Update 18

पत्नी की अदला-बदली - 07

अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थाम कर दबाया और बोली, "यह यूनिफार्म पहन कर आप को क्या हो जाता है? अचानक आप इतने बदल कैसे जाते हो? और आपने अपने पीछे यह बैकपैक में क्या रखा हुआ है?"

जीतूजी ने अपर्णा की और आश्चर्य से देखा और बोले, "कैसे? मैं कहाँ बदला हूँ? पीछे मेरे बैकपैक में कुछ जरुरी सामान रखा हुआ है।"

अपर्णा ने हँस कर कहा, "एक जवान मर्द और एक जवान खूबसूरत औरत मुख्य मार्ग छोड़कर जहां कोई नहीं हो ऐसी जगह भला क्यों जाएंगे? उस बात को समझ कर एन्जॉय करने के बजाय आप खतरे की बात कर रहे हो? अगर ख़तरा वहाँ हो सकता है, तो खतरा यहां भी तो हो सकता है?"

जीतूजी ने कहा, "अपर्णा, तुम नहीं जानती। पिछले दो तीन दिनों में इस एरिया में कुछ आशंका जनक घटनाएं हो रहीं हैं। खैर, यह सब बात को छोडो। चलो हम उन्हें जा कर सावधान करते हैं और मुख्य रास्ते पर आ जाने के लिए कहते हैं।"

अपर्णा ने अपनी आँखें नचाकर पूछा, "खबरदार! आप ऐसा कुछ नहीं करोगे। आप वहाँ जाकर किसी के रंग में भंग करोगे क्या?"

जीतूजी ने कहा, "अगर कुछ ऐसा वैसा चल रहा होगा तो फिर हम वहाँ उनको डिस्टर्ब नहीं करेंगे। पर उनको अकेला भी तो नहीं छोड़ सकते।"

अपर्णा ने कहा, "वह सब आप मुझ पर छोड़ दीजिये। आप चुपचाप मेरे साथ चलिए। हम लोग छुपते छुपाते चलते हैं ताकि वह दोनों हमें देख ना लें और डिस्टर्ब ना हों। देखते हैं वहाँ वह दोनों क्या पापड बेल रहे हैं। और खबरदार! आप बिलकुल चुप रहना।"

अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामा और दोनों चुपचाप अंकिता और गौरव जिस दिशा में गए थे उस तरफ उनके पीछे छिपते छिपाते चल पड़े। पीछे आ रहे श्रेया और रोहित ने दूर से देखा तो उन्हें नजर आया की अपर्णा जीतूजी का हाथ थामे मुख्य मार्ग से हट कर निचे नदी की कंदराओं की और बढ़ रही थी। आश्चर्य की बात यह थी की वह कभी पौधोंके पीछे तो कभी लम्बी लम्बी घाँस के पीछे छिपते हुए चल रहे थे।

मौक़ा मिलते ही श्रेया ने कहा, "रोहित, देखा आपने? आपकी पतिव्रता पत्नी, मेरे पति का हाथ थामे कैसे हमसे छिप कर उन्हें अपने साथ खींचती हुई उधर जा रही है? लगता है उसका सारा मान, वचन और राजपूतानी वाला नाटक आज बेपर्दा हो जाएगा। मुझे पक्का यकीन है की आज उसकी नियत मेरे पति के लिए ठीक नहीं है l और मेरे पति भी तो देखो! कैसे बेशर्मी से उसके पीछे पीछे छुपते छुपाते हुए चल रहे हैं। अरे भाई तुम्हारी चूत में खुजली हो रही है तो साफ़ साफ़ कहो। हम ने कहाँ रोका है? पर यह नाटक करने की क्या जरुरत है? चलो हम भी उनके पीछे चलते हैं और देखते हैं की आज तुम्हारी बीबी और मेरे पति क्या गुल खिलाते हैं? हम भी वहाँ जा कर उनका पर्दाफाश करते हैं।"

रोहित ने कहा, "उन्हें छोडो। शायद अपर्णा को पेशाब जाना होगा। इसी लिए वह उस साइड हो गए हैं। उनकी चिंता छोडो। आप और हम आगे बढ़ते हैं।" यह कह कर रोहित ने श्रेया का हाथ थामा और उनके साथ मुख्य रास्ते पर आगे जाने के लिए अग्रसर हो गए।

थोड़ा सा आगे बढ़ते ही अपर्णा ने दोनों युवाओँ को एक दूसरे की बाँहों में कस के खड़े हुए प्रगाढ़ चुम्बन में मस्त होते हुए देखा। गौरव अंकिता के ब्लाउज के ऊपर से ही अंकिता की चूँचियों को दबा रहे थे और मसल रहे थे। अंकिता गौरव का सर अपने दोनों हाथों में पकडे गौरव के होँठों को ऐसे चूस रही थी जैसे कोई सपेरा किसीको सांप डंस गया हो तो उसका जहर निकालने के लिए घाव चूस रहा हो। गौरव साहब का एक हाथ अंकिता के बूब्स दबा रहा था तो दुसरा हाथ अंकिता की गाँड़ के गालों को भींच रहा था। इस उत्तेजनात्मक दृश्य देख कर जीतूजी और अपर्णा वहीं रुक गए। अपर्णा ने अपनी उंगली अपनी नाक पर लगा कर जीतूजी को एकदम चुप रहने को इशारा किया। जीतूजी समझ गए की अपर्णा नहीं चाहती की इन वासना में मस्त हुए पंखियों को ज़रा भी डिस्टर्ब किया जाए। जीतूजी ने अपर्णा के कानों में कहा, "इन दोनों को हम यहां अकेला नहीं छोड़ सकते।" यह सुनकर अपर्णा ने अपनी भौंहों को खिंच कर कुछ गुस्सा दिखाते हुए जीतूजी के कान में फुसफुसाते हुए कहा, "तो ठीक है, हम यहीं खड़े रहते हैं जब तक यह दोनों अपनी काम क्रीड़ा पूरी नहीं करते।" अपर्णा ने वहाँ से हट कर एक घनी झाडी के पीछे एक पत्थर पर जीतूजी को बैठने का इशारा किया जहाँसे जीतूजी प्रेम क्रीड़ा में लिप्त उस युवा युगल को भलीभांति देख सके, पर वह उन दोनों को नजर ना आये। चुकी वहाँ दोनों को बैठने की जगह नहीं थी इस लिए अपर्णा जीतूजी के आगे आकर खड़ी हो गयी। वहाँ जमीन थोड़ी नीची थी इस लिए अपर्णा ने जीतूजी की टाँगे फैलाकर उन के आगे खड़ी हो गयी। जीतूजी ने अपर्णा को अपनी और खींचा अपनी दो टांगों के बिच में खड़ा कर दिया। अपर्णा की कमर जीतूजी की टांगों के बिच में थीं। घनी झाड़ियों के पीछे दोनों अब अंकिता और गौरव की प्रेम क्रीड़ा अच्छी तरह देख सकते थे।

इन से बेखबर, अंकिता और गौरव काम वासना में लिप्त एक दूसरे के बदन को संवार और चूम रहे थे। अचानक अंकिता ने घूम कर गौरव से पूछा, "गौरव क्या कर्नल साहब हम को न देख कर हमें ढूंढने की कोशिश तो नहीं करेंगे ना?"

गौरव ने अंकिता को जो जवाब दिया उसे सुनकर जीतूजी का सर चकरा गया। गौरव ने कहा, "अरे कर्नल साहब के पास हमारे बारेमें समय कहाँ? उनका तो खुदका ही अपर्णाजी से तगड़ा चक्कर चल रहा है। अभी तुमने देखा नहीं? कैसे वह दोनों एक दूसरे से चिपक कर चल रहे थे? और उस रात ट्रैन में वह दोनों एक ही बिस्तर में क्या कर रहे थे? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो हमसे भी तेज निकली।"

जीतूजी ने जब यह सूना तो उनका हाल ऐसा था की छुरी से काटो तो खून ना निकले। इन युवाओँ की बात सुनकर जीतूजी का मुंह लाल हो गया। पर करेतो क्या करे? उन्होंने अपर्णाकी ओर देखा। अपर्णा ने मुस्कुरा कर फिर एक बार अपने होँठों और नाक पर उंगली रख कर जीतूजी को चुप रहने का इशारा किया। अपर्णा ने जीतूजी के कान में बोला, "आप चुप रहिये। अभी उनका समय है। पर यह बच्चे बात तो सही कह रहे हैं।" उस समय जीतूजी की शकल देखने वाली थी।

अंकिता ने निचे की बहती नदी की और देख कर गौरव के हाथ पकड़ उन्हें अपनी गोद में रखते हुए गौरव के करीब खिसक कर कहा, "गौरव, देखो तो! कितना सुन्दर नजारा दिख रहा है। यह नदी, ये बर्फीले पहाड़ यह बादल! मन करता है यहीं रह जाऊं, यहां से वापस ही ना जाऊं! काश वक्त यहीं थम जाए!"

कुमर ने चारों और देख कर कहा, "मैं तो इस समय सिर्फ यह देख रहा हूँ की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा?"

अंकिता ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा, "गौरव तुम कितने बोर हो! मैं यहां इतने सुन्दर नजारों बात कर रही हूँ और तुम कुछ और ही बात कर रहे हो!"

गौरव ने अंकिता का गोरा मुंह अपनी दोनों हथेलियों में लिया और बोले, "मुझे तो यह चाँद से मुखड़े से ज्यादा सुन्दर कोई भी नजारा नहीं लग रहा है। मैं इस मुखड़े को चूमते ही रहना चाहता हूँ। मैं इस गोरे कमसिन बदन को देखता ही रहूं ऐसा मन करता है। मेरा मन करता है की मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूं। हमारे ढेर सारे बच्चें हों और हमारी जिंदगी का आखरी वक्त तक हम एक दूसरे के साथ रहें।" फिर एक गहरी साँस लेते हुए गौरव ने कहा, "पर मेरी ऐसी तकदीर कहाँ?"

अंकिता गौरव की और गौरसे और गंभीरता से देखती रही और बोली, "क्या तुम मेरे साथ हरदम रहना चाहते हो?"

गौरव ने दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा बोले, "हाँ। काश ऐसा हो सकता! पर तुम तो शादीशुदा हो।"

अंकिता ने कहा, "देखो, कहनेके लिए तो मैं शादीशुदा मिसिस खन्ना हूँ, पर वास्तव में मिस खन्ना ही हूँ। ब्रिगेडियर साहब मेरे पति नहीं वास्तव में वह मेरे पिता हैं और मुझे बेटी की ही तरह रखते हैं। उन्होंने मुझे बदनामी से बचाने के लिए ही मेरे साथ शादी की। शादी के बाद हमारा शारीरिक सम्बन्ध मुश्किल से शुरू के कुछ महीनों तक का भी नहीं रहा होगा। उसके बाद उनका स्वास्थ्य लड़खड़ाया और तबसे उन्होंने मुझे गलत इरादे से हाथ तक नहीं लगाया। उन्होंने मुझे एक बेटी की तरह ही रखा है। वह मेरे लिए एक पिता की तरह मेरे लिए जोड़ीदार ढूंढ रहे हैं। चूँकि वह सरकारी रिकॉर्ड में ऑफिशियली मेरे पति हैं, तो अगर कोई मेरा मनपसंद पुरुष मुझे स्वीकार करता है तो वह मुझे तलाक देने के लिए तैयार हैं। मैं जानती हूँ की तुम्हारे माता पिता शायद मुझे स्वीकार ना करें। मैं इसकी उम्मीद भी नहीं करती। पर अगर वास्तव में तुम तुम्हारा परिवार मुझे स्वीकार करने लिए तैयार हो और सचमें तुम मेरे साथ पूरी जिंदगी बिताना चाहते हो तो मेरे पिता (खन्ना साहब) से बात करिये।"

अंकिता इतना कह कर रुक गयी। वह गौरव की प्रतिक्रिया देखने लगी। अंकिता की बात सुनकर गौरव कुछ गंभीर हो गए थे। उनका गम्भीर चेहरा देख कर अंकिता हँस पड़ी और बोली, "गौरव साहब, मैं आपसे कोई लेनदेन नहीं कर रही हूँ। मैं आप से यह उम्मीद नहीं रख रही हूँ की आप अथवा आपका परिवार मुझे स्वीकार करेगा। उन बातों को छोड़िये। आप मुझे अपना जीवन साथी बनाएं या नहीं; हम यहां जिस हेतु से वह तो काम पूरा करें? वरना क्या पता हमें ना देख कर कर्नल साहब कहीं हमारी खोज शुरू ना करदें।" यह कह अंकिता ने गौरव की पतलून में हाथ डाला।

गौरव का लण्ड अंकिता का स्पर्श होते ही कड़ा होने लगा था। गौरव ने अपने पतलून की झिप खोली और अपनी निक्कर में से अपना लण्ड निकाला। अंकिता गौरव का लण्ड हाथ में लेकर उसे सहलाने लगी। अंकिता ने हँसते हुए कहा, "गौरव यह तो एकदम तैयार है। तुमतो वाकई बड़े ही रोमांटिक मूड में लग रहे हो।

गौरव ने अंकिता के होठोँ को चूमते हुए अपना एक हाथ अंकिता की स्कर्ट को ऊपर उठा कर उसकी पेंटी को निचे खिसका कर उसकी एक टाँग को ऊपर उठा कर अंकिता की जाँघों के बिच उसकी चूत में उंगली डालते हुए कहा, "तुम भी तो काफी गरम हो और पानी बहा रही हो।"

बस इसके बाद दोनों में से कोई भी कुछभी बोलने की स्थिति में नहीं थे। वहीं पत्थर के सहारे खड़े खड़े गौरव और अंकिता गहरे चुम्बन और आलिंगन में जकड़े हुए थे। गौरव का एक हाथ अंकिता की मस्त गाँड़ को सेहला रहा था और दुसरा हाथ अंकिता की उद्दंड चूँचियों को मसलने में लगा हुआ था।

अंकिता ने गौरव से कहा, "जो करना है जल्दी करो वरना वह कर्नल साहब आ जाएंगे तो कहीं रंग में भंग ना कर दें।"

जीतूजी गौरव और अंकिता की बात सुनकर एक तरह शर्मिन्दा महसूस कर रहे थे तो दूसरी तरफ गरम भी हो रहे थे। पर उस समय वह आर्मी के यूनिफार्म में थे। अपर्णा ने पीछे घूम कर जीतूजी की पतलून में उनकी टाँगों के बिच देखा तो पाया की अंकिता और गौरव की प्रेम क्रीड़ा देख कर जीतूजी का लण्ड भी कड़क हो रहा था और उनकी पतलून में एक तम्बू बना रहा था। मन ही मन अपर्णा को हंसी आयी। अपर्णा जीतूजी का हाल समझ सकती थी। जीतूजी एक पत्थर पर निचे टाँगें लटका कर बैठे हुए घनी झाडी के पीछे अंकिता और गौरव को देख रहे थे। अपर्णा उनकी टाँगों के बिच में कुछ नीची जमीन पर खड़ी हुई थी। अपर्णा की पीठ जीतूजी के लौड़े से सटी हुई थी। जीतूजी की दोनों टांगें अपर्णा के कमर के आसपास फैली हुई अपर्णा को जकड़ी हुई थीं। जीतूजी का हाथ अनायास ही अपर्णा के बूब्स को छू रहा था। जीतूजी अपना हाथ अपर्णा के बूब्स से छूने से बचाते रहते थे। अपर्णाने जीतूजी का खड़ा लण्ड अपनी पीठ पर महसूस किया। सहज रूप से ही अपर्णा ने अपनी कोहनी पीछे की और जीतूजी की जाँघों के बिच में टिका दीं। अपर्णा ने अपनी कोहनी से जीतूजी का लण्ड छुआ और कोहनी को हिलाते हुए वह जीतूजी का लण्ड भी हिला रही थी। अपर्णा की कोहनी के छूते ही जीतूजी का लण्ड उनकी पतलून में फर्राटे मारने लगा...

गौरव ने अंकिता को उठा कर पत्थर के पास हरी नरम घास की कालीन पर लिटा दिया। फिर बड़े प्यार से अंकिता के स्कर्ट को ऊपर उठाया और उसकी पैंटी निकाल फेंकी। उसे स्कर्ट में से अंकिता की करारी जाँघे और उनके बिच स्थित उसकी सुन्दर रसीली चूत के दर्शन हुए। उसने जल्द ही अंकिता की स्कर्ट में मुंह डाल कर उसकी चूत को चूमा। अंकिता को गौरव का लंड डलवाने की जल्दी थी। उसने कहा, "अरे जल्दी करो। यह सब बाद में करते रहना। अभी तो तुम ऊपर चढ़ आओ और अपना काम करो। कहीं कोई आ ना जाए और हमें देख ना ले।" उसे क्या पता था उन दोनों की चुदाई की पूरी फिल्म जीतूजी और अपर्णा अच्छी तरह से देख रहे थे।

गौरव ने अपना लण्ड पतलून से जब निकाला तब उसे जीतूजी ने देखा तो उनके मुंहसे भाई हलकी सी "आह... " निकल गयी। शायद उन्होंने भी उसके पहले इतना बड़ा लण्ड अपने सिवाय कभी किसीका देखा नहीं था। अपर्णा ने पीछे मूड कर देखा। जीतूजी की प्रतिक्रया देख कर वह मुस्कुराई और जीतूजी की टांगों के बिच खड़े हुए टेंट पर अपर्णा ने अपना हाथ रखा। जीतूजी ने फ़ौरन अपर्णाका हाथ वहाँसे हटा दिया। अपर्णा ने जीतूजीकी और देखातो जीतूजी कुछ हिचकि-चाते हुए बोले, "अभी मैं ड्यूटी पर हूँ। वैसे भी अब मैं तुम्हारे साथ कोई भी हरकत नहीं करूंगा क्यूंकि फिर मेरी ही बदनामी होती है और हाथ में कुछ आता जाता नहीं है। मुझे छोडो और इन प्रेमी पंछियों को देखो।"

अपर्णा ने अपनी गर्दन घुमाई और देखा की अंकिता ने गौरव को अपनी बाँहों में दबोच रखा था और गौरव अंकिता के स्कर्ट को ऊंचा कर अपनी पतलून को नीचा कर अपना लण्ड अपने हाथों में सहला रहा था। अंकिता ने फ़ौरन गौरव को अपना लण्ड उसकी चूत में डालने को बाध्य किया। गौरव ने देखा की अंकिता की चूत में से उसका रस रिस रहा था। गौरव ने हलके से अपना लण्ड अंकिता की चूत के छिद्र पर केंद्रित किया और हिलाकर उसके लण्ड को घुसने की जगह बनाने की कोशिश की। अंकिता की चूत एकदम टाइट थी। कई महीनों या सालों स नहीं चुदने के कारण वह संकुडा गयी थी। वैसे भी अंकिता की चूत का छिद्र छोटा ही था। गौरव ने धीरे धीरे जगह बनाकर और अपने हाथों से अपना लण्ड इधर उधर हिलाकर अंकिता की टाइट चूत को फैलाने की कोशिश की। अंकिता ने दर्द और डर के मारे अपनी आँखें मूंद लीं थीं। धीरे धीरे गौरव का मोटा और कडा लण्ड अंकिता की लगभग कँवारी चूत में घुसने लगा। अंकिता मारे दर्द के छटपटा रही थी पर अपने आप को इस मीठे दर्द को सहने की भी कोशिश कर रही थी। उसे पता था की धीरे धीरे यह दर्द गायब हो जाएगा। गौरव ने धीरे धीरे अपनी गाँड़ के जोर से अंकिता की चूत में धक्के मारने शुरू किये।

इस तरफ अपर्णा का हाल भी देखने वाला था। अंकिता की चुदाई देख कर अपर्णा की चूत में भी अजीब सी जलन और हलचल हो रही थी। उन्हें चोदने के लिए सदैव इच्छुक उसके प्यारे जीतूजी वहीं खड़े थे। हकीकत में अपर्णा अपनी पीठ में महसूस कर रही की जीतूजी का लण्ड उनकी पतलूनमें फनफना रहाथा। पर दोनोंकी मजबूरियां थीं। अपर्णा ने फिर भी अपना हाथ पीछे किया और जीतूजी के बार बार अपर्णा के हाथ को हटाने की नाकाम कोशिशों के बावजूद जीतूजी की जाँघों के बिच में डाल ही दिया। जीतूजी के पतलून की ज़िप खोलकर अपर्णा ने बड़ी मुश्किल से निक्कर को हटा कर जीतूजी का चिकना और मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा।

गौरव अब अंकिता की अच्छी तरह चुदाई कर रहे थे। दोनों टाँगों को पूरी तरह फैला कर अंकिता गौरव के मोटे तगड़े लण्ड से चुदवाने का मजा ले रही थी। गौरव का लण्ड जैसे ही अंकिता की चूत पर फटकार मारता तो अंकिता के मुंह से आह... निकल जाती।

जीतूजी और अपर्णा को वहाँ बैठे हुए अंकिता और गौरव की चुदाई का पूरा दृश्य साफ़ साफ़ दिख रहा था। वह गौरव का मोटा लण्ड अंकिता की चूत में घुसते हुए साफ़ देख पा रहे थे। अपर्णा ने जीतूजी की और देखा और पूछा, "कर्नल साहब, आपके जहन में यह देख कर क्या हो रहा है?" जीतूजी का बुरा हाल था।

एक और वह अंकिता की चुदाई देख रहे थे तो दूसरी और अपर्णा उनके लण्ड को बड़े प्यार से हिला रही थी। जीतूजी ने अपर्णा के गाल पर जोरदार चूँटी भरते हुए कहा, "मेरी बल्ली, मुझसे म्याऊं? तू मेरी ही चेली है और मुझसे ही मजाक कर रही है? अपर्णा, मेरे लिए यह बात मेरे दिल के अरमान, फीलिंग्स और इमोशंस की है। मेरे मन में क्या है, यह तू अच्छी तरह जानती है। अब बात को आगे बढ़ाने से क्या फायदा? जिस गाँव में जाना नहीं उसका रास्ता क्यों पूछना?" अपर्णा को यह सुनकर झटका सा लगा। जिस इंसान ने उसके लिए इतनी क़ुरबानी की थी और जो उससे इतना बेतहाशा प्यार करता था उसके हवाले वह अपना जिस्म नहीं कर सकती थी। हालांकि अपर्णा को खुदके अलावा कोई रोकने वाला नहीं था। अपर्णा का ह्रदय जैसे किसी ने कटार से काट दिया ही ऐसा उसे लगा। वह जीतूजी की बात का कोई जवाब नहीं दे सकती थी। अपर्णा ने सिर्फ अपना हाथ फिर जबरदस्ती जीतूजी की टाँगों के बिच में रखा और उनके लण्ड को पतलून के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली, "मैं मजाक नहीं कररही जीतूजी। क्या सजा आप को अकेले को मिल रही है? क्या आप को नहीं लगता की मैं भी इसी आग में जल रही हूँ?" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी की आँख थोड़ी सी गीली हो गयी। उन्होंने अपर्णा का हाथ थामा और बोले, "मैं तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ। मैं तुम्हारे वचन का और तुम्हारी मज़बूरी का भी सम्मान करता हूँ और इसी लिए कहता हूँ की मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। क्यों मुझे उकसा रही हो?" अपर्णा ने जीतूजी के पतलून के ऊपर से ही उनके लण्डपर हाथ फिराते उसे हिलाते हुए कहा, "जीतूजी, मेरी अपनी भी कुछ इच्छाएं हैं। अगर सब कुछ न सही तो थोड़ा ही सही। मैं आपको छू तो सकती हूँ ना? मैं आपके नवाब (लण्ड) से खेल तो सकती हूँ ना? की यह भी मुझसे नकारोगे?"

अपर्णा की बात का जीतूजी ने जवाब तो नहीं दिया पर अपर्णा का हाथ अपनी टांगों से बिच से हटाया भी नहीं। अपर्णाने फ़ौरन जीतूजीकी ज़िप खोली और निक्कर हटा कर उनके लण्ड को अपनी कोमल उँगलियों में लिया और अंकिता की अच्छी सी हो रही चुदाई देखते हुए अपर्णा की उँगलियाँ जीतूजी के लण्ड और उसके निचे लटके हुए उसके अंडकोष की थैली में लटके हुई बड़े बड़े गोलों से खेलनी लगी। अपर्णा की उँगलियों का स्पर्श होते ही जीतूजी का लण्ड थनगनाने लगा। जैसे एक नाग को किसीने छेड़ दिया हो वैसे देखते ही देखते वह एकदम खड़ा हो गया और फुंफकारने लगा। अपर्णा की उँगलियों में जीतूजी के लण्ड का चिकना पूर्व रस महसूस होने लगा। देखते ही देखते जीतूजी का लण्ड चिकनाहट से सराबोर हो गया। जीतूजी मारे उत्तेजना से अपनी सीट पर इधरउधर होने लगे।

उधर गौरव बड़े प्यार से और बड़ी फुर्ती से अंकिता की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहा था। कभी धीरे से तो कभी जोरदार झटके से वह अपनी गाँड़ से पीछे से ऐसा धक्का मारता की अंकिता का पूरा बदन हिल जाता। तो कभी अपना लण्ड अंकिता की चूत में अंदर घुसा कर वहीँ थम कर अंकिता के खूबसूरत चेहरे की और देख कर अंकिता की प्रतिक्रिया का इंतजार करता। जब अंकिता हल्का देकर उसे प्रोत्साहित करती तो वह भी मुस्कुराता और फिर अपर्णा की चुदाई जारी रखता। कुछ देर में अंकिता का जोश और हिम्मत बढ़ी और वह गौरव के निचे से बैठ खड़ी हुई। उसने गौरव को निचे लेटने को कहा। अंकिता ने कहा, "अब तक तो तुम मुझे चोदते थे। अब कप्तान साहब मैं तुम्हें चोदती हूँ। तुमभी क्या याद रखोगे की किसी लड़की ने मुझे चोदा था।" और फिर अंकिता ने गौरव के ऊपर चढ़कर गौरव का फुला हुआ मोटा लण्ड अपनी उँगलियों से अपनी चूत में घुसेड़ा और कूद कूद कर उसे इतने जोश से चोदने लगी की गौरव की भी हवा निकल गयी। गौरव का लण्ड, अंकिता की चूत में पूरा उसकी बच्चे दानी तक पहुँच जाता।

यह दृश्य देखकर अपर्णा भी मारे उत्तेजना के जीतूजी का लण्ड जोर से हिलाने लगी। जीतूजी की समझ में नहीं आ रहा था की वह आँखें मूँद कर अपर्णा की उँगलियों से अपने लण्ड को हिलवाने का मझा लें या आँखें खुली रख कर अंकिता की चुदाई देखने का। दोनों ही उनको पागल कर देने वाली चीज़ें थीं। जीतूजी अपर्णा की आँखों में देखने लगे की उनका लण्ड हिलाते वक्त अपर्णा के चेहरे पर कैसे भाव आते थे। अपर्णा यह देखने की कोशिश कर रही थी की जीतूजी के चेहरे पर कैसे भाव थे। अपर्णा गौरव की चुदाई देख रही थी। उस समय उसके मन में क्या भाव थे यह समझना बहुत मुश्किल था। क्या वह अंकिता की जगह खुद को रख रही थी? तो फिर गौरव की जगह कौन होगा? जीतूजी या फिर अपर्णा के पति रोहित?

अंकिता के सर पर तो जैसे भुत सवार हो गया था। शायद अंकिता को उसके जीवन में पहली बार एक जवाँ मर्द का फुला हुआ मोटा लण्ड अपनी चूत में लेने का मौक़ा मिला था। गौरव के लण्ड की घिसने से अंकिता की चूत में हो रहा घर्षण उसके पुरे बदन में आग लगा दे रहा था। ऐसा पहले कभी अंकिता ने महसूस नहीं किया था। उसने पहले सिर्फ चुदाई की कहानियां ही पढ़ी या सुनी थीं या कोई कोई बार एकाध वीडियो देखा था। खन्ना साहब ने अपने कमजोर ढीले लण्ड से बड़ी मुश्किल से जरूर अंकिता को चोद ने की कोशिश की थी। वह भी कुछ दिनों तक ही। पर उस बात को तो जमाने बीत गए थे। वाकई में एक हट्टे कट्टे जवाँ मर्द से चुदाई में कैसा आनंद आता है वह अंकिता पहली बार महसूस कर रही थी। अंकिता इस बात का पूरा लाभ उठाना चाहती थी। उसे पता नहीं था की शायद उसे ऐसा मौक़ा फिर मिले या नहीं। अंकिता उछल उछल कर गौरव के लण्ड को ऐसे चोद रही थी जिससे गौरव का लण्ड उसकी चूत की नाली में आखिर तक पहुंच जाए। अंकिता के दोनों बूब्स उछल उछल कर पटक रहे थे। गौरव ने अंकिता का जोश देखा तो वह भी जोश में आकर निचे अपनी गाँड़ उठाकर ऊपर की और जोरदार धक्का दे रहा था। दोनों ही के मुंह से आह्ह्ह्ह.... ओह.... उफ..... की आवाजें निकल रहीं थीं।

कुछ ही देर में अंकिता अपने चरम पर पहुँच रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब से भाव प्रकाशित हो रहे थे। एक तरह का अजीब सा उन्माद और रोमांच उसके पुरे बदन को रोमांचित कर रहा था। कुछ धक्के मारने के बाद वह बोल पड़ी, "गौरव मैं अब छोड़ने वाली हूँ। तुम भी अपना वीर्य मुझ में छोड़ दो। आज मैं तैयारी के साथ ही आयी थी। मैं जानती थी की आज तुम मेरी लेने वाले हो और मुझे छोड़ोगे नहीं।" गौरव ने अंकिता के होंठ चूमते हुए हाँफते हुए स्वर में कहा, "अंकिता, आई लव यु! मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। मैं तुम्हें आज ही नहीं, जिंदगी भर नहीं छोड़ना चाहता, अगर तुम्हें कोई एतराज ना हो तो। मैं तुम्हें रोज चोदना चाहता हूँ। क्या तुम मेरी बनने के लिए तैयार हो?" अंकिता ने कहा, "देखो गौरव डार्लिंग! यह वक्त यह सब कहना का नहीं है। कोई भी काम जोश में नहीं होश में करना चाहिए। अभी तुम चुदाई के जोश में हो। जब यह सब हो जाए और तुम ठन्डे दिमाग से सोचोगे तब तय करना की तुम मुझे अपनी बनाना चाहते हो या नहीं। अपने माता पिता से भी सलाह और मशवरा कर लो। कहीं ऐसा ना हो की तुम तैयार हो पर तुंहारी फॅमिली साथ ना दे। मैं ऐसा नहीं चाहती।" गौरव ने कहा, "ओह... अंकिता डार्लिंग, मेरा वीर्य भी छूटने वाला है। पर मैं तुम्हें पुरे होशो हवास मैं कह रहा हूँ की शादी तो मैं तुमसे ही करूंगा अगर खन्ना साहब इजाजत दें तौ।"

अंकिता ने कहा, "खन्ना साहब तो अपना पिता का धर्म अदा करना चाहते हैं। वह मुझे कह रहे थे की उन्होंने कभी कन्यादान नहीं किया। उनके जीवन की इस कमी को वह मेरी शादी करा कर पूरी करना चाहते हैं। बशर्ते की कोई मुझे स्वीकार करे और प्यार से रक्खे। अगर तुम तैयार होंगे तो उनसे ज्यादा खुश कोई नहीं होगा।" इतना बोल कर अंकिता चुप हो गयी। उसने गौरव की चुदाई करने पर अपना ध्यान लगा दिया क्यूंकि वह अब झड़ने वाली थी। कुछ ही देर में अंकिता और गौरव झड़ कर शांत हो गए।

तो इस तरफ अपर्णा जीतूजी का लण्ड अपनी उँगलियों में जोर से हिला रही थी। साथ साथ में जीतूजी के चेहरे के भाव भी वह पढ़ने की कोशिश कर रही थी। जीतूजी आँखें मूँद कर अपने लण्ड की अच्छी खासी मालिश का आनंद महसूस कर रहे थे। अंकिता और गौरव को झड़ते हुए देखकर उनके लण्ड के अंडकोष में छलाछल भरा वीर्य भी उनकी नालियों में उछल ने लगा। अपर्णा की उँगलियों की कला से वह बाहर निकलने को व्याकुल हो रहा था। अंकिता से हो रही गौरव की चुदाई देख कर अपर्णा ने भी तेजी से जीतूजी का लण्ड हिलाना शुरू किया जिसके कारण कुछ ही समयमें जीतूजी की भौंहें टेढ़ी सी होने लगी। वह अपना माल निकाल ने के कगार पर ही थे। एक ही झटके में जीतूजी अपना फ़व्वार्रा रोक नहीं पाए और "अपर्णा, तुम क्या गजब का मुठ मार रही हो!! अह्ह्ह्हह... मेरा छूट गया.... कह कर वह एक तरफ टेढ़े हो गए। अपर्णा की हथेली जीतूजी के लण्ड के वीर्य से लथपथ भर चुकी थी। अपर्णा ने इधर उधर देखा, कहीं हाथ पोंछने की व्यवस्था नहीं थी। अपर्णा ने साथ में ही रहे पेड़ की एक डाली पकड़ी और एक टहनीसे कुछ पत्तों को तोड़ा। डाली अचानक अपर्णा की हांथों से छूट गयी और तीर के कमान की तरह अपनी जगह एक झटके से वापस होते हुए डाली की आवाज हुई।

चुदाई खत्म होने पर साथ साथ में लेटे हुए गौरव और अंकिता ने जब पौधों में आवाज सुनी तो वह चौकन्ने हो गए। गौरव जोर से बोल पड़े, "कोई है? सामने आओ।" जीतूजी का हाल देखने वाला था। उन्होंने फ़टाफ़ट अपना लण्ड अपनी पतलून में सरकाया और बोले, "कौन है?" तब तक अंकिता अपने कपडे ठीक कर चुकी थी। गौरव भी कर्नल साहब की आवाज सुनकर चौंक एकदम कड़क आर्मी की अटेंशन के पोज़ में खड़े हो गए और बोले, "सर! मैं कप्तान गौरव हूँ।" जीतूजी ने डालियों के पत्तों को हटाते हुए कहा, "कप्तान गौरव, एट इज़ (मतलब आरामसे खड़े रहो।)" उन्होंने फिर अंकिता की और देखते हुए गौरव पूछा, "कप्तान तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?" जब गौरव की बोलती बंद हो गयी तब बिच में अपर्णा बोल उठी, "कॅप्टन साहब, कर्नल साहब के कहने का मतलब यह है की आप दोनों को मुख्य मार्ग से हट कर यहां नहीं आना चाहिए था। यह जगह खतरे से खाली नहीं है।" गौरव साहब ने नजरें नीची कर कहा, "आई एम् सॉरी सर।" फिर अंकिता की और इशारा कर कहा, "इनको कुदरत का नजारा देखने की ख़ास इच्छा हुई थी। तो हम दोनों यहां आ गए। आगे से ध्यान रखूंगा सर।" जीतूजी ने कहा, "ठीक है। कुदरत का नजारा देखना हो या कोई और वजह हो। आप को इनको सम्हाल ना है और अपनी और इनकी जान खतरे में नहीं डालनी है। समझे?"

कैप्टेन गौरव ने सलूट मारते हुए कहा, "यस सर!" जीतूजी ने मुस्कुराते हुए आगे बढ़कर अंकिता के सर पर हाथ फिराते हुए मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हें जो भी नजारा देखना हो या जो भी करना हो, करो। पर सम्हाल कर के करो। तुम दोनों बहुत अच्छे लग रहे हो।" कह कर जीतूजी ने अपर्णा को साथ साथमें चलने को कहा। अपर्णा को जीतूजी के साथ देख कर कैप्टेन गौरव और अंकिता भी मुस्कुराये। कैप्टेन गौरव ने अपर्णा की और देखा और चुपचाप चल दिए। कैप्टेन गौरव और अंकिता भीगी बिल्ली की तरह कर्नल साहब के पीछे पीछे चलते हुए मुख्य राह पर पहुँच गए। इस बार जान बुझ कर जीतूजी ने अपर्णा से गौरव और अंकिता की और इशारा कर धीरे चलनेको कहा। अंकिता और गौरव की मैथुन लीला देखने के बाद अपर्णा को जीतूजी का रवैया काफी बदला हुआ नजर आया। अब वह उनकी कामनाओं और भावनाओं की कदर करते हुए नजर आये।

रास्ते से भटक जाने के लिए पहले शायद वह कैप्टेन गौरव को आड़े हाथों ले लेते। पर उन्होंने जब दोनों के बिच का आकर्षण और उत्कट प्यार देखा तो गौरव को थोड़ी सी डाँट लगा कर छोड़ दिया। कर्नल साहब अब धीरे धीरे समझ रहे थे की जो कामबाण उनके और अपर्णा के ह्रदय को घायल कर रहा था वही कामबाण कप्तान गौरव और अंकिता के ह्रदय कोभी घायल कर रहा था। जब प्यार के कामबाण का तीर चलता है तो वह उम्र, जाती, समय, समाज का लिहाज नहीं करता। शादीशुदा हो या कंवारे, बच्चों के माँ बाप हों हो या विधवा हो, इंसान घायल हो ही जाता है। हाँ, यह सच है की समाज ऐसी हरकतों को पसंद नहीं करता और इसी लिए अक्सर यह सब कारोबार चोरी छुप्पी चलता है। आखिर कर्नल साहब और अपर्णा भी तो शादीशुदा थे। अंकिता और गौरव की मैथुन लीला देखने के बाद कर्नल साहब का नजरिया कुछ बदल गया। वह कर्नल साहब नहीं जीतूजी के नजरिये से अंकिता और गौरव का प्यार देखने लगे। अपर्णा यह परिवर्तन देख कर खुश हुई।

धीरे धीरे पूरा कारवाँ गंतव्य स्थान की और आगे बढ़ने लगा। अपर्णा के पूछने पर जीतूजी ने बताया की करीब आधा रास्ता ही तय हुआ था। कुछ आगे जाने पर दूर से जीतूजी ने ऊपर की और नजर कर के अपर्णा को दिखाया की उसके पति रोहित श्रेया पास पास में एक पत्थर लेटे हुए सूरज की रौशनी अपने बदन को सेकते हुए आराम कर रहे थे। इतने सर्द मौसम में भी रोहित के पसीने छूट रहे थे। पहाड़ों की चढ़ाई के कारण वह बार बार रुक रहे थे। अपर्णा और श्रेया भी करीब चार किलो मीटर चलने के बाद थके हुए नजर आ रहे थे। अंकिता और गौरव ज्यादा दूर नहीं गए थे। वह एक दूसरे के साथ बातें करते हुए, खेलते हुए आगे बढ़ रहे थे। पर जैसे चढ़ाई आने लगी, अंकिता भी थकान और हाँफ के कारण थोड़ा चलकर रुक जाती थी। चुदाई में हुए परिश्रम से वह काफी थकी हुई थी।

कैप्टेन गौरव और कर्नल साहब को ऐसे चलने की आदत होने के कारण उनपर कोई ज्यादा असर नहीं हुआ था पर असैनिक नागरिकों के धीरे धीरे चलने के कारण सैनिकों को भी धीरे धीरे चलना पड़ता था। अचानक ही सब को वही जँगली कुत्तों की डरावनी भौंकने की आवाज सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज ज्यादा दूर से नहीं आ रही थी। लगता था जैसे कुछ जंगली भेड़िये पहाड़ों में काफी करीबी से दहाड़ रहें हों। काफिला तीन हिस्सों में बँटा था। आगे श्रेया और रोहित थे। उसके थोड़ा पीछे अंकिता और कैप्टेन गौरव चल रहे थे और आखिर में उनसे करीब १०० मीटर पीछे अपर्णा और जीतूजी चल रहे थे।

भेड़ियों की डरावनी चिंघाड़ सुनकर ख़ास तौर से महिलाओं की सिट्टीपिट्टी गुम होगयी। वह भाग कर अपने साथी के करीब पहुँच कर उनसे चिपक गयीं। अंकिता गौरव से, अपर्णा जीतूजी से और श्रेया रोहित से चिपक कर डरावनी नज़रों से अपने साथी से बिना कुछ बोले आँखों से ही प्रश्न कर रहीं थीं की "यह क्या था? और अब क्या होगा?" तब जीतूजी अपर्णा को अपने से अलग कर, अचानक ही बिना कुछ बोले, भागते हुए रास्ते के करीब थोड़ी ही दुरी पर एक पेड़ था उस पर चढ़ गए। सब अचरज से जीतूजी क्या कर रहे थे यह देखते ही रहे की जीतूजी ने अपने बैकपैक (झोले) से एक जूता निकाला और उसको एक डाल पर फीते से बाँध कर लटका दिया। फिर फुर्ती से निचे उतरे और जल्दी से सब को अपने रास्ते पर जल्दी से चलने को कहा। जाहिर था जीतूजी को कुछ खतरे की आशंका थी। सब सैलानियों का हाल बुरा था। सब ने जीतूजी को पूछना चाहा की वह क्या कर रहे थे? उन्होंने अपना एक जूता डाली पर क्यों लटकाया? पर जीतूजी ने उस समय उसका कोई जवाब देना ठीक नहीं समझा। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, "अब एकदम तेजी से हम अपनी मंजिल, याने ऊपर वाले कैंप में पहुँच जाएंगे, उसके बाद मैं आपको बताऊंगा।"

सब फुर्ती से आगे बढ़ने लगे। जीतूजी ने सब को एकसाथ रहने हिदायत दी तो पूरा ग्रुप एक साथ हो गया। जीतूजी और कैप्टेन गौरव ने अपनी अपनी पिस्तौल निकाल लीं। कर्नल साहब (जीतूजी) ने कैप्टेन गौरव को सबसे आगे रह कर निगरानी करने को कहा। उन्होंने अंकिता और बाकी सबको बिच में एकजुट रहने के लिए कहा और खुद सबसे पीछे हो लिए। जब जीतूजी सबसे पीछे हो लिए तब अपर्णा भी जीतूजी के साथ हो ली। जीतूजी ने जब अपर्णा को सब के साथ चलने को कहा तो अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "मैं आप के साथ ही रहूंगी। हमने तय किया था ना की इस ट्रिप दरम्यान मैं आप के साथ रहूंगी और श्रेया रोहित के साथ। तो मैं आप के साथ ही रहूंगी।" जीतूजी ने अपने कंधे हिलाकर लाचारी में अपनी स्वीकृति दे दी।

काफिला करीब एक या दो किलोमीटर आगे चला होगा की सब को फिर वही जंगली कुत्तों की भयानक आवाज दुबारा सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज निचे की तरफ से आ रही थी। सब ने निचे की और देखा तो पाया की जिस पेड़ पर जीतूजी ने अपना एक जूता लटकाया था उस पेड़ के आजुबाजु दो भयानक बड़े जंगली कुत्ते भौंक रहे थे और उस पेड़ के इर्दगिर्द चक्कर काट रहे थे। तब जीतूजी ने कहा, "मेरा शक ठीक निकला। वह भेड़िये नहीं, हाउण्ड हैं। अब यह साफ़ हो गया है की दुश्मन के कुछ सिपाही हमारी सरहद में घुसने में कामियाब हो गए हैं और दुश्मन कुछ चाल चल रहा है। धीरे धीरे सारी कहानी समझ आ जायेगी। फिलहाल हमें ऊपर के कैंप पर फ़ौरन पहुंचना है।"

आर्मी के हाउण्ड की चिंघाड़ने की डरावनी आवाज सुनकर और हकीकत में उन भयानक बड़े डरावने जंगली कुत्तों को देख कर सब सैलानियों में जैसे बिजली का करंट लग गया। सबके पॉंव में पहिये लग गए हों ऐसे सब की गति तेज हो गयी। सबकी थकान और आराम करने की इच्छा गायब ही हो गयी, दिल की धड़कनें तेज हो गयी। कैप्टेन गौरव को किसीको तेज चलने के लिए कहना नहीं पड़ा। सब प्रकाश के सामान गति से ऊपर के कैंप की और लगभग दौड़ने लगे। अगर उस समय कोई गति नापक यंत्र होता तो शायद तेज चलने के कई रिकॉर्ड भी टूट सकते थे। रास्ते में चलते चलते कर्नल साहब ने सब के साथ जुड़कर ख़ास तौर से अपर्णा की और देख कर कहा, "आप लोगों के मन में यह प्रश्न था ना की मैं किस उधेड़बुन में था और मैंने पेड़ पर जूता क्यों लटकाया? और यह जंगली भेड़िये जैसे भयानक कुत्ते क्या कर रहे है? तो याद करो, क्या तुम्हें याद है की कुछ हफ्ते पहले मेरे घर में चोरी हुई थी जिसमें मेरा एक पुराना लैपटॉप और सिर्फ एक ही जूता चोरी हुआ था? घर में इतना सारा माल पड़ा हुआ था पर चोरी सिर्फ दो चीज़ों की ही हुई थी? वह चोरी दुशमनों की खुफिया एजेंसीज ने करवाई थी ताकि मेरे लैपटॉप से उन्हें कोई जानकारी मिल सके। एक जूता इस लिए चुराया था जिससे उस जूते को वह लोग अपने हाउण्ड को सुंघा सके जो मेरी गंध सूंघ कर मुझे पकड़ सके। मुझे इसके बारेमें पहले से कुछ शक पहले से ही हो गया था। पर मैं भी इतना समझ नहीं पाया की दुश्मन की इतनी जुर्रत कहाँ से हुई की वह हमारी ही सरहद में घुसकर ऐसी हरकतें कर सके? जरूर इसमें हमारे ही कुछ लोग मिले हुए हैं। मैंने दूसरे जूते को सम्हाल कर रक्खा हुआ था, ताकि जरुरत पड़ने पर मैं उन हाउण्ड को बहका कर भुलावा दे सकूँ और उनको गुमराह कर सकूँ। आज सुबह जब मैंने देखा की वह हाउण्ड मेरा ही पीछा कर रहे थे तब मैंने पेड़ पर वह जूता लटका कर कुछ घंटों के लिए उन हाउण्ड को गुमराह करने की कोशिश की और वह कोशिश कामयाब रही। वह हाउण्ड मेरा पीछा करने के बजाय उस पेड़ के ही चक्कर काट रहे थे यह लड़ाई मेरे और उनके बिच की है। आप में सी किसी को कुछ भी नहीं होगा।"

उस समय सब एक पहाड़ी के निचे से गुजर रहे थे। अचानक जोरों से वही डरावनी हाउण्ड की चिंघाड़ सुनाई दी। उस वक्त एकदम करीब ऊपर की और से आवाज आ रही थी। सब ने जब डर कर ऊपर देखा तो सब चौंक गए। उपर से दो भारी भरखम जंगली हाउण्ड, जिन्होंने सब लोगों का जीना हराम कर रखा था, वह जोरों से दहाड़ते हुए कर्नल साहब के ऊपर कूद पड़े। लगभग पंद्रह फुट की ऊंचाई से सीधे कर्नल साहब के ऊपर कूदने के कारण कर्नल साहब लड़खड़ा कर गिर पड़े। इस अफरातफरी में एक हाउण्ड ने बड़ी ताकत के साथ कर्नल साहब के हाथ से उनका रिवाल्वर छीन लिया। दुसरा हाउण्ड कैप्टेन गौरव पर कूद पड़ा और उसने उसी तरीके से गौरव के हाथ से रिवाल्वर छीन लिया। उतनी ही देरमें उनके बिलकुल पीछे लगभग दस से बारह घुड़सवारों ने बन्दुक तानकर सब को घेर लिया। सबा को "हैंड्स अप" करवा कर काफिले के मुखिया ने पूछा, "आप में से जनाब रोहित वर्मा कौन है?" फिर रोहित की और देख कर उसने अपनी जेब में से एक तस्वीर निकाली। तस्वीर जम्मू स्टेशन पर ली गयी थी जब सब ट्रैन से सुबह उतरे थे। उसमें सब के नाम एक कलम से लिखे हुए थे। रोहित का नाम पढ़कर सरदार ने रोहित को ढूंढ लिया और बोले, "आप जाने माने रिपोर्टर रोहित वर्मा है ना? हमें आप की और कर्नल साहब की आवश्यकता है।"

बाकी सब की और देखा और बोले, "अगर आप सब चुपचाप यहां से बगैर कोई हरकत किये चल पड़ोगे तो आप को कोई नुक्सान नहीं होगा।।" श्रेया, कैप्टेन गौरव और अंकिता चुपचाप बिना कुछ बोले वहीँ स्तंभित से खड़े रहे। कर्नल साहब और रोहित की और देखकर मुखिया ने एक साथीदार को कहा, "इन्हें बाँध दो" जैसे ही जीतूजी को बाँधने के लिए साथीदार आगे बढ़ा की अपर्णा भी आगे बढ़ी और उस आदमी को कंधे से पकड़ कर कस के एक तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और एक धक्का मार कर उसे गिरा दिया। फिर उनके मुखिया की और भाग कर उसे भी पकड़ा और उसे उसकी बन्दुक छीनने की कोशिश की। अपर्णा साथ ही साथ में चिल्ला कर कहने लगी, "अरे कुत्तों, शर्म करो। धोखा देकर हमला करते हो? यह कर्नल साहब और रोहित क्या तुम्हारे बाप का माल है की उन्हें पकड़ कर तुम ले जाओगे? जब तक हिन्दुस्तान का एक भी मर्द अथवा औरत ज़िंदा है तब तक तुम्हारी यह चाल कामयाब नहीं होगी। यह वीरों का देश है बुझदिल और कायरों का नहीं।" मुखिया अपर्णा की इस हरकत से कुछ पलों तक तो स्तब्ध होकर मौन हो गया और अपर्णा के भयानक रूप को देखता ही रहा। उसने सोचा भी नहीं था की एक औरत में इतना दम हो की इतने सारे बन्दुक धारियों के सामने ऐसी हरकत कर सके। फिर सम्हल कर वह आगे बढ़ा और बड़ा ही जबरदस्त थप्पड़ उसने अपर्णा के गाल पर दे मारा।

सरदार का हाथ भारी था और थप्पड़ इतना तेज था की अपर्णा गिर पड़ी और बेहोश हो गयी। उसके गाल लाल हो गये। अपर्णा के मुंह में से खून निकलने लगा। निचे गिर पड़ने से अपर्णा की स्कर्ट ऊपर उठने से अपर्णा की जाँघें नंगीं हो गयीं। अपर्णा ऐसे गिरी थी की उसका टॉप भी ऊपर से कुछ खुल गया और अपर्णा के करारे बूब्स का उभार साफ़ दिखाई देने लगा। मुखिया अपर्णा की खूबसूरती और बदन देख कर कुछ पल चुपचाप अपर्णा के बदन को देखता ही रहा। अपर्णा की दबंगाई देख कर बाकी सब सिपाही फुर्ती सेअपनी बंदूकें सबकी और तान कर खड़े हो गए। उनका सरदार हंस पड़ा और ठहाका मार कर हँसते हुए बोला, "बड़ी करारी औरत हे रे यह तो। बड़ा दम हैरे इसके अंदर। क्या कस के थप्पड़ मारा है इस बेचारे को। साला गिर ही पड़ा। बड़ी छम्मक छल्लो भी है यह औरत तो।" फिर मुखिया अपने साथीयों की और देख कर बोला, "बाँध दो इस औरत को भी। ले चलते हैं इसे भी। बड़ी खूबसूरत जवान है ये। साली पलंग में भी इतनी ही गरम होगी यह तो। चलो यह औरत जनाब का बिस्तर गरम करेगी आज रात को। ऐसा माल देख कर बहुत खुश होंगें जनाब। मुझे अच्छा खासा मोटा सा इनाम देंगे। जनाब का बिस्तर गरम करने के बाद में हम सब मिलकर साली का मजा लेंगे।"

एक मोटा सा काला सिपाही अपर्णा के पास आया। उसके बदसूरत काले मुंह में से उसके सफ़ेद दांत काली रात में तारों की तरह चमक रहे थे। अपर्णा को देख कर उसके मुंह में से एक बेहूदी और कामुक हंसी निकल गयी। उसने अपर्णा के दोनों हाथ और पाँव पकड़ कर बाँध दिए। काफिले का सरदार जल्दी में था। उसने वही कालिये को कहा, "इस नचनिया को तुम अपने साथ जकड कर बाँध कर ले चलो। वक्त जाया मत करो। कभी भी इनके सिपाही आ सकते हैं।" बाकी दो साथियों की और इशारा करके मुखिया बोला, "इस कर्नल को और इन रिपोर्टर साहब को बाँध कर तुम दोनों अपने साथ ले चलो।" मुखिया के हुक्म के अनुसार रोहित, कर्नल साहब और अपर्णा को कस के बाँध कर तीनों सिपाहियों ने अपने घोड़े पर बिठा दिया। अपर्णा को मोटे बदसूरत सिपाही ने अपने आगे अपने बदन के साथ कस के बांधा और अपना घोडा दौड़ा दिया। देखते ही देखते सब पहाड़ों में गायब हो गए। काफिले के पीछे उनके पालतू हाउण्ड घोड़ों के साथ साथ दौड़ पड़े और देखते ही देखते काफिला सब की आंखोंसे ओझल होगया। उस समय सुबह के करीब ११.३० बज रहे थे।

श्रेया, कैप्टेन गौरव और अंकिता बाँवरे से जीतूजी, अपर्णा और रोहित को आतंक वादियों के साथ कैदी बनकर जाते हुए देखते ही रह गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था की वह करे तो क्या करे? कैप्टेन गौरव ने सबसे पहले चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "हमें तेजी से चलकर सबसे पहले हमारे तीन साथीदारों की अगुआई की खबर ऊपर कैंप में जाकर देनी होगी। हो सकता है वहाँ उनके पास वायरलेस हों ताकि यह खबर सब जगह फ़ैल जाए। जिससे पूरा आर्मी हमारे साथीदारों को ढूंढने में लग जाए।" असहाय से वह तीनो भागते हुए थके, हारे परेशान ऊपर के कैंप में पहुंचे। उनके पहुँचते एक घंटा और बीत चुका था।

इधर अपर्णा, जीतूजी और रोहित के हाथ पाँव बंधे हुए थे और आँखों पर पट्टी लगी हुई थी। जीतूजी आँखों पर पट्टी बंधे हुए भी पूरी तरह सतर्क थे। उनके दोनों हाथ कस के बंधे हुए थे। घुड़सवार इधर उधर घोड़ों को घुमाते हुए कोई नदी के किनारे वाले रास्ते जा रहे थे क्यूंकि रास्ते में जीतूजी को पहाड़ों से निचे की और बहती हुई नदी के पानी के तेजी से बहने की आवाज का शोर सुनाई दे रहा था। अपर्णा का हाल सबसे बुरा था। उस मोटे बदसूरत काले बन्दे ने अपर्णा को अपनी जाँघों के बिच अपने आगे बिठा रखा था। अपर्णा के दोनों हाथ पीछे कर के बाँध रखे थे। कालिये के लण्ड को अपर्णा के हाथ बार बार स्पर्श कर रहे थे। जाहिर है इतनी खूबसूरत औरत जब गोद में बैठी हो तो भला किस मर्द का लण्ड खड़ा न होगा? कालिये का लण्ड अजगर तरह फुला और खड़ा था जो अपर्णा अपने हांथों में महसूस कर रही थी। घोड़े को दौड़ाते दौड़ाते कालिया बार बार अपना हाथ अपर्णा की छाती पर लगा देता था और मौक़ा मिलने पर अपर्णा की चूँचियाँ जोरसे दबा देता था। कालिया इतने जोर से अपर्णा के बूब्स दबाता था की अपर्णा के मुंह से चीख निकल जाती थी। पर उस शोर शराबे में भला किसी को क्या सुनाई देगा? कालिया ने महसूस किया की उसका लण्ड अपर्णा की गाँड़ पर टक्कर मार रहा था तब उसने अपने पाजामे को ढीला किया और घोड़े को दौड़ाते हुए ही अपना मोटा हाथी की सूंढ़ जैसा काला लंबा तगड़ा लण्ड पाजामे से बाहर निकाल दिया। जैसे ही उसने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया की वह सीधा ही अपर्णा के हाथों में जा पहुंचा। अपर्णा वैसे ही कालिये के लण्ड से उसकी गाँड़ में धक्के मारने के कारण बहुत परेशान थी ऊपरसे कालिये के लण्ड का स्पर्श होते ही वह काँप उठी। उसके हाथों में कालिये का लण्ड ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई अजगर हो।

अपर्णा को यह ही समझ नहीं आ रहा था की वह कहाँ से शुरू हो रहा था और कहाँ ख़तम हो रहा था। अपर्णा को लगा की जिस किसी भी औरत को यह कालिया ने चोदा होगा वह बेचारी तो उसका लंड उसकी चूत में घुसते ही चूत फट जाने के कारण खून से लथपथ हो कर मर ही गयी होगी।

छोटी मोटी औरततो उस भैंसे जैसे कालिये से चुदवा ही नहीं सकती होगी। कालिये को चोदने के लिए भी तो उसके ही जैसी भैंस ही चाहिए होगी। यह सब सोच कर अपर्णा की जान निकले जा रही थी। उस दिन तकतो अपर्णा यह समझती थी की जीतूजी का लण्ड ही सबसे बड़ा था। पर इस मोटे का लण्ड तो जीतूजी के लण्ड से भी तगड़ा था। ऊपर से उस लण्ड से इतनी ज्यादा चिकनाहट निकल रही थी की अपर्णा के बंधे हुए हाथ उस चिकनाहट से पूरी तरह लिपट चुके थे। अपर्णा को डर था की कहीं कालिया के मन में काफिले से अलग हो कर जंगल में घोड़ा रोक कर अपर्णा को चोदने का कोई ख़याल ना आये। अपर्णा बारबार अपने कानों से बड़े ध्यान से यह सुनने की कोशिश कर रही थी की कहीं वह मोटा काफिले को आगे जानेदे और खुद पीछे ना रह जाए, वरना अपर्णा की जान को मुसीबत आ सकती थी। कुछ देर बाद अपर्णा को महसूस हुआ की काफिले के बाकी घुड़सवार शायद आगे निकले जारहे थे और कालिये का घोड़ा शायद पिछड़ रहा था। मारे डर के अपर्णा थर थर काँपने लगी। उसे किसी भी हाल में इस काले भैंसे से चुदवाने की कोई भी इच्छा नहीं थी। अपर्णा ने "बचाओ, बचाओ" बोल कर जोर शोरसे चिल्लाना शुरू किया। अचानक अपर्णा की चिल्लाहट सुनकर कालिया चौंक गया। वह एकदम अपर्णा की चूँचियों पर जोर से चूँटी भरते हुए बोला, "चुप हो जाओ। मुखिया खफा हो जाएगा।" अपर्णा समझ गयी की उसे सरदार से चुदवाने के लिए ले जाया जा रहा था। जाहिर है सरदार को खुद अपर्णा को चोदने से पहले कोई और चोदे वह पसंद नहीं होगा। इस मौके का फायदा तो उठाना ही चाहिए। दुसरा कालिया सरदार से काफी डरता था। अपर्णा ने और जोर से चिल्लाना शुरू किया, "बचाओ, बचाओ।"

कालिया परेशान हो गया। आगे काफिले में से किसीने अपर्णा के चिल्लाने की आवाज सुनली तो काफिला रुक गया। सब कालिया की और देखने लगे। कालिया अपना घोड़ा दौड़ा कर आगे चलने लगा। उसी वक्त अपर्णा को जीतूजी की आवाज सुनाई दी। जीतूजी जोर से चिल्ला कर बोल रहे थे, "अपर्णा तुम कहाँ हो? क्या तुम ठीक तो हो?" अपर्णाने सोचा की अगर उन्होंने जीतूजी को अपना सच्चा हाल बताभी दिया तो वह कर कुछ भी नहीं पाएंगे, पर बेकार परेशान ही होंगें। तब अपर्णा ने जोर से चिल्लाकर जवाब दिया "मैं यहां हूँ। मैं ठीक हूँ।" अपर्णा ने फिर पीछे की और घूम कर कालिये से कहा, "अगर तुम मुझे और परेशान करोगे तो मैं तुम्हारे सरदार को बता दूंगी की तुम मुझे परेशान कर रहे हो।" कालियेने कहा, "ठीक है। पर तुम चिल्लाना मत। राँड़, अगर तू चिल्लायेगी तो अभी तो मैं कुछ नहीं करूँगा पर मौक़ा मिलते ही मैं तुझे चोद कर तेरी चूत और गाँड़ दोनों फाड़ कर तुझे मार कर जंगल में भेड़ियों को खिलाने के लिए डाल दूंगा और किसीको पता भी नहीं चलेगा। तू मुझे जानती नहीं। अगर तू चुप रहेगी तो मैं तुझे ज्यादा परेशान नहीं करूँगा। बस तू सिर्फ मेरा लण्ड सहलाती रह।" कालिये की धमकी सुनकर अपर्णा की हवा ही निकल गयी। उसकी बात भी सच थी। मौक़ा मिलते ही वह कुछ भी कर सकता था। अगर उस जानवर ने कहीं उसे जंगल में दोनों हाथ और पाँव बाँध कर डाल दिया तो भेड़िये भले ही उसे ना मारें, पर पड़े पड़े चूंटियाँ और मकोड़े ही उसके बदन को बोटी बोटी नोंच कर खा सकते थे। इससे बेहतर है की थोड़ा बर्दाश्त कर इस जानवरसे पंगा ना लिया जाए। अपर्णा ने अपनी मुंडी हिलाकर "ठीक है। अब मैं आवाज नहीं करुँगी।" कह दिया। उसके बाद कालिये ने अपर्णा की चूँचियों को जोर से मसलना बंद कर दिया पर अपना लण्ड वहाँ से नहीं हटाया। अपर्णा ने तय किया की अगर कालिया ऐसे ही काफिले के साथ साथ चलता रहा तो वह नहीं चिल्लायेगी। अपर्णा ने अपनी उंगलयों से जितना हो सके, कालिये के लण्ड को पकड़ कर सहलाना शुरू किया।

दहशतगर्दों का काफिला काफी घंटों तक चलता और दौड़ता ही रहा। कभी एकदम तेज चढ़ाव तो कभी एकदम ढलाव आता जाता रहा। पर पुरे सफर दरम्यान एक बात साफ़ थी की नदी के पानी के बहाव का शोर हर जगह आ रहा था। इससे साफ़ जाहिर होता था की काफिला कोई नदी के किनारे किनारे आगे चल रहा था। रोहित और अपर्णा काफी थक चुके थे। घोड़े भी हांफने लगे थे। काफी घंटे बीत चुके थे। शाम ढल चुकी थी। अपर्णा को महसूस हुआ की काफिला एक जगह रुक गया। तुरंत अपर्णा की आँखों से पट्टी हटा दी गयी। अपर्णा ने देखा की पूरा काफिला एक गुफा के सामने खड़ा था। वहाँ काफी कम उजाला था। कुछ देर में अपर्णा के हाथों से भी रस्सी खोल दी गयी।

अपर्णाने जीतूजी और रोहितको भी देखा। उनके हाथों और पाँवकी रस्सी निकाली जारही थी। सब काफी थके हुए लग रहे थे। काफिले के मुखिया ने गुफा के अंदर से किसी को बाहर बुलाया। दुशमन की सेना के यूनिफार्म में सुसज्जित एक अफसर आगे आया और जीतूजी से हाथ मिलाता हुआ बोला, "मेरा नाम कर्नल नसीम है। कर्नल अभिजीत सिंहजी आपका और रोहित वर्माजी का स्वागत है। आप बिलकुल निश्चिन्त रहिये। यहाँ आपको हमसे कोई खतरा नहीं है। हम सिर्फ आपसे कुछ बातचीत करना और कुछ जानकारी हासिल करना चाहते हैं। अब आप हिंदुस्तान की सरहद के दूसरी और आ चुके हैं। अगर आप सहयोग करेंगे तो हम आपको कोई तकलीफ नहीं पहुंचाएंगे।" फिर अपर्णा की और देख कर वह थोड़े अचरज में पड़े और उन्होंने मुखिया से पूछा, "अरे यह औरत कौन है? इन्हें क्यों उठाकर लाये हो?" मुखिया ने उनसे कहा, "यह अपर्णा है जनाब। यह बड़ी जाँबाज़ औरत है और जब हमने इन दोनों को कैद किया तो यह अकेले ही हम से भिड़ने लगी। मैंने सोचा सरदार को यह जवान औरत पेश करेंगे तो वह खुश हो जाएंगे।" तब रोहित ने आगे बढ़कर कहा, "जनाब यह मेरी बेगम हैं। आपके लोग उन्हें भी उठाकर ले आये हैं।" कर्नल नसीम ने अपना सर झुकाते हुए माफ़ी मांगते हुए कहा, "मैं मुआफी माँगता हूँ। यह बेवकूफ लोगों ने बड़ी घटिया हरकत की है।" उस आर्मी अफसर ने कहा, "अरे बेवकूफों, यह क्या किया तुमने? कहीं जनरल साहब नाराज ना हो जाएँ तुम्हारी इस हरकत से।"

फिर थोड़ा रुक कर वह अफसर कुछ देर चुप रहा और कुछ सोच कर बोला, "खैर चलो देखो, आज रात को इस मोहतरमा को इन साहबान के साथ ही रहने दो। सुबह जब जनरल साहब आ जाएंगे तब देखेंगे।" फिर उस अफसर ने जीतूजी की और घूमकर कहा, "अब आप आराम कीजिये। आपको हमारे जनरल साहब से सुबह मिलना होगा। वह आपसे कुछ ख़ास बातचीत करना चाहते हैं। हमने आपके लिए रात को आराम के लिए कुछ इंतेझामात किये हैं। इस वीरान जगह में हमसे ज्यादा कुछ हो नहीं पाया है। इंशाअल्लाह अगर आप हमसे को-आपरेट करेंगे तो फिर आप हमारी खातिरदारी देखियेगा। फिलहाल हमें उम्मीद है आप इसे कुबूल फरमाएंगे। चलिए प्लीज।" कर्नल नसीम एक बड़े से हाल में उनको ले गए। अंदर जाने का एक दरवाजा था जो लकड़ी का था और उसके आगे एक और लोहे की ग्रिल वाला दरवाजा था। अंदर हॉल में एक बड़ा पलंग था और साथ में एक गुसलखाना था। एक बड़ा मेज था। दो तीन कुर्सियां रखीं थीं। बाकी कमरा खाली था।

कर्नल नसीम ने बड़ी विनम्रता से जीतूजी से कहा, "मुझे माफ़ कीजिये, पर मोहतरमा के आने का कोई प्लान नहीं था इसलिए उनके लिए कोई ख़ास इंतेजामात कर नहीं पाए हैं। उम्मीद है आप इसी में गुजारा कर लेंगे।"​
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