Update 15
पत्नी की अदला-बदली - 06
अपर्णा जैसे ही जीतूजी की बाँहों में समायी उसने जीतूजी के खड़े लण्ड को महसूस किया। अपर्णा जानती थी की जीतूजी उस पर कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे पर बेचारा जीतूजी का लण्ड कहाँ मानने वाला था? अपर्णा को ऐसे स्विमिंग कॉस्च्यूम में देख कर जीतूजी के लण्ड का खड़ा होकर जीतूजी की निक्कर में फनफनाना स्वाभाविक ही था। अपर्णा को जीतूजी के लण्ड से कोई शिकायत नहीं थी। दो बार अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड की गरमी अपने दक्ष हाथों के जादू से निकाल दी थी। अपर्णा जीतूजी के लण्ड की लम्बाई और मोटाई के बारे में भलीभांति वाकिफ थी। पर उस समय उसका एक मात्र लक्ष्य था की उसे जीतूजी से तैरना सीखना था। कई बार अपर्णा को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नहीं सीखा था। काफी समय से अपर्णा के मन में यह एक प्रबल इच्छा थी की वह तैरना सीखे। जीतूजी जैसे आला प्रशिक्षक से जब उसे तैरना सिखने का मौक़ा मिला तो भला वह उसे क्यों जाने दे? जहां तक जीतूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह अपर्णाके लिए उतनी गंभीर बात नहीं थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का स्थान ह्रदयके इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी जिंदगी जीतूजी पर कुर्बान कर देती। जीतूजी और अपर्णा के संबंधों को लेकर बार बार अपने पति के उकसाने के कारण अपर्णा के पुरे बदन में जीतूजी का नाम सुनकर ही एक रोमांच सा हो जाता था। जीतूजी से शारीरिक संबंधों के बारेमें अपर्णा के मन में हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला जिसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?
अपर्णा मन में कहीं ना कहीं जीतूजी को अपना प्रियतम तो मान ही चुकी थी। अपर्णा के मन में जीतूजी का शारीरिक और मानसिक आकर्षण उतना जबरदस्त था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नहीं होते तो शायद अब तक अपर्णा जीतूजी से चुद चुकी होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी जीतूजी से अपर्णा के मन में कुछ शर्म और लज्जा और दुरी का भाव था। या यूँ कहिये की कोई दुरी नहीं होती है तब भी जिसे आप इतना सम्मान करते हैं और उतना ही प्यार करते हो तो उसके सामने निर्लज्ज तो नहीं हो सकते ना? उनसे कुछ लज्जा और शर्म आना स्वाभाविक भारतीय संस्कृति है। जब जीतूजी के सामने अपर्णा ने आधी नंगी सी आने में हिचकि-चाहट की तो जीतूजी की रंजिश अपर्णा को दिखाई दी। अपर्णा जानती थी की जीतूजी कभी भी अपर्णा को बिना रजामंदी के चोदने की बात तो दूर वह किसी भी तरह से छेड़ेंगे भी नहीं। पर फिर भी अपर्णा कभी इतने छोटे कपड़ों में सूरज के प्रकाश में जीतूजी के सामने प्रस्तुत नहीं हुई थी। इस लिए उसे शर्म और लज्जा आना स्वाभाविक था। शायद ऐसे कपड़ों में पत्नीयाँ भी अपने पति के सामने हाजिर होने से झिझकेंगी। जब जीतूजी ने अपर्णा की यह हिचकिचाहट देखि तो उन्हें दुःख हुआ। उनको लगा अपर्णा को उनके करीब आने डर रही थी की कहीं जीतूजी अपर्णा पर जबरदस्ती ना कर बैठे। हार कर जीतूजी पानी से बाहर निकल आये और कैंप में वापस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपर्णा से इतना ही कहा की जब अपर्णा उन्हें अपना नहीं मानती और उनसे पर्दा करती है तो फिर बेहतर है वह अपर्णा से दूर ही रहें।
इस बात से अपर्णा को इतना बुरा लगा की वह भाग कर जीतूजी की बाँहों में लिपट गयी और उसने जीतूजी से कहा, "अब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मैं आपको अपनों से कहीं ज्यादा मानती हूँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।" उसी समय अपर्णा ने तय किया की वह जीतूजी पर पूरा विश्वास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ जीतूजी के हाथों में सौंप दिया।
पर जीतूजी भी तो अकड़ू थे। वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे। ट्रैन में सफर करते हुए जीतूजी अपर्णा के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे। कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब अपर्णा ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह अपर्णा के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था। उन्होंने अपर्णा के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक अपर्णा सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह अपर्णा को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे। पर फीर भी ट्रैन में उस रात अपर्णा के थोड़ा उकसाने पर वह अपर्णा के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जीतूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।
अपर्णा ने तो अपने मन में तय कर लिया की जीतूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जीतूजी ने अपर्णा को चोदने की इच्छा जताई तो अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा। पर अपर्णाको पूरा भरोसा था की जीतूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी अपर्णा का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।
जीतूजी ने अपर्णा को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा। खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए अपर्णा को दिखाया। और अपर्णा को भी ऐसा ही करने को कहा। अपर्णा जीतूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जीतूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह अपर्णा की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए। अपर्णा की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी का लण्ड जीतूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जीतूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जीतूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया। जीतूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने अपर्णा के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब अपर्णा ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। वह जानती थी की जीतूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। अपर्णा को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जीतूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।
खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामा और कहा, "जीतूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "अपर्णा मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। श्रेया के लिए भी नहीं।" अपर्णा ने कहा, "जीतूजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की 'पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की लगती है। अपर्णा जीतूजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हंस पड़े और अपर्णा की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।" अपर्णा जीतूजी की नजर अपनी गाँड़ पर फिरती हुई देख कर शर्मा गयी और उसे नजर अंदाज करते हुए उलटा लेटे हुए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे जीतूजी ने बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।
पर जीतूजी भी तो अकड़ू थे। वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे। ट्रैन में सफर करते हुए जीतूजी अपर्णा के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे। कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब अपर्णा ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह अपर्णा के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था। उन्होंने अपर्णा के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक अपर्णा सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह अपर्णा को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे। पर फीर भी ट्रैन में उस रात अपर्णा के थोड़ा उकसाने पर वह अपर्णा के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जीतूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।
अपर्णा ने तो अपने मन में तय कर लिया की जीतूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जीतूजी ने अपर्णा को चोदने की इच्छा जताई तो अपर्णा जीतूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा। पर अपर्णाको पूरा भरोसा था की जीतूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी अपर्णा का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।
जीतूजी ने अपर्णा को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा। खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए अपर्णा को दिखाया। और अपर्णा को भी ऐसा ही करने को कहा। अपर्णा जीतूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जीतूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह अपर्णा की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए। अपर्णा की नंगी गाँड़ देख कर जीतूजी का लण्ड जीतूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जीतूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जीतूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया। जीतूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने अपर्णा के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब अपर्णा ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। वह जानती थी की जीतूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। अपर्णा को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जीतूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।
खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामा और कहा, "जीतूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "अपर्णा मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। श्रेया के लिए भी नहीं।" अपर्णा ने कहा, "जीतूजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की 'पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की लगती है। अपर्णा जीतूजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हंस पड़े और अपर्णा की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, "अपर्णा, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।"
अपर्णा जीतूजी की नजर अपनी गाँड़ पर फिरती हुई देख कर शर्मा गयी और उसे नजर अंदाज करते हुए उलटा लेटे हुए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे जीतूजी ने बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।
पर ऐसा करने से तो जीतूजी को अपर्णा की चूत पर टिकाई हुई अपर्णा की कॉस्टूयूम की पट्टी खिसकती दिखी और एक पल के लिए अपर्णा की खूबसूरत चूत का छोटा सा हिस्सा दिख गया। यह नजारा देख कर जीतूजी का मन डाँवाँडोल हो रहा था। अपर्णा काफी कोशिश करने पर भी पानी की सतह पर ठीक से लेट नहीं पा रही थी और बार बार उसक पाँव जमीन को छू लेते थे। जीतूजी ने बड़ी मुश्किल से अपनी नजर अपर्णा की जाँघों के बिच से हटाई और अपर्णा के पेट के निचे अपना हाथ देकर अपर्णा को ऊपर उठाया। अपर्णा ने वैसे ही अपने पाँव काफी ऊपर तक उठा कर पछाड़ती रही और ना चाहते हुए भी जीतूजी की नजर अपर्णा की चूत के तिकोने हिस्से को बारबार देखने के लिए तड़पती रही। अपर्णा जीतूजी के मन की दुविधा भलीभाँति जानती थी पर खुद भी तो असहाय थी। ऐसे ही कुछ देर तक पानी में हाथ पाँव मारने के बाद जब अपर्णा कुछ देर तक पानी की सतह पर टिकी रह पाने लगी तब जीतूजी ने अपर्णा से कहा, "अब तुम पानी की सतह पर अपना बदन तैरता हुआ रख सकती हो। क्या अब तुम थोड़ा तैरने की कोशिश करने के लिए तैयार हो?"
अपर्णा को पानी से काफी डर लगता था। उसने जीतूजी से लिपट कर कहा, "जैसे आप कहो। पर मुझे पानी से बहुत डर लगता है। आप प्लीज मुझे पकडे रखना।" जीतूजी ने कहा, "अगर मैं तुम्हें पकड़ रखूंगा तो तुम तैरना कैसे सिखोगी? अपनी और से भी तुम्हें कुछ कोशिश तो करनी पड़ेगी ना?" अपर्णा ने कहा, "आप जैसा कहोगे, मैं वैसा ही करुँगी। अब मेरी जान आप के हाथ में है।" जीतूजी और अपर्णा फिर थोड़े गहरे पानी में आ गए। अपर्णा का बुरा हाल था। वह जीतूजी की बाँह पकड़ कर तैरने की कोशिश कर रही थी। जीतूजी ने अपर्णा को पहले जैसे ही पानी की सतह पर उलटा लेटने को कहा और पहले ही की तरह पाँव उठाकर पछाड़ने को कहा, साथ साथ में हाथ हिलाकर पानी पर तैरते रहने की हिदायत दी। पहली बार अपर्णा ने जब जीतूजी का हाथ छोड़ा और पानी की सतह पर उलटा लेटने की कोशिश की तो पानी में डूबने लगी। जैसे ही पानी में उसका मुंह चला गया, अपर्णा की साँस फूलने लगी। जब वह साँस नहीं ले पायी और कुछ पानी भी पी गयी तो वह छटपटाई और इधर उधर हाथ मारकर जीतूजी को पकड़ने की कोशिश करने लगी। दोनों हाथोँ को बेतहाशा इधर उधर मारते हुए अचानक अपर्णा के हाथों की पकड़ में जीतूजी की जाँघें आ गयी। अपर्णा जीतूजी की जाँघों को पकड़ पानी की सतह के ऊपर आने की कोशिश करने लगी और ऐसा करते ही जीतूजी की निक्कर का निचला छोर उसके हाथों में आ गया। अपर्णा ने छटपटाहट में उसे कस के पकड़ा और खुद को ऊपर उठाने की कोशिश की तो जीतूजी की निक्कर पूरी निचे खिसक गयी और जीतूजी का फुला हुआ मोटा लण्ड अपर्णा के हांथों में आ गया। जान बचाने की छटपटाहट के मारे अपर्णा ने जीतूजी के लण्ड को कस के पकड़ा और उसे पकड़ कर खुद को ऊपर आने की लिए खिंच कर हिलाने लगी।
अपर्णा के मन में एक तरफ अपनी जान बचाने की छटपटाहट थी तो कहीं ना कहीं जीतूजी का मोटा और काफी लंबा लण्ड हाथों में आने के कारण कुछ अजीब सी उत्तेजना भी थी। जीतूजी ने पानी के निचे अपना लण्ड अपर्णा के हाथों में महसूस किया तो वह उछल पड़े। उन्होंने झुक कर अपर्णा का सर पकड़ा और अपर्णा को पानी से बाहर निकाला। अपर्णा काफी पानी पी चुकी थी। अपर्णा की साँसे फूल रही थीं।
जीतूजी अपर्णा को अपनी बाँहों में उठाकर चल कर किनारे ले आये और रेत में लिटा कर अपर्णा के उन्मत्त स्तनोँ के ऊपर अपने हाथों से अपना पूरा वजन देकर उन्हें दबाने लगे जिससे अपर्णा पीया हुआ पानी उगल दे और उसकी साँसें फिर से साधारण चलने लग जाएँ। तीन या चार बार यह करने से अपर्णा के मुंह से काफी सारा पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। जैसेही पानी निकलातो अपर्णा की साँसे फिर से साधारण गति से चलने लगीं। अपर्णा ने जब आँखें खोलीं तो जीतूजी को अपने स्तनोँ को दबाते हुए पाया। अपर्णा ने देखा की जीतूजी अपर्णा को लेकर काफी चिंतित थे। उन्हें यह भी होश नहीं था की अफरातफरी में उनकी निक्कर पानी में छूट गयी थी और वह नंगधडंग थे। जीतूजी यह सोच कर परेशान थे की कहीं अपर्णा की हालत और बिगड़ गयी तो किसको बुलाएंगे यह देखने के लिए वह इधर उधर देख रहे थे। अपर्णा फिर अपनी आँखें मूंद कर पड़ी रही। जीतूजी का हाथ जो उसके स्तनों को दबा रहा था अपर्णा को वह काफी उत्तेजित कर रहा था। पर चूँकि अपर्णा जीतूजी को ज्यादा परेशान नहीं देखना चाहती थी इस लिए उसने जीतूजी का हाथ पकड़ा ताकि जीतूजी समझ जाएँ की अपर्णा अब ठीक थी, पर वैसे ही पड़ी रही। चूँकि अपर्णा ने जीतूजी का हाथ कस के पकड़ा था, जीतूजी अपना हाथ अपर्णा के स्तनोँ पर से हटा नहीं पाए।
जब जीतूजी ने अपर्णाके स्तनोँ के ऊपरसे अपना हाथ हटा ने की कोशिश की तब अपर्णा ने फिर से उनका हाथ कस के पकड़ा और बोली, "जीतूजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अच्छा लग रहा है।" ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी को अपने स्तनोँ को दबाने की छूट देदी। जीतूजी ना चाहते हुए भी अपर्णा के उन्नत स्तनोँ को मसलने से अपने आपको रोक नहीं पाए। अपर्णा ने अपना हाथ खिसकाया और जीतूजी का खड़ा अल्लड़ लण्ड एक हाथ में लिया तब जीतूजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडंग थे। जीतूजी अपर्णा के हाथ से अपना लण्ड छुड़ाकर एकदम भाग कर पानी में चले गए और अपनी निक्कर ढूंढने लगे। जब उनको निक्कर मिल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की अपर्णा जीतूजी के पीछे चलती हुई उनके पास पहुँच गयी। जीतूजी के हाथ से एक ही झटके में उनकी निक्कर छिनती हुई बोली, "जीतूजी, निक्कर छोड़िये। अब हम दोनों के बिच कोई पर्दा रखने की जरुरत नहीं है।"
ऐसा कह कर अपर्णा ने जीतूजी की निक्कर को पानी के बाहर फेंक दिया। फिर अपर्णा ने अपनी बाँहें फैला कर जीतूजी से कहा, "अब मुझे भी कॉस्च्यूम को पहनने की जरुरत नहीं है। चलिए मुझे आप अपना बना लीजिये। या मैं यह कहूं की आइये और अपने मन की सारी इच्छा पूरी कीजिये?" यह कह कर जैसे ही अपर्णा अपना कॉस्टूयूम निकाल ने के लिए तैयार हुई की जीतूजी ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोले, "अपर्णा नहीं। खबरदार! तुम अपना कॉस्टूयूम नहीं निकालोगी। मैं तुम्हें सौगंध देता हूँ। मैं तुम्हें तभी निर्वस्त्र देखूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समर्पित करोगी जब तुम्हारा प्रण पूरा होगा। मैं तुम्हें अपना वचन तोडने नहीं दूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कई जन्मों तक ही इंतजार क्यों ना करना पड़े।" यह बात सुनकर अपर्णा का ह्रदय जैसे कटार के घाव से दो टुकड़े हो गया। अपने प्रीयतम के ह्रदय में वह कितना दुःख दे रही थी? अपर्णा ने अपने आपको जीतूजी को समर्पण करना भी चाहा पर जीतूजी थे की मान नहीं रहे थे! वह क्या करे? अब तो जीतूजी अपर्णा के कहने पर भी उसे कुछ नहीं करेंगे। अपर्णा दुःख और भावनात्मक स्थिति में और कुछ ना बोल सकी और जीतूजी से लिपट गयी। जीतूजी का खड़ा फनफनाता लण्ड अपर्णा की चूत में घुसने के लिए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मालिक की नामर्जी के कारण असहाय था। इस मज़बूरीमें जब अपर्णा जीतूजी से लिपट गयी तो वह अपर्णा के कॉस्च्यूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।
जीतूजी ने सारी इधर उधर की बातों पर ध्यान ना देते हुए कहा, "देखो अपर्णा, तैरने का एक मूलभूत सिद्धांत समझो। जब आप पानी में जाते हो तो यह समझलो की पानी आपको अपने अंदर नहीं रखना चाहता। हमारा शरीर पानी से हल्का है। पर हम इसलिए डूबते हैं क्यूंकि हम डूबना नहीं चाहते और इधर उधर हाथ पाँव मारते हैं l पानी की सतह पर अगर आप अपना बदन ढीला छोड़ देंगे और भरोसा रखोगे की पानी आपको डुबाएगा नहीं तो आप डूबेंगे नहीं। इसके बाद सुनियोजित ताल मेल से हाथ और पाँव चलाइये। आप पानी में ना सिर्फ तैरेंगे बल्कि आप पानी को काट कर आगे बढ़ेंगे। यही सुनियोजित तालमेल से हाथ पैर चलाने को ही तैरना कहते हैं।" अपर्णा जीतूजी की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसे जीतूजी पर बड़ा ही प्यार आ रहा था। उस समय जीतूजी का पूरा ध्यान अपर्णा को तैराकी सिखाने पर था। मनसे असहाय और दुखी अपर्णा को लेकर जीतूजी फिर से गहरे पानी में पहुँच गए और फिर से अपर्णा को पहले की तरहही प्रैक्टिस करने को कहा। धीरे धीरे अपर्णा का आत्म विश्वास बढ़ने लगा। अपर्णा जीतूजी की कमर छोड़ कर अपने आपको पानी की सतह पर रखना सिख गयी। इस बिच दो घंटे बीत चुके थे। जीतूजी ने अपर्णा को कहा, "आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी हम कल करेंगे।" यह कह कर जीतूजी पानी के बाहर आगये और अपर्णा अपना मन मसोसती हुई महिलाओं के शावर रूम में चलीगयी।
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अपर्णा जब एकपडे बदल कर बाहर निकली तो जीतूजी बाहर नहीं निकले थे। अपर्णा को उसके पति रोहित और श्रेया आते हुए दिखाई दिए। दोनों ही काफी थके हुए लग रहे थे। अपर्णा को अंदाज हो गया की हो सकता है रोहित की मन की चाहत उस दोपहर को पूरी हो गयी थी। श्रेया भी पूरी तरह थकी हुई थी। अपर्णा को देखते ही श्रेया ने अपनी आँखें निचीं करलीं। अपर्णा समझ गयी की पतिदेव ने श्रेया जी की अच्छी खासी चुदाई करी होगी। अपर्णा ने जब अपने पति की और देखा तो उन्होंने ने भी झेंपते हुए जैसे कोई गुनाह किया हो ऐसे अपर्णा से आँख से आँख मिला नहीं पाए। अपर्णा मन ही मन मुस्कुरायी। वह अपने पति के पास गयी और अपनी आवाज और हावभाव में काफी उत्साह लाने की कोशिश करते हुए बोली, "डार्लिंग, जीतूजी ना सिर्फ मैथ्स के बल्कि तैराकी के भी कमालके प्रशिक्षक हैं। मैं आज काफी तैरना सिख गयी।" रोहित ने अपनी पत्नी का हाथ थामा और थोड़ी देर पकडे रखा। फिर बिना कुछ बोले कपडे बदल ने के लिए मरदाना रूम में चले गए।
अब श्रेया और अपर्णा आमने सामने खड़े थे।
श्रेया अपने आपको रोक ना सकी और बोल पड़ी, "अच्छा? मेरे पतिदेवने तुम्हें तैरने के अलावा और कुछ तो नहीं सिखाया ना?" अपर्णा भाग कर श्रेया जी से लिपट गयी और बोली, "दीदी आप ऐसे ताने क्यों मार रही हो? क्या आपको बुरा लगा? अगर ऐसा है तो मैं कभी आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगी। मैं जीतूजी के पास फरकुंगी भी नहीं। बस?" श्रेया जी ने अपर्णा को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, "पगली, मैं तो तुम्हारी टांग खिंच रही थी। मैं जानती हूँ, मेरे पति तुम्हें तुम्हारी मर्जी बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। और तुमने तो मुझे पहले ही बता दिया है। तो फिर मैं चिंता क्यों करूँ? बल्कि मुझे उलटी और चिंता हो रही है। मुझे लग रहा है की कहीं निराशा या निष्फलता का भाव आप और जीतूजी के सम्बन्ध पर हावी ना हो जाए।"
अपर्णा को गले लगाते हुए श्रेया की आँखों में आंसूं छलक आये। श्रेया अपर्णा को छाती पर चीपका कर बोली, "अपर्णा! मेरी तुमसे यही बिनती है की तुम मेरे जीतूजी का ख्याल रखना। मैं और कुछ नहीं कहूँगी।" अपर्णा ने श्रेया जी के गाल पर चुम्मी करते हुए कहा, "दीदी, जीतूजी सिर्फ आपके ही नहीं है। वह मेरे भी हैं। मैं उनका पूरा ख्याल। रखूंगी।"
कुछ ही देर में सब कपडे बदल कर कैंप के डाइनिंग हॉल में खाना खाने पहुंचे। खाना खाने के समय अपर्णा ने महसूस किया की जीतूजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दरम्यान वह कुछ बोले बिना चुप रहे। अपर्णा ने सोचा की शायद जीतूजी उससे नाराज थे। भोजन के बाद जब सब उठ खड़े हुए तब जीतूजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर विचारों में उलझे लग रहे थे। अपर्णा को मन ही मन अफ़सोस हो रहा था की जीतूजी जैसे रंगीले जांबाज़ को अपर्णा ने कैसे रंगीन से गमगीन बना दिया था। अपर्णा भी जानबूझ कर खाने में देर करती हुई बैठी रही। श्रेया सबसे पहले भोजन कर "थक गयी हूँ, थोड़ी देर सोऊंगी" यह कह कर अपने कमरे की और चल पड़ी। उसके पीछे पीछे रोहित भी, "आराम तो करना ही पड़ेगा" यह कह कर उठ कर चल पड़े। जब दोनों निकल पड़े तब अपर्णा जीतूजी के करीब जा बैठी और हलकेसे जीतूजी से बोली, "आप मेरे कारण दुखी हैं ना?" जीतूजी ने अपर्णा की और कुछ सोचते हुए आश्चर्य से देखा और बोले, "नहीं तो। मैं आपके कारण क्यों परेशान होने लगा?" "तो फिर आप इतने चुपचाप क्यों है?" अपर्णा ने पूछा l "मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। यही गुत्थी उसुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ।" जीतूजी ने जवाब दिया। "गुत्थी? कैसी गुत्थी?" अपर्णा ने भोलेपन से पूछा। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था की जीतूजी आने आप पर अपर्णा के सामने इतना नियंत्रण रखने के कारण परेशान हो रहे होंगे।" "मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं?" जीतूजी कुछ गंभीर सोच में थे यह अपर्णा समझ गयी। जीतूजी ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "एक कहावत है की एक बार हो तो हादसा, दूसरी बार हो तो संयोग पर अगर तीसरी बार भी होता है तो समझो की खतरे की घंटी बज रही है।"
अपर्णा बुद्धू की तरह जीतूजीको देखती ही रही। उसकी समझमें कुछभी नहीं आ रहा था। जीतूजी ने अपर्णा के उलझन भरे चेहरे की और देखा और अपर्णा का नाक पकड़ कर हिलाते हुए बोले, "अरे मेरी बुद्धू रानी, पहली बार कोई मेरे घरमें से मेरा पुराना लैपटॉप और एक ही जूता चुराता है, यह तो मानलो हादसा हुआ। फिर कोई मेरा और तुम्हारे पतिदेव रोहित का पीछा करता है। मानलो यह एक संयोग था l फिर कोई संदिग्ध व्यक्ति टिकट चेकर का भेस पहन कर हमारे ही डिब्बे में सिर्फ हमारे ही पास आ कर हम से पूछ-ताछ करता है की हम कहाँ जा रहे हैं। मानलो यह भी एक अद्भुत संयोग था। उसके बाद कोई व्यक्ति स्टेशन पर हमारा स्वागत करता है, हमें हार पहनाता है और हमारी फोटो खींचता है l क्यों भाई? हम लोग कौनसे फिल्म स्टार या क्रिकेटर हैं जो हमारी फोटो खींची जाए? और आखिर में कोई बिना नंबर प्लेट की टैक्सी वाला हमें आधे से भी कम दाम में स्टेशन से लेकर आता है और रास्ते में बड़े सलीके से तुम से हमारे कार्यक्रम के बारे में इतनी पूछताछ करता है? क्या यह सब एक संयोग था?" अपर्णा के खूबसूरत चेहरे पर कुछ भी समझ में ना आने के भाव जब जीतूजी ने देखे तो वह बोले, "कुछ तो गड़बड़ है। सोचना पड़ेगा।" कह कर जीतूजी उठ खड़े हुए और कमरे की और चल दिए। साथ साथ में अपर्णा भी दौड़ कर पीछा करती हुई उनके पीछे पीछे चल दी। दोनों अपने अपने विचारो में खोये हुए अपने कमरे की और चल पड़े।
कर्नल साहब (जीतूजी) ने काफी समय पहले ही कैंप के मैनेजमेंट से दो कमरों का एक बड़ा फ्लैट टाइप सुईट बुक करा दिया था। उसमें उनके दोनों बैडरूम को जोड़ता हुआ परदे से ढका एक किवाड़ था। वह किवाड़ दोनों तरफ से बंद किया जा सकता था। जब तक दोनों कमरों में रहने वाले ना चाहें तब तक वह किवाड़ अक्सर बंद ही रहता था। अगर वह किवाड़ खुला हो तो एक दूसरे के पलंग को दोनों ही जोड़ी देख सकती थी। दोनों ही बैडरूम में एक एक वाशरूम जुड़ा हुआ था। बैडरूम का दुसरा दरवाजा एक साँझा बड़े ड्रॉइंग कम डाइनिंग रूम में खुलता था। सुईट के अंदर प्रवेश उसी ड्रॉइंगरूम से ही हो सकता था। ड्रॉइंगरूम में प्रवेश करने के बाद ही कोई अपने कमरे में जा सकता था। जब कैंप में आगमन के तुरंत बाद सुबह में पहली बार दोनों कपल कमरों में दाखिल हुए थे (चेक इन किया था) तब सबसे पहले रोहितने सुईटकी तारीफ़ करते हुए जीतूजी से कहा था, "जीतूजी, यह तो आपने कमाल का सुईट बुक कराया है भाई! कितना बड़ा और बढ़िया है! खिड़कियों से हिमालय के बर्फीले पहाड़ और खूबसूरत वादियाँ भी साफ़ साफ़ दिखती हैं। मेरी सबसे एक प्रार्थना है। मैं चाहता हूँ की जब तक हम यहां रहेंगे, दोनों कमरों को जोड़ते हुए इस किवाड़ को हम हमेशा खुला ही रखेंगे। मैं हम दोनों कपल के बिच कोई पर्दा नहीं चाहता। आप क्या कहते हैं?"
जीतूजी ने दोनों पत्नियों की और देखा। श्रेया जी फ़ौरन रोहित से सहमति जताते हुए बोली थी, "मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भाई मान लो कभी भी दिन में या आधी रात में सोते हुए अचानक ही कोई बातचित करने का मन करे तो क्यूँ हमें उठकर एक दूसरे का दरवाजा खटखटा ने की जेहमत करनी पड़े? इतना तो हमें एक दूसरे से अनौपचारिक होना ही चाहिए। फिर कई बार जब मेरा न करे की मैं मेरी प्यारी छोटी बहन अपर्णा के साथ थोड़ी देर के लिए सो जाऊं तो सीधा ही चलकर चुचाप तुम्हारे पलंग पर आ सकती हूँ ना?" उस वक्त श्रेया ने साफ़ साफ़ यह नहीं कहा की अगर दोनों कपल चाहें तो बिना किसी की नजर में आये एक दूसरे के पलंग में सांझा एक साथ सो भी तो सकते हैं ना? अपर्णा सारी बातें सुन कर परेशान हो रही थी। वह फ़ौरन अपने पति रोहितको अपने कमरे में खिंच कर ले गयी और बोली, "तुम पागल हो क्या? तुम एक रात भी मुझे प्यार किये बिना तो रह नहीं सकते। अगर यह किवाड़ खुला रखा तो फिर रात भर मुझे छेड़ना मत। यह समझ लो।" अपनी पत्नी की जिद देख कर रोहितने अपनी बीबी अपर्णा के कानों में फुसफुसाते हुए कहा था, "डार्लिंग, तुम्ही ने तो माना था की हम दोनों कपल एक दूसरे से पर्दा नहीं करेंगे। अब क्यों बिदक रही हो? और अगर हम प्यार करेंगे भी तो कौनसा सबके सामने नंगे खड़े हो कर करेंगे? बिस्तर में रजाई ओढ़कर भी तो हम चुदाई कर सकते है ना?" यह सुन कर अपर्णा का माथा ठनक गया। उसने तो अपने पति से कभी यह वादा नहीं किया था की वह जीतूजी और श्रेया से पर्दा नहीं करेगी। तब उसे याद आया की उसने श्रेयासे यह वादा जरूर किया था। तो क्या श्रेया ने उनदोनों के बिच की बातचीत रोहित को बतादी थी क्या? खैर जो भी हो, उसने वादा तो किया ही था। रोहित की बात सुन कर हार कर अपर्णा चुपचाप अपने काम में लग गयी थी।
दोपहर का खाना खाने के बाद चारों के जहन में अलग अलग विचारों की बौछार हो रही थी। श्रेया पहली बार अच्छी तरह कुदरत के आँगन में खुले आकाश के निचे रोहितसे चुदाई होने के कारण बड़ी ही संतुष्ट महसूस कर रही थी और कुछ गाना मन ही मन गुनगुना रहीं थीं। उनके पति जीतूजी अपनी ही उधेड़बुन में यह सोचनेमें लगेथे की जो राज़था उसे कैसे सुलझाएं। उस राज़ को सुलझाने का मन ही मन वह प्रयास कर रहे थे। अपर्णा मन ही मन खुश भी थी और दुखी भी। खुश इसलिए थी की उसने तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ जीतूजी से सीखे थे और इस लिए भी की उसे जीतूजी के लण्ड को सहलाने के मौक़ा मिला था। वह दुखी इस लिए थी की सब के चाहते हुए भी वह जीतूजी का मन की इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी।
रोहितको दोनों हाथों में लड्डू नजर आ रहे थे। बिस्तर में वह अपनी बीबी को चोदेंगे और कहीं और मौक़ा मिला तो श्रेया को। दोपहर का खाना खाने के बाद अलग अलग वजह से दोनों ही कपल थके हुए थे। डाइनिंग हॉल से वापस आते ही श्रेया और जीतूजी अपने पलंग पर और रोहित और अपर्णा अपने पलंग पर ढेर हो कर गिर पड़े और फ़ौरन गहरी नींद सो गए। बिच का किवाड़ खुला ही था।
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शामको छे बजे स्वागत और परिचय का कार्यक्रम था और साथ में सब मेहमानों को अगले सात दिन के प्रोग्राम से अवगत कराना था। उसके बाद खुले में कैंप फायर (एक आग की धुनि) के इर्दगिर्द कुछ ड्रिंक्स (शराब या जूस इत्यादि) और नाच गाना और फिर आखिर में खाना। शाम के पांच बजने वाले थे। सबसे पहले जीतूजी उठे। चुपचाप वह हलके पाँव वाशरूम में जाने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपने पत्नीकी और देखा। वह अपने गाउन में गहरी नींद सोई हुई बड़ी ही सुन्दर लग रही थी। श्रेया के घने बाल पुरे सिरहाने पर फैले हुए थे। उसका चेहरा एक संतुष्टि वाला, कभी हलकी सी मुस्कान भरा सुन्दर प्यारा दिख रहा था। जीतूजी के मन में विचार आया की कहीं उस झरने के वाटर फॉल के पीछे रोहितने उनकी बीबी को चोदा तो नहीं होगा? विचार आते ही वह मन ही मन मुस्काये। हो सकता है रोहित और श्रेया ने उस दोपहर अच्छी खासी चुदाई की होगी। क्यूंकि श्रेया और रोहित काफी कुछ ज्यादा ही दोस्ताना से एक दूसरे घुलमिल रहे थे। जीतूजी के मन में स्वाभाविक रूपसे कुछ जलन का भाव तो हुआ, पर उन्होंने एक ही झटके में उसको निकाल फेंका। वह श्रेया को बेतहाशा प्यार करते थे। श्रेया सिर्फ उनकी पत्नी ही नहीं थी। उनकी दोस्त भी थी। और प्यार में और दोस्ती में हम अपनों पर अपना अधिकार नहीं प्यार जताते हैं। हम अपनी ख़ुशी से ज्यादा अपने प्यारे की खुशी के बारे में ही सोचते हैं।
खुले हुए किवाड़ के दूसरी और जब जीतूजी ने नजर की तो देखा की रोहित अपनीं बीबी को अपनी बाँहों में घेरे हुए गहरी नींद में सो रहे थे। अपर्णा अपने पति की बाँहों में पूरी तरह से उन्मत्त हो कर निद्रा का आनंद ले रही थी। जीतूजी फुर्ती से वाशरूम में गए और चंद मिनटों में ही तैयार हो कर बाहर आये। उन्होंने फिर अपनी पत्नी को जगाया। श्रेया आखिर एक फौजी की बीबी थी। जीतूजी की एक हलकी आवाज से ही वह एकदम बैठ गयी। अपने पति को तैयार देख वह भी वाशरूम की और तैयार होने के लिए अपने कपडे लेकर भागी। जीतूजी हलके से चलकर बिच वाले खुले किवाड़ से अपने कमरे से रोहित और अपर्णा के कमरे में आये। जीतूजी ने रोहित और अपर्णा के पलंग में बदहाल गहरी नींद में लेटी हुई अपर्णा को देखा। अपर्णा का गाउन ऊपर उसकी जाँघों तक आ गया था। अगर थोड़ा झुक कर टेढ़ा होकर दो जाँघों के बिच में देखा जाये तो शायद अपर्णा की चूत भी दिख जाए। बस उसकी चूत के कुछ निचे तक गाउन चढ चुका था। अपर्णा की दो जाँघों के बिच में गाउन के अंदर कुछ अँधेरे के कारण गाउन अपर्णा की प्यारी चूत को मुश्किल से छुपा पा रहा था। यह जाहिर था की अपर्णा ने गाउन के अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। जीतूजी को बेहाल लेटी हुई अपर्णा पर बहुत सा प्यार आ रहा था। पता नहीं उन्हें इससे पहले कभी किसी औरत पर ऐसा आत्मीयता वाला भाव नहीं हुआ था। वह अपर्णा को भले ही चोद ना पाएं पर अपर्णा से साथ सो कर सारी सारी रात प्यार करने की उनके मन में बड़ी इच्छा थी। उन्होंने जो कुछ भी थोड़ा सा वक्त अपर्णा को अपनी बाँहों में लेकर गुजारा था वह वक्त उनके लिए अमूल्य था। अपर्णा के बदन के स्पर्श की याद आते ही जीतूजी के शरीर में एक कम्पन सी सिहरन दौड़ गयी।
सिरहाने की साइड में खड़े होकर देखा जाए तो गाउन के अंदर अपर्णा के दो बड़े बूब्स के बिच की खाई और उसके दो मस्त पहाड़ की चोटी पर विराजमान निप्पलोँ तक का नजारा लण्ड खड़ा कर देने वाला था। वह इसलिए की गहरी नींद में लेटे हुए रोहित के दोनों हाथ अपनी बीबी के उन्मत्त स्तनोँ को नींद में ही दबा रहे थे। जीतूजी को रोहितके भाग्य की बड़ी ईर्ष्या हुई। रोहित को अपर्णा के साथ पूरी रात गुजारने से रोकने वाला कोई नहीं था। वह जब चाहे अपर्णा के बूब्स दबा सकते थे, अपर्णा की गाँड़ में अपना लण्ड घुसा सकते थे, अपर्णा को जब चाहे चोद सकते थे। एक गहरी साँस ले कर जीतूजी ने फिर यह सोच तसल्ली की की जिस रोहित को वह अति भाग्यशाली मानते थे वही रोहित उनकी पत्नी श्रेया के आशिक थे। यह विचार आते ही वह मन ही मन हंस पड़े। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर। जीतूजी का बड़ा मन किया की रोहित के हाथ हटा कर वह अपने हाथ अपर्णा के गाउन में डालें और अपर्णा के मस्त नरम और फिर भी सख्त बूब्स को दबाएं, सहलाएं और अच्छी तरह से मसल दें। अपर्णा करवट लेकर पलंग के एक छोर पर सो रही थी और उसके पति रोहित उसके पीछे अपर्णाकी गाँड़में अपना लण्ड वाला हिस्सा पाजामे के अंदर से बिलकुल अपर्णा की गाँड़ में जाम किये हुए सो रहे थे। दोनों मियाँ बीबी इतनी गहरी नींद सो रहे थे की उन्हें जीतूजी के आने का एहसास नहीं हुआ l जीतूजी ने अपने आप पर बड़ा नियंत्रण रखते हुए अपर्णा के बालों में उंगलियां डाल उन्हें बालों को उँगलियों से कँघी करते हुए हलके से कहा, "अपर्णा, उठो।"
जब जीतूजी की हलकी आवाज का कोई असर नहीं हुआ तब जीतूजी रोहित के सिरहाने के पास गए और थोड़ी सख्ती और थोड़े मजाक के अंदाज में रोहित से कहा, "दोपहर का आप दोनों के मिलन का कार्यक्रम पूरा हुआ नहीं क्या? उठो, अब आप एक सेना के कैंप में हैं। आप को कुछ नियम पालन करने होंगें। सुबह साढ़े चार बजे उठना पडेगा। उठकर नित्य नियम से निपट कर सबको कुछ योग और हलकी फुलकी कसरत करनी पड़ेगी। चलो जल्दी तैयार हो जाओ। ठीक छे बजे प्रोग्रम शुरू हो जाएगा। मैं जा रहा हूँ। आप तैयार हो कर मैदान में पहुंचिए।" जीतूजी का करारा फरमान सुनकर अपर्णा चौंक कर उठ गयी। उसने जीतूजी को पलंग के पास में ही पूरा आर्मी यूनिफार्म में पूरी तरह से सुसज्ज खड़ा पाया। जीतूजी आर्मी यूनिफार्म में सटीक, शशक्त और बड़े ही प्यारे लग रहे थे। अपर्णा ने मन ही मन उनकी बलाइयाँ लीं। अपर्णा ने एक हाथ से जीतूजी को सलूट करते हुए कहा, "आप चलिए। आपको कई काम करने होंगें। हम समय पर पहुँच जाएंगे।"
चंद मिनटों में ही रोहित उठ खड़े हुए हुए और वाशरूम की और भागे। अपर्णा ने देखा की श्रेया नहा कर बाहर निकल रही थीं। तौलिये में लिपटी हुई वह सुंदरता की जीती जागती मूरत समान दिख रही थीं। अपर्णा को वह दिन याद आया जब उसने श्रेया की "मालिश" की थी। अपर्णा उठ खड़ी हुई और किवाड़ पार कर वह श्रेया के पास पहुंची। अपर्णा को आते हुए देख श्रेया ने अपनी बाँहें फैलायीं और अपर्णा को अपनी बाँहों में घेर लिया और फिर प्यार भरे शब्दों में बोली, 'अपर्णा कैसी हो? मेरे पति ने तुम्हें ज्यादा छेड़ा तो नहीं ना?" अपर्णा ने शर्माते हुए कहा, "दीदी झूठ नहीं बोलूंगी। जितना छेड़ना चाहिए था उतना छेड़ा। बस ज्यादा नहीं। पर मेरी छोडो अपनी बताओ। मेरे पति ने आपके साथ कुछ किया की नहीं?" श्रेया ने कहा, "बस मेरा भी कुछ वैसा ही जवाब है। थोड़ा सा ही फर्क है। तुम्हारे पति ने जितना कुछ करना था सब कर लिया, कुछ छोड़ा नहीं। अरी! तेरे शौहर तो बड़े ही रंगीले हैं यार! तेरी तो रोज मौज होती होगी। इतने गंभीर और परिपक्व दिखने वाले रोहित इतने रोमांटिक हो सकते हैं, यह तो मैंने सोचा तक नहीं था।" अपर्णा अपने पति की किसी और खूबसूरत स्त्री से प्रशंशा सुनकर उसे मुश्किल से हजम कर पायी। पर अब तो आगे बढ़ना ही था।
अपर्णा ने श्रेया से कहा, "दीदी, लाइए मैं आपके बालों को आजकी पार्टीके लिए सजा देती हूँ। मैं चाहती हूँ की आज मेरी दीदी अपनी खूबसूरती, जवानी और कमसिनता से सारे ही जवानों और अफसरों पर गजब का कहर ढाये! मैं सबको दिखाना चाहती हूँ की मेरी दीदी पार्टी में सब औरतों और लड़कियों से ज्यादा सुन्दर लगे।"
रोहित जब वाशरूम में से तैयार होकर निकले तो उन्होंने देखा की अपर्णा श्रेया को सजाने में लगी हुई थी। श्रेया को आधे अधूरे कपड़ों में देख कर रोहित ने अपने आप पर संयम रखते हुए दोनों महिलाओं को "बाई" कहा और खुद जीतूजी को मिलने निकल पड़े।
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शामके ठीक छह बजे जब सब ने अपनी जगह ली तब तक अपर्णा और श्रेया जी पहुंचे नहीं थे। मंच पर जीतूजी और कैंप के अधिकारी कुछ गुफ्तगू में मशगूल थे। जीतूजी को भी मंच पर ख़ास स्थान दिया गया था। धीरे धीरे सारी कुर्सियां भर गयीं। प्रोग्राम शुरू होने वाला ही था की श्रेया और अपर्णा का प्रवेश हुआ। उस समय सब लोग एक दूसरे से बात करने में इतने मशरूफ थे की पूरा हॉल सब की आवाज से गूँज रहा था। जैसे ही अपर्णा और श्रेया ने प्रवेश किया की सब तरफ सन्नाटा छा गया। सब की निगाहें अपर्णा और श्रेया पर गड़ी की गड़ी ही रह गयीं। श्रेया ने स्कर्ट और उसके ऊपर एक फ्रिल्ल वाला सतह पर सतह हो ऐसा सूत का सफ़ेद चिकन की कढ़ाई किया हुआ टॉप पहना था। श्रेया के बाल अपर्णा ने इतनी खूबसूरती से सजाये थे की श्रेया नयी नवेली दुल्हन की तरह लग रहीं थीं। श्रेया का टॉप पीछे से खुला हुआ ब्लाउज की तरह था। श्रेया जी के सुदृढ़ बूब्स का उभार उनके टॉप से बाहर उछल कर निकल ने की कोशिश कर रहा था। श्रेया के कूल्हे इतने सुगठित और सुआकार लग रहे थे की लोगों की नजर उस पर टिकी ही रह जाती थीं।
अपर्णा ने साडी पहन रक्खी थी। श्रेया के मुकाबले अपर्णा ज्यादा शांत और मँजी हुई औरत लग रही थी। साडी में भी अपर्णा के सारे अंगों के उतार चढ़ाव की कामुकता भरी झलक साफ़ साफ़ दिख रही थी। अपर्णा की गाँड़ साडी में और भी उभर कर दिख रही थी। जब धीरे धीरे सब ने अपने होश सम्हाले तब कैंप के मुख्याधिकारी ने एक के बाद एक सब का परिचय कराया। जीतू जी का स्थान सभा के मंच पर था। कैंप के प्रशिक्षकों में से वह एक थे। वह सुबह की कसरत के प्रशिक्षक थे और उनके ग्रुप के लीडर मनोनीत किये गए थे। जब उनका परिचय किया गया तब श्रेया को भी मंच पर बुलाया गया और जीतूजी की "बेहतर अर्धांगिनी" (Better half) के रूप में उनका परिचय दिया गया। उस समय पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कप्तान गौरव रोहित की बगल में ही बैठे हुए थे। अंकिता और उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना आगे बैठे हुए थे। कप्तान गौरव के पाँव तले से जमीन खिसक गयी जब अंकिता का परिचय श्रीमती खन्ना के रूप में कराया गया।
दोपहर के आराम के बाद कप्तान गौरव अच्छे खासे स्वस्थ दिख रहे थे। मेहमानों का स्वागत करते हुए कैंप के मुखिया ने बताया की हमारा पडोसी मुल्क हमारे मुल्क की एकता को आहत करने की फिराक में है। चूँकि वह हमसे सीधा पंगा लेने में असमर्थ है इसलिए वह छद्म रूप से हम को एक के बाद एक घाव देनेकी कोशिश कर रहा है। वह अपने आतंक वादियों को हमारे मुल्क में भेज कर हमारे जवानों और नागरिकों को मार कर भय का वातावरण फैलाना चाहता है। हालात गंभीर हैं और हमें सजग रहना है।
इन आतंकवादीयों को हमारे ही कुछ धोखेबाज नागरिक चंद रूपयों के लालच में आश्रय और प्रोत्साहन देते हैं। आतंकवादी अलग अलग शहरों में आतंक फैलाने का प्रोग्राम बना रहे हैं। इन हालात में सेना के अधिकारीयों ने यह सोचा की एक आतंकी विरुद्ध नागरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाए जिस में हमारे नागरिकों को आतंकीयों से कैसे निपटा जाए और शहर में आतंकी हमला होने पर कैसे हमें उनका सामना करना चाहिए इसके बारे में बताया जाए। उन्होंने बताया की इसी हेतु से यह प्रोग्राम तैयार किया गया था।
सारे मेहमानोंको चार ग्रुपमें बाँटा गया था। कप्तान गौरव, अंकिता , उसके पति ब्रिगेडियर साहब और उनके दो हम उम्र दोस्त, जीतूजी, रोहित, श्रेया और अपर्णा एक ग्रुप में थे। ऐसे तीन ग्रुप और थे। कुल मिलाकर करीब छत्तीस मेहमान थे। हर एक ग्रुप में नौ लोग थे। सुबह पाँच बजे योग और हलकी कसरत और उसके बाद चाय नाश्ता। बाद में सुबह सात बजे पहाड़ों में ट्रैकिंग का प्रोग्राम था। दोपहर का खाना ट्रैकिंग के आखिरी पड़ाव पर था। ट्रैकिंग का रास्ता पहले से ही तय किया गया था और जगह जगह तीरों के निशान लगाए गए थे। परिचय और प्रोग्राम की बात ख़त्म होते होते शाम के सात बज चुके थे। लाउड स्पीकर पर सब को आग की धुनि के सामने ड्रिंक्स और नाच गाने के प्रोग्राम में हिस्सा लेने का आमंत्रण दिया गया।
मजेकी बात यहथी की अंकिता उसके पति ब्रिगेडियर साहब और गौरव भी अपर्णा, रोहित, जीतूजी और श्रेया वाली धुनि के आसपास बैठे हुए थे। ब्रिगेडियर खन्ना, कप्तान गौरव के साथ बड़े चाव से बात कर रहे थे। कप्तान गौरव बार बार अंकिता की और देख कर अपनी नाराजगी जाहिर करने की कोशिश कर रहे थे की क्यों अंकिता ने उन्हें अपनी शादी के बारेमें नहीं कहा? तुरंत उन्हें याद आया की अंकिता ने उन्हें कहने की कोशिस तो की थी जब उसने कहा था की "जिंदगी में कुछ परिस्थितियां ऐसी आती हैं की उन्हें झेलना ही पड़ता है।" परन्तु उसके बाद बात ने कुछ और मोड़ ले लीया था और अंकिता अपने बारे में बता नहीं सकी थी। अब जब अंकिता शादीशुदा है तो गौरव को अपना सपना चकनाचूर होते हुए नजर आया। ब्रिगेडियर साहब ने गौरव से अपनी जिंदगी के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने बताया की कैसे अंकिता और उसके के पिता ने ब्रिगेडियर साहब और उनकी स्वर्गवासी पत्नी की सेवा की थी। बादमें अंकिता के पिता की मौत के बाद अंकिता को उन्होंने आश्रय दिया। उनके सम्बन्ध अंकिता से कुछ ज्यादा ही निजी हो गए। तब उन्होंने अंकिता को समाज में बदनामी से बचानेके लिए शादी करली। ब्रिगेडियर साहब ने गौरव को यह भी बताया की वह उम्र में उनसे काफी छोटी होने के कारण अंकिता को अपनी पत्नी नहीं बेटी जैसा मानते हैं। वह चाहते हैं की अगर कोई मर्द अंकिता को अपनाना चाहता हो तो वह उसे तलाक देकर ख़ुशी से अंकिताकी शादी उस युवक से करा भी देंगे।
ब्रिगेडियर साहब ने अंकिता को बुलाकर अपने पास बिठाया और बोले, "अंकिता बेटा, मैं जा रहा हूँ। मैं थोड़ा थक भी गया हूँ। तो आप कप्तान गौरव और बाकी कर्नल साहब और इन लोगों के साथ एन्जॉय करो। मैं फिर अपने हट में जाकर विश्राम करूंगा।" कह कर ब्रिगेडियर साहब चल दिए। ब्रिगेडियर साहब के जाने के बाद अपर्णा उठकर कप्तान गौरव के करीब जा बैठी।