Update 19

जो कालिया अपर्णा को गोद में बिठाकर घोड़े पर बाँध कर ले आया था वह वहीँ खड़ा था। उसकी और इशारा करते हुए कर्नल नसीम ने कहा, "अगर आपको कोई भी चीज़ की जरुरत हो तो यह अब्दुल मियाँ आपकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। तो फिर कल सुबह मिलेंगे। तब तक के लिए खुदा हाफ़िज़।" यह कह कर कर्नल नसीम चल दिए। दरवाजे पर पहुँचते ही जैसे कुछ याद आया हो ऐसे वह वापस घूमे और कर्नल साहब की और देख कर बोले, "देखिये, अगर आप के मन में कोई भागने का प्लान हो ता ऐसी गलती भूल कर भी मत करियेगा। हमारे हाउण्ड भूखे हैं। वह आपकी गंध को अच्छी तरह पहचानते हैं। हमने उन्हें खुला छोड़ रखा है। बाकी आप समझदार हैं। खुदा हाफ़िज़।" यह कह कर कर्नल नसीम रवाना हुए। कालिया को दरवाजे पर ही तैनात किया गया था। जैसे ही नसीम साहब गए, कालिया की लोलुप नजर फिर से अपर्णाके बदन पर मंडराने लगीं। अब उसे एक तसल्ली थी की सरदार को मोहतरमा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। कालिया को लगा की अगर वह कैसे भी अपर्णा को मना लेता है तो उसकी रात सुहानी बन सकती है।

रोहित ने दोनों दरवाजे बंद कर दिए। कालिया दरवाजे के बाहर पहरेदारी में था। दरवाजा बंद होते ही अपर्णा, रोहित और जीतूजी इकट्ठे हो गए और एक दूसरे की और देखने लगे। जीतूजी ने होँठों पर उंगली रख कर सब को चुप रहने का इशारा किया और वह पुरे कमरे की छानबीन करने में लग गए। उन्होंने पलंग, कुर्सी, मेज, दरवाजे, खिड़कियाँ सब जगह बड़ी अच्छी तरीके छानबीन की। जीतूजी को कोई भी कैमरा, या ऐसा कोई खुफिया यंत्र नहीं मिला। चैन की सांस लेते हुए उन्होंने रोहित और अपर्णा को कहा, "हमारे दुश्मन की सेना के अफसर हमसे हमारी सेना की गति विधियों के बारेमें खुफिया जानकारी हमसे लेना चाहते हैं। दुश्मन का कुछ प्लान है। शायद वह हम पर कोई एक जगह हमला कर घुसपैठ करना चाहते हैं। पर उन्हें पता नहीं की हम कहाँ कितने सतर्क हैं। वह हमारी खातरदारी तब तक करते रहेंगे जबतक हम उनको खबर देते रहेंगे। जैसे ही उनको लगा की हम उनसे को-आपरेट नहीं करेंगे तो वह हमें या तो मार डालेंगे या फिर अपनी जेल में बंद कर देंगे। यह तय है की हम हमारे मुल्क से धोखा नहीं करेंगे। कल जब उनके जनरल के सामने हमारी पेशी होगी तो वह जान जाएंगे की हम उन्हें कुछ भी नहीं बताने वाले। वह हमें खूब त्रास देंगे, मारेंगे, पीटेंगे, जलती हुई आग के अंगारों पर चलाएंगे और पता नहीं क्या क्या जुल्म करेंगे। हमारी भलाई इसी में है की हम इस रात को ही कुछ भी कर यहां से भाग निकलें।

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गर्मी और पसीने के मारे जीतूजी, रोहित और अपर्णा, तीनों की हालत खराब थी। ऊबड़खाबड़ रास्ते पर इतना लंबा सफर वह भी घोड़े पर हाथ पाँव बंधे हुए करना थकावट देनेवाला था। अपर्णा लगभग बेहोशी की हालत में थी। एक तो इतना लंबा सफर उपरसे कालिया की पुरे सफर के दौरान अपर्णा के बूब्स को दबाना और जाँघों पर हाथ फिराते फिराते अपर्णा की चूत तक हाथ ले जाना और मौक़ा मिलने पर पैंटी उठाकर चूत के अंदर उंगली घुसाने की कोशिश करते रहना बगैरह हरकतों से अपर्णा एकदम थक चुकी थी। जीतूजी के बारेमें सोचते हुए कई बार अपर्णा उत्तेजित भी हो जाती थी और एकाध बार तो झड़ भी चुकी थी। उपर से कालिया के अजगर जैसे लम्बे और मोटे लण्ड से निकली हुई उसकी चिकनाहट ने अपर्णा के पूरा हाथ को चिकनाहट से भर दिया था।

जब जीतूजी ने कहा की उन्हें भाग निकलना चाहिए तो अपर्णा को उस मुसीबत के दरम्यान भी हँसी आगयी। जीतूजी ऐसे बात कर रहे थे जैसे बाहर निकलना बच्चों का खेल हो। बाहर कालिया भैंसे जैसा पहलवान बैठा था, जिसके हाथ में भरी हुई बंदूक थी। उपर से कर्नल नसीम ने बात बात में उन्हें सावध कर दिया था की बाहर ही उन्होंने भयानक हाउण्ड भूखे छोड़ रखें हैं, जिनको जीतूजी के बदन की भली भाँती पहचान थी। जाहिर है की बाहर और भी सिपाही लोग पहरा दे रहे होंगे। ऐसे में भाग निकलने का तो सवाल ही नहीं था। कुछ ही देरमें किसीने उनका दरवाजा खटखटाया। एक चौकीदार तीन प्लेट्स और खाना लेकर आया। उसने मेज पर खाना लगा दिया। खाना सजा कर पहरेदार झुक कर चला गया। अपर्णा और रोहित जीतूजी की और देख ने लगे। जीतूजी ने कहा, "देखो कहावत है ना की बकरे को मारने के पहले अच्छा खासा खिलाया पिलाया जाता है। चलो आज रात को तो खापी लें। सबने मिलकर खाया।

अपर्णा को कुछ आराम करने की जरुरत थी। अपर्णा कमरे के साथ में ही लगे गुसलखाने (बाथरूम) में गयी। बाथरूम साफ़ सुथरा था। बाल्टी में ठंडा साफ़ पानी भी था। अपर्णा का नहाने का मन किया। पर सवाल था की नहाने के बाद पोंछे किससे और कपड़ा क्या बदलें? अपर्णा ने अपने पति रोहित को इशारा किया और पास बुलाया। अपर्णा ने कहा, "मुझे नहाना है। साफ़ होना है। उस गंदे बदबूदार कालिये ने पुरे रास्ते में मेरी जान ही निकाल ली है। मुझे इतना गंदा सा फील हो रहा है। पर क्या करूँ? ना तो कोई तौलिया है और ना ही कोई बदलने के लिए कपड़ा।" रोहित ने कहा, "देखो, हम कोई पांच सितारा होटल में नहीं ठहरे हैं। यह जेल है। भगवान् इनका भला करे की इन्होने हमें इतनी भी सहूलियत दी है। वह सोच रहे होंगे की शायद हमें सहूलियत देने से हम उनको सारी खुफिया खबर यूँ ही दे देंगे। खैर जहां तक बात है तौलिये की और कपडे बदलने की, तो तुम नहा कर इन्हीं कपड़ों से पोंछ लेना और इन्हें सुखाने के लिए रख देना। इतनी गर्मी में यह जल्द ही सुख जाएंगे।" अपर्णा ने अपने पति की और अचम्भे से देखा और बोली, "तुम पागल हो? अरे मैंने अगर कपडे भिगोये और सुखाने के लिए रक्खे तो फिर मैं क्या पहन के सोऊंगी?" रोहित ने कहा, "रोज कौन से कपडे पहन कर सोती हो?"

अपर्णा ने अपने पति की और देखा और बोली, "तुम्हारा जवाब नहीं। अरे एक ही तो पलंग है। और सोने वाले हैं हम तीन। कोई पर्दा भी नहीं है। तो क्या मैं जीतूजी के साथ नंगी सो जाऊं?" रोहित ने कड़ी नज़रों से अपर्णा की और देखा और बोले, "वह सब तुम जानो। अगर नंगी सो भी जाओगी तो यकीन मानो तुम पर चढ़ जाकर तुम्हें चोदेंगे नहीं। हम एक आपात स्थिति में हैं। यहां हम सब यह सोचकर नहीं आये।" अपर्णा ने एक गहरी साँस ली। पति के साथ बात करना बेकार था। अपर्णा ने कहा, "चलो ठीक है, सबसे पहले आप लोग नहालो या फ्रेश हो जाओ। फिर मैं सीचूंगी मुझे क्या करना है।" सबसे पहले जीतूजी बाथरूम में गए और नहा कर जब बाहर निकले तो उन्होंने एक छोटी सी निक्कर पहन रक्खी थी, अंदर के बाकी कपडे धो कर निचोड़ कर पलंग पर ही उन्होंने इधर उधर लटकाये। उन्होंने अपना यूनिफार्म जराभी गिला नहीं किया।

अपर्णा जीतूजी के करारे बदन को देखती ही रही। उनके बाजुओंके शशक्त माँसपेशियाँ, उनका लंबा कद, उनके घने घुंघराले बाल और छाती पर बालों का घना जंगल कोई भी स्त्री को मोहित करने वाला था। निक्कर में से उनका फनफनाते लण्ड का आकार साफ़ साफ़ दिख रहा था। जीतूजी की सपाट गाँड़ और चौड़े सीने के निचे सिमटा हुआ कई सिलवटदार पेट जीतूजी की फिटनेस का गवाह था। जाहिर था की वह किसी भी औरत को चुदाई कर के पूरी तरह संतुष्ट करने में शक्षम लग रहे थे। रोहित भी नहाकर जीतूजी की ही तरह निक्कर पहनकर आगये। रोहित की निक्कर गीली होने से उनका लण्ड तो जैसे नंगा सा ही दिख रहा था। अपर्णा ने उन्हें एक हल्का सा धक्का मारकर हलकी सी हंसी दे कर जीतूजी ना सुने ऐसे कहा, "अरे तुम देखो तो, तुम्हारा यह घण्टा कैसा नंगा दिखता है।" रोहित ने भी हंसी हंसी में अपर्णा के कानों में कहा, "अच्छा? तू हम दोनों के घण्टे ही देखती रहती हो क्या?" फिर वह पलंग पार जा कर लेट गए। अपने पति की बात सुनकर शर्म से लाल लाल हुई अपर्णा आखिर में नहाने गयी।

अपर्णा का पूरा बदन दर्द कर रहा था। उसकी कमर घुड़ सवारी से टेढ़ी सी हो गयी थी। पुरे रास्ते में कालिया का मोटा लण्ड अपर्णा की गाँड़ को कुरेद रहा था। अगर अपर्णा के हाथ पीछे बंधे ना होते तो शायद वह कालिया अपर्णा की पैंटी ऊपर करके अपना मोटा लण्ड अपर्णा की गाँड़ में डाल ही देता। हर बार जब कालिया अपर्णा की कमर से उसका स्कर्ट ऊपर और पैंटी निचे खिसका ने की कोशिश करता, अपर्णा उसका हाथ पकड़ लेती, जिससे कालिया अपर्णा के चिल्लाने के डर से कुछ नहीं कर पाया था। अपर्णा ने बाथरूम में जाने के पहले कमरे की सारी बत्तियां बुझा दीं। फिर बाथरूम का दरवाजा बंद कर सारे कपडे निकाल कर पानी और साबुन रगड़ रगड़ कर अपना बदन साफ़ किया। वह कालिये की पसीने और उसके लण्ड की चिकनाहट की बदबू से निजाद पाने की कोशिश में थी। अच्छी तरह साफ़ होने के बाद अपर्णा सिर्फ अपनी पैंटी पहन कर बाहर निकली। उसने अपनी स्कर्ट और टॉप अच्छी तरह धो कर निचोड़ कर अपने साथ लेली ताकि उसे कहीं सूखा सके। नहा कर बाहर निकलते हुए अपर्णा ने जब हलके से बाथरूम का दरवाजा खोल कर देखा की कमरे में अन्धेरा था। अपर्णा चुपचाप पलंग की और अपने पति के पास पहुंची।

जैसे जैसे अपर्णा की आँखें अँधेरे से वाकिफ हुईं तो उसे कुछ कुछ दिखने लगा। अपर्णा ने देखा की जीतूजी सोये नहीं थे बल्कि बैठे हुए थे। ब्रा और पैंटी पहने हुए होने के कारण अपर्णा को बड़ी शर्म महसूस हो रही थी। शायद जीतूजी की आँखें बंद थीं। अपर्णा बिना आवाज किये कम्बल के अंदर अपने पति के साथ घुस गयी। उसका हाथ अपने पति की निक्कर में फ़ैल रहे लण्ड से टकराया। जीतूजी रोहित की दूसरी तरफ बैठे हुए कुछ गहरी सोचमें डूबे हुए लग रहे थे। अपर्णा के पलंग में घुसते ही रोहित ने अपर्णा की भारी सी चूँचियों को सहलाने लगे। इतनी ही देर में सब चौंक गए जब बाहर से कालिया की "अपर्णा.... अपर्णा" गुर्राने की आवाज सुनाई पड़ी।

कालिया की आवाज सुनकर अपर्णा डर के मारे कम्बल में घुस गयी। तब अचानक चुटकी बजा कर जीतूजी बोले, "मेरी बात ध्यान से सुनो। हम यहां से बाहर निकल कर भाग सकते हैं। और वह भेड़िये हाउण्ड भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे।" जीतूजी की बात सुनकर रोहित और अपर्णा अचम्भे से उन्हें सुनने के लिए तैयार हो गए। जीतूजी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "अगर अपर्णा हमारी मदद करे तो।" जीतूजी की बात सुनकर रोहित बोले, "हाँ अपर्णा मदद क्यों नहीं करेगी? क्या रास्ता है, बताओ तो?" जीतूजी ने कहा, "अपर्णा को कालिया के पास जाना होगा। उसे फाँसना होगा।" जीतूजी की बात सुनकर अपर्णा अकुला कर बोली, "कभी नहीं। अगर मैं उसके थोड़ी सी भी करीब गयी तो वह राक्षस मुझे छोड़ेगा नहीं। मैं जानती हूँ पुरे रास्ते मैंने क्या भुगता है। वह वहीं का वहीं मुझ पर बलात्कार कर मुझे मार डालेगा।"

अपर्णा को रस्ते की आपबीती कहाँ भूलने वाली थी? सारे रास्ते में कालिया अपर्णा को यही कहता रहता था, "अपर्णा, मेरी जान तू मुझे एक बार चोदने का मौक़ा देदे। मेरे इस लण्ड से मैं तुझे ऐसे चोदुँगा की इसके बाद तुझे बाकी सारे लण्ड फ़ालतू लगेंगे। उसके बाद तू सिर्फ मुझ से ही चुदवाना चाहेगी। मेरी बात मानले, आज रात को मैं चुपचाप तुझे चोदुँगा और किसीको कानो कान खबर भी नहीं होगी। बस एक बार राजी हो जा।" यह सुनकर अपर्णा के कान पक गए थे। चुदवाना या फाँसना तो दूर, अपर्णा उस कालिये की शकल भी देखना नहीं चाहती थी। जीतूजी ने कहा, "अपर्णा, मेरा प्लान १००% सफल होगा। बस तुम्हें थोड़ी हिम्मत और धीरज रखनी होगी। समझा करो। बाहर कालिया बंदूक ले कर बैठा हुआ है। गली में भेड़िये जैसे भूखे हाउण्ड हमारा इंतजार कर रहेहैं। ऐसेमें हम कैसे बाहर निकलेंगे? यहांसे छटकनेका सिर्फ एकही रास्ताहै, कालिया तुम पर फ़िदा है। अगर तुम उसे कुछ भी समझा बुझा कर पटा लोगी तो हम निकल पाएंगे। मेरी बात मानो और कालिया को ललचाओ।"

अपर्णा ने जीतूजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। तब रोहित बोले, "देखो डार्लिंग! या तो हम यहाँ सारी रात गुजारें और कल इन लोगों की मार खाएं। सबसे बुराहाल तो तुम्हारा होगा। एक बार यह लोग समझ गए की हम उनकी बात नहीं मानने वाले हैं तो यह लोग एक के बाद एक या तो कई लोग एक साथ तुम्हारे सुन्दर बदन को भूखे भेड़िये समान नोंच नोंच कर चींथड़े कर देंगे। बाकी तुम जानो।" अपर्णा अपने पति की बात सुनकर डर के मारे काँपने लगी। उसे अपनी आँखों के सामने अन्धेरा दिखने लगा। उसे लगा की उसके लिए तो एक और कुआं था तो दूसरी और खाई। अगर पति की बात मानी तो पता नहीं यह कालिया उसके साथ क्या क्या करेगा। और नहीं मानी तो क्या हुआ यह तो बता ही दिया था। अपर्णा ने अपने पति रोहित से कहा, "तुम्हें पता है, मेरे साथ पुरे रास्ते में वह कालिया ने क्या क्या किया? उसने मेरे पुरे बदन को नोंचा, मेरे पिछवाड़े को अपने आगे से खूब कुरेदा और अपने हाथों से मेरी छाती को मसल मसल कर मेरे सीने को लाल लाल कर दिया। पुरे रास्ते वह मुझे मनाता रहा की मैं उसके साथ एक रात गुजारूं। मुझे मरना है की मैं उसके साथ एक मिनट भी गुजारूं। बापरे मेरे बंधे हाथ में उसने अपना गवर्नर पकड़ा दिया था। बापरे, कितना बड़ा और मोटा था उसका गवर्नर! पता नहीं इसकी कोई बीबी है या नहीं। पर अगर है तो वह एक भैंस जैसी ही होगी क्यूंकि इस कालिये का लेना कोई साधारण औरत का काम नहीं है। अब उसके साथ एक पल बिताना मेरे लिए पॉसिबल नहीं है। आई एम् सॉरी।" अपर्णा का डर देखकर जीतूजीने कहा, "अपर्णा, डरो मत। तुम्हारे साथ कुछ नहीं होगा। मेरी बात ध्यान से सुनो।" उसके बाद जीतूजी ने अपर्णा को अपना प्लान बताया। जीतूजी की बात सुन-कर अपर्णा को कुछ तसल्ली हुई। अपर्णा अपने पति रोहित की बाँहों में कुछ देर आराम कर ने के लिए सो गयी।

हालांकि बार बार बाहर से कालिया की "अपर्णा... अपर्णा..." की आवाज सुनाई दे रही थी। जीतूजी वैसे ही बैठे हुए सोच में डूबे हुए सही समय का इंतजार कर रहे थे। रोहितभी इस ट्रिपमें क्या क्या रोमांचक और खतरनाक अनुभवोंके बारे में सोचते हुए अपनी बीबी की चूँचियों को सहलाते हुए तंद्रा में पड़े रहे। रात बीती जारही थी। अपर्णा थकानके मारे कुछही मनटोंमें गहरी नींद सो गयी। जीतूजी की आँख में नींद का नामो निशाँ नहीं था। रोहित कभी सो जाते तो कभी जाग जाते। बाहर से कालिये की "अपर्णा... अपर्णा....." की पुकार कुछ मिनटों बाद सुनाई देती रहती थी। कुछ देर बाद अपर्णा को जीतूजी ने जगाया। अपर्णा गहरी नींद में से चौंक कर जागी। काफी रात हो चुकी थी। रात के करीब बारह बजने वाले थे। जीतूजी ने अपर्णा को इशारा किया।

अपर्णा दबे पाँव दरवाजे के पास गयी और उसने धीरे से अंदर का लकड़ीका दरवाजा खोला। बाहर का लोहे का दरवाजा बंद था। दरवाजे के बाहर कालिया अपनी बन्दुक हाथ में लिए बैठा था। अपर्णा ने अंदर से "छी. ... छी.... " आवाज कर के कालिया को बुलाया। कालिया ने फ़ौरन देखा तो अपर्णा को लोहे के दरवाजे के अंदर देखा। अपर्णा ने अपना हाथ बाहर निकल कर कालिया को नजदीक आने का इशारा किया। कालिया कुछ देर तक अपर्णा के हाथ को देखता ही रहा। वह शायद इस असमंजस में था की वह दरवाजे के नजदीक जाए या नहीं। उसे डर था की कहीं इन लोगों के पास कुछ हथियार तो नहीं जिनसे वह उसको मारने का प्लान कर रहे हों। पर जब उसने देखा की अपर्णा सिर्फ ब्रा और पैंटी पहने खड़ी थी तो उससे रहा नहीं गया और वह उठकर अपर्णा के पास गया। अपर्णा ने अपने होँठों पर उंगली रखते हुए धीमे आवाज में कहा, "सुनो, बिलकुल आवाज मत करो। अंदर मेरे पति और कर्नल साहब गहरी नींद सो रहे हैं, आवाज से कहीं वह जाग ना जाएँ। मैं अभी उनको गहरी नींद सुला कर आयी हूँ।'

फिर कालिया को और करीब बुलाकर लोहे का दरवाजा खोले बिना अंदर से ही एकदम धीरे से बोली, "देखो, मुझे तुम बहुत पसंद हो। मुझे तुम्हारा गर्म बदन बहुत पसंद है। पुरे रास्ते में तुमने मुझे बहुत मजा कराया। तुम्हारा वह जो है ना? अरे वह...? वह बहुत बड़ा और लंबा है। मैंने रास्ते में हिलाया तो मुझे बहुत अच्छा लगा। क्या तुम मुझसे ..... करना चाहते हो? क्या तुम जो कहते थे की तुम मुझे खूब मजे कराओगे वह करा सकते हो? तुम्हारे बॉस नाराज तो नहीं हो जाएंगे? यहाँ और कोई पहरे दार तो नहीं की हम पकडे जाएंगे? मैं किसीसे नहीं कहूँगी। बोलो?" कालिया अपर्णा को हक्काबक्का देखता ही रह गया। उसकी समझ में नहीं आया की इतनी खूबसूरत लड़की कैसे उससे इतनी जल्दी पट गयी। अपर्णा ने उसके शक को दूर करने के लिए कहा, "देखो आज तक मुझे किसीने इतने बड़े लण्ड से सेक्स नहीं किया। मैं हमेशा बड़े लण्ड वाले से सेक्स करना चाहती थी। मेरे पति का लण्ड एकदम छोटा है। मुझे बिलकुल मजा नहीं आता। क्या तुम मुझे चोदोगे?" अपर्णा ने तय किया की वह राक्षस सीधी बात ही समझेगा। सेक्स बगैरह शब्द वह शायद ना समझे। कालिया का चेहरा यह सुन कर खिल उठा। उसका तो जीवन जैसे धन्य हो गया। आजतक उसने खूबसूरत औरतों को चोदने के सपने जरूर देखे थे। पर हकीकत में उसने कभी सपने में भी यह सोचा नहीं था की एक दिन ऐसी हसीना उसे सामने चलकर चुदवाने का न्यौता देगी। कालिया ने लोहे के दरवाजे से मुंह लगा कर कहा, "देखो, तुम बाहर आ जाओ। मेरा घर बाजू में ही है। वहाँ कोई चौकीदार नहीं है। हम पिछले वाले दरवाजे से जाएंगे। यहां से जैसे निकालेंगे ना उसके बाद तुरंत बाएं में एक दरवाजा है। मेरे पास उसकी चाभी है। उसको खोलते ही मेरा घर है। हम वहाँ चलते हैं।"

अपर्णा ने अंदर की और देख कर कहा, "नहीं। तुम अंदर आजाओ। बाहर कोई भी हमें देख सकता है। मेरे पति और कर्नल साहब गहरी नींद सो रहे हैं। तुम आ जाओ और मेरी भूख शांत करो।" कालिया कुछ देर सोचता रहा तब अपर्णा ने कहा, "ठीक है। लगता है तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है। तो मैं फिर सो जाती हूँ। अगर तुम मेरी चुदाई कर मेरी भूख शांत करना नहीं चाहते हो तो मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं। कल मैं तुम्हारे जनरल साहब को कहूँगी की तुमने मेरे साथ क्या क्या किया था।" कालियाने सोचा नेकी और पूछ पूछ? जब यह इतनी खूबसूरत औरत सामने चलकर चूदवाने का न्योता दे रही है और ऊपर से धमकी दे रही है की अगर उसको नहीं चोदा तो वह शिकायत कर देगी, तो फिर सोचना क्या? उसके पास बन्दुक तो थी ही, तो फिर अगर कुछ गड़बड़ हो गयी तो वह उनको गोली मार देगा। यह सोच कालिया ने कहा, "ठीक है। तुम दरवाजा खोलो।" अपर्णा के लोहे के दरवाजा खोलते ही कालिया अपनी बन्दुक लेकर डरते डरते कमरे के अंदर दाखिल हुआ। कालिया ने सावधानी से चारों तरफ देखा। चारों तरफ एकदम शान्ति थी। कोई हलचल नहीं थी।

पलंग पर से दोनों मर्दों की खर्राटें सुनाई दे रही थी। दरवाजे के पास ही गद्दा बिछा हुआ था। उस गद्दे पर अपर्णा सोइ होगी ऐसा कालिया ने मान लिया। उसे अँधेरे में कुछ ज्यादा साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। अंदर आते ही कालिया ने अपनी बन्दुक दरवाजे से थोड़ी अंदर की दीवार के सहारे रक्खी और अपर्णा को अपनी बाहों में लेनेके लिये अपर्णाकी और कमरेके अंदर आगे बढ़ा। कालिया जैसे ही अपर्णा के करीब पहुंचा की जीतूजी और रोहित दोनों पलंग पर रक्खे गद्दे को लेकर कालिया पर टूट पड़े। एक ही जबर दस्त झटके में दोनों ने कालिया को गिरा दिया और गद्दे में दबोच लिया जिससे उसके मुंह से कोई आवाज निकल ना सके।

अपर्णा ने फ़ौरन बन्दुक अपने हाथों में ले ली। जीतूजी ने फ़टाफ़ट गद्दा हटाया और अपर्णा के हाथों से बन्दुक लेकर कालिया की कान पट्टी पर रख कर बोले, "अगर ज़रा सी भी आवाज की तो मैं तुझे भून दूंगा। मैं हिन्दुस्तानी सेना का सिपाही हूँ और दुश्मनों को मारने में मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। तुम अगर अपनी जानकी सलामती चाहते हो तो हमें यहां से बाहर निकालो। क्या तुम हमें बाहर निकालोगे या नहीं?" कालिया ने कर्नल साहब की और देखा। उस अँधेरे में भी उसे कर्नल साहब का विकराल चेहरा दिखाई दे रहा था। वह समझ गया की कर्नल साहब कोरी धमकी नहीं दे रहे थे। कालिया ने फ़ौरन कर्नल साहब को अपना सर हिला कर कहा, "ठीक है।" कर्नल साहब ने कालिया की कान पट्टी पर बंदूक का तेज धक्का देकर कहा, "चलो और अपने कुत्तों को शांत करना वरना तुम्हें और उन्हें दोनों को गोली मार दूंगा।" कालिया आगे और उसके पीछे कर्नल साहब कालिया की कान पट्टी पर बंदूक सटाये हुए और उनके पीछे रोहित और अपर्णा चल पड़े। वही रास्ता जो कालिया ने अपर्णा को बताया था उसी रास्ते पर कालिया सबको अपने घर के पास ले गया।

अचानक दोनों हाउण्ड कर्नल साहब की गंध सूंघते ही भागते हुए वहाँ पहुंचे। कालिया ने झुक कर उन हाउण्ड का गला थपथपाया तो वह हाउण्ड वहाँ से चले गए। वह हाउण्ड कालिया को भली भाँती जानते थे। जब कालियाने उनका गला थपथपाया तो वह समझ गए की अब उनको कर्नल साहब की गंध के पीछे नहीं दौड़ना है। अब यह आदमी उनका दोस्त बन गया था ऐसा वह समझ गए। हाउण्ड से निजात पाते ही कालिया उन्हें लेकर आगे की और चल पड़ा। थोड़ा चलते ही वही नदी आ गयी जिसके किनारे किनारे वह काफिला आया था। जैसे ही सब नदी के किनारे पहुंचे, कर्नल साहब ने अचानक ही बंदूक ऊपर की और उठायी और फुर्ती से बड़े ही सटीक चौकसी से और बड़ी ताकत से कालिया को सतर्क होने का कोई मौक़ा ना देते हुए बंदूक का भारी सिरा कालिया के सर पर दे मारा। कालिया के सर पर जैसे ही बंदूक का भारी सिरा लगा, तो कालिया चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा। कालिया की कानपट्टी से खून की धार निकल पड़ी। इतने जोर का वार कालिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। एक उलटी कर कालिया वहीँ ढेर हो गया।

रोहित और अपर्णा ने जीतूजी का ऐसा भयावह रूप पहले नहीं देखा था। उनके चेहरे पर हैरानगी देख कर कर्नल साहब ने कहा, "यह लड़ाई है। यहाँ जान लेना या देना आम बात है। अगर हम ने इसको नहीं मारा होता तो वह हम को मार देता। अब हमें इसकी बॉडी को ऐसे ठिकाने लगाना है जिससे वह दुश्मन के सिपाहियों को आसानी से मिल ना सके ताकि पहले दुश्मन कालिया की बॉडी ढूंढने में अपना काफी वक्त गँवाएँ। और हमें कुछ ज्यादा वक्त मिल सके।" जीतूजी का सोचने का तरिका सुनकर अपर्णा जीतूजी की कायल हो गयी। जीतूजी ने कालिया की बॉडी को टांगों से नदी की और घसीटना चालु किया। रोहित भी जीतूजी की मदद करने आ गए। दोनों ने मिलकर कालिया की बॉडी को नदी के किनारे एक ऐसी जगह ले आये जहां से उन्होंने दोनों ने मिलकर उसे उछालकर निचे नदी में फेंक दिया। नदी के पानी का बहाव पुर जोश में था। देखते ही देखते, नदी के बहाव में कालिया की बॉडी गायब हो गयी।

वैसे ही चारों और काफी अन्धेरा था। आकाश में काले घने बादल छाने लगे और बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी। आगे रास्ता साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। दिन की गर्मी की जगह अब ठंडा मौसम हो रहा था। जीतूजी ने रोहित का हाथ थामा और उनके हाथोंमें कालिया की बंदूक थमा दी। जीतू जी ने अपर्णा को कहा, "अपर्णा तुम सबसे आगे चलो। मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा। आखिर में रोहित चलेंगे। हम सब पेड़ के साथ साथ चलेंगे और एक दूसरे के बिच में कुछ फैसला रखेंगे ताकि यदि दुश्मन की गोली का फायरिंग हो तो छुप सकें और अगर एक को लग जाए तो दुसरा सावधान हो जाए।" फिर जीतूजी रोहित की और घूम कर बोले, "रोहित अगर हमें कुछ हो जाये तो आप इस बंदूक को इस्तेमाल करने से चूकना नहीं। अब हमें बड़ी फुर्ती से भाग निकलना है। हमारे पास ज्यादा से ज्यादा सुबह के पांच बजे तकका समय है। शायद उतना समय भी ना मिले। पर सुबह होते ही सब हमें ढूंढने में लग जाएंगे। तब तक कैसे भी हमें सरहद पार कर हमारे मुल्क की सरहद में पहुँच जाना है।"

रोहित ने बंदूक अपने हाथ में लेते हुए कहा, "यह तो ठीक है। पर मेरा काम कलम चलाना है, बंदूक नहीं। मुझे बंदूक चलाना आता ही नहीं।" जीतूजी थोड़ा सा चिढ कर बोल उठे, "काश! यहां आपको बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने का थोड़ा ज्यादा समय होता। खैर यह देखिये...." ऐसा कह कर जीतूजी ने रोहित को करीब पाँच मिनट बंदूक का सेफ्टी कैच कैसे खोलते हैं, गोली दागने के समय कैसे पोजीशन लेते हैं, गोली का निशाना कैसे लेतेहैं वह सब समझाया। जीतूजी ने आखिर में कहा, "रोहित, हम सबको नदी के किनारे किनारे ही चलना है क्यूंकि आगे चलकर इसी नदी के किनारे हमारा कैंप आएगा। थक जाने पर बेहतर यही होगा की आराम करने के लिए भी हम लोग किसी झाडी में छुप कर ही आराम करेंगे ताकि अगर दुश्मन हमारे करीब पहुँच जाए तो भी वह आसानी से हमें ढूंढ ना सके।" काफी अँधेरा था और रोहित को क्या समझ आया क्या नहीं वह तो वह ही जाने पर आखिर में रोहित ने कहा, "जीतूजी, फिलहाल तो आप बंदूक अपने पास ही रखिये। वक्त आने पर मैं इसे आप से ले लूंगा। अब मैं सबसे आगे चलता हूँ आप अपर्णा के पीछे पीछे चलिए।"

रोहित ने आगे पोजीशन ले ली, करीब ५० कदम पीछे अपर्णा और सबसे पीछे जीतूजी गन को हाथ में लेकर चल दिए। बारिश काफी तेज होने लगी थी। रास्ता चिकना और फिसलन वाला हो रहा था। तेज बारिश और अँधेरे के कारण रास्ता ठीक नजर नहीं आ रहा था। कई जगह रास्ता ऊबड़खाबड़ था। वास्तव में रास्ता था ही नहीं। रोहित नदीके किनारे थोड़ा अंदाज से थोड़ा ध्यान से देख कर चल रहे थे। नदीमें पानी काफी उफान पर था। कभी तो नदी एकदम करीब होती थी, कभी रास्ता थोड़ी दूर चला जाता था तो कई बार उनको कंदरा के ऊपर से चलना पड़ता था, जहां ऐसा लगता था जैसे नदी एकदम पाँव तले हो।

उनको चलते चलते करीब एक घंटे से ज्यादा हो गया होगा। वह काफी आगे निकल चुके थे। रोहित काफी थकान महसूस कर रहे थे। चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। ऐसे ही चलते चलते रोहित एक नदी के बिलकुल ऊपर एक कंदरा के ऊपर से गुजर रहे थे। रोहित आगे निकल गए, पर अपर्णा का पाँव फिसला क्यूंकि अपर्णा के पाँव के निचे की मिटटी नदी के बहाव में धँस गयी और देखते ही देखते अपर्णा को जैसे जमीन निगल गयी। पीछे आ रहे जीतूजी ने देखा की अपर्णा के पाँव के निचे से जमीन धँस गयी थी और अपर्णा नदी के बहावमें काफी निचे जा गिरी। गिरते गिरते अपर्णा के मुंह से जोरों की चीख निकल गयी, "जीतूजी बचाओ.... जीतूजी बचाओ..." जोर जोर से चिल्लाने लगी, और कुछ ही देर में देखते ही देखते पानी के बहाव में अपर्णा गायब हो गयी।" उसी समय जीतूजीने जोरसे चिल्लाकर अपर्णा को कहा, "अपर्णा, डरना मत, मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ।"

यह कह कर उन्होंने रोहित की और बंदूक फेंकी और जोर से चिल्लाते हुए रोहित से कहा, "आप इसे सम्हालो, आप बिलकुल चिंता मत करो मैं अपर्णा को बचा कर ले आऊंगा। आप तेजी से आगे बढ़ो और नदी के किनारे किनारे पेड़ के पीछे छुपते छुपाते आगे बढ़ते रहो और सरहद पार कर कैंप में पहुंचो। भगवान् ने चाहा तो मैं आपको अपर्णा के साथ कैंप में मिलूंगा।" ऐसा कह कर जीतूजी ने ऊपर से छलाँग लगाई और निचे नदी के पुरजोर बहाव में कूद पड़े। रोहित को पानी में जीतूजी के गिरने की आवाज सुनाई दी और फिर नदी के बहाव के शोर के कारण और कुछ नहीं सुनाई दिया।

रोहितका सर इतनी तेजीसे हो रहे सारे घटनाचक्र के कारण चकरा रहा था। वह समझ नहीं पा रहे थे की अचानक यह क्या हो रहा था? एक सेकंड में ही कैसे बाजी पलट जाती है। जिंदगी और मौत कैसे हमारे साथ खेल खेलते हैं? क्या हम कह सकते हैं की अगले पल क्या होगा? जिंदगी के यह उतार चढ़ाव "कभी ख़ुशी, कभी गम" और "कल हो ना हो" जैसे लग रहे थे। वह थोड़ी देर स्तब्ध से वहीँ खड़े रहे। फिर उनको जीतूजी की सिख याद आयी की उन्हें फुर्ती से बिना समय गँवाये आगे बढ़ना था। रोहित की सारी थकान गायब हो गयी और लगभग दौड़ते हुए वह आगे की और अग्रसर हुए। जहां तक हो सके वह नदी के किनारे पेड़ों और जंगल के रास्ते ही चल रहे थे जिससे उन्हें आसानी से देखा ना जा सके। अँधेरा छटने तक रास्ता तय करना होगा। सुबह होने पर शायद उन्हें कहीं छुपना भी पड़े।

जीतूजी ऊपर पहाड़ी से सीधे पानी में कूद पड़े। पानी का तेज बहाव के उपरांत पानी में कई जगह पानी में चक्रवात (माने भँवर) भी थे जिसमें अगर फ़ँस गए तो किसी नौसिखिये के लिए तो वह मौत का कुआं ही साबित हो सकता था। ऐसे भँवर में तो अच्छे अच्छे तैराक भी फँस सकते थे। इनसे बचते हुए जीतूजी आगे तैर रहे थे। किस्मत से पानी का बहाव उनके पक्षमें था। माने उनको तैरने के लिए कोई मशक्कत करने की जरुरत नहीं थी। पर उन्हें अपर्णा को बचाना था। वह दूर दूर तक नजर दौड़ा कर अपर्णा को ढूंढ ने लगे। पर उनको अपर्णा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। एक तो अँधेरा ऊपर से पानी का बहाव पुर जोश में था। अपर्णा के फिसलने और जीतूजी के कूदने के बिच जो दो मिनट का फासला रहा उसमें नदी के बहाव में पता नहीं अपर्णा कितना आगे बह के निकल गयी होगी। जीतूजी को यह डर था की अपर्णा को तैरना तो आता नहीं था तो फिर वह अपने आपको कैसे बच पाएगी उसकी चिंता उन्हें खाये जा रही थी। जीतूजी ने जोर से पानी में आगे की और तैरना चालु रखा साथ साथ में यह देखते भी रहे की पानी के बहाव में अपर्णा कहीं किनारे की और तो नहीं चली गयी? पानी का बहाव जितना जीतूजी को आगे अपर्णा के करीब ले जा रहा था उतना ही अपर्णा को भी तेजी से जीतूजी से दूर ले जा रहा था। अपर्णा ने जीतूजी के चिल्लाने की और उसे बचाने के लिए वह आ रहे हैं, यह कहते हुए उन की आवाज सुनी थी। पर उसे यकीन नहींथा की नदी का इतना भयावह रूप देख कर वह अपनी जान इस तरह जोखिम में डालेंगे।

थोड़ी दूर निकल जाने के बाद नदी के तेज बहाव में बहते हुए अपर्णा ने जब पीछे की और अपना सर घुमा के देखा तो अँधेरे में ही जीतूजी की परछाईं नदी में कूदते हुए देखि। उसे पूरा भरोसा नहींथा की जीतूजी उसके पीछे कूदेंगे। इतने तेज पानी के बहाव में कूदना मौत के मुंह में जाने के जैसा था। पर जब अपर्णा ने देखा की जीतूजी ने अपनी जान की परवाह नाकर उसे बचाने के लिए इतने पुरजोश बहाव में पागल की तरह बहती नदी में कूद पड़े तो अपर्णा के ह्रदय में क्या भाव हुए वह वर्णन करना असंभव था। उस हालात में अपर्णा को अपने पति से भी उम्मीद नहीं थी की वह उसे बचाने के लिए ऐसे कूद पड़ेंगे। अपर्णा को तब लगा की उसे जितना अपने पति पर भरोसा नहीं था उतना जीतूजी के प्रति था। उसे पूरा भरोसा हो गया की जीतूजी उसे जरूर बचा लेंगे। वह जानती थी की जीतूजी कितने दक्ष तैराक थे। अपर्णा का सारा डर जाता रहा। उसका दिमाग जो एक तरहसे अपनी जान बचाने के लिए त्रस्त था, परेशान था; अब वह अपनी जान के खतरे से निश्चिन्त हो गया।

अब वह ठंडे दिमाग से सोचनी लगी की जो ख़तरा सामने है उससे कैसे छुटकारा पाया जाये और कैसे जीतूजी के करीब जाया जाये ताकि जीतूजी उसे उस तेज बहाव से उसे बाहर निकाल सकें। अब सवाल यह था की इतने तेज बहाव में कैसे अपने बहने की गति कम की जाए ताकि जीतूजी के करीब पहुंचा जासके। अपर्णा जानती थी की उसे ना तो तैराकी आती थी नाही उसके अंदर इतनी क्षमता थी की पानी के बहाव के विरूद्ध वह तैर सके।

उसे अपने आप को डूबनेसे भी बचाना था। उसके लिए एक ही रास्ता था। जो जीतूजी ने उसे उस दिन झरने में तैरने के समय सिखाया था। वह यह की अपने आपको पानी पर खुला छोड़ दो और डूबने का डर बिलकुल मन में ना रहे। अपर्णा ने तैरने की कोशिश ना करके अपने बदन को पानी में खुल्ला छोड़ दिया और जैसे पानी की सतह पर सीधा सो गयी जैसे मुर्दा सोता है। पानी का बहाव उसे स्वयं अपने साथ खींचे जा रहा था। अब उसकी प्राथमिकता थी की अपनी गति को कम करे अथवा कहीं रुक जाए। अपने बलबूते पर तो अपर्णा यह कर नहीं सकती थी। कहावत है ना की "हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा।" यानी अगर आप हिम्मत करेंगे तो खुदा भी आपकी मदद करेगा। उसी समय उसको दूर एक पेड़ जैसा दिखाई दिया जो नदी में डूबा हुआ था पर नदी के साथ बह नहीं रहा था। इसका मतलब यह हुआ की पेड़ जमीन में गड़ा हुआ था और अगर अपर्णा उस पेड़ के पास पहुँच पायी तो उसे पकड़ कर वह वहाँ थम सकती है जिससे जीतूजी जो पीछे से बहते हुए आ रहे थे वह उसे मिल पाएंगे। अपर्णा ने अपने आपको पेड़ की सीध में लिया ताकि कोशिश ना करने पर भी वह पेड़ के एकदम करीब जा पाए। उसे अपने आपको पेड़ से टकराने से बचाना भी था। बहते बहते अपर्णा पेड़ के पास पहुँच ही गयी। पेड़ से टकराने पर उसे काफी खरोंचें आयीं और उस चक्कर में उसके कपडे भी फट गए। पर ख़ास बात यह थी की अपर्णा अपनी गति रोक पायी और बहाव का मुकाबला करती हुई अपना स्थान कायम कर सकी। अपर्णा ने अपनी पूरी ताकत से पेड़ को जकड कर पकड़ रक्खा। अब सारा पानी तेजी से उसके पास से बहता हुआ जा रहा था। पर क्यूंकि उसने अपने आपको पेड़ की डालों के बिच में फाँस रक्खा था तो वह बह नहीं रही थी। अपर्णा ने कई डालियाँ, पौधे और कुछ लकड़ियां भी बहते हुए देखीं। पानी का तेज बहाव उसे बड़ी ताकत से खिंच रहा था पर वह टस की मस नहीं हो रही थी।

हालांकि उसके हाथ अब पानी के सख्त बहाव का अवरोध करते हुए कमजोर पड़ रहे थे। अपर्णा की हथेली छील रही थी और उसे तेज दर्द हो रहा था। फिर भी अपर्णा ने हिम्मत नहीं हारी। कुछ ही देर में अपर्णा को उसके नाम की पुकार सुनाई दी। जीतूजी जोर शोर से "अपर्णा..... अपर्णा.... तुम कहाँ हो?" की आवाज से चिल्ला रहे थे और इधर उधर देख रहे थे। अपर्णा को दूर जीतूजी का इधर उधर फैलता हुआ हाथ का साया दिखाई दिया। अपर्णा फ़ौरन जीतूजी के जवाब में जोर शोर से चिल्लाने लगी, "जीतूजी!! जीतूजी.... जीतूजी..... मैं यहां हूँ।" चिल्लाते चिल्लाते अपर्णा अपना हाथ ऊपर की और कर जोर से हिलाने लगी। अपर्णा को जबरदस्त राहत हुई जब जीतूजी ने जवाब दिया, "तुम वहीँ रहो। मैं वहीँ पहुंचता हूँ। वहाँ से मत हिलना।"

पर होनी भी अपना खेल खेल रही थी। जैसे ही अपर्णा ने अपने हाथ हिलाने के लिए ऊपर किये और जीतूजी का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिलाये की पेड़ की डाल उसके हाथ से छूट गयी और देखते ही देखते वह पानी के तेज बहाव में फिर से बहने लगी। जीतूजी ने भी देखा की अपर्णा फिर से बहाव में बहने लगी थी। उन्हें कुछ निराशा जरूर हुई पर चूँकि अब अपर्णा को उन्होंने देख लिया था तो उनमें एक नया जोश और उत्साह पैदा हो गया था की जरूर वह अपर्णा को बचा पाएंगे। उन्होंने अपने तैरने की गति और तेज कर दी। अपर्णा और उनके बिच का फासला कम हो रहा था क्यूंकि अपर्णा बहाव के सामने तैरने की कोशिश कर रही थी और जीतूजी बहाव के साथ साथ जोर से तैरने की। देखते ही देखते जीतूजी अपर्णा के पास पहुंचे ही थे की अचानक अपर्णा एक भँवर में जा पहुंची और उस के चक्कर में फँस गयी। जीतूजीने देखा की अपर्णा पानी के अंदर रुक गयी पर एक ही जगह भँवर के कारण गोल गोल घूम रही थी। पानी में खतरनाक भँवर हो रहे थे। उस भँवर में फंसना मतलब अच्छे खासे तैराक के लिए भी जानका खतरा हो सकता था।

अगर उन्होंने अपर्णा को फ़ौरन पकड़ा नहीं और अपर्णा पानी के भँवर में बिच की और चली गयी तो सीधी ही अंदर चली जायेगी और दम घुटने से और ज्यादा पानी पीने से उसकी जान भी जा सकती थी। पर दूसरी तरफ एक और खतरा भी था। अगर वह अंदर चले गए तो उनकी जान को भी कोई कम ख़तरा नहीं था। एक बार भँवर में फँसने का मतलब उनके लिए भी जान जोखिम में डालना था। पर जीतूजी उस समय अपनी जान से ज्यादा अपर्णा की जान की चिंता में थे। बिना सोचे समझे जीतूजी भँवर के पास पहुँच गए और तेजी से तैरते हुए सुनिता का हाथ इन्होने थाम लिया। जैसे ही अपर्णा भँवर में फँसी तो उसने अपने बचने की आशा खो दी थी। उसे पता था की इतने तेज भंवर में जाने की हिम्मत जीतूजी भी नहीं कर पाएंगे। किसी के लिए भी इतने तेज भँवर में फँसना मतलब जान से हाथ धोने के बराबर था। पर जब जीतूजी ने अपर्णा का हाथ अपने हाथ में थामा तो अपर्णा के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। "यह कैसा पागल आदमी है? अपर्णा को बचाने के लिए अपने जान की भी परवाह नहीं उसे?" अपर्णा हैरान रह गयी। उसे कोई उम्मीद नहीं थी और नाही वह चाहती थी की जीतूजी अपनी जान खतरे में डाल कर उसे बचाये।

पर जीतूजी ने अपर्णा का ना सिर्फ हाथ पकड़ा बल्कि आगे तैर कर अपर्णा को अपनी बाँहों में भर लिया और कस के अपर्णा को अपनी छाती से ऐसे लगा लिया जैसे वह कोई दो बदन नहीं एक ही बदन हों। अपर्णा ने भी अपना जान बचाने के चक्कर में जीतूजी को कस कर पकड़ लिया और अपनी दोनों बाजुओं से उनसे कस के लिपट गयी। भँवर बड़ा तेज था। जीतूजी इतने एक्सपर्ट तैराक होने के बावजूद उस भँवर में से निकलने में नाकाम साबित हो रहे थे। ऊपर से बारिश एकदम तेज हो गयी थी। पानी का बहाव तेज होने के कारण भँवर काफी तेजी से घूम रहा था। जीतूजी और अपर्णा भी उस तेज भँवर में तेजी से घूम रहे थे। घूमते घूमते वह दोनों धीरे धीरे भँवर के केंद्र बिंदु (जिसे भँवर की आँख कहते हैं) की और जा रहे थे। वह सबसे खतरनाक खाई जैसी जगह थी जिस के पास पहुँचते ही जो भी चीज़ वहाँ तक पहुँचती थी वह समुन्दर की गोद में गायब हो जाती थी। भंवर काफी गहरा होता है। २० फ़ीट से लेकर १०० फ़ीट से भी ज्यादा का हो सकता है।

जीतूजी का सर चक्कर खा रहा था। भँवर इतनी तेजी से घूमर घूम रहा था की किसी भी चीज़ पर फोकस कर रखना नामुमकिन था। जीतूजी फिर भी अपना दिमाग केंद्रित कर वहाँ से छूटने में बारे में सोच रहे थे। अपर्णा अपनी आँखें बंद कर जो जीतूजी करेंगे और जो भगवान् को मंजूर होगा वही होगा यह सोचकर जीतूजी से चिपकी हुई थी। थकान और घबराहट के कारण अपर्णा जीतूजी से करीब करीब बेहोशी की हालात में चिपकी हुई थी। तब अचानक जीतूजी को एक विचार आया जो उन्होंने कहीं पढ़ा था। उन्होंने अपर्णा को अपने से अलग करने के लिए उसके हाथ हटाए और अपने बदन से उसे दूर किया। अपर्णा को कस के पकड़ रखने के उपरांत उन्होंने अपर्णा और अपने बदन के बिच में कुछ अंतर रखा, जिससे भँवर के अंदर काफी अवरोध पैदा हो। एक वैज्ञानिक सिद्धांत के मुताबिक़ अगर कोई वस्तु अपकेंद्रित याने केंद्र त्यागी (सेन्ट्री-फ्यूगल) गति चक्र में फंसी हो और उसमें और अवरोध पैदा किया जाये तो वह उस वस्तु को केंद्र से बाहर फेंकने को कोशिश करेगी। अपर्णा को अलग कर फिर भी उसे कस के पकड़ रखने से पैदा हुए अतिरिक्त अवरोध के कारण दोनों जीतूजी और अपर्णा भँवर से बाहर की और फेंक दिए गए।

जीतूजी ने फ़ौरन ख़ुशी के मारे अपर्णा को कस कर छाती और गले लगाया और अपर्णा को कहा, "शुक्र है, हम लोग भँवर से बाहर निकल पाए। आज तो हम दोनों का अंतिम समय एकदम करीब ही था। अब जब तक हम पानी के बाहर निकल नहीं जाते बस तुम बस मुझसे चिपकी रहो और बाकी सब मुझ पर छोड़ दो। मुझे पूरा भरोसा है की हमें भगवान् जरूर बचाएंगे।" अपर्णा ने और कस कर लिपट कर जीतूजी से कहा, "मेरे भगवान् तो आप ही हैं। मुझे भगवान् पर जितना भरोसा है उतना ही आप पर भरोसा है। अब तो मैं आपसे चिपकी ही रहूंगी। आज अगर मैं मर भी जाती तो मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता क्यूंकि मैं आपकी बाँहों में मरती। पर जब बचाने वाले आप हों तो मुझे मौत से कोई भी डर नहीं।

पानी के तेज बहावमें बहते बहते भी अपर्णा जीतूजी से ऐसे लिपट गयी जैसे सालों से कोई बेल एक पेड़ से लिपट रही हो। अपर्णा को यह चिंता नहीं थी की उसका कौनसा अंग जीतूजी के कौनसे अंगसे रगड़ रहाथा। उसके शरीर पर से कपडे फट चुके थे उसका भी उसे कोई ध्यान नहीं था। अपर्णा का टॉप और ब्रा तक फट चूका था। वह जीतूजी के गीले बदन से लिपट कर इतनी अद्भुत सुरक्षा महसूस कर रही थी जितनी उसने शायद ही पहले महसूस की होगी। भँवर में से निकल ने के बाद जीतूजी अब काफी कुछ सम्हल गए थे। अब उनका ध्येय था की कैसे पानी की बहाव का साथ लिए धीरे धीरे कोशिश कर के किनारे की और बढ़ा जाए।

उन्होंने अपर्णा के सर में चुम्बन कर के कहा, "अपर्णा अब तुम मुझे छोड़ कर पानी में तैर कर बह कर किनारे की और जाने की कोशिश करो। मैं तुम्हारे साथ ही हूँ और तुम्हारी मदद करूंगा।" पर अपर्णा कहाँ मानने वाली थी? अपर्णा को अब कोई तरह की चिंता नहीं थी। अपर्णा ने कहा, "अब इस मुसीबत से आप अपना पिंड नहीं छुड़ा सकते। अब मैं आपको छोड़ने वाली नहीं हूँ। वैसे भी मुझमें तैरने की हिम्मत और ताकत नहीं है। अब आपको किनारे ले जाना है तो ले जाओ और डुबाना है तो डुबाओ।" इतना बोल कर अपर्णा जीतूजी के बदन से लिपटी हुई ही बेहोश हो गयी। अपर्णा काफी थकी हुई थी और उसने काफी पानी भी पी लिया था। जीतूजी धीरे धीरे अपर्णा को अपने बदन से चिपकाए हुए पानी को काटते हुए कम गहराई वाले पानी में पहुँचने लगे और फिर तैरते, हाथ पाँव मारते हुए गिरते सम्हलते कैसे भी किनारे पहुँच ही गए। किनारे पहुँचते ही जीतूजी अपर्णा के साथ ही गीली मिटटी में ही धड़ाम से गिर पड़े। अपर्णा बेहोशी की हालत में थी। जीतूजी भी काफी थके हुए थे। वह भी थकान के मारे गिर पड़े। अपर्णा ने बेहोशी की हालत में भी जीतूजी का बदन कस के जकड रखा था और किनारे पर भी वह जीतूजी के साथ ऐसे चिपकी हुई थी जैसे किसी गोंद से उसे जीतू जी से चिपका दिया गया हो। दोनों एक दूसरे से के बाजू में एकदूसरे से लिपटे हुए भारी बारिश में लेटे हुए थे।

उस समय उन दोनों में से किसी को यह चिंता नहीं थी की उनके बदन के ऊपर कौनसा कपड़ा था या नहीं था। बल्कि उन्हें यह भी चिंता नहीं थी की कई रेंगते हुए कीड़े मकोड़े उनको बदन को काट सकते थे। जीतूजी ने बेहोश अपर्णा को धीरे से अपने से अलग किया। उन्होंने देखा की अपर्णा काफी पानी पी चुकी थी। जीतूजी ने पानी में से निकलने के बाद पहली बार अपर्णा के पुरे बदन को नदी के किनारे पर बेफाम लेटे हुए देखा। अपर्णा का स्कर्ट करीब करीब फट गया था और उसकी जाँघें पूरी तरह से नंगी दिख रही थी। अपर्णा की छोटी से पैंटी उसकी चूत के उभार को छुपाये हुए थी। अपर्णा का टॉप पूरा फट गया था और अपर्णाकी छाती पर बिखरा हुआ था। उसकी ब्रा को कोई अतापता नहीं था। अपर्णाके मदमस्त स्तन पूरी तरह आज़ाद फुले हुए हलके हलके झोले खा रहे थे। पर जीतूजी को यह सब से ज्यादा चिंता थी अपर्णा के हालात की। उन्होंने फ़ौरन अपर्णा के बदन को अपनी दो जाँघों के बिच में लिया और वह अपर्णा के ऊपर चढ़ गए। दूर से देखने वाला तो यह ही सोचता की जीतूजी अपर्णा को चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़े हुए थे। अपर्णा का हाल भी तो ऐसा ही था। वह लगभग नंगी लेटी हुई थी। उसके बदन पर उसकी चूत को छिपाने वाला पैंटी का एक फटा हुआ टुकड़ा ही था और फटा हुआ टॉप इधरउधर बदन पर फैला हुआ था जिसे जीतूजी चाहते तो आसानी से हटा कर फेंक सकते थे।

जीतूजी ने अपर्णा के बूब्स के ऊपर अपने दोनों हाथलियाँ टिकायीं और अपने पुरे बदन का वजन देकर दोनों ही बूब्स को जोर से दबाते हुए पानी निकालने की कोशिश शुरू की। पहले वह बूब्स को ऊपर से वजन देकर दबाते और फिर उसे छोड़ देते। तीन चार बार ऐसा करने पर एकदम अपर्णा ने जोर से खांसी खाते हुए काफी पानी उगल ना शुरू किया। पानी उगल ने के बाद अपर्णा फिर बेहोश हो गयी।

जीतूजी ने जब देखा की अपर्णा फिर बेहोश हो गयी तो वह घबड़ाये। उन्होंने अपर्णा की छाती पर अपने कान रखे तो उन्हें लगा की शायद अपर्णा की साँस रुक गयी थी। जीतूजी ने फ़ौरन अपर्णा को कृत्रिम साँस (आर्टिफिशल रेस्पिरेशन) देना शुरू किया। जीतू जी ने अपना मुंह अपर्णा के मुंह पर सटा लिया और उसे अपने मुंह से अपनी स्वास उसे देने की कोशिश की। अचानक जीतूजी ने महसूस किया की अपर्णा ने अपनी बाँहें उठाकर जीतूजी का सर अपने हाथों में पकड़ा और जीतूजी के होँठों को अपने होँठों पर कस के दबा कर जीतूजी के होँठों को चूसने लगी।

जीतूजी समझ गए की अपर्णा पूरी तरह से होश में आ गयी थी और अब वह कुछ रोमांटिक मूड में थी। जीतूजी ने अपना मुँह हटा ने की कोशिश की और बोले, "छोडो, यह क्या कर रही हो?" तब अपर्णा ने कहा, "अब तो मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ तुम अब देखना।"

उधर....

रोहित की आँखों के सामने कितने समय के बाद भी अपर्णा के फिसल कर नदी में गिर जाने का और जीतूजी के छलाँग लगा कर नदी में कूदने का ने का दृश्य चलचित्र की तरह बार बार आ रहा था। उन्हें बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की उनमें उतना आत्मविश्वास या यूँ कहिये की साहस नहीं था की वह अपनी जान जोखिममें डालकर अपनी बीबी को बचाएं। वह अपने आपको कोस रहे थे की जो वह नहीं कर सके वह जीतूजी ने किया। रोहित ने मन ही मन तय किया की अगर मौक़ा मिला तो वह भी अपनी जान जोखिम में डाल कर अपने अजीज़ को बचाने से चूकेंगे नहीं। आखिर देश की आजादी के लिए कुरबानियां देनी ही पड़तीं हैं। अब आगे अंजाम क्या होगा: अपर्णा ज़िंदा बचती है या नहीं, जीतूजी अपर्णा को बचा पाते हैं या नहीं और क्या जीतूजी खुद बच पाते हौं या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा। अब रोहित को तो सिर्फ अपने आप को बचाना था। अचानक ही तीन में से दो लोग जाते रहे। उन्हें ना तो रास्ते का पता था और ना तो कौनसी दिशा में जाना है उसका पता था। जीतूजी के बताये हुए निर्देश पर ही उन्होंने चलना ठीक समझा। रोहित ने अपनी आगे बढ़ने की गति और तेज कर दी। उन्हें सम्हाल के भी चलना था क्यूंकि उन्होंने देखा था की नदी के एकदम करीब चलने में बड़ा ही खतरा था। रोहित की चाल दौड़ में बदल गयी। अब उन्हें बचाने वाले जीतूजी नहीं थे। अब जो भी करना था उन्हें ही करना था। साथ में उनके पास गन भी थी।

अँधेरे में पेड़ों को ढूंढते हुए गिरते लुढ़कते पर जितना तेज चल सके उतनी तेजी से वह आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में कई पत्थर और कीचड़ उनकी गति को धीमी कर देते थे। पर वह चलते रहे चलते रहे। उन्हें कोई दर्द की परवाह नहीं करनी थी, क्यूंकि अगर दुश्मनों ने उनको पकड़ लिया तो उन्हें मालुम था की जो दर्द वह देंगे उसके सामने यह दर्द तो कुछ भी नहीं था। एक तरीके से देखा जाए तो अपर्णा और जीतूजी नदी के तूफ़ान में जरूर फँसे हुए थे पर कमसे कम दुश्मनोंकी फ़ौज से पकडे जाने का डरतो उन्हें नहीं था। ऐसी कई चीज़ों को सोचते हुए अपनी पूरी ताकत से रोहित आगे बढ़ते रहे। चलते चलते करीब चार घंटे से ज्यादा वक्त हो चुका था। सुबह के चार बजने वाले होंगे, ऐसा अनुमान रोहित ने लगाया। रोहित की हिम्मत जवाब देने लगी थी। उनकी ताकत कम होने लगी थी। अब वह चल नहीं रहे थे उनका आत्मबल ही उन्हें चला रहा था। उनको यह होश नहीं था की वह कौनसे रास्ते पर कैसे चल रहे थे। अचानक उन्होंने दूर क्षितिज में बन्दुक की गोलियों की फायरिंग की आवाज सुनी। उन्होंने ध्यान से देखा तो काफी दुरी पर आग की लपटें उठी हुई थी और काफी धुआं आसमान में देखा जा रहा था। साथ ही साथ में दूर से लोगों की दर्दनाक चीखें और कराहट की आवाज भी हल्की फुलकी सुनाईदे रही थी।​
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