Update 14
हालांकि श्रेया का गिला कॉस्च्यूम थोड़ा ज्यादा महिन होने के कारण उनकी दो गोलाकार चॉकलेटी रंग के एरोला के बिच में स्थित फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ की झाँखी दे रहा था। श्रेया की नीली आँखें शरारती होते हुए भी उनकी गंभीरता दर्शा रहीं थीं। सबसे ज्यादा कामोत्तेजक श्रेया जी के होँठ थे। उन होँठों को मोड़कर कटाक्ष भरी आँखों से देखने की श्रेया की अदा जवाँ मर्दों के लिए जान लेवा साबित हो सकती थीं। जीतू जी उस बात का जीता जागता उदाहरण थे। दोनों कामिनियाँ अपने हुस्न की कामुकता के जादू से दोनों मर्दों को मन्त्रमुग्ध कर रहीं थीं। रोहित तो श्रेया के बदन से आँखें ऐसे गाड़े हुए थे की अपर्णा ने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें हिलाया और कहा, "चलोजी, हम झरने की और चलें?" तब कहीं जा कर रोहित इस धराधाम पर वापस लौटे।
अपर्णा अपने पति रोहित से चिपक कर ऐसे चल रही थी जिससे जीतूजी की नजर उसके आधे नंगे बदन पर ना पड़े। श्रेया को कोई परवाह नहीं थी की रोहित उनके बदन को कैसे ताड़ रहे थे। बल्कि रोहित की सहूलियत के लिए श्रेया अपनी टांगों को फैलाकर बड़े ही सेक्सी अंदाज में अपने कूल्हों को मटका कर चल रही थी जिससे रोहित को वह अपने हुस्न की अदा का पूरा नजारा दिखा सके। रोहित का लण्ड उनकी निक्कर में फर्राटे मारा रहा था। दोनों कामिनियों का जादू दोनों मर्दों के दिमाग में कैसा नशा भर रहा था वह रोहित ने देखा भी और महसूस भी किया। रोहित बार बार अपनी निक्कर एडजस्ट कर अपने लण्ड को सीधा और शांत रखनेकी नाकाम कोशिश कर रहेथे। श्रेया जी ने उनसे काफी समय से कुछ भी बात नहीं की थी। इस वजह से उन्हें लगा था की शायद श्रेया उनसे नाराज थीं। रोहित जानने के लिए बेचैन थे की क्या वजह थी की श्रेया उनसे बात नहीं कर रही थी।
जैसे ही श्रेया झरनेकी ओर चल पड़ी, रोहित जी भी अपर्णा को छोड़ कर भाग कर श्रेया के पीछे दौड़ते हुए चल दिए और श्रेया के साथ में चलते हुए झरने के पास पहुंचे। अपर्णा अपने पति के साथ चल रही थी। पर अपने पति रोहित को अचानक श्रेया के पीछे भागते हुए देख कर उसे अकेले ही चलना पड़ा। अपर्णा के बिलकुल पीछे जीतूजी आ रहे थे। अपर्णा जानती थी की उसके पीछे चलते हुए जीतूजी चलते चलते अपर्णा के मटकते हुए नंगे कूल्हों का आनंद ले रहे होंगे। अपर्णा सोच रही थी पता नहीं उस की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी के मन में क्या भाव होते होंगे? पर बेचारी अपर्णा, करे तो क्या करे? उसी ने तो सबको यहाँ आकर नहाने के लिए बाध्य किया था। अपर्णा भलीभांति जानती थी की जीतूजी भले कहें या ना कहें, पर वह उसे चोदने के लिए बेताब थे। अपर्णा ने भी जीतूजी के लण्ड जैसा लण्ड कभी देखा क्या सोचा भी नहीं था। कहीं ना कहीं उसके मन में भी जीतूजी के जैसा मोटा और लंबा लण्ड अपनी चूतमें लेने की ख्वाहिश जबरदस्त उफान मार रही थी। अपर्णा के मन में जीतूजी के लिए इतना प्यार उमड़ रहा था की अगर उसकी माँ के वचन ने उसे रोका नहीं होता तो वह शायद तब तक जीतूजी से चुदवा चुदवा कर गर्भवती भी हो गयी होती।
आगे आगे श्रेया उनके बिलकुल पीछे श्रेया से सटके ही रोहित, कुछ और पीछे अपर्णा और आखिर में जीतूजी चल पड़े। थोड़ी पथरीली और रेती भरी जमीन को पार कर वह सब झरने की और जा रहे थे। रोहित ने श्रेया से पूछा, "आखिर बात क्या है श्रेया? आप मुझसे नाराज हैं क्या?" श्रेया जी ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया, "भाई, हम कौन होते हैं, नाराज होने वाले?" रोहित ने पीछे देखा तो अपर्णा और जीतूजी रुक कर कुछ बात कर रहे थे। रोहित ने एकदम श्रेया का हाथ थामा और रोका और पूछा, "क्या बात है, श्रेया? प्लीज बताइये तो सही?" श्रेया की मन की भड़ास आखिर निकल ही गयी। उन्होंने कहा, "हाँ और नहीं तो क्या? आपको क्या पड़ी है की आप सोचें की कोई आपका इंतजार कर रहा है या नहीं? भाई जिसकी बीबी अपर्णा के जैसी खुबसुरत हो उसे किसी दूसरी ऐसी वैसी औरत की और देखने की क्या जरुरत है?" रोहित ने श्रेया का हाथ पकड़ा और दबाते हुए बोले, "साफ़ साफ़ बोलिये ना क्या बात है?" श्रेया ने कहा, "साफ़ क्या बोलूं? क्या मैं सामने चल कर यह कहूं, की आइये, मेरे साथ सोइये? मुझे चोदिये?" रोहित का यह सुनकर माथा ठनक गया। श्रेया क्या कह रहीं थीं? उतनी देर में वह झरने के पास पहुँच गए थे, और पीछे पीछे अपर्णा और जीतूजी भी आ रहे थे।
श्रेया ने रोहित की और देखा और कहा, "अभी कुछ मत बोलो। हम तैरते तैरते झरने के उस पार जाएंगे। तब अपर्णा और जीतूजी से दूर कहीं बैठ कर बात करेंगे।"
फिर श्रेया ने अपने पति जीतूजी की और घूम कर कहा, "डार्लिंग, यह तुम्हारी चेली अपर्णा को तैरना भी नहीं आता। अब तुम्हें मैथ्स के अलावा इसे तैरना भी सिखाना पडेगा। तुमने इससे मैथ्स सिखाने की तो कोई फ़ीस नहीं ली थी। पर तैरना सिखाने के लिए फ़ीस जरूर लेना। आप अपर्णा को यहाँ तैरना सिखाओ। मैं और रोहित वाटर फॉल का मजा लेते हैं।" यह कह कर श्रेया आगे चल पड़ी और रोहित को पीछे आने का इशारा किया। श्रेया और रोहित झरने में कूद पड़े और तैरते हुए वाटर फॉल के निचे पहुँच कर उंचाइसे गिरते हुए पानी की बौछारों को अपने बदन पर गिरकर बिखरते हुए अनुभव करने का आनंद ले रहे थे।
हालांकि वह काफी दूर थे और साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था पर अपर्णा ने देखा की श्रेया एक बार तो पानी की भारी धारके कारण लड़खड़ाकर गिर पड़ी और कुछ देर तक पानी में कहीं दिखाई नहीं दीं। उस जगह पानी शायद थोड़ा गहरा होगा। क्यूंकि इतने दूरसे भी रोहित के चेहरे पर एक अजीब परेशानी और भय का भाव अपर्णा को दिखाई दिया। अपर्णा स्वयं परेशान हो गयी की कहीं श्रेया डूबने तो नहीं लगीं। पर कुछ ही पलों में अपर्णा ने चैन की साँस तब ली जब जोर से इठलाते हँसते हुए श्रेया ने पानी के अंदर से अचानक ही बाहर आकर रोहित का हाथ पकड़ा और कुछ देर तक दोनों पानी में गायब हो गए। अपर्णा यह जानती थी की श्रेया एक दक्ष तैराक थीं। यह शिक्षा उन्हें अपने पति जीतूजी से मिली थी। अपर्णा ने सूना था की जीतूजी तैराकी में अव्वल थे। उन्होंने कई आंतरराष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में इनाम भी पाए थे। अपर्णा ने जीतूजी की तस्वीर कई अखबार में और सेना, आंतरराष्ट्रीय खेलकूद की पत्रिकाओं में देखि थी। उस समय अपर्णा गर्व अनुभव कर रही थी की उस दिन उसे ऐसे पारंगत तैराक से तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ सिखने को मिलेंगे। अपर्णा को क्या पता था की कभी भविष्य में उसे यह शिक्षा बड़ी काम आएगी।
फिलहाल अपर्णा की आँखें अपने पति और श्रेया जी की जल क्रीड़ा पर टिकी हुई थीं। उनदोनोंकी चालढाल को देखते हुए अपर्णा को यकीन तो नहीं था पर शक जरूर हुआ की उस दोपहर को अगर उन्हें मौक़ा मिला तो उसके पति रोहित उस वाटर फॉल के निचे ही श्रेया की चुदाई कर सकते हैं। यह सोचकर अपर्णाका बदन रोमांचित हो उठा। यह रोमांच उत्तेजना या फिर स्त्री सहज इर्षा के कारण था यह कहना मुश्किल था। अपर्णा के पुरे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी। अपर्णा भलीभांति जानती थी की उसके पति अच्छे खासे चुदक्कड़ थे। रोहित को चोदने में महारथ हासिल थी। किसी भी औरत को चोदते समय, वह अपनी औरत को इतना सम्मान और आनंद देते थे की वह औरत एक बार चुदने के बाद उनसे बार बार चुदवाने के लिए बेताब रहती थी। जब अपर्णा के पति रोहित अपनी पत्नी अपर्णा को चोदते थे तो उनसे चुदवाने में अपर्णा को गझब का मजा आता था।
अपर्णा ने कई बार दफ्तर की पार्टियों में लड़कियों को और चंद शादी शुदा औरतों को भी एक दूसरी के कानों में रोहित की चुदाई की तारीफ़ करते हुए सूना था। उस समय उन लड़कियों और औरतों को पता नहीं था की उनके बगल में खड़ीं अपर्णा रोहित की बीबी थी। शायद आज उसके पति रोहित उसी जोरदार जज्बे से श्रेया की भी चुदाई कर सकते हैं, यह सोच कर अपर्णा के मन में इर्षा, उत्तेजना, रोमांच, उन्माद जैसे कई अजीब से भाव हुए। अपर्णा की चूत तो पुरे वक्त झरने की तरह अपना रस बूँद बूँद बहा ही रही थी। अपनी दोनों जाँघों को एक दूसरे से कसके जोड़कर अपर्णा उसे छिपानेकी कोशिश कर रही थी ताकि जीतूजी को इसका पता ना चले। अपर्णा झरने के किनारे पहुँचते ही एक बेंच पर जा कर अपनी दोनों टाँगे कस कर एक साथ जोड़ कर बैठ गयी। जीतूजी ने जब अपर्णा को नहाने के लिए पानी में जाने से हिचकिचाते हुए देखा तो बोले, "क्या बात है? वहाँ क्यों बैठी हो? पानीमें आ जाओ।" अपर्णा ने लजाते हुए कहा," जीतूजी, मुझे आपके सामने इस छोटी सी ड्रेस में आते हुए शर्म आती है। और फिर मुझे पानी से भी डर लगता है। मुझे तैरना नहीं आता।"
जीतूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझसे शर्म आती है? इतना कुछ होने के बाद अब भी क्या तुम मुझे अपना नहीं समझती?" जब अपर्णा ने जीतूजी की बात का जवाब नहीं दिया तो जीतूजी का चेहरा गंभीर हो गया। वह उठ खड़े हुए और पानी के बाहर आ गए। बेंच पर से तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछते हुए कैंप की और जाने के लिए तैयार होते हुए बोले, "अपर्णा देखिये, मैं आपकी बड़ी इज्जत करता हूँ। अगर आप को मेरे सामने आने में और मेरे साथ नहाने में हिचकि-चाहट होती है क्यूंकि आप मुझे अपना करीबी नहीं समझतीं तो मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से श्रेया और रोहित के साथ नहाइये और वापस कैंप में आ जाइये। मैं आप सब का वहाँ ही इंतजार करूंगा।" यह कह कर जब जीतूजी खड़े हो कर कैंप की और चलने लगे तब अपर्णा भाग कर जीतूजी के पास पहुंची। अपर्णा ने जीतूजी को अपनी बाहों में ले लिया और वह खुद उनकी बाँहों में लिपट गयी। अपर्णा की आँखों से आंसू बहने लगे।
अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, ऐसे शब्द आगे से अपनी ज़बान से कभी मत निकालिये। मैं आपको अपने आप से भी ज्यादा चाहती हूँ। मैं आपकी इतनी इज्जत करती हूँ की आपके मन में मेरे लिये थोड़ा सा भी हीनता का भाव आये यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। सच कहूं तो मैं यह सोच रही थी की कहीं मुझे इस कॉस्च्यूम में देख कर आप मुझे हल्कट या चीप तो नहीं समझ रहे?" जीतूजी ने अपर्णा को अपनी बाहों में कस के दबाते हुए बड़ी गंभीरता से कहा, "अरे अपर्णा! कमाल है! तुम इस कॉस्च्यूम में कोई भी अप्सरा से कम नहीं लग रही हो! इस कॉस्च्यूम में तो तुम्हारा पूरा सौंदर्य निखर उभर कर बाहर आ रहा है। भगवान ने वैसे ही स्त्रियों को गजब की सुंदरता दी है और उनमें भी तुम तो कोहिनूर हीरे की तरह भगवान की बेजोड़ रचना हो! अगर तुम मेरे सामने निर्वस्त्र भी खड़ी हो जाओ तो भी मैं तुम्हें चीप या हलकट नहीं सोच सकता। ऐसा सोचना भी मेरे लिए पाप के समान है। क्यूंकि तुम जितनी बदन से सुन्दर हो उससे कहीं ज्यादा मन से खूबसूरत हो l हाँ, मैं यह नहीं नकारूँगा की मेरे मन में तुम्हें देख कर कामुकता के भाव जरूर आते हैं। मैं तुम्हें मन से तो अपनी मानता ही हूँ, पर मैं तुम्हें तन से भी पूरी तरह अपनी बनाना तहे दिल से चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की हम दोनों के बदन एक हो जाएँ। पर मैं तब तक तुम पर ज़रा सा भी दबाव नहीं डालूंगा जब तक की तुम खुद सामने चलकर अपने आप मेरे सामने घुटने टेक कर अपना सर्वस्व मुझे समर्पण नहीं करोगी l अगर तुम मानिनी हो तो मैं भी कोई कम नहीं हूँ। तुम मुझे ना सिर्फ बहुत प्यारी हो, मैं तुम्हारी बहुत बहुत इज्जत करता हूँ। और वह इज्जत तुम्हारे कपड़ों की वजह से नहीं है।"
जीतूजी के अपने बारे में ऐसे विचार सुनकर अपर्णा की आँखों में से गंगा जमुना बहने लगी। अपर्णा ने जीतूजी के मुंह पर हाथ रख कर कहा, "जीतूजी, आप से कोई जित नहीं सकता। आप ने चंद पलों में ही मेरी सारी उधेङबुन ख़त्म कर दी। अब मेरी सारी लज्जा और शर्म आप पर कुर्बान है l मैं शायद तन से पूरी तरह आपकी हो ना सकूँ, पर मेरा मन आपने जित लिया है। मैं पूरी तरह आपकी हूँ। मुझे अब आपके सामने कैसे भी आने में कोई शर्म ना होगी। अगर आप कहो तो मैं इस कॉस्च्यूम को भी निकाल फैंक सकती हूँ।" जीतू जी ने मुस्कुराते हुए अपर्णा से कहा, "खबरदार! ऐसा बिलकुल ना करना। मेरी धीरज का इतना ज्यादा इम्तेहान भी ना लेना। आखिर मैं भी तो कच्ची मिटटी का बना हुआ इंसान ही हूँ। कहीं मेरा ईमान जवाब ना दे दे और तुम्हारा माँ को दिया हुआ वचन टूट ना जाए!" अपर्णा अब पूरी तरह आश्वस्त हो गयी की उसे जीतूजी से किसी भी तरह का पर्दा, लाज या शर्म रखने की आवश्यकता नहीं थी। जब तक अपर्णा नहीं चाहेगी, जीतूजी उसे छुएंगे भी नहीं। और फिर आखिर जीतूजी से छुआ ने में तो अपर्णा को कोई परहेज रखने की जरुरत ही नहीं थी।
अपर्णा ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "जीतू जी, मुझे तैरना नहीं आता। इस लिए मुझे पानी से डर लगता है। मैं आपके साथ पानी में आती हूँ। अब आप मेरे साथ जो चाहे करो। चाहो तो मुझे बचाओ या डूबा दो। मैं आपकी शरण में हूँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा तैरना सीखा दोगे तो मैं तैरने की कोशिश करुँगी।" जीतूजी ने हाथ में रखा तौलिया फेंक कर पानी में उतर कर मुस्कुराते हुए अपनी बाँहें फैला कर कहा, "फिर आ जाओ, मेरी बाँहों में।"
दूर वाटर फॉल के निचे नहा रहे श्रेया और रोहित ने जीतूजी और अपर्णा के बिच का वार्तालाप तो नहीं सूना पर देखा की अपर्णा बेझिझक सीमेंट की बनी किनार से छलांग लगा कर जीतूजी की खुली बाहों में कूद पड़ी। श्रेया ने फ़ौरन रोहित को कहा, "देखा, रोहित, आपकी बीबी मेरे पति की बाँहों में कैसे चलि गयी? लगता है वह तो गयी!" रोहित ने श्रेया की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। दोनों वाटर फॉल के निचे कुछ देर नहा कर पानी में चलते चलते वाटर फॉल की दूसरी और पहुंचे। वह दोनों अपर्णा और जीतूजी से काफी दूर जा चुके थे और उन्हें अपर्णा और जीतूजी नहीं दिखाई दे रहे थे। वाटर फॉल के दूसरी और पहुँचतेही रोहित ने श्रेया से पूछा, "क्या बात है? आप अपना मूड़ क्यों बिगाड़ कर बैठी हैं?" श्रेया ने कुछ गुस्से में कहा, "अब एक बात मेरी समझ में आ गयी है की मुझमे कोई आकर्षण रहा नहीं है।"
रोहित ने श्रेया की बाँहें थाम कर पूछा, "पर हुआ क्या यह तो बताइये ना? आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं?"
श्रेया ने कहा, "भाई घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत मुझ पर तो जरूर लागू होती है पर अपर्णा पर नहीं होती।"
रोहित: "पर ऐसा आप क्यों कहते हो यह तो बताओ?"
श्रेया: "और नहीं तो क्या? अपनी बीबी से घर में भी पेट नहीं भरा तो आप ट्रैन में भी उसको छोड़ते नहीं हो, तो फिर में और क्या कहूं? हम ने तय किया था इस यात्रा दरम्यान आप और मैं और जीतूजी और अपर्णा की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी बीबी के बिस्तरेमें ही घुस गए। क्या आपको मैं नजर नहीं आयी?" श्रेया फिर जैसे अपने आप को ही उलाहना देती हुई बोली, "हाँ भाई, मैं क्यों नजर आउंगी? मेरा मुकाबला अपर्णा से थोड़े ही हो सकता है? कहाँ अपर्णा, युवा, खूबसूरत, जवान, सेक्सी और कहाँ मैं, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।" रोहित का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आखिर श्रेया ने उन्हें अपनी बीबी के बिस्तर में जाते हुए देख ही लिया था। अब जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छुपाने से क्या फायदा?
रोहित ने श्रेया के करीब जाकर उनकी ठुड्डी (चिबुक/दाढ़ी) अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते हुए बोले, "श्रेया, सच सच बताइये, अगर मैं आपके बिस्तर में आता और जैसे आपने मुझे पकड़ लिया वैसे कोई और देख लेता, तो हम क्या जवाब देते? वैसे मैं आपके बिस्तर के पास खड़ा काफी मिनटों तक इस उधेड़बुन में रहा की मैं क्या करूँ? आपके बिस्तर में आऊं या नहीं? आखिर में मैंने यही फैसला किया की बेहतर होगा की हम अपनी प्रेम गाथा बंद दीवारों में कैद रखें। क्या मैंने गलत किया?"
श्रेया ने रोहित की और देखा और उन्हें अपने करीब खिंच कर गाल पर चुम्मी करते हुए बोली, "मेरे प्यारे! आप बड़े चालु हो। अपनी गलती को भी आप ऐसे अच्छाई में परिवर्तित कर देते हो की मैं क्या कोई भी कुछ बोल नहीं पायेगा। शायद इसी लिए आप इतने बड़े पत्रकार हो। कोई बात नहीं। आप ने ठीक किया l पर अब ध्यान रहे की मैं अपनी उपेक्षा बर्दास्त नहीं कर सकती। मैं बड़ी मानिनी हूँ और मैं मानती हूँ की आप मुझे बहुत प्यार करते हैं और मेरी बड़ी इज्जत करते हैं। आप की उपेक्षा मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। वचन दो की मुझे आगे चलकर ऐसी शिकायतका मौक़ा नहीं दोगे?"
रोहित ने श्रेया को अपनी बाँहों में भर कर कहा, "श्रेया जी मैं आगे से आपको ऐसी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा। पर मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।"
श्रेया जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से देख कर कहा, "क्या?"
रोहित ने कहा, "आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। जिंदगी में वैसेही बहुत उलझन, ग़म और परेशानियाँ हैं। जब हम दोनों अकेले में मिलते हैं तब मैं चाहता हूँ की कुछ अठखेलियाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बातें हों। यह सच है की मैं आपकी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और ज्ञानसे बहुत प्रभावित हूँl पर वह बातें हम तब करें जब हम एक दूसरे से औपचारिक रूप से मिलें। जब हम इतने करीब आ गए हैं और उसमें भी जब हम मज़े करने के लिए मिलते हैं तो फिर भाड़में जाए औपचारिकता! हम एक दूसरे को क्यों "आप" कह कर निरर्थक खोखला सम्मान देने का प्रयास करते हैं? श्रेया तुम्हारा जो खुल्लमखुल्ला बात करने का तरिका है ना, वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो क्या बात है!"
श्रेया रोहित की बातें सुन थोड़ी सोच में पड़ गयीं। उन्होंने नज़रें उठाकर रोहित की और देखा और पूछा, " रोहित तुम अपर्णा से बहोत प्यार करते हो। है ना?"
रोहित श्रेया की बात सुनकर कुछ झेंप से गए। उन दोनों के बिच अपर्णा कहाँ से आ गयी? रोहित के चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई देख कर श्रेया ने कहा, "जो तुम ने कहा वह अपर्णा का स्वभाव है। मैं श्रेया हूँ अपर्णा नहीं। तुम क्या मुझमें अपर्णा ढूँढ रहे हो?"
यह सुनकर रोहित को बड़ा झटका लगा। रोहित सोचने लगे, बात कहाँ से कहाँ पहुँच गयी? उन्होंने अपने आपको सम्हालते हुए श्रेया के करीब जाकर कहा, "हाँ यह सच है की मैं अपर्णा को बहुत प्यार करता हूँ। तुम भी तो जीतूजी को बहुत प्यार करती हो। बात वह नहीं है l बात यह है की जब हम दोनों अकेले हैं और जब हमें यह डर नहीं की कोई हमें देख ना ले या हमारी बातें सुन ना लें तो फिर क्यों ना हम अपने नकली मिजाज का मुखौटा निकाल फेंके, और असली रूप में आ जायें? क्यों ना हम कुछ पागलपन वाला काम करें?"
"अच्छा? तो मियाँ चाहते हैं, की मैं यह जो बिकिनी या एक छोटासा कपडे का टुकड़ा पहन कर तुम्हारे सामने मेरे जिस्म की नुमाइश कर रही हूँ, उससे भी जनाब का पेट नहीं भरा? अब तुम मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो क्या?" शरारत भरी मुस्कान से श्रेया रोहित की और देखा तो पाया की रोहित श्रेया की इतनी सीधी और धड़ल्ले से कही बात सुनकर खिसियानी सी शक्ल से उनकी और देख रहे थे। श्रेया कुछ नहीं बोली और सिर्फ रोहित की और देखते ही रहीं। रोहित ने श्रेया के पीछे आकर श्रेया को अपनी बाहों में ले लिया और श्रेया के पीछे अपना लण्ड श्रेया की गाँड़ से सटा कर बोले, "ऐसे माहौल में मैं श्रेयाजी नहीं श्रेया चाहता हूँ।" श्रेया ने आगे झुक कर रोहित को अपने लण्ड को श्रेया की गाँड़ की दरार में सटाने का पूरा मौक़ा देते हुए रोहित की और पीछे गर्दन घुमाकर देखा, और बोली, "मैं भी तो ऐसे माहौल में इतने बड़े पत्रकार और बुद्धिजीवी को नहीं सिर्फ रोहित ही चाहती हूँ। मैं महसूस करना चाहती हूँ की इतने बड़े सम्मानित व्यक्ति एक औरत की और आकर्षित होते हैं तो उसके सामने कैसे एक पागल आशिक की तरह पेश आते हैं।"
रोहित ने कहा, "और हाँ यह सच है की मैं यह जो कपडे का छोटासा टुकड़ा तुमने पहन रखा है, वह भी तुम्हारे तन पर देखना नहीं चाहता। मैं सिर्फ और सिर्फ, भगवान ने असलियत में जैसा बनाया है वैसी ही श्रेया को देखना चाहता हूँ। और दूसरी बात! मैं यहां कोई विख्यात सम्पादक या पत्रकार नहीं एक आशिक के रूप में ही तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ।" पर श्रेया तो आखिरमें श्रेया ही थी ना? उसने पट से कहा, "यह साफ़ साफ़ कहो ना की तुम मुझे चोदना चाहते हो?" रोहित श्रेया की अक्खड़ बात सुनकर कुछ झेंप से गए पर फिर बोले, "श्रेया, ऐसी बात नहीं है। अगर चुदाई प्यार की ही एक अभिव्यक्ति हो, मतलब प्यार का ही एक परिणाम हो तो उसमें गज़ब की मिठास और आस्वादन होता है l पर अगर चुदाई मात्र तन की आग बुझाने का ही एक मात्र जरिया हो तो वह एक तरफ़ा स्वार्थी ना भी हो तो भी उसमें एक दूसरे की हवस मिटाने के अलावा कोई मिठास नहीं होती।"
रोहित की बात सुन श्रेया मुस्कुरायी। उसने रोहित के हाथों को प्यार से अपने स्तनोँ को सहलाते हुए अनुभव किया। अपने आपको सम्हालते हुए श्रेया ने इधर उधर देखा। वह दोनों वाटर फॉल के दूसरी और जा चुके थे। वहाँ एक छोटा सा ताल था और चारों और पहाड़ ही पहाड़ थे। किनारे खूबसूरत फूलों से सुसज्जित थे। बड़ा ही प्यार भरा माहौल था। रोहित और श्रेया दोनों ही एक छोटी सी गुफा में थे ओर गुफा एक सिरे से ऊपर पूरी खुली थी और सूरज की रौशनी से पूरी तरह उज्जवलित थी। जैसा की जीतूजी ने कहा था, यह जगह ऐसी थी जहां प्यार भरे दिल और प्यासे बदन एक दूसरे के प्यार की प्यास और हवस की भूख बिना झिझक खुले आसमान के निचे मिटा सकते थे। प्यार भरे दिल और वासना से झुलसते हुए बदन पर निगरानी रखने वाला वहाँ कोई नहीं था। अपर्णा और जीतूजी वाटर फॉल के दूसरी और होने के कारण नजर नहीं आ रहे थे। श्रेया अपनी स्त्री सुलभ जिज्ञासा को रोक नहीं पायी और श्रेया ने वाटर फॉल के निचे जाकर वाटर फॉल के पानी को अपने ऊपर गिरते हुए दूर दूसरे छोर की और नज़र की तो देखा की उसके पति जीतूजी झुके हुए थे और उनकी बाँहों में अपर्णा पानी की परत पर उल्टी लेटी हुई हाथ पाँव मारकर तैरने के प्रयास कर रही थी।
श्रेया जानती थी की उस समय अपर्णा के दोनों बूब्स जीतूजी की बाँहों से रगड़ खा रहे होंगे, जीतूजी की नजर अपर्णा की करारी नंगी गाँड़ पर चिपकी हुई होगी। अपर्णा को अपने इतने करीब पाकर जीतूजी का तगड़ा लण्ड कैसे उठ खड़ा हो गया होगा यह सोचना श्रेया के लिए मुश्किल नहीं था। पता नहीं शायद अपर्णा को भी जीतूजी का खड़ा और मोटा लण्ड महसूस हुआ होगा। अपने पति को कोई और औरत से अठखेलियां करते हुए देख कर कुछ पलों के लिए श्रेया के मन में स्त्री सुलभ इर्षा का अजीब भाव उजागर हुआ। यह स्वाभाविक ही था। इतने सालों से अपने पति के शरीर पर उनका स्वामित्व जो था! फिर श्रेया सोचने लगी, "क्या वाकई में उनका अपने पति पर एकचक्र स्वामित्व था?" शायद नहीं, क्यूंकि श्रेया ने स्वयं जीतूजी को कोई भी औरत को चोदने की छूट दे रक्खी थी l पर जहां तक श्रेया जानती थी, शादी के बाद शायद पहली बार जीतूजी के मन में अपर्णा के लिए जो भाव थे ऐसे उसके पहले किसी भी औरत के लिए नहीं आये थे।
अपने पति और रोहित की पत्नी को एकदूसरे के साथ अठखेलियाँ खेलते हुए देख कर जब श्रेया वापस लौटी तो उसे याद आया की रोहित चाहते थे की उसे श्रेया बनना था l श्रेया फिर रोहित को बाँहों में आगयी और बोली, "जाओ और देखो कैसे तुम्हारी बीबी मेरे पति से तैराकी सिख रही है। लगता है वह दोनों तो भूल ही गए हैं की हम दोनों भी यहाँ हैं।" रोहित ने श्रेया की बात को सुनी अनसुनी करते हुए कहा, "उनकी चिंता मत करो। मैं दोनों को जानता हूँ। ना तो वह दोनों कुछ करेंगे और ना वह इधर ही आएंगे। पता नहीं उन दोनों में क्या आपसी तालमेल या समझौता है की कुछ ना करते हुए भी वह एक दूसरे से चिपके हुए ही रहते हैं।" श्रेया ने कहा, "शायद तुम्हारी बीबी मेरे पति से प्यार करने लगी है।" रोहित ने कहा, "वह तो कभी से आपके पति से प्यार करती है। पर आप भी तो मुझसे प्यार करती हो." श्रेया ने रोहित का हाथ झटकते हुए कहा, "अच्छा? आपको किसने कहा की मैं आपसे प्यार करती हूँ?" रोहित ने फिरसे श्रेया को अपनी बाँहों में ले कर ऐसे घुमा दिया जिससे वह उसके पीछे आकर श्रेया की गाँड़ में अपनी निक्कर के अंदर खड़े लण्ड को सटा सके।
फिर श्रेया के दोनों स्तनोँ को अपनी हथेलियों में मसलते हुए रोहित ने श्रेया की गाँड़ के बिच में अपना लण्ड घुसाने की असफल कोशिश करते हुए कहा, "आपकी जाँघों के बिच में से जो पानी रिस रहा है वह कह रहा है।" श्रेया ने कहा, "आपने कैसे देखा की मेरी जाँघों के बिच में से पानी रिस रहा है? मैं तो वैसे भी गीली हूँ।" रोहित ने श्रेया की जाँघों के बिच में अपना हाथ ड़ालते हुए कहा, "मैं कबसे और क्या देख रहा था?" फिर श्रेया की जाँघों के बिच में अपनी हथेली डाल कर उसकी सतह पर हथेली को सहलाते हुए रोहित ने कहा, "यह देखो आपके अंदरसे निकला पानी झरने के पानी से कहीं अलग है। कितना चिकना और रसीला है यह!" यह कहते हुए रोहित अपनी उँगलियों को चाटने लगे। श्रेया रोहित की उंगलियों को अपनी चूत के द्वार पर महसूस कर छटपटा ने लगी। अपनी गाँड़ पर रोहित जी का भारी भरखम लण्ड उनकी निक्कर के अंदर से ठोकर मार रहा था। फिर श्रेया ने वाकई में महसूस किया की उसकी चूत में से झरने की तरह उसका स्त्री रस चू रहा था। वह रोहित की बाँहों में पड़ी उन्माद से सराबोर थी और बेबस होने का नाटक कर ऐसे दिखावा कर रही थीं जैसे रोहित ने उनको इतना कस के पकड़ रक्खा था की वह निकल ना सके।
श्रेया ने दिखावा करते हुए कहा, "रोहितजी छोडो ना?" रोहित ने कहा, "पहले बोलो, रोहित। रोहितजी नहीं।" श्रेया ने जैसे असहाय हो ऐसी आवाज में कहा, "अच्छा भैय्या रोहित! बस? अब तो छोडो?"
रोहित ने कहा, " भैय्या? तुम सैयां को भैय्या कहती हो?"
श्रेयाने नाक चढ़ाते हुए पूछा, "अच्छा? अब तुम मेरे सैयां भी बन गए? दोस्त की बीबी को फाँस ने में लगे हो? दोस्त से गद्दारी ठीक बात नहीं।"
रोहित ने कहा, "श्रेया, दोस्त की बीबी को मैं नहीं फाँस रहा। दोस्त की बीबी खुद फँस ने के लिए तैयार है। और फिर दोस्त से गद्दारी कहाँ की? गद्दारी तो अब होती ही जब किसी की प्यारी चीज़ उससे छीनलो और बदलेमें अंगूठा दिखाओ l मैंने उनसे तुम्हें छीना नहीं, कुछ देर के लिए उधार ही माँगा है। और फिर मैंने उनको अंगूठा भी नहीं दिखाया, बदले में मेरे दोस्त को अकेला थोड़े ही छोड़ा है? देखो वह भी तो किसी की कंपनी एन्जॉय कर रहा है। और वह कंपनी उनको मेरी पत्नी दे रही है।"
श्रेया रोहित को देखती ही रही। उसने सोचा रोहित जितने भोले दीखते हैं उतने हैं नहीं। श्रेया ने कहा, "तो तुम मुझे जीतूजी के साथ पत्नी की अदला-बदली करके पाना चाहते हो?"
रोहित ने फौरन सर हिलाए हुए कहा, "श्रेया, आपकी यह भाषा अश्लील है। मैं कोई अदला-बदली नहीं चाहता। देखिये अगर आप मुझे पसंद नहीं करती हैं तो आप मुझे अपने पास नहीं फटकने देंगीं। उसी तरह अगर मेरी पत्नी अपर्णा जीतूजी को ना पसंद करे तो वह उनको भी नजदीक नहीं आने देगी। मतलब यह पसंदगी का सवाल है। श्रेया मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम्हें मंजूर है?"
श्रेया ने कहा, "एक तो जबरदस्ती करते हो और ऊपर से मेरी इजाजत माँग रहे हो?"
रोहित एकदम पीछे हट गए। उनके चेरे पर निराशा और गंभीरता साफ़ दिख रही थी। रोहित बोले, "श्रेया, कोई जबरदस्ती नहीं। प्यार में कोई जबरदस्ती नहीं होती।"
श्रेया को रोहित के चेहरे के भाव देख कर हँसी आ गयी। वह अपनी आँखें नचाती हुई बोली, "अच्छा जनाब! आप कामातुर औरत की भाषा भी नहीं समझते? अरे अगर भारतीय नारी जब त्रस्त हो कर कहती है 'खबरदार आगे मत बढ़ना' तो इसका तो मतलब है साफ़ "ना"। ऐसी नारी से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए l पर वह जब वासना की आग में जल रही होती है और फिर भी कहती है, "छोडो ना? मुझे जाने दो।", तो इसका मतलब है "मुझे प्यार कर के मना कर चुदवाने के लिए तैयार करो तब मैं सोचूंगी।" पर वह जब मुस्काते हुए कहती है "मैं सोचूंगी" तो इसका मतलब है वह तुम्हें मन ही मन से कोस रही है और इशारा कर रह है की "मैं तैयार हूँ। देर क्यों कर रहे हो?" अगर वह कहे "हाँ" तो समझो वह भारतीय नहीं है।"
रोहित श्रेया की बात सुनकर हंस पड़े। उन्होंने कहा, "तो फिर आप क्या कहती हैं?"
श्रेया ने शर्मा कर मुस्काते हुए कहा, "मैं सोचूंगी।"
रोहित ने फ़ौरन श्रेया की गाँड़ में अपनी निक्कर में फर्राटे मार रहा अपना लण्ड सटा कर श्रेया के करारे स्तनोँ को उसकी बिकिनीके अंदर अपनी उंगलियां घुसाकर उनको मसलते हुए कहा, "अब मैं सिर्फ देखना नहीं और भी बहुत कुछ चाहता हूँ। पर सबसे पहले मैं अपनी श्रेया को असली श्रेया के रूप में बिना किसी आवरण के देखना चाहता हूँ।" ऐसा कह कर रोहित ने श्रेया की कॉस्च्यूम के कंधे पर लगी पट्टीयों को श्रेया की दोनों बाजुओं के निचे की ओर सरका दीं। जैसे ही पट्टियाँ निचे की और सरक गयीं तो रोहित ने उनको निचेकी ओर खिसका दिया और श्रेया के दोनों उन्मत्त स्तनोंको अनावृत कर दिए। श्रेया के स्तन जैसे ही नंगे हो गए की रोहित की आँखें उनपर थम ही गयीं। श्रेया के स्तन पुरे भरे और फुले होने के बावजूद थोड़े से भी झुके हुए हैं नहीं थे। श्रेया के स्तनों की चोटी को अपने घेरे में डाले हुए उसके गुलाबी एरोला ऐसे लगते थे जैसे गुलाबी रंग का छोटा सा जापानी छाता दो फूली हुई निप्पलोँ के इर्दगिर्द फ़ैल कर स्तनोँ को और ज्यादा खूबसूरत बना रहे हों। बीचो बिच फूली हुई निप्पलेँ भी गुलाबी रंग की थीं। एरोला की सतह पर जगह जगह फुंसियां जैसी उभरी हुईं त्वचा स्तनों की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती थीं। साक्षात् मेनका स्वर्ग से निचे उतर कर विश्वामित्र का मन हरने आयी हो ऐसी खूबसूरती अद्भुत लग रही थी।
श्रेया की कमर रेत घडी के सामान पतली और ऊपर स्तनोँ काऔर निचे कूल्हों के उभार के बिच अपनी अनूठी शान प्रदर्शित कर रही थी। श्रेया की नाभि की गहराई कामुकता को बढ़ावा दे रही थी। श्रेया की नाभि के निचे हल्का सा उभार और फिर एकदम चूत से थोडासा ऊपर वाला चढ़ाव और फिर चूतकी पंखुडियों की खाई देखते ही बनती थी। सबसे ज्यादा खूबसूरत श्रेया की गाँड़ का उतारचढ़ाव था। उन उतारचढ़ाव के ऊपर टिकी हुई रोहित की नजर हटती ही नहीं थी। और उस गाँड़ के दो खूबसूरत गालों की तो बात ही क्या? उन दो गालों के बिच जो दरार थी जिसमें श्रेया की कॉस्च्यूम के कपडे का एक छोटासा टुकड़ा फँसा हुआ था वह श्रेया की गाँड़ की खूबसूरती को ढकनेमें पूरी तरह असफल था।
रोहित का धीरज अब जवाब देने लगा था। अब वह श्रेया को पूरी तरह अनावृत (याने नग्न रूप में) देखना चाहते थे। रोहित ने श्रेया की कमर पर लटका हुआ उनका कॉस्टूयूम और निचे, श्रेया के पॉंव की और खिसकाया। श्रेया ने भी अपने पाँव बारी बारी से उठाकर उस कॉस्टूयूम को पाँव के निचे खिसका कर झुक कर उसे उठा लिया और किनारे पर फेंक दिया। अब श्रेया छाती तक गहरे पानी में पूरी तरह नंगी खड़ी थी। ना चाहते हुए भी रोहित नग्न श्रेयाकी खूबसूरती की नंगी अपर्णा से तुलना करने से अपने आपको रोक ना सका। हलांकि अपर्णा भी बलाकि खूबसूरत थी और नंगी अपर्णा कमाल की सुन्दर और सेक्सी थी, पर श्रेया में कुछ ऐसी कशिश थी जो अतुलनीय थी। हर मर्द को अपनी बीबी से दूसरे की बीबी हमेशा ज्यादा ही सुन्दर लगती है। रोहित ने नंगी श्रेया को घुमा कर अपनी बाँहों में आसानी से उठा लिया। हलकीफुलकी श्रेया को पानी में से उठाकर रोहित पानी के बाहर आये और किनारे रेतके बिस्तर में उसे लिटा कर रोहित उसके पास बैठ गए और रेत पर लेटी हुई नग्न श्रेया के बदन को ऐसे प्यार और दुलार से देखने लगे जैसे कई जन्मों से कोई आशिक अपनी माशूका को पहली बार नंगी देख रहा हो। ऐसे अपने पुरे बदन को घूरते हुए देख श्रेया शर्मायी और उसने रोहितकी ठुड्डी अपनी उँगलियों में पकड़ कर पूछा, "ओये! क्या देख रहे हो? इससे पहले किसी नंगी औरत को देखा नहीं क्या? क्या अपर्णा ने तुम्हें भी अपना पूरा नंगा बदन दिखाया नहीं?"
श्रेया की बात सुनकर रोहित सकपका गए और बोले, "ऐसी कोई बात नहीं, पर श्रेया तुम्हारी सुंदरता कमाल है। अब मैं समझ सकता हूँ की कैसे जीतूजी जैसे हरफनमौला आशिक को भी तुमने अपने हुस्न के जादू में बाँध रखा है।" रोहित फिर उठे और उठ कर रेत पर लेटी हुई श्रेया को अपनी दोनों टाँगों के बिच में लेते हुए श्रेया के बदन पर झुक कर अपना पूरा लम्बा बदन श्रेया के ऊपर से सटाकर उस पर ऐसे लेटे जिससे उसका पूरा वजन श्रेया पर ना पड़े। फिर अपने होँठों को श्रेया के होँठों से सटाकर उसे चुम्बन करने लगे। श्रेयाने भी रोहित के होँठों को अपने होँठों का रस चूमने का पूरा अवसर दिया और खुद भी बार बार अपना पेंडू उठाकर रोहित के फूल कर उठ खड़े हुए लण्ड का अपनी रस रिस रही चूत पर महसूस करने लगी। ऐसे ही लेटे हुए दो बदन एक दूसरे को महसूस करने में और एक दूसरे के बदन की प्यार और हवस की आग का अंदाज लगाने में मशगूल हो गए। उन्हें समय को कोई भी ख्याल नहीं था। श्रेया रोहित के होँठों को चूसकर उनकी लार बड़े प्यार से निगल रही थी। श्रेया की प्यासी चूत में गजब की मचलन हो रही थी। अनायास ही श्रेया का हाथ अपनी जाँघों के बिच चला गया।
श्रेया रोहित का लण्ड अपनी प्यासी चूत में डलवाने के लिए बेताब हो रही थी। जब रोहित श्रेया के होँठों का रस चूसने में लगे हुए थे तब श्रेया अपनी उँगलियों से अपनी चूत के ऊपरी हिस्से वाले होँठों को हिला रही थी। रोहित ने महसूस किया की श्रेया की चूत में अजीब सी हलचल होनी शुरू हो चुकी थी। रोहित श्रेया के ऊपर ही घूम कर अपना मुंह श्रेया की जाँघों के बिच में ले आये। रोहित का लण्ड श्रेया के मुंह को छू रहा था। श्रेया की चूत तब रोहित की प्यासी आँखों के सामने थी। श्रेया की चूत की झाँटें श्रेया ने इतने प्यार से साफ़ की थी की बस थोडेसे हलके हलके बाल नजर आ रहे थे। रोहित को बालों से भरी हुई चूत अच्छी नहीं लगती थी। वह हमेशा अपनी पत्नी अपर्णा की चूत भी साफ़ देखना चाहते थे। कई बार तो वह खुद ही अपर्णा की चूत की सफाई कर देते थे। श्रेया अपनी चूत में उंगलियां डाल कर अपनी उत्तजेना बढ़ा रही थी। रोहित ने श्रेया की उंगलियां हटाकर वहाँ अपनी जीभ रख दी। श्रेया की टाँगों को और चौड़ी कर श्रेया की चूत के द्वार पर त्वचा को रोहित चाटने लगे। अपनी जीभ की नोक को श्रेया की संवेदनशील त्वचा पर कुरेदते हुए रोहित श्रेया की चुदवाने की कामना को एक उन्माद के स्तर पर वह पहुंचाना चाहते थे। रोहित की जीभ लप लप श्रेया की चूत को चाटने और कुरेदने लगी। यह अनुभव श्रेया के लिए बड़ाही रोमांचक था क्यूंकि उसके पति जीतूजी शायद ही कभी अपनी बीबी की चूत को चाटते थे।
दूसरी तरफ रोहित का लण्ड एकदम घंटे की तरह खड़ा और कड़ा हो चुका था। श्रेया ने रोहित के निक्कर की इलास्टिकमें अपनी उंगली फँसायी और निक्कर को टांगो की और खिसकाने लगी। श्रेया रोहित का लण्ड देखना और महसूस करना चाहती थी। श्रेया ने रोहित की निक्कर को पूरी तरह उनके पाँव से निचे की और खिसका दिया ताकि रोहित अपने पाँव को मोड़ कर निक्कर को निकाल फेंक सके। निक्कर के निकलते ही, रोहित का खड़ा मोटा लण्ड श्रेया के मुंह के सामने प्रस्तुत हुआ। श्रेया ने रोहित का लंबा और मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और उसे प्यार से हिलाने और सहलाने लगी। श्रेया ने रोहित को पूछा, "रोहित, एक बात बताओ। तुमने मुझे कभी अपने सपने में देखा है? क्या मेरे साथ सपने में तुमने कुछ किया है?" रोहित ने श्रेयाकी चूतमें अपनी दो उँगलियाँ डालकर चूत की संवेदनशील त्वचा को उँगलियों में रगड़ते हुए कहा, "श्रेया, कसम तुम्हारी! एक बार नहीं, कई बार मैंने मेरी बीबी अपर्णा को श्रेया समझ कर चोदा है l एक बार तो अपर्णा को चोदते हुए मेरे मुंह से अनायास ही तुम्हारा नाम निकल गया। पर अपर्णा को समझ आये उससे पहले मैंने बात को बदल दिया ताकि उसे शक ना हो की चोद तो मैं उसे रहा था पर याद तुम्हें कर रहा था।"
हर औरत, ख़ास कर किसी और औरत के मुकाबले अपनी तारीफ़ सुनकर स्वाभाविक रूप से खुश होती ही है। मर्द लोग यह भलीभांति जानते हैं और अपनी जोड़ीदार को चुदाई के लिए तैयार करने के लिए यह ब्रह्मास्त्र का अक्सर उपयोग करते हैं। जो भी पति लोग मेरी इस कहानी को पढ़ रहे हों, ध्यान रखें की अपनी पत्नी को चुदाई के लिए तैयार करने के लिए हमेशा उसके रूप,गुण और बदन की खूब तारीफ़ करो। अगर कोई महिला इसे पढ़ रही है तो समझे की पति उनको वाकई में खूब प्रेम करते हैं और वह जो कह रहे हैं उसे सच समझे। आसमान में सूरज ढलने लगा था।
अचानक श्रेया को ख़याल आया की बातों बातों में समय जा रहा था। श्रेया ने रोहित से कहा, "यार समय जा रहा है। तुम्हारी बीबी तो मेरे पति को घास डालने वाली है नहीं। मेरे पति तो तुम्हारी बीबी को तैराकी सिखाते हुए ही रह जाएंगे। आखिर में रात को मुझे ही उनकी गर्मी निकालनी पड़ेगी। पर चलो तुम तो कुछ करो ना? तुम्हारे दोस्त की बीबी तो तैयार है।" रोहित श्रेया की उच्छृंखल खरी खरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए। श्रेया की साफ़ साफ़ बातें रोहित के लण्ड को फनफनाने के लिए काफी थीं। रोहित ने श्रेया को बैठा दिया और उनको अपनी बाँहों में उठा कर फिर पानी में ला कर रख दिया। किनारे के पत्थर पर श्रेया के हाथ टिका कर खुद श्रेया के पीछे आ गए और श्रेया की नंगी करारी और खूबसूरत गाँड़ की मन ही मन प्रशंशा करते हुए थोड़ा झुक कर श्रेया की गाँड़ की दरार में अपना लण्ड घुसेड़ा। श्रेया ने रोहित का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और अपनी चूत की पँखुड़ियों पर थोड़ा सा रगड़ते हुए, उसे अपनी चूत के द्वार पर टिका दिया। फिर अपनी चूत की पंखुड़ियों को फैलाकर अपने प्रेमछिद्र में उसे थोडासा घुसने दिया। अपनी गाँड़ को थोड़ा सा पीछे की और धक्का मार कर श्रेया ने रोहित को आव्हान किया की आगे का काम रोहित स्वयं करे। रोहित ने धीरे से श्रेया की छोटी सी नाजुक चूत में अपना मोटा लंबा और लोहे की छड़ के सामान कड़क खड़े लण्ड को थोड़ा सा घुसेड़ा। श्रेया पहली बार किसी मर्द से पानी में चुदवा रही थी। यहां तक की उस दिन तक उसने अपने पति से भी कभी पानी में खड़े रह कर चुदवाया नहीं था। यह पहला मौक़ा था की श्रेया पानीमें खड़े खड़े चुदवा रही थी और वह भी एक पराये मर्द से।
रोहित ने धीरे धीरे श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेलना शुरू किया। श्रेया की चूत का मुंह छोटा होने के कारण श्रेया को दर्द हो रहा था। पर श्रेयाको इस दर्दकी आदतसी हो गयीथी। रोहित का लण्ड शायद श्रेया के पति जीतूजी के लण्ड मुकाबले उन्न्नीस ही होगा। पर फिर भी श्रेया को कष्ट हो रहा था। श्रेया ने अपनी आँखें मूंदलीं और रोहित से अच्छीखासी चुदाई के लिए अपने आपको तैयार कर लिया। धीरे धीरे दर्द कम होने लगा और उन्माद बढ़ने लगा। श्रेया भी कई महीनों से रोहित से चुदवाने के लिए बेक़रार थी। यह सही था की श्रेया ने अपने पति से रोहित से चुदवाने के लिये कोई इजाजत या परमिशन तो नहीं ली थी पर वह जानती थी की जीतूजी उसके मन की बात भलीभांति जानते थे। जीतूजी जानते थे की आज नहीं तो कल उनकी पत्नी रोहित से चुदेगी जरूर। धीरे धीरे रोहित का लण्ड श्रेया की चूत की पूरी सुरंग में घुस गया। रोहित का एक एक धक्का श्रेया को सातवें आसमान को छूने का अनुभव करा रहा था। रोहित का धक्का श्रेया के पुरे बदन को हिला देता था। श्रेया की दोनों चूँचियाँ रोहित ने अपनी हथेलियों में कस के पकड़ रक्खी थीं। रोहित थोड़ा झुक कर अपना लण्ड पुरे जोश से श्रेया की चूत में पेल रहे थे। रोहित की चुदाई श्रेया को इतनी उन्मादक कर रही थी की वह जोर से कराह कर अपनी कामातुरता को उजागर कर रही थी। श्रेया की ऊँचे आवाज वाली कराहट वाटर फॉल के शोर में कहीं नहीं सुनाई पड़ती थी। श्रेया उस समय रोहित के लण्ड का उसकी चूत में घुसना और निकलना ही अनुभव कर रही थी। उस समय उसे और कोई भी एहसास नहीं हो रहा था। रोहित उत्तेजना से श्रेया की चूतमें इतना जोशीला धक्का मार रहे थे की कई बार श्रेया ड़र रही थी की रोहित का लण्ड उसकी बच्चे दानी को ही फाड़ ना दे।
श्रेया को दर्द का कोई एहसास नहीं हो रहा था। दर्द जैसे गायब ही हो गया था और उसकी जगह रोहित का लण्ड श्रेया को अवर्णनीय सुख और उन्माद दे रहा था। जैसे रोहित का लण्ड श्रेया की चूत की सुरंगमें अंदर बाहर हो रहा था, श्रेया को एक अद्भुत एहसास हो रहा था। श्रेया न सिर्फ रोहित से चुदवाना चाहती थी; उसे रोहित से तहे दिल से प्यार था। उनकी कुशाग्र बुद्धिमत्ता, उनकी किसी भी मसले को प्रस्तुत करनेकी शैली, बातें करते समय उनके हावभाव और सबसे ज्यादा उनकी आँखों में जो एक अजीब सी चमक ने श्रेया के मन को चुरा लिया था। श्रेया रोहित से इतनी प्रभावित थी की वह उनसे प्यार करने लगी थी। अपने पति से प्यार होते हुए भी वह रोहित से भी प्यार कर बैठी थी। अक्सर यह शादीशुदा स्त्री और पुरुष दोनों में होता है। अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़ किसी और स्त्री से प्यार करने लगता है और उससे सेक्स करता है (उसे चोदता है) तो इसका मतलब यह नहीं है की वह अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता। ठीक उसी तरह अगर कोई शादीशुदा स्त्री किसी और पुरुष को प्यार करने लगती है और वह प्यार से उससे चुदाई करवाती है तो इसका कतई भी यह मतलब नहीं निकालना चाहिए की वह अपने पति से प्यार नहीं करती।
हाँ यदि यह प्यार शादीशुदा पति या पत्नी के मन में उस परायी व्यक्ति के लिए पागलपन में बदल जाए जिससे वह अपने जोड़ीदार को पहले वाला प्यार करने में असमर्थ हो तब समस्या होती है। बात वहाँ उलझ जाती है जहां स्त्री अथवा पुरुष अपने जोड़ीदार से यह अपेक्षा रखते हैं की उसका जोड़ीदार किसी अन्य व्यक्ति से प्यार ना करे और चुदाई तो नाही करे या करवाए। बात अधिकार माने अहम् पर आकर रुक जाती है। समस्या यहां से ही शुरू होती है। जहां यह अहम् नहीं होता वहाँ समझदारी की वजह से पति और पत्नी में पर पुरुष या स्त्री के साथ गमन करने से (मतलब चोदने या चुदवाने से) वैमनस्यता (कलह) नहीं पैदा होती। बल्कि इससे बिलकुल उलटा वहाँ ज्यादा रोमांच और उत्तेजना के कारण उस चुदाई में सब को आनंद मिलता है यदि उसमें स्पष्ट या अष्पष्ट आपसी सहमति हो। श्रेया को रोहितसे तहे दिल से प्यार था और वही प्यार के कारण दोनों बदन में मिलन की कामना कई महीनों से उजागर थी। तलाश मौके की थी। श्रेया ने रोहित को जबसे पहेली बार देखा था तभी से वह उससे बड़ी प्रभावित थी। उससे भी कहीं ज्यादा जब श्रेया ने देखा की रोहित उसे देख कर एकदम अपना होशोहवास खो बैठते थे तो वह समझ गयी की कहीं ना कहीं रोहित के मन में भी श्रेया के लिए वही प्यार था और उनकी श्रेया के कमसिन बदन से सम्भोग (चोदने) की इच्छा प्रबल थी यह महसूस कर श्रेया की रोहित से चुदवाने की इच्छा दुगुनी हो गयी। जैसे जैसे रोहित ने श्रेया को चोदने की रफ़्तार बढ़ाई, श्रेया का उन्माद भी बढ़ने लगा। जैसे ही रोहित श्रेया की चूत में अपने कड़े लण्ड का अपने पेंडू के द्वारा एक जोरदार धक्का मारता था, श्रेया का पूरा बदन ना सिर्फ हिल जाता था, श्रेया के मुंह से प्यार भरी उन्मादक कराहट निकल जाती थी। अगर उस समय वाटर फॉल का शोर ना होता तो श्रेया की कराहट पूरी वादियों में गूंजती। रोहित की बुद्धि और मन में उस समय एक मात्र विचार यह था की श्रेया की चूत में कैसे वह अपना लण्ड गहराई तक पेल सके जिससे श्रेया रोहित से चुदाई का पूरा आनंद ले सके। पानीमें खड़े हो कर चुदाई करने से रोहित को ज्यादा ताकत लगानी पड़ रही थी और श्रेया की गाँड़ पर उसके टोटे (अंडकोष) उतने जोर से थप्पड़ नहीं मार पाते थे जितना अगर वह श्रेया को पानी के बाहर चोदते। पर पानी में श्रेया को चोदने का मजा भी तो कुछ और था। श्रेया को भी रोहित से पानी में चुदाई करवाने में कुछ और ही अद्भुत रोमांच का अनुभव हो रहा था।
रोहित एक हाथ से श्रेया की गाँड़ के गालों पर हलकी सी प्यार भरी चपत अक्सर लगाते रहते थे जिसके कारण श्रेया का उन्माद और बढ़ जाता था। श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए रोहित का एक हाथ श्रेया को दोनों स्तनोँ पर अपना अधिकार जमाए हुए था। रोहित को कई महीनों से श्रेया को चोदने के चाह के कारण रोहित के एंड कोष में भरा हुआ वीर्य का भण्डार बाहर आकर श्रेया की चूत को भर देने के लिए बेताब था। रोहित अपने वीर्य की श्रेया की चूत की सुरंग में छोड़ने की मीठी अनुभूति करना चाहते थे। श्रेया की नंगी गाँड़ जो उनको अपनी आँखों के सामने दिख रही थी वह रोहित को पागल कर रही थी। रोहित का धैर्य (या वीर्य?) छूटने वाला ही था। श्रेया ने भी अनुभव किया की अगर उसी तरह रोहित उसे चोदते रहे तो जल्द ही रोहित अपना सारा वीर्य श्रेया की सुरंग में छोड़ देंगे। श्रेया को पूरी संतुष्टि होनी बाकी थी। उसे चुदाई का और भी आनंद लेना था। श्रेया ने रोहित को रुकने के लिए कहा। रोहित के रुकते ही श्रेया ने रोहित को पानी के बाहर किनारे पर रेत में सोने के लिए अनुग्रह किया। रोहित रेत पर लेट गए। श्रेया शेरनी की तरह रोहित के ऊपर सवार हो गयी। श्रेया ने रोहित का फुला हुआ लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और अपना बदन नीचा करके रोहित का पूरा लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ दिया।
अब श्रेया रोहित की चुदाई कर रही थी। श्रेया को उस हाल में देख ऐसा लगता था जैसे श्रेया पर कोई भूत सवार हो गया हो। श्रेया अपनी गाँड़ के साथ अपना पूरा पेंडू पहले वापस लेती थी और फिर पुरे जोश से रोहित के लण्ड पर जैसे आक्रमण कर रही हो ऐसे उसे पूरा अपनी चूत की सुरंग में घुसा देती थी। ऐसा करते हुए श्रेया का पूरा बदन हिल जाता था। श्रेया के स्तन इतने हिल तरहे थे की देखते ही बनता था। श्रेया की चूत की फड़कन बढ़ती ही जा रही थी। श्रेया का उन्माद उस समय सातवें आसमान पर था। श्रेया को उस समय अपनी चूत में रगड़ खा रहे रोहित के लण्ड के अलावा कोई भी विचार नहीं आ रहा था। वह रगड़ के कारण पैदा हो रही उत्तेजना और उन्माद श्रेया को उन्माद की चोटी पर लेजाने लगा था। श्रेया के अंदर भरी हुई वासना का बारूद फटने वाला था। रोहित को चोदते हुए श्रेया की कराहट और उन्माद पूर्ण और जोरदार होती जा रही थी। रोहित का वीर्य का फव्वारा भी छूटने वाला ही था। अचानक रोहित के दिमाग में जैसे एक पटाखा सा फूटा और एक दिमाग को हिला देने वाले धमाके के साथ रोहित के लण्ड के केंद्रित छिद्र से उसके वीर्य का फव्वारा जोरसे फुट पड़ा। जैसे ही श्रेया ने अपनी चूत की सुरंग में रोहित के गरमा गरम वीर्य का फव्वारा अनुभव किया की वह भी अपना नियत्रण खो बैठी और एक धमाका सा हुआ जो श्रेया के पुरे बदन को हिलाने लगा। श्रेया को ऐसा लगा जैसे उसके दिमाग में एक गजब का मीठा और उन्मादक जोरदार धमाका हुआ। जिसकेकारण उसका पूरा बदन हिल गया और उसकी पूरी शक्ति और ऊर्जा उस धमाके में समा गयी। चंद पलों में ही श्रेया निढाल हो कर रोहित पर गिर पड़ी। रोहित का लण्ड तब भी श्रेया की चूत में ही था। पर श्रेया अपनी आँखें बंद कर उस अद्भुत अनुभव का आनंद ले रही थी।
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अपर्णा अपने पति रोहित से चिपक कर ऐसे चल रही थी जिससे जीतूजी की नजर उसके आधे नंगे बदन पर ना पड़े। श्रेया को कोई परवाह नहीं थी की रोहित उनके बदन को कैसे ताड़ रहे थे। बल्कि रोहित की सहूलियत के लिए श्रेया अपनी टांगों को फैलाकर बड़े ही सेक्सी अंदाज में अपने कूल्हों को मटका कर चल रही थी जिससे रोहित को वह अपने हुस्न की अदा का पूरा नजारा दिखा सके। रोहित का लण्ड उनकी निक्कर में फर्राटे मारा रहा था। दोनों कामिनियों का जादू दोनों मर्दों के दिमाग में कैसा नशा भर रहा था वह रोहित ने देखा भी और महसूस भी किया। रोहित बार बार अपनी निक्कर एडजस्ट कर अपने लण्ड को सीधा और शांत रखनेकी नाकाम कोशिश कर रहेथे। श्रेया जी ने उनसे काफी समय से कुछ भी बात नहीं की थी। इस वजह से उन्हें लगा था की शायद श्रेया उनसे नाराज थीं। रोहित जानने के लिए बेचैन थे की क्या वजह थी की श्रेया उनसे बात नहीं कर रही थी।
जैसे ही श्रेया झरनेकी ओर चल पड़ी, रोहित जी भी अपर्णा को छोड़ कर भाग कर श्रेया के पीछे दौड़ते हुए चल दिए और श्रेया के साथ में चलते हुए झरने के पास पहुंचे। अपर्णा अपने पति के साथ चल रही थी। पर अपने पति रोहित को अचानक श्रेया के पीछे भागते हुए देख कर उसे अकेले ही चलना पड़ा। अपर्णा के बिलकुल पीछे जीतूजी आ रहे थे। अपर्णा जानती थी की उसके पीछे चलते हुए जीतूजी चलते चलते अपर्णा के मटकते हुए नंगे कूल्हों का आनंद ले रहे होंगे। अपर्णा सोच रही थी पता नहीं उस की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी के मन में क्या भाव होते होंगे? पर बेचारी अपर्णा, करे तो क्या करे? उसी ने तो सबको यहाँ आकर नहाने के लिए बाध्य किया था। अपर्णा भलीभांति जानती थी की जीतूजी भले कहें या ना कहें, पर वह उसे चोदने के लिए बेताब थे। अपर्णा ने भी जीतूजी के लण्ड जैसा लण्ड कभी देखा क्या सोचा भी नहीं था। कहीं ना कहीं उसके मन में भी जीतूजी के जैसा मोटा और लंबा लण्ड अपनी चूतमें लेने की ख्वाहिश जबरदस्त उफान मार रही थी। अपर्णा के मन में जीतूजी के लिए इतना प्यार उमड़ रहा था की अगर उसकी माँ के वचन ने उसे रोका नहीं होता तो वह शायद तब तक जीतूजी से चुदवा चुदवा कर गर्भवती भी हो गयी होती।
आगे आगे श्रेया उनके बिलकुल पीछे श्रेया से सटके ही रोहित, कुछ और पीछे अपर्णा और आखिर में जीतूजी चल पड़े। थोड़ी पथरीली और रेती भरी जमीन को पार कर वह सब झरने की और जा रहे थे। रोहित ने श्रेया से पूछा, "आखिर बात क्या है श्रेया? आप मुझसे नाराज हैं क्या?" श्रेया जी ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया, "भाई, हम कौन होते हैं, नाराज होने वाले?" रोहित ने पीछे देखा तो अपर्णा और जीतूजी रुक कर कुछ बात कर रहे थे। रोहित ने एकदम श्रेया का हाथ थामा और रोका और पूछा, "क्या बात है, श्रेया? प्लीज बताइये तो सही?" श्रेया की मन की भड़ास आखिर निकल ही गयी। उन्होंने कहा, "हाँ और नहीं तो क्या? आपको क्या पड़ी है की आप सोचें की कोई आपका इंतजार कर रहा है या नहीं? भाई जिसकी बीबी अपर्णा के जैसी खुबसुरत हो उसे किसी दूसरी ऐसी वैसी औरत की और देखने की क्या जरुरत है?" रोहित ने श्रेया का हाथ पकड़ा और दबाते हुए बोले, "साफ़ साफ़ बोलिये ना क्या बात है?" श्रेया ने कहा, "साफ़ क्या बोलूं? क्या मैं सामने चल कर यह कहूं, की आइये, मेरे साथ सोइये? मुझे चोदिये?" रोहित का यह सुनकर माथा ठनक गया। श्रेया क्या कह रहीं थीं? उतनी देर में वह झरने के पास पहुँच गए थे, और पीछे पीछे अपर्णा और जीतूजी भी आ रहे थे।
श्रेया ने रोहित की और देखा और कहा, "अभी कुछ मत बोलो। हम तैरते तैरते झरने के उस पार जाएंगे। तब अपर्णा और जीतूजी से दूर कहीं बैठ कर बात करेंगे।"
फिर श्रेया ने अपने पति जीतूजी की और घूम कर कहा, "डार्लिंग, यह तुम्हारी चेली अपर्णा को तैरना भी नहीं आता। अब तुम्हें मैथ्स के अलावा इसे तैरना भी सिखाना पडेगा। तुमने इससे मैथ्स सिखाने की तो कोई फ़ीस नहीं ली थी। पर तैरना सिखाने के लिए फ़ीस जरूर लेना। आप अपर्णा को यहाँ तैरना सिखाओ। मैं और रोहित वाटर फॉल का मजा लेते हैं।" यह कह कर श्रेया आगे चल पड़ी और रोहित को पीछे आने का इशारा किया। श्रेया और रोहित झरने में कूद पड़े और तैरते हुए वाटर फॉल के निचे पहुँच कर उंचाइसे गिरते हुए पानी की बौछारों को अपने बदन पर गिरकर बिखरते हुए अनुभव करने का आनंद ले रहे थे।
हालांकि वह काफी दूर थे और साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था पर अपर्णा ने देखा की श्रेया एक बार तो पानी की भारी धारके कारण लड़खड़ाकर गिर पड़ी और कुछ देर तक पानी में कहीं दिखाई नहीं दीं। उस जगह पानी शायद थोड़ा गहरा होगा। क्यूंकि इतने दूरसे भी रोहित के चेहरे पर एक अजीब परेशानी और भय का भाव अपर्णा को दिखाई दिया। अपर्णा स्वयं परेशान हो गयी की कहीं श्रेया डूबने तो नहीं लगीं। पर कुछ ही पलों में अपर्णा ने चैन की साँस तब ली जब जोर से इठलाते हँसते हुए श्रेया ने पानी के अंदर से अचानक ही बाहर आकर रोहित का हाथ पकड़ा और कुछ देर तक दोनों पानी में गायब हो गए। अपर्णा यह जानती थी की श्रेया एक दक्ष तैराक थीं। यह शिक्षा उन्हें अपने पति जीतूजी से मिली थी। अपर्णा ने सूना था की जीतूजी तैराकी में अव्वल थे। उन्होंने कई आंतरराष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में इनाम भी पाए थे। अपर्णा ने जीतूजी की तस्वीर कई अखबार में और सेना, आंतरराष्ट्रीय खेलकूद की पत्रिकाओं में देखि थी। उस समय अपर्णा गर्व अनुभव कर रही थी की उस दिन उसे ऐसे पारंगत तैराक से तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ सिखने को मिलेंगे। अपर्णा को क्या पता था की कभी भविष्य में उसे यह शिक्षा बड़ी काम आएगी।
फिलहाल अपर्णा की आँखें अपने पति और श्रेया जी की जल क्रीड़ा पर टिकी हुई थीं। उनदोनोंकी चालढाल को देखते हुए अपर्णा को यकीन तो नहीं था पर शक जरूर हुआ की उस दोपहर को अगर उन्हें मौक़ा मिला तो उसके पति रोहित उस वाटर फॉल के निचे ही श्रेया की चुदाई कर सकते हैं। यह सोचकर अपर्णाका बदन रोमांचित हो उठा। यह रोमांच उत्तेजना या फिर स्त्री सहज इर्षा के कारण था यह कहना मुश्किल था। अपर्णा के पुरे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी। अपर्णा भलीभांति जानती थी की उसके पति अच्छे खासे चुदक्कड़ थे। रोहित को चोदने में महारथ हासिल थी। किसी भी औरत को चोदते समय, वह अपनी औरत को इतना सम्मान और आनंद देते थे की वह औरत एक बार चुदने के बाद उनसे बार बार चुदवाने के लिए बेताब रहती थी। जब अपर्णा के पति रोहित अपनी पत्नी अपर्णा को चोदते थे तो उनसे चुदवाने में अपर्णा को गझब का मजा आता था।
अपर्णा ने कई बार दफ्तर की पार्टियों में लड़कियों को और चंद शादी शुदा औरतों को भी एक दूसरी के कानों में रोहित की चुदाई की तारीफ़ करते हुए सूना था। उस समय उन लड़कियों और औरतों को पता नहीं था की उनके बगल में खड़ीं अपर्णा रोहित की बीबी थी। शायद आज उसके पति रोहित उसी जोरदार जज्बे से श्रेया की भी चुदाई कर सकते हैं, यह सोच कर अपर्णा के मन में इर्षा, उत्तेजना, रोमांच, उन्माद जैसे कई अजीब से भाव हुए। अपर्णा की चूत तो पुरे वक्त झरने की तरह अपना रस बूँद बूँद बहा ही रही थी। अपनी दोनों जाँघों को एक दूसरे से कसके जोड़कर अपर्णा उसे छिपानेकी कोशिश कर रही थी ताकि जीतूजी को इसका पता ना चले। अपर्णा झरने के किनारे पहुँचते ही एक बेंच पर जा कर अपनी दोनों टाँगे कस कर एक साथ जोड़ कर बैठ गयी। जीतूजी ने जब अपर्णा को नहाने के लिए पानी में जाने से हिचकिचाते हुए देखा तो बोले, "क्या बात है? वहाँ क्यों बैठी हो? पानीमें आ जाओ।" अपर्णा ने लजाते हुए कहा," जीतूजी, मुझे आपके सामने इस छोटी सी ड्रेस में आते हुए शर्म आती है। और फिर मुझे पानी से भी डर लगता है। मुझे तैरना नहीं आता।"
जीतूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझसे शर्म आती है? इतना कुछ होने के बाद अब भी क्या तुम मुझे अपना नहीं समझती?" जब अपर्णा ने जीतूजी की बात का जवाब नहीं दिया तो जीतूजी का चेहरा गंभीर हो गया। वह उठ खड़े हुए और पानी के बाहर आ गए। बेंच पर से तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछते हुए कैंप की और जाने के लिए तैयार होते हुए बोले, "अपर्णा देखिये, मैं आपकी बड़ी इज्जत करता हूँ। अगर आप को मेरे सामने आने में और मेरे साथ नहाने में हिचकि-चाहट होती है क्यूंकि आप मुझे अपना करीबी नहीं समझतीं तो मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से श्रेया और रोहित के साथ नहाइये और वापस कैंप में आ जाइये। मैं आप सब का वहाँ ही इंतजार करूंगा।" यह कह कर जब जीतूजी खड़े हो कर कैंप की और चलने लगे तब अपर्णा भाग कर जीतूजी के पास पहुंची। अपर्णा ने जीतूजी को अपनी बाहों में ले लिया और वह खुद उनकी बाँहों में लिपट गयी। अपर्णा की आँखों से आंसू बहने लगे।
अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, ऐसे शब्द आगे से अपनी ज़बान से कभी मत निकालिये। मैं आपको अपने आप से भी ज्यादा चाहती हूँ। मैं आपकी इतनी इज्जत करती हूँ की आपके मन में मेरे लिये थोड़ा सा भी हीनता का भाव आये यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। सच कहूं तो मैं यह सोच रही थी की कहीं मुझे इस कॉस्च्यूम में देख कर आप मुझे हल्कट या चीप तो नहीं समझ रहे?" जीतूजी ने अपर्णा को अपनी बाहों में कस के दबाते हुए बड़ी गंभीरता से कहा, "अरे अपर्णा! कमाल है! तुम इस कॉस्च्यूम में कोई भी अप्सरा से कम नहीं लग रही हो! इस कॉस्च्यूम में तो तुम्हारा पूरा सौंदर्य निखर उभर कर बाहर आ रहा है। भगवान ने वैसे ही स्त्रियों को गजब की सुंदरता दी है और उनमें भी तुम तो कोहिनूर हीरे की तरह भगवान की बेजोड़ रचना हो! अगर तुम मेरे सामने निर्वस्त्र भी खड़ी हो जाओ तो भी मैं तुम्हें चीप या हलकट नहीं सोच सकता। ऐसा सोचना भी मेरे लिए पाप के समान है। क्यूंकि तुम जितनी बदन से सुन्दर हो उससे कहीं ज्यादा मन से खूबसूरत हो l हाँ, मैं यह नहीं नकारूँगा की मेरे मन में तुम्हें देख कर कामुकता के भाव जरूर आते हैं। मैं तुम्हें मन से तो अपनी मानता ही हूँ, पर मैं तुम्हें तन से भी पूरी तरह अपनी बनाना तहे दिल से चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की हम दोनों के बदन एक हो जाएँ। पर मैं तब तक तुम पर ज़रा सा भी दबाव नहीं डालूंगा जब तक की तुम खुद सामने चलकर अपने आप मेरे सामने घुटने टेक कर अपना सर्वस्व मुझे समर्पण नहीं करोगी l अगर तुम मानिनी हो तो मैं भी कोई कम नहीं हूँ। तुम मुझे ना सिर्फ बहुत प्यारी हो, मैं तुम्हारी बहुत बहुत इज्जत करता हूँ। और वह इज्जत तुम्हारे कपड़ों की वजह से नहीं है।"
जीतूजी के अपने बारे में ऐसे विचार सुनकर अपर्णा की आँखों में से गंगा जमुना बहने लगी। अपर्णा ने जीतूजी के मुंह पर हाथ रख कर कहा, "जीतूजी, आप से कोई जित नहीं सकता। आप ने चंद पलों में ही मेरी सारी उधेङबुन ख़त्म कर दी। अब मेरी सारी लज्जा और शर्म आप पर कुर्बान है l मैं शायद तन से पूरी तरह आपकी हो ना सकूँ, पर मेरा मन आपने जित लिया है। मैं पूरी तरह आपकी हूँ। मुझे अब आपके सामने कैसे भी आने में कोई शर्म ना होगी। अगर आप कहो तो मैं इस कॉस्च्यूम को भी निकाल फैंक सकती हूँ।" जीतू जी ने मुस्कुराते हुए अपर्णा से कहा, "खबरदार! ऐसा बिलकुल ना करना। मेरी धीरज का इतना ज्यादा इम्तेहान भी ना लेना। आखिर मैं भी तो कच्ची मिटटी का बना हुआ इंसान ही हूँ। कहीं मेरा ईमान जवाब ना दे दे और तुम्हारा माँ को दिया हुआ वचन टूट ना जाए!" अपर्णा अब पूरी तरह आश्वस्त हो गयी की उसे जीतूजी से किसी भी तरह का पर्दा, लाज या शर्म रखने की आवश्यकता नहीं थी। जब तक अपर्णा नहीं चाहेगी, जीतूजी उसे छुएंगे भी नहीं। और फिर आखिर जीतूजी से छुआ ने में तो अपर्णा को कोई परहेज रखने की जरुरत ही नहीं थी।
अपर्णा ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "जीतू जी, मुझे तैरना नहीं आता। इस लिए मुझे पानी से डर लगता है। मैं आपके साथ पानी में आती हूँ। अब आप मेरे साथ जो चाहे करो। चाहो तो मुझे बचाओ या डूबा दो। मैं आपकी शरण में हूँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा तैरना सीखा दोगे तो मैं तैरने की कोशिश करुँगी।" जीतूजी ने हाथ में रखा तौलिया फेंक कर पानी में उतर कर मुस्कुराते हुए अपनी बाँहें फैला कर कहा, "फिर आ जाओ, मेरी बाँहों में।"
दूर वाटर फॉल के निचे नहा रहे श्रेया और रोहित ने जीतूजी और अपर्णा के बिच का वार्तालाप तो नहीं सूना पर देखा की अपर्णा बेझिझक सीमेंट की बनी किनार से छलांग लगा कर जीतूजी की खुली बाहों में कूद पड़ी। श्रेया ने फ़ौरन रोहित को कहा, "देखा, रोहित, आपकी बीबी मेरे पति की बाँहों में कैसे चलि गयी? लगता है वह तो गयी!" रोहित ने श्रेया की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। दोनों वाटर फॉल के निचे कुछ देर नहा कर पानी में चलते चलते वाटर फॉल की दूसरी और पहुंचे। वह दोनों अपर्णा और जीतूजी से काफी दूर जा चुके थे और उन्हें अपर्णा और जीतूजी नहीं दिखाई दे रहे थे। वाटर फॉल के दूसरी और पहुँचतेही रोहित ने श्रेया से पूछा, "क्या बात है? आप अपना मूड़ क्यों बिगाड़ कर बैठी हैं?" श्रेया ने कुछ गुस्से में कहा, "अब एक बात मेरी समझ में आ गयी है की मुझमे कोई आकर्षण रहा नहीं है।"
रोहित ने श्रेया की बाँहें थाम कर पूछा, "पर हुआ क्या यह तो बताइये ना? आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं?"
श्रेया ने कहा, "भाई घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत मुझ पर तो जरूर लागू होती है पर अपर्णा पर नहीं होती।"
रोहित: "पर ऐसा आप क्यों कहते हो यह तो बताओ?"
श्रेया: "और नहीं तो क्या? अपनी बीबी से घर में भी पेट नहीं भरा तो आप ट्रैन में भी उसको छोड़ते नहीं हो, तो फिर में और क्या कहूं? हम ने तय किया था इस यात्रा दरम्यान आप और मैं और जीतूजी और अपर्णा की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी बीबी के बिस्तरेमें ही घुस गए। क्या आपको मैं नजर नहीं आयी?" श्रेया फिर जैसे अपने आप को ही उलाहना देती हुई बोली, "हाँ भाई, मैं क्यों नजर आउंगी? मेरा मुकाबला अपर्णा से थोड़े ही हो सकता है? कहाँ अपर्णा, युवा, खूबसूरत, जवान, सेक्सी और कहाँ मैं, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।" रोहित का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आखिर श्रेया ने उन्हें अपनी बीबी के बिस्तर में जाते हुए देख ही लिया था। अब जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छुपाने से क्या फायदा?
रोहित ने श्रेया के करीब जाकर उनकी ठुड्डी (चिबुक/दाढ़ी) अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते हुए बोले, "श्रेया, सच सच बताइये, अगर मैं आपके बिस्तर में आता और जैसे आपने मुझे पकड़ लिया वैसे कोई और देख लेता, तो हम क्या जवाब देते? वैसे मैं आपके बिस्तर के पास खड़ा काफी मिनटों तक इस उधेड़बुन में रहा की मैं क्या करूँ? आपके बिस्तर में आऊं या नहीं? आखिर में मैंने यही फैसला किया की बेहतर होगा की हम अपनी प्रेम गाथा बंद दीवारों में कैद रखें। क्या मैंने गलत किया?"
श्रेया ने रोहित की और देखा और उन्हें अपने करीब खिंच कर गाल पर चुम्मी करते हुए बोली, "मेरे प्यारे! आप बड़े चालु हो। अपनी गलती को भी आप ऐसे अच्छाई में परिवर्तित कर देते हो की मैं क्या कोई भी कुछ बोल नहीं पायेगा। शायद इसी लिए आप इतने बड़े पत्रकार हो। कोई बात नहीं। आप ने ठीक किया l पर अब ध्यान रहे की मैं अपनी उपेक्षा बर्दास्त नहीं कर सकती। मैं बड़ी मानिनी हूँ और मैं मानती हूँ की आप मुझे बहुत प्यार करते हैं और मेरी बड़ी इज्जत करते हैं। आप की उपेक्षा मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। वचन दो की मुझे आगे चलकर ऐसी शिकायतका मौक़ा नहीं दोगे?"
रोहित ने श्रेया को अपनी बाँहों में भर कर कहा, "श्रेया जी मैं आगे से आपको ऐसी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा। पर मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।"
श्रेया जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से देख कर कहा, "क्या?"
रोहित ने कहा, "आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। जिंदगी में वैसेही बहुत उलझन, ग़म और परेशानियाँ हैं। जब हम दोनों अकेले में मिलते हैं तब मैं चाहता हूँ की कुछ अठखेलियाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बातें हों। यह सच है की मैं आपकी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और ज्ञानसे बहुत प्रभावित हूँl पर वह बातें हम तब करें जब हम एक दूसरे से औपचारिक रूप से मिलें। जब हम इतने करीब आ गए हैं और उसमें भी जब हम मज़े करने के लिए मिलते हैं तो फिर भाड़में जाए औपचारिकता! हम एक दूसरे को क्यों "आप" कह कर निरर्थक खोखला सम्मान देने का प्रयास करते हैं? श्रेया तुम्हारा जो खुल्लमखुल्ला बात करने का तरिका है ना, वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो क्या बात है!"
श्रेया रोहित की बातें सुन थोड़ी सोच में पड़ गयीं। उन्होंने नज़रें उठाकर रोहित की और देखा और पूछा, " रोहित तुम अपर्णा से बहोत प्यार करते हो। है ना?"
रोहित श्रेया की बात सुनकर कुछ झेंप से गए। उन दोनों के बिच अपर्णा कहाँ से आ गयी? रोहित के चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई देख कर श्रेया ने कहा, "जो तुम ने कहा वह अपर्णा का स्वभाव है। मैं श्रेया हूँ अपर्णा नहीं। तुम क्या मुझमें अपर्णा ढूँढ रहे हो?"
यह सुनकर रोहित को बड़ा झटका लगा। रोहित सोचने लगे, बात कहाँ से कहाँ पहुँच गयी? उन्होंने अपने आपको सम्हालते हुए श्रेया के करीब जाकर कहा, "हाँ यह सच है की मैं अपर्णा को बहुत प्यार करता हूँ। तुम भी तो जीतूजी को बहुत प्यार करती हो। बात वह नहीं है l बात यह है की जब हम दोनों अकेले हैं और जब हमें यह डर नहीं की कोई हमें देख ना ले या हमारी बातें सुन ना लें तो फिर क्यों ना हम अपने नकली मिजाज का मुखौटा निकाल फेंके, और असली रूप में आ जायें? क्यों ना हम कुछ पागलपन वाला काम करें?"
"अच्छा? तो मियाँ चाहते हैं, की मैं यह जो बिकिनी या एक छोटासा कपडे का टुकड़ा पहन कर तुम्हारे सामने मेरे जिस्म की नुमाइश कर रही हूँ, उससे भी जनाब का पेट नहीं भरा? अब तुम मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो क्या?" शरारत भरी मुस्कान से श्रेया रोहित की और देखा तो पाया की रोहित श्रेया की इतनी सीधी और धड़ल्ले से कही बात सुनकर खिसियानी सी शक्ल से उनकी और देख रहे थे। श्रेया कुछ नहीं बोली और सिर्फ रोहित की और देखते ही रहीं। रोहित ने श्रेया के पीछे आकर श्रेया को अपनी बाहों में ले लिया और श्रेया के पीछे अपना लण्ड श्रेया की गाँड़ से सटा कर बोले, "ऐसे माहौल में मैं श्रेयाजी नहीं श्रेया चाहता हूँ।" श्रेया ने आगे झुक कर रोहित को अपने लण्ड को श्रेया की गाँड़ की दरार में सटाने का पूरा मौक़ा देते हुए रोहित की और पीछे गर्दन घुमाकर देखा, और बोली, "मैं भी तो ऐसे माहौल में इतने बड़े पत्रकार और बुद्धिजीवी को नहीं सिर्फ रोहित ही चाहती हूँ। मैं महसूस करना चाहती हूँ की इतने बड़े सम्मानित व्यक्ति एक औरत की और आकर्षित होते हैं तो उसके सामने कैसे एक पागल आशिक की तरह पेश आते हैं।"
रोहित ने कहा, "और हाँ यह सच है की मैं यह जो कपडे का छोटासा टुकड़ा तुमने पहन रखा है, वह भी तुम्हारे तन पर देखना नहीं चाहता। मैं सिर्फ और सिर्फ, भगवान ने असलियत में जैसा बनाया है वैसी ही श्रेया को देखना चाहता हूँ। और दूसरी बात! मैं यहां कोई विख्यात सम्पादक या पत्रकार नहीं एक आशिक के रूप में ही तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ।" पर श्रेया तो आखिरमें श्रेया ही थी ना? उसने पट से कहा, "यह साफ़ साफ़ कहो ना की तुम मुझे चोदना चाहते हो?" रोहित श्रेया की अक्खड़ बात सुनकर कुछ झेंप से गए पर फिर बोले, "श्रेया, ऐसी बात नहीं है। अगर चुदाई प्यार की ही एक अभिव्यक्ति हो, मतलब प्यार का ही एक परिणाम हो तो उसमें गज़ब की मिठास और आस्वादन होता है l पर अगर चुदाई मात्र तन की आग बुझाने का ही एक मात्र जरिया हो तो वह एक तरफ़ा स्वार्थी ना भी हो तो भी उसमें एक दूसरे की हवस मिटाने के अलावा कोई मिठास नहीं होती।"
रोहित की बात सुन श्रेया मुस्कुरायी। उसने रोहित के हाथों को प्यार से अपने स्तनोँ को सहलाते हुए अनुभव किया। अपने आपको सम्हालते हुए श्रेया ने इधर उधर देखा। वह दोनों वाटर फॉल के दूसरी और जा चुके थे। वहाँ एक छोटा सा ताल था और चारों और पहाड़ ही पहाड़ थे। किनारे खूबसूरत फूलों से सुसज्जित थे। बड़ा ही प्यार भरा माहौल था। रोहित और श्रेया दोनों ही एक छोटी सी गुफा में थे ओर गुफा एक सिरे से ऊपर पूरी खुली थी और सूरज की रौशनी से पूरी तरह उज्जवलित थी। जैसा की जीतूजी ने कहा था, यह जगह ऐसी थी जहां प्यार भरे दिल और प्यासे बदन एक दूसरे के प्यार की प्यास और हवस की भूख बिना झिझक खुले आसमान के निचे मिटा सकते थे। प्यार भरे दिल और वासना से झुलसते हुए बदन पर निगरानी रखने वाला वहाँ कोई नहीं था। अपर्णा और जीतूजी वाटर फॉल के दूसरी और होने के कारण नजर नहीं आ रहे थे। श्रेया अपनी स्त्री सुलभ जिज्ञासा को रोक नहीं पायी और श्रेया ने वाटर फॉल के निचे जाकर वाटर फॉल के पानी को अपने ऊपर गिरते हुए दूर दूसरे छोर की और नज़र की तो देखा की उसके पति जीतूजी झुके हुए थे और उनकी बाँहों में अपर्णा पानी की परत पर उल्टी लेटी हुई हाथ पाँव मारकर तैरने के प्रयास कर रही थी।
श्रेया जानती थी की उस समय अपर्णा के दोनों बूब्स जीतूजी की बाँहों से रगड़ खा रहे होंगे, जीतूजी की नजर अपर्णा की करारी नंगी गाँड़ पर चिपकी हुई होगी। अपर्णा को अपने इतने करीब पाकर जीतूजी का तगड़ा लण्ड कैसे उठ खड़ा हो गया होगा यह सोचना श्रेया के लिए मुश्किल नहीं था। पता नहीं शायद अपर्णा को भी जीतूजी का खड़ा और मोटा लण्ड महसूस हुआ होगा। अपने पति को कोई और औरत से अठखेलियां करते हुए देख कर कुछ पलों के लिए श्रेया के मन में स्त्री सुलभ इर्षा का अजीब भाव उजागर हुआ। यह स्वाभाविक ही था। इतने सालों से अपने पति के शरीर पर उनका स्वामित्व जो था! फिर श्रेया सोचने लगी, "क्या वाकई में उनका अपने पति पर एकचक्र स्वामित्व था?" शायद नहीं, क्यूंकि श्रेया ने स्वयं जीतूजी को कोई भी औरत को चोदने की छूट दे रक्खी थी l पर जहां तक श्रेया जानती थी, शादी के बाद शायद पहली बार जीतूजी के मन में अपर्णा के लिए जो भाव थे ऐसे उसके पहले किसी भी औरत के लिए नहीं आये थे।
अपने पति और रोहित की पत्नी को एकदूसरे के साथ अठखेलियाँ खेलते हुए देख कर जब श्रेया वापस लौटी तो उसे याद आया की रोहित चाहते थे की उसे श्रेया बनना था l श्रेया फिर रोहित को बाँहों में आगयी और बोली, "जाओ और देखो कैसे तुम्हारी बीबी मेरे पति से तैराकी सिख रही है। लगता है वह दोनों तो भूल ही गए हैं की हम दोनों भी यहाँ हैं।" रोहित ने श्रेया की बात को सुनी अनसुनी करते हुए कहा, "उनकी चिंता मत करो। मैं दोनों को जानता हूँ। ना तो वह दोनों कुछ करेंगे और ना वह इधर ही आएंगे। पता नहीं उन दोनों में क्या आपसी तालमेल या समझौता है की कुछ ना करते हुए भी वह एक दूसरे से चिपके हुए ही रहते हैं।" श्रेया ने कहा, "शायद तुम्हारी बीबी मेरे पति से प्यार करने लगी है।" रोहित ने कहा, "वह तो कभी से आपके पति से प्यार करती है। पर आप भी तो मुझसे प्यार करती हो." श्रेया ने रोहित का हाथ झटकते हुए कहा, "अच्छा? आपको किसने कहा की मैं आपसे प्यार करती हूँ?" रोहित ने फिरसे श्रेया को अपनी बाँहों में ले कर ऐसे घुमा दिया जिससे वह उसके पीछे आकर श्रेया की गाँड़ में अपनी निक्कर के अंदर खड़े लण्ड को सटा सके।
फिर श्रेया के दोनों स्तनोँ को अपनी हथेलियों में मसलते हुए रोहित ने श्रेया की गाँड़ के बिच में अपना लण्ड घुसाने की असफल कोशिश करते हुए कहा, "आपकी जाँघों के बिच में से जो पानी रिस रहा है वह कह रहा है।" श्रेया ने कहा, "आपने कैसे देखा की मेरी जाँघों के बिच में से पानी रिस रहा है? मैं तो वैसे भी गीली हूँ।" रोहित ने श्रेया की जाँघों के बिच में अपना हाथ ड़ालते हुए कहा, "मैं कबसे और क्या देख रहा था?" फिर श्रेया की जाँघों के बिच में अपनी हथेली डाल कर उसकी सतह पर हथेली को सहलाते हुए रोहित ने कहा, "यह देखो आपके अंदरसे निकला पानी झरने के पानी से कहीं अलग है। कितना चिकना और रसीला है यह!" यह कहते हुए रोहित अपनी उँगलियों को चाटने लगे। श्रेया रोहित की उंगलियों को अपनी चूत के द्वार पर महसूस कर छटपटा ने लगी। अपनी गाँड़ पर रोहित जी का भारी भरखम लण्ड उनकी निक्कर के अंदर से ठोकर मार रहा था। फिर श्रेया ने वाकई में महसूस किया की उसकी चूत में से झरने की तरह उसका स्त्री रस चू रहा था। वह रोहित की बाँहों में पड़ी उन्माद से सराबोर थी और बेबस होने का नाटक कर ऐसे दिखावा कर रही थीं जैसे रोहित ने उनको इतना कस के पकड़ रक्खा था की वह निकल ना सके।
श्रेया ने दिखावा करते हुए कहा, "रोहितजी छोडो ना?" रोहित ने कहा, "पहले बोलो, रोहित। रोहितजी नहीं।" श्रेया ने जैसे असहाय हो ऐसी आवाज में कहा, "अच्छा भैय्या रोहित! बस? अब तो छोडो?"
रोहित ने कहा, " भैय्या? तुम सैयां को भैय्या कहती हो?"
श्रेयाने नाक चढ़ाते हुए पूछा, "अच्छा? अब तुम मेरे सैयां भी बन गए? दोस्त की बीबी को फाँस ने में लगे हो? दोस्त से गद्दारी ठीक बात नहीं।"
रोहित ने कहा, "श्रेया, दोस्त की बीबी को मैं नहीं फाँस रहा। दोस्त की बीबी खुद फँस ने के लिए तैयार है। और फिर दोस्त से गद्दारी कहाँ की? गद्दारी तो अब होती ही जब किसी की प्यारी चीज़ उससे छीनलो और बदलेमें अंगूठा दिखाओ l मैंने उनसे तुम्हें छीना नहीं, कुछ देर के लिए उधार ही माँगा है। और फिर मैंने उनको अंगूठा भी नहीं दिखाया, बदले में मेरे दोस्त को अकेला थोड़े ही छोड़ा है? देखो वह भी तो किसी की कंपनी एन्जॉय कर रहा है। और वह कंपनी उनको मेरी पत्नी दे रही है।"
श्रेया रोहित को देखती ही रही। उसने सोचा रोहित जितने भोले दीखते हैं उतने हैं नहीं। श्रेया ने कहा, "तो तुम मुझे जीतूजी के साथ पत्नी की अदला-बदली करके पाना चाहते हो?"
रोहित ने फौरन सर हिलाए हुए कहा, "श्रेया, आपकी यह भाषा अश्लील है। मैं कोई अदला-बदली नहीं चाहता। देखिये अगर आप मुझे पसंद नहीं करती हैं तो आप मुझे अपने पास नहीं फटकने देंगीं। उसी तरह अगर मेरी पत्नी अपर्णा जीतूजी को ना पसंद करे तो वह उनको भी नजदीक नहीं आने देगी। मतलब यह पसंदगी का सवाल है। श्रेया मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम्हें मंजूर है?"
श्रेया ने कहा, "एक तो जबरदस्ती करते हो और ऊपर से मेरी इजाजत माँग रहे हो?"
रोहित एकदम पीछे हट गए। उनके चेरे पर निराशा और गंभीरता साफ़ दिख रही थी। रोहित बोले, "श्रेया, कोई जबरदस्ती नहीं। प्यार में कोई जबरदस्ती नहीं होती।"
श्रेया को रोहित के चेहरे के भाव देख कर हँसी आ गयी। वह अपनी आँखें नचाती हुई बोली, "अच्छा जनाब! आप कामातुर औरत की भाषा भी नहीं समझते? अरे अगर भारतीय नारी जब त्रस्त हो कर कहती है 'खबरदार आगे मत बढ़ना' तो इसका तो मतलब है साफ़ "ना"। ऐसी नारी से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए l पर वह जब वासना की आग में जल रही होती है और फिर भी कहती है, "छोडो ना? मुझे जाने दो।", तो इसका मतलब है "मुझे प्यार कर के मना कर चुदवाने के लिए तैयार करो तब मैं सोचूंगी।" पर वह जब मुस्काते हुए कहती है "मैं सोचूंगी" तो इसका मतलब है वह तुम्हें मन ही मन से कोस रही है और इशारा कर रह है की "मैं तैयार हूँ। देर क्यों कर रहे हो?" अगर वह कहे "हाँ" तो समझो वह भारतीय नहीं है।"
रोहित श्रेया की बात सुनकर हंस पड़े। उन्होंने कहा, "तो फिर आप क्या कहती हैं?"
श्रेया ने शर्मा कर मुस्काते हुए कहा, "मैं सोचूंगी।"
रोहित ने फ़ौरन श्रेया की गाँड़ में अपनी निक्कर में फर्राटे मार रहा अपना लण्ड सटा कर श्रेया के करारे स्तनोँ को उसकी बिकिनीके अंदर अपनी उंगलियां घुसाकर उनको मसलते हुए कहा, "अब मैं सिर्फ देखना नहीं और भी बहुत कुछ चाहता हूँ। पर सबसे पहले मैं अपनी श्रेया को असली श्रेया के रूप में बिना किसी आवरण के देखना चाहता हूँ।" ऐसा कह कर रोहित ने श्रेया की कॉस्च्यूम के कंधे पर लगी पट्टीयों को श्रेया की दोनों बाजुओं के निचे की ओर सरका दीं। जैसे ही पट्टियाँ निचे की और सरक गयीं तो रोहित ने उनको निचेकी ओर खिसका दिया और श्रेया के दोनों उन्मत्त स्तनोंको अनावृत कर दिए। श्रेया के स्तन जैसे ही नंगे हो गए की रोहित की आँखें उनपर थम ही गयीं। श्रेया के स्तन पुरे भरे और फुले होने के बावजूद थोड़े से भी झुके हुए हैं नहीं थे। श्रेया के स्तनों की चोटी को अपने घेरे में डाले हुए उसके गुलाबी एरोला ऐसे लगते थे जैसे गुलाबी रंग का छोटा सा जापानी छाता दो फूली हुई निप्पलोँ के इर्दगिर्द फ़ैल कर स्तनोँ को और ज्यादा खूबसूरत बना रहे हों। बीचो बिच फूली हुई निप्पलेँ भी गुलाबी रंग की थीं। एरोला की सतह पर जगह जगह फुंसियां जैसी उभरी हुईं त्वचा स्तनों की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती थीं। साक्षात् मेनका स्वर्ग से निचे उतर कर विश्वामित्र का मन हरने आयी हो ऐसी खूबसूरती अद्भुत लग रही थी।
श्रेया की कमर रेत घडी के सामान पतली और ऊपर स्तनोँ काऔर निचे कूल्हों के उभार के बिच अपनी अनूठी शान प्रदर्शित कर रही थी। श्रेया की नाभि की गहराई कामुकता को बढ़ावा दे रही थी। श्रेया की नाभि के निचे हल्का सा उभार और फिर एकदम चूत से थोडासा ऊपर वाला चढ़ाव और फिर चूतकी पंखुडियों की खाई देखते ही बनती थी। सबसे ज्यादा खूबसूरत श्रेया की गाँड़ का उतारचढ़ाव था। उन उतारचढ़ाव के ऊपर टिकी हुई रोहित की नजर हटती ही नहीं थी। और उस गाँड़ के दो खूबसूरत गालों की तो बात ही क्या? उन दो गालों के बिच जो दरार थी जिसमें श्रेया की कॉस्च्यूम के कपडे का एक छोटासा टुकड़ा फँसा हुआ था वह श्रेया की गाँड़ की खूबसूरती को ढकनेमें पूरी तरह असफल था।
रोहित का धीरज अब जवाब देने लगा था। अब वह श्रेया को पूरी तरह अनावृत (याने नग्न रूप में) देखना चाहते थे। रोहित ने श्रेया की कमर पर लटका हुआ उनका कॉस्टूयूम और निचे, श्रेया के पॉंव की और खिसकाया। श्रेया ने भी अपने पाँव बारी बारी से उठाकर उस कॉस्टूयूम को पाँव के निचे खिसका कर झुक कर उसे उठा लिया और किनारे पर फेंक दिया। अब श्रेया छाती तक गहरे पानी में पूरी तरह नंगी खड़ी थी। ना चाहते हुए भी रोहित नग्न श्रेयाकी खूबसूरती की नंगी अपर्णा से तुलना करने से अपने आपको रोक ना सका। हलांकि अपर्णा भी बलाकि खूबसूरत थी और नंगी अपर्णा कमाल की सुन्दर और सेक्सी थी, पर श्रेया में कुछ ऐसी कशिश थी जो अतुलनीय थी। हर मर्द को अपनी बीबी से दूसरे की बीबी हमेशा ज्यादा ही सुन्दर लगती है। रोहित ने नंगी श्रेया को घुमा कर अपनी बाँहों में आसानी से उठा लिया। हलकीफुलकी श्रेया को पानी में से उठाकर रोहित पानी के बाहर आये और किनारे रेतके बिस्तर में उसे लिटा कर रोहित उसके पास बैठ गए और रेत पर लेटी हुई नग्न श्रेया के बदन को ऐसे प्यार और दुलार से देखने लगे जैसे कई जन्मों से कोई आशिक अपनी माशूका को पहली बार नंगी देख रहा हो। ऐसे अपने पुरे बदन को घूरते हुए देख श्रेया शर्मायी और उसने रोहितकी ठुड्डी अपनी उँगलियों में पकड़ कर पूछा, "ओये! क्या देख रहे हो? इससे पहले किसी नंगी औरत को देखा नहीं क्या? क्या अपर्णा ने तुम्हें भी अपना पूरा नंगा बदन दिखाया नहीं?"
श्रेया की बात सुनकर रोहित सकपका गए और बोले, "ऐसी कोई बात नहीं, पर श्रेया तुम्हारी सुंदरता कमाल है। अब मैं समझ सकता हूँ की कैसे जीतूजी जैसे हरफनमौला आशिक को भी तुमने अपने हुस्न के जादू में बाँध रखा है।" रोहित फिर उठे और उठ कर रेत पर लेटी हुई श्रेया को अपनी दोनों टाँगों के बिच में लेते हुए श्रेया के बदन पर झुक कर अपना पूरा लम्बा बदन श्रेया के ऊपर से सटाकर उस पर ऐसे लेटे जिससे उसका पूरा वजन श्रेया पर ना पड़े। फिर अपने होँठों को श्रेया के होँठों से सटाकर उसे चुम्बन करने लगे। श्रेयाने भी रोहित के होँठों को अपने होँठों का रस चूमने का पूरा अवसर दिया और खुद भी बार बार अपना पेंडू उठाकर रोहित के फूल कर उठ खड़े हुए लण्ड का अपनी रस रिस रही चूत पर महसूस करने लगी। ऐसे ही लेटे हुए दो बदन एक दूसरे को महसूस करने में और एक दूसरे के बदन की प्यार और हवस की आग का अंदाज लगाने में मशगूल हो गए। उन्हें समय को कोई भी ख्याल नहीं था। श्रेया रोहित के होँठों को चूसकर उनकी लार बड़े प्यार से निगल रही थी। श्रेया की प्यासी चूत में गजब की मचलन हो रही थी। अनायास ही श्रेया का हाथ अपनी जाँघों के बिच चला गया।
श्रेया रोहित का लण्ड अपनी प्यासी चूत में डलवाने के लिए बेताब हो रही थी। जब रोहित श्रेया के होँठों का रस चूसने में लगे हुए थे तब श्रेया अपनी उँगलियों से अपनी चूत के ऊपरी हिस्से वाले होँठों को हिला रही थी। रोहित ने महसूस किया की श्रेया की चूत में अजीब सी हलचल होनी शुरू हो चुकी थी। रोहित श्रेया के ऊपर ही घूम कर अपना मुंह श्रेया की जाँघों के बिच में ले आये। रोहित का लण्ड श्रेया के मुंह को छू रहा था। श्रेया की चूत तब रोहित की प्यासी आँखों के सामने थी। श्रेया की चूत की झाँटें श्रेया ने इतने प्यार से साफ़ की थी की बस थोडेसे हलके हलके बाल नजर आ रहे थे। रोहित को बालों से भरी हुई चूत अच्छी नहीं लगती थी। वह हमेशा अपनी पत्नी अपर्णा की चूत भी साफ़ देखना चाहते थे। कई बार तो वह खुद ही अपर्णा की चूत की सफाई कर देते थे। श्रेया अपनी चूत में उंगलियां डाल कर अपनी उत्तजेना बढ़ा रही थी। रोहित ने श्रेया की उंगलियां हटाकर वहाँ अपनी जीभ रख दी। श्रेया की टाँगों को और चौड़ी कर श्रेया की चूत के द्वार पर त्वचा को रोहित चाटने लगे। अपनी जीभ की नोक को श्रेया की संवेदनशील त्वचा पर कुरेदते हुए रोहित श्रेया की चुदवाने की कामना को एक उन्माद के स्तर पर वह पहुंचाना चाहते थे। रोहित की जीभ लप लप श्रेया की चूत को चाटने और कुरेदने लगी। यह अनुभव श्रेया के लिए बड़ाही रोमांचक था क्यूंकि उसके पति जीतूजी शायद ही कभी अपनी बीबी की चूत को चाटते थे।
दूसरी तरफ रोहित का लण्ड एकदम घंटे की तरह खड़ा और कड़ा हो चुका था। श्रेया ने रोहित के निक्कर की इलास्टिकमें अपनी उंगली फँसायी और निक्कर को टांगो की और खिसकाने लगी। श्रेया रोहित का लण्ड देखना और महसूस करना चाहती थी। श्रेया ने रोहित की निक्कर को पूरी तरह उनके पाँव से निचे की और खिसका दिया ताकि रोहित अपने पाँव को मोड़ कर निक्कर को निकाल फेंक सके। निक्कर के निकलते ही, रोहित का खड़ा मोटा लण्ड श्रेया के मुंह के सामने प्रस्तुत हुआ। श्रेया ने रोहित का लंबा और मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और उसे प्यार से हिलाने और सहलाने लगी। श्रेया ने रोहित को पूछा, "रोहित, एक बात बताओ। तुमने मुझे कभी अपने सपने में देखा है? क्या मेरे साथ सपने में तुमने कुछ किया है?" रोहित ने श्रेयाकी चूतमें अपनी दो उँगलियाँ डालकर चूत की संवेदनशील त्वचा को उँगलियों में रगड़ते हुए कहा, "श्रेया, कसम तुम्हारी! एक बार नहीं, कई बार मैंने मेरी बीबी अपर्णा को श्रेया समझ कर चोदा है l एक बार तो अपर्णा को चोदते हुए मेरे मुंह से अनायास ही तुम्हारा नाम निकल गया। पर अपर्णा को समझ आये उससे पहले मैंने बात को बदल दिया ताकि उसे शक ना हो की चोद तो मैं उसे रहा था पर याद तुम्हें कर रहा था।"
हर औरत, ख़ास कर किसी और औरत के मुकाबले अपनी तारीफ़ सुनकर स्वाभाविक रूप से खुश होती ही है। मर्द लोग यह भलीभांति जानते हैं और अपनी जोड़ीदार को चुदाई के लिए तैयार करने के लिए यह ब्रह्मास्त्र का अक्सर उपयोग करते हैं। जो भी पति लोग मेरी इस कहानी को पढ़ रहे हों, ध्यान रखें की अपनी पत्नी को चुदाई के लिए तैयार करने के लिए हमेशा उसके रूप,गुण और बदन की खूब तारीफ़ करो। अगर कोई महिला इसे पढ़ रही है तो समझे की पति उनको वाकई में खूब प्रेम करते हैं और वह जो कह रहे हैं उसे सच समझे। आसमान में सूरज ढलने लगा था।
अचानक श्रेया को ख़याल आया की बातों बातों में समय जा रहा था। श्रेया ने रोहित से कहा, "यार समय जा रहा है। तुम्हारी बीबी तो मेरे पति को घास डालने वाली है नहीं। मेरे पति तो तुम्हारी बीबी को तैराकी सिखाते हुए ही रह जाएंगे। आखिर में रात को मुझे ही उनकी गर्मी निकालनी पड़ेगी। पर चलो तुम तो कुछ करो ना? तुम्हारे दोस्त की बीबी तो तैयार है।" रोहित श्रेया की उच्छृंखल खरी खरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए। श्रेया की साफ़ साफ़ बातें रोहित के लण्ड को फनफनाने के लिए काफी थीं। रोहित ने श्रेया को बैठा दिया और उनको अपनी बाँहों में उठा कर फिर पानी में ला कर रख दिया। किनारे के पत्थर पर श्रेया के हाथ टिका कर खुद श्रेया के पीछे आ गए और श्रेया की नंगी करारी और खूबसूरत गाँड़ की मन ही मन प्रशंशा करते हुए थोड़ा झुक कर श्रेया की गाँड़ की दरार में अपना लण्ड घुसेड़ा। श्रेया ने रोहित का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और अपनी चूत की पँखुड़ियों पर थोड़ा सा रगड़ते हुए, उसे अपनी चूत के द्वार पर टिका दिया। फिर अपनी चूत की पंखुड़ियों को फैलाकर अपने प्रेमछिद्र में उसे थोडासा घुसने दिया। अपनी गाँड़ को थोड़ा सा पीछे की और धक्का मार कर श्रेया ने रोहित को आव्हान किया की आगे का काम रोहित स्वयं करे। रोहित ने धीरे से श्रेया की छोटी सी नाजुक चूत में अपना मोटा लंबा और लोहे की छड़ के सामान कड़क खड़े लण्ड को थोड़ा सा घुसेड़ा। श्रेया पहली बार किसी मर्द से पानी में चुदवा रही थी। यहां तक की उस दिन तक उसने अपने पति से भी कभी पानी में खड़े रह कर चुदवाया नहीं था। यह पहला मौक़ा था की श्रेया पानीमें खड़े खड़े चुदवा रही थी और वह भी एक पराये मर्द से।
रोहित ने धीरे धीरे श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेलना शुरू किया। श्रेया की चूत का मुंह छोटा होने के कारण श्रेया को दर्द हो रहा था। पर श्रेयाको इस दर्दकी आदतसी हो गयीथी। रोहित का लण्ड शायद श्रेया के पति जीतूजी के लण्ड मुकाबले उन्न्नीस ही होगा। पर फिर भी श्रेया को कष्ट हो रहा था। श्रेया ने अपनी आँखें मूंदलीं और रोहित से अच्छीखासी चुदाई के लिए अपने आपको तैयार कर लिया। धीरे धीरे दर्द कम होने लगा और उन्माद बढ़ने लगा। श्रेया भी कई महीनों से रोहित से चुदवाने के लिए बेक़रार थी। यह सही था की श्रेया ने अपने पति से रोहित से चुदवाने के लिये कोई इजाजत या परमिशन तो नहीं ली थी पर वह जानती थी की जीतूजी उसके मन की बात भलीभांति जानते थे। जीतूजी जानते थे की आज नहीं तो कल उनकी पत्नी रोहित से चुदेगी जरूर। धीरे धीरे रोहित का लण्ड श्रेया की चूत की पूरी सुरंग में घुस गया। रोहित का एक एक धक्का श्रेया को सातवें आसमान को छूने का अनुभव करा रहा था। रोहित का धक्का श्रेया के पुरे बदन को हिला देता था। श्रेया की दोनों चूँचियाँ रोहित ने अपनी हथेलियों में कस के पकड़ रक्खी थीं। रोहित थोड़ा झुक कर अपना लण्ड पुरे जोश से श्रेया की चूत में पेल रहे थे। रोहित की चुदाई श्रेया को इतनी उन्मादक कर रही थी की वह जोर से कराह कर अपनी कामातुरता को उजागर कर रही थी। श्रेया की ऊँचे आवाज वाली कराहट वाटर फॉल के शोर में कहीं नहीं सुनाई पड़ती थी। श्रेया उस समय रोहित के लण्ड का उसकी चूत में घुसना और निकलना ही अनुभव कर रही थी। उस समय उसे और कोई भी एहसास नहीं हो रहा था। रोहित उत्तेजना से श्रेया की चूतमें इतना जोशीला धक्का मार रहे थे की कई बार श्रेया ड़र रही थी की रोहित का लण्ड उसकी बच्चे दानी को ही फाड़ ना दे।
श्रेया को दर्द का कोई एहसास नहीं हो रहा था। दर्द जैसे गायब ही हो गया था और उसकी जगह रोहित का लण्ड श्रेया को अवर्णनीय सुख और उन्माद दे रहा था। जैसे रोहित का लण्ड श्रेया की चूत की सुरंगमें अंदर बाहर हो रहा था, श्रेया को एक अद्भुत एहसास हो रहा था। श्रेया न सिर्फ रोहित से चुदवाना चाहती थी; उसे रोहित से तहे दिल से प्यार था। उनकी कुशाग्र बुद्धिमत्ता, उनकी किसी भी मसले को प्रस्तुत करनेकी शैली, बातें करते समय उनके हावभाव और सबसे ज्यादा उनकी आँखों में जो एक अजीब सी चमक ने श्रेया के मन को चुरा लिया था। श्रेया रोहित से इतनी प्रभावित थी की वह उनसे प्यार करने लगी थी। अपने पति से प्यार होते हुए भी वह रोहित से भी प्यार कर बैठी थी। अक्सर यह शादीशुदा स्त्री और पुरुष दोनों में होता है। अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़ किसी और स्त्री से प्यार करने लगता है और उससे सेक्स करता है (उसे चोदता है) तो इसका मतलब यह नहीं है की वह अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता। ठीक उसी तरह अगर कोई शादीशुदा स्त्री किसी और पुरुष को प्यार करने लगती है और वह प्यार से उससे चुदाई करवाती है तो इसका कतई भी यह मतलब नहीं निकालना चाहिए की वह अपने पति से प्यार नहीं करती।
हाँ यदि यह प्यार शादीशुदा पति या पत्नी के मन में उस परायी व्यक्ति के लिए पागलपन में बदल जाए जिससे वह अपने जोड़ीदार को पहले वाला प्यार करने में असमर्थ हो तब समस्या होती है। बात वहाँ उलझ जाती है जहां स्त्री अथवा पुरुष अपने जोड़ीदार से यह अपेक्षा रखते हैं की उसका जोड़ीदार किसी अन्य व्यक्ति से प्यार ना करे और चुदाई तो नाही करे या करवाए। बात अधिकार माने अहम् पर आकर रुक जाती है। समस्या यहां से ही शुरू होती है। जहां यह अहम् नहीं होता वहाँ समझदारी की वजह से पति और पत्नी में पर पुरुष या स्त्री के साथ गमन करने से (मतलब चोदने या चुदवाने से) वैमनस्यता (कलह) नहीं पैदा होती। बल्कि इससे बिलकुल उलटा वहाँ ज्यादा रोमांच और उत्तेजना के कारण उस चुदाई में सब को आनंद मिलता है यदि उसमें स्पष्ट या अष्पष्ट आपसी सहमति हो। श्रेया को रोहितसे तहे दिल से प्यार था और वही प्यार के कारण दोनों बदन में मिलन की कामना कई महीनों से उजागर थी। तलाश मौके की थी। श्रेया ने रोहित को जबसे पहेली बार देखा था तभी से वह उससे बड़ी प्रभावित थी। उससे भी कहीं ज्यादा जब श्रेया ने देखा की रोहित उसे देख कर एकदम अपना होशोहवास खो बैठते थे तो वह समझ गयी की कहीं ना कहीं रोहित के मन में भी श्रेया के लिए वही प्यार था और उनकी श्रेया के कमसिन बदन से सम्भोग (चोदने) की इच्छा प्रबल थी यह महसूस कर श्रेया की रोहित से चुदवाने की इच्छा दुगुनी हो गयी। जैसे जैसे रोहित ने श्रेया को चोदने की रफ़्तार बढ़ाई, श्रेया का उन्माद भी बढ़ने लगा। जैसे ही रोहित श्रेया की चूत में अपने कड़े लण्ड का अपने पेंडू के द्वारा एक जोरदार धक्का मारता था, श्रेया का पूरा बदन ना सिर्फ हिल जाता था, श्रेया के मुंह से प्यार भरी उन्मादक कराहट निकल जाती थी। अगर उस समय वाटर फॉल का शोर ना होता तो श्रेया की कराहट पूरी वादियों में गूंजती। रोहित की बुद्धि और मन में उस समय एक मात्र विचार यह था की श्रेया की चूत में कैसे वह अपना लण्ड गहराई तक पेल सके जिससे श्रेया रोहित से चुदाई का पूरा आनंद ले सके। पानीमें खड़े हो कर चुदाई करने से रोहित को ज्यादा ताकत लगानी पड़ रही थी और श्रेया की गाँड़ पर उसके टोटे (अंडकोष) उतने जोर से थप्पड़ नहीं मार पाते थे जितना अगर वह श्रेया को पानी के बाहर चोदते। पर पानी में श्रेया को चोदने का मजा भी तो कुछ और था। श्रेया को भी रोहित से पानी में चुदाई करवाने में कुछ और ही अद्भुत रोमांच का अनुभव हो रहा था।
रोहित एक हाथ से श्रेया की गाँड़ के गालों पर हलकी सी प्यार भरी चपत अक्सर लगाते रहते थे जिसके कारण श्रेया का उन्माद और बढ़ जाता था। श्रेया की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए रोहित का एक हाथ श्रेया को दोनों स्तनोँ पर अपना अधिकार जमाए हुए था। रोहित को कई महीनों से श्रेया को चोदने के चाह के कारण रोहित के एंड कोष में भरा हुआ वीर्य का भण्डार बाहर आकर श्रेया की चूत को भर देने के लिए बेताब था। रोहित अपने वीर्य की श्रेया की चूत की सुरंग में छोड़ने की मीठी अनुभूति करना चाहते थे। श्रेया की नंगी गाँड़ जो उनको अपनी आँखों के सामने दिख रही थी वह रोहित को पागल कर रही थी। रोहित का धैर्य (या वीर्य?) छूटने वाला ही था। श्रेया ने भी अनुभव किया की अगर उसी तरह रोहित उसे चोदते रहे तो जल्द ही रोहित अपना सारा वीर्य श्रेया की सुरंग में छोड़ देंगे। श्रेया को पूरी संतुष्टि होनी बाकी थी। उसे चुदाई का और भी आनंद लेना था। श्रेया ने रोहित को रुकने के लिए कहा। रोहित के रुकते ही श्रेया ने रोहित को पानी के बाहर किनारे पर रेत में सोने के लिए अनुग्रह किया। रोहित रेत पर लेट गए। श्रेया शेरनी की तरह रोहित के ऊपर सवार हो गयी। श्रेया ने रोहित का फुला हुआ लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और अपना बदन नीचा करके रोहित का पूरा लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ दिया।
अब श्रेया रोहित की चुदाई कर रही थी। श्रेया को उस हाल में देख ऐसा लगता था जैसे श्रेया पर कोई भूत सवार हो गया हो। श्रेया अपनी गाँड़ के साथ अपना पूरा पेंडू पहले वापस लेती थी और फिर पुरे जोश से रोहित के लण्ड पर जैसे आक्रमण कर रही हो ऐसे उसे पूरा अपनी चूत की सुरंग में घुसा देती थी। ऐसा करते हुए श्रेया का पूरा बदन हिल जाता था। श्रेया के स्तन इतने हिल तरहे थे की देखते ही बनता था। श्रेया की चूत की फड़कन बढ़ती ही जा रही थी। श्रेया का उन्माद उस समय सातवें आसमान पर था। श्रेया को उस समय अपनी चूत में रगड़ खा रहे रोहित के लण्ड के अलावा कोई भी विचार नहीं आ रहा था। वह रगड़ के कारण पैदा हो रही उत्तेजना और उन्माद श्रेया को उन्माद की चोटी पर लेजाने लगा था। श्रेया के अंदर भरी हुई वासना का बारूद फटने वाला था। रोहित को चोदते हुए श्रेया की कराहट और उन्माद पूर्ण और जोरदार होती जा रही थी। रोहित का वीर्य का फव्वारा भी छूटने वाला ही था। अचानक रोहित के दिमाग में जैसे एक पटाखा सा फूटा और एक दिमाग को हिला देने वाले धमाके के साथ रोहित के लण्ड के केंद्रित छिद्र से उसके वीर्य का फव्वारा जोरसे फुट पड़ा। जैसे ही श्रेया ने अपनी चूत की सुरंग में रोहित के गरमा गरम वीर्य का फव्वारा अनुभव किया की वह भी अपना नियत्रण खो बैठी और एक धमाका सा हुआ जो श्रेया के पुरे बदन को हिलाने लगा। श्रेया को ऐसा लगा जैसे उसके दिमाग में एक गजब का मीठा और उन्मादक जोरदार धमाका हुआ। जिसकेकारण उसका पूरा बदन हिल गया और उसकी पूरी शक्ति और ऊर्जा उस धमाके में समा गयी। चंद पलों में ही श्रेया निढाल हो कर रोहित पर गिर पड़ी। रोहित का लण्ड तब भी श्रेया की चूत में ही था। पर श्रेया अपनी आँखें बंद कर उस अद्भुत अनुभव का आनंद ले रही थी।
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