Update 17

रोहित की बात से सेहमी हुई अपर्णा बिना कुछ बोले रोहित के एक के बाद एक धक्के झेलती रही। रोहित ने अपर्णा की टांगें अपने कंधे पर रखी हुई थी। गाँड़ के निचे रखे तकिये के कारण अपर्णा की प्यारी चूत थोड़ी सी ऊपर उठी हुईथी जिससे रोहित का लंड बिलकुल उनकी बीबी अपर्णा की चूत के द्वार के सामने रहे और पूरा का पूरा लण्ड अपर्णाकी चूत में घुसे। रोहित धीमी रफ़्तार से अपर्णा की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहे थे। रफ़्तार जरूर धीमी थी पर धक्का इतना तगड़ा होता था की उनका पूरा पलंग समेत अपर्णा का पूरा बदन धक्के से हिल जाता था। अपर्णा के भरे हुए बूब्स रोहित के लगाए हुए धक्के के कारण हवा में उछल जाते और फिर जब रोहित का लण्ड चूत के सिरे तक चला जाता और एक पल के लिए रुक जाते तो वापस गिर् कर अपना आकार ले लेते। कामोत्तेजना के कारण अपर्णा की निप्पलेँ पूरी तरह से फूली हुई थीं। निप्पलेँ थोड़े ऊपर उठे हुए फुंसियों से भरी हुई हलकी सी चॉकलेटी रंग की गोल आकार वाली एरोलाओं पर ऐसी लग रहीं थीं जैसे एक छोटा सा डंडा मनी प्लाँट को टिकाने के लिए माली लोग रखते हैं।

रोहित ने अपनी बीबी के उछलते हुए स्तनों को देखा तो उस पर टिकी हुई निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचकाते हुए उत्तेजित हो गए और अपर्णा के दोनों स्तनोँ को जोर से दबा कर धक्के मार कर चुदाई का पूरा मजा लेने में जुट गए। श्रेया और जीतूजी रोहित और अपर्णा की चुदाई का साक्षात दृश्य पहली बार देख रहे थे। हकीकत में ऐसा कम ही होता है की आपको किसी और कपल की चुदाई का दृश्य देखने को मिले। हालांकि उनको रोहित का लण्ड और अपर्णा की चूत इतनी दूर से ठीक से दिख नहीं रही थी पर जो कुछ भी अच्छी तरह से दिख रहा था वह वाकई में देखने लायक था। रोहित ने भी देखा की खास तौर से श्रेया अपर्णा की चुदाई बड़े ध्यान से देख रही थी। शायद वह यह देखना चाहती हो की रोहित अपनी बीबी की चुदाई भी वैसे ही कर रहे थे जैसे की रोहित ने कुछ ही घन्टों पहले श्रेया की की थी। यह तो स्त्री सुलभ इर्षा का विषय था। कहते हैं ना की "भला तुम्हारी कमीज मेरी कमीजसे ज्यादा सफ़ेद कैसे?" जाहिर है अपर्णा की चूत की पूरी नाली में चुदाई के कारण हो रहे कामुक घर्षण से अपर्णा को अद्भुत सा उन्माद होना चाहिए था। पर रोहित की बात सुनकर उसका मन कहीं और उड़ रहा था। वह जाँबाज़ जीतूजी को मन ही मन याद कर रही थी। हालांकि रोहित का लण्ड जीतूजी के लण्ड से उन्नीस बिस हो सकता है, पर काश उस समय वह लण्ड जीतूजी का होता जिससे रोहित चोद रहे थे ऐसी एक ललक भरी कल्पना अपर्णा की चूत में आग लगा रही थी।

रोहित के बदन की अकड़न से अपने पति का वीर्य छूटने वाला था यह अपर्णा जान गयी। उसे भी तो अपना पानी छोड़ना था। वह अपने पति रोहितके ऊपर चढ़ कर रोहित को चोदना चाहती थी जिससे वह भी फ़ौरन अपने पति के साथ झड़ कर अपना पानी छोड़ सके। पर उसे डर था की उधर जीतूजी उसे चुदाई करते हुए देख लेंगे। एक होताहै औरतको नंगी देखना। दुसरा होताहै किसी नंगी औरत की चुदाई होते हुए देखना। दोनों में अंतर होता है। और यहां तो अपर्णा रोहित को चौदेगी। वह तो एक और भी अनूठी बात हो जाती है। अपर्णा का शर्माना जायजथा। फिर भी अपर्णा ने अपने पति से हिचकिचाते हुए धीरे से कहा, "ऐसा लगता है की तुम्हारा अब छूटने वाला है। थोड़ा रुको। मुझे भी तो मौका दो।" रोहित ने फ़ौरन कहा, "आ जाओ। मेरे पर चढ़ कर मुझे चोदो। दिखादो सबको की सिर्फ मर्द ही औरत को चोदता है ऐसा नहीं है, औरत भी मर्द को चोद सकती है।"

अपर्णा जब हिचकिचाने लगी तब रोहित ने कहा, "यही तो कमी है औरतों में। मर्दों के साफ़ साफ़ आग्रह करने पर भी औरतें अपनी सीमा से बाहर नहीं आतीं। फिर कहतीं हैं मर्द जातने उन को दबा रखा है? यह कहाँ का न्याय है?"

अपर्णा ने जब यह सूना तो उसे जोश आया। वह चद्दर फेंक कर बैठ खड़ी हुई और अपने दोनों घुटनें अपने पति की दोनों टाँगों के बाहर की तरफ रख अपने घुटनों पर अपना वजन लेते हुए रोहित के ऊपर चढ़ बैठी। जीतूजी ने जब अपर्णाको बिस्तर में अपने पति से चुदाई करवाती पोजीशन में से उठ कर अपने पति को चोदने के लिए पति के ऊपर चढ़ते हुए देखा तो वह अपर्णा की हिम्मत देख कर दंग रह गए। पहली बार उन्होंने उस रात अपनी रातों नींद हराम करने वाली चेली को पूरा नंगी देखा। अपर्णा के अल्लड़ स्तन उठे हुए जैसे जीतूजी को पुकार रहे थे की "आओ और मुझे मसल दो।" अपर्णा की पतली कमर और बैठा हुआ पेट का हिस्सा और उसके बिलकुल निचे अपर्णा की चूत की झांटों की झांकी जीतूजी देखते ही रह गए। अपनी प्रियतमा को उसके ही पति को चोदते देख उन्हें सीने में टीस सी उठी। पर क्या करे? अपर्णा ने अपने पति का लण्ड अपनी चूत में डाल कर ऊपर से बड़े प्यार से अपने पति को चोदना शुरू किया। उसका ध्यान सिर्फ अपनी चूत में घुसे हुए जीतूजीके लण्ड का ही था। हालांकि लण्ड उसके पति का ही था पर अपर्णा की एक परिकल्पना थी की जैसे वह लण्ड जीतूजी का था जिसे वह अपनी चूत में घुसा कर चोद रही थी। इस कल्पना मात्र से ही उसकी चूत में से उसका रस जोरशोर से रिस ने लगा और जल्द ही वह अपने चरम के कगार पर जा पहुंची। कुछ ही मिनटों में रोहित और अपर्णा एक साथ झड़ गए। अपर्णा के मुंह से सिसकारी निकली जो उसके चरम की उत्तेजना को दर्शाता था। रोहित के मुंहसे "आहह..." निकल पड़ी।

दोनों मियाँ बीबी झड़ने के बाद ढेर हो गए। अपर्णा जैसे अपने पति पर घुड़सवारी कर बैठी थी वैसी ही अपने पति का लण्ड अपनी चूत में रखे हुए उनपर लुढ़क पड़ी। कुछ देर तक पति के ऊपर पड़ी रहने के बाद, चुदाईसे थकी हुई अपर्णा ऊपर से हट कर पति के बाजुमें जाकर गहरी नींद सो गयी। उसके सपने में सारी रात जंगली कुत्तों के चीखने की आवाजें ही सुनाई दे रहीं थीं।

सुबह चार बजे ही जीतूजी का पहाड़ी आवाज सारे हॉल में गूंज उठा। वह निढाल सो रहे रोहित और अपर्णा पर चिल्ला रहे थे। "अरे रोहित उठिये! ४ बजने वाले हैं। देखिये अब हमें सेना के टाइम टेबल के हिसाबसे चलना पडेगा। रात को आपको जो भी करना हो उसे जल्द निपटा कर सोना पडेगा। ऐसे देर तक लगे रहोगे तो जल्दी उठ नहीं पाओगे।" जीतूजी की दहाड़ सुनकर अपर्णा और रोहित चौंक कर जाग उठे। अपर्णा अपने कपडे पहनना तक भूल गयी थी। जैसे ही उसने जीतूजी की दहाड़ सुनी अपर्णा ने बिस्तरे में ही कम्बल अपनी छाती के ऊपर तक खिंच लिया और बैठ गयी। जीतूजी हमेशा की तरह सुबह बड़ी जल्दी उठ कर तैयार हो कर अपने सुसज्जित सेना के यूनिफार्म में आकर्षित लग रहे थे। अपर्णा खड़ी होने की स्थिति में नहीं थी। वह कम्बल के निचे नंगी थी। देर रात तक चुदाई कराने के बाद उसे कपडे पहनने का होश ही नहीं रहा था। रोहित ने पजामा पहन लिया था सो कूद कर खड़े हो गए और बाथरूम की और भागे। जीतूजी ने अपर्णा को देखा और कुछ बोलने लगे थे पर फिर चुप हो गए और घूम कर कैंप के दफ्तर की और चलते बने। जैसे ही जीतूजी आँखों से ओझल हुए की अपर्णा ने भाग कर बाहर का दरवाजा बंद किया और फ़टाफ़ट अपना गाउन पहन लिया। श्रेया जी वाशरूम में थीं। वह जानती थी की जब जीतू जी के साथ आर्मी से सम्बंधित कोई प्रोग्राम होता है तो वह देर बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते। अपर्णा ने अपने कपडे तैयार किये और रोहित के बाहर आने का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में तीनों: श्रेया, रोहित और अपर्णा कैंप के मैदान में कसरत के लिए पहुंच गए। सब लोग कतारमें लग गए। जीतूजी कहीं नजर नहीं आरहेथे। प्राथमिक कसरतें करने के बाद सब को दरी पर बैठने को कहा गया। जो उम्र में बड़े थे उनके लिए कुछ कुर्सियां रखीं हुई थीं।

सब के बैठने के बाद कर्नल जीतूजी भी वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने सब को आंतांकियों की गतिविधियों के बारेमें कहा और सबको सतर्क रहने की चेतावनी भी दी। यदि कोई सूरत में किसी का आतंकवादियों से या उनकी हरकतों से सामना होता है तो कैसे आतंकवादियों से मुकाबला किया जा सकता है उसके बारे में भी उन्होंने कुछ जरुरी हिदायतें दीं। सबको कैंटीन में नाश्ते के लिए कहा गया। नाश्ते की समय सीमा 30 मिनट दी गयी। सबने फ़टाफ़ट नाश्ता किया। अगला कार्यक्रम था पहाड़ो में ट्रैकिंग करना।

याने पहाडोंमें उबड़ खाबड़ लंबा रास्ता लकड़ी के सहारे चल कर तय करना। करीब दस किलोमीटर दूर एक आर्मीका छोटासा कैंप बना हुआ था जहां दुपहर के खाने की व्यवस्था थी। सबको वहाँ पहुँचना था। अपर्णा ने सिल्हटों वाली फ्रॉक पहनी थी। उस में अपर्णा की करारी जाँघें कमाल की दिख रहीं थीं। फ्रॉक घुटनोँ से थोड़ी सी ऊपर तक थीं। देखने में वह बिलकुल अश्लील नहीं लग रही थी। ऊपर अपर्णा ने सफ़ेद रंग का ब्लाउज पहना था और अंदर सफ़ेद रंग की ब्रा थी। उसका परिवेश निहायत ही साधारण सा था पर उसमें भी अपर्णाका यौवन और रूप निखार रहाथा। अपर्णा की गाँड़ का घुमाव और स्तनोँ का उभार लण्ड खड़ा कर देने वाला था। श्रेया ने कुछ लम्बी सी काप्री पहन राखी थी। घुटनों से काफी निचे पर यदि से काफी ऊपर वह काप्री में श्रेया की घुमावदार गोल गाँड़ का घुमाव सुहावना लग रहा था। ऊपर श्रेया ने मर्दों वाला शर्ट कमीज पहन रखा था। उस शर्ट में भी उनके स्तनोँ का उभार जरासा भी छुप नहीं रहा था। दोनों कामिनियाँ श्रेया और अपर्णा गजब की कामिनी लग रहीं थीं। जब वह मैदान में पहुंचीं तो सबकी आँखें उन दोनों की चूँचियाँ और गाँड़ पर टिक गयीं थीं।

कैंटीन में अपर्णा और श्रेयाकी मुलाक़ात अंकिता से हुई। उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब कहीं नजर नहीं आ रहे थे। अंकिता ने घुटनों तक पहुंचता हुआ स्कर्ट पहना था। उसकी करारी जाँघें खूबसूरत और सेक्सी लग रहीं थीं। ऊपर उसने सिलवटों वाला छोटी बाँहों वाला टॉप पहना था। टॉप पीछे से खुला था जो एक पतली सी डोर से बंधा था। पीछे से अंकिता की ब्रा की पट्टी साफ़ दिख रही थी। अंकिता के अल्लड़ स्तन उसके छोटे से टॉप में समा नहीं रहे थे और उसके टॉप में से उभर कर बाहर आने की भरसक कोशिश में लगे हुए दिख रहे थे। लम्बी और गोरी अंकिता अपने गदराते हुए बदन के कारण हर जवान मर्द के लण्ड को जैसे चुनौती दे रही थी। अंकिता ने कपाल पर टिका लगा रखा था जो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था। "हेलो, हाई" होने के बाद अपर्णा ने चुपके से जब अंकिता के कान में कप्तान गौरव के बारे में कुछ पूछा तो अंकिता थोड़ा शर्मायी और बोली की उसे गौरव के बारेमें कुछ भी पता नहीं था। गौरव से उसकी मुलकात सिर्फ पिछली शामको हुई थी उसके बाद पता नहीं वह कहाँ चले गएथे। अपर्णा ने अंकिता की कान में कुछ और भी बताया जिसके कारण शर्म केमारे अंकिता का मुंह लाल लाल हो गया। श्रेया ने यह देखा पर कुछ ना बोली।

कुछ ही देर में वहाँ गौरव और ब्रिगेडियर साहब हाजिर हुए। शायद हॉल के बाहर ही वह दोनों मिल गए थे और ब्रिगेडियर साहब कप्तान गौरव की कमर में हाथ डाले उन्हें साथ लेकर अपनी बीबी अंकिता के सामने आकर खड़े हुए। अंकिता के पास पहुँचते ही खन्ना साहब ने गौरव से कहा, "गौरव साहब, मैं ज्यादा चल नहीं पाउँगा इस लिए इस ट्रैकिंग में मैं आ नहीं पाउँगा। मैं चाहता हूँ की आप युवा लोग इस ट्रैकिंग में जाएं और खूब मौज करें। मेरी ख्वाहिश है की आप अंकिता के साथ ही रहें और उसका ध्यान रखें। अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा।"

कप्तान गौरव ने झुक कर खन्ना साहब का अभिवादन किया और उनकी बात को स्वीकार कर अंकिता की जिम्मेदारी लेने का वादा किया। सब ट्रैकिंग में जाने के लिए तैयार हो गए थे। कर्नल अभिजीत सिंह का इंतजार था, सो कुछ ही देर में वह भी आ पहुंचे और सुबह के ठीक छह बजे सब वहाँ से ट्रैकिंग में जाने के लिए निकल पड़े।

श्रेया ने देखा की अपर्णाने अंकिताको आँख मार कर कुछ इशारा किया जिसे देख कर अंकिता शर्मा गयी और मुस्कुरा दी। श्रेया जी ने अपर्णा को कोहनी मारकर धीरेसे पूछा, "क्या बातहै अपर्णा? तुम्हारे और अंकिता के बिच में क्या खिचड़ी पक रही है?" अपर्णा ने शरारत भरी आँखों से श्रेया की और देखते हुए, "दीदी हमारे बिच में कोई खिचड़ी नहीं पक रही। मैंने उसे कहा, ट्रैन में जो ना हो सका वह आज हो सकता है। क्या वह तैयार है?" श्रेया ने अपर्णा की और आश्चर्य से देखा और पूछा, "फिर अंकिता ने क्या कहा?" अपर्णा ने हाथ फैलाते हुए श्रेया के प्रति अपनी निराशा जताते हुए कहा, "दीदी आप भी कमाल हो! भला कोई हिन्दुस्तांनी औरत ऐसी बात का कोई जवाब देगी क्या? क्या वह हाँ थोड़े ही कहेगी? वह मुस्कुरादी। बस यही उसका जवाब था।" श्रेया ने आगे बढ़कर अपर्णा के कान पकडे और बोली, "मैं समझती थी तू बड़ी सीधी सादी और भोली है। पर बाप रे बाप! तु तो मुझसे भी ज्यादा चंट निकली!" अपर्णा ने नकली अंदाज में जैसे कान में दर्द हो रहा हो ऐसे चीख कर धीरेसे बोली, "दीदी मैं चेलीतो आपकी ही हूँ ना?" कर्नल अभिजीत सिंह (जीतूजी) ने सबसे मार्किंग की गयी पगदंडी (छोटा चलने लायक रास्ता) पर आगे बढ़ने के लिए कहा।

एक जवान को सबसे आगे रखा और कप्तान गौरव और अंकिता को उनके पीछे चलने को कहा। सब को हिदायत दी गयी की सबकी अपनी सुरक्षा के लिए के लिए वह निश्चित किये गए रास्ते (पगदंडी) पर ही चलें। पहाड़ों की चढ़ाई पहले तो आसान लग रही थी पर धीरे धीरे थोड़ी कठिन होती जा रही थी। सबसे आगे एक जवान लेफ्टिनेंट थे। उनकी जिम्मेवारी थी की आगे से सबका ध्यान रखे। उसके फ़ौरन बाद अंकिता और गौरव थे। अंकिता फुर्तीसे दौड़ कर गौरव को चुनौती देती हुई आगे भागती और गौरव उसके पीछे भाग कर उसको पकड़ लेते। जीतूजी और अपर्णा, अंकिता और गौरव की अठखेलियां देखते हुए एक दूसरे की और मुस्कराते हुए तेजी से उनके पीछे चल रहे थे।

आखिर में श्रेया और रोहित चल रहे थे। रोहित को चलने की ख़ास आदत नहीं थी इस के कारण वह धीरे धोरे पत्थरों से बचते हुए चल रहे थे। श्रेया उनका साथ दे रही थी। नौ में से सिर्फ सात बचे थे। दो यात्री में से एक ब्रिगेडियर साहब और एक और उम्र दराज साहब ने टेक्किंग में नहीं जाने का फैसला लिया था वह बेस कैंप पर ही रुक गए थे। रास्ते में जगह जगह दिशा सूचक चिह्न लगे हुए थे जिससे ऊपर के कैंप की दिशा की सुचना मिलती रहती थी। खूबसूरत वादियों और नज़ारे चारों और देखने को मिलते थे।

अपर्णा इन नजारों को देखते हुए कई जगह इतनी खो जाती थी उन्हें देखने के लिए वह रुक जाती थी, जिसके कारण जीतूजी को भी रुक जाना पड़ता था। सब से आगे चल रहा जवान काफी तेजी से चल रहा था और शायद काफिले से ज्यादा ही आगे निकल गया था। रास्ते में एक खूबसूरत नजारा दिखा जिसे देख कर अंकिता रुक गयी और गौरव से बोली, "कप्तान साहब, सॉरी, गौरव! देखो तो! कितना खूब सूरत नजारा है? वह दूर के बर्फीले पहाड़ से गिर रहा यह छोटी सी युवा कन्या सा यह झरना कैसे कील कील करता हुआ अल्लड़ मस्ती में बह रहा है? और पानीकी धुंद के कारण चारों तरफ कैसे बादल से छाये हुए हैं? लगता है जैसे आसमान अपनी प्रियतमा जमीन को चूम रहा हो।"

गौरव ने अंकिता के हाथों में अपना हाथ देते हुए कहा, "अंकिता ज़रा बताओ तो, आसमान अपनी प्रीतमा धरती को कैसे चूम रहा है?"

अंकिता ने कुछ शर्माते हुए कहा, "मुझे क्या पता? तुम्हीं बताओ."

गौरव ने अंकिता के गालों पर हल्का सा चुम्बन लेते हुए कहा, "ऐसे?"

अंकिता ने कहा, "भला कोई अपनी प्रियतमा को ऐसे थोड़े ही चुम्बन करता है?"

गौरव ने पूछा, "तो बताओ ना? फिर कैसे करता है?"

अंकिता ने कहा, "मैं क्यों बताऊँ? क्या तुम नहीं बता सकते?"

गौरव ने हँस कर एक ही झटके में अंकिता को अपनी बाँहों में भरकर उसके लाल लाल चमकते होँठों पर अपने होँठ रख दिए और एक हाथ नीचा कर अंकिता की छाती पर हलके से रखते हुए शर्म के मारे लाल हो रही अंकिता को जोर से चूमने और उसकी चूँचियों को टॉप के ऊपर से ही मसलने में लग गए। अफ़रातफरी में अंकिता ने गौरव के हाथ अपनी छाती पर से हटा दिए और बोली, "शर्म करो! हमारे पीछे कर्नल साहब आ रहे हैं। अगर हम यही रास्ते पर चलते रहे तो वह जल्द ही यहां पहुँच जाएंगे।"

गौरव ने निराशा भरे अंदाज में कहा, "तो फिर क्या करें? कहाँ जाएं?"

अंकिता ने बहते हुए झरने की और इशारा करते हुए कहा, "हम इस पहाड़ी वाले रास्ते से थोड़ा निचे उतर जाते हैं। वहाँ थोड़ी सी खाई जैसा दिख रहा है ना? वहाँ चलते हैं। वहाँ से नजारा भी अच्छा देखने को मिलगा और हमें कोई देखेगा भी नहीं और कोई दखल भी नहीं देगा।"

गौरव ने हिचकिचाते हुए कहा, "पर सेना के नियम के अनुसार हम इस रास्ते से अलग नहीं चल सकते।"

अंकिता ने मुस्कराते हुए कहा, "अच्छा जनाब? क्या आप सब काम नियम के अनुसार ही करेंगे? क्या हम जो कर रहे हैं, नियम के अनुसार है?"

गौरव ने असहायता दिखाते हुए अपने हाथ खड़े कर कहा,"हे भगवान्! इन औरतों से बचाये! ठीक है भाई। चलो, वहीँ चलते हैं।"

अंकिता ने शरारत भरी नज़रों से गौरव की और देखते हुए कहा, "अच्छा? लगता है जनाब का काफी औरतों से पाला पड़ा है?"

गौरव ने उसी अंदाजमें कहा, "भाई एक ही औरत काफी है। ज्यादा को तो मैं सम्हाल ही नहीं पाउँगा।" ऐसा कह कर अंकिता का हाथ कस के पकड़ कर गौरव भाग कर मुख्य रास्ते से निचे उतर गए और निचे की और एक गुफा जैसा बना हुआ था वहाँ एक बड़े पत्थर के पीछे जा पहुंचे।

वहाँ पहुँच कर गौरव ने कस कर अंकिता को अपनी बाँहों में दबोच लिया और उसके होँठों पर दबा कर अपने होँठ रख दिए। दोनों एक शिला का टेक लेकर खड़े एक दूसरे का रस चूसने में लग गए। अंकिता के मुंहमें गौरव ने अपनी जीभ डाल दी। अंकिता गौरव की जिह्वा को चूसकर उसकी लार निगलती गयी। गौरव अंकिता के रसीले होँठों का सारा रस चूस कर जैसे अपनी प्यास तृप्त करना चाहता था। पिछले दो तीन दिनों से गौरव इन होँठों को चूमने और चूसने के सपने दिन रात देखता रहता था। आज वही होँठ उसकी प्यास बुझाने के लिए उसके सामने अपने आप प्रस्तुत हो रहे थे। गौरव का एक हाथ अंकिता ने गर्व से उन्मत्त कड़क स्तनोँ को उसके टॉप के ऊपर से मसलने में लगा था। इन अल्लड़ मद मस्त स्तनोँ ने गौरव की रातों की नींद हराम कर रखी थी। गौरव इन स्तनोँ को दबाने, मसलने और चूसने के लिए बेताब था। वह उन पर अपना सर मलना चाहता था वह उन स्तनों पर मंडित प्यारी निप्पलों को चूमना, चूसना और काटना चाहता था।

उधर अंकिता गौरव से मिलकर उससे मिलन कर अपने जीवन की सबसे प्यारी पलों को भोगना चाहती थी। उसने उस से पहले कभी किसी युवा से सम्भोग नहीं किया था। अंकिता ने सिर्फ ब्रिगेडियर साहब से कुछ सालों पहले सेक्स किया था। उसे याद भी नहीं था की वह उसे वह उसे कैसा लगा था। अंकिता भूल चुकी थी की जवानी क्या होती है और बदन की भूख क्या होती है। गौरव से मिलने पर जो अंकिता को महसूस हुआ वह उससे पहले उसे कभी महसूस नहीं हुआ था। अंकिता ने अपनी चूत में सरसराहट और गीलापन काफी समय के बाद या शायद पहली बार महसूस किया था।

गौरव और अंकिता के पीछे चल रहे जीतूजी ने अचानक ही अंकिता और गौरव को मुख्य पगदंडी से हट कर निचे झरने के करीब कंदराओं की और जाते हुए देखा तो वह जोर से चिल्लाकर उन्हें सावधान करना चाहते थे की ऐसा करना काफी खतरनाक हो सकता था। पर उनके जोर से चिल्लाने पर भी उनकी की आवाज गौरव और अंकिता के कानों तक पहुँच ना सकी। नदी के पानी के तेज बहाव की कलकलाहट के शोर में भला उनकी आवाज वह दो तेजी से धड़कते दिल और सुलगते बदन कहाँ सुनने वाले थे? जीतूजी वहीँ रुक गए। उन्होंने पीछ चल रही अपर्णा की और देखा। तेज चढ़ाई चढ़ते हुए कदम कदम पर अपर्णा का फ्रॉक उसकी जाँघों तक चढ़ जाता था। जब अपर्णा आगे की और झुकती तो उसके ब्लाउज के पीछे छिपे हुए उसके अल्लड़ स्तनोँ के काफी बड़े हिस्सों की झांकीहो जाती थी। जीतू जी रुक गए और जैसे ही अपर्णा करीब आयी, जीतूजी ने अपर्णा का हाथ थामा और उसे ऊपर चढ़ाई चढ़ने में मदद की। सर्दीके बावजूद, अपर्णा के गुलाबी चेहरे पर पसीने की नदियाँ सी बह रहीं थीं।

जीतूजी ने अपर्णा को कहा, "अपर्णा, मैंने अभी वहाँ दूर गौरव और अंकिता को पगदंडी से हट कर निचे नदी की और जाते हुए देखा है। वह लोग मुख्य रास्ता छोड़ कर उस तरफ क्यों गए? क्या उन्हें पता नहीं है की ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है? अब हम क्या करें?"

अपर्णा जीतूजी की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "तो? तो क्या हुआ? जीतूजी, क्या आप को दो धड़कते दिलों की आवाज अंकिता और गौरव में सुनाई नहीं दी? यह तो होना ही था।"

जीतूजी अपर्णा की बात समझ नहीं पाए और अचम्भे से अपर्णा की और देखते रह गए। तब अपर्णा ने जीतूजी की नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा, "मेरे बुद्धू जीतूजी! आप कुछ नहीं समझते। अरे भाई अंकिता और गौरव हम उम्र होने के बजाय एक दूसरे से काफी आकर्षित हैं? क्या आपने उनकी आँखों में बसा प्यार नहीं देखा?" जीतूजी की आँखें यह सुनकर फटी की फटी ही रह गयीं। वह बोल पड़े, "क्या? पर अंकिता तो शादीशुदा है?"

अपर्णा से हँसी रोकी नहीं जा रही थी। वह बोली, " हम दोनों भी तो शादीशुदा हैं? तो क्या हम दोनों....." यह बोल कर अपर्णा अचानक चुप हो गयी। उसे ध्यानआया की कहीं इधरउधर बोल देने से जीतूजी आहत ना हों। अपर्णा जीतूजी के घाव पर नमक छिड़कने का काम अपर्णा नहीं करना चाहती थी।

जीतूजी ने कहा, "इस कदर इस जंगल में अकेले इधर उधर घूमना ठीक नहीं।"​
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