इंसान पर अपना तन और शील तो क्या जान भी देदे तो कम था। उस वक्त तो उसके लिए गौरव के घावोँ को ठीक करना ही एक मात्र लक्ष्य था। अपने स्तनोँ पर से गौरव का हाथ ना हटाते हुए अंकिता धीरे से गौरव से अलग हुई और अपने शरीर का वजन गौरव के ऊपर से हटाया और गौरव के बगल में बैठ गयी।

जब गौरव उसकी यह प्रक्रियाको आश्चर्यसे देखने लगा तो अंकिता ने कहा, "जनाब, अभी आप के घाव पूरी तरह नहीं भरे हैं। आप परेशान मत होइए। मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ। आप पहले ज़रा ठीक हो जाइये। अगले सात दिनों तक मैं आपकी ही हूँ, यह मेरा आपसे वचन है।" अंकिता ने धीरे से अपना हाथ गौरव की जाँघों के बिच में रख दिया और वह गौरव के लण्ड को पयजामे के ऊपर से ही सहलाने लगी। गौरव ने फुर्ती से अपने पयजामे का नाडा खोल दिया। पयजामे का नाडा खुलते ही गौरव का फनफनाता मोटा और काफी लंबा लण्ड अंकिता की छोटी सी हथेली में आ गया। उस दिन तक अंकिता ने अपने पति के अलावा किसी बड़े आदमी का लण्ड नहीं देखा था। उसके पति का लण्ड अक्सर तो खड़ा होने में भी दिक्कत करता था और अगर खड़ा हो भी गया तो वह चार इंच से ज्यादा लंबा नहीं होता था। गौरव का लंड उससे दुगुना तो था ही, ऊपर से उससे कई गुना मोटा भी था। गौरव का लण्ड हाथ की हथेली में महसूस होते ही अंकिता के मुंह से नकल ही पड़ा, "हाय दैय्या, तुम्हारा यह कितना लंबा और मोटा है? इतना लम्बा और मोटा भी कभी किसीका होता है क्या?"

गौरव ने मुस्कराते हुए बोला, "क्यों? इतना बड़ा लण्ड इससे पहले नहीं देखा क्या?"

अंकिता ने, "धत्त तेरी! क्या बातें करते हैं आप? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए? तुम क्या समझते हो? मुझे इसके अलावा कोई और काम नहीं है क्या?" यह कह कर शर्म से अपना मुंह चद्दर में छिपा लिया।

गौरव अंकिता के शर्माने से मसुकुरा उठे और अंकिता की ठुड्डी अपनी उँगलियों में दबा कर बोले, " जानेमन बात की शुरुआत तो तुमने ही की थी। बड़ा है छोटा है, आजसे यह सिर्फ तुम्हारा है।"

एक हाथ से अंकिता गौरव के नंगे लण्ड को सहला रही थी और दोनों हाथों से गौरव अंकिता के दो गुम्बजों पर अपनी उँगलियाँ और हथेली घुमा रहा था और बार बार अंकिता की निप्पलों को पिचका रहा था। अंकिता ने सोचा की वह समय और जगह चुदाई करने लायक नहीं थी। कोई भी उन्हें पर्दा हटा कर देख सकता था। दूसरी बात यह भी थी की अंकिता जब मूड़ में होती थी तब चुदाई करवाते समय उसे जोर से कराहने की आदत थी। उस रात एकदम सन्नाटे सी ट्रैन में शोर करना खतरनाक हो सकता था।

अंकिता ने गौरव का लण्ड अपनी हथेली में लेकर उसे जोर से हिलाना शुरू किया। अंकिता ने गौरव से कहा, "अब तुम कुछ बोलना मत। चुपचाप पड़े रहो। तुम्हें आज रात कोई परिश्रम करने की जरुरत नहीं है। प्लीज मेरी बात मानो। आज रात को हम कुछ नहीं करेंगे। गौरव मैं तुम्हारी हूँ। अब तुम चुपचाप लेटे रहो। मैं तुम्हारी गर्मी निकाल देती हूँ। ओके? मैंने तुम्हें वचन दिया है की मौक़ा मिलते ही मैं तुम्हारे पास आ जाउंगी और हम वह सब कुछ करेंगे जो तुम चाहते हो। पर इस वक्त और कोई बात नहीं बस लेटे रहो।"

अंकिता ने गौरव के लण्ड को जोर से हिलाना शुरू किया। कुछ ही देर में गौरव का बदन अकड़ने लगा। गौरव अपनी आँखे भींच कर अंकिता के हाथ का जादू अपने लण्ड पर महसूस कर रहा था। गौरव से ज्यादा देर रहा नहीं गया। कुछ ही देर में गौरव के लण्ड से उसके वीर्य की पिचकारी फुट पड़ी और अंकिता का हाथ गौरव के वीर्य से लथपथ हो गया।

रोहित की आँखों में नींद ओझल थी। वह बड़ी उलझन में थे। उन्होंने अपनी पत्नी अपर्णा को तो कह दिया था की वह रात में उसके साथ सोने के लिए (मतलब बीबी को चोदने के लिए) आएंगे, पर जब वास्तविकता से सामना हुआ तो उनकी हवाही निकल गयी। निचे के बर्थ पर श्रेया सोई थीं। पत्नीके पास चले गए और अगर श्रेया जी ने देख लिया तो फिर तो उनकी नौबत ही आ जायेगी। हालांकि अपर्णा तो रोहित की बीबी थीं, पर आखिर माशूका भी तो बीबियों से जलती है ना? वह तो उन्हें खरी खोटी सुनाएंगे ही। कहेंगी, "अरे भाई अगर बीबी के साथ ही सोना था तो घर में ही सो लेते! रोज तो घर में बीबी के साथ सोते हुए पेट नहीं भरा क्या? चलती ट्रैन में उसके साथ सोने की जरुरत क्या थी? हाँ अगर माशूका के साथ सोने की बात होती तो समझ में आता है। जल्द बाजी में कभी कबार ऐसा करना पड़ता है। पर बीबी के साथ?" बगैरा बगैरा। जीतू जी ने देख लिया तो वह भी टिका टिपण्णी कर सकते थे। वह तो कुछ ख़ास नहीं कहेंगे पर यह जरूर कहेंगे की "यार किसी और की बीबी के साथ सोते तब तो समझते। तुमतो अपनी बीबी को ट्रैन में भी नहीं छोड़ते। भाई शादी के इतने सालों के बाद इतनी आशिकी ठीक नहीं।" खैर, रोहित डरते कांपते अपनी बर्थ से निचे उतर कर अपनी पत्नी की बर्थ के पास पहुंचे। उन्हें यह सावधानी रखनी थी की उन्हें कोई देख ना ले। यह देख कर उन्हें अच्छा लगा की कहीं कोई हलचल नहीं थी। श्रेया और जीतूजी गहरी नींद में लग रहे थे। उनकी साँसों की नियत आवाज उन्हें सुनाई दे रही थी।

रोहित को यह शांति जरूर थी कि यदि कभी किसी ने उन्हें देख भी लिया तो आखिर वह क्या कह सकते थे? आखिर वह सो तो अपनी बीबी के साथे ही रहे थे न? जब रोहित अपनी बीबी अपर्णा के कम्बल में घुसे तब अपर्णा गहरी नींद में सो रही थी। रोहित उम्मीद कर रहे थे की अपर्णा जाग रही होगी। पर वह तो खर्रांटे मार रही थी। लगता था वह काफी थकी हुई थी। थकना तो था ही! अपर्णा ने जीतूजी के साथ करीब एक घंटे तक प्रेम क्रीड़ा जो की थी! रोहित को कहाँ पता था की उनकी बीबी जीतूजी से कुछ एक घंटे पहले चुदवाना छोड़ कर बाकी सब कुछ कर चुकी थी? रोहित उम्मीद कर रहे थे की उनकी पत्नी अपर्णा उनके आने का इंतजार कर रही होगी। उन्होंने कम्बल में घुसते ही अपर्णा को अपनी बाहों में लिया और उसे चुम्बन करने लगे।

अपर्णा गहरी नींद में ही बड़बड़ायी, "छोडो ना जीतूजी, आप फिर आ गए? अब काफी हो गया। इतना प्यार करने पर भी पेट नहीं भरा क्या?" यह सुनकर रोहित को बड़ा झटका लगा। अरे! वह यहां अपनी बीबी से प्यार करने आये थे और उनकी बीबी थी की जीतूजी के सपने देख रही थी? रोहित के पॉंव से जमीन जैसे खिसक गयी। हालांकि वह खुद अपनी बीबी अपर्णा को जीतूजी के पास जाने के लिए प्रोत्साहित कर तो रहे थे पर जब उन्होंने अपनी बीबी अपर्णा के मुंह से जीतूजी का नाम सूना तो उनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उनके अहंकार पर जैसे कुठाराघात हुआ। पुरुष भले ही अपनी बीबी को दूसरे कोई मर्द के से सेक्स करने के लिए उकसाये, पर जब वास्तव में दुसरा मर्द उसकी बीबी को उसके सामने या पीछे चोदता है और उसे उसका पता चलता है तो उसे कुछ इर्षा, जलन या फिर उसके अहम को थोड़ी ही सही पर हलकी सी चोट तो जरूर पहुँचती है। यह बात रोहित ने पहली बार महसूस की। तब तक तो वह यह मानते थे की वह ऐसे पति थे की जो अपनी पत्नी से इतना प्यार करते थे की यदि वह किसी और मर्द से चुदवाये तो उनको रत्ती भरभी आपत्ति नहीं होगी। पर उस रात उनको कुछ तो महसूस जरूर हुआ।

रोहित ने अपनी बीबी को झकझोरते हुए कहा, "जानेमन, मैं तुम्हारा पति रोहित हूँ। जीतूजी तो ऊपर सो रहे हैं। कहीं तुम जीतूजी से चुदवाने के सपने तो नहीं देख रही थी?"

अपने पति के यह शब्द सुनकर अपर्णा की सारी नींद एक ही झटके में गायब हो गयी। वह सोचने लगी, "हो ना हो, मेरे मुंह से जीतूजी का नाम निकल ही गया होगा और वह रोहित ने सुन लिया। हाय दैय्या! कहीं मेरे मुंहसे जीतूजी से चुदवाने की बात तो नींद में नहीं निकल गयी? रोहित को कैसे पूछूं? अब क्या होगा?" अपर्णा का सोया हुआ दिमाग अब डबल तेजी से काम करने लगा।

अपर्णा ने कहा, "मैं जीतूजी ना नाम ले रही थी? आप का दिमाग तो खराब नहीं हो गया?" फिर थोड़ी देर रुक कर अपर्णा बोली, "अच्छा, अब मैं समझी। मैंने आपसे कहा था, 'अब खस्सो जी, फिर मेरी बर्थ पर क्यों आ गये? क्या आप का मन पिछली रात इतना प्यार करने के बाद भी नहीं भरा?' आप भी कमाल हैं! आपके ही मन में चोर है। आप मेरे सामने बार बार जीतूजी का नाम क्यों ले रहे हो? मैं जानती हूँ की आप यही चाहते हो ना की मैं जीतूजी से चुदवाऊं? पर श्रीमान ध्यान रहे ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। अगर आपने ज्यादा जिद की तो मैं उनको अपने करीब भी नहीं आने दूंगी। फिर मुझे दोष मत दीजियेगा!"

अपनी बीबी की बात सुन कर रोहित लज्जित हो कर माफ़ी मांगने लगे, "अरे बीबीजी, मुझसे गलती हो गयी। मैंने गलत सुन लिया। मैं भी बड़ा बेवकूफ हूँ। तुम मेरी बात का बुरा मत मानना। तुम मेरे कारण जीतूजी पर अपना गुस्सा मत निकालना। उनका बेचारे का कोई दोष नहीं है। मैं भी तुम पर कोई शक नहीं कर रहा हूँ।" बेचारे रोहित! उन्होंने सोचा की अगर अपर्णा कहीं नाराज हो गयी तो जीतूजी के साथ झगड़ा कर लेगी और बनी बनायी बात बिगड़ जायेगी। इससे तो बेहतर है की उसे खुश रखा जाए।"

रोहित ने अपर्णा के होँठों पर अपने होँठ रखते हुए कहा, "जानूं, मैं जानता हूँ की तुमने क्या प्रण लिया है। पर प्लीज जीतूजी से इतनी नाराजगी अच्छी नहीं। भले ही जीतूजी से चुदवाने की बात छोड़ दो। पर प्लीज उनका साथ देने का तुमने वादा किया है उसे मत भुलाना। आज दोपहर तुमने जीतूजी की टाँगे अपनी गोद में ले रक्खी थी और उनको हलके से मसाज कर रही थी तो मुझे बहुत अच्छा लगा था। सच में! मैं इर्षा से नहीं कह रहा हूँ।"

अपर्णा ने नखरे दिखाते हुए कहा, "हाँ भाई, आपको क्यों अच्छा नहीं लगेगा? अपनी बीबी से अपने दोस्त की सेवा करवाने की बड़ी इच्छा है जो है तुम्हारी? तुम तो बड़े खुश होते अगर मैंने तुम्हारे दोस्त का लण्ड पकड़ कर उसेभी सहलाया होता तो, क्यों, ठीक कहा ना मैंने?" रोहित को समझ नहीं आ रहा था की उनकी बीबी उनकी फिल्म उतार रही थी या फिर वह मजाक के मूड में थी। रोहित को अच्छा भी लगा की उनकी बीबी जीतूजी के बारेमें अब काफी खुलकर बात कर रही थी।

रोहित ने कहा, "जानूं, क्या वाकई में तुम ऐसा कर सकती हो? मजाक तो नहीं कर रही?"

अपर्णा ने कहा, "कमाल है! तुम कैसे पति हो जो अपनी बीबी के बारे में ऐसी बाते करते हो? एक तो जीतूजी वैसेही बड़े आशिकी मिजाज के हैं। ऊपर से तुम आग में घी डालने का काम कर रहे हो! अगर तुमने जीतूजी से ऐसी बात की ना तो ऐसा ना हो की मौक़ा मिलते ही कहीं वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर ही ना रख दें! उनको ऐसा करने में एक मिनट भी नहीं लगेगा। फिर यातो मुझे उनसे लड़ाई करनी पड़ेगी, या फिर उनका लण्ड हिलाकर उनका माल निकाल देना पडेगा। हे पति देव! अब तुम ही बताओ ऐसा कुछ हुआ तो मुझे क्या करना चाहिए?"

अपनी बीबी के मुंह से यह शब्द सुनकर रोहित का लण्ड खड़ा हो गया। यह शायद पहली बार था जब अपर्णा ने खुल्लमखुल्ला जीतूजी के लण्ड के बारेमें सामने चल कर ऐसी बात छेड़ी थी।

रोहित ने अपना लण्ड अपनी बीबी के हाथ में पकड़ाया और बोले, "जानेमन ऐसी स्थिति में तो मैं यही कहूंगा की जीतूजी सिर्फ मेरे दोस्त ही नहीं, तुम्हारे गुरु भी हैं, उन्होंने भले ही तुम्हारे लिए अपनी जान कुर्बान नहीं की हो, पर उन्होंने तुम्हारे लिए अपनी रातों की नींद हराम कर तुम्हें शिक्षा दी जिसकी वजहसे आज तुम्हें एक शोहरत और इज्जत वाली जॉब के ऑफर्स आ रहे हैं। तो अगर तुमने उनकी थोड़ी गर्मी निकाल भी दी तो कौनसा आसमान टूट पड़ने वाला है?" अपने पति की ऐसी उत्तेजनात्मक बात सुनकर अपर्णा की जाँघों के बिच में से पानी चुना शुरू हो गया। उसकी चूत में हलचल शुरू हो गयी। पहले ही उसकी पेंटी भीगी हुई तो थी ही। वह और गीली हो गयी।

अपने आपको सम्हालते हुए अपर्णा ने कहा, "अच्छा जनाब! क्या ज़माना आ गया है? अब बात यहां तक आ गयी है की एक पति अपनी बीबी को गैर मर्द का लण्ड हिला कर उसका माल निकालने के लिए प्रेरित कर रहा है?" फिर अपना सर पर हाथ मारते हुए नाटक वाले अंदाज में अपर्णा बोली, "पता नहीं आगे चलकर इस कलियुग में क्या क्या होगा?"

रोहित ने अपनी बीबी अपर्णा का हाथ पकड़ कर कहा, "जानेमन,जो होगा अच्छाही होगा।" अपर्णा की चूत में उंगली डाल कर रोहित ने कहा, "देखो, मैं महसूस कर रहा हूँ की तुम्हारी चूत तो तुम्हारे पानी से पूरी लथपथ भरी हुई है। जीतूजी की बात सुनकर तुम भी तो बड़ी उत्तेजित हो रही हो! भाई, कहीं तुम्हारी चूत में तो मचलन नहीं हो रही?"

अपर्णा ने हँस कर कहा, "डार्लिंग! तुम मेरी चूत में उंगलियां डाल कर मुझे उकसा रहे हो और नाम ले रहे हो बेचारे जीतूजी का! चलो अब देर मत करो। मेरी चूत में वाकई में बड़ी मचलन हो रही है। अपना लण्ड डालो और जल्दी करो। कहीं कोई जाग गया तो और नयी मुसीबत खड़ी हो जायेगी।"

मौक़ा पाकर रोहित ने सोचा फायदा उठाया जाये। वह बोले, "पर जानेमन यह तो बताओ, की अगर मौक़ा मिला तो जीतूजी का लण्ड तो सेहला ही दोगी ना?"

अपर्णा ने हँसते हुए कहा, "अरे छोडो ना जीतूजी को। अपनी बात सोचो!"

रोहित को लगा की उसकी बात बनने वाली है, तो उसने और जोर देते हुए कहा, "नहीं डार्लिंग! आज तो तुम्हें बताना ही पडेगा की क्या तुम मौक़ा मिलने पर जीतूजी का लण्ड तो हिला दोगी न?"

अपर्णा ने गुस्से का नाटक करते हुए कहा, "मेरा पति भी कमाल का है! यहां उसकी बीबी नंगी हो कर अपने पति को उसका लण्ड अपनी चूत में डालने को कह रही है, और पति है की अपने दोस्त के लण्ड के बारे में कहे जा रहा है! पहले ऐसा कोई मौक़ा तो आनेदो? फिर सोचूंगी। अभी तो मारे उत्तेजना के मैं पागल हो रही हूँ। अपना लण्ड जल्दी डालो ना?"

रोहित ने जिद करते हुए कहा, "नहीं अभी बताओ। फिर मैं फ़ौरन डाल दूंगा।"

अपर्णा ने नकली नाराजगी और असहायता दिखाते हुए कहा, "मैं क्या करूँ? मेरा पति हाथ धोकर मुझे मनवाने के लिए मेरे पीछे जो पड़ा है? यहां मैं मेरे पति के लण्ड से चुदवाने के लिए पागल हो रही हूँ और मेरा पति है की अपने दोस्त की पैरवी कर रहा है! ठीक है भाई। मौक़ा मिलने पर मैं जीतूजी का लण्ड मसाज कर दूंगी, हिला दूंगी और उनका माल भी निकाल दूंगी, बस? पर मेरी भी एक शर्त है।"

रोहित यह सुन कर ख़ुशी से उछल पड़े और बोले, "बोलो, क्या शर्त है तुम्हारी?"

अपर्णा ने कहा, "मैं यह सब तुम्हारी हाजरी में तुम्हारे सामने नहीं कर सकती। हाँ अगर कुछ होता है तो मैं तुम्हें जरूर बता दूंगी। बस, क्या यह शर्त तुम्हें मंजूर है?"

रोहित ने फ़ौरन अपनी बीबी की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए कहा, "मंजूर है, शत प्रतिशत मंजूर है।" और फिर दोनों पति पत्नी कामाग्नि में मस्त एक दूसरे की चुदाई में ऐसे लग पड़े की बड़ी मुश्किल से अपर्णा ने अपनी कराहटों पर काबू रखा।

रोहित अपनी बीबी की अच्छी खासी चुदाई कर के वापस अपनी बर्थ पर आ रहे थे की बर्थ पर चढ़ते चढ़ते श्रेया ने करवट ली और जाने अनजानेमें उनके पाँव से एक जोरदार किक रोहित के पाँव पर जा लगी। श्रेया शायद गहरी नींद में थीं। रोहित ने घबड़ायी हुई नजर से काफी देर तक वहीं रुक कर देखना चाहा की श्रेया कहीं जाग तो नहीं गयीं? पर श्रेया के बिस्तरपर कोई हलचल नजर नहीं आयी। दुखी मन से रोहित वापस अपनी ऊपर वाली बर्थ पर लौट आये।

सुबह हो रही थी। जम्मू स्टेशन के नजदीक गाडी पहुँचने वाली थी। सब यात्री जाग चुके थे और उतर ने के लिए तैयार हो रहे थे।

जब गौरव जागे और उन्होंने ऊपर की बर्थ पर देखा तो बर्थ खाली थी। अंकिता जा चुकी थी। कप्तान गौरव को समझ नहीं आया की अंकिता कब बर्थ से उतर कर उन्हें बिना बताये क्यों चली गयी। अपर्णा उठकर फ़ौरन गौरव के पास उनका हाल जानने पहुंची और बोली, "कैसे हो आप? उठ कर चल सकते हो की मैं व्हील चेयर मँगवाऊं?" कप्तान गौरव ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा की वह चल सकते थे और उन्हें कोई मदद की आवश्यकता नहीं थी। जब उन्होंने इधरउधर देखा तो अपर्णा समझ गयी की गौरव अंकिता को ढूंढ रहे थे। अपर्णा ने गौरव के पास आ कर उन्हें हलकी आवाज में बताया की अंकिता ब्रिगेडियर साहब के साथ चली गयी थी। उस समय भी यह साफ़ नहीं हुआ की ब्रिगेडियर साहब अंकिता के क्या लगते थे। यह रहस्य बना रहा।

ट्रैनसे निचे उतरने पर सब ने महसूस किया की श्रेया का मूड़ ख़ास अच्छा नहीं था। वह कुछ उखड़ी उखड़ी सी लग रही थीं। जीतूजीने सबको रोक कर बताया की उन्हें वहाँ से करीब चालीस किलोमीटर दूर हिमालय की पहाड़ियों में चम्बल के किनारे एक आर्मी कैंप में जाना है। उन सबको वहाँ से टैक्सी करनी पड़ेगी। जीतूजी ने यह भी कहा की चूँकि वापसी की सवारी मिलना मुश्किल था इस लिए टैक्सी वाले मुंह माँगा किराया वसूल करते थे।

जीतूजी, श्रेया, अपर्णा और रोहित को बड़ा आनंद भरा आअश्चर्य तब हुआ जब एक व्यक्ति ने आकर सबसे हाथ मिलाये और सबके गले में फुलकी एक एक माला पहना कर कहा, "जम्मू में आपका स्वागत है। मैं आर्मी कैंप के मैनेजमेंट की तरफ से आपका स्वागत करता हूँ।" फिर उसने आग्रह किया की सबकी माला पहने हुए एक फोटो ली जाए। सब ने खड़े होकर फोटो खिंचवाई। रोहित को कुछ अजीब सा लगा की स्टेशन पर हाल ही में उतरे कैंप में जाने वाले और भी कई आर्मी के अफसर थे, पर स्वागत सिर्फ उन चारों का ही हुआ था। फोटो खींचने के बाद फोटो खींचने वाला वह व्यक्ति पता नहीं भिडमें कहाँ गायब हो गया। रोहित ने जब जीतूजी को इसमें बारेमें पूछा तो जीतूजी भी इस बात को लेकर उलझन में थे। उन्होंने बताया की उनको नहीं पता था की आर्मी कैंप वाले उनका इतना भव्य स्वागत करेंगे।

खैर जब जीतूजी ने टैक्सी वालों से कैंप जाने के लिए पूछताछ करनी शुरू की तो पाया की चूँकि काफी लोग कैंप की और जा रहे थे तो टैक्सी वालों ने किराया बढ़ा दिया था। पर शायद उन चारों की किस्मत अच्छी थी। एक टैक्सी वाले ने जब उन चारों को देखा तो भागता हुआ उनके पास आया और पूछा, "क्या आपको आर्मी कैंप साइट पर जाना है?"

जब रोहित ने हाँ कहा तो वह फ़ौरन अपनी पुरानी टूटी फूटी सी टैक्सी, के जिस पर कोई नंबर प्लेट नहीं था; ले आया और सबको बैठने को कहा। फिर जब जीतूजी ने किराये के बारे में पूछा तो उसने कहा, "कुछ भी दे देना साहेब। मेरी गाडी तो कैंप के आगे के गाँव तक जा ही रही है। खाली जा रहा था। सोच क्यों ना आपको ले चलूँ? कुछ किराया मिल जायेगा और आप से बातें भी हो जाएंगी।" ऐसा कह कर हम सब के बैठने के बाद उसने गाडी स्टार्ट कर दी। जब जीतूजी ने फिर किराए के बारे में पूछा तब उसने सब टैक्सी वालों से आधे से भी कम किराया कहा। यह सुनकर अपर्णा बड़ी खुश हुई। उसने कहा, "यह तो बड़ा ही कम किराया माँग रहा है? लगता है यह भला आदमी है। यह कह कर अपर्णा ने फ़ौरन अपनी ज़ेब से किराए की रकम टैक्सी वाले के हाथ में दे दी। अपर्णा बड़ी खुश हो रही थी की उनको बड़े ही सस्ते किरायेमें टैक्सी मिल गयी। पर जब अपर्णा ने जीतूजी की और देखा तो जीतूजी बड़े ही गंभीर विचारों में डूबे हुए थे।

कैंप जम्मू स्टेशन से करीब चालीस किलोमीटर दूर था और रास्ता ख़ास अच्छा नहीं था। दो घंटे लगने वाले थे। टैक्सी का ड्राइवर बड़ा ही हँसमुख था। उसने इधर उधर की बातें करनी शुरू की।

श्रेया का मूड़ ठीक नहीं था। कर्नल साहब कुछ बोल नहीं रहे थे। रोहित जी को कुछ भी पता नहीं था तब हार कर टैक्सी ड्राइवर ने अपर्णा से बातें करने शुरू की, क्यूंकि अपर्णा बातें करने में बड़ी उत्साहित रहती थी। टैक्सी ड्राइवर ने अपर्णा से उनके प्रोग्राम के बारे में पूछा। अपर्णा को प्रोग्राम के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं था। पर अपर्णा को जितना पता था उसने ड्राइवर को सब कुछ बताया। आखिर में दो घंटे से ज्यादा का थकाने वाला सफर पूरा करने के बाद हिमालय कीखूबसूरत वादियों में वह चारों जा पहुंचे।

जम्मू स्टेशन से कैंप की और टैक्सी चला कर ले जाते हुए पुरे रास्ते में रोहित को ऐसा लगा जैसे टैक्सीका ड्राइवर "शोले" पिक्चर की "धन्नो" की तरह बोले ही जा रहा था और सवाल पे सवाल पूछे जा रहा था। आप कहाँ से हो, क्यों आये हो, कितने दिन रहोगे, यहां क्या प्रोग्राम है, बगैरा बगैरा। अपर्णा भी उस की बातों का जवाब देती जा रही थी जितना उसे पता था। जिसका उसे पता नहीं था तो वह जीतूजी को पूछती थी। पर जीतूजी थे की पूरी तरह मौन धरे हुए किसी भी बात का जवाब नहीं देते थे। अपर्णा ड्राइवर से काफी प्रभावित लग रही थी। वैसे भी अपर्णा स्वभाव से इतनी सरल थी की उसे प्रभावित करने में कोई ख़ास मशक्कत करने की जरुरत नहीं पड़ती थी। अपर्णा किसीसे भी बातों बातों में दोस्ती बनाने में माहिर तो थी ही। आखिर में जीतूजी ने ड्राइवर को टोकते हुए कहा, "ड्राइवर साहब, आप गाडी चलाने पर ध्यान दीजिये। बातें करने से ध्यान बट जाता है। तब कहीं ड्राइवर थोड़ी देर चुप रहा। अपर्णा को जीतूजी का रवैया ठीक नहीं लगा। अपर्णा ने जीतूजी की और कुछ सख्ती से देखा। पर जब जीतूजी ने अपर्णा को सामने से सीधी आँख वापस सख्ती से देखा तो अपर्णा चुप हो गयी और खिसियानी सी इधर उधर देखती रही।

काफी मशक्कत और उबड़ खाबड़ रास्तों को पार कर उन चार यात्रियों का काफिला कैंपपर पहुंचा। कैंप पर पहुँचते ही सब लोग हिमालय की सुंदरता और बर्फ भरे पहाड़ियों की चोटियों में और कुदरत के कई सारे खूबसूरत नजारों को देखने में खो से गए। अपर्णा पहली बार हिमालय की पहाड़ियों में आयी थी। मौसम में कुछ खुशनुमा सर्दी थी। सफर से सब थके हुए थे। सारा सामान स्वागत कार्यालय में पहुंचाया गया। जीतूजी ने देखाकी टैक्सी का ड्राइवर मुख्य द्वार पर सिक्योरिटी पहरेदार से कुछ पूछ रहा था। फ़ौरन जीतूजी भागते हुए मुख्य द्वार पर पहुंचे। वह देखना चाहते थे की टैक्सी ड्राइवर पहरेदार से क्या बात कर रहा था। जीतूजी को दूर से आते हुए देख कर चन्द पल में ही ड्राइवर जीतूजी की नज़रों से ओझल हो गया। जीतूजी ने उसे और उसकी टैक्सी को काफी इधर उधर देखा पर वह या उसकी टैक्सी नजर नहीं आये।

जब कर्नल साहब ने पहरेदार से पूछा की टैक्सी ड्राइवर क्या पूछ रहा था तो पहरेदार ने कहा की वह कर्नल साहब और दूसरों के प्रोग्राम के बारेमें पूछ रहा था। पहरेदार ने बताया की उसे कुछ पता नहीं था और नाही वह कुछ बता सकता था। कुछ देर तक बात करने के बाद ड्राइवर कहीं चला गया। जब कर्नल साहब ने पूछा की क्या वह पहरेदार उस ड्राइवर को जानता था। तब पहरेदार ने कहा की वह उस ड्राइवर को नहीं जानता था। ड्राइवर कहीं बाहर का ही लग रहाथा। जब कर्नल साहब ने और पूछा की क्या आगे कोई गांव है, तो पहरेदार ने बताया की वह रास्ता कैंप में आकर ख़तम हो जाता था। आगे कोई गाँव नहीं था।

कर्नल साहब बड़ी उलझन में ड्राइवर के बारे में सोचते हुए जब रजिस्ट्रेशन कार्यालय वापस आये तब रोहित ने जीतूजी को गहरी सोच में देखते हुए पाया तो पूछा की क्या बात थी की जीतूजी इतने परेशान थे? जीतूजी ने कहा की ड्राइवर बड़े अजीब तरीके से व्यवहार कर रहा था। ड्राइवर ऐसे पूछताछ कर रहा था जैसे उसको कुछ खबर हासिल करनी हो। कर्नल साहब ने यह भी कहा की जम्मू स्टेशन पर उनको जो मालाएं पहनाई गयीं और फोटो खींची गयी, वैसा कोई प्रोग्राम कैंप की तरफ से नहीं किया गया था। जीतूजी की समझ में यह नहीं आ रहा था की ऐसा कौन कर सकता है और क्यों? पर उसका कोई जवाब नहीं मिल रहा था।

रोहित ने तर्क किया की हो सकता है की कोई ग़लतफ़हमी से ऐसा हुआ। जीतूजी ने सोचते सोचते सर हिलाया और कहा, "यह एक इत्तेफाक या संयोग हो सकता है। पर पिछले कुछ दिनों में काफी इत्तेफ़ाक़ हो रहे हैं। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। मैं उंम्मीद करता हूँ की यह इत्तेफ़ाक़ ही हो। पर हो सकता है की इसमें कोई सुनियोजित चाल भी हो। सोचना पडेगा।" कर्नल साहब यह कह कर रीसेप्प्शन की और कमरे की व्यवस्था करने के लिए चल पड़े। रोहित और अपर्णा की समझ में कुछ नहीं आया। सब रिसेप्शन की और चल पड़े। जीतूजी ने दो कमरे का एक सूट बुक कराया था। सूट में एक कॉमन ड्राइंग रूम था और दोनों बैडरूम के बिच एक दरवाजा था। आप एक रूम से दूसरे रूम में बिना बाहर गए जा सकते हो ऐसी व्यवस्था थी। दोनों बैडरूम में अटैच्ड बाथरूम था। कमरे की खिड़कियों से कुदरत का नजारा साफ़ दिख रहा था। अपर्णा ने खिड़की से बाहर देखा तो देखती ही रह गयी। इतना खूबसूरत नजारा उसने पहले कभी नहीं देखा था। अपर्णा ने बड़ी ही उत्सुकता से श्रेया को बुलाया और दोनों हिमालय की बर्फीली चोटियों को देखने में मशगूल हो गए। रोहित पलंग पर बैठे बैठे दोनों महिलाओं की छातियोँ में स्थित चोटियों को और उनके पिछवाड़े की गोलाइयोँ के नशीले नजारों को देखने में मशगूल थे। जीतूजी उसी पलंग के दूसरे छोर पर बैठे बैठे गहराई से कुछ सोचने में व्यस्त थे।

रोहित ने श्रेया कैंप के बिलकुल नजदीक में ही एक बहुत ही खूबसूरत झरना बह रहा था उसे दिखाते हुए कहा, "श्रेया यह कितना सुन्दर झरना है। यह झरना उस वाटर फॉल से पैदा हुआ है। काश हमलोग वहाँ जा कर उसमें नहा सकते।"

जीतूजी ने यह सुन कर कहा, "हम बेशक वहाँ जा कर नहा सकते हैं। वहाँ नहाने पर कोई रोक नहीं है। दर असल कई बार आर्मी के ही लोग वहाँ तैरते और नहाते हैं। वहाँ कैंप वालों ने एक छोटा सा स्विमिंग पूल जैसा ढ़ाँचा बनाया है l आप यहां से घने पेड़ों की वजह से कुछ देख नहीं सकते पर वहाँ बैठने के लिए कुछ बेंच रखे हैं और निचे उतरने के लिए सीढ़ियांभी बनायी हैंl आपको एक छोटा सा कमरा दिखाई देरहा होगा। वह महिलाओं और पुरुषों का कपडे बदलने का अलग अलग कमरा है। वहाँ वाटर फॉल के निचे और झरने में हम सब नहाने जा सकते हैं।"

जीतूजी ने रोहित को आंख मारते हुए कहा, "अक्सर, वाटर फॉल के पीछे अंदर की और कई बार कुछ कपल्स छुपकर अपना काम भी पूरा कर लेते हैं! पर चूँकि यह कैंप की सीमा से बाहर है, इस लिए कैंप का मैनेजमेंट इस में कोई दखल नहीं देता l हाँ, अगर कोई अकस्मात् होता है तो उसकी जिम्मेदारी भी कैंप का मैनेजमेंट नहीं लेता। पर उसमें वैसे भी पानी इतना ज्यादा गहरा नहीं है की कोई डूब सके। ज्यादा से ज्यादा पानी हमारी छाती तक ही है।"

अपर्णा यह सुनकर ख़ुशी के मारे कूदने लगी और श्रेया की बाँहें पकड़ कर बोली, "श्रेया, चलिए ना, आज वहाँ नहाने चलते हैं। मैं इससे पहले किसी झरने में कभी भी नहीं नहायी। अगर हम गए तो आज मैं पहेली बार कोई झरने में नहाउंगी।" फिर श्रेया की और देख कर शर्माते हुए अपर्णा बोली, "श्रेया, प्लीज, मैं आपकी मालिश भी कर दूंगी! प्लीज जीतूजी को कह कर हम सब उस झरने में आज नहाने चलेंगे ना?"

श्रेया ने अपने पति जीतूजी की और देखा तो जीतूजी ने घडी की और देखते हुए कहा, "इस समय करीब बारह बजे हैं। हमारे पास करीब दो घंटे का समय है। डेढ़ से तीन बजे तक आर्मी कैंटीन में लंच खाना मिलता है। अगर चलना हो तो हम इस दो घंटे में वहा जाकर नहा सकते हैं।"

अपर्णा जीतूजी की बात सुनकर इतनी खुश हुई की भागकर छोटे बच्चे की तरह जीतूजी से लिपटते हुए बोली, "थैंक यू, जीतूजी! हम जरूर चलेंगे। फिर अपने पति की और देख कर अपर्णा बोली, "हम चलेंगे ना रोहित?" रोहित ने अपर्णा का जोश देखकर मुस्कुरा कर तुरंत हामी भरते हुए कहा, "ठीक है, आप इतना ज्यादा आग्रह कर रहे हो तो चलो फिर अपना तौलिया, स्विम सूट बगैरह निकालो और चलो।"

स्विमिंग सूट पहनने की बात सुनकर अपर्णा कुछ सोच में पड़ गयी। उसने हिचकिचाते हुए श्रेया के करीब जाकर उनके कानों में फुसफुसाते हुए पूछा, "बापरे! स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर नहाते हुए मुझे सब देखेंगे तो क्या होगा?" श्रेया अपर्णा की नाक पकड़ कर खींची और कहा, "अभी तो तुम जाने के लिए कूद रही थी? अब एकदम ठंडी पड़ गयी? हमें नहाते हुए कौन देखेगा? और मानलो अगर देख भी लिया तो क्या होगा? भरोसा रखो तुम्हें कोई रेप नहीं करेगा। अभी वहाँ कोई नहीं है। बस हम चार ही तो हैंl फिर इतने घने पेड़ चारों ओर होने के कारण हमें वहाँ नहाते हुए कोई कहीं से भी नहीं देख सकता। इसी लिए तो जीतूजी कहते हैं की यहां कई प्यार भरी कहानियों ने जन्म लिया है।"

यह सुन कर अपर्णा को कुछ तसल्ली हुई। वह फ़टाफ़ट अपनी सूटकेस खोलने में लग गयी और श्रेया को धक्का देती हुई बड़े प्यार और विनम्रता से बोली, "श्रेया अपने कमरे में जाइये और अपना स्विमिंग कॉस्च्यूम निकालिये ना, प्लीज? चलते हैं ना?" श्रेया सुबह से ही कुछ गंभीर सी दिख रही थीं। पर अपर्णा की बचकाना हरकतें देख कर हँस पड़ी और बोली, "ठीक है भाई। चलते हैं। पर तुम मुझे धक्का तो मत मारो।" रोहित कल्पनाओं की उड़ान में खो रहे थे। वह सोच रहे थे श्रेया जब स्विमींग सूट पहनेंगींतो अपने स्विमिंग सूटमें कैसी लगेंगी? उसदिन वह पहेली बार श्रेया को स्विम सूट में देख पाएंगे। उनके मन में यह बात भी आयी की अपर्णा भी स्विमिंग सूटमें कमाल की दिखेगी। रोहित सोच रहे थे की उनकी बीबी अपर्णा को देख कर जीतूजी का क्या हाल होगा? इस यात्रा के लिए रोहित ने अपर्णा को एक पीस वाला स्विम सूट लाने को कहा था। वह ऐसा था की उसमें अपर्णा को देख कर तो अपर्णा के पति रोहित का लण्ड भी खड़ा हो जाता था तो जीतूजी का क्या हाल होगा?

खैर, कुछ ही देर में यह सपना साकार होने वाला था ऐसा लग रहा था। बिना समय गँवाए दोनों जोड़ियाँ अपने तैरने के कपडे साथ में लेकर झरने की और चलदीं। बाहर मौसम एकदम सुहाना था। वातावरण एकदम निर्मल और सुगन्धित था। रोहित और जीतूजी मर्दों को कपडे बदलने के रूम में चले गए। पर झरने के पास पहुँचते ही अपर्णा जनाना कपडे बदलने के कमरे के बाहर रूक गयी और कुछ असमंजस में पड़ गयी।

श्रेया ने अपर्णा की और देखा और बोली, "क्या बात है अपर्णा? तुम रुक क्यों गयी?" अपर्णा श्रेया के पास जाकर बोली, "श्रेया, मेरा तैरने वाला ड्रेस इतना छोटा है। रोहित ने मेरे लिए इतना छोटा कॉस्च्यूम खरीदा था की मुझे उसको पहन कर जीतूजी के सामने आने में बड़ी शर्म आएगी। मैं नहाने नहीं आ रही। आप लोग नहाइये। मैं यहां बैठी आपको देखती रहूंगी। और फिर दीदी मुझे तैरना भी तो आता नहीं है।" श्रेया जी ने अपर्णा की बाहें पकड कर कहा, "अरे चल री! अब ज्यादा तमाशा ना कर! तूने ही सबको यहां नहाने के लिए आने को तैयार किया और अब तू ही नखरे दिखा रही है? देख तूने मुझसे वादा किया था, की तू मेरे पति जीतूजी से कोई पर्दा नहीं करेगी l किया था की नहीं? याद कर तुम जब मेरी मालिश करने आयी थी तब? तूने कहा था की तुम मेरे पति से मालिश नहीं करवा सकती क्यूंकि तूने तुम्हारी माँ को वचन दिया था। पर तूने यह भी वादा किया था की तुम बाकी कोई भी पर्दा नहीं करेगी? कहा था ना? और जहां तक तुझे तैरना नहीं आता का सवाल है तो जीतूजी तुझे सीखा देंगे। जीतूजी तो तैराकी में एक्सपर्ट हैं। मैं भी थोड़ा बहुत तैर लेती हूँ। मुझे पता नहीं रोहित तैरना जानते हैं या नहीं?"

अपर्णा मन ही मन में काँप गयी। अगर उस समय श्रेया जो को यह पता चले की अपर्णा ने तो श्रेया के पति का लण्ड भी सहलाया था और उनका माल भी निकाल दिया था तो बेचारी दीदी का क्या हाल होगा? और अगर यह वह जान ले की जीतूजी ने भी अपर्णा के पुरे बदन को छुआ था तो क्या होगा? खैर, अपर्णा ने श्रेया की और प्यार भरी नज़रों से देखा और हामी भरते हुए कहा, "हाँ दीदी आप सही कह रहे हो। मैंने कहा तो था। पर मुझे उस कॉस्च्यूम में देख कर कहीं आपके पति जीतूजी मुझसे कुछ ज्यादा हरकत कर लेंगे तो क्या होगा? मैं तो यह सोच कर ही काँपने लगी हूँ। मेरे पति रोहित भी ऐसे ही हैं। वह तो थोड़ा बहुत तैर लेते हैं।" श्रेया ने हँस कर कहा, "कुछ नहीं करेंगे, मेरे पति। मैं उनको अच्छी तरह जानती हूँ। वह तुम्हारी मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। अगर तुम मना करोगी को तो वह तुम्हें छुएंगे भी नहीं। पर खबरदार तुम उन्हें छूने से मना मत करना! और तुम्हारे पति रोहित को तो मैं तैरना सीखा दूंगी। तू चल अब!"

अपर्णा ने हँस कर कहा, "दीदी, मेरी टाँग मत खींचो। मुझे जीतूजी पर पूरा भरोसा है। वह मेरे जीजाजी भी तो हैं।" "फिर तो तुम उनकी साली हुई। और साली तो आधी घरवाली होती है।" श्रेया ने अपर्णा को आँख मारते हुए कहा। अपर्णा ने श्रेया को कोहनी मारते हुए कहा, "बस करो ना दीदी!" और दोनों जनाना कपडे बदल ने के कमरे में चले गए।

जब अपर्णा और श्रेया स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर बाहर आयीं तब तक रोहित और जीतूजी भी तैरने वाली निक्कर पहन कर बाहर आ चुके थे। अपर्णा की नजर जीतूजी पर पड़ी तो वह उन्हें देख कर दंग रह गयी। जीतूजी शावर में नहा कर पुरे गीले थे। जीतूजी के कसरती गठित स्नायु वाली पेशियाँ जैसे कोई फिल्म के हीरो के जैसे छह बल पड़े हुए पैक वाले पेट की तरह थीं। उनके बाजुओं के स्नायु उतने शशक्त और उभरे हुए थे की अपर्णा मन किया की वह उन्हें सहलाये। जीतूजी के बिखरे हुए गीले काले घुंघराले घने बाल उनके सर पर कितने सुन्दर लग रहे थे। जीतूजी के चौड़े सीने पर भी घने काले बाल छाये हुए थे। अपने पति की छाती पर भी कुछ कुछ बाल तो थे, पर अपर्णा चाहती थी की उसके पति की छाती पर घने बाल हों। क्यूंकि छाती पर घने बाल अपर्णा को काफी आकर्षित करते थे। पर जब अपर्णा की नजर बरबस जीतूजी की निक्कर की और गयी तो वह देखती ही रह गयी। अपर्णा सोच रही थी की शायद उस समय जीतूजी का लण्ड खड़ा तो नहीं होगा। पर फिर भी जीतूजी की निक्कर के अंदर उनकी दो जाँघों के बिच इतना जबरदस्त बड़ा उभार था की ऐसा लगता था जैसे जीतूजी का लण्ड कूद कर बाहर आने के लिए तड़प रहा हो।

अपर्णा को तो भली भाँती पताथा की उस निक्कर में जीतूजी की जाँघों के बिच उनका कितना मोटा और लंबा लण्ड कोई नाग की तरह चुचाप छोटी सी जगह में कुंडली मारकर बैठा हुआ था और मौक़ा मिलते ही बाहर आने का इंतजार कर रहा था। अगर वह खड़ा हो गया तो शामत ही आ जायेगी। अपर्णा ने देखा तो जीतूजी भी उसे एकटक देख रहे थे। अपर्णा को जीतूजी की नजरें अपने बदन पर देख कर बड़ी लज्जा महसूस हुई। जब उसने कमरे में स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर आयने में अपने आप को देखा था तो उसे पता था की उसके करारे स्तन उस सूट में कितने बड़े बाहर की और निकले दिख रहे थे। अपर्णा की सुआकार गाँड़ पूरी नंगी दिख रही थी। उसके स्विमिंग कॉस्च्यूम की एक छोटी सी पट्टी अपर्णा की गाँड़ की दरार में गाँड़ के दोनों गालों के बिच अंदर तक घुसी हुई थी और गाँड़ को छुपाने में पूरी तरह नाकाम थी।

अपर्णा जानती थी की उस कॉस्च्यूम में उसकी गाँड़ पूरी नंगी दिख रही थी। अपर्णा की गाँड़ के एक गाल पर काला बड़ा सा तिल था। वह भी साफ़ साफ़ नजर आ रहा था। अपर्णा की गाँड़ के गालों के बिच में एक हल्का प्यारा छोटा सा खड्डा भी दिखाई देता था। जीतूजी की नजर उसकी गाँड़ पर गयी यह देख कर अपर्णा के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। वह नारी सुलभ लज्जा के कारण अपनी जांघों को एक दूसरे से चिपकाए हुए दोनों मर्दों के सामने खड़ी क्या छिपाने की कोशिश कर रही थी उसे भी नहीं पता था। आगे अपर्णा की चूत पर इतनी छोटी सी उभरी हुई पट्टी थी की उसकी झाँट के बाल अगर होते तो साफ़ साफ़ दीखते। अपर्णा ने पहले से ही अपन झाँटों के बाल साफ़ किये थे। अपर्णा की चूत का उभार उस कॉस्च्यूममें छिप नहीं सकता था। बस अपर्णा की चूत के होँठ जरूर उस छोटी सी पट्टी से ढके हुए थे।

अपर्णा शुक्र कर रही थी वह उस समय पूरी तरह गीली थी, क्यूंकि जीतूजी की जांघों के बिच उन का लम्बा लण्ड का आकार देख कर उसकी जाँघों के बिच से उसकी चूत में से उस समय उसका स्त्री रस चू रहा था। अगर अपर्णा उस समय गीली नहीं होती तो दोनों मर्द अपर्णा की जाँघों के बिच से चू रहे स्त्री रस को देख कर यह समझ जाते की उस समय वह कितनी गरम हो रही थी। अपर्णा ने अपने पति की और देखा तो वह श्रेया को निहारने में ही खोए हुए थे। स्विमिंग कॉस्च्यूम में श्रेया क़यामत सी लग भी तो रहीं थीं। श्रेया की जाँघें कमाल की दिख रहीं थीं। उन दो जांघों के बिच की उनकी चूत के ऊपर की पट्टी बड़ी मुश्किल से उनकी चूत की खूबसूरती का राज छुपा रहीं थीं। उनकी लम्बी और माँसल जांघें जैसे सारे मर्दों के लण्ड को चुनौती दे रही थीं। वहीँ उनकी नंगी गाँड़ की गोलाई अपर्णा की गाँड़ से भी लम्बी होने के कारण कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही थीं। श्रेया के घने और घुंघराले गीले बाल उनके पुरे चेहरे पर बिखरे हुए थे, उन्हें वह ठीक करने की कोशिश में लगी हुई थीं। उनकी पतली और लम्बी कमर निचे ज़रा सा पेट उसके निचे अचानक ही फुले हुए नितम्बोँ के कारण गिटार की तरह खूबसूरत लग रहा था। अपर्णा और श्रेया के स्तन मंडल एक सरीखे ही लग रहे थे।​
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